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;rr§7 - aumkar.comया ख़ुदा हुई है मोहबत जब से बनी...

Date post: 08-Apr-2020
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Transcript
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  • या ख़ुदा

    हुई है मोह बत जब से

    बनी मेरी जान है तू

    इ क़ से ही जाना म ने

    जान नहीं ख़दुा है तू

    तुफां म भटके क ती का

    सहारा- ए-दिरयां है तू

    मंझधार डूबते ितनके का

    िकनारा-ए-निदयाँ है तू

    कतरा-ए-मय एक या है तू सुराही-ए-शराब बूँद-ए-शबनम एक या है तू गलुशन-ए-शबाब

    मु ला क्या या मौलवी क्या सब ही को है तेरी लगन िदल को िजस के तूने छुआ है तेरी ही धुन म मगन

    - नारायण ०८/०९/०९

  •                मेरे महबूब  

    यह अदा यह िनगाह मुःकुराती मःतानी यह तेरी चाल बलखाती हैं िदल मेरा ले चुरा कर जाती चूर कर िफर उसे क्यों लौटाती 

     

    घुल गया हैं ऐसे यह समा आसमां एक ही तुम्हारी शख्स में कैसे भला उठे पलक तो हो जाए उिजयारा िगरे नकाब तो छा जाए अधेँरा 

     

    कैकशा-ए-ठंडक और गलुाबी महक फसले-ए-बहार और शराबी बहक एक ही पल सभी मैं करू महसूस पास से जो गजुरे मेरे महबूब  

                                                                         ‐नारायण                                                                  ०२/१४/०९ 

  • म हँू ना !

    कोसता क्यूं है बेवजह

    म हँू िबलकुल बेक़सूर

    सोचता क्यूं है बेअसर

    की है तू कोई बड़ा हुजूर

    ढ़ाओ जु म चाहे िजतने

    िगरेगी न बँूद मेरी आखँ से

    खैरात मोतीय की कैसे

    की जाएँ ज लाद पर

    म तो हँू बांदी खुदाकी

    और क़ािबल-ए-रहम उस की

    कहे वो म हँू ना की

    सैतान से कभी ना डर

    - नारायण

    ०४/१७/०९ 

  • ईःलाम

    िधब करो िजब करो अल्ला का शुब करो ख़ुद की ना िफब करो ईःलाम को मुब करो

    - नारायण ०९/२७/०९

  • शराफ़त िमली नफरत तो ली मुहब्बत समझ कर क़यामत भी झेल ली इनायत समझ कर

    बुतों से िकया िकनारा हमने भूतों को िकया गवंारा हमने क़रीब-ओ-क़रीब कर ली हर आफ़त अजीब-ओ-गरीब हमारी शराफ़त

    िखदमदगार ख़दुा के अमन के राही हम िफब नहीं िहफाज़त की इबादत में मशगूल हम

    - नारायण १०/३०/०९

  • शराबी बेशुमार खा के मार �फर भी हँू म� मगरर बेतहाशा तेर� तमन्ा करे ी्े कक म बूर

    है ् �शकवा ्ा �गला कुछ भी मुझे ज़मा्े से ैसे परवा्ा ख़ुशी म� ले �मल के शमा से

    खवा�हश� सार� ह� गई घुल इस पैमा्े म� खबर �कसे तू है गई �पघल मेर� ह� मय म�

    कौ् म� कौ् तू कया तमन्ा खवा�हश कैसी ? �दल कक मेरे तू ्े छुआ तब से है ये बदहवासी !

    - ्ारायण ०४/०७/१०

  • उ� का तकाज़ा नजरअंदाज हम ने नह� �कया कुछ भी �फर भी जाल से ना जाने कैसी �फसली मछली

    दर दर क� खा कर ठोकर� भर भर के लाएँ धन के िपटार� मर मार के �कये जतन वे सारे पल भर म� लुटाएँ सभी अब ह� हाथ खाली

    रौब जमाया ताक़त का ज� मनाया िहममत का ऐलान �कया ज�त का मशगुल इतने समझ ना पाएँ उ� ढली

    शु� ह ैख़�दा का अब तो आंख खुली खा के सौ चूह ेिबलली अब हज चली

    - नारायण ०४/१३/१०

  • सच्च तुम ह� को म� देखू ँतुम ह� को म� ्चहँू तुम ह� मेर� आरज ू तुम ह� मेर� जसुतज ू खचने क� ख्चाहह पीने क� प्चस जीने क� तमननच डर मरने कच सब ह� से बड़च �सफर एक है त ू प्चर हो के ख़ुदच हो नच मत जदुच रहो पचस सदच कहो नच अल�्दच सचरे इस जहचँ म� सच्च एक है तू

    - नचरच्ण ०५/२०/१०

  • उजाऱा

    सुऱघते सीने से धुआॊ जो ननकऱे फद फ ू पैऱाएॊ ददऱ मंे दफी नफ़रत है इसकी वजह समेझ यह ऱे

    हुई ना हानसऱ गर जो मेोहब्फत कर ना ददक्कत रख यह हसरत कोई और गैर करेगा खैरात

    पूॊ क दे गुस्सा जऱा दे नफ़रत कर दे खाऱी ऩूरा ददऱ तेरा देख दपर कैसे होगा उजाऱा ददऱ ही नहीॊ फल्कक जहाॉ यह सारा

    - नारायण ०७ /०७/ ००

  • हमसफ़र

    आना ही था मोहतरमा

    तो तनहा तनहा क्ययं न आयी?

    लाना ही था साथ किसी िो

    तो बहार ही िो क्ययं ले आयी?

    चुनांचे जाना ही था मोहतरमा

    साथ उस ेभी क्ययं नहं ले गयी?

    लगा वह आप िा साया थी

    हमसाया हमारा िैसे बनती?

    कदल िे झरोिे से किरण सी घुसी

    पलिं िो पर खुला क्ययं छोड़ आयी?

    आंखं मं कितनी आवारागदी

    िर रही ह ंसनुहरी याद ंआप िी !

    सोने भी वे नहं दतेी हमं

    सपनं िी आप िे तमन्ना रह गयी !

    मुस्िराहट नहं आहट ही सही

    क्ययं न हमारे ललय ेछोड़ गयी?

    लनशानी अगर िुछ द ेजाती

    लजन्दगी खुशी स ेगजुर जाती

    गम मगर नहं ह ंक्ययं कि

    लजगर मं ह ंआप समां गयी !

    - नारायण

    ०७/२६/१०

  • नजर-ए-बयाॊ ऩसॊद अऩनी अऩनी खयाऱ अऩना अऩना नजर अऩनी अऩनी अॊदाज अऩना अऩना

    ऱगाम ऱाऱ ऩर घोड़ी बूढी जवाॊ हूॉ मं देखो अभी भी ऩसॊद अऩनी अऩनी

    मनहूस बेरहम कैसी ये दनुनया जहाॊ ये खूबसूरत अल्ऱाह का शुक्रिया खयाऱ अऩना अऩना

    कैकषा ये चमचमाती बबखरे खुदा ने मोती ऩत्थर बेशुमार सतैान के खबर है ऱाए क़यामत की नजर अऩनी अऩनी

    क्रिमक्रिमाता नसतारा खा जाएगा अॊधेरा सब्र है गर गॉवारा दरू नहीॊ हं सॊवेरा अॊदाज अऩना अऩना

    - नारायण ११/२०/१०

  • पैसरा चरा है वह जराने कुयान-ए-शयीप कहे है फामफर उसके जजगय के कयीफ कयं क्यमं वह बगवत्गीता की फपक्र नहीॊ जफ उसे फकसी तोहया ऩय पक्र?

    फकमा न कबी ऩववत्र वेदं को प्रणाभ न मा कबी गुरु ग्रन्थ-साफहफ को सराभ भाने न फामफर का बी फहस्सा आधा कैसे फपय जाने वह क्यमा है झंद-अवेस्ता?

    जाने दो छोड़ो कय रो उस से फकनाया कबी घय से फाहय ना ननकरा फेचाया जीसस तक बी जो ना ऩहुॉच ऩामा क़माभत ऩय होगा उसका बी पैसरा!

    - नायामण ०९/११/१०

    (A priest in Gainesville, Florida had threatened to burn Quran in protest of a proposed building: a mosque, near the Ground Zero in New York, the place of terrorist attacks on 09/11. Politics, as usual, was behind the agitation all over the USA from both camps, pro and against the proposal. The above composition in Urdu was intended to appeal for non-violent and peaceful resolution of the dispute by all parties involved as well concerned.)

  • कौन?

    रास्ते से अपने आप में मशगलु मैं था चल रहा

    सामने से यकायक ना जाने वो कहााँ से आया

    बिना कुछ कह ेउसने अचानक हमला िोल बदया

    नजर भी न उठने दी दनादन मझु ेमार मार मारा

    बहम्मत धर मबुककल से खोली मैं ने एक आाँख यूाँ

    बिगाड़ा क्या मैं ने इसका तीसमारखाां ये कौन दखेूाँ

    हडिड़ा उठा जो दखेा कोई नहीं हैं आजिूाज ू

    िड़ा अजीि शक्स्ख ह ैहुआ गायि एक लम्ह ेमें क्यूाँ

    लडखडा कर उठने की कोशीश हुई नाकाम

    बगरा वहीं िेहोश हो कर कहीं ना साया ना मकान

    ऑ ांखें खलुी तो दौडी लहरें खशुि ूकी अनबगनत

    उड़े होश बिर दखेी जि खड़ी हसीना एक करीि

    धोएाँ जख्म बकया मल्हम पट्टी िाांधी सर पर

    धीरे से दिाएाँ हाथ पैर हौलेसे बिर मसु्कुरा कर

    अगले ही पल गयी वो बनकल छोड़ मझु ेमोड पर

    थी कौन था वो गजुरा जो इनायत या नफ़रत कर

    -नारायण

    ०८/०९/११

  • जॊग गर है सारा जहाॉ भरा ससर्फ़ खूबसूरती से फिर है छिपी कोने कोने में बदसूरती कैसे ?

    माना जररये बेशुमार थे गरैों को अपनाने के रसूऱ भी कहाॉ कम थे अपनों को बबदा करने के ?

    फकये काम नेक न िुआ मय को कभी न होश खोएॊ फिर भी क्यों गुस्से में आ कर कभी कबार बेहोश हुए ?

    कोशीश की रहे भाईचारा बढ़े मोहब्बत समटे नर्रत फिर भी चारों ओर है रै्ऱी जॊग नहीीँ फकसे कोई मुरव्वत

    जब जब फकये सजदे और हुए रूबरू अल्ऱा से कहीॊ न कहीॊ समऱती रहीॊ नजरें कायर शैतान से

    - नारायण १०/०९/११

  • वाकिया पाया न िभी हमने जो चाहा चाहा न िभी हमने जो पाया

    चाहत में ही गजुर गयी जजिंदगी सारी मौत मगर चाही तो उसने भी ठुिरा ददया

    जीना जजतनी भी उम्र याने पल पल है मरना पल भर भी मौत िो पर क्यों न जायें भुलाया

    एि चाहे दसूरे िो चाह जजसे तीसरे िी ददया प्यार न लौटे िभी सददयों िा है ये वाकिया

    - नारायण १२/०३/११

  • डर खदुा से

    बनाई जिसने कुदरत ह ैवह एक ही माजिक अल्िातािा खदुा

    हर एक चीि या शख्स कुदरत की ह ैउसी की ही बाांदी या बांदा

    जिर कैसा खिीफ़ा और जखिाित कैसी सारा ही ह ैिसाद िां दा

    कैसा मलु्क मिहब रस्म ररवाि कैसे सब ही ह ै एक गोरख धांदा

    बड़ी िुरसत से माजिक ने बनाई ह ैयह कुदरत िन्नत सी

    इसकी सारी ही सरिमीं ह ैजहरासत हर एक जिन्दा बांद ेकी

    इसी जिए कहााँ ह ैयह अल्िा ने पैगांबर मोहम्मद की कानों में

    कर भिा नहीं बरुा और डर मझुस े होगा िैसिा क़यामत में

    - नारायण

    ०१/०८/१२

  • शैतान कौन है वो जो झोंक के धूल आखँों में मेरी दिखाए भूलभुलैया कौन ये जो फुसफुसाए कानों में चंगलु में मैंने है तुझ ेफसाया

    कौन है वो जो थाम के प्याला मुझ ेपिलाये जाए जाम िर जाम कौन है वो जो जाए फैलाए बू घमासान समां में हर सुबह श्याम

    कौन है गायब हवा के झोंके जसैा छू के मेरा जजस्म मुलायम कौन है वो जो सामने आए बबना जाए ककये करवाए ससतम

    - नारायण ०१/११/१२

  • सियाही फ़ैली है चारों ओर घनी रात की सियाही हुए ना कम मैं दिल का दिया जलाऊं जजतना भी

    िमा ंमें घमािान िभी लड़ रहें हैं लड़ाइयााँ िुनेगा कौन चीखें मेरी िुलह की यहााँ

    पहचान इन्िान को नही ंकोई इन्िान की बिली कब्रस्तान में है शान गुसलस्तााँ की

    घूम रहें हैं भूत यहााँ लालच हवि के रूहें भटकती हैं िभी पीछे लाशों के

    कौन ये हमें दहलाएाँ जैिे कठपुतसलयााँ बबना खखलें जा रहीं हैं मुरझाई कसलयााँ

    - नारायण ०१/१६/१२

  • हारून-अल-रशीद हजारों हसरतें हाससल करोडों ख्वाहहशें काबिल मुखातति एक ना मुश्ककल खरैरअत खदुा की भी शासमल

    खशुनसीि पैदा हुए हम खशुसमजाज रहतें हैं हरदम झलेे ना कभी रंज-ओ-गम अल्ला के हैं अनगगनत रहम

    फिर हम एक ही क्यों ऐसे काश होते सारे हम जसेै गर हैं इन्सान एकसररखे क्यों हम खलीफ़ा िाकी िंदे

    - नारायण ०२/०७/१२

  • दास्ााँ मुरव्व् ने रोका हााँ कहन ेसे मुहब्ब् ने टोका ना कहने से

    हडबड़ा के उठी आप को गले लगाने लडखडा्े गगरी आप के कदमों में

    चाह् यह रही खशुी आप की बन ाँ राह् मेरे ही गम से कैसे पाऊं

    त्लममला उठी है मेरी रूह ऐसे झिलममलाएं िील ्फां में जैसे

    खत्म होगी द ररयााँ कब हमारे बीच की दास्ााँ गाएगी दतुनया कब हमारे इश्क की

    - नारायण ०३/१७/१२

  • रूखस

    मंिजल बेहद दरू और लंबा �दलबर का खफर इस�ममाम खे इखी�लए �कया इशक कक रूखस

    ढलस ेअशकक कक मुिशकल खे भरा गुलाबदानी म� थकड़ी ह� खह� कहा बुझा लेना पयाख अअनी राह म�

    हाथ म� उनके �दया थमा कलेजा खीने खे �नकाल �मले ना �मले रे�गससां म� ूाना उउह� कभीकबार

    आफसाब क� कड़ी धूअ खे बचाने कक उनका खर कफ़न बनाया म� ने अअनी ूाल उूाड कर

    कौन नह�ं ये जानसा मौस खे बदसर जुदाई शुक ह मर कर भी म� रहँूगी उनके अाख ह�

    - नारायण ०५/०१/१२

  • अछूत ढंगदार बिदेसी गाडी को यूूँ ही छू ने मैं जा ही रहा था कक लगा ददया कान के नीचे सेठ ने एक जोरदार लाफा

    क्यों िे साले िाप का तरेे माल है ये तू समझा क्या ? दफना दूूँगा यही वरना चल हो जा यहाूँ से दफा !

    नौ दो ग्यारा तुरंत होना चाहता था जी घिरा कर सौ सौ मनों का िोझ पड़ा पर जैसे पैरों में आ कर

    ख़ुद ही गुस्से में घुस गए सेठ गाडी में दरवज्जा ओढ़े भुरर चली गई गाडी और मैं रहा वही शरममदंा खड़ े

    अगले ददन मास्टर जी ने स्कूल में थमाया अख़िार पहले ही पन्ने पर देखी उस गाडी की तसवीरें चार

    िड़ ेपैमाने के लफ़्जों में मलखा था हुआ जो हादसा मौत सेठ की हुई गाडी में जाूँच हो रही है मौजूदा

    छह छह बिदेसी अि हैं मेरी गाडडयाूँ एक से िढ़ कर एक खोलता दरवाज़ा है शोफ़र पर छूता नहीं हूूँ मैं अभी भी एक

    - नारायण ०५/२४/१२

  • खदुगज़र ख़ुदा ने बक्श हम े सरहशी हश ने खुदगसरश हम बाँट ल� बना एक टुकड़ा �हस एक नान बना एक � नददोसाँ एक ईसान

    एक एक � ो े ख़ाासस �स ्ुु ुह रीग झगड़ ेबाप बेटा राएँ भाई दशुहन के ीग

    व ऐय ा्श कसम नाा नीगा पशस �क�स कसम � ाद दीगा

    भ ल गए ब ै देखसा ख़ुदा छ टे न कदई द अहशस ा बीदा

    - नासा ण ०६/०४/१२

  • मंझिल काटना है फासला कदम कदम एक एक करना है फैसला हर दम नया और नेक

    चलना है रात ददन आँखें खलुी रख के डखं मारे न साँप कहीं अनजानी राहों में

    ननगाहेबानी करना है खुद ही अपने आप की आए वक्त तो नहीं है दोस्ती यारी काम की

    गुजरे गर गुललस्ता ँसे या फफर रेगगस्तान से कारवा ँमें हों या तनहा ंमंझिल रखना सामने

    - नारायण ०७/०८/१२

  • उम्मीद

    इस जिस्म की परेशानी सनुाएँ तो भला कैसे इस ददल की तनहाई ममटाएँ तो भला कैसे

    चाहत ेथे जिन्हें सुनत ेथे वे हमारी मशकायतें उठके वे चल ददए तब से आयी हैं कयामतें

    आँखों की रोशनी थे वे थे चमक रूह की हुए बबदा तो ददक्कत आयी देखने िीने की

    शीष ेका ददल था उनका हुआ कैसे पत्थर का रास्ता वे कैसे भलू गए हमारी डगर का

    जिएँगे िाएँ िान फिर भी इस उम्मीद से लौटेंगे वे ना लेंगे बबदा अपनी ही मुहब्बत से

    - नारायण ०७/११/१२

  • संग

    खींच भौए ँचलाएँ तीर नज़रों के ऐसे

    भनू भनू के कलेजा छोड़ा खीम ेजसेै

    आए चपु के आहिस्ता गए हिल को चरुा के

    लाए माली जसेै अधहखला फूल चमन से

    बेबस इतने क्यों िोते िैं िम तमु्िारे सामने

    जैसे िारे िों िम और ि ैपाई फति तमुने

    अभी शरुू भी लड़ाई निीं तो ि ैिरू जगं

    जोर-ए-बाज ू समझोगे गर चलोगे संग

    - नारायण

    ०७/१९/१२

  • जीना मरना

    जी कर दनेा ह ैजजन्दगी को अंजाम

    मर कर करना ह ैजीने का भी नाम

    सोच लो समझो क्या ह ैजजन्दगी जीना

    अल्फ़ाजों में ही तो ह ै मतलब जिपा

    ना जी होता ह ै गर लब्ज जलखें उलटा

    जीना जीना नहीं जी हााँ वो तो ह ैमरना

    पल पल हम जीते हैं दम घटु घटु कर

    और जिर कहते हैं जीना मरने से दशुवर

    जीना मरना तो ह ैबस रब ही की मरजी पर

    क्या करना ना करना ये ह ैअपनी मरजी पर

    - नारायण

    ०८/१३/१२

  • बेखबर

    गद्दारों के बड़े इस कबीले में

    कैसे ह ैरहता एक बंदा नेक

    चेहरे पे छाई ह ैमासमूमयत

    होटों पे हसँी एक मदलफेक

    सलखू बरूा ना कभी सामियों से

    चाहत नहीं कोई हुजरू से

    मशगलू रह ेअपने काम में

    करे मशकायत ना कोई मकसीसे

    सोचें सािी मदखे न ये तो खबरी

    करे ये तो सब की तरफदारी

    सोचें हुजरू ह ैतो ये ना फकीर

    मदखे कैसे मफर ये बेमफमकर

    शकों से सभी के वो ह ैबेखबर

    मजए मजन्दगी अल्ला से डर कर

    - नारायण

    ०९/०४/१२

  • सपने

    कह ेईसा मसीह करे बंदा जो प्यारे करम

    आसमान का वालिद करें उस पर रहम

    होनी को न टािे कोई कि हो क्या न जाने कोई

    इल्तजा हमें दनेे वो भजेें फररश्तों को लफर भी

    फुसफुसातें हैं फररश्ते बातें हमारे कानों में

    ऐसी अजीब जब होते हैं सोते हम रातों में

    बन जाती हैं भिी बरुी बातें कुछ उनमें से

    डरावने या सहुाने दखेते हम हैं जो सपने

    हक़ीक़त में हैं जब कभी सपने व ेआते उतर

    परवरलदगार के हैं होते बंद ेसभी शकु्रगजुार

    - नारायण

    ०९/१०/१२

  • भरो प्याले

    दखेते हैं हम जब सपने सनुहरे

    पपघल जाते हैं नींद टूटने से पहले

    लेपिन आते हैं ख्वाब जब भी डरावने

    छोडतें पीछा ना वे जाए ँटूट नींद भले

    बोले हिीमसाब ख्वाब खातें न सचाई से मले

    बनाते भनुाते तमु ही हो पदमागी ये सारे खेल

    पजन्दगी ही ह ैएि सपना िुछ भी नहीं ह ैसच्चा

    बोले बैरागी बाबा ये समझोगे ना तमु हो बच्चा

    पल्ले हमारे पड़ती नहीं हैं ये सारी बातें

    प्याले भरो और सािी सब ही िो हैं भलुाते

    - नारायण

    ०९/२८/१२

  • पहचान

    दखेते तो सब हैं लेकिन उनिे दखेने में वो मजा िहााँ

    कमलता ह ैजो दखेते हम जब आाँखों में तमु्हारी सारा जहााँ

    दखेते हो तमु हमें कजस तरह फक्र महससू होता ह ै

    िााँपते लब और बंद जबुााँ से कजक्र-ए-महुब्बत होता ह ै

    सब ही िो कदखें तमु्हारीं आाँखों में हया बेतहाशा

    हम ही हैं जो दखे पाते चमचमाती उनमें िैिषा

    मस्त मीठी आवाज िी तमु्हारी ह ैदीवानी दकुनया सारी

    कसर्फ़ हम हैं पहचानते उसिी नजाित और ख़मुारी

    शख्स हर एि ह ै िायल हुस्न िा तमु्हारे नरूानी

    जानत े हैं हम अिेले बाज ू उस हुस्न िी रूहानी

    - नारायण

    १०/०३/१२

  • तफावत

    जो हमने चाहा वहीं तमुने किया

    जो किया हमने वहीं तमुने पाया

    भला अब हमें ह ैये िैसी कििायत

    क्यों नहीं तब ही िी तमुने बगावत

    िरुू से ही हमने कियी थी नसीहत

    फ़जज ह ैतमु्हारा हमारी ही इबाित

    माकलि हैं हम ह ैहमारी िोहरत

    तमु हो कसफ़ज िरने िो कहफ़ाजत

    अब तमु गये हो तो आयी ह ैआफत

    छाया ह ैसन्नाटा गयी िान िौित

    हम िोनों में हमने िी जो तफावत

    वही थी मसुीबत जो लायी क़यामत

    -नारायण

    ११/२६/१२

  • परी या सरूी

    घसु गए घसुलखाने में

    जिस्म को अपने धलुाने गीला रूह को जकया तमुने

    धआँुधार अपने इश्क में

    िब हम बाहर जनकल पड़े

    दखेने नज़ारे समाां आसमाां के

    धुांदला जदया आँखों को तमुने

    हुस्न की अपने चकाचौंध से

    उमड़ पड़े िब िकड़ने को

    कस कर तमु्हें अपनी बाहों में

    पकडे गए खदु हम तमु्हारे

    बेबस हो कर जििाई जदल में

    कौन हो तमु िन्नत की परी

    या जिर हो कत्लखाने की सरूी

    - नारायण

    ०१/१२/१३

  • सितारा

    जलती आग पर हडबडा कर चलते थ ेहम नंगे पााँव

    मल्हम के तौर आंिओु ंिे लपेटा तमुने हमारा हर घाव

    तपत े रेसगस्तान में लडखडा कर सगर पड़े हम भखेू प्यािे

    हूर िी आयी तमु आाँचल फैले बचाने हमें कड़े आफताब िे

    छू ने सितारों को चढ़ रहें थे पहाड़ों पर िर पर बांधे कफ़न

    सफिले पैर सगरने िे पहले िम्हाला तमु ही ने फररश्ता बन

    कौन हो तमु भला इन्िान हूर फररश्ता या कुदरती कररश्मा

    या सफर खदुा ने खा के तरि सकया बहाल हमें सितारा-ए-आस्मां

    - नारायण

    ०७/२६/१३

    HAPPY BIRTHDAY to SAU.

    जगु जगु सजयो!

  • शेर-ए-दिल

    तबाही को ही तमु अगर मानोगे बहार

    जानोगे की सखेू से भी उछ्लेगी फुहार

    िररया गम का ह ैकरना गर तमु्हें पार

    होगा दसखना अंगारों पे चलना बार बार

    जंजीरें बाहों में और बेदियााँ एदियों में

    खाँजर दजगर में और जूाँ ढोएाँ गिदन पे

    दनकाली तमु्हारी सवारी यूाँ पी के नगर में

    छोिो ना आंस तोिो ना सााँस दबना उन्हें िखेें

    मगर ऐसा होना ह ैतो चादहये सीने में शेर-ए-दिल पहाि

    दहले ना जो रात आएाँ तफ़ुााँ या दगरें दबजली दिन िहाड़

    - नारायण

    ०९/१४/१३

  • ख़्वाजा

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    राह मझुको दिखला जा

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    जो भी तेरे िर पे आया

    खाली हाथ नहीं गया

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    डंका तेरे नाम का

    सनु रहा ह ैसारा जहााँ

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    गरीबों की तमन्ना

    या अमीरों की हवस

    काम तेरा परूी करना

    मााँग ेसब की हसं हसं

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    जो भी तनूे दजसे दिया

    दजम्मा हो जाएाँ उसी का

    रखें खोएाँ खरै करें

    भरेगा जसेै करेगा

    ख़्वाजा ख़्वाजा मरेे ख़्वाजा

    - नारायण

    ०९/१६/१३

  • चारा

    पैदा होना पलना बढ़ना

    नाम इसका ह ैजिन्दगी

    सौदा करना खौफ़ खाना

    नाम इसका ह ैगन्दगी

    फैसला तमु्हें ही ह ैकरना

    करो अल्लाताला की बंदगी

    चनुो चाहो तो तमु ही वरना

    करना सैतान से भी जदल्लगी

    मरो मोहब्बत में पल पल

    या नफ़रत में जिओ िल िल

    भाईचारे में गिुारो सफ़र

    चारा दसूरा नहीं ह ैबेहतर

    - नारायण

    ११/१६/१३

  • आधा या परूा

    पडघम की नहीं ह ैये ह ैधड़कन की आवाज

    चिल्ला चिल्ला के जो ह ैरही तमु्हें ही पकुार

    िले आओ हुजरू जल्दी करो मेरे सरताज

    वरना तमु्हें दखेे चिना मरना भी दशुवार

    टूटे शीशा पर टूटे ना कभी छिी अंदरूनी

    ररश्ता टूटे पर टूटे ना मोहब्ित भावभीनी

    डाली ना िाहें िाहों में गले चमले ना हम कभी

    िातों में नजरों में िने हम चदल से करीिी

    दरूी चजस्म की दरूरयााँ नहीं करती कभी पैदा

    रूह रूह से हो रूिरू तो हो मचुश्कल भी सादा

    गर हो प्यार सच्िा तो क्या नकुसान क्या फ़ायदा

    होता ह ैपरूा आधा जीना भी और मरना भी आधा

    रेचगस्तान की हो धलू या हो िूाँद जमजम की

    दखेूाँ मैं उसमें सनम झलक अपने प्यार की

    - नारायण

    ११/१९/१३

  • फरिश्ता

    तोड़ दिए मैं ने सािे रिश्ते

    जोड़े जो नए तमु्हािे वास्ते

    चल पडी मैं तमु्हािे िास्ते

    चाह ूँ तमु्हें ही जागते सोते

    मजबतू तमु्हािी बाहों में

    लेते हो जब जकड़ मझुें

    लागे न क्यों वहीं िम घटेु

    िरूियाूँ न दफि कभी लौटे

    भलूी ह ूँ मैं अपने आप को

    िखेूूँ दिन िहाड़े ख़्वाब को

    थाम े रूह मेिी घमूते हो

    इन्सान तमु या फरिश्ता हो

    - नािायण

    ०४/०६/१४

  • गिरावट?

    चाहा था हमने तोड़ तारे लाएिँे

    समझ सकें ना खदु टूट जाएिेँ

    गकसी एक भी तारे को छू ना पाए ं

    धमाकेसे धरती पे हम आ गिरें

    गसर्फ़ गदल के ही नहीं बगकक रूह के

    अनगिनत हुए टुकड़े और गबखरे

    गमलों तक फैले वे दररया गकनारे

    तौबा इन में गफर य े चमक कैसे

    न जाने कैसे िूंजी आवाज तमु्हारी

    दयैा ना दखेें यहाँ ऐसे मोती कभी

    चाह ँ रह ँ इन्हें उम्र भर दखेती

    ढक ना सकें िे इन्हें तो बादल भी

    - नारायण

    ०५/३०/१४

  • औरत

    जाने कैसे नरू-ए-हुस्न ह ै ये या खाली तमाशा

    रूह को जो दें उजाला या करें जजस्म को प्यासा

    कहलाए औरत जो जिदमत का िजाना

    जसर्फ़ इशारों से ही वो करें गलुाम जमाना

    हाथ उसके मलुायम परवररश में बच्चों की

    जहचजकचाते नहीं काटते गदफ़नें दशु्मनों की

    बोल मीठे बात तीिी रहम जदल में जहर भी

    औरत में हुई तौबा कैसे इकट्ठी ये चीजें सारी

    एक पल लग े ऐसे औरत ह ै हूर जन्नत की

    अगले पल लग ेजसैे ह ैवो काली काजिरों की

    - नारायण

    ०६/२०/१४

  • अलग साथ

    मैं कहता ह ूँ तमु हो जिन्दा

    तमु कहती हो मैं ह ूँ मदुाा

    तेरी मरेी समझ ह ै िदुा

    मरेा बलुावा तेरा अलजवदा

    प्यार ये कैसा इसके बाविदू

    गर हैं इतने अलग विदू

    मज़हब िैसे खदुा का सबतू

    लगाव हमारे प्यार का सबतू

    अलग हो तमु अलग ह ूँ मैं भी

    सफ़र सहुाना हमारा जिर भी

    कटार लोह ेकी म्यान चमड़ी की

    साथ दोनों का नहीं अिनबी

    - नारायण

    ०८/०४/१४

  • अजीब जाद ू

    निगाहें बचािे को पलकें निटाती हो

    निगाहें चलािे को पलकें उठाती हो

    गर कोई िग़रूर नदल चाहें िजदीनकयााँ

    निगाहें कटार बिािे की त ूजािे खनूबयााँ

    चाह ेतो दरू से भी करती हो कत्ल-ए-आि

    निगाहों से तीर चलािा बस इतिा ही काि

    बड़े बड़े दखेें हैं तीरंदाज ऐसे हििे

    लम्ह ेिें िार नगराएाँ निकार जो आए साििे

    िगर ह ैतमु्हारा नकतिा अिोखा अदंाज

    नबिा दखे ेिारे तीर नसर्फ़ सिु के आवाज़

    इतिा ही िहीं कैसा ह ैये तमु्हारा जाद ूअजीब

    भाग ेि घायल निकार चाहें आिा तेरे करीब

    - िारायण

    ०८/१०/१४

  • जीत मेरी प्रीत की जीत है ये सजनी दौड ेचले आए वे पास मेरे ही ।।ध.ृ।। ग ूँजत फिरत भूँवरा बाग में कललयाूँ खिलन ेके इंतजार में भले और भी हैं उस के झ ंड में हैं ग लशन में लािों ि ल भी दौड ेचले आए वे पास मेरे ही ।।१।। कहो ना ये मेरी ख बस रती है जाने ना त मेरी जैसी फकतनी हैं मोम से तो हर शमा जलती है परवाना पर च ने एक कैसी दौड ेचले आए वे पास मेरे ही ।।२।।

    - नारायण ०४/२५/१५

  • मकु़ाबल़ा

    लड़की ह ूँ ब़ाईस की तेईस चौबीस क़ा एक च़ाहहये लड़क़ा

    मरत़ा हो गर मझु पर वो तो पव़ाा नहीं तगड़़ा ह ैय़ा कड़क़ा

    पगली हो क्य़ा हिखत़ा नहीं क्य़ा थ़ा अभी कौन स़ामने खड़़ा

    हबलकुल वसै़ा िखे के तेऱा हुस्न जो ह ै नीच े हगर पड़़ा

    उई म़ाूँ कौन हो तमु तुम ही तो कर रह ेथे मरे़ा पीछ़ा

    स़ामने आए कब बोले हगर पडे हिर कैसे आई मरू्चछ़ाा

    सनुो सनुो ह ैकोई यह़ाूँ क्य़ा मिि करो खिु़ा क़ा व़ास्त़ा

    हव़ास ह ैखो बैठ़ा कोई ह ूँ मैं अकेली सनुस़ान ऱास्त़ा

    घबऱाऩा ऩा ज़ऱा सोचो ऩा तमु ऩा अकेली मैं भी ह ूँ ऩा

    हमल कर िोनो स़ाथ हुए तो ह़ारेंग े हम कभी भी ऩा

    अरे ये क्य़ा ह ैसच क्य़ा खडे़ हो य़ा हगर पडे़ बेहोश य़ा होश में

    खसुरु िुसरु मैं नहीं समझती मकु़ाबल़ा य़ा मलु़ाक़ात में

    - ऩाऱायण

    ०६/११/१५

  • जनाजा

    तमु्हारा म ूँह य े

    म ूँह तो नहीं ह ै

    कटोरा भरा ये

    झ ठ बातों का ह ै

    जबुान तमु्हारी

    जबुान नहीं ह ै

    आस्तीन में छिपा

    जहरीला साूँप ह ै

    नजरें तमु्हारी

    दगाबाज कौएं

    कीडों सी मरोडे

    तमु्हारी दो भौएूँ

    छजस्म इन्सान का

    साया शतैान का

    जमीर तमु्हारा

    जनाजा रहम का

    - नारायण

    ०७/१३/१५

  • ज़मीं

    बक्षी ह ैक़ु दरत ने हमें ज़मीं ये बेश़ुमार

    बढाए ँन क्यों हम इसका और भी ख़ुमार

    ककये हैं ट़ुकडे हम ने इस के दसे कबदसे में

    आये हैं लडते सकदयों से उन्ह ेपाने के कलये

    कसर्फ एक को ही हैं अपना वतन मानते

    पर पाने को द़ुसरा हैं हम मरने को भी तैयार

    बक्षी ह ैक़ु दरत ने हमें ज़मीं ये बेश़ुमार

    होती ही नहीं परूी हवस हमारी ज़मीं की

    खोजीं सारी द़ुकनया तो कसतारों पे चढाई

    भलू के ये के द़ुकनया भी ह ैककतनी अनछ़ु यी

    बनाए ँक्यों न जन्नत हम अपने ही इस पार

    बक्षी ह ैक़ु दरत ने हमें ज़मीं ये बेश़ुमार

    - नारायण

    ०९/०१/१५

  • गसु्सा झड़ रहें हैं अगंारे क्यों तमु्हारी नज़रों से

    उड़ रहीं हैं बौछारें गालियों की क्यों मुुँह से

    काुँप रहा ह ैलिस्म उछि उछि कर

    सखू रहा ह ैगिा लिल्िा लिल्िा कर

    हो सकती ह ैिायज़ विह तमु्हारे गसु्से की

    िेलकन ह ैनािायज़ यह आदत गसु्से की

    सम्हािो होश ज़रा खामोश रह कर

    सोिो करें कैसे काब ूमलुककि पर

    ििो न यूुँ आग में गसु्से की अपने ही

    फेको उखाड़ उसकी विह िड़ से ही

    - नारायण

    ०९/१८/१५

  • समझो

    कहो ना के कहााँ मैं ससर्फ एक क़तरा गहरे दररया का

    और कहााँ जो रै्ला अर्ाट आसमाां तक बेहद दररया

    समझो सकतने अनसगनत ब ाँदों से ही बना ह ैदररया

    और हर एक उन्हीं ब ाँदों में भी ह ैवो समाया

    बेशमुार मगर चसुनांदा ब ाँदें आफ़ताब ले जाता ह ैउपर

    आसमाां में बादलों को व ेबनाती ह ैअपना घर

    लेसकन आता ह ैजब त र्ान सघर कर

    सगर कर व ेआती ह ैसर्र ज़मीं पर

    बझुाती प्यास उगाती फ़सलें नहलाती समाां जाती हैं घसुल

    नसदयों में क्यों सक वापस दररया को उन्हें जाना ह ैसमल

    माय स ना होना कतई इस सलए

    छोटा ना बडा कोई खदुा के सलए

    - नारायण

    १०/१०/१५

  • अल्ला मेहरबान

    अल्ला बबबममल्ला उररहमान

    बोलो सनुो गाओ ये ही गान

    अल्ला बबबममल्ला उररहमान

    सब पे ह ैअल्ला महेरबान

    आदमी औरत या बरखदुारर

    सब ही को ह ैउसका दीदार

    अल्ला को भी ह ैसब से प्यार

    रहता ह ैबने बनगाहबेान

    अल्ला बबबममल्ला उररहमान

    सारे जह ॉं का माबलक वो

    बिर भी बलख ेबहसाब वो

    हर एक भला बरुा करे जो

    हो काब़िर या मसुलमान

    अल्ला बबबममल्ला उररहमान

    - नारायण

    ०१/२३/१६

  • शादी*

    बढी जो इतनी हमारी चाह

    तरुन्त हमने किया कनिाह

    तब से ना िभी भरी आह

    िरे ह ै ज़माना वाह वाह

    बढती उम्र िे साथ साथ

    हुए दबुले ये भारी हाथ

    किर भी न छोडी उम्मीद

    हो िे ही रहें हम आबाद

    आग में सोना जल िर

    आता ह ैऔर भी कनखर

    वैसे ग़मों से हो िे मखुर

    खशु होते हैं हम ज़्यादातर

    (*Happy 43rd Anniversary!)

    - नारायण

    ०२/२४/१६

  • मजबरू बेगम

    तेरी राह तकत मरेी ऑखंें सकुत

    लम्ह ेदो चार फ़क़त ददखा जा सरूत

    लेते न ख़बर आते न सबर

    रुकने का न नाम जाने को बेताब

    डायन ह ैसौतन जाने ना सजन

    समझाए ँकौन करें कैसा जतन

    सनुो मरेे सैंया ये ह ैभलूभलैुया

    वो चाह ेजवेर मैं करँ जान दनछावर

    - नारायण

    ०५/०९/१६

  • फ़र्ज़ी जिहाद

    बदब ूआती ह ैलहू से तमु्हारे नफ़रत की

    तमु क्या िानो क्या होती ह ैखशुब ूमोहब्बत की

    इतना काला भद्दा दाग हो तमु इस्लाम के नाम पे

    जमटेगा न वह बहते खनू से फ़र्ज़ी जिहादी काम पे

    क़यामत में करेगा अल्ला फै़सला काजफ़रों का भी

    बंदा उसका कहलाने के हो ना तमु तो क़ाजबल भी

    हक ये तमु को जकस ने जदया क़त्ल-ए-आम करने का

    काजफ़रों को ही नहीं नेक बंदों को भी मार डाल ने का

    बनोग ेना शहीद ना जमलेगी हूरें चार ना िन्नत

    खदुकुशी करने वालों की अल्ला करे ना परूी मन्नत

    - नारायण

    ०८/०६/१५

  • वादा

    नाममुकिन था हमें िरना इश्क़ िा इज़हार

    जब ति न दखेा हम ने आप िी नज़रों में प्यार

    उमड़ पड़़ी ता़त हमारे कदल-ओ-जान में

    दखे़ी जब महुब्बत हम ने आप िी आखँों में

    कबना किए परवाह रस्म-ओ-ररवाज िी

    दौड़ आए हम पिड़़ी आप िी अगंलु़ी

    छुड़ाने िी उसे झठू़ी िोकिि में िी आप ने तौबा

    बोले हम कनभाएगं़ी साथ कज़दंग़ी भर िीकजए वादा

    - नारायण

    ०८/२५/१६

  • अनदखेा साथी

    जहााँ जहााँ जाता ह ाँ मैं साथ हो लेते हो

    चलते चलते हाथ में हाथ थाम दतेे हो

    लड़खड़ाऊाँ गर तो सम्हल लेते हो

    हड़बड़ाऊाँ गर तो हौसला बढाते हो

    डगर कठिन या गठलयााँ सनुसान हो

    लगाते ठिकाने गर राह अनजान हो

    सोते जागते हमेशा ख़्याल मेरा रखते हो

    ठकतनी कराँ कोठशशें कहीं नहीं ठदखते हो

    - नारायण

    ११/२६/१६

  • बेख़बर

    ईद का चााँद ह ै

    मीत का साथ ह ै

    मन्नत की रात ह ै

    महुब्बत की बात ह ै

    खदुा की इनायत ह ै

    सदा ही ख़ैररयत ह ै

    ख़शुहाल तबीयत ह ै

    मालामाल दौलत ह ै

    इराद ेबलंुद हैं

    मरुादें पाबंद ह ै

    हुस्न नज़रबंद ह ै

    इश्क़ बऱरार ह ै

    जीना सदाबहार ह ै

    मौत से बेख़बर ह ै

    - नारायण

    ०१/१७/१७

  • नहीं

    छूटा तीर कमान से रोका नहीं जाता

    टूटा दिल दजगर से जोडा नहीं जाता

    दनकला जो लफ्ज म ुंह से पकडा नहीं जाता

    उछला जो लहू दजस्म से जकडा नहीं जाता

    उठाई ह ैइमारत वो दगराई नहीं जाती

    पाई ह ैजो शोहरत वो गँवाई नहीं जाती

    दिल से बनाई तस्वीर दमटाई नहीं जाती

    दिली कली पैरों तले क चली नहीं जाती

    द ुंिगी ह ैि िा की वो उजाडी नहीं जाती

    गुंिगी ह ैबुंि ेकी वो उडाई नहीं जाती

    - नारायण

    ०३/०२/१७

  • नहीं जानते

    भर पाएगँे ये ज़ख़्म या नहीं

    हम नहीं जानते

    मर जाएँगे या जजएँगे भी

    हम नहीं जानते

    डर नहीं ग़म का ना बहते हुए लहू का

    पर रंज ह ैजितमगर तो ह ैहमारा अपना

    िर आंखों पे जजिे जबठाया जजगर में बिाया

    अब हाल पछुने भी आएगा या नहीं

    हम नहीं जानते

    दशु्मन को भी हम करते हैं दफन

    भलू के दशु्मनी

    करते हैं िपुदुद-ए-खाक हम

    मरे काज़िर को भी

    मगर उठेगा हमारा जनाजा या नहीं

    हम नहीं जानते

    - नारायण

    ०३/०८/१७

  • मेहरबानी

    मेहरबानी मेरे आका

    दिन-ब-दिन ज़ुल्म ढाया

    उसी से मैं समझ सका

    इन्तजार इनायत का

    मेहरबानी मेरे महबबू

    प्यार की जो की ह ैबाररश

    उसी से ये हुआ महससू

    दजन्िादिली क्या होती ह ैचीज

    मेहरबानी मेरे ख़ुिा

    रखी दनगाह लम्हा लम्हा

    करूँ कैसे श़ुदिया अिा

    तेरी इबाित जीना मेरा

    - नारायण

    ०२/०१/१८

  • कठपतुलिय ाँ

    चिे थे कह ाँ और कह ाँ आ गए हम

    चि त थ कोई बस चिते थे हम

    उिझन हमेश की परेश नी हर दम

    च हत ह ैक्य क्य नफरत न ज ने हम

    घबर हट खशुी से क्य होगी खत्म

    आहट ग़मों की क्य ढ एगी जलु्म

    कि क दशु्मन बने आज दोस्त

    अपन ही दगे हमें कि लशकस्त

    बंद ेहैं हम य हैं कठपतुलिय ाँ

    नच ए हमें कौन िे के त लिय ाँ

    - न र यण

    ०३/०३/१८

  • अच्छे दिन

    ऑसओू ंसे तमु्हारे बझुेगी ना ये आग दिल की

    बढ़ती रही ह ै कब से ये नहीं आज कल की

    गेसओु ंमें तमु्हारे छुपा ना सकूूँ गा ये चेहरा

    खोिा गया ह ैबीच हमारे खड्डा एक गहरा

    खशुब ूसे तमु्हारे दमटेगी ना ये मेरी बिब ू

    बढ़ती बीमारी हटेगी ये कैसे करूँ आरज ू

    बेहतर होगा गर दमलेंगे ना हम कभी भी

    याि करेंगे अच्छे दिन चाहेंगे दमलना जब भी

    - नारायण

    ०५/०६/१८

  • फ़क्र

    जो हम ना कर सके

    वो तमु क्या करोगे

    ऐसी बातों स े

    हम ना डरेंग े

    न तमु पे शक ह ै

    न हम पे नाज ह ै

    अपने बाजओु ंपे

    हमें तो फ़क्र ह ै

    लढेंगे जरूर हम

    फ़तह ममले न ममले

    मकये पे अपने हम

    न कभी पछताएगँे

    - नारायण

    ११/२४/१८

  • सोचो ना

    जी चाह ेिजसे वो िमलता नहीं िमलता ह ैतो भी जी भरता नहीं भागे पीछे तो हाथ आता नहीं हाथ आए तो साथ रहता नहीं

    आसमाँ से ज़मीं तक जो फ़ासला मिुश्कल ह ैजीते जी पार करना जहाँ से जन्नत तक उड़ान भरना मौत से िफर कैसे ह ैआसान होता

    अंदाज लगाओ या महससू करो लगे आसान मौत िज़ंदगी से यारों िमलेगी दोनों भी ना दोबारा चाहो तो इसिलए सोचो ना बस जीओ या मरो

    - नारायण ०५/१७/१९

  • आज़ाद िज़ंदगी

    घाव िकतने भी सह े सर सलामत ह ै चोटें िकतनी भी खाई ंिदल मज़बतू ह ै

    ज़हर िकतना भी घलुे रगों में ख़नू दौड़ता ह ैचाह ेिजतना घोट दो गला सासों में दम फूलता ह ै

    नफ़रत करो ज़लु्म ढाओ चाह ेतो क़त्ल भी करो न हम झकुें ग ेन �कें गे ग़�ुर हमारा मग�र ह ै

    आए गए सलु्तान िकतने सल्तनत िमटाई न गई मारे गए दफ़नाए गए शख़्स मगर �ह तो िज़दंा ह ै

    िहमंत ह ै तो ताकद ह ै ताकद ह ै तो आज़ादी ह ैआज़ादी ह ैतो आबादी ह ैआबादी ह ैतो िज़दंगी ह ै

    - नारायण ०६/२४/१९

  • पाक मुहब्बत

    आओ आए हो तो बैठो बैठे तो बातें दो करो बातें करो तो समझो समझो तो प्यार करो

    प्यार नहीं लेन दने प्यार ह ैखो दनेा चैन प्यार में होना क़ुबार्न मतलब ये समझ लो

    मतलब जब बनेगा महुब्बत तो आएगा िदल में बसने ख़दुा महुब्बत पाक रखो

    -नारायण

    ०९/२३/१९

  • खेल िनराला

    ये तक़दीर का खेल ह ैिनराला कौन ह ैिखलवाता �लाने के िलए ?

    जनम माँ ने िदया पाल के बड़ा िकया उसको जाना पड़ा व� के पहल े!

    हसीना ने बलुाया बलुा के बहलाया बहला के छोड़ िदया तड़पने के िलए !

    बढ़ुापा जो आया िछनता ही रहा िज़ंदगी क� ख़िुशयाँ उम्मीदें ख़्वािहशें !

    - नारायण ०९/२६/१९

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    jeenamarna


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