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गुǽमंğ के Ĥभाव से ईƴ दश[न Įीमɮआƭ शंकराचाय[के सदगुǾ गुǽ Ĥाथ[ना Įीकृ çण कȧ गुǾसेवा देवǒष[ नारद ने एक मãलाह सɮ गुǽ के ×याग से को अपना गुǽ बनाया दǐरġता आती हɇ मंğ के जप से अलौǑकक गुǽमंğ के Ĥभाव से िसǒƨया ĤाƯ होती हɇ ईƴ दश[न जब दवा[साजी ने Įी कृ çण कȧ पǐर¢ाली। NON PROFIT PUBLICATION गुǽ×व काया[लय Ʈारा Ĥèतुत मािसक -पǒğका जुलाई- 2011 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com
Transcript
  • गु मं के भाव से ई दशन ीम आ शंकराचायके सदगु

    गु ाथना ीकृ ण क गु सेवा

    देव ष नारद ने एक म लाह स गु के याग से को अपना गु बनाया द र ता आती ह मं के जप से अलौ कक गु मं के भाव से िस या ा होती ह ई दशन जब दवासाजीु ने ी कृ ण क प र ाली।

    NON PROFIT PUBLICATION

    गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का जुलाई- 2011 Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com

  • FREE

    E CIRCULAR गु व योितष प का जुलाई 2011

    संपादक िचंतन जोशी

    संपक गु व योितष वभाग गु व कायालय 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA

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    प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी फोटो ा फ स िचंतन जोशी, व तक आट हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी ( व तक सो टेक इ डया िल)

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  • 3 जुलाई 2011

    वशेष लेख गु ाथना 5 ािभषेक से कामनापूित 33 जब दवासाजीु न े ी कृ ण क प र ाली। 7 ािभषेक तो 35 गु मं के भाव स ेई दशन 11 सोमवार को िशवपूजन का मह व या ह? 36 गु मं के भाव स ेर ा 13 िशव कृपा हेतु उ म ावण मास 37 गु मं के जप से अलौ कक िस या ा होती ह

    14 ावण मास के सोमवार त से भौितक क ो स े

    मु िमलती ह 40

    आ ण क गु भ 18 आ या मक उ नित हेतु उ म चातुमास त 41 स गु के याग से द र ता आती ह 19 य िशव को य ह बेल प ? 43 मं जप से ा हवाु शा ान 21 ावण सोमवार त कैसे कर? 45 एकल य क गु भ 22 ा धारण से कामनापूित 46 ीकृ ण क गु सेवा 23 एक मुखी से 12 मुखी ा धारण करने के लाभ 48

    देव ष नारद ने एक म लाह को अपना गु बनाया

    25 चातुमास म मांगिलक काय व जत ह। 50

    ीम आ शंकराचाय सदगु 27

    अनु म संपादक य 4 मं िस साम ी 67 गुव कम ् 6 जुलाई 2011 - वशेष योग 68 ीकृ ण बीसा यं 10 दैिनक शुभ एवं अशुभ समय ान तािलका 68 ी गु तो म ् 31 दन-रात के चौघ डय े 69

    ह तरेखा ान 32 दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक 70 सव काय िस कवच 51 ह चलन जुलाई -2011 71 राम र ा यं 42 सव रोगनाशक यं /कवच 72 व ा ाि हेतु सर वती कवच और यं 53 मं िस कवच 74 मं िस प ना गणेश 53 YANTRA LIST 75 मं िस साम ी 54 GEM STONE 77 मािसक रािश फल 57 BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION 78 रािश र 61 सूचना 79 जुलाई 2011 मािसक पंचांग 60 हमारा उ े य 81 जुलाई -2011 मािसक त-पव- यौहार 64

  • 4 जुलाई 2011

    संपादक य य आ मय

    बंधु/ ब हन जय गु देव महापु षो के मतानुशार य को अपन ेजीवन म पूणता कसी स ु गु क शरण म जान ेसे ा हो सकती ह। भारतीय धमशा ो म गु को व प कहा ंगया ह। कसी स गु के ा होन ेपर य के सभी धम-अधम, पाप-पु य आ द समा हो जाते ह।

    य य मरणमा ेण ानमु प ते वयम ्। सः एव सवस प ः त मा संपूजये गु म ्।।

    अथात: जनके मरण मा से ान अपन ेआप कट होन ेलगता है और वे ह सव स पदा प ह, अतः ी गु देव क पूजा करनी चा हए। हमारे ऋ ष मुिन के मतानुशार गु उसे मानना चा हये जो

    ेरकः सूचक ैव वाचको दशक तथा । िश को बोधक ैव षडेते गुरवः मृताः ॥ अथात: ेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाल,े सच बतानेवाल,े सह रा ता दखानेवाल,े िश ण देनेवाल,े और बोध करानेवाल ेय ेसब गु समान ह। गु श द क प रभाषा श दो म िलखना या बताना एक मूखता ह एक ओछापन ह। यो क गु क म हमा अनंत ह अपार ह। इस िलये क बरजी ने िलखा ह।

    गु गो वंद दोनो खड़े काके लागू पांव, गु बिलहार आपने गो वंद दयो बताए। गु क तुलना कसी अ य से करना कभी भी संभव नह ंह। इस िलये शा कहते ह।

    ा तो नैव भुवनजठरे स रो ानदातुःु पश े कल यः स नयित यदहो व ताम मसारम ।् न पश वं तथा प ि तचरगुणयुगे स ः वीयिश येु वीयं सा यं वधते भवित िन पम तेवालौ ककोऽ प ॥

    अथात: तीन लोक, वग, पृ वी, पाताल म ान देनेवाले गु के िलए कोई उपमा नह ं दखाई देती । गु को पारसम ण के जैसा मानते है, तो वह ठ क नह ं है, कारण पारसम ण केवल लोहे को सोना बनाता है, पर वयं जैसा न ह बनाता ! स ु तो अपने चरण का आ य लेनेवाले िश य को अपने जैसा बना देता है; इस िलए गु देव के िलए कोई उपमा न ह है, गु तो अलौ कक है । इस किलयुग म धम के नाम पर गु के नाम का ठ गी चोला पहनन ेवालो क भी कमी नह ंह इस िलये शा ो म िलखा ह।

    सवािभला षणः सवभो जनः सप र हाः । अ चा रणो िम योपदेशा गुरवो न तु ॥ अथात: अिभलाषा रखनेवाल,े सब भोग करनेवाल,े सं ह करनेवाले, चय का पालन न करनेवाल,े और िम या उपदेश करनेवाल,े गु न ह होते है ।

    िचंतन जोशी

  • 5 जुलाई 2011

    गु ाथना िचंतन जोशी

    गु ा ु व णुः गु दवो महे रः ।

    गु ः सा ात ्परं त मै ी गुरवे नमः ॥

    भावाथ: गु ा ह, गु व णु ह, गु ह शंकर ह; गु ह सा ात ्पर ह; एसे स ु को नमन । यानमूलं गु मूितः पूजामूलम गु र पदम।् मं मूलं गु रवा यं मो मूलं गु र कृपा।।

    भावाथ: गु क मूित यान का मूल कारण है, गु के चरण पूजा का मूल कारण ह, वाणी जगत के सम त मं का और गु क कृपा मो ाि का मूल कारण ह।

    अख डम डलाकारं या ं येन चराचरम।् त पदं दिशतं येन त मै ीगुरव ेनमः।।

    वमेव माता च पता वमेव वमेव बंधु सखा वमेव। वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम देव देव।।

    ानंदं परमसुखदं केवलं ानमूित ं ातीतं गगनस शं त वम या दल यम ्। एकं िन यं वमलमचलं सवधीसा भुतं भावातीतं गुणर हतं स ंु तं नमािम ॥

    भावाथ: ा के आनंद प परम ्सुख प, ानमूित, ं से परे, आकाश जैसे िनलप, और सू म "त वमिस" इस ईशत व क अनुभूित ह जसका ल य है; अ तीय, िन य वमल, अचल, भावातीत, और गुणर हत -

    ऐसे स ु को म णाम करता हूँ ।

  • 6 जुलाई 2011

    गुव कम ्शर रं सु प ंतथा वा कल ,ं यश ा िच ंधन ंमे तु यम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्१॥ कल ंधन ंपु पौ ा दसव, गृहो बा धवाः सवमेत जातम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्२॥ षड़ंगा दवेदो मुखे शा व ा, क व वा द ग ं सुप ं करोित। मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्३॥ वदेशेष ुमा यः वदेशेष ुध यः, सदाचारवृ ेष ुम ो न चा यः। मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्४॥ माम डले भूपभूपलबृ दैः,

    सदा से वतं य य पादार व दम।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्५॥ यशो मे गतं द ुदान तापात,् जग त ुसव करे य सादात।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्६॥ न भोगे न योगे न वा वा जराजौ, न क तामुखे नैव व ेष ुिच म।् मन ेन ल न ंगुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्७॥

    अर ये न वा व य गेहे न काय, न देहे मनो वतते मे वन य। मन ेन ल नं गुरोरि प ,े ततः कं ततः कं ततः कं ततः कम॥्८॥ गुरोर कं यः पठे पुरायदेह , यितभूपित चार च गेह । लमे ा छताथं पदं सं ,ं गुरो वा ये मनो य य ल नम॥्९॥ ॥इित ीमद आ शंकराचाय वरिचतम ्गुव कम संपूणम॥् ् भावाथ: (१) य द शर र पवान हो, प ी भी पसी हो और स क ित चार दशाओं म व त रत हो, सुमे पवत के तु य अपार धन हो, कंतु गु के ीचरण म य द मन आस न हो तो इन सार उपल धय से या लाभ?

    (२) य द प ी, धन, पु -पौ , कुटंुब, गृह एवं वजन, आ द ार ध से सव सुलभ हो कंतु गु के ीचरण म य द मन आस न हो तो इस ार ध-सुख से या लाभ? (३) य द वेद एवं ६ वेदांगा द शा ज ह कंठ थ ह , जनम सु दर का य िनमाण क ितभा हो, कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस न हो तो इन

    सदगुण से या लाभ? (४) ज ह वदेश म समान आदर िमलता हो, अपने देश म जनका िन य जय-जयकार से वागत कया जाता हो और जसके समान दसरा कोई सदाचार भ ूनह ं, य द उनका भी मन गु के ीचरण के ित आस न हो तो सदगुण से या लाभ?

    (५) जन महानुभाव के चरण कमल भूम डल के राजा-महाराजाओं से िन य पू जत रहते ह , कंतु उनका मन य द गु के ीचरण के ित आस न हो तो इस सदभा य से या लाभ?

    (६) दानवृ के ताप से जनक क ित चारो दशा म या हो, अित उदार गु क सहज कृपा से ज ह संसार के सारे सुख-ए य ह तगत ह , कंतु उनका मन य द गु के ीचरण म आस भाव न रखता हो तो इन सारे एशवय से या लाभ?

    (७) जनका मन भोग, योग, अ , रा य, ी-सुख और धन भोग से कभी वचिलत

    न होता हो, फर भी गु के ीचरण के ित आस न बन पाया हो तो मन क इस अटलता से या लाभ?

    (८) जनका मन वन या अपने वशाल भवन म, अपने काय या शर र म तथा अमू य भ डार म आस न हो, पर गु के ीचरण म भी वह मन आस न हो पाये

    तो इन सार अनास य का या लाभ?

    (९) जो यित, राजा, चार एवं गृह थ इस गु अ क का पठन-पाठन करता है और जसका मन गु के वचन म आस है, वह पु यशाली शर रधार अपने इ छताथ एवं

    पद इन दोन को सं ा कर लेता है यह िन त है।

    ***

  • 7 जुलाई 2011

    जब दवाु साजी ने ी कृ ण क प र ाली। िचंतन जोशी

    ह द ुशा ो के अनुशार दवासाजीु ानी महापु ष होन े के साथ ह अ तीय योगबल के वामी थे जस कारण समय-समय पर दवासाजीु अपनी योगलीला रचते रहते थे। एक बार दवासाजीु ने ी कृ ण के साथ योगलीला रचन ेका मन बनाया।

    एक बार दवासाजीु न ेचुनौती द क , ह कोई जो मुझे अितिथ रखने को तैयार हो। ी कृ ण ने देखा तो दवासाु जी ! आज तो दवासाु जी को अितिथ रखने क चुनौती िमल रह है।

    ीकृ णजी आये और बोलेः "महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।"

    दवासाजीु बोलेः "अितिथ तो बन जाऊ पर मेर शत है।" 'म जब आऊँ-जाऊँ, जो चाहूँ, जहा ँ चाहूँ, जतना चाहूँ खाऊँ, जनको चाहूँ खलाऊँ, जनको जो चाहूँ देदँ,ू जो भी लुटाऊँ, जतना भी लुटाऊँ, कुछ भी क ँ , मुझे न कोई रोके न कोई टोके। बाहर से तो या मन स े भी कोई मुझे रोकेगा-टोकेगा तो शाप दँगा।ू सुन ल,े कान खोल कर! जो मुझे अितिथ रखता है, तो सामने आ जाय।' "महाराज ! आपने जो कह ं वे सभी शत वीकार ह और जो आप भूल गये ह या जतनी भी और शत ह वे भी वीकार ह।" महाराज! ये तो ठ क है परंतु घर का सामान कसी को देदँ,ू कसी को दलाऊँ, चाहे जलाऊँ...। ीकृ ण बोलेः "महाराज ! अपनी शत

    म ऐसा भी रख द जए। घर का सामान उठाकर देनेवाला कोई िमल जाय ेतो आप दोग,े आप उठा तो नह ंसकोगे। आप चाह तो घर को भी जला द तो भी हमारे मन म कभी दःखु नह ंहोगा। महाराज ! आप आइये, हमारे अितिथ बिनये।"

    दवासाु ऋ ष अितिथ बनकर आये, अितिथ बनकर उनको तो करनी थी कुछ लीला। अितिथ स कार म कह ं कुछ चूक हो जाय ेतो दवासाजीु िच लाव, झूठ कैस ेबोल? यहाँ तो सब ठ क-ठाक था।

    दवासाजीु बोलेः "तो हम अभी जायगे और थोड़ देर म वापस आयगे। हमारे जो भगत ह गे उनको भी साथ लायगे। भोजन तैयार हो।"

    दवासाजीु जाय, आय तो भोजन तैयार िमले। कसी को बाँट, बँटवाय, कुछ भी कर। फर भी देखा क

    ' ीकृ ण कसी भी गलती म नह ं आते परंतु मुझे लाना है।

    अब मुझे ीकृ ण को अथवा मणी को अ छा नह ं लगे ऐसा कुछ करना है। शत है क 'ना' बोल दगे अथवा अंदर से भी कुछ बोल दगे तो फर म शाप दँगा।ू '

    दवासाजीु ीकृ ण को शाप देने का मौका ढँढ रहे ूथे। सती अनुसूयाजी के पु दवासा ऋ ष कैसे हु !

    एक दन दोपहर के समय दवासाजी वचार करने ुलगे क 'सब चल रहा है। जो माँगता हूं, तैयार िमलता है। जो माँगता हूँ ीकृ ण या तो कट कर देते ह या फर िस के बल से कट कर देते ह। सब िस या ँइनके पास मौजूद ह, 64 कलाओ ंके जानकार ह।

    अब ऐसा कुछ कया जाएं क ीकृ ण नाराज हो जाय।'

    दवासाजीु ने घर का सारा लकड़ का सामान इक ठा कया। फर आग लगा द और बोलेः "होली रे

  • 8 जुलाई 2011

    होली कृ ण ! देखो, होली जल रह है।" ीकृ ण बोलेः "हा,ँ

    गु जी ! होली रे होली" दवासाजीु बोलेः अरे, कृ ण ! तेरा ये सब लकड़ का सामान जल रहा है ! ीकृ ण बोलेः"हा,ँ

    गु जी ! मेर सार सृ या ँ कई बार

    जलती ह, कई बार बनती ह, गु जी ! होली रे होली !" "कृ ण ! तेरे दय म चोट नह ं लगती है?" "आप गु ओं का साद है तो मुझे चोट य लगेगी?" 'अ छा ! ीकृ ण दवासाजी के झांसे म फँसे नह ंु , और उपर से हँस रहे ह। एक दन दवासाु जी बोलेः "हम नहाने जा रहे ह।" कृ णः "गु जी ! आप आयगे तो आपके िलए भोजन या होगा?" दवासाजीु बोले: "हम नहाकर आयगे तब जो इ छा होगी बोल दग,े वह भोजन दे देना। दवासाु जी मन ह मन म सोच रहे थे 'पहल े बोलकर जायगे तो सब तैयार िमलेगा। आकर ऐसी चीज माँगूगा जो घर म तैयार न हो। कृ ण लेने जायगे या मँगवायगे तो म ठ जाऊँगा' दवासाु जी नहाकर आये और बोलेः "मुझ ेढेर सार खीर खानी है।" ीकृ ण बड़ा कड़ाह भरकर ले आयेः "ली जए, गु जी !"

    दवासाजीु बोले: "अरे, तुमको कैस ेपता चला?" आप यह बोलनेवाल ेह, मुझ ेपता चल गया तो

    मने तैयार करके रखवा दया। जहाँ से आपका वचार उठता है वहा ँ तो म रहता हँ।ू आपको कौन-सी चीज

    अ छ लगती है? आप कस समय या माँगग?े यह तो आपके मन म आयेगा न? मन म आयेगा, उसक गहराई म तो हम ह।"

    दवासाजीु खीर खा रहे ह। देखा क मणी हँस रह है। "अरे ! य हँसी? मणी?" "गु जी ! आप तो महान ह, पर तु आपका िश य भी कम नह ंहै। आप माँगेगे खीर यह जानकर उ ह न ेपहल ेसे ह कह दया क खीर का कड़ाह तैयार रखो। थोड़ बनाते तो डाँट पड़ती आप आयगे और ढेर सार खीर माँगेगे तो इस कड़ाहे म खीर भी ढेर सार है। जैसा आपने माँगा, वैसा हमारे भु ने पहल े से ह तैयार रखवाया है। इस बात क हँसी आती है।" "हाँ, बड़ हँसी आरह ह तुझ ेसफलता दखती है अपन ेभु क ?" इधर आ ।

    मणीजी आयी ं तो दवासाजीु ने मणी क चोट पकड़ और उनके मुँह पर झुठ खीर मल द ।

    अब कोई पित कैसे देखे क कोई बाबा उसक प ी क चोट पकड़ कर उस के मुहं पर झुठ खीर मल रहा है? थोड़ा बहत कुछ तो होगा क ु 'यह या?' अगर ीकृ ण के चेहरे पर थोड़ भी िशकन आयेगी तो सेवा

    सब न और शाप दँगाू , शाप।' यह शत थी। दवासाजीु ने ीकृ ण क ओर देखा तो ीकृ ण के

    चेहरे पर िशकन नह ं है। अ दर से कोई रोष नह ं है। ी कृ ण य -के- य खड़े ह।

    " ी कृ ण ! कैसी लगती है ये मणी?" "हाँ, गु जी ! जैसी आप चाहते ह, वैसी ह लगती

    है।" अगर 'अ छ लगती है' बोल जो वो है नह ं और

    'ठ क नह ं लगती' बोल तो गलती िनकाल दे। इसिलए ीकृ ण ने कहाः "गु जी ! जैसा आप चाहते ह, वैसी

    लगती है।" दवासाजीु ने देखा क प ी को ऐसा कया तो भी

    कृ ण म कोई फक नह ं पड़ा। मणी तो अधािगनी है।

  • 9 जुलाई 2011

    कृ ण को कुछ गड़बड़ कर तो मणी के चेहरे पर िशकन पड़ेगी ऐसा सोचकर कृ ण को बुलायाः "कृ ण ! यह खीर बहत अ छ है।ु " "हाँ, गु जी ! अ छ है।" "तो फर या देखते हो? खाओ।" ीकृ ण ने खीर खायी।

    "इतना ह नह ं, सारे शर र को खीर लगाओ। जैस ेमुलतानी िम ट लगाते ह ऐसे पूरे शर र को लगाओ। घुँघराले बाल म लगाओ। सब जगह लगाओ।" "हाँ, गु जी।" "कैस ेलग रहे हो, कृ ण?" "गु जी, जैसा आप चाहते ह वैसा।" दवासाु जी ने देखा क 'अभी-भी ये नह ं फँसे। या क ँ ?' फर बोलेः

    "मुझे रथ म बैठना है, रथ मँगवाओ। नहाना नह ,ं ऐसे ह चलो।" रथ मँगवाया। दवासाजीु बोलेः "घोड़े हटा दो।" घोड़े हटा दये गये। "म रथ म बैठँूगा। एक तरफ मणी, एक तरफ ी कृ ण, रथ खींचेगे।" दवासाजीु को हआ ु 'अब तो ना बोलगे क ऐसी थित म? खीर लगी हई हैु , मणी के मुँह पर भी खीर लगी हईु है।'

    परंतु दोन ने रथ खींचा। जैस,े घोड़े को चलाते ह ऐसे दवासाजीु ने ी कृ ण और मणी को चलाया। रथ चौराहे पर पहँचा।ु लोग क भीड़ इक ठ हो गयी क ' ीकृ ण कौन-से बाबा के च कर म आ गये?'

    लोग ने देखा क 'यह या ! दवासाजीु रथ पर बैठे ह। खीर और पसीने से तरबतर ी कृ ण और

    मणी जी दोन रथ हाँक रहे ह? मुँह पर, सवाग पर खीर लगी हईु है?' उस नजारे खो देखने वाले लोग को ीकृ ण पर तरस आया क "कैस ेबाबा के चककर म आ गये ह?" अब ये बाबा या ह यह ीकृ ण जानते ह और ीकृ ण

    या ह यह बाबा जानते ह। ा रका के लोग इक ठे हो गये, चौराहे पर रथ

    आ गया है फर भी ीकृ ण को कोई फक नह ंपड़ रहा है? दवासाजी उतरे और जैसेु , घोड़े को पुचकारते ह वैसे ह पुचकारते हएु पूछाः " य मणी ! कैसा रहा?" "गु जी आनंद है।" "कृ ण ! कैसा रहा?" "जैसा आपको अ छा लगता है, वैसा ह अ छा है।" दवासाजीु ने ीकृ ण से कहाः "कृ ण ! म तु हार सेवा पर, समता पर, सजगता पर, सूझबूझ पर स न हँ।ू प र थितयाँ सब माया म ह और म मायातीत हूँ, तु हार ये समझ इतनी ब ढ़या है क इसस ेम बहतु खुश हँ।ू तुम जो वरदान माँगना चाहो, माँग लो। परंतु देखो कृ ण ! तुमन े एक गलती क । मने कहा खीर चुपड़ो, तुमन ेखीर सारे शर र पर चुपड़ पर हे क हैया ! पैर के तलुओ ंपर नह ंचुपड़ । तु हारा सारा शर र अब व काय हो गया है। इस शर र पर अब कोई हिथयार सफल नह ंहोगा, परंतु पैर के तलुओ ं का याल करना। पैर के तलुओ ंम कोई बाण न लगे, य क तुमन ेवहा ँमेर जूठ खीर नह ंलगायी है।" पौरा णक कथा के अनुशार: ीकृ ण को िशकार ने मृग जानकर बाण मारा और पैर के तलुए म लगा। और जगह लगता तो कोई असर नह ं होता। यु के मैदान म ीकृ ण अजुन का रथ चला रहे थे वहाँ पर श ु प के

    बाण का उन पर कोई वशेष भाव नह ं पड़ा था। दवासाजीःु " या चा हए, कृ ण?" "गु जी ! आप स न रह।" "म तो स न हूँ, परंतु कृ ण ! जहा ँकोई तु हारा नाम लेगा वहा ँभी आनंद हो जायेगा, वरदान देता हूँ." ीकृ ण का नाम लेते ह आनंद हो जाता है। ीकृ ण का नाम लेने से स नता िमलेगी - ये दवासा ऋ ष के वचन ुअभी तक कृित स य कर रह है।

  • 10 जुलाई 2011

    ीकृ ण बीसा यं कसी भी य का जीवन तब आसान बन जाता ह जब उसके चार और का माहोल उसके अनु प उसके वश म ह । जब कोई य का आकषण दसरोु के उपर एक चु बक य भाव डालता ह, तब लोग उसक सहायता एवं सेवा हेतु त पर होते है और उसके ायः सभी काय बना अिधक क व परेशानी से संप न हो जाते ह। आज के भौितकता वा द युग म हर य के िलये दसरोू को अपनी और खीचन े हेतु एक भावशािल चंुबक व को कायम रखना अित आव यक हो जाता ह। आपका आकषण और य व आपके चारो ओर से लोग को आक षत करे इस िलये सरल उपाय ह, ीकृ ण बीसा यं । यो क भगवान ी कृ ण एक अलौ कव एवं दवय चंुबक य य व के धनी थे। इसी कारण से ीकृ ण बीसा यं के पूजन एवं दशन से आकषक य व ा होता ह। ीकृ ण बीसा यं के साथ य को ढ़ इ छा श एवं उजा ा होती ह, ज से य हमेशा एक भीड म हमेशा आकषण का क रहता ह। य द कसी य को अपनी ितभा व आ म व ास के तर म वृ , अपन ेिम ो व प रवारजनो के बच म र तो म सुधार करन ेक ई छा होती ह उनके िलये ीकृ ण बीसा यं का पूजन एक सरल व सुलभ मा यम सा बत हो सकता ह। ीकृ ण बीसा यं पर अं कत श शाली वशेष रेखाएं, बीज मं एवं अंको से य को अ तु आंत रक श या ं ा होती ह जो य को सबसे आगे एवं सभी े ो म अ णय बनाने म सहायक िस होती ह। ीकृ ण बीसा यं के पूजन व िनयिमत दशन के मा यम से भगवान ीकृ ण का आशीवाद ा कर समाज म वयं का अ तीय थान था पत कर।

    ीकृ ण बीसा यं अलौ कक ांड य उजा का संचार करता ह, जो एक ाकृ मा यम से य के भीतर स भावना, समृ , सफलता, उ म वा य, योग और यान के िलये एक श शाली मा यम ह! ीकृ ण बीसा यं के पूजन से य के सामा जक मान-स मान व

    पद- ित ा म वृ होती ह। व ानो के मतानुशार ीकृ ण बीसा यं के म यभाग पर यान योग

    क त करन ेसे य क चेतना श जा त होकर शी उ च तर को ा होती ह ।

    जो पु ष और म हला अपन ेसाथी पर अपना भाव डालना चाहते ह और उ ह अपनी और आक षत करना चाहते ह। उनके िलये ीकृ ण बीसा यं उ म उपाय िस हो सकता ह।

    पित-प ी म आपसी म क वृ और सुखी दा प य जीवन के िलये ीकृ ण बीसा यं लाभदायी होता ह। मू य:- Rs. 550 से Rs. 8200 तक उ ल

    ीकृ ण बीसा कवच ीकृ ण बीसा कवच को केवल वशेष शुभ मुहतु म िनमाण कया जाता ह। कवच को व ान कमकांड ाहमण ारा शुभ मुहतु म शा ो विध- वधान स े विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य

    यु करके िनमाण कया जाता ह। जस के फल व प धारण करता य को शी पूण लाभ ा होता ह। कवच को गले म धारण करने से वहं अ यंत भाव शाली होता ह। गले म धारण करने से कवच हमेशा दय के पास रहता ह ज से य पर उसका लाभ अित ती एवं शी ात होने लगता ह।

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  • 11 जुलाई 2011

    गु मं के भाव से ई दशन व तक.ऎन.जोशी

    व ानो के अनुशार शा ो उ लेख ह क कोई भी मं िन त प से अपना भाव अव य रखते ह।

    जस कार पानी म कंकड़-प थर डालन ेसे उसम तरंग ेउठती ह उसी कार से मं जप के भाव से हमारे भीतर आ या मक तरंग उ प न होती ह। जो हमारे इद-िगद सू म प से एक सुर ा कवच जैसा कािशत वलय (अथात ओरा) का िनमाण होता ह। उन ओरा का सू म जगत म उसका भाव पड़ता है। जो खुली आंखो से सामा य य को उसका भाव दखाई नह ं देता। उस सुर ा कवच स े य को नकारा मक भावी जीव व श या उसके पास नह ंआ सकती।ं

    ीमदभगवदगीता क ' ी मधुसूदनी ट का' चिलत एवं मह वपूण ट काओ ंम से एक ह। इस ट का के रचियता ी मधुसूदन सर वतीजी जब संक प करके लेखनकाय के िलए बैठे ह थे क एक तेज वी आभा िलय ेपरमहंस सं यासी अचानक घर का ार खोलकर भीतर आये और बोलेः "अरे मधुसूदन! तू गीता पर ट का िलखता है तो गीताकार से िमला भी है क ऐसे ह कलम उठाकर बैठ गया है? तून ेकभी भगवान ीकृ ण के दशन कये ह क ऐस े ह उनके वचन पर ट का िलखने लग गया?"

    ी मधुसूदनजी तो थे वेदा ती, अ ैतवाद । वे बोलेः "दशन तो नह ं कये। िनराकार -परमा मा सबम एक ह है। ीकृ ण के प म उनका दशन करन ेका हमारा योजन भी नह ं है। हम तो केवल उनक गीता का अथ प करना है।"

    "सं यासी बोले नह ं....पहल ेउनके दशन करो फर उनके शा पर ट का िलखो। लो यह मं । छः मह न े इसका अनु ान करो। भगवान कट ह ग।े उनस े ेरणा िमल ेफर लेखनकाय का ारंभ करो।" मं देकर बाबाजी चल ेगये। ी मधुसूदनजी ने अनु ान

    शु कया। अनु ान के छः मह न ेपूण हो गये ले कन ीकृ ण के दशन न हएु । 'अनु ान म कुछ ु ट रह गई होगी' ऐसा सोचकर ी मधुसूदनजी न ेदसरेू छः मह न े म दसराू अनु ान कया फर भी ीकृ ण दशन न हएु ।

    दो बार अनु ान के उरांत असफलता ा होन ेपर ी मधुसूदन के िच म लािन हो गई। सोचा कः ' कसी अजनबी बाबाजी के कहन ेसे मने बारह मास बगाड़ दय ेअनु ान म। सबम माननेवाला म 'हे कृ ण ...हे भगवान ...दशन दो ...दशन दो...' ऐस ेमेरा िगड़िगड़ाना ? जो ीकृ ण क आ मा है वह मेर

    आ मा है। उसी आ मा म म त रहता तो ठ क रहता। ीकृ ण आये नह ंऔर पूरा वष भी चला गया। अब या

    ट का िलखना ?" वे ऊब गये। अब न ट का िलख सकते ह न तीसरा

    अनु ान कर सकते ह। चल ेगये या ा करन ेको तीथ म। वहा ँ पहँचेु तो सामने से एक चमार आ रहा था। उस चमार ने इनको पहली बार देखा और ी मधुसूदनजी ने भी चमार को पहली बार देखा। चमार ने कहाः "बस, वामीजी! थक गये न दो अनु ान करके?"

    गणेश ल मी यं ाण- ित त गणेश ल मी यं को

    अपन े घर-दकानु -ओ फस-फै टर म पूजन थान, ग ला या अलमार म था पत करन े यापार म वशेष लाभ ा होता ह। यं के भाव से भा य म उ नित, मान- ित ा एवं यापर म वृ होती ह एवं आिथक थम सुधार होता ह। गणेश ल मी

    यं को था पत करन े से भगवान गणेश और देवी ल मी का संयु आशीवाद ा होता ह।

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  • 12 जुलाई 2011

    ीमधुसूदन वामी च के ! सोचाः "अरे मने अनु ान कये, यह मेरे िसवा और कोई जानता नह ।ं इस चमार को कैस ेपता चला?" वे चमार से बोलेः "तेरे को कैस े पता चला?", "कैस ेभी पता चला। बात स ची करता हूँ क नह ं ? दो अनु ान करके थककर आये हो। ऊब गय,े तभी इधर आये हो। बोलो, सच क नह ?ं" "भाई ! तू भी अ तयामी गु जैसा लग रहा है। सच बता, तून ेकैसे जाना ?" " वामी जी ! म अ तयामी भी नह ंऔर गु भी नह ।ं म तो हूँ जाित का चमार। मने भूत को अपन े वश म कया है। मेरे भूत ने बतायी आपके अ तःकरण क बात।" ी मधुसूदनजी बोले "भाई ! देख ीकृ ण के तो दशन नह ं हएु , कोई

    बात नह ।ं णव का जप कया, कोई दशन नह ंहएु । गाय ी का जप कया, दशन नह ंहएु । अब तू अपन ेभूत का ह दशन करा दे, चल।" चमार ने कहाः " वामी जी ! मेरा भूत तो तीन दन के अंदर ह दशन दे सकता है। 72 घ टे म ह वह आ जायेगा। लो यह मं और उसक विध।"

    ी मधुसूदनजी ने चमार ारा बताई गई पूण विध जाप कया। एक दन बीता, दसराू बीता, तीसरा भी बीत गया और चौथा शु हो गया। 72 घ टे तो पूरे हो गये। भूत आया नह ं। गये चमार के पास। ी मधुसूदनजी बोलेः " ी कृ ण के दशन तो नह ंहएु मुझे तेरा भूत भी नह ं दखता?" चमार ने कहाः " वामी जी! दखना चा हए।"

    ी मधुसूदनजी ने कहाः "नह ं दखा।" चमार ने कहाः "म उस े रोज बुलाता हूँ, रोज देखता हूँ। ठह रये, म बुलाता हूँ, उसे।" वह गया एक तरफ और अपनी विध करके उस भूत को बुलाया, भूत से बात क और वापस आकर बोलाः

    "बाबा जी ! वह भूत बोलता है क मधुसूदन वामी ने य ह मेरा नाम मरण कया, तो म खंचकर आने

    लगा। ले कन उनके कर ब जान ेसे मेरे को आग जैसी तपन लगी। उनका तेज मेरे से सहा नह ं गया। उ ह ने सकारा मक श ओ ंका अनु ान कया है तो उनका आ या मक ओज इतना बढ़ गया है क हमारे जैस े तु छ श या ं उनके कर ब खड़े नह ं रह सकते। अब तुम मेर ओर से उनको हाथ जोड़कर ाथना करना क वे फर से अनु ान कर तो सब ितब ध दरू हो जायग े और भगवान ीकृ ण िमलग।े बाद म जो गीता क ट का िलखगे। वह बहतु िस होगी।" ी मधुसूदन जी ने फर से अनु ान कया, भगवान ीकृ ण के दशन हएु और बाद म भगवदगीता पर ट का िलखी। आज भी वह ' ी मधुसूदनी ट का' के नाम से पूरे व म िस है।

    ज ह स भा य से गु मं िमला है और वहं पूण िन ा व व ास से विध- वधान से उसका जप करता है। उस ेसभी कार क िस या वतः ा हो जाती ह। उसे नकारा मक

    श या ंव भावीजीव क नह ंपहंचाू सकते।

    मं िस प ना गणेश भगवान ी गणेश बु और िश ा के कारक ह बुध के अिधपित देवता ह। प ना गणेश बुध के सकारा मक भाव को बठाता ह एवं नकारा मक भाव को कम करता ह।. प न

    गणेश के भाव से यापार और धन म वृ म वृ होती ह। ब चो क पढाई हेतु भी वशेष फल द ह प ना गणेश इस के भाव से ब चे क बु कूशा होकर उसके आ म व ास म भी वशेष वृ होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य ारा अवशो षत हर व करण शांती दान करती ह, य के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े, जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने होते ह।

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  • 13 जुलाई 2011

    या आप जानते ह? महाभारत क रचना इसी गु पू णमा के दन पूण

    हईु थी। व के सु िस आष ंथ सू का लेखन काय

    गु पू णमा के आरंभ कया गया था। देवलोक म देवताओं ने वेद यासजी का पूजन गु

    पू णमा के दन कया था। इस िलये इस दन वेद यास का पूजन कया जाता ह एवं इस पू णमा को यासपू णमा भी कहा जाता ह।

    व ानो के मत मे गु पू णमा के दन गु का पूजन कर नेसे वषभर के पव मनाने के समान फल ा होता ह।

    गु मं के भाव से र ा व तक.ऎन.जोशी

    ' क द पुराण' के ो र ख ड म उ लेख हैः काशी नरेश क क या कलावती के साथ मथुरा के दाशाह नामक राजा का ववाह हआ। ु

    ववाह के बाद राजा ने अपनी प ी को बुलाया और संसार- यवहार थापीत करने क बात कह ं परंतु प ी ने इ कार कर दया। तब राजा ने जबद ती करने क बात कह ।

    प ी ने कहाः " ी के साथ संसार- यवहार करना हो तो बल- योग नह ,ं यार नेह- योग करना चा हए।

    प ी ने कहाः नाथ ! म आपक प ी हूँ, फर भी आप मेरे साथ बल- योग करके संसार- यवहार न कर।"

    आ खर वह राजा था। प ी क बात सुनी-अनसुनी करके प ी के नजद क गया। य ह उसने प ी का पश कया य ह उसके शर र म व ुत जसैा करंट

    लगा। उसका पश करते ह राजा का अंग-अंग जलने लगा। वह दर हटा और बोलाः ू " या बात है? तुम इतनी सु दर और कोमल हो फर भी तु हारे शर र के पश से मुझे जलन होने लगी?"

    प ीः "नाथ ! मने बा यकाल म दवासा ऋ ष से ुगु मं िलया था। वह जपने से मेर सा वक ऊजा का वकास हआ है। ु

    जैस,े रात और दोपहर एक साथ नह ं रहते उसी तरह आपने शराब पीने वाली वे याओं के साथ और कुलटाओं के साथ जो संसार-भोग भोगा ह, उससे आपके पाप के कण आपके शर र म, मन म, बु म अिधक है और मने जो मं जप कया है उसके कारण मेरे शर र म ओज, तेज, आ या मक कण अिधक ह। इसिलए म आपके नजद क नह ं आती थी ब क आपसे थोड़ दर ूरहकर आपसे ाथना करती थी। आप बु मान ह बलवान ह, यश वी ह धम क बात भी आपने सुन रखी है। फर

    भी आपने शराब पीनेवाली वे याओं के साथ और कुलटाओं के साथ भोग भोगे ह।"

    राजाः "तु ह इस बात का पता कैसे चल गया?" प ीः "नाथ ! दय शु होता है तो यह याल

    वतः आ जाता है।" राजा भा वत हआ और रानी से बोलाः ु "तुम मुझे

    भी भगवान िशव का वह मं दे दो।" रानीः "आप मेरे पित ह। म आपक गु नह ं बन

    सकती। हम दोन गगाचाय महाराज के पास चलते ह।" दोन गगाचायजी के पास गये और उनसे ाथना

    क । उ ह ने नाना द से प व हो, यमुना तट पर अपने िशव व प के यान म बैठकर राजा-रानी को ीपात से पावन कया। फर िशवमं देकर अपनी शांभवी द ा से राजा पर श पात कया। व ानो के मतानुशार कथा मे उ लेख ह क देखते-ह -देखते सैकडो तु छ परमाणु राजा के शर र से िनकल-िनकलकर पलायन कर गये।

  • 14 जुलाई 2011

    मंगल यं से ऋण मु मंगल यं को जमीन-

    जायदाद के ववादो को हल करन ेके काम म लाभ देता ह, इस के अित र य को ऋण मु हेतु मंगल साधना स ेअित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल यं क पूजा करन ेसे वशेष लाभ ा होता ह।

    ाण ित त मंगल यं के पूजन से भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के दु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओंु , हमला, चोर इ याद स ेबचाव होता ह।

    मू य मा Rs- 550

    गु मं के जप से अलौ कक िस या ा होती ह िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी

    क ड यपुर म शशांगर नाम के राजा रा य करते थे। वे जापालक थे। उनक रानी मंदा कनी भी पित ता, धमपरायण थी। ले कन संतान न होने के कारण दोन दःखी रहते थे। उ ह ने रामे र जाकर ुसंतान ाि के िलए िशवजी क पूजा, तप या का वचार कया। प ी को लेकर राजा रामे र क ओर चल पड़े। माग म कृ णा-तंुगभ ा नद के संगम-थल पर दोन ने नान कया और

    वह ं िनवास करते हए वे िशवजी क ुआराधना करने लगे।

    एक दन नान करके दोन लौट रहे थे क राजा को िम सरोवर म एक िशविलंग दखाई पड़ा। उ ह ने वह िशविलंग उठा िलया और अ यंत

    ा से उसक ाण- ित ा क । राजा रानी पूण िन ा से िशवजी क पूजा-अचना करने लगे। संगम म नान करके िशविलंग क पूजा करना उनका िन य म बन गया।

    एक दन कृ णा नद म नान करके राजा सूयदेवता को अ य देने के िलए अंजिल म जल ले रहे थे, तभी उ ह एक िशशु दखाई दया। उ ह आसपास दरू-दरू तक कोई नजर नह ं आया। तब राजा ने सोचा क 'ज र भगवान िशवजी क कृपा से ह मुझे इस िशशु क ाि हई है ु !' वे अ यंत ह षत हए और अपनी प ी के पास ुजाकर उसको सब वृ ांत सुनाया।

    वह बालक गोद म रखते ह मंदा कनी के आचल से दध क धारा ू बहने लगी। रानी मंदा कनी बालक को

    तनपान कराने लगी। धीरे-धीरे बालक बड़ा होने लगा। वह बालक कृ णा नद के संगम- थान पर ा होने के कारण उसका नाम 'कृ णागर' रखा गया।

    राजा-रानी कृ णागर को लेकर अपनी राजधानी क ड युपर म वापस लौट आये। ऐसे अलौ कक बालक को देखने के िलए सभी रा यवासी राजभवन म आये। बड़े उ साह के साथ समारोहपूवक उ सव मनाया गया।

    जब कृ णागर 17 वष का युवक हआ तब राजा ने अपने मं य ुको कृ णागर के िलए उ म क या ढँढने क आ ा द । परंतु कृ णागर के ूयो य क या उ ह कह ं भी न िमली। उसके बाद कुछ ह दन म रानी मंदा कनी क मृ यु हो गयी। अपनी य रानी के मर जाने का राजा को

    बहत दःख हआ। उ ह ने वषभर ु ुुा ा द सभी काय पूरे कये और

    अपनी मदन-पीड़ा के कारण िच कूट के राजा भुज वज क नवयौवना क या भुजावंती के साथ दसरा ववाह कयाू । उस समय भुजावंती क उ 13 वष क थी और राजा शशांगर का पु कृ णागर क उ 17 वष क थी।

    एक दन राजा िशकार खेलने राजधानी से बाहर गये हए थे। कृ णागर महल के ांगण म खड़े होकर खेल ुरहा था। उसका शर र अ यंत सुंदर व आकषक होने के कारण भुजावंती उस पर आस हो गयी। उसने एक

  • 15 जुलाई 2011

    दासी के ारा कृ णागर को अपने पास बुलवाया और उसका हाथ पकड़कर कामे छा पूरण करने क माँग क ।

    तब कृ णागर न कहाः "हे माते ! म तो आपका पु हँ और आप मेर माता ह। अतः आपको यह शोभा ूनह ं देता। आप माता होकर भी पु से ऐसा पापकम करवाना चाहती हो !'

    ऐसा कहकर गु से से कृ णागर वहाँ से चला गया। कृ णागर के वहां से चले जाने के बाद म भुजावंती को अपने पापकम पर प ाताप होने लगा। राजा को इस बात का पता चल जायेगा, इस भय के कारण वह आ मह या करने के िलए े रत हई। परंतु उसक दासी ुने उसे समझायाः 'राजा के आने के बाद तुम ह कृ णागर के खलाफ बोलना शु कर दो क उसने मेरा सती व लूटने क कोिशश क । यहाँ मेरे सती व क र ा नह ं हो सकती। कृ णागर बुर िनयत का है, अब आपको जो करना है सो करो, मेर तो जीने क इ छा नह ं।'

    राजा के आने के बाद रानी ने सब वृ ा त इसी कार राजा को बताया जस कार से दासी ने बताया।

    राजा ने कृ णागर क ऐसी हरकत सुनकर ोध के आवेश म अपने मं य को उसके हाथ-पैर तोड़ने क आ ा दे

    द । आ ानुसार वे कृ णागर को ले गये। परंतु

    राजसेवक को लगा क राजा ने आवेश म आकर आ ा द है। कह ं अनथ न हो जाय ! इसिलए कुछ सेवक पुनः राजा के पास आये। राजा का मन प रवतन करने क अिभलाषा से वापस आये हए कुछ राजसेवक और अ य ुनगर िनवासी अपनी आ ा वापस लेने के राजा से अनुनय- वनय करने लगे। परंतु राजा का आवेश शांत नह ं हआ और फर से वह आ ा द ।ु

    फर राजसेवक कृ णागर को चौराहे पर ले आये। सोने के चौरंग (चौक ) पर बठाया और उसके हाथ पैर बाँध दये। यह य देखकर नगरवािसय क आँख मे दयावश आँसू बह रहे थे। आ खर सेवक ने आ ाधीन होकर कृ णागर के हाथ-पैर तोड़ दये। कृ णागर वह ं चौराहे पर पड़ा रहा।

    कुछ समय बाद दैवयोग से नाथ पंथ के योगी मछ नाथ अपने िश य गोरखनाथ के साथ उसी रा य म आये। वहाँ लोग के ारा कृ णागर के वषय म चचा सुनी। परंतु यान करके उ ह ने वा त वक रह य का पता लगाया। दोन ने कृ णागर को चौरंग पर देखा,

    या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह? या आपके ब चे आपका कहना नह ंमान रहे ह? या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह?

    घर प रवार म शांित एव ंब चे को कुसंगती से छुडाने हेतु ब चे के नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध- वधान से मं िस ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एव ंएस.एन. ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म था पत कर अ प पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह। य द आप तो आप मं िस वशीकरण कवच एव ंएस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह। GURUTVA KARYALAY

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  • 16 जुलाई 2011

    इसिलए उसका नाम 'चौरंगीनाथ' रख दया। फर राजा से वीकृित लेकर चौरंगीनाथ को गोद म उठा िलया और

    बद रका म गये। मछे नाथ ने गोरखनाथ से कहाः "तुम चौरंगी को नाथ पंथ क द ा दो और सव व ाओं म इसे पारंगत करके इसके ारा राजा को योग साम य दखाकर रानी को दंड दलवाओ।"

    गोरखनाथ ने कहाः "पहल े म चौरंगी का तप साम य देखूगँा।" गोरखनाथ के इस वचार को मछ नाथ ने वीकृित द ।

    चौरंगीनाथ को पवत क गुफा म बठाकर गोरखनाथ ने कहाः 'तु हारे म तक के ऊपर जो िशला है, उस पर टकाये रखना और म जो मं देता हँ उसी ूका जप चालू रखना। अगर वहाँ से हट तो िशला तुम पर िगर जायेगी और तु हार मृ यु हो जायेगी। इसिलए िशला पर ह टका कर रखना।' ऐसा कहकर गोरखनाथ ने उसे मं ोपदेश दया और गुफा का ार इस तरह से बंद कया क अंदर कोई व य पशु वेश न कर सके। फर अपने योगबल से चामु डा देवी को कट करके आ ा द क इसके िलए रोज फल लाकर रखना ता क यह उ ह खाकर जी वत रहे।

    उसके बाद दोन तीथया ा के िलए चले गये। चौरंगीनाथ िशला िगरने के भय से उसी पर जमाये बैठे थे। फल क ओर तो कभी देखा ह नह ं वायु भ ण करके बैठे रहते। इस कार क योगसाधना से उनका

    शर र कृश हो गया। मछ नाथ और गोरखनाथ तीथाटन करते हए जब ु

    याग पहँचे तो वहाँ उ हु एक िशवमं दर के पास राजा व म का अंितम सं कार होते हए दखाई पड़ा। ु

    नगरवािसय को अ यंत दःखी देखकर गोरखनाथ को ुअ यंत दयाभाव उमड़ आया और उ ह ने मछे नाथ से ाथना क क राजा को पुनः जी वत कर। परंतु राजा

    व प म लीन हए थे इसिलए मछेु नाथ ने राजा को जी वत करने क वीकृित नह ं द । परंतु गोरखनाथ ने कहाः "म राजा को जी वत करके जा को सुखी क ँ गा। अगर म ऐसा नह ं कर पाया तो वयं देह याग दँगा।ू "

    थम गोरखनाथ ने यान के ारा राजा का जीवनकाल देखा तो सचमुच वह म लीन हो चुका था। फर गु देव को दए हए वचन क पूित के िलए ुगोरखनाथ ाण याग करने के िलए तैयार हए। तब गु ुमछ नाथ ने कहाः ''राजा क आ मा म लीन हई है ुतो म इसके शर र म वेश करके 12 वष तक रहँगा। ूबाद म म लोक क याण के िलए म मेरे शर र म पुनः वेश क ँ गा। तब तक तू मेरा यह शर र सँभाल कर

    रखना।" मछ नाथ ने तुरंत देह याग करके राजा के मृत

    शर र म वेश कया। राजा उठकर बैठ गया। यह आ य देखकर सभी जनता ह षत हई। फर जा ने अ न को ु

    पढाई से संबंिधत सम या या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक प से बाधा- व न या कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण

    प र म एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कंुडली का व तृत अ ययन अव य करवाल ेऔर उनके व ा अ ययन म आनेवाली कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार ा कर।

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  • 17 जुलाई 2011

    भा य ल मी द बी सुख-शा त-समृ क ाि के िलय ेभा य ल मी द बी :- ज स ेधन ि , ववाह योग, यापार वृ , वशीकरण, कोट कचेर के काय, भूत ेत बाधा, मारण, स मोहन, ता क बाधा, श ुभय, चोर भय जेसी अनेक परेशािनयो स ेर ा होित है और घर मे सुख समृ क ाि होित है, भा य ल मी द बी मे लघु ी फ़ल, ह तजोड (हाथा जोड ), िसयार िस गी, ब ल नाल, शंख, काली-सफ़ेद-लाल गुंजा, इ जाल, माय जाल, पाताल तुमड जेसी अनेक दलभु साम ी होती है।

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    शांत करने के िलए राजा का सोने का पुतला बनाकर अं यसं कार- विध क ।

    गोरखनाथ क भट िशवमं दर क पुजा रन से हई। ुउ ह ने उसे सब वृ ा त सुनाया और गु देव का शर र 12 वष तक सुर त रखने का यो य थान पूछा। तब पुजा रन ने िशवमं दर क गुफा दखायी। गोरखनाथ ने गु वर के शर र को गुफा म रखा। फर वे राजा से आ ा लेकर आगे तीथया ा के िलए िनकल पड़े।

    12 वष बाद गोरखनाथ पुनः बद रका म पहँचे। ुवहाँ चौरंगीनाथ क गुफा म वेश कया। देखा क एका ता, गु मं का जप तथा तप या के भाव से चौरंगीनाथ के कटे हए हाथु -पैर पुनः िनकल आये ह। यह देखकर गोरखनाथ अ यंत स न हए। फर चौरंगीनाथ ुको सभी व ाएँ िसखाकर तीथया ा करने साथ म ले गये। चलते-चलते वे क ड यपुर पहँचे। वहाँ राजा शशांगर ुके बाग म क गये। गोरखनाथ ने चौरंगीनाथ तो आ ा द क राजा के सामने अपनी श दिशत करे।

    चौरंगीनाथ ने वाता मं से अिभमं त भ म का योग करके राजा के बाग म जोर क आँधी चला द । वृ ा द टटू -टटकरू िगरने लग,े माली लोग ऊपर उठकर धरती पर िगरने लगे। इस आँधी का भाव केवल बाग म ह दखायी दे रहा था इसिलए लोग ने राजा के पास समाचार पहँचाया। राजा हाथीु -घोड़े, लशकर आ द के साथ बाग म पहँचे। चौरंगीनाथ ने वाता के ारा राजा ुका स पूण लशकर आ द आकाश म उठाकर फर नीचे

    पटकना शु कया। कुछ नगरवािसय ने चौरंगीनाथ को अनुनय- वनय कया तब उसने पवता का योग करके राजा को उसके लशकर स हत पवत पर पहँचाु दया और पवत को आकाश म उठाकर धरती पर पटक दया।

    फर गोरखनाथ ने चौरंगीनाथ को आ ा द क वह अपने पता का चरण पश करे। चौरंगीनाथ राजा का चरण पश करने लगे कंतु राजा ने उ ह पहचाना नह ं । तब गोरखनाथ ने बतायाः "तुमन े जसके हाथ-पैर कटवाकर चौराहे पर डलवा दया था, यह वह तु हारा पु कृ णागर अब योगी चौरंगीनाथ बन गया है।"

    गोरखनाथ ने रानी भुजावंती का संपूण वृ ा त राजा को सुनाया। राजा को अपने कृ य पर प ाताप हआ। उ ह ने रानी को रा य से बाहर िनकाल दया। ुगोरखनाथ ने राजा से कहाः "अब तुम तीसरा ववाह करो। तीसर रानी के ारा तु ह एक अ यंत गुणवान, बु शाली और द घजीवी पु क ाि होगी। वह रा य का उ रािधकार बनेगा और तु हारा नाम रोशन करेगा।"

    राजा ने तीसरा ववाह कया। उससे जो पु ा हआु , समय पाकर उस पर रा य का भार स पकर राजा वन म चले गये और ई र ाि के साधन म लग गये।

    गोरखनाथ के साथ तीथ क या ा करके चौरंगीनाथ बद रका म म रहने लगे।

    इस कार गु कृपा से कृ णागर को गु मं ा हवा गु मं का िन ा से जप कर के उ ह िस या ा ुहई व अपना खोया हवा मानु ु -समान पूनः ा हवा।ु

  • 18 जुलाई 2011

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    आ ण क गु भ व तक.ऎन.जोशी

    पौरा णक कथा के अनुशार मह ष आयोदधौ य के आ म म बहतु से िश य थे। सभी िश य गु देव मह ष आयोदधौ य क बड़े ेम से सेवा करते थे। एक दन सं या के समय वषा होन े लगी। मौसम को देखते हएं ुअंदाजा लगना मु कल था क अगले कुछ समय तक वषा होगी या नह ,ं इसका कुछ ठ क- ठकाना नह ं था। वषा बहत जोरसे हो रह थी। मह षने सोचा क कह ं अपने ुधान के खेत क मेड़ अिधक पानी भरने से टट जायगी ूतो खेतम से सब पानी बह जायगा। पीछे फर वषा न हो तो धान बना पानी के सूख जायेगा। ह षने आ ण से कहा—‘बेटा आ ण !तुम खेत पर जाकर देखो, क कह मेड़ टटनेसे खेत का पानी बह न जाय।ू ’

    आ ण अपने गु देव क आ ा पाकर वषा म भीगते हए खेतपर चले गये। वहाँ जाकर उ हने देखाु क खेतक मेड़ एक थान पर टट गयी है और वहाँ से बड़े ूजोरसे पानी बाहर िनकल रहा है। आ ण ने टटे हए ू ुथान पर िम ट रखकर मेड़ बाँधना चाहा। पानी वेग से

    िनकल रहा था और वषा से िम ट भी गीली हो गयी थी, इस िलये आ ण जतनी िम ट मेड़ बाँधने के िलये रखते थे, उसे पानी बहा ले जाता था। बहत देर प र म ुकरके भी जब आ ण मेड़ न बाँध सके तो व ेउस टट ूमेड़के पास वयं लटे गये। उनके शर रसे पानीका बहाव क गया।

    उस दन पूर रात आ ण पानीभरे खेतम मेड़से सटे पड़े रहे। सद से उनका सारा शर र भी अकड़ गया, ले कन गु देव के खेतका पानी बहने न पाय,े इस वचार से वे न तो तिनक भी हले और न उ ह न ेकरवट बदली। इस कारण आ ण के शर रम भयंकर पीड़ा होते रहने पर भी वे चुपचाप पड़े रहे। सबेरा होने पर पूजा और हवन करके सब िश य गु देव को णाम करते थे। मह ष

    आयोदधौ यने देखा क आज सबेरे आ ण णाम करने नह ं आया। मह षन ेदसरे व ािथय से पूछाू :‘आ ण कहाँ है?’ व ािथय ने कहा: ‘कल शामको आपने आ ण को खेतक मेड़ बाँधनेको भेजा था, तबस े वह लौटकर नह ं आया।’ मह ष उसी समय दसरे व िथय को साथ लेकर आ ण ूको ढँढ़ने िनकलू पड़े। मह ष ने खेत पर जाकर आ ण को पुकारा। आ ण से ठ ड के मारे बोला तक नह ंजाता था। उ ह ने कसी कार अपने गु देवक को उ र दया। मह ष ने वहा ँपहँचु कर अपने आ ाकार िश यको उठाकर दय से लगा िलया, आशीवाद दया:‘पु आ ण ! तु ह

    सब व ाएँ अपन-ेआप ह आ जायँ।’ अपन े गु देव के आशीवाद से आ ण बड़े भार व ान हो गए।

  • 19 जुलाई 2011

    स गु के याग से द र ता आती ह िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी

    िशवाजी के गु देव ी समथ रामदास के इद-िगद राजसी और भोजन-भगत बहतु हो गये थे। तुकारामजी क भ सादगी यु रहते थे।

    तुकारामजी कह ं भी भजन-क तन करन ेजाते तो क तन करानेवाल े गृह थ का सीरा-पूड़ , आ द भोजन हण नह ंकरते थे। तुकारामजी साद -सूद रोट , तंदरू

    क भाजी और छाछ लेते। घोड़ागाड , ताँगा आ द का उपयोग नह ंकरते और पैदल चलकर जाते। उनका जीवन एक तप वी का जीवन था।

    तुकारामजी के कई सारे िश यो म स ेएक िश य व देखा क समथ रामदास के साथ म जो लोग जाते ह

    वे अ छे कपड़े पहनते ह, सीरा-पूड़ आ द उ म खार के यंजन खाते ह। कुछ भी हो, समथ रामदास िशवाजी महाराज के गु ह, अथात राजगु ह। उनके यहां रहने वाले िश य को खान-ेपीन े का, अमन-चमन आ द का, खूब मौज है। उनके िश य को समाज म मान-स मान भी िमलता है। हमारे गु तुकारामजी महाराज के पास कुछ नह ं है। मखमल के ग -त कय ेनह ,ं खान-ेपहनन ेक ठ क यव था नह ं। यहाँ रहकर या कर ?

    िश य के िचतम इस कार का िचंतन-मनन करते-करते समथ रामदास क म डली म जाने का आकषण पैदा हो गया हआ। ु

    िश य पहँचा ु समथजी के पास और हाथ जोड़कर ाथना क ः "महाराज ! आप मुझे अपना िश य बनाय।

    आपक म डली म रहँगाू , भजन-क तन आ द क ँ गा। आपक सेवा म रहँगा।ू "

    समथ जी ने पूछाः "तू पहले कहाँ रहता था?" िश य बोला: "तुकारा


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