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Date post: 06-Mar-2020
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चचचचचचचच / Chanbardai उउउउ उउउउ उउउउउ उउउ उउउ उउ, उउ उउउउ उउ उउउ उउ उउउ उउ उउउ उउउ उउ उउउउउ-उउउउउउ उउ उउउउउउउउउ उउउउउ उउउउ उउउउउउउउउ उउ उउउउउउउउउ उउउ, उउउउउउ उउ उउउउउउ उउ उउउ उउ उउउउ उउउउ उउउउउउउ उउउउ उउउउउउउ उउउउउउउउउ उउ उउउ उउउउउउ उउउ उउउउ उउ उउ उउउउउउउ उउ उउउउउ उउउउउउउ उउ उउउ उउउउउउउउउ उउ उउउ उउउ उउ उउउउ उउउउउउउउउउ उउ उउउ 13 उउउ उउउ उउ उउउउउउउउ उउ उउउउउउउउ उउउउउ "उउउउउउउउउउउउउ " उउ उउउउ उउउउ उउ उउउउ-उउउउउउउउउउउ उउ उउउउउ उउउ उउ, उउ उउउउउउउउ उउउ उउउउउउउउ उउ उउउउउउ उउ उउउउउ उउउउउउउउ उउ उउउउउउउउ उउउउउउ उउ उउउउउ उउउउउउ उउउउ उउउउ उउ 'उउउउ' उउ उउउउ उउउउउउ उउउउउउउउउ उउ उउउउउ-उउउउउ उउ उउउ उउउ उउ उउउउउ उउउउ उउउउउउउउउउ उउउउउउउ उउ उउउउउ-उउउउउउउउ उउ उउउ उउ उउ: उउउउउ उउउ उउ उउउउउउउउ उउ उउ उउ उउ उउउउउउउउ उउ उउ उउउउउ उउ उउउउ उउउउउउउउउउउउउउ उउ उउउउउ उउ उउ उउउ: उउउउ उउउउ उउउ उउ. 1220 उउ 1250 उउ उउउउ उउउउउ उउउउउउउ 'उउउउ' उउ 16 उउउ उउउउ उउउउ उउउ उउ उउउउ उउउ उउ उउउउउउउउउ उउउउउ उउउउउ उउ चचचच / Bhushan
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चदबरदाई / Chanbardai

उसका जनम लाहौर म हआ था, वह जाति� का राव या भाट था । बाद म वह अजमर-दिदलली क सतिवखया� हिहद नरश पथवीराज का सममाननीय सखा, राजकतिव और सहयोगी हो गया था । इसस उसका अधि/काश जीवन महाराजा पथवीराज क साथ दिदलली म बी�ा था । वह राज/ानी और यदध कषतर सब जगह पथवीराज क साथ रहा था । उसकी तिवदयमान�ा का काल 13 वी श�ी ह । चदवरदाई का परसिसदध गरथ "पथवीराजरासो" ह । इसकी भाषा को भाषा-शासतरि?तरयो न हिपगल कहा ह, जो राजसथान म बरजभाषा का पयाCय ह । इससिलए चदवरदाई को बरजभाषा तिहनदी का परथम महाकतिव माना जा�ा ह । 'रासो' की रचना महाराज पथवीराज क यदध-वरणCन क सिलए हई ह । इसम उनक वीर�ापरणC यदधो और परम-परसगो का कथन ह । अ�: इसम वीर और शरगार दो ही रस ह । चदबरदाई न इस गरथ की रचना परतयकषदशJ की भाति� की ह अ�: इसका रचना काल स. 1220 स 1250 �क होना चातिहए । तिवदवान 'रासो' को 16 वी अथवा उसक बाद की तिकसी श�ी का अपरमाणिरणक गरथ मान� ह ।

भषण / Bhushan

वीर रस क कतिव भषरण का जनम कानपर जिPल म यमना तिकनार ति�कवापर गाव म हआ था। धिमशरबनधओ �था रामचनदर शकल न भषरण का समय 1613-1715 ई. माना ह। सिशवसिसह सगर न भषरण का जनम 1681 ई. और तिगरयसCन न 1603 ई. सिलखा ह। भषरण 1627 ई. स 1680 ई. �क महाराजा सिशवाजी क आशरय म रह। इनक छतरसाल बदला क आशरय म रहन का भी उललख धिमल�ा ह। 'सिशवराज भषरण', 'सिशवाबावनी', और 'छतरसाल दशक' नामक �ीन गरथ ही इनक सिलख छः गरथो म स उपलबध ह।

जीवन परिरचय

भषण

अनय नाम पति�राम, मतिनराम (तिकवद�ी)

जनम 1613

जनम भमिम ति�कवापर गाव, कानपर

अविवभावक रतनाकर तितरपाठी

कम� भमिम कानपर

कम�-कषतर कतिव�ा

मतय 1715

मखय रचनाए सिशवराजभषरण, सिशवाबावनी, छतरसालदशक

विवषय वीर रस कतिव�ा

भाषा बरजभाषा, अरबी, फारसी, �क^

परसि%दधि' वीर-कावय �था वीर रस

विवशष योगदान रीति�गरथ

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भषरण तिहनदी रीति� काल क अन�गC�, उसकी परमपरा का अनसररण कर� हए वीर-कावय �था वीर-रस की रचना करन वाल परसिसदध कतिव ह। इनहोन दधिशवराज-भषण म अपना परसिचय द� हए सिलखा ह तिक य कानयकबज बराहमरण थ। इनका गोतर कशयप था। य रतनाकर तितरपाठी क पतर थ �था यमना क तिकनार तितरतिवकरमपर (ति�कवापर) म रह� थ, जहा बीरबल का जनम हआ था और जहा तिवशवशवर क �लय दव-तिबहारीशवर महादव ह। सिचतरकटपति� हदयराम क पतर रदर सलकी न इनह 'भषरण' की उपाधि/ स तिवभतिष� तिकया था।[1] ति�कवापर कानपर जिPल की घाटमपर �हसील म यमना क बाए तिकनार पर अवसथिसथ� ह। सिशवसिसह सगर न भषरण का जनम 1681 ई. और तिगरयसCन न 1603 ई. सिलखा ह। कछ तिवदवानो क म�ानसार भषरण सिशवाजी क पौतर साह क दरबारी कतिव थ। कहन की आवशयक�ा नही ह तिक उन तिवदवानो का यह म� भरानतिन�परणC ह। व?��: भषरण सिशवाजी क ही समकालीन एव आणिशर� थ।

परिरवार

भषरण क तिप�ा कानयकबज बराहमरण रतनाकर तितरपाठी थ। कहा जा�ा ह तिक व चार भाई थ- सिचन�ामणिरण, भषरण, मति�राम और नीलकणठ (उपनाम जटाशकर)। भषरण क भरा�तव क समबनध म तिवदवानो म बह� म�भद ह। कछ तिवदवानो न इनक वा?�तिवक नाम पवि+राम अथवा मविनराम होन की कलपना की ह पर यह कोरा अनमान ही पर�ी� हो�ा ह।

आशरयदा+ा

भषरण क परमख आशरयदा�ा महाराज सिशवाजी (6 अपरल, 1627 - 3 अपरल, 1680 ई.) �था छतरसाल बनदला (1649-1731 ई.) थ। इनक नाम स कछ ऐस फटकर छनद धिमल� ह, जिजनम साहजी, बाजीराव, सलकी, महाराज जयसिसह , महाराज रानसिसह, अतिनरदध, राव बदध, कमाऊ नरश, गढवार-नरश, औरगजब, दाराशाह (दाराशकोह) आदिद की परशसा की गयी ह। य सभी छनद भषरण-रसिच� ह। इसका कोई पषट परमारण नही ह। ऐसी परिरसथिसथति� म उकत-सभी राजाओ क भषरण का आशरयदा�ा नही माना जा सक�ा।

गरनथभषरणरसिच� छ: गरनथ ब�लाय जा� ह। इनम स य �ीन गरनथ-

'भषरणहजारा' 'भषरणउललास'

'दषरणउललास' यह गरथ अभी �क दखन म नही आय ह। भषरण क शष गरनथो का परिरचय इस परकार ह:

अनकरम[छपा]

1 भषरण / Bhushan 2 जीवन परिरचय

o 2.1 परिरवार

o 2.2 आशरयदा�ा

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3 गरनथ

o 3.1 सिशवराजभषरण

o 3.2 सिशवाबावनी

o 3.3 छतरसालदशक

4 कावयग� सौनदयC

o 4.1 शली

o 4.2 भाषा

5 कावय म सथान

6 टीका दिटपपरणी और सदभC

7 बाहरी कतिvया

8 समबधि/� सिलक

दधिशवराजभषण

भषरण न अपनी इस कति� की रचना-ति�सिथ जयषठ वदी तितरयोदशी, रतिववार, समव� 1730, 29 अपरल , 1673 ई. रतिववार को दी ह।[2] सिशवराज- भषरण म उललखिख� सिशवाजी तिवषयक ऐति�हासिसक घटनाए 1673 ई. �क घदिट� हो चकी थी। इसस भी इस गरनथ का उकत रचनाकाल ठीक ठहर�ा ह। साथ ही सिशवाजी और भषरण की समसामधियक�ा भी सिसदध हो जा�ी ह। 'सिशवराज-भषरण' म 384 छनद ह। दोहो म अलकारो की परिरभाषा दी गयी ह �था कतिवतत एव सवया छनदो म उदाहररण दिदय गय ह, जिजनम सिशवाजी क कायC-कलापो का वरणCन तिकया गया ह।

दधिशवाबावनी

सिशवाबावनी म 52 छनदो म सिशवाजी की कीरति� का वरणCन तिकया गया ह।

छतर%ालदशक

छतरसालदशक म दस छनदो म छतरसाल बनदला का यशोगान तिकया गया ह। भषरण क नाम स पराप� फटकर पदयो म तिवतिव/ वयसिकतयो क समबनध म कह गय �था कछ शरगारपरक पदय सगही� ह।

कावयग+ %ौनदय�भषरण की सारी रचनाए मकतक-प'वि+ म सिलखी गयी ह। इनहोन अपन चरिरतर-नायको क तिवसिशषट चारिरतरय-गरणो और कायC-कलापो को ही अपन कावय का तिवषय बनाया ह। इनकी कतिव�ा वीररस, दानवीर और /मCवीर क वरणCन परचर मातरा म धिमल� ह, पर पर/ान�ा यदधवीर की ही ह। इनहोन यदधवीर क परसग म च�रग चम, वीरो की गव~सिकतया, योदधाओ क पौरष-परणC कायC �था श?तरा?तर आदिद का सजीव सिचतररण तिकया ह। इसक अति�रिरकत रौदर, भयानक, वीभतस आदिद पराय: सम?� रसो क वरणCन इनकी रचना म धिमल� ह पर उसम रसराजक�ा वीररस की ही ह। वीर-रस क साथ रौदर �था भयानक रस का सयोग इनक कावय म बह� अचछा बन पvा ह।

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रीति�कार क रप म भषरण को अधि/क सफल�ा नही धिमली ह पर शदध कतिवतव की दधिषट स इनका परमख सथान ह। इनहोन परकति�-वरणCन उददीपन एव अलकार-पदधति� पर तिकया ह। 'सिशवराजभषरण' म रायगढ क परसग म राजसी ठाठ-बाट, वकषो ल�ाओ �था पणिकषयो क नाम तिगनान वाली परिरपाटी का अनकररण तिकया गया ह।

शली

सामानय�: भषरण की शली विववचनातमक एव %शलि8षट ह। इनहोन तिववररणतमक-पररणाली की बह� कम परयोग तिकया ह। इनहोन यदध क बाहरी सा/नो का ही वरणCन क अति�रिरकत सन�ोष नही कर सिलया ह, वरन मानव-हदय म उमग भरन वाली भावनाओ की ओर उनका सदव लकषय रहा ह। शबदो और भावो का सामज?य भषरण की रचना का तिवशष गरण ह।

भाषा

भषरण न अपन समय म परचसिल� सातिहतय की सामानय कावय-भाषा बरजभाषा का परयोग तिकया ह। इनहोन तिवदशी शबदो को अधि/क उपयोग मसलमानो क ही परसग म तिकया ह। दरबार क परसग म भाषा का खvा रप भी दिदखाई पv�ा ह। इनहोन अरबी, फार%ी और +क; क शबद अधि/क परयकत तिकय ह। बनदलखणडी, बसवाvी एव अन�व�दी शबदो का भी कही-कही परयोग तिकया गया ह। इस परकार भषरण की भाषा का रप सातिहनतितयक दधिषट स बरा भी नही कहा जा सक�ा। इनकी कतिव�ा म ओज पयाCप� मातरा म ह। परसाद का भी अभाव नही ह। 'सिशवराजभषरण' क आरमभ क वरणCन और शरगार क छनदो म मा/यC की पर/ान�ा ह।

कावय म सथानआचायCतव की दधिषट स भषरण को तिवसिशषट सथान नही परदान तिकया जा सक�ा पर कतिवतव क तिवचार स उनका एक महतवपरणC सथान ह। उनकी कतिव�ा कतिव- कीरति�समबनधी एक अतिवचल सतय का दषटान� ह। व �तकालीन ?वा�नयसगराम क परति�तिनधि/ कतिव ह। भषरण वीरकावय-/ारा क जगमगा� रतन ह।

कबीरबरज वि@सकवरी, एक मकत जञानकोष %यहा जाईय: नतिवगशन, खोज

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महातमा कबीरदास क जनम क समय म भार� की राजनीति�क, सामाजिजक, आरथिथक एव /ारमिमक दशा शोचनीय थी। एक �रफ मसलमान शासको की /मा�नध�ा स जन�ा परशान थी और दसरी �रफ तिहनद /मC क कमCकाड, तिव/ान और पाखड स /मC का हरास हो रहा था। जन�ा म भसिकत- भावनाओ का सवCथा अभाव था। पतिड�ो क पाखडपरणC वचन समाज म फल थ। ऐस सघषC क समय म, कबीरदास का परारदCभाव हआ। जिजस यग म कबीर आतिवभC� हए थ, उसक कछ ही पवC भार�वषC क इति�हास म एक अभ�पवC घटना घट चकी थी। यह घटना इ?लाम जस एक ससगदिठ� समपरदाय का आगमन था। इस घटना न भार�ीय /मC–म� और समाज वयवसथा को बरी �रह स झकझोर दिदया था। उसकी अपरिरव�Cनीय समझी जान वाली जाति�–वयवसथा को पहली बार जबदC?� ठोकर लगी थी। सारा भार�ीय वा�ावररण सकषबध था। बह�–स पतिड�जन इस सकषोभ का काररण खोजन म वय?� थ और अपन–अपन ढग पर भार�ीय समाज और /मC–म� को समभालन का परयतन कर रह थ।

%मकालीन %ामाजिजक परिरशलिसथवि+अनकरम[छपा]

1 समकालीन सामाजिजक परिरसथिसथति� 2 समकालीन भार�ीय स?कति�

3 समकालीन /ारमिमक आनदोलन

4 जीवन परिरचय

5 कबीर /मCगर

6 रचनाय

7 भाषा

8 जीवन दशCन

9 समाज – स/ारक

कबीर

जनम भमिम लहर�ारा �ाल, काशी

अविवभावक नीर और नीमा

पवि+/पतनी लोई

%+ान कमाल, कमाली

कम� भमिम काशी, बनारस

कम�-कषतर समाज स/ारक कतिव

मतय मगहर म 120 वषC की आय म

मखय रचनाए साखी, सबद और रमनी

भाषा अव/ी, स/ककvी, पचमल खिखचvी

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10 तिहनद – मसथि?लम एक�ा

11 कबीरदास का भकत रप

12 रपा�ी� वयजना और खडन मडन

13 कबीरदास की मतिहमा

14 कबीरदास की भाषा और शली

15 टीका दिटपपरणी और सदभC

16 समबधि/� सिलक

भार�वषC कोई नया दश नही ह। बv–बv सामराजय उसकी /ल म दब हए ह, बvी–बvी /ारमिमक घोषरणाए उसक वायमणडल म तिननादिद� हो चकी ह। बvी–बvी सभय�ाए उसक परतयक कोन म उतपनन और तिवलीन हो चकी ह। उनक ?मति� सिचहन अब भी इस परकार तिनजJव होकर खv ह मानो अटटाहस कर�ी हई तिवजयलकषमी को तिबजली मार गई हो। अनादिदकाल म उसम अनक जाति�यो, कबीलो, न?लो और घमककv खानाबदोशो क झणड इस दश म आ� रह ह। कछ दर क सिलए इनहोन दश क वा�ावररण को तिवकषबध भी बनाया ह, पर अन� �क व दखल करक बठ जा� रह ह और परान दव�ाओ क समान ही शरदधाभाजन बन जा� रह ह—कभी–कभी अधि/क सममान भी पा सक ह। भार�ीय स?कति� तिक कछ ऐसी तिवशष�ा रही ह तिक उन कबीलो, न?लो और जाति�यो की भी�री समाज–वयवसथा और /मC–म� म तिकसी परकार का ह?�कषप नही तिकया गया ह और तिफर भी उनको समपरणC भार�ीय मान सिलया गया ह। भागव� म ऐसी जाति�यो की एक सची दकर ब�ाया गया ह तिक एक बार भगवान का आशरय पा� ही य शदध हो गई ह। इनम तिकरा� ह, हरण ह, आधर ह, पसिलद ह, पककस ह, आभीर ह, शग ह, यवन ह, खस ह, शक ह और भी तिनशचय ही ऐसी बह� सी जाति�या ह, जिजनका नाम भागव�ाकार नही तिगना गए। [1]

%मकालीन भार+ीय %सकवि+भार�ीय स?कति� इ�न अति�सिथयो का अपना सकी थी, इसका काररण यह ह तिक बह� स शर स ही उसकी /मC–सा/ना वयसिकतक रही ह। परतयक वयसिकत को अलग स /म~पासना का अधि/कार ह। झड बा/कर उतसव हो सक� ह, भजन नही। परतयक वयसिकत अपन तिकए का जिPममदार आप ही ह। शरषठ�ा तिक तिनशानी तिकसी /मC–म� को मानना या दव तिवशष की पजा करना नही बलकिलक आचार–शजिदध और चारिरतरय ह। यदिद एक आदमी अपन पवCजो क ब�ाए /मC पर दढ ह, चरिरतर स शदध ह, दसरी जाति� या वयसिकत क आचररण की नकल नही कर�ा बलकिलक ?व/मC म मर जान को ही शरय?कर समझ�ा ह, ईमानदार ह, सतयवादी ह, �ो वह तिनशचय ही शरषठ ह, तिफर वह चाह आभीर वश का हो या पककस शररणी का। कलीन�ा पवCजनम क कमC का फल ह। चारिरतरय इस जनम क कमC का पर�ीक ह। दव�ा तिकसी एक जाति� की समपणितत नही ह, व सबक ह, और सबकी पजा क अधि/कारी ह। पर यदिद ?वय दव�ा ही चाह� हो तिक उनकी पजा का माधयम कोई तिवशष जाति� या वयसिकत हो सक�ा ह �ो भार�ीय समाज को इसम भी कोई आपणितत नही ह। बराहमरण मा�गी दवी की पजा करगा पर मा�ग क जरिरए। कया हआ जो तिक मा�ग चाडाल ह। राह यदिद परसनन होन क सिलए डोमो को ही दान दना अपनी श�C रख� ह �ो डोम सही ह। सम?� भार�ीय समाज डोम को ही दान दकर गरहरण क अनथC स चनदरमा की रकषा करगा। इस परकार भार�ीय स?कति� न सम?� जाति�यो को उनकी सारी तिवशष�ाओ सम� ?वीकार कर सिलया। पर अब �क कोई ऐसा 'मजहब' उसक दवार पर नही आया था। वह उसको हजम कर सकन की शसिकत नही रख�ा था।

'मजहब' कया ह? मजहब एक सगदिठ� /मC–म� ह। बह�–स लोग एक ही दव�ा को मान� ह, एक ही आचार का पालन कर� ह, और तिकसी न?ल, कबील या जाति� क तिवशष वयसिकत को जब एक बार अपन सघदिट� समह म

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धिमला ल� ह �ो उसकी सारी तिवशष�ाए दर कर उसी तिवशष म�वाद को ?वीकार करा� ह। यहा /मC–सा/ना वयसिकतग� नही, समहग� हो�ी ह। यहा /ारमिमक और सामाजिजक तिवधि/तिनष/ एक –दसर म गथ हो� ह। भार�ीय समाज नाना जाति�यो का ससतरिममशररण था। एक जाति� का एक वयसिकत दसरी जाति� म बदल नही सक�ा, परन� मजहब ठीक इसस उलटा ह। वह वयसिकत को समह का अग बना द�ा ह। भार�ीय समाज की जाति�या कई वयसिकतयो का समह ह, परन� तिकसी मजहब क वयसिकत बह� समह क अग ह। एक का वयसिकत अलग ह?�ी रख�ा ह पर अलग नही हो सक�ा, दसर का अलग हो सक�ा ह, पर अलग सतता नही रख�ा।

मसलमानी /मC एक 'मजहब' ह। भार�ीय समाज सगठन स तिबलकल उलट �ौर पर उसका सगठन हआ था। भार�ीय समाज जाति�ग� तिवशष�ा रखकर वयसिकतग� /मC–सा/ना का पकषपा�ी था, इ?लाम जाति�ग� तिवशष�ा को लोप करक समहग� /मC–सा/ना का परचारक था। एक का कनदर तिबनरद चारिरतरय था, दसर का /मC–म�। भार�ीय समाज म यह ?वीक� �थय था तिक तिवशवास चाह जो भी हो, चारिरतरय शदध ह �ो वयसिकत शरषठ हो जा�ा ह। तिफर चाह वह तिकसी जाति� का भी कयो न हो। मसलमानी समाज का तिवशवार था तिक इ?लाम न जो /मC–म� परचार तिकया ह उसको ?वीकार कर लन वाला ही अनन� ?वगC का अधि/कारी ह। जो इस /मC–म� को नही मान�ा वह अनन� नरक म जान को बाधय ह। भार�वषC को ऐस म� स एकदम पाला नही पvा था। उसन कभी यह तिवशवास ही नही तिकया की उसक आचार और म� को न मानन वाली जाति� का कफ �ोvना उसका परम क�Cवय ह। तिकसी और का परम क�Cवय यह बा� हो सक�ी ह, यह भी उस नही मालम था। इसीसिलए जब नवीन /मC–म� न सार ससार क कफ को धिमटा दन की परति�जञा की और सभी पाए जान वाल सा/नो का उपयोग आरमभ तिकया �ो भार�वषC इस ठीक–ठीक समझ ही नही सका। इसीसिलए कछ दिदनो �क उसकी समनवयासतरितमका बजिदध कदिठ� हो गई। वह तिवकषबध सा हो उठा। परन� तिव/ा�ा को यह कठा और तिवकषोभ पसनद नही था।

ऐसा जान पv�ा ह पहली बार भार�ीय मनीतिषयो को एक सघबदध /माCचार क पालन की Pरर� महसस हई। इ?लाम क आन स पहल इस तिवशाल जनसमह का कोई एक नाम �क नही था। अब इसका नाम 'तिहनद' पvा। तिहनद अथाC� भार�ीय, अथाC� गर–इ?लामी म�। सपषट ही गर–इ?लामी म� म कई �रह क म� थ। कछ बरहमवादी थ, कछ कमCकाणडी थ, कछ शव थ, कछ वषरणव थ, कछ शाकत थ, कछ ?माततC थ �था और भी न जान कया–कया थ। हजारो योजनो �क तिव?�� और हPारो वष� म परिरवयाप� इस जनसमह क तिवचारो और परमपरा पराप� म�ो का एक तिवशाल जगल खvा था। ?मति�, परारण, लोकाचार और कलाचार की तिवशाल वनसथली म स रा?�ा तिनकाल लना बvा ही रदषकर कायC था। ?माततC पतिड�ो न इसी रदषकर वयापार को सिशरो/ायC तिकया। सार दश म शा?तरीय वचनो की छानबीन होन लगी। उददशय था तिक इस परकार का सवCसमम� म� तिनकाल सिलया जा सक, शरादध–तिववाह की एक ही रीति�–नीति� परचसिल� हो सक, उतसन–समारोह का एक ही तिव/ान �यार हो सक। भार�ीय मनीषा का शा?तरो को आ/ार मानकर अपनी सबस बvी सम?या क समा/ान का यह सबस बvा परयतन था। हमादिदर स लकर कमलाकर और रघनदन �क बह�र पतिड�ो न बह� परिरशरम क बाद जो कछ तिनरणCय तिकया वह यदयतिप सवCवादिदसमम� नही हआ, परन� तिन?सनदह ?�पीभ� शा?तर वाकयो की छानबीन स एक बह� कछ धिमल�ा–जल�ा आचार–परवरण /मC–म� सथिसथर तिकया जा सका। तिनबनध गरनथो की यह एक बह� बvी दन ह। जिजस बा� को आजकल 'तिहनद–सोसिलडरिरटी' कह� ह, उसका परथम णिभणितत–सथापन इन तिनबनध गरनथो क दवारा ही हआ था। पर सम?या का समा/ान इसस नही हआ।

इस परयतन की सबस बvी कमPोरी इसकी आचार–परवरण�ा ही थी। जो नया /मC–म� भार�ीय जन समाज को सकषबध कर रहा था वह इस आचार को कोई महतव ही नही द�ा था। उसका सगठन तिबलकल उलट तिकनार स हआ था। उसक मल म ही सबको ?वीकार करन का सिसदधा� काम कर रहा था। सम?� शा?तरीय वाकयो को न�सिशर स ?वीकार करक ही यह असाधय सा/न तिकया गया था। पर जिजस परति�दवनदवी स काम पvा था वह बह� वजCनागरही था, अथाC� वह तिनदCय�ापवC अनयानय म�ो को �हस–नहस करन की दीकषा ल चका था और /ारमिमक वजCनशील�ा ही उसका मखय अ?तर था। यदयतिप वह समाज /ारमिमक रप म वजCनशील था, पर सामाजिजक रप म गरहरणशील था। जबतिक तिहनद समाज /ारमिमक सा/नो को ?वीकार कर सक�ा था। पर तिकसी वयसिकत तिवशष को

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/मC–म� म गरहरण करन का पकषपा�ी नही था। उ/र मसलमानी समाज वयसिकत को अपन /मC–म� शाधिमल कर लन को परम क�Cवय समझ�ा था। परन� तिकसी तिवशष /मC सा/ना को अपन तिकसी वयसिकत क सिलए एकदम वजCनीय मान�ा था। तिनबनध गरनथो न तिहनद को और भी अधि/क तिहनद बना दिदया, पर मसलमानो को आतमसा� करन का कोई रा?�ा नही ब�ाया।

इस परकार मसलमानो क आगमन क साथ ही साथ तिहनद /मC पर/ान�ः आचार–परवरण हो गया। �ीथC, वर�, उपवास और होमाचार की परमपरा ही उसका कनदर तिबनरद हो गई। इस समय पवC और उततर म सबस परबल समपरदाय नाथपथी योतिगयो का था। हमन पहल ही दखा ह तिक लोग शा?तरीय ?माततC म� को भी नही मान� थ और परसथानतरयी (अथाC� 'उपतिनषद', 'बरहमसतर', और 'गी�ा') पर आ/ारिर� तिकसी दाशCतिनक म�वाद क भी कायल नही थ। पर जन�ा का धयान य आकषट कर सक थ। तिवतिव/ सिसजिदधयो क दवारा व काफी सममान और सभरम क पातर बन गए थ। य गरणा�ी� सिशव या तिनगCरण �तव क उपासक थ। सा/नाओ क दवारा, जिजनह काया–सा/न कह� थ, लोग परम–�तव को पान क परयासी थ। इनम जो सिसदध, सा/क और अव/� थ व घरबारी आनही हो� थ पर उनक सिशषयो म बह�–स आशरमभरषट गहसथ थ, जो तिक योगी जाति� का रप /ाररण कर चक थ। तिहनद /मC इन आशरमभरषट गहसथो का सममान �ो कर�ा ही न था, उलट उनह ति�र?कार की दधिषट स ही दख�ा था। य आशरमभरषट गहसथ न �ो तिहनद थ - कयोतिक वह तिहनरदओ क तिकसी म� या आचार क कायल न थ - और न ही मसलमान - कयोतिक इनहोन इ?लाम /मC–म� को ?वीकार नही तिकया था। कछ काल क इ?लामी ससगC क बाद य लोग /ीर–/ीर मसलमानी /मC - म� की ओर झकन लग, पर इनक स?कार बह� दिदनो �क बन रह। जब व इसी परतिकरया म स गजर रह थ उसी समय कबीर का आतिवभाCव हआ था।

%मकालीन धारमिमFक आनदोलनयहा दो और पर/ान /ारमिमक आदोलनो की चचाC कर लनी चातिहए। पहली /ारा पणिशचम स आई। यह सफी लोगो की सा/ना थी। मजहबी मसलमान तिहनद /मC क ममCसथान पर चोट नही कर पाए थ। व कवल उसक बाहरी शरीर को तिवकषबध कर सक� थ। पर सफी लोग भार�ीय सा/ना क अतिवरो/ी थ। उनक उदार�ापरणC परम मागC न भार�ीय जन�ा का सिचतत जी�ना आरमभ कर दिदया। तिफर भी य लोग आचार पर/ान भार�ीय समाज को आकषट नही कर सक। उसका सामज?य आचार पर/ान तिहनरद /मC क साथ नही हो सका। यहा पर यह बा� ?मररण रखन की ह तिक न �ो सफी म�वाद और न योगमागJय तिनगCरण परम–�तव की सा/ना ही उस तिवपल वरागय क भार को वहन कर सकी। जो बौदध सघ क अनकररण पर परति�धिषठ� था। दश म पहली बार वरणाCशरम–वयवसथा को एक अननभ�पवC तिवकट परिरसथिसथति� का सामना करना पv रहा था। अब �क वरणाCशरम–वयवसथा का कोई परति�दवनदवी नही था। आचार भरषट वयसिकत समाज स अलग कर दिदए जा� थ और व एक नई जाति� की रचना कर ल� थ। इस परकार सकvो जाति�या और उपजाति�या सषट हो� रहन पर भी वरणाCशरम–वयवसथा एक परकार स चल�ी ही जा रही थी। अब सामन एक जबदC?� परति�दवनदवी समाज था जो तिक परतयक वयसिकत और परतयक जाति� को अगीकार करन को बदधपरिरकर था। उसकी एकमातर श�C यह थी तिक वह उसक तिवशष परकार क /मC–म� को ?वीकार कर ल। समाज स दड पानवाला बतिहषक� वयसिकत अब असहाय नही था। इचछा कर� ही वह एक ससगदिठ� समाज का सहारा पा सक�ा था। ऐस समय म दणिकषरण स वदा� भातिव� भसिकत का आगमन हआ, जो तिक तिवशाल भार�ीय महादवीप क इस छोर स उस छोर �क फल गया। डा0 तिगरयसCन न कहा था-

"तिबजली क चमक क समान अचानक इस सम?� (/ारमिमक म�ो क) अ/कार क ऊपर एक नई बा� दिदखाई दी। यह भसिकत का आदोलन ह।"

इसन दो रपो म आतम–परकाश तिकया। पौराणिरणक अव�ारो को कनदर करक सगरण उपासना क रप म और तिनगCरण परबरहम जो योतिगयो का धयय था, उस कनदर करक परम–भसिकत की सा/ना क रप म। पहली सा/ना न तिहनद जाति� की बाहयाचार की शषक�ा को आ�रिरक परम स सीचकर रसमय बनाया और दसरी सा/ना न बाहयाचार की

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शषक�ा को ही दर करन का परयतन तिकया। एक न समझौ� का रा?�ा सिलया, दसरी न तिवदरोह का; एक न शा?तर का सहारा सिलया, दसरी न अनभव का; एक न शरदधा को पथ–परदशCक माना, दसरी न जञान को; एक न सगरण भगवान को अपनाया, दसरी न तिनगCरण भगवन को। पर परम दोनो ही का मागC था; सखा जञान दोनो को अतिपरय था; कवल बाहयाचार दोनो को समम� नही थ; आ�रिरक परम तिनवदन दोनो को अभीषट था; अह�क भसिकत दोनो की कामय थी; तिबना श�C क भगवान क परति� आतम–समपCरण दोनो क तिपरय सा/न थ। इन बा�ो म दोनो ही एक थ। सबस बvा अ�र इनक लीला समबनधी तिवचारो म था। दोनो ही भगवान की परम लीला म तिवशवास कर� थ। दोनो का ही अनभव था तिक लीला क सिलए इस जागति�क परपच को समहाल हए ह। पर पर/ान भय यह था तिक सगरण भाव स भजन करन वाल भकत अपन आप म रम हए भगवान को ही परम कामय मान� थ।

जीवन परिरचयकबीरदास क जनम क सब/ म अनक हिकवदनतिन�या ह। कछ लोगो क अनसार व गर रामाननद ?वामी क आशीवाCद स काशी की एक तिव/वा बराहमरणी क गभC स उतपनन हए थ। बराहमरणी उस नवजा� सिशश को लहर�ारा �ाल क पास फ क आयी। उस नीर नाम का जलाहा अपन घर ल आया। उनकी मा�ा का नाम 'नीमा' था। उसी न उसका पालन-पोषरण तिकया। बाद म यही बालक कबीर कहलाया। एक जगह कबीरदास न कहा ह :-

जाति� जलाहा नाम कबीराबतिन बतिन तिफरो उदासी।

कबीर पसतरिनथयो की मानय�ा ह तिक कबीर का जनम काशी म लहर�ारा �ालाब म उतपनन कमल क मनोहर पषप क ऊपर बालक क रप म हआ। कछ लोगो का कहना ह तिक व जनम स मसलमान थ और यवावसथा म ?वामी रामानद क परभाव स उनह तिहनद /मC की बा� मालम हई। एक दिदन, एक पहर रा� रह� ही कबीर पचगगा घाट की सीदिढयो पर तिगर पv। रामाननद जी गगा ?नान करन क सिलय सीदिढया उ�र रह थ तिक �भी उनका पर कबीर क शरीर पर पv गया। उनक मख स �तकाल `राम-राम' शबद तिनकल पvा। उसी राम को कबीर न दीकषा-मनतर मान सिलया और रामाननद जी को अपना गर ?वीकार कर सिलया। कबीर क ही शबदो म-

हम कासी म परकट भय ह, रामाननद च�ाय।

महातमा कबीर क जनम क तिवषय म णिभनन- णिभनन म� ह। कबीरदास न ?वय को काशी का जलाहा कहा ह। कबीरपथ क अनसार उनका तिनवाससथान काशी था। बाद म कबीरदास काशी छोvकर मगहर चल गए थ। ऐसा उनहोन ?वय कहा ह :-

सकल जनम सिशवपरी गवाया।मर�ी बार मगहर उदिठ आया।।ऐसा कहा जा�ा ह तिक कबीरदास का समपरणC जीवन काशी म ही बी�ा, तिकन� वह अन� समय मगहर चल गए थ। अब कह राम कवन गति� मोरी। �जील बनारस मति� भई मोरी।।कबीर का तिववाह कनया "लोई' क साथ हआ था। जनशरति� क अनसार उनह एक पतर कमाल �था पतरी कमाली थी। कबीर पढ-सिलख नही थ- मसिस कागद छवो नही, कलम गही नहिह हाथ। कबीर का पतर कमाल उनक म� का तिवरो/ी था।

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बvा बस कबीर का, उपजा प� कमाल। हरिर का सिसमरन छोतिड क, घर ल आया माल।

कबीर धम�गरकबीर /मCगर थ। इससिलए उनकी वाणिरणयो का आधयासतरितमक रस ही आ?वादय होना चातिहए, परन� तिवदवानो न नाना रप म उन वाणिरणयो का अधययन और उपयोग तिकया ह। कावय–रप म उस आ?वादन करन की �ो परथा ही चल पvी ह। समाज–स/ारक क रप म, सवC–/मCसमनवयकारी क रप म, तिहनद–मसथि?लम–ऐकय–तिव/ायक क रप म भी उनकी चचाC कम नही हई ह। यो �ो 'हरिर अन� हरिरकथा अन�ा, तिवतिव/ भाति� गावहिह शरति�–स�ा' क अनसार कबीर कसिथ� हरिर की कथा का तिवतिव/ रप म उपयोग होना ?वाभातिवक ही ह, पर कभी–कभी उतसाहपरायरण तिवदवान गल�ी स कबीर को इनही रपो म स तिकसी एक का परति�तिनधि/ समझकर ऐसी–ऐसी बा� करन लग� ह जो तिक असग� कही जा सक�ी ह।

रचनाययह ऐसा ससार ह, जसा सबल फल ।दिदन दस क वयौहार को, झठ रग न भसिल ॥ - कबीर (कबीर गरथावली, प. 21)

काजल करी कोठरी, काजल ही का कोट ।बसिलहारी �ा दास की, ज रह राम की ओट ॥ - कबीर (कबीर गरथावली, प. 50)

हम दख� जग जा� ह, जब दख� हम जाह ।ऐसा कोई ना धिमल, पकतिv छvाव बाह ॥ - कबीर (कबीर गरथावली, प. 67)

कबीरदास न तिहनद-मसलमान का भद धिमटा कर तिहनद-भकतो �था मसलमान फकीरो का सतसग तिकया और दोनो की अचछी बा�ो को हदयागम कर सिलया। स� कबीर न ?वय गरथ नही सिलख, मह स बोल और उनक सिशषयो न उस सिलख सिलया। कबीरदास अनपढ थ। कबीरदास क सम?� तिवचारो म राम-नाम की मतिहमा परति�धवतिन� हो�ी ह। व एक ही ईशवर को मान� थ और कमCकाणड क घोर तिवरो/ी थ। अव�ार, मरततितत, रोPा, ईद, मसथि?Pद, मदिदर आदिद को व नही मान� थ। कबीर क नाम स धिमल गरथो की सखया णिभनन-णिभनन लखो क अनसार णिभनन-णिभनन ह। कबीर की वारणी का सगरह `बीजक' क नाम स परसिसदध ह। इसक �ीन भाग ह-

1. रमनी 2. सबद

3. साखी

भाषाबीजक पजाबी, राजसथानी, खvी बोली, अव/ी, परबी, बरजभाषा आदिद कई भाषाओ की खिखचvी ह। कबीरदास न बोलचाल की भाषा का ही परयोग तिकया ह। भाषा पर कबीर का जबरद?� अधि/कार था। व वारणी क तिडकटटर थ। जिजस बा� को उनहोन जिजस रप म परकट करना चाहा ह, उस उसी रप म कहलवा सिलया–बन गया ह �ो सी/–सी/, नही दररा दकर। भाषा कछ कबीर क सामन लाचार–सी नPर आ�ी ह। उसम मानो ऐसी तिहमम� ही नही ह तिक इस लापरवा फककv तिक तिकसी फरमाइश को नाही कर सक। और अकह कहानी को रप दकर

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मनोगराही बना दन की �ो जसी �ाक� कबीर की भाषा म ह वसी बह� ही कम लखको म पाई जा�ी ह। असीम–अन� बरहमाननद म आतमा का साकषीभ� होकर धिमलना कछ वारणी क अगोचर, पकv म न आ सकन वाली ही बा� ह। पर 'बहददी मदान म रहा कबीरा' म न कवल उस गमभीर तिनगढ �ततव को मरति�मान कर दिदया गया ह, बलकिलक अपनी फककvाना परकति� की महर भी मार दी गई ह। वारणी क ऐस बादशाह को सातिहतय–रसिसक कावयानद का आ?वादन करान वाला समझ �ो उनह दोष नही दिदया जा सक�ा। तिफर वयगय करन म और चटकी लन म भी कबीर अपना परति�दवनदवी नही जान�। पतिड� और काPी, अव/ और जोतिगया, मलला और मौलवी–सभी उनक वयगय स ति�लधिमला जा� थ। अतयन� सी/ी भाषा म व ऐसी चोट कर� ह तिक खानवाला कवल /ल झाv क चल दन क सिसवा और कोई रा?�ा नही पा�ा। इस परकार यदयतिप कबीर न कही कावय सिलखन की परति�जञा नही की �थातिप उनकी आधयासतरितमक रस की गगरी स छलक हए रस स कावय की कटोरी म भी कम रस इकटठा नही हआ ह। तिहनदी सातिहतय क हPार वष� क इति�हास म कबीर जसा वयसिकततव लकर कोई लखक उतपनन नही हआ। मतिहमा म यह वयसिकततव कवल एक ही परति�दवनदवी जान�ा ह, �लसीदास। परन� �लसीदास और कबीर क वयसिकततव म बvा अन�र था। यदयतिप दोनो ही भकत थ, परन� दोनो ?वभाव, स?कार और दधिषटकोरण म एकदम णिभनन थ। म?�ी, फककvाना ?वभाव और सबकछ को झाv–फटकार कर चल दन वाल �P न कबीर को तिहनदी–सातिहतय का अतिदव�ीय वयसिकत बना दिदया ह। उनकी वाणिरणयो म सबकछ को छाकर उनका सवCजयी वयसिकततव तिवराज�ा रह�ा ह। उसी न कबीर की वाणिरणयो म अननय–असा/ाररण जीवन रस भर दिदया ह। कबीर की वारणी का अनकररण नही हो सक�ा। अनकररण करन की सभी चषटाए वयथC सिसदध हई ह। इसी वयसिकततव क काररण कबीर की उसिकतया शरो�ा को बलपवCक आकषट कर�ी ह। इसी वयसिकततव क आकषCरण को सहरदय समालोचक समभाल नही पा�ा और रीझकर कबीर को 'कतिव' कहन म स�ोष पा�ा ह। ऐस आकषCक वकता को 'कतिव' न कहा जाए �ो और कया कहा जाए? परन� यह भल नही जाना चातिहए तिक यह कतिवरप घलए म धिमली हई व?� ह। कबीर न कतिव�ा सिलखन की परति�जञा करक अपनी बा� नही कही थी। उनकी छदोयोजना, उसिच�–वसिचतरय और अलकार तिव/ान परणC–रप स ?वाभातिवक और अयतनसाधि/� ह। कावयग� रदिढयो क न �ो व जानकार थ और न ही कायल। अपन अननय–सा/ाररण वयसिकततव क काररण ही व सहरदय को आकषट कर� ह। उनम एक और बvा भारी गरण ह, जो उनह अनयानय स�ो स तिवशष बना द�ा ह। यदयतिप कबीरदास एक ऐस तिवराट और आनदमय लोक की बा� कर� ह जो सा/ाररण मनषयो की पहच क बह� ऊपर ह और व अपन को उस दश का तिनवासी ब�ा� ह जहा पर बारह महीन बस� रह�ा ह, तिनरन�र अम� की झvी लगी रह�ी ह। तिफर भी जसा की एवसिलन अडरतिहल न कहा ह, व उस आतमतिव?मति�कारी परम उललासमय साकषातकार क समय भी दनदिदन–वयवहार की रदतिनया क साथ /र�ी पर जम रह� ह; उनक मतिहला–समनतिनव� और आवगमय तिवचार, बराबर /ीर और सजीव बदध �था सहज भाव दवारा तिनयतितर� हो� रह� ह, जो सचच मरमी कतिवयो म ही धिमल� ह। उनकी सवाCधि/क लकषय होन वाली तिवशष�ाए ह—

सादगी और सहजभाव पर तिनरन�र Pोर द� रहना, बाहय /माCचारो की तिनमCम आलोचना, और

सब परकार क तिवरागभाव और ह� परकति�ग� अनसधि/तसा क दवारा सहज ही गल� दिदखन वाली बा�ो को रदब~धय और महान बना दन तिक चषटा क परति� वर–भाव। इसीसिलए व सा/ाररण मनषय क सिलए रदब~धय नही हो जा� और अपन असा/ाररण भावो को गराहय बनान म सदा सफल दिदखाई द� ह। कबीरदास क इस गरण न सकvो वषC स उनह सा/ाररण जन�ा का न�ा और साथी बना दिदया ह। व कवल शरदधा और भसिकत क पातर ही नही, परम और तिवशवास क आसपद भी बन गए ह। सच पछा जाए �ो जन�ा कबीरदास पर शरदधा करन की अपकषा परम अधि/क कर�ी ह। इसीसिलए उनक स�–रप क साथ ही उनका कतिव–रप भी बराबर चल�ा रह�ा ह। व कवल न�ा और गर ही नही ह, साथी और धिमतर भी ह।

कबीर न जिजन �ततवो को अपनी रचना स धवतिन� करना चाहा ह, उसक सिलए कबीर की भाषा स जयादा साफ और Pोरदार भाषा की समभावना भी नही ह और Pरर� भी नही ह। परन� कालकरम स वह भाषा आज क सिशणिकष� वयसिकत को रदरह जान पv�ी ह। कबीर न शा?तरीय भाषा का अधययन नही तिकया था, पर तिफर भी उनकी भाषा म

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परमपरा स चली आई तिवशष�ाए व�Cमान ह। इसका ऐति�हासिसक काररण ह। इस ऐति�हासिसक काररण को जान तिबना उस भाषा को ठीक–ठीक समझना समभव नही ह। इस प?�क म उसी ऐति�हासिसक परमपरा क अधययन का परयास ह। यह परयास परणC रप स सफल ही हआ होगा, ऐसा हम कोई दावा नही कर�, परन� वह गरहरणीय नही ह, इस बा� म लखक को कोई सनदह नही ह।

जीवन दश�नकबीर परमातमा को धिमतर, मा�ा, तिप�ा और पति� क रप म दख� ह। व कह� ह- हरिरमोर विपउ, म राम की बहरिरया । �ो कभी कह� ह- हरिर जननी म बालक +ोरा। उस समय हिहरद जन�ा पर मसथि?लम आ�क का कहर छाया हआ था। कबीर न अपन पथ को इस ढग स सतिनयोजिज� तिकया जिजसस मसथि?लम म� की ओर झकी हई जन�ा सहज ही इनकी अनयायी हो गयी। उनहोन अपनी भाषा सरल और सबो/ रखी �ातिक वह आम आदमी �क पहच सक। इसस दोनो समपरदायो क परसपर धिमलन म सतिव/ा हई। इनक पथ मसलमान-स?कति� और गोभकषरण क तिवरो/ी थ। कबीर को शाति�मय जीवन तिपरय था और व अहिहसा, सतय, सदाचार आदिद गरणो क परशसक थ। अपनी सरल�ा, सा/ ?वभाव �था स� परवणितत क काररण आज तिवदशो म भी उनका आदर हो�ा ह।

%माज–%धारककबीर न ऐसी बह� सी बा� कही ह, जिजनस (अगर उपयोग तिकया जाए �ो) समाज–स/ार म सहाय�ा धिमल सक�ी ह, पर इससिलए उनको समाज–स/ारक समझना गल�ी ह। व?��ः व वयसिकतग� सा/ना क परचारक थ। समधिषट–वणितत उनक सिचतत का ?वाभातिवक /मC नही था। व वयधिषटवादी थ। सवC–/मC समनसय क सिलए जिजस मजब� आ/ार की Pरर� हो�ी ह वह व?� कबीर क पदो म सवCतर पाई जा�ी ह, वह बा� ह भगवान क परति� अह�क परम और मनषयमातर को उसक तिनरतिवसिशषट रप म समान समझना। परन� आजकल सवC–/मC समनवय स जिजस परकार का भाव सिलया जा�ा ह, वह कबीर म एकदम नही था। सभी /म� क बाहय आचारो और अन�र स?कारो म कछ न कछ तिवशष दखना और सब आचारो, स?कारो क परति� सममान की दधिषट उतपनन करना ही यह भाव ह। कबीर इनक कठोर तिवरो/ी थ। उनह अथCहीन आचार पसनद नही थ, चाह व बv स बv आचायC या पगमबर क ही परवरततितत� हो या उचच स उचच समझी जान वाली /मC प?�क स उपदिदषट हो। बाहयाचार की तिनरथCक और स?कारो की तिवचारहीन गलामी कबीर को पसनद नही थी। व इनस मकत मनषय�ा को ही परमभसिकत का पातर मान� थ। /मCग� तिवशष�ाओ क परति� सहनशील�ा और सभरम का भाव भी उनक पदो म नही धिमल�ा। परन� व मनषयमातर को समान मयाCदा का अधि/कारी मान� थ। जाति�ग�, कलग�, आचारग� शरषठ�ा का उनकी दधिषट म कोई मलय नही था। समपरदाय–परति�षठा क भी व तिवरो/ी जान पv� ह। परन� तिफर भी तिवरो/ाभास यह ह तिक उनह हPारो की सखया म लोग समपरदाय तिवशष क परवततCक मानन म ही गौरव अनभव कर� ह।

विहनद–मशलिसलम एक+ाजो लोग तिहनद–मसथि?लम एक�ा क वर� म दीणिकष� ह, व भी कबीरदास को अपना मागCदशCक मान� ह। यह उसिच� भी ह। राम–रहीम और कशव–करीम की जो एक�ा ?वय सिसदध ह, उस भी समपरदाय बजिदध स तिवक� मलकि?�षक वाल लोग नही समझ पा�। कबीरदास स अधि/क Pोरदार शबदो म एक�ा का परति�पादन तिकसी न भी नही तिकया ह। पर जो लोग उतसाहधि/कयवश कबीर को कवल तिहनद–मसथि?लम एक�ा का पगमबर मान ल� ह व उनक मल ?वरप को भलकर उसक एक दशमातर की बा� करन लग� ह। ऐस लोग यदिद यह दखकर कषबध हो तिक कबीरदास न दोनो /म� की ऊची स?कति� या 'दोनो /म� क उचच�र भावो म सामज?य सथातिप� करन की कही पर कोसिशश नही की और सिसफC यही नही, बलकिलक उन सभी /मCग� तिवशष�ाओ की खिखलली ही उvाई ह जिजस मजहबी न�ा बह� शरषठ /माCचार कहकर वयाखया कर� ह, ' �ो कछ आशचयC की बा� नही ह, कयोतिक कबीरदास

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इस तिबनरद स /ारमिमक दवनदवो को दख� ही न थ। उनहोन रोग का ठीक तिनदान तिकया या नही, इसम दो म� हो सक� ह, पर औष/ तिनवाCचन म और अपथय वजCन क तिनद�श म उनहोन तिबलकल गल�ी नही की। यह औष/ ह भगवतिदवशवास। दोनो /मC समान रप स भगवान म तिवशवास कर� ह और यदिद सचमच ही आदमी /ारमिमक ह �ो इस अमोघ औष/ का परभाव उस पर पvगा ही। अपथय ह बाहय आचारो को /मC समझना, वयथC कलाणिभमान, अकाररण ऊच–नीच का भाव। कबीरदास की इन दोनो वयवसथाओ म गल�ी नही ह और अगर तिकसी दिदन तिहनरदओ और मसलमानो म एक�ा हई �ो इसी रा?� हो सक�ी ह। इसम कवल बाहयचारवजCन की नकारातमक परतिकरया नही ह, भगवतिदवशवस का अतिवशलषय सीमट भी कायC करगा। इसी अथC म कबीरदास तिहनद और मसलमानो क ऐकय–तिव/ायक थ। परन� जसा की आरमभ म ही कहा गया ह, कबीरदास को कवल इनही रपो म दखना सही नही ह। व मल�ः भकत थ। भगवान पर उनका अतिवचल अखड तिवशवास था। व कभी स/ार करन क फर म नही पv। शायद व अनभव कर चक थ तिक जो ?वय स/रना ही नही चाह�ा, उस जबरद?�ी स/ारन का वर� वयथC का परयास ही ह। व अपन उपदश सा/ भाई को द� थ या तिफर ?वय अपन आपको ही समबोधि/� करक कह द� थ। यदिद उनकी बा� कोई सनन वाला न धिमल �ो व तिनणिशच� होकर ?वय को ही पकार कर कह उठ�ः 'अपनी राह � चल कबीरा !' अपनी राह अथाC� /मC, समपरदाय, जाति�, कल और शा?तर की रदिढयो स जो बदध नही ह, जो अपन अनभव क दवारा परतयकषीक� ह।

कबीरदा% का भकत रपकबीरदास का यह भकत रप ही उनका वा?�तिवक रप ह। इसी कनदर क इदC–तिगदC उनक अनय रप ?वयमव परकासिश� हो उठ ह। मलकिशकल यह ह तिक इस कनदरीय व?� का परकाश भाषा की पहच स बाहर ह। भसिकत कहकर नही समझाई जा सक�ी, वह अनभव करक आ?वादन की जा सक�ी ह। कबीरदास न इस बा� को हPार �रीक स कहा ह। इस भसिकत या भगवान क परति� अह�क अनराग की बा� कह� समय उनह ऐसी बह� सी बा� कहनी पvी ह जो भसिकत नही ह। पर भसिकत क अनभव करन म सहायक ह। मल व?� चतिक वारणी क अगोचर ह, इससिलए कवल वारणी का अधययन करन वाल तिवदयाथJ को अगर भरम म पv जाना पvा हो �ो आशचयC की कोई बा� नही ह। वारणी दवारा उनहोन उस तिनगढ अनभवकगमय �ततव की और इशारा तिकया ह, उस धवतिन� तिकया गया ह। ऐसा करन क सिलए उनह भाषा क दवारा रप खvा करना पvा ह और अरप को रप क दवारा अणिभवयकत करन की सा/ना करनी पvी ह। कावयशा?तर क आचायC इस ही कतिव की सबस बvी शसिकत ब�ा� ह। रप क दवारा अरप की वयजना, कथन क जरिरए अकथय का धवनन, कावय–शसिकत का चरम तिनद�शन नही �ो कया ह? तिफर भी धवतिन� व?� ही पर/ान ह; धवतिन� करन की शली और सामगरी नही। इस परकार कावयतव उनक पदो म फोकट का माल ह—बाइपरोडकट ह; वह कोल�ार और सीर की भाति� और चीजो को बना�–बना� अपन–आप बन गया ह।

रपा+ी+ वयजना और ख@न म@नपरम भसिकत को कबीरदास की वाणिरणयो की कनदरीय व?� न मानन का ही यह परिररणाम हआ ह तिक अचछ–अचछ तिवदवान उनह घमडी, अटपटी वारणी का बोलनहारा, एकशवरवाद और अदव�वाद क बारीक भद को न जानन वाला, अहकारी, अगरण–सगरण–तिववक–अनणिभजञ आदिद कहकर अपन को उनस अधि/क योगय मानकर स�ोष पा� रह ह। यह मानी हई बा� ह तिक जो बा� लोक म अहकार कहला�ी ह वह भगवतपरम क कषतर म, ?वा/ीनभ�Cका नाधियका क गवC की भाति� अपन और तिपरय क परति� अखड तिवशवास की परिरचायक ह; जो बा� लोक म दबबपन और कायर�ा कहला�ी ह, वही भगवतपरम क कषतर म भगवान क परति� भकत का अननय परायरण आम�ापCरण हो�ी ह और जो बा� लोक म परसपर तिवरदध जच�ी ह भगवान क तिवषय म उनका तिवरो/ दर हो जा�ा ह। लोक म ऐस जीव की कलपना नही की जा सक�ी जो करणCहीन होकर भी सब कछ सन�ा हो, चकषरतिह� बना रहकर भी सब कछ दख सक�ा हो, वारणीहीन होकर भी वकता हो सक�ा हो, जो छोट-स-छोटा भी हो और बv-स-बvा भी, जो एक भी हो और अनक भी, जो बाहर भी हो भी�र भी, जिजस सबका मासिलक भी कहा जा सक और सबका

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सवक भी, जिजस सबक ऊपर भी कहा जा सक और सवCमय सवक भी; जिजसम सम?� गरणो का आरोप भी तिकया जा सक और गरणहीन�ा का भी, और तिफर भी जो न इजिनदरय का तिवषय हो, न मन का, न बजिदध का। परन� भगवान क सिलए सब तिवशषरण सब दशो क सा/क सवC–भाव स द� रह ह। जो भकत नही ह, जो अनभव क दवारा साकषातकार तिकए हए सतय म तिवशवास नही रख�, व कवल �कC म उलझकर रह जा� ह; पर जो भकत ह, व भजा उठाकर घोषरणा कर� ह, 'अगरणहिह–सगरणहिह नहिह कछ भदा' (�लसीदास)। परन� �कC परायरण वयसिकत इस कथन क अटपटपन को वद�ो–वयाघा� कहकर स�ोष कर ल�ा ह। यदिद भसिकत को कबीरदास की वाणिरणयो की कनदरीय व?� मान सिलया जा�ा �ो तिन?सनदह ?वीकार कर सिलया जा�ा तिक भकत क सिलए व सारी बा� बम�लब ह,जिजनह तिक तिवदवान लोग बारीक भद कहकर आननद पाया कर� ह। भगवान क अतिनवचCनीय ?वरप को भकत न जसा कछ दखा ह वह वारणी क परकाशन कषतर क बाहर ह, इसीसिलए वारणी नाना परकार स परसपर तिवरो/ी और अतिवरो/ी शबदो क दवारा उस परम परममय का रप तिनद�श करन की चषटा कर�ी ह। भकत उसकी असमथC�ा पर नही जा�ा, वह उसकी रपा�ी� वयजना को ही दख�ा ह।

भसिकत �तव की वयाखया कर�–कर� उनह उन बाहयाचार क जजालो को साफ करन की Pरर� महसस हई ह जो अपनी जv परकति� क काररण तिवशदध च�न–�ततव की उपललकिबध म बा/क ह ! यह बा� ही समाज स/ार और सामपरदाय ऐकय की तिव/ातरी बन गई ह। पर यहा भी यह कह रखना ठीक ह तिक वह भी फोकट का माल या बाईपरोडकट ही ह।

कबीरदा% की मविहमाजो लोग इन बा�ो स ही कबीरदास की मतिहमा का तिवचार कर� ह व कवल स�ह पर ही चककर काट� ह। कबीरदास एक जबरद?� करानतिन�कारी परष थ। उनक कथन की जयोति� जो इ�न कषतरो को उदभासिस� कर सकी ह सो मामली शसिकतमतता की परिरचाधियका नही ह। परन� यह समझना तिक उदभासिस� पदाथC ही जयोति� ह, बvी भारी गल�ी ह। उदभासिस� पदाथC जयोति� की ओर इशारा कर� ह और जयोति� तिक/र और कहा पर ह, इस बा� का तिनद�श द� ह। ऊपर–ऊपर, स�ह पर चककर काटन वाल समदर भल ही पार कर जाए, पर उसकी गहराई की थाह नही पा सक�। इन पसिकतयो का लखक अपन को स�ह का चककर काटन वालो स तिवशष नही समझ�ा। उसका दढ तिवशवास ह तिक कबीरदास क पदो म जो महान परकाशपज ह, वह बौजिदधक आलोचना का तिवषय नही ह। वह मयजिPयम की चीP नही ह, बलकिलक जीतिव� परारणवान व?� ह। कबीर पर प?�क बह� सिलखी गई ह, और भी सिलखी जाएगी, पर ऐस लोग कम ही ह जो उस सा/ना तिक गहराई �क जान की चषटा कर� हो। राम की वानरी सना समदर Pरर लाघ गई थी, पर उसकी गहराई का प�ा �ो मदर पवC� को ही था, जिजसका तिवराट शरीर आपा�ाल–तिनमगन हो गया थाः

अलकिबधलCधिघ� एव वानरभटः तिकनतव?य गभीर�ामआपा�ाल – तिनमगन – पीवर�नजाCनाति� मदराचलः।

सो, कबीरदास की सचची मतिहमा �ो कोई गहर म गो�ा लगान वाला ही समझ सक�ा ह।

कबीरदास न ?वय अरप को रप दन की चषटा की थी। परन� वह ?वय कह गए ह तिक य सार परयास �भी �क थ, जब �क की परम परम क आ/ार तिपरय�म का धिमलन नही हआ था। साखी, पद, शबद और दोहर उसी परानतिप� क सा/न ह, मागC ह। ग�वय �क पहच जान पर मागC का तिहसाब करना बकार हो�ा ह। तिफर इन साखी, शबद और दोहरो की वयाखया क परयास को कया कहा जाए? य �ो सा/न को समझान क सा/न—सा/न क भी सा/न ह।

कबीरदा% की भाषा और शली

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परसग करम स इसम कबीरदास की भाषा और शली समझान क कायC स कभी–कभी आग बढन का साहस तिकया गया ह। जो वारणी क अगोचर ह, उस वारणी क दवारा अणिभवयकत करन की चषटा की गई ह; जो मन और बजिदध की पहच स पर ह; उस बजिदध क बल पर समझन की कोसिशश की गई ह; जो दश और काल की सीमा क पर ह, उस दो–चार–दस पषठो म बा/ डालन की साहसिसक�ा दिदखाई गई ह। कह� ह, सम?� परारण और महाभार�ीय सतिह�ा सिलखन क बाद वयासदव म अतयन� अन�ाप क साथ कहा था तिक 'ह अधि/ल तिवशव क गरदव, आपका कोई रप नही ह, तिफर भी मन धयान क दवारा इन गरनथो म रप की कलपना की ह; आप अतिनवCचनीय ह, वयाखया करक आपक ?वरप को समझा सकना समभव नही ह, तिफर भी मन ?�ति� क दवारा वयाखया करन की कोसिशश की ह। वारणी क दवारा परकाश करन का परयास तिकया ह। �म सम?�–भवन–वयाप� हो, इस बरहमाणड क परतयक अरण–परमारण म �म णिभन हए हो, �थातिप �ीथC–यातरादिद तिव/ान स उस वयातिपतव को खतिड� तिकया ह। भला जो सवCतर परिरवयाप� ह, उसक सिलए �ीथC तिवशष म जान की कया वयवसथा? सो ह जगदीश, मरी बजिदधग� तिवकल�ा क य �ीन अपरा/–अरप की रपकलपना, अतिनवCचनीय का ?�ति�तिनवCचन, वयापी का सथान–तिवशष म तिनद�श—�म कषमा करो।' कया वयास जी क महान आदशC का पदानसररण करक इस लखक को भी यही कहन की Pरर� ह?—

रप रपतिववरजिज�?य भव�ो धयानन यतकसथिलप�म,?�तया तिनवCचनीय�ाऽखिखलगरोदरी क�ायनमया।वयातिपतव च तिनराक� भगव�ो यततीथCयातरादिदना,कषन�वय जगदशी, �द तिवकल�ा–दोषतरय मतक�म।।

वदधावसथा म यश और कीरततितत न उनह बह� कषट दिदया। उसी हाल� म उनहोन बनारस छोvा और आतमतिनरीकषरण �था आतमपरीकषरण करन क सिलय दश क तिवणिभनन भागो की यातराए की। इसी करम म व कासिलजर जिPल क तिपथौराबाद शहर म पहच। वहा रामकषरण का छोटा सा मजिनदर था। वहा क स� भगवान गो?वामी जिजजञास सा/क थ हिक� उनक �क� का अभी �क परी �रह समा/ान नही हआ था। स� कबीर स उनका तिवचार-तिवतिनमय हआ। कबीर की एक साखी न उन क मन पर गहरा असर तिकया-

बन � भागा तिबहर पvा, करहा अपनी बान।करहा बदन कासो कह, को करहा को जान।।मरततितत पजा को लकषय कर� हए कबीरदास न कहा ह- पाहन पज हरिर धिमल, �ो म पजौ पहार।या � �ो चाकी भली, जास पीसी खाय ससार।।119 वषC की अवसथा म उनहोन मगहर म दह तयाग तिकया।

कभनदा% / Kumbhandas

अनकरम[छपा]

1 कभनदास / Kumbhandas 2 परिरचय

3 म/र - भाव की भसिकत

4 रचनाय

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5 टीका दिटपपरणी और सदभC

6 समबधि/� सिलक

कभनदास अषटछाप क एक कतिव थ और परमानददास जी क ही समकालीन थ। य पर तिवरकत और /न, मान, मयाCदा की इचछा स कोसो दर थ। य मल�: तिकसान थ। अषटछाप क कतिवयो म सबस पहल कमभनदास न महापरभ वललभाचायC स दीकषा ली थी। पधिषटमागC म दीणिकष� होन क बाद शरीनाथजी क मदिदर म की�Cन तिकया कर� थ। य तिकसी स दान नही ल� थ। इनह म/रभाव की भसिकत तिपरय थी और इनक रच हए लगभग 500 पद उपलबध ह।

परिरचयअनमान�: कमभनदास का जनम सन 1468 ई॰ म, समपरदाय परवश सन 1492 ई॰ म और गोलोकवास सन 1582 ई॰ क लगभग हआ था। पधिषटमागC म दीणिकष� �था शरीनाथ जी क मजिनदर म की�Cनकार क पद पर तिनयकत होन पर भी उनहोन अपनी वणितत नही छोvी और अन� �क तिन/Cनावसथा म अपन परिरवार का भररण-पोषरण कर� रह। परिरवार म इनकी पतनी क अति�रिरकत सा� पतर, सा� पतर-व/ए और एक तिव/वा भ�ीजी थी। अतयन� तिन/Cन हो� हए भी य तिकसी का दान ?वीकार नही कर� थ। राजा मानसिसह न इनह एक बार सोन की आरसी और एक हPार मोहरो की थली भट करनी चाही थी परन� कमभनदास न उस अ?वीकार कर दिदया था। इनहोन राजा मानसिसह दवारा दी गयी जमनाव�ो गाव की माफी की भट भी ?वीकार नही की थी और उनस कह दिदया था तिक यदिद आप दान करना चाह� ह �ो तिकसी बराहमरण को दीजिजए। अपनी ख�ी क अनन, करील क फल और टटी �था झाv क बरो स ही परणC सन�षट रहकर य शरीनाथजी की सवा म लीन रह� थ। य शरीनाथजी का तिवयोग एक कषरण क सिलए भी सहन नही कर पा� थ।

परसिसदध ह तिक एक बार अकबर न इनह फ�हपर सीकरी बलाया था। समराट की भजी हई सवारी पर न जाकर य पदल ही गय और जब समराट न इनका कछ गायन सनन की इचछा परकट की �ो इनहोन गाया'-

भकतन को कहा सीकरी सो काम।

आव� जा� पनतिहया टटी तिबसरिर गयो हरिर नाम।

जाको मख दख रदख लाग �ाको करन करी परनाम।

कमभनदास लाला तिगरिर/र तिबन यह सब झठो /ाम।

अकबर को तिवशवास हो गया तिक कमभनदास अपन इषटदव को छोvकर अनय तिकसी का यशोगान नही कर सक� तिफर भी उनहोन कमभनदास स अनरो/ तिकया तिक व कोई भट ?वीकार कर, परन� कभन दास न यह माग की तिक आज क बाद मझ तिफर कभी न बलाया जाय। कभनदास क सा� पतर थ। परन� गो?वामी तिवटठलनाथ क पछन पर उनहोन कहा था तिक वा?�व म उनक डढ ही पतर ह कयोतिक पाच लोकासकत ह, एक च�भCजदास भकत ह और आ/ कषरणदास ह, कयोतिक व भी गोव/Cन नाथ जी की गायो की सवा कर� ह। कषरणदास को जब गाय चरा� हए सिसह न मार डाला था �ो कमभनदास यह समाचार सनकर मरचछिचछ� हो गय थ, परन� इस मचछाC का काररण पतर–शोक नही था, बलकिलक यह आशका थी तिक व स�क क दिदनो म शरीनाथजी क दशCनो स वसिच� हो जायग। भकत की भावना का आदर करक गो?वामी जी न स�क का तिवचार छोvकर कमभनदास को तिनतय-दशCन की आजञा द दी

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थी। शरीनाथजी का तिवयोग सहन न कर सकन क काररण ही कमभनदास गो?वामी तिवटठलनाथ क साथ दवारका नही गय थ और रा?� स लौट आय थ। गो?वामी जी क परति� भी कमभनदास की अगा/ भसिकत थी। एक बार गो?वामीजी क जनमोतसव क सिलए इनहोन अपन पv और पतिvया बचकर पाच रपय चनद म दिदय थ। इनका भाव था तिक अपना शरीर, परारण, घर, ?तरी, पतर बचकर भी यदिद गर की सवा की जाय, �ब कही वषरणव सिसदध हो सक�ा ह।

मधर-भाव की भसिकतकमभनदास को तिनकजलीला का रस अथाC� म/र-भाव की भसिकत तिपरय थी और इनहोन महापरभ स इसी भसिकत का वरदान मागा था। अन� समय म इनका मन म/र–भाव म ही लीन था, कयोतिक इनहोन गो?वामीजी क पछन पर इसी भाव का एक पद गाया था। पन: पछन पर तिक �महारा अन�:कररण कहा ह, कमभनदास न गाया था-

रसिसतिकतिन रस म रह� गvी।

कनक बसिल वषभान नजिनदनी ?याम �माल चढी।।

तिवहर� शरी गोव/Cन /र रति� रस कसिल बढी ।।

परसिसदध ह तिक कमभनदास न शरीर छोvकर शरीकषरण की तिनकज-लीला म परवश तिकया था।

रचनाय कमभनदास क पदो की कल सखया जो 'राग-कलपदरम' 'राग-रतनाकर' �था समपरदाय क की�Cन-सगरहो म

धिमल� ह, 500 क लगभग ह। इन पदो की सखया अधि/क ह। जनमाषटमी , रा/ा की ब/ाई, पालना, /न�रस, गोवदधCनपजा, इनहदरमानभग, सकरानतिन�, मलहार, रथयातरा,

हिहडोला, पतिवतरा, राखी वसन�, /मार आदिद क पद इसी परकार क ह।

कषरणलीला स समबदध परसगो म कमभनदास न गोचार, छाप, भोज, बीरी, राजभोग, शयन आदिद क पद रच ह जो तिनतयसवा स समबदध ह।

इनक अति�रिरकत परभरप वरणCन, ?वाधिमनी रप वरणCन, दान, मान, आससिकत, सरति�, सर�ान�, खसथिणड�ा, तिवरह, मरली रसथिकमरणी हररण आदिद तिवषयो स समबदध शरगार क पद भी ह।

कमभनदास न गरभसिकत और गर क परिरजनो क परति� शरदधा परकट करन क सिलए भी अनक पदो की रचना की। आचायC जी की ब/ाई, गसाई जी की ब/ाई, गसाई जी क पालना आदिद तिवषयो स समबदध पर इसी परकार क ह। कमभनदास क पदो क उपयCकत वरणCन स सपषट ह तिक इनका दधिषटकोरण सर और परमाननद की अपकषा अधि/क सामपरदाधियक था। कतिवतत की दधिषट स इनकी रचना म कोई मौसिलक तिवशष�ाए नही ह। उस हम सर का अनकररण मातर मान सक� ह।

कमभनदास क पदो का एक सगरह 'कमभनदास' शीषCक स शरीतिवदया तिवभाग, काकरोली दवारा परकासिश� हआ ह।

टीका टिटपपणी और %दभ�

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[सहायक गरनथ-

1. चौरासी वषरणवन की वा�ाC; 2. अषटछाप और वललभ समपरदाय: डा॰ दीनदयाल गप�:

3. अषटछाप परिरचय: शरीपरभदयाल मी�ल।]

कषणदा% / Krishnadass

अनकरम[छपा]

1 कषरणदास / Krishnadass 2 परिरचय

3 चरिरतरग� तिवशष�ा

4 पधिषटमागC और कषरणदास

5 चौरासी वषरणवो की वा�ाC

6 रचनाए

7 टीका दिटपपरणी और सदभC

8 समबधि/� सिलक

परिरचयअषटछाप क परथम चार कतिवयो म अनतिन�म कषरणदास अधि/कारी ह। उनका जनम सन 1495 ई॰ क आसपास गजरा� परदश क एक गरामीरण कनबी परिरवार म हआ था। सन 1509 ई॰ म व पधिषटमागC म दीणिकष� हए और सन 1575 और 1581 ई॰ क बीच उनका दहावसान हआ। बालयकाल स ही कषरणदास म असा/ाररण /ारमिमक परवणितत थी। 12-13 वषC की अवसथा म उनहोन अपन तिप�ा क एक चोरी क अपरा/ को पकvकर उनह मखिखया क पद स हटवा दिदया था। इसक फल?वरप तिप�ा न उनह घर स तिनकाल दिदया और व भरमरण कर� हए बरज म आ गय। उसी समय शरीनाथ जी का ?वरप नवीन मजिनदर म परति�धिषठ� तिकया जान वाला था। शरीनाथ जी क दशCन कर व बह� परभातिव� हए। बललभाचायC जी स भट कर उनहोन समपरदाय की दीकषा गरहरण की।

चरिरतरग+ विवशष+ाकषरणदास म असा/ाररण बजिदधमतता, वयवहार-कशल�ा और सघटन की योगय�ा थी। पहल उनह वललभाचायC न भदिटया (भट उगाहनवाला) क पद पर रखा और तिफर उनह शरीनाथजी क मजिनदर क अधि/कारी का पद सौप दिदया। अपन इस उततरदाधियतव का कषरणदास न बvी योगय�ा स तिनवाCह तिकया। मजिनदर पर गौvीय वषरणव समपरदाय क बगाली बराहमरणो का परभाव बढ�ा दखकर कषरणदास न छल और बल का परयोग कर उनह तिनकाल दिदया। अपन उददशय की परति� क सिलए कषरणदास को बगासिलयो की झोपतिvयो म आग लगानी पvी �था उनह बासो स तिपटवाना पvा। शरीनाथजी क मजिनदर म कषरणदास अधि/कारी का ऐसा एकाधि/पतय हो गया था तिक एक बार उनहोन ?वय गोसाई तिवटठलनाथ स सवा का अधि/कार छीनकर उनक भ�ीज शरी परषोततमजी को द दिदया था। लगभग 6

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महीन �क गोसाई जी शरीनाथ जी स तिवयकत होकर पारसौली म तिनवास कर� रह। महाराज बीरबल न कषरणदास को इस अपरा/ क दणड?वरप बनदीखान म डलवा दिदया था परन� गोसाई जी न महाराज बीरबल की इस आजञा क तिवरदध अनशन कर कषरणदास को मकत करा दिदया। तिवटठलनाथ जी की इस उदार�ा स परभातिव� होकर कषरणदास को अपन धिमथया अहकार पर पशचा�ाप हआ और उनहोन गो?वामी जी क परति� भी भसिकत-भाव परकट करना परारमभ कर दिदया �था उनकी परशसा म व पद-रचना भी करन लग। वा?�व म गो?वामीजी क परति� कषरणदास न जो रदवयCवहार तिकया था, उसका काररण कछ और था। गगाबाई नामक एक कषतरारणी स कषरणदास की गहरी धिमतर�ा थी। एक बार गो?वामी जी न उनक इस समबनध पर कछ कट वयग तिकया जिजसस कषरणदास न असन�षट होकर उनस यह बदला सिलया। एक बार तिवषम जवर की अवसथा म पयास लगन पर उनहोन वनदावन क अनयमागJय वषरणव बराहमरणो क यहा जल नही तिपया, जब एक पधिषटमागJय भगी क यहा का जल लाया गया �ब उनहोन अपनी पयास बझायी।

पविषटमाग� और कषणदा%चरिरतर की इ�नी रदबCल�ाए हो� हए भी कषरणदास को सामपरदाधियक सिसदधान�ो का बह� अचछा जञान था और भकतगरण उनक उपदशो क सिलए अतयन� उतसक रहा कर� थ। जाति� क शदर हो� हए भी समपरदाय म उनका सथान उस समय अगरगणय था और उनहोन पधिषटमागC क परचार म जो सामधियक योग दिदया वह कदासिच� अषटछाप म अनय भकत कतिवयो की अपकषा कही अधि/क सराहा जा�ा था। कषरणदास न कषरणलीला क अनक परसगो पर पद-रचना की ह। परसिसदध ह तिक पदरचला म सरदास क साथ व परति�सप/ाC कर� थ। इस कषतर म भी अपन ?वभाव क अनसार उनकी इचछा सव~परिर सथान गरहरण करन की थी। भल ही कषरणदास न उचचकोदिट की कावयरचना न की हो, उनहोन अपन परबनध-कौशल दवारा परिरसथिसथति�यो क तिनमाCरण म अवशय महततवपरणC योग दिदया, जिजनक काररण सरदास, परमाननददास, ननददास आदिद महान कतिवयो को अपनी परति�भा का तिवकास करन क सिलए अवसर धिमला।

चौरा%ी वषणवो की वा+ा�कषरणदास जनम स शदर हो� हए भी वललभाचायC क कपा-पातर थ और मदिदर क पर/ान हो गए थ। ‘चौरासी वषरणवो की वा�ाC’ क अनसार एक बार गोसाई तिवटठलनाथजी स तिकसी बा� पर अपरसनन होकर इनहोन उनकी डयोढी बद कर दी। इस पर गोसाई क कपापातर महाराज बीरबल न इनह कद कर सिलया। पीछ गोसाई जी इस बा� स बv रदखी हए और उनको कारागार स मकत कराक पर/ान क पद पर तिफर जयो का तयो परति�धिषठ� कर दिदया। इनहोन भी और सब कषरण भकतो क समान रा/ाकषरण क परम को लकर शरगार रस क ही पद गाए ह। ‘जगलमान चरिर�’ नामक इनका एक छोटा सा गरथ धिमल�ा ह। इसक अति�रिरकत इनक बनाए दो गरथ और कह जा� ह- भरमरगी� और परम�तव तिनरपरण । इनका कतिव�ाकाल सन 1550 क आसपास माना जा�ा ह ।

रचनाएकवि+या

1. जगलमान चरिर� 2. भरमरगी�

3. परम�तव तिनरपरण

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कषरणदास क 'राग-कलपदरम', 'राग-रतनाकर' और समपरदाय क की�Cन सगरहो म पराप� पदो का तिवषय लगभग वही ह जो कमभनदास क पदो का ह। अति�रिरकत तिवषयो म चनदरावलीजी की ब/ाई, गोकलनाथजी की ब/ाई और गोसाईजी क हिहडोरा क पद तिवशष उललखनीय ह। कषरणदास क कल पदो की सखया 250 स अधि/क नही ह। कषरणदास क पदो का सगरह तिवदयातिवभाग, काकरोली स परकासिश� हआ ह।

टीका टिटपपणी और %दभ�[सहायक गरनथ-

चौरासी वषरणवन की वा�ाC; अषटछाप और वललभ समपरदाय : डा॰ दीनदयाल गप�:

अषटछाप परिरचय: शरी परभदयाल मी�ल।]

गोविवनदसवामी / Govind Swami

गोतिवनद?वामी अ�री क रहनवाल सनाढय बराहमरण थ जो तिवरकत की भाति� आकर महावन म रहन लग थ। बाद म गो?वामी तिवटठलनाथ जी क सिशषय हए जिजनहोन इनक रच पदो स परसनन होकर इनह अषटछाप म सिलया। य गोव/Cन पवC� पर रह� थ और उसक पास ही इनहोन कदबो का एक अचछा उपवन लगाया था जो अब �क ‘गोतिवनद?वामी की कदबखडी’ कहला�ा ह। इनका रचनाकाल सन 1543 और 1568 ई. क आसपास माना जा सक�ा ह। व कतिव होन क अति�रिरकत बv पकक गवय थ। �ानसन कभी-कभी इनका गाना सनन क सिलए आया कर� थ।

गोविवFददा% / Govind Das

वललभ सपरदाय (पधिषटमागC) क आठ कतिवयो (अषटछाप कतिव) म एक । जिजनहोन भगवान शरी कषरण की तिवणिभनन लीलाओ का अपन पदो म वरणCन तिकया। गोहिवद दास जी का एक पद

शरी वललभ चररण लगयो सिच� मरो । इन तिबन और कछ नही भाव, इन चरनन को चरो ॥1॥ इन छोड और जो धयाव सो मरख घनरो । गोतिवनद दास यह तिनशचय करिर सोतिह जञान भलरो ॥2॥

घनानद / Ghananand

(1689 ई?वी स 1739 ई?वी (लगभग)) तिहनदी भाषा क रीति�काल क कतिव घनाननद क समब/ म तिनणिशच� जानकारी नही ह । कछ लोग इनका जनमसथान उततरपरदश क जनपद बलनदशहर को मान� ह । जनम 1658 स 1689 ई?वी क बीच और तिन/न 1739 ई?वी (लगभग) माना जा�ा ह । इनका तिन/न अबदाली रदराCनी दवारा मथरा म तिकय गय कतलआम म हआ था । घनाननद शरगार /ारा क कतिव थ । य सखीभाव स शरीकषरण की उपासना कर� थ । तिवरकत होन स पहल य बहारदरशाह क मीर मशी थ । वही पर सजान नामक न�Cकी स इनका परम हो गया था । इनहोन अपनी परधिमका को समबोधि/� करक ही अपनी कावय रचनाय की ह । कछ तिवदवान इनकी रचनाओ म आधयासतरितमक�ा भी मान� ह।

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घनानद %मराट मग/ दश का एक राजा था। इसकी राजय-सीमा वयास नदी �क फली थी।

उसकी सतिनक शसिकत क भय स ही सिसकदर क सतिनको न वयास नदी स आग बढना अ?वीकार कर दिदया था।

ननदवश का अति�म शासक घनानद बह� रदबCल और अतयाचारी था।

कौदिटलय की सहाय�ा स चदरगप� मौयC न 322 ई॰ पवC म नदवश को समाप� करक मौयC वश की नीव डाली।

च+भ�जदा% / Chaturbhuj Dass

अनकरम[छपा]

1 च�भCजदास / Chaturbhuj Dass 2 च�भCजदास की भाषा

3 टीका दिटपपरणी और सदभC

4 समबधि/� सिलक

रा/ावललभ समपरदाय क परसिसदध भकत च�भCजदास का वरणCन नाभा जी न अपन 'भकतमाल' म तिकया ह। उसम जनमसथान, समपरदाय, छाप और गर का भी सपषट सक� ह। धरवदास न भी 'भकत नामावली' म इनका वततान� सिलखा ह। इन दोनो जीवन वततो क आ/ार पर च�भCजदास गोडवाना परदश, जबलपर क समीप गढा नामक गाव क तिनवासी थ। इनहोन अपनी परसिसदध कति� 'दवादश यश' म रचना सव� दिदया ह। सवक जी दामोदर दास क व समकालीन थ, अ�: इन दोनो आ/ारो पर इनका जनम सव� 1585 (सन 1528) क आसपास तिनणिशच� तिकया जा�ा ह। इनक बारह गरनथ उपलबध ह, जो 'दवादश यश' नाम स तिवखया� ह। सठ मणिरणलाल जमनादास शाह न अहमदाबाद स इसका परकाशन करा दिदया ह। य बारह रचनाए पथक-पथक नाम स भी धिमल�ी ह। 'तिह�ज को मगल' , 'मगलसार यश' और 'सिशकषासार यश' इनकी उतकषट रचनाए ह।

च+भ�जदा% की भाषाच�भCजदास की भाषा शदध बरजभाषा नही ह, उस पर बसवाvी और बनदली का गहरा परभाव ह। व स?क� भाषा क भी तिवदवान थ, उनहोन अपन गरनथ की टीका ?वय स?क� म सिलखी ह। उनकी स?क� भाषा म अचछा परवाह ह। 'दवादश यश' क अधययन स यह भी तिवदिद� हो�ा ह तिक भसिकत को जीवन का सवC?व ?वीकार करन पर भी उनहोन दमभ और पाखणड का पर जोर क साथ खणडन तिकया ह। कछ सथलो पर अपन यग क रदषपरभावो का भी वरणCन ह। गर सवा आदिद पर बल दिदया गया ह। कावय की दधिषट स बह� उचचकोदिट की रचना इस नही कहा जा सक�ा, तिकन� भाव-व?� की दधिषट स इसका महतव ह। इनह भी अषटछाप क कतिवयो म माना जा�ा ह । इनकी भाषा चल�ी और सवयवसथिसथ� ह । इनक बनाए तिनमन गरथ धिमल ह ।

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कवि+या

1. दवादशयश 2. भसिकतपर�ाप

3. तिह�ज को मगल

4. मगलसार यश और

5. सिशकषासार यश

छी+सवामी / Chhit Swami

अनकरम[छपा]

1 छी�?वामी / Chhit Swami 2 परिरचय

3 रचनाय

4 टीका दिटपपरणी और सदभC

5 समबधि/� सिलक

छी�?वामी तिवटठलनाथ जी क सिशषय और अषटछाप क अ�गC� थ। पहल य मथरा क ससमपनन पडा थ और राजा बीरबल जस लोग इनक जजमान थ। पडा होन क काररण य पहल बv अकखv और उददड थ, पीछ गो?वामी तिवटठलनाथ जी स दीकषा लकर परम शा� भकत हो गए और शरीकषरण का गरणगान करन लग। इनकी रचनाओ का समय सन 1555 ई. क आसपास माना जा�ा ह।

परिरचयअषटछाप क कतिवयो म छी�?वामी एक ऐस वयसिकत थ, जिजनहोन जीवनपयCन� गहसथ-जीवन तिब�ा� हए �था अपन ही घर रह� हए शरीनाथजी की की�Cन-सवा की। य मथरा क रहरवाल चौब थ। इनका जनम अनमान�: सन 1510 ई॰ क आसपास, समपरदाय परवश सन 1535 ई॰ �था गोलोकवास सन 1585 ई॰ म हआ था। वा�ाC म सिलखा ह तिक य बv मसखर, लमपट और गणड थ। एक बार गोसाई तिवटठलनाथ की परीकषा लन क सिलए व अपन चार चौब धिमतरो क साथ उनह एक खोटा रपया और एक थोथा नारिरयल भट करन गय, तिकन� तिवटठलनाथ को दख� ही इन पर ऐसा परभाव पvा तिक उनहोन हाथ जोvकर गोसाई जी स कषमा याचना की और उनस शररण म लन की पराथCना की। शररण म लन क बाद गोसाई जी न शरीनाथ जी की सवा-पररणाली क तिनमाCरण म छी�?वामी स बह� सहाय�ा ली। महाराज बीरबल क व परोतिह� थ और उनस वारतिषक वणितत पा� थ। एक बार बीरबल को उनहोन एक पद सनाया, जिजसम गो?वामी जी की साकषा� कषरण क रप म परशसा वरततिरण� थी। बीरबल न उस पद की सराहना नही की। इस पर छी�?वामी अपरसनन हो गय और उनहोन बीरबल स वारतिषक वणितत लना बनद कर दिदया। गोसाई जी न लाहौर क वषरणवो स उनक सिलए वारतिषक वणितत का परबनध कर दिदया। कतिव�ा और सगी� दोनो म छी�?वामी बv तिनपरण थ। लकिपसदध ह तिक अकबर भी उनक पद सनन क सिलए भष बदलकर आ� थ।

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रचनायछी�?वामी क कवल 64 पदो का प�ा चला ह। उनका अथC-तिवषय भी वही ह, जो अषटछाप क अनय परसिसदध कतिवयो क पदो का ह यथा-आठ पहर की सवा, कषरण लीला क तिवतिव/ परसग, गोसाई जी की ब/ाई आदिद। इनक पदो का एक सकलन तिवदया-तिवभाव, काकरौली स 'छी�?वामी' शीषCक स परकासिश� हो चका ह। इनक पदो म शरगार क अति�रिरकत बरजभधिम क परति� परमवयजना भी अचछी पाई जा�ी ह।

‘ह तिव/ना �ोसो अचरा पसारिर मागौ जनम जनम दीजो याही बरज बसिसबो’

पद इनही का ह।

टीका टिटपपणी और %दभ�[सहायक गरनथ-

1. दो सौ वषरणवन की वा�ाC: अषटछाप और वललभ समपरदाय: डा॰ दीनदयाल गप�; 2. अषटछाप परिरचय: परभदयाल मी�ल।]

गोसवामी +ल%ीदा% / Tulsidas

गो?वामी �लसीदासTulsidasगो?वामी �लसीदास [1497(1532?) - 1623] एक महान कतिव थ । उनका जनम राजापर, (व�Cमान बादा जिPला) उततर परदश म हआ था । अपन जीवनकाल म �लसीदास जी न 12 गरनथ सिलख और उनह स?क� तिवदवान होन क साथ ही तिहनदी भाषा क परसिसदध और सवCशरषट कतिवयो म एक माना जा�ा ह । �लसीदासजी को महरतिष वालमीतिक का भी अव�ार माना जा�ा ह जो मल आदिदकावय रामायरण क रचधिय�ा थ। शरीराम जी को समरतिप� गरनथ शरी रामचरिर�मानस वालमीतिक रामायरण का परकारा�र स अव/ी भाषा�र था जिजस सम?� उततर भार� म बv भसिकतभाव स पढा जा�ा ह। तिवनयपतितरका �लसीदासक� एक अनय महततवपरणC कावय ह।

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गो?वामीजी शरीसमपरदाय क आचायC रामाननद की सिशषयपरमपरा म थ। इनहोन समय को दख� हए लोकभाषा म 'रामायरण' सिलखा। इसम बयाज स वरणाCशरम/मC, अव�ारवाद, साकार उपासना, सगरणवाद, गो-बराहमरण रकषा, दवादिद तिवतिव/ योतिनयो का यथोसिच� सममान एव पराचीन स?कति� औरवदमागC का मणडन और साथ ही उस समय क तिव/मJ अतयाचारो और सामाजिजक दोषो की एव पनथवाद की आलोचना की गयी ह। गो?वामीजी पनथ वा समपरदाय चलान क तिवरो/ी थ। उनहोन वयाज स भरा�परम, ?वराजय क तिवदधान� , रामराजय का आदशC, अतयाचारो स बचन और शतर पर तिवजयी होन क उपाय; सभी राजनीति�क बा� खल शबदो म उस कvी जाससी क जमान म भी ब�लायी, परन� उनह राजयाशरय पराप� न था। लोगो न उनको समझा नही। रामचरिर�मानस का राजनीति�क उददशय सिसदध नही हो पाया। इसीसिलए उनहोन झझलाकर कहा:

"रामायरण अनहर� सिसख, जग भई भार� रीति�।

�लसी काठतिह को सन, कसिल कचासिल पर परीति�।"

उनकी यह अदभ� पोथी इ�नी लोकतिपरय ह तिक मखC स लकर महापसथिणड� �क क हाथो म आदर स सथान पा�ी ह। उस समय की सारी शककाओ का रामचरिर�मानस म उततर ह। अकल इस गरनथ को लकर यदिद गो?वामी �लसीदास चाह� �ो अपना अतयन� तिवशाल और शसिकतशाली समपरदाय चला सक� थ। यह एक सौभागय की बा� ह तिक आज यही एक गरनथ ह, जो सामपरदाधियक�ा की सीमाओ को लाघकर सार दश म वयापक और सभी म�-म�ान�रो को परणC�या मानय ह। सबको एक सतर म गरसिथ� करन का जो काम पहल शकराचायC ?वामी न तिकया, वही अपन यग म और उसक पीछ आज भी गो?वामी �लसीदास न तिकया। रामचरिर�मानस की कथा का आरमभ ही उन शकाओ स हो�ा ह जो कबीरदास की साखी पर परान तिवचार वालो क मन म उठ�ी ह। जसा पहल सिलखा जा चका ह, गो?वामीजी ?वामी रामाननद की सिशषयपरमपरा म थ, जो रामानजाचायC क तिवसिशषटदव� समपरदाय क अन�भCकत ह। परन� गो?वामीजी की परवणितत सामपरदाधियक न थी। उनक गरनथो म अदव� और तिवसिशषटादव� का सनदर समनवय पाया जा�ा ह। इसी परकार वषरणव, शव, शाकत आदिद सामपरदाधियक भावनाओ और पजापदधति�यो का समनवय भी उनकी रचनाओ म पाया जा�ा ह। व आदशC समचचयवादी सन� कतिव थ। उनक गरनथो म रामचरिर�मानस, तिवनयपतितरका, कतिव�ावली, गी�ावली, दोहावली आदिद अधि/क परसिसदध ह।

भगवान शकरजी की परररणा स रामशल पर रहन वाल शरी अनन�ाननद जी क तिपरय सिशषय शरीनरहयाCननद जी (नरहरिर बाबा) न इस बालक को ढढ तिनकाला और उसका नाम रामबोला रखा। उस व अयोधया ( उततर परदश परान� का एक जिPला ह।) ल गय और वहा सव� 1561 माघ शकला पञचमी शकरवार को उसका यजञोपवी�-स?कार कराया । तिबना सिसखाय ही बालक रामबोला न गायतरी - मनतर का उचचाररण तिकया, जिजस दखकर सब लोग चतिक� हो गय । इसक बाद नरहरिर ?वामी न वषरणवो क पाच स?कार करक रामबोला को राममनतर की दीकषा दी और अयोधया ही म रहकर उनह तिवदयाधययन करान लग। बालक रामबोला की बजिदध बvी परखर थी । एक बार गरमख स जो सन ल� थ, उनह वह कठसथ हो जा�ा था । वहा स कछ दिदन बाद गर-सिशषय दोनो शकरकषतर (सोरो) पहच। वहा शरी नरहरिर जी न �लसीदास को रामचरिर� सनाया। कछ दिदन बाद वह काशी चल आय । काशी म शषसना�न जी क पास रहकर �लसीदास न पनदरह वषC �क वद-वदाग का अधययन तिकया । इ/र उनकी लोकवासना कछ जागर� हो उठी और अपन तिवदयागर स आजञा लकर व अपनी जनमभधिम को लौट आय । वहा आकर उनहोन दखा तिक उनका परिरवार सब नषट हो चका ह । उनहोन तिवधि/पवCक अपन तिप�ा आदिद का शरादध तिकया और वही रहकर लोगो को भगवान राम की कथा सनान लग ।

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इ/र पसथिणड�ो न जब यह बा� सनी �ो उनक मन म ईषयाC उतपनन हई । व दल बा/कर �लसीदास जी की तिननदा करन लग और उस प?�क को नषट कर दन का परयतन करन लग । उनहोन प?�क चरान क सिलय दो चोर भज । चोरो न जाकर दखा तिक �लसीदास जी की कटी क आसपास दो वीर /नषबारण सिलय पहरा द रह ह । व बv ही सनदर शयाम और गौर वरणC क थ। उनक दशCन स चोरो की बजिदध शदध हो गयी । उनहोन उसी समय स चोरी करना छोv दिदया और भजन म लग गय। �लसीदास जी न अपन सिलय भगवान को कषट हआ जान कटी का सारा समान लटा दिदया, प?�क अपन धिमतर टोडरमल क यहा रख दी । इसक बाद उनहोन एक दसरी परति� सिलखी । उसी क आ/ार पर दसरी परति�सिलतिपया �यार की जान लगी । प?�क का परचार दिदनो दिदन बढन लगा । इ/र पसथिणड�ो न और कोई उपाय न दख शरीम/सदन सर?व�ी जी को उस प?�क को दखन की परररणा की । शरीम/सदन सर?व�ी जी न उस दखकर बvी परसनन�ा परकट की और उस पर यह सममति� सिलख दी-

आननदकानन हयालकि?मञजङगम?�लसी�रः।

कतिव�ामञजरी भाति� रामभरमरभतिष�ा॥

अपन दीघC जीवन-काल म �लसीदास न कालकरमानसार तिनमनसिलखिख� कालजयी गरनथो की रचनाए की -

रामललानहछ, वरागयसदीपनी, रामाजञापरशन,

जानकी-मगल,

रामचरिर�मानस,

स�सई,

पावC�ी-मगल,

गी�ावली , तिवनय पतितरका , कषरण-गी�ावली, बरव रामायरण,

दोहावली और

कतिव�ावली

�लसीदास जी न कल 22 कति�यो की रचना की ह जिजनम स पाच बvी एव छः मधयम शररणी म आ�ी ह।

मखय रचनाए

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रामचरिर+मान% – “रामचरिर�” (राम का चरिरतर) �था “मानस” (सरोवर) शबदो क मल स “रामचरिर�मानस” शबद बना ह। अ�ः रामचरिर�मानस का अथC ह “राम क चरिरतर का सरोवर”। सवCसा/ाररण म यह “�लसीक� रामायरण” क नाम स जाना जा�ा ह �था यह तिहनद /मC की महान कावय रचना ह।

दोहावली -दोहावली म दोहा और सोरठा की कल सखया 573 ह।

कविव+ावली - सोलहवी श�ाबदी म रची गयी कतिव�ावली म शरी रामचनदर जी क इति�हास का वरणCन कतिवतत, चौपाई, सवया आदिद छदो म की गई ह। रामचरिर�मानस क जस ही कतिव�ावली म सा� काणड ह।

गी+ावली -गी�ावली, जो तिक सा� काणडो वाली एक और रचना ह, म शरी रामचनदर जी की कपाल�ा का वरणCन ह।

विवनय पवितरका -तिवनय पतितरका म 279 ?�ति� गान ह जिजनम स परथम 43 ?�ति�या तिवतिव/ दव�ाओ की ह और शष रामचनदर जी की।

कषण गी+ावली -कषरण गी�ावली म शरी कषरण जी 61 ?�ति�या ह।

छोटी रचनाएबरव रामायरण, जानकी मगल, रामलला नहछ, रामजञा परशन, पावC�ी मगल, हनमान बाहक, सकट मोचन और वरागय सदीपनी �लसीदास जी की छोटी रचनाए ह।

रामचरिर+मान% क बाद हनमान चालीसा , जो तिक तिहनरदओ की दतिनक पराथCना कही जा�ी ह, �लसीदास जी की अतयन� लोकतिपरय सातिहतय रचना ह।

नददा% / Nanddas

नददास 16 वी श�ी क अति�म चररण क कतिव थ। इनक तिवषय म ‘भकतमाल’ म सिलखा ह-

‘चनदरहास-अगरज सहद परम परम म पग’

इसस इ�ना ही ससिच� हो�ा ह तिक इनक भाई का नाम चदरहास था। दो सौ बावन वषरणवन की वा�ाC क अनसार य �लसीदास क भाई थ, तिकन� अब यह बा� परामाणिरणक नही मानी जा�ी। उसी वा�ाC म यह भी सिलखा ह तिक दवारिरका जा� हए नददास सिस/नद गराम म एक रपव�ी खतरानी पर आसकत हो गए। य उस ?तरी क घर म चारो ओर चककर लगाया कर� थ। घरवाल हरान होकर कछ दिदनो क सिलए गोकल चल गए। य वहा भी जा पहच। अ� म वही पर गोसाई तिवटठलनाथ जी क सरदपदश स इनका मोह छटा और य अननय भकत हो गए। इस कथा म ऐति�हासिसक �थय कवल इ�ना ही ह तिक इनहोन गोसाई तिवटठलनाथ जी स दीकषा ली।

इनक कावय क तिवषय म यह उसिकत परसिसदध ह-

‘और कतिव गदिढया, नददास जतिvया’

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इसस परकट हो�ा ह तिक इनक कावय का कला-पकष महततवपरणC ह। इनकी रचना बvी सरस और म/र ह। इनकी सबस परसिसदध प?�क ‘रासपचाधयायी’ ह जो रोला छदो म सिलखी गई ह। इसम जसा तिक नाम स ही परकट ह, कषरण की रासलीला का अनपरासादिदयकत सातिहनतितयक भाषा म तिव?�ार क साथ वरणCन ह।

कति�या पदय रचना

1. रासपचाधयायी 2. भागव� दशम?क/

3. रसथिकमरणी मगल

4. सिसदधा� पचाधयायी 5. रपमजरी 6. मानमजरी 7. तिवरहमजरी 8. नामसिच�ामणिरणमाला 9. अनकाथCनाममाला 10. दानलीला 11. मानलीला 12. अनकाथCमजरी 13. जञानमजरी 14. शयामसगाई

15. भरमरगी�

16. सदामाचरिरतर

गदयरचना

1. तिह�ोपदश 2. नासिसक�परारण

परमानद दा% / Parmanand Das

यह वललभाचायC जी क सिशषय और अषटछाप कतिवयो म स एक थ। सन 1551 ई. क आसपास इनका समय माना जा�ा ह।

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इनका तिनवास सथान कननौज था। इसी काररण स य अनमान तिकया जा�ा ह तिक य कानयकबज बराहमरण थ।

परमानद जी अतय� �नमय�ा क साथ और बvी ही सरल कतिव�ाय कर� थ। कह� ह तिक इनक तिकसी एक पद को सनकर आचायCजी कई दिदनो �क बदन की स/ भल रह।

इनक फटकल पद कषरण भकतो क मह स पराय: सनन म आ� ह।

कवि+या-

परमानदसागर

मीराबाई / मीरा / Meerabai

मीराबाई का मजिनदर , वनदावनMirabai Temple, Vrindavan

परसिसदध कषरण-भकत कवधियतरी मीराबाई जो/पर क मvवा राजकल की राजकमारी थी। इनकी जनम-ति�सिथ क सब/ म म�कय नही ह। कछ तिवदवान इनका जनम 1430 ई॰ मान� ह और कछ 1498 ई॰। मीरा का जीवन बv रद:ख म बी�ा। बालयावसथा म ही मा का दहा� हो गया। तिप�ामह न दखभाल की पर� कछ वषC बाद व भी चल बस। मीराबाई कषरण-भसिकत शाखा की परमख कवधियतरी ह । उनक तिप�ा का नाम रतनसिसह था । उनक पति� कवर भोजराज उदयपर क महारारणा सागा क पतर थ । तिववाह क कछ समय बाद ही उनक पति� का दहा� हो गया । पति� की मतय क बाद उनह पति� क साथ स�ी करन का परयास तिकया गया तिकन� मीरा इसक सिलय �यार नही हई । मवाv का शासन भोजराज क सौ�ल भाई क हाथ म आया, जिजसन हर परकार स मीरा को स�ाया। व ससार की ओर स तिवरकत हो गयी और सा/-स�ो की सगति� म हरिरकी�Cन कर� हए अपना समय वय�ी� करन लगी । कछ समय बाद उनहोन घर का तयाग कर दिदया और �ीथाCटन को तिनकल गई । मीरा बचपन स ही आधयासतरितमक तिवचारो क तिवपरी� थी व परिरसथिसथति�यो न उनह और भी अ�मCखी बना दिदया। उनहोन सिचततौv तयाग दिदया और स� रदास की सिशषया बन गयी । व बह� दिदनो �क वनदावन म रही और तिफर 1543 ई॰ क आसपास व दवारिरका चली गई और जीवन क अ� �क वही रही। उनका तिन/न 1563 और 1573 ई॰ क बीच माना जा�ा ह। जहा सव� 1547 ई?वी म उनका दहा� हआ । इनक जनम को लकर कई म�भद रह ह।

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मीराबाई न कषरण-भसिकत क सफट पदो की रचना की ह । य बचपन स ही कषरणभसिकत म रसिच लन लगी थी । मीरा क कषरण-भसिकत क पद बह� लोकतिपरय ह। तिहनदी क साथ-साथ राजसथानी और गजरा�ी म भी इनकी रचनाए पाई जा�ी ह। तिहनदी क भकत-कतिवयो म मीरा का सथान बह� ऊचा ह।

[%पाटिद+ कर ] रसिच+ गरथ

कशी घाट , वनदावनKeshi Ghat, Vrindavanमीराबाई न चार गरथो की रचना की–

1. बरसी का मायरा 2. गी� गोहिवद टीका 3. राग गोहिवद

4. राग सोरठ क पद

इनकी एक रचना इस परकार ह- पायो जी मह �ो राम र�न /न पायो । व?� अमोलक दी महार स�गर, तिकरपा कर अपनायो ॥ जनम-जनम की पजी पाई, जग म सभी खोवायो । खरच न खट चोर न लट, दिदन-दिदन बढ� सवायो ॥ स� की नाव खवदिटया स�गर, भवसागर �र आयो । 'मीरा' क परभ तिगरिर/र नागर, हरख-हरख जस पायो ॥

र%खान / Raskhan

तिहनदी सातिहतय म कषरण भकत �था रीति�कालीन कतिवयो म रसखान का महतवपरणC सथान ह। 'रसखान' को रस की खान कहा जा�ा ह। इनक कावय म भसिकत, शरगार रस दोनो पर/ान�ा स धिमल� ह। रसखान कषरण भकत ह और परभ क सगरण और तिनगCरण तिनराकार रप क परति� शरदधाल ह। रसखान क सगरण कषरण लीलाए कर� ह। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कजलीला आदिद। उनहोन अपन कावय की सीधिम� परिर/ी म इन असीधिम� लीलाओ का बह� सकषम वरणCन तिकया ह। भार�नरद हरिरशचनदर न जिजन मसथि?लम हरिरभकतो क सिलय कहा था, "इन मसलमान हरिरजनन पर कोदिटन तिहनद वारिरए" उनम "रसखान" का नाम सव~परिर ह। सययद इबराहीम "रसखान" का जनम उपलबध सरो�ो क अनसार सन 1533 स 1558 क बीच कभी हआ होगा। अकबर का राजयकाल 1556-1605 ह, य लगभग अकबर क समकालीन ह। जनमसथान 'तिपहानी' कछ लोगो क म�ानसार दिदलली क

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समीप ह। कछ और लोगो क म�ानसार यह 'तिपहानी' उततरपरदश क हरदोई जिPल म ह। मतय क बार म कोई परामाणिरणक �थय नही धिमल� ह। रसखान न भागव� का अनवाद फारसी म भी तिकया।

मानष हौ �ो वही रसखातिन बसौ गोकल गाव क गवालन।

जो पस हौ �ो कहा बस मरो चरौ तिन� ननद की /न मझारन।

पाहन हौ �ो वही तिगरिर को जो /रयौ कर छतर परनदर /ारन।

जो खग हौ बसरो करौ धिमल कासिलनदी-कल-कदमब की डारन।।

बालय वण�न/रिर भर अति� शोणिभ� शयाम ज, �सी बनी सिसर सनदर चोटी।

खल� खा� तिफर अगना, पग पजतिनया कदिट पीरी कछौटी।।

वा छतिव को रसखान तिवलोक�, वार� काम कलातिनधि/ कोटी।

काग क भाग कहा कतिहए हरिर हाथ सो ल गयो माखन रोटी।।

अबदर�हीम रहीम खानखाना / Abdurraheem Khankhana

अबरदरCहीम रहीम खानखाना तिहनदी क परसिसदध कतिव अबरदरCहीम खा का जनम 1556 ई॰ म हआ था। अकबर क दरबार म इनका महतवपरणC सथान था। गजरा� क यदध म शौयC परदशCन क काररण अकबर न

इनह 'खानखाना' की उपाधि/ दी थी। रहीम अरबी, �क^, फारसी, स?क� और तिहनदी क अचछ जञा�ा थ। इनह जयोति�ष का भी जञान था।

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इनकी गयारह रचनाए परसिसदध ह। इनक कावय म मखय रप स शरगार, नीति� और भसिकत क भाव धिमल� ह। 70 वषC की उमर म 1626 ई॰ म रहीम का दहा� हो गया।

[%पाटिद+ कर ] परिरचयअबरदरCहीम खा, खानखाना मधययगीन दरबारी स?कति� क परति�तिनधि/ कतिव थ। अकबरी दरबार क तिहनदी कतिवयो म इनका महततवपरणC सथान ह। य ?वय भी कतिवयो क आशरयदा�ा थ। कशव, आसकरन, मणडन, नरहरिर और गग जस कतिवयो न इनकी परशसा की ह। य अकबर क अणिभभावक बरम खा क पतर थ। इनका जनम माघ कषरण पकष गरवार, सन 1556 ई॰ म हआ था। जब य कल 5 वषC क ही थ, गजरा� क पाटन नगर म (1561 ई॰) इनक तिप�ा की हतया कर दी गयी। इनका पालन-पोषरण ?वय अकबर की दख-रख म हआ। इनकी कायCकषम�ा स परभातिव� होकर अकबर न 1572 ई॰ म गजरा� की चढाई क अवसर पर इनह पाटन की जागीर परदान की। अकबर क शासनकाल म उनकी तिनरन�र पदोननति� हो�ी रही। 1576 ई॰ म गजरा� तिवजय क बाद इनह गजरा� की सबदारी धिमली। 1579 ई॰ म इनह 'मीर अजC' का पद परदान तिकया गया। 1583 ई॰ म इनहोन बvी योगय�ा स गजरा� क उपदरव का दमन तिकया। परसनन होकर अकबर न 1584 ई॰ म इनह' खानखाना' की उपाधि/ और पचहPारी का मनसब परदान तिकया। 1589 ई॰ म इनह 'वकील' की पदवी स सममातिन� तिकया गया। 1604 ई॰ म शाहजादा दातिनयाल की मतय और अबलफजल की हतया क बाद इनह दणिकषरण का परा अधि/कार धिमल गया। जहागीर क शासन क परारलकिमभक दिदनो म इनह पवCव� सममान धिमल�ा रहा। 1623 ई॰ म शाहजहा क तिवदरोही होन पर इनहोन जहागीर क तिवरदध उनका साथ दिदया। 1625 ई॰ म इनहोन कषमा याचना कर ली और पन: 'खानखाना' की उपाधि/ धिमली। 1626 ई॰ म 70 वषC की अवसथा म इनकी मतय हो गयी।

[ %पाटिद+ कर] पारिरवारिरक जीवनअनकरम[छपा]

1 अबरदरCहीम रहीम खानखाना / Abdurraheem Khankhana 2 परिरचय

3 पारिरवारिरक जीवन

4 भाषा

5 रचनाए

6 रहीम क दोह

7 टीका दिटपपरणी और सदभC

8 समबधि/� सिलक

रहीम का पारिरवारिरक जीवन सखमय नही था। बचपन म ही इनह तिप�ा क ?नह स वसिच� होना पvा। 42 वषC की अवसथा म इनकी पतनी की मतय हो गयी। इनकी पतरी तिव/वा हो गयी थी। इनक �ीन पतर असमय म ही कालकवसिल� हो गय थ। आशरयदा�ा और गरणगराहक अकबर की मतय भी इनक सामन ही हई। इनहोन यह सब कछ शान� भाव स सहन तिकया। इनक नीति� क दोहो म कही-कही जीवन की रद:खद अनभति�या मारमिमक उदगार बनकर वयकत हई ह।

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[%पाटिद+ कर ] भाषा रहीम अरबी, �क^, फारसी, स?क� और तिहनदी क अचछ जानकार थ। तिहनद-स?कति� स य भली-भाति�

परिरसिच� थ। इनकी नीति�परक उसिकतयो पर स?क� कतिवयो की सपषट छाप परिरलणिकष� हो�ी ह। कल धिमलाकर इनकी 11 रचनाए परसिसदध ह। इनक पराय: 300 दोह 'दोहावली' नाम स सगही� ह।

मायाशकर यासिजञक का अनमान था तिक इनहोन स�सई सिलखी होगी तिकन� वह अभी �क पराप� नही हो सकी ह। दोहो म ही रसिच� इनकी एक ?व�नतर कति� 'नगर शोभा' ह। इसम 142 दोह ह। इसम तिवणिभनन जाति�यो की सतरि?तरयो का शरगारिरक वरणCन ह।

रहीम अपन बरव छनद क सिलए परसिसदध ह। इनका 'बरव ह। इनका 'बरव नाधियका भद' अव/ी भाषा म नाधियका-भद का सव~ततम गरनथ ह। इसम णिभनन-णिभनन नाधियकाओ क कवल उदाहररण दिदय गय ह। मायाशकर यासिजञक न काशीराज प?�कालय और कषरणतिबहारी धिमशर प?�कालय की ह?� सिलखिख� परति�यो क आ/ार पर इसका समपादन तिकया ह। रहीम न बरव छनदो म गोपी-तिवरह वरणCन भी तिकया ह।

मवा� स इनकी एक रचना 'बरव' नाम की इसी तिवषय पर रसिच� पराप� हई ह। यह एक ?व�नतर कति� ह और इसम 101 बरव छनद ह। रहीम क शरगार रस क 6 सोरठ पराप� हए ह। इनक 'शरगार सोरठ' गरनथ का उललख धिमल�ा ह तिकन� अभी यह पराप� नही हो सका ह।

रहीम की एक कति� स?क� और तिहनदी खvीबोली की धिमणिशर� शली म रसिच� 'मदनाषटक' नाम स धिमल�ी ह। इसका वणयC-तिवषय कषरण की रासलीला ह और इसम मासिलनी छनद का परयोग तिकया गया ह। इसक कई पाठ परकासिश� हए ह। 'सममलन पतितरका' म परकासिश� पाठ अधि/क परामणिरणक माना जा�ा ह। इनक कछ भसिकत तिवषयक सफट स?क� शलोक 'रहीम कावय' या 'स?क� कावय' नाम स परसिसदध ह। कतिव न स?क� शलोको का भाव छपपय और दोहा म भी अनदिद� कर दिदया ह।

कछ शलोको म स?क� क साथ तिहनदी भाषा का परयोग हआ ह। रहीम बहजञ थ। इनह जयोति�ष का भी जञान था। इनका स?क�, फारसी और तिहनदी धिमणिशर� भाषा म' खट कौ�क जा�कम' नामक एक जयोति�ष गरनथ भी धिमल�ा ह तिकन� यह रचना पराप� नही हो सकी ह। 'भकतमाल' म इस तिवषय क इनक दो पद उदध� ह। तिवदवानो का अनमान ह तिक य पद 'रासपचाधयायी' क अश हो सक� ह।

रहीम न 'वाकआ� बाबरी' नाम स बाबर सिलखिख� आतमचरिर� का �क^ स फारसी म भी अनवाद तिकया था। इनका एक 'फारसी दीवान' भी धिमल�ा ह।

रहीम क कावय का मखय तिवषय शरगार, नीति� और भसिकत ह। इनकी तिवषरण और गगा समबनधी भसिकत-भावमयी रचनाए वषरणव-भसिकत आनदोलन स परभातिव� होकर सिलखी गयी ह। नीति� और शरगारपरक रचनाए दरबारी वा�ावररण क अनकल ह। रहीम की खयाति� इनही रचनाओ क काररण ह। तिबहारी और मति�राम जस समथC कतिवयो न रहीम की शरगारिरक उसिकतयो स परभाव गरहरण तिकया ह। वयास, वनद और रसतिनधि/ आदिद कतिवयो क नीति� तिवषयक दोह रहीम स परभातिव� होकर सिलख गय ह। रहीम का बरजभाषा और अव/ी दोनो पर समान अधि/कार था। उनक बरव अतयन� मोहक परसिसदध ह तिक �लसीदास को 'बरव रामायरण' सिलखन की परररणा रहीम स ही धिमली थी। 'बरव' क अति�रिरकत इनहोन दोहा, सोरठा, कतिवतत, सवया, मासिलनी आदिद कई छनदो का परयोग तिकया ह।

[%पाटिद+ कर ] रचनाएइनका कावय इनक सहज उदगारो की अणिभवयसिकत ह। इन उदगारो म इनका दीघCकालीन अनभव तिनतिह� ह। य सचच और सवदनशील हदय क वयसिकत थ। जीवन म आन वाली कट-म/र परिरसथिसथति�यो न इनक हदय-पट पर जो

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बहतिव/ अनभति� रखाए अतिक� कर दी थी, उनही क अकतितरम अकन म इनक कावय की रमरणीय�ा का रह?य तिनतिह� ह। इनक 'बरव नाधियका भद' म कावय रीति� का पालन ही नही हआ ह, वरन उसक माधयम स भार�ीय गाहCसथय-जीवन क लभावन सिचतर भी सामन आय ह। मारमिमक होन क काररण ही इनकी उसिकतया सवCसा/ाररण म तिवशष रप स परचसिल� ह। रहीम-कावय क कई सगरह परकासिश� हो चक ह। इनम-

1. रहीम रतनावली (स0 मायाशकर यासिजञक-1928 ई॰) और 2. रहीम तिवलास (स0 बरजरतनदास-1948 ई॰, तिदव�ीयावणितत) परामाणिरणक और तिवशवसनीय ह। इनक

अति�रिरकत

3. रतिहमन तिवनोद (तिह0 सा0 समम0),

4. रहीम 'कतिव�ावली (सरनदरनाथ ति�वारी), 5. रहीम' (रामनरश तितरपाठी), 6. रतिहमन चदिदरका (रामनाथ समन),

7. रतिहमन श�क (लाला भगवानदीन) आदिद सगरह भी उपयोगी ह।

[%पाटिद+ कर ] रहीम क दोह रतिहमन दातिन दरिरदर�र, �ऊ जासिचब योग।

जयो सरिर�न सख पर, कआ खनाव� लोग।।कतिववर रहीम कह� ह तिक यदिद कोई दानी मनषय दरिरदर भी हो �ो भी उसस याचना करना बरा नही ह कयोतिक वह �ब भी उनक पास कछ न कछ रह�ा ही ह। जस नदी सख जा�ी ह �ो लोग उसक अदर कए खोदकर उसम स पानी तिनकाल� ह।

रतिहमन दखिख बvन को, लघ न दीजिजए डारिर।

जहा काम आव सई, कहा कर �लवारिर।।कतिववर रहीम क अनसार बv लोगो की सग� म छोटो की उपकषा नही करना चातिहए कयोतिक तिवपणितत क समय उनकी भी सहाय�ा की आवशयक�ा पv सक�ी ह। जिजस �रह �लवार क होन पर सई की उपकषा नही करना चातिहए कयोतिक जहा वह काम कर सक�ी ह �लवार वहा लाचार हो�ी ह।

रहीम एक सहदय ?वाणिभमानी, उदार, तिवनमर, दानशील, तिववकी, वीर और वयतपनन वयसिकत थ। य गणिरणयो का आदर कर� थ। इनकी दानशील�ा की अनक कथाए परचसिल� ह। इनक वयसिकततव स अकबरी दरबार गौरवानतिनव� हआ था और इनक कावय स तिहनदी समदध हई ह।

[%पाटिद+ कर ] टीका टिटपपणी और %दभ�सहायक गरनथ-

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1. अकबरी दरबार क तिहनदी कतिव: डा॰ सरयपरसाद अगरवाल; 2. रतिहमन तिवलास : बरजरतनदास;

3. रहीम रतनावली : मायाशकर यासिजञक।

4. रदा% / Raidas5. मधययगीन स�ो म परसिसदध रदास क जनम क सब/ म परामाणिरणक जानकारी उपलबध नही ह। कछ

तिवदवान काशी म जनम रदास का समय 1482-1527 ई॰ क बीच मान� ह। य कबीरदास क समकालीन और गर भाई थ। कबीर, नाभादास, मीराबाई आदिद न बv सममान क साथ इनका ?मररण तिकया ह। सिचततौv की रानी झासी और मीराबाई को इनकी सिशषयाए ब�ाया जा�ा ह।

6.

7. रदास का जनम चमv का काम करन वाल परिरवार म हआ था। कह� ह, य अनपढ थ, हिक� स�-सातिहतय क गरथो और गर-गरथ साहब म इनक पद पाए जा� ह। गहसथाशरम म रह� हए भी रदास उचच-कोदिट क तिवरकत स� थ। ज� सी�-सी� ही उनहोन जञान-भसिकत का ऊचा पद पराप� तिकया था। उनहोन सम�ा और सदाचार पर बह� बल दिदया। व खडन-मडन म तिवशवास नही कर� थ। सतय को शदध रप म पर?�� करना ही उनका धयय था। रदास का परभाव आज भी दश म दर-दर �क फला हआ ह। इस म� क अनयायी रदासी या रतिवदासी कहला� ह।

%रदा% / Surdas

तिहनदी सातिहतय म भसिकतकाल म कषरण भसिकत क भकत कतिवयो म महाकतिव सरदास का नाम अगररणी ह। उनका जनम 1478 ई?वी म मथरा आगरा मागC पर सथिसथ� रनक�ा नामक गाव म हआ था। कछ लोगो का कहना ह तिक सरदास जी का जनम सीही नामक गराम म एक गरीब सार?व� बराहमरण परिरवार म हआ था। बाद म वह आगरा और मथरा क बीच गऊघाट पर आकर रहन लग थ । सरदास जी क तिप�ा शरी रामदास गायक थ। सरदास जी क जनमा/ होन क तिवषय म भी म�भद ह। आगरा क समीप गऊघाट पर उनकी भट शरी वललभाचायC स हई और व उनक सिशषय बन गए। वललभाचायC न उनको पधिषटमागC म दीकषा द कर कषरणलीला क पद गान का आदश दिदया। सरदास जी अषटछाप कतिवयो म एक थ। सरदास जी की मतय गोव/Cन क पास पारसौली गराम म 1583 ई?वी म हई।

इनक बार म ‘भकतमाल’ और ‘चौरासी वषरणवन की वा�ाC’ म थोvी-बह� जानकारी धिमल जा�ी ह। ‘आईना-ए-अकबरी’ और ‘मसिशया� अबबलफजल’ म भी तिकसी स� सरदास का उललख ह, तिकन� व बनारस क कोई और सरदास पर�ी� हो� ह। अनशरति� यह अवशय ह तिक अकबर बादशाह सरदास का यश सनकर उनस धिमलन आए थ। ‘भकतमाल’ म इनकी भसिकत, कतिव�ा एव गरणो की परशसा ह �था इनकी अ/�ा का उललख ह। ‘चौरासी वषरणवन की वा�ाC’ क अनसार व आगरा और मथरा क बीच सा/ क रप म रह� थ। व वललभाचायC क दशCन को गए और उनस लीलागान का उपदश पाकर कषरण-चरिर� तिवषयक पदो की रचना करन लग। काला�र म शरीनाथ जी क मदिदर का तिनमाCरण होन पर महापरभ वललभाचायC न इनह यहा की�Cन का कायC सौपा। सरदास क तिवषय म कहा जा�ा ह तिक व जनमा/ थ। उनहोन अपन को ‘जनम को आ/र’ कहा भी ह। तिकन� इसक शबदाथC पर अधि/क नही जाना चातिहए। सर क कावय म परकति�या और जीवन का जो सकषम सौनदयC सिचतितर� ह उसस यह नही लग�ा तिक व जनमा/ थ। उनक तिवषय म ऐसी कहानी भी धिमल�ी ह तिक �ीवर अ�दवCनदव क तिकसी कषरण म उनहोन अपनी आख फोv ली थी। उसिच� यही मालम पv�ा ह तिक व जनमा/ नही थ। काला�र म अपनी आखो

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की जयोति� खो बठ थ। सरदास अब अ/ो को कह� ह। यह परमपरा सर क अ/ होन स चली ह। सर का आशय ‘शर’ स ह। शर और स�ी मधयकालीन भकत सा/को क आदशC थ।

महाकविव %रदा% का सथानअनकरम[छपा]

1 महाकतिव सरदास का सथान 2 जनम

3 वललभाचायC

4 अकबर

5 शरीर तयाग

6 काल - तिनरणCय

7 ' सरसागर ' क रचधिय�ा

8 जाति�

9 सरदास की अनध�ा

10 ' सरसागर '

11 तिववकशील और सिचन�नशील वयसिकततव

12 तिवशाल कावय सजCन

13 रचनाए -

14 वीसिथका

15 समबधि/� सिलक

/मC, सातिहतय और सगी� क सनदभC म महाकतिव सरदास का सथान न कवल तिहनदी-भाषा कषतर, बलकिलक समपरणC भार� म मधययग की महान तिवभति�यो म अगरगणय ह। यह सरदास की लोकतिपरय�ा और महतता का ही परमारण ह तिक 'सरदास' नाम तिकसी भी अनध भकत गायक क सिलए रढ सा हो गया ह। मधययग म इस नाम क कई भकत कतिव और गायक हो गय ह अपन तिवषय म मधययग क य भकत कतिव इ�न उदासीन थ तिक उनका जीवन-वतत तिनणिशच� रप स पन: तिनरमिम� करना असमभवपराय ह परन� इ�ना कहा जा सक�ा ह तिक 'सरसागर' क रचधिय�ा सरदास इस नाम क वयसिकतयो म सवाCधि/क परसिसदध और महान थ और उनही क काररण कदासिच� यह नाम उपयCकत तिवसिशषट अथC क दयो�क सामानय अणिभ/ान क रप म परयकत होन लगा। य सरदास तिवटठलनाथ दवारा सथातिप� अषटछाप क अगररणी भकत कतिव थ और पधिषटमागC म उनकी वारणी का आदर बह� कछ सिसदधान� वाकय क रप म हो�ा ह।

जनम

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गो?वामी हरिरराय क 'भाव परकाश' क अनसार सरदास का जनम दिदलली क पास सीही नाम क गाव म एक अतयन� तिन/Cन सार?व� बराहमरण परिरवार म हआ था। उनक �ीन बv भाई थ । सरदास जनम स ही अनध थ तिकन� सगन ब�ान की उनम अदभ� शसिकत थी। 6 वषC की अवसथा म ही उनहोन अपनी सगन ब�ान की तिवदया स मा�ा-तिप�ा को चतिक� कर दिदया था। तिकन� इसी क बाद व घर छोvकर चार कोस दर एक गाव म �ालाब क तिकनार रहन लग थ। सगन ब�ान की तिवदया क काररण शीघर ही उनकी खयाति� हो गयी। गानतिवदया म भी व परारमभ स ही परवीरण थ। शीघर ही उनक अनक सवक हो गय और व '?वामी' क रप म पज जान लग। 18 वषC की अवसथा म उनह पन: तिवरसिकत हो गयी। और व यह सथान छोvकर आगरा और मथरा क बीच यमना क तिकनार गऊघाट पर आकर रहन लग।

सरदास का जनम कब हआ, इस तिवषय म पहल उनकी �थाकसिथ� रचनाओ, 'सातिहतय लहरी' और सरसागर सारावली क आ/ार पर अनमान लगाया गया था और अनक वष� �क यह दोहराया जा�ा रहा तिक उनका जनम सव� 1540 तिव0(सन 1483 ई॰) म हआ था परन� तिवदवानो न इस अनमान क आ/ार को परणC रप म अपरमाणिरणक सिसदध कर दिदया �था पधिषट-मागC म परचसिल� इस अनशरति� क आ/ार पर तिक सरदास शरीमदवललभाचायC स 10 दिदन छोट थ, यह तिनणिशच� तिकया तिक सरदास का जनम वशाख शकल 5, सव� 1535 तिव0(सन 1478 ई॰) को हआ था। इस सामपरदाधियक अनशरति� को परकाश म लान �था उस अनय परमारणो म पषट करन का शरय डा॰ दीनदयाल गप� को ह। जब �क इस तिवषय म कोई अनयथा परमारण न धिमल, हम सरदास की जनम-ति�सिथ को यही मान सक� ह।

सरदासSurdas

सरदास क तिवषय म आज जो भी जञा� ह, उसका आ/ार मखय�या'चौरासी वषरणवन की वा�ाC ' ही ह। उसक अति�रिरकत पधिषटमागC म परचसिल� अनशरति�या जो गो?वामी हरिरराय दवारा तिकय गय उपयCकत वा�ाC क परिरवदधCनो �था उस पर सिलखी गयी 'भावपरकाश' नाम की टीका और गो?वामी यरदनाथ दवारा सिलखिख� 'वललभ दिदखिगवजय' क रप म पराप� हो�ी ह-सरदास क जीवनवतत की कछ घटनाओ की सचना द�ी ह। नाभादास क 'भकतमाल' पर सिलखिख�

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तिपरयादास की टीका, कतिव धिमयासिसह क 'भकत तिवनोद', धरवदास की 'भकतनामावली' �था नागरीदास की 'पदपरसगमाला' म भी सरदास समबनधी अनक रोचक अनशरति�या पराप� हो�ी ह परन� तिवदवानो न उनह तिवशवसनीय नही माना ह। 'चौरासी वषरणवन की वा�ाC' स जञा� हो�ा ह तिक परसिसदध मगल समराट अकबर न सरदास स भट की थी परन� यह आशचयC की बा� ह तिक उस समय क तिकसी फारसी इति�हासकार न 'सरसागर' क रचधिय�ा महान भकत कतिव सरदास का कोई उललख नही तिकया। इसी यग क अनय महान भकत कतिव �लसीदास का भी मगलकालीन इति�हासकारो न उललख नही तिकया। अकबरकालीन परसिसदध इति�हासगरनथो-आईन अकबरी', 'मसिश आ�-अबलफजल' और 'मन�खबततवारीख' म सरदास नाम क दो वयसिकतयो का उललख हआ ह परन� य दोनो परसिसदध भकत कतिव सरदास स णिभनन ह। 'आईन अकबरी' और 'मन�खबततवारीख' म अकबरी दरबार क रामदास नामक गवया क पतर सरदास का उललख ह। य सरदास अपन तिप�ा क साथ अकबर क दरबार म जाया कर� थ। 'मसिशआ�-अबलफजल' म जिजन सरदास का उललख ह, व काशी म रह� थ, अबलफजल न अनक नाम एक पतर सिलखकर उनह आशवासन दिदया था तिक काशी क उस करोvी क सथान पर जो उनह कलश द�ा ह, नया करोvी उनही की आजञा स तिनयकत तिकया जायगा। कदासिच� य सरदास मदनमोहन नाम क एक अनय भकत थ।

वललभाचाय�'चौरासी वषरणवन की वा�ाC' म सर का जीवनवतत गऊघाट पर हई वललभाचायC स उनकी भट क साथ परारमभ हो�ा ह। गऊघाट पर भी उनक अनक सवक उनक साथ रह� थ �था '?वामी' क रप म उनकी खयाति� दर-दर �क फल गयी थी। कदासिच� इसी काररण एक बार अरल स जा� समय वललभाचायC न उनस भट की और उनह पधिषटमागC म दीणिकष� तिकया। 'वा�ाC' म वललभाचायC और सरदास क परथम भट का जो रोचक वरणCन दिदया गया ह, उसस वयजिज� हो�ा ह तिक सरदास उस समय �क कषरण की आननदमय बरजलीला स परिरसिच� नही थ और व वरागय भावना स पररिर� होकर पति��पावन हरिर की दनयपरणC दा?यभाव की भसिकत म अनरकत थ और इसी भाव क तिवनयपरणC पद रच कर गा� थ। वललभाचायC न उनका 'धि/धि/याना' (दनय परकट करना) छvाया और उनह भगवद-लीला स परिरच� कराया। इस तिववररण क आ/ार पर कभी-कभी यह कहा जा�ा ह तिक सरदास न तिवनय क पदो की रचना वललभाचायC स भट होन क पहल ही कर ली होगी परन� यह तिवचार भरमपरणC ह * वललभाचायC दवारा 'शरीमद भागव�' म वरततिरण� कषरण की लीला का जञान पराप� करन क उपरान� सरदास न अपन पदो म उसका वरणCन करना परारमभ कर दिदया। 'वा�ाC' म कहा गया ह तिक उनहोन 'भागव�' क दवादश ?कनधो पर पद-रचना की। उनहोन 'सह?तरावधि/' पद रच, जो 'सागर' कहलाय। वललभाचायC क ससगC स सरदास को "माहातमयजञान पवCक परम भसिकत" परणCरप म सिसदध हो गयी। वललभाचायC न उनह गोकल म शरीनाथ जी क मजिनदर पर की�Cनकार क रप म तिनयकत तिकया और व आजनम वही रह।

अकबरसरदास की पद-रचना और गान-तिवदया की खयाति� सनकर दशाधि/पति� अकबर न उनस धिमलन की इचछा की। गो?वामी हरिरराय क अनसार परसिसदध सगी�कार �ानसन क माधयम स अकबर और सरदास की भट मथरा म हई। सरदास का भसिकतपरणC पद-गान सनकर अकबर बह� परसनन हए तिकन� उनहोन सरदास स पराथCना की तिक व उनका यशगान कर परन� सरदास न 'नारतिहन रहयो मन म ठौर' स परारमभ होन वाला पद गाकर यह ससिच� कर दिदया तिक व कवल कषरण क यश का वरणCन कर सक� ह, तिकसी अनय का नही। इसी परसग म 'वा�ाC' म पहली बार ब�ाया गया ह। तिक सरदास अनध थ। उपयCकत पर क अन� म 'सर स दशC को एक मर� लोचन पयास' शबद सनकर अकबर न पछा तिक �महार लोचन �ो दिदखाई नही द�, पयास कस मर� ह।

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वा�ाC' म सरदास क जीवन की तिकसी अनय घटना का उललख नही ह, कवल इ�ना ब�ाया गया ह तिक व भगवदभकतो को अपन पदो क दवारा भसिकत का भावपरणC सनदश द� रह� थ। कभी-कभी व शरीनाथ जी क मजिनदर स नवनी� तिपरय जी क मजिनदर भी चल जा� थ तिकन� हरिरराय न कछ अनय चमतकारपरणC रोचक परसगो का उललख तिकया ह। जिजनस कवल यह परकट हो�ा ह तिक सरदास परम भगवदीय थ और उनक समसामधियक भकत कमभनदास, परमाननददास आदिद उनका बह� आदर कर� थ। 'वा�ाC' म सरदास क गोलोकवास का परसग अतयन� रोचक ह। शरीनाथ जी की बह� दिदनो �क सवा करन क उपरान� जब सरदास को जञा� हआ तिक भगवान की इचछा उनह उठा लन की ह �ो व शरीनाथ जी क मजिनदर म पारसौली क चनदर सरोवर पर आकर लट गय और दर स सामन ही फहरान वाली शरीनाथ जी की धवजा का धयान करन लग।

शरीर तयागपारसौली वह सथान ह, जहा पर कहा जा�ा ह तिक शरीकषरण न रासलीला की थी। इस समय सरदास को आचायC वललभ, शरीनाथ जी और गोसाई तिवटठलनाथ न शरीनाथ जी की आर�ी कर� समय सरदास को अनपसथिसथ� पाकर जान सिलया तिक सरदास का अन� समय तिनकट आ गया ह। उनहोन अपन सवको स कहा तिक, "पधिषटमागC का जहाज" जा रहा ह, जिजस जो लना हो ल ल। आर�ी क उपरान� गोसाई जी रामदास, कमभनदास, गोहिवद?वामी और च�भCजदास क साथ सरदास क तिनकट पहच और सरदास को, जो अच� पv हए थ, च�नय हो� हए दखा। सरदास न गोसाई जी का साकषा� भगवान क रप म अणिभननदन तिकया और उनकी भकतवतसल�ा की परशसा की। च�भCजदास न इस समय शका की तिक सरदास न भगवदयश �ो बह� गाया, परन� आचायC वललभ का यशगान कयो नही तिकया। सरदास न ब�ाया तिक उनक तिनकट आचायC जी और भगवान म कोई अन�र नही ह-जो भगवदयश ह, वही आचायC जी का भी यश ह। गर क परति� अपना भाव उनहोन "भरोसो दढ इन चरनन करो" वाला पद गाकर परकट तिकया। इसी पद म सरदास न अपन को "तिदवतिव/ आनधरो" भी ब�ाया। गोसाई तिवटठलनाथ न पहल उनक 'सिचतत की वणितत' और तिफर 'नतर की वणितत' क समबनध म परशन तिकया �ो उनहोन करमश: बसिल बसिल बसिल हो कमरिर राधि/का ननद सवन जासो रति� मानी' �था 'खजन नन रप रस मा�' वाल दो पद गाकर ससिच� तिकया तिक उनका मन और आतमा परणCरप स रा/ा भाव म लीन ह। इसक बाद सरदास न शरीर तयाग दिदया।

काल-विनण�य

सरदास, सर कटी, सर सरोवर, आगराSurdas, Sur Kuti, Sur Sarovar, Agra

सरदास की जनम-ति�सिथ �था उनक जीवन की कछ अनय मखय घटनाओ क काल-तिनरणCय का भी परयतन तिकया गया ह। इस आ/ार पर तिक गऊघाट पर भट होन क समय वललभाचायC गददी पर तिवराजमान थ, यह अनमान तिकया गया ह। तिक उनका तिववाह हो चका था कयोतिक बरहमचारी का गददी पर बठना वरजिज� ह। वललभाचायC का

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तिववाह सव� 1560-61 (सन 1503-1504 ई॰) म हआ था, अ�: यह घटना इसक बाद की ह। 'वललभ दिदखिगवजय' क अनसार यह घटना सव� 1567 तिव0 क (सन 1510 ई॰) आसपास की ह। इस परकार सरदास 30-32 वषC की अवसथा म पधिषटमागC म दीणिकष� हए होग। 'चौरासी वषरणवन की वा�ाC' स ससिच� हो�ा ह तिक सरदास को गोसाई तिवटठलनाथ का यथषट सतसग पराप� हआ था। गोसाई जी स0 1628 तिव0 म (सन 1571 ई॰) सथायी रप स गोकल म रहन लग थ। उनका दहावसान स0 1642 तिव0 (सन 1585 ई॰) म हआ। 'वा�ाC' स ससिच� हो�ा ह तिक सरदास को दहावसान गोसाई जी क सामन ही हो गया था। सरदास न गोसाई जी क सतसग का एका/ सथल पर सक� कर� हए बरज क जिजस वभवपरणC जीवन का वरणCन तिकया ह, उसस तिवदिद� हो�ा ह तिक गोसाई जी को सरदास क जीवनकाल म ही समराट अकबर की ओर स वह सतिव/ा और सहाय�ा पराप� हो चकी थी, जिजसका उललख स0 1634 (सन 1577 ई॰) �था स0 1638 तिव0 क0 (सन 1581 ई॰) शाही फरमानो म हआ ह। अ�: यह अनमान तिकया जा सक�ा ह तिक सरदास स0 1638 (सन 1581 ई॰) या कम स कम स0 1634 हिव क (सन 1577 ई॰) बाद �क जीतिव� रह होग। मौट �ौर पर कहा जा सक�ा ह तिक व स0 1640 तिव0 अथवा सन 1582-83 ई॰ क आसपास गोलोकवासी हए होग। इन ति�सिथयो क आ/ार पर भी उनका जनम स0 1535 तिव0 क0 (सन 1478 ई॰) आसपास पv�ा ह कयोतिक व 30-32 वषC की अवसथा म पधिषटमागC म दीणिकष� हए थ। 'चौरासी वषरणवन की वा�ाC' म अकबर और सरदास की भट का वरणCन हआ ह। गोसाई हरिरराय क अनसार यह भट �ानसन न करायी थी। �ानसन स0 1621 (सन 1564 ई॰) म अकबर क दरबार म आय थ। अकबर क राजय काल की राजनीति�क घटनाओ पर तिवचार कर� हए यह अनमान तिकया जा सक�ा ह तिक व स0 1632-33 (सन 1575-76 ई॰) क पहल सरदास स भट नही कर पाय होग। कयोतिक स0 1632 म (सन 1775 ई॰) उनहोन फ�हपर सीकरी म इबाद�खाना बनवाया था �था स0 1633 (सन 1576 ई॰) �क व उततरी भार� क सामराजय को परणC रप म अपन अ/ीन कर उस सगदिठ� करन म वय?� रह थ। गोसाई तिवटठलनाथ स भी अकबर न इसी समय क आसपास भट की थी।

'%र%ागर' क रचमिय+ासरदास की जीवनी क समबनध म कछ बा�ो पर काफी तिववाद और म�भद ह। सबस पहली बा� उनक नाम क समबनध म ह। 'सरसागर' म जिजस नाम का सवाCधि/क परयोग धिमल�ा ह, वह सरदास अथवा उसका सणिकषप� रप सर ही ह। सर और सरदास क साथ अनक पदो म ?याम, परभ और ?वामी का परयोग भी हआ ह परन� सर-?याम, सरदास ?वामी, सर-परभ अथवा सरदास-परभ को कतिव की छाप न मानकर सर या सरदास छाप क साथ ?याम, परभ या ?वामी का समास समझना चातिहय। कछ पदो म सरज और सरजदास नामो का भी परयोग धिमल�ा ह परन� ऐस पदो क समबनध म तिनशच� पवCक नही कहा जा सक�ा तिक व सरदास क परामाणिरणक पद ह अथवा नही। 'सातिहतय लहरी' क जिजस पद म उसक रचधिय�ा न अपनी वशावली दी ह, उसम उसन अपना असली नाम सरजचनद ब�ाया ह परन� उस रचना अथवा कम स कम उस पद की परामाणिरणक�ा ?वीकार नही की जा�ी तिनषकषC�: 'सरसागर' क रचधिय�ा का वा?�तिवक नाम सरदास ही माना जा सक�ा ह।

जावि+सरदास की जाति� क समबनध म भी बह� वाद-तिववाद हआ ह। "सातिहतय लहरी' क उपयCकत पद क अनसार कछ समय �क सरदास को भटट या बरहमभटट माना जा�ा रहा। भार�नरद बाब हरिरशचनदर न इस तिवषय म परसनन�ा परकट की थी तिक सरदास महाकतिव चनदबरदाई क वशज थ तिकन� बाद म अधि/क�र पधिषटमागJय ?तरो�ो क आ/ार पर यह परसिसदध हआ तिक व सार?व� बराहमरण थ। बह� कछ इसी आ/ार पर 'सातिहतय लहरी' का वशावली वाला पद अपरामाणिरणक माना गया। 'चौरासी वषरणवन की वा�ाC' म मल�: सरदास की जाति� क तिवषय म कोई उललख नही था परन� गोसाई हरिरराय दवारा बढाय गय 'वा�ाC' क अश म उनह सार?व� बराहमरण कहा गया ह। उनक सार?व� बराहमरण होन क परमारण पधिषटमागC क अनय वा�ाC सातिहतय स भी दिदय गय ह। अ�: अधि/क�र यही माना जान लगा

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ह तिक सरदास सार?व� बराहमरण थ यदयतिप कछ तिवदवानो को इस तिवषय म अब भी सनदह ह। डा॰ मशीराम शमाC न यह सिसदध करन का परयतन तिकया ह तिक सरदास बरहमभटट ही थ। यह समभव ह तिक बरहमभटट होन क ना� ही व परमपराग� कतिव –गायको क वशज होन का काररण सर?व�ी पतर और सार?व� नाम स तिवखया� हो गय हो। अन�: साकषय स सरदास क बराहमरण होन का कोई सक� नही धिमल�ा बलकिलक इसक तिवपरी� अनक पदो म उनहोन बराहमरणो की हीन�ा का उललख तिकया ह। इस तिवषय म शरी/र बराहमरण क अग-भग �था महरान क पाvवाल परसग दषटवय ह। य दोनो परसग 'भागव�' स ?व�नतर सरदास दवारा कसथिलप� हए जान पv� ह। इनम सरदास न बvी तिनमCम�ा पवCक बराहमरणतव क परति� तिनरादर का भाव परकट तिकया ह। अजाधिमल �था सदामा क परसगो म भी उनकी उचच जाति� का उललख कर� हए सर न बराहमरणतव क साथ कोई मम�ा नही परकट की। इसक अति�रिरकत समपरणC 'सरसागर' म ऐसा कोई सक� नही धिमल�ा, जसस इसका हिकसिच� भी आभास धिमल सक तिक सर बराहमरण जाति� क समबनध म कोई आतमीय�ा का भाव रख� थ। व?��: जाति� क समबनध म व परणC रप स उदासीन थ। दानलीला क एक पद म उनहोन सपषट रप म कहा ह तिक कषरण भसिकत क सिलए उनहोन अपनी जाति� ही छोv दी थी। व सचच अथ� म हरिरभकतो की जाति� क थ, तिकसी अनय जाति� स उनका कोई समबनध नही था।

%रदा% की अनध+ा�ीसरा म�भद का तिवषय सरदास की अनध�ा स समबसतरिनध� ह। सामानय रप स यह परसिसदध रहा ह तिक सरदास जनमानध थ और उनहोन भगवान की कपा स दिदवय-दधिषट पायी थी, जिजसक आ/ार पर उनहोन कषरण-लीला का आखो दखा जसा वरणCन तिकया। गोसाई हरिररासय न भी सरदास को जनमानध ब�ाया ह। परन� उनक जनमानध होन का कोई सपषट उललख उनक पदो म नही धिमल�ा। 'चौरासी वा�ाC' क मल रप म भी इसका कोई सक� नही। जसा पीछ कहा जा चका ह, उनक अनध होन का उललख कवल अकबर की भट क परसग म हआ ह। 'सरसागर' क लगभग 7-8 पदो म की परतयकष रप स और कभी परकारान�र स सर न अपनी हीन�ा और �चछ�ा का वरणCन कर� हए अपन को अनधा कहा ह। सरदास क समबनध म जी हिकवदानतिन�या परचसिल� ह।, उन सब म उनक अनघ होन का उललख हआ ह। उनक कढ म तिगरन और ?वय कषरण क दवारा उदधार पान एव दधिषट पराप� करन �था पन: कषरण स अनध होन का वरदान मागन की घटना लोकतिवशर� ह। तिबलवमगल सरदास क तिवषय म भी यह चमतकारपरणC घटना कही-सनी जा�ी ह। इसक अति�रिरकत कतिव धिमयासिसह न �था महाराज रघराज सिसह न भी कछ चमतकारपरणC घटनाओ का उललख तिकया ह, जिजसस उनकी दिदवय-दधिषट समपनन�ा की सचना धिमल�ी ह। नाभादास न भी अपन 'भकतमाल' म उनह दिदवय-दधिषटसमपनन ब�ाया ह। तिनशचय की सरदास एक महान कतिव और भकत होन क ना� असा/ाररण दधिषट रख� थ तिकन� उनहोन अपन कावय म वाहय जग� क जस नाना रपो, रगो और वयापारो का वरणCन तिकया ह, उसस परमाणिरण� हो�ा ह तिक उनहोन अवशय की कभी अपन चमC-चकषओ स उनह दखा होगा। उनका कावय उनकी तिनरीकषरण-शसिकत की असा/ाररण सकषम�ा परकट कर�ा ह कयोतिक लोकम� उनक माहातमय क परति� इ�ना शरदधाल रहा ह तिक वह उनह जनमानध मानन म ही उनका गौरव सम�ा ह, इससिलए इस समबनध म कोई साकषी नही धिमल�ी तिक व तिकसी परिरसथिसथति� म दधिषटहीन हो गय थ। हो सक�ा ह तिक व वदधवसथा क तिनकट दधिषट-तिवहीन हो गय हो परन� इसकी कोई सपषट सचना उनक पदो म नही धिमल�ी। तिवनय क पदो म वदधावसथा की रददCशा क वरणCन क अन�गC� चकष-तिवहीन हान का जो उललख हआ ह, उस आतमकथा नही माना जा सक�ा, वह �ो सामानय जीवन क एक �थय क रप म कहा गया ह।

'%र%ागर'

सरदास की सवCसमम� परामाणिरणक रचना 'सरसागर' ह। एक परकार स 'सरसागर' जसा तिक उसक नाम स ससिच� हो�ा ह, उनकी समपरणC रचनाओ का सकलन कहा जा सक�ा ह* 'सरसागर' क अति�रिरकत 'सातिहतय लहरी' और 'सरसागर सारावली' को भी कछ तिवदवान उनकी परामाणिरणक रचनाए मान� ह परन� इनकी परामाणिरणक�ा सजिनदग/ ह * । सरदास क नाम स कछ अनय �थाकसिथ� रचनाए भी परसिसदध हई ह परन� व या �ो 'सरसागर' क ही अश ह

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अथवा अनय कतिवयो को रचनाए ह। 'सरसागर' क अधययन स तिवदिद� हो�ा ह तिक कषरण की अनक लीलाओ का वरणCन जिजस रप म हआ ह, उस सहज ही खणड-कावय जस ?व�नतर रप म रचा हआ भी माना जा सक�ा ह। पराय: ऐसी लीलाओ को पथक रप म परसिसजिदध भी धिमल गयी ह। इनम स कछ ह?�सिलखिख� रप म �था कछ मदिदर� रप म पराप� हो�ी ह। उदाहररण क सिलए 'नागलीला' जिजसम कासिलयदमन का वरणCन हआ ह, 'गोव/Cन लीला' जिजसम कासिलयदमन का वरणCन हआ ह, 'नागलीला', जिजसम गोव/Cन/ाररण और इनदर क शररणागमन का वरणCन ह, 'परारण पयारी' जिजसम परम क उचचादशC का पचचीस दोहो म वरणCन हआ ह, मदिदर� रप म पराप� ह। ह?�सिलखिख� रप म 'वयाहलो' क नाम स रा/ा-कषरण तिववाहसमबनधीपरसग, 'सरसागर सार' नाम स रामकथा और रामभसिकत समबनधी परसग �था 'सरदास जी क दषटकट' नाम स कट-शली क पद पथक गरनथो म धिमल ह। इसक अति�रिरकत 'पद सगरह', 'दशम ?कनध', 'भागव�', 'सरसाठी' , 'सरदास जी क पद' आदिद नामो स 'सरसागर' क पदो क तिवतिव/ सगरह पथक रप म पराप� हए ह। य सभी 'सरसागर क' अश ह। व?��: 'सरसागर' क छोट-बv ह?�सिलखिख� रपो क अति�रिरकत उनक परमी भकतजन समय-समय पर अपनी-अपनी रसिच क अनसार 'सरसागर' क अशो को पथक रप म सिलख�-सिलखा� रह ह। 'सरसागर' का वजञातिनक रीति� स समपादिद� परामाणिरणक स?कररण तिनकल जान क बाद ही कहा जा सक�ा ह तिक उनक नाम स परचसिल� सगरह और �थाकसिथ� गरनथ कहा �क परमाणिरण� ह।

विववकशील और सिचन+नशील वयसिकततव

सरदास, सर कटी, सर सरोवर, आगराSurdas, Sur Kuti, Sur Sarovar, Agra

सरदास क कावय स उनक बहशर�, अनभव समपनन, तिववकशील और सिचन�नशील वयसिकततव का परिरचय धिमल�ा ह। उनका हदय गोप बालको की भाति� सरल और तिनषपाप, बरज गोतिपयो की भाति� सहज सवदनशील, परम-परवरण और मा/यCपरणC �था ननद और यशोदा की भाति� सरल-तिवशवासी, ?नह-का�र और आतम-बसिलदान की भावना स अनपरमाणिरण� था। साथ ही उनम कषरण जसी गमभीर�ा और तिवदग/�ा �था रा/ा जसी वचन-चा�री और आतमोतसगCपरणC परम तिववश�ा भी थी। कावय म परयकत पातरो क तिवतिव/ भावो स परणC चरिरतरो का तिनमाCरण कर� हए व?��: उनहोन अपन महान वयसिकततव की ही अणिभवयसिकत की ह। उनकी परम-भसिकत क सखय, वातसलय और मा/यC

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भावो का सिचतररण जिजन आखय सचारी भावो , अनतिगन� घटना-परसगो बाहय जग� पराकति�क और सामाजिजक-क अनन� सौनदयC सिचतरो क आशरय स हआ ह, उनक अन�राल म उनकी गमभीर वरागय-वणितत �था अतयन� दीन�ापरणC आतम तिनवदातमक भसिकत-भावना की अन�/ाCरा स�� परवहमान रही ह परन� उनकी ?वाभातिवक तिवनोदवणितत �था हा?य तिपरय�ा क काररण उनका वरागय और दनय उनक सिचततकी अधि/क गलातिनयकत और मसिलन नही बना सका। आतम हीन�ा की चरम अनभति� क बीच भी व उललास वयकत कर सक। उनकी गोतिपया तिवरह की हदय तिवदारक वदना को भी हास-परिरहास क नीच दबा सकी। कररण और हास का जसा एकरस रप सर क कावय म धिमल�ा ह, अनयतर रदलCभ ह। सर न मानवीय मनोभावो और सिचततवणिततयो को, लग�ा ह, तिन:शष कर दिदया ह। यह �ो उनकी तिवशष�ा ह ही परन� उनकी सबस बvी तिवशष�ा कदासिच� यह ह तिक मानवीय भावो को व सहज रप म उस ?�र पर उठा सक, जहा उनम लोकोततर�ा का सक� धिमल� हए भी उनकी ?वाभातिवक रमरणीय�ा अकषणरण ही नही बनी रह�ी, बलकिलक तिवलकषरण आननद की वयजना कर�ी ह। सर का कावय एक साथ ही लोक और परलोक को परति�तिबसतरिमब� कर�ा ह।

विवशाल कावय %ज�नसर की रचना परिरमारण और गरण दोनो म महान कतिवयो क बीच अ�लनीय ह। आतमाणिभवयजना क रप म इ�न तिवशाल कावय का सजCन सर ही कर सक� थ कयोतिक उनक ?वातमम समपरणC यग जीवन की आतमा समाई हई थी। उनक ?वानभति�मलक गीति�पदो की शली क काररण पराय: यह समझ सिलया गया ह तिक व अपन चारो ओर क सामाजिजक जीवन क परति� परणC रप म सजग नही थ परन� परचारिर� पवाCगरहो स मकत होकर यहदिद दखा जाय �ो ?वीकार तिकया जाएगा तिक सर क कावय म यग जीवन की परबदध आतमा का जसा सपनदन धिमल�ा ह, वसा तिकसी दसर कतिव म नही धिमलगा। यह अवशय ह तिक उनहोन उपदश अधि/क नही दिदय, सिसदधान�ो का परति�पादन पसथिणड�ो की भाषा म नही तिकया, वयावहारिरक अथाC� सासारिरक जीवन क आदश� का परचार करन वाल स/ारक का बना नही /ाररण तिकया परन� मनषय की भावातमक सतता का आदशJक� रप गढन म उनहोन जिजस वयवहार बजिदध का परयोग तिकया ह। उसस परमाणिरण� हो�ा ह तिक व तिकसी मनीषी स पीछ नही थ। उनका परभाव सचच कान�ा ससतरिमम� उपदश की भाति� सी/ हदय पर पv�ा ह। व तिनर भकत नही थ, सचच कतिव थ-ऐस दरषटा कतिव, जो सौनदयC क ही माधयम स सतय का अनवषरण कर उस म�C रप दन म समथC हो� ह। यगजीवन का परति�तिबमब हद� हए उसम लोकोततर सतय क सौनदयC का आभास दन की शसिकत महाकतिव म ही हो�ी ह, तिनर भकत, उपदशक और समाज स/ारक म नही। * * * *

सरदास की जनमति�सिथ एव जनमसथान क तिवषय म तिवदवानो म म�भद ह । 'सातिहतय - लहरी ' सरदास जी की रचना मानी जा�ी ह । 'सातिहतय लहरी' क रचना-काल क समबनध म तिनमन पद धिमल�ा ह-

मतिन पतिन क रस लख ।

दसन गौरीननद को सिलखिख सवल सव� पख ।।

रचनाए-

सरदास जी दवारा सिलखिख� पाच गरनथ ब�ाए जा� ह -

1 सरसागर 2 सरसारावली

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3 सातिहतय - लहरी 4 नल - दमयन�ी 5 बयाहलो

मरो मन अन� कहा सख पाव ।

जस उतिv जहाज की पछी, तिफरिर जहाज प आव ॥

कमल-नन को छातिv महा�म, और दव को धयाव ।

परम गग को छातिv तिपयासो, रदरमति� कप खनाव ॥

जिजहिह म/कर अबज-रस चाखयो, कयो करील-फल भाव।

'सरदास' परभ काम/न �जिज, छरी कौन रदहाव ॥

वीसिथका

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अमीर ख%रो / Amir Khusro / Amir Khusrow(1253 ई. स 1325 ई.)

जनम-बचपनराज कतिव अमीर खसरो का जनम सन 1253 ई॰ म एटा (उततरपरदश) क पदिटयाली नामक क?ब म

अमीर ख%रो

जनम 1253 ई.

जनम भमिम एटा, उततर परदश अविवभावक सफददीन और दौल� नाP

कम� भमिम दिदलली कम�-कषतर सगी�जञ, कतिव

मतय 1325 ई.

मखय रचनाए मसनवी तिकरानससादन, मललोल अनवर, सिशरीन खसरो, मजन लला, आईन-ए-सिसकनदरी, हश� तिवतिहश

विवषय गPल, खयाल, कववाली, रबाई, �राना भाषा बरजभाषा, तिहनदी, फारसी विवशष योगदान

मदग को काट कर �बला बनाया, सिस�ार म स/ार तिकए

अनय जानकारी

हPर� तिनPाम-उद-दीन औसिलया क सिशषय

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गगा तिकनार हआ था। अमीर खसरो मधय एसिशया की लाचन जाति� क �कC सफददीन क पतर ह। तिहनदी खvी बोली क पहल लोकतिपरय कतिव अमीर खसरो न कई गPल, खयाल, कववाली, रबाई, �राना की रचना की ह। लाचन जाति� क �कC चगP खा क आकरमरणो स पीतिv� होकर बलबन (1266-1286 ई॰) क राजयकाल म शररणाथJ क रप म भार� म आ बस थ। अमीर खसरो की मा दौल� नाP तिहनद (राजप�) थी। य दिदलली क एक रईस अमी इमारदलमलक की पतरी थी। य बादशाह बलबन क यदध मनतरी थ। य राजनीति�क दवाब क काररण नए-नए मसलमान बन थ। इ?लाम /मC गरहरण करन क बावजद इनक घर म सार रीति�-रिरवाज तिहनरदओ क थ। खसरो क नतिनहाल म गान-बजान और सगी� का माहौल था। खसरो क नाना को पान खान का बहद शौक था। इस पर बाद म खसरो न '�मबोला' नामक एक मसनवी भी सिलखी। इस धिमल-जल घरान एव दो परमपराओ क मल का असर तिकशोर खसरो पर पvा। व जीवन म कछ अलग हट कर करना चाह� थ और वाकई ऐसा हआ भी। खसरो क शयाम वरणC रईस नाना इमारदलमलक और तिप�ा अमीर सफददीन दोनो ही सिचलकिश�या सफी समपरदाय क महान सफी सा/क एव स� हPर� तिनPामददीन औसिलया उफC सल�ानल मशायख क भकत अथवा मरीद थ। उनक सम?� परिरवार न औसिलया साहब स /मCदीकषा ली थी। उस समय खसरो कवल सा� वषC क थ। सा� वषC की अवसथा म खसरो क तिप�ा का दहान� हो गया, तिकन� खसरो की सिशकषा-दीकषा म बा/ा नही आयी। अपन समय क दशCन �था तिवजञान म उनहोन तिवदवतता पराप� की, तिकन� उनकी परति�भा बालयावसथा म ही कावयोनमख थी। तिकशोरावसथा म उनहोन कतिव�ा सिलखना परारमभ तिकया और 20 वषC क हो�-हो� व कतिव क रप म परसिसदध हो गय।

वयावहारिरक बदधि'जनमजा+ कतिव हो� हए भी खसरो म वयावहारिरक बजिदध की कमी नही थी। सामाजिजक जीवन की उनहोन कभी अवहलना नही की। जहा एक ओर उनम एक कलाकार की उचच कलपनाशील�ा थी, वही दसरी ओर व अपन समय क सामाजिजक जीवन क उपयकत कटनीति�क वयवहार-कशल�ा म भी दकष थ। उस समय बजिदधजीवी कलाकारो क सिलए आजीतिवका का सबस उततम सा/न राजयाशरय ही था। खसरो न भी अपना समपरणC जीवन राजयाशरय म तिब�ाया। उनहोन गलाम, खिखलजी और �गलक-�ीन अफगान राज-वशो �था 11 सल�ानो का उतथान-प�न अपनी आखो स दखा। आशचयC यह ह तिक तिनरन�र राजदरबार म रहन पर भी खसरो न कभी भी उन राजनीति�क षडयनतरो म हिकसिचनमातर भाग नही सिलया जो परतयक उततराधि/कार क समय अतिनवायC रप स हो� थ। राजनीति�क दाव-पच स अपन को सदव अनासकत रख� हए खसरो तिनरन�र एक कतिव, कलाकार, सगी�जञ और सतिनक ही बन रह। खसरो की वयावहारिरक बजिदध का सबस बvा परमारण यही ह तिक व जिजस आशरयदा�ा क कपापातर और सममानभाजक रह, उसक हतयार उततराधि/कारी न भी उनह उसी परकार आदर और सममान परदान तिकया।

राजयाशरय%ब% पहल सन 1270 ई॰ म खसरो को समराट गयासददीन बलवन क भ�ीज, कvा (इलाहाबाद) क हातिकम अलाउददीन महममद कसिलश खा (मसिलक छजज) का राजयाशरय पराप� हआ। एक बार बलवन क तिदव�ीय पतर नसीरददीन बगरा खा की परशसा म कसीदा सिलखन क काररण मसिलक छजज उनस अपरसनन हो गया और खसरो को बगरा खा का आशरय गरहरण करना पvा। जब बगरा खा लखनौ�ी का हातिकम तिनयकत हआ �ो खसरो भी उसक साथ चल गय। तिकन� व पवJ परदश क वा�ावररण म अधि/क दिदन नही रह सक और बलवन क जयषठ पतर सल�ान महममद का तिनमनतररण पाकर दिदलली लौट आय। खसरो का यही आशरयदा�ा सवाCधि/क सस?क� और कला-परमी था। सल�ान महममद क साथ उनह मल�ान भी जाना पvा और मगलो क साथ उसक यदध म भी ससतरिममसिल� होना पvा।

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बनदी ख%रोइ% यदध म सल�ान महममद की मतय हो गयी और खसरो बनदी बना सिलय गय। खसरो न बv साहस और कशल�ा क साथ बनदी-जीवन स मसिकत पराप� की। परन� इस घटना क परिररणाम?वरप खसरो न जो मरथिसया सिलखा वह अतयन� हदयदरावक और परभावशाली ह। कछ कछ दिदनो �क व अपनी मा क पास पदिटयाली �था अव/ क एक हातिकम अमीर अली क यहा रह। परन� शीघर ही व दिदलली लौट आय।

रचनाएटिदलली म पन: उनह मईजददीन ककबाद क दरबार म राजकीय सममान पराप� हआ। यहा उनहोन सन 1289 ई॰ म 'मसनवी तिकरानससादन' की रचना की। गलाम वश क प�न क बाद जलालददीन खिखलजी दिदलली का सल�ान हआ। उसन खसरो को अमीर की उपाधि/ स तिवभतिष� तिकया। खसरो न जलालददीन की परशसा म 'धिमफ�ोलफ�ह' नामक गरनथ की रचना की। जलालददीन क हतयार उसक भ�ीज अलाउददीन न भी सल�ान होन पर अमीर खसरो को उसी परकार सममातिन� तिकया और उनह राजकतिव की उपाधि/ परदान की अलाउददीन की परशसा म खसरो न जो रचनाए की व अभ�पवC थी। खसरो की अधि/काश रचनाए अलाउददीन क राजकाल की ही ह। 1298 स 1301 ई॰ की अवधि/ म उनहोन पाच रोमासतरिणटक मसनतिवया-

1. 'मललोल अनवर' 2. 'सिशरीन खसरो' 3. 'मजन लला' 4. 'आईन-ए-सिसकनदरी 5. 'हश� तिवतिहश�'

य पच-गज नाम स परसिसदध ह। य मसनतिवया खसरो न अपन /मC-गर शख तिनPामददीन औसिलया को समरतिप� की �था उनह सल�ान अलाउददीन को भट कर दिदया। पदय क अति�रिरकत खसरो न दो गदय-गरनथो की भी रचना की-

1. 'खPाइनल फ�ह', जिजसम अलाउददीन की तिवजयो का वरणCन ह 2. 'एजाPयखसरवी', जो अलकारगरनथ ह। अलाउददीन क शासन क अनतिन�म दिदनो म खसरो न

दवलरानी खिखजरखा नामक परसिसदध ऐति�हासिसक मसनवी सिलखी।

अलाउददीन क उततराधि/कारी उसक छोट पतर क�बददीन मबारकशाह क दरबार म भी खसरो ससममान राजकतिव क रप म बन रह, यदयतिप मबारकशाह खसरो क गर शख तिनPामददीन स शतर�ा रख�ा था। इस काल म खसरो न नहसिसपहर नाम गरनथ की रचना की जिजसम मबारकशाह क राजय-कला की मखय मखय घटनाओ का वरणCन ह।

विनजामददीन औसिलयाखसरो की अनतिन�म ऐति�हासिसक मसनवी '�गलक' नामक ह जो उनहोन गयासददीन �गलक क राजय-काल म सिलखी और जिजस उनहोन उसी सल�ान को समरतिप� तिकया। सल�ान क साथ खसरो बगाल क आकरमरण म भी ससतरिममसिल� थ। उनकी अनपसथिसथति� म ही दिदलली म उनक गर शख तिनPामददीन मतय हो गयी। इस शोक को अमीर खसरो सहन नही कर सक और दिदलली लौटन पर 6 मास क भी�र ही सन 1325 ई॰ म खसरो न भी अपनी इहलीला समाप� कर दी। खसरो की समाधि/ शख की समाधि/ क पास ही बनायी गयी।

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शख तिनPामददीन औसिलया अफगान-यग क महान सफी सन� थ। अमीर खसरो आठ वषC की अवसथा स ही उनक सिशषय हो गय थ और समभव�: गर की परररणा स ही उनहोन कावय-सा/ना परारमभ की। यह गर का ही परभाव था तिक राज-दरबार क वभव क बीच रह� हए भी खसरो हदय स रह?यवादी सफी सन� बन गय। खसरो न अपन गर का मकत कठ स यशोगान तिकया ह और अपनी मसनतिवयो म उनह समराट स पहल ?मररण तिकया ह।

उनहोन ?वय कहा ह-म विहनदस+ान की ++ी ह। अगर +म वास+व म मझ% जानना चाह+ हो +ो विहनदवी म पछो। म +मह अनपम बा+ ब+ा %कगा खसरो को तिहनदी खvी बोली का पहला लोकतिपरय कतिव माना जा�ा ह। एक बार की बा� ह। �ब खसरो गयासददीन �गलक क दिदलली दरबार म दरबारी थ। �गलक खसरो को �ो चाह�ा था मगर हPर� तिनजामददीन क नाम �क स सिचढ�ा था। खसरो को �गलक की यही बा� नागवार गPर�ी थी। मगर वह कया कर सक�ा था, बादशाह का धिमPाज। बादशाह एक बार कही बाहर स दिदलली लौट रहा था �भी सिचढकर उसन खसरो स कहा तिक हPर� तिनPामददीन को पहल ही आग जा कर यह सदश द द तिक बादशाह क दिदलली पहचन स पहल ही व दिदलली छोv कर चल जाए।। खसरो को बडी �कलीफ हई, पर अपन सन� को यह सदश कहा और पछा अब कया होगा?

कछ नही ख%रो! +म घबराओ म+। हनज टिदलली दरअस+-याविन अभी बह+ टिदलली दर ह। सचमच बादशाह क सिलय दिदलली बह� दर हो गई। रा?� म ही एक पvाव क समय वह जिजस खम म ठहरा था, भयकर अ/v स वह टट-कर तिगर गया और फल?वरप उसकी मतय हो गई। �भी स यह कहाव� "अभी दिदलली दर ह" पहल खसरो की शायरी म आई तिफर तिहनदी म परचसिल� हो गई। अमीर खसरो तिकसी काम स दिदलली स बाहर कही गए हए थ वही उनह अपन खवाजा तिनPामददीन औसिलया क तिन/न का समाचार धिमला। समाचार कया था? खसरो की रदतिनया लटन की खबर थी। व सननीपा� की अवसथा म दिदलली पहच, /ल-/सरिर� खानकाह क दवार पर खड हो गए और साहस न कर सक अपन पीर की म� दह को दखन का। आखिखरकार जब उनहोन शाम क ढल� समय पर उनकी म� दह दखी �ो उनक परो पर सर पटक-पटक कर मरथिछ� हो गए। और उसी बस/ हाल म उनक होठो स तिनकला,

गोरी सोव सज पर मख पर डार कस।

चल खसरो घर आपन साझ भई चह दस।।

अपन तिपरय क तिवयोग म खसरो न ससार क मोहजाल काट फ क। /न-समपणितत दान कर, काल व?तर /ाररण कर अपन पीर की समाधि/ पर जा बठ-कभी न उठन का दढ तिनशचय करक। और वही बठ कर परारण तिवसजCन करन लग। कछ दिदन बाद ही परी �रह तिवसरजिज� होकर खसरो क परारण अपन तिपरय स जा धिमल। पीर की वसीय� क अनसार अमीर खसरो की समाधि/ भी अपन तिपरय की समाधि/ क पास ही बना दी गई।

विहनदी की ++ीअमीर खसरो मखय रप स फारसी क कतिव ह। फारसी भाषा पर उनका अपरति�म अधि/कार था। उनकी गरणना महाकतिव तिफरदौसी, शख सादिदक और तिनPामी फारस क महाकतिवयो क साथ हो�ी ह। फारसी कावय क लासिलतय और मादCव क काररण ही अमीर खसरो को 'तिहनदी की ��ी' कहा जा�ा ह। खसरो का फारसी कावय चार वग~ म तिवभकत तिकया जा सक�ा ह-

ऐति�हासिसक मसनवी जिजसम तिकरानससादन, धिमफ�ोलफ�ह, दवलरानी खिखजरखा, नहसिसपहर और �गलकनामा नामकी रचनाए आ�ी ह;

रोमासतरिणटक मसनवी-जिजसम म�लऊ लअनवार, सिशरीन खसरी, आईन-ए-सिसकनदरी, मजन-लला और हश� तिवहश� तिगनी जा�ी ह;

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दीवान-जिजसम �हफ �म सिसगहर, वा?�लहया� आदिद गरनथ आ� ह; गदय रचनाए- 'एजाPयखसरवी' और 'खPाइनलफ�ह �था धिमणिशर�' – जिजसम वदऊलअजाइब' ,

'मसनवी शहरअसब', 'सिचश�ान' और 'खासिल�बारी' नाम की रचनाए परिरगणिरण� ह।

यदयतिप खसरो की महतता उनक फारसी कावय पर आणिशर� ह, परन� उनकी लोकतिपरय�ा का काररण उनकी तिहनदवी की रचनाए ही ह। तिहनदवी म कावय-रचना करनवालो म अमीर खसरो का नाम सवCपरमख ह। अरबी, फारसी क साथ-साथ अमीर खसरो को अपन तिहनदवी जञान पर भी गवC था। उनहोन ?वय कहा ह- 'म तिहनरद?�ान की ��ी ह। अगर �म वा?�व म मझस जानना चाह� हो �ो तिहनदवी म पछो! म �मह अनपम बा� ब�ा सकगा। "अमीर खसरो न कछ रचनाए तिहनदी या तिहनदवी म भी की थी, इसका साकषय ?वय उनक इस कथन म पराप� हो�ा ह-" जजव चनद नजम तिहनदी नPर दो?�ा करदा अ?�।" उनक नाम स तिहनदी म पहसिलया, मकरिरया, दो सखन और कछ गPल परसिसदध ह। इसक अति�रिरकत उनका फारस-तिहनदी कोश खासिलकबारी भी इस परसग म उललखनीय ह।

अमीर ख%रो की विहनदी कविव+ारदभाCगय ह तिक अमीर खसरो की तिहनदवी रचनाए सिलखिख� रप म पराप� नही हो�ी। लोकमख क माधयम स चली आ रही उनकी रचनाओ की भाषा म तिनरन�र परिरव�Cन हो�ा रहा होगा और आज वह जिजस रप म पराप� हो�ी ह वह उसका आ/तिनक रप ह। तिफर भी हम तिन?सनदह यह तिवशवास कर सक� ह तिक खसरो न अपन समय की खvी बोली अथाC� तिहनदवी म भी अपनी पहसिलया, मकरिरया आदिद रची होगी। कछ लोगो को अमीर खसरो की तिहनदी कतिव�ा की परामाणिरणक�ा म सनदह हो�ा ह। ?व 0 परोफसर शरानी �था कछ अनय आलोचक तिवदवान खासिलकबोरी को भी परसिसदध अमीर खसरो की रचना नही मान�। परन�खसरो की तिहनदी कतिव�ा क समबनध म इ�नी परबल लोकपरमपरा ह तिक उसपर अतिवशवास नही तिकया जा सक�ा यह परमपरा बह� परानी ह। 'अरफ�लआसिस�ी' क लखक �कीओहदीजो 1606 ई॰ म जहागीर क दरबार म आय थ खसरो की तिहनदी कतिव�ा का जिPकर कर� ह। मीर� की 'मीर' अपन 'तिनका�स?वरा' म सिलख� ह तिक उनक समय �क खसरो क तिहनदी गी� अति� लोकतिपरय थ।* इस समबनध म सनदह को सथान नही ह तिक अमीर खसरो न तिहनदवी म रचना की थी। यह आवशय ह तिक उसका रप समय क परवाह म बदल�ा आया हो। आवशयक�ा यह ह तिक खसरो न तिहनदवी म रचना की थी। यह अवशय ह तिक उसका रप समय क परवाहम बदल�ा आया हो। आवशयक�ा यह ह तिक खसरो की तिहनदी-कतिव�ा का यथासमभव वजञातिनक समपादन करक उसक पराचीन�म रप को पराप� करन का यतन तिकया जाय। कावय की दधिषट स भल ही उसम उतकषट�ा न हो, सा?कति�क और भाषा वजञातिनक अधययन क सिलए उसका मलय तिन?सनदह बह� अधि/क ह।

कछ रचनाएजिPहाल-ए धिम?की मकन �गाफल,रदराय नना बनाय बति�या |तिक �ाब-ए-तिहजरा नदारम ऎ जान,न लहो काह लगाय छति�या ||शबा-ए-तिहजरा दरP च जËलफवा रोP-ए-व?ल� चो उमर को�ाह,सखिख तिपया को जो म न दख�ो कस काट अ/री रति�या ||यकायक अP दिदल, दो चशम-ए-जादब सद फरबम बाबदC �?की,तिकस पडी ह जो जा सनावतिपयार पी को हमारी बति�या ||

छाप ति�लक सब छीनी र मोस नना धिमलाइकपरम भटी का मदवा तिपलाइकम�वारी कर लीनही र मोस नना धिमलाइकगोरी गोरी बईया, हरी हरी चतिvयाबईया पकv /र लीनही र मोस नना धिमलाइकबल बल जाऊ म �ोर रग रजवअपनी सी रग दीनही र मोस नना धिमलाइकखसरो तिनजाम क बल बल जाएमोह सहागन कीनही र मोस नना धिमलाइकछाप ति�लक सब छी

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चो शमा सोPान, चो PराC हरानहमशा तिगरयान, ब इशक आ मह |न नीद नना, ना अग चनाना आप आव, न भज पति�या ||बहकक-ए-रोP, तिवसाल-ए-दिदलबरतिक दाद मारा, गरीब खसरौ |सपट मन क, वराय राखजो जाय पाव, तिपया क खदिटया ||

विबहारी लाल / Bihari lal

तिहनदी सातिहतय क रीति� काल क कतिवयो म तिबहारी का नाम महतवपरणC ह। महाकतिव तिबहारीलाल का जनम 1595 क लगभग गवासिलयर म हआ। व जाति� क माथर चौब थ। उनक तिप�ा का नाम कशवराय था। उनका बचपन बदलखड म कटा और यवावसथा ससराल मथरा म वय�ी� हई, जस की तिनमन दोह स परकट ह -

जनम गवासिलयर जातिनय खड बदल बाल ।

�रनाई आई सघर मथरा बसिस ससराल ।।

जयपर-नरश धिमजाC राजा जयसिसह अपनी नयी रानी क परम म इ�न डब रह� थ तिक व महल स बाहर भी नही तिनकल� थ और राज-काज की ओर कोई धयान नही द� थ। मनतरी आदिद लोग इसस बv सिचति�� थ, हिक� राजा स कछ कहन को शसिकत तिकसी म न थी। तिबहारी न यह कायC अपन ऊपर सिलया। उनहोन तिनमनसिलखिख� दोहा तिकसी परकार राजा क पास पहचाया-

नहिह पराग नहिह म/र म/, नहिह तिवकास यतिह काल ।

अली कली ही सौ हिबधयो, आग कौन हवाल ।।

इस दोह न राजा पर मनतर जसा कायC तिकया। व रानी क परम-पाश स मकत होकर पनः अपना राज-काज सभालन लग।

व तिबहारी की कावय कशल�ा स इ�न परभातिव� हए तिक उनहोन तिबहारी स और भी दोह रचन क सिलए कहा और परति� दोह पर एक अशफ^ दन का वचन दिदया। तिबहारी जयपर नरश क दरबार म रहकर कावय-रचना करन लग, वहा उनह पयाCप� /न और यश धिमला। 1663 म उनकी मतय हो गई। तिबहारी की एकमातर रचना 'तिबहारी स�सई ' ह। यह मकतक कावय ह। इसम 719 दोह सकसिल� ह। 'तिबहारी स�सई' शरगार रस की अतय� परसिसदध और अनठी कति� ह। इसका एक-एक दोहा तिहनदी सातिहतय का एक-एक अनमोल रतन माना जा�ा ह।

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तिबहारी की कतिव�ा का मखय तिवषय शरगार ह। उनहोन शरगार क सयोग और तिवयोग दोनो ही पकषो का वरणCन तिकया ह। सयोग पकष म तिबहारी न हाव-भाव और अनभवो का बvा ही सकषम सिचतररण तिकया ह। उसम बvी मारमिमक�ा ह। सयोग का एक उदाहररण दखिखए-

ब�रस लालच लाल की मरली /री लकाय ।

सौह कर, भौहन हस दन कह, नदिट जाय ।।

तिबहारी का तिवयोग, वरणCन बvा अति�शयोसिकत परणC ह। यही काररण ह तिक उसम ?वाभातिवक�ा नही ह, तिवरह म वयाकल नाधियका की रदबCल�ा का सिचतररण कर� हए उस घvी क पडलम जसा बना दिदया गया ह-

इति� आव� चली जा� उ�, चली, छःसा�क हाथ ।

चढी हिहडोर सी रह, लगी उसासन साथ ।।

सफी कतिवयो की अहातमक पदधति� का भी तिबहारी पर पयाCप� परभाव पvा ह। तिवयोग की आग स नाधियका का शरीर इ�ना गमC ह तिक उस पर डाला गया गलाब जल बीच म ही सख जा�ा ह-

औ/ाई सीसी सलखिख, तिबरह तिवथा तिवलसा� ।

बीचहिह सखिख गलाब गो, छीटो छयो न गा� ।।

भषण / Bhushan

वीर रस क कतिव भषरण का जनम कानपर जिPल म यमना तिकनार ति�कवापर गाव म हआ था। धिमशरबनधओ �था रामचनदर शकल न भषरण का समय 1613-1715 ई. माना ह। सिशवसिसह सगर न भषरण का जनम 1681 ई. और तिगरयसCन न 1603 ई. सिलखा ह। भषरण 1627 ई. स 1680 ई. �क महाराजा सिशवाजी क आशरय म रह। इनक छतरसाल बदला क आशरय म रहन का भी उललख धिमल�ा ह। 'सिशवराज भषरण', 'सिशवाबावनी', और 'छतरसाल दशक' नामक �ीन गरथ ही इनक सिलख छः गरथो म स उपलबध ह।

भषण

अनय नाम पति�राम, मतिनराम (तिकवद�ी)

जनम 1613

जनम भमिम ति�कवापर गाव, कानपर

अविवभावक रतनाकर तितरपाठी

कम� भमिम कानपर

कम�-कषतर कतिव�ा

मतय 1715

मखय रचनाए सिशवराजभषरण, सिशवाबावनी, छतरसालदशक

विवषय वीर रस कतिव�ा

भाषा बरजभाषा, अरबी, फारसी, �क^

परसि%दधि' वीर-कावय �था वीर रस

विवशष योगदान रीति�गरथ

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जीवन परिरचयभषरण तिहनदी रीति� काल क अन�गC�, उसकी परमपरा का अनसररण कर� हए वीर-कावय �था वीर-रस की रचना करन वाल परसिसदध कतिव ह। इनहोन दधिशवराज-भषण म अपना परसिचय द� हए सिलखा ह तिक य कानयकबज बराहमरण थ। इनका गोतर कशयप था। य रतनाकर तितरपाठी क पतर थ �था यमना क तिकनार तितरतिवकरमपर (ति�कवापर) म रह� थ, जहा बीरबल का जनम हआ था और जहा तिवशवशवर क �लय दव-तिबहारीशवर महादव ह। सिचतरकटपति� हदयराम क पतर रदर सलकी न इनह 'भषरण' की उपाधि/ स तिवभतिष� तिकया था।[1] ति�कवापर कानपर जिPल की घाटमपर �हसील म यमना क बाए तिकनार पर अवसथिसथ� ह। सिशवसिसह सगर न भषरण का जनम 1681 ई. और तिगरयसCन न 1603 ई. सिलखा ह। कछ तिवदवानो क म�ानसार भषरण सिशवाजी क पौतर साह क दरबारी कतिव थ। कहन की आवशयक�ा नही ह तिक उन तिवदवानो का यह म� भरानतिन�परणC ह। व?��: भषरण सिशवाजी क ही समकालीन एव आणिशर� थ।

परिरवार

भषरण क तिप�ा कानयकबज बराहमरण रतनाकर तितरपाठी थ। कहा जा�ा ह तिक व चार भाई थ- सिचन�ामणिरण, भषरण, मति�राम और नीलकणठ (उपनाम जटाशकर)। भषरण क भरा�तव क समबनध म तिवदवानो म बह� म�भद ह। कछ तिवदवानो न इनक वा?�तिवक नाम पवि+राम अथवा मविनराम होन की कलपना की ह पर यह कोरा अनमान ही पर�ी� हो�ा ह।

आशरयदा+ा

भषरण क परमख आशरयदा�ा महाराज सिशवाजी (6 अपरल, 1627 - 3 अपरल, 1680 ई.) �था छतरसाल बनदला (1649-1731 ई.) थ। इनक नाम स कछ ऐस फटकर छनद धिमल� ह, जिजनम साहजी, बाजीराव, सलकी, महाराज जयसिसह , महाराज रानसिसह, अतिनरदध, राव बदध, कमाऊ नरश, गढवार-नरश, औरगजब, दाराशाह (दाराशकोह) आदिद की परशसा की गयी ह। य सभी छनद भषरण-रसिच� ह। इसका कोई पषट परमारण नही ह। ऐसी परिरसथिसथति� म उकत-सभी राजाओ क भषरण का आशरयदा�ा नही माना जा सक�ा।

गरनथभषरणरसिच� छ: गरनथ ब�लाय जा� ह। इनम स य �ीन गरनथ-

'भषरणहजारा' 'भषरणउललास'

'दषरणउललास' यह गरथ अभी �क दखन म नही आय ह। भषरण क शष गरनथो का परिरचय इस परकार ह:

अनकरम[छपा]

1 भषरण / Bhushan 2 जीवन परिरचय

o 2.1 परिरवार

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o 2.2 आशरयदा�ा

3 गरनथ

o 3.1 सिशवराजभषरण

o 3.2 सिशवाबावनी

o 3.3 छतरसालदशक

4 कावयग� सौनदयC

o 4.1 शली

o 4.2 भाषा

5 कावय म सथान

6 टीका दिटपपरणी और सदभC

7 बाहरी कतिvया

8 समबधि/� सिलक

दधिशवराजभषण

भषरण न अपनी इस कति� की रचना-ति�सिथ जयषठ वदी तितरयोदशी, रतिववार, समव� 1730, 29 अपरल , 1673 ई. रतिववार को दी ह।[2] सिशवराज- भषरण म उललखिख� सिशवाजी तिवषयक ऐति�हासिसक घटनाए 1673 ई. �क घदिट� हो चकी थी। इसस भी इस गरनथ का उकत रचनाकाल ठीक ठहर�ा ह। साथ ही सिशवाजी और भषरण की समसामधियक�ा भी सिसदध हो जा�ी ह। 'सिशवराज-भषरण' म 384 छनद ह। दोहो म अलकारो की परिरभाषा दी गयी ह �था कतिवतत एव सवया छनदो म उदाहररण दिदय गय ह, जिजनम सिशवाजी क कायC-कलापो का वरणCन तिकया गया ह।

दधिशवाबावनी

सिशवाबावनी म 52 छनदो म सिशवाजी की कीरति� का वरणCन तिकया गया ह।

छतर%ालदशक

छतरसालदशक म दस छनदो म छतरसाल बनदला का यशोगान तिकया गया ह। भषरण क नाम स पराप� फटकर पदयो म तिवतिव/ वयसिकतयो क समबनध म कह गय �था कछ शरगारपरक पदय सगही� ह।

कावयग+ %ौनदय�भषरण की सारी रचनाए मकतक-प'वि+ म सिलखी गयी ह। इनहोन अपन चरिरतर-नायको क तिवसिशषट चारिरतरय-गरणो और कायC-कलापो को ही अपन कावय का तिवषय बनाया ह। इनकी कतिव�ा वीररस, दानवीर और /मCवीर क वरणCन परचर मातरा म धिमल� ह, पर पर/ान�ा यदधवीर की ही ह। इनहोन यदधवीर क परसग म च�रग चम, वीरो की गव~सिकतया, योदधाओ क पौरष-परणC कायC �था श?तरा?तर आदिद का सजीव सिचतररण तिकया ह। इसक अति�रिरकत रौदर,

Page 53: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewस रद स क जन म-त थ तथ उनक ज वन क क छ अन य म ख य घटन ओ क क ल-न

भयानक, वीभतस आदिद पराय: सम?� रसो क वरणCन इनकी रचना म धिमल� ह पर उसम रसराजक�ा वीररस की ही ह। वीर-रस क साथ रौदर �था भयानक रस का सयोग इनक कावय म बह� अचछा बन पvा ह।

रीति�कार क रप म भषरण को अधि/क सफल�ा नही धिमली ह पर शदध कतिवतव की दधिषट स इनका परमख सथान ह। इनहोन परकति�-वरणCन उददीपन एव अलकार-पदधति� पर तिकया ह। 'सिशवराजभषरण' म रायगढ क परसग म राजसी ठाठ-बाट, वकषो ल�ाओ �था पणिकषयो क नाम तिगनान वाली परिरपाटी का अनकररण तिकया गया ह।

शली

सामानय�: भषरण की शली विववचनातमक एव %शलि8षट ह। इनहोन तिववररणतमक-पररणाली की बह� कम परयोग तिकया ह। इनहोन यदध क बाहरी सा/नो का ही वरणCन क अति�रिरकत सन�ोष नही कर सिलया ह, वरन मानव-हदय म उमग भरन वाली भावनाओ की ओर उनका सदव लकषय रहा ह। शबदो और भावो का सामज?य भषरण की रचना का तिवशष गरण ह।

भाषा

भषरण न अपन समय म परचसिल� सातिहतय की सामानय कावय-भाषा बरजभाषा का परयोग तिकया ह। इनहोन तिवदशी शबदो को अधि/क उपयोग मसलमानो क ही परसग म तिकया ह। दरबार क परसग म भाषा का खvा रप भी दिदखाई पv�ा ह। इनहोन अरबी, फार%ी और +क; क शबद अधि/क परयकत तिकय ह। बनदलखणडी, बसवाvी एव अन�व�दी शबदो का भी कही-कही परयोग तिकया गया ह। इस परकार भषरण की भाषा का रप सातिहनतितयक दधिषट स बरा भी नही कहा जा सक�ा। इनकी कतिव�ा म ओज पयाCप� मातरा म ह। परसाद का भी अभाव नही ह। 'सिशवराजभषरण' क आरमभ क वरणCन और शरगार क छनदो म मा/यC की पर/ान�ा ह।

कावय म सथानआचायCतव की दधिषट स भषरण को तिवसिशषट सथान नही परदान तिकया जा सक�ा पर कतिवतव क तिवचार स उनका एक महतवपरणC सथान ह। उनकी कतिव�ा कतिव- कीरति�समबनधी एक अतिवचल सतय का दषटान� ह। व �तकालीन ?वा�नयसगराम क परति�तिनधि/ कतिव ह। भषरण वीरकावय-/ारा क जगमगा� रतन ह।


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