+ All Categories
Home > Documents > द ड िवधान के Dाचीन और वतòमान पर Dे (य एक...

द ड िवधान के Dाचीन और वतòमान पर Dे (य एक...

Date post: 16-Feb-2020
Category:
Upload: others
View: 2 times
Download: 0 times
Share this document with a friend
24
Rivista, 2017, 1, 1-24 Published Online: June 25, 2017 (http://inscribepublications.com/journal/rivista ) http://doi.org/10.26476/rivista.2017.01.01-24 ISSN: 2529-7953 Rivista दĉड िवधान के ńाचीन और वतòमान पĭरńेĨय: एक अčययन अचòना जैन 1 , मनोज राजगुƆ 2 1 ńाčयापक, संĞकृ त िवभाग, िवŰा भवन Ɔरल इंĞटीşूट, उदयपुर, भारत 313001 2 ńाčयापक, राजनीत िवúान िवभाग, िवŰा भवन Ɔरल इंĞटीşूट, उदयपुर, भारत 313001 Email: [email protected], [email protected] Received June 8, 2017; Revised June 20, 2017; Accepted June 25, 2017 सार मनुĝय हर युग मì सामा■जक ńाणी होते हुए भी कई बार समाज िवरोधी कायò भी करता है। इन कायƓ कĴ गणना अपराध के Ɔप मì होती है। इसी कारण समाज ने अपने ńĊयेक सदĞय कĴ सवòिवध सुरùा एवं उनके िहताथò िविवध िनयम एवं उपिनयम बनाए है। ■जĎहì संताĎय भाषा मì कानून अथवा िवध कहते हï। इĎहı से समाज मì सवòथा सुख-शाĖĎत, सुěयवĞथा बनाने का ńयास िकया जाता है। यह कहना गलत नहı होगा िअपराध कĴ अवधारणा एक समाज से दूसरे समाज मì तथा एक युग से दूसरे युग मì पĭरवतत होती रही है। इसी अनुƆप दĉड ěयवĞथा मì भी बदलाव ƅिŻगोचर होता है। िकसी भी समाज और संĞकृ त के इतहास का वतòमान और भिवĝय से गहरा सĔबĎध होता है। इसी संदभò मì ńाचीन भारतीय समाज मì अपराध के संदभò मì ńयुŎ दĉड ěयवĞथा जो ńाचीन सािहĊयƑ मì उŶेëखत हï। यिद तĊकालीन ěयवĞथा के अनुƇप ńावधान वतòमान मì भी अपनाये जाए तो संĞकृ त कĴ रùा संभव है और समाज मì अपराधƑ कĴ रोकथाम के ëलए ńाचीन अनुभवƑ का लाभ भी ëलया जा सकता है। Īकतु यह भी जƆरी नहı िक दĉड़ संबंधत ńाचीन िवधान और ńावधान वतòमान मì उपयोगी हो। इसी ƅिŻ से ńĞतुत आलेख मì ńाचीन सािहĊय मì उŶेëखत दĉड ěयवĞथा के साथ वतòमान दĉड ěयवĞथा के तुलनाĊमक संदभƓ का िवŹेषण ńĞतुत िकया जा रहा है। आलेख अपराध और दĉड कĴ सैūांतकĴ के साथ ही, ńाचीन और आधुिनक काल मì ńचëलत दĉड ěयवĞथा पर ńकाश डालता है और अंततः ńाचीन
Transcript
  • Rivista, 2017, 1, 1-24 Published Online: June 25, 2017 (http://inscribepublications.com/journal/rivista) http://doi.org/10.26476/rivista.2017.01.01-24

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन अचना जैन1, मनोज राजगु 2

    1 ा यापक, सं कृत िवभाग, िव ा भवन रल इं टी ूट, उदयपरु, भारत 313001 2 ा यापक, राजनीत िव ान िवभाग, िव ा भवन रल इं टी ूट, उदयपुर, भारत 313001

    Email: [email protected], [email protected]

    Received June 8, 2017; Revised June 20, 2017; Accepted June 25, 2017

    सार

    मनु य हर यगु म सामा■जक ाणी होते हुए भी कई बार समाज िवरोधी काय भी करता है। इन काय क गणना अपराध के प म होती ह।ै इसी कारण समाज न ेअपन े येक सद य क सविवध सुर ा एवं उनके िहताथ िविवध िनयम एवं उपिनयम बनाए है। ■ज ह संता य भाषा म कानून अथवा िवध कहत ेह। इ ह से समाज म सवथा सुख-शा त, सु यव था बनाने का यास िकया जाता ह।ै यह कहना गलत नह होगा िक

    अपराध क अवधारणा एक समाज से दसूर ेसमाज म तथा एक यगु से दसूर ेयगु म प रवतत होती रही है। इसी अनु प द ड यव था म भी बदलाव ि गोचर होता है। िकसी भी समाज और सं कृत के इतहास का वतमान और भिव य से गहरा स ब ध होता है।

    इसी संदभ म ाचीन भारतीय समाज म अपराध के संदभ म यु द ड यव था जो ाचीन सािह य म उ े खत ह। यिद त कालीन यव था के अनु प ावधान वतमान म भी अपनाये जाए तो सं कृत क

    र ा संभव है और समाज म अपराध क रोकथाम के लए ाचीन अनुभव का लाभ भी लया जा सकता है। कतु यह भी ज री नह िक द ड़ संबंधत ाचीन िवधान और ावधान वतमान म उपयोगी हो। इसी ि से तुत आलेख म ाचीन सािह य म उ े खत द ड यव था के साथ वतमान द ड यव था के

    तुलना मक संदभ का िव ेषण तुत िकया जा रहा है। आलेख अपराध और द ड क सै ांतक के साथ ही, ाचीन और आधिुनक काल म च लत द ड यव था पर काश डालता ह ै और अंततः ाचीन

  • 2 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    द ड यव था क वतमानका लक ासंिगकता को रखेांिकत करता है।

    संकेतश द अपराध, द ड, िनयम, संिहता, ावधान, ासंिगक

    1. तावना मनु य एक सामा■जक ाणी है। य - य मानव जीवन स य एवं समा■जक होता गया, य - य उसक आव यकताएँ बढ़ती गई, साथ ही स प के त मोह म भी वृ हुई। इसी मोह ने िववाद एवं

    लड़ाई-झगड़ को ज म िदया। ■जससे अपराध क पृ भूिम िन मत हुई। अपराध के शमन के लए ही द ड यव था का भी ादभुाव हुआ। इससे पूव क अपराध

    के संदभ म ाचीन और वतमान के ावधान क तुलना कर, सं ेप म अपराध और द ड का सै ांतक अथ जानना आव यक है।

    अपराध को अं ेजी म ’ ाइम‘ (Crime) कहते ह। ’ ाइम‘ लैिटन भाषा के श द ’ि मेन‘ (Crimen) से उ प हुआ है ■जसका अथ िनणय देना होता ह।ै ीक भाषा म ’ि मेन‘ श द का अथ अलगाव ह ैऔर सं ा के प म यह िकसी िनणय का बोध कराता ह।ै

    अपराध क कोई िन त प रभाषा नह है। मानव समाज म हमेशा प रवतन होते आए ह। प रवतनशील नैतक मू य , सामा■जक आव यकताओं एवं गतशील समय के साथ-साथ अपराध के स ब ध म भी मानवीय धारणाय बदलती रही ह। सामा■जक ि से यिद कोई मनु य ऐसा काय करता है जो समाज या

    यि िवशेष के लए हािन पहुंचान ेवाला हो तो ऐसे कम को अपराध क सं ा दी जाती है। विैदक समाज म ऋत के िवपरीत काय को दिैवक और सामा■जक अपराध एवं पाप माना गया ह।ै अपराध क ेणी म ऋत, दवैीय इ छा और सदाचार के िवपरीत िकये गए कम को रखा जा सकता ह,ै ■जसका उ ेख वेद भी करते ह। काला तर म वेद िवपरीत काय, अपराध मान ेगये। त कालीन जीवन म ऐसे समाज का संकेत है जो ऋत क िवध, य ीय जीवन, विैदक भाषा एवं सदाचरण म िव ास नह करते थे। उ ह अनृत, मृ वाच अ , अय , अप त आिद कहा गया है।

    आधुिनक काल म अपराध क प रभाषा िविवध कार से दी गई है। कुछ िव ान ने अपराध को केवल

    कानूनी ि कोण से प रभािषत िकया है। इ लयट और मे रल के अनुसार, ‘’अपराध कानून ारा िनिष (व■जत) वह काय ह,ै ■जसके बदले म उसके क ा को मृ य,ु जुमान,े कारावास, काम-घर, सुधार-गृह या जेल के ारा द डत िकया जा सकता ह ै[1]।”

    इस कार अपराध एक ऐसा काय है जो काननू क ि से व■जत है। ट पन के अनुसार, “अपराध कानून संिहता के उ ंघन म जानबूझकर िकया गया आचरण है जो िबना िकसी तर ा या औच य के िकया गया ह ैतथा जो रा य ारा द डनीय है [2]।”

    ह सबरी के अनुसार “यह एक ऐसा गरै-कानूनी कृ य है जो जनता के िव अपराध है और ■जसको करने वाले को कानून के अ तगत द डत िकया जाता है [3]।” बा स तथा टीटस के अनुसार, “अपराध एक ऐसा समाज-िवरोधी यवहार है, ■जसन े

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 3

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    सावजिनक भावना को कानून से िनिष सीमा तक उ ंघन िकया है [4]।” सभी प रभाषाओ ं के सार म यह कहा जा सकता है िक अपराध का अथ ऐसे यवहार से ह,ै जो समाज अथवा काननू ारा

    अ वीकृत है। अ वीकृत यवहार के कई अथ ह,ै जैसे- सामा■जक ि से अ वीकृत, नैतक ि से अ वीकृत एवं कानूनी ि से अ वीकृत। समाजशा ीय ि से जो यवहार अ वीकृत हो, ज री नह िक कानूनी ि म भी वह अपराध हो। आधुिनक समाज म अपराध का कानूनी (Legal) अथ ही मह व रखता है। जब कोई यि सामा■जक मानक का उ ंघन करता है और कानूनी ि या के अनुसार वह अपराधी घोिषत हो जाता ह,ै तो वह यि अपराधी कहलाता ह।ै कानूनी ि कोण से एक अथवा एक से अधक कानूनी ावधान /धाराओं के िव यवहार करना अपराध कहलाता है।

    ाचीन काल से अपराध को रोकने के लए द ड एवं याय क यव था चली आ रही है। मन,ु या व य, नारद आिद ऋिष मुिनय ने भी अपन ेधमशा म द ड क चचा क है। अतीत म द ड एक ऐसी यव था थी, ■जसके तहत अपराधी यि को द ड देना धम (क य) माना गया है। भारत म मनु मृत म याय मीमांसा तथा कौिट य के अथशा म द ड िवध से स ब धत सु थािपत यव थाओं का उ ेख िमलता है।

    शा दक प म ’द ड‘ श द सं कृत के द ड+ घङ्ः से बना ह,ै ■जसका अथ ह,ै जुमाना करना, शारी रक क देना आिद। अं जेी भाषा का 'Punishment' श द लेिटन भाषा के 'Pione' से बना

    ह,ै ■जसका अथ ह,ै जुमाना या हजाना देना। मूल प से इस श द म शारी रक या मान■सक क क अनुभूत भी िनहीत ह,ै जो िकसी समाज ारा व■जत काय को करन े वाला यि मशः देता ह ै अथवा भुगतता ह।ै साधारण बोलचाल क भाषा म द ड का अभ ाय ह,ै अपकार या द ु कम करने वाले को यातना पहुँचाना अथवा तािड़त करना। पर तु िवधक ि से द ड का एक िवश अथ है। द ड का अथ अपराधी को िकसी भी प म सजा देना है। िवध-वे ाओं एवं अपराधशा य ने द ड को िवभ प म पा रभािषत िकया ह-ै

    एन रको फेरी ने ’द ड‘ को ‘एक िवधक तरोध’ (Legal deterrent) बताया है [5]। सदरलड के अनुसार, “द ड म क या पीड़ा िनिहत रहती है जो समुदाय के सामा■जक मू य ारा यायोचत मानी जाती है [6]।”

    सारांशतः सामा■जक यव था के संर ण के लए जो काननू िन मत ह,ै उनके उ ंघन म िकए गए काय हेतु वे िन मत िकए जाते ह, उनके उ ंघन को रोकन ेके लए भय के प म अपराधी को िवधक एवं यायक ि या के तहत शारी रक, मान■सक या

    आथक क पंहुचाना द ड कहलाता है।

    सामा■जक एकता, शा त और यव था क सुर ा करना, अपराध का िनवारण करना, अपराधी को अपराध क पुनरावृ से रोकना, अपराधी को ाय त और प ाताप क अनुभूत कराना, समाज-

    िवरोधी त व म भय उ प करना, तशोध और आहत यि क तपूत, अ य यि य को अपराध

  • 4 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    से िनवा रत रखना, अपराधी म सुधार लाना द ड देन ेके पीछे िनिहत मुख उ े य है।

    2. ाचीन दडं यव था अपराध और द ड का इतहास उतना ही ाचीन ह ै■जतना िक मानव स यता का। मृत काल तक आत-ेआते अपराध क एक प एवं िव तृत सूची हम देखने को िमलती है। िह द ू िवध-शा य न ेअपराध का वणन मु य प से वाक् पा य, द ड पा य, तेय, साहस, ी सं हण और ाक णक के शीषक के अ तगत िकया है। ततु अ याय म केवल अपे ाकृत अधक मह वपूण अपराध तथा उनके लए िनधा रत िवभ कार के द ड को ततु िकया जा रहा है। शु नीतसार म अपराध के कार के बार म लखा गया है िक-

    कायको वायको मान■सकः सांस गक तथा। चतु वधोडपराधः स बु यबुि कृतो ि धा [7]।।

    2.1. वाक् पा य- वाक् पा य का शा दक अथ श द ारा हसा है, ■जसे हम सामा य प से गाली देना तथा िन दा करना समझ सकत े ह। नारद के अनुसार-देश, जात अथवा यि को अपमािनत करना अथवा मान■सक क पहुँचाते हुए उ वर म यु अपश द वाक् पा य है-

    देशजात कुलादीनामा ोश य सं तम।् य चः तकूलाथ वा पा यं तदु यते [8]।।

    का यायन ने वाक् पा य क प रभाषा देते हुए लखा है िक दसूर ेके स मखु संसार के िन दत श द का उ ारण, हु ंकार अथवा कठोर भाषा का योग

    करना वाक् पा य है [9]। वाक् पा य के लए िनधा रत द ड का व प तथा प रभाषा इस बात पर िनभर करती ह ै िक गाली देने वाला तथा ■जसे गाली दी गई है, उसक जात या है। साथ यह भी देखा जाता था िक िकस कार के अपश द का योग हुआ है।

    आसनशयनवा पथष ुसम े सुद डयः [10]।

    अथात ि जातय के साथ आसन, शयन, वातालाप और माग म समानता पाने का यास करन ेवाला शू द ड के यो य होता है। बृह पत ने वाक् पा य के लए समान वण, उ वण और िन न वण के यि य पर अथ द ड के िवषय म सामा य िनयम का तपादन करत े हुए कहा िक यिद दो समान वण के यि एक-दसूर ेपर आरोप लगात ेह तो उन दोन पर समान अथ-द ड होता है। िन न वण का यि यिद उ वण के यि पर आपे करता है तो उसे ि गुण तथा उ वण के यि पर इसका आधा अथ-द ड होता है [11]।

    मनु का भी कहना ह ै िक ा ण से कटु वचन कहने पर ि य 100 पण से और िन दनीय कटुवचन कहन ेपर उपयु द ड के दगुुने पण से वह द डनीय होता है।

    पञचाश ा णो द डः ि य याभशंसने। वै ये यादधपञचाश छू े ादशको दमः [12]।।

    िव ण ुका भी िवचार था िक समान वण के यि को अपश द कहने वाला 12 पण से तथा अपने से िन न जात के यि को अपश द कहने वाला 6 पण से द डनीय होता है [13]। गौतम का कहना है िक

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 5

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    यिद कोई ा ण, ीय या वै य को अपश द कहे तो उसे मशः पचास पण तथा पचीस पण का द ड देना चािहए। शु को अपश द कहने पर उसे कोई अथ-द ड नह देना चािहए [14]।

    2.2. द ड पा य - द ड पा य भी अपराध क सूची म शािमल ह।ै द ड पा य के तहत मु यतः शारी रक हसा को लया जाता है। कौिट य के अनुसार, िकसी को पश करना, पीटना और चोट पहुँचाना द ड पा य है।

    द डपर यं पशनमवगूण हतिमत।

    नारद के अनुसार, िकसी के अंग को हाथ, परै अथवा अ य श से पीिड़त करना द ड पा य ह ै[15]। बृह पत हाथ-परै, मु ा, भ म या क चड़ फककर और आयधु से पीड़ा पहुँचाने को द ड पा य मानते ह [16]। द ड पा य के अ तगत वृ , पशओु ंएवं दसूर े क स प के त िकये गए अपराध भी आते ह। नारद के अनुसार, द ड पा य हीन, म यम और उ म तीन कार का होता है जो िक मशः मारने के लए हाथ या हथयार उठाना, िबना िकसी अनुताप के आ मण करना और घायल करना है। द ड पा य म द ड देने के पूव यह अ छ तरह से देखा जाता था िक कौन दोषी ह ैऔर कौन िनद ष? इसे जानने के लए नारद कुछ ■स ा त का उ खे करते ह। उनके अनुसार जब दोन प एक साथ कलह करना ार भ करत ेह तो दोन को समान द ड िमलेगा। जो थम पा य ार भ करता ह ैवह िन त

    प से अपराधी ह,ै िक तु जो वयं यु र देते ह वह भी समान प से अपराधी है। इनम अपराध को

    ार भ करन े वाला ही अधक द डनीय माना गया। जब दोन समान प से कलह करते ह तो जो आगे बढ़कर िनर तर आ मण करता रहता है, उसे अपे ाकृत अधक द ड िमले, चाहे उसने आ मण िकया हो या नही। वाक् पा य क भाँत द ड पा य का द ड भी इस आधार पर िदया जाता था िक अपराध करने वाले तथा ■जसके त अपराध िकया गया है, उसक जात या ह?ै इस िवषय म का यायन का कथन है िक ■जस कार वाक् पा य म गाली देन ेवाले तथा ■जसे गाली दी जाती ह,ै उसक जात के अनुसार द ड तय होता था। उसी कार द ड पा य म भी होता ह।ै यिद अपराधी मार खाने वाले से िन न जात का होता तो उसे अधक द ड िदया जाता और यिद मार खाने वाला, मारन ेवाले से िन न जात का होता तो अपराधी को कम द ड िदया जाता था [17]। द ड पा य के अपराध पर शु को िदये जाने वाले द ड पर िवचार कर तो मनु का कहना था िक शु जब भी ■जस अंग से िव ान को मार,े राजा उसके उसी अंग को कटवा डाले।

    शू ो येना डेन ा णमभह यात् तद य छेदयेत् [18]।

    कौिट य का भी मानना था िक शु ■जस अंग से ा ण पर हार कर े उसका वह अंग कटवा देना

    चािहए। या व य न े ा ण को पीड़ा पहुँचाने वाले अ ा ण को, ■जस अंग से उसने हार िकया हो, उसे कटवाने का िनदश करते है। इसी ■स ा त का तपादन नारद, बृह पत एवं िव ण ुने भी िकया है।

    मारने पीटने के अत र , राख, क चड़ धलू तथा अ य घृणत व तुएं दसूरे यि पर फकना अथवा

  • 6 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    अपिव हाथ से छूना भी द ड पा य के अ तगत एक ग भीर अपराध समझा गया। का यायन के अनुसार दसूर े यि के शरीर पर वमन, मू या अ य कोई भी ग दी चीज फकन े पर दस पण का चार गुणा द ड, शरीर के म य पर फकन ेपर छः गुणा द ड और ■सर पर फकने का आठ गुणा द ड होना चािहए [19]। पशुओं के त क जाने वाली ू रता भी द ड पा य के अ तगत आती है। पशओुं या मनु य को मारत ेसमय द ड इस आधार पर तय होता िक उ ह िकतनी पीड़ा हुई है। इसके अत र , पशओुं को मारत ेअथवा उनके अंग छेद के लए द ड देत ेसमय यह भी देखा जाता िक पशु का मू य अथवा आकार या रहा? पशुओ ं के अत र वृ , लताओ ं आिद को काटन ेपीटने पर भी द ड क यव था क गई। िविवध कार के वृ को काटना भी द ड ा य के अ तगत अपराध समझा गया, ■जनके लए वृ क उपयोिगता के आधार पर द ड िदया जाता था। जैसे यिद वृ , लताएं तथा झािड़याँ म दर, मशान या सीमा पर

    थत होते थे, तो द ड दो गुना हो जाता था। दसूर ेक स प को हािन पहुँचाना भी द ड पा य के अ तगत अपराध समझा जाता था। िकसी मनु य ारा िकसी क िकसी भी व तु को जानबूझकर या अ ानतावश न कर देने पर भी यह ावधान था िक वह मनु य न क गई व तु का वा तिवक मू य, उस व तु के वामी को तथा उतना ही मू य द ड व प राजा को दे।

    2.3. तेय एव ंसाहस- तेय का अथ चोरी ह।ै दसूर े श द म छप कर िकसी व तु का अपहरण

    करना या िकसी व तु को लेकर वापस करन ेसे मुकर जाना तेय कहलाता है। जबिक साहस का ता पय डकैती एवं गु डागद से है। कौिट य के अनसुार िकसी क परवाह िकए िबना खलेु आम बला कार करना, डकैती डालना तथा मारकाट करना साहस कहलाता है। ऋ वेद म चोरी के संग म ‘ तेन’ एवं ‘त कर’ श द का योग हुआ है। ऋ वेद म आये हुए इन श द के िवषय म काणे का मानना है िक तेन का अथ वह चोर, जो स प को गु प से उठा ले जाता है तथा त कर वह है, जो य प से चोरी करता है।

    मनु के अनुसार, तेय और साहस दो भ अपराध ह,ै ■ज ह हम आधुिनक भाषा म चोरी और डाका कह सकते ह। मनु के अनुसार, वामी के स मुख बलपूवक िकसी व तु का अपहरण करना साहस (डाका डालना) और वामी के परो म (नह रहने पर) िकसी व तु का अपहरण करके भाग जाना (या अपहरण के बाद अ वीकार करना) तेय कहलाता है [20]। या व य भी िकसी व तु के बलपूवक अपहरण को साहस कहत ेह।

    िह द ू िवध- णेताओं ने माग म लूटमार करन ेवाले (पा थमुट) चोर के लए भी कठोर द ड का िवधान िकया है। कौिट य का कथन ह ैिक पथक को माग म रोकन े वाल या उ ह चोट पहुँचान े वाल (पथवे य तरोधकम्) को सूली पर लटका िदया जाना चािहए [21]। बहृ पत भी बदमाश को वृ से बांधकर लटका देने क बात कहते ह। सध लगाकर चोरी करन ेवाल को भी कठोर द ड देन ेका ावधान था। पशु चोरी को भी द डनीय बनाया गया। पशु क

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 7

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    चोरी के लए द ड देत ेसमय पशु का आकार, मू य तथा उपयोिगता को यान म रखा जाता था। अ चुराने वाल को भी कठोर द ड िमलता था। बृह पत धा य को चुराने वाले से धा य का दस गुणा धा य के वामी को तथा दगुुना राजा को िदलाने का ावधान

    करते ह [22]।

    ाचीन द ड िवधान म अपवाद व प कुछ व तुओं को िबना उसके वामी के पछेू उठाना चोरी नह माना जाता। यथा गो- ास, हवन के लए समीधा, ि ज ारा जलाने के लए ईधंन और पु प, आिद। महाभारत के शा त पव म भी इसका उ खे हुआ है। चोरी के अपराध म जो द ड िदये जात,े उनका उ े य अपराध क पुनरावृ को रोकना था। इसी लए कुछ अवसर पर अंग-भंग का भी ावधान देखने को िमलता है। ाचीन द ड िवधान सफेदपोश अपराध को रोकने के लए भी ावधान करता है। सफेदपोश चोर म यापा रय , वणकार , धोबी, िम या चिक सक , जुआ रय ( ुतक मय ) आिद आते ह। या व य के अनुसार जो तराजु (माप का यं ) से तोलन,े तौल के मानो (बांट) और माणक (■स ) म धतूता कर, तो उसे उ म साहस का द ड देना चािहए। ऐसे यि , जो यायालय म झठूी गवाही देते ह , उनक गणना भी चोरो म ही क गई है।

    मनु य मारण अथवा या के स ब ध म भी ाचीन द ड िवधान म कई ावधान देखने को िमलत े

    ह। बहृ पत ने तो साहस के अपराध म सबसे िनकृ अपराध मनु य मारण को ही माना है। कौिट य न े

    या क प र तथय का सही-सही आंकलन कर, या के दोषी का पता लगाने पर बल िदया है। सोच-

    िवचार कर क जाने वाली या पर कठोर द ड का ावधान था, जबिक दघुटनावश हुई या म थोड़ी

    नरमी बरती जाती थी। अ य अपराध क भांत या के मामले म भी अपराधी तथा मृतक क जात देखी जाती थी। कुछ थान पर यह भी कहा गया है िक माता-िपता, ाता, आचाय और तप वी क या करने वाले क चमड़ी उतरवाकर उसम अि लगाकर उसका वध कर देना चािहए। आ मर ाथ क गई या भी ाचीन काल म य मानी गई। िवभ सा य से प होता ह ैिक कुछ िवश हालात म आ मर ा के लए आतातायी का वध करना अपराध नह माना गया। आतातायी वह यि माना गया जो ोध म िकसी यि पर आ मण करने आया हो। आ मर ा के स ब ध म ाचीन द ड िवधान म यह भी ावधान था िक यि गत सुर ा के नाम पर ह या य होगी िक तु यि गत सुर ा उसी थत म क जाए जब शासक को सूचत करने का समय न हो। साथ ही हमलावर को उतनी ही त पहुंचानी चािहए, ■जतनी िक आव यक हो।

    ाचीन काल से ही ी सं हण नैतकता और ववैािहक जीवन के िव एक गंभीर अपराध माना गया है। ी सं हण म बला कार और यभचार दोन ही आत ेह। यहा ंयह बताना भी आव यक ह ै िक ी सं हण म द ड देत ेसमय कुछ बात का िवशेष यान रखा जाता था। यथा बला कार के िवषय म यह देखा जाता िक ■जस ी के साथ बला कार हुआ ह ै वो िकस जात क है; िववािहता ह ैअथवा नह । यह भी यान रखा जाता िक उ वण क ी के साथ

    बला कार होने पर अधक तथा िन न वण क ी के

  • 8 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    साथ बला कार होने पर अ प द ड िदया जाए । यह बात गौर तलब है िक ाचीन काल म ी या को बहुत ग भीर अपराध माना गया। इस बात का अंदाजा इसी से लगता है िक ा ण, ■जसे िकसी भी अपराध म ाणद ड से मु रखने क बात कही गई थी, उसे भी ी या म ाणद ड िदया जाने का ावधान था।

    ाचीन शा और द ड िवधान अ ाकृतक यौन अपराध पर भी कुछ ावधान करते ह। ऐसे यौन अपराध को अपराधय क मान■सक िवकृतय का प रणाम बताया गया है। ुत ीडा अथवा समा ( ाणय -कु ु ट, मेष आिद क लड़ाई) के स ब ध म भी अलग-अलग द ड ावधान देखन ेको िमलत ेहै। िवधशा य ने राज ोह क अलग-अलग प र थतय का उ खे करते हुए द ड के ावधान भी िकए है। कौिट य के अनुसार राज ■सहासन क इ छा रखने वाले, अ तःपुर म यथ का झमेला (िववाद) खड़ा करने वाले, जंगली जातय अथवा श ुओं को राजा के िव भडकाने वाल एवं सेना म िव ोह फैलाने वाले, पु षो के सर और हाथ म अि लगाकर वधक ारा वध करा देना चािहए, और यिद ा ण यह द ु कम कर तो उसे आजीवन कारावास का द ड देना चािहए [23]।

    3. वतमानका लक द ड यव था

    आधुिनक समाज जिटल होने के साथ ही गतशील भी है। सामा■जक पांतरण के िवभ आयाम न ेसमाज के ढाँचे, उसक संरचना और उसके व प म कई मह वपूण, उ ेखनीय और यापक प रवतन ततु िकए ह। ऐसे ही प रवतन अपराध के संबंध म भी नजर

    आते ह। वतमान म भारत के स दभ म कहे तो अपराध का स ब ध समाज के िकसी एक वग िवशेष के साथ थािपत नह िकया जा सकता है। आज समाज का हर वग - उ हो या िन न, श त हो या अश त, मिहला हो या पु ष, िकसी न िकसी अपराध से जुड़ा हुआ है। हर वग का यि अपन ेिनिहत और संक ण वाथ क पूत के लए िकसी न िकसी अपराध को अंजाम दे रहा ह।ै इसी पृ भूिम पर समाज म होने वाले अपराध पर चचा करना यहा ंासंिगक हो जाता है। वतमान म समाज म सामा■जक

    और आथक वग से जड़ुे उ ति त यि य ारा अपन े पेशे अथवा यवसाय से स ब धत ि या-कलाप के दौरान िवध क उ ंघना करते हुए अनुचत लाभ ाि का यास िकया जाता ह ै तो यह सामा यतः सफेद-वसन अपराध बन जाता है। एक िन द आय ुके भीतर (■जसे बालक माना जाए) आन ेवाले ब ारा जब िवध क अनदेखी अथवा उ ंघना करते हुए तबंधत अथवा गरै-कानूनी काय िकए जाते ह तो यह बाल अपराध कहलाता है। मिहलाएं जब अपराध करती ह तो यह मिहला अपराध कहलाता है। लेिकन जब अपराध मिहलाओं के िव होते ह तो उ ह भी मिहला अपराध ही कहा जाता है। सूचना और ो ोिगक से स ब धत अपराध, साइबर अपराध के प म सामने आते ह। यौन अपराध के तहत

    सामा■जक मयादाओं और नैतकता के िवपरीत पु ष-ी के बीच शारी रक स ब ध वे छा अथवा जबरन

    बनने लगे ह। दो या दो से अधक यि य ारा िमलकर सुिनयो■जत तरीके से संगिठत अपराध होत ेह। िकसी देश क िव ीय यव था पर संकट लान े

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 9

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    वाले अपराध िव ीय अपराध कहलाते ह। इसके अलावा कुछ िव ान के मत म सामा■जक मू य और नेतकता क उपे ा करते हुए समाज म सामा■जक िवषय को गरै कानूनी जामा पहनाया जाता है तो वे सामा■जक अपराध बन जाते ह, जैसे दहेज, सती, बाल िववाह आिद। इसी तरह मादक पदाथ से जड़ु ेगरै-कानूनी कृ य भी अपराध क ेणी म ही आते ह।

    अपराध का दंड से गहरा र ता है। ाचीन काल म दंड का मु य उ े य तरोधा मक और िनरोधा मक ही था। इसी लए ाचीन सािह य म दंड के ■जतने भी व प िमलत ेह, उनके आधार पर कहा जा सकता ह ै

    िक उनम अथ दंड, और शारी रक दंड मखु था। अथ दंड के प म मु ा अथवा व तुएं ली जाती थी। शारी रक दंड के तहत कोड़े मारना, कारावास, अंग-भंग, दागना, सामा य अथवा कठोर मृ यदंुड आिद आते थे। इसके अलावा िनवासन और अपमािनत करने क था भी थी। वतमान क दंड यव था देख तो अपराधय को िदए जाने वाले मुख दंड िन न ह [24] - मृ यदंुड, आजीवन कारावास, कारावास, स प क ज ती, अथदंड अथवा जुमाना, प रवी ा, चेतावनी, पेरोल, मादान।

    एक आदश रा य म अपराध के िनय ण और अपराधय पर अंकुश रखने के लए यह ज री है िक अपराध के स ब ध म उचत दंड ीया क यव था हो, वतमान भारत म जो दंड यव था च लत है वह ि िटश काल क देन है। भारतीय समाज को कानूनी

    प से यव थत रखने के लए सन् 1860 म लॉड मेकाले क अ य ता म भारतीय दंड संिहता (Indian Panel Code) का िनमाण िकया गया। इस संिहता म

    िवभ अपराध को सूचीब करत े हुए िवभ अपराध और उनसे जड़ुे स दभ म दंड और सजा का उ ेख िकया गया है। वतं भारत म समानता, वत ता, याय, यि क गरीमा के जो आदश तय

    िकए गए थे, उसी के अनु प इस दंड संिहता म कई आव यक संशोधन भी िकए गए। ाचीन दंड यव था क वतमान दंड यव था से तलुना करने पर यह ज री ह ै िक वतमान म जो दंड यव था च लत ह ैउसके मखु ावधान को समझा जाए।

    भारतीय दंड संिहता क धारा 107 से 119 तक म द ु ेरण स ब धी त य को प िकया गया है। इसके तहत अपराध करने या करवाने हेतु उकसाने क वृ को अपराध क ेणी म माना गया है (धारा

    107)। िनयम यह कहता है िक िकसी यि के उकसाने पर अपराध हो न हो, उकसाने वाला अव य ही द ु रेण का दोषी बन जाता है। िवध यह भी प करती है िक द ु रेण का काय यिद एकाधक यि य ारा संपािदत होता है तब इस काय म स म लत

    सभी यि अपराधी होत ेह। इसी तरह यिद द ु ेरण का अपराधी कोई ष ं कर ेऔर इस पर भी अपराध म उसक कोई भूिमका न होन े पर भी वह दोषी बन जाता है। इस संिहता म उन प र थतय का भी उ ेख िकया गया है ■जसके तहत, मृ य,ु आजीवन कारावास, अथवा सामा य कारावास से द डत अपराधी यिद द ु रेण करता है तो वह भी अपराधी ही होता ह।ै यिद िकसी लोकसेवक को अपराध हेतु े रत िकया जाए, िफर भले ही अपराध हुआ हो या नह , े रत करने वाला दोषी बन जाता है। ऐसे म उसे

    वा तिवक अपराध का िनधा रत दंड िदया जाता है।

  • 10 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    जब कोई स म अधकारी को िमत करके अपराध होने म मदद करता है अथवा िम या सूचना ारा अपराध को आसान बनाने का यास करता है तब भी वह द ु रेण का दोषी बन जाता है। जब कोई लोकसेवक अपराध क योजनाओ ंको जानत े हुए भी उसके िनवारण का कोई यास न कर े तथा अपराध होने के अनुकूल प र थतयां बनाने दे तो वह लोक सेवक भी द ु ेरण का दोषी कहलाता है।

    अपराधक ष ं को प रभािषत (धारा 120-क) करत े हुए बताया गया है िक जब दो या दो से अधक यि िमलकर कोई अवधै काय करत े ह तो वह अपराधक ष ं के तहत आता ह।ै इसी तरह जब दो या दो से अधक यि िकसी वधै काय को अवधै साधन ारा स प करते ह तो इस कृ य को भी अपराधक ष ं के तहत ही माना जाता ह ै(धारा 120-ख)।

    दंड संिहता म रा य के िव होने वाले िविवध कृ य को भी दंडनीय अपराध माना है। इसके तहत जो भी भारत सरकार के िव यु करगेा, अथवा यु क कोशश करगेा, अथवा िकसी को यु के लए उकसाएगा तो इसे ग भीर अपराध मानते हुए उसे दंड का भागी माना जाएगा (धारा 121)। यु के उ े य से आयधु इक ा करना भी अपराध है (धारा 122)। इसी तरह यु क योजनाओं को आसान बनाने के उ े य से उससे स ब धत सूचनाओं को छपाना भी अपराध है। संवधैािनक पद पर आसीन यि य पर हमला करना, उ ह आतंिकत करना अथवा ऐसे ही अ य कृ य को भी दंडनीय अपराध माना गया है (धारा

    124)। िवध ारा थािपत सरकार के त िकसी भी मा यम से घृणा और श ुता उ प करना या कराना राज ोह के तहत दंडनीय अपराध माना गया है (धारा 124-क)। भारत के िकसी एशयाई िम रा के िव यु करना या यु के यास करना या यु को उकसाना भी दंडनीय अपराध ह ै (धारा 125)। इसी तरह भारत के साथ शा त अथवा मै ी रखने वाले रा य म लूटपाट करना अथवा लूट क कोशश करना अपराध ह ै(धारा 126)। यह भी ावधान िकया गया है िक यु अथवा लूटपाट से स ब स प को पान ेवाला भी अपराधी ही होता है (धारा 127)। िवध यह भी तय करती है िक यिद कोई लोकसेवक िकसी यु कैदी अथवा राज ोही अथवा राजकैदी को वै छा से भगा दे तो वह दंडनीय अपराध का भागी होगा (धारा 128)। इसी तरह कैिदय को भगाने म सहायता करन ेवाला कोई अ य भी दंड का भागी होता है (धारा 130)।

    दंड संिहता म सेना के सभी ा प से स ब धत अपराध का भी उ ेख िकया गया ह ै[25]। यिद कोई यि िकसी सिैनक या सै य अधकारी को िव ोह के लए े रत करता या उ ह अपन े क य से िवमखु करता है तो यह अपराध कहलाता है (धारा 131)। िकसी भी सिैनक अथवा सै य अधकारी को अभ यजन करने के लए उकसाया जाता ह ै अथवा अभ याजक को सं य िदया जाता है (धारा 135, 136) तो यह भी दंडनीय अपराध क ेणी म आता है। सेना क पौशाक अथवा च ह (टोकन) को धारण करना भी अपराध है (धारा 140)।

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 11

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    िवध के तहत शा त के िव अपराध को भी प िकया गया है। िकसी िवशेष उ े य ( तरोध

    अथवा अपराधक कृ य) से पांच अथवा उससे अधक यि य का एक थान पर इक ा होना अपराध कहलाता है (धारा 141)। यिद कोई घातक हथयार लेकर इस िवध िव जमाव म शािमल होता है तो वह भी दंडनीय अपराध होता है (धारा 144)। इसी तरह जब िकसी िवध िव जमाव ारा अपने उ े य को पूरा करने के लए हसा अथवा बल का योग होता है तो यह भी दंडनीय होता है। िवध यह भी ावधान करती है िक लोग को िवध िव जमाव म स म लत होने के लए लोभन देन े वाला अथवा बा य करने वाला भी दंड का भागी होता ह ै(धारा 150)। िवध िव जमाव को िबखरने का कानूनी आदेश जारी होन ेके बाद भी उसम बन ेरहना, जब लोकसेवक बलवे को शातं कर रहे हो तब उ ह परशेान अथवा बाधत करना जैसे कृ य को भी दंडनीय अपराध माना गया है (धारा 145, 152)। धम, जात, भाषा, थान आिद िकसी आधार पर िक ह दो समूह म श ुता लाना अथवा उनके भाईचार ेको कम करने का यास करना भी अपराध कहा गया है (धारा 153-क)। रा ीय अखंडता को भािवत करने वाले आरोप एवं यास को भी अपराध क

    ेणी म माना गया है (धारा 153-ख)। ■जस भिूम पर िवध िव जमाव हुआ हो तो उसका वािम अथवा अधभोगी भी दंड का भागी बनता है (धारा 154)। यिद कोई बलवा ( हसा) िकसी यि िवशेष के लाभ के लए हुआ हो तो वह वयं अथवा उसका अभकता भी दंड का भागी होता है (धारा 155)। िकसी भी

    िवध िव जमाव म भाड़े पर जाने वाला यि वयं तथा ऐसे यि य को शरण देना भी अपराध माना गया है (धारा 157)। कानून के अनुसार दंगा करने पर भी सजा का ावधान है (धारा 159)।

    िवध ारा लोकसेवक अथवा उनसे स ब धत अपराध के िवषय म भी ावधान िकया गया है [26]। इसके तहत यिद कोई लोकसेवक िवध ारा िनधा रत आचरण के िव काय कर, अथवा उसके िकसी आचरण से िकसी यि को त पहुंचे तो उस लोकसेवक को अपराधी माना जाता ह ै(धारा 166)। इसी तरह यिद कोई लोकसेवक जानबूझकर िकसी दसूर े प को त पहुचान े के लए झूठे द तावेज बनाता है (धारा 167) अथवा कोई लोकसेवक अपन ेपद पर रहते हुए यापार म संल रहता है तो ये सभी कृ य अपराध क ेणी म रखे गए ह (धारा 168)। िकसी लोकसेवक ारा यि गत अथवा संयु प से िवध िव संप खरीदना अथवा उसके लए बोली लगाना अपराध माना गया है (धारा 169)। जब कोई यि गलत तरीके से िकसी लोकसेवक के पद को

    धारण करता है या धारण करने का यास भी करता ह ैतब भी उसे अपराधी मानते हुए द डत िकया जा सकता है (धारा 170)। इसी तरह यिद कोई अपन ेअनुचत उ े य क पूत के लए िकसी लोकसेवक क पोशाक अथवा टोकन (च ह) धारण करता है तो यह कृ य भी अपराधक पृवृ का माना जाता ह ै(धारा 171)। कोई लोकसेवक िकसी यि को दंड से या िकसी स प को समपहरण से बचाने के उ े य से िवध के िनदश क अवहेलना करता है तो यह अपराध है।

  • 12 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    लोकतं म िनवाचन का िवशेष मह व है। िनवाचन क पारदश ि याएं और यव थाएं लोकतं को मजबूत बनाती ह।ै इसी लए िवध के अनुसार िनवाचन स ब धी अपराध को भी च हत िकया गया ह ै[27]। सव थम िनवाचन अधकार के द ु पयोग के स ब ध म यह ावधान है िक यिद कोई, अ य िकसी यि को िनवाचन अधकार योग म लान े के लए

    उ े रत करता है तो वह र त का अपराध करता ह ै(धारा 171-ख)। कानून के अनुसार प रतोषण देन ेऔर लेन ेवाले दोन ही अपराधी होते ह। िकसी यि ारा िकसी िनवाचन अधकारी के काय को िनबाध

    तरीके से होने म वै छा से ह त ेप िकया जाता है या बाधा डाली जाती है तो यह िनवाचन म अस यक भाव डालने का अपराध कहलाता है (धारा 171-

    च)। जब कोई चुनाव म फज मतदान करता है अथवा मतदान को द ु े रत करता ह ै तो वह िनवाचन त पण का अपराध करता है। इसी तरह िनवाचन

    प रणाम पर भाव डालने के उ े य से िकसी अ यथ के बार म िम या चार करना अथवा उसके िव अवधै काम करना भी अपराध ही होता है। अ यथ क िबना इ छा और अनमुत के यिद उसके चुनाव चार पर िकसी कार का यय करना भी अपराधक कृ य कहलाता है। िकसी अ यथ ारा अपने चुनाव का िव ीय लेखा न रखना भी अपराध क ेणी म आता ह ै(धारा 171-झ)।

    िवध के अनसुार लोकसेवक म िवधपूण ाधकार क उपे ा करने पर भी द ड का ावधान

    िकया गया है [28]। िकसी स म लोकसेवक ारा

    िनकाले गए समन, सूचना या आदेश क तािमल से बचने के लए फरार होना अपराध है (धारा 172)। िकसी स म लोकसेवक ारा िनकाले गए आदेश, समन अथवा सूचना पर भी आदेशत यि अथवा उसके अभकता का अनुप थत रहना दंडनीय अपराध है (धारा 174)। यिद कोई लोकसेवक िकसी को भी िकसी भी कार का द तावेज ततु करने के लए आदेशत कर े तो वह उसक पालना के लए बा य होता है। यिद स म अधकारी के आदेश क अवहेलना हो तो यह दंडनीय अपराध ह ै(धारा 121, 175)। यिद कोई लोकसेवक जानबूझकर वांछत सूचना के थान पर िम या सूचना देता है तो यह भी अपराधक कृ य है (धारा 177)। जब कोई, स म अधकारी ारा िनदशत करन ेके बावजूद स य कहन ेके लए वयं को शपथ या त ा से आब करन ेसे इंकार कर दे तो यह भी अपराध ह ै(धारा 178)। इसी भांत ाधकृत लोकसेवक को उसके ारा पूछे गए

    का उ र देने से इनकार करना, स म अधकारी के सम अपन े िदए कथन पर ह ता र करन े से इनकार करना, िकसी दसूर े यि को त पहुंचाने के उ े य से िकसी लोकसेवक को िम या सूचना दान करना दंडनीय अपराध म आता है (धारा 179-181)। जब कोई लोकसेवक अपने िवधपूण ाधकार के तहत िकसी क स प को ले जाता ह ै और स ब धत यि उसका तरोध करता ह,ै अथवा लोकसेवक के ाधकार ारा िव य के लए त थािपत स प के िव य म बाधा डालता ह ै

    अथवा ऐसी स प का अवधै य करता ह ै या उसक अवधै बोली लगाता है, लोक सेवक के लोक

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 13

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    कृ य के िनवहन म बाधा डालता ह,ै िवध ारा आब होने के बावजूद लोकसेवक क सहायता करन ेसे िवमुख होता ह,ै तो ये सभी अपराध ह (धारा 183-187)। लोकसेवक ारा स यक प से

    यािपत आदेश क अवहेलना करना, िकसी लोकसेवक को वयं या िकसी के मा यम से धमकाना भी दंडनीय अपराध माना गया है।

    याय को भावी और ामाणक बनान े के लए िवध न े िम या सा य और लोक याय के िव अपराध के िवषय म भी ावधान िकए ह [29]। िवध ारा स य कहने के लए आब होन ेके बावजूद यिद

    कोई ल खत अथवा मौ खक िकसी भी प म िम या सा य तुत करता ह,ै िम या सा य को िन मत करता है या उनके लए अनकूुल प र थतयाँ िन मत करता है तो यह अपराध क ेणी म आता है (धारा 191-193)। इसी स दभ म यिद कोई िकसी को िम या सा य देने िक लए धमकाता ह,ै कोई जानबूझकर िम या सा य का योग करता ह,ै जो जानबूझकर िम या घोषणा ारा सा य को िमत कर, अपराधी को दंड से बचाने के लए सा य से छेड़खानी करता है तो इन सभी कृ य को िवध के तहत गरै-कानूनी मानते हुए अपराध कहा गया ह ै(धारा 195 क, 197)। िकसी भी यि के िव उसे नुकसान पहुंचाने के उ े य से िबना िकसी िवधक आधार के अपराध का दोषारोपण करना, अपराधी को शरण देना, अपराधी को दंड से बचान ेके लए उपहार आिद देना, चोरी क स प वापस कराने म सहायता करना अपराध ही है (धारा 211-214)। िवध यह भी ावधान करती है िक यिद कोई लोकसेवक अपराधी

    अथवा आरोपी को पकड़ने के कारण को न कर दे या उनके भागन ेको िबना िकसी कारण सहन कर ले या उनको भगाने म सहायता कर तो उसे भी अपराधी माना जाता है (धारा 217, 222-223)। िकसी आरोपी ारा खदु को पकड़े जाने का तरोध करना या अवधै बाधा डालना या िकसी अभर ा से िनकल भागना अथवा भागने का यास करना, इसी तरह िकसी अ य यि को िवध के अनुसार पकड़े जाने म बाधा डालना भी दंडनीय अपराध है (धारा 224, 225)। यायक काय म बठेै लोकसेवक का उ े यपूण तरीके से अपमान करना और उसके काय म बाधा डालने को भी दंडनीय अपराध माना गया ह ै(धारा 228)।

    मु ा रा ीय अथ यव था से जड़ुा हुआ है। रा क अथ यव था को कोई त न पहुंचे इसके लए िवध म ये ावधान िकए गए ह िक भारतीय मु ा (■स ) का कूटकरण करना (जाली मु ा बनाना), जाली मु ा िनमाण हेतु उपकरण का िनमाण अथवा िव य करना, ऐसे उपकरण को अपने क जे म रखना, भारतीय सीमा से बाहर िकसी को जाली मु ा बनाने के लए े रत करना, जाली मु ा का आयात-िनयात करना, जाली मु ा को जानबूझकर चलाना या उसे चलाने के लए उ े रत करना दंडनीय अपराध ह (धारा 231-241)। मु ा बनाने वाली टकसाल म कायरत यि ारा मु ा िनमाण म िकसी भी कार क कोताही करना या लापरवाही बरतना, िवध िव टकसाल से ■स ा बनाने का उपकरण ले जाना, मु ा का प प रवतत करना, सरकारी टा प को भी फज तरीके से मुि त करना, टा प बनान ेक साम ी

  • 14 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    अवधै प से क जे म रखना, इससे जुड़ े उपकरण बनाना या बेचना आिद सभी काय दंडनीय अपराध माने गए ह (धारा 244, 245, 246, 255, 256, 257)।

    माप तोल के स ब ध म भी दंड संिहता म कुछ अपराध च हत िकए गए ह [30]। यिद व तुएं तोलन ेके लए खोटे (दोषपूण) उपकरण का कपटपूवक उपयोग िकया जाता ह,ै खोटे बाट या माप का कपटपूवक उपयोग िकया जाता ह,ै कोई खोटे बाट या माप को क जे म रखता ह,ै या उ ह बनाने अथवा बेचने का काय करता है तो ये सभी अपराध दंडनीय घोिषत िकए गए ह (धारा 264-267)।

    िवध म सावजिनक जीवन से जुड़े मह वपूण िवषय पर भी दंड के ावधान िकए गए ह । िवध सामा य िहत म लोक उप व के तहत सामा य जीवन को त पहुंचाने वाले को अपराधी मानती है (धारा, 268)। उप व बंद के आदेश के प ात भी यिद कोई उप व जारी रखता है या उप व क पनुरावृ करता है तो उसे दंड देने का ावधान िवध करती है। यिद कोई जीवन के लए संकटपूण सं ामक रोग के त लापरवाही रखता है या ेषपूण तरीके से ऐसा काय करता ह ै तो उसे दंड का भागी माना गया है (धारा 269)। लोक वा य क ही ि से खा पदाथ म िमलावट करने पर, िमलावट वाला खा पदाथ बेचन ेपर, दवाइय म िमलावट करने पर, उ ह बेचने पर, नकली दवाइयां बेचने पर, जल ोत को दिूषत करन ेपर, वायमंुडल को जानबझूकर दिूषत करने पर, लापरवाही से वाहन और जलयान को चलान,े जैसे

    काय भी अपराधक ेणी म रखे गए ह ै(धारा 272-275, 277-278)। इसी तरह अि अथवा वलनशील पदाथ के स ब ध म उपे ापूण आचरण

    करन े पर, मानव जीवन को संकट पहुंचाने वाले िव फोटक पदाथ के बार े म उपे ापूण रवयैा रखन ेपर, मशीन के स ब ध म तथा िकसी िनमाण को िगराने या उसक मर मत म जानबूझकर लापरवाही रखने पर, जीव-ज तुओं के त लापरवाही रखने पर भी यि को अपराधी मानते हुए दंड का ावधान िकया गया है (धारा 285-289)। सावजिनक जीवन म ही शालीनता को बनाए रखन े के लए अ ील सािह य को बेचना, त ण यि य को अ ील व तुओं को बचेना अथवा भाड़े पर देना अथवा उनके सम दशत करना, सावजिनक थल पर अ ील संगीत चलाना अथवा अ ील काय करना, अनाधकृत लॉटरी चलाने जैसे कृ य को दंडनीय अपराध माना गया है (धारा 292-294)।

    भारत एक धम िनरपे रा ह।ै इसी धमिनरपे ता को बनाए रखने के लए दंड संिहता धम स ब धत अपराध का भी उ ेख करती है [31]। िकसी वग िवशेष के धा मक भावनाओं को आहत करने के उ े य से उनके पजूा थल को त पहुंचाना, धम िवशेष के त िकसी भी मा यम से िव ेषपूण काय करना,

    िकसी धा मक आयोजन म बाधा डालना, अंतम ि या थल ( मशान/कि तान) पर शव के साथ छेड़छाड़

    अथवा अ य िकसी कार का अनैतक काय करना आिद ऐसे काय ह ■ज ह दंडनीय अपराध माना गया ह ै(धारा 295-297)।

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 15

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    मानव शरीर क ग रमा को देखते हुए दंड िवधान यह ावधान करता है िक यिद िकसी के शरीर को मृ य ु के उ े य से त पहुंचान े का यास होता ह ैअथात िकसी का वध होता ह,ै तो इसके लए िवशेष दंड का ावधान िकया गया है (धारा 299, 302)। िवध यह भी प करती है िक यिद िबना उ े य अथात अनजाने म भी िकसी के शरीर को त पहुँचती है (वध होता है), तो उसे भी अपराध ही कहा जाएगा (धारा 304)। सामा■जक पहलुओं को यान म रखते हुए िवध म दहेज या, अ पाय ु यि य , मान■सक बीमार , आिद को आ मह या के लए उकसाने पर, या का यास करने जैसे कृ य को दंडनीय बनाया गया ह ै (धारा 304, 05)। आ मह या का यास करना, ठगी करना भी अपराधक काय कहलाता है (धारा 306, 310)। सामा■जक संदभ म ही गभपात करना, य क सहमती के िबना जबरन गभपात कराना, गभपात से

    ी क मृ य ुको अपराधक काय माना गया है (धारा 312)। इसी तरह िकसी ब े को ज म से पहले मारन,े या ज म के प ात मारने का काय करना भी दंडनीय अपराध घोिषत िकया गया है। कानून इस बात के लए भी बा य करता है िक िकसी शशु (12 वष से कम) का प र याग करना अथवा उसक जान को खतर ेम डालना, ज म से पूव अथवा प ात शशु क मृ य ुहोन ेपर उसके शरीर को को गु रखना अपराध है (धारा 313-318)। मानव अंग क त करी न हो, इसके लए भी िवध यह ावधान करती है िक िकसी यि को शारी रक पीड़ा पहुंचाना, अंग शैथ य करना (■जसे उपहत कहते है) अपराध म आता है (धारा

    319, 320)। स प पाने के लए िकसी को अवधै काय कराने के लए मजबूर करना, िकसी को अपराध वीकारने (चाहे वह िनद ष हो) के लए शारी रक प

    से तािड़त करना, िकसी लोकसेवक को उसके क य के िनवहन से रोकने के लए उसे तािड़त करना भी कानून के अनुसार दंडनीय माना गया ह ै(धारा 324-332)। उतावलेपन अथवा उपे ा से िकए गए काय ारा िकसी के जीवन को संकट म डालना भी अपराध क ेणी म ही आता है (धारा 336)। िवध के ारा िवभ मा यम से यह भी प िकया गया है िक िकसी भी कार का बल करना, हमला करना, लोकसेवक पर बल योग अथवा हमला करना, ी ल ा भंग करने के उ े य से उस पर हमला करना या बल योग करना, िकसी का अनादर करने के उ े य से अथवा िकसी क स प चुराने के उ े य से हमला करना या अपराधक बल योग करना भी दंडनीय अपराध होता है (धारा

    349, 351, 353- 356)।

    िवधी ारा िवभ प र थतय म िकए जाने वाले अपहरण को प रभािषत करते हुए कहा गया ह ै िक भीख मांगने के उ े य से अपहरण करना या ब को िवकलांग बनाना, या करने के उ े य से अपहरण करना, िफरौती, िववाह के लए िकसी का अपहरण करना दंडनीय अपराध क ेणी म आता है (धारा 363-366)। िकसी लड़क को जबरन िकसी अ य के साथ स भोग हेतु बा य करना, िवदेशी लड़क का आयात करना, दास बनाने के उ े य से अपहरण करना, दास के प म िकसी को खरीदना और बेचना, वे यावृ के लए लड़िकय को बेचना अथवा

  • 16 द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    खरीदना, िवध िव िकसी यि से बलात् म कराना भी कानूनी तौर पर अपराध ही ह (धारा 366-374)। िवध ारा यौन अपराध को भी प िकया गया है। काननू म ी क इ छा, सहमत के िव बलात संग को, लोकसेवक ारा उसक अभर ा म रही िकसी ी के साथ स भोग करना तथा ऐसी ही अ य थतय को अपराध घोिषत िकया गया है (धारा 375-376)।

    दंड संिहता स प के स ब ध म भी िकए गए अपराध को प करती ह ै[32]। कानून म चोरी को प िकया गया है (धारा 378)। साथ ही सामा य

    चोरी, िनवास गृह म चोरी, वध या भय िदखाने के प ात चोरी करना, ऐसी ही कुछ प र थतयां ह, ■ज ह अपराधक कृ य माना गया है। (धारा 380-382) इसी तरह िवध म जबरन वसूली को भी अपराध माना गया है (धारा 383)। िकसी को मृ य ुका भय िदखाना, अ य िकसी कार का दंड देने का भय िदखाना, िकसी पर अपराध का आरोप लगान ेका भय िदखाना आिद यास ारा जबरन वसूली के यास को कानून म रखेांिकत करते हुए इ ह दंडनीय

    बनाया गया है (धारा 386-389)। िवध लूट और डकैती को भी प करत ेहुए इनके स ब ध म दंड का ावधान तो करती ही है साथ ही लूट अथवा डकैती

    के दौरान या या ताड़ना जैसे कृ य को भी दंडनीय बनाती है (धारा 390-396)। लूट या डकैती म घातक हथयार के योग, लूट अथवा चोरी के लए टोली (समूह) बनाना, इस योजन से एकि त होना आिद सभी कृ य को अपराध क ेणी

    म लाते हुए इनके स ब ध म दंड के ावधान िकए गए ह (धारा 398-402)। बेईमानी से िकसी क स पत का हरण करना या उसका द ु पयोग करना भी अपराध कहलाता ह,ै ■जसके लए िवध ारा प र थतय के अनुसार दंड का ावधान िकया गया है (धारा 403)। इसी तरह िवध ‘छल’ को भी प रभािषत करत े हुए िवभ मा यम से िकए जान ेवाले छल के प रणाम व प िदए जाने वाले दंड को भी प करती है (धारा 415)। लोक अथवा यि को

    हािन पहुंचाने को कानूनी भाषा म ‘ रि ’ कहा गया है। िवध ारा रि के तहत होने वाले नुकसान को रखेांिकत करत े हुए नकुसान के अनु प सजा का ावधान िकया गया है (धारा 425)। इसम यि गत

    स प क रि के साथ ही साथ सावजिनक स प को त पहुंचाते हुए रि करना भी शािमल है (धारा 427-433)। दंड संिहता म अपराधक अतचार को प करते हुए कहा िक िकसी अ य के क जे वाली

    स प (घर) म अपराध करने के उ े य से यिद कोई वेश करता ह ैतो यह अपराधक अतचार कहलाता

    है (धारा 441)। इस अतचार को गृह अतचार, छ गृह अतचार, रा े छ गृह अतचार, गृह

    भेदन आिद ेणय म िवभ करते हुए सभी के लए अलग-अलग दंड के ावधान िकए गए ह (धारा 442-445)।

    जालसाजी पर अंकुश लगान े के उ े य से दंड संिहता म द तावेज और स प च ह संबंधी अपराध का भी उ खे िकया गया ह ै[33]। कपटपूण उ े य से जाली द तावेज ( ल खत अथवा

  • द ड िवधान के ाचीन और वतमान प र े य: एक अ ययन 17

    ISSN: 2529-7953 Rivista

    इले टोिनक) बनाना (पूण अथवा आंशक), कूट-रचना कहलाती है (धारा 463)। यह कूट-रचना यायालय के अभलेख या लोक-र■ज टी, मू यवान तभूत, वसीयत आिद पर भी लागू होती है (धारा

    464)। कई बार छल म दसूर क यात को नुकसान पहुंचाने के योजन से भी कूट रचना क जाती है। िवध ारा इन सभी को दंडनीय बनाया गया है। काननू के अनुसार जो च ह िकसी यि िवशेष क स प को बताती है, ऐसे च ह को स प च ह कहा जाता है। ऐसे स प च ह का द ु पयोग करना, िम या स प च ह का उपयोग, दसूर के ारा यु स प च ह का कूट-करण,

    लोकसेवक ारा उपयोग म लए गए च ह का कूट-करण, स प च ह के द ु पयोग के लए उपकरण का िनमाण, नुकसान करने के उ े य से स प च ह को िबगाड़ना आिद को दंडनीय माना गया ह ै(धारा 481-488)। करसी नोट या बक नोट का कूट-करण करना, ऐसे कूट-रचत करसी नोट या बक नोट को असली के प म उपयोग म लाना, ऐसे नोट को क जे म रखना, कूट-कण हेतु उपकरण या साम ी बनाना या क जे म रखना भी दंडनीय अपराध है (धारा 489 क-ड़)। िवध ारा सेवा-संिवदाओ ंके भंग करने को भी अपराध कहा गया है। असहाय यि क आव यकताओं क पूत और उनक

    प रचया से जुड़ी संिवदा को भंग करना, दरू थ थान पर सेवा करने क संिवदा को भंग करना अपराध ह ै(धारा 490-492)।

    सामा■जक े म ही िवध ारा िववाह स ब धी अपराध को भी प िकया गया ह ै [34]। कानूनन

    कोई पु ष िकसी अ य ी से जो उसक प नी न हो, उसके साथ सहवास करना अपराध म आता ह,ै इसी


Recommended