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लॉ क डा उ न - Chaudhary Charan Singh University · 2020. 4. 22. · का...

Date post: 24-Sep-2020
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पाठ-पुनपाठ लॉ डा 27 वाँ दिन
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  • पाठ-पुनपापाठलॉ क डा उ न

    27 वाँ दिन

  • क्रम

    प्रकाशकीय3

    गाधंी और जवाहरलालसंस्मरण-अंश

    रा्मधारीससंह ‘सिनकर’ 5

    उदास नस्लें उपन्ास-अंश

    अबिदुल्ाह हुसैन 31

    गुजरात पाकिस्ान से गुजरात कहदंसु्ान उपन्ास-अंश

    कृषणा सोबती 70

    शरणार्थीकसिताप्रभात 109

  • 3

    प्रिाशिीय

    कोरोना का संकट अब िैश्विक बिलाि का न्ा प्रस्ान सबंिदु बन चदुका है। इसका असर ्मानि जीिन पर कई रूपों ्में पड़ने िाला है। कुछ संकेत अब सपष्ट रूप से सिखने लगे हैं। ्ह ह्मारी पढ़ने-सलखने की आितों पर भी अपनी छाप छोड़ेगा, ऐसा लग रहा है। अभी आप चाहते हुए भी अपनी ्मनचाही सकताब खरीि नहीं सकते, ह्म आपकी कोई ्मिि कर नहीं सकते। सजतनी ई-बदुक ्ा ऑसि्ो बदुक ऑनलाइन पलेटफॉ्म्म पर ्मौजूि हैं, उन्में से ही च्न करना, पढ़ना और सदुनना एक सिकलप है। िूसरा सिकलप है, घर ्में उपलबध पढ़ी-अनपढ़ी सकताबों को इस लॉक िाउन की अिसध ्में पढ़ जाना। ह्मसे कई सासहत्-अनदुरासग्ों ने अपने ऐसे अनदुभि साझा सकए हैं सक उनहें आजकल कई भूली-सबसरी रचनाएँ ्ाि आ रही हैं। उनहें पढ़ने का ्मन हो रहा है। कुछ को नई सकताबों के बारे ्में भी जानने की उतसदुकता है, सजनके बारे ्में चचा्म सदुन रखी है। ह्मने इन सब श्स्सत्ों के ्मद्ेनज़र 3 ्मई 2020 तक प्रसतसिन आप सबको एक पदुश्सतका उपलबध कराने का संकलप सक्ा है। वहाटसएपप पर सनःशदुलक। 22 ्माच्म 2020 से ह्मने फेसबदुक लाइि के जरर्े अपने व्ापक सासहत्प्रे्मी स्माज से लेखकों के संिाि का एक ससलससला बना रखा

  • लॉकडाउन : 27 वाँ दिन

    पाठ-पुनपापाठ

    है। जब से सोशल सिसटेंससंग ्ानी संग-रोध का िूसरा िौर शदुरू हुआ है, तब से ह्म अपनी सजम्मेिारी और बढ़ी हुई ्महसूस कर रहे हैं। सभी के सलए ्मानससक खदुराक उपलबध रहे, ्ह अपना सा्मासजक िास्ति ्मानते हुए अब ह्म ‘पाठ-पदुनपा्मठ’ पदुश्सतकाओं की ्ह श्रंखला शदुरू कर रहे हैं। ईबदुक और ऑसि्ोबदुक िाउनलोि करने की सदुसिधा सबके सलए सदुग्म नहीं है। इससलए ह्म अब वहाटसएपप पर सबके सलए सन:शदुलक रचनाएँ सन्स्मत उपलबध कराने जा रहे हैं। इनहें प्राप्त करने के सलए आप राजक्मल प्रकाशन स्मूह का ्ह वहाटसएपप नमबर 98108 02875 अपने फोन ्में सदुरसषित करें और उसके बाि उसी नमबर पर अपना ना्म सलखकर ह्में ्मैसेज करें। आपको सन्स्मत सन:शदुलक पदुश्सतका स्मलने लगेगी। ह्म स्मझते हैं सक ्ह असदुसिधाकारी नहीं है। आप जब चाहें, पािती सेिा बंि करिा सकते हैं। जब चाहें, पदुनः शदुरू करा सकते हैं। जब तक लॉक िाउन है, आप घर ्में हैं लेसकन अकेले नहीं हैं। राजक्मल प्रकाशन स्मूह आपके सा् है। भरोसा रखें। सा् जदुड़ें, सा् पढ़ें...

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    गाधंी और जवाहरलाल

    *

    रामधारी सिंह ‘सिनकर’

    12गांधी जी 29 अगसत, 1931 को गोल्मेज सम्मेलन के सलए रिाना हुए। जिाहरलाल जी उनहें सििाई िेने को बमबई बनिरगाह तक गए ्े। सकनतदु गोल्मेज सम्मेलन से लौटते ही गांधी जी सगरफतार हो गए, जिाहरलाल पहले ही सगरफतार हो चदुके ्े।

    इस कैि से गांधी जी 23 अगसत, 1933 को ररहा हुए। और जिाहरलाल जी ससतमबर, 1933 ्में छूटे। इस बीच गांधी जी ने सामप्रिास्क एिाि्ड के सखलाफ जान की बाजी लगाकर सारे िेश ्में जाग्रसत पैिा कर िी ्ी और एक तरह से अपने अगले का््मक्र्म, हररजनोद्ार की पदुष्ट भूस्मका भी तै्ार कर िी ्ी। गांधी जी ने ररहा होते ही सत्ाग्रह के स्गन की घोषणा कर िी।

    जिाहरलाल िोनों ही बातों से चसकत हुए। जब गांधी जी ने सामप्रिास्क

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    पाठ-पुनपापाठ

    एिाि्ड के सखलाफ आ्मरण अनशन की घोषणा की, पंसित जी को लगा, गांधी जी सफर सिसचत्र का्म कर रहे हैं। अगर जान की बाजी लगानी है, तो िह सितंत्रता के प्रशन पर लगाई जानी चासहए। क्ा स्माज-सदुधार के का्म के सलए गांधी जी के स्मान अ्मूल् जीिन को संकट ्में िालना ठीक है? और सत्ाग्रह के स्गन का सनण्म् भी उनहें ठीक नहीं लगा।

    जेल से छूटने पर पंसित जी गांधी जी से स्मलने को पूना गए और गांधी जी से अपने ्मतभेि की बात उनहोंने खदुलकर की। पंसित जी चाहते ्े सक पूण्म सिाधीनता और स्माजिािदृइन िो आिशशों को जोर से उछालना चासहए, सजससे जनता अपने ध्े् को पहचान सके और उसके सलए संघष्म कर सके। सकनतदु गांधी जी िोनों ही ध्े्ों को गोल्मटोल रखना चाहते ्े। उनका ख्ाल ्ा सक जब तक भारत को सिराज् के असधकार प्राप्त नहीं हो जाते, िह स्माजिािी आिश्म की ओर तेजी से नहीं बढ़ सकता है।

    पूना ्में सिशा्म लेने के बाि गांधी जी अपने हररजन का््मक्र्म के सा् िेश का िौरा करने लगे। जिाहरलाल जी ने इस अिसर का उप्ोग सामप्रिास्कता पर लेखों से प्रहार करने ्में सक्ा। सकनतदु सामप्रिास्क एकता से भी उनका ज्ािा जोर स्माजिाि पर ्ा। उनका कहना ्ा सक सामप्रिास्कता का गठबनधन सनसहत सिा्शों के सा् है। अतएि िोनों के िोनों प्रसतसक्र्ागा्मी हैं। जिाहरलाल स्माजिाि के पषि ्में इस जोर से बोलने लगे सक का््मकाररणी के सिस् भीतर-ही-भीतर अप्रसन्न हो गए और अपने बहुसंख्क अनदु्ास््ों का ्मन रखने को गांधी जी को जिाहरलाल को, अखबार के ्माध््म से, हलकी िाँट सदुनानी पड़ी। इससे पंसित जी भी रंज हो गए और उनहोंने

  • गांधी और जिाहरलाल

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    इचछा प्रकट की सक का््मकाररणी से उनका इसतीफा सिीकार कर सल्ा जाए। सकनतदु इसकी नौबत नहीं आई। 12 फरिरी, 1934 को सरकार ने उनहें सगरफतार कर सल्ा। असल ्में, 26 सिसमबर, 1931 से लेकर 4 ससतमबर, 1935 तक पंसित जी जेल से बाहर केिल 9 ्महीने रहे ्े।

    ्मगर उनके जेल जाने के पूि्म 15 जनिरी, 1934 को सबहार ्में भूकमप आ्ा। गांधी जी ने कहा, ्ह भूकमप इससलए आ्ा है सक भगिान ह्में हररजनों के प्रसत ह्मारे िदुव््मिहार के सलए िंि िेना चाहते हैं। रिीनद्रना् बोले, ऐसी बातें बोलकर गांधी जी सभ् संसार की दृश्ष्ट ्में ह्में हास्ासपि बना रहे हैं। पंसित जी इस सििाि ्में रिीनद्रना् के सा् ्े। सकनतदु पररणा्म से िेखा जाए तो भूकमप इससलए आ्ा ्ा सक भगिान कांग्रेस को सनश्षक्र्ता और सजच से सनकालना चाहते ्े।

    13जब गांधी जी भूकमप पीसड़त सबहार का िौरा कर रहे ्े, उस स्म् कांग्रेसजनों ने सिल्ी ्में िॉकटर अंसारी के सभापसतति ्में एक सम्मेलन सक्ा और ्ह सनण्म् सक्ा सक सिराज् पाटटी को पदुनरुज्ीसित करने का िक्त आ ग्ा है; कांग्रेस को केनद्री् असेमबली के सलए चदुनाि लड़ने की तै्ारी आरमभ कर िेनी चासहए और ्सि गांधी जी त्ा का््मकाररणी सस्मसत को प्रसताि ्मंजूर हो, तो सत्ाग्रह आनिोलन को िापस ले लेना चासहए।

    इस सम्मेलन के बाि िॉकटर अंसारी और िॉकटर सिधानचनद्र रा् गांधी जी से रा् करने को पटना गए। उनहें ्ह जानकर आश्च््म

  • लॉकडाउन : 27 वाँ दिन

    पाठ-पुनपापाठ

    हुआ सक उनके आग्मन के पूि्म ही, गांधी जी खदुि इस बात का सनश्च् कर चदुके ्े सक आनिोलन का असधकार अपने तक सीस्मत रखते हुए िे उसे िापस ले लेंगे। जहाँ तक असेमबली-प्रिेश का प्रशन ्ा, गांधी जी ने कहा, ‘इस ्मा्मले के प्रसत ्मेरा िही रुख है, जो सन् 1924 ्में ्ा।’ सकनतदु चदुनाि लड़ने की उनहोंने कांग्रेसस्ों को छूट िे िी। उनहोंने सत्ाग्रह आनिोलन को िापस लेने का ऐलान पटना से ही कर सि्ा।

    जिाहरलाल जी उन सिनों िेहरािून जेल ्में ्े। गांधी जी ने सजस आसानी से आनिोलन को िापस ले सल्ा ्ा, उससे पंसित जी को िदुःख भी हुआ और गांधी जी पर खीज भी हुई। सारी चीजें उनहें इतनी उलझी हुई सिखीं सक गांधी जी के सा् अपने-आपको बाँध िेने पर उनहें पश्चात्ाप होने लगा: ‘्मैंने सजनिगी ्में जो कठोर सशषिाएँ प्राप्त की ्ीं, उन्में से कठोरत्म सशषिा आज ्मेरे स्मषि ्ी। िह सशषिा ्ह ्ी सक ्मौसलक ्मा्मलों ्में सकसी भी व्श्क्त पर अिलश्मबत होना ठीक नहीं है। सजनिगी के ्मैिान ्में अकेला चलना ठीक है। िूसरों पर सनभ्मर होने से सनराशा होती है।’

    पटना ्में होनेिाली असखल भारती् कांग्रेस की सभा ्में अंसारी आसि का सिरोध स्माजिासि्ों की ओर से हुआ; सकनतदु गांधी जी के भाषण के बाि सिरोध ढह पड़ा। पंसित जी ने जब पटना की ररपोट्ड पढ़ी, उनकी छाती िो टूक हो गई। हा्, ह्म सकसके सा् बँधे हैं? ्ह आि्मी तो िसकिंग क्मेटी से रा्-्मशसिरा सकए सबना ही आनिोलन छेड़ता है और उसे रोक भी िेता है। गांधी जी ने हररजन आनिोलन के बारे ्में भी सकसी से रा् नहीं ली ्ी। पंसित जी इस बात से भी अपने-आपको उपेसषित अनदुभि करने लगे।

  • गांधी और जिाहरलाल

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    पटना कांग्रेस ने एक ओर प्रसताि पास सक्ा ्ा, सजस्में उन नि्दुिकों की आलोचना की गई ्ी, जो िग्म-संघष्म त्ा िै्श्क्तक जा्िाि की जबती की भािना का प्रचार कर रहे ्े। पंसित जी को लगा, ्ह चोट भी ्मदुझी पर है। सकनतदु िे जेल ्में ्े।

    इस बीच क्मला जी जोर से बी्मार हो गईं। अतएि सरकार ने जिाहरलाल जी को 11 अगसत, 1934 को िेहरािून से इलाहाबाि पहुुँचाकर ग्ारह सिनों के सलए छोड़ सि्ा। पंसित जी के पास आ जाने से क्मला जी को बड़ा भरोसा हुआ, िे कुछ प्रसन्न भी रहने लगीं; सकनतदु 23 अगसत को सफर पदुसलस की गाड़ी आननि भिन के िरिाज़े पर पहुुँची और पंसित जी सगरफतार कर सल्े गए।

    ्ह ग्ारह सिनों की अिसध इससलए ्महत्िपूण्म है सक उस बीच जिाहरलाल जी ने गांधी जी को एक काफी लमबा पत्र सलखा, सजस्में अपना सिरोध, अपना िि्म, अपनी बेचैनी उनहोंने सपष्ट शबिों ्में व्क्त की और गांधी जी ने उनहें एक प्ारा-सा जिाब भी सि्ा। पदुराने पत्रों के गदुचछे ्में ्े िोनों पत्र छपे हैं।

    जिाहरलाल जी ने अपने 13 अगसत, 1934 के पत्र ्में गांधी जी को सलखा :

    ‘जब ्मैंने सदुना, आपने सत्ाग्रह आनिोलन को िापस ले सल्ा है, ्मदुझे रंज हुआ। पहले ्मैंने केिल स्माचार ्मात्र सदुना ्ा। पीछे जब ्मैंने आपका ब्ान पढ़ा, ्मदुझे उससे एक ऐसा धकका लगा, जैसा और कभी नहीं लगा ्ा। सत्ाग्रह आनिोलन की िापसी के सलए ्मैं लगभग तै्ार ्ा। सकनतदु उसके सलए आपने जो िलीलें िीं, उनसे ्मैं सतश्मभत रह ग्ा हुँ। ्मदुझे लगा, ्मेरे

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    पाठ-पुनपापाठ

    भीतर जो एक की्मती धागा ्ा, िह टूट ग्ा है। ्मैं ्महसूस करने लगा सक िदुसन्ा ्में ्मैं अकेला रह ग्ा हुँ। अकेलेपन का एहसास ्मदुझे बचपन से रहा है। ्मगर तब भी कुछ धागे ्े, जो ्मदुझे बाँधे हुए ्े; कुछ सहारा ्ा, जो ्मदुझे सटकाए हुए ्ा। अब लगता है, िह सहारा भी जाता रहा।

    ‘...्मेरा ख्ाल है, ्ह स्म् है, जब कांग्रेस को अपने सा्मासजक और आस््मक ध्े्ों पर सपष्टता से सिचार करना चासहए। लेसकन िसतदुश्स्सत ्ह है सक का््मकाररणी सस्मसत इन सिष्ों को स्मझे ्ा न स्मझे; सकनतदु िह उन लोगों की सननिा करने को, उनहें जासत से अलग करने को तै्ार है, सजनहोंने इन सिष्ों का अध््न सक्ा है और जो उन पर अपने कुछ सिचार रखते हैं। उन बिना्म सिचारों को कोई भी स्मझने को तै्ार नहीं है, जो सिचार संसार के कुछ ्ोग्त्म व्श्क्त्ों के हैं और सजनके सलए उनहोंने आजीिन बसलिान सक्ा है।

    ‘...स्माजिाि का अंग्रेजी भाषा ्में कोई सनश्श्चत अ््म है। उससे सभन्न अ््म ्में इस शबि का प्र्ोग करना अजीब बात है। कोई व्श्क्त ्सि अपने को इंजन-ड्ाइिर कहे और तब ्ह बताए सक उसकी इंजन लकड़ी की है और िह बैलों से चलती है, तो सपष्ट ही इंजन-ड्ाइिर शबि का िह िदुरुप्ोग करता है।

    ‘...्ह कहना भी तक्क का िदुरुप्ोग है सक भारत की पररश्स्सत्ाँ सभन्न हैं और जो आस््मक कानून सारे संसार ्में चलते हैं, िे भारत ्में लागू नहीं सकए जा सकते...’

    इस पत्र का जिाब गांधी जी ने 17 अगसत को सि्ा, सजस्में उनहोंने

  • गांधी और जिाहरलाल

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    सलखा :

    ‘्मैं तदुमहारे िि्म को स्मझता हुँं। अपनी भािनाओं को खदुली असभव्श्क्त िेकर तदु्मने ठीक ही सक्ा है। लेसकन सलसखत शबिों को अगर तदु्म ठीक से पढ़ो, तो तदुमहें पता चलेगा सक इतना िदुखी होने की कोई बात नहीं है। ्मैं तदुमहें आविासन िेना चाहता हुँ सक सा्ी की हैसस्त से तदु्मने ्मदुझे खो नहीं सि्ा है। ्मैं िही हुँ, सजसे तदु्म 1917 ई. से जानते रहे हो। जनसाधारण के सहतों के सलए ्मदुझ्में िही प्रे्म और उतसाह आज भी है, जो इतने सिनों से रहता आ्ा है। पूण्म सिाधीनता का अंग्रेजी भाषा ्में जो अ््म है, िही सिाधीनता ्मैं अपने िेश के सलए चाहता हुँ। और हर प्रसताि, सजससे तदुमहें ठेस पहुुँची है, उसी उद्ेश् को ध्ान ्में रखकर बना्ा ग्ा है। जो भी प्रसताि पास हुए हैं, उनकी सजम्मेिारी ्मदुझ पर है और उनके सा् सजस पररिेश की कलपना है, िह कलपना भी ्मेरी ही कलपना है। ्मगर ्मेरा ख्ाल है, ्मैं स्म् की नबज़ पहचानता हुँ और सारे प्रसताि उसी के जिाब हैं।

    ‘...स्माजिासि्ों का ख्ाल काफी सक्ा ग्ा है। क्ा ्मैं उनहें ्ा उनके द्ारा की गई कुबा्मसन्ों को नहीं जानता हुँ? लेसकन स्माजिािी लोग जरा जलिी ्में हैं। ्मगर जलिी ्में िे हों क्ों नहीं? ्मैं केिल ्ह चाहता हुँ सक जब ्मैं सपछड़ जाऊँ, िे जरा ठहर जाएँ और ्मदुझे भी अपने सा् सल्े चलें। ्मेरा ह-ब-ह ्ही रुख है। ्मैंने कोश ्में स्माजिाि का अ््म िेखा है। ्ह अ््म ्मेरी श्स्सत ्में कोई भी पररित्मन नहीं करता। स्माजिाि की पूरी व्ाश्प्त्ाँ स्मझने को ्मदुझे तदु्म क्ा पढ़ाना चाहते हो?’

  • लॉकडाउन : 27 वाँ दिन

    पाठ-पुनपापाठ

    ‘...सिसफोट के बाि रचना की बारी आनी चासहए। समभि है, ह्मारी ्मदुलाकात न हो सके। तो बताओ, ्मैं क्ा करूँ, सकससे बातें करूँ, जो तदुमहारे सिचारों का सही प्रसतसनसधति करता हो?’

    आगे चलकर स्माजिािी होने का िािा गांधी जी ने भी सक्ा ्ा; सकनतदु कांग्रेस ्में िे बराबर स्माजिासि्ों और गांधीिासि्ों के बीच सनतदुलन ठीक रखने को सचश्नतत रहते ्े। गांधी जी स्माजिािी टॉलसटॉ् के अ््म ्में ्े; सकनतदु नेहरू और उनके स्माजिािी स्मत्र ्मशीनों के भक्त ्े। ्मगर गांधी जी एक छटाँक क्म्म को एक टन कलपना ्ा ज्ान से असधक ्मानते ्े। इससलए ज्ों-ज्ों स्म् बीतता ग्ा, नि्दुिक भी ्ह ्मानते गए सक स्माजिािी दृश्ष्टकोण से भी गांधी जी ही सबसे बड़े क्राश्नतकारी हैं।

    14क्मला जी ्क््मा से पीसड़त ्ीं। इलाज करिाने को िे ज्म्मनी चली गई ्ीं। िहाँ से अचछी खबर नहीं आ रही ्ी। अतएि सरकार ने जिाहरलाल जी को 4 ससतमबर, 1935 को ररहा कर सि्ा और िे सीधे ्ूरोप चले गए। सकनतदु क्मला जी अचछी नहीं हो सकीं। 28 फरिरी, 1936 को उनका िेहानत हो ग्ा और जिाहरलाल जी भारत लौट आए।

    ्ूरोप-प्रिास ्में पंसित जी ने सिचारों और आिशशों की उस टकराहट को स्मीप से िेखा, जो प्रजातंत्रिाि और नातसीिाि के बीच चल रही ्ी। इस बार स्माजिाि ्में उनका सिविास और भी दृढ़ हो ग्ा और अप्रैल, 1936 ्में जब िे िदुबारा कांग्रेस के सभापसत बनाए गए,

  • गांधी और जिाहरलाल

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    उनहोंने अपने सिचारों को सफर बड़े जोर से रखा :

    ‘स्माजिाि केिल आस््मक सिचारधारा नहीं है, सजसे ्मैं पसनि करता हुँ। िह एक शश्क्तशाली सिविास है, एक ध्म्म है, सजस्में ्मैं सिल और सि्माग, िोनों से ्कीन करता हुँ। भारती् सिाधीनता की उपासना ्मैं इससलए कर रहा हुँ सक ्मेरे भीतर का राष्ट्रिािी गदुला्मी सहने को तै्ार नहीं है। सिाधीनता के सलए और भी जोश के सा् ्मैं इससलए का्म करता हुँ सक सा्मासजक और आस््मक पररित्मनों के सलए िह जरूरी कि्म है। ्मैं चाहता हुँ सक कांग्रेस स्माजिािी संस्ा बन जाए और उन सभी शश्क्त्ों से सश्म्मसलत होकर आगे बढ़े, जो नई सभ्ता की रचना के सलए सारे संसार ्में सक्र्ाशील हैं। ्मगर ्मैं ्ह भी ्महसूस करता हुँ सक आज की कांग्रेस का बहु्मत इतनी िूर जाने को तै्ार नहीं होगा।’

    जिाहरलाल जी सभापसत तो बना सि्े गए ्े; सकनतदु कांग्रेस के बड़े नेता उनके सा् नहीं ्े। बड़े नेताओं का सा्मीप् गांधी-सिचारधारा से ्ा और िे स्मझते ्े सक जिाहरलाल जी गांधी जी के सिचारों के सिरुद् जा रहे हैं। का््मकाररणी सस्मसत ्में जिाहरलाल िररष्ठ नेताओं की कैि ्में ्े। बड़ी ्मदुश्शकल से िे नरेनद्रिेि, ज्प्रकाश नारा्ण और अच्दुत पटिध्मन को सस्मसत ्में ला सके ्े; सकनतदु बहु्मत उनके सिरुद् ्ा।

    खटपट इतनी बढ़ी सक 29 जून, 1936 को राजेनद्र बाबू, राजा जी और िल्भभाई स्मेत सात सिस्ों ने पंसित जी को एक पत्र सलखकर कहा सक जो श्स्सत है, उस्में ह्म लोग आगा्मी चदुनाि-संग्रा्म का संचालन करने ्में अस्म््म हैं।

  • लॉकडाउन : 27 वाँ दिन

    पाठ-पुनपापाठ

    पत्र ्में सलखा ग्ा :

    ‘ह्म लोगों का ख्ाल है सक आज की श्स्सत ्में कांग्रेस के सभापसत और का््मकाररणी सस्मसत के सिस्ों द्ारा स्माजिाि का प्रचार सक्ा जाना अचछा नहीं है। कांग्रेस ने इस ध्े् को अभी सिीकार नहीं सक्ा है। इस प्रकार से िेश का सहत नहीं सधेगा और इससे सिाधीनता-संग्रा्म ्में बाधा भी पड़ सकती है। ह्म लोगों का सिचार है सक ह्मारा तातकासलक उद्ेश् सिाधीनता की प्राश्प्त है और िह उद्ेश् सभी उद्ेश्ों से बड़ा है।

    ‘आप ्ह भी स्मझते हैं, और आपने ्ह कहा भी है सक ित्म्मान का््मकाररणी सस्मसत आपकी चदुनी हुई नहीं है, िह आप पर लािी गई है। ्मगर ह्मारा लखनऊ का संस्मरण इससे सभन्न है। लखनऊ ्में ह्म्में से सकसी ने भी आप पर ्ोड़ा भी िबाि िाला हो, ऐसा ह्में ्ाि नहीं आता है।

    ‘ह्मारा ख्ाल है, आपकी िक्त्रताओं और स्माजिासि्ों के प्रचार से सारे िेश ्में कांग्रेस क्मजोर हुई है और बिले ्में कांग्रेस को कोई लाभ भी नहीं पहुुँचा है।

    ‘ऐसी अिस्ा ्में अगले चदुनाि का बोझ उठाने ्में ह्म लोग अस्म््म हैं।’

    पीछे राजेनद्र बाबू आसि नेताओं ने इस पत्र को िापस ले सल्ा; सकनतदु इससे जिाहरलाल जी को शाश्नत नहीं स्मली। उनहोंने बातचीत के िौरान राजेनद्र बाबू से कहा ्ा सक ‘खंजर तो कलेजे से आपने सनकाल सल्ा, लेसकन उसके सनशान नहीं स्मटे हैं।’ और 5 जदुलाई,

  • गांधी और जिाहरलाल

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    1936 को जिाहरलाल जी ने एक पत्र ्में सफर अपना रोना गांधी जी के पास रो्ा :

    ‘सप्र् बापू, ्मैं शरीर से क्मजोर और ्मन से अशानत हुँ।...्मदुख् बात ्ह है सक ्मेरी सरग्मटी कांग्रेस के सहत ्में बाधक स्मझी जा रही है।...बात पर सजतनी भी ग्मटी से सिचार कीसजए, सनषकष्म ्ही सनकलता है सक ्मैं इतना खदुराफाती हुँ सक ्मदुझे बिा्मशत नहीं सक्ा जा सकता। ्मदुझ्में कुछ ्ोड़ी ्ोग्ता है, शश्क्त है, आतदुरता है और एक व्श्क्तति है, जो आकष्मक है। ्े ्मेरे गदुण हैं, ्मगर ्े गदुण ही खतरनाक स्मझे जा रहे हैं, क्ोंसक उनका उप्ोग गलत उद्ेश् के सलए सक्ा जा रहा है। इन सारी बातों से जो सनषकष्म सनकलना चासहए, िह सपष्ट है।’

    गांधी जी ने जिाहरलाल जी को स्मझाते हुए उत्र सि्ा :

    ‘जो पत्र तदुमहें भेजा ग्ा ्ा, उसे ्मैंने िेख सल्ा ्ा। ्ह ्मेरा ही सदुझाि ्ा सक इसतीफा न भेजकर पहले ्ह पत्र ही भेजा जाना चासहए। ्मेरी इचछा ्ी सक तदु्म इस पत्र के सा् असधक न्ा्शील होते। ्मेरा ख्ाल है, अब आगे इसतीफे की बात नहीं उठनी चासहए और आपसी संघष्म शानत हो जाना चासहए। अगर तदु्मने कुछ सक्ा, तो असखल भारती् कांग्रेस को लकिा ्मार जाएगा और िह संकट का स्माधान नहीं सनकाल सकेगी। तब कांग्रेस िो सिरोधी भाि-धाराओं ्में बँट जाएगी। ऐसा संकट उतपन्न करना गलत का्म होगा। पत्र की व्ाश्प्त्ों का तदु्म असतरंजन कर रहे हो। ्मैं तदुमहारे सा् बहस नहीं करूँगा। सजन सास््ों के सा् तदु्मने इतने सिनों तक सबना सकसी खटपट के का्म सक्ा है, उनके सा् आगे का्म करने ्में तदुमहें कसठनाई

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    नहीं होनी चासहए। अगर तदुमहारे सा्ी असहनशील हैं, तो तदुमहारी असहनशीलता कुछ क्म नहीं है।’

    लेसकन सास््ों के सा् सबना खटपट के का्म करना पंसित जी क्म जानते ्े। सन् 1924 ई. ्में जब ्मौलाना ्मोहम्मि अली कांग्रेस के सभापसत और जिाहरलाल उसके ्महा्मंत्री ्े, तब भी सास््ों से खटपट होने की सशका्त उनहोंने ्मौलाना से की ्ी और ्मौलाना ने धीरज बँधाते हुए उनहें सलखा ्ा: ‘चूँसक का््मकाररणी के सिस् तदु्म पर सिविास नहीं करते, तदुमहारे ससचिति से अपनी नाराजगी जासहर करते हैं, इसीसलए तो ससचि के रूप ्में ्मैं तदुमहें चाहता हुँ।’

    15‘ि लासट िेज ऑव् सरिसटश राज’ के लेखक सल्ोनाि्ड ्मोसले ने जिाहरलाल जी के बारे ्में सलखा है सक ‘सिवोच्च सत्ा की चोटी त्ा भारती् जनता के हृि् पर प्रे्मपूण्म एकासधपत् पर नेहरू के पहुुँचने का ्माग्म ती््म्ात्री का ्माग्म अिश् ्ा; सकनतदु उस रासते ्में इतने खनिक ्े, इतनी खाइ्ाँ ्ीं सक अगर भाग् और सं्ोग ने नेहरू का सा् नहीं सि्ा होता, तो रासते से िे सिचसलत भी हो सकते ्े।’

    सदुभाषचनद्र बोस को कांग्रेस ने बिा्मशत नहीं सक्ा, ्ह पहला सं्ोग ्ा। सरिार पटेल ने नमबर एक बनने की सजि नहीं की, ्ह िूसरा सं्ोग ्ा। और जब स्माजिािी लोग कांग्रेस छोड़ रहे ्े, तब पंसित जी ने कांग्रेस नहीं छोड़ी, ्ह तीसरा सं्ोग ्ा।

    सकनतदु सं्ोग भी अकारण उतपन्न नहीं होता। उसके भी कारण होते हैं। िह कारण जिाहरलाल जी की सिद्त्ा ्में ्ा, चररत्र ्में ्ा,

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    सनशछल िेशभश्क्त ्में ्ा और एक अत्नत सजीि व्श्क्तति ्में ्ा। उनके भीतर कोई बात ्ी, जो और सकसी नेता ्में नहीं ्ी। संसिधान सभा की कलपना उनहोंने सनकाली ्ी। ्ोजनाबद् सिकास का सिपन सबसे पहले उनहोंने ही िेखा ्ा और स्मसत संसार ्में भारत की भूस्मका क्ा होनी चासहए, इसकी झाँकी भी िेश के सा्मने उनहोंने ही प्रसतदुत की ्ी। हलके ढंग से ्ह कहकर छुट्ी पा लेना हलका का्म है सक जिाहरलाल जी इससलए बढ़े सक िे अ्मीर खानिान ्में पैिा हुए ्े। जो नेता गरीब खानिानों ्में जन्मे ्े, उन्में से कौन ्ा जो जिाहरलाल की-सी भाषा सलखता ्ा, उनके स्मान हर सिष् पर ऊँचाई से बोल सकता ्ा अ्िा सजसकी कलपना साि्मभौ्म ्ी? कांग्रेस ने जिाहरलाल को बिा्मशत करके अपनी आ्दु बढ़ा ली, अपना बल बढ़ा सल्ा, अपनी शोहरत और प्रसतष्ठा ्में ि्रसद् की और अपने को इस ्ोग् बना सल्ा सक िह स्माजिाि का भी प्रचार कर सके। और जिाहरलाल ने चदुभन और काँटे बिा्मशत करके कांग्रेस ्में रहकर उस सीढ़ी पर अश्खत्ार कर सल्ा, जो उनहें सिवोच्च सशखर तक ले जानेिाली ्ी।

    पंसित जी िह क्राश्नतकारी ्े, सजसका सिविास सदुधार और सिकास ्में रहता है। िे आि्मी शाश्नतसप्र् ्े और उन्में िैराग् की भी छौंक ्ी; सकनतदु सत्ा पर आरूढ़ होने के प्रसत उन्में िैराग् नहीं ्ा। िे ऐसे राष्ट्रिािी ्े, सजसके भाि-तनतदु अनतरराष्ट्री्ता से बँधे हुए ्े। िे एकाकी ्े, सनःसंग ्े, अगाध शाश्नत की खोज ्में ्े; सकनतदु सजनिगी की हलचलों से खेलने ्में उनहें आननि आता ्ा। उन्में दृढ़ता भी ्ी और लचीलापन भी ्ा, इसीसलए, कोई भी झकोरा उनहें अपने स्ान से सहला नहीं सका।

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    अपने-आपके प्रसत उन्में अिम् सिविास ्ा। िे ्मानते ्े सक ्मैं सकसी भी सिष् पर बोल सकता हुँ, सकतना भी कसठन का्म हो, कर सकता हुँ। 1937 के चदुनाि ्में कररश्मा सिखाने को उनहोंने कांग्रेस के सभापसतति की िदुबारा का्मना की और इस सिष् का सदुझाि गांधी जी को खदुि ही सि्ा। और जब िे चदुनािों के िौरे पर सनकले, तब लगा, ्मानो कोई तूफान सितंत्रता का सनिेश लेकर सारे िेश ्में िौड़ रहा हो।

    पराधीनता के स्म् भी जिाहरलाल भारत के भािी सन्मा्मण की बातें बहुत बड़े पै्माने पर सोचते ्े। ्मगर उनकी बातें उनके िररष्ठ सास््ों को पसनि नहीं आती ्ीं। िे उन बातों को हिाई स्मझते ्े। और गांधी जी की कसठनाई ्ह ्ी सक उनहें गांधीिासि्ों के सा् जिाहरलाल को लेकर चलना पड़ता ्ा। उस स्म् अपने सकसी अनदु्ा्ी को पत्र सलखते हुए गांधी जी ने सलखा ्ा: ‘्ोजना के बारे ्में जिाहरलाल की सारी कोसशशें बेकार हैं, ्मगर िह ऐसी सकसी चीज से खदुश ही नहीं होता, जो बड़ी नहीं हो।’

    भारत के आस््मक सिकास के ्मा्मले ्में जिाहरलाल गांधी जी के बहुत-से सिचारों को सपछड़ा स्मझते ्े। और गांधी जी भी जिाहरलाल की बहुत-सी बातों को फालतू और भारत के सलए अनदुप्दुक्त ्मानते ्े। गांधी जी का सिचार ्ा सक आि्मी की आिश्कताएँ सजतनी क्म हों, उतना ही अचछा है। जिाहरलाल ्मानते ्े सक आि्मी की जरूरतें उतनी क्म नहीं हैं, सजतनी गांधी जी स्मझते हैं।

    जब तक सिराज् नहीं हुआ ्ा, बातें सैद्ाश्नतक धरातल पर रहीं। सकनतदु पंसित जी जब प्रधान्मंत्री हो गए, उन पर ्ह बोझ आ पड़ा सक िे जो कुछ बोलते ्े, उसे का््म का रूप िेकर सिखाएँ।

  • गांधी और जिाहरलाल

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    ्मन से स्माजिािी और हृि् से गांधीिािी होने का पररणा्म ्ह हुआ सक जिाहरलाल ने प्रजातंत्र के ्माग्म से स्माजिाि लाने का संकलप सक्ा। ्ह संकलप अभी तक चररता््म नहीं हुआ है। आगे चलकर भी िह चररता््म होगा ्ा नहीं, इसे काल बताएगा।

    161936-37 तक जिाहरलाल जी का गांधी जी से ्मतभेि आस््मक का््मक्र्म को लेकर चलता ्ा; सकनतदु जब सन् 1939 ई. ्में ्महा्दुद् का आरमभ हुआ, ्ह ्मतभेि एक अन् धरातल पर पहुुँच ग्ा।

    ्दुद् ्में भारत का रुख क्ा हो, इस पर जब सिचार सक्ा जाने लगा, पंसित जी के सा्मने सनसखल ्मानिता का सिाल आ ग्ा। सहटलर और ्मदुसोसलनी के प्रसत ्ूरोप के प्रगसतशील लोगों का जो भाि ्ा, उसे पंसित जी ्ूरोप जाकर अपनी आँखों से िेख आए ्े। अतएि उनका ्मत बना सक ्दुद्ोद्ोग ्में बाधा िेना ठीक नहीं है। उससे स्मत्र-राष्ट्रों की क्मजोरी और सहटलर की शश्क्त बढ़ेगी। फासससट-सिरोधी सिचार पंसित जी के पहले से ही रहे ्े। ्दुद् के ठीक पूि्म, ्ूरोप घू्मने के कारण िे और भी तीव्र हो उठे ्े। 1938 ई. ्में शीकृषण ्मेनन के सा् उनहोंने सपेन के ग्रह्दुद् को सपेन जाकर िेखा ्ा। पंसित जी की आशा ्ी सक इस ग्रह्दुद् ्में सिज् प्रजातंत्रिासि्ों को स्मलेगी; सकनतदु जीत फ्रैंकों की हो गई। इससे उनके हृि् पर साँप लोट ग्ा ्ा और िे कोई भी ऐसा का्म नहीं करना चाहते ्े, सजससे सहटलर और ्मदुसोसलनी को बाल बराबर भी लाभ हो।

    कांग्रेस ने ्दुद् के बारे ्में जो पहला प्रसताि सिीकृत सक्ा, उसी ्में

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    ्ह बात सपष्ट हो गई ्ी सक ्सि भारत सितंत्र घोसषत नहीं सक्ा ग्ा, तो ्दुद् ्में िह कोई सहा्ता नहीं िेगा। उसके बाि एक ्महीने के सलए पंसित जी चीन चले गए। िहाँ से लौटने के बाि का््म-सस्मसत का एक प्रसताि उनहोंने और सलखा जो 14 ससतमबर, 1939 को पाररत हुआ। इस प्रसताि ्में खास जोर उनहोंने इस बात पर सि्ा सक ्ह ्दुद् िो सशसिरों की सेनाओं की ्मदुठभेड़ नहीं है। ्ह सभ्ता का संकट है और इसका प्रभाि समपूण्म ्मानि-जासत पर पड़ेगा। सकनतदु सनषकष्म इसका भी िही ्ा, जो पहले प्रसताि का, अ्ा्मत् सिराज् स्मल ग्ा, तो ह्म सभी साधनों से स्मत्र-राष्ट्रों की ्मिि करेंगे, सकनतदु सिराज् नहीं स्मलने से ह्म कुछ भी करने की श्स्सत ्में नहीं हैं।

    ्हीं गांधी जी से ्मतभेि उतपन्न हुआ। गांधी जी का कहना ्ा सक भारत को अगर स्मत्र-राष्ट्रों की ्मिि करनी है, तो िह ्मिि सबना सकसी शत्म के की जानी चासहए और िह सहा्ता हर हालत ्में असहंसक ही हो सकती है।

    जिाहरलाल गांधी जी के इस सिचार से सह्मत ्े सक स्मत्र-राष्ट्रों के ्दुद्ोद्ोग ्में सकसी भी बड़े पै्माने पर बाधा िालना अनदुसचत होगा। सकनतदु गांधी जी की ्ह बात उनहें पसनि नहीं ्ी सक ह्म स्मत्र-राष्ट्रों की सहा्ता सबना सकसी शत्म के करें अ्िा ह्म जो सहा्ता िें, िह असहंसक हो। और सं्ोगिश, का््म-सस्मसत के असधकांश सिस् इस ्मा्मले ्में गांधी जी नहीं, जिाहरलाल के सा् ्े।

    अब तक आस््मक प्रशनों पर का््म-सस्मसत ्में जिाहरलाल ही अकेले रहते आए ्े। ्मगर अब जब सहंसा-असहंसा का प्रशन उठा, का््म-सस्मसत ्में अकेले गांधी जी रह गए।

  • गांधी और जिाहरलाल

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    लेसकन कांग्रेस की इस ्माँग को िा्सरा् सलनसल्गो ने सिीकार नहीं सक्ा। उलटे, चसच्मल इससे सचढ़ गए और लनिन ्में उनहोंने ऐलान सक्ा, ‘िेर-सबेर ह्में गांधी जी और कांग्रेस को कुचलना ही पड़ेगा।’

    इस श्स्सत से षिदुबध होकर कांग्रेस सफर गांधी जी के करीब आ गई और बमबई ्में उसने प्रसताि पास सक्ा सक ह्म असहंसक पद्सत से ्दुद्ोद्ोग का बसहषकार करेंगे।

    अकटूबर, 1940 ्में पंसित जी सफर सगरफतार हो गए और गोरखपदुर जेल के भीतर एक अंग्रेज ्मैसजसट्ेट ने उनके ्मदुकि्मे की जाँच की। इस बार अिालत के सा्मने जिाहरलाल जी ने जो ब्ान सि्ा, िह बड़ा ही ओजसिी और ्महत्िपूण्म ्ा। अिालत को समबोसधत करके उनहांेने कहा :

    ‘शी्मन्! ्मैं आपके सा्मने एक व्श्क्त के रूप ्में पेश सक्ा ग्ा हुँ, सजसने राज् के सखलाफ जदु्म्म सक्ा है। सजस सरकार के सखलाफ ्मैंने जदु्म्म सक्ा है, आप उसके प्रतीक हैं। सकनतदु ्मैं भी केिल व्श्क्त नहीं हुँ, व्श्क्त से कुछ बड़ी चीज हुँ। ्मैं आज के ्दुग का प्रतीक हुँ, भारत की राष्ट्री्ता का प्रतीक हुँ, ्मैं उस िेश का प्रतीक हुँ, जो गदुला्मी की जंजीर तोड़कर सरिसटश साम्ाज् से अलग होना चाहता है। आप इस ्मदुगालते ्में न रहें सक आप ्मेरा ्मदुकि्मा िेख रहे हैं ्ा ्मदुझे सजा िेने जा रहे हैं। आप ्मदुकि्मा भारत के करोड़ों सनिासस्ों का िेख रहे हैं और सजा भी आप उनहें ही िेंगे। ्मेरा ख्ाल है, ्ह सजम्मेिारी सकसी अहंकारी साम्ाज् के सलए भी भारी पड़ेगी।’

    ्मैसजसट्ेट ने जिाहरलाल जी पर चार साल कैि की सजा ठोंक िी।

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    17जब पल्म बनिरगाह पर जापान ने अश्खत्ार कर सल्ा, अंग्रेजों के कान सफर से खड़े हो गए। इस घटना का अ््म ्ह ्ा सक अ्मरीका और जापान ्दुद् ्में प्रिेश कर रहे हैं। इससलए सिसमबर, 1941 ्में जिाहरलाल ररहा कर सि्े गए।

    इस बीच सहंसा-असहंसा को लेकर सफर से ्मतभेि बढ़ने लगा। कांग्रेस के नेता बमबई प्रसताि का अ््म ्ह लगाते ्े सक असहंसा का प्र्ोग ह्म िेश की भीतरी स्मस्ाओं के सलए कर सकते हैं। अगर आक्र्मण बाहर से हो, तो िैसी हालत ्में ह्म सहंसा का भी सहारा ले सकते हैं। सकनतदु गांधी जी हर हालत ्में सहंसा को त्ाज् स्मझते ्े। उनहोंने सलखा: ‘्मेरा दृढ़ सिविास है सक भारत और स्मग्र सिवि की धिंस से रषिा केिल असहंसा कर सकती है।’ और इस घोषणा के सा् िे कांग्रेस से सफर अलग हो गए।

    इस बीच सच्ाङ्-काइ-शेक ने भारत की ्ात्रा की और गांधी जी को उनहोंने सलाह िी सक अभी आप आनिोलन नहीं छेड़ें, तो अचछा रहेगा। सफर सर सट्ैफोि्ड सक्रपस आए। जिाहरलाल जी की इचछा ्ी सक सक्रपस-्ोजना संशोधनपूि्मक ्मान ली जाए, तो भारत को इस सिवि्दुद् ्में सहससा लेने का सदु्ोग स्मले। सकनतदु सक्रपस-स्मशन असफल हो ग्ा। अतएि संसार को ्ह जताने को सक ह्म अभी भी स्मत्र-राष्ट्रों को क्मजोर बनाने के पषि ्में नहीं हैं, पंसित जी ने ब्ान सि्ा सक ‘अगर कोई ह्मलािर भारत पर ह्मला करेगा, तो ह्म उसके सा्मने घदुटने नहीं टेकेंगे, बश्लक गदुररल्ा पद्सत से उसके सखलाफ ्दुद् करेंगे। अभी भी ह्म ्ही चाहते हैं सक भारत ्में अंग्रेजों के ्दुद्ोद्ोग ्में कहीं कोई बाधा नहीं िी जाए।’

  • गांधी और जिाहरलाल

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    एक ओर तो िेश ्में ्ह सहंसा-असहंसा का द्नद् चल रहा ्ा, िूसरी ओर जनिरी, 1941 ई. ्में सदुभाषचनद्र बोस पदुसलस को चक्मा िेकर भारत से बाहर भाग गए। िेश ्में इस बात की चचा्म चलने लगी सक अब सदुभाष बाबू बाहर से भारत पर चढ़ाई करिाएँगे। ्ह िेश के सलए भािनात्मक उलझन का स्म् ्ा। सक्रपस-स्मशन असफल हो ग्ा ्ा; जापान तेजी से ब्मा्म की ओर बढ़ता आ रहा ्ा; कांग्रेस अप्मासनत अनदुभि कर रही ्ी; और जिाहरलाल की घोषणाओं के बािजूि िेश ्में सहटलर और जापान के प्रसत सहानदुभूसत बढ़ती जा रही ्ी। अतएि कांग्रेस ्महासस्मसत ने इलाहाबाि ्में एक प्रसताि सिीकृत सक्ा सक बाहरी ह्मलों से भारत को सिाधीनता नहीं स्मल सकती। अगर कोई िदुश्मन चढ़ ही आ्ा, तो जनता को चासहए सक उसका सा्मना िह असहंसा और असह्ोग के उपा्ों से करे।

    अिश् ही जिाहरलाल जी ने गांधी जी का ्मन रखने को असहंसा की ्ह ससफाररश की होगी। सजस व्श्क्त ने िेश से अपील की ्ी सक िह गोररल्ा-पद्सत से लड़ाई लड़ने को तै्ार रहे, उसी ने उस प्रसताि का प्रारूप भी तै्ार सक्ा, सजस्में गोररल्ा-पद्सत के बिले असहंसा को अपनाने की बात कही गई ्ी। ्ह भी जिाहरलाल जी के लचीलेपन का ही एक प्र्माण ्ा।

    सकनतदु गांधी जी असहंसा पर जोर इससलए िे रहे ्े सक उनहें अंग्रेजों को चैन ्में नहीं छोड़ना ्ा। िे ्मन-ही-्मन अपने जीिन के आसखरी संग्रा्म के सलए सन्नद् हो रहे ्े और िे कहीं भी ऐसी भूस्मका नहीं छोड़ना चाहते ्े, सजससे आगे चलकर सहंसा को कोई सैद्ाश्नतक प्रश् स्मल सके। सन् ’42 के अप्रैल-्मई से ही गांधी जी की लेखनी से सचंगारी सछटकने लगी ्ी। उनहोंने अंग्रेजों को स्मझाना शदुरू कर

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    पाठ-पुनपापाठ

    सि्ा ्ा सक खदुिा के िासते तदु्म सहनिदुसतान छोड़कर चले जाओ और ह्में अराजकता ्में ्ा ह्मारी सकस्मत पर छोड़ िो।

    ‘तदुमहें ्हाँ बैठे-बैठे बहुत सिन हो गए। तदु्मने ह्मारा कोई उपकार नहीं सक्ा। ्मैं कहता हुँ, अब ्हाँ से भागो और ह्में छोड़ िो। ईविर के ना्म पर उठो और जाओ। ह्में भगिान के भरोसे छोड़ िो। तदुमहारे जाने के बाि अराजकता ्मचे तो ्मचे, ्मगर तदु्म चले जाओ।’

    गांधी जी की ग्मटी सजतनी ही बढ़ती जाती ्ी, जिाहरलाल जी उतने ही परेशान होते जाते ्े। गांधी जी पर राष्ट्री्ता का जो जोश छा रहा ्ा, उससे जिाहरलाल घबराते ्े और उनहें लगता ्ा, ्मानो गांधी जी भारत की सहत-साधना के प्र्तन ्में सिशाल ्मानिता के सहतों की उपेषिा कर रहे हैं।

    जिाहरलाल जी गांधी जी से स्मलने को कई बार िधा्म गए और कई बार उनके सा् उनहोंने सिचार-सि्मश्म सक्ा; सकनतदु गांधी जी कुछ करने को बेचैन ्े। ‘अंग्रेजों की तानाशाही के आगे घदुटने टेककर बैठ जाना आज भ्ानक बात होगी। इससे िेश के नैसतक बल की रीढ़ टूट जाएगी। ्सि िेश ने अंग्रेजों के आगे घदुटने टेक सि्े, तो िह अन् ह्मलािर के आगे भी घदुटने ही टेकेगा। अक्म्मण्ता ह्में लकिे का सशकार बना िेगी। क्म्मठता ह्मारी सशराओं ्में शश्क्त का संचार करेगी।’

    जिाहरलाल ने सिाल सक्ा, ‘नैसतक कारणों से अंग्रेजों के सा् संघष्म चाहे सजतना भी न्ा्संगत हो, सकनतदु इससे ्दुद्ोद्ोग ्में क्ा बाधा नहीं पड़ेगी, और एक ऐसे ्मौके पर जब भारत खतरे ्में आ

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    ग्ा है?’

    गांधी जी का उत्र ्ा, ‘ईविर ्में सिविास करो। ह्म और तदु्म ्ही तो चाहते हैं सक ्दुद् का नैसतक आधार बिल जाए? भारत औपसनिेसशक िासता का सबसे बड़ा प्रतीक है। अगर ह्मीं आजाि नहीं हुए, तो िदुसन्ा के और गदुला्म िेशों के आगे क्ा उम्मीि है? िैसी हालत ्में इस लड़ाई का लड़ा जाना ही व्््म हो जाएगा।’

    गांधी जी के सा् जिाहरलाल का इस स्म् इतना ्मतभेि हो ग्ा ्ा सक आचा््म नरेनद्रिेि से गांधी जी ने पूछा, ‘अगर ्मैंने आनिोलन शदुरू सक्ा, तो जिाहर पर उसकी क्ा प्रसतसक्र्ा होगी?’

    नरेनद्रिेि जी बोले, ‘िे जेल से बाहर तो नहीं रहेंगे।’

    गांधी जी ने कहा, ‘हाँ, सो कैसे हो सकता है?’

    सकनतदु जब आनिोलन स्माप्त हुआ और उसके सहंसक पषि की सजम्मेिारी उठाने से नेतागण शर्माने लगे, तब जिाहरलाल जी ने िीर गज्मना की, ‘इस आनिोलन की सारी सजम्मेिारी ्मैं अपने ऊपर लेता हुँ।’

    18गांधी जी और जिाहरलाल के बीच ्मतभेि ्ा, सपधा्म नहीं ्ी। गांधी जी तो जिाहरलाल से सपधा्म क्ा करते, जिाहरलाल ्में भी इतनी नास्मझी नहीं ्ी सक ्मतभेिों से ऊबकर िे िूसरी पाटटी बनाएँ और गांधी जी को खदुली चदुनौती िें। जिाहरलाल अपना और गांधी जी का तदुलनात्मक ्महत्ि जानते ्े। उनके भीतर ्ह शद्ा ज्म गई ्ी

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    पाठ-पुनपापाठ

    सक इस िेश ्में अभी जो कुछ हो सकता है, गांधी जी के इशारों से ही हो सकता है। इसी प्रकार, गांधी जी भी जिाहरलाल को अपने सलए अपररहा््म स्मझते ्े। िे जानते ्े सक िेश के नौजिानों ्में जिाहरलाल के प्रसत एक खास आकष्मण है, सजसकी पूसत्म और कोई नहीं कर सकता। िे ्ह भी जानते ्े सक जिाहरलाल के ही पास िह भाषा है, सजसे बाहरी सिवि स्मझता है और जिाहरलाल के पास जो साि्मभौ्म दृश्ष्ट है, िह और सकसी के पास नहीं है। इसीसलए िे जिाहरलाल को अपने से िूर जाने िेना नहीं चाहते ्े। बहुत-से स्माजिािी त्ा साम्िािी कांग्रेस से हट जाएँ, तो भी एक जिाहरलाल को लेकर कांग्रेस ्मजे ्में उनका ्मदुकाबला कर सकती है, ्ह सिविास भी गांधी जी के भीतर ्ा और काल ने, गांधी जी के ्मरने के बाि भी, उसे गलत सासबत होने नहीं सि्ा।

    गांधी जी को सबसे बड़ा सिविास इस बात का ्ा सक जिाहर कभी भी उनहें धोखा नहीं िेगा, कभी भी उनके सखलाफ बगाित नहीं करेगा और रोना-धोना िह चाहे सजतना भी करे, सकनतदु उसके भीतर ्ह कठोरता नहीं है सक उनहें छोड़कर िह अलग हो जाए।

    जब ्दुद् को लेकर िोनों नेताओं के बीच ्मतभेि बहुत बढ़ ग्ा ्ा, उन सिनों सन् 1942 ई. ्में िधा्म ्में होनेिाली असखल भारती् कांग्रेस क्मेटी ्में गांधी जी ने कहा ्ा :

    ‘लोग कहते हैं सक ्मेरे और जिाहरलाल के बीच तनाि आ ग्ा है और ह्म लोग एक-िूसरे से िूर जा पड़े हैं। ह्म लोगों को एक-िूसरे से िूर करने के सलए ्मतभेि काफी नहीं हैं। जब से ह्म सहक्मटी हुए, ्मतभेि तभी से रहे हैं और, तब भी, जो बात ्मैं िषशों से कहता आ्ा हुँ, उसे आज सफर िदुहराना

  • गांधी और जिाहरलाल

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    चाहता हुँ सक ्मेरे उत्रासधकारी राजा जी नहीं होंगे, उत्रासधकारी जिाहरलाल होगा। जिाहरलाल कहता है सक ्मेरी भाषा उसकी स्मझ ्में नहीं आती है, न ्मैं उसकी भाषा स्मझता हुँ। ्मगर भाषा न ्मालू्म हो, तब भी िो सिल स्मलते ही हैं। और ्मैं जानता हुँ सक ्मेरे ्मरने के बाि जिाहरलाल ्मेरी भाषा ्में बात करेगा।’

    पंसित जी बड़े ही सिासभ्मानी पदुरुष ्े। िे अपने िैन् ्ा सिपन्नता की बात सकसी से भी नहीं करते ्े, ्हाँ तक सक अपने सपता से भी नहीं। सकनतदु ऐसी बातें भी िे गांधी जी को सनशछल होकर बता िेते ्े।

    नेहरू-पररिार की स्म्रसद् का उल्ेख लोग आँख ्मूँिकर करते हैं। सकनतदु सच्ची बात ्ह है सक ्मोतीलाल जी की क्माई के क्म होते ही ्ह स्म्रसद् घटने लगी ्ी। 1924 ई. ्में पंसित जिाहरलाल पर ्ह श्म्म गदुजरने लगी ्ी सक पूरा ्मि्म होकर भी ्मैं बाप की क्माई पर जी रहा हुँ। क्ों नहीं अपने पाँि पर आप खड़ा होकर सपता के बोझ को ्ोड़ा हलका कर िूँ? ्ह बात उनहोंने चदुपके से गांधी जी को सलख भेजी, ्मगर इसकी भनक सकसी तरह पं. ्मोतीलाल जी के कान ्में पड़ गई। सिभाितः ही िे बेटे पर झल्ा उठे। सकनतदु पररश्स्सत सँभालने ्में गांधी जी से असधक चतदुर व्श्क्त की कलपना नहीं की जा सकती। उनहांेने भी जिाहरलाल जी को चदुपके से जिाब भेजा :

    ‘तदुमहारा हृि्सपशटी, ्मास्म्मक, िै्श्क्तक पत्र स्मला। तदु्म अपनी स्मस्ा का सा्मना बहािदुरी से करोगे, इस्में ्मदुझे सनिेह नहीं है। सपताजी अभी गदुससे ्में हैं। अभी ्मदुझे ्ा तदुमहें उनके गदुससे को बढ़ाना नहीं चासहए।...क्ा तदुमहारे सलए कुछ रुप्ों का इनतजा्म करूँ? ्मगर तदु्म कोई ऐसा का्म क्ों नहीं करते, सजससे कुछ आ् भी होती हो? सपता के घर ्में रहते हुए भी तदुमहें अपने

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    पसीने की क्माई खानी ही चासहए। क्ा तदुमहें सकसी पत्र का संिाििाता बनना पसनि होगा? ्ा कहो तो तदुमहारे सलए कहीं प्रोफेसरी की तलाश करूँ?’

    लगता है, सन् 1925 ई. के आते-आते पंसित जी धनाभाि का अनदुभि और भी तीव्रता से करने लगे ्े, क्ोंसक 30 ससतमबर, 1925 को गांधी जी ने जो पत्र उनहें सलखा, उस्में इसी सिष् की चचा्म है :

    ‘्मैं सकसी भी व्श्क्त से ्ह कहने का साहस नहीं कर सकता सक तदु्म पंसित ्मोतीलाल जी की सहा्ता करो। लेसकन जहाँ तक तदुमहारा सिाल है, ्मैं एक ्ा अनेक स्मत्रों से ऐसा अनदुरोध कर सकता हुँ और तदुमहारी ्मिि करने ्में उनहें फख्र ही होगा। अगर तदुमहारी श्स्सत बहुत असाधारण नहीं हो, तो ्मेरी सलाह होगी सक तदुमहें भी साि्मजसनक कोष से सहा्ता सिीकार करनी चासहए। ्मेरा सनश्श्चत ्मत है सक तदुमहें कोई कारोबार करना चासहए, सजसे पाररिाररक कोष ्में तदु्म अपना अंशिान िे सको। ्सि ्ह पसनि नहीं हो, तो साि्मजसनक षिेत्र ्में खड़ा रहने के सलए तदुमहें स्मत्रों का साहाय् सिीकार करना चासहए। ्ह सनण्म् जलिबाजी ्में नहीं सक्ा जाना चासहए। ्मगर ्मदुझे तो तदुमहारी सफक्र है। िह का्म जरूर सक्ा जाना चासहए, सजससे तदुमहें ्मानससक शाश्नत स्मले। सबजनेस-्मैनेजर होकर िेश का का्म तदु्म क्म नहीं करोगे, ऐसा ्मैं ्मानता हुँ। और तदु्म अगर कोई रोजगार करो, तो इससे सपताजी को बदुरा नहीं ्मानना चासहए।’

    पंसित जी को गांधी जी जो भी खत सलखते ्े, अकसर िे ्मदुहबबत से लबरेज होते ्े और उनसे ्ह सपष्ट सिसित होता ्ा सक अपने इस असद्ती् सशष् के सलए उनहें सकतना गौरि और असभ्मान ्ा।

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    जब सन् 1928 ई. ्में साइ्मन क्मीशन के बसहषकार के ससलससले ्में जिाहरलाल जी पर लाठी के िार हुए, गांधी जी ने उनहें आशीिा्मि िेते हुए सलखा :

    ‘्मेरा प्रे्म सिीकार करो। तदु्मने बड़ी बहािदुरी का पररच् सि्ा। ्मगर आगे तदुमहें इससे भी बड़ी बहािदुरी का पररच् िेना है। भगिान तदुमहें अभी बहुत िषशों तक आबाि रखें और सहनिदुसतान को गदुला्मी से छुड़ाने ्में तदुमहारा उप्ोग, खास तौर से चदुने हुए ्ंत्र के रूप ्में, करें।’

    कांग्रेस के भीतर जिाहरलाल जी के प्रसतद्नद्ी सदुभाष बाबू नहीं, सरिार पटेल ्े। पंसित जी और सरिार के बीच खास ्मतभेि स्माजिासि्ों के सा् सकए जानेिाले सलूक को लेकर ्ा। पंसित जी ने कांग्रेस के भीतर अपना स्ान सिद्रोही का नहीं, स्माजिासि्ों के संरषिक का बना रखा ्ा। सकनतदु सरिार पाटटी के सूत्रधार ्े। उनके सिरुद् जिाहरलाल जी स्माजिासि्ों को काफी संरषिण नहीं िे सके। नतीजा ्ह हुआ सक बहुत-से स्माजिासि्ों ने कांग्रेस छोड़ िी।

    जब गांधी जी नहीं रहे, एिगर स्ो ने जिाहरलाल से पूछा, ‘स्माजिासि्ों के सलए आप सहानदुभूसतशील रहे हैं। सकनतदु सरिार पटेल स्माजिासि्ों को नहीं चाहते हैं। तो सफर आप पटेल के सा् स्मलकर का्म कैसे करते हैं?’

    पंसित जी ने कहा, ‘जब सपष्ट का््मक्र्म सनधा्मररत करने का सिाल उठता है, तफसील ्में सरिार और ्मैं, अकसर एक-िूसरे के सिरुद् हो जाते हैं। पहले भी ऐसा ही होता ्ा और आज भी ऐसी ही बात है। ्मगर ह्म िोनों के पारसपररक सिरोध का श्मन पहले गांधी जी

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    करते ्े और अब िही का्म उनकी ्ाि करती है। गांधी जी अपने जीिन-काल ्में सजतने शश्क्तशाली ्े, ्मरने के बाि उससे असधक शश्क्तशाली हो गए हैं। ्मैं जानता हुँ सक अगर ्मैं इशारा कर िूँ तो सरिार ्मंसत्र्मंिल छोड़ िेंगे और िे भी जानते हैं सक उनका इशारा पाते ही ्मैं ्मंसत्र्मंिल से सनकल जाऊँगा। गांधी जी की ्ाि ह्म िोनों को बाँधे हुए है।’

    जब गांधी जी की हत्ा हुई, लॉि्ड ्माउंटबेटन ने पहला का्म ्ह सक्ा ्ा सक जिाहरलाल और सरिार से कहा, ‘अपने गदुरु का चरण सपश्म करो और शप् लो सक तदु्म िोनों एक रहोेगे?’ उस सिन गांधी जी के शि के पास सरिार और जिाहरलाल एक-िूसरे को अंकिार ्में भरकर रोए ्े। िे आँसू भारत के सनकटितटी भसि


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