+ All Categories
Home > Documents > Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015,...

Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015,...

Date post: 06-Aug-2020
Category:
Upload: others
View: 0 times
Download: 0 times
Share this document with a friend
14
SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2155 ोबेल एवं माटेसरी के शैिक वचार की वतमान परेय म उपादेया लमी शंकर यादव शोधाी, उ0 0 रा0 ट0 मु ववालय , इलाहाबाद सिध कवि िुसिानंदन पंत ने अपनी कविता ि िानि को िबिे िुदरति ाणी कहा है। ईर की इिी ििवे रचना को विकाि के उचति सिखर तक पह चाने के सिए ेति याि कए जाते ह, जििे िानि िंिाधन के प ि उिका ििाज सनिावण के े ि, िीवथ िदुपयोग ककया जा िके। ििाज के इि िजग हरी के सनिावण का िूिाधार है सिा। सिध पााय सिा दािवसनक अरतू का कहना है व शरीर म व मक का सृजन ही शिा है ,,,1। अरतू की सिा िंबंधी यह पररभाा िानि को िनोिारीरक ाणी के प ि कियािीि िानती है। अतः कहा जा िकता है क सिा जीिन का िूिाधार है। सिा के िंदभव ि ििय ििय पर सभन-सभन दािवसनक ने अपने ित य ककये ह। सििु सिा अथिा छोटे बच की सिा के े ि दो नाि िुय प िे सिध ह। ै डररक ोबेि तथा िाररया िाटे िरी तीिरा ना ि सगरजा िंकर भगिान जी बधेका उव सगजुभाई का भी आता है। ोबे ि एिं िाटे िरी ने सििु सिा के े ि एक िांसतकारी परितवन िाने का काि ककया। जहा बच की सच ,योयता िता, झान का वििे प िे याि रखा गया है। Abstract
Transcript
Page 1: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2155

फ्रोबेल एवं माण्टेसरी के शकै्षिक ववचारों की वर्तमान पररपे्रक्ष्य में उपादेयर्ा

लक्ष्मी शंकर यादव

शोधार्थी, उ0 प्र0 रा0 ट0 मुक्त ववश्वववद्यालय , इलाहाबाद

प्रसिद्ध कवि िुसित्रानंदन पंत ने अपनी कविता िें िानि को िबिे िुन्दरति प्राणी कहा है।

ईश्वर की इिी ििवश्रषे्ठ रचना को विकाि के उच्चति सिखर तक पहुुँचाने के सिए श्रषे्ठति प्रयाि

ककए जाते हैं, जजििे िानि िंिाधन के रूप िें उिका ििाज सनिावण के के्षत्र िें, िीर्वस्थ

िदपुयोग ककया जा िके। ििाज के इि िजग प्रहरी के सनिावण का िूिाधार है सिक्षा। प्रसिद्ध

पाश्चात्य सिक्षा दािवसनक अरस्तू का कहना है कक स्वस्र्थ शरीर में स्वस्र्थ मक्षस्र्ष्क का सजृन ही

शशिा है,,,1। अरस्तू की सिक्षा िंबंधी यह पररभार्ा िानि को िनोिारीररक प्राणी के रूप िें

कियािीि िानती है।

अतः कहा जा िकता है कक सिक्षा जीिन का िूिाधार है। सिक्षा के िंदभव िें ििय –ििय पर

सभन्न-सभन्न दािवसनकों ने अपने ित व्यक्त ककये हैं। सििु सिक्षा अथिा छोटे बच्चों की सिक्षा के

के्षत्र िें दो नाि िुख्य रूप िे प्रसिद्ध हैं। फै्रडररक फ्रोबेि तथा िाररया िाण्टेिरी तीिरा नाि

सगरजा िंकर भगिान जी बधेका उर्व सगजुभाई का भी आता है। फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी ने सििु

सिक्षा के के्षत्र िें एक िांसतकारी पररितवन िाने का काि ककया। जहाुँ बच्चों की रूसच ,योग्यता

क्षिता, रूझान का वििेर् रूप िे ख्याि रखा गया है।

Abstract

Page 2: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2156

ककिी भी किया अथिा विचार का िूयायांकन उििें सनकहत कुछ िापदण्डों के अनुिार ककया जाता

है। फ्रोबेल एवं माण्टेसरी के शैक्षिक ववचारों की वर्तमान पररपे्रक्ष्य में उपादेयर्ा पर विचार करने

के सिए फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी के िैजक्षक विचारों का अनुिीिन आिश्यक होगा। इि अध्ययन के

तहत हि उनके सिक्षा, सिक्षा के उदे्दश्य, उिकी पाठ्यचयाव, सिक्षण, सिक्षाथी, सिक्षािय तथा

अनुिािन के प्रत्यय पर विचार करना होगा।

1. पाण्डेय डा. राि िकि, उदीयिान भारतीय ििाज िें सिक्षक

फ्रोबेल के शकै्षिक ववचारः-

सिक्षा के के्षत्र िें फ्रोबेि किेंसनयि, रूिो और पेस्टािाुँजी के विचारों िे असधक प्रभावित थे और

इनिें िे भी िबिे असधक पैस्टािाुँजी के विचारों िे। फ्रोबेि ने बच्चे की तुिना एक नन्हे बीज

िे की। उिका िानना था कक जजि तरह िे बीज के अदंर िकृ्ष बनने की िारी िवक्तयाुँ वियमािान

रहती है, उिी तरह बच्चे िें भी जन्ि के ििय उिे अपने िाता-वपता िे विकाि की िारी

िम्भािनाएं प्राप्त होती है। िातािरण के ििन्िय िे उिका विकाि होता है। सिक्षा इिी विकाि

का आधार है। उिके अनुिार शशिा का उदे्दश्य मनषु्य का नेर्तृ्व व पर्थ प्रदशतन करना है, क्षजससे वह

अपने र्र्था अपनी अन्र्रात्मा के ववषय में अशधक स्पष्ट हो सके, प्रकृशर् से अपना सम्बन्ध स्र्थावपर् कर

सके, ईश्वर से र्दात्म्य कर सके। जजििे कक उिे अपने तथा िानि जासत के विर्य िें तथा प्रकृसत

और ईश्वर के विर्य िें ज्ञान प्राप्त हो िके और उि पवित्र ि िुद्ध जीिन की रर अ्रसिर हो िके

जजि रर कक उिे िह ज्ञान िे जाएगा। अतः िंके्षप िें फ्रोबेि का यह िानना है कक शशिा द्वारा

बालक अपनी आन्र्ररक शवक्तयों को बाहर की ओर प्रकट करर्ा है।

शशिा के उदे्दश्यः- सिक्षा के िम्प्रत्यय के अनुिार ही सिक्षा के उदे्दश्य सनधावररत हुआ करते हैं

क्योंकक सिक्षा उदे्दश्यों की प्रासप्त का िाधन है। चूुँकक फ्रोबेि ििशे्वरिादी थे अतः उनका यह भाि

Page 3: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2157

सिक्षा के उदे्दस्यों िें भी पररिजक्षत होता है। उनका िानना था कक अनेकता िें भी इि एकता को

जानना ही िनुष्य जीिन का िक्ष्य है और यह एकता नैसतक सनयिों के पािन िे प्राप्त होती है।

ित्यि,् सििि,् िुन्दरि ्को उन्होंने नैसतक बताया है। उिके अनुिार सिक्षा के सनम्नसिजखत

उदे्दश्य हो िकते हैं-

1. िनुष्य को अपने दैिीय स्िरूप एिं िंिार की आजत्िक एकता का ज्ञान एिं अनुभूसत प्रदान

करना।

Education of man - Hail man’s translation Page no.- 5

2. दैिीय अनुभूसत एिं आजत्िक एकता के सिए िारीररक एिं बौवद्धक विकाि आिश्यक हैं।

3. िािाजजक विकाि करना।

4. नैसतक एिं चाररवत्रक विकाि आकद।

शशिा की पाठ्यचयातः- पाठ्यचयाव उदे्दश्यों की प्रासप्त का िाधन है। अतः उदे्दश्यों के अनुरूप

सिक्षा की पाठ्यचयाव भी होनी चाकहए। फ्रोबेि अपने सिक्षण सिद्धान्त िें विकाि िि की बात

करते हैं और इि विकाि िि को उन्होंने (िैिि 1-3, बायायकाि 3-5, कैिोयव 6-14, तरूण 14-

18 एिं प्रौढ़ 18 िर्व के बाद) पाुँच भागों िें बांटा है। अतः प्रत्येक िि के अनुिार पाठ्यचयाव भी

अिग-अिग होनी चाकहए। चूुँकक फ्रोबेि ने 4 िे 8 िर्व तक के बच्चों की सिक्षा पर अपने विचार

व्यक्त ककए हैं इिसिए उिकी पाठ्यचयाव िें िैिि तथा बायायकाि एिं कुछ हद तक कैिोयव

अिस्था की पाठ्यचयाव सनम्नित ्है-

1. खेिकूद एिं व्यायाि

2. भार्ा ज्ञान

3. किा एिं िंगीत

4. प्रकृसत सनरीक्षण

Page 4: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2158

5. इसतहाि एिं भूगोि

6. विज्ञान एिं गजणत तथा

7. धासिवक सिक्षा

शशिकः- फ्रोबेि अपनी सिक्षा िें बािक को केन्रीय स्थान प्रदान करते हैं , िेककन सिक्षक को

भी िहत्िपूणव स्थान प्रदान करते हैं। फ्रोबेि सिक्षक की तुिना िािी िे करते हुए कहता है कक

शशिक रूपी माली शशिार्थी रूपी पेड़-पौधों के उशचर् ववकास के शलए उत्तरदायी है। सिक्षक को बच्चों के

उसचत विकाि के सिए िातािरण देना चाकहए और उनके स्िाभाविक विकाि िें िहायता करना

चाकहए। फ्रोबेि इि स्तर पर िात ृ सिजक्षकारं को सनयुक्त करना चाहते हैं। उनका तकव था कक

िकहिाएं पुरूर्ों की अपेक्षा असधक िंिेदनिीि होती हैं।

शशिार्थीः- फ्रोबेि सिक्षाथी को सिक्षा प्रकिया का केन्र वबन्द ु िानते थे। इिसिए ये उिकी

अन्तसनवकहत क्षिता के अनुिार विकाि के पक्षधर थे। उनका िानना था कक सिक्षा प्रकिया िें

सििुरं को िीखने के स्ितंत्र अििर कदए जाने चाकहए जो उिकी योग्यता क्षिता तथा रूझान

पर आधाररत हों।

शशिण ववशधः- सिक्षण विसध के िंदभव िें फ्रोबेि के विचार बडे िहत्ि के हैं। फ्रोबेि बच्चों की

तुिना पौधे िे करते हुए कहता है कक- रु्ििारी िें जो स्थान पौंधे का है, िहीीँ स्थान बािक

का भी। इिसिए उिने ककण्डरगाटतन िब्द का असभप्राय बच्चों की फुलवारी से ककया। ककण्डर का

आिय नन्हें बच्चे तथा गाडवन का अथव बगीचा होता है। अतः ककण्डरगाटवन िब्द नन्हें बच्चों का

बगीचा, अथावत स्कूि िे िगाया जाता है। फ्रोबेि की ककण्डरगाटवन प्रणािी सनम्नसिजखत सिद्धांतों

पर आधाररत है-

1. एकता का सिद्धान्त।

2. ज्ञान को अन्दर िे बाहर सनकािने का सिद्धान्त।

Page 5: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2159

3. आजत्िक किया का सिद्धान्त।

4. खेि द्वारा िीखने का सिद्धान्त।

5. स्ितंत्रता तथा िािाजजक िहयोग का सिद्धान्त।

ककण्डरगाटवन प्रणािी िें आत्िासभव्यवक्त को िबिे असधक िहत्ि कदया जाता है, जजििें तीन

िाधनों का विधान है- गीत, गसत और रचना।

खेि द्वारा िीखने का सिद्धान्त भी ककण्डरगाटवन पद्धसत िें अत्यन्त िहत्ि का है। फ्रोबेि ने िात

उपहारों की चचाव की है जजििे विसभन्न उपकरण द्वारा बच्चे खेि-खेि िें आनंदपूिवक किजेन्रयों

एिं ज्ञानेजन्रयों का सिक्षण प्राप्त करते हैं। खेि विसध द्वारा सिक्षा प्रदान करने के िंदभव िें फ्रोबेि

ने अपनी पुस्तक एजकेुशन बाई डेवलपमेंट िें सिखा कक खेल मनुष्य के शलए ववशेषर्ः

बालक के शलए उसके अरं्ःजगर् एवं बाह्य जगर् का दपतण है रर इस दपतण की भीर्र से

आवश्यकर्ा है। अर्ः यह जीवन एवं लगनशवक्त को व्यक्त करने वाली प्रववृत्त है...1।

फ्रोबेि- एजूकेिन बाई डेििपिेंट प.ृि-ं183

शशिालयः- फ्रोबेि ने केिि सििु वियमााियों के विर्य िें विचार व्यक्त ककए हैं। इन्होंने सििु

वियमााियों को बाग की िंज्ञा दी। जहाुँ पर िािी रूपी सिक्षक बािक रूपी िभी पौधों की देखभाि

करते हैं। बाग िें जजि प्रकार िीति िायु, िुखद एिं िांत िातािरण होता है और पौधे स्िच्छन्द

भाि िे िवृद्ध करते हैं। उिी प्रकार स्कूि का भी स्िच्छ-िुखद एिं िांत िातािरण होता है जहाुँ

पौधे रूपी बच्चे स्िच्छन्द भाि िे विकाि करते हैं। ककण्डरगाटवन िें िाता रूपी सिजक्षकाएं होती हैं

जो बच्चों के कोिि िन तथा भाि को आिानी िे ििझ िकती हैं। सिक्षािय की ििय-िाररणी

िौिि के अनुिार सनजश्चत होती है।

अनशुासनः- फ्रोबेि स्ियं एक ईश्वरिादी व्यवक्त थे तथा बच्चों िें भी ईश्वर के दिवन करते थे।

अतः िे दिनात्िक अनुिािन का सनरे्ध करते हुए आत्िानुिािन की बात करते हैं। इि िंदभव

Page 6: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2160

िें फ्रोबेि के विचार आदिविादी है। बच्चों को स्ितंत्रता देनी चाकहए िेककन ििय पररजस्थसत ि

आिश्यकता के अनुरूप।

माण्टेसरी के शकै्षिक ववचार

इटिी के अन्कोना प्रदेि के सियारैिेि नािक नगर िें रहने िािी डा. िैररया िाण्टेिरी को

प्रारम्भ िें वपछडे तथा िन्द बुवद्ध के बािकों की सिक्षा का दासयत्ि िौपा गया। इिे अपनी िेिा

िानकर िाण्टेिरी ने वपछडे तथा िन्द बुवद्ध बच्चों की सिक्षा पर गहन अध्ययन ककया तथा

सनष्कर्व सनकािा कक इनके वपछडेपन का कारण ज्ञानेजन्रयों की हीनता है। सचककत्िक िे रूसच

स्थानान्तररत होकर तत्कािीन सिक्षा व्यिस्था पर पडी, जजिे उन्होंने दोर्युक्त बताया। सिक्षा पर

अपनी पुस्तक ग्रहणशील मन पर विचार व्यक्त करते हुए डा. िैररया िाण्टेिरी ने कहा कक

वास्र्ववक शशिा वह है जो मनुष्य की जन्मजार् िमर्ाओं का ववकास करर्ी है रर उसे नई

पररक्षस्र्थशर्यों में समायोजन करने योग्य बनार्ी है...1। ये सिक्षा को जीिन की तैयारी का िाधन

िानती थी।

डा. िैररया िाण्टेिरी- ्रसहणिीि िन प.ृि-ं7-8

शशिा के उदे्दश्य- चूुँकक डा. िैररया िाण्टेिरी ने छोटे बच्चों के ऊपर अपना अध्ययन केजन्रत

ककया था इिसिए इनके सिक्षा के उदे्दश्यों को सििु सिक्षा तक ही िीसित ककया गया है। इनके

दृविकोण िे सििु सिक्षा के सनम्नसिजखत उदे्दश्य होने चाकहए।

1. सििुरं की किेजन्रयों, ज्ञानेजन्रयों और बुवद्ध का विकाि कर उिका ििोत्ति विकाि

करने िें िहायता करना।

2. सिक्षा द्वारा सििुरं को पयाविरण का बोध कराकर उिके अनुरूप ििायोजन की क्षिता

का विकाि करना।

3. सििुर को जीिन के सिए तैयार करना।

Page 7: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2161

4. उनका नैसतक एिं चाररवत्रक विकाि कर िांसत तथा िेिा का पाठ पढ़ाना आकद।

शशिण ववशध- डा. िरैरया िाण्टेिरी ने विकिांग एिं िन्दबुवद्ध के बच्चों की सिक्षा पर ध्यान

केजन्रत करते हुए एक नई सिक्षण विसध का िूत्रपात ककया है, जजिे िाण्टेिरी प्रणािी के नाि

िे जाना जाता है। इि प्रणािी िें प्रचसित प्रणािी िे हटकर एक नये तरीके िे सििुरं की

जन्िजात क्षितारं को विकसित करने का प्रयत्न ककया गया है। िाण्टेिरी प्रणािी के सिक्षण

सिद्धान्त सनम्नित ्हैं-

1. िांिपेसियों को पुि बनाना।

2. ज्ञानेजन्रयों का िम्यक प्रसिक्षण।

3. आत्िसिक्षा द्वारा आत्िविकाि।

4. िैयवक्तकता का विकाि।

5. खेि द्वारा करके िीखने का सिद्धान्त।

6. स्ितंत्रता का सिद्धान्त।

7. िनोिैज्ञासनक क्षणों के उपयोग का सिद्धान्त।

8. आत्िानुिािन का सिद्धान्त।

िाण्टेिरी सिक्षण पद्धसत िें उपयुवक्त सिद्धान्तों के अिािा विसभन्न प्रकार के िैजक्षक उपकरणों का

भी प्रयोग ककया जाता है। जजनिें घरेिू उपकरण यथा- िंजन, तेि, िाबुन, िैजक्षक उपकरण,

श्यािपट्ट, चाक, डस्टर तथा िैजक्षक पत्र जजििें बेिन, घन, आयत के अिािा विसभन्न रंग की

कटककया और सभन्न-सभन्न ध्िसन उत्पन्न करने िािी घंकटयाुँ आकद।

िाण्टेिरी पद्धसत सििरं के सिए बहुत उपयोगी है। इिकी उपयोसगता पर प्रकाि डािते हुए

भारतीय सिक्षाविद् सगजुभाई ने अपनी पुस्तक बाल शशिण जैिा िैं ििझ पाय, िें सिखा है कक

अगर मुझकों ककसी ने पहले ही सावधान कर कदया होर्ा कक माण्टेसरी नामक पुस्र्क पढ़ने से

Page 8: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2162

मेरी जीवनधारा ही बदल जाएगी, जीवन एक नए प्रकाश से जगमगा उठेगा रर मुझको एक नई

क्ांशर्कारी दृवष्ट प्राप्त हो जाएगी र्ो मेरे जैसा एक वकील इस पुस्र्क को अपने हार्थ में र्थामर्ा

या नही,ं यह एक ववचारणीय प्रश्न है....1।

शशिकः- सििु सिक्षा के सिए िाण्टेिरी ने सिर्व िात ृसिजक्षकारं की सनयुवक्त करने के पक्ष िें

थी। इनका िानना था कक िकहिाएं पुरूर्ों की अपेक्षा असधक िंिेदनिीि होती हैं। सिजक्षकारं िे

िाण्टेिरी इतनी अपेक्षा करती हैं कक िे बच्चों के स्िाभाविक विकाि िें िीखने िें िदद करे न

कक बाधा डािे। िे सिक्षक को िागवदिवक एिं पथ प्रदिवक के रूप िें देखती हैं।

शशिार्थीः- िाण्टेिरी अन्य आधसुनक सिक्षािाजियों की तरह बािकेजन्रत सिक्षा की ििथवक हैं।

उनके अनुिार सििुरं को उिकी रूसच, योग्यता, क्षिता तथा रूझान के अनुिार िीखने के पूणव

एिं स्ितंत्र अििर देने चाकहए। अपनी पुस्तक ्रसहणिीि िन िें डा. िाण्टेिरी सिखती हैं कक

बच्चे का कदमाग, ज्ञान ग्रहण करने में समर्थत होर्ा है। बच्चों में स्वंय सीखने की िमर्ा होर्ी

है....2।

शशिालयः- डा. िाण्टेिरी सिक्षािय, सिक्षाथी एिं सिक्षण विसध के प्रत्यय पर असधक

िंिेदनिीि हैं। उन्होंने िाण्टेिरी स्कूि का अपना स्िरूप सनजश्चत ककया जजिे बािगहृ की िंज्ञा

दी गयी। उन्होंने वियमाािय को घर की तरह बच्चों की आिश्यकतानुिार बनाने का िुझाि कदया,

जजििें दैसनक कायों के सिए छोटे कक्ष ि सिक्षण कायव के सिए बडा कक्षा-कक्ष होने चाकहए।

वियमाािय िें खेिने के सिए खिुा िैदान तथा बागिानी के सिए छोटा िा बगीचा भी होना

चाकहए।

रमेश दबे- शगजुभाई के शैक्षिक ववचार एवं प्रयोग पृं.सं-32

डा. मैररया माण्टेसरी- ग्रहणशील मन पृं.ि-ं3

Page 9: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2163

अनशुासनः- िाण्टेिरी दिनात्िक अनुिािन का सनरे्ध करती हैं तथा ताककव क अनुिािन का

ििथवन करती हैं। िे इिकी नींि सििु सिक्षा काि िें ही रख देना चाहती थीं। िे चाहती थीं कक

िाण्टेिरी स्कूिों िें सििुरं को ऐिा पयाविरण कदया जाए कक िे कुछ भी करने के सिए पूणव

स्ितंत्र होते हुए िही करें जो अनुिािन की िाुँग हो।

वर्तमान पररपे्रक्ष्य में उपादेयर्ा

फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी के िैजक्षक विचारों का अनुिीिन करने िे यह तथ्य उभरकर िािने आता

है कक दोनों सिक्षा दािवसनकों ने सििु सिक्षा के जजि प्रत्यय पर विचार ककया है िह आज ही नही ं

अवपतु आने िािे िियों िें भी प्रािंसगक होगा। बडे व्यवक्तयों के िाथ बाते कर उनके िनोभािों

के अनुरूप िागवदिवन करना िरि है िेककन बाििन का पारखी होना अत्यन्त ककठन। सिि ुका

िन अत्यंत कोिि तथा उिकी ज्ञानेजन्रयाुँ, किजेन्रयाुँ तथा िजस्तष्क विकाि के प्राथसिक

िोपान पर होते हैं। ऐिे ििय िें उन्हें फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी की सििु सिक्षा के िाध्यि िे

विकाि का ििोत्ति िागव प्रिस्त ककया जा िकता है। पेि है उनके िैजक्षक विचारों की आज के

ििय िें प्रािंसगकता-

1. ज्ञानेक्षन्िय ववकास का अवसर उपलब्ध कराने में-

आज िनोविज्ञान का युग है। सिक्षा बािक के सिए है, न कक बािक सिक्षा के सिए। फ्रोबेि एि ं

िाण्टेिरी की बािकेजन्रत सिक्षा प्रणािी के द्वारा असभभािकों के िन िें यह बात भरी जा िकती

है। बच्चा यकद कुछ करना चाहता है, कुछ खेिना चाहता है तो भी असभभािकों की पिंद हाबी

होती है। ऐिे िें बािक का िानसिक विकाि अिरूद्ध हो िकता है। उििें नकारात्िक ्रसजन्थयाुँ

विकसित हो िकती हैं। अतः बाि िनोविज्ञान के अनुिार जब बच्चों के िैजक्षक उन्नयन िें पूरे

विश्व के िनोिैज्ञासनक एिं सिक्षािािी िंिग्न हैं तो फ्रोबेि एि ं िाण्टेिरी की िनोिैज्ञासनक

Page 10: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2164

आधार पर दी गई सििु सिक्षा, िीि का पत्थर िावबत हो िकती है। बच्चे पैदा होते ही

इिेक्रासनक उपकरणों िें अपना जीिन वबताने िगते हैं। उनिे उनका बचपन छीन सिया जाता

है। र्ितः न तो उनकी किजेन्रयों एिं ज्ञानेजन्रयों का उसचत विकाि हो पाता है और न ही

िानसिक एिं िािाजजक विकाि के िाथ-िाथ िजृनात्िक सचतंन की क्षिता। कई बार तो कई

बच्चों का िंतुसित विकाि न होने िे उनका व्यवक्तत्ि कंुकठत हो जाता है। ििाज िें िंचासित

माण्टेसरी ववद्यालय तथा प्ले व-े मेर्थड िािे वियमाािय बच्चों को अच्छा बनाने का पूणव अििर

दे रहे हैं जो फ्रोबेि एि ं िाण्टेिरी की िनोिैज्ञासनक आधारीय सिक्षण का ज्ििंत प्रिाण है।

बचपन िें बच्चों की रूसच खेि िें असधक होती है। िे खेि के पीछे खाना-पीना भी भूि जाते हैं।

अतः माण्टेसरी पद्धशर् एिं ककण्डनगाटतन पद्धशर् द्वारा खेि के िाध्यि िे आनंददायी सिक्षा

दीघवकासिक एिं प्रभािपूणव होगी। चूकंक इन विसधयों िें बािक स्िंय करके िीखने के सिए उत्िुक

होता है जजििें उिकी ििस्त किजेन्रयाुँ-ज्ञानेजन्रयाुँ ि बुवद्ध िभी कुछ िकिय होती है। अतः

िीखी गयी विर्यिस्तु असधक प्रभाििािी होती है।

2. ववद्यालयी पररवेश को उत्तम बनाने में- आज की सिक्षा प्रणािी का िबिे बडा दोर् यह

है कक िंिाधनों की प्रचरुता के बािजूद सिक्षासथवयों की दिा एिं कदिा िें िह िांसछत पररितवन

नहीं हो पा रहा है जजिकी ििय के अनुरूप जरूरत है। इि प्रश्न पर विचार करने िे यह स्पि

हो जाता है कक इििें सिक्षक एिं सिक्षाियी पररिेि एिं दोर्िुक्त पाठ्यिि किोिेि िात्रा िें

दोर्ी है। सिक्षक भी अपने दासयत्ि िे च्युत हो गया है तथा श्यािपट्ट पर चगेंठ देना अथिा दो

चार िाक्य बोिकर सिक्षण कायव िम्पन्न कर देना अपना धिव ििझने िगा है। कई-कई सिक्षक

तो अपने छात्रों को पहचान भी नहीं पाते। रूसच, योग्यता, क्षिता तथा रूझान के अनुिार सिक्षा

देना तो दरू की बात है। िािा का िातािरण इतना गंदा है कक िाुँि िेना दभूर हो जाता है,

बैठकर पढ़ने की बात तो दरू की बात है। कहीं-कहीं सिक्षाियों िें तो िूअर, कुते्त अथिा अन्य

Page 11: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2165

घुिन्तू ििेिी अपना अड्डा जिाये रहते हैं। ऐिे िें िािा को प्रदरू्णयुक्त िातािरण सििुरं को

िीखने के सिए आकवर्वत नहीं कर पाते। सिक्षकों का कठोर व्यिहार भी िािा के उन्नयन िें

बाधक बन जाता है। अतः फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी के िैजक्षक विचारों को अपनाकर आज की इन

तिाि सनसित्त ििस्यारं का सनदान ककया जा िकता है। सििुिािा जब तक िार्-िुधरी एिं

स्िच्छ नहीं होगी तथा सिक्षकों का व्यिहार िदृिु नहीं होगा तब तक सिक्षा िें ककिी गुणात्िक

िुधार की अपीि नहीं की जा िकती। आज की िैजक्षक ििस्यारं ने िीर्व नेततृ्ि को भी सचसंतत

कर कदया है। प्रधानिंत्री जी कदयािी िे स्िच्छता एिं िर्ाई असभयान चिाकर इि ििस्या का

ििाधान करना चाहते हैं। फ्रोबेि एिं िाण्टेिरी की िात ृसिजक्षकारं का भाि स्थानान्तररत कर

तथा वियमाािय िें पररिार जैिा िातािरण िजृजत कर (जहाुँ पर बच्चे स्िच्छ भाि िे अपनों के

िाथ उठना, बैठना, खान, पीना तथा िीखना आकद करते हैं।) सििु सिक्षा एिं प्राथसिक सिक्षा िें

उच्चति असधगि स्तर को प्राप्त ककया जा िकता है।

3. सामाक्षजक समरसर्ा लान ेमें- वियमाािय ििाज के उदे्दश्यों की प्रासप्त का िाधन है जहाुँ

पर बच्चे ििाज के िान्य आदिों, रीसत-ररिाजों एिं परम्परारं िें दक्ष होकर कुिि नागररक

बनते हैं। आज कुछ सिक्षकों तथा कुछ असभभािकों की िजह िे वियमाािय राजनीसत का अड्डा

बन गये हैं। जहाुँ झगडा, िडाई तथा िुकदिों की भी नौबत बन जाती है। सिक्षकों के उपेक्षापणूव

रिैये िे बच्चों िें झोभ पैदा हो जाता है। बािगहृ जैिा िाहौि प्रदान कर इि िंदभव िें आधसुनक

िैजक्षक सचतंक सगजुभाई अपनी पुस्तक ऐसे हो शशिक िें कहते हैं कक शशिक का

व्यवहार ऐसे होना चाकहए जहााँ ववद्यार्थी आयें, भागे न, जाने का नाम न लें...1।

4. आत्मशनभतरर्ा का ववकासः-बच्चे बडे हो जाते हैं िेककन उनके अदंर अपना काि स्िंय

करने की आदत विकसित नहीं हो पाती। असधकतर बच्चे अपना दैसनक कायव, स्कूि की िर्ाई,

र्नीचर को ठीक करना, हाथ-िुुँह धोना, कंघी करना आकद नहीं कर पाते। नाखनू बडे-बडे हो

Page 12: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2166

जाते हं। डा. िाण्टेिरी की बािगहृ कयापना द्वारा बच्चों िें अपना कायव स्िंय करने की आदत

विकसित की जाती है। ककण्डरगाटवन प्रणािी िें भी बच्चों को स्िकिया के सिए पे्रररत कर

आत्िसनरीक्षण का ििािेि ककया जाता है। इन दोनों सिक्षा दािवसनकों के सिद्धान्तों द्वारा आज के

बच्चों िें अपना कायव स्िंय करके उन्हें आत्िसनभवर बनने की सिक्षा दी जा िकती है।

सगजुभाई- ऐिे हों सिक्षक प.ृिं-31

5. स्वाभाववक ववकास पर बलः-आज के इि िनोिैज्ञासनक युग िें बािकेजन्रत सिक्षा की

ििस्यारं को िुिझाने िें फ्रोबेि की ककण्डरगाटवन एिं िाण्टेिरी की बािगहृ सिक्षा प्रणािी

अत्यन्त उपयोगी है। इि सिक्षण पद्धसत िें बच्चा को बच्चा ििझकर ही सिक्षा दी जाती है न

कक प्रौढ़। िभी को अपनी रूसच, योग्यता, क्षिता एिं रूझान के अनुिार िीखने के स्ितंत्र अििर

होते हैं

6. स्वच्छ एवं सुंदर पररवेश के शनमातण में- ककण्डरगाटवन स्कूिों िें वियमााियी पररिेि

िार् िुथरा ि िुंदर होता है। सिजक्षकारं का व्यिहार िाततृुयाय होता है। कियात्िक प्रिवृत्त के

प्रकािन के सिए विसभन्न तरह के उपहार होते हैं। इिी तरह का िातािरण िाण्टेिरी के बािगहृ

िें भी होता है। उन दोनों िैजक्षक पररिेिों का स्थानान्तरण कर आज के प्रदवूर्त पररिेि िािे

वियमााियों को ठीक ककया जा िकता है। वियमाािय ि गाुँि तथा ििाज आकद स्िच्छ होगा तो

स्िच्छ भारत जैिे असभयान चिाने की आिश्यकता ही नहीं िहिूि होगी।

7. घर जैसा वार्ावरण सजृन करने में- छोटे बच्चे भािनात्िक रूप िे अपनी िाता िे

असधक िगाि रखते हैं। बािगहृ तथा ककण्डरगाटवन दोनों िें िात-ृसिजक्षकारं की सनयुवक्त भी

इिीसिए की जाती है कक िाताएुँ बच्चों के कोिि िन का एहिाि पुरूर् सिक्षकों की अपेक्षा िीघ्र

कर िेती हैं। आज की सििु सिक्षा प्रणािी िें िात ृ सिजक्षकारं को असधकासधक िहत्ि देकर

Page 13: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2167

सििुरं का वियमााियी पररिेि जहाुँ एक तरर् घर जैिा बनाया जा िकता है िहीं दिूरी तरर्

उन्हें िैजक्षक अििरों का िाभ उठाने का भी िौका सिि िकता है।

8. मनोवजै्ञाशनक िणों का अशधकर्म उपयोग करने में- डा. िैररया िाण्टेिरी िानती हैं

कक कभी-कभी बच्चे िें अचानक कुछ जानने की इच्छा प्रकट होती है। इिे िनोिैज्ञासनक क्षण

कहते हैं। ितविान सिक्षा प्रणािी िें सििुरं को इि तरह के अििर देकर उन्हें असधकासधक

िीखने के सिए पे्रररत ककया जा िकता है जजििे िे एक कुिि सचककत्िक, विसधिेत्ता ि

इंजीसनयर बन िकते हैं।

10. संर्शुलर् व्यवक्तत्व के ववकास में- िाण्टेिरी पद्धसत तथा ककण्डरगाटवन प्रणािी द्वारा

सिक्षा प्रदान कर सिक्षा की ििस्यारं यथा अपराधी बािक, ििस्यात्िक बािक, वपछडेपन

आकद का सनदान ककया जा िकता है। इि सिक्षा प्रणािी के द्वारा बच्चों की रूसच, योग्यता,

क्षिता तथा रूझान के द्वारा उनकी पिंद के विर्यों तथा कियारं को िीखने के असधक अििर

सििते हैं। जजििे उनके व्यवक्तत्ि का िंतुसित विकाि होता है। िाण्टेिरी इि विर्य पर इटिी

के टूरीन गाुँि िें सिक्षािाजियों के 1898 के िम्िेिन िें नैसतक सिक्षा पर बोिते हुए खुद

स्िीकार करती हैं कक कई बालक ऐसे होरे् हैं कक जो हमारे उलांहने रर डांट को न मानरे् हुए

किा के अनुशासन रर शनयमों के ववपरीर् आचरण कररे् हैं...1।

11. अनानशुासन संबंधी समस्याओं का समाधानः- िाण्टेिरी पद्धसत एिं ककण्डरगाटवन

पद्धसत िें बच्चों को जो कुछ भी िीखाया जाता है िह उनकी रूसच, योग्यता, क्षिता तथा रूझान

के अनुिार खेि के िाध्यि िे। उनके अंदर स्िाििोकन, स्िापरीक्षण करके िीखने की परम्परा

का विकाि ककया जाता है। बच्चे स्िंय आत्िानिुािन की तरर् बढ़ते हैं, जजििे अनानुिािन

िंबंधी ििस्या का अपने आप ििाधान हो जाता है। आज के ििय िें सिक्षाियों िें इि प्रकार

के सिक्षा पद्धसत की बडी जरूरत हैं।

Page 14: Abstract. LAXMI YADAV.pdfSRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169) FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII Page 2158 5. इसतह ए भ ग 6. व ज ञ न ए गजणत तथ

SRJSEL/BIMONTHLY/ LAXMI SHANKAR YADAV (2155-2169)

FEB - MAR, 2015, VOL-II/VIII www.srjis.com Page 2168

सगजुभाई- ऐिे हो सिक्षक प.ृिं-13

संदभत ग्रंर्थ सूची

पाण्डेय डा. राम शकल- ववश्व के श्रषे्ठ शशिाशास्त्र, अग्रवाल पक्षब्लकेशन्स, 28/115, ज्योशर् ब्लाक

संजय प्लेस, आगरा-2 ।

पाण्डेय डा. राम शकल- शशिा के शसद्धान्र्, अग्रवाल पक्षब्लकेशन्स, 28/115, ज्योशर् ब्लाक,

संजय प्लेस आगरा-2 ।

चौबे डा. सरयू प्रसाद एण्ड अक्षखलेश भवदीय प्रकाशन, श्रृगंार हाट अयोध्या, फैजाबाद।

फ्रोबेल- एजुकेशन बाई डेवलपमेंट।

शगजुभाई- ऐसे हो शशिक, संस्कृशर् साकहत्य 30/35 ए, शाप न-ं2, ववश्वास नगर शाहदरा,

कदल्ली।

डा. मैररया माण्टेसरी- ग्रहणशील मन, ग्रंर्थ शशल्पी(इक्षण्डया) प्राइवेट शलशमटेड, बी-7 सुभाष

चौक लक्ष्मी नगर, कदल्ली

रमेश दबे- शगजुभाई बधेका कै शैक्षिक ववचार एवं प्रयोग, रा0अ0शश0प0 नई कदल्ली।

त्यागी एण्ड पाठक-शशिा के सामान्य शसद्धान्र्, ववनोद पुस्र्क मंकदर, आगरा।

प्रो0 रमन वबहारी लाल शशिा के दाशतशनक एवं समाजशास्त्रीय पषृ्ठभूशम. रस्र्ोगी पक्षब्लकेशन्स,

शशवाजी रोड, मेरठ- 250002


Recommended