+ All Categories
Home > Documents > Xgdt H$jm - MPSC Material · 2018-04-25 · मेरा नाम ह & पके...

Xgdt H$jm - MPSC Material · 2018-04-25 · मेरा नाम ह & पके...

Date post: 14-Aug-2020
Category:
Upload: others
View: 0 times
Download: 0 times
Share this document with a friend
114
{h§Xr Xgdt H jm
Transcript
  • {h§Xr

    Xgdt H$jm

  • शासन तनर्णय मांक अ यास-२११६ (प्र 4 १६) एस ी-4 तदनांक २5 4 २ १६ के अनुसार सम वय सतमति का ग न तकया गया । तद २ १२ २ १७ को ई इस सतमति की ब क म यह पा ् यपुस्िक तनधा्ण रि करने हेिु मा यिा प्रदान की गई ।

    महारा रा य पा ् यपुस्िक तनतम्णिी व अ यास म संशोधन मं , पुरे

    मेरा नाम ह &

    पके स्माटफोन में द िारा, पुस्तक के प्र म प पर . . के मा यम से भ भजटल पा यपुस्तक िं प्र्येक पा में अंतभनभहत . . मंे अ ययन- अ यापन के भल पा से संबंभधत उपयु्त क- ा य साम ी उपल ध कराई जा गी ।

    {h§Xr

    Xgdt H$jmbmoH$^maVr

  • प्ररमावख ि २ १8 महारा रा य पा ् यपुस्िक तनतम्णिी व अ यास म संशोधन मं , पुरे - 4११ 4इस पुस्तक का सिाभधकार महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि अ यास म संशोधन मं के

    अधीन सुरभ त है। इस पुस्तक का कोई भी भाग महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि अ यास म संशोधन मं के संचालक की भल त अनुमभत के भबना प्रकाभशत नहीं भकया जा सकता ।

    ©

    तहंदी ाषा सतमति

    .हेमचं िैद य - अ य

    .छाया पाटील - सदस्य प्रा.मैनोद दीन मु ा - सदस्य

    .दयानंद भतिारी - सदस्यी रामभहत यादि - सदस्यी संतोष धोते - सदस्य .सुभनल कुलकण - सदस्य ीमती सीमा कांब े - सदस्य .अलका पोतदार - सदस्य - सभचि

    प्रकाशक ी तववेक िम गोसावी

    भनयंतकपा यपुस्तक भनभमती मं

    प्रभादेिी, मुंबई-२5

    तहंदी ाषा अ यासगट

    सौ. िंदा कुलकणसौ. रंजना भपंग े

    . िषा पुनिटकरीमती पभणमा पां ेयीमती शारदा भबयाणीीमती माया को ीकर. प्रमोद शु्ली धनयकुमार भबराजदारी संजय भारद िाज. शुभदा मो े. र्ना चौधरीी सुमंत द िीीमती रजनी हैसा कर

    संयोिन .अलका पोतदार, भिशेषाभधकारी-भहंदी भाषा, पा यपुस्तक मं , पुणे सौ. सं या भिनय उपासनी, भिषय सहायक-भहंदी भाषा, पा यपुस्तक मं , पुणे

    तनतम्णति ी स तानंद फ े, मु य भनभमभत अभधकारीी राजें भचंदरकर, भनभमभत अभधकारीी राजें पां लोसकर,सहायक भनभमभत अभधकारी

    अ रांकन भाषा भिभाग,पा यपुस्तक मं , पुणेकागि जी स म, ीमिोिमु रादेश मु क

    मुिप मयरा फ तच ांकन ी राजेश लि ेकर

    . शा िी. भम ाीमती मीना स. अ िालीमती भारती ीिास्ति. शोभा बेल ो े. बं ोपंत पाटीली रामदास काटेी सुधाकर गािं ेीमती गीता जोशीीमती अचना भुस्कुटे . रीता भसंह. शैला ललिाणी

    सौ. शभशकला सरगर ी न. र. जेिेीमती भनशा बाहेकर

    तनमंत ि सदस्यी ता.का. सयिंशी ीमती उमा ेरे

  • प्रस्िावना

    ( सुतनि मगर)संचािक

    महारा रा य पा यपुस्तक भनभमती ि अ यास म संशोधन मं , पुणे- 4

    तप्रय तवद् यातर्णयो,

    आपकी सुकिा एवं अत रुतच को धयान म रििे ए नवतनतम्णि िोक ारिी दसव क ा की पुस्िक को रंगीन, आकष्णक एवं वतवधयपूर्ण स्व प प्रदान तकया गया ह । रंग-तबरंगी, मनमोहक,

    ानवध्णक एवं कृतिप्रधान यह पुस्िक आपके हारों मंे स पिे ए हम अ यतधक हष्ण हो रहा ह ।हम ाि ह तक आपको गाना सुनना-प ना, गुनगुनाना तप्रय ह । करा-कहातनयों की दतनया म

    तवचरर करना मनोरंिक िगिा ह । आपकी इन मनाेनुकि ावना को ख गि रििे ए इस पुस्िक म कतविा, गीि, गिि, नई कतविा, पद, ब रंगी कहातनयाँ, तनबंध, हास्य- यं य, संस्मरर, सा ा कार, एकांकी आतद सातहख यक तवधा का समावेश तकया गया ह । यही नह , तहंदी की अ याधुतनक तवधा ‘हाइक’ को ी प्ररमिः इस पुस्िक म स्रान तदया गया ह । ये तवधाएँ केवि मनोरंिक ही नह अतपिु ानाि्णन, ाषाई क शिों- मिा के तवकास के सार-सार च र तनमा्णर, रा ीय ावना को स करने िरा स म बनाने के तिए ी आवशयक प से दी गई ह । इन रचना के चयन का आधार आयु, रुतच, मनोतव ान, सामातिक स्िर आतद को बनाया गया ह ।

    बदििी दतनया की नई सोच, व ातनक ख िरा अ यास को सहि एवं सरि बनाने के तिए इ हंे संिाि, प्रवाह िातिका, तवशिेषर आतद तवतवध कतृियों, पयोतिि िेिन, ाषातबंद आतद के माधयम से पा ् यपुस्िक म समातहि तकया गया ह । आपकी सि्णना र पहि को धयान म रििे ए

    मिाधा रि वरीय, सं ाषरीय, प नीय, िेिनीय द् वारा अधययन-अधयापन को अतधक यापक र रोचक बनाया गया ह । आपके ान म अत वद् तध के तिए ‘ प’ के माधयम से ‘्यू आर को ,’

    म अति र्ि क- ा य साम ी पिब्ध कराई िाएगी । अधययन अनु व हेिु इसका तनखशचि ही पयोग हो सकेगा ।

    माग्णदश्णक के तबना ि य की प्राख नह हो सकिी । अिः आवशयक द् देशयों की पूति्ण हेिु अत ावकों, तश कों का सहयोग िरा माग्णदश्णन आपके तव याि्णन को सुकर एवं स ि बनाने म सहायक तस ध होगा । तवशवास ह तक आप सब पा ्यपुस्िक का कशििापूव्णक पयोग करिे ए तहंदी तवषय के प्रति तवशेष अत रुतच, आ मीयिा एवं साह प्रदतश्णि करगे ।

    हातद्णक शु कामनाएँ

  • यह अपे ा ह तक दसव क ा के अंि िक तवद् यातर्णयों म ाषा संबंधी तनम्नतिखिि मिाएँ तवकतसि हों ।

    ाषा तवषयक मिा

    अ मिा मिा तवस्िार

    १ वर १. गद य-पद य की रसानुभभत िं कलन करते सुनना/सुनाना । २. भिभिध मा यम के काय म का कलन करते सुनना त ा भि लेषण करना । ३. प्राप्त िै िक जानकारी सुनकर तकसभहत सुनाना ।

    २ ाषर -सं ाषर

    १. भिभिध काय म में सहभागी होकर संबंभधत भिषय पर अपने भिचार प्रकट करना ।२. भिभभ भिषय पर ्मभि िासपिक, भनभ कता के सा मंत य प्रकट करना । ३. अंतररा टीय भिषय पर भिचार-भिमश, चचा करना । 4. दैभनक यिहार में शुद ध र मानक िभनय के सा स्िमत य करना ।

    वाचन १. रोह-अिरोहयु्त भिरामभचह न के सही प्रयोग के सा प्रभािो्पादक प्रकट िाचन करना ।२. गद य-पद य साभह ्यक भिधा का भि लेषण करते अ पण िाचन करना । ३. भहंदीतर रचनाकार की भहंदी रचना का भाि िं अ पण िाचन करना । 4. देश-भिदेश के अनभदत लोकसाभह्य के संदभ में तुलना्मक िाचन करना ।5. कलन सभहत गभत के सा मौन िाचन करना । अनुिाचन, मु रिाचन, मौन िाचन का अ यास ।

    4. िेिन १. स्ियंप्रेरणा से भिरामभचह न सभहत शुद ध ले न करना । स्ियंप्रेरणा से भिभिध प्रकार का सु ौल, सुपा य, शुद ध ले न करना ।२. अनुले न सुिा य ले न, सुले न, शुद ध ले न, स्ियंस्फूत ले न का मश अ यास करना । ३. स्ियंस्फूत भाि से परे ा िं श द संकेत के धार पर कहानी, भनबंंंध, पत, भिज्ापन भद का स्ितंत ले न करना । 4. अपभ त गद यांश , पद यांश पर धा रत प्र न भनभमभत करना ।

    5. ाषा अधययन

    ( याकरर)

    छ ी से दसिीं क ा के भिद याभ य के भल भाषा अ ययन के मु य टक नीचे भद ग हैं प्र्येक क ा के पा यांश पर धा रत चुने टक को प्रसंगानुसार ेणीब प में समाभिभकया है । टक का चयन करते समय भिद याभ य की युसीमा, रुभच र पुनराितन का अ यास

    भद मु को यान में र ा गया है । प्र्येक क ा के भल समाभि भक ग टक की सचीसंबंभधत क ा की पा यपुस्तक में समाभि की गई है । अपे ा है भक भिद याभ य में दसिीं क ा के अंत तक सभी टक की सिसामानय समझ भनमाण होगी ।समाना , भिरु ा श द, भलंग, िचन, श दयु म, उपसग, प्र्यय, भहंदी-मरा ी समो ा रतभभ ा क श द, संज्ा भेद, सिनाम भेद, भिशेषण भेद, भ या भेद, अ यय भेद, काल भेद, कारक,कारक भचह न, उ े य-भिधेय र िा्य प रितन, भिराम भचह न, मुहािरे, कहाितें, िण भि छेद,िणमेल, संभध भेद, श द, िा्य शुद धीकरण, रचना के अनुसार त ा अ के अनुसार िा्य के भेद,कदंत, तद भधत, श द समह के भल क श द ।

    ६ अधययन क शि

    १. सुिचन, उद धरण, सुभाभषत, मुहािरे, कहाितें अाभद का संकलन करते प्रयोग । २. भिभभ ोत से जानकारी का संकलन, भट पणी तैयार करना । ३. कभत, ले , भचत का स्प ीकरण करने हेतु मुद द का ले न, प्र न भनभमभत करना ।4. भिभभ भिषय पर स्फूतभाि से भल त-मौ क अभभ यभ्त ।

  • तश कों के तिए माग्णदश्णक बाि अधययन अनु व देने से पहिे मिा तवधान, प्रस्िावना, प रतश , आवशयक रचनाएँ एवं सम प से

    पा ् यपुस्िक का अधययन आवशयक ह । तकसी ी गद् य-पद् य के प्रारं के सार ही कतव िेिक प रचय, नकी प्रमुि कृतियों र गद् य पद् य के संद ्ण म तवद् यातर्णयों से चचा्ण करना आवशयक ह । प्र येक पा की प्रस्िुति के परांि सके आशय ाव के ीकरर हेिु प्र येक पा म ‘शब्द संसार’, तवतवध ‘कृतियाँ’, ‘ पयोतिि िेिन’

    अत यत्ि, ‘ ाषा तबंद’, ‘ वरीय’, ‘सं ाषरीय’, ‘प नीय’, ‘िेिनीय’ आतद कृतियाँ ी दी गई ह । इनका सिि अ यास कराएँ ।

    सूचनानुसार कृतियाें म संिाि, कृति पूर्ण करना, ाव अर्ण क ीय ाव िेिन, पद् य तवशिेषर, कारर िेिन, प्रवाह िातिका, तचि टना म िगाना, सूची ियार करना, पसग्ण प्र यय, समो ा रि-त ार शब्दों के अर्ण तििना आतद तवतवध कृतियाँ दी गई ह । ये स ी कृतियाँ संबंतधि पा पर ही आधा रि ह । इनका सिि अ यास करवाने का िरदातय व आपके ही सबि कधों पर ह ।

    पा ों म ‘ वरीय’, ‘सं ाषरीय’, ‘प नीय’, ‘िेिनीय’ के अंिग्णि दी गई अधययन साम ी ी मिा तवधान पर ही आधा रि ह । ये स ी कृतियाँ पा के आशय को आधार बनाकर तवद् यातर्णयों को पा र पुस्िक के सार बाहरी दतनया म तवचरर करने का अवसर प्रदान करिी ह । अिः तश क अत ावक अपने तनरी र म इन कृतियों का अ यास अवशय कराएँ । परी ा म इनपर प्रशन पू ना आवशयक नह ह । तवद् यातर्णयों के क पना प वन, म तिक सिन एवं स्वयंस् ि्ण िेिन हेिु ‘ पयोतिि िेिन’ तदया गया ह । इसके अंिग्णि प्रसंग तवषय तदए गए ह । इनके द् वारा तवद् यातर्णयों को रचना मक तवकास का अवसर प्रदान करना आवशयक ह ।

    तवद् यातर्णयों की ाव ूतम को धयान म रिकर पुस्िक म मधयकािीन कतवयों के पद, दोहे, च पाई, महाका य का अंश सार ही कतविा, नई कतविा, गीि, गिि, ब तवध कहातनयाँ, हास्य- यं य, तनबंध, संस्मरर, सा ा कार, एकांकी, या ावर्णन आतद सातहख यक तवधा का तवचारपूव्णक समावेश तकया गया ह । इिना ही नह अ याधुतनक तवधा ‘हाइक’ काे ी प्ररमिः पुस्िक म स्रान तदया गया ह । इसके सार-सार याकरर एवं रचना तव ाग िरा मधयकािीन का य के ावार्ण पा ् यपुस्िक के अंि म तदए गए ह, तिससे अधययन-अधयापन म सरििा होगी ।

    पा ों म तदए गए ‘ ाषा तबंद’ याकरर से संबंतधि ह । यहाँ पा , पा ् यपुस्िक एवं पा ् यपुस्िकेिर ी प्रशन पू े गए ह । याकरर पारंप रक प से न प ाकर कृतियों र दाहररों द् वारा याकरतरक संक पना िक तवद् यातर्णयों को प ँचाया िाए । ‘प नार्ण’ साम ी कह न कह पा को ही पोतषि करिी ह । यह तवद् यातर्णयों की रुतच एवं नम प न संस्कृति को ब ावा देिी ह । अिः इसका वाचन अवशय करवाएँ । परो स ी अ यास करवािे समय ‘प रतश ’ म तदए गए स ी तवषयों को धयान म रिना अपेत ि ह । पा के अंि म तदए गए संद से तवद् यातर्णयों काे स्वयं अधययन हेिु प्रे रि कर ।

    आवशयकिानुसार पा ् येिर कृतियों, ाषाई िेिों, संद ्ण-प्रसंगों का ी समावेश अपेत ि ह । आप सब पा ् यपुस्िक के माधयम से नतिक मू यों, िीवन क शिों, क ीय ि वों, संवधातनक मू यों के तवकास के अवसर तवद् यातर्णयों को अवशय प्रदान कर । पा ् यपुस्िक म अंितन्णतहि प्र येक संद ्ण का सिि मू यमापन अपेत ि ह । आशा ही नह पूर्ण तवशवास ह तक आप स ी तश क इस पुस्िक का सहष्ण स्वागि करगे ।

  • पहिी इकाई

    दूसरी इकाई

    * अनु मतरका *

    पा का नाम तवधा रचनाकार पष् १. भारत मभहमा कभिता जयशंकर प्रसाद १-२ २. ल मी संिादा्मक कहानी गुरुबचन भसंह ३- ३. िाह रे हमदद हास्य- यं य भनबंध न याम अ िाल १ -१4 4. मन (परक प न) हाइकु भिकास प रहार १5-१ 5. गोिा जैसा मैंने दे ा याता िणन भिनय शमा १8-२३ . भग रधर नागर पद मीराबाई २4-२ . ुला काश (परक प न) ायरी अंश कुिर नारायण २ -३२ 8. गजल गजल माभणक िमा ३३-३4 . री की ह ी कांकी जगदीशचं मा ुर ३5-4११ . ेस (परक प न) ंचभलक कहानी फणी िरना रेणु 4२-48

    ११. कषक का गान गीत भदनेश भारद िाज 4 -5

    पा का नाम तवधा रचनाकार पष् १. बरषभहं जलद महाका य अंश गोस्िामी तुलसीदास 5१-5३

    २. दो ल ुक ा ँ (परक प न) ल ुक ा नरें छाबड़ा 54-5

    ३. म साधना िैचा रक भनबंध ीक णदास जाज 58- 4

    4. छापा हास्य- यं य कभिता मप्रकाश ‘ भद्य’ 5- 5. ईमानदारी की प्रभतमभत संस्मरण सुनील शास्ती 8- ३

    . हम इस धरती की संतभत हैं (परक प न) क िाली उमाकांत मालिीय 4- 5

    . मभहला म पत काका कालेलकर - 8. अपनी गंध नहीं बेचँगा गीत बालकभि बैरागी 8 -8१

    . जब तक भजंदा र ँ, भल ता र ँ सा ा्कार भि िना प्रसाद भतिारी 8२-88

    १ . ब ी काकी (परक प न) िणना्मक कहानी प्रेमचंद 8 -

    ११. समता की र नई कभिता मुकुटधर पां ेय - 8

    याकरण िं रचना भिभाग त ा भािा -१ 4

  • 1

    भहमालय के ँगन मंे उसे, भकरण का दे उपहार

    उषा ने हँस अभभनंदन भकया, र पहनाया हीरक हार ।

    जगे हम, लगे जगाने भि ि, लोक में फला भफर लोक

    योमतम पुंज तब न ट, अ ल संसभत हो उ ी अशोक ।

    भिमल िाणी ने िीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत

    सप्तस्िर सप्तभसंधु में उ े, भछड़ा तब मधुर साम संगीत । ......

    भिजय केिल लोहे की नहीं, धम की रही धरा पर धम

    भभ ु होकर रहते स ाट, दया भद लाते र- र म ।

    गोरी को भदया दया का दान, चीन को भमली धम की भ ट

    भमला ा स्िण भभम को र्न, शील की भसंहल को भी सभ ट ।

    भकसी का हमने छीना नहीं, प्रकभत का रहा पालना यहीं

    हमारी जनमभभम ी यहीं, कहीं से हम े नहीं ।......

    च रत े पत, भुजा में शभ्त, न ता रही सदा संप

    दय के गौरि में ा गि, भकसी को दे न सके भिप ।

    हमारे संचय में ा दान, अभतभ े सदा हमारे देि

    िचन में स्य, दय में तेज, प्रभतज्ा में रहती ी टेि ।

    िही है र्त, िही है देश, िही साहस है, िैसा ज्ान

    िही है शांभत, िही है शभ्त, िही हम भद य य संतान ।

    भज ँ तो सदा इसी के भल , यही अभभमान रहे यह हष

    भनछािर कर दें हम सिस्ि, हमारा यारा भारतिष ।

    १ ारि मतहमा- जयशंकर प्रसाद

    प्रस्तुत कभिता में कभि ने अपने देश के गौरिशाली अतीत का सजीि िणन भकया है । कभि का कहना है भक हमें अपने देश पर गि करते उसके प्रभत अपना सिस्ि भनछािर करने के भल हमेशा त्पर रहना चाभह ।

    ि म ः १8 , िाराणसी (उ.प्र.)म यु ः १ ३ , िाराणसी (उ.प्र.) प रचय ः जयशंकर प्रसाद जी छायािादी युग के चार स्तंभ में से क हैं । प ब मु ी प्रभतभा के धनी हैं । कभि, नाटककार, क ाकार, उपनयासकार त ा भनबंधकार के प में

    प प्रभसद ध हैं । पकी रचना में सित भारत के गौरिशाली अतीत, भतहाभसक भिरासत के दशन होते हैं ।

    प्रमुि कृतियाँ ः झरना , ँस , लहर (का य), कामायनी

    (महाका य), स्कदगुप्त , चं गुप्त , ुिस्िाभमनी ( भतहाभसक नाटक),

    प्रभत िभन , काशदीप , इं जाल (कहानी सं ह), ककाल , भततली , इरािती (उपनयास) भद ।

    प रचय

    पद् य संबंधी

    पहिी इकाई

  • 2

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) तनम्नतिखिि पंत्ियांे का िा पय्ण तिखिए ः

    १. कहीं से हम े नहीं ....................................

    २. िही हम भद य य संतान ....................................

    पहार पुं. सं.(सं.) = भेंटहीरक हार पुं. सं.(सं.) = हीर का हारआिोक पुं.सं.(सं.) = प्रकाशयोम पुं. सं.(सं.)= काश

    िम पुं.सं.(सं.) = अँधेरासंसति स्ती.सं.(सं.) = संसार

    शब्द संसारतवप भि.(सं.) = भनधनटेव स्ती.सं.(भहं.) = दत

    मुहावरातन ावर करना = अपण करना, समभपत करना

    (२) तचि िोत याँ तमिाइए ः

    १. कभिता मंे प्रयु्त दो धातु के नाम

    ( ) तिखिए ः

    २. भारतीय संस्कभत की दो भिशेषता ँ

    ( ) प्रस्िुि कतविा की अपनी पसंदीदा तक ह दो पंत्ियों का ावार्ण तिखिए ।

    (5) तनम्नतिखिि मुद् दों के आधार पर पद् य तवशिेषर कीतिए ः१. रचनाकार का नाम२. रचना का प्रकार३. पसंदीदा पंभ्त4. पसंदीदा होने का कारण5. रचना से प्राप्त संदेश

    संचयस्य

    अभतभर्निचनदानदय

    तेजदेि

    स्वाधयाय

    १ ------------ ------------

    २ ------------ ------------

    ३ ------------ ------------

    4 ------------ ------------

  • 3

    उस भदन लड़के ने तैश में कर ल मी की पी पर चार ं े बरसा भद े । िह बड़ी भयभीत र बराई ी । जो भी उसके पास जाता, भसर भहला उसे मारने की कोभशश करती या भफर उछलती-कूदती, गले की रस्सी तोड़कर ँटे से जाद होने का प्रयास करती ।

    करामत अली इधर दो-चार भदन से अस्िस् ा । लेभकन जब उसने यह सुना भक रहमान ने गाय की पी पर ं े बरसा हैं तो उससे रहा नहीं गया । िह भकसी प्रकार चारपाई से उ कर धीरे-धीरे चलकर ब ान में

    या । गे ब कर उसके मा े पर हा फेरा, पुचकारा र हौले-से उसकी पी पर हा फेरा । ल मी के शरीर में क भसहरन-सी दौड़ गई ।

    ह कब त ने भकतनी बेदद से पीटा है ।उसकी बीबी रमजानी बोली- लो, चोट की जगह पर यह रोगन लगा

    दो । बेचारी को राम भमलेगा ।करामत अली गुस्स ेमें बोला- ्या अ छा हो अगर इसी ला ी से

    तु हार ेरहमान क ेदोन हा तोड़ भद जा ँ। कहीं इस तरह पीटा जाता ह ैरमजानी बाेली- ल मी ने ज भी दध नहीं भदया ।

    तो उसकी सजा इसे लाभ य से दी गई रहमान से गलती हो गई, इसे िह भी कबलता है । रमजानी कुछ ण ड़ी रही भफर िहाँ से हटती ई बोली- दे ो,

    अपना याल र ो । पाँि इधर-उधर गया तो कमर भसंकिाते रहोगे ।करामत अली ने भफर यार से ल मी की पी सहलाई । मुँह-ही-मुँह

    में बड़बड़ाया- माफ कर ल मी, रहमान बड़ा म है । उ के सा त भी बु ा गई है । ेयरीफाम के ्टर ने तो भपछली बार ही कह भदया ा, यह तेरा री बरस है ।

    ल मी शांत ड़ी अपने ज म पर तेल लगिाती रही । िह करामत अली के भमत ज्ान भसंह की भनशानी ी । ज्ान भसंह र करामत अली क-दसरे के पड़ोसी तो े ही, िे कार ाने में भी क ही भिभाग में काम

    करते े । प्राय क सा यटी पर जाते र क सा ही र लौटते । ज्ान भसंह को मिेशी पालने का ब त शौक ा । प्राय उसके र के

    दरिाजे पर भैंस या गाय बँधी रहती । तीन बरस पहले उसने क जस गाय रीदी ी । उसका नाम उसने ल मी र ा ा । अधेड़ उ की ल मी इतना

    दध दे देती ी भक उससे र की ज रत परी हो जाने के बाद बाकी दध

    -गुरुबचन ससंह

    २ ि मी

    प्रस्तुत संिादा्मक कहानी में कहानीकार ने भद ग िचन के प्रभत भज मेदारी र प्राभणमात के प्रभत दया की भािना य करते पशुप्रेम दशाया है । ले क का कहना है भक अनुपयोगी हो जाने पर भी प्राभणय का पालन-पोषण करना ही मानिता है ।

    सुप्रभसद ध कहानीकार गुरुबचन भसंह जी ने साभह्य के अनेक ेत में मु्त ले न भकया है । पकी भाषा सरल र प्रिाही है । इसी िजह से

    पका साभह्य रोचक बन पड़ा है ।

    प रचय

    गद् य संबंधी

  • 4

    गली के कुछ र में चला जाता । दध बेचना ज्ान भसंह का धंधा नहीं ा । केिल गाय को चारा र दरा भद देने के भल कुछ पैसे जुटा लेता ा ।

    नौकरी से अिकाश के बाद ज्ान भसंह को कपनी का िह मकान ाली करना ा । समस्या ी तो ल मी की । िह ल मी को भकसी भी हालत में बेच नहीं सकता ा । उसे अपने सा ले जाना भी संभि नहीं ा । जब अिकाश में दस-पं ह भदन ही रह ग तो करामत अली से कहा- भमयाँ अगर ल मी को तु हें स प दं तो ्या तुम उसे स्िीकार करोगे ...

    भमयाँ करामत अली ने कहा ा- नेकी र पछ-पछ । भला इससे बड़ी ुशनसीबी मेरे भल र ्या हो सकती है

    करामत अली भपछले क िष से उस गाय की सेिा करता चला रहा ा । गाय की दे भाल में कोई कसर नहीं छोड़ र ी ी ।

    करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के बाद भी इ्मीनान नहीं । िह उसके भसर पर हा फेरता रहा । ल मी भस् र ड़ी उसकी

    र भजज्ासापण भ ट से दे ती रही । करामत अली को लगा जैसे ल मी कहना चाहती हो- यभद मैं तु हारे काम की नहीं ँ तो मुझे जाद कर दो । मैं यह र छोड़कर कहीं चली जा गी ।

    करामत अली यटी पर जाने की तैयारी में ा । तभी रमजानी बोली-रहमान के अ बा, अगर ल मी दध नहीं देगी तो हम इसका ्या करेंगे

    ्या ँटे से बाँधकर हम इसे लाते-भपलाते रहेंगे ...जानिर है । बँधा है तो इसे लाना-भपलाना तो पड़ेगा ही ।जानते हो, इस महँगाई के जमाने में भसफ सादा चारा देने में ही

    तीन-सा े तीन सौ महीने का चा है ।सो तो है । कहते करामत अली गे कुछ नहीं बोला । र से

    भनकलकर कार ाने की तरफ हो भलया । रास्ते में िह रमजानी की बात पर भिचार कर रहा ा, ल मी अगर दध नहीं देगी तो इसका ्या करेंगे । यह

    याल तो उसके मन में या ही नहीं ा भक क समय सा भी सकता है भक गाय को र के सामने ँँटे सें बाँधकर मु त में लाना भी पड़ सकता है ।

    उसके सा ी नईम ने उसे कुछ परेशान दे ा तो पछा- करामत भमयाँ, ्या बात है, बड़े परेशान नजर ते हो ै रयत तो है

    सी कोई भिशेष बात नहीं है ।कुछ तो होगा । ्या बता । गाय ने दध देना बंद कर भदया है, ब ी हो गई है ।

    बै ाकर लाना पड़ेगा र इस जमाने में गाय-भैंस पालने का चा...। इसमें परेशान होने की ्या ज रत है गाय बेच दो ।

    (१) संिाि पूर्ण कीतिए ः

    प र ेद पर आधा रि कृतियाँ -

    (२) िर तिखिए ः

    १.

    २.

    ( ) च िट म दी सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः

    प र छेद से प्राप्त ज्ान भसंह संबंधी जानकारी

    ज्ान भसंह की समस्या ँ

    ज्ान भसंह के दध बेचने का उद दे य

    िचन प रितन

    भलंगप रितन

    पयायिाची

    भिलोम

    (4) पाििू िानवरों के सार तकए िानेवािे स हाद्णपूर्ण यवहार के बारे मअपने तवचार तिखिए ।

    प र छेद

    ज्ान भसंह को मिेशी --------- स्िीकार करोगे -----

    4

    सेिक

    सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः

  • 5

    करामत अली ने हौका भरते कहा, हाँ, परेशानी से छटकारा पाया जा सकता है । ब त सान तरीका है । ल मी को बेच भदया जा । िह नईम के पास से हटकर अपने काम में जुट गया ।

    करामत अली रात का गया सिेरे कार ाने से र लौटा । रात की यटी से र लौटने पर ही िह ल मी को दहता ा । र में ुसते ही उसने

    रमजानी से पछा- ्या ल मी को अभी तक चारा नहीं भदया रमजानी बोली- रहमान से कहा तो ा ।

    तुम दाेन की मज होती तो गाय काे अब तक चारा भमल चुका होता । अगर िह दध नहीं दे रही है तो ्या उसे भ ा र ोगे कहते करामत कटा पु ल, ली र दरा भद ले जाकर ल मी के भल सानी तैयार करने लगा ।

    ल मी उतािली-सी तैयार हो रही सानी में मुँह मारने लगी । गाय को सानी देकर करामत अली उसकी पी दे ने लगा । रोगन ने

    अ छा काम भकया ा । दाग कुछ ह के पड़ ग े । दस-पं ह भदन से य ही चल रहा ा । क भदन जब करामत अली

    ने पु ल लाने के भल रमजानी से पैसे माँगे तो िह बोली, मैं कहाँ से पैसे दँ पहले तो दध की भब ी के पैसे मेरे पास जमा रहते े । उनमें से दे देती

    ी । अब कहाँ से दँ लो, यह राशन के भल कुछ रुपये र े े । कहते रमजानी ने

    संदकची मेें से बीस का क नोट भनकालकर उसे माते कहा, इससे ल मी का राशन ले ।

    ीक है । इससे ल मी के दो-चार भदन भनकल जा ँगे ।र इस तरह कब तक चलेगा रमजानी द ी स्िर में बोली ।

    तुम इसे ुला छोड़कर, जमाकर तो दे ो ।कहते हो तो सा करके दे लेंगे ।

    दसरे भदन रहमान सिेरे -नौ बजे के करीब ल मी को इलाके से बाहर जहाँ नाला बहता है, जहाँ झाड़-झं ाड़ र कहीं दब के कारण जमीन हरी नजर ती है, छोड़ या ताभक िह ास इ्याभद ाकर अपना कुछ पेट भर ले । लेभकन माँ-बेटे को यह दे कर चय भक ल मी क- े ंटे बाद ही र के सामने ड़ी ी । उसके गले में रस्सी ी । क यभ्त उसी रस्सी को हा में ामे कह रहा ा- यह गाय ्या प लोग

    की है रमजानी ने कहा, हाँ ।

    यह हमारी गाय का सब चारा ा गई है । इसे प लोग बाँधकर र ें नहीं तो काँजी हाउस में प ँचा देंगे ।

    रमजानी चुप ड़ी गंतुक की बातें सुनती रही ।

    भारत सरकार द िारा पशु संर ण पर चलाई जाने िाली योजना की जानकारी पभ र

    ोषिा्य बनाकर प्रस्तुत कीभज ।

    प नीय

    पयािरण च को बना र ने में प्राभणय की भभमका के बारे मंे य ट यब/रेभ यो/दरदशन से जानकारी सुभन ।

    वरीय

    5

  • 6

    दोपहर बाद जब करामत अली यटी से लौटा र नहा-धाेकर कुछ ना ते के भल बै ा तो रमजानी उससे बोली- मेरी मानो तो इसे बेच दो ।

    भफर बेचने की बात करती हो... कौन रीदेगा इस बुभ या को ।रहमान कुछ कह तो रहा ा, उसे कुछ लोग रीद लेंगे । उसने

    भकसी से कहा भी है । शाम को िह तुमसे भमलने भी गा ।करामत अली सनुकर ामोश रह गया । उस ेलग रहा ा, सब कुछ

    उसकी इ छा के भिरुद ध जा रहा ह,ै शायद भजसपर उसका कोई िश नहीं ा । करामत अली यह अनुभि करते भक ल मी की भचंता अब भकसी

    को नहीं है, ामोश रहा । उ ा र र में जो स ा चारा पड़ा ा, उसके सामने ाल भदया ।

    ल मी ने चारे को सँ ा र भफर उसकी तरफ भनराशापण ँ से दे ने लगी । जैसे कहना चाहती हो, माभलक यह ्या ज ्या मेरे फाँकने को यह स ा चारा ही है । दरा- ली कुछ नहीं ।

    करामत अली उसके पास से उ कर मँुह-हा धोने के भल गली के नु्कड़ पर नल की र चला गया ।

    सात- बजे के करीब रहमान क यभ्त को अपने सा लाया । करामत अली उसे पहचानता ा ।

    इसके पहले भक उससे कुछ पचा रक बातें ह , करामत अली ने पछा, ्या तुम गाय रीदने हो

    उसने जिाब में कहा- हाँब ी गाय है, दध- ध नहीं देती ।तो ्या ...तुम इसे लेकर ्या करोगे ...मैं कहीं र बेच दंगा ।यह तु हारा पुराना धंधा है । मैं जानता ँ । मुझे तु हें गाय नहीं

    बेचनी । करामत भमयाँ ने उसे कोरा जिाब दे भदया ।रमजानी करामत के चेहरे के भाि भाँपती ई बोली- ्या यह भी

    कोई तरीका है, ने िाले को ड़े- ड़े द्कारकर भगा दो ।तुम जानती हो िह कौन है... करामत अली ने कट स्िर में

    कहा । िह ल मी को ले जाकर िहाँ बेच गा जहाँ यह टकड़े-टकड़े

    होकर भबक जा गी । मेरे दोस्त ज्ान भसंह को इसका पता चल गया तो िह मेरे बारे में ्या सोचेगा ।

    उस भदन करामत अली भबना कुछ ा -भप रात को भबना भबस्तर की चारपाई पर पड़ा रहा । नींद उसकी ँ से कोस दर ी ।

    भिलुप्त हो रहे जानिर पर सं ेप में अपने भिचार य्त कीभज ।

    सं ाषरीय

  • 7

    रात काफी भनकल चुकी ी । सिेरे देर तक िह लटेा ही रह गया । कुछ देर बाद करामत अली ने चारपाई छोड़ी । मुँह-हा धो, र से बाहर भनकल पड़ा । ल मी के गले से बँधी ई रस्सी ँटे से ोली र उसे गली से बाहर ले जाने लगा । रमजानी, जो दरिाजे पर ड़ी यह सब दे रही ी, बोली-

    इसे कहाँ ले चले करामत अली ने कहा- जहाँ इसकी भकस्मत में भल ा है ।िह ल मी को सड़क पर ले या । ल मी भबना भकसी रुकािट या

    जत के उसके पीछे-पीछे चली जा रही ी । िह उसकी रस्सी पकड़े सड़क पर गे की र चलता चला गया । चलते-चलते कुछ ण रुककर िह बोला- ल मी चल, अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है । तुझे ग शाला में भरती करा दंगा । िहाँ इ्मीनान से रहना । िहाँ त हमारे र की तुलना में मजे से रहेगी । भले ही मैं िहाँ न र ँ पर जो लोग भी ह गे, मेरे याल में तु हारे भल अ छे ही ह गे । मैं कभी-कभी तु हें दे या क ँगा । तब त मुझे पहचानेगी भी या नहीं, ुदा जाने, कहते करामत अली का गला भर या । उसकी ँ में ँस उतर ।

    चल, ल मी चल । ज दी-ज दी पैर ब ा र िह ुद भकसी के-मांदे ब े बैल की तरह भारी कदम से गे ब ने लगा ।

    पेटा ( ) संस् ा के बारे में जानकारी प्राप्त कीभज र इसके प्रमु मुद दे भिद यालय के भभभ्त फलक पर भल ।

    िेिनीय

    बरान पुं.सं.(भहं.) = पालत गाय-बैल के रहने का स् ानमवेशी पुं. सं. (अ.) = कभषकाय में उपयु्त त ा

    दधा पशुदरा्ण पुं. सं. (भहं.दे.) = अनाज के अंश ह का पुं. सं. (भहं.) = दी भन िासपुआि पुं. सं. (भहं.दे.) = धान के स े ं ल, भजनमें

    से दाने भनकाल भद ग ह ििी स्ती. सं. (भहं.दे.) = तेल भनकल जाने के बाद

    भतलहन का बचा भहस्सा जो मिेशी ाते हैं

    शब्द संसारकाँिी हा स पंु.सं.(अं.) = सरकारी मिेशी ाना

    (भजसमें लािा रस पशु बंद करके र े जाते

    हैं । )

    मुहावरेमुँह मारना = ज दी-ज दी ानागिा र आना = भाि भिह िल होना, िाज भर ना कोरा िबाब देना = साफ मना करनािश म आना = िेश में ना

  • 8

    अत यख

    --------

    (६) कारर तिखिए ः

    १. करामत अली ल मी के भल सानी तैयार करने लगा ।

    २. रमजानी ने करामत अली को रोगन भदया ।

    ३. रहमान ने ल मी को इलाके से बाहर छाेड़ भदया ।

    4. करामत अली ने ल मी को ग शाला में भरती भकया ।

    (७) तहंदी-मरा ी म समो ा रि शब्दों के त अर्ण तिखिए ः

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः (२) तचि टना म िगाकर वा्य त र से तिखिए ः

    १. उसके गले में रस्सी ी । २. रहमान बड़ा म है । ३. िह ल मी को सड़क पर ले या । 4. उसने तु हें बड़ी बेदद से पीटा है ।

    (4) गिि वा्य, सही करके तिखिए ः१. करामत अली भपछले चार साल से गाय की सेिा

    करता चला रहा ा । २. करामत अली को ल मी की पी पर रोगन लगाने के बाद इ्मीनान । ( ) िर तिखिए ः

    मार के कारण ल मी के यिहार में

    या प रितन

    ज्ान भसंह का पशुप्रेम दशाने िाली बातें

    (5) तनम्नतिखिि मुद् दों के आधार पर वर्णन कीतिए ः

    करामत अली की गाय

    १. नाम -२. उ -३. नस्ल - 4. भस् भत -

    ‘यतद आप करामि अिी की िगह पर होिे िो’ इस संद ्ण म अपने तवचार तिखिए ।

    --------

    --------

    --------

    ----------------

    ----------------

    पी चारा

    ाना कल

    िसेः

    स्वाधयाय

    पत (भहंदी)

    ाद (मरा ी)

    8

  • 9

    ाषा तबंद

    तकसी पाििू प्रारी की आ मकरा तिखिए ।

    (१) तनम्नतिखिि वा्यों म तचि तवरामतचह् नों का प्रयोग कर वा्य पुनः तिखिए ः

    (२) तनम्नतिखिि तवरामतचह् नों का पयोग करिे ए बारह-पं ह वा्यों का प र ेद तिखिए ः

    १. ह कब त ने भकतनी बेदद से पीटा है २. मैंने कराहते पछा मैं कहाँ ँ ३. मँझली भाभी मुट ी भर बुँभदयाँ सप में फककर चली गई 4. बड़ी बेटी ने ससुराल से संिाद भेजा है उसकी ननद ी ई है मो ी की शीतलपाटी के भल5. केिल टीका न ुनी र भबभछया र भल े

    . हरो मैं माँ से जाकर कहती ँ इतनी बड़ी बात

    . टाँग का टटना यानी सािजभनक अस्पताल में कुछ भदन रहना8. ज दी-ज दी पैर ब ा

    . ल मी चल अरे ग शाला यहाँ से दो भकलोमीटर दर है१ . मानो उनकी क ँ पछ रही हो कहो कभिता कसी रही

    तवरामतचह् न वा्य

    ।-

    ;,

    Í Í Í

    .......( )

    ^

    -/

    पयोतिि िेिन

  • 10

    उस भदन जब मैं पँजीिादी र समाजिादी अ यिस् ा पर भाषण सुनकर रहा ा तो सामने से क कार रही ी । भाषण के प्रभाि से मेरी साइभकल को अभधक जोश या या कार को गुस्सा अभधक या, यह मैं भन चत प से नहीं कह सकता भकतु मेरी साइभकल र िह कार जब करीब तो भिरोभधय की तरह क-दसरे को णा की नजर से दे ते पस में जा भभड़े । मैंने ाम ाह पँजीिाद र समाजिाद के झगड़े में टाँग अड़ाई । फलस्ि प मेरी टाँग टट गई । द टना के बाद ज भी इनसाभनयत कायम है, यह भसद ध करने के भल कुछ लोग मेरी तरफ दौड़े ।

    ँ ुली तो मैंने अपने- पको क भबस्तर पर पाया । इद-भगद कुछ प रभचत-अप रभचत चेहरे ड़े े । ँ ुलते ही उनके चहेर पर उ्सुकता की लहर दौड़ गई । मैंने कराहते पछा- मैं कहाँ हँ

    प सािजभनक अस्पताल के प्राइिेट िा में हैं । पका ्स ेंट हो गया ा । भसफ पैर का ्चर है । अब बराने की कोई

    बात नहीं । क चेहरा इतनी तेजी से जिाब देता है, लगता है मेरे होश ने तक िह इसीभल रुका रहा । अब मैं अपनी टाँग की र दे ता ँ ।

    मेरी क टाँग अपनी जगह पर सही-सलामत ी र दसरी टाँग रेत की ैली के सहारे क स्टैं पर लटक रही ी । मेरे भदमाग में क नये मुहािरे

    का जनम । टाँग का टटना यानी सािजभनक अस्पताल में कुछ भदन रहना । सािजभनक अस्पताल का याल ते ही मैं काँप उ ा । अस्पताल िैसे ही क तरनाक श द होता है, भफर यभद उसके सा सािजभनक श द भचपका हो तो समझो ्मा से परमा्मा के भमलन होने का समय गया । अब मुझे यँ लगा भक मेरी टाँग टटना मात क टना है र सािजभनक अस्पताल मंे भरती होना द टना ।

    टाँग से यादा भफ मुझे उन लोग की ई जो हमदद जताने मुझसे भमलने ँगे । ये भमलने-जुलने िाले कई बार इतने अभधक ते हैं र कभी-कभी इतना परेशान करते हैं भक मरीज का राम हराम हो जाता है, भजसकी मरीज को ास ज रत होती है । जनरल िा का तो क भनयम होता है भक प मरीज को क भन चत समय पर कर ही तकलीफ दे सकते हैं भकतु प्राइिेट िा , यह तो क ुला भनमंतण है भक हे मेरे

    वाह रे हमदद्ण

    -घनशयाम अग्रवाल

    प्रस्तुत हास्य- यं य भनबंध में ले क ने द टना के मा यम से भिनोद को बड़े ही रोचक ंग से य भकया है । हमदद भी कभी-कभी भकस तरह पीड़ादायी बन जाती है, यह ब त ही सुंदर तरीके से दशाया है ।

    ि म ः १ 4२, अकोला (महारा ट) प रचय ः न याम अ िाल जी की रुभच अ ययनकाल से ही ले न में भिकभसत ई । अपने स-पास की प्र्येक भस् भत या टना में हास्य

    ँ कर उसे धारदार यं य में ालना पके ले न की भिशेषता है । प

    अ ल भारतीय मंच पर हास्य- यं य कभि के प में लोकभप्रय हैं । प्रमुि कृतियाँ ः हँसी र के ईने (हास्य- यं य), जादी की दम,

    ई म स री (हास्य कभिता सं ह) अपने-अपने सपने (ल ुक ा सं ह)

    भद ।

    प रचय

    गद् य संबंधी

  • 11

    प रभचतो, र तेदारो, भमतो , जब जी चाहे , चाहे भजतनी देर रुको, समय का कोई बंधन नहीं । अपने सारे बदले लेने का यही ि है । बदले का बदला र हमदद की हमदद । भमलने िाल का याल ते ही मुझे लगा मेरी दसरी टाँग भी टट गई ।

    मुझसे भमलने के भल सबसे पहले िे लोग भजनकी टाँग या कुछ र टटने पर मैं कभी उनसे भमलने गया ा, मानो िे इसी भदन का इंतजार

    कर रहे े भक कब मेरी टाँग टटे र कब िे अपना हसान चुका ँ । इनकी हमदद में यह बात ास भछपी रहती है भक दे बेटा, ि सब पर ता है ।

    दद के मारे क तो मरीज को िैसे ही नींद नहीं ती, यभद ोड़ी-ब त भी जा तो भमलने िाले जगा देते हैं- ास कर िे लोग जो भसफ पचा रकता भनभाने ते हैं । इनहें मरीज से हमदद नहीं होती, ये भसफ

    सरत भद ाने ते हैं। से में क भदन मैंने तय भकया भक ज कोई भी , मैं ँ नहीं ोलँगा । चुपचाप पड़ा रहँगा । भफस के बड़े बाब र मुझे सोया जानकर िापस जाने के बजाय िे सोचने लगे भक यभद मैंने उनहें नहीं दे ा तो कसे पता चलेगा भक िे भमलने े । अत उनह ने मुझे धीरे-धीरे भहलाना शु भकया । भफर भी जब ँ ें नहीं ुलीं तो उनह ने मेरी टाँग के टटे भहस्से को जाेर से दबाया । मैंने दद के मारे कुछ ची ते जब ँ

    ोली तो िे मुस्कराते बोले- कभह , अब दद कसा है मुह ेिाले अपनी फुरसत से ते हैं । उस भदन जब सोनाबाई अपने

    चार ब के सा ई तो मुुझे लगा भक ज भफर कोई द टना होगी । ते ही उनह ने मेरी र इशारा करते ब से कहा- ये दे ो चाचा

    जी उनका अंदाज कुछ सा ा जैसे भचभड़या र भद ाते ब से कहा जाता है- ये दे ो बंदर ।

    ब े लेने लगे । क कुस पर च ा तो दसरा मजे पर । सोनाबाई की छोटी लड़की दिा की शीशी लकेर क कली ासं करने लगी । रप-रप की िाज ने मरेा यान बटँाया । ्या दे ता ह ँभक सोनाबाई का क लड़का मेरी टागँ क ेसा लटक रही रतेी की लैी पर बा ्सगं की प्रै ्टस कर रहा ह ै। मैं इसक ेपहल ेभक उस ेमना करता, सोनाबाई की लड़की न ेदिा की शीशी पटक दी । सोनाबाई ने क पल लड़की को रा, भफर हसँत े बोली- भयैा, पड़े े ला , दिा भगरना शभु होता ह ै। दिा गई समझो बीमारी गई । इसके दो टं बाद सोनाबाई गई, यह कहकर भक भफर

    गी । मैं भीतर तक कापँ गया ।कुछ लोग तो पचा रकता भनभाने की हद कर देते हैं, भिशेष कर िे

    सािजभनक अस्पताल में जाकर भकसी मरीज से उसके अनुभि सुभन र अपने श द में सुनाइ ।

    अस्पताल में लगे सचना फलक/भिज्ापन को पभ त ा क ा में चचा कीभज ।

    प नीय

    वरीय

  • 12

    र तेदार जो दसरे गाँि से भमलने ते हैं । से में क भदन क टै्सी कमरे के सामने कर रुकी । उसमें से भनकलकर क दमी ते ही मेरी छाती पर भसर र कर धा पड़ रोने लगा र कहने लगा- हाय, तु हें ्या हो गया कारिाल का स्यानाश हो मैंने भदल में कहा भक मुझे जो सो , पर त ्य रोता है, तुझे ्या िह ोड़ी देर मेरी छाती में मुंह गड़ा रोता रहा । भफर रोना कुछ कम । उसने मेरी छाती से गरदन हटाई र जब मुझसे ँ भमलाई, तो कदम चुप हो गया । भफर धीरे-से हँसते बोला- माफ करना, मंै गलत कमरे में गया ा । जकल लोग ीक से बताते भी ताे नहीं। गुप्ता जी का कमरा शायद बगल मंे है । हें-हें-हें अ छा भाई, माफ करना । कहकर िह चला गया । अब िही रोने की िाज मुझे पड़ोस के कमरे से सुनाई पड़ी । मुझे उस दमी से अभधक गुस्सा अपनी प्नी पर या ्य भक इस प्रकार रोता दे प्नी ने उसे मेरा र तेदार या करीबी भमत समझकर टै्सीिाले को पैसे दे भद े ।

    हमदद जताने िाल में िे लोग ज र ँगे, भजनकी हम सरत भी नहीं दे ना चाहते। हमारे शहर में क कभि हैं, ी लपकानंद । उनकी बेतुकी कभिता से सारा शहर परेशान है । मैं अकसर उनहें दर से दे ते ही भाग ड़ा होता हँ । जानता हँ जब भी भमलेेंगे दस-बीस कभिता ँ भपला भबना नहीं छोड़ेंगे । क भदन बगल में झोला दबा पहँुचे । ते ही कहनेे लगे- मैं तो भपछले चार-पाँच भदन से कभि स मेलन में अभत यस्त ा । सच कहता हँ कसम से, मैं पके बारे मंे ही सोचता रहा । रात भर मुझे नींद नहीं ई र हाँ, रात को इसी संदभ में यह कभिता बनाई...। यह कह झोले में से ायरी भनकाली र लगे सुनाने-

    असम की राजधानी है भशलाँगमेरे दोस्त की टट गई है टाँगमोटरिाले, तेरी ही साइ ी राँग ।कभिता सुनाकर िे मुझे से दे रहे े, मानो उनकी क ँ पछ

    रही हो- कहो, कभिता कसी रही र दसरी ँ पछ रही हो- बोल, बेटा अब भी मुझसे भागेगा मैंने ज दी से चाय भपलाई र भफर कभिता ँ सुनने का िादा कर बड़ी मु कल से भिदा भकया ।

    अब मैं रोज ई िर से प्रा ना करता हँ भक हे ई िर अगर तुझे मेरी दसरी टाँग भी तोड़नी हो तो ज र तोड़ मगर कपा कर उस जगह तोड़ना जहाँ मेरा कोई भी प रभचत न हो, ्य भक बड़े बेदद होते हैं ये हमदद जताने िाले ।

    ( हँसी र के ईने से)

    र्त बैंक के काय त ा र्तदान काय म के बारे में जानकारी इकट ा करके अपनी क पी में भल ।

    भकसी सािजभनक या ाम पंचायत की सभा में अंगदान के बारे में अपने भिचार प्रस्तुत कीभज ।

    सं ाषरीय

    िेिनीय

  • 13

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) संिाि पूर्ण कीतिए ः

    (२) अंिर स्पष्ट कीतिए ः

    ( ) आकृति म तिखिए ः

    (६) शब्द बनाइए ः

    प्राइिेट अस्पताल सािजभनक अस्पताल

    १. ------- १. -------

    प्राइिेट िा जनरल िा

    १. ------- १. -------

    मरीज से भमलने के भल ने िाले

    लोग की भिशेषता ँ

    अस्पताल में सोनाबाई के ब की शरारतें

    (4) कारर तिखिए ः१. ले क को अभधक गुस्सा अपनी प्नी पर या ------------------२. ले क कहते हैं भक मेरी दसरी टाँग उस जगह तोड़ना जहाँ कोई प रभचत न हो ------------------

    (5) शब्दसमूह के तिए एक शब्द तिखिए ः१. िह स् ान जहाँ अनेक प्रकार के पशु-प ी र े जाते हैं - ------------------२. जहाँ मु त में भोजन भमलता है - ------------------

    त स्ती.सं.(अ.) = भचंताहमदद स्ती.सं.(फा.) = सहानुभभतएहसान पु.ंसं.(अ.) = कतज्ता

    धा भि.(भहं.) = उ टा

    शब्द संसारमुहावरे

    टाँग अ ाना = बाधा ालनाकाँप ना = भयभीत होना

    उपसग यु्तश द

    उपसग यु्तश द

    प्र्यय यु्तश द

    प्र्यय यु्तश द

    दद भन चत------------ ------ ------

    मरीि से तमिने िािे समय क न-क न-सी सावधातनयाँ बरिनी चातहए, तिखिए ।

    स्वाधयाय

    अत यख

  • 14

    ाषा तबंद

    १. सोनाबाई अपने चार ब के सा ई । २. गाय ब त दध देती है । ३. मैं रोज ई िर से प्रा ना करता ँ । 4. सैभनक की टकड़ी गे ब ी ।5. सोना-चाँदी र भी महँगे होते जा रहे हैं ।

    . गोिा दे मैं तरंगाभयत हो उ ा ।

    . युिक का दल बचाि काय में लगा ा ।8. पने भिदेश में मण तो कर भलया है ।

    . इस कहानी में भारतीय समाज का भचतण भमलता है ।१ . सागर का जल ारा होता है ।

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ................,................,..............

    ......................., .......................

    ......................., .......................

    ................,................,..............

    ( ) तनम्नतिखिि वा्यों के र्ि स्रानों म तचि सव्णनामों का प्रयोग कीतिए ः१. ------- सािजभनक अस्पताल के प्राइिेट िा में हैं ।२. ------- बाजार जा । ३. ------- कार ाने में क ही भिभाग में काम करते े । 4. इसे लेकर ------- ्या करोगे 5. दय ------- है ------- उदार हो ।

    . लोग ------- कमरा स्ि छ कर रहे हैं ।

    . ------- रस ट हमने पहले से बुक कर भलया है ।8. इसके बाद ------- लोग भदन भर पणजी दे ते रहे ।

    . ------- इसके पहले उसे मना करता ।१ . काम करने के भल कहा है ------- करो ।

    (२) पा म प्रयु्ि तक ह पाँच सं ा को ँ कर नका वा्यों म प्रयोग कीतिए ।

    (१) तनम्नतिखिि वा्यों म आए ए सं ा शब्दों को रेिांतकि करके नके ेद तिखिए ः

    (4) पा म प्रयु्ि सव्णनाम ँ कर नका स्विं वा्यों म प्रयोग कीतिए ।

    १4

    तनम्नतिखिि मुद् दांे के आधार पर तकसी समारोह का व िांि िेिन कीतिए ः स् ान * भतभ र समय * प्रमु अभतभसमारोह * अभतभ संदेश * समापन

    पयोतिि िेिन

  • 15

    ना अँधेराचमकता प्रकाश

    ैर अभधक ।

    करते जापाने की मत सोचोजीिन सारा ।

    जीिन नैया मँझधार में ोले,सँभाले कौन

    रंग-भबरंगेरंग-संग लेकर

    या फागुन ।

    काँटांे के बीचल लाता फूल

    देता प्रेरणा ।

    भीतरी कु ाँ के द िार सेई बाहर ।

    ारे जल से धुल ग भिषादमन पािन ।

    म्यु को जीनाजीिन भिष पीनाहै भजजीभिषा ।

    4 मन

    (पूरक प न)-सवकास पररहार

    ि म ः १ 8३, गुना (म.प्र.)प रचय ः भिकास प रहार ने २ से २ तक भारतीय िायुसेना को अपनी सेिा ँ दीं भफर पतका रता के

    ेत मंे उतरने के बाद रेभ यो से जुड़े । साभह्य में भिशेष रुभच होने के कारण

    प नाट य गभतभिभधय से भी जुड़े हैं ।

    प रचय

    पद् य संबंधीहाइक यह जापान की लोकभप्रय का य भिधा है । हाइकु भि ि की सबसे छोटी कभिता कही जाती है । पाँचिें दशक से भहंदी साभह्य ने हाइकु को ुले मन से स्िीकार भकया है । हाइकु कभिता 5 5=१ िण के ाँचे में भल ी जाती है ।

    प्रस्तुत हाइकु में कभि ने अपने अनुभि र छोटी-छोटी भिभभ

    टना को अ िाही सीभमत श द मंे प्रस्तुत भकया है ।

    १5

  • 16

    मन की पीड़ाछाई बन बादलबरसीं ँ ें ।

    चलतीं सा पट रयाँ रेल कीभफर भी मौन ।

    भसतारे भछपेबादल की ट मेंसना काश ।

    तुमने भदभजन गीत को स्िर

    अमर ।

    सागर में भीरहकर मछलीयासी ही रही ।

    शब्द संसारमँ धार स्ती.सं.(भहं.) = नदी के प्रिाह का म यभागक ा स्ती.सं.(सं.) = ोर भनराशा तवषाद पुं.सं.(सं.) = अभभलाषा परी न होने पर मन में होने िाला ेद या दतििीतवषा स्ती.सं.(सं.) = जीिन के प्रभत सभ्त/जीने की इ छा

    ट स्ती.सं.(सं.) = ड़

    सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-(१) तचि िोत याँ तमिाइए ः

    (२) प रराम तिखिए ः१. भसतार का भछपना -२. तु हारा गीत को स्िर देना -

    ( ) सरि अर्ण तिखिए ः मन की ------ बरसीं ँ ें ।

    अ आमछली ------- मौनगीत के स्िर ------- सुनारेल की पट रयाँ ------- यासी

    काश ------- अमरपीड़ा

  • 17

    * सूचना के अनुसार कृतियाँ कीतिए ः-

    हाइकु में प्रयु्त महीना र उसकी तु

    (4) तनम्नतिखिि का य पंत्ियों का क ीय ाव स्पष्ट कीतिए ः

    ( ) िर तिखिए ः१. मँझधार में ोले -------२. भछपे -------३. धुल ग -------4 अमर -------

    (२) कृति पूर्ण कीतिए ः

    चलतीं सा पट रयाँ रेल कीभफर भी मौन ।

    काँट के बीचल लाता फूल

    देता प्रेरणा ।

    १. २.

    (१) तिखिए ः

    स्वाधयाय

    तदनांक ः संबोधन ः अत वादन ः प्रारं ः तवषय तववेचन ः

    ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------िुम्हारा िुम्हारी,

    नाम ः पिा ः ई-मेि आई ी ः

    व्ि व प्रतियोतगिा म प्ररम स्रान पाने के पि य म अापके तम सहेिी ने आपको बधाई प ेिा ह, से ध यवाद देिे ए तनम्न प्रा प म प तिखिए ःपयोतिि िेिन

    तनम्नतिखिि हाइक द् वारा तमिने वािा संदेशकरते जा पाने की मत सोचो जीिन सारा । भीतरी कु ा नयन के द िार से ई बाहर ।---------------------------------------------------------------------

    ------------------------------------------------------------------------

  • 18

    5 गोवा ः िसा मने देिा

    गोिा यह नाम सुनते ही सभी का मन तरंगाभयत हो उ ता है र हो भी ्य न, यहाँ की प्रकभत, बोहिा र जीिनशैली का कषण ही सा है भक पयटक ुद-ब- ुद यहाँ ंचे चले ते हैं । देश के क काेने

    में भस् त होने के बािजद यह छोटा-सा रा य प्र्येक पयटक के भदल की धड़कन है । यही कारण है भक मैं भी अपने प रिार के सा इंदौर से गोिा जा प ँचा । ं िा से मेरे सा साहब भी सप रिार हमारे सा शाभमल हो ग ।

    २३ निंबर को जब गाेिा ्सप्रेस मड़गाँि रुकी तो सुबह का उजास हो गया ा । क टै्सी के ह न ने मेरा यान उसकी र ींचा र हम फटाफट उसमें बै ग । टै्सी क पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी । शीतल हिा के झ क से मन प्रस हो गया र याता की सारी कान भमट गई । मैं सोचने लगा भक पयटन का भी अपना ही नंद है । जब हम जीिन की कई सारी समस्या से जझ रहे ह तो उनसे भनजात पाने का सबसे अ छा तरीका पयटन ही है । बदले िातािरण के कारण मन तरोताजा हो जाता है त ा शरीर को कुछ समय के भल भि ाम भमल जाता है ।

    कुछ देर बाद हमारी टै्सी म गाँि से पाँच भकमी दर दभ ण में भस् त कस्बा बेनाभलयम के क रस ट में कर रुक गई । यह रस ट हमने पहले से बुक कर भलया ा । इसभल पचा रक ानापभत कर हम राम करने के इरादे से अपने-अपने स्यट मंे चले ग । इससे पहले भक हम कमर से बाहर भनकलें, मैं पको गाेिा की कुछ ास बातें बता दँ । दरअसल, गोिा रा य दो भाग में बँटा है । दभ ण गोिा भजला त ा उ्तर गोिा भजला । इसकी राजधानी पणजी मां िी नदी के भकनारे भस् त है । यह नदी काफी बड़ी है त ा िष भर पानी से भरी रहती है । भफर भी समु ी इल�


Recommended