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दल वववयालय का जीन परवतत (GM)...

Date post: 04-Jul-2020
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दल वववयालय का जीन परवतत (GM) सरस सरस क एक जीन परवतत (जेनेटकल मॉडफाइड या जीएम) कम यावसायक खेती के लए भारत म मंजूर पाने क कगार पर है 1 और ये तय-प (ीफं ग पेपर) इस जीएमओ सरस पर तयपूण बहस म मदद करने के उदेय से तुत है। अगर ऐसा होता है तो जीन परवतत सरस क यावसायक खेती करने क यह दूसर कोशश होगी। पहल बार सन् 2002 म जमनी क बह राय कं पनी बेयर क सहायक कं पनी ो एो वारा वकसत जीएम सरस को मंजूर देने का आवेदन भारतीय नयामक ने खारज कर दया था। 2 अब तक भारत ने सफ जीएम कपास (बीट कॉटन) क यावसायक खेती को औपचारक मंजूर द है जबक कई जीएम खायान का कई साल से परण चल रहा है। भारत सरकार के पयावरण, वन और जलवायु परवतन मंालय के तहत जीएमओ से संबंधत सवच नयामक संथा जेनेटक इंिजनयरंग एेजल कमेट (जीईएसी, जो क तब जेनेटक इंजीनयरंग एूवल कमेट के नाम से जानी जाती थी) ने 2009 म बीट बगन क यावसायक खेती को मंजूर द थी लेकन देश भर म सावजनक वचार-वमश और बहस के बाद भारत सरकार ने नयामक के फै सले को पलट दया और 9 फरवर 2010 को बीट बगन के यावसायक इतेमाल पर अनिचतकाल के लए रोक लगा द थी। बीट बगन पर रोक के बाद, अब एक सरकार उपम क ओर से जीएम संकर सरस के यावसायक उपादन क मंजूर के लए आवेदन कया गया है। यह यास आगे चलकर नजी े क मॉनसटो, संजेटा और डो जैसी कपनय वारा तैयार क गई दूसर जीएम फसल जैसे मका, चावल, बगन आद के लए राते खोलेगा। इस संत तय-प म दल वववयालय के सटर फॉर जेनेटक मैनपुलेशन ऑफ ॉप लांस (CGCMP) वारा वकसत जीएम सरस से संबंधत तय तुत कए गए है। भारत सरस पील सरस-सरस (राई, तोरया, तारामीरा आद थानीय नाम ह) तलहन, सजी और चारे के प म योग क जाने वाल फसल ह। ये भारत म करब 5.5 से 7 मलयन हेटेयर रकबे म पैदा क जाती है। भारत म ये यादातर रबी क फसल या फर जाड़े क फसल के तौर पर उगाई जाती है। क छ इलाक म ये एकल फसल के तौर पर बोई जाती है जबक कई जगह ये अंतर फसल के तौर पर भी उगाई जाती है। भारत म ैसका (पील सरस/सरस) ने धीरे-धीरे सोयाबीन और मूंगफल क बजाय तलहन क मुख फसल के तौर पर जगह बना ल है। तलहन के तौर पर सोयाबीन क पैदावार 2012-13 म 146.66 टन थी जबक 2013-14 म 119.89 लाख टन। लेकन, तेल के प म उपयोग के मामले म ये तोरया (रेपसीड)/सरस के बाद दूसरे नंबर पर रहा। 2012-13 म सोयाबीन तेल का उपादन 23.47 लाख टन था जबक सरस या तोरया (रेपसीड) तेल का उपादन 24.89 लाख टन था। अगले साल 2013-14 म सोयाबीन तेल का उपादन घटकर 19.19 लाख टन रहा जबक सरस और तोरया (रेपसीड) तेल का उपादन बढ़कर 24.68 लाख टन पह च गया। 3 2008-09 से 2013-14 के बीच तोरया (रेपसीड) और सरस के रकबे म सालाना औसत व ध दर तीन फसद, उपादन म 7.3 फसद और उपादकता म 3.9 फसद रह (जबक सभी तलहन क सामूहक उपादकता व ध दर 1.3 फसद रह)। 4 ये आंकड़े वातव म हाल के वष म कामयाबी के उदाहरण के तौर पर पेश क जाने वाल भारतीय मके और कपास क कहानय से यादा भावशाल ह। वैिवक तर पर, चीन और कनाडा के बाद भारत दुनया म तोरया (रेपसीड) और सरस का तीसरा बड़ा उपादक है। हाल के वष म भारत म इन फसल क खेती का रकबा क ल फसल रकबे के करब 2.8 फसद के आसपास बना ह है। भारत म तोरया (रेपसीड) और सरस यादातर संचत भूम म ह उगाई जाती है। 1990-91 म खेती का संचत
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  • �द�ल� �व�व�व�यालय का जीन प�रव�त�त (GM) सरस�

    सरस� क� एक जीन प�रव�त�त (जेने�टकल� मॉ�डफाइड या जीएम) �क�म �यावसा�यक खेती के �लए भारत म� मंजूर�

    पाने क� कगार पर है1 और ये त�य-प� (�ी�फंग पेपर) इस जीएमओ सरस� पर त�यपूण� बहस म� मदद करने के

    उ�दे�य से ��तुत है। अगर ऐसा होता है तो जीन प�रव�त�त सरस� क� �यावसा�यक खेती करने क� यह दसूर� को�शश

    होगी। पहल� बार सन ्2002 म� जम�नी क� बहुरा���य कंपनी बेयर क� सहायक कंपनी �ो ए�ो �वारा �वक�सत जीएम

    सरस� को मंजूर� देने का आवेदन भारतीय �नयामक� ने खा�रज कर �दया था।2

    अब तक भारत ने �सफ� जीएम कपास (बीट� कॉटन) क� �यावसा�यक खेती को औपचा�रक मंजूर� द� है जब�क कई

    जीएम खा�या�न� का कई साल� से पर��ण चल रहा है। भारत सरकार के पया�वरण, वन और जलवायु प�रवत�न

    मं�ालय के तहत जीएमओ से संबं�धत सव��च �नयामक सं�था जेने�टक इंिज�नय�रगं ए�ेजल कमेट� (जीईएसी, जो �क

    तब जेने�टक इंजी�नय�रगं ए�वूल कमेट� के नाम से जानी जाती थी) न े2009 म� बीट� ब�गन क� �यावसा�यक खेती को

    मंजूर� द� थी ले�कन देश भर म� साव�ज�नक �वचार-�वमश� और बहस के बाद भारत सरकार ने �नयामक के फैसले को

    पलट �दया और 9 फरवर� 2010 को बीट� ब�गन के �यावसा�यक इ�तेमाल पर अ�नि�चतकाल के �लए रोक लगा द�

    थी। बीट� ब�गन पर रोक के बाद, अब एक सरकार� उप�म क� ओर स ेजीएम संकर सरस� के �यावसा�यक उ�पादन क�

    मंजूर� के �लए आवेदन �कया गया है। यह �यास आगे चलकर �नजी �े� क� मॉनस�टो, �सजंे�टा और डो जैसी

    क�प�नय� �वारा तैयार क� गई दसूर� जीएम फसल� जैसे म�का, चावल, ब�गन आ�द के �लए रा�त ेखोलेगा। इस

    सं���त त�य-प� म� �द�ल� �व�व�व�यालय के स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ �ॉप �लां�स (CGCMP) �वारा

    �वक�सत जीएम सरस� से संबं�धत त�य ��तुत �कए गए है।

    भारत म� सरस�

    पील� सरस�-सरस� (राई, तो�रया, तारामीरा आ�द �थानीय नाम ह�) �तलहन, स�जी और चारे के �प म� �योग क� जाने

    वाल� फसल ह�। ये भारत म� कर�ब 5.5 से 7 �म�लयन हे�टेयर रकबे म� पैदा क� जाती है। भारत म� ये �यादातर रबी

    क� फसल या �फर जाड़े क� फसल के तौर पर उगाई जाती है। कुछ इलाक� म� ये एकल फसल के तौर पर बोई जाती है

    जब�क कई जगह ये अंतर फसल के तौर पर भी उगाई जाती है।

    भारत म� �ै�सका (पील� सरस�/सरस�) न ेधीरे-धीरे सोयाबीन और मूंगफल� क� बजाय �तलहन क� �मुख फसल के तौर

    पर जगह बना ल� है। �तलहन के तौर पर सोयाबीन क� पैदावार 2012-13 म� 146.66 टन थी जब�क 2013-14 म�

    119.89 लाख टन। ले�कन, तेल के �प म� उपयोग के मामले म� ये तो�रया (रेपसीड)/सरस� के बाद दसूरे नंबर पर रहा।

    2012-13 म� सोयाबीन तेल का उ�पादन 23.47 लाख टन था जब�क सरस� या तो�रया (रेपसीड) तेल का उ�पादन

    24.89 लाख टन था। अगले साल 2013-14 म� सोयाबीन तेल का उ�पादन घटकर 19.19 लाख टन रहा जब�क सरस�

    और तो�रया (रेपसीड) तेल का उ�पादन बढ़कर 24.68 लाख टन पहंुच गया।3 2008-09 से 2013-14 के बीच तो�रया

    (रेपसीड) और सरस� के रकबे म� सालाना औसत व�ृ�ध दर तीन फ�सद�, उ�पादन म� 7.3 फ�सद� और उ�पादकता म�

    3.9 फ�सद� रह� (जब�क सभी �तलहन� क� सामू�हक उ�पादकता व�ृ�ध दर 1.3 फ�सद� रह�)।4 ये आंकड़े वा�तव म�

    हाल के वष� म� कामयाबी के उदाहरण के तौर पर पेश क� जाने वाल� भारतीय म�के और कपास क� कहा�नय� से

    �यादा �भावशाल� ह�।

    वैि�वक �तर पर, चीन और कनाडा के बाद भारत द�ुनया म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� का तीसरा बड़ा उ�पादक है।

    हाल के वष� म� भारत म� इन फसल� क� खेती का रकबा कुल फसल� रकबे के कर�ब 2.8 फ�सद� के आसपास बना हुआ

    है। भारत म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� �यादातर �स�ंचत भू�म म� ह� उगाई जाती है। 1990-91 म� खेती का �स�ंचत

  • फसल� रकबा 59.8 फ�सद� था। इसक� तुलना म� 2011-12 म� खेती का �स�ंचतं फसल� रकबा 73.2 फ�सद� हो गया।

    समि�वत �प से उपज म� भी सुधार �दखा है। 1950-51 म� उपज 3.68 कंुतल ��त हे�टेयर से बढ़कर 1990-91 म�

    9.04 कंुतल ��त हे�टेयर पहंुची और 2012-13 म� उपज औसतन 12.62 कंुतल ��त हे�टेयर थी। 2012-13 म�

    गुजरात म� तो�रया (रेपसीड) और सरस� क� ��त हे�टेयर उपज 16.95 कंुतल अथा�त ् लगभग 1.7 टन रह�। कुल

    उ�पादन क� �ि�ट से देख� तो 1950-51 के 0.76 �म�लयन टन से बढ़ कर यह 2013-14 म� 7.96 �म�लयन टन पहंुच

    गया (चौथे अ��म अनुमान म� 2010-11 म� ये 8.18 �म�लयन टन पहंुच गया था)। 2013-14 म� रेपसीड-सरस� के

    तीन बड़े उ�पादक रा�य थ:े राज�थान (भारत म� कुल उ�पादन का 48.12 फ�सद�), म�य �देश (11.31 फ�सद�) और

    ह�रयाणा (11.06 फ�सद�)। एक साथ �मलाकर तीन� रा�य� का भारत के उ�पादन म� 70 फ�सद� स े�यादा �ह�सा है।

    सरस� पैदा करने वाल ेदसूरे अहम रा�य ह�- उ�र �देश, पि�चम बंगाल, गुजरात, असम, �बहार, पंजाब5 आ�द।6

    सरस� के तेल म� संत�ृत वसा अ�ल कम मा�ा म� पाया जाता है और इसम� �लनोलेइक और ल�नोले�नक वसा अ�ल

    पया��त मा�ा म� होता है। सरस� �जा�त के बीज से कर�ब 33 फ�सद� तेल �नकलता है। बीज से तेल �नकलने का

    मामल ेम� दसूरे �तलहन जैसे सोयाबीन, मूंगफल� आ�द क� तुलना म� ये �यादा है।7 तेल �नकालने के बाद बची 67

    ��तशत खल� का उपयोग जानवर� के खाने या �फर खाद के तौर पर होता है। भारत म� �े�सका जुन�सया सरस� क�

    �मुख �प से उगाई जाने वाल� �जा�त है इसके अलावा दसूर� �मुख �जा�त �े�सका रापा और �े�सका नेपस ह�।

    �द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस�

    वत�मान म� नई �द�ल� ि�थत �द�ल� �व�व�व�यालय के द��णी कै�पस ि�थत स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ

    �ॉप �लां�स (सीजीएमसीपी) �वारा �वक�सत क� गई (�ा�सका जुन�सया) संकर सरस� डीएमएच-11, िजसम� बार,

    बारनेस और बार�टार जीन� को डाला गया है, ने क�थत �प से दसूरे �तर क� जैवसुर�ा शोध (बायोसे�ट� �रसच� लेवेल

    -II) को पूरा कर �लया है। भारतीय �नयामक तं� क� श�दावल� म� यह �तर �कसी फसल को �यावसा�यक �प से

    उ�पा�दत करने क� अनुम�त देन ेक� �दशा म� अं�तम स ेठ�क पहले का चरण है। इस जीन प�रव�त�त जैवपदाथ� का

    �वकास करने वाले बताये जा रहे डा. द�पक प�टल ने जीईएसी क� 73वीं बैठक म� ��तुत ��ताव "�ांसजे�न�स इन

    म�टड� (�ै�सका जुन�सया) फॉर हेटरो�सस �ी�डगं" म� बताया �क 1994 से जैव तकनीक �वभाग �वारा �व�पो�षत इस

    प�रयोजना का मु�य उ�दे�य

    (अ) �ै�सका जुन�सया म� बारनेज जीन डालकर इसक� नर �जनन �मता को रोकना और

    (ब) �ै�सका जुन�सया म� �ांसजे�नक लाइन� वाल ेबार�टार जीन को डालकर इसक� नर �जनन �मता को पुनः स��य

    करना है।

    समझा जाता है �क 2002-03 और 2003-04 के रबी के मौसम म� सी�मत तौर पर ज�ती गांव के खेत� म� इसका

    पर��ण �कया गया। इसके बाद 2005-06 के रबी के मौसम म� इसका कई �थान� पर पर��ण �कया गया। बताया गया

    �क ये पर��ण भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के त�वावधान म� हुए। इस फसल के बीआरएल I (बायोसे�ट� �रसच�

    लेवल वन) पर��ण 2010 म� राज�थान म� �कए गए जब�क राज�थान म� अगले साल ऐसे बीएलआर I पर��ण� को

    रोकने क� मांग क� गई। ऐसे म� कटाई से थोड़ा पहले ह� तीन पर��ण� म� से एक क� फसल को जला कर न�ट कर

    �दया गया। इसके बाद 2014-15 के रबी के मौसम म� बीआरएल II (बायोसे�ट� �रसच� लेवल टू) पर��ण (इसे

    �यावसा�यक खेती क� मंजूर� पर �वचार से पहले का आ�खर� चरण माना जाता है) तीन �थान� (लु�धयाना, भ�टंडा और

    �द�ल�) पर �कए गए।8

    माना जाता है �क जीएमओ मामल� म� जैव सुर�ा संबंधी सभी �रपोट�, फसल का जीव-वै�ा�नक �ववरण और दसूर�

    जानका�रयां साव�ज�नक तौर पर मुहैया करायी जाएंगी। सीआईसी (क� ��य सूचना आयोग) के आदेश� के अलावा सु�ीम

  • कोट� ने भी जीएम फसल� पर दायर एक जन�हत या�चका पर 2005 से चल रह� सुनवाई के दौरान जार� अंत�रम

    आदेश� म� से एक म� इसे दहुराया है। �फर भी, इस �रपोट� के बावजूद �क बीआरएल-II के पर��ण पूरे कर �लए गए ह�,

    जीईएसी क� वेबसाइट पर अब तक इस जीएम सरस� के बारे म� कोई भी जानकार� मुहैया नह�ं कराई गई है। इस

    जीएम सरस� के जैव सुर�ा डेटा के बारे म� जानकार� मांगत ेआरट�आई आवेदन� को �नयामक� ने बार-बार इस बहाने

    के साथ ठुकरा �दया �क ''ये अभी ���या म� है''। इससे ये माना जा सकता है �क या तो �नयामक (जीईएसी) उस

    �ारि�भक जैव सुर�ा जानकार� को बाहर आने से रोके हुए ह� िजसके आधार पर इस जीएमओ सरस� के बीआरएल II

    पर��ण� को मंजूर� द� गई अथवा फैसला लेने के �लए ज�र� ठोस डेटा न होने के बावजूद बीआरएल II को मंजूर� दे द�

    गई।

    दावे: इस जीएम सरस� को �वक�सत करने वाल� का दावा है �क इसक� उपज 25-30 फ�सद� �यादा है।9 ले�कन, इस

    दावे के साथ िजस बात का िज� नह�ं �कया जाता है वह यह है �क इस जीएम सरस� से �मलने वाल� उपज और

    बाजार म� पहले से मौजूद गैर जीएम संकर �जा�तय� क� उपज म� कोई अंतर नह�ं है। साफ है �क ये जीएम सरस�

    �कसान� के फायदे क� नह�ं है, बि�क इससे केवल बीज �नमा�ताओं को लाभ होगा, िजसके बारे म� आगे इस त�य-प� म�

    बताया गया है। शु� म� भारत सरकार के �व�ान और �ौ�यो�गक� मं�ालय के जैव �ौ�यो�गक� �वभाग से सहायता

    �ा�त इस जीएमओ �वकास प�रयोजना से बाद म� रा���य डेयर� �वकास बोड�, यूरोपीय यू�नयन और कई दसूरे संगठन

    जुड़।े 2012 तक इसके �वकास पर कर�ब 45 करोड़ �पये का �नवेश �कया गया।10 अब ताजा आंकड़� के मुता�बक इस

    जीएम सरस� के �वकास के �लए जनता के कर�ब 70 करोड़ �पये खच� हो चुके ह�।11

    बीट� ब�गन के मामले म� �ांसजे�नक �ौ�यो�गक� क� सुर�ा सा�बत कर पाने म� नाकाम होने के बाद जीएम सरस� लाने

    क� मौजूदा को�शश, भारत म� खा�य फसल� क� �ांसजे�नक �ौ�यो�गक� म� द�ुमन� को चोर दरवाजे से लाने जैसी है।

    इसके प� म� जो तक� �दया जा रहा है �क वो है �क ये जीएमओ सरस� चंू�क पि�लक से�टर से है, इस�लए ये महंगा

    नह�ं होगा और न ह� इसके �यावसा�यक इ�तेमाल पर �कसी कंपनी का एका�धकार होगा। ये भी तक� �दया जा रहा है

    �क इस जीएम सरस� के आन ेपर भारत क� �तलहल और तले आयात क� �नभ�रता कम हो जाएगी। इसे बनाने वाले ये

    भी दावा करत ेह� �क ये सुर��त है और कनाडा के जीएम कैनोला जैसी है। भारत म� जैसा �पछले 13 साल� का अनुभव

    रहा है, उसम� ये बताना गलत नह�ं होगा �क बीट� कॉटन को लेकर �कए गए सभी दावे झूठे और गलत सा�बत हुए ह�।

    भारत म� कपास क� खेती म� कृ�ष रसायन� (क�टनाशक� और उव�रक� दोन�) का इ�तेमाल बढ़ा है, ��त हे�टेयर

    क�टनाशक� का इ�तेमाल 0.9 �कलो�ाम पहंुच गया है, ये बीट� कॉटन के आने से पहले के व�त यानी सन 2000 से

    पहले जैसा हो गया है।12 �कसान� क� आ�मह�या बेरोकटोक जार� है िजनम� से �यादातर बीट� कपास पैदा करने वाले

    �कसान ह�। गौर करने लायक �दलप�प बात यह है �क देश के अ�णी कपास वै�ा�नक कपास क� खेती से जुड़े संकट�

    के समाधान के �लए गैर जीएम भारतीय कपास को बढ़ावा देने क� ज�रत बता रहे ह�।13

    ‘�ा�कथन’: 2002 म� �ो-ए�ो जीएम सरस� �यावसा�यक खेती के �लए अ�वीकृत

    नवंबर 2002 म� जेने�टक इंजी�नय�रगं मू�यांकन स�म�त (7 नवंबर 2002 को 34वी ंमी�टगं म�) न े�ो-ए�ो के आवेदन

    पर जीएम सरस� क� �यावसा�यक बुआई के �लए मंजूर� �दान करने के फैसले को कुछ समय के �लए टाल �दया। पाया

    गया था �क इस जीएमओ के �लए जीएम बीज� को 2002 म� �यावसायीकरण क� को�शश करने स ेसात साल पहले

    बेि�जयम से �ा�त �कया गया था। जैसी बारनेस/बार�टार जीन �णाल� �ो ए�ो जीएम सरस� म� बांझपन और इसे �फर

    से वापस पुरानी ि�थ�त म� लाने वाल� सीमा के �लए इ�तेमाल क� गई थी वैसी ह� �द�ल� �व�व�व�यालय जीएम सरस�

    म� भी इ�तेमाल क� गई है। इसम� बार जीन और फॉ�फोनाइ���सन ��तरोध को�डगं जीन भी थ ेजो जा�हर तौर पर

    रासाय�नक गुण बताने के �लए थ ेले�कन ये खरपतवार नाशक ��तरोधी भी है।14 25 अ�ैल 2003 को हुई जीईएसी क�

    36वीं बैठक म� �ो-ए�ो क� जीएम सरस� के मामल ेपर एक बार �फर �वचार हुआ और जीईएसी इस फैसले पर पहंुची

    �क इस मसले पर सभी जैवसुर�ा तथा कृ�ष वै�ा�नक मु�द� पर आगे अ�ययन �कया जाना चा�हए। दो साल बाद

  • बायर (�ो-ए�ो क� मात ृक�पनी अव��टस का बायर ने अ�ध�हण कर �लया था) ने एक पया�वरण संगठन के साथ हुए

    संवाद म� पुि�ट क� �क वह इस जीएमओ पर शोध बंद कर रह� है।15

    बहुत से लोग� का तक� था �क �ो-ए�ो का जीएम सरस� �लफूो�सनेट जैसे खरपतवार नाशक� का ��तरोध करन ेके �लए

    बार जीन क� �मतावाल� फसल के �प म� �वक�सत �कया गया था, भले ह� आ�धका�रक �प से उसे �यादा उपज वाल े

    बीज के �प म� ��तुत �कया गया हो। क�पनी का तक� था �क भारत म� �लूफो�सनेट का इ�तेमाल सरस� पर करने क�

    अनुम�त नह� ं है;16 ले�कन सच यह है �क चाय बागान� म� वा�तव म� �लूफो�सनेट का इ�तेमाल हो रहा है और यह

    सोचना मुि�कल नह�ं है �क भारत जैसे देश म� जहां �कसी उ�पाद अथवा तकनीक के अं�तम उपयोग पर �कसी �कार

    का �नयमन लगभग असंभव है वहां इस सरस� क� इस फसल के खरपतवार नाशक ��तरोधक गुण� के कारण उस पर

    भी �लूफो�सनेट का इ�तेमाल शु� हो सकता है।

    नवंबर 2002 और अ�ैल 2003 म� जीईएसी क� बैठक� (और, भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद अ�धका�रय� के मी�डया

    इंटर�यू) म� िजन �बदंओुं पर चचा� हुई थी वे इस �कार ह�: 17

    क�पनी �वारा पराग कण� के �सार �े� के बारे म� दाव े�कए गए थे �क इन �ांसजी�स का �सार 35 मीटर तक है

    जब�क भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के �योग� म� इन पराग कण� का �सार 75 मीटर तक पाया गया। कृ�ष जलवाय ु

    प�रि�थ�तय� और भारतीय �कसान� क� छोट� जोत को �यान म� रखत ेहुए स�म�त का मानना था �क इन �ांसजीन पराग

    कण� के कारण आसपास के खेत� क� गैर जीएम सरस� के बीज� पर नर बाँझपन के बारनेज, बार�टार, नीओमाइ�सन और

    बार जी�स के कारण जीन �दषूण क� संभावना है िजससे गैर �ांसजे�नक �क�म� के गुण� क� ि�थरता �भा�वत हो सकती

    है।

    कंपनी न े�व�भ�न जीएम संकर बीज� म� स ेव�ण के जांच प�रणाम� को सबस ेअ�छा बताते हुए उसस ेउ�पादन म� 16%

    से 23% व�ृ�ध का दावा �कया जब�क भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के �योग म� �मल ेप�रणाम� म� यह व�ृ�ध केवल

    5% थी। जीइएसी ने यह भी कहा �क इस �ांसजे�नक सरस� क� कृ�षवै�ा�नक �े�ठता भी अभी तक पूर� तरह से

    �था�पत नह�ं है।

    भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद, िजसक� देखरेख म� वा�त�वक �े� पर��ण होने चा�हए थे, ने �प�ट �कया �क कंपनी

    उसके �नर��ण म� िजतने �े� पर��ण� का दावा कर रह� है वह गलत है और उसने केवल चार �थान� पर पर��ण� का

    आयोजन �कया था जो अ�ययन क� �ि�ट से पया��त नह�ं ह�।

    जीईएसी का �नण�य था �क "सरस� के खा�य फसल होन ेके कारण इसक� लेब�लगं, पहचान आ�द से संबं�धत मह�वपूण�

    नी�तगत मु�द� के �था�पत होन ेके बाद ह� इसके �यावसा�यक �योग क� अनुम�त द� जानी चा�हए"।

    कंपनी �वारा �कए गए पर��ण अ�ययन म� यह बात भी सामन ेआई �क �ांसजे�नक सरस� के खेत के आसपास के खेत�

    म� उगाई गई गैर-�ांसजे�नक सरस� क� फसल म� नर भाग क� नपसुंकता स े�भा�वत पौध ेउपि�थत थे। अनुमान �कया

    गया �क बारनेज जीन के कारण नर भाग क� नपुंसकता स े�भा�वत पौध� क� उपि�थ�त कुल पौध� म� औसतन 0.31%

    है। स�म�त ने उ�लेख �कया �क बार�टार और बार जीन के कारण द�ूषत हुए देशी पौध� का मु�दा मह�वपूण� है िजसका

    �यान �ांसजीन के �सार का आकंलन करते समय नह� ंरखा गया है।

    माक� र जीन के �प म� बार जीन का उपयोग, खर-पतवार� जैसी व�ृ�ध क� अ�धकता और प�रणाम�व�प उ�ह� रोकन ेके

    �लए �वषा�त शाकना�शय� के उपयोग के ��न पर भी चचा� हुई। �नण�य �लया गया था �क शाकना�शय� क� ��तरोधकता

    समेत सभी जैवसुर�ा मामल� पर आग ेका अ�ययन भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद �वारा आयोिजत �कया जाना

    चा�हए।

    स�म�त ने उ�लेख �कया �क सरस� के खा�य फसल होने के कारण इसस ेजुड़ े�वा��य सुर�ा पहलुओ ंको �था�पत करने

    के �लए और अ�ययन� क� ज�रत है।

  • कुल �मलाकर, यह देखा जा सकता है �क �ो-ए�ो जीएम सरस� का पर��ण उतनी �यापकता और कठोरता से भी नह�ं

    �कया गया था िजतना रा���य कृ�ष अनुसंधान �णाल� (एनएआरएस) म� अ�खल भारतीय समि�वत फसल सुधार शोध

    प�रयोजनाओं के अधीन �नय�मत �जा�त चयन पर��ण� के दौरान �कया जाता है। �वा��य के प� पर देखा गया �क

    शाक के �प म� �योग होने वाल� सरस� क� प�� के खा�यसुर�ा आंकड़े नह�ं �दए गए थे और आवेदक ने केवल इन

    बीज� से उ�पा�दत तेल के आंकड़े पेश �कए थे।18 �नयामक� �वारा �ो-ए�ो जीएम सरस� क� अनुम�त �थ�गत करने के

    अ�य कारण� म� �दषूण और ख�म करने म� मुि�कल खर-पतवार� के उ�प�न होने क� संभावना जताते हुए कहा गया

    �क भले यह संभावना कम हो, इस बात पर �वचार आव�यक है �क �या यह जो�खम �वीकाय� है।

    इस बारे म� आए समाचार� के अनुसार �नयामक� का एक और �ासं�गक सवाल था �क यह जानते हुए �क जीएम सरस�

    को िजन �े�� म� उगाने क� अनुम�त द� जाए ये उन सभी �े�� म� उपयोगी नह�ं हो सकता, ऐसे म� एक बार अनुम�त

    �दए जाने के बाद अ�य �े�� म� इसके �सार को �नयं��त करने के �या उपाय हो सकत ेह�। इन ��न� पर जीएम

    सरस� के �वकासकता�ओं क� ओर से कोई उ�र नह�ं �मला। इस जीएम सरस� को अ�वीकृत �कए जाने के बाद जीएम

    पर��ण� क� जानकार� जनता के सामन ेरखने क� मांग भी उठ� थी।

    उ�लेखनीय है �क जीईएसी का उपयु��त �ि�टकोण और �न�कष� भारतीय जैवतकनीक �नयमन के इ�तहास के उस दौर

    म� था जब फैसले केवल क�प�नय� �वारा ��तुत आंकड़� के आधार पर �कए जात ेथे और जैवसुर�ा तथा अ�य

    �व�श�ट मु�द� पर �वशेष� स�म�तय� �वारा उन आंकड़� क� �वतं� जांच, नए �सरे से �व�लेषण अथवा मू�यांकन क�

    �यव�था नह�ं थी।

    इस कहानी का �फर से दोहराया जाना इस�लए ज�र� है �क इसम� �कए गए दावे, �ौ�यो�गक� और पर��ण ���याएं

    �द�ल� �व�व�व�यालय �वारा �वक�सत जीएम सरस� के इ�ह�ं प�� स ेमेल खाती हुई है �सवाय इस अंतर के �क पहला

    �यास �नजी �े� क� एक क�पनी क� ओर स ेहुआ था और वत�मान �यास साव�ज�नक �े� क� एक सं�था क� ओर से

    �कया गया है। �प�टतः इस बात का �यान �दए �बना �क जीएमओ का �वकास �नजी �े� म� हुआ है या साव�ज�नक

    �े� म�, 2002 म� �नयामक� �वारा इ�तेमाल �कए गए तक� आज भी �ासं�गक ह�।

    इस प�ृठभू�म के साथ, हम वापस �द�ल� �व�व�व�यालय के जीएम सरस� क� ओर बढ़त ेह�.

    जीएम तकनीक बीज उ�पादक� के �लए है- भारत के खा�य तेल आयात का इस

    तकनीक स ेकोई मतलब नह� ं

    जैसा �क पहले उ�लेख �कया जा चुका है, सरस� के इस आनुवं�शक संशोधन स ेिजस संकरण ���या को आगे बढ़ाया

    जाना है, वह मु�य �प से बीज �नमा�ताओं के �लए है। जहां तक �कसान� का संबंध है, यह जीएम सरस� पहले स ेह�

    बाजार म� मौजूद गैर-जीएम संकर सरस� के समान है। वा�तव म�, कृ�ष मं�ालय ने हाल ह� म� ��त हे�टेयर 2.4 टन

    पैदावार देन ेवाल� भारतीय संकर सरस� (एनआरसी संकर सरस�) के बीज उ�पादन तकनीक के मानक�करण क� घोषणा

    क� है।19 यह �यान रखना भी मह�वपूण� है �क इस बात के पया��त �माण ह� �क बीज क� �जा�त के साथ �कसी तरह

    क� छेड़छाड़ �कए �बना गहन सरस� उ�पादन �णाल� जैसी कृ�ष प�ध�तय� का उपयोग करते हुए सरस� क� उपज को

    2.5 से 3 टन ��त हे�टेयर तक पहंुचाया जा सकता है। गहन उ�पादन �णाल� के सभी �स�धांत� का �योग करने पर

    तो पैदावार ��त हे�टेयर 4 टन तक पहंुची है। ये �माण �बहार के उन 1600 �कसान� से एक��त �कए गए ह� िज�ह�

    उनके �योग� म� �बहार सरकार क� ओर से मदद मुहैया कराई गई थी। इस �योग म� �द�ल� �व�व�व�यालय के शोध के

    तहत �कए गए �थम और दसूरे �तर के जैवसुर�ा शोध (बीआरएल I तथा II) के �म म� �कए गए दो से चार पर��ण�

    क� तुलना म� काफ� बड़े �े�फल का �योग हुआ।20 यह भी �यान रखा जाना चा�हए �क सु�नयोिजत �प से �द�ल�

  • �व�व�व�यालय के शोध आंकड़� म� जीएम सरस� के उ�पादन क� तुलना �कसी अ�य संकर �जा�त के उ�पादन से करने

    के �थान पर ओपी �ेणी क� व�ण �जा�त के बीज� से �मले उ�पादन से क� गई।

    जीएम सरस� के �वकासकता�ओं के इस दाव ेक� ओर भी देख� �क जीएम सरस� के उपयोग स ेभारत का खा�य तेल

    आयात �बल घट जाएगा। इस तकनीक-क� ��त �ि�टकोण (िजसम� इस बात का भी �याल नह�ं रखा गया है �क सरस�

    क� संकर �जा�तयां पहले से ह� बाजार म� मौजूद ह�) को रखते हुए �प�टतः उन नी�तगत और राजनी�तक कारक� क�

    उपे�ा क� गई िजनसे भारत का तेल आयात नीचे आ सकता है जब�क �वशेष�� ने बार-बार रेखां�कत �कया है �क

    खा�य तेल� का आयात कम करन े के �लए वा�तव म� नी�तगत प�रवत�न� क� ज�रत है। उदाहरण के �लए, आयात

    शु�क 300 फ�सद� स ेघटाकर लगभग शू�य हो जाने के कारण देश म� स�ते आया�तत तेल क� बाढ़ आ गई है। इसके

    अलावा, यह भी याद रखने क� ज�रत है �क 1985 म� शु� हुए �तलहन �ौ�यो�गक� �मशन ने �कस सफलता से देश

    म� खा�य तेल� क� ि�थ�त बदल� है। �मशन शु� होने के समय 1985-86 म� देश क� कुल ज�रत का लगभग 50%

    आयात करना होता था जो 1993-94 आते-आते घटकर 3 ��तशत रह गया था।21 इस�लए, सरस� जैसे �तलहन� के

    उ�पादन को पया��त नी�तगत समथ�न� जैसे बाजार को आया�तत स�त ेखा�य तेल� से भर देन ेसे रोकने के �लए ऊंचे

    आयात शु�क�, सरस� �कसान� को लाभकार� मू�य �दान करने और उनक� उपज क� वा�त�वक खर�द क� �यव�था

    करने जैसे उपाय� से सरस� उ�पादन को �ो�सा�हत करके �तलहन फसल� के उ�पादन म� व�ृ�ध और आयात �बल कम

    करने के मोच� पर बड़ी सफलता पाई जा सकती है। यह भी �यान �दया जाना चा�हए �क औसत भारतीय �दय रोग�

    और दसूर� �वा��य सम�याओ ंसे बचे रहने के �लए डॉ�टर� �वारा सं�तुत खा�य तेल� क� मा�ा से लगभग दोगुना

    तेल� का उपयोग करता है।

    जीएम सरस� म� �यु�त जीन� के कारण यह आनुवं�शक �योग ��तबंध �ौ�यो�गक� (GURT) है

    �द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� बारनेज जीन के उपयोग से नर बांझपन पैदा करता है। इस�लए यह एक

    �कृ�त संबंधी आनुवं�शक �योग ��तबंध �ौ�यो�गक� (Genetic Use Restriction Technology) है। इसके

    �वकासकता�ओं का दावा है �क इस संकर �जा�त क� पुन�था�पक �ृंखला (Restorer Line) म� बार�टार जीन के �योग

    से पुन��पादकता को दोबारा हा�सल �कया जा सकता है और नर बांझपन पैदा करने वाला जीन बारनेज इस फसल से

    दसूर� फसल� म� नह�ं पहंुचेगा। ले�कन, जीन प�रवत�न के अि�थर और अ��या�शत �व�ान तथा सामा�य जै�वक ���या

    अध�सू�ी�वभाजन (Meiosis) क� मौजूदगी म� यह �प�ट है �क इसे पूर� तरह से सुर��त नह�ं माना जा सकता। �कसी

    भी ि�थ�त म�, मूल गुणसू�� वाले पैतकृ �ृंखला क� फसल� का भी �योगशाला से बाहर वा�त�वक उ�पादन करने क�

    आव�यकता होगी, और उनके गुणसू�� से दसूर� फसल� के �भा�वत होने क� संभावना �यादा होगी जब�क संकर �जा�त

    क� फसल से भी ऐसी संभावना को एकदम नकारा नह�ं जा सकता। पादप �व�वधता संर�ण और �कसान अ�धकार

    अ�ध�नयम (PPVFRA), 2001 क� धारा 29(3) के अनुसार GURT तथा ट�म�नेटर तकनीक� का वग�करण ऐसी

    �ौ�यो�गक� के �प म� �कया गया है जो मनु�य�, पशुओं या पौध� के जीवन अथवा �वा��य के �लए हा�नकारक है। यह

    भी �प�ट �प स ेकहा गया है अ�ध�नयम के अंतग�त ऐसी �कसी जींस �ृंखला या �जा�त का पंजीकरण नह�ं �कया

    जाएगा िजसम� GURT का �योग हुआ हो।

    भारत म� सरस� क� कई �क�म�

    भारतीय सरस� (�ै�सका जुन�सआ)22 के मूल उ�प�� �थान के बारे म� �व�वान� के �वरोधाभासी दाव� के बीच भी यह

    सु�था�पत है �क सरस� के �लए भारत �व�वधता का क� � है।23 सु�ीम कोट� क� तकनीक� �वशेष� स�म�त (ट�ईसी) के

    एक सद�य न े1991 म� �का�शत एक शोध म� इस बात क� पुि�ट क� थी �क �ै�सका एसएसपी (राई, सरस� और

    तो�रया जैसी �े�णयां) क� कई �जा�तय� का मूल उ�प�� �थान भारत है।24 वा�तव म�, इस बात के �माण दज� ह� �क

  • देश के सभी भाग� म� सरस� कुल (Brassicaceae) क� उ�च �व�वधता है। बीट� ब�गन पर रोक लगाने के कारण� म� से

    एक यह भी था �क भारत ब�गन का उ�प�� तथा �व�वधता क� � है। सव��च �यायालय क� तकनीक� �वशेष� स�म�त ने

    अपनी �रपोट� म� बहुमत स ेकहा था �क उन सभी फसल� या पादप� के बारे म� जीन प�रवत�न शोध बंद �कए जाने

    चा�हए िजनक� उ�प�� और/या �व�वधता का क� � भारत है, इस संदभ� म� जीएम सरस� का �वकास भारत क� सरस� जैव

    �व�वधता के �लए हा�नकारक हो सकता है। एक दशक पहले कृ�ष जैव �ौ�यो�गक� के अनु�योग पर �वामीनाथन टा�क

    फोस� क� �रपोट� म� भी उन फसल� के जीन�म के साथ प�रवत�न के �खलाफ चेतावनी द� िजनक� उ�प�� और/या

    �व�वधता का क� � भारत है।

    भारत म� �े�सका जुन�सआ क� अनेक �क�म� उगाई जाती ह�, िजनम� से कई �वक�सत �जा�तय� को मु�त �योग के

    �लए जार� �कया गया है। भारतीय कृ�ष अनुसंधान प�रषद के रेपसीड (तो�रया) -सरस� अनुसंधान �नदेशालय (DRMR)

    के अनुसार 1967 म� तो�रया (रेपसीड)/सरस� पर अ�खल भारतीय समि�वत अनुसंधान प�रयोजना क� �थापना के बाद

    2013 तक साव�ज�नक �े� क� ओर स ेभारतीय सरस� क� 91 �क�म� जार� क� जा चुक� ह�। अकेले इस �नदेशालय ने

    रा���य और अंतररा���य एज��सय� से अ�ध�हण के मा�यम से 1868 �कार क� भारतीय सरस� �जा�तय� को हा�सल

    �कया है (तो�रया (रेपसीड) �जा�तय� के साथ यह सं�या 2452 है); इसके अलावा, पूरे देश म� रेपसीड(तो�रया)-सरस� क�

    12,755 �क�म� क� उपल�धता �मा�णत है।25 यह त�य देश म� इस फसल क� जबरद�त �व�वधता क� एक झलक देता

    है।

    रोकथाम असंभव, �दषूण अप�रहाय�

    �व-परागण तथा पर-परागण दोन� तर�क� से परागण होने वाल� फसल26 के कारण जीएम कैनोला / तो�रया (रेपसीड) से

    संदषूण क� घटनाएं द�ुनया के कई �ह�स� म� कई बार सामन ेआई ह�। जै�वक संदषूण के अलावा मधुमि�खय� के सहारे

    काफ� दरू� तक परागण क� संभावनाओं के साथ ह� कई दसूरे तर�क� स ेपरागण क� संभावनाओं के कारण इसे रोक

    पाना असंभव है। इस फसल के बीज� का आकार काफ� छोटा होने के कारण फसल कटाई के बाद क� ���याओं म�

    सावधा�नय� के बावजूद दसूर� फसल� के साथ �मलकर �कसी भी दरू� तक पहंुच सकते ह�। इसके अलावा फसल कटाई,

    भराई आ�द ���याओं के दौरान ये पड़ोसी खेत� तक उड़ कर भी पहंुच सकत ेह�। इसके अलावा, कई जैव च�� तक

    स�म रहकर खुद �वक�सत हो जाने वाले पौध� और जंगल� पौध� के बीज के �प म� �कसी �नि�चत समय के काफ�

    बाद भी इनका स��य होना संभव है।

    उ�लेखनीय है �क द�ुनया भर म� पादप संदषूण क� िजन घटनाओं का पता चला है उनम� से कई का कारण आयात-

    �नया�त है। ऐसा �तीत होता है �क 2002 म� जीएम तो�रया (रेपसीड) क� एक खेप का कनाडा से �ांस म� आयात हुआ।

    इसके दो साल बाद 2004 से आई कई �रपोट� म� इस खेप के प�रवहन माग� म� पड़े जापानी बंदरगाह� के अलावा

    आयात�थल� से काफ� दरू के �े�� म� इस जीएम तो�रया (रेपसीड) स ेसंदषूण का उ�लेख �कया गया है। हाल म� आई

    �रपोट� म� बताया गया है �क इस जीएम तो�रया (रेपसीड) के प�रव�त�त जी�स का �सार इस �तलहन क� जंगल�

    �क�म� तक म� हो गया है।27 2013 म� द��ण को�रया म�, जहा ंइस फसल क� खेती क� अनुम�त नह�ं है, एक सरकार�

    सव��ण म� पाया गया �क �मुख बंदरगाह�, �सं�करण कारखान� और पशु �जनन �े�� के आसपास इस तो�रया

    (रेपसीड) का संदषूण मौजूद है। 2012, 2013 और 2014 म� ि�वटजरल�ड म� अन�धकृत जीएम तो�रया (रेपसीड) जंगल�

    पौध� के �प म� तेजी से फैल रहा है। एनवायरनम�ट साइंस यूरोप म� �का�शत शोधप� म� बताया गया �क जंगल� जीएम

    तो�रया (रेपसीड) ि�व�जरल�ड के चार �े�� म� मौजूद था और दो �थान� पर वह खर-पतवार ना�शय� के �योग के बाद

    भी जी�वत रहने स�म था। अन�धकृत जीएम सरस� के �वक�सत होने के सा�य ि�वटजरल�ड क� इटल� और �ांस स े

    लगी सीमाओं के �नकट, रेलवे लाइन� के �नकट और �तलहन �सं�करण कारखान� तक पाए गए थे।28

  • कनाडा म� पाया गया है �क सी�मत �ाकृ�तक बीज �सार के बावजूद जीएम सरस� का बड़े पैमाने पर �सार मानवीय

    ग�त�व�धय� �वारा हुआ है। वहां के अ�धकांश काब��नक खेती करने वाल े�कसान इस दषूण के कारण अब अपने

    �तलहन के �प म� तो�रया (रेपसीड) क� खेती नह� ंकर सकते।

    2010 म�, संयु�त रा�य अमे�रका म� वै�ा�नक अनुसंधान म� पता चला �क �ांसजे�नक तो�रया (रेपसीड) जंगल� पादप

    के �प म� फैल रहा है। इससे वहां जीएम फसल� क� उ�चत �नगरानी और �नयं�ण क� क�मय� पर �काश पड़ा। उ�र�

    डकोटा म� सव��ण के दौरान पाए गए पौध� पर �कए गए पर��ण� से पता चला �क उनम� से कुछ पौधे ऐस ेनए

    जीएमओ थे िजनम� मॉनस�टो और बायर �वारा �वक�सत �ांसजीन मौजूद थे िजसके कारण वे �लाइफोसेट तथा

    �लूफो�सनेट जैसे खर-पतवार ना�शय� क� ��तरोधक �मता वाले थे। इन पौध� क� मौजूदगी स ेपता चला �क अलग-

    अलग जीएम पौध� का �नषेचन होने से एक ऐसी नए गुण� वाल� �जा�त का �वकास हो गया था जो पहले कभी न तो

    मौजूद थी, न उस े�वक�सत �कया गया था न और न ह� उसे �कसी �कार क� �वीकृ�त �ा�त थी।29

    ��टेन म� जीएम फसल� के कृ�ष �े� मू�यांकन म� पाया गया �क एक जीएम तो�रया (रेपसीड) का पर-�नषेचन इसी

    कुल के एक खर-पतवार चारलॉक स ेहो गया था। इस बात क� जानकार� तीन वष� के शोध काय��म के दो वष� बाद

    �कए गए प�चवत� अ�ययन म� �मल�।30 खरपतवार नाशक ��तरोधक �मता वाले खर-पतवार� क� मौजूदगी �कसान� के

    �लए बड़ी सम�या पैदा कर सकती है। ��टेन म� ह� 2008 म� पाया गया �क एक पारंप�रक तो�रया (रेपसीड) म� भी

    अन�धकृत जीन प�रव�त�त पदाथ� के अंश पहंुच गए थे।

    गैर-जीएम / जै�वक �े�� के जीएम कैनोला संदषूण के च�च�त मामल� म� दो �कसान� कनाडा के पस� �मीसर और

    ऑ��े�लया के �ट�व माश� जैसे लोग� के मामल ेह�। पहले मामले म� मोनस�टो ने कनाडा के सु�ीम कोट� म� �मीसर के

    �खलाफ पेट�ट उ�लंघन का दावा �कया था। अदालत ने भी मोनस�टो के दावे को मंजूर कर �लया जब�क �मीसर क�

    फसल के संद�ूषत होने का कारण जीएम कैनोला पराग कण� का उड़कर पड़ोसी खेत� म� पहंुचना था। ऑ��े�लयाई

    जै�वक �कसान �ट�व माश� के मामल ेम� एक पड़ोसी के खेत से हुए जीएम संदषूण के कारण उसक� फसल� जै�वक �ेणी

    क� नह� ंरह ग�। इस मामल ेम� जब वह पड़ोसी के �खलाफ अदालत गया तो मामला हार गया �य��क �यायाधीश का

    मानना था �क इस ि�थ�त के �लए पड़ोसी को िज�मेदार नह� ंठहराया जा सकता। माश� न ेइस फैसले के �खलाफ उ�च

    �यायालय म� अपील क� है।

    �द�ल� �व�व�व�यालय के स�टर फॉर जेने�टक मै�नपुलेशन ऑफ �ॉप �लां�स के त�काल�न �नदेशक डा. द�पक प�टल ने

    प��का डाउन टु अथ� के संवाददाताओं को �दए एक सा�ा�कार म� जीएम सरस� के कारण इसक� अ�य �जा�तय� के

    संदषूण क� संभावनाओं के बारे म� �कए गए ��न पर �वीकार �कया था �क पूव� भारत म� उगाई जाने वाल� �ाकृ�तक

    �प से उपल�ध �ै�सका जुन�सआ और �ै�सका रापा तक इस जीएम सरस� के प�रव�त�त जीन पहंुच सकत ेह�। उ�ह�ने

    यह भी कहा था �क यह कहना गलत होगा �क ये �ांसजीन गैर-�ांसजे�नक �ेणी के पादप� तक नह�ं जाएंगे। य�द आप

    इनके �खलाफ �कसी खरपतवार नाशक या ऐसे �कसी अ�य रसायन का �योग करते ह� तो ये तो वे काफ� तेजी से फैल

    सकत ेह� ले�कन इसम� संदेह नह�ं �क जीएम �े�सका जुन�सआ का �नषेचन गैर जीएम जुन�सआ के साथ हो सकता

    है।31

    ऊपर �दए गए उदाहरण� को एक साथ रख कर देखा जाए तो यह बात असं�द�ध �प से �था�पत होती है �क जीएम

    तो�रया (रेपसीड)-सरस� को जै�वक �प से सी�मत रख पाना असंभव होगा और इससे न केवल इस �जा�त क� जंगल�

    �क�म� बि�क अ�य गैर-जीएम �क�म� का संदषूण होगा। भौ�तक �प स ेयह अप�म��त होकर अ��या�शत और दरू के

    �थान� तक फैलेगा। यह बात अ�छ� तरह से �था�पत हो चुक� है जीएम संदषूण का �सार �यावसायीकरण के कारण

    होने वाले �सार से �वतं� होता है32 और पर��ण के नाम पर खुले खेत� म� इसे ले जाए जाने के भी गंभीर खतरे पैदा

    होते ह�।

  • जो बात च�काने वाल� है वह यह �क आईसीएआर ने �ो-ए�ो के जीएम सरस� के मामले म� 75 मीटर क� दरू� तक

    संदषूण के खतरे पाने के बावजूद नए जीएम सरस� पर��ण� के �लए अ�य फसल� से अलगाव क� दरू� मा� 50 मीटर

    रखने क� सं�तु�त क�। इससे �नयामक� म� िज�मेदार� के पणू� अभाव का पदा�फाश होता है। इस तरह क� गैर-िज�मेदार�

    का सीधा सा मतलब है �कसान� और उपभो�ताओं के �लए �वक�प� का समा�त हो जाना िजसके कारण जै�वक सरस�

    के उ�पादन पर भी गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। उ�लेखनीय है �क जीन प�रव�त�त जैवसंरचनाओं (जीएमओ) के बारे म�

    दायर एक जन�हत या�चका पर सुनवाई करते हुए भारत के सव��च �यायालय ने �प�ट आदेश �दए ह� �क �नयामक�

    को यह सु�नि�चत करना चा�हए �क ऐसी कोई संदषूण न हो सके।

    �द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� खरपतवार नाशक� क� ��तरोधी �मता रखने वाला है

    भारत म� �व�भ�न सरकार� �वारा �था�पत, संसद और �व�भ�न अदालत� �वारा �नयु�त स�म�तय� / काय� बल� ने बार-

    बार देश म� खरपतवार नाशक क� ��तरोधी �मता रखने वाले फसल� के �खलाफ �सफा�रश क� है। इस सलाह म�

    खरपतवार नाशक ��तरोधी �मता वाले जीएम फसल� से जुड़े जैव-सुर�ा मु�द� के साथ-साथ कृ�ष ��मक� के

    �व�थापन क� तकनीक के �प म� खरपतवार नाशक� के �योग जैसी गंभीर सामािजक-आ�थ�क �चतंाओं को भी शा�मल

    �कया गया है। उ�लेखनीय है �क देश म� �यादातर म�हला कृ�ष ��मक� को आजी�वका के �लए फसल� खेत� से खर-

    पतवार क� �नराई का काम �मलता है।

    �द�ल� �व�व�व�यालय का जीएम सरस� भी, अतीत म� भारतीय �नयामक� �वारा अ�वीकृत �कए गए �ो-ए�ो जीएम

    सरस� क� तरह ह� खतपतवार नाशी ��तरोधी जीएम फसल है। वा�तव म� इस बीज के �वकासकता�ओं �वारा �का�शत

    �ारं�भक साम�ी स ेलगता है �क इस जीएम फसल के �वकास का मु�य उ�दे�य ह� इसम� खरपतवार नाशक ��तरोधी

    गुण� का �वकास करना था।33 आवेदक इसक� उ�च उपज क� �वशेषता क� आड़ म� अनुम�त के �लए आवेदन कर सकते

    ह� ले�कन �नयामक न तो इसक� खतपतवार नाशी ��तरोध क� �मता को नजरअंदाज कर सकत ेह�, न ह� उ�ह� ऐसा

    करना चा�हए �य��क 2002 म� �ो-ए�ो जीएम सरस� को अनुम�त न �दए जाने क� वजह� म� स ेएक वजह उसक�

    खरपतवार नाशी ��तरोधी �मता ह� थी। यह बात भारतीय संदभ� म� �वशेष �प से खतरनाक है �य��क यहां

    क�टनाशक� या खरपतवार नाशक रसायन� के अं�तम उपयोग के संबंध म� कोई �व�नयमन अथवा �नयं�क तं� नह�ं है।

    हमार� खेती म� खरपतवार नाशक� के उपयोग के साथ-साथ बढ़ रहे �वा��य और पया�वरण जो�खम� के अ�त�र�त

    जीएम फसल� के आगमन के साथ ह� खरपतवार नाशक� के उपयोग म� घातीय व�ृ�ध होने के मामल ेद�तावेज� म� दज�

    ह�। उदाहरण के �लए पशुओ ंपर �कए गए �योग� से यह �था�पत हुआ है �क �लूफो�सनेट तं��का-तं� और �जनन

    �णाल� पर �वषा�त �भाव डालता है; अ�य अ�ययन� म� यह भी बताया गया है �क यह खरपतवार नाशक फसल के

    �लए नुकसानदेह क�ड़� को खान ेवाले लाभकार� क�ट� तथा परागण म� मदद करने वाले क�ट� पर भी �वषा�त �भाव

    डालता है।34 इस ि�थ�त म�, भारत के �लए इसके गंभीर �न�हताथ� ह�। इसके खतरपतवार नाशक ��तरोधी जीएम फसल

    होने के कारण इसके बारे म� �वचार करते हुए इससे जुड़े उन सभी खतर� के बारे म� एह�तयात रखा जाना चा�हए

    िजनके बारे म� अ�ययन हो चुके ह� और जानका�रयां उपल�ध ह�। �व�भ�न स�म�तय� �वारा बार-बार द� गई सलाह �क

    भारत म� खरपतवार नाशक ��तरोधी जीएम फसल� पर ��तबंध लगा �दया जाना चा�हए के अनु�प ह� इस मामल ेम�

    �नण�य �लया जाना चा�हए।

    सरस� भारत म� खा�य शाक भी है

    सरस� क� प�ी, खासकर उ�र भारत म�, भारतीय �यंजन� म� एक भोजन के �प म� सीधे खाई जाती है। प��यां सलाद

    म� इ�तेमाल के साथ-साथ रोट� के साथ खाने के �लए ��स�ध भारतीय पकवान (सरस� दा साग) के �प म� पकाया

    जाता है। भारतीय सरस� इस�लए �सफ� एक �तलहन नह�ं है।

  • बीट� ब�गन के मामल ेम�, उस पर अ�नि�चतकाल�न रोक लगाए जाने के मु�य कारण� म� से एक बात यह थी �क

    �वचाराधीन जीएमओ क� खा�य उ�पाद के �प म� सीधी खपत क� जाती है। खा�य उ�पाद के �प म� सरस� का उपयोग

    तो ब�गन क� तुलना म� �यादा सीधे तर�के से �कया जाता है।

    2010 म�, जब भारत म� बीट� ब�गन के �यावसायीकरण के बारे म� बहस चल रह� थी तब वन एवं पया�वरण मं�ी न े9

    फरवर� 2010 को जार� रोक के आदेश म� देश के सबसे ��ति�ठत और सबसे व�र�ठ कृ�ष वै�ा�नक डॉ एमएस

    �वामीनाथन का उ�लेख �कया था। उस मसले पर बहस म� डा. �वामीनाथन ने ये चार म�ुदे म�ुय �प से उठाए थे:

    भारत म� ब�गन क� �यापक खपत के कारण इससे उ�प�न होने वाल� द�घ�का�लक �वषा�तता; ब�गन के बारे म� उसके

    �वकासकता�ओं �वारा उपल�ध कराए गए आंकड़� पर �नभ�र होने क� बजाय �वतं� और �व�वसनीय आंकड़े हा�सल करन े

    के �लए पर��ण� का आयोजन; कृ�ष के �े� म� जीएम �ौ�यो�गक� के सभी पहलओुं का अ�ययन करने और मापनीय

    �न�कष� पर पहंुचने म� स�म �वतं� �नयामक �णाल� क� ज�रत; तथा भारतीय ब�गन क� आनुवं�शक �वरासत के

    संर�ण क� ज�रत।35

    यहां इस बात का उ�लेख अ�ासं�गक नह�ं होगा �क ये सभी म�ुदे इस जीएम सरस� के मामल ेम� भी समान �प से

    �ासं�गक ह�।

    फसल �वकासकता�ओं के �खलाफ बौ��धक स�पदा क� चोर� और EPA उ�लंघन का मामला

    �द�ल� �व�व�व�यालय के इस जीएम सरस� और वह�ं �वक�सत क� जा रह� एक दसूर� सरस� के बारे म� भी �ववाद है।

    भारत सरकार के �व�ान और �ौ�यो�गक� �वभाग न ेरह�यो�घाटन �कया है �क उसे नह�ं पता �क इस हाई-�ोफाइल

    मामल ेम� जीएम �ृंखलाएं कहां से आई ह� और �कसने इस �वषय पर शोध क� अनुम�त �दान क�।36 वा�तव म� एक

    अदालत म� �द�ल� �व�व�व�यालय के ह� एक �ोफेसर �ो. पी. पाध�सारधी न ेइस जीएम सरस� के �वकासकता� �ो. द�पक

    प�टल पर आरोप लगाया है �क प�टल ने उनक� �लखी मौ�लक साम�ी क� चोर� के अलावा उनक� �योगशाला स ेजीएम

    बीज� क� चोर� क� है और �नयामक क� मंजूर� के �बना इस तरह क� 'खतरनाक साम�ी' का उपयोग कर रहे ह�। �ो.

    पाध�सारधी के आरोप ह� �क �ो. प�टल न ेएक शोधछा� के.वी.एस.के. �साद को गलत तर�के से �नयुि�त देकर उसके

    मा�यम से सीओडी-ए �ांसजे�नक भारतीय सरस� के बीज� क� चोर� करवाई। के.वी.एस.के. �साद इसके पहले जा�मया

    �म�लया इ�ला�मया म� �ो. पाध�सारधी का छा� था। या�चकाकता� �ो. पाध�सारधी का दावा है �क उ�त बीज का �वकास

    वा�तव म� उ�ह�ने और उनक� ट�म न ेभारत-जापान �व�ान सहका�रता काय��म के अंतग�त �कया था।37

    जैवसुर�ा शोध के दसूरे चरण (बीआरएल-II) म� पहंुची जीएम सरस� के मामल ेम� फसल के �वकासकता� के �प म�

    आ�धका�रक आवेदक यह� �ो. द�पक प�टल ह�। यह �प�ट नह� ंहै �क भारतीय जीएम �नयामक� ने �ो. प�टल से जुड़ े

    �ववाद� और मौ�लक रचना तथा बीज क� चोर� के आरोप� का सं�ान �लया है या नह�ं। यह भी �प�ट नह�ं है �क �या

    �नयामक� ने यह सु�नि�चत करने के �लए कोई कदम उठाए ह� �क �वचाराधीन जीएम सरस� के �वकासकता� ह� वा�तव

    म� इसके मा�लक या सज�क ह� या नह�ं।

    जीएम सरस� के पर��ण भी नह�ं चाहती सरस� उ�पादक रा�य� क� सरकार�

    भारत म� �मुख सरस� उगाने वाले रा�य� म� से कुछ ने जीएमओ के ��त एक एह�तयाती रवैया अपनाया है और अपनी

    सीमाओं म� ऐसी फसल� के �े� पर��ण के भी �खलाफ ह�। ऐसे रा�य� म� म�य�देश भी शा�मल है जो रा�य क� सीमा

    म� कह� ंभी जीएम फसल� के �े� पर��ण को लगातार मना करत ेरहे ह�।38 म�य �देश सरकार का तक� है �क जीएम

    फसल� के कारण मनु�य�, पशुओ,ं जैव �व�वधता और पया�वरण पर ��तकूल �भाव न पड़न ेके बारे म� कोई �व�वसनीय

    और अका�य सबूत नह�ं ह�।

  • इस बीच, राज�थान म� बीआरएल -I (जैवसुर�ा शोध का �थम �तर) के तहत जीएम सरस� के पहले वष� के पर��ण�

    का आरंभ 2010 म� हुआ ले�कन इसके दसूरे वष� का अंत आत-ेआते 2012 म� रा�य सरकार न ेइन पर��ण� के �लए

    �दया गया अनाप�� �माण-प� वापस ले �लया और खेत म� खड़ी फसल� को जलाकर इन पर��ण� को तुरंत समा�त

    करने के �दशा-�नद�श जार� �कए। यह �नद�श आने तक िजन तीन खेत� म� फसल लगाई गई थी उनम� से दो म� फसल

    क� कटाई हो चुक� थी जब�क तीसरे खेत म� �े� खड़ी फसल को न�ट करने क� िज�मेदार� सरकार ने खुद ल�।

    अनाप�� �माण-प� वापस लेने के प� म� कहा गया: �ांसजे�नक फसल� के पर��ण क� अनुम�त देने के �वषय म� बहुत

    सार� �चतंाएं �या�त ह� और इनके प� या �वप� म� �कसी तरह का मतै�य नह�ं हो सका है। भारतीय कृ�ष अनुसंधान

    प�रषद भी ऐसी ह� बेचैनी से जूझता �तीत होता है। ऐसे म�, सरकार ने इस �वषय पर रा���य आम सहम�त �वक�सत

    होने तक �ती�ा करने का �नण�य �लया है। यह भी �नण�य �लया गया है �क इस �ववाद पर आम सहम�त तक पहंुचने

    के �लए होने वाले �वचार-�वमश� म� इस मामले के सभी �हतधारक� को शा�मल �कया जाना चा�हए।"

    इस घटना�म के बाद, डॉ प�टल न े�धानमं�ी काया�लय और जीईएसी के दरवाज� पर द�तक द�। जीईएसी ने 11 अ�ैल

    2012 को अपनी 116वीं बैठक म� इस मामले (एज�डा आइटम 6) पर �वचार-�वमश� �कया और इस �न�कष� पर पहंुचा

    �क य�य�प राज�थान सरकार का अनाप�� �माण-प� वापस लेने का फैसला मनमाने ढंग से �लया गया था �य��क

    इसम� इन फसल� से �कसी �कार के नुकसान या �दशा-�नद�श� के उ�लंघन के सबूत का िज� नह�ं है और एक बार

    अनाप�� �माण-प� �दए जाने के बाद इसे अंत�रम अव�ध म� �बना �कसी वै�ा�नक कारण के वापस नह�ं �लया जाना

    चा�हए। इसके बावजूद, स�म�त न ेयह भी दोहराया �क कृ�ष रा�य� का �वषय है और जीएम फसल� के �े� पर��ण क�

    अनुम�त देन ेया न देन ेके मामले म� रा�य सरकार के �नण�य का स�मान �कया जाना चा�हए।

    इस बीच, ह�रयाणा सरकार न ेअब तक जीएम सरस� पर��ण के �लए कोई भी अनाप�� �माण प� जार� नह�ं �कया।

    इसका अथ� हुआ �क िजन तीन रा�य� म� देश के कुल सरस� उ�पादन का 70% से अ�धक उ�पादन होता है व ेइस

    फसल के �े� पर��ण भी नह�ं होने देना चाहते और इस जीएम सरस� का पर��ण �मुख सरस� उ�पादक रा�य� म�

    नह�ं हुआ है। यहां यह �यान देना मह�वपूण� है �क रा�य सरकार� �वारा जीएम खा�य फसल� क� अ�वीकृ�त का यह

    पहलू 2010 म� बीट� ब�गन पर ��तबंध का �नण�य लेने के �लए मह�वपूण� कारक� म� से एक था।39

    �द�ल� �व�व�व�यालय के जीएम सरस� क� जैवसुर�ा सूचना पूर� तरह नामौजूद है

    �नयामक� के सम� अपने दाव ेम� आवेदक जीएम सरस� क� �यावसा�यक खेती के अनुमोदन के तुरंत बाद क�

    ���याओं के बारे म� चचा� कर रहे हो सकते ह� ले�कन गंभीर �चतंा का �वषय है �क सव��च �यायालय के आदेश के

    बावजूद �नयामक� न ेशोध के इस उ�नत चरण तक पहंुचने के बाद भी इस जीएमओ से संबं�धत जैवसुर�ा जानकार�

    साव�ज�नक �प से उपल�ध नह� ंकराई है। एक आरट�आई आवेदन के जवाब म�, �नयामक� न े15 मई 2015 को उ�र

    �दया �क 'उ�त �वषय अभी ���याधीन है तथा इसके बारे म� सूचनाएं इस �तर पर उपल�ध नह�ं कराई जा सकतीं।

    �वडंबना यह है �क जीईएसी ने 8 अग�त 2007 को हुई अपनी 79वीं बैठक म� एज�डा सं�या 2.0 (2.0) (ए) (2.0) म�

    खुद को याद �दलाया था �क सव��च �यायालय न े1 अग�त 2007 को हुई सुनवाई म� जीईएसी को �नद�श �दया था

    �क वह पया�वरण एवं वन मं�ालय एवं जैव तकनीक �वभाग क� वेबसाइट पर जैव सुर�ा डेटा उपल�ध कराए।

    भारत म� बीट� ब�गन गाथा से �प�ट हो चुका है �क जीएम फसल� के �वकासकता� अपने उ�पाद के बारे म� सुर�ा के

    दावे तो करते ह� �कंतु अपने उ�पाद के संबंध म� जैवसुर�ा आंकड़� को लेकर सावधानी और गोपनीयता बरतते ह�। न तो

    इन उ�पाद� का �वतं� पर��ण होता है, और न ह� द�घ�का�लक �वषा�ता तथा अ�य मु�द� पर जानकार� हा�सल करन े

    के �लए लंबे समय तक पर��ण आयोिजत �कए जाते ह�। भारत सरकार के पया�वरण एवं वन मं�ालय �वारा बीट� ब�गन

    पर ��तबंध लगात ेहुए क� गई �ट�पणी, जीएम खा�य फसल� के बारे म� संसद क� �थायी स�म�त क� �रपोट� तथा

    सु�ीम कोट� क� तकनीक� �व�


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