क
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ग्रंथ प्रारंभ करने के पूर्व जानने याेग्य ६ बातें:
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•तत्त्र्ाथवसतू्रग्रंथ का नाम •आाचायव उमास्र्ामीग्रंथ के रचययता•आरहतं देर् काेमंगलाचरण में ककसे नमस्कार ककया गया है:
• १० आध्याय, ३५७ सूत्रग्रंथ का प्रमाण•भव्य जीर्ाे ंके ननममत्तननममत्त•माेक्ष प्रानि हेतुहेतु
मंगलाचरण करने के कारण
1. ग्रंथ की ननकर्वघ्न समानि के मलये2. शिष्टाचार के पालन के मलए3. नास्स्तकता का पररहार के मलए4. पुण्य की प्रानि के मलये5. उपकार का स्मरण करने के मलये
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सूत्र आथावत क्या?☸सूत्र = धागा , संकेत, साधक☸व्याकरण के आनुसार जाे कम से कम िबदाे ंमें पूणव आथव बता दे उसे सूत्र कहते हैं ।
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तत्त्र्ाथवसूत्र आथावत ७ तत्त्र्•जीर् तत्त्र्१ - ४ आध्याय•आजीर् तत्त्र्५ र्ााँ आध्याय•आास्त्रर् तत्त्र्६ - ७ आध्याय• बंध तत्त्र्८ र्ााँ आध्याय•संर्र र् ननजवरा तत्त्र्९ र्ााँ आध्याय• माेक्ष तत्त्र्१० र्ााँ आध्याय
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मंगलाचरण की कर्िेषतादेर्ागम स्ताते्र ११५ श्ाेक
आाचायव समन्तभद्रस्र्ामी ने(गंधहस्तीमहाभाष्य की टीका)
आष्टिती ८०० श्ाेकभट्ट आकलंक देर्द्वारा(देर्ागम स्ताेत्र
पर टीका)
आष्टसहस्त्री ८००० श्ाेकआाचायव कर्द्यानदंी द्वारा(आष्टिती पर
टीका)Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
कक
क क क
क क कक क कPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
क कक
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माेक्षमागव क्या ह?ै
सम्यग्दिवन सम्यग्ञान सम्यग्चाररत्र माेक्षमागव
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सम्यक आथावत ☸समञ्चनत इनत सम्यक ☸यहााँ इसका आथव प्रिंसा है |
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गुण
दिवन
ञान
चाररत्र
स्र्रूप
जजसके द्वारा देखा जाता है
जजसके द्वारा जाना जाता है
जजसके द्वारा आाचरण ककया जाता है
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िबद
दिवन
ञान
चाररत्र
सम्यक िबद पहले रखने का कारण
पदाथाेों के यथाथव ञानमलूक श्रद्धान का संग्रह करने के मलए
संिय, कर्पयवय आाैर आनध्यर्साय ञानाे ंका ननराकरण करने के मलए
आञानपूर्वक आाचरण का ननराकरण करन ेके मलए
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इन तीनाे ंके क्रम का कारण☸दिवन आाैर ञान साथ में उत्पन्न हाेने पर भी दिवन पूज्य हाेने से पहले रखा है |
☸चाररत्र के पहले ञान रखा है क्याेंकक चाररत्र ञानपूर्वक हाेता है |
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तीनाे ंकी एकता☸सूत्र में मागव: िबद एकर्चन काे बताने के मलए ककया है |☸जजससे प्रत्यके में माेक्षमागव है इस बात का ननराकरण हाे जाता है | इससे 7 प्रकार के ममथ्यामागव का ननषेध हाे जाता है |
☸ये तीनाें से ममलकर माेक्षमागव हाेता है |
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क क
क क
क्या
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तत्त्र्ाथवश्रद्धानम सम्यग्दिवनम २
के काश्रद्धान
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श्रद्धान
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तत + त्र् = र्ह + भार्
र्स्तु का सच्चा स्र्रूप
जाे र्स्तु जैसी है उसका जाे भार्
तत्त्र् ककसे कहते है?ं
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आथव ककसे कहते हैं?•जाे ननश्चय ककया जाता है
तत्त्र्ाथव आथावत •तत्त्र् के द्वारा जाे ननश्चय ककया जाता है र्ह तत्त्र्ाथव है
तत्त्र्ाथव का श्रद्धान सम्यग्दिवन हैPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
दिवन िबद का आथव देखना हाेता है, श्रद्धान रूप आथव कैसे कर मलया ?
धातु के आनेक आथव हाेते हैं | यहााँ माेक्षमागव का प्रकरण हाेने से दिवन िबद का आथव श्रद्धान मलया है
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मात्र आथव का श्रद्धान भी माेक्षमागव हाे सकता है क्या ?
मात्र तत्त्र् का श्रद्धान भी माेक्षमागव हाे सकता है क्या ?
सर्व दाेषाे ंकाे दरू करने के हेतु तत्त्र्ाथव कहा है |
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इसे समझना क्याें आार्श्यक ह?ै
क्याेंकक ७ तत्त्र्ाे ंके सही श्रद्धान से ही सम्यग्दिवन
हाेता हैतत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनथन ॥
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इन ७ तत्त्र्ाे ंके सत्य श्रद्धान से हम ग्यारंटी से
सुखी हाेगंे आाैर उनके सत्य श्रद्धान कबना हम ग्यारंटी सेदखुी ही रहेगंें
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१.
सच्चे देर्, िास्त्र गुरु का श्रद्धान२.
सात तत्त्र्ाे ंका यथाथव श्रद्धान
३.
आापा-पर का श्रद्धान४.
स्र्ानभुर्
सम्यग्दिवनकेलक्षण
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प्रथमानयुागे,चरणानुयाेग के आनुसार
सच्चे देर्, िास्त्रगुरु का श्रद्धान. २५ दाेषाे ंसे रहहत, ८ आंग
सहहत
करणानयुागे के आनुसार
दिवन माेहनीय र् आनंतानबुंधी के क्षय,
उपिम याक्षयाेपिम से आात्मा
की जाे ननमवल पररणनत है
द्रव्यानयुागे के आनुसार
सात तत्त्र्ाे ंका यथाथव श्रद्धान
सम्यग्दिवन का स्र्रुप ४ आनुयाेगाे ंमें
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सम्यग्दि
वन सराग प्रिम, संर्ेग आादद लक्षण र्ालार्ीतराग आात्म-कर्िुद्धद्ध मात्र
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1. प्रिम
2. संर्ेग
3. आनुकम्पा
4. आास्स्तक्य
सम्यक्त्व के गुण
Created By-श्रीमनत साररका कर्कास छाबड़ ा
• रागादद की मंदता हाेनाप्रिम•संसार से भीनतरूप पररणाम हाेनासंर्ेग•सब जीर्ाे ंमें दया भार् रखकर प्रर्ृत्तत्त करनाआनुकम्पा• ‘जीर्ादद पदाथव सत -स्र्रूप हैं’, ‘संसार–माके्ष, पुण्य–पाप आादद का आस्स्तत्र् है’ – एेसी बुद्धद्ध का हाेनाआास्स्तक्य
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क क
कक क कक क क
क
कक क
क क ककPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
जाे सम्यग्दिवन र्तवमान में
कबना उपदेि के हाेता है
उसे ननसगवज सम्यग्दिवन कहते हैं
उपदेि पूर्वक हाेता है
उसे आधधगमज सम्यग्दिवन कहते हैं
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बहहरंग कारणननसगवज सम्यग्दिवन☸जानत-स्मरण☸जजन कबंब दिवन☸जजन कल्याणक दिवन☸र्ेदना से
आधधगमज सम्यग्दिवन☸धमव श्रर्ण
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आन्तरंग कारण्शनथन ोहनीय व अनन्तानुबन्धी कथ का
क्षय क्षयोपशन उपशन
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क्या ए सा हाे सकता है कक जीर् ने कभी भी उपदेि नहीं सुना हाे आाैर उसे सम्यग्दिवन हाे जाये?ं
नहीं
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७ तत्त्र्
जीर् आजीर् आास्रर् बंध संर्र ननजवरा माेक्ष
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जीर् तत्त्र्
ञान-दिवन स्र्भार्ी आात्मा काेकहते हैं
र्ह चेतन तत्त्र् आात्माही मैं हाँ
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जीर् तत्त्र् काैन?
स्र्यं का जीर्
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जीर् तत्त्र् है कक आजीर् तत्त्र्?
अलारी ेरा आत्ा ेरे कथ गुलाब जानु
टी. वी कम््युटर सहेली बच्चे
पतत पतत की आत्ा ेरे वचन ेरी आंखें
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आजीर् तत्त्र्
ञान-दिवन स्र्भार् से रहहत
तथा आात्मा सेमभन्न समस्त
पुद गलादद पााँच द्रव्य
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आस्रव आदि तत्त्वों के प्रकार
द्रव्य तत्त्र्का आानाका आात्मा से संबंध हाेना
का आाना रुकना
का एकदेि स्खरनाका सम्पूणव नाि
- आास्रर्- बन्ध- संर्र
- ननजवरा- माेक्ष
कमाेों
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का बने रहना
उत्पत्तत्तर्ृद्धीपूणवता
िुभ-आिुभ भार्ाें
िुद्ध भार्ाे ंकी
की उत्पत्तत्तभार् तत्त्र् - आास्रर्- बन्ध
- संर्र- ननजवरा- माेक्ष
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इनमें पुण्य–पाप का ग्रहण क्याें नहीं ककया ?☸क्याेंकक आास्रर् – बंध में उनका आंतभावर् हाे जाता है |
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आास्रर्भार्ास्रर्
जजन माेह राग दे्वष भार्ाे ंके ननममत्त से ञानार्रणादद कमव आाते हैं, उन माेह राग दे्वष भार्ाें काे भार्ास्रर् कहते है
द्रव्यास्रर्
भार्ास्त्रर् के ननममत्त से ञानार्रणादद कमाेों का स्र्यं आाना द्रव्यास्रर् है
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भार् बंधआात्मा के जजन पररणामाे ंके ननममत्त से कमव आात्मा से संबंधरूप हाे जाते हैं, उन
माेह-राग-दे्वष, पुण्य-पाप आादद कर्भार् भार्ाे ंकाे भार् बंध
कहते हैं
द्रव्य बंध
उसके ननममत्त से पुद गलका स्र्यं कमवरूप बंधना
द्रव्य बंध है
बंध
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आात्मा के जजन पररणामाे ंके ननममत्त से नर्ीन कमव आाना रुकते हैं, उन पररणामाें काे भार्संर्र कहते हैं
तदनुसार नर्ीन कमाेों का आाना स्र्यं स्र्तः रुक जाना द्रव्यसंर्र है ।
संवर
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निर्जरा
आात्मा के जजन पररणामाे ंके ननममत्त से बंधे हुए कमव एकदेि स्खरते हैं, उन पररणामाे ंकाे भार्ननजवरा
कहते हैं
आात्मा से कमाेों काएकदेि छूट जाना द्रव्य-
ननजवरा है ।
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भार् माेक्षAewÕ Xem H$m gd©Wm
gånyU© Zme hmoH$a AmË_mH$s nyU© {Z_©b n{dÌ XemH$m àH$Q hmoZm ^md-_moj
h¡
द्रव्य माेक्ष
{Z{_Îm H$maU Ðì`H$_© H$m gd©Wm Zme (A^md) hmoZm
gmo Ðì`_moj h¡Ÿ&
माेक्ष
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☸Cº$ gmVm| Ho$ `WmW© lÕmZ {~Zm _moj_mJ© Zht ~Z gH$Vm h¡☸Ord Am¡a AOrd H$mo OmZo {~Zm AnZo-nam`o H$m ^oX-{dkmZ H¡$go hmo ? जजस ेसुखी करना है ए से जीर् काे जानना, जजसके साथ सुखी हाेन ेका भ्रम हाे सकता है ए से आजीर् काे जानना
☸_moj H$mo n{hMmZo {~Zm Am¡a {hVê$n _mZo {~Zm CgH$m Cnm` H¡$go H$ao ?☸_moj H$m Cnm` संर्र-{ZO©am h¢, AV: CZH$m OmZZm ^r Amdí`H$ h¡ ।☸VWm Amòd H$m A^md gmo संर्र h¡ Am¡a बंध H$m EH$Xoe A^md gmo {ZO©am h¡; AV:
BZH$mo OmZo {~Zm BZH$mo N>mo ‹S संर्र-{ZO©amê$n H¡$go àdÎm} ?
तत्त्र् ७ ही क्याें?
७ तत्त्र्ाें के क्रम का कारण☸सब फल जीर् काे है, आत: सर्वप्रथम जीर् कहा|☸जीर् का उपकारी आजीर् है, आत: आजीर् कहा|☸आास्रर्, जीर् आाैर आजीर् दाेनाे ंकाे कर्षय करता है, आत: आास्रर् कहा|
☸बंध आास्रर्-पूर्वक हाेता है आत: बंध कहा|☸संर्ृत जीर् के आास्रर्-बंध नहीं हाेता है, आत: संर्र कहा |☸संर्र के हाेने पर ननजवरा हाेती ह,ै आत: ननजवरा कही|☸पूणव ननजवरा हाेने पर माेक्ष हाेता ह,ै आत: आंत में माेक्ष कहा |
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द्रव्य है,ं गुण हैं कक पयावये ंहैं?☸जीर्, आजीर् तत्त्र् - द्रव्य हैं☸भार् आास्त्रर्, बंध, संर्र, ननजवरा, माेक्ष ये जीर् द्रव्य की पयावये ंहैं
☸द्रव्य आास्त्रर्, बंध, संर्र, ननजवरा, माेक्ष ये आजीर् द्रव्य की पयावये ंहैं
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कक
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ननक्षेप☸लाेक आथर्ा आागम में िबद व्यर्हार करने कीपद्धनत
☸प्रयाेजन☸आप्रकृत का ननराकरण करने के मलये ☸प्रकृत का प्ररूपण करने के मलये
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ननक्षेप (लाेक आथर्ा आागम में िबद व्यर्हार करने की पद्धनत
क
क
क
क
क
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कक
क
कक
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यक
कPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
स्थापनातदाकार
उसी रुप, आाकृनत र्ालेपदाथव में "यह र्ही है"
ए सी स्थापना करना
आतदाकार
मभन्न रुप, आाकृनत र्ाले पदाथव में "यह र्ही है"
ए सी स्थापना करनाPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
जीर् के 4 ननक्षेप•जीर्न गुण की आपेक्षा न रखकर ककसी का नाम मात्र जीर् रखनानाम जीर्
•आक्ष आादद में ‘यह जीर् है’ एेसा स्थाकपत करनास्थापना जीर् •जीर्न सामान्य की आपेक्षा यह नहीं बनता परन्तु मनुष्य आादद जीर् की आपेक्षा यह बन जाता हैद्रव्य जीर्
•जीर्न पयावय से सहहत आात्मा भार् जीर् हैभार् जीर्Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
इसी प्रकार आजीर् आादद 7 तत्त्र् पर लगाना
सम्यग्दिवन-ञान-चाररत्र पर लगानाPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
सम्यग्दिवन के 4 ननक्षेप•सम्यग्दिवन गुण की आपेक्षा न रखकर ककसी का नाम सम्यग्दिवन रखना नाम सम्यग्दिवन
•आक्ष आादद में ‘यह सम्यग्दिवन है’ एेसा स्थाकपत करनास्थापना सम्यग्दिवन• जजसे र्तवमान में सम्यग्दिवन नहीं है, परन्तु भकर्ष्य में हाेगा उस जीर् काे द्रव्य सम्यग्दिवन कहते हैंद्रव्य सम्यग्दिवन
•तत्त्र्ाथव श्रद्धान पयावय से पररणत श्रद्धा गुण (या आात्मा) भार् सम्यग्दिवन हैभार् सम्यग्दिवन
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क
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प्रमाणसच्चा ञान
पदाथव के सर्वदेि काेग्रहण करता है
नयश्रुतञान का आंि
र्स्तु के एकदेि ग्रहण करता है
पदाथाेों काे जानने के उपाय
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प्रमाणजाे जानता है कतृव साधन
जजसके द्वारा जाना जाता है करण साधन
जानन मात्र भार् साधन
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☸आथावत ञान ही प्रमाण है
☸इस्न्द्रयााँ, इस्न्द्रयाें का व्यापार, समन्नकषव, प्रकाि-पसु्तक आादद प्रमाण नहीं हैं |
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सम्यक जानना आथावत संिय कर्पयवय आनध्यर्साय रहहत जानना
• कर्रुद्ध आनेक काेहट काे स्पिव करने र्ाले ञान काे संिय कहते हैंसंिय
• र्स्तु के कर्रुद्ध ञान काे कर्पयवय कहते हैंकर्पयवय • कुछ है इस प्रकार के ञान सहहत जानन ेकी जजञासा का भार् आनध्यर्साय हैआनध्यर्साय
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प्रमाण
स्र्ाथव
(ञानात्मक)
5 ञान
पराथव
(र्चनात्मक)
श्रुतञानPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
प्रमाण का कर्षय☸र्स्तु सामान्य - कर्िेषात्मक है|☸आथावत द्रव्य-पयावय स्र्रूपी पदाथव है|
☸जजसमें सामान्य – कर्िेष दाेनाे ंही आंिाें का युगपत ञान हाेता हाे
☸र्ह प्रमाण ञान है |Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
नयर्स्तु काे प्रमाण से जानकर
ककसी एक आर्स्था द्वारापदाथव का ननश्चय करना
नय है |Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
नय का कर्षय☸र्स्तु सामान्य - कर्िेषात्मक है|☸आथावत द्रव्य-पयावय स्र्रूपी पदाथव है|
☸जजसमें र्स्तु के ☸सामान्य का आथर्ा कर्िेष आंि का ☸ञान हाेता हाे☸र्ह नय ञान है |
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☸सापेक्ष नय ही सम्यक हाेते हैं |☸ननरपके्ष नय दनुवय हाेते हैं |
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नय ककसमें लगत ेहैं?
ञान में
र्ाणी मेंPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
नय ककसमें नहीं लगत ेहै?ं
र्स्तु में
कक्रया मेंPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
☸जैन दिवन में ही नय का व्याख्यान है |☸आन्य दिवनाे ंमें मात्र प्रमाण की चचाव है |
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प्र.- नय काे पहले रखना चाहहए था क्याेंकक उसमें कम आक्षर हैं?
उ.- प्रमाण श्रेष्ठ है, आत: पहले रखा है |
प्र.- प्रमाण श्रेष्ठ क्याें है?
उ.- क्याेंकक प्रमाण से ही नय की उत्पत्तत्त हाेती है |
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प्रमाण-नय के द्वारा क्या जानना है?
सम्यग्दिवन -ञान - चाररत्र एर्ं जीर्ादद 7 तत्त्र्
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प्रमाण द्वारा रत्नत्रय
ननज िुद्धात्मरूमच / तत्त्र्ाथव श्रद्धान से पररणत आात्मा सम्यग्दिवन है |
समीचीन ञान से पररणत आात्मा सम्यग्ञान है |
ननश्चल ननजात्म पररणनत से पररणत आात्मा सम्यग्चाररत्र है |
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नय द्वारा सम्यग्दिवनकमव की आपेक्षा दिवन माेह के क्षय, उपिम या क्षयाेपिम से हाेने र्ाला भार् सम्यग्दिवन है |
व्यर्हार नय से देर् – िास्त्र – गुरु का श्रद्धान सम्यग्दिवन है |
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जीर् प्रमाण द्वारा☸जीर् पदाथव ञान दिवन स्र्भार्ी है एर्ं मनत ञान आादद उसकी आर्स्था है |
☸जीर् ननत्य आाैर आननत्य है ☸जीर् आनंत धमावत्मक पदाथव है
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नय द्वारा जीर् ☸स्र्भार् की आपेक्षा ननत्य है |☸जीर् पयावय की आपेक्षा आननत्य है |☸एेसे ही आजीर्, आास्रर् आादद तत्त्र् काे भी जानना
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क
कक
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कक
क कक
क
पदाथाेों काे जानने के उपाय
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सम्यक दिवन क्या है?
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जीर्ादद पदाथाेों काश्रद्धान सम्यग्दिवन है
सम्यग्दिवन ककसके हाेता है ?
☸सामान्य आपेक्षा -जीर् काे हाेता है ☸कर्िेष आपेक्षा- नारकी नतयोंच आादद गनतयाे ंमें हाेता है |
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सम्यग्दिवन का साधन (कारण) क्या है ?
साधन बाह्य
धमव श्रर्ण
जानत स्मरण
जजनकबबं दिवन र्ेदना
देर् ररद्धद्धदिवन
आभ्यंतर दिवन
माेहनीयका क्षय
उपिम क्षयापेिमPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
सम्यग्दिवन का आधधकरण/ आाधार क्या है ?आधधकरण
बाह्य लाेक का क्षेत्र जहां सम्यग्दिवन पाया
जाता है
लाेक नाली
आंतरंग जजस पदाथव में सम्यग्दिवन पाया जाता
है
जीर् स्र्यं Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
सम्यग्दिवन की स्स्थनत ककतनी है याने ककतने काल तक रहता है ?
स्स्थनतजघन्य आंतमुवहतव आाैपिममक सम्यक्त्व की
आपेक्षा
उत्कृष्ट
संसारी काे
66 सागर
क्षायापेिममक सम्यक्त्व आपेक्षा
मुक्त काे
सादद आनंत
क्षाययक सम्यक्त्वPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
सम्यक दिवन के ककतन ेभेद हैं ?सामान्य से - 1
ननसगवज आाैर आधधगमज आपेक्षा - 2
आाैपिममक, क्षाययक, क्षायापेिममक की आपेक्षा - 3
िबदाे ंकी आपेक्षा - संख्यात
श्रद्धान करन ेर्ालाे ंकी आपेक्षा - आसंख्यात
श्रदे्धय पदाथाेों की आपेक्षा - आनंत प्रकार हैं Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
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इसी प्रकार सम्यग्दिवन ञान चाररत्र एर्ं जीर् आादद तत्र् पर भी लगाना चाहहए
उदाहरण - सम्यग्दिवन•जीर्ादद पदाथाेों का श्रद्धान सम्यग्दिवन हैननदेवि •सामान्य से जीर् , कर्िेष से गनत आादद मेंस्र्ामी • बाह्य- दिवन माेहनीय कमव का क्षय, उपिम या क्षयाेपिम आादद• आभ्यतंर- जानतस्मरण आाददसाधन • बाह्य- १४ राजु लम्बी त्रस नाड़ ी• आभ्यतंर- सम्यग्दिवन का जाे स्र्ामी हैआधधकरण•जघन्य आन्तमुवहतव एर्ं उत्कृष्ट स्स्थनत सादद आनन्त हैस्स्थनत•सम्यग्दिवन १, २, ३, संख्यात, आसंख्यात एर्ं आनन्त प्रकार का हाेता हैकर्धान
क
कक
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कर्स्तार रुमच शिष्याें के मलये
पदाथाेोंकाे
जानन ेकेउपाय
सत संख्याक्षेत्रस्पिवनकालआन्तरभार्
आल्पबहुत्र्Presentation Developed by: Smt Sarika Chabra
सत क्या है?
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सत आथावत जीर् का आस्स्तत्र्, जीर् का existance
जैसे - जीर् है, पुद्गल है |
संख्या
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द्रव्य का प्रमाण , quantity
जैसे जीर्- आनंत, पुद्गल - आनंतानत
कर्धान आाैर संख्या में क्या आंतर है?
☸कर्धान के द्वारा प्रकाराे ंकाे यगनती की जाती है आाैर संख्या के द्वारा पदाथाेों की यगनती की जाती है |
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क्षेत्र
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पदाथव के र्तवमान काल का ननर्ासस्थान क्षेत्र कहलाता है
जैसे – ममथ्यादृधष्ट जीर् का क्षेत्र – 3 लाके, नारकी – लाेक का आसंख्यातार्ा भाग
स्पिवन
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तीन काल में र्स्तु ने ककतने क्षेत्र काे स्पिव ककया है र्ह स्थान स्पिवन कहलाता है
जैसे – ममथ्यादृधष्ट – तीन लाेक, नारकी – लाेक का आसंख्यातार्ा भाग
क्षेत्र आाैर स्पिवन में क्या आंतर है?क्षेत्र☸इसमे पदाथव के र्तवमान क्षेत्र के स्पिवन काआमभप्राय है
☸जैसे – र्तवमान जल केद्वारा र्तवमान घट के क्षेत्र का स्पिवन हाेता है |
स्पिवन☸इसमे नत्रकालगाचेर आथावत आतीत – आनागत क्षेत्र के स्पिवन का आमभप्राय है
☸जैसे – जल का नत्रकाल गाेचर क्षेत्र – तीन लाेक
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काल
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ककसी क्षेत्र में स्स्थत र्स्तु के समय की मयावदा का ननश्चय करना काल है
जैसे – सामान्य से - ममथ्यादृधष्ट जीर् का काल – सब काल (नाना जीर् आपेक्षा)
कर्िेष से - नरक में ममथ्यादृधष्ट का काल (एक जीर् आपेक्षा)जघन्य – आंतमुवहतव, उत्कृष्ट 1,3,7, 10, 17, 22, 33 सागर
आंतर
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जब कर्र्क्षक्षत गुण गुणान्तररूप से संक्रममत हाे जाता है आाैर पुन: उसकी प्रानि हाे जाती है ताे
मध्य के काल काे कर्रह काल कहत ेहैं
जैसे – सामान्य से - ममथ्यादृधष्ट जीर् का आंतर – नही ं(नाना जीर् आपेक्षा), कर्िषे से - नरक में ममथ्यादृधष्ट का आंतर (एक जीर् आपेक्षा)
जघन्य – आंतमुवहतव, उत्कृष्ट कुछ कम – (1,3,7, 10, 17, 22, 33) सागर
भार्
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आाैपिममकादद पररणामाे ंकाे भार् कहत ेहैं
जैसे ममथ्यादिवन यह आाैदययक भार् है, सम्यग्दिवन यह आाैपिममक, क्षाययक आाैर क्षायापेिममक भार् है
आल्पबहुत्र्
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एक दसूरे की आपेक्षा न्यूनाधधक का ञान करने काे आल्पबहुत्र् कहते हैं
जैसे – नतयोंच सबसे ज्यादा, क्षसद्ध, देर्, नारकी आाैर मनुष्य सबसे कम
कक
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क क कPresentation Developed by: Smt Sarika Chabra
➢ Reference : श्री गाेम्मटसार जीर्काण्ड़जी, श्री जैनेन्द्रक्षसद्धान्त काेष, तत्त्र्ाथवसतू्रजी
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