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  • नारायण का रह यदेवद पटनायक

  • नारायण का रह यजो मरता ह वह पूनज म लेता ह

    आकित 2.1 नारायण का पुनः जागना

    आकित 2.1 म नारायण को जागते ए िदखाया गया ह। यह वह ण ह, जब िव अ त व म आता ह।िजस तरह हमार सोने पर हमार िलए दुिनया का अ त व नह होता, ठीक उसी तरह नारायण क सोने पर ांडका अ त व नह होता। नारायण भगवा ह। उनक गहरी िन ा िव क िवलोपन का तीक ह। सोने से पहलेनारायण ज र जागे ह गे और िव अ त व म आया होगा। इस तरह आकित 2.1 नारायण क जागने और सोनेक अव था म िव क पुनसृजन और िवलोपन का तीक ह। िव क सृजन और िवलोपन का च चलता ह।

    ीक िनवासी पुनज म म िव ास नह करते थे और न ही मुसलमान व ईसाई करते ह। इनक िलए वतमान जीवनही सबकछ ह। यही कारण ह िक ीक िनवासी नायक बनने म िव ास करते थे। ईसाइय का िव ास ह िक ई रउनक र ा करगा और मुसलमान का मानना ह िक खुदा क सामने समपण करने से उनका भला होगा। लेिकनिहदु क साथ ऐसी बात नह ह। उनक िलए वतमान जीवन कई ज म म से एक ह। वतमान दुिनया उन कईदुिनया म से एक ह, जो अ त व म आई और ख म हो गई।

    नारायण ीरसागर पर सोते ह। इस सागर का कोई तट नह ह। यह दूध से बना ह। इसम लहर नह उठत । जबनारायण जागगे तो ीर सागर से सभी चीज िनकलकर बाहर आ जाएँगी, ठीक उसी तरह िजस तरह दूध मथने सेम खन िनकल आता ह। इस तरह ीरसागर संभावना का तीक ह। जब नारायण सोते ह तो िव अ त वहीन होजाता ह। उसका कोई प मौजूद नह होता।

    िजस नाग पर नारायण सो रह ह, उसे शेष कहते ह। शेष का अथ ह बाक बचा आ। सबकछ न होने पर भी

  • जो बचा रहता ह वह शेष कहलाता ह। कछ लोग का कहना ह िक शेषनाग समय क तीक ह। कोई भी नहजानता िक कोई कब गहरी िन ा म होता ह। कोई कसे जान सकता ह िक पीछ या छटा आ ह। समय गितमान ह,लेिकन नारायण क िसर पर छतरी काढ़ ए कडिलत शेषनाग थरता क तीक ह। नारायण शेषनाग क कडली परसोते ह। दूसर श द म, नारायण जब सोते ह तो समय ठहर जाता ह। यह

    आकित 2.2 ा का पुनज मकोई नह जानता िक पहले या होता ह पहले शेषनाग थर होते ह या पहले नारायण सोते ह, या सबकछ एक

    साथ घिटत होता ह।शेषनाग को आिद शेष या अनंत शेष कहा जाता ह। यह नाम हमारा यान इस त य क ओर ले जाता ह िक जब

    नारायण िन ा म होते ह, तब भी िव का अ त व उनक इद-िगद बना रहता ह। लेिकन इसक बार म िकसी कोमालूम नह होता, इसिलए यह मान िलया जाता ह िक मनु य क िन ा क अव था म िव का अ त व नह होता।वेदांत क अनुसार, पयवे क क िबना पयवे ण नह होता। नारायण पयवे क ह। जब वे गहरी िन ा म होते ह तोिकसी भी चीज का अवलोकन नह करते। वे सपना नह देखते। उ ह यथाथ िव या व नल िव का कोई भाननह होता। पयवे क क िबना पयवे ण संभव नह ह। इसिलए, नारायण जब सो जाते ह तो िव का अ त व नहहोता। यह िव का अंत ह।

    इस बात को बेहतर तरीक से समझने क िलए अपने आप से यह सवाल पूछना चािहए जब हम गहरी िन ा म

  • होते ह तो या िव का अ त व बना रहता ह? हाँ, बना रहता ह। लेिकन या हम उसका अनुभव करते ह? नह ,हम अनुभव नह करते। इस तरह, दुिनया तो बनी रहती ह, लेिकन हमारी नह । हमार िबना हमारी दुिनया काअ त व नह होता। पयवे क क िबना पयवे ण नह होता।

    आकित 2.2 म नारायण का जागना या पुनः जागना िदखाया गया ह। यह सृजन ह। यहाँ िच कार यह क पनाकर रहा ह िक िजस ण हम िन ा से जगते ह, चैत य तो हो जाते ह, लेिकन िब तर से नह उठ होते ह। जबनारायण क आँख खुलती ह, उनक इि याँ इद-िगद क दुिनया क ित संवेदनशील हो जाती ह। आँख, कान, नाक,िज ा और वचा क ज रए उ ह ांड क खबर िमलने लगती ह। जो कछ अनुभव िकया जाता ह, उसे पहचानाऔर वग कत िकया जाता ह। यहाँ तक मरण-श से उनका आकलन िकया जाता ह। चेतना, जो कोर कागजक तरह थी, अब मुड़ने-तुड़ने लगती ह। दुिनया िवशु नह रह पाती, उसम रग, आकार और मू य उभर आते ह।इनम से हम कछ

    आकित 2.3 ी-देवी, भू-देवी और िशव का प रवारचीज को पसंद करते ह और कछ चीज को नह । इस मुड़ी-तुड़ी चेतना, जो नारायण क तरह शु नह होती,

    क क पना ा क प म क जाती ह, जो नारायण क नािभ से िनकले कमल क फल पर िवराजमान रहते ह।गभनाल क तरफ नािभ से वंृत क साथ िनकला ा का कमल बीजांडासन क तरह ह, जो माँ क गभ म

  • अज मे ब े का पोषण करता ह। ऐसे म सवाल उठाता ह िक सजक आिखर ह कौन? या नारायण ने ा कासृजन िकया? या पयवे ण पयवे क का सृजन करता ह? या पयवे क पयवे ण का सृजन करता ह। या हमअपने इद-िगद क दुिनया क अंग ह या हमने दुिनया का िनमाण िकया ह? अ याय 7 म ा क बार म िव तार सेवणन िकया गया ह।

    नारायण का जागना उ सव का ण होता ह। यह िव क सृजन का तीक ह। हमारी भी दुिनया तभी अ त वम आती ह जब हम न द से जागते ह और अपनी दुिनया को ठीक सामने पाते ह। नारायण क जागने पर वग कप रयाँ फल क वषा करती ह। अकादिमक नज रए से इस बात को यान म रखना िदलच प होगा िक प रय कक पना भारत म तभी क गई जब सोलहव सदी म भारत यूरोपीय सं कित क संपक म आया।

    आकित 2.1 म नारायण क चरण क पास उनक प नी, समृ क देवी ल मी बैठी ई ह। आकित 2.3 मल मी को और अिधक िव तार से िदखाया गया ह। ल मी मानव जाित का पोषण करती ह। उ ह गाय क प मिचि त िकया गया ह। वे गो-माता ह, िजनक भीतर पूरी दुिनया समाई ई ह। नारायण वाला ह, इसिलए जब वेजागते ह तो गोपाल कहलाते ह। गाय िव ह और िव जब भी संकट म होता ह, नारायण उसे बचाने क िलएदौड़ पड़ते ह। जा अव था म नारायण को िव णु कहते ह। िव णु अिभभावक, संर क और र क ह।

    इस आकित म िशव भी िदख रह ह, जो िव क तरफ से आँख मँूदकर उसका संहार कर देते ह, लेिकन यहाँिदखाए गए िशव संहारक नह ह। उनक आँख खुली ई ह और उनक साथ उनक दो पु छह िसर वाले काितकय

  • आकित 2.4 अलौिकक संगीतकारऔर हाथी क िसरवाले गणेश ह। काितकय जहाँ भौितकता क तीक ह, वह गणेश बौ कता क। इस तरह,

    नारायण का जागना और िव का सृजन होना दोन िशव से संब ह। तप वी िशव जब आँख खोलते ह, शादीकरते ह और िपता बनते ह तो शंकर कहलाते ह। अ याय 4 म इसका िव तार से वणन िकया गया ह।

    आकित 2.1 म नारायण क िसर और पैर क तरफ दो य वीणा िलये ए ह। आकित 2.4 म इसे और

  • अिधक िव तार से िदखाया गया ह। पैर क तरफ जो य वीणा िलये ए ह, उसे नारद कहते ह और वीणा कसाथ िसर क तरफ खड़ य को तंुब कहते ह, िजसका िसर घोड़ का ह। नारद ऋिष ह और तंुब विगकसंगीतकार िक र। दोन ित ं ी संगीतकार ह। वे कई पौरािणक कथा म ायः एक ही लड़क से शादी करनेक िलए होड़ लगाते ह और मदद क िलए िव णु क पास जाते ह। िव णु मदद ज र करते ह, लेिकन इस तरह सेिक ल मी क अवतार वह क या उनसे से ही िववाह कर लेती ह। नारद और तंुब भू-देवी को पाने क कोिशशकरते ह, लेिकन सफल नह होते। वे िकसी इनाम क तरह उ ह पाना चाहते ह, लेिकन उनक पास यो यता नहहोती। िव णु उनसे ेम, उनक आराधना करते ह। वे उनक र क भी ह, इसिलए वे लायक वर ह।

    नारद का सृजन िव णु क म त क से आ ह। अपने ज म क समय नारद क िच दुिनयावी चीज म नह थी,इसिलए उ ह ने सभी ािणय को इस बात क िलए ो सािहत िकया िक वे न तो िववाह कर और न ही संतानउ प कर। इसक प रणाम व प दुिनया जब आगे नह बढ़ी तो ा किपत हो गए। उ ह ने नारद को ाप िदयािक वे िव णु क एक बार िफर सोने तक दुिनया भर म बेचैनी से घूमगे। इसिलए, बेचैन नारद कई सम या कजड़ ह (जैसा िक अ याय 1 म दी ई कहानी म बताया गया ह)। उ ह लोग को भड़काने म आनंद आता ह। वेिनरतर लोग क तुलना करते रहते ह। इस तरह नाराजगी फलाते ह और झगड़ा लगाते ह। नारद मन म ई या औरअसुर ा का भाव पैदा करते ह।

    नारायण क िसर क तरफ हनुमान और पाँव क तरफ ग ण हाथ जोड़ बैठ ह। आकित 2.5 म इसे िव तार सेिदखाया गया ह। दुिनया म जब भी बेचैनी, असुर ा और ई या का बोलबाला होता ह, िव णु थित को सँभालते ह।ग ण उनक वाहक क प म काम करते ह और उ ह संकट त थल पर ले जाते ह।

  • आकृ त 2.5 संर क देवताग ण और साँप एक-दूसर क वाभािवक श ु ह। ग ण क उप थित म साँप थर नह रह सकता। वह अपनी

    र ा क िलए सीधा होकर वहाँ से िखसक जाता ह। इस तरह, ग ण दुिनया को गितमान होने क िलए े रत करते ह।उड़ते ए ग ण और थर शेषनाग क साथ िव णु का जुड़ाव िन ा और जा अव था म चेतना का तीक ह।

    कभी-कभी थित को ठीक करने क िलए िव णु मानव प धारण कर लेते ह। अपने एक अवतार म वे अयो याक राजा राम थे (अ याय 6 म इस बार म अिधक योरा िदया गया ह)। हनुमान इस अवतार म ही ीराम क सेवकबने थे। उ ह ने ीराम क प नी सीता को खोजने म मदद क थी। हनुमान को संकटमोचन कहा जाता ह। उनकउप थित का अथ यह ह िक जब दुिनया न द से जागती ह तो संकट भी शु हो जाता ह, लेिकन संकट पैदा

  • करनेवाला िदमाग उसका समाधान भी सुझा सकता ह।जब नारायण िव णु बनने क िलए जागते ह तो िदमाग प रभाषा , वग करण और आकलन क ज रए दुिनया

    ( ा) को संगिठत करने लगता ह। िनवतन (िशव) भौितक मता (काितकय) और बौ क मता (गणेश) कइ तेमाल क ज रए भागीदारी क िलए ो सािहत करता ह। दुिनया को भोगने और उसे अपनी मु ी म करने कइ छा का तीक तंुब ह। इसक अित र , बेचैनी और ई या (नारद) जैसी नकारा मक भावनाएँ भी होती ह।लेिकन जब िदमाग ग ण क तरह उड़गा और हनुमान क तरह अनुशािसत होगा तो इन सम या को सुलझायाजा सकता ह।

    इस तरह, आकित 2.1 तीक क मामले म समृ ह और सृजन का यास करती ह। िहदू धम ंथ म बार-बारकहा गया ह िक सृजन जाग कता का नतीजा ह। चीज तभी पैदा होती ह जब हम उनक ित सचेत होते ह। इसतरह, सृजन व तुिन िनमाण नह ब क य -सापे अनुभूित ह। चीज

  • आकित 2.6 बरगद क प े पर िशशुका सृजन हर पल होता ह और हर सृजन क साथ कछ-न-कछ न होता ह। सृजन लहर क तरह होता ह,

    इसिलए संहार क क पना तूफानी सागर क तरह क जाती ह, जहाँ िवचार ढह जाते ह और नई चीज बाहर आनेक िलए संघष करती ह।

  • आकित 2.6 म एक नवजात िशशु को बरगद क प े पर िदखाया गया ह। एक बार माकडय नामक ऋिष कोलय यानी संसार क अंत क झलक िदखाई गई थी। लय क दौरान पृ वी को लीलने क िलए मूसलधार वषा हो

    रही थी और ऊची-ऊची लहर उठ रही थ । अंततः सबकछ डब गया। जल, खासतौर पर सागर, आकारहीनता कातीक ह। यह अंत का तीक ह। कोई य कला म शू यता क क पना कसे कर सकता ह? वह सागर क प

    म ही इसक क पना कर सकता ह। तूफानी सागर लय क ि या दरशाता ह, जबिक शांत सागर पुनज म कपहले का ण दरशाता ह।

    समा होती दुिनया क य ने माकडय क मन म भय और िनराशा पैदा कर दी। तभी उ ह ने गड़गड़ाहट कसाथ एक सुखद आवाज सुनी। वे पीछ क तरफ पलट तो उ ह ने बरगद क प े पर एक िशशु को देखा, जो लयक लहर पर झूल रहा था। िशशु पुनज म या जीवन क नवीकरण का तीक ह। माकडय ने जब िशशु को देखा तोमहसूस िकया िक िजसे दुिनया का अंत माना जाता ह, वह महज एक चरण ह, ि या का एक अंग ह। दरअसल,लय क बाद नए जीवन क शु आत होती ह। यह अवधारणा ीक और बाइिबल क िव - ि से पूरी तरह

    िभ ह। ीक और बाइिबल क अवधारणा यह ह िक मृ यु पूणिवराम ह। दूसरी तरफ िहदू िव - ि यह ह िकमृ यु अ िवराम ह; यहाँ पूणिवराम नाम क कोई चीज नह होती।

    बरगद क प े पर िशशु का पड़ा होना अपने आप म मह वपूण ह। बरगद का पेड़ अमर माना जाता ह; यह उसचीज का तीक ह, िजसे न नह िकया जा सकता। वह कौन सी चीज ह, िजसे न नह िकया जा सकता, उससमय भी नह जब सभी चीज िवघिटत होकर आकारहीन हो जाती ह? वह चीज आ मा ह। इस तरह आ मा िशशुको पालने म झुलाती ह। माकडय से कहा जा

  • आकित 2.7 बाल नारायण अपने दाएँ पैर का अँगूठा चूसते एरहा ह िक अन र आ मा िवर भाव से संसार का न होना देख रही ह। आ मा जब खतरनाक लहर को

    उछालती ह तो यह रता लग सकती ह; लेिकन लहर जब शांत ह गी तो आ मा भी िव ाम क अव था म चलीजाएगी और सुकोमल िशशु क तरह उभरकर िफर सामने आएगी।

    बरगद का प ा कमल क फल क भीतर ह। यह कमल ा का कमल ह। यह तभी िखलता ह जब नारायणजागते ह। इस तरह, आकित 2.6 म मृ यु (जल) और पुनज म (प ा एवं फल) को एक साथ दरशाया गया ह।

    आकित 2.7 म िदखाए गए िशशु क दाएँ हाथ म बाँसुरी और बाएँ हाथ म दाएँ पैर का अँगूठा ह। भारतीय कलाम दायाँ पा आ मा और बु का तीक माना गया ह, य िक बायाँ पा पंिदत दय क कारण गित का

  • ितिनिध व करता ह, इसिलए वह पदाथ और मनोभाव का तीक ह। दाएँ अँगूठ को बाएँ हाथ से पकड़करभगवा आ या मकता को भौितकता से जोड़ रह ह, बौ कता को मनोभाव से जोड़ रह ह। साथ ही, बाँसुरी सेिनकलनेवाला संगीत जीवन क ित खूबसूरत नज रए को दरशाता ह। दुिनया का अ त व इसिलए ह िक आ मािजंदािदली से उसका आनंद उठा सक और अ वेषण कर सक। ई र का िशशु प सुकोमलता और भौितकनवीकरण क िवचार का तीक ह।

    िहदु क आ था क अनुसार, आ मा अमर ह और हमेशा मौजूद रहती ह, लेिकन उसका कोई आकार नहहोता। िफर कोई य कला म उसे कसे दरशाता ह? उस य क सामने आ मा का कोई-न-कोई प देने किसवाय दूसरा कोई िवक प नह होता, लेिकन कोई भी आकार अधूरा और ुिटपूण होगा। आमतौर पर आ मा कक पना पु ष क प म क जाती ह और आकित 2.6 एवं 2.7 म िशशु क प म क गई ह; लेिकन इन दोन

    प म खािमयाँ ह। बहरहाल, एक पूण स य को दरशाने क िलए हमार पास अपूण आकार का इ तेमाल करने कअलावा दूसरा कोई िवक प नह ह।

    आकित 2.8 एक कहानी पर आधा रत ह, जो हमारा यान आ मा क कित क तरफ ख चती ह। यह कहानीिव णुपुराण क ह और िपता-पु क बीच टकराव क बार म बताती ह। िपता, िजसका नाम िहर यकिशपु ह, कािव ास ह िक वह अमर ह। िहर यकिशपु को वरदान िमला आ ह िक उसे कोई भी मनु य, पशु, देवता, असुर,अ या श नह मार सकता। उसे न तो घर क बाहर और न घर क भीतर, न तो जमीन क ऊपर और न जमीनक भीतर, न तो िदन म और न रात म मारा जा सकता ह। चँूिक िहर यकिशपु अपने को अमर मानता ह, इसिलएवह अपने को भगवा समझता ह। वह लोग से अपनी पूजा करने को कहता ह। लेिकन उसका पु ाद अपनेिपता को मरणशील मानता ह। ाद इस बात पर जोर देता ह िक वह कवल नारायण क पूजा करगा, जोिनराकार, कालातीत और सव यापी ह।

  • आकित 2.8 िहर यकिशपु का वधउसक िपता ने पूछा, ‘‘यह नारायण कहाँ रहता ह?’’पु ने कहा, ‘‘हर जगह। यहाँ तक िक आपक महल क खंभ म भी।’’अपने पु को गलत सािबत करने क िलए िहर यकिशपु ने महल क एक खंभे को तोड़ िदया। हम पृ भूिम म

    बीचोबीच दो-फाड़ ए एक खंभे को देख सकते ह।उस खंभे से नृिसंह नाम का एक अनूठा ाणी िनकलता ह, िजसका आधा शरीर िसंह का और आधा शरीर मनु य

    का होता ह। उस ाणी को न तो पशु कहा जा सकता ह और न ही मनु य। वह सभी सीमा को तोड़करअसंभवता क े से बाहर आता ह और सामा य एवं असामा य क हमारी अवधारणा को चुनौती देता ह। नृिसंह

  • भगवा ह, नारायण का एक प ह। कहा जाता ह िक मनु य िजस बात क क पना तक नह कर सकता, वह बातई र क िदमाग म पहले से मौजूद होती ह। िहर यकिशपु ताकत क कारण अंधा हो जाता ह और यह मान बैठता हिक वह दुिनया का ओर-छोर जानता ह; लेिकन ई र असंभव को संभव बना देते ह। वे ऐसे ाणी क प म सामनेआते ह, िजसे िहर यकिशपु अ ाकितक मानता ह, य िक इस ाणी का अ त व ह ही नह । नृिसंह भगवा मानेजाते ह, लेिकन रा स क तरह भय पैदा कर देते ह। वे िपता और पु क िलए न तो भगवा ह और न रा स यादोन ह।

    यह ाणी, जो न तो मनु य ह और न ही पशु या शायद दोन ह,

  • आकित 2.9 ल मी क साथ नृिसंहिहर यकिशपु को ख चकर महल क देहरी पर लाता ह, जो न तो घर क भीतर ह और न बाहर। वहाँ गोधूिल

    वेला म, जो न तो िदन ह और न रात, वह िहर यकिशपु को अपनी गोद म रख लेता ह, जो न तो जमीन क भीतरह, न जमीन पर ह और न जमीन क ऊपर ह। िफर अपने नख से िहर यकिशपु क शरीर को चीर देता ह। नख न तोअ ह और न श । इस तरह, िहर यकिशपु, जो अपने को अमर मानता था, मारा गया। उसका अहकार चूर-चूरहो गया।

    ाद नारायण क आराधना करता ह, लेिकन इस िविच ाणी से भयभीत भी ह। यह िविच ाणी उसकिपता का खून पी जाता ह। आकित 2.9 म नृिसंह का अिधक सौ य प िदखाया गया ह। देवता को भय था िकअपने िहसक प म नृिसंह दुिनया का नाश कर दगे, इसिलए ल मी नृिसंह क सामने कट हो गई। वे उ ह शांतकरते ए याद िदलाती ह िक उनका काम उनक र ा करना ह। इस आकित म नृिसंह को ल मी क साथ, संर कको आि त क साथ, भगवा को देवी क साथ िदखाया गया ह। ाद और चार अ य देवता उनक आराधना कररह ह। ये चार देवता संभवतः वैिदक ान क चार ंथ का ितिनिध व करते ह या शायद सांसा रक जीवन क चारल य धम, अथ, काम एवं मो क तीक ह।

    िहर यकिशपु का वणन रा स क प म िकया जाता ह, लेिकन उसक पु ाद को असुर नह माना जाता।हालाँिक िपता-पु दोन असुर ह, लेिकन लोकि य धारणा क िवपरीत, सभी असुर रा स नह होते। िवचार औरयवहार िकसी को भी रा स बना सकते ह। िहर यकिशपु अहकारी ह और यह अहकार ताकत से पैदा होता ह।

    अहकार म िहर यकिशपु यह मान बैठता ह िक उसे सभी संभावना का ान ह, िक वह सबकछ जानता ह।लेिकन िव ा लोग जानते ह िक मानव-म त क क एक सीमा होती ह, इसिलए उसम ांड का अनंत ाननह समा सकता। नृिसंह क तरह, जो न तो यह ह और न ही वह ह या शायद दोन ह, दुिनया म ब त सी चीजअ वेषण का इतजार कर रही ह।

    नृिसंह कडली मार ए नाग पर बैठ ह। नाग थरता का तीक ह। चेतना क उप थित को समझने क िलए इसीथरता क ज रत होती ह। यहाँ

  • आकित 2.10 ीक ण से ान लेते अजुनभगवा देवी क साथ बैठ ए ह, िजसका िनिहताथ यह ह िक आ मा और भौितक त व एक साथ होते ह। उनक

    पीछ टटा आ खंभा ह, जो भौितक त व और आ मा, हमार शरीर और हमारी आ मा क बीच िवभाजन का तीकह।

    आकित 2.10 म भगव ीता सुनाए जाने से पहले क य क क पना क गई ह। भगव ीता िहदु क सबसेलोकि य धम ंथ म से एक ह। भगव गीता का शा दक अथ ह भगवा का गीत। यहाँ भगवा ीक ण का प

  • धारण करते ह और महा धनुधर अजुन क सारिथ बनते ह। रण े म अजुन का सामना एक कठोर स ाई से होताह। वे राज और िस ांत को लेकर लड़ने वाले ह। इसिलए लड़ाई म उ ह अपने ही प रवार क लोग और िमको मारना होगा। और भगवा उ ह ऐसा करने क िलए कह रह ह। लेिकन अजुन ऐसा कसे कर सकते ह? वे यअपने ही लोग को मारगे? अजुन लड़ने से मना कर देते ह। वे मागदशन क िलए ीक ण क तरफ मुड़ते ह।जवाब म ीक ण उनसे जो कछ कहते ह, उससे उनक ानच ुखुल जाते ह।

    क ण अजुन को दुिनया क कित क बार म बताते ह। वे कहते ह िक आ मा अन र ह और पदाथ म हमेशाप रवतन होता रहता ह। यानी ज म और मृ यु इस दुिनया क स ाई ह। ाणी पैदा होने क िलए ही मरता ह। िफर,जीवन का उ े य या ह? ‘गीता’ म कहा गया ह िक पदाथ का अ त व हमारा यान आ मा क ओर ख चता ह।वह हम जीवन-मरण क अका य और अप रवतनशील िस ांत से अवगत कराता ह। इसक अनुभूित क िलए हमजीवन और समाज म अपना रा ता बनाना पड़ता ह। हम समाज क सद य क प म अपना काम करना होगा,अपने दािय व का िनवाह करना होगा, िजसे हम सही समझते ह उसक िलए लड़ना होगा अैर ांड क ा कसामने समपण करना होगा। जीवन जीने क िलए ह, भागीदारी करने क िलए ह। इसका िवक प पलायन नह ह।हम बताया जाता ह िक इ छा से उ प कम हम जीवन-मरण क िनरतर चलनेवाले पिहए से बाँध देता ह। पलायनसंभव ह, बशत य िदमाग को अनुशािसत कर, इ छा पर काबू पाए, िनिल भाव से कम कर, दािय व कािनवहण कर, िव पर वच व थािपत करने क लालसा से दूर रह और अहकार याग दे।

  • आकित 2.11 क ण का िवरा पीक ण से ान पाने क बाद अजुन उनसे अपना वा तिवक प िदखाने क िलए कहते ह, य िक यह िबलकल

    प ह िक क ण सामा य य नह ह। तब क ण उ ह अपना िव प िदखाते ह। इसे िवरा व प भी कहाजाता ह। इसका िच ण आकित 2.11 म िकया गया ह। अजुन ने देखा िक ीक ण म सार देवता, सार असुर, सारऋिष और सार तप वी समािहत ह। वे सूय और चं मा ह, तार और ह ह, नदी और अ न ह। वे अतीत, वतमानऔर भिव य ह। वे सव प ह, सविदशाएँ ह। वे संभव और असंभव दोन ह। अजुन देखते ह िक क ण जीवन काउ ास करते ह और मृ यु का िनः ास लेते ह। दरअसल पूरा िव उनक मँुह से िनकलता ह।

  • भगवा क बार म िहदु क यही धारणा ह। भगवा सबकछ ह। वे सभी चीज म ह। वे सभी चीज क बाहरह। वे नर और नारी दोन ह। हर चीज भगवा ह, चाह वह अनु ािणत हो या अनु ािणत न हो। मानव, अवमानवऔर परामानव सभी भगवा ह। भगवा िनराकार ह, िफर भी सभी प क ज रए अिभ य िकए जाते ह। हम जोकछ भी देखते ह, वह भगवा ह। हम िजस िकसी भी चीज क अनुभूित करते ह, वह भगवा ह। भगवा हमसेजुदा नह ह। वह हमार भीतर और हमार इद-िगद रहता ह। वह हर जगह मौजूद ह। हम पयवे क ह और पयवे णयानी जीवन का सृजन करते ह। इस तरह, हम अपने जीवन से अलग नह ह। हम और हमारा जीवन एक ही ह।अ ैत यही ह।

    हम भगवा भी ह लेिकन हमने अपने बार म स ाई क खोज नह क ह। हमारा अहकार, दुिनया क बार महमारी अधूरी समझ और हमारी मरण-श हम सीिमत बना देती ह। हम इन सबसे, वयं से मु होने कज रत ह। भगव गीता क अनुसार, यह तभी संभव ह जब हम जीवन िजएँ और दुिनया क मा य िनयम ,नैितकता तथा नीित शा से संघष कर।

    और हम यह जानना चािहए िक मरने पर हम िफर से ज म लगे। मरने क बाद हम दूसरा जीवन िमलेगा, अपनीआँख खोलने का दूसरा मौका िमलेगा और नई आँख से एक नई दुिनया देखने को िमलेगी। नई आँख क साथचीज , नए िनयम और नए पूव ह को देखने का नया तरीका भी हािसल होगा। एक बार िफर ा का कमलनारायण क नािभ से िनकलेगा, जैसा िक आकित 2.12 म िदखाया गया ह। एक बार िफर ल मी संर ण माँगगी।एक बार िफर नारद और तंुब ल मी को पाने क िलए झगड़गे और नारद ई या एवं वैर-भाव फलाएँगे। हमयव था को बनाए रखने क िलए ग ण पर उड़गे और हनुमान क तरह अपने को अनुशािसत करगे। नया उ ोधन

    होगा, नई िव यव था होगी, िजसे दु त करने क िलए दूसरा अवसर िमलेगा।

  • आकित 2.12 नारायण क आ िन ािहदू जीवन-मरण क िनरतर चलनेवाले च म िव ास करते ह। उनका मानना ह िक यह जीवन अंतहीन जीवन

    म से एक ह। इसिलए नायक बनने क कामना नह करनी चािहए और न ही अप रहायता क भावना होनी चािहए।चँूिक सभी चीज नज रए पर िनभर करती ह, इसिलए सभी चीज म िन तता का अभाव होता ह। सभी चीजसापे , संगाि त और अ थायी ह। य उस चीज क कामना करता ह, जो सभी संदभ म िनरपे , थायी औरवतं ह। और वह चीज आ मा ह, िजसक िन ा म जाने पर िवनाश और जागने पर सृजन होता ह। वह े ण क

    ज रए िव को आकार देती ह। जीवन का उ े य दुिनया क सृजनकता यानी े क क खोज ह।q

    नारायण का रहस्य


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