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OCTOBER 2016 - GShindi...1 OCTOBER 2016 Topic Page Polity 2-30 Geography, Environment& Ecology 31-36...

Date post: 25-Apr-2020
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1 OCTOBER 2016 Topic Page Polity 2-30 Geography, Environment& Ecology 31-36 Science and Technology 37-47 International Relation& International events 48-80 Editorials 81-103 Security issues 104-110 Social issues 111-121 Economy 122-161 Miscellaneous 162-176 http://gshindi.com WhatsApp # 8800141518
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    OCTOBER 2016

    Topic Page

    Polity 2-30

    Geography, Environment& Ecology 31-36

    Science and Technology 37-47

    International Relation& International events 48-80

    Editorials 81-103

    Security issues 104-110

    Social issues 111-121

    Economy 122-161

    Miscellaneous 162-176

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    Polity

    1. न्यायमूर्ति जगदीश र् िंह खेहर ह िंगे देश के नए मुख्य न्यायाधीश

    देश के दूसरे वररष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश र्सिंह खेहर को नया प्रधान न्यायाधीश र्नयुक्त करने की

    प्रर्िया शुरू हो गई है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ र्सिंह ठाकुर ने न्यायमूर्ति जगदीश र्सिंह खेहर को अपने

    उत्तरार्धकारी के रूप में नार्मत र्कया है।

    मेमोरेन्डम आफ प्रोसीजर के मुतार्िक र्वर्ध एविं न्याय मिंत्री रर्व शिंकर प्रसाद ने न्यायमूर्ति ठाकुर को

    नविंिर में पत्र र्िखकर उनसे अपने उत्तरार्धकारी को नार्मत करने का अनुरोध र्कया था। न्यायमूर्ति

    ठाकुर ने अपने जवाि में न्यायमूर्ति खेहर को नया प्रधान न्यायाधीश र्नयुक्त करने की र्सफाररश की।

    र्फिहाि चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर तीन जनवरी तक अपना कायिभार सिंभािते रहेंगे।

    जस्टिस खेहर देश के 44वें मुख्य न्यायाधीश होिंगे। जस्टिस खेहर 2011 में सुप्रीम कोटि में जज र्नयुक्त

    र्कए गए थे। इससे पहिे वो कनािटक और उत्तराखिंड हाईकोटि में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं।

    2. र्दव्ािंग : अर्धकार आधाररत शक्तिकरण:-

    Differently abled population in India

    2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 2.68 करोड़ (2.21 प्रर्तशत) र्दव्ािंगजन हैं, िेर्कन कुछ अन्य

    अनुमानोिं के अनुसार वास्तर्वक सिंख्या इससे ज्यादा हमारी आिादी का 5 प्रर्तशत अर्धक हो सकती

    है। Government schemes and Programme for disabled:

    हािािंर्क र्पछिे कुछ वर्षों में र्दव्ािंगजनोिं के प्रर्त दृर्िकोण में काफी िदिाव आया है। सरकार ने भी अि

    र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं के अर्धकार आधाररत आर्थिक सशस्टक्तकरण पर ध्यान कें र्ित र्कया है।

    o 3 र्दसिंिर - र्दवस। र्दव्ािंग अिंतराििर ीय

    o भारत में 1995 के र्दव्ािंग व्स्टक्त अर्धर्नयम )अवसर समान , अर्धकारोिं का सिंरक्षण और सिंपूणि

    सहभार्गता (आधार अर्धकार उनके ही साथ के होने िागू र् त आर्थिक सशस्टक्तकरण के र्िए पहिा

    कदम िढाया गया है। भारत का दूसरा कदम र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं के अर्धकारोिं पर सिंयुक्त रािर

    समझौता गया र्कया पेश र्वधेयक नया एक में राज्यसभा है। करना स्वीकार) डी.पी.आर.सी.एन.यू(

    है, र्जसमें इस प्रर्िया को िढाने का प्रावधान है। इस र्वधेयक को अभी सिंसद से मिंजूरी र्मिनी

    र्दव्ािंग िं के शक्तिकरण हेतु प्रया :-

    ुगम्य भारत अर्भयान:-

    o यह अर्भयान िगभग एक वर्षि पहिे 15 र्दसिंिर को शुरू र्कया गया था।

    o उदे्दश्य: सरकार के इस प्रमुख कायििम का उदे्दश्य सक्षम और िाधारर्हत वातावरण तैयार कर

    र्दव्ािंगजनोिं के र्िए सुगम्यता उपिब्ध कराना है।

    o इसे तीन उदे्दश्योिं - सुगम्यता में वातावरण तैयार , पररवहन प्रणािी में सुगम्यता और ज्ञान तथा आईसीटी

    पाररस्टथथर्तकी तिंत्र में पहिंच पर कें र्ित र्कया गया है।

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    र्दव्ािंगजन अर्धकार र्िधेयक, 2014:-

    o यह 1995 के अर्धर्नयम का थथान िेगा।

    o इस र्वधेयक में र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं के अर्धकार समूहोिं और कायिकतािओिं की कई मािंगोिं को शार्मि

    करने का प्रावधान है।

    o इस र्वधेयक के कुछ महत्वपूणि प्रावधानोिं में कानून के अिंतगित र्दव्ािंगजनोिं के र्िए आवश्यक

    सुगम्यता को अर्नवायि करना, प्रस्तार्वत िाभाथी शे्रर्णयोिं की सिंख्या 7 से िढाकर 19 करना, कम से

    कम 40 प्रर्तशत र्वक्ािंगता वािे व्स्टक्तयोिं को भी कुछ िाभ की पात्रता देना शार्मि है।

    o इसमें सभी साविजर्नक भवनोिं, अस्पतािोिं और पररवहन के साधनोिं, मतदान कें िोिं आर्द थथानोिं पर

    र्दव्ािंगोिं के अनुकूि सुगम्यता उपिब्ध कराने का भी प्रावधान है।

    o इस र्वधेयक के र्कसी भी प्रावधान का उल्लिंघन करना कानून के अिंतगित दिंडनीय है।

    इसके अिावा प्रस्तार्वत कानून के जररए सरकार ने र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं के सशस्टक्तकरण के कई उपाय

    र्कए हैं।

    ुगम्य पुस्तकालय:-

    o सरकार ने इस वर्षि अगस्त में एक ऑनिाइन मिंच“सुगम्य पुस्तकािय” का शुभारिंभ र्कया, जहािं

    र्दव्ािंगजन िटन स्टक्क करते ही पुस्तकािय की र्कतािें पा सकते हैं।

    o र्दव्ािंग व्स्टक्त अपनी पिंसद के र्कसी भी उपकरण जैसे मोिाइि फोन, टैििेट, कम्प्यूटर, डैजी

    पे्लयर यहािं तक की बे्रि र्डस्पिे पर बे्रि र्िर्प में भी कोई प्रकाशन पड़ सकते हैं।

    o बे्रि पे्रस वािे सिंगठन के सदस्य के जररए बे्रि र्िर्प में भी प्रर्त के र्िए अनुरोध र्कया जा सकता है।

    यूडीआईडी काडि:-

    o सरकार ने वेि आधाररत असाधारण र्दव्ािंग पहचान शुरू काडि) यूडीआईडी( करने का प्रस्ताव

    र्कया है। इस पहि से र्दव्ािंग प्रमाण पत्र की प्रमार्णकता सुर्नर्ित करने में िड़ी मदद र्मिेगी और

    अिग -होगी दूर परेशानी की रखने साथ पत्र प्रमाण कई र्िए के कायों अिग , क्ोिंर्क र्दव्ािंग का

    प्रकार सर्हत र्वर्भन्न र्ववरण ऑनिाइन उपिब्ध होगा।

    छात्रिृर्ि य जना:-

    सरकार ने मैर्टरक के पहिे (46000 स्लॉट्स), मैर्टरक के िाद (16650 स्लॉट्स) और उच्च स्तरीय र्शक्षा

    (100 स्लॉट्स) पाने के इचु्छक छात्रोिं के र्िए भी योजना शुरू की है।

    स्वािलिंबन:-

    र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं के कौशि प्रर्शक्षण के र्िए र्पछिे वर्षि एक रािर ीय कायियोजना का शुभारिंभ र्कया गया।

    एनएसडीसी के सहयोग से र्दव्ािंगजन सशस्टक्तकरण र्वभाग ने अगिे तीन वर्षों (पहिे वर्षि में एक िाख, दूसरे

    वर्षि में डेढ िाख और तीसरे वर्षि में ढाई िाख) में पािंच िाख र्दव्ािंग व्स्टक्तयोिं को कौशि प्रर्शक्षण देने का

    महत्वकािंक्षी िक्ष्य तय करने का प्रस्ताव र्कया है। कायि योजना का उदे्दश्य 2022 के अिंत तक 25 िाख

    र्दव्ािंगजनोिं को कौशि प्रर्शक्षण देना है।

    ामार्जक अर्धकाररता र्शर्िर:-

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    र्वभाग र्दव्ािंगजनोिं को सहायता और उपकरण र्वतररत करने के र्िए र्शर्वर आयोर्जत करता है। प्रधानमिंत्री

    श्री नरेन्द्र मोदी ने र्सतिंिर में गुजरात में आयोर्जत ऐसे एक र्शर्वर में 11 हजार से अर्धक र्दव्ािंगजनोिं को

    सहायता और सहायक उपकरण र्वतररत र्कए। देश भर के दूर-दराज के इिाकोिं में रहने वािे र्दव्ािंगजनोिं

    की जरूरतोिं को पूरा करने के र्िए भी इसी प्रकार के र्शर्वर आयोर्जत र्कए गए।

    र् िंता के के्षत्र (Some cause of concern) :----

    र्दव्ािंगजनोिं के र्िए पहिे कानून के एक दशक से भी अर्धक गुजर जाने और समय -पर समय

    आरर्क्षत प्रर्तशत तीन में नौकररयोिं सरकारी िावजूद के अर्भयान भती र्वशेर्ष सीटोिं में से िगभग एक

    प्रर्तशत भर्तियािं ही हो पाई हैं और यह िात सरकार ने स्वयिं स्वीकार की है।

    14,000 से अर्धक र्चस्टित पदोिं पर अभी भी भर्तियािं होनी शेर्ष है। िगभग 10,000 नेत्रहीनोिं के र्िए

    आरर्क्षत सीटें भरी जानी है।

    अिंतराििर ीय श्रम सिंगठन की 2011 की एक ररपोटि में कहा गया है र्क भारत में अभी भी 73 प्रर्तशत से

    अर्धक र्दव्ािंगजन श्रमशस्टक्त से िाहर हैं और मानर्सक रूप से र्वक्ािंग, र्दव्ािंग मर्हिाएिं और

    ग्रामीण के्षत्रोिं में रहने वािे र्दव्ािंगजन सिसे अर्धक उपेर्क्षत हैं।

    सरकार द्वारा र्दव्ािंग िच्चोिं को सू्कि में भती कराने के र्िए कई कदम उठाने के िावजूद आधे से

    अर्धक ऐसे िचे्च सू्कि नही िं जाते हैं।

    आशाएिं और आकािंक्षाएिं :----

    र्पछिे दो वर्षों के दौरान शुरू की गई कई योजनाओिं और कायििमोिं की तेजी से समावेशी और न्यायसिंगत

    र्वश्व िनाने की पररकल्पना साकार हो सकती है।

    --

    3. र् नेमाघर िं में राष्ट्रगान

    Why in news:

    सवोच्च न्यायािय ने देशभर के र्सनेमाघरोिं में र्फल्म शुरू होने से पहिे रािर गान अर्नवायि कर र्दया

    है

    । शीर्षि अदाित ने कहा है र्क इस दौरान र्सनेमा के परदे पर रािरध्वज मौजूद रहना चार्हए। मकसद

    देश के हर नागररक में देशभस्टक्त की भावना जगाना है।

    साथ ही परदे पर रािरध्वज की तस्वीर भी र्दखाई जानी चार्हए। र्जस वक्त रािर गीत िज रहा हो, वहािं

    उपस्टथथत िोगोिं का उसके सम्मान में खडे़ रहना जरूरी है।

    इसके अिावा रािर गान का र्कसी भी रूप में व्ावसार्यक इसे्तमाि नही िं होना चार्हए। इसकी धुन को

    िदि कर गाने या र्फर इसे नाटकीय प्रयोजन के र्िए उपयोग नही िं होना चार्हए।

    Argument of court

    कुछ समय पहिे जि र्सनेमाघरोिं में रािर गान िजाना अर्नवायि र्कए जाने को िेकर मािंग उठी तो इस पर र्ववाद

    खडे़ हो गए। कुछ िोगोिं का कहना था र्क इस तरह रािर गान का अपमान होगा। कुछ िोगोिं ने इसे मान्यता के

    अनुकूि नही िं समझा। मगर सवोच्च न्यायािय ने स्पि र्कया है र्क:

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    अि वक्त आ गया है र्क देश के नागररकोिं को समझना होगा र्क यह उनका देश है।

    उिें रािर गान का सम्मान करना होगा, क्ोिंर्क यह सिंवैधार्नक देशभस्टक्त से जुड़ा मामिा है।

    िोगोिं को महसूस होना चार्हए र्क वे अपने देश में हैं और यह हमारी मातृभूर्म है। र्वदेशोिं में तो आप

    उनके हर प्रावधान का पािन करते हैं, मगर अपने देश में हर प्रावधान से दूर भागते हैं।’

    अदाित ने माना र्क यह हर नागररक का फजि है र्क जि और जहािं रािर गान गाया या प्रदर्शित र्कया

    जा रहा हो, वह उसके सम्मान में खड़ा हो जाए।

    सवोच्च न्यायािय ने अपने फैसिे में कहा भी है र्क देश है तभी िोग स्वतिंत्रता का िाभ िे पाते हैं।

    इसर्िए रािर गान के प्रर्त सम्मान प्रकट करने में उिें गुरेज क्ोिं होना चार्हए। दूसरे देशोिं में रािर गान

    को िेकर वहािं के नागररकोिं में ऐसा िापरवाही भरा रवैया नही िं देखा जाता, जैसा हमारे यहािं होता है।

    Some view in opposition to SC View:

    शीर्षि अदाित ने कहा, ‘आजकि िोगोिं को पता नही िं र्क रािर गान कैसे गाया जाता है और िोगोिं को यह

    र्सखाना होगा.’इससे दो सवाि उठते हैं.

    o पहला िाल न्यायपार्लका के अपने दायरे े बाहर जाने का है : न्यायपार्िका, र्जसमें सुप्रीम

    कोटि भी शार्मि है, का काम कानूनोिं की व्ाख्या करना है, उिें िनाना नही िं. िोकतिंत्र शस्टक्तयोिं के

    इस ििंटवारे पर खड़ा है. िेर्कन न्यायपार्िका पर अगर अपने दायरे से िाहर जाकर काम करने के

    आरोप िहत आम हो गए हैं तो इसका कारण यही है र्क न्यायपार्िका अक्सर कायिपार्िका के

    अर्धकारोिं में अर्तिमण करने िगी है.

    o दू रा नागररक िं े र्क ी बचे्च की तरह बतािि करने का: अगर र्फल्म से पहिे सिको रािर गान

    गाने का आदेश हो गया है तो कि इसी तकि पर हर र्िकेट मैच या हर फ्लाइट के जमीन पर उतरने

    से पहिे यह करने की मािंग होने िगेगी. यह मूखितापूणि नही िं िस्टि गिंभीर िात है. जोर-जिदिस्ती का

    रािर वाद पहचान और व्वहार के धराति को अिंतहीन रूप से समति करने की मािंग करता है. इस

    तरह के रािर वाद को िोकतिंत्र की र्वर्वधता नही िं भाती. रािर वाद का मतिि र्सफि गुस्सा, दिंड या

    तानाशाही नही िं िस्टि सुिंदरता, शे्रष्ठता और सिका ख्याि भी होना चार्हए. अच्छी िात के र्िए जोर-

    जिदिस्ती करने की जरूरत नही िं होती. जिदिस्ती थोपा गया कोई गीत उतना मीठा नही िं िग सकता

    र्जतना वह र्जसे आजादी के साथ गाया गया हो. जि िोगोिं को रािर गान के प्रर्त सम्मान र्दखाने के

    र्िए मजिूर र्कया जाता है तो उनकी वास्तर्वक भावनाएिं इसके र्ििुि उिट हो सकती हैं.

    Historical background:

    र्सनेमाघरोिं में रािर गान की परिंपरा िहत पुरानी है। साठ और सत्तर के दशक तक यह परिंपरा िहत समृद्ध थी।

    र्सनेमाघरोिं मेंर्फल्म खत्म होने के तुरिंत िाद रािर गान होता था। धीरे-धीरे इसमें क्षरण आया। र्सनेमा खत्म होते

    ही र्नकिने की जल्दिाजी में कई िार िोग ठहरकर खडे़ नही िं होते थे या र्फर भीड़ छिं टने के इिंतजार में िैठे

    रहते थे। इस तरह रािर गान का अपमान होता था। धीरे-धीरे देशभस्टक्त का यह अनुष्ठान पहिे कमजोर पड़ा,

    र्फर न जाने कि ििंद हो गया। कुछ उत्साही िोगोिं की मािंग पर महारािर सरकार ने भी साि 2002 में राज्य के

    तमाम र्सनेमाघरोिं में शो शुरू होने से पहिे रािर गान का प्रदशिन अर्नवायि कर र्दया था।

    कुछ एहर्तयात बरतने की जरुरत

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    o कुछ एहर्तयात र्जन पर ध्यान न देने के कारण एक परिंपरा कई दशक पहिे खत्म हो गई थी। हमें

    उस वक्त इस परिंपरा के खत्म होने की वजहें भी तिाशनी होिंगी।

    o सोचना होगा र्क रािर गान का एक र्नयम है, एक सिंस्कार है-पूरे देश के र्सनेमाघरोिं में इसे कैसे

    सुर्नर्ित र्कया जाएगा, क्ोिंर्क यह वह देश है, जहािं िोग टर ेन पकड़ने से िेकर र्सनेमा का शो देखने

    तक भागते-दौड़ते ही र्दखाई देते हैं।

    o यह कैसे सुर्नर्ित होगा र्क र्जस वक्त परदे पर रािर गान चि रहा होगा, ति सारे िोग अपनी-अपनी

    सीट पर पहिंच चुके होिंगे।

    o र्सनेमा तो इत्मीनान की चीज है, िेर्कन सोचना होगा र्क यह इत्मीनान रािर गान को र्कतना सम्मान

    दे पाएगा? यह भी सोचना होगा र्क रािर भस्टक्त और रािर पे्रम के चक्कर में हम कुछ ऐसा न कर िैठें र्क

    र्फर से साठ और सत्तर के दशक वािे हािात में वापस पहिंच जाएिं ।

    --

    क्ा न्यायाियोिं में सीटे िढाने से case कम होिंगे

    why in news

    National Court Management Systems Committee (NCMSC) की ररपोटि र्जसके अनुसार केवि

    न्यायाियोिं में सीटे भरने या िढाने से सारे backlog ख़त्म नही िं हो जायेंगे |

    यह commitee SC द्वारा िने गई र्थ र्जसका उदे्दश्य था की जो र्वर्ध आयोग ने जज़ो की strength िढाने को

    कहा है वो backlog से तारतम्यता रखती है की नही िं |

    १९८७ में र्वर्ध आयोग ने ४४००० जज़ो के र्िए िोिा था परनु्त अभी १८००० ही है

    क्या तकि है committee का :

    commiteeका तकि है की िस सीटे िढाना ही समाधान नही िं है | यिंहा तक की र्जन court में पूरी strength भी

    है वो backlog clear नही िं कर पाए है इसके र्िए वैज्ञार्नक तरीके से पूरी तरह से जाचना होगा की असि में

    र्कतने चार्हए और न्यायािय में कायािनुसार र्जसे hours में नाप सकते है उसके आधार पर समीक्षा होनी

    चार्हए

    जातीय सिंघर्षि में पररवर्तित होता जि सिंकट

    पानी हजारोिं सािोिं से र्वर्भन्न समाजोिं की अर्नवायि आवश्यकता रहा है। भारत में र्पछिे दो दशकोिं में यह

    िहत र्वर्चत्र रूप में सामने आई है।

    o देश के र्वदभि के्षत्र या अन्य इिाकोिं में जि िड़ी तादाद में र्कसान आत्महत्या कर िेते हैं तो भारतीय

    समाज को कोई फकि नही िं पड़ता क्ोिंर्क वह ऐसी िातोिं को सहजता से िेने िगा है।

    o जि प्रदूर्षण ने देश के कई इिाकोिं को िुरी तरह प्रभार्वत र्कया है। देश में अनाज का कटोरा कहा

    जाने वािा पिंजाि प्रािंत जो एक समय हररत िािंर्त का घर और देश का गौरव हआ करता था आज

    उसकी र्मट्टी कीटनाशकोिं से त्रस्त है। उसके र्कसान गरीिी में र्दन काट रहे हैं और वहािं के िोगोिं को

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    अपने आपको र्जिंदा रखने के र्िए आय के अकल्पनीय स्रोत जैसे र्क मादक पदाथि आर्द का सहारा

    िेना पड़ रहा है र्जनकी तस्करी सीमा पार से की जाती है। एक ऐसा राज्य जो अपने जवानोिं के र्िए

    देश में गौरव का र्वर्षय था वहािं के युवा अि कनाडा, नू्यजीिैंड, र्ब्रटेन और अमेररका जाने के र्िए

    िेकरार रहते हैं।

    o पर्िम ििंगाि अपना पानी सािंसृ्कर्तक रूप से साझा र्वरासत वािे िािंग्लादेश के साथ िािंटना नही िं

    चाहता। यह स्टथथर्त ति है जि कें ि सरकार ऐसा करने की इचु्छक है। शायद पर्िम ििंगाि को िगता

    है र्क ऐसा करने से थथानीय स्तर पर जि सिंकट का भय उत्पन्न होगा। ऐसे में दूर स्टथथत र्दल्ली उदार

    हो सकता है िेर्कन वह नही िं।

    o कनािटक में हाि ही में कावेरी जि सिंकट दोिारा पनपता र्दखा। यह सिंकट कुछ हद तक अिग है

    क्ोिंर्क कन्नड़ र्कसानोिं ने ति तक र्विोह नही िं र्कया होता जि तक र्क उनको यह भय और आशिंका

    न होती र्क अगर वे अपना पानी तर्मिनाडु के साथ साझा करें गे तो र्दवार्िया हो जाएिं गे। ऐसे में

    मामिा जातीय कम और आर्थिक अर्धक था। इसर्िए भी क्ोिंर्क इस के्षत्र में सर्दयोिं से कन्नड़,

    मियािम, तर्मि और तेिुगू भार्षी िोग सहअस्टस्तत्व में रह रहे हैं।

    Is this water problem is due to bad management

    o थथानीय धारणा तेजी से मजिूत हो रही है र्क कनािटक में चि रहा मौजूदा र्ववाद अन्य राज्योिं में िाढ

    और सूखे के खराि प्रििंधन का नतीजा है।

    o िेंगिूरु और उसके आसपास का इिाका केवि सूचना प्रौद्योर्गकी के्षत्र के र्िए नही िं िस्टि तमाम

    अन्य तरह के रोजगार का कें ि िना हआ है। इसमें िाि काटने वािे, िढई, रसोइये, मूवसि, सुरक्षा

    गाडि और अन्य तमाम रोजगार शार्मि हैं। इनमें र्िहार, झारखिंड, ओर्डशा, राजथथान, पर्िम ििंगाि

    और अन्य तमाम इिाकोिं के कामगार शार्मि हैं। साविजर्नक सेवाओिं की आपूर्ति में आने वािी

    र्दक्कतोिं और िेंगिुरु शहर में कचरे के भिंडार का ठीकरा अक्सर इन प्रवार्सयोिं के सर पर फोड़ा

    जाता है

    Water crisis turning into a caste/class crisis

    इस गित यकीन के पनपते जाने के कारण आर्थिक तत्त्व अपने आप में समेटे यह र्ववाद जातीय सिंघर्षि में

    िदिता जा रहा है। खेदजनक िात यह है र्क भारत इस प्रकार की आपातकािीन पररस्टथथर्तयोिं के र्िए पूरी

    तरह तैयार ही नही िं है। याद करें तो भारत को र्वभाजन के वक्त अपने इर्तहास के अत्यिंत रक्तरिं र्जत दौर से

    गुजरना पड़ा था। हािािंर्क उस वक्त धार्मिक मतभेद उजागर थे िेर्कन वह इकिौती ऐसी चीज नही िं है जो

    िोगोिं में अिगाव पैदा करे। िेंगिूरु में केरि के िोगोिं के स्टखिाफ ऐसा जातीय सिंघर्षि देखने को र्मि रहा है।

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    International experience:

    o युगोस्लार्वया में ऐसा ही सिंघर्षि देखने को र्मिा था र्जसने आर्थिक से जातीय स्वरूप ग्रहण कर र्िया

    था। यह सच है र्क तत्कािीन सोर्वयत सिंघ, र्ब्रटेन और अमेररका ने र्मिकर दूसरे र्वश्वयुद्घ के िाद

    युगोस्लार्वया का र्नमािण र्कया था। इस प्रर्िया में सिि, जमिन, िोएट, स्लोव, रोमन, ग्रीक कैथर्िक

    और मुस्टस्लम आर्द तमाम समुदायोिं के िोग शार्मि हए थे। माशिि जोसेफ टीटो ने एक आधुर्नक

    अथिव्वथथा और मजिूत सामार्जक तानेिाने वािे देश का र्नमािण र्कया था।

    o यहािं अिग-अिग जातीय समूहोिं के िीच र्ववाह होना सामान्य प्रथा थी। आर्थिक मसिोिं को िेकर

    मतभेद ति शुरू हए जमिन स्लोवेर्नयाइयोिं ने यह र्शकायत की र्क शेर्ष यूगोस्लार्वया को सस्टिडी दी

    जा रही है। आर्थिक सिंसाधनोिं को िेकर द्विंद्व शुरू हो गया। अथिव्वथथा उच्च मुिास्फीर्त की र्शकार

    हो गई। पर्िमी प्रािंत स्लोवेर्नया ऑस्टिरया के र्नकट था और उसने खुद को स्वतिंत्र घोर्र्षत कर र्दया।

    जमिनी ने अपनी जातीय प्राथर्मकता का उदाहरण देते हए तत्काि उसे मान्यता दे दी और उसे

    यूरोपीय सिंघ में शार्मि कर र्िया। यह उसके खुद के यूरोपव्ापी नजररये के उिट था। एक अन्य

    र्नकटवती पर्िमी प्रािंत िोएर्शया ने भी स्लोवार्नया के ही नके्श कदम पर चिना पसिंद र्कया।

    o यूगोस्लार्वया का पतन हो गया। सिि जो रसूखदार नस्ल के थे, उिोिंने इसे अपना अपमान माना।

    आजाद होने वािे इससे आगे के प्रािंतोिं से िहत सख्ती से र्नपटा गया। िोर्िया-हजेगोर्िना और उसकी

    राजधानी सरायेवो जो शीतकािीन ओर्ििंर्पक के र्िए तैयार हो रही थी वह मििे में तब्दीि हो गई।

    र्वर्भन्न जार्तयोिं में हए र्ववाह टूटने िगे। यहािं तक र्क पुराने र्ववाह भी खत्म हो गए। यातना र्शर्वर

    तैयार र्कए गए जहािं इस्लाम को खत्म करने के र्िए पुरुर्षोिं और िच्चोिं को जान से मारा गया और

    प्रतार् डत र्कया गया।

    o कोसोवो, मैसेडोर्नया, मोिंटेग्रो आर्द िचेखुचे प्रािंत रह गए। कुछ सिि नागररकोिं को

    अिंतररािर ीय अदाित िे जाया गया तार्क उन पर नरसिंहार का मामिा चिे। िेर्कन युगोस्लार्वया के

    मूि र्वचार का एक भयानक अिंत हो चुका था।

    Lesson to be learnt from this event

    इर्तहास ने िार-िार र्दखाया है र्क आर्थिक सिंसाधनोिं को िेकर र्छड़ी िड़ाइयािं िहत जल्दी जातीय सिंघर्षि में

    िदि जाती है और उसके पररणाम िहत भयावह होते हैं। देश में जि को िेकर जो िड़ाइयािं र्छड़ी हैं उनको

    भी इसी पररदृश्य में देखना होगा। क्ोिंर्क देश के र्िए इनके भयावह पररणाम हो सकते हैं।

    Conclusion : How to solve twin problem of water and enviournment

    जो िोग आर्थिक प्रगर्त का र्वरोध करते हैं उनको अपनी स्टथथर्त पर पुनर्विचार करना चार्हए। नमिदा िािंध और

    अन्य िािंधोिं की भारत जैसे देश में आवश्यकता है। समस्या का हि इनका र्नमािण रोकना नही िं है िस्टि उनको

    पयािवरण के अनुकूि और तकनीकी सक्षमता से िनाना और पुनवािस को व्वस्टथथत ढिंग से अिंजाम देना है।

    यह भी सुर्नर्ित करना होगा र्क यह प्रर्िया भ्रिाचार की भेंट न चढे। यह मानना होगा र्क

    अिंतररािर ीय सूचकािंकोिं में भारत का भ्रिïचार काफी ऊिं चे स्तर पर है। ऐसे में यह सि आसान नही िं होगा।

    --

    िोकसभा में पेश हआ इनकम टैक्स सिंसोधन र्िि

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  • 9

    नोटििंदी के िाद िैंक खातोिं में जमा हो रही नकदी पर र्नगरानी रखने और इसमें से कर चोरोिं को ढूिंढ र्नकािने

    के र्िए कें ि सरकार ने िोकसभा में आयकर सिंसोधन र्वधेयक पेश र्कया है।

    - नोटििंदी के िाद रोज रोज आ रहे सरकार के नए नए र्नयमोिं के िीच यह जानना जरूरी है र्क इस र्िि के

    क्ा मायने हैं और कौन कौन इसके दायरे में आएगा। सरकार की मिंशा है र्क टैक्स चोरी करने वािे या दूसरोिं

    के खाते में अपनी अघोर्र्षत आय जमा करके िचने का प्रयास कर रहे िोगोिं पर िगाम कसी जाए। इसी को

    देखते हए सरकार िोकसभा में आयकर सिंसोधन र्वधेयक िेकर आई है।

    महत्वपूणि बातें ...

    1. र्िि के तहत िैंक में 2.5 िाख रुपये से अर्धक की अघोर्र्षत आय या 2.5 िाख जमा करने वािे िोगोिं से

    पूछताछ की जा सकती है।

    2. इनमें वो सभी खाता धारक आएिं गे र्जिोिंने 9 नविंिर के िाद िैंक में अपनी रकम जमा कराई है और उसका

    पुख्ता र्हसाि उनके पास नही िं है।

    3. र्िि के तहत आय के िारे में सिंतुर्िपरक जानकारी न देने वािोिं पर 30 फीसदी टैक्स, 10 फीसदी जुमािना

    िगाया जाएगा।

    4. इसके अिावा सरकार 33 फीसदी के करीि प्रधानमिंत्री गरीि कल्याण सेस भी िेकर आई है जो इस रकम

    पर िगाया जाएगा

    5. इसका मतिि सरकार अघोर्र्षत आय रखने वािोिं पर कुि 73 फीसदी के करीि टैक्स िगाएगी।

    6. इसके अिावा िची रकम का मात्र 25 फीसदी ही िैंक से र्नकािा जा सकेगा

    7. जिर्क िची 25 फीसदी को चार साि के र्िए िैंक में छोड़ना पडे़गा र्जस पर शून्य ब्याज र्मिेगा।

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  • 10

    8. प्रधानमिंत्री गरीि कल्याण योजना सेस के तहत प्राप्त रकम को ग्रामीण इिाकोिं में र्वकास कराने पर खचि

    र्कया जाएगा।

    9. जनधन खातोिं में जमा रकम पर सरकार का र्वशेर्ष ध्यान है इसर्िए इन खातोिं में जमा की गई भारी रकम

    पर सरकार र्वशेर्ष र्नगरानी िरतेगी

    10. सरकार ने इस र्िि को िोकसभा में मनी र्िि के रूप में पेश र्कया है तार्क इसे राज्यसभा में न

    अश भनीय तकरार: न्यायाधीश िं की र्नयुक्ति पर

    Present Context:

    हाि में उच्चतम न्यायािय के कॉिेर्जयम ने र्वर्भन्न उच्च न्यायाियोिं में न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त के र्िए 77

    नामोिं की एक सूची कें ि सरकार को भेजी थी। सरकार ने इसमें 43 नामोिं को अपनी र्टप्पर्णयोिं के साथ

    पुनर्विचार के र्िए वापस भेज र्दया। कॉिेर्जयम ने एक सप्ताह के अिंदर सरकार की आपर्त्तयोिं को खाररज

    करते हए उन सभी नामोिं की दोिारा पुर्ि कर दी।

    उच्चतम और उच्च न्यायाियोिं के न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त को िेकर जारी तकरार हमारे िोकतिंत्र के र्िए

    अपशकुन है। इस तकरार के र्िए र्जमे्मदार कौन है?

    o स्वतिंत्र न्यायपार्िका िोकतिंत्र की प्राण-वायु है।

    o न्यायपार्िका को स्वतिंत्र और जीविंत िनाए रखना सरकार की र्जमे्मदारी है।

    o साथ ही, न्यायपार्िका को भी यह नही िं भूिना चार्हए र्क िोकतिंत्र उसकी स्वायत्तता सुर्नर्ित करता

    है।

    Is it completely justified to ignore voice of elected government

    o एक र्नवािर्चत सरकार द्वारा उठाई गई आपर्त्तयोिं को इतने हिे में नही िं र्िया जा सकता।

    o उच्चतम न्यायािय ने 1993 में ‘सेकें ड जजेज केस’ में व्ाख्या के जररये न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त का

    अर्धकार कायिपार्िका से छीन र्िया था। इस र्नणिय की वैधता पर िडे़-िडे़ र्वर्धवेत्ताओिं ने सवाि

    उठाया है। इसके अिावा कॉिेर्जयम के कामकाज पर स्वयिं कई न्यायाधीशोिं ने सवाि खडे़ र्कए हैं।

    o न्यायमूर्ति जे चेिमेश्वर ने यह कहकर कॉिेर्जयम की िैठक में भाग िेने से इनकार कर र्दया र्क

    इसके काम में पारदर्शिता नही िं है।

    o ‘सेकें ड जजेज’ मामिे में र्नणिय र्िखने वािे न्यायमूर्ति जे एस वमाि ने स्वयिं िाद में कॉिेर्जयम प्रणािी

    को िदिने की सिाह दी।

    Initiative to change collegium system and issue of conflict

    o जि से उच्चतम न्यायािय ने र्नयुस्टक्त का अर्धकार अपने हाथोिं में र्िया है, तभी से सरकार के अिंदर

    इसको िेकर असिंतोर्ष है। मगर 2014 में पहिी िार सरकार ने सिंर्वधान में सिंशोधन कर रािर ीय

    न्यार्यक र्नयुस्टक्त आयोग के गठन का प्रावधान कर इसे िदिने का प्रयास र्कया।

    o िेर्कन उच्चतम न्यायािय की सिंर्वधान पीठ ने 4:1 के िहमत से इस सिंर्वधान सिंशोधन को खाररज

    कर र्दया। हािािंर्क प्रस्तार्वत आयोग के छह सदस्योिं में से तीन उच्चतम न्यायािय के वररष्ठतम

    न्यायाधीश हैं और िाकी में एक र्वर्ध मिंत्री व दो र्वर्शि व्स्टक्त।

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  • 11

    o न्यायािय का तकि है र्क र्वर्ध मिंत्री र्कसी एक र्वर्शि सदस्य की मदद से न्यायाधीशोिं के सुझाए र्कसी

    नाम को रोक सकता है।

    Some basic question

    यहािं यह सवाि है र्क क्ा सिंर्वधान की रक्षा की र्जमे्मदारी र्सफि जजोिं की है? िेशक उच्चतम न्यायािय

    सिंर्वधान का मुख है, पर र्वधायक, सािंसद और मिंत्री भी जज की तरह एक शपथ िेते हैं। सिंर्वधान को िचाने

    की र्जमे्मदारी उनकी भी उतनी है, र्जतनी जजोिं की।

    Conclusion:

    न्यायपार्िका की स्वायत्तता इससे प्रभार्वत नही िं होती है र्क जजोिं की र्नयुस्टक्त कौन करता है। यह कहना र्क

    यर्द कायिपार्िका के हाथोिं में र्नयुस्टक्त का अर्धकार होगा, तो राजनीर्तक चररत्र वािे न्यायाधीश िनाए जाएिं गे,

    आधारहीन है। कई राजनीर्तक पृष्ठभूर्म वािे व्स्टक्त जज िनाए जा चुके हैं, िेर्कन उनकी र्नष्पक्षता कभी

    सिंर्दग्ध नही िं हई। न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त का मामिा र्कसी के अहिंकार व प्रर्तष्ठा का प्रश्न नही िं िनना चार्हए।

    --

    मध्यस्थता (Arbitration ) क ुधारने में आने िाली र्दक्कते

    हाि ही में प्रधानमिंत्री ने अिंतररािर ीय कारोिारी र्ववादोिं के र्नस्तारण में मध्यथथता का वैर्श्वक कें ि िनाने की

    िात कही है जो िहत सराहनीय है। सोच के स्तर पर यह र्वचार िर्ढया है िेर्कन इसका र्ियान्वयन उतना

    ही महत्त्वाकािंक्षी

    o प्रधानमिंत्री ने प्रर्ियाओिं को समय पर पूरा करने और पेशेवर आचरण को अिंतररािर ीय मामिोिं के

    र्नस्तारण के र्िए अर्तररक्त खूिी िताया।

    o इस र्दशा में 23 अकू्टिर, 2015 को सरकार ने पिंचाट एविं सुिह (सिंशोधन) अर्धर्नयम को सैद्घािंर्तक

    मिंजूरी दे दी।

    o अर्धर्नयम मध्यथथता की प्रर्िया को सुसिंगत िनाने में मददगार सार्ित होगा। इसके अिावा प्रर्िया

    की अवर्ध तय करने और उिें तेजी से र्नपटाने में भी यह मददगार होगा।

    Some lacunaes (कुछ खार्मया )

    o पिंचाट एविं सुिह (सिंशोधन) में कई प्रावधान ऐसे हैं जो नए कानून के प्रवतिन पर प्रश्नर्चह्न िगा सकते

    हैं। उदाहरण के र्िए नए कानून के तहत एक मध्यथथता पिंचाट आवश्यक है र्जसके पास अदाित

    के समान अर्धकार होिंगे। वह 12 माह के भीतर र्नणिय दे सकेगा।

    इस अवर्ध को छह माह तक िढाया जा सकता है।

    यह अवर्ध र्जतनी कम रखी जाएगी शुि उतना ही ज्यादा होगा।

    अगर देरी होती है तो हर िीतते महीने के साथ शुि पािंच फीसदी कम र्कया जाएगा।

    अर्धर्नयम में यह व्वथथा भी है र्क इसके तहत र्दए गए र्कसी भी र्नणिय के स्टखिाफ अगर अदाित

    का रुख र्कया जाता है तो उसे एक साि में र्नपटाना होगा।

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  • 12

    परिं तु इस अवर्ध में देरी होने पर र्कसी जुमािने की िात नही िं कही गई है। देश की अदाितोिं के सामने

    ििंर्ित मामिोिं को देखते हए यह प्रश्न उठता ही है र्क क्ा यह समय सीमा हकीकत के करीि है?

    क्ा कभी इसका पािन हो पाएगा?

    र्वर्भन्न पक्षोिं को मध्यथथता काम र्नपटाने के र्िए अवर्ध र्वस्तार की खार्तर भी अदाित जाना होगा।

    वार्णस्टज्यक मामिोिं के र्नपटान में र्जतना वक्त िगता है उसे देखते हए यह ठीक नही िं प्रतीत होता।

    देश की 1,200 के करीि फाि टर ैक अदाितोिं में ही छह िाख से अर्धक मामिे ििंर्ित हैं। इससे

    उनकी काम करने की गर्त का अिंदाजा िगाया जा सकता है।

    o मध्यथथता का काम देश की र्वर्धक व्वथथा में र्नर्हत है। र्जस र्कसी का पािा देश की अदाितोिं से

    पड़ा होगा वह यह जरूर मानेगा र्क वैर्श्वक कारोिार र्नकट भर्वष्य में शायद ही वार्णस्टज्यक मामिोिं

    की मध्यथथता के र्िए र्सिंगापुर या ििंदन को छोड़कर भारत का रुख करें गे।

    o वोडाफोन और उसके िाद हाि ही में टाटा डोकोमा का अनुभव भी उनके यकीन को िढाने वािा

    नही िं है।

    o यह िात ध्यान देने िायक है र्क ििंदन की अिंतररािर ीय अदाित ने जून में अपनी भारतीय शाखा ििंद

    कर दी। जिर्क यह सिंथथान कुछ समय में देश के प्रमुख सिंथथागत पिंचाट के रूप में उभरा था।

    o िीते छह सािोिं से इसे मामिोिं की कमी िनी थी। यही इसे ििंद करने की वजह िना।

    o इस िीच महारािर सरकार और भारतीय और अिंतररािर ीय र्वर्धक समुदायोिं ने र्मिकर इस वर्षि

    अकू्टिर में मुिंिई में अिंतररािर ीय मध्यथथता कें ि की थथापना की है।

    सैद्घािंर्तक रूप से इसकी थथापना इसर्िए की गई है तार्क भारतीय मध्यथथता मामिोिं को र्सिंगापुर स्टथथत

    अिंतररािर ीय मध्यथथता कें ि से वापस िाया जा सके। वहािं 90 फीसदी से अर्धक मामिे भारत से जुडे़ हैं। ऐसे

    वक्त पर जिर्क भारत एक उच्च क्षमता वािे र्नवेश कें ि के रूप में उभर रहा है ति अनुििंधोिं के प्रवतिन जैसे

    कारोिारी सुगमता मानक िहत अहम हो चिे हैं। प्रश्न यह है र्क क्ा र्वर्धक व्वथथा इस चुनौती से र्नपटने

    के र्िए तैयार है?

    िोकपाि के िगैर

    Why in News:

    सवोच्च न्यायािय ने उर्चत ही, िोकपाि की र्नयुस्टक्त न होने पर, र्नराशा जार्हर की है। िोकपाि कानून को

    िने तीन साि होने को आ रहे हैं। मगर अि तक कें ि सरकार इस तकि पर िोकपाि की र्नयुस्टक्त को टािती

    आ रही है

    What is hurdle:

    कानून के मुतार्िक चयन सर्मर्त में दोनोिं सदनोिं के र्वपक्ष के नेताओिं का होना अर्नवायि है, जिर्क वतिमान

    िोकसभा में कोई नेता-र्वपक्ष नही िं है। कािंगे्रस िोकसभा में सिसे िड़ी र्वपक्षी पाटी है, पर वह नेता-र्वपक्ष के

    र्िए आवश्यक नू्यनतम सदस्य सिंख्या की शति पूरी नही िं करती। इसर्िए सरकार ने िोकपाि की र्नयुस्टक्त के

    र्िए सर्मर्त गर्ठत करने में आने वािी समस्या के र्नराकरण के र्िए कानून में सिंशोधन का र्वधेयक तैयार

    र्कया है, जो सिंसद में ििंर्ित है।

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  • 13

    Question of SC to Government:

    सवोच्च न्यायािय ने पूछा है र्क अगर िोकसभा में कोई नेता-र्वपक्ष नही िं है, तो सिसे िडे़ र्वपक्षी दि के नेता

    को चयन सर्मर्त में शार्मि कर प्रर्िया को क्ोिं नही िं आगे िढाया जाता।

    An Institutional Failure:

    o िोकपाि और राज्योिं में िोकायुक्तोिं की र्नयुस्टक्त सरकारोिं को रास नही िं आती, इसीर्िए वे इससे

    िचने का कोई न कोई रास्ता र्नकािती रही हैं।

    o कई राज्योिं ने तो िोकायुक्त सिंथथा का गठन ही नही िं र्कया है। गुजरात में जि नरेंि मोदी मुख्यमिंत्री

    थे, तो करीि सात साि तक उिोिंने िोकायुक्त की र्नयुस्टक्त नही िं होने दी थी।

    o और भी कई राज्योिं के उदाहरण र्दए जा सकते हैं जो यही िताएिं गे र्क िोकायुक्त का पद खािी होने

    पर समय से भरा नही िं जाता।

    o सूचना आयोगोिं का भी यही हाि है, नतीजतन वहािं ििंर्ित आवेदनोिं और अपीिोिं का अिंिार िगता जा

    रहा है। इससे सूचनार्धकार कानून के ही िेमतिि होने का खतरा पैदा हो गया है।

    o िोकपाि कानून में िोकपाि और िोकायुक्तोिं को कुछ ऐसे अर्धकार र्दए गए हैं, र्जनसे सत्तापक्ष के

    नेताओिं और नौकरशाहोिं को भी मुस्टििें पेश आ सकती हैं।

    o सरकार एक तरफ तो भ्रिाचार के स्टखिाफ सख्त रुख अपनाने का दावा कर रही है, मगर दूसरी ओर

    िोकपाि की र्नयुस्टक्त को िेकर उसका रवैया सवािोिं के घेरे में है।

    o अण्णा आिंदोिन के दौरान वतिमान सता पक्ष जोर-शोर से यह जताता रहा र्क वह सख्त िोकपाि

    कानून के पक्ष में है। पर अि जि िोकपाि की र्नयुस्टक्त का र्जम्मा उसके र्जमे्म है, िगता है वह इस

    मसिे को ठिं डे िसे्त में रखना चाहती है।

    o सीिीआई की स्वायत्तता भी एक र्चिंतनीय र्वर्षय है |

    o िोकपाि कानून के मुतार्िक िोकपाि को अर्धकार है र्क वह सीिीआई को र्नदेश दे सके। अगर

    सचमुच सरकार भ्रिाचार पर अिंकुश िगाने को िेकर गिंभीर है, जनप्रर्तर्नर्धयोिं और नौकरशाहोिं के

    आचरण को साफ-सुथरा िनाना चाहती है तो उसे िोकपाि की र्नयुस्टक्त से गुरेज नही िं होना चार्हए!

    सवोच्च न्यायािय के सुझाव के मुतार्िक अगर अि भी उसने सिसे िडे़ र्वपक्षी दि के नेता को चयन

    सर्मर्त में शार्मि कर िोकपाि की र्नयुस्टक्त की पहि नही िं की, तो भ्रिाचार से िड़ने के उसके दावे पर

    ही सवाि उठेगा।

    बाल अपराध : अ ुरर्क्षत ब पन

    क्य िं खबर िं में

    दो र्दनोिं में दो मासूम िस्टच्चयोिं के साथ दररिंदगी की घटनाएिं र्चिंर्तत करने वािी हैं। पहिे केशवपुरम में एक

    िच्ची की दुष्कमि के िाद हत्या कर दी जाती है और उसके अगिे र्दन सराय रोर्हल्ला में भी एक िच्ची को

    दररिंदगी का र्शकार िनाकर उसे मरने के र्िए गडे्ढ में फें क र्दया जाता है। इस तरह की घटनाओिं से पता

    चिता है र्क राजधानी िच्चोिं के र्िए िेहद असुरर्क्षत हो गई है।

    एक नजर आिंकड़ पर : बाल अपराध र कने में नाकाम माज

    o इस वर्षि अकू्टिर महीने तक र्दल्ली से 5888 िचे्च गायि हए हैं िेर्कन इनमें से मात्र 1787 िच्चोिं को

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  • 14

    o

    ही पुर्िस ढूिंढ सकी है।

    o िच्चोिं के स्टखिाफ अपराध रोकने की तमाम योजनाएिं

    िनाने, सर्मर्त व आयोग के गठन के िावजूद

    राजधानी में देश का भर्वष्य सवािर्धक असुरर्क्षत है।

    o नािार्िगोिं से देह व्ापार से िेकर िच्चोिं की खरीद-

    फरोख्त का काम भी िेरोकटोक जारी है।

    o र्दल्ली की यह स्टथथर्त ति है जि यहािं िच्चोिं की

    सुरक्षा के र्िए पुर्िस एविं सरकार दोनोिं स्तरोिं पर

    तमाम तरह की योजनाएिं सिंचार्ित होती हैं।

    o इस उम्र के िगभग 25 से 30 करोड़ तक के िच्चोिं

    से िाि मजदूरी करवाई जाती है

    मीक्षा करने की जरुरत:

    कई स्वयिंसेवी सिंथथाएिं व सरकारी सिंथथाएिं इस र्दशा में काम कर रही हैं। इसके िावजूद िच्चोिं के साथ अपराध

    की घटनाएिं िढने से इन सिंथथाओिं के कामकाज और योजनाओिं पर सवाि खड़ा होता है। इसर्िए िाि सुरक्षा

    के र्िए र्जमे्मदार सिंथथाओिं के कामकाज और योजनाओिं की समीक्षा होनी चार्हए।

    o िच्चोिं से होने वािे अपराधोिं को रोकने के र्िए जहािं कठोर कानून िनाने और अपरार्धयोिं के स्टखिाफ

    सख्त कारिवाई की जरूरत है।

    o समाज को भी जागरूक होना होगा। मासूमोिं को सिसे ज्यादा खतरा घर, आस-पड़ोस और ररशे्तदारोिं

    से होता है।

    o िच्चोिं के शारीररक शोर्षण से जुडे़ मामिोिं की सुनवाई के र्िए िनी पॉक्सो अदाितोिं में तेजी से टर ायि

    नही िं हो रहा है। इससे अपरार्धयोिं के हौसिे िढते हैं। इस िाित जनर्हत यार्चका भी िगाई गई है।

    इसर्िए सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा।

    o िच्चोिं को यौन शोर्षण जैसे अपराधोिं से िचाने के र्िए पुर्िस, िाि आश्रम और अस्पतािोिं में रहने

    वािे कमिचाररयोिं को सिंवेदनशीि िनाना होगा, साथ ही माता-र्पता को िच्चोिं को पयािप्त वक्त देने के

    साथ ही सिंर्दग्ध व्वहार वािे िोगोिं से िच्चोिं को दूर रखना चार्हए।

    o िच्चोिं को अपररर्चत िोगोिं के साथ खेिने, शादी समारोह में र्कसी पररर्चत के साथ अकेिे जाने और

    घर से िाहर जाने से रोकना चार्हए। ऐसे मामिोिं में आरोपी चाहे कोई भी इसकी जानकारी पुर्िस को

    देनी चार्हए।

    कोिेर्जयम ने सरकार को दोिारा भेजे 43 नाम

    Why in News:

    सरकार की ओर से र्वचार के र्िए वापस भेजे गए 43 नाम कोिेर्जयम ने सरकार के पास दोिारा भेज र्दए

    हैं। कोिेर्जयम ने 77 नामोिं की र्सफाररश भेजी थी र्जसमें से सरकार ने 34 नाम मिंजूर कर र्िए हैं। 43 नाम

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    दोिारा र्वचार के र्िए कोिेर्जयम को वापस भेज र्दए गए हैं। इस पर पीठ ने उिें िताया र्क कोिेर्जयम ने

    इन 43 र्सफाररशोिं को र्फर सरकार के पास भेज र्दया है।

    गर्तर ध :

    कोिेर्जयम की दोिारा र्सफाररश सरकार के र्िए िाध्यकारी होती है इसर्िए सिंभावना इसी िात की है र्क

    इन नामोिं को कें िीय शासन की स्वीकृर्त र्मि जाए।

    Question Mark

    र्कतना न्यायसिंगत और र्वर्ध सम्मत है र्क न्यायाधीश ही न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त करें? दुर्नया के र्कसी

    प्रर्तर्ष्ठत िोकतािंर्त्रक देश में ऐसा नही िं होता। 1993 के पहिे कोिेर्जयम के जररये न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त

    की व्वथथा भारत में भी नही िं थी, िेर्कन सुप्रीम कोटि ने इस आधार पर इस व्वथथा को अपनाया तार्क

    न्यायपार्िका की स्वतिंत्रता सुरर्क्षत रहे।

    गर्तर ध क दूर करने की पहल :

    सुप्रीम कोटि का कहना है र्क इस व्वथथा में कुछ कमी है। उसके आदेश पर ही इस व्वथथा को दुरुस्त

    करने की पहि हई और सरकार से न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्त सिंििंधी मेम रेंडम ऑफ प्र र् जर तय करने को

    कहा गया। सरकार ने जो सुझाव र्दए वे सुप्रीम कोटि को रास नही िं आए और इस तरह मामिा जहािं का तहािं

    है।

    An unending question:

    न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्तयोिं का मामिा एक ििंिे असे से सरकार और न्यायपार्िका के िीच खी िंचतान का

    कारण िना हआ है। यह खी िंचतान ति से और िढी र्दख रही है जि से सुप्रीम कोटि ने न्यायाधीशोिं की

    र्नयुस्टक्तयोिं के र्िए िनाए गए कानून को असिंवैधार्नक ठहराया है। सुप्रीम कोटि के रुख के कारण यह कानून

    कभी अस्टस्तत्व में आ ही नही िं सका। हो सकता है र्क इस कानून में कुछ खामी रह गई हो और उसके चिते

    सुप्रीम कोटि ने उसे उपयुक्त नही िं पाया, िेर्कन जि कोिेर्जयम व्वथथा उपयुक्त नही िं है तो उसके जररये

    न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्तयािं क्ोिं होती रहनी चार्हए?

    Conclusion:

    यर्द न्यायाधीशोिं की र्नयुस्टक्तयोिं में सरकार का दखि नही िं होना चार्हए तो यह भी ठीक नही िं र्क वह सुप्रीम

    कोटि के पािंच न्यायाधीशोिं वािे कोिेर्जयम की ओर से तय र्कए गए नामोिं पर मुहर िगाने का काम करे। जि

    भी न्यायाधीशोिं की कमी की िात होती है ति र्वर्भन्न अदाितोिं में ििंर्ित मुकदमोिं की भी चचाि होती है, िेर्कन

    यह एक हद तक ही सही है। ििंर्ित मुकदमोिं का िोझ िढते जाने का एकमात्र कारण पयािप्त सिंख्या में

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    न्यायाधीश न होना ही नही िं है। िेहतर है र्क उन कारणोिं की ओर भी गौर र्कया जाए र्जनके चिते ििंर्ित

    मुकदमे िढते चिे जा रहे हैं। यह तभी सिंभव है जि सरकार और न्यायपार्िका र्मिकर आगे िढें।

    भारत में कॉिेर्जयम

    प्रणािी का र्वकर्सत

    Why in News:

    न्यायपार्िका में जजोिं

    की र्नयुस्टक्त के र्िए

    हाि ही में सरकार की

    ओर से िाए गए 99 वें

    सिंशोधन के तहत

    रािर ीय न्यार्यक

    र्नयुस्टक्त आयोग को

    सुप्रीम कोटि ने

    असिंवैधार्नक ठहराते

    हए र्नयुस्टक्त के र्िए

    कॉिेर्जयम र्सिम

    को जारी रखने की

    िात कही। र्जसके

    िाद कें ि और सुप्रीम

    कोटि में न्यायधीशोिं की

    र्नयुस्टक्त को िेकर

    िगातार तकरार जैसी स्टथथर्त देखने को र्मि रही है। दरअसि न्यायधीशोिं की र्नयुस्टक्त और कॉिेर्जयम

    प्रणािी को िेकर तकरार नई िात नही िं है।

    How this system developed:

    1. सिंर्वधान में न्यायधीशोिं की र्नयुस्टक्त के र्िए जो प्रावधान हैं, उसके मुतार्िक रािर पर्त मुख्य न्यायधीश और

    वररष्ठ न्यायधीशोिं की 'परामशि' के आधार पर न्यायधीशोिं की र्नयुस्टक्त करेगा। 1986 में प्रथम न्यायधीश मामिे

    में इस 'परामशि' शब्द की व्ाख्या करते हए सुप्रीम कोटि ने इसे सहमर्त के िजाए र्सफि र्वचार ज़ार्हर करना

    िताया।

    2. 1991 में दूसरे न्यायधीश मामिे में सुप्रीम कोटि ने अपने पुराने फैसिे को पिटते हए परामशि को सहमर्त

    िताते हए, र्सफाररश को मानने के र्िए िाध्यकारी िताया। िेर्कन ये र्सफाररश मुख्य न्यायधीश दो वररष्ठतम

    न्यायधीशोिं की सिाह पर करें गे।

    3. 1994 में तीसरे न्यायधीश मामिे में सुप्रीम कोटि ने इसका र्वस्तार करते हए कहा र्क र्नयुस्टक्तयोिं की

    र्सफाररश मुख्य न्यायधीश और 4 वररष्ठतम न्यायधीश र्मिकर करें गे। इनमें से र्कसी भी 2 न्यायधीशोिं के

    असहमत होने पर र्सफाररश नही िं की जाएगी। यही िं से कोिेर्जयम प्रणािी की शुरुआत हई। र्जसके तहत---

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    1. मुख्य न्यायधीश के अर्तररक्त 4 वररष्ठतम न्यायधीश र्मिकर जजोिं की र्नयुस्टक्त के िारे में रािर पर्त (यानी

    कैर्िनेट) को र्सफाररश करें गे।

    2. इस र्सफाररश को दोिारा र्वचार करने के र्िए सरकार एक िार वापस सुप्रीम कोटि को भेज सकती है।

    3. िेर्कन र्िना र्वचार र्कए र्सफाररश को सुप्रीम कोटि की ओर से दोिारा भेजने पर ये िाध्यकारी होगा।

    हािािंर्क हाि के र्दनोिं में कोिेर्जयम प्रणािी में पारदर्शिता और न्यायधीशोिं की र्नयुस्टक्त के मसिे पर सवाि

    उठे हैं, र्जसे िेकर कें ि और सुप्रीम कोटि में तकरार भी िढी है। र्जस वजह स�


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