+ All Categories
Home > Documents > कर्मभर्मभूमिमभ · 'एक तो यह तालीम ही ह।...

कर्मभर्मभूमिमभ · 'एक तो यह तालीम ही ह।...

Date post: 31-Aug-2019
Category:
Upload: others
View: 2 times
Download: 0 times
Share this document with a friend
279
भि ेचंद 1 www.hindustanbooks.com
Transcript

करमभरमभमिमभपरमभचद

1 www.hindustanbooks.com

हमार सकलो और कॉलजो म िजस ततपरता स फीस वसल की जाती ह, शायद मालगजारी भी उतनी सखती स नही वसल की जाती। महीन म एक िदन िनयत कर िदया जाता ह। उस िदन फीस का दािखिला होना अनिनवायरय ह। या तो फीस दीिजए, या नाम कटवाइए, या जब तक फीस न दािखिल हो, रोज कछ जमाना दीिजए। कही-कही ऐसा भी िनयम ह िक उसी िदन फीस दगनी कर दी जाती ह, और िकसी दसरी तारीखि को दगनी फीस न दी तो नाम कट जाता ह। काशी क कवीनस कॉलज म यही िनयम था। सातवी तारीखि को फीस न दो , तो इककीसवी तारीखि को दगनी फीस दनी पडती थी, या नाम कट जाता था। ऐस कठोर िनयमो का उददशय इसक िसवा और कया हो सकता था, िक गरीबो क लडक सकल छोडकर भाग जाए- वही हदयहीन दफतरी शासन, जो अननय िवभागो म ह, हमार िशकषालयो म भी ह। वह िकसी क साथ िरयायत नही करता। चाह जहा स लाओ, कजरय लो, गहन िगरवी रखिो, लोटा-थाली बचो, चोरी करो, मगर फीस जरर दो, नही दनी फीस दनी पडगी, या नाम कट जाएगा। जमीन और जायदाद क कर वसल करन म भी कछ िरयायत की जाती ह। हमार िशकषालयो म नमी को घसन ही नही िदया जाता। वहा सथायी रप स माशरयल-लॉ का वयवहार होता ह। कचहरी म पस का राज ह, हमार सकलो म भी पस का राज ह, उसस कही कठोर, कही िनदरयय। दर म आइए तो जमाना न आइए तो जमाना सबक न याद हो तो जमाना िकताब न खिरीद सिकए तो जमाना कोई अनपराध हो जाए तो जमाना िशकषालय कया ह, जमानालय ह। यही हमारी पिशचिमी िशकषा का आदशरय ह, िजसकी तारीफो क पल बाध जात ह। यिद ऐस िशकषालयो स पस पर जान दन वाल, पस क िलए गरीबो का गला काटन वाल, पस क िलए अनपनी आतमा बच दन वाल छातर िनकलत ह, तो आशचियरय कया ह-

आज वही वसली की तारीखि ह। अनधयापको की मजो पर रपयो क ढर लग ह। चारो तरफ खिनाखिन की आवाज आ रही ह। सराफ म भी रपय की ऐसी झकार कम सनाई दती ह। हरक मासटर तहसील का चपरासी बना बठा हआ ह। िजस लडक का नाम पकारा जाता ह, वह अनधयापक क सामन आता ह, फीस दता ह और अनपनी जगह पर आ बठता ह। माचरय का महीना ह। इसी महीन म अनपरल, मई और जन की फीस भी वसल की जा रही ह। इमतहान की फीस भी ली जा रही ह। दसव दजरज म तो एक-एक लडक को चालीस रपय दन पड रह ह।

अनधयापक न बीसव लडक का नाम पकारा-अनमरकानत

अनमरकानत गरहािजर था।

अनधयापक न पछा-कया अनमरकानत नही आया?

एक लडक न कहा-आए तो थ, शायद बाहर चल गए हो।

'कया फीस नही लाया ह?'

िकसी लडक न जवाब नही िदया।

अनधयापक की मदरा पर खद की रखिा झलक पडी। अनमरकानत अनचछ लडको म था। बोल-शायद फीस लान गया होगा। इस घट म न आया, तो दनी फीस दनी पडगी। मरा कया अनिखतयार ह- दसरा लडका चल-गोवधरयनदास

सहसा एक लडक न पछा-अनगर आपकी इजाजत हो, तो म बाहर जाकर दखि?

अनधयापक न मसकराकर कहा-घर की याद आई होगी। खिर, जाओ मगर दस िमनट क अनदर आ जाना।

2 www.hindustanbooks.com

लडको को बला-बलाकर फीस लना मरा काम नही ह।

लडक न नमरता स कहा-अनभी आता ह। कसम ल लीिजए, जो हात क बाहर जाऊ।

यह इस ककषा क सपनन लडको म था, बडा िखिलाडी, बडा बठकबाज। हािजरी दकर गायब हो जाता, तो शाम की खिबर लाता। हर महीन फीस की दनी रकम जमाना िदया करता था। गोर रग का , लबा, छरहरा शौकीन यवक था। िजसक पराण खल म बसत थ। नाम था मोहममद सलीम।

सलीम और अनमरकानत दोनो पास-पास बठत थ। सलीम को िहसाब लगान या तजरयमा करन म अनमरकानत स िवशष सहायता िमलती थी। उसकी कापी स नकल कर िलया करता था। इसस दोनो म दोसती हो गई थी। सलीम किव था। अनमरकानत उसकी गजल बड चाव स सनता था। मतरी का यह एक और कारण था।

सलीम न बाहर जाकर इधर-उधर िनगाह दौडाई, अनमरकानत का कही पता न था। जरा और आग बढ।, तो दखिा, वह एक वकष की आड म खिडा ह। पकारा-अनमरकानत ओ बधद लाल चलो, फीस जमा कर। पिडतजी िबगड रह ह।

अनमरकानत न अनचकन क दामन स आख पोछ ली और सलीम की तरफ आता हआ बोला-कया मरा नबर आ गया?

सलीम न उसक मह की तरफ दखिा, तो उसकी आख लाल थी। वह अनपन जीवन म शायद ही कभी रोया हो चौककर बोला-अनर तम रो रह हो कया बात ह-

अनमरकानत सावल रग का, छोटा-सा दबला-पतला कमार था। अनवसथा बीस की हो गई थी पर अनभी मस भी न भीगी थी। चौदह-पदरह साल का िकशोर-सा लगता था। उसक मखि पर एक वदनामय दढता, जो िनराशा स बहत कछ िमलती-जलती थी, अनिकत हो रही थी, मानो ससार म उसका कोई नही ह। इसक साथ ही उसकी मदरा पर कछ ऐसी परितभा, कछ ऐसी मनिसवता थी िक एक बार उस दखिकर िफर भल जाना किठन था।

उसन मसकराकर कहा-कछ नही जी, रोता कौन ह-

'आप रोत ह, और कौन रोता ह। सच बताओ कया हआ?'

अनमरकानत की आख िफर भर आइ। लाखि यतन करन पर भी आस न रक सक। सलीम समझ गया। उसका हाथ पकडकर बोला-कया फीस क िलए रो रह हो- भल आदमी, मझस कयो न कह िदया- तम मझ भी गर समझत हो। कसम खिदा की, बड नालायक आदमी हो तम। ऐस आदमी को गोली मार दनी चािहए दोसतो स भी यह गिरयत चलो कलास म, म फीस िदए दता ह। जरा-सी बात क िलए घट-भर स रो रह हो। वह तो कहो म आ गया, नही तो आज जनाब का नाम ही कट गया होता।

अनमरकानत को तसलली तो हई पर अननगरह क बोझ स उसकी गदरयन दब गई। बोला -पिडतजी आज मान न जाएग?

सलीम न खिड होकर कहा-पिडतजी क बस की बात थोड ही ह। यही सरकारी कायदा ह। मगर हो तम बड शतान, वह तो खििरयत हो गई, म रपय लता आया था, नही खिब इमतहान दत। दखिो, आज एक ताजा गजल कही ह। पीठ सहला दना :

आपको मरी वफा याद आई,

3 www.hindustanbooks.com

खिर ह आज यह कया याद आई।

अनमरकानत का वयिथत िचतता इस समय गजल सनन को तयार न था पर सन बगर काम भी तो नही चल सकता। बोला-नाजक चीज ह। खिब कहा ह। म तमहारी जबान की सफाई पर जान दता ह।

सलीम-यही तो खिास बात ह, भाई साहब लफजो की झकार का नाम गजल नही ह। दसरा शर सनो :

िफर मर सीन म एक हक उठी,

िफर मझ तरी अनदा याद आई।

अनमरकानत न िफर तारीफ की-लाजवाब चीज ह। कस तमह ऐस शर सझ जात ह-

सलीम हसा-उसी तरह, जस तमह िहसाब और मजमन सझ जात ह। जस एसोिसएशन म सपीच द लत हो। आओ, पान खिात चल।

दोनो दोसतो न पान खिाए और सकल की तरफ चल। अनमरकानत न कहा-पिडतजी बडी डाट बताएग।

'फीस ही तो लग'

'और जो पछ, अनब तक कहा थ?'

'कह दना, फीस लाना भल गया था।'

'मझस न कहत बनगा। म साफ-साफ कह दगा।'

तो तम िपटोग भी मर हाथ स'

सधया समय जब छटटी हई और दोनो िमतर घर चल, अनमरकानत न कहा-तमन आज मझ पर जो एहसान िकया ह...

सलीम न उसक मह पर हाथ रखिकर कहा-बस खिबरदार, जो मह स एक आवाज भी िनकाली। कभी भलकर भी इसका िजकर न करना।

'आज जलस म आओग?'

'मजमन कया ह, मझ तो याद नही?'

'अनजी वही पिशचिमी सभयता ह।'

'तो मझ दो-चार पवाइट बता दो, नही तो म वहा कहगा कया?'

'बताना कया ह- पिशचिमी सभयता की बराइया हम सब जानत ही ह। वही बयान कर दना।'

'तम जानत होग, मझ तो एक भी नही मालम।'

'एक तो यह तालीम ही ह। जहा दखिो वही दकानदारी। अनदालत की दकान, इलम की दकान, सहत की दकान। इस एक पवाइट पर बहत कछ कहा जा सकता ह।'

'अनचछी बात ह, आऊगा।

4 www.hindustanbooks.com

दोअनमरकानत क िपता लाला समरकानत बड उदयोगी परष थ। उनक िपता कवल एक झोपडी छोडकर मर थ

मगर समरकानत न अनपन बाहबल स लाखिो की सपितत जमा कर ली थी। पहल उनकी एक छोटी-सी हलदी की आढत थी। हलदी स गड और चावल की बारी आई। तीन बरस तक लगातार उनक वयापार का कषतर बढता ही गया। अनब आढत बद कर दी थी। कवल लन-दन करत थ। िजस कोई महाजन रपय न द, उस वह बखिटक द दत और वसल भी कर लत उनह आशचियरय होता था िक िकसी क रपय मार कस जात ह- ऐसा महनती आदमी भी कम होगा। घडी रात रह गगा-सनान करन चल जात और सयोदय क पहल िवशवनाथजी क दशरयन करक दकान पर पहच जात। वहा मनीम को जररी काम समझाकर तगाद पर िनकल जात और तीसर पहर लौटत। भोजन करक िफर दकान आ जात और आधी रात तक डट रहत। थ भी भीमकाय। भोजन तो एक ही बार करत थ, पर खिब डटकर। दो-ढाई सौ मगदर क हाथ अनभी तक फरत थ। अनमरकानत की माता का उसक बचपन ही म दहात हो गया था। समरकानत न िमतरो क कहन-सनन स दसरा िववाह कर िलया था। उस सात साल क बालक न नई मा का बड परम स सवागत िकया लिकन उस जलद मालम हो गया िक उसकी नई माता उसकी िजद और शरारतो को उस कषमा-दिषटि स नही दखिती, जस उसकी मा दखिती थी। वह अनपनी मा का अनकला लाडला लडका था, बडा िजददी, बडा नटखिट। जो बात मह स िनकल जाती, उस परा करक ही छोडता। नई माताजी बात-बात पर डाटती थी। यहा तक िक उस माता स दवष हो गया। िजस बात को वह मना करती, उस वह अनदबदाकर करता। िपता स भी ढीठ हो गया। िपता और पतर म सनह का बधन न रहा। लालाजी जो काम करत, बट को उसस अनरिच होती। वह मलाई क परमी थ बट को मलाई स अनरिच थी। वह पजा-पाठ बहत करत थ, लडका इस ढोग समझता था। वह पहल िसर क लोभी थ लडका पस को ठीकरा समझता था।

मगर कभी-कभी बराई स भलाई पदा हो जाती ह। पतर सामानय रीित स िपता का अननगामी होता ह। महाजन का बटा महाजन, पिडत का पिडत, वकील का वकील, िकसान का िकसान होता ह मगर यहा इस दवष न महाजन क पतर को महाजन का शतर बना िदया। िजस बात का िपता न िवरोध िकया, वह पतर क िलए मानय हो गई, और िजसको सराहा, वह तयाजय। महाजनी क हथकड और षडयतर उसक सामन रोज ही रच जात थ। उस इस वयापार स घणा होती थी। इस चाह पवरय ससकार कह लो पर हम तो यही कहग िक अनमरकानत क चिरतर का िनमाण िपता-दवष क हाथो हआ।

खििरयत यह हई िक उसक कोई सौतला भाई न हआ। नही शायद वह घर स िनकल गया होता। समरकानत अनपनी सपितत को पतर स जयादा मलयवान समझत थ। पतर क िलए तो सपितत की कोई जररत न थी पर सपितत क िलए पतर की जररत थी। िवमाता की तो इचछा यही थी िक उस वनवास दकर अनपनी चहती नना क िलए रासता साफ कर द पर समरकानत इस िवषय म िनशचिल रह। मजा यह था िक नना सवय भाई स परम करती थी, और अनमरकानत क हदय म अनगर घर वालो क िलए कही कोमल सथान था, तो वह नना क िलए था। नना की सरत भाई स इतनी िमलती-जलती थी, जस सगी बहन हो। इस अननरपता न उस अनमरकानत क और भी समीप कर िदया था। माता-िपता क इस दवरयवयहवार को वह इस सनह क नश म भला िदया करता था। घर म कोई बालक न था और नना क िलए िकसी साथी का होना अनिनवायरय था। माता चाहती थी, नना भाई स दर-दर रह। वह अनमरकानत को इस योगय न समझती थी िक वह उनकी बटी क साथ खल। नना की बाल-परकतित इस कटनीित क झकाए न झकी। भाई-बहन म यह सनह यहा तक बढा िक अनत म िवमाततव न माततव को भी परासत कर िदया।

5 www.hindustanbooks.com

िवमाता न नना को भी आखिो स िगरा िदया और पतर की कामना िलए ससार स िवदा हो गइ।

अनब नना घर म अनकली रह गई। समरकानत बाल-िववाह की बराइया समझत थ। अनपना िववाह भी न कर सक। वधद-िववाह की बराइया भी समझत थ। अनमरकानत का िववाह करना जररी हो गया। अनब इस परसताव का िवरोध कौन करता-

अनमरकानत की अनवसथा उननीस साल स कम न थी पर दह और बिधद को दखित हए, अनभी िकशोरावसथा ही म था। दह का दबरयल, बिधद का मद। पौध को कभी मकत परकाश न िमला, कस बढता, कस फलता- बढन और फलन क िदन कसगित और अनसयम म िनकल गए। दस साल पढत हो गए थ और अनभी जयो-तयो आठव म पहचा था। िकत िववाह क िलए यह बात नही दखिी जाती। दखिा जाता ह धान, िवशषकर उस िबरादरी म, िजसका उ?म ही वयवसाय हो। लखिनऊ क एक धानी पिरवार स बातचीत चल पडी। समरकानत की तो लार टपक पडी। कनया क घर म िवधावा माता क िसवा िनकट का कोई सबधी न था, और धान की कही थाह नही। ऐसी कनया बड भागो स िमलती ह। उसकी माता न बट की साधा बटी स परी की थी। तयाग की जगह भोग, शील की जगह तज, कोमल की जगह तीवर का ससकार िकया था। िसकडन और िसमटन का उस अनभयास न था। और वह यवक-परकतित की यवती बयाही गई यवती-परकतित क यवक स, िजसम परषाथरय का कोई गण नही। अनगर दोनो क कपड बदल िदए जात, तो एक-दसर क सथानापनन हो जात। दबा हआ परषाथरय ही सतरीतव ह।

िववाह हए दो साल हो चक थ पर दोनो म कोई सामजसय न था। दोनो अनपन-अनपन मागरय पर चल जात थ। दोनो क िवचार अनलग, वयवहार अनलग, ससार अनलग। जस दो िभनन जलवाय क जत एक िपजर म बद कर िदए गए हो। हा, तभी अनमरकानत क जीवन म सयम और परयास की लगन पदा हो गई थी। उसकी परकतित म जो ढीलापन, िनजीवता और सकोच था वह कोमलता क रप म बदलता जाता था। िवदयाभयास म उस अनब रिच हो गई थी। हालािक लालाजी अनब उस घर क धधो म लगाना चाहत थ-वह तार-वार पढ लता था और इसस अनिधक योगयता की उनकी समझ म जररत न थी-पर अनमरकानत उस पिथक की भाित, िजसन िदन िवशराम म काट िदया हो, अनब अनपन सथान पर पहचन क िलए दन वग स कदम बढाए चला जाता था।

6 www.hindustanbooks.com

तीनसकल स लौटकर अनमरकानत िनयमानसार अनपनी छोटी कोठरी म जाकर चरख पर बठ गया। उस िवशाल

भवन म, जहा बारात ठहर सकती थी, उसन अनपन िलए यही छोटी-सी कोठरी पसद की थी। इधर कई महीन स उसन दो घट रोज सत कातन की परितजञा कर ली थी और िपता क िवरोध करन पर भी उस िनभाए जाता था।

मकान था तो बहत बडा मगर िनवािसयो की रकषा क िलए उतना उपयकत न था, िजतना धान की रकषा क िलए। नीच क तलल म कई बड-बड कमर थ, जो गोदाम क िलए बहत अननकल थ। हवा और परकाश का कही रासता नही। िजस रासत स हवा और परकाश आ सकता ह, उसी रासत स चोर भी तो आ सकता ह। चोर की शका उसकी एक-एक इट स टपकती थी। ऊपर क दोनो तलल हवादार और खिल हए थ। भोजन नीच बनता था। सोना-बठना ऊपर होता था। सामन सडक पर दो कमर थ। एक म लालाजी बठत थ, दसर म मनीम। कमरो क आग एक सायबान था, िजसम गाय बधाती थी। लालाजी पकक गोभकत थ।

अनमरकानत सत कातन म मगन था िक उसकी छोटी बहन नना आकर बोली-कया हआ भया, फीस जमा हई या नही- मर पास बीस रपय ह, यह ल लो। म कल और िकसी स माग लाऊगी।

अनमर न चरखिा चलात हए कहा-आज ही तो फीस जमा करन की तारीखि थी। नाम कट गया। अनब रपय लकर कया करगा-

नना रप-रग म अनपन भाई स इतनी िमलती थी िक अनमरकानत उसकी साडी पहन लता, तो यह बतलाना मिशकल हो जाता िक कौन यह ह कौन वह हा, इतना अनतर अनवशय था िक भाई की दबरयलता यहा सकमारता बनकर आकषरयक हो गई थी।

अनमर न िदललगी की थी पर नना क चहर रग उड गया। बोली-तमन कहा नही, नाम न काटो, म दो-एक िदन म द दगा-

अनमर न उसकी घबराहट का आनद उठात हए कहा-कहन को तो मन सब कछ कहा लिकन सनता कौन था-

नना न रोष क भाव स कहा-म तो तमह अनपन कड द रही थी, कयो नही िलए-

अनमर न हसकर पछा-और जो दादा पछत, तो कया होता-

'दादा स बतलाती ही कयो?'

अनमर न मह लबा करक कहा-म चोरी स कोई काम नही करना चाहता, नना अनब खिश हो जाओ, मन फीस जमा कर दी।

नना को िवशवास न आया, बोली-फीस नही, वह जमा कर दी। तमहार पास रपय कहा थ?'

'नही नना, सच कहता ह, जमा कर दी।'

'रपय कहा थ?'

'एक दोसत स ल िलए।'

7 www.hindustanbooks.com

'तमन माग कस?'

'उसन आप-ही-आप द िदए, मझ मागन न पड।'

'कोई बडा सजजन होगा।'

'हा, ह तो सजजन, नना जब फीस जमा होन लगी तो म मार शमरय क बाहर चला गया। न जान कयो उस वकत मझ रोना आ गया। सोचता था, म ऐसा गया-बीता ह िक मर पास चालीस रपय नही। वह िमतर जरा दर म मझ बलान आया। मरी आख लाल थी। समझ गया। तरत जाकर फीस जमा कर दी। तमन कहा पाए य बीस रपय?'

'यह न बताऊगी।'

नना न भाग जाना चाहा। बारह बरस की यह लजजाशील बािलका एक साथ ही सरल भी थी और चतर भी। उस ठफना सहज न था। उसस अनपनी िचताआ को िछपाना किठन था।

अनमर न लपककर उसका हाथ पकड िलया और बोला-जब तक बताओगी नही, म जान न दगा। िकसी स कहगा नही, सच कहता ह।

नना झपती हई बोली-दादा स िलए।

अनमरकानत न बिदली क साथ कहा-तमन उनस नाहक माग, नना जब उनहोन मझ इतनी िनदरययता स दतकार िदया, तो म नही चाहता िक उनस एक पसा भी माग। मन तो समझा था, तमहार पास कही पड होग अनगर म जानता िक तम भी दादा स ही मागोगी तो साफ कह दता, मझ रपय की जररत नही। दादा कया बोल-

नना सजल नतर होकर बोली-बोल तो नही। यही कहत रह िक करना-धारना तो कछ नही, रोज रपय चािहए, कभी फीस कभी िकताब कभी चदा। िफर मनीमजी स कहा, बीस रपय द दो। बीस रपय िफर दना।

अनमर न उततोिजत होकर कहा-तम रपय लौटा दना, मझ नही चािहए।

नना िससक-िससककर रोन लगी। अनमरकानत न रपय जमीन पर फक िदए थ और वह सारी कोठरी म िबखिर पड थ। दोनो म स एक भी चनन का नाम न लता था। सहसा लाला समरकानत आकर दवार पर खिड हो गए। नना की िससिकया बद हो गइ और अनमरकानत मानो तलवार की चोट खिान क िलए अनपन मन को तयार करन लगा। लाला जो दोहर बदन क दीघरयकाय मनषय थ। िसर स पाव तक सठ-वही खिलवाट मसतक, वही फल हए कपोल, वही िनकली हई तोद। मखि पर सयम का तज था, िजसम सवाथरय की गहरी झलक िमली हई थी। कठोर सवर म बोल-चरखिा चला रहा ह। इतनी दर म िकतना सत काता- होगा दो-चार रपय का-

अनमरकानत न गवरय स कहा-चरखिा रपय क िलए नही चलाया जाता।

'और िकसिलए चलाया जाता ह।'

'यह आतम-शिधद का एक साधन ह।'

समरकानत क घाव पर जस नमक पड गया। बोल-यह आज नई बात मालम हई। तब तो तमहार ऋषिष होन म कोई सदह नही रहा, मगर साधन क साथ कछ घर-गहसथी का काम भी दखिना होता ह। िदन-भर सकल म रहो, वहा स लौटो तो चरख पर बठो, रात को तमहारी सतरी-पाठशाला खिल, सधया समय जलस हो, तो घर का

8 www.hindustanbooks.com

धधा कौन कर- म बल नही ह। तमही लोगो क िलए इस जजाल म फसा हआ ह। अनपन ऊपर लाद न ल जाऊगा। तमह कछ तो मरी मदद करनी चािहए। बड नीितवान बनत हो, कया यह नीित ह िक बढा बाप मरा कर और जवान बटा उसकी बात भी न पछ-

अनमरकानत न उदडता स कहा-म तो आपस बार-बार कह चका, आप मर िलए कछ न कर। मझ धान की जररत नही। आपकी भी वधदावसथा ह। शातिचतत होकर भगवत-भजन कीिजए।

समरकानत तीख शबदो म बोल-धान न रहगा लाला, तो भीखि मागोग। यो चन स बठकर चरखिा न चलाओग। यह तो न होगा, मरी कछ मदद करो, परषाथरयहीन मनषयो की तरह कहन लग, मझ धान की जररत नही। कौन ह, िजस धान की जररत नही- साध-सनयासी तक तो पसो पर पराण दत ह। धान बड परषाथरय स िमलता ह। िजसम परषाथरय नही, वह कया धान कमाएगा- बड-बड तो धान की उपकषा कर ही नही सकत, तम िकस खत की मली हो

अनमर न उसी िवतडा भाव स कहा-ससार धान क िलए पराण द, मझ धन की इचछा नही। एक मजर भी धमरय और आतमा की रकषा करत हए जीवन का िनवाह कर सकता ह। कम-स-कम म अनपन जीवन म इसकी परीकषा करना चाहता ह।

लालाजी को वाद-िववाद का अनवकाश न था। हारकर बोल-अनचछा बाबा, कर लो खिब जी भरकर परीकषा लिकन रोज-रोज रपय क िलए मरा िसर न खिाया करो। म अनपनी गाढी कमाई तमहार वयसन क िलए नही लटाना चाहता।

लालाजी चल गए। नना कही एकात म जाकर खिब रोना चाहती थी पर िहल न सकती थी और अनमरकानत ऐसा िवरकत हो रहा था, मानो जीवन उस भार हो रहा ह।

उसी वकत महरी न ऊपर स आकर कहा-भया, तमह बहजी बला रही ह।

अनमरकानत न िबगडकर कहा-जा कह द, फसरयत नही ह। चली वहा स-बहजी बला रही ह।

लिकन जब महरी लौटन लगी, तो उसन अनपन तीखपन पर लिजजत होकर कहा-मन तमह कछ नही कहा ह िसललो कह दो, अनभी आता ह। तमहारी रानीजी कया कर रही ह-

िसललो का परा नाम था कौशलया। सीतला म पित, पतर और एक आखि जाती रही थी, तब स िविकषपत-सी हो गई थी। रोन की बात पर हसती, हसन की बात पर रोती। घर क और सभी पराणी, यहा तक की नौकर-चाकर तक उस डाटत रहत थ। कवल अनमरकानत उस मनषय समझता था। कछ सवसथ होकर बोली-बठी कछ िलखि रही ह। लालाजी चीखित थ इसी स तमह बला भजा।

अनमर जस िगर पडन क बाद गदरय झाडता हआ, परसनन मखि ऊपर चला। सखिदा अनपन कमर क दवार पर खिडी थी। बोली-तमहार तो दशरयन ही दलरयभ हो जात ह। सकल स आकर चरखिा ल बठत हो। कयो नही मझ घर भज दत- जब मरी जररत समझना, बला भजना। अनबकी आए मझ छ: महीन हए। मीयाद परी हो गई। अनब तो िरहाई हो जानी चािहए।

यह कहत हए उसन एक तशतरी म कछ नमकीन और कछ िमठाई लाकर मज पर रखि दी और अनमर का हाथ पकड कमर म ल जाकर करसी पर बठा िदया।

9 www.hindustanbooks.com

यह कमरा और सब कमरो स बडा, हवादार और ससिजजत था। दरी का गशरय था, उस पर करीन स कई गदददार और सादी करिसया लगी हई थी। बीच म एक छोटी-सी नककाशीदार गोल मज थी। शीश की आलमािरयो म सिजलद पसतक सजी हई थी। आलो पर तरह-तरह क िखिलौन रख हए थ। एक कोन म मज पर हारमोिनयम रखिा हआ था। दीवारो पर धरधर, रिव वमा और कई िचतरकारो की तसवीर शोभा द रही थी। दो-तीन परान िचतर भी थ। कमर की सजावट स सरिच और सपननता का आभास होता था।

अनमरकानत का सखिदा स िववाह हए दो साल हो चक थ। सखिदा दो बार तो एक-एक महीना रहकर चली गई थी। अनबकी उस आए छ: महीन हो गए थ मगर उनका सनह अनभी तक ऊपर-ही-ऊपर था। गहराइयो म दोनो एक-दसर स अनलग-अनलग थ। सखिदा न कभी अनभाव न जाना था, जीवन की किठनाइया न सही थी। वह जान-मान मागरय को छोडकर अननजान रासत पर पाव रखित डरती थी। भोग और िवलास को वह जीवन की सबस मलयवान वसत समझती थी और उस हदय स लगाए रहना चाहती थी। अनमरकानत को वह घर क कामकाज की ओर खिीचन का परयास करती रहती थी। कभी समझाती थी, कभी रठती थी, कभी िबगडती थी। सास क न रहन स वह एक परकार स घर की सवािमनी हो गई थी। बाहर क सवामी लाला समरकानत थ पर भीतर का सचालन सखिदा ही क हाथो म था। िकत अनमरकानत उसकी बातो को हसी म टाल दता। उस पर अनपना परभाव डालन की कभी चषटिा न करता। उसकी िवलासिपरयता मानो खतो म हौव की भाित उस डराती रहती थी। खत म हिरयाली थी, दान थ, लिकन वह हौवा िनशचिल भाव स दोनो हाथ फलाए खिडा उसकी ओर घरता रहता था। अनपनी आशा और दराशा, हार और जीत को वह सखिदा स बराई की भाित िछपाता था। कभी-कभी उस घर लौटन म दर हो जाती, तो सखिदा वयगय करन स बाज न आती थी-हा, यहा कौन अनपना बठा हआ ह बाहर क मज घर मकहा और यह ितरसकार, िकसान की कड-कड की भाित हौव क भय को और भी उततोिजत कर दती थी। वह उसकी खिशामद करता, अनपन िसधदातो को लबी-स-लबी रससी दता पर सखिदा इस उसकी दबरयलता समझकर ठकरा दती थी। वह पित को दया-भाव स दखिती थी, उसकी तयागमयी परवितत का अननादर न करती थी पर इसका तथय न समझ सकती थी। वह अनगर सहानभित की िभकषा मागता, उसक सहयोग क िलए हाथ फलाता, तो शायद वह उसकी उपकषा न करती। अनपनी मठठी बद करक, अनपनी िमठाई आप खिाकर, वह उस रला दता। वह भी अनपनी मठठी बद कर लती थी और अनपनी िमठाई आप खिाती थी। दोनो आपस म हसत-बोलत थ, सािहतय और इितहास की चचा करत थ लिकन जीवन क गढ वयापारो म पथक थ। दध और पानी का मल नही, रत और पानी का मल था जो एक कषण क िलए िमलकर पथक हो जाता था।

अनमर न इस िशकायत की कोमलता या तो समझी नही, या समझकर उसका रस न ल सका। लालाजी न जो आघात िकया था, अनभी उसकी आतमा उस वदना स तडप रही थी। बोला-म भी यही उिचत समझता ह। अनब मझ पढना छोडकर जीिवका की िफकर करनी पडगी।

सखिदा न खिीझकर कहा-हा, जयादा पढ लन स सनती ह, आदमी पागल हो जाता ह।

अनमर न लडन क िलए यहा भी आसतीन चढा ली-तम यह आकषप वयथरय कर रही हो। पढन स म जी नही चराता लिकन इस दशा म पढना नही हो सकता। आज सकल म मझ िजतना लिजजत होना पडा, वह म ही जानता ह। अनपनी आतमा की हतया करक पढन स भखिा रहना कही अनचछा ह।

सखिदा न भी अनपन शसतर सभाल। बोली-म तो समझती ह िक घडी-दो घडी दकान पर बठकर भी आदमी बहत कछ पढ सकता ह। चरख और जलसो म जो समय दत हो, वह दकान पर दो, तो कोई बराई न होगी। िफर

10 www.hindustanbooks.com

जब तम िकसी स कछ कहोग नही तो कोई तमहार िदल की बात कस समझ लगा- मर पास इस वकत भी एक हजार रपय स कम नही। वह मर रपय ह, म उनह उडा सकती ह। तमन मझस चचा तक न की। म बरी सही, तमहारी दशमन नही। आज लालाजी की बात सनकर मरा रकत खिौल रहा था। चालीस रपय क िलए इतना हगामा तमह िजतनी जररत हो, मझस लो, मझस लत तमहार आतम-सममान को चोट लगती हो, अनममा स लो। वह अनपन को धानय समझगी। उनह इसका अनरमान ही रह गया िक तम उनस कछ मागत। म तो कहती ह , मझ लकर लखिनऊ चल चलो और िनिशचत होकर पढो। अनममा तमह इगलड भज दगी। वहा स अनचछी िडगरी ला सकत हो।

सखिदा न िनषकपट भाव स यह परसताव िकया था। शायद पहली बार उसन पित स अनपन िदल की बात कही अनमरकानत को बरा लगा। बोला-मझ िडगरी इतनी पयारी नही ह िक उसक िलए ससराल की रोिटया तोड अनगर म अनपन पिरशरम स धानोपाजरयन करक पढ सकगा, तो पढगा नही कोई धधा दखिगा। म अनब तक वयथरय ही िशकषा क मोह म पडा हआ था। कॉलज क बाहर भी अनधययनशील आदमी बहत-कछ सीखि सकता ह। म अनिभमान नही करता लिकन सािहतय और इितहास की िजतनी पसतक इन दो-तीन सालो म मन पढी ह, शायद ही मर कॉलज म िकसी न पढी हो

सखिदा न इस अनिपरय िवषय का अनत करन क िलए कहा-अनचछा, नाशता तो कर लो। आज तो तमहारी मीिटग ह। नौ बज क पहल कयो लौटन लग- म तो टाकीज म जाऊगी। अनगर तम ल चलो, तो म तमहार साथ चलन को तयार ह।

अनमर न रखपन स कहा-मझ टाकीज जान की फरसत नही ह। तम जा सकती हो।

'िफलमो स भी बहत-कछ लाभ उठाया जा सकता ह।'

'तो म तमह मना तो नही करता।'

'तम कयो नही चलत?'

'जो आदमी कछ उपाजरयन न करता हो, उस िसनमा दखिन का अनिधकार नही। म उसी सपितत को अनपना समझता ह, िजस मन पिरशरम स कमाया ह।'

कई िमनट तक दोनो गम बठ रह। जब अनमर जलपान करक उठा, तो सखिदा न सपरम आगरह स कहा-कल स सधया समय दकान पर बठा करो। किठनाइयो पर िवजय पाना परषाथी मनषयो का काम ह अनवशय मगर किठनाइयो की सिषटि करना, अननायास पाव म काट चभाना कोई बिधदमानी नही ह।

अनमरकानत इस आदश का आशय समझ गया पर कछ बोला नही। िवलािसनी सकटो स िकतना डरती ह यह चाहती ह, म भी गरीबो का खिन चस उनका गला काट यह मझस न होगा।

सखिदा उसक दिषटिकोण का समथरयन करक कदािचत उस जीत सकती थी। उधर स हटान की चषटिा करक वह उसक सकलप को और भी दढ कर रही थी। अनमरकानत उसस सहानभित करक अनपन अननकल बना सकता था पर शषक तयाग का रप िदखिाकर उस भयभीत कर रहा था।

11 www.hindustanbooks.com

चारअनमरकानत मिट'कलशन की परीकषा म परात म सवरयपरथम आया पर अनवसथा अनिधक होन क कारण छातरवितत

न पा सका। इसस उस िनराशा की जगह एक तरह का सतोष हआ कयोिक वह अनपन मनोिवकारो को कोई िटकौना न दना चाहता था। उसन कई बडी-बडी कोिठयो म पतर-वयवहार करन का काम उठा िलया। धानी िपता का पतर था, यह काम उस आसानी स िमल गया। लाला समरकानत की वयवसाय-नीित स पराय: उनकी िबरादरी वाल जलत थ और िपता-पतर क इस वमनसय का तमाशा दखिना चाहत थ। लालाजी पहल तो बहत िबगड। उनका पतर उनही क सहविगयो की सवा कर, यह उनह अनपमानजनक जान पडा पर अनमर न उनह सझाया िक वह यह काम कवल वयावसाियक जञानोपाजरयन क भाव स कर रहा ह। लालाजी न भी समझा, कछ-न-कछ सीखि ही जाएगा। िवरोध करना छोड िदया। सखिदा इतनी आसानी स मानन वाली न थी। एक िदन दोनो म इसी बात पर झडप हो गई।

सखिदा न कहा-तम दस-दस, पाच-पाच रपय क िलए दसरो की खिशामद करत िफरत हो तमह शमरय भी नही आती

अनमर न शाितपवरयक कहा-काम करक कछ उपाजरयन करना शमरय की बात नही : दसरो का मह ताकना शमरय की बात ह।

'तो य धािनयो क िजतन लडक ह, सभी बशमरय ह?'

'ह ही, इसम आशचियरय की कोई बात नही। अनब तो लालाजी मझ खिशी स भी रपय द तो न ल। जब तक अनपनी सामथयरय का जञान न था, तब तक उनह कषटि दता था। जब मालम हो गया िक म अनपन खिचरय भर को कमा सकता ह, तो िकसी क सामन हाथ कयो फलाऊ?'

सखिदा न िनदरययता क साथ कहा-तो जब तम अनपन िपता स कछ लना अनपमान की बात समझत हो, तो म कयो उनकी आिशरत बनकर रह- इसका आशय तो यही हो सकता ह िक म भी िकसी पाठशाला म नौकरी कर या सीन-िपरोन का धधा उठाऊ-

अनमरकानत न सकट म पडकर कहा-तमहार िलए इसकी जररत नही।

'कयो म खिाती-पहनती ह, गहन बनवाती ह, पसतक लती ह, पितरकाए मगवाती ह, दसरो ही की कमाई पर तो- इसका तो यह आशय भी हो सकता ह िक मझ तमहारी कमाई पर भी कोई अनिधकार नही। मझ खिद पिरशरम करक कमाना चािहए।'

अनमरकानत को सकट स िनकलन की एक यिकत सझ गई-अनगर दादा, या तमहारी अनममाजी तमस िचढ और म भी तान द, तब िनससदह तमह खिद धान कमान की जररत पडगी।

'कोई मह स न कह पर मन म तो समझ सकता ह। अनब तक तो म समझती थी, तम पर मरा अनिधकार ह। तमस िजतना चाहगी, लडकर ल लगी लिकन अनब मालम हआ, मरा कोई अनिधकार नही। तम जब चाहो, मझ जवाब द सकत हो। यही बात ह या कछ और?'

अनमरकानत न हारकर कहा-तो तम मझ कया करन को कहती हो- दादा स हर महीन रपय क िलए लडता रह-

12 www.hindustanbooks.com

सखिदा बोली-हा, म यही चाहती ह। यह दसरो की चाकरी छोड दो और घर का धधा दखिो। िजतना समय उधर दत हो उतना ही समय घर क कामो म दो।

'मझ इस लन-दन, सद-बयाज स घणा ह।'

सखिदा मसकराकर बोली-यह तो तमहारा अनचछा तकरक ह। मरीज को छोड दो, वह आप-ही-आप अनचछा हो जाएगा। इस तरह मरीज मर जाएगा, अनचछा न होगा। तम दकान पर िजतनी दर बठोग, कम-स-कम उतनी दर तो यह घिणत वयापार न होन दोग। यह भी तो सभव ह िक तमहारा अननराग दखिकर लालाजी सारा काम तमही को सौप द। तब तम अनपनी इचछानसार इस चलाना। अनगर अनभी इतना भार नही लना चाहत, तो न लो लिकन लालाजी की मनोवितत पर तो कछ-न-कछ परभाव डाल ही सकत हो। वह वही कर रह ह जो अनपन-अनपन ढग स सारा ससार कर रहा ह। तम िवरकत होकर उनक िवचार और नीित को नही बदल सकत। और अनगर तम अनपना ही राग अनलापोग, तो म कह दती ह, अनपन घर चली जाऊगी। तम िजस तरह जीवन वयतीत करना चाहत हो, वह मर मन की बात नही। तम बचपन स ठकराए गए हो और कषटि सहन म अनभयसत हो। मर िलए यह नया अननभव ह।

अनमरकानत परासत हो गया। इसक कई िदन बाद उस कई जवाब सझ पर इस वकत वह कछ जवाब न द सका। नही, उस सखिदा की बात नयाय-सगत मालम हइ। अनभी तक उसकी सवततर कलपना का आधार िपता की कतपणता थी। उसका अनकर िवमाता की िनमरयमता न जमाया था। तकरक या िसधदात पर उसका आधार न था और वह िदन तो अनभी दर, बहत दर था, जब उसक िचतता की वितत ही बदल जाए। उसन िनशचिय िकया-पतर-वयवहार का काम छोड दगा। दकान पर बठन म भी उसकी आपितत उतनी तीवर न रही। हा, अनपनी िशकषा का खिचरय वह िपता स लन पर िकसी तरह अनपन मन को न दबा सका। इसक िलए उस कोई दसरा ही गपत मागरय खिोजना पडगा। सखिदा स कछ िदनो क िलए उसकी सिध-सी हो गई।

इसी बीच म एक और घटना हो गई, िजसन उसकी सवतनतर कलपना को भी िशिथल कर िदया।

सखिदा इधर साल भर स मक न गई थी। िवधावा माता बार-बार बलाती थी, लाला समरकानत भी चाहत थ िक दो-एक महीन क िलए हो आए पर सखिदा जान का नाम न लती थी। अनमरकानत की ओर स िनिशचत न हो सकती थी। वह ऐस घोड पर सवार थी, िजस िनतय फरना लािजमी था, दस-पाच िदन बधा रहा, तो िफर पटठ पर हाथ ही न रखिन दगा। इसीिलए वह अनमरकानत को छोडकर न जाती थी।

अनत म माता न सवय काशी आन का िनशचिय िकया। उनकी इचछा अनब काशीवास करन की भी हो गई। एक महीन तक अनमरकानत उनक सवागत की तयािरयो म लगा रहा। गगातट पर बडी मिशकल स पसद का घर िमला , जो न बहत बडा था न बहत छोटा। उसकी सफाई और सफदी म कई िदन लग। गहसथी की सकडो ही चीज जमा करनी थी। उसक नाम सास न एक हजार का बीमा भज िदया था। उसन कतरबयोत स उसक आधो ही म सारा परबध कर िदया। पाई-पाई का िहसाब िलखिा तयार था। जब सास जी परयाग का सनान करती हइ, माघ म काशी पहची, तो वहा का सपरबध दखिकर बहत परसनन हइ।

अनमरकानत न बचत क पाच सौ रपय उनक सामन रखि िदए।

रणकादवी न चिकत होकर कहा-कया पाच सौ ही म सब कछ हो गया- मझ तो िवशवास नही आता।

'जी नही, पाच सौ ही खिचरय हए।'

13 www.hindustanbooks.com

'यह तो तमन इनाम दन का काम िकया ह। यह बचत क रपय तमहार ह।'

अनमर न झपत हए कहा-जब मझ जररत होगी, आपस माग लगा। अनभी तो कोई ऐसी जररत नही ह।

रणकादवी रप और अनवसथा स नही, िवचार और वयवहार स वधदा थी। जञान और वरत म उनकी आसथा न थी लिकन लोकमत की अनवहलना न कर सकती थी। िवधावा का जीवन तप का जीवन ह। लोकमत इसक िवपरीत कछ नही दखि सकता। रणका को िववश होकर धमरय का सवाग भरना पडता था िकत जीवन िबना िकसी आधार क तो नही रह सकता। भोग-िवलास, सर-तमाश स आतमा उसी भाित सतषटि नही होती, जस कोई चटनी और अनचार खिाकर अनपनी कषधा को शात नही कर सकता। जीवन िकसी तथय पर ही िटक सकता ह। रणका क जीवन म यह आधार पश-परम था। वह अनपन साथ पश-पिकषयो का एक िचिडयाघर लाई थी। तोत, मन, बदर, िबलली, गाए, िहरन, मोर, कततो आिद पाल रख थ और उनही क सखि-दखि म सिममिलत होकर जीवन म साथरयकता का अननभव करती थी। हरएक का अनलग-अनलग नाम था, रहन का अनलग-अनलग सथान था, खिान-पीन क अनलग-अनलग बतरयन थ। अननय रईसो की भाित उनका पश-परम नमायशी, वशनबल या मनोरजक न था। अनपन पश-पिकषयो म उनकी जान बसती थी। वह उनक बचचो को उसी माततव -भर सनह स खलाती थी मानो अनपन नाती-पोत हो। य पश भी उनकी बात, उनक इशार, कछ इस तरह समझ जात थ िक आशचियरय होता था।

दसर िदन मा-बटी म बात होन लगी।

रणका न कहा-तझ ससराल इतनी पयारी हो गई-

सखिदा लिजजत होकर बोली-कया कर अनममा, ऐसी उलझन म पडी ह िक कछ सझता ही नही। बाप-बट म िबलकल नही बनती। दादाजी चाहत ह, वह घर का धधा दख। वह कहत ह, मझ इस वयवसाय स घणा ह। म चली जाती, तो न जान कया दशा होती। मझ बराबर खिटका लगा रहता ह िक वह दश-िवदश की राह न ल। तमन मझ कए म ढकल िदया और कया कह?

रणका िचितत होकर बोली-मन तो अनपनी समझ म घर-वर दोनो ही दखिभाल कर िववाह िकया था मगर तरी तकदीर को कया करती- लडक स तरी अनब पटती ह, या वही हाल ह-

सखिदा िफर लिजजत हो गई। उसक दोनो कपोल लाल हो गए। िसर झकाकर बोली-उनह अनपनी िकताबो और सभाआ स छटटी नही िमलती।

'तरी जसी रपवती एक सीध-साद छोकर को भी न सभाल सकी- चाल-चलन का कसा ह?'

सखिदा जानती थी, अनमरकानत म इस तरह की कोई दवासना नही ह पर इस समय वह इस बात को िनशचियातमक रप स न कह सकी। उसक नारीतव पर धबबा आता था। बोली-म िकसी क िदल का हाल कया जान, अनममा इतन िदन हो गए, एक िदन भी ऐसा न हआ होगा िक कोई चीज लाकर दत। जस चाह रह, उनस कोई मतलब ही नही।

रणका न पछा-त कभी कछ पछती ह, कछ बनाकर िखिलाती ह, कभी उसक िसर म तल डालती ह-

सखिदा न गवरय स कहा-जब वह मरी बात नही पछत तो मझ कया गरज पडी ह वह बोलत ह, तो म बोलती ह। मझस िकसी की गलामी नही होगी।

रणका न ताडना दी-बटी, बरा न मानना, मझ बहत-कछ तरा ही दोष दीखिता ह। तझ अनपन रप का गवरय

14 www.hindustanbooks.com

ह। त समझती ह, वह तर रप पर मगधा होकर तर परो पर िसर रगडगा। ऐस मदरय होत ह, यह म जानती ह पर वह परम िटकाऊ नही होता। न जान त कयो उसस तनी रहती ह- मझ तो वह बडा गरीब और बहत ही िवचारशील मालम होता ह। सच कहती ह, मझ उस पर दया आती ह। बचपन म तो बचार की मा मर गई। िवमाता िमली, वह डाइन। बाप हो गया शतर। घर को अनपना घर न समझ सका। जो हदय िचता-भार स इतना दबा हआ हो, उस पहल सनह और सवा स पोला करन क बाद तभी परम का बीज बोया जा सकता ह।

सखिदा िचढकर बोली-वह चाहत ह, म उनक साथ तपिसवनी बनकर रह। रखिा-सखिा खिाऊ, मोटा-झोटा पहन और वह घर स अनलग होकर महनत और मजरी कर। मझस यह न होगा, चाह सदव क िलए उनस नाता ही टट जाए। वह अनपन मन की करग, मर आराम-तकलीफ की िबलकल परवाह न करग, तो म भी उनका मह न जोहगी।

रणका न ितरसकार भरी िचतवनो स दखिा और बोली-और अनगर आज लाला समरकानत का दीवाला िपट जाए-

सखिदा न इस सभावना की कभी कलपना ही न की थी।

िवमढ होकर बोली-दीवाला कयो िपटन लगा-

'ऐसा सभव तो ह।'

सखिदा न मा की सपितत का आशरय न िलया। वह न कह सकी,'तमहार पास जो कछ ह, वह भी तो मरा ही ह।' आतम-सममान न उस ऐसा न कहन िदया। मा क इस िनदरयय परशन पर झझलाकर बोली-जब मौत आती ह, तो आदमी मर जाता ह। जान-बझकर आग म नही कदा जाता।

बातो-बातो म माता को जञात हो गया िक उनकी सपितत का वािरस आन वाला ह। कनया क भिवषय क िवषय म उनह बडी िचता हो गई थी। इस सवाद न उस िचता का शमन कर िदया।

उनहोन आनद िवहनल होकर सखिदा को गल लगा िलया।

15 www.hindustanbooks.com

पाचअनमरकानत न अनपन जीवन म माता क सनह का सखि न जाना था। जब उसकी माता का अनवसान हआ, तब

वह बहत छोटा था। उस दर अनतीत की कछ धाधाली-सी और इसीिलए अनतयत मनोहर और सखिद समितया शष थी। उसका वदनामय बाल-रदन सनकर जस उसकी माता न रणकादवी क रप म सवगरय स आकर उस गोद म उठा िलया। बालक अनपना रोना-धोना भल गया और उस ममता-भरी गोद म मह िछपाकर दवी-सखि लटन लगा। अनमरकानत नही-नही करता रहता और माता उस पकडकर उसक आग मव और िमठाइया रखि दती। उस इकार न करत बनता। वह दखिता, माता उसक िलए कभी कछ पका रही ह, कभी कछ, और उस िखिलाकर िकतनी परसनन होती ह, तो उसक हदय म शरधदा की एक लहर-सी उठन लगती ह। वह कॉलज स लौटकर सीध रणका क पास जाता। वहा उसक िलए जलपान रख हए रणका उसकी बाट जोहती रहती। परात: का नाशता भी वह वही करता। इस मात-सनह स उस तिपत ही न होती थी। छटिटयो क िदन वह पराय: िदन-भर रणका ही क यहा रहता। उसक साथ कभी-कभी नना भी चली जाती। वह खिासकर पश-पिकषयो की करीडा दखिन जाती थी।

अनमरकानत क कोष म सनह आया, तो उसकी वह कतपणता जाती रही। सखिदा उसक समीप आन लगी। उसकी िवलािसता स अनब उस उतना भय न रहा। रणका क साथ उस लकर वह सर-तमाश क िलए भी जान लगा। रणका दसव-पाचव उस दस-बीस रपय जरर द दती। उसक सपरम आगरह क सामन अनमरकानत की एक न चलती। उसक िलए नए-नए सट बन, नए-नए जत आए, मोटर साइिकल आई, सजावट क सामान आए। पाच ही छ: महीन म वह िवलािसता का दरोही, वह सरल जीवन का उपासक, अनचछा-खिास रईसजादा बन बठा, रईसजादो क भावो और िवचारो स भरा हआ उतना ही िनदवऊदव और सवाथी। उसकी जब म दस-बीस रपय हमशा पड रहत। खिद खिाता, िमतरो को िखिलाता और एक की जगह दो खिचरय करता। वह अनधययनशीलता जाती रही। ताश और चौसर म जयादा आनद आता। हा, जलसो म उस अनब और अनिधक उतसाह हो गया। वहा उस कीित-लाभ का अनवसर िमलता था। बोलन की शिकत उसम पहल भी बरी न थी। अनभयास स और भी पिरमािजत हो गई। दिनक समाचार और सामियक सािहतय स भी उस रिच थी, िवशषकर इसिलए िक रणका रोज-रोज की खिबर उसस पढवाकर सनती थी।

दिनक समाचार-पतरो क पढन स अनमरकानत क राजनितक जञान का िवकास होन लगा। दशवािसयो क साथ शासक मडल की कोई अननीित दखिकर उसका खिन खिौल उठता था। जो ससथाए राषटरीय उतथान क िलए उदयोग कर रही थी, उनस उस सहानभित हो गई। वह अनपन नगर की कागरस-कमटी का ममबर बन गया और उसक कायरयकरम म भाग लन लगा।

एक िदन कॉलज क कछ छातर दहातो की आिथक-दशा की जाच-पडताल करन िनकल। सलीम और अनमर भी चल। अनधयापक डॉ. शािनतकमार उनक नता बनाए गए। कई गावो की पडताल करन क बाद मडली सधया समय लौटन लगी, तो अनमर न कहा-मन कभी अननमान न िकया था िक हमार कतषको की दशा इतनी िनराशाजनक ह।

सलीम बोला-तालाब क िकनार वह जो चार-पाच घर मललाहो क थ, उनम तो लोह क दो-एक बतरयन क िसवा कछ था ही नही। म समझता था, दहाितयो क पास अननाज की बखिार भरी होगी लिकन यहा तो िकसी घर म अननाज क मटक तक न थ।

16 www.hindustanbooks.com

शािनतकमार बोल-सभी िकसान इतन गरीब नही होत। बड िकसानो क घर म बखिार भी होती ह लिकन ऐस िकसान गाव म दो-चार स जयादा नही होत।

अनमरकानत न िवरोध िकया-मझ तो इन गावो म एक भी ऐसा िकसान न िमला। और महाजन और अनमल इनही गरीबो को चसत ह म चाहता ह उन लोगो को इन बचारो पर दया भी नही आती शािनतकमार न मसकराकर कहा-दया और धमरय की बहत िदनो परीकषा हई और यह दोनो हलक पड। अनब तो नयाय-परीकषा का यग ह।

शािनतकमार की अनवसथा कोई पतीस की थी। गोर-िचटट, रपवान आदमी थ। वश-भषा अनगरजी थी, और पहली नजर म अनगरज ही मालम होत थ कयोिक उनकी आख नीली थी, और बाल भी भर थ। आकसफोडरय स डॉकटर की उपािध परापत कर लाए थ। िववाह क कटटर िवरोधी, सवततरता-परम क कटटर भकत, बहत ही परसनन मखि, सहदय, सवाशील वयिकत थ। मजाक का कोई अनवसर पाकर न चकत थ। छातरो स िमतर भाव रखित थ। राजनितक आदोलनो म खिब भाग लत पर गपत रप स। खिल मदान म न आत। हा, सामािजक कषतर म खिब गरजत थ।

अनमरकानत न करण सवर म कहा-मझ तो उस आदमी की सरत नही भलती, जो छ: महीन स बीमार पडा था और एक पस की भी दवा न ली थी। इस दशा म जमीदार न लगान की िडगरी करा ली और जो कछ घर म था, नीलाम करा िलया। बल तक िबकवा िलए। ऐस अननयायी ससार की िनयता कोई चतन शिकत ह, मझ तो इसम सदह हो रहा ह। तमन दखिा नही सलीम, गरीब क बदन पर िचथड तक न थ। उसकी वधदा माता िकतना ठठट-ठठटकर रोती थी।

सलीम की आखिो म आस थ। बोला-तमन रपय िदए, तो बिढया कस तमहार परो पर िगर पडी। म तो अनलग मह फरकर रो रहा था।

मडली यो ही बातचीत करती चली जाती थी। अनब पककी सडक िमल गई थी। दोनो तरफ ऊच वकषो न मागरय को अनधोरा कर िदया था। सडक क दािहन-बाए-नीच ऊखि, अनरहर आिद क खत खिड थ। थोडी-थोडी दर पर दो-एक मजर या राहगीर िमल जात थ।

सहसा एक वकष क नीच दस-बारह सतरी-परष सशिकत भाव स दबक हए िदखिाई िदए। सब-क-सब सामन वाल अनरहर क खत की ओर ताकत और आपस म कनफसिकया कर रह थ। अनरहर क खत की मड पर दो गोर सिनक हाथ म बत िलए अनकड खिड थ। छातर-मडली को कौतहल हआ। सलीम न एक आदमी स पछा-कया माजरा ह, तम लोग कयो जमा हो-

अनचानक अनरहर क खत की ओर स िकसी औरत का चीतकार सनाई पडा। छातर वगरय अनपन डड सभालकर खत की तरफ लपका। पिरिसथित उनकी समझ म आ गई थी।

एक गोर सिनक न आख िनकालकर छडी िदखिात हए कहा-भाग जाओ नही हम ठोकर मारगा ।

इतना उसक मह स िनकलना था िक डॉ. शािनतकमार न लपककर उसक मह पर घसा मारा। सिनक क मह पर घसा पडा, ितलिमला उठा पर था घसबाजी म मजा हआ। घस का जवाब जो िदया, तो डॉकटर साहब िगर पड। उसी वकत सलीम न अनपनी हाकी-िसटक उस गोर क िसर पर जमाई। वह चौिधया गया, जमीन पर िगर पडा और जस मिछत हो गया। दसर सिनक को अनमर और एक दसर छातर न पीटना शर कर िदया था पर वह

17 www.hindustanbooks.com

इन दोनो यवको पर भारी था। सलीम इधर स फसरयत पाकर उस पर लपका। एक क मकाबल म तीन हो गए। सलीम की िसटक न इस सिनक को भी जमीन पर सला िदया। इतन म अनरहर क पौधो को चीरता हआ तीसरा गोरा आ पहचा। डॉकटर शािनतकमार सभलकर उस पर लपक ही थ िक उसन िरवालवर िनकलकर दाग िदया। डॉकटर साहब जमीन पर िगर पड। अनब मामला नाजक था। तीनो छातर डॉकटर साहब को सभालन लग। यह भय भी लगा हआ था िक वह दसरी गोली न चला द। सबक पराण नहो म समाए हए थ।

मजर लोग अनभी तक तो तमाशा दखि रह थ। मगर डॉकटर साहब को िगरत दखि उनक खिन म भी जोश आया। भय की भाित साहस भी सकरामक होता ह। सब-क-सब अनपनी लकिडया सभालकर गोर पर दौड। गोर न िरवालवर दागी पर िनशाना खिाली गया। इसक पहल िक वह तीसरी गोली चलाए, उस पर डडो की वषा होन लगी और एक कषण म वह भी आहत होकर िगर पडा।

खििरयत यह हई िक जखम डॉकटर साहब की जाघ म था। सभी छातर 'ततकालधमरय' जानत थ। घाव का खिन बद िकया और पटटी बधा दी।

उसी वकत एक यवती खत स िनकली और मह िछपाए, लगडाती, कपड सभालती, एक तरफ चल पडी। अनबला लजजावश, िकसी स कछ कह िबना, सबकी नजरो स दर िनकल जाना चाहती थी। उसकी िजस अनमलय वसत का अनपहरण िकया गया था, उस कौन िदला सकता था- दषटिो को मार डालो, इसस तमहारी नयाय-बिधद को सतोष होगा, उसकी तो जो चीज गई, वह गई। वह अनपना दखि कयो रोए- कयो फिरयाद कर- सार ससार की सहानभित, उसक िकस काम की ह ।

सलीम एक कषण तक यवती की ओर ताकता रहा। िफर िसटक सभालकर उन तीनो को पीटन लगा ऐसा जान पडता था िक उनमतता हो गया ह।

डॉकटर साहब न पकारा-कया करत हो सलीम इसस कया फायदा- यह इसािनयत क िखिलाफ ह िक िगर हआ पर हाथ उठाया जाए।

सलीम न दम लकर कहा-म एक शतान को भी िजदा न छोडगा। मझ फासी हो जाए, कोई गम नही। ऐसा सबक दना चािहए िक िफर िकसी बदमाश को इसकी जररयत न हो।

िफर मजरो की तरफ दखिकर बोला-तम इतन आदमी खिड ताकत रह और तमस कछ न हो सका। तमम इतनी गरत भी नही- अनपनी बह-बिटयो की आबर की िहफाजत भी नही कर सकत- समझत होग कौन हमारी बह-बटी ह। इस दश म िजतनी बिटया ह, िजतनी बहए ह, सब तमहारी बहए ह, िजतनी माए ह, सब तमहारी माए ह। तमहारी आखिो क सामन यह अननथरय हआ और तम कायरो की तरह खिड ताकत रह कयो सब-क-सब जाकर मर नही गए।

सहसा उस खियाल आ गया िक म आवश म आकर इन गरीबो को फटकार बतान की अननािधकार चषटिा कर रहा ह। वह चप हो गया और कछ लिजजत भी हआ।

समीप क एक गाव स बलगाडी मगाई गई। शािनतकमार को लोगो न उठाकर उस पर लटा िदया और गाडी चलन को हई िक डॉकटर साहब न चौककर पछा-और उन तीनो आदिमयो को कया यही छोड जाओग-

सलीम न मसतक िसकोडकर कहा-हम उनको लादकर ल जान क िजममदार नही ह। मरा तो जी चाहता ह, उनह खिोदकर दफन कर द।

18 www.hindustanbooks.com

आिखिर डॉकटर क बहत समझान क बाद सलीम राजी हआ। तीनो गोर भी गाडी पर लाद गए और गाडी चली। सब-क-सब मजर अनपरािधयो की भाित िसर झकाए कछ दर तक गाडी क पीछ-पीछ चल। डॉकटर न उनको बहत धानयवाद दकर िवदा िकया। नौ बजत-बजत समीप का रलव सटशन िमला। इन लोगो न गोरो को तो वही पिलस क चाजरय म छोड िदया और आप डॉकटर साहब क साथ गाडी पर बठकर घर चल।

सलीम और अनमर तो जरा दर म हसन-बोलन लग। इस सगराम की चचा करत उनकी जबान न थकती थी। सटशन-मासटर स कहा, गाडी म मसािफरो स कहा, रासत म जो िमला उसस कहा। सलीम तो अनपन साहस और शौयरय की खिब डीग मारता था, मानो कोई िकला जीत आया ह और जनता को चािहए िक उस मकट पहनाए, उसकी गाडी खिीच, उसका जलस िनकाल िकत अनमरकानत चपचाप डॉकटर साहब क पास बठा हआ था। आज क अननभव न उसक हदय पर ऐसी चोट लगाई थी, जो कभी न भरगी। वह मन-ही-मन इस घटना की वयाखया कर रहा था। इन टक क सिनको की इतनी िहममत कयो हई- यह गोर िसपाही

इगलड क िनमनतम शरणी क मनषय होत ह। इनका इतना साहस कस हआ- इसीिलए िक भारत पराधीन ह। यह लोग जानत ह िक यहा क लोगो पर उनका आतक छाया हआ ह। वह जो अननथरय चाह, कर। कोई च नही कर सकता। यह आतक दर करना होगा। इस पराधीनता की जजीर को तोडना होगा।

इस जजीर को तोडन क िलए वह तरह-तरह क मसब बधान लगा, िजनम यौवन का उनमाद था, लडकपन की उगरता थी और थी कचची बिधद की बहक।

19 www.hindustanbooks.com

छ:डॉ. शािनतकमार एक महीन तक अनसपताल म रहकर अनचछ हो गए। तीनो सिनको पर कया बीती, नही कहा

जा सकता पर अनचछ होत ही पहला काम जो डॉकटर साहब न िकया, वह ताग पर बठकर छावनी म जाना और उन सिनको की कशल पछना था। मालम हआ िक वह तीनो भी कई-कई िदन अनसपताल म रह, िफर तबदील कर िदए गए। रिजमट क कपतान न डॉकटर साहब स अनपन आदिमयो क अनपराध की कषमा मागी और िवशवास िदलाया िक भिवषय म सिनको पर जयादा कडी िनगाह रखिी जाएगी। डॉकटर साहब की इस बीमारी म अनमरकानत न तन-मन स उनकी सवा की, कवल भोजन करन और रणका स िमलन क िलए घर जाता, बाकी सारा िदन और सारी रात उनही की सवा म वयतीत करता। रणका भी दो-तीन बार डॉकटर साहब को दखिन गइ।

इधर स फरसत पात ही अनमरकानत कागरस क कामो म जयादा उतसाह स शरीक होन लगा। चदा दन म तो बस ससथा म कोई उसकी बराबरी न कर सकता था।

एक बार एक आम जलस म वह ऐसी उदडता स बोला िक पिलस क सपिरटडट न लाला समरकानत को बलाकर लडक को सभालन की चतावनी द डाली। लालाजी न वहा स लौटकर खिद तो अनमरकानत स कछ न कहा, सखिदा और रणका दोनो स जड िदया। अनमरकानत पर अनब िकसका शासन ह, वह खिद समझत थ। इधर बट स वह सनह करन लग थ। हर महीन पढाई का खिचरय दना पडता था, तब उसका सकल जाना उनह जहर लगता था, काम म लगाना चाहत थ और उसक काम न करन पर िबगडत थ। अनब पढाई का कछ खिचरय न दना पडता था। इसिलए कछ न बोलत थ बिलक कभी-कभी सदक की कजी न िमलन या उठकर सदक खिोलन क कषटि स बचन क िलए, बट स रपय उधर ल िलया करत। अनमरकानत न मागता, न वह दत।

सखिदा का परसवकाल समीप आता जाता था। उसका मखि पीला पड गया था। भोजन बहत कम करती थी और हसती-बोलती भी बहत कम थी। वह तरह-तरह क द:सवपन दखिती रहती थी, इसस िचतता और भी सशिकत रहता था। रणका न जनन-सबधी कई पसतक उसको मगा दी थी। इनह पढकर वह और भी िचितत रहती थी। िशश की कलपना स िचतता म एक गवरयमय उललास होता था पर इसक साथ ही हदय म कपन भी होता था न जान कया होगा?

उस िदन सधया समय अनमरकानत उसक पास आया, तो वह जली बठी थी। तीकषण नतरो स दखिकर बोली-तम मझ थोडी-सी सिखिया कयो नही द दत- तमहारा गला भी छट जाए, म भी जजाल स मकत हो जाऊ।

अनमर इन िदनो आदशरय पित बना हआ था। रप-जयोित स चमकती हई सखिदा आखिो को उनमतता करती थी पर माततव क भार स लदी हई यह पील मखि वाली रोिगणी उसक हदय को जयोित स भर दती थी। वह उसक पास बठा हआ उसक रख कशो और सख हाथो स खला करता। उस इस दशा म लान का अनपराधी वह ह इसिलए इस भार को सहय बनान क िलए वह सखिदा का मह जोहता रहता था। सखिदा उसस कछ फरमाइश कर, यही इन िदनो उसकी सबस बडी कामना थी। वह एक बार सवगरय क तार तोड लान पर भी उताई हो जाता। बराबर उस अनचछी-अनचछी िकताब सनाकर उस परसनन करन का परयतन करता रहता था। िशश की कलपना स उस िजतना आनद होता था उसस कही अनिधक सखिदा क िवषय म िचता थी-न जान कया होगा- घबराकर भारी सवर म बोला-ऐसा कयो कहती हो सखिदा, मझस गलती हई हो तो, बता दो?

सखिदा लटी हई थी। तिकए क सहार टक लगाकर बोली-तम आम जलसो म कडी-कडी सपीच दत िफरत

20 www.hindustanbooks.com

हो, इसका इसक िसवा और कया मतलब ह िक तम पकड जाओ और अनपन साथ घर को भी ल डबो। दादा स पिलस क िकसी बड अनफसर न कहा ह। तम उनकी कछ मदद तो करत नही, उलट और उनक िकए-कराए को धल म िमलान को तल बठ हो। म तो आप ही अनपनी जान स मर रही ह, उस पर तमहारी यह चाल और भी मार डालती ह। महीन भर डॉकटर साहब क पीछ हलकान हए। उधर स छटटी िमली तो यह पचडा ल बठ। कया तमस शाितपवरयक नही बठा जाता- तम अनपन मािलक नही हो, िक िजस राह चाहो, जाओ। तमहार पाव म बिडया ह। कया अनब भी तमहारी आख नही खिलती-

अनमरकानत न अनपनी सफाई दी-मन तो कोई ऐसी सपीच नही दी जो कडी कही जा सक।

'तो दादा झठ कहत थ?'

'इसका तो यह अनथरय ह िक म अनपना मह सी ल?'

'हा, तमह अनपना मह सीना पडगा।'

दोनो एक कषण भिम और आकाश की ओर ताकत रह। तब अनमरकानत न परासत होकर कहा-अनचछी बात ह। आज स अनपना मह सी लगा। िफर तमहार सामन ऐसी िशकायत आए, तो मर कान पकडना।

सखिदा नरम होकर बोली-तम नाराज होकर यह परण नही कर रह हो- म तमहारी अनपरसननता स थर-थर कापती ह। म भी जानती ह िक हम लोग पराधीन ह। पराधीनता मझ भी उतनी ही अनखिरती ह िजतनी तमह। हमार पावो म तो दोहरी बिडया ह-समाज की अनलग, सरकार की अनलग लिकन आग-पीछ भी तो दखिना होता ह। दश क साथ हमारा जो धमरय ह, वह और परबल रप म िपता क साथ ह, और उसस भी परबल रप म अनपनी सतान क साथ। िपता को दखिी और सतान को िनससहाय छोडकर दश धमरय का पालन ऐसा ही ह जस कोई अनपन घर म आग लगाकर खिल आकाश म रह। िजस िशश को म अनपना हदय-रकत िपला-िपलाकर पाल रही ह, उस म चाहती ह, तम भी अनपना सवरयसव समझो। तमहार सार सनह और िनषठा का म एकमातर उसी को अनिधकारी दखिना चाहती ह।

अनमरकानत िसर झकाए यह उपदश सनता रहा। उसकी आतमा लिजजत थी और उस िधककार रही थी। उसन सखिदा और िशश दोनो ही क साथ अननयाय िकया ह। िशश का कलपना-िचतर उसी आखिो म खिीच गया। वह नवनीत-सा कोमल िशश उसकी गोद म खल रहा था। उसकी सपणरय चतना इसी कलपना म मगन हो गई। दीवार पर िशश कतषण का एक सदर िचतर लटक रहा था। उस िचतर म आज उस िजतना मािमक आनद हआ, उतना और कभी न हआ था। उसकी आख सजल हो गइ।

सखिदा न उस एक पान का बीडा दत हए कहा-अनममा कहती ह, बचच को लकर म लखिनऊ चली जाऊगी। मन कहा-अनममा, तमह बरा लग या भला, म अनपना बालक न दगी।

अनमरकानत न उतसक होकर पछा-तो िबगडी होगी-

'नही जी, िबगडन की कया बात थी- हा, उनह कछ बरा जरर लगा होगा लिकन म िदललगी म भी अनपन सवरयसव को नही छोड सकती।'

'दादा न पिलस कमरयचारी की बात अनममा स भी कही होगी?'

'हा, म जानती ह कही ह। जाओ, आज अनममा तमहारी कसी खिबर लती ह।'

21 www.hindustanbooks.com

'म आज जाऊगा ही नही।'

'चलो, म तमहारी वकालत कर दगी।'

'मआफ कीिजए। वहा मझ और भी लिजजत करोगी।'

'नही सच कहती ह। अनचछा बताओ, बालक िकसको पडगा, मझ या तमह। म कहती ह तमह पडगा।'

'म चाहता ह तमह पड।'

'यह कयो- म तो चाहती ह तमह पड।'

'तमह पडगा, तो म उस और जयादा चाहगा।'

'अनचछा, उस सतरी की कछ खिबर िमली िजस गोरो न सताया था?'

'नही, िफर तो कोई खिबर न िमली।'

'एक िदन जाकर सब कोई उसका पता कयो नही लगात, या सपीच दकर ही अनपनर कतरयवय स मकत हो गए?'

अनमरकानत न झपत हए कहा-कल जाऊगा।

'ऐसी होिशयारी स पता लगाओ िक िकसी को कानो-कान खिबर न हो अनगर घर वालो न उसका बिहषकार कर िदया हो, तो उस लाओ। अनममा को उस अनपन साथ रखिन म कोई आपितत न होगी, और यिद होगी तो म अनपन पास रखि लगी।'

अनमरकानत न शरधदा-पणरय नतरो स सखिदा को दखिा। इसक हदय म िकतनी दया, िकतना सवा-भाव, िकतनी िनभीकता ह। इसका आज उस पहली बार जञान हआ।

उसन पछा-तमह उसस जरा भी घणा न होगी?

सखिदा न सकचात हए कहा-अनगर म कह, न होगी, तो अनसतय होगा। होगी अनवशय पर ससकारो को िमटाना होगा। उसन कोई अनपराध नही िकया, िफर सजा कयो दी जाए-

अनमरकानत न दखिा, सखिदा िनमरयल नारीतव की जयोित म नहा उठी ह। उसका दवीतव जस परसफिटत होकर उसस आिलगन कर रहा ह।

22 www.hindustanbooks.com

सातअनमरकानत न आम जलसो म बोलना तो दर रहा, शरीक होना भी छोड िदया पर उसकी आतमा इस बधन

स छटपटाती रहती थी और वह कभी-कभी सामियक पतर-पितरकाआ म अनपन मनोिवकारो को परकट करक सतोष लाभ करता था। अनब वह कभी-कभी दकान पर भी आ बठता। िवशषकर छटिटयो क िदन तो वह अनिधकतर दकान पर रहता था। उस अननभव हो रहा था िक मानवी परकतित का बहत-कछ जञान दकान पर बठकर परापत िकया जा सकता ह। सखिदा और रणका दोनो क सनह और परम न उस जकड िलया था। हदय की जलन जो पहल घर वालो स, और उसक फलसवरप, समाज स िवदरोह करन म अनपन को साथरयक समझती थी, अनब शात हो गई थी। रोता हआ बालक िमठाई पाकर रोना भल गया।

एक िदन अनमरकानत दकान पर बठा था िक एक अनसामी न आकर पछा-भया कहा ह बाबजी, बडा जररी काम था-

अनमर न दखिा-अनधोड, बिलषठ, काला, कठोर आकतित का मनषय ह। नाम ह काल खिा। रखिाई स बोला-वह कही गए हए ह। कया काम ह-

'बडा जररी काम था। कछ कह नही गए, कब तक आएग?'

अनमर को शराब की ऐसी दफरफधा आई िक उसन नाक बद कर ली और मह फरकर बोला-कया तम शराब पीत हो-

काल खिा न हसकर कहा-शराब िकस मयससर होती ह लाला, रखिी रोिटया तो िमलती नही- आज एक नातदारी म गया था, उन लोगो न िपला दी।

वह और समीप आ गया और अनमर क कान क पास मह लगाकर बोला-एक रकम िदखिान लाया था। कोई दस तोल की होगी। बाजार म ढाई सौ स कम नही ह लिकन म तमहारा पराना अनसामी ह। जो कछ द दोग , ल लगा।

उसन कमर स एक जोडा सोन क कड िनकाल और अनमर क सामन रखि िदए। अनमर न कडा को िबना उठाए हए पछा-यह कड तमन कहा पाए-

काल खिा न बहयाई स मसकराकर कहा-यह न पछो राजा, अनललाह दन वाला ह।

अनमरकानत न घणा का भाव िदखिाकर कहा-कही स चरा लाए होग-

काल खिा िफर हसा-चोरी िकस कहत ह राजा, यह तो अनपनी खती ह। अनललाह न सबक पीछ हीला लगा िदया ह। कोई नौकरी करक लाता ह, कोई मजरी करता ह, कोई रोजगार करता ह, दता सबको वही खिदा ह। तो िफर िनकलो रपय, मझ दर हो रही ह। इन लाल पगडी वालो की बडी खिाितर करनी पडती ह भया , नही एक िदन काम न चल।

अनमरकानत को यह वयापार इतना जघनय जान पडा िक जी म आया काल खिा को दतकार द। लाला समरकानत ऐस समाज क शतरआ स वयवहार रखित ह, यह खियाल करक उसक रोए खिड हो गए। उस उस दकान स, उस मकान स, उस वातावरण स, यहा तक िक सवय अनपन आपस घणा होन लगी। बोला-मझ इस चीज की जररत नही ह। इस ल जाओ, नही म पिलस म इिततला कर दगा। िफर इस दकान पर ऐसी चीज लकर न आना,

23 www.hindustanbooks.com

कह दता ह।

काल खिा जरा भी िवचिलत न हआ, बोला-यह तो तम िबलकल नई बात कहत हो भया लाला इस नीित पर चलत, तो आज महाजन न होत। हजारो रपय की चीज तो म ही द गया हगा। अनगन, महाजन, िभखिारी, हीगन, सभी स लाला का वयवहार ह। कोई चीज हाथ लगी और आखि बद करक यहा चल आए, दाम िलया और घर की राह ली। इसी दकान स बाल-बचचो का पट चलता ह। काटा िनकलकर तौल लो। दस तोल स कछ ऊपर ही िनकलगा मगर यहा परानी जजमानी ह, लाओ डढ सौ ही दो, अनब कहा दौडत िफर-

अनमर न दढता स कहा-मन कह िदया मझ इसकी जररत नही।

'पछताओग लाला, खिड-खिड ढाई सौ म बच लोग।'

'कयो िसर खिा रह हो, म इस नही लना चाहता?'

'अनचछा लाओ, सौ ही रपय द दो। अनललाह जानता ह, बहत बल खिाना पड रहा ह पर एक बार घाटा ही सही।'

'तम वयथरय मझ िदखि रह हो। म चोरी का माल नही लगा, चाह लाखि की चीज धोल म िमल। तमह चोरी करत शमरय भी नही आती ईशवर न हाथ-पाव िदए ह, खिास मोट-ताज आदमी हो, मजदरी कयो नही करत- दसरो का माल उडाकर अनपनी दिनया और आकबत दोनो खिराब कर रह हो।'

काल खिा न ऐसा मह बनाया, मानो ऐसी बकवास बहत सन चका ह और बोला-तो तमह नही लना ह-

'नही।'

'पचास दत हो?'

'एक कौडी नही।'

काल खिा न कड उठाकर कमर म रखि िलए और दकान क नीच उतर गया। पर एक कषण म िफर लौटकर बोला-अनचछा तीस रपय ही द दो। अनललाह जानता ह, पगडी वाल आधा ल लग।

अनमरकानत न उस धाकका दकर कहा-िनकल जा यहा स सअनर, मझ कयो हरान कर रहा ह-

काल खिा चला गया, तो अनमर न उस जगह को झाड स साफ कराया और अनगरबतती जलाकर रखि दी। उस अनभी तक शराब की दगधा आ रही थी। आज उस अनपन िपता स िजतनी अनभिकत हई, उतनी कभी न हई थी। उस घर की वाय तक उस दिषत लगन लगी। िपता क हथकडो स वह कछ-कछ पिरिचत तो था पर उनका इतना पतन हो गया ह, इसका परमाण आज ही िमला। उसन मन म िनशचिय िकया आज िपता स इस िवषय म खिब अनचछी तरह शासतराथरय करगा। उसन खिड होकर अनधीर नतरो स सडक की ओर दखिा। लालाजी का पता न था। उसक मन म आया, दकान बद करक चला जाए और जब िपताजी आ जाए तो साफ-साफ कह द, मझस यह वयापार न होगा। वह दकान बद करन ही जा रहा था िक एक बिढया लाठी टकती हई आकर सामन खिडी हो गई और बोली-लाला नही ह कया, बटा -

बिढया क बाल सन हो गए थ। दह की हडिडया तक सखि गई थी। जीवन-यातरा क उस सथान पर पहच गई थी, जहा स उसका आकार मातर िदखिाई दता था, मानो दो-एक कषण म वह अनदशय हो जाएगी।

24 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत क जी म पहल तो आया िक कह द, लाला नही ह, वह आए तब आना लिकन बिढया क िपचक हए मखि पर ऐसी करण याचना, ऐसी शनय िनराशा छाई हई थी िक उस उस पर दया आ गई। बोला-लालाजी स कया काम ह- वह तो कही गए हए ह।

बिढया न िनराश होकर कहा-तो कोई हरज नही बटा, म िफर आ जाऊगी।

अनमरकानत न नमरता स कहा-अनब आत ही होग, माता। ऊपर चली जाओ।

दकान की करसी ऊची थी। तीन सीिढया चढनी पडती थी। बिढया न पहली पटटी पर पाव रखिा पर दसरा पाव ऊपर न उठा सकी। परो म इतनी शिकत न थी। अनमर न नीच आकर उसका हाथ पकड िलया और उस सहारा दकर दकान पर चढा िदया। बिढया न आशीवाद दत हए कहा-तमहारी बडी उमर हो बटा, म यही डरती ह िक लाला दर म आए और अनधोरा हो गया, तो म घर कस पहचगी- रात को कछ नही सझता बटा।

'तमहारा घर कहा ह माता ?'

बिढया न जयोितहीन आखिो स उसक मखि की ओर दखिकर कहा-गोवधरयन की सराय पर रहती ह, बटा ।

'तमहार और कोई नही ह?'

'सब ह भया, बट ह, पोत ह, बहए ह, पोतो की बहए ह पर जब अनपना कोई नही, तो िकस काम का- नही लत मरी सधा, न सही। ह तो अनपन। मर जाऊगी, तो िमटटी तो िठकान लगा दग।'

'तो वह लोग तमह कछ दत नही?'

बिढया न सनह िमल हए गवरय स कहा-म िकसी क आसर-भरोस नही ह बटा जीत रह मरा लाला समरकानत, वह मरी परविरश करत ह। तब तो तम बहत छोट थ भया, जब मरा सरदार लाला का चपरासी था। इसी कमाई म खिदा न कछ ऐसी बरककत दी िक घर-दवार बना, बाल-बचचो का बयाह-गौना हआ, चार पस हाथ म हए। थ तो पाच रपय क पयाद, पर कभी िकसी स दब नही, िकसी क सामन गदरयन नही झकाई। जहा लाला का पसीना िगर, वहा अनपना खिन बहान को तयार रहत थ। आधी रात, िपछली रात, जब बलाया, हािजर हो गए। थ तो अनदना-स नौकर, मदा लाला न कभी 'तम' कहकर नही पकारा। बराबर खिा साहब कहत थ। बड-बड सिठए कहत-खिा साहब, हम इसस दनी तलब दग, हमार पास आ जाओ पर सबको यही जवाब दत िक िजसक हो गए उसक हो गए। जब तक वह दतकार न दगा, उसका दामन न छोडग। लाला न भी ऐसा िनभाया िक कया कोई िनभाएगा- उनह मर आज बीसवा साल ह, वही तलब मझ दत जात ह। लडक पराए हो गए, पोत बात नही पछत पर अनललाह मर लाला को सलामत रख, मझ िकसी क सामन हाथ फलान की नौबत नही आई।

अनमरकानत न अनपन िपता को सवाथी, लोभी, भावहीन समझ रखिा था। आज उस मालम हआ, उनम दया और वातसलय भी ह। गवरय स उसका हदय पलिकत हो उठा। बोला-तो तमह पाच रपय िमलत ह-

'हा बटा, पाच रपय महीना दत जात ह।'

'तो म तमह रपय िदए दता ह, लती जाओ। लाला शायद दर म आए।'

वधदा न कानो पर हाथ रखिकर कहा-नही बटा, उनह आ जान दो। लिठया टकती चली जाऊगी। अनब तो यही आखि रह गई ह।

25 www.hindustanbooks.com

'इसम हजरय कया ह- म उनस कह दगा, पठािनन रपय ल गई। अनधोर म कही िगर-िगरा पडोगी।'

'नही बटा, ऐसा काम नही करती, िजसम पीछ स कोई बात पदा हो। िफर आ जाऊगी।'

नही, म िबना िलए न जान दगा।'

बिढया न डरत-डरत कहा-तो लाओ द दो बटा, मरा नाम टाक लना पठािनन।

अनमरकानत न रपय द िदए। बिढया न कापत हाथो स रपय लकर िगरह बाधो और दआए दती हई, धीर-धीर सीिढयो स नीच उतरी मगर पचास कदम भी न गई होगी िक पीछ स अनमरकानत एक इकका िलए हए आया और बोला-बढी माता, आकर इकक पर बठ जाओ, म तमह पहचा द।

बिढया न आशचियरयचिकत नतरो स दखिकर कहा-अनर नही, बटा तम मझ पहचान कहा जाओग म लिठया टकती हई चली जाऊगी। अनललाह तमह सलामत रख।

अनमरकानत इकका ला चका था। उसन बिढया को गोद म उठाया और इकक पर बठाकर पछा-कहा चल-

बिढया न इकक क डडो को मजबती स पकडकर कहा-गोवधरयन की सराय चलो बटा, अनललाह तमहारी उमर दराज कर। मरा बचचा इस बिढया क िलए इतना हरान हो रहा ह। इतती दर स दौडा आया। पढन जात हो न बटा, अनललाह तमह बडा दरजा द।

पदरह-बीस िमनट म इकका गोवधरयन की सराय पहच गया। सडक क दािहन हाथ एक गली थी। वही बिढया न इकका रकवा िदया, और उतर पडी। इकका आग न जा सकता था। मालम पडता था, अनधोर न मह पर तारकोल पोत िलया ह।

अनमरकानत न इकक को लौटान क िलए कहा, तो बिढया बोली-नही मर लाल, इतती दर आए हो, तो पल-भर मर घर भी बठ लो, तमन मरा कलजा ठडा कर िदया।

गली म बडी दगधा थी। गद पानी क नाल दोनो तरफ बह रह थ। घर पराय: सभी कचच थ। गरीबो का महलला था। शहरो क बाजारो और गिलयो म िकतना अनतर ह एक फल ह-सदर, सवचछ, सगधामय दसरी जड ह-कीचड और दगरयनध स भरी, टढी-मढी लिकन कया फल को मालम ह िक उसकी हसती जड स ह-

बिढया न एक मकान क सामन खिड होकर धीर स पकारा-सकीना अनदर स आवाज आई-आती ह अनममा इतनी दर कहा लगाई-

एक कषण म सामन का दवार खिला और एक बािलका हाथ म िमटटी क तल की कपपी िलए दवार पर खिडी हो गई। अनमरकानत बिढया क पीछ खिडा था, उस पर बािलका की िनगाह न पडी लिकन बिढया आग बढी, तो सकीना न अनमर को दखिा। तरत ओढनी म मह िछपाती हई पीछ हट गई और धीर स पछा-यह कौन ह, अनममा?

बिढया न कोन म अनपनी लकडी रखि दी और बोली-लाला का लडका ह, मझ पहचान आया ह। ऐसा नक-शरीफ लडका तो मन दखिा ही नही।

उसन अनब तक का सारा वततात अनपन आशीवादो स भरी भाषा म कह सनाया और बोली-आगन म खिाट डाल द बटी, जरा बला ल। थक गया होगा।

सकीना न एक टटी-सी खिाट आगन म डाल दी और उस पर एक सडी-सी चादर िबछाती हई बोली-इस

26 www.hindustanbooks.com

खिटोल पर कया िबठाओगी अनममा, मझ तो शमरय आती ह-

बिढया न जरा कडी आखिो स दखिकर कहा-शमरय की कया बात ह इसम- हमारा हाल कया इनस िछपा ह-

उसन बाहर जाकर अनमरकानत को बलाया। दवार एक परद की दीवार म था। उस पर एक टाट का गटा-पराना परदा पडा हआ था। दवार क अनदर कदम रखित ही एक आगन था, िजसम मिशकल स दो खिटोल पड सकत थ। सामन खिपरल का एक नीचा सायबान था और सायबान क पीछ एक कोठरी थी, जो इस वकत अनधोरी पडी हई थी। सायबान म एक िकनार चलहा बना हआ था और टीन और िमटटी क दो-चार बतरयन, एक घडा और एक मटका रख हए थ। चलह म आग जल रही थी और तवा रखिा हआ था।

अनमर न खिाट पर बठत हए कहा-यह घर तो बहत छोटा ह। इसम गजर कस होती ह-

बिढया खिाट क पास जमीन पर बठ गई और बोली-बटा, अनब तो दो ही आदमी ह, नही, इसी घर म एक परा कनबा रहता था। मर दो बट, दो बहए, उनक बचच, सब इसी घर म रहत थ। इसी म सबो क शादी-बयाह हए और इसी म सब मर भी गए। उस वकत यह ऐसा गलजार लगता था िक तमस कया कह- अनब म ह और मरी यह पोती ह। और सबको अनललाह न बला िलया। पकात ह और पड रहत ह। तमहार पठान क मरत ही घर म जस झाड िफर गई। अनब तो अनललाह स यही दआ ह िक मर जीत-जी यह िकसी भल आदमी क पाल पड जाए, तब अनललाह स कहगी िक अनब मझ उठा लो। तमहार यार-दोसत तो बहत होग बटा, अनगर शमरय की बात न समझो, तो िकसी स िजकर करना। कौन जान तमहार ही हील स कही बातचीत ठीक हो जाए।

सकीना करता-पाजामा पहन, ओढनी स माथा िछपाए सायबान म खिडी थी। बिढया न जयोही उसकी शादी की चचा छडी, वह चलह क पास जा बठी और आट को अनगिलयो स गोदन लगी। वह िदल म झझला रही थी िक अनममा कयो इनस मरा दखिडा ल बठी- िकसस कौन बात कहनी चािहए, कौन बात नही, इसका इनह जरा भी िलहाज नही- जो ऐरा-गरा आ गया, उसी स शादी का पचडा गान लगी। और सब बात गइ, बस एक शादी रह गई।

उस कया मालम िक अनपनी सतान को िववािहत दखिना बढाप की सबस बडी अनिभलाषा ह।

अनमरकानत न मन म मसलमान िमतरो का िसहावलोकन करत हए कहा-मर मसलमान दोसत जयादा तो नही ह लिकन जो दो-एक ह, उनस म िजकर करगा।

वधदा न िचितत भाव स कहा-वह लोग धानी होग-

'हा, सभी खिशहाल ह।'

'तो भला धानी लोग गरीबो की बात कयो पछग- हालािक हमार नबी का हकम ह िक शादी-बयाह म अनमीर-गरीब का िवचार न होना चािहए, पर उनक हकम को कौन मानता ह नाम क मसलमान, नाम क िहनद रह गए ह। न कही सचचा मसलमान नजर आता ह, न सचचा िहनद। मर घर का तो तम पानी भी न िपयोग बटा, तमहारी कया खिाितर कर (सकीना स) बटी, तमन जो रमाल काढा ह वह लाकर भया को िदखिाओ। शायद इनह पसद आ जाए। और हम अनललाह न िकस लायक बनाया ह-

सकीना रसोई स िनकली और एक ताक पर स िसगरट का एक बडा-सा बकस उठा लाई और उसम स वह रमाल िनकालकर िसर झकाए, िझझकती हई, बिढया क पास आ, रमाल रखि, तजी स चली गई।

27 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत आख झकाए हए था पर सकीना को सामन दखिकर आख नीची न रह सकी। एक रमणी सामन खिडी हो, तो उसकी ओर स मह फर लना िकतनी भली बात ह। सकीना का रग सावला था और रप-रखिा दखित हए वह सदरी न कही जा सकती थी अनग-परतयग का गठन भी किव-विणत उपमाआ स मल न खिाता था पर रग-रप, चाल-ढाल, शील-सकोच, इन सबन िमल-जलकर उस आकषरयक शोभा परदान कर दी थी। वह बडी-बडी पलको स आख िछपाए, दह चराए, शोभा की सगधा और जयोित फलाती हई इस तरह िनकल गई, जस सवपन-िचतर एक झलक िदखिाकर िमट गया हो।

अनमरकानत न रमाल उठा िलया और दीपक क परकाश म उस दखिन लगा। िकतनी सफाई स बल-बट बनाए गए थ। बीच म एक मोर का िचतर था। इस झोपड। म इतनी सरिच-

चिकत होकर बोला-यह तो खिबसरत रमाल ह, माताजी सकीना काढन क काम म बहत होिशयार मालम होती ह।

बिढया न गवरय स कहा-यह सभी काम जानती ह भया, न जान कस सीखि िलया- महलल की दो-चार लडिकया मदरस पढन जाती ह। उनही को काढत दखिकर इसन सब कछ सीखि िलया। कोई मदरय घर म होता, तो हम कछ काम िमल जाएा करता। गरीबो क महलल म इन कामो की कौन कदर कर सकता ह- तम यह रमाल लत जाओ बटा, एक बकस की नजर ह।

अनमर न रमाल को जब म रखिा तो उसकी आख भर आइ। उसका बस होता तो इसी वकत सौ-दो सौ रमालो की फरमाइश कर दता। िफर भी यह बात उसक िदल म जम गई। उसन खिड होकर कहा-म इस रमाल को हमशा तमहारी दआ समझगा। वादा तो नही करता लिकन मझ यकीन ह िक म अनपन दोसतो स आपको कछ काम िदला सकगा।

अनमरकानत न पहल पठािनन क िलए 'तम' का परयोग िकया था। चलत समय तक वह तम आप म बदल गया था। सरिच, सिवचार, सदभाव उस यहा सब कछ िमला। हा, उस पर िवपननता का आवरण पडा हआ था। शायद सकीना न यह 'आप' और 'तम' का िववक उतपनन कर िदया था।

अनमर उठ खिडा हआ। बिढया आचल फलाकर उस दआए दती रही।

28 www.hindustanbooks.com

आठअनमरकानत नौ बजत-बजत लौटा तो लाला समरकानत न पछा-तम दकान बद करक कहा चल गए थ- इसी

तरह दकान पर बठा जाता ह-

अनमर न सफाई दी-बिढया पठािनन रपय लन आई थी। बहत अनधोरा हो गया था। मन समझा कही िगर-िगरा पड इसिलए उस घर तक पहचान चला गया था। वह तो रपय लती ही न थी पर जब बहत दर हो गई तो मन रोकना उिचत न समझा।

'िकतन रपय िदए?'

'पाच।'

लालाजी को कछ धयरय हआ।

'और कोई अनसामी आया था- िकसी स कछ रपय वसल हए?'

'जी नही।'

'आशचियरय ह।'

'और तो कोई नही आया, हा, वही बदमाश काल खिा सोन की एक चीज बचन लाया था। मन लौटा िदया।'

समरकानत की तयोिरया बदली-कया चीज थी-

'सोन क कड थ। दस तोल बताता था।'

'तमन तौला नही?'

'मन हाथ स छआ तक नही।'

'हा, कयो छत, उसम पाप िलपटा हआ था न िकतना मागता था?'

'दो सौ।'

'झठ बोलत हो।'

'शर दो सौ स िकए थ, पर उतरत-उतरत तीस रपय तक आया था।'

लालाजी की मदरा कठोर हो गई-िफर भी तमन लौटा िदए-

'और कया करता- म तो उस सत म भी न लता। ऐसा रोजगार करना म पाप समझता ह।'

समरकानत करोध स िवकतत होकर बोल-चप रहो, शरमात तो नही, ऊपर स बात बनात हो। डढ सौ रपय बठ-बठाए िमलत थ, वह तमन धमरय क घमड म खिो िदए, उस पर स अनकडत हो। जानत भी हो, धमरय ह कया चीज- साल म एक बार भी गगा-सनान करत हो- एक बार भी दवताआ को जल चढात हो- कभी राम का नाम िलया ह िजदगी म- कभी एकादशी या कोई दसरा वरत रखिा ह- कभी कथा-पराण पढत या सनत हो- तम कया जानो धमरय िकस कहत ह- धमरय और चीज ह, रोजगार और चीज। िछ: साफ डढ सौ फक िदए।

अनमरकानत धमरय की इस वयाखया पर मन-ही-मन हसकर बोला-आप गगा-सनान, पजा-पाठ को मखय धमरय

29 www.hindustanbooks.com

समझत ह म सचचाई, सवा और परोपकार को मखय धमरय समझता ह। सनान-धयान, पजा-वरत धमरय क साधन मातर ह, धमरय नही।

समरकानत न मह िचढाकर कहा-ठीक कहत हो, बहत ठीक अनब ससार तमही को धमरय का आचायरय मानगा। अनगर तमहार धमरय-मागरय पर चलता, तो आज म भी लगोटी लगाए घमता होता, तम भी यो महल म बठकर मौज न करत होत। चार अनकषर अनगरजी पढ ली न, यह उसी की िवभित ह लिकन म ऐस लोगो को भी जानता ह, जो अनगरजी क िवदवान होकर अनपना धमरय-कमरय िनभाए जात ह। साफ डढ सौ पानी म डाल िदए।

अनमरकानत न अनधीर होकर कहा-आप बार-बार, उसकी चचा कयो करत ह- म चोरी और डाक क माल का रोजगार न करगा, चाह आप खिश हो या नाराज। मझ ऐस रोजगार स घणा होती ह।

'तो मर काम म वसी आतमा की जररत नही। म ऐसी आतमा चाहता ह, जो अनवसर दखिकर, हािन-लाभ का िवचार करक काम कर।'

'धमरय को म हािन-लाभ की तराज पर नही तौल सकता।'

इस वज-मखिरयता की दवा, चाट क िसवा और कछ न थी। लालाजी खिन का घट पीकर रह गए। अनमर हषट-पषटि न होता, तो आज उस धमरय की िनदा करन का मजा िमल जाता। बोल-बस, तमही तो ससार म एक धमरय क ठकदार रह गए हो, और सब तो अनधमी ह। वही माल जो तमन अनपन घमड म लौटा िदया, तमहार िकसी दसर भाई न दो-चार रपय कम-बश दकर ल िलया होगा। उसन तो रपय कमाए, तम नीब-नोन चाटकर रह गए। डढ-सौ रपय तब िमलत ह, जब डढ सौ थान कपडा या डढ सौ बोर चीनी िबक जाए। मह का कौर नही ह। अनभी कमाना नही पडा ह, दसरो की कमाई स चन उडा रह हो, तभी ऐसी बात सझती ह। जब अनपन िसर पडगी, तब आख खिलगी।

अनमर अनब भी कायल न हआ। बोला-म कभी यह रोजगार न करगा।

लालाजी को लडक की मखिरयता पर करोध की जगह करोध-िमिशरत दया आ गई। बोल-तो िफर कौन रोजगार करोग- कौन रोजगार ह, िजसम तमहारी आतमा की हतया न हो, लन-दन, सद-बकरा, अननाज-कपडा, तल-घी, सभी रोजगारो म दाव-घात ह। जो दाव-घात समझता ह, वह नगा उठाता ह, जो नही समझता, उसका िदवाला िपट जाता ह। मझ कोई ऐसा रोजगार बता दो, िजसम झठ न बोलना पड, बईमानी न करनी पड। इतन बड-बड हािकम ह, बताओ कौन घस नही लता- एक सीधी-सी नकल लन जाओ, तो एक रपया लग जाता ह। िबना तहरीर िलए थानदार रपट तक नही िलखिता। कौन वकील ह, जो झठ गवाह नही बनाता- लीडरो ही म कौन ह, जो चद क रपय म नोच-खिसोट न करता हो- माया पर तो ससार की रचना हई ह, इसस कोई कस बच सकता ह-

अनमर न उदासीन भाव स िसर िहलाकर कहा-अनगर रोजगार का यह हाल ह, तो म रोजगार करगा ही नही।

'तो घर-िगरसती कस चलगी- कए म पानी की आमद न हो, तो क िदन पानी िनकल?'

अनमरकानत न इस िववाद का अनत करन क इराद स कहा-म भखिो मर जाऊगा, पर आतमा का गला न घोटगा।

30 www.hindustanbooks.com

'तो कया मजरी करोग?'

'मजरी करन म कोई शमरय नही ह।'

समरकानत न हथौड स काम चलत न दखिकर घन चलाया-शमरय चाह न हो पर तम कर न सकोग, कहो िलखि द- मह स बक दना सरल ह, कर िदखिाना किठन होता ह। चोटी का पसीना एडी तक आता ह, तब चार गड पस िमलत ह। मजरी करग एक घडा पानी तो अनपन हाथो खिीचा नही जाता, चार पस की भाजी लनी होती ह, तो नौकर लकर चलत ह, यह मजरी करग। अनपन भागय को सराहो िक मन कमाकर रखि िदया ह। तमहारा िकया कछ न होगा। तमहारी इन बातो स ऐसा जी जलता ह िक सारी जायदाद कतषणापरयण कर द िफर दखि तमहारी आतमा िकधर जाती ह-

अनमरकानत पर उनकी इस चोट का भी कोई अनसर न हआ-आप खिशी स अनपनी जायदाद कतषणापरयण कर द। मर िलए रतती भर भी िचता न कर। िजस िदन आप यह पनीत कायरय करग, उस िदन मरा सौभागय-सयरय उदय होगा। म इस मोह स मकत होकर सवाधाीन हो जाऊगा। जब तक म इस बधन म पडा रहगा, मरी आतमा का िवकास होगा।

समरकानत क पास अनब कोई शसतर न था। एक कषण क िलए करोध न उनकी वयवहार-बिधद को भरषटि कर िदया। बोल-तो कयो इस बधन म पड हो- कयो अनपनी आतमा का िवकास नही करत- महातमा ही हो जाओ। कछ करक िदखिाओ तो िजस चीज की तम कदर नही कर सकत, वह म तमहार गल नही मढना चाहता।

यह कहत हए वह ठाकरदवार म चल गए, जहा इस समय आरती का घटा बज रहा था। अनमर इस चनौती का जवाब न द सका। व शबद जो बाहर न िनकल सक, उसक हदय म फोड की तरह टीसन लग-मझ पर अनपनी सपितत की धौस जमान चल ह- चोरी का माल बचकर, जआिरयो को चार आन रपय बयाज पर रपय दकर, गरीब मजरो और िकसानो को ठगकर तो रपय जोड ह, उस पर आपको इतना अनिभमान ह ईशवर न कर िक म उस धान का गलाम बन।

वह इनही उततजना स भर हए िवचारो म डबा बठा था िक नना न आकर कहा-दादा िबगड रह थ, भयाजी।

अनमरकानत क एकात जीवन म नना ही सनह और सातवना की वसत थी। अनपना सखि-दखि अनपनी िवजय और पराजय, अनपन मसब और इराद वह उसी स कहा करता था। यदयिप सखिदा स अनब उस उतना िवराग न था, अनब उसस परम भी हो गया था पर नना अनब भी उसम िनकटतर थी। सखिदा और नना दोनो उसक अनतसथल क दो कल थ। सखिदा ऊची, दगरयम और िवशाल थी। लहर उसक चरणो ही तक पहचकर रह जाती थी। नना समतल, सलभ और समीप। वाय का थोडा वग पाकर भी लहर उसक ममरयसथल तक पहचती थी।

अनमर अनपनी मनोवयथा मद मसकान की आड म िछपाता हआ बोला-कोई नई बात नही थी नना। वही पराना पचडा था। तमहारी भाभी तो नीच नही थी-

'अनभी तक तो यही थी। जरा दर हई ऊपर चली गइ।'

'तो आज उधर स भी शसतर-परहार होग। दादा न तो आज मझस साफ कह िदया, तम अनपन िलए कोई राह िनकालो, और म भी सोचता ह, मझ अनब कछ-न-कछ करना चािहए। यह रोज-रोज की फटकार नही सही जाती। म कोई बराई कर, तो वह मझ दस जत भी जमा द, च न करगा लिकन अनधमरय पर मझस न चला जाएगा।'

31 www.hindustanbooks.com

नना न इस वकत मीठी पकौिडया, नमकीन पकौिडया और न जान कया-कया पका रख थ। उसका मन उन पदाथो को िखिलान और खिान क आनद म बसा हआ था। यह धमरय-अनधमरय क झगड उस वयथरय-स जान पड। बोली-पहल चलकर पकौिडया खिा लो, िफर इस िवषय पर सलाह होगी।

अनमर न िवतषणा क भाव स कहा-बयाल करन की मरी इचछा नही ह। लात की मारी रोिटया कठ क नीच न उतरगी। दादा न आज फसला कर िदया ।

'अनब तमहारी यही बात मझ अनचछी नही लगती। आज की-सी मजदार पकौिडया तमन कभी न खिाई होगी। तम न खिाओग, तो म न खिाऊगी।'

नना की इस दलील न उसक इकार को कई कदम पीछ धाकल िदया-त मझ बहत िदखि करती ह नना, सच कहता ह, मझ िबलकल इचछा नही ह।

'चलकर थाल पर बठो तो, पकौिडया दखित ही टट न पडो, तो कहना।'

'त जाकर खिा कयो नही लती- म एक िदन न खिान स मर तो न जाऊगा।'

'तो कया म एक िदन न खिान स मर जाऊगी- म िनजरयला िशवराितर रखिती ह, तमन तो कभी वरत नही रखिा।'

नना क आगरह को टालन की शिकत अनमरकानत म न थी।

लाला समरकानत रात को भोजन न करत थ। इसिलए भाई, भावज, बहन साथ ही खिा िलया करत थ। अनमर आगन म पहचा, तो नना न भाभी को बलाया। सखिदा न ऊपर ही स कहा-मझ भखि नही ह।

मनावन का भार अनमरकानत क िसर पडा। वह दब पाव ऊपर गया। जी म डर रहा था िक आज मआमला तल खिीचगा पर इसक साथ ही दढ भी था। इस परशन पर दबगा नही। यह ऐसा मािमक िवषय था, िजस पर िकसी परकार का समझौता हो ही न सकता था।

अनमरकानत की आहट पात ही सखिदा सभल बठी। उसक पील मखि पर ऐसी करण वदना झलक रही थी िक एक कषण क िलए अनमरकानत चचल हो गया।

अनमरकानत न उसका हाथ पकडकर कहा-चलो, भोजन कर लो। आज बहत दर हो गई।

'भोजन पीछ करगी, पहल मझ तमस एक बात का फसला करना ह। तम आज िफर दादाजी स लड पड?'

'दादाजी स म लड पडा, या उनही न मझ अनकारण डाटना शर िकया?'

सखिदा न दाशरयिनक िनरपकषता क सवर म कहा-तो उनह डाटन का अनवसर ही कयो दत हो- म मानती ह िक उनकी नीित तमह अनचछी नही लगती। म भी उसका समथरयन नही करती लिकन अनब इस उमर म तम उनह नए रासत पर नही चला सकत। वह भी तो उसी रासत पर चल रह ह, िजस पर सारी दिनया चल रही ह। तमस जो कछ हो सक, उनकी मदद करो जब वह न रहग उस वकत अनपन आदशो का पालन करना। तब कोई तमहारा हाथ न पकडगा। इस वकत तमह अनपन िसधदातो क िवरदवदव' भी कोई बात करनी पड, तो बरा न मानना चािहए। उनह कम-स-कम इतना सतोष तो िदला दो िक उनक पीछ तम उनकी कमाई लटा न दोग। म आज तम दोनो की बात सन रही थी। मझ तो तमहारी ही जयादती मालम होती थी।

32 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत उसक परसव-भार पर िचता-भार न लादना चाहता था पर परसग ऐसा आ पडा था िक वह अनपन को िनदोष ही करना आवशयक समझता था। बोला-उनहोन मझस साफ-साफ कह िदया, तम अनपनी िफकर करो। उनह अनपना धान मझस जयादा पयारा ह।

यही काटा था, जो अनमरकानत क हदय म चभ रहा था।

सखिदा क पास जवाब तयार था-तमह भी तो अनपना िसधदात अनपन बाप स जयादा पयारा ह- उनह तो म कछ नही कहती। अनब साठ बरस की उमर म उनह उपदश नही िदया जा सकता। कम-स-कम तमको यह अनिधकार नही ह। तमह धान काटता हो लिकन मनसवी, वीर परषो न सदव लकषमी की उपासना की ह। ससार को परषािथयो न ही भोगा ह और हमशा भोगग। तयाग गहसथो क िलए नही ह, सनयािसयो क िलए ह। अनगर तमह तयागवरत लना था तो िववाह करन की जररत न थी, िसर मडाकर िकसी साध-सत क चल बन जात। िफर म तमस झगडन न आती। अनब ओखिली म िसर डाल कर तम मसलो स नही बच सकत। गहसथी क चरख म पडकर बड-बडो की नीित भी सखििलत हो जाती ह। कतषण और अनजरयन तक को एक नए तकरक की शरण लनी पडी।

अनमरकानत न इस जञानोपदश का जवाब दन की जररत न समझी। ऐसी दलीलो पर गभीर िवचार िकया ही नही जा सकता था। बोला-तो तमहारी सलाह ह िक सनयासी हो जाऊ-

सखिदा िचढ गई। अनपनी दलीलो का यह अननादर न सह सकी। बोली-कायरो को इसक िसवाय और सझ ही कया सकता ह- धान कमाना आसान नही ह। वयवसािययो को िजतनी किठनाइयो का सामना करना पडता ह , वह अनगर सनयािसयो को झलनी पड, तो सारा सनयास भल जाए। िकसी भल आदमी क दवार पर जाकर पड रहन क िलए बल, बिधद िवदया, साहस िकसी की भी जररत नही। धानोपाजरयन क िलए खिन जलाना पडता ह मास सखिाना पडता ह। सहज काम नही ह। धान कही पडा नही ह िक जो चाह बटोर लाए।

अनमरकानत न उसी िवनोदी भाव स कहा-म तो दादा को गददी पर बठ रहन क िसवाय और कछ करत नही दखिता। और भी जो बड-बड सठ-साहकार ह उनह भी फलकर कपपा होत ही दखिा ह। रकत और मास तो मजदर ही जलात ह। िजस दखिो ककाल बना हआ ह।

सखिदा न कछ जवाब न िदया। ऐसी मोटी अनकल क आदमी स जयादा बकवास करना वयथरय था।

नना न पकारा-तम कया करन लग, भया आत कयो नही- पकौिडया ठडी हई जाती ह।

सखिदा न कहा-तम जाकर खिा कयो नही लत- बचारी न िदन-भर तयािरया की ह।

'म तो तभी जाऊगा, जब तम भी चलोगी।'

'वादा करो िक िफर दादाजी स लडाई न करोग।'

अनमरकानत न गभीर होकर कहा-सखिदा, म तमस सतय कहता ह, मन इस लडाई स बचन क िलए कोई बात उठा नही रखिी। इन दो सालो म मझम िकतना पिरवतरयन हो गया ह, कभी-कभी मझ इस पर सवय आशचियरय होता ह। मझ िजन बातो स घणा थी, वह सब मन अनगीकार कर ली लिकन अनब उस सीमा पर आ गया ह िक जौ भर भी आग बढा, तो ऐस गतरय म जा िगरगा, िजसकी थाह नही ह। उस सवरयनाश की ओर मझ मत ढकलो।

सखिदा को इस कथन म अनपन ऊपर लाछन का आभास हआ। इस वह कस सवीकार करती- बोली-इसका तो यही आशय ह िक म तमहारा सवरयनाश करना चाहती ह। अनगर अनब तक मर वयवहार का यही ततव तमन िनकाला

33 www.hindustanbooks.com

ह, तो तमह इसस बहत पहल मझ िवष द दना चािहए था। अनगर तम समझत हो िक म भोग-िवलास की दासी ह और कवल सवाथरयवश तमह समझाती ह तो तम मर साथ घोरतम अननयाय कर रह हो। म तमको बता दना चाहती ह, िक िवलािसनी सखिदा अनवसर पडन पर िजतन कषटि झलन की सामथयरय रखिती ह, उसकी तम कलपना भी नही कर सकत। ईशवर वह िदन न लाए िक म तमहार पतन का साधन बन। हा, जलन क िलए सवय िचता बनाना मझ सवीकार नही। म जानती ह िक तम थोडी बिधद स काम लकर अनपन िसधदात और धमरय की रकषा भी कर सकत हो और घर की तबाही को भी रोक सकत हो। दादाजी पढ-िलख आदमी ह, दिनया दखि चक ह। अनगर तमहार जीवन म कछ सतय ह, तो उसका उन पर परभाव पड बगर नही रह सकता। आए िदन की झौड स तम उनह और भी कठोर बनाए दत हो। बचच भी मार स िजददी हो जात ह। बढो की परकतित कछ बचचो की-सी होती ह। बचचो की भाित उनह भी तम सवा और भिकत स ही अनपना सकत हो।

अनमर न पछा-चोरी का माल खिरीदा कर-

'कभी नही।'

'लडाई तो इसी बात पर हई।'

'तम उस आदमी स कह सकत थ-दादा आ जाए तब लाना।'

'और अनगर वह न मानता- उस ततकाल रपय की जररत थी।'

'आप'मरय भी तो कोई चीज ह?'

'वह पाखििडयो का पाखिड ह।'

'तो म तमहार िनजीव आदशरयवाद को भी पाखििडयो का पाखिड समझती ह।'

एक िमनट तक दोनो थक हए योदवाआ की भाित दम लत रह। तब अनमरकानत न कहा-नना पकार रही ह।

'म तो तभी चलगी, जब तम वह वादा करोग।'

अनमरकानत न अनिवचल भाव स कहा-तमहारी खिाितर स कहो वादा कर ल पर म उस परा नही कर सकता। यही हो सकता ह िक म घर की िकसी बात स सरोकार न रखि।

सखिदा िनशचियातमक रप स बोली-यह इसस कही अनचछा ह िक रोज घर म लडाई होती रह। जब तक इस घर म हो, इस घर की हािन-लाभ का तमह िवचार करना पडगा।

अनमर न अनकडकर कहा-म आज इस घर को छोड सकता ह।

सखिदा न बम-सा फका-और म-

अनमर िवसमय स सखिदा का मह दखिन लगा।

सखिदा न उसी सवर म कहा-इस घर स मरा नाता तमहार आधार पर ह जब तम इस घर म न रहोग, तो मर िलए यहा कया रखिा ह- जहा तम रहोग, वही म भी रहगी।

अनमर न सशयातमक सवर म कहा-तम अनपनी माता क साथ रह सकती हो।

'माता क साथ कयो रह- म िकसी की आिशरत नही रह सकती। मरा द:खि-सखि तमहार साथ ह। िजस तरह

34 www.hindustanbooks.com

रखिोग, उसी तरह रहगी। म भी दखिगी, तम अनपन िसधदातो क िकतन पकक हो- म परण करती ह िक तमस कछ न मागगी। तमह मर कारण जरा भी कषटि न उठाना पडगा। म खिद भी कछ पदा कर सकती ह, थोडा िमलगा, थोड म गजर कर लग, बहत िमलगा तो पछना ही कया। जब एक िदन हम अनपनी झोपडी बनानी ही ह तो कयो न अनभी स हाथ लगा द। तम कए स पानी लाना, म चौका-बतरयन कर लगी। जो आदमी एक महल म रहता ह, वह एक कोठरी म भी रह सकता ह। िफर कोई धौस तो न जमा सकगा।

अनमरकानत पराभत हो गया। उस अनपन िवषय म तो कोई िचता नही लिकन सखिदा क साथ वह यह अनतयाचार कस कर सकता था-

िखििसयाकर बोला-वह समय अनभी नही आया ह, सखिदा ।

'कयो झठ बोलत हो तमहार मन म यही भाव ह और इसस बडा अननयाय तम मर साथ नही कर सकत कषटि सहन म, या िसधदात की रकषा क िलए िसतरया कभी परषो स पीछ नही रही। तम मझ मजबर कर रह हो िक और कछ नही तो लाछन स बचन क िलए म दादाजी स अनलग रहन की आजञा माग। बोलो?'

अनमर लिजजत होकर बोला-मझ कषमा करो सखिदा म वादा करता ह िक दादाजी जसा कहग, वसा ही करगा।

'इसिलए िक तमह मर िवषय म सदह ह?'

'नही, कवल इसिलए िक मझम अनभी उतना बल नही ह।'

इसी समय नना आकर दोनो को पकौिडया िखिलान क िलए घसीट ल गई। सखिदा परसनन थी। उसन आज बहत बडी िवजय पाई थी। अनमरकानत झपा हआ था। उसक आदशरय और धमरय की आज परीकषा हो गई थी और उस अनपनी दबरयलता का जञान हो गया था। ऊट पहाड क नीच आकर अनपनी ऊचाई दखि चका था।

35 www.hindustanbooks.com

नौजीवन म कछ सार ह, अनमरकानत को इसका अननभव हो रहा ह। वह एक शबद भी मह स ऐसा नही

िनकालना चाहता, िजसस सखिदा को दखि हो कयोिक वह गभरयवती ह। उसकी इचछा क िवरदवदव' वह छोटी-स-छोटी बात भी नही कहना चाहता। वह गभरयवती ह। उस अनचछी-अनचछी िकताब पढकर सनाई जाती ह रामायण, महाभारत और गीता स अनब अनमर को िवशष परम ह कयोिक सखिदा गभरयवती ह। बालक क ससकारो का सदव धयान बना रहता ह। सखिदा को परसनन रखिन की िनरतर चषटिा की जाती ह। उस िथएटर, िसनमा िदखिान म अनब अनमर को सकोच नही होता। कभी फलो क गजर आत ह, कभी कोई मनोरजन की वसत। सबह-शाम वह दकान पर भी बठता ह। सभाआ की ओर उसकी रिच नही ह। वह पतर का िपता बनन जा रहा ह। इसकी कलपना स उसम ऐसा उतसाह भर जाता ह िक कभी-कभी एकात म नतमसतक होकर कतषण क िचतर क सामन िसर झका लता ह। सखिदा तप कर रही ह। अनमर अनपन को नई िजममदािरयो क िलए तयार कर रहा ह। अनब तक वह समतल भिम पर था, बहत सभलकर चलन की उतनी जररत न थी। अनब वह ऊचाई पर जा पहचा ह। वहा बहत सभलकर पाव रखिना पडता ह।

लाला समरकानत भी आजकल बहत खिश नजर आत ह। बीसो ही बार अनदर आकर सखिदा स पछत ह, िकसी चीज की जररत तो नही ह- अनमर पर उनकी िवशष कतपा-दिषटि हो गई ह। उसक आदशरयवाद को वह उतना बरा नही समझत। एक िदन काल खिा को उनहोन दकान स खिड-खिड िनकाल िदया। अनसािमयो पर वह उतना नही िबगडत, उतनी मािलश नही करत। उनका भिवषय उजजवल हो गया ह। एक िदन उनकी रणका स बात हो रही थी। अनमरकानत की िनषठा की उनहोन िदल खिोलकर परशसा की।

रणका उतनी परसनन न थी। परसव क कषटिो को याद करक वह भयभीत हो जाती थी। बोली-लालाजी, म तो भगवान स यही मनाती ह िक जब हसाया ह, तो बीच म रलाना मत। पहलौठी म बडा सकट रहता ह। सतरी का दसरा जनम होता ह।

समरकानत को ऐसी कोई शका न थी। बोल-मन तो बालक का नाम सोच िलया ह। उसका नाम होगा-रणकानत।

रणका आशिकत होकर बोली-अनभी नाम-वाम न रिखिए, लालाजी इस सकट स उबर हो जाए, तो नाम सोच िलया जाएगा। म सोचती ह, दगा-पाठ बठा दीिजए। इस महलल म एक दाई रहती ह, उस अनभी स रखि िलया जाए, तो अनचछा हो। िबिटया अनभी बहत-सी बात नही समझती। दाई उस सभालती रहगी।

लालाजी न इस परसताव को हषरय स सवीकार कर िलया। यहा स जब वह घर लौट तो दखिा-दकान पर दो गोर और एक मम बठ हए ह और अनमरकानत उनस बात कर रहा ह। कभी-कभी नीच दजरज क गोर यहा अनपनी घिडया या और कोई चीज बचन क िलए आ जात थ। लालाजी उनह खिब ठगत थ। वह जानत थ िक य लोग बदनामी क भय स िकसी दसरी दकान पर न जाएग। उनहोन जात-ही-जात अनमरकानत को हटा िदया और खिद सौदा पटान लग। अनमरकानत सपषटिवादी था और यह सपषटिवािदता का अनवसर न था। मम साहब को सलाम करक पछा-किहए मम साहब, कया हकम ह-

तीनो शराब क नश म चर थ। मम साहब न सोन की एक जजीर िनकालकर कहा -सठजी, हम इसको बचना चाहता ह। बाबा बहत बीमार ह। उसका दवाई म बहत खिचरय हो गया।

36 www.hindustanbooks.com

समरकानत न जजीर लकर दखिा और हाथ म तौलत हए बोल-इसका सोना तो अनचछा नही ह, मम साहब आपन कहा बनवाया था-

मम हसकर बोली-ओ तम बराबर यही बात कहता ह। सोना बहत अनचछा ह। अनगरजी दकान का बना हआ ह। आप इसको ल ल।

समरकानत न अनिनचछा का भाव िदखिात हए कहा-बडी-बडी दकान ही तो गराहको को उलट छर स मडती ह। जो कपडा यहा बाजार म छह आन गज िमलगा, वही अनगरजी दकानो पर बारह आन गज स नीच न िमलगा। म तो दस रपय तोल स बशी नही द सकता।

'और कछ नही दगा?'

'कछ और नही। यह भी आपकी खिाितर ह।'

यह गोर उस शरणी क थ, जो अनपनी आतमा को शराब और जए क हाथो बच दत ह, ब-िटकट गसटरय कलास म सफर करत ह, होटल वालो को धोखिा दकर उड जात ह और जब कछ बस नही चलता, तो िबगड हए शरीफ बनकर भीखि मागत ह। तीनो न आपस म सलाह की और जजीर बच डाली। रपय लकर दकान स उतर और ताग पर बठ ही थ िक एक िभखिािरन ताग क पास आकर खिडी हो गई। व तीनो रपय पान की खिशी म भल हए थ िक सहसा उस िभखिािरन न छरी िनकालकर एक गोर पर वार िकया। छरी उसक मह पर आ रही थी। उसन घबराकर मह पीछ हटाया तो छाती म चभ गई। वह तो ताग पर ही हाय-हाय करन लगा। शष दोनो गोर ताग स उतर पड और दकान पर आकर पराणरकषा माफना चाहत थ िक िभखिािरन न दसर गोर पर वार कर िदया। छरी उसकी पसली म पहच गई। दकान पर चढन न पाया था, धाडाम स िगर पडा। िभखिािरन लपककर दकान पर चढ गई और मम पर झपटी िक अनमरकानत हा-हा करक उसकी छरी छीन लन को बढा। िभखिािरन न उस दखिकर छरी फक दी और दकान क नीच कदकर खिडी हो गई। सार बाजार म हलचल मच गई-एक गोर न कई आदिमयो को मार डाला ह, लाला समरकानत मार डाल गए, अनमरकानत को भी चोट आई ह। ऐसी दशा म िकस अनपनी जान भारी थी, जो वहा आता। लोग दकान बद करक भागन लग।

दोनो गोर जमीन पर पड तडप रह थ, ऊपर मम सहमी हई खिडी थी और लाला समरकानत अनमरकानत का हाथ पकडकर अनदर घसीट ल जान की चषटिा कर रह थ। िभखिािरन भी िसर झकाए जडवत खिडी थी-ऐसी भोली-भाली जस कछ िकया नही ह ।

वह भाग सकती थी, कोई उसका पीछा करन का साहस न करता पर भागी नही। वह आतमघात कर सकती थी। उसकी छरी अनब भी जमीन पर पडी हई थी पर उसन आतमघात भी न िकया। वह तो इस तरह खिडी थी, मानो उस यह सारा दशय दखिकर िवसमय हो रहा हो।

सामन क कई दकानदार जमा हो गए। पिलस क दो जवान भी आ पहच। चारो तरफ स आवाज आन लगी-यही औरत ह यही औरत ह पिलस वालो न उस पकड िलया।

दस िमनट म सारा शहर और सार अनिधकारी वहा आकर जमा हो गए। सब तरफ लाल पगिडया दीखि पडती थी। िसिवल सजरयन न आकर आहतो को उठवाया और अनसपताल ल चल। इधर तहकीकात होन लगी। िभखिािरन न अनपना अनपराध सवीकार िकया।

पिलस सपिरटडट न पछा-तरी इन आदिमयो स कोई अनदावत थी-

37 www.hindustanbooks.com

िभखिािरन न कोई जवाब न िदया।

सकडो आवाज आइ-बोलती कयो नही हतयािरन ।

िभखिािरन न दढता स कहा-म हतयािरन नही ह।

'इन साहबो को तन नही मारा?'

'हा, मन मारा ह।'

'तो त हतयािरन कस नही ह?'

'म हतयािरन नही ह। आज स छ: महीन पहल ऐस ही तीन आदिमयो न मरी आबर िबगाडी थी। म िफर घर नही गई। िकसी को अनपना मह नही िदखिाया। मझ होश नही िक म कहा-कहा िफरी, कस रही, कया-कया िकया- इस वकत भी मझ होश तब आया, जब म इन दोनो गोरो को घायल कर चकी थी। तब मझ मालम हआ िक मन कया िकया- म बहत गरीब ह। म नही कह सकती, मझ छरी िकसन दी, कहा स िमली और मझम इतनी िहममत कहा स आई- म यह इसिलए नही कह रही ह िक म फासी स डरती ह। म तो भगवान स मनाती ह िक िजतनी जलद हो सक, मझ ससार स उठा लो। जब आबर लट गई, तो जीकर कया करगी?'

इस कथन न जनता की मनोवितत बदल दी। पिलस न िजन-िजन लोगो क बयान िलए, सबन यही कहा-यह पगली ह। इधर-उधर मारी-मारी िफरती थी। खिान को िदया जाता था, तो कततो क आग डाल दती थी। पस िदए जात थ, तो फक दती थी।

एक ताग वाल न कहा-यह बीच सडक पर बठी हई थी। िकतनी ही घटी बजाई, पर रासत स हटी नही। मजबर होकर पटरी स तागा िनकाल लाया।

एक पान वाल न कहा-एक िदन मरी दकान पर आकर खिडी हो गई। मन एक बीडा िदया। उस जमीन पर डालकर परो स कचलन लगी, िफर गाती हई चली गई।

अनमरकानत का बयान भी हआ। लालाजी तो चाहत थ िक वह इस झझट म न पड पर अनमरकानत ऐसा उततोिजत हो रहा था िक उनह दबारा कछ कहन का हौसला न हआ। अनमर न सारा वततात कह सनाया। रग को चोखिा करन क िलए दो-चार बात अनपनी तरफ स जोड दी।

पिलस क अनफसर न पछा-तम कह सकत हो, यह औरत पागल ह-

अनमरकानत बोला-जी हा, िबलकल पागल। बीिसयो ही बार उस अनकल हसत या रोत दखिा ह। कोई कछ पछता, तो भाग जाती थी।

यह सब झठ था। उस िदन क बाद आज यह औरत यहा पहली बार उस नजर आई थी। सभव ह उसन कभी, इधर-उधर भी दखिा हो पर वह उस पहचान न सका था।

जब पिलस पगली को लकर चली तो दो हजार आदमी थान तक उसक साथ गए। अनब वह जनता की दिषटि म साधारण सतरी न थी। दवी क पद पर पहच गई थी। िकसी दवी शिकत क बगर उसम इतना साहस कहा स आ जाता रात-भर शहर क अननय भागो म आ-आकर लोग घटना-सथल का मआयना करत रह। दो-एक आदमी उस काड की वयाखया करन म हािदक आनद परापत कर रह थ। यो आकर ताग क पास खिडी हो गई, यो छरी िनकाली,

38 www.hindustanbooks.com

यो झपटी, यो दोनो दकान पर चढ, यो दसर गोर पर टटी। भया अनमरकानत सामन न जाए, तो मम का काम भी तमाम कर दती। उस समय उसकी आखिो स लाल अनगार िनकल रह थ। मखि पर ऐसा तज था, मानो दीपक हो।

अनमरकानत अनदर गया तो दखिा, नना भावज का हाथ पकड सहमी खिडी ह और सखिदा राजसी करणा स आदोिलत सजल नतर चारपाई पर बठी हई ह। अनमर को दखित ही वह खिडी हो गई और बोली-यह वही औरत थी न-

'हा, वही तो मालम होती ह।'

'तो अनब यह फासी पा जाएगी?'

'शायद बच जाए, पर आशा कम ह।'

'अनगर इसको फासी हो गई तो म समझगी, ससार स नयाय उठ गया। उसन कोई अनपराध नही िकया। िजन दषटिो न उस पर ऐसा अनतयाचार िकया, उनह यही दड िमलना चािहए था। म अनगर नयाय क पद पर होती, तो उस बदाग छोड दती। ऐसी दवी की तो परितमा बनाकर पजना चािहए। उसन अनपनी सारी बहनो का मखि उजजवल कर िदया।'

अनमरकानत न कहा-लिकन यह तो कोई नयाय नही िक काम कोई कर सजा कोई पाए।

सखिदा न उगर भाव स कहा-व सब एक ह। िजस जाित म ऐस दषटि हो उस जाित का पतन हो गया ह। समाज म एक आदमी कोई बराई करता ह, तो सारा समाज बदनाम हो जाता ह और उसका दड सार समाज को िमलना चािहए। एक गोरी औरत को सरहद का कोई आदमी उठा ल गया था। सरकार न उसका बदला लन क िलए सरहद पर चढाई करन की तयारी कर दी थी। अनपराधी कौन ह, इस पछा भी नही। उसकी िनगाह म सारा सबा अनपराधी था। इस िभखिािरन का कोई रकषक न था। उसन अनपनी आबर का बदला खिद िलया। तम जाकर वकीलो स सलाह लो, फासी न होन पाए चाह िकतन ही रपय खिचरय हो जाए। म तो कहती ह, वकीलो को इस मकदम की परवी मित करनी चािहए। ऐस मआमल म भी कोई वकील महनताना माग, तो म समझगी वह मनषय नही। तम अनपनी सभा म आज जलसा करक चदा लना शर कर दो। म इस दशा म भी इसी शहर स हजारो रपय जमा कर सकती ह। ऐसी कौन नारी ह, जो उसक िलए नाही कर द।

अनमरकानत न उस शात करन क इराद स कहा-जो कछ तम चाहती हो वह सब होगा। नतीजा कछ भी हो पर हम अनपनी तरफ स कोई बात उठा न रखग। म जरा परो शािनतकमार क पास जाता ह। तम जाकर आराम स लटो।

'म भी अनममा क पास जाऊगी। तम मझ उधर छोडकर चल जाना।'

अनमर न आगरहपवरयक कहा-तम चलकर शाित स लटो, म अनममा स िमलता चला जाऊगा।

सखिदा न िचढकर कहा-ऐसी दशा म जो शाित स लट वह मतक ह। इस दवी क िलए तो मझ पराण भी दन पड, तो खिशी स द। अनममा स म जो कहगी, वह तम नही कह सकत। नारी क िलए नारी क हदय म जो तडप होगी, वह परषो क हदय म नही हो सकती। म अनममा स इस मकदम क िलए पाच हजार स कम न लगी। मझ उनका धान न चािहए। चदा िमल तो वाह-वाह, नही तो उनह खिद िनकल आना चािहए। तागा बलवा लो।

अनमरकानत को आज जञात हआ, िवलािसनी क हदय म िकतनी वदना, िकतना सवजाित-परम, िकतना उतसगरय

39 www.hindustanbooks.com

ह।

तागा आया और दोनो रणकादवी स िमलन चल।

40 www.hindustanbooks.com

दसतीन महीन तक सार शहर म हलचल रही। रोज आदमी सब काम-धाधो छोडकर कचहरी जात। िभखिािरन

को एक नजर दखि लन की अनिभलाषा सभी को खिीच ल जाती। मिहलाआ की भी खिासी सखया हो जाती थी। िभखिािरन जयोही लारी स उतरती, 'जय-जय' की गगन-भदी धविन और पषप-वषा होन लगती। रणका और सखिदा तो कचहरी क उठन तक वही रहती।

िजला मिजसटरट न मकदम को जजी म भज िदया और रोज पिशया होन लगी। पच िनयकत हए। इधर सफाई क वकीलो की एक फौज तयार की गई। मकदम को सबत की जररत न थी। अनपरािधानी न अनपराध सवीकार ही कर िलया था। बस, यही िनशचिय करना था िक िजस वकत उसन हतया की उस वकत होश म थी या नही। शहादत कहती थी, वह होश म न थी। डॉकटर कहता था, उसम अनिसथरिचतत होन क कोई िचहन नही िमलत। डॉकटर साहब बगाली थ। िजस िदन वह बयान दकर िनकल, उनह इतनी िधककार िमली िक बचार को घर पहचना मिशकल हो गया। ऐस अनवसरो पर जनता की इचछा क िवरदवदव' िकसी न च िकया और उस िघककार िमली। जनता आतम-िनशचिय क िलए कोई अनवसर नही दती। उसका शासन िकसी तरह की नमी नही करता।

रणका नगर की रानी बनी हई थी। मकदम की परवी का सारा भार उनक ऊपर था। शािनतकमार और अनमरकानत उनकी दािहनी और बाइ भजाए थ। लोग आ-आकर खिद चदा द जात। यहा तक िक लाला समरकानत भी गपत रप स सहायता कर रह थ।

एक िदन अनमरकानत न पठािनन को कचहरी म दखिा। सकीना भी चादर ओढ उसक साथ थी।

अनमरकानत न पछा-बठन को कछ लाऊ, माताजी- आज आपस भी न रहा गया-

पठािनन बोली-म तो रोज आती ह बटा, तमन मझ न दखिा होगा। यह लडकी मानती ही नही।

अनमरकानत को रमाल की याद आ गई, और वह अननरोध भी याद आया, जो बिढया न उसस िकया था पर इस हलचल म वह कॉलज तक तो जा न पाता था, उन बातो का कहा स खियाल रखिता।

बिढया न पछा-मकदम म कया होगा बटा- वह औरत छटगी िक सजा हो जायगी-

सकीना उसक और समीप आ गई।

अनमर न कहा-कछ कह नही सकता, माता। छटन की कोई उममीद नही मालम होती मगर हम परीवी-कौिसल तक जाएग।

पठािनन बोली-ऐस मामल म भी जज सजा कर द, तो अनधर ह।

अनमरकानत न आवश म कहा-उस सजा िमल चाह िरहाई हो, पर उसन िदखिा िदया िक भारत की दिरदर औरत भी अनपनी आबर की कस रकषा कर सकती ह।

सकीना न पछा तो अनमर स, पर दादी की तरफ मह करक-हम दशरयन कर सकग अनममा-

अनमर न ततपरता स कहा-हा, दशरयन करन म कया ह- चलो पठािनन, म तमह अनपन घर की िसतरयो क साथ बठा द। वहा तम उन लोगो स बात भी कर सकोगी।

पठािनन बोली-हा, बटा, पहल ही िदन स यह लडकी मरी जान खिा रही ह। तमस मलाकात ही न होती थी

41 www.hindustanbooks.com

िक पछ। कछ रमाल बनाए थ। उनस दो रपय िमल। वह दोनो रपय तभी स सिचत कर रख हए ह। चदा दगी। न हो तो तमही ल लो बटा, औरतो को दो रपय दत हए शमरय आएगी।

अनमरकानत गरीबो का तयाग दखिकर भीतर-ही-भीतर लिजजत हो गया। वह अनपन को कछ समझन लगा था। िजधर िनकल जाता, जनता उसका सममान करती लिकन इन फाकमसतो का यह उतसाह दखिकर उसकी आख खिल गइ। बोला-चद की तो अनब कोई जररत नही ह, अनममा रपय की कमी नही ह। तम इस खिचरय कर डालना। हा, चलो म उन लोगो स तमहारी मलाकात करा द।

सकीना का उतसाह ठडा पड गया। िसर झकाकर बोली-जहा गरीबो क रपय नही पछ जात, वहा गरीबो को कौन पछगा- वहा जाकर कया करोगी, अनममा आएगी तो यही स दखि लना।

अनमरकानत झपता हआ बोला-नही-नही, ऐसी कोई बात नही ह अनममा, वहा तो एक पसा भी हाथ फलाकर िलया जाता ह। गरीब-अनमीर की कोई बात नही ह। म खिद गरीब ह। मन तो िसफरक इस खियाल स कहा था िक तमह तकलीफ होगी।

दोनो अनमरकानत क साथ चली, तो रासत म पठािनन न धीर स कहा-मन उस िदन तमस एक बात कही थी, बटा शायद तम भल गए।

अनमरकानत न शरमात हए कहा-नही-नही, मझ याद ह। जरा आजकल इसी झझट म पडा रहा। जयोही इधर स फरसत िमली, म अनपन दोसतो स िजकर करगा।

अनमरकानत दोनो िसतरयो का रणका स पिरचय कराक बाहर िनकला, तो परो शािनत कमार स मठभड हई। परोफरसर न पछा-तम कहा इधर-उधर घम रह हो जी- िकसी वकील का पता नही। मकदमा पश होन वाला ह। आज मलिजमा का बयान होगा, इन वकीलो स खिदा समझ। जरा-सा इजलास पर खिड कया हो जात ह, गोया सार ससार को उनकी उपासना करनी चािहए। इसस कही अनचछा था िक दो-एक वकीलो को महनतान पर रखि िलया जाता। मित का काम बगार समझा जाता ह। इतनी बिदली स परवी की जा रही ह िक मरा खिन खिौलन लगता ह। नाम सब चाहत ह, काम कोई नही करना चाहता।अनगर अनचछी िजरह होती, तो पिलस क सार गवाह उखिड जात। पर यह कौन करता- जानत ह िक आज मलिजमा का बयान होगा, िफर भी िकसी को िफकर नही।

अनमरकानत न कहा-म एक-एक को इिततला द चका । कोई न आए तो म कया कर-

शािनतकमार-मकदमा खितम हो जाए, तो एक-एक की खिबर लगा।

इतन म लारी आती िदखिाई दी। अनमरकानत वकीलो को इतताला करन दौडा। दशरयक चारो ओर स दौड-दौडकर अनदालत क कमर म आ पहच। िभखिािरन लारी स उतरी और कटघर क सामन आकर खिडी हो गई। उसक आत ही हजारो की आख उसकी ओर उठ गइ पर उन आखिो म एक भी ऐसी न थी, िजसम शरधदा न भरी हो। उसक पील, मरझाए हए मखि पर आतमगौरव की ऐसी काित थी जो कितसत दिषटि क उठन क पहल ही िनराश और पराभत करक उसम शरधदा को आरोिपत कर दती थी।

जज साहब सावल रग क नाट, चकल, वहदाकार मनषय थ। उनकी लबी नाक और छोटी-छोटी आख अननायास ही मसकराती मालम दती थी। पहल यह महाशय राषटि' क उतसाही सवक थ और कागरस क िकसी परातीय जलस क सभापित हो चक थ पर इधर तीन साल स वह जज हो गए थ। अनतएव अनब राषटरीय आदोलन स पथक रहत थ, पर जानन वाल जानत थ िक वह अनब भी पतरो म नाम बदलकर अनपन राषटरीय िवचारो का परितपादन

42 www.hindustanbooks.com

करत रहत ह। उनक िवषय म कोई शतर भी यह कहन का साहस नही कर सकता था िक वह िकसी दबाव या भय स नयाय-पथ स जौ-भर िवचिलत हो सकत ह। उनकी यही नयायपरता इस समय िभखिािरन की िरहाई म बाधाक हो रही थी।

जज साहब न पछा-तमहारा नाम-

िभखिािरन न कहा-िभखिािरन ।

'तमहार िपता का नाम?'

'िपता का नाम बताकर उनह कलिकत नही करना चाहती।'

'घर कहा ह?'

िभखिािरन न द:खिी कठ स कहा-पछकर कया कीिजएगा- आपको इसस कया काम ह-

'तमहार ऊपर यह अनिभयोग ह िक तमन तीन तारीखि को दो अनगरजो को छरी स ऐसा जखमी िकया िक दोनो उसी िदन मर गए। तमह यह अनपराध सवीकार ह?'

िभखिािरन न िनशक भाव स कहा-आप उस अनपराध कहत ह म अनपराध नही समझती।

'तम मारना सवीकार करती हो?'

'गवाहो न झठी गवाही थोड ही दी होगी।'

'तमह अनपन िवषय म कछ कहना ह?'

िभखिािरन न सपषटि सवर म कहा-मझ कछ नही कहना ह। अनपन पराणो को बचान क िलए म कोई सफाई नही दना चाहती। म तो यह सोचकर परसनन ह िक जलद जीवन का अनत हो जाएगा। म दीन, अनबला ह। मझ इतना ही याद ह िक कई महीन पहल मरा सवरयसव लट िलया गया और उसक लट जान क बाद मरा जीना वथा ह। म उसी िदन मर चकी। म आपक सामन खिडी बोल रही ह, पर इस दह म आतमा नही ह। उस म िजदा नही कहती, जो िकसी को अनपना मह न िदखिा सक। मर इतन भाई-बहन वयथरय मर िलए इतनी दौड-धप और खिचरय-वचरय कर रह ह। कलिकत होकर जीन स मर जाना कही अनचछा ह। म नयाय नही मागती, दया नही मागती, म कवल पराण-दड मागती ह। हा, अनपन भाई-बहनो स इतनी िवनती करगी िक मर मरन क बाद मरी काया का िनरादर न करना , उस छन स िघन मत करना, भल जाना िक वह िकसी अनभािगन पितता की लाश ह। जीत-जी मझ जो चीज नही िमल सकती, वह मझ मरन क पीछ द दना। म साफ कहती ह िक मझ अनपन िकए पर रज नही ह, पछतावा नही ह। ईशवर न कर िक मरी िकसी बहन की ऐसी गित हो लिकन हो जाए तो उसक िलए इसक िसवाय कोई राह नही ह। आप सोचत होग, अनब यह मरन क िलए इतनी उतावली ह, तो अनब तक जीती कयो रही- इसका कारण म आपस कया बताऊ- जब मझ होश आया और अनपन सामन दो आदिमयो को तडपत दखिा, तो म डर गई। मझ कछ सझ ही न पडा िक मझ कया करना चािहए। उसक बाद भाइयो-बहनो की सजजनता न मझ मोह क बधन म जकड िदया, और अनब तक म अनपन को इस धाोख म डाल हए ह िक शायद मर मखि स कािलखि छट गई और अनब मझ भी और बहनो की तरह िवशवास और सममान िमलगा लिकन मन की िमठाई स िकसी का पट भरा ह- आज अनगर सरकार मझ छोड भी द, मर भाई-बहन मर गल म फलो की माला भी डाल द, मझ पर अनशिफयो की बरखिा भी की जाए, तो कया यहा स म अनपन घर जाऊगी- म िववािहता ह। मरा एक छोटा-सा बचचा ह। कया म

43 www.hindustanbooks.com

उस बचच को अनपना कह सकती ह- कया अनपन पित को अनपना कह सकती ह- कभी नही। बचचा मझ दखिकर मरी गोद क िलए हाथ फलाएगा पर म उसक हाथो को नीचा कर दगी और आखिो म आस भर मह फरकर चली जाऊगी। पित मझ कषमा भी कर द। मन उसक साथ कोई िवशवासघात नही िकया ह। मरा मन अनब भी उसक चरणो स िलपट जाना चाहता ह लिकन म उसक सामन ताक नही सकती। वह मझ खिीच भी ल जाए, तब भी म उस घर म पाव न रखिगी। इस िवचार स म अनपन मन को सतोष नही द सकती िक मर मन म पाप न था। इस तरह तो अनपन मन को वह समझाए, िजस जीन की लालसा हो। मर हदय स यह बात नही जा सकती िक त अनपिवतर ह, अनछत ह। कोई कछ कह, कोई कछ सन। आदमी को जीवन कयो पयारा होता ह- इसिलए नही िक वह सखि भोगता ह। जो सदा दखि भोगा करत ह और रोिटयो को तरसत ह, उनह जीवन कछ कम पयारा नही होता। हम जीवन इसिलए पयारा होता ह िक हम अनपनो का परम और दसरो का आदर िमलता ह। जब इन दो म स एक क िमलन की भी आशा नही तो जीना वथा ह। अनपन मझस अनब भी परम कर लिकन वह दया होगी , परम नही। दसर अनब भी मरा आदर कर लिकन वह भी दया होगी, आदर नही। वह आदर और परम अनब मझ मरकर ही िमल सकता ह। जीवन म तो मर िलए िनदा, और बिहषकार क िसवा कछ नही ह। यहा मरी िजतनी बहन और भाई ह, उन सबस म यही िभकषा मागती ह िक उस समाज क उबर क िलए भगवान स पराथरयना कर, िजसम ऐस नर-िपशाच उतपनन होत ह।

िभखिािरन का बयान समापत हो गया। अनदालत क उस बड कमर म सननाटा छाया हआ था। कवल दो-चार मिहलाआ की िससिकयो की आवाज सनाई दती थी। मिहलाआ क मखि गवरय स चमक रह थ। परषो क मखि लजजा स मिलन थ। अनमरकानत सोच रहा था, गोरो को ऐसा दससाहस इसीिलए तो हआ िक वह अनपन को इस दश का राजा समझत ह। शािनतकमार न मन-ही-मन एक वयाखयान की रचना कर डाली थी, िजसका िवषय था-िसतरयो पर परषो क अनतयाचार। सखिदा सोच रही थी-यह छट जाती, तो म इस अनपन घर म रखिती और इसकी सवा करती। रणका उसक नाम पर एक सतरी-औषधालय बनवान की कलपना कर रही थी।

सखिदा क समीप ही जज साहब की धमरयपतनी बठी हई थी। वह बडी दर स इस मकदम क सबधा म कछ बातचीत करन को उतसक हो रही थी, पर अनपन समीप बठी हई िसतरयो की अनिवशवास-पणरय दिषटि दखिकर-िजसस व उनह दखि रही थी, उनह मह खिोलन का साहस न होता था।

अनत म उनस न रहा गया। सखिदा स बोली-यह सतरी िबलकल िनरपराध ह।

सखिदा न कटाकष िकया-जब जज साहब भी ऐसा समझ।

'म तो आज उनस साफ-साफ कह दगी िक अनगर तमन इस औरत को सजा दी, तो म समझगी, तमन अनपन परभआ का मह दखिा।'

सहसा जज साहब न खिड होकर पचो को थोड शबदो म इस मकदम म अनपनी सममित दन का आदश िदया और खिद कछ कागजो को उलटन-पलटन लग। पच लोग पीछ वाल कमर म जाकर थोडी दर बात करत रह और लौटकर अनपनी सममित द दी। उनक िवचार म अनिभयकत िनरपराध थी। जज साहब जरा-सा मसकराए और कल फसला सनान का वादा करक उठ खिड हए।

44 www.hindustanbooks.com

गयारह

सार शहर म कल क िलए दोनो तरह की तयािरया होन लगी-हाय-हाय की भी और वाह-वाह की भी। काली झिडया भी बनी और फलो की डािलया भी जमा की गइ, पर आशावादी कम थ, िनराशावादी जयादा। गोरो का खिन हआ ह। जज ऐस मामल म भला कया इसाफ करगा, कया बचा हआ ह- शािनतकमार और सलीम तो खिललमखिलला कहत िफरत थ िक जज न फासी की सजा द दी। कोई खिबर लाता था-फौज की एक परी रजीमट कल अनदालत म तलब की गई ह। कोई फौज तक न जाकर, सशसतर पिलस तक ही रह जाता था। अनमरकानत को फौज क बलाए जान का िवशवास था।

दस बज रात को अनमरकानत सलीम क घर पहचा। अनभी यहा घट ही भर पहल आया था। सलीम न िचितत होकर पछा-कस लौट पड भाई, कया कोई नई बात हो गई-

अनमर न कहा-एक बात सझ गई। मन कहा, तमहारी राय भी ल ल। फासी की सजा पर खिामोश रह जाना, तो बजिदली ह। िकचल साहब (जज) को सबक दन की जररत होगी तािक उनह भी मालम हो जाए िक नौजवान भारत इसाफ का खिन दखिकर खिामोश नही रह सकता। सोशल बायकाट कर िदया जाए। उनक महाराज को म रखि लगा, कोचमन को तम रखि लना। बचचा को पानी भी न िमल। िजधार स िनकल, उधर तािलया बज।

सलीम न मसकराकर कहा-सोचत-सोचत सोची भी तो वही बिनयो की बात।

'मगर और कर ही कया सकत हो?'

'इस बायकाट स कया होगा- कोतवाली को िलखि दगा, बीस महाराज और कोचवान हािजर कर िदए जाएग।'

'दो-चार िदन परशान तो होग हजरत।'

'िबलकल फजल-सी बात ह। अनगर सबक ही दना ह, तो ऐसा सबक दो, जो कछ िदन हजरत को याद रह। एक आदमी ठीक कर िलया जाए तो ऐन उस वकत, जब हजरत फसला सनाकर बठन लग, एक जता ऐस िनशान स चलाए िक उनक मह पर लग।'

अनमरकानत न कहकहा मारकर कहा-बड मसखिर हो यार ।

'इसम मसखिरपन की कया बात ह?'

'तो कया सचमच तम जत लगवाना चाहत हो?'

'जी हा, और कया मजाक कर रहा ह- ऐसा सबक दना चाहता ह िक िफर हजरत यहा मह न िदखिा सक।'

अनमरकानत न सोचा-कछ भला काम तो ह ही, पर बराई कया ह- लातो क दवता कही बातो स मानत ह- बोला-अनचछी बात ह, दखिी जाएगी पर ऐसा आदमी कहा िमलगा?

सलीम न उसकी सरलता पर मसकराकर कहा-आदमी तो ऐस िमल सकत ह जो राह चलत गरदन काट ल। यह कौन-सी बडी बात ह- िकसी बदमाश को दो सौ रपय द दो, बस। मन तो काल खिा को सोचा ह।

'अनचछा वह उस तो म एक बार अनपनी दकान पर फटकार चका ह।'

45 www.hindustanbooks.com

'तमहारी िहमाकत थी। ऐस दो-चार आदिमयो को िमलाए रहना चािहए। वकत पर उनस बडा काम िनकलता ह। म और सब बात तय कर लगा पर रपय की िफकर तम करना। म तो अनपना बजट परा कर चका। '

'अनभी तो महीना शर हआ ह, भाई ।'

'जी हा, यहा शर ही म खितम हो जात ह। िफर नोच-खिसोट पर चलती ह। कही अनममा स दस रपय उडा लाए, कही अनबबाजान स िकताब क बहान स दस-पाच एठ िलए। पर दो सौ की थली जरा मिशकल स िमलगी। हा, तम इकार कर दोग, तो मजबर होकर अनममा का गला दबाऊगा।'

अनमर न कहा-रपय का गम नही। म जाकर िलए आता ह।

सलीम न इतनी रात गए रपय लाना मनािसब ना समझा। बात कल क िलए उठा रखिी गई। परात:काल अनमर रपय लाएगा और कालखिा स बातचीत पककी कर ली जाएगी।

अनमर घर पहचा तो साढ दस बज रह थ। दवार पर िबजली जल रही थी। बठक म लालाजी दो-तीन पिडतो क साथ बठ बात कर रह थ। अनमरकानत को शका हई, इतनी रात गए यह जग-जग िकस बात क िलए ह। कोई नया िशगगा तो नही िखिला ।

लालाजी न उस दखित ही डाटकर कहा-तम कहा घम रह हो जी दस बज क िनकल-िनकल आधी रात को लौट हो। जरा जाकर लडी डॉकटर को बला लो, वही जो बड अनसपताल म रहती ह। अनपन साथ िलए हए आना।

अनमरकानत न डरत-डरत पछा-कया िकसी की तबीयत...

समरकानत न बात काटकर कड सवर म कहा-कया बक-बक करत हो, म जो कहता ह, वह करो। तम लोगो न तो वयथरय ही ससार म जनम िलया। यह मकदमा कया हो गया, सार घर क िसर जस भत सवार हो गया। चटपट जाओ।

अनमर को िफर कछ पछन का साहस न हआ। घर म भी न जा सका, धीर स सडक पर आया और बाइिसकल पर बठ ही रहा था िक भीतर स िसललो िनकल आई। अनमर को दखित ही बोली-अनर भया, सनो, कहा जात हो- बहजी बहत बहाल ह, कब स तमह बला रही ह- सारी दह पसीन स तर हो रही ह। दखिो भया, म सोन की कठी लगी। पीछ स हीला-हवाला न करना।

अनमरकानत समझ गया। बाइिसकल स उतर पडा और हवा की भाित झपटता हआ अनदर जा पहचा। वहा रणका, एक दाई, पडोस की एक बराहयणी और नना आगन म बठी हई थी। बीच म एक ढोलक रखिी हई थी। कमर म सखिदा परसव-वदना स हाय-हाय कर रही थी।

नना न दौडकर अनमर का हाथ पकड िलया और रोती हई बोली-तम कहा थ भया, भाभी बडी दर स बचन ह।

अनमर क हदय म आसआ की ऐसी लहर उठी िक वह रो पडा। सखिदा क कमर क दवार पर जाकर खिडा हो गया पर अनदर पाव न रखि सका। उसका हदय गटा जाता था।

सखिदा न वदना-भरी आखिो स उसकी ओर दखिकर कहा-अनब नही बचगी हाय पट म जस कोई बछी चभो रहा ह। मरा कहा-सना माग करना।

46 www.hindustanbooks.com

रणका न दौडकर अनमरकानत स कहा-तम यहा स जाओ, भया तमह दखिकर वह और भी बचन होगी। िकसी को भज दो, लडी डॉकटर को बला लाए। जी कडा करो, समझदार होकर रोत हो-

सखिदा बोली-नही अनममा, उनस कह दो जरा यहा बठ जाए। म अनब न बचगी। हाय भगवान ।

रणका न अनमर को डाटकर कहा-म तमस कहती ह, यहा स चल जाओ और तम खिड रो रह हो। जाकर लडी डॉकटर को बलवाओ।

अनमरकानत रोता हआ बाहर िनकला और जनान अनसपताल की ओर चला पर रासत म भी रह-रहकर उसक कलज म हक-सी उठती रही। सखिदा की वह वदनामयी मित आखिो क सामन िफरती रही।

लडी डॉकटर िमस हपर को अनकसर कसमय बलाव आत रहत थ। रात की उसकी फीस दगनी थी। अनमरकानत डर रहा था िक कही िबगड न िक इतनी रात गए कयो आए लिकन िमस हपर न सहषरय उसका सवागत िकया और मोटर लान की आजञा दकर उसस बात करन लगी।

'यह पहला ही बचचा ह?'

'जी हा।'

'आप रोए नही। घबरान की कोई बात नही। पहली बार जयादा ददरय होता ह। औरत बहत दबरयल तो नही ह?'

'आजकल तो बहत दबली हो गई ह।'

'आपको और पहल आना चािहए था।'

अनमर क पराण सखि गए। वह कया जानता था, आज ही यह आफत आन वाली ह, नही तो कचहरी स सीध घर आता।

मम साहब न िफर कहा-आप लोग अनपनी लिडयो को कोई एकसरसाइज नही करवात। इसिलए ददरय जयादा होता ह। अनदर क सनाय बध रह जात ह न ।

अनमरकानत न िससककर कहा-मडम, अनब तो आप ही की दया का भरोसा ह।

'म तो चलती ह लिकन शायद िसिवल सजरयन को बलाना पड।'

अनमर न भयातर होकर कहा-किहए तो उनको लता चल।

मम न उसकी ओर दयाभाव स दखिा-नही, अनभी नही। पहल मझ चलकर दखि लन दो।

अनमरकानत को आशवासन न हआ। उसन भय-कातर सवर म कहा-मडम, अनगर सखिदा को कछ हो गया, तो म भी मर जाऊगा।

मम न िचितत होकर पछा-तो कया हालत अनचछी नही ह-

'ददरय बहत हो रहा ह।'

'हालत तो अनचछी ह?'

'चहरा पीला पड गया ह, पसीनाझ।'

47 www.hindustanbooks.com

'हम पछत ह हालत कसी ह- उसका जी तो नही डब रहा ह- हाथ-पाव तो ठड नही हो गए ह?'

मोटर तयार हो गई। मम साहब न कहा-तम भी आकर बठ जाओ। साइिकल कल हमारा आदमी द आएगा।

अनमर न दीन आगरह क साथ कहा-आप चल, म जरा िसिवल सजरयन क पास होता आऊ। बलानाल पर लाला समरकानत का मकान...

'हम जानत ह।'

मम साहब तो उधर चली, अनमरकानत िसिवल सजरयन को बलान चला। गयारह बज गए थ। सडको पर भी सननाटा था। और पर तीन मील की मिजल थी। िसिवल सजरयन छावनी म रहता था। वहा पहचत-पहचत बारह का अनमल हो आया। सदर फाटक खिलवान, िफर साहब को इतताला करान म एक घट स जयादा लग गया। साहब उठ तो, पर जाम स बाहर। गरजत हए बोल-हम इस वकत नही जा सकता।

अनमर न िनशक होकर कहा-आप अनपनी फीस ही तो लग-

'हमारा रात का फीस सौ रपय ह।'

'कोई हरज नही ह।'

'तम फीस लाया ह?'

अनमर न डाट बताई-आप हरक स पशगी फीस नही लत। लाला समरकानत उन आदिमयो म नही ह िजन पर सौ रपय का भी िवशवास न िकया जा सक। वह इस शहर क सबस बड साहकार ह। म उनका लडका ह।

साहब कछ ठड पड॥ अनमर न उनको सारी किफयत सनाई तो चलन पर तयार हो गए, अनमर न साइिकल वही छोडी और साहब क साथ मोटर म जा बठा। आधा घट म मोटर बलानाल जा पहची। अनमरकानत को कछ दर स ही शहनाई की आवाज सनाई दी। बदक छट रही थी। उसका हदय आनद स फल उठा।

दवार पर मोटर रकी, तो लाला समरकानत न आकर डॉकटर को सलाम िकया और बोल-हजर क इकबाल स सब चन-चान ह। पोत न जनम िलया ह।

उनक जान क बाद लालाजी न अनमरकानत को आड हाथो िलया-मित म सौ रपय की चपत पडी। अनमरकानत न झललाकर कहा-मझस रपय ल लीिजएगा। आदमी स भल हो ही जाती ह। ऐस अनवसर पर म रपय का मह नही दखिता।

िकसी दसर अनवसर पर अनमरकानत इस फटकार पर घटो िबसरा करता, पर इस वकत उसका मन उतसाह और आनद म भरा हआ था। भर हए गद पर ठोकरो का कया अनसर- उसक जी म तो आ रहा था, इस वकत कया लटा द। वह अनब एक पतर का िपता ह। अनब कौन उसस हकडी जता सकता ह वह नवजात िशश जस सवगरय स उसक िलए आशा और अनमरता का आशीवाद लकर आया ह। उस दखिकर अनपनी आख शीतल करन क िलए वह िवकल हो रहा था। ओहो इनही आखिो स वह उस दवता क दशरयन करगा

लडी हपर न उस परतीकषा भरी आखिो स ताकत दखिकर कहा-बाबजी, आप यो बालक को नही दखि सकग। आपको बडा-सा इनाम दना पडगा।

अनमर न सपनन नमरता क साथ कहा-बालक तो आपका ह। म तो कवल आपका सवक ह। जचचा की तबीयत

48 www.hindustanbooks.com

कसी ह-

'बहत अनचछी। अनभी सो गई ह।'

'बालक खिब सवसथ ह?'

'हा, अनचछा ह। बहत सदर। गलाब का पतला-सा।'

यह कहकर सौरगह म चली गई। मिहलाए तो गान-बजान म मगन थी। महलल की पचासो िसतरया जमा हो गई थी और उनका सयकत सवर, जस एक रससी की भाित सथल होकर अनमर क गल को बाधो लता था। उसी वकत लडी हपर न बालक को गोद म लकर उस सौरगह की तरफ आन का इशारा िकया। अनमर उमग स भरा हआ चला, पर सहसा उसका मन एक िविचतर भय स कातर हो उठा। वह आग न बढ सका। वह पापी मन िलए हए इस वरदान को कस गरहण कर सकगा। वह इस वरदान क योगय ह ही कब- उसन इसक िलए कौन-सी तपसया की ह- यह ईशवर की अनपार दया ह-जो उनहोन यह िवभित उस परदान की। तम कस दयाल हो, भगवान ।

शयामल िकषितज क गभरय स िनकलन वाली बाल-जयोित की भाित अनमरकानत को अनपन अनत:करण की सारी कषदरता, सारी कलषता क भीतर स एक परकाश-सा िनकलता हआ जान पडा, िजसन उसक जीवन की रजत-शोभा परदान कर दी। दीपको क परकाश म, सगीत क सवरो म, गगन की तािरकाआ म उसी िशश की छिव थी। उसी का माधयरय था, उसी का न!तय था।

िसललो आकर रोन लगी। अनमर न पछा-तझ कया हआ ह- कयो रोती ह-

िसललो बोली-मम साहब न मझ भया को नही दखिन िदया, दतकार िदया। कया म बचच को नजर लगा दती- मर बचच थ, मन भी बचच पाल ह। म जरा दखि लती तो कया होता-

अनमर न हसकर कहा-त िकतनी पागल ह, िसललो उसन इसिलए मना िकया होगा िक कही बचच को हवा न लग जाए। इन अनगरज डॉकटरिनयो क नखिर भी तो िनराल होत ह। समझती-समझाती नही, तरह-तरह क नखिर बघारती ह, लिकन उनका राज तो आज ही क िदन ह न। िफर तो अनकली दाई रह जाएगी। त ही तो बचच को पालगी, दसरा कौन पालन वाला बठा हआ ह-

िसललो की आस-भरी आख मसकरा पडी। बोली-मन दर स दखि िलया। िबलकल तमको पडा ह। रग बहजी का ह म कठी ल लगी, कह दती ह ।

दो बज रह थ। उसी वकत लाला समरकानत न अनमर को बलाया और बोल-नीद तो अनब कया आएगी- बठकर कल क उतसव का एक तखिमीना बना लो। तमहार जनम म तो कारबार फला न था, नना कनया थी। पचचीस वषरय क बाद भगवान न यह िदन िदखिाया ह। कछ लोग नाच-मजर का िवरोध करत ह। मझ तो इसम कोई हािन नही दीखिती। खिशी क यही अनवसर ह, चार भाई-बद, यार-दोसत आत ह, गाना-बजाना सनत ह, परीित-भोज म शरीक होत ह। यही जीवन क सखि ह। और इस ससार म कया रखिा ह।

अनमर न आपितत की-लिकन रिडयो का नाच तो ऐस शभ अनवसर पर कछ शोभा नही दता।

लालाजी न परितवाद िकया-तम अनपना िवजञान यहा न घसडो। म तमस सलाह नही पछ रहा ह। कोई परथा चलती ह, तो उसका आधार भी होता ह। शरीरामचनदर क जनमोतसव म अनपसराआ का नाच हआ था। हमार समाज म इस शभ माना गया ह।

49 www.hindustanbooks.com

अनमर न कहा-अनगरजो क समाज म तो इस तरह क जलस नही होत।

लालाजी न िबलली की तरह चह पर झपटकर कहा-अनगरजो क यहा रिडया नही, घर की बह-बिटया नाचती ह, जस हमार चमारो म होता ह। बह-बिटयो को नचान स तो यह कही अनचछा ह िक रिडया नाच। कम-स-कम म और मरी तरह क और बङढ अनपनी बह-बिटयो को नचाना कभी पसद न करग।

अनमरकानत को कोई जवाब न सझा। सलीम और दसर यार-दोसत आएग। खिासी चहल-पहल रहगी। उसन िजद भी की तो कया नतीजा। लालाजी मानन क नही। िफर एक उसक करन स तो नाच का बिहषकार हो नही जाता ।

वह बठकर तखिमीना िलखिन लगा।

सलीम न मामल स कछ पहल उठकर काल खिा को बलाया और रात का परसताव उसक सामन रखिा। दो सौ रपय की रकम कछ कम नही होती। काल खिा न छाती ठोककरर कहा-भया, एक-दो जत की कया बात ह, कहो तो इजलास पर पचास िगनकर लगाऊ। छ: महीन स बसी तो होती नही। दो सौ रपय बाल-बचचो क खिान-पीन क िलए बहत ह।

50 www.hindustanbooks.com

बारहसलीम न सोचा अनमरकानत रपय िलए आता होगा पर आठ बज, नौ का अनमल हआ और अनमर का कही

पता नही। आया कयो नही- कही बीमार तो नही पड गया। ठीक ह, रपय का इतजाम कर रहा होगा। बाप तो टका न दग। सास स जाकर कहगा, तब िमलग। आिखिर दस बज गए। अनमरकानत क पास चलन को तयार हआ िक परो शािनतकमार आ पहच। सलीम न दवार तक जाकर उनका सवागत िकया। डॉ. शािनतकमार न कसी पर लटत हए पखिा चलान का इशारा करक कहा-तमन कछ सना, अनमर क घर लडका हआ ह। वह आज कचहरी न जा सकगा। उसकी सास भी वही ह। समझ म नही आता आज का इतजाम कस होगा- उसक बगर हम िकसी तरह का िडमासटरशन (परदशरयन) न कर सकग। रणकादवी आ जाती, तो बहत-कछ हो जाता, पर उनह भी फसरयत नही ह।

सलीम न काल खिा की तरफ दखिकर कहा-यह तो आपन बरी खिबर सनाई। उसक घर म आज ही लडका भी होना था। बोलो काल खिा, अनब-

काल खिा न अनिवचिलत भाव स कहा-तो कोई हजरय नही, भया तमहारा काम म कर दगा। रपय िफर िमल जाएग। अनब जाता ह, दो-चार रपय का सामान लकर घर म रखि द। म उधर ही स कचहरी चला जाऊगा जयोही तम इशारा करोग, बस।

वह चला गया, तो शािनतकमार न सदहातमक सवर म पछा-यह कया कह रहा था, म न समझा-

सलीम न इस अनदाज स कहा मानो यह िवषय गभीर िवचार क योगय नही ह-कछ नही, जरा काल खिा की जवामदी का तमाशा दखिना ह। अनमरकानत की यह सलाह ह िक जज साहब आज फसला सना चक, तो उनह थोडा-सा सबक द िदया जाए।

डॉकटर साहब न लबी सास खिीचकर कहा-तो कहो, तम लोग बदमाशी पर उतर आए। अनमरकानत की यह सलाह ह, यह और भी अनफसोस की बात ह। वह तो यहा ह ही नही मगर तमहारी सलाह स यह तजवीज हई ह , इसीिलए तमहार ऊपर भी इसकी उतनी ही िजममदारी ह। म इस कमीनापन कहता ह तमह यह समझन का कोई हक नही ह िक जज साहब अनपन अनफसरो को खिश करन क िलए इसाफ का खिन कर दग। जो आदमी इलम म, अनकल म, तजबरज म, इजजत म तमस कोसो आग ह, वह इसाफ म तमस पीछ नही रह सकता। मझ इसिलए और भी जयादा रज ह िक म तम दोनो को शरीफ और बलौस समझता था।

सलीम का मह जरा-सा िनकल आया। ऐसी लताड उसन उमर म कभी न पाई थी। उसक पास अनपनी सफाई दन क िलए एक भी तकरक, एक भी शबद न था। अनमरकानत क िसर इसका भार डालन की नीयत स बोला-मन तो अनमरकानत को मना िकया था पर जब वह न मान तो म कया करता-

डॉकटर साहब न डाटकर कहा-तम झठ बोलत हो। म यह नही मान सकता। यह तमहारी शरारत ह।

'आपको मरा यकीन ही न आए, तो कया इलाज?'

'अनमरकानत क िदल म ऐसी बात हिगज नही पदा हो सकती।'

सलीम चप हो गया। डॉकटर साहब कह सकत-थ मान ल, अनमरकानत ही न यह परसताव पास िकया तो तमन इस कयो मान िलया- इसका उसक पास कोई जवाब न था।

एक कषण क बाद डॉकटर साहब घडी दखित हए बोल-आज इस लौड पर ऐसी गससा आ रही ह िक िगनकर

51 www.hindustanbooks.com

पचास हटर जमाऊ। इतन िदनो तक इस मकदम क पीछ िसर पटकता िफरा, और आज जब फसल का िदन आया तो लडक का जनमोतसव मनान बठ रहा। न जान हम लोगो म अनपनी िजममदारी का खियाल कब पदा होगा- पछो, इस जनमोतसव म कया रखिा ह- मदरय का काम ह सगराम म डट रहना खििशया मनाना तो िवलािसयो का काम ह। मन फटकारा तो हसन लगा। आदमी वह ह जो जीवन का एक लकषय बना ल और िजदगी-भर उसक पीछ पडा रह। कभीर कतरयवय स मह न मोड। यह कया िक कट हए पतग की तरह िजधर हवा उडा ल जाए, उधर चला जाए। तम तो कचहरी चलन को तयार हो- हम और कछ नही कहना ह। अनगर फसला अननकल ह, तो िभखिािरन को जलस क साथ गगा-तट तक लाना होगा। वहा सब लोग सनान करग और अनपन घर चल जाएग। सजा हो गई तो उस बधाई दकर िवदा करना होगा। आज ही शाम को 'तालीमी इसलाह' पर मरी सपीच होगी। उसकी भी िफकर करनी ह। तम भी कछ बोलोग-

सलीम न सकचात हए कहा-म ऐस मसल पर कया बोलगा-

'कयो, हजरय कया ह- मर खियालात तमह मालम ह। यह िकराए की तालीम हमार करकटर को तबाह िकए डालती ह। हमन तालीम को भी एक वयापार बना िलया ह। वयापार म जयादा पजी लगाओ, जयादा नगा होगा। तालीम म भी खिचरय जयादा करो, जयादा ऊचा ओहदा पाओग। म चाहता ह, ऊची-स-ऊची तालीम सबक िलए मआफ हो तािक गरीब-स-गरीब आदमी भी ऊची-स-ऊची िलयाकत हािसल कर सक और ऊच-स-ऊचा ओहदा पा सक। यिनविसटी क दरवाज म सबक िलए खिल रखिना चाहता ह। सारा खिचरय गवनरयमट पर पडना चािहए। मलक को तालीम की उसस कही जयादा जररत ह, िजतनी फौज की।'

सलीम न शका की-फौज न हो, तो मलक की िहगाजत कौन कर-

डॉकटर साहब न गभीरता क साथ कहा-मलक की िहगाजत करग हम और तम और मलक क दस करोड जवान जो अनब बहादरी और िहममत म दिनया की िकसी कौम स पीछ नही ह। उसी तरह, जस हम और तम रात को चोरो क आ जान पर पिलस को नही पकारत बिलक अनपनी-अनपनी लकिडया लकर घरो स िनकल पडत ह।

सलीम न पीछा छडान क िलए कहा-म बोल तो न सकगा, लिकन आऊगा जरर।

सलीम न मोटर मगवाई और दोनो आदमी कचहरी चल। आज वहा और िदनो स कही जयादा भीड थीपर जस िबन दलहा की बारात हो। कही कोई श!खिला न थी। सौ सौ, पचास-पचास की टोिलया जगह-जगह खिडी या बठी शनय-दिषटि स ताक रही थी। कोई बोलन लगता था, तो सौ-दो सौ आदमी इधर-उधर स आकर उस घर लत थ। डॉकटर साहब को दखित ही हजारो आदमी उनकी तरफ दौड। डॉकटर साहब मखय कायरयकताआ को आवशयक बात समझाकर वकालतखिान की तरफ चल, तो दखिा लाला समरकानत सबको िनमतरण-पतर बाट रह ह। वह उतसव उस समय वहा सबस आकषरयक िवषय था। लोग बडी उतसकता स पछ रह थ, कौन-कौन सी तवायफ बलाई गई ह- भाड भी ह या नही- मासाहािरयो क िलए भी कछ परबध ह- एक जगह दस-बारह सजजन नाच पर वाद-िववाद कर रह थ। डॉकटर साहब को दखित ही एक महाशय न पछा-किहए आप उतसव म आएग, या आपको कोई आपितत ह-

डॉ. शािनतकमार न उपकषा-भाव स कहा-मर पास इसस जयादा जररी काम ह।

एक साहब न पछा-आिखिर आपको नाच स कयो एतराज ह-

डॉकटर न अनिनचछा स कहा-इसिलए िक आप और हम नाचना ऐब समझत ह। नाचना िवलास की वसत

52 www.hindustanbooks.com

नही, भिकत और आधयाितमक आनद की वसत ह पर हमन इस लजजासपद बना रखिा ह। दिवयो को िवलास और भोग की वसत बनाना अनपनी माताआ और बहनो का अनपमान करना ह। हम सतय स इतनी दर हो गए ह िक उसका यथाथरय रप भी हम नही िदखिाई दता। न!तय जस पिवतर...

सहसा एक यवक न समीप आकर डॉकटर साहब को परणाम िकया। लबा, दबला-पतला आदमी था, मखि सखिा हआ, उदास, कपड मल और जीणरय, बालो पर गदरय पडी हई। उसकी गोद म एक साल भर का हषट-पषटि बालक था, बडा चचल लिकन कछ डरा हआ।

डॉकटर न पछा-तम कौन हो- मझस कछ काम ह-

यवक न इधर-उधर सशय-भरी आखिो स दखिा मानो इन आदिमयो क सामन वह अनपन िवषय म कछ कहना नही चाहता, और बोला-म तो ठाकर ह। यहा स छ: सात कोस पर एक गाव ह महली, वही रहता ह।

डॉकटर साहब न उस तीवर नतरो स दखिा, और समझ गए। बोल-अनचछा, वही गाव, जो सडक क पिशचिम तरफ ह। आओ मर साथ।

डॉकटर साहब उस िलए पास वाल बगीच म चल गए और एक बच पर बठकर उसकी ओर परशनवाचक िनगाहो स दखिा िक अनब वह उसकी कथा सनन को तयार ह।

यवक न सकचात हए कहा-इस मकदम म जो औरत ह, वह इसी बालक की मा ह। घर म हम दो परािणयो क िसवा कोई और नही ह। म खती-बाडी करता ह। वह बाजार म कभी-कभी सौदा-सलग लान चली जाती थी। उस िदन गाव वालो क साथ अनपन िलए एक साडी लन गई थी। लौटती बार वह वारदात हो गई गाव क सब आदमी छोडकर भाग गए। उस िदन स वह घर नही गई। म कछ नही जानता, कहा घमती रही मन भी उसकी खिोज नही की। अनचछा ही हआ िक वह उस समय घर नही गई, नही हम दोनो म एक की या दोनो की जान जाती। इस बचच क िलए मझ िवशष िचता थी। बार-बार मा को खिोजता पर म इस बहलाता रहता। इसी की नीद सोता और इसी की नीद जागता। पहल तो मालम होता था, बचगा नही लिकन भगवान की दया थी। धीर-धीरमा को भल गया। पहल म इसका बाप था, अनब तो मा-बाप दोनो म ही ह। बाप कम, मा जयादा। मन मन म समझा था, वह कही डब मरी होगी। गाव क लोग कभी-कभी कहत-उसकी तरह की एक औरत छावनी की ओर ह पर म कभी उन पर िवशवास न करता।

िजस िदन मझ खिबर िमली िक लाला समरकानत की दकान पर एक औरत न दो गोरो को मार डाला और उस पर मकदमा चल रहा ह, तब म समझ गया िक वही ह। उस िदन स हर पशी पर आता ह और सबक पीछ खिडा रहता ह। िकसी स कछ कहन की िहममत नही होती। आज मन समझा, अनब उसस सदा क िलए नाता टट रहा ह इसिलए बचच को लता आया िक इसक दखिन की उस लालसा न रह जाए। आप लोगो न तो बहत खिरच-बरच िकया पर भागय म जो िलखिा था, वह कस टलता- आपस यही कहना ह िक जज साहब फसला सना चक तो एक िछन क िलए उसस मरी भट करा दीिजएगा। म आपस सतय कहता ह बाबजी, वह अनगर बरी हो जाए तो म उसक चरण धो-धोकर पीऊ और घर ल जाकर उसकी पजा कर। मर भाई-बद अनब भी नाक-भौ िसकोडग पर जब आप लोग जस बड-बड आदमी मर पकष म ह, तो मझ िबरादरी की परवाह नही।

शािनतकमार न पछा-िजस िदन उसका बयान हआ, उस िदन तम थ-

यवक न सजल नतर होकर कहा-हा बाबजी, था। सबक पीछ दवार पर खिडा रो रहा था। यही जी म आता था

53 www.hindustanbooks.com

िक दौडकर चरणो स िलपट जाऊ और कह-मननी, म तरा सवक ह, त अनब तक मरी सतरी थी आज स मरी दवी ह। मननी न मर परखिो को तार िदया बाबजी, और कया कह-

शािनतकमार न िफर पछा-मान लो, आज वह छट जाए, तो तम उस घर ल जाओग-

यवक न पलिकत कठ स कहा-यह पछन की बात नही ह, बाबजी म उस आखिो पर बठाकर ल जाऊगा और जब तक िजऊगा, उसका दास बना रहकर अनपना जनम सफल करगा।

एक कषण क बाद उसन बडी उतसकता स पछा-कया छटन की कछ आशा ह, बाबजी-

'औरो को तो नही ह पर मझ ह।'

यवक डॉकटर साहब क चरणो पर िगरकर रोन लगा। चारो ओर िनराशा की बात सनन क बाद आज उसन आशा का शबद सना ह और वह िनिध पाकर उसक हदय की समसत भावनाए मानो मगलगान कर रही ह। और हषरय क अनितरक म मनषय कया आसआ को सयत रखि सकता ह-

मोटर का हानरय सनत ही दोनो न कचहरी की तरफ दखिा। जज साहब आ गए। जनता का वह अनपार साफर चारो ओर स उमडकर अनदालत क कमर क सामन जा पहचा। िफर िभखिािरन लाई गई। जनता न उस दखिकर जय-घोष िकया। िकसी-िकसी न पषप-वषा भी की। वकील, बिरसटर, पिलस-कमरयचारी, अनफसर सभी आ-आकर यथासथान बठ गए।

सहसा जज साहब न एक उडती हई िनगाह स जनता को दखिा। चारो तरफ सननाटा हो गया। अनसखय आख जज साहब की ओर ताकन लगी, मानो कह रही थी-आप ही हमार भागय िवधाता ह।

जज साहब न सदक स टाइप िकया हआ फसला िनकाला और एक बार खिासकर उस पढन लग। जनता िसमटकर और समीप आ गई। अनिधकाश लोग फसल का एक शबद भी समझत न थ पर कान सभी लगाए हए थ। चावल और बताशो क साथ न जान कब रपय भी लट म िमल जाए।

कोई पदरह िमनट तक जज साहब फसला पढत रह, और जनता िचतामय परतीकषा स तनमय होकर सनती रही।

अनत म जज साहब क मखि स िनकला-यह ही ह िक मननी न हतया की...

िकतनो ही क िदल बठ गए। एक-दसर की ओर पराधीन नतरो स दखिन लग-

जज न वाकय की पित की-लिकन यह भी ही ह िक उसन यह हतया मानिसक अनिसथरता की दशा म की-इसिलए म उस मकत करता ह।

वाकय का अनितम शबद आनद की उस तफानी उमग म डब गया। आनद, महीनो िचता क बधनो म पड रहन क बाद आज जो छटा, तो छट हए बछड की भाित कलाच मारन लगा। लोग मतवाल हो-होकर एक-दसर क गल िमलन लग। घिनषठ िमतरो म धौल-धापपा होन लगा। कछ लोगो न अनपनी-अनपनी टोिपया उछाली। जो मसखिर थ, उनह जत उछालन की सझी। सहसा मननी, डॉकटर शािनतकमार क साथ गभीर हासय स अनलकतत, बाहर िनकली, मानो कोई रानी अनपन मतरी क साथ आ रही ह। जनता की वह सारी उदडता शात हो गई। रानी क सममखि बअनदबी कौन कर सकता ह ।

54 www.hindustanbooks.com

परोगराम पहल ही िनिशचित था। पषप-वषा क पशचिात मननी क गल म जयमाल डालना था। यह गौरव जज साहब की धमरयपतनी को परापत हआ, जो इस फसल क बाद जनता की शरधदा-पातरी हो चकी थी। िफर बड बजन लगा। सवा-सिमित क दो सौ यवक कसिरए बान पहन जलस क साथ चलन क िलए तयार थ। राषटरीय सभा क सवक भी खिाकी विदया पहन झिडया िलए जमा हो गए। मिहलाआ की सखया एक हजार स कम न थी। िनिशचित िकया गया था िक जलस गगा-तट तक जाए, वहा एक िवराट सभा हो, मननी को एक थली भट की जाए और सभा भग हो जाए।

मननी कछ दर तक तो शात भाव स यह समारोह दखिती रही, िफर शािनतकमार स बोली -बाबजी, आप लोगो न मरा िजतना सममान िकया, म उसक योगय नही थी अनब मरी आपस यही िवनती ह िक मझ हिरदवार या िकसी दसर तीथरय-सथान म भज दीिजए। वही िभकषा मागकर, याितरयो की सवा करक िदन काटगी। यह जलस और यह धम-धाममझ-जसी अनभािगन क िलए शोभा नही दता। इन सभी भाई-बहनो स कह दीिजए, अनपन-अनपन घर जाए। म धल म पडी हई थी। आप लोगो न मझ आकाश पर चढा िदया। अनब उसस ऊपर जान की मझम सामथयरय नही ह, िसर म चककर आ जाएगा। मझ यही स सटशन भज दीिजए। आपक परो पडती ह।

शािनतकमार इस आतम-दमन पर चिकत होकर बोल-यह कस हो सकता ह, बहन। इतन सतरी-परष जमा ह इनकी भिकत और परम का तो िवचार कीिजए। आप जलस म न जाएगी, तो इनह िकतनी िनराशा होगी। म तो समझता ह िक यह लोग आपको छोडकर कभी न जाएग।

'आप लोग मरा सवाग बना रह ह।'

'ऐसा न कहो बहन तमहारा सममान करक हम अनपना सममान कर रह ह। और तमह हिरदवार जान की जररत कया ह- तमहारा पित तमह अनपन साथ ल जान क िलए आया हआह।'

मननी न आशचियरय स डॉकटर की ओर दखिा-मरा पित मझ अनपन साथ ल जान क िलए आया हआ ह- आपन कस जाना-

'मझस थोडी दर पहल िमला था।'

'कया कहता था?'

'यही िक म उस अनपन साथ ल जाऊगा और उस अनपन घर की दवी समझगा।'

'उसक साथ कोई बालक भी था?'

'हा, तमहारा छोटा बचचा उसकी गोद म था।'

'बालक बहत दबला हो गया होगा?'

'नही, मझ वह हषट-पषटि दीखिता था।'

'परसनन भी था?'

'हा, खिब हस रहा था।'

'अनममा-अनममा तो न करता होगा?'

'मर सामन तो नही रोया।'

55 www.hindustanbooks.com

'अनब तो चाह चलन लगा हो?'

'गोद म था पर ऐसा मालम होता था िक चलता होगा।'

'अनचछा, उसक बाप की कया हालत थी- बहत दबल हो गए ह?'

'मन उनह पहल कब दखिा था- हा, द:खिी जरर थ। यही कही होग, कहो तो तलाश कर। शायद खिद आत हो।'

मननी न एक कषण क बाद सजल नतर होकर कहा-उन दोनो को मर पास न आन दीिजएगा, बाबजी म आपक परो पडती ह। इन आदिमयो स कह दीिजए अनपन-अनपन घर जाए। मझ आप सटशन पहचा दीिजए। म आज ही यहा स चली जाऊगी। पित और पतर क मोह म पडकर उनका सवरयनाश न करगी। मरा यह सममान दखिकर पितदव मझ ल जान पर तयार हो गए होग पर उनक मन म कया ह, यह म जानती ह। वह मर साथ रहकर सतषटि नही रह सकत। म अनब इसी योगय ह िक िकसी ऐसी जगह चली जाऊ, जहा मझ कोई न जानता हो वही मजरी करक या िभकषा मागकर अनपना पट पालगी।

वह एक कषण चप रही। शायद दखिती िक डॉकटर साहब कया जवाब दत ह। जब डॉकटर साहब कछ न बोल तो उसन ऊच, कापत सवर म लोगो स कहा-बहनो और भाइयो आपन मरा जो सतकार िकया ह, उसक िलए आपकी कहा तक बडाई कर- आपन एक अनभािगनी को तार िदया। अनब मझ जान दीिजए। मरा जलस िनकालन क िलए हठ न कीिजए। म इसी योगय ह िक अनपना काला मह िछपाए िकसी कोन म पडी रह। इस योगय नही ह िक मरी दगरयित का माहातमय िकया जाए।

जनता न बहत शोर-गल मचाया, लीडरो न समझाया, दिवयो न आगरह िकया पर मननी जलस पर राजी न हई और बराबर यही कहती रही िक मझ सटशन पर पहचा दो। आिखिर मजबर होकर डॉकटर साहब न जनता को िवदा िकया और मननी को मोटर पर बठाया।

मननी न कहा-अनब यहा स चिलए और िकसी दर क सटशन पर ल चिलए, जहा यह लोग एक भी न हो।

शािनतकमार न इधर-उधर परतीकषा की आखिो स दखिकर कहा-इतनी जलदी न करो बहन, तमहारा पित आता ही होगा। जब यह लोग चल जाएग, तब वह जरर आएगा।

मननी न अनशात भाव स कहा-म उनस नही िमलना चाहती बाबजी, कभी नही। उनक मर सामन आत ही मार लजजा क मर पराण िनकल जाएग। म कह सकती ह, म मर जाऊगी। आप मझ जलदी स ल चिलए। अनपन बालक को दखिकर मर हदय म मोह की ऐसी आधी उठगी िक मरा सारा िववक और िवचार उसम तण क समान उड जाएगा। उस मोह म म भल जाऊगी िक मरा कलक उनक जीवन का सवरयनाश कर दगा। मरा मन न जान कसा हो रहा ह- आप मझ जलदी यहा स ल चिलए। म उस बालक को दखिना नही चाहती, मरा दखिना उसका िवनाश ह।

शािनतकमार न मोटर चला दी पर दस ही बीस गज गए होग िक पीछ स मननी का पित बालक को गोद म िलए दौडता और 'मोटर रोको मोटर रोको ।' पकारता चला आता था। मननी की उस पर नजर पडी। उसन मोटर की िखिडकी स िसर िनकालकर हाथ स मना करत हए िचललाकर कहा-नही-नही, तम जाओ, मर पीछ मत आओ ईशवर क िलए मत आओ ।

56 www.hindustanbooks.com

िफर उसन दोनो बाह फला दी, मानो बालक को गोद म ल रही हो और मिछत होकर िगर पडी।

मोटर तजी स चली जा रही थी, यवक ठाकर बालक को िलए खिडा रो रहा था। कई हजार सतरी-परष मोटर की तरफ ताक रह थ।

57 www.hindustanbooks.com

तरहमननी क बरी होन का समाचार आनन-फानन सार शहर म फल गया। इस फसल की आशा बहत कम

आदिमयो को थी। कोई कहता था-जज साहब की सतरी न पित स लडकर फसला िलखिाया। रठकर मक चली जा रही थी। सतरी जब िकसी बात पर अनड जाए, तो परष कस नही कर द- कछ लोगो का कहना था-सरकार न जज साहब को हकम दकर फसला कराया ह कयोिक िभखिािरन को सजा दन स शहर म दगा हो जान का भय था। अनमरकानत उस समय भोज क सरजाम करन म वयसत था पर यह खिबर पा जरा दर क िलए सब कछ भल गया और इस फसल का सारा शरय खिद लन लगा। भीतर जाकर रणकादवी स बोला-आपन दखिा अनममाजी, म कहता न था, उस बरी कराक दम लगा, वही हआ। वकीलो और गवाहो क साथ िकतनी माथा-पचची करनी पडी ह िक मरा िदल ही जानता ह। बाहर आकर िमतरो स और सामन क दकानदारो स भी उसन यही डीग मारी।

एक िमतर न कहा-औरत ह बडी धन की पककी। शौहर क साथ न गई न गई बचारा परो पडता रह गया।

अनमरकानत न दाशरयिनक िववचना क भाव स कहा-जो काम खिद न दखिो, वही चौपट हो जाता ह। म तो इधर फस गया। उधर िकसी स इतना भी न हो सका िक उस औरत को समझाता। म होता तो मजाल थी िक वह यो चली जाती। म जानता िक यह हाल होगा, तो सब काम छोडकर जाता और उस समझाता। मन तो समझा डॉकटर साहब और बीसो आदमी ह, मर न रहन स ऐसा कया घी का घडा लढका जाता ह, लिकन वहा िकसी को कया परवाह नाम तो हो गया। काम हो या जहननम म जाए ।

लाला समरकानत न नाच-तमाश और दावत म खिब िदल खिोलकर खिचरय िकया। वही अनमरकानत जो इन िमथया वयवहारो की आलोचना करत कभी न थकता था, अनब मह तक न खिोलता था बिलक उलट और बढावा दता था-जो सपनन ह, वह ऐस शभ अनवसर पर न खिचरय करग, तो कब करग- धान की यही शोभा ह। हा, घर ठठककर तमाशा न दखिना चािहए।

अनमरकानत को अनब घर स िवशष घिनषठता होती जाती थी। अनब वह िवदयालय तो जान लगा था, पर जलसो और सभाआ स जी चराता रहता था। अनब उस लन-दन स उतनी घणा न थी। शाम-सबर बराबर दकान पर आ बठता और बडी तदही स काम करता। सवभाव म कछ कतपणता भी आ चली थी। द:खिी जनो पर अनब भी दया आती थी पर वह दकान की बधी हई कौिडयो का अनितकरमण न करन पाती। इस अनलपकाय िशश न ऊट क ननह-स नकल की भाित उसक जीवन का सचालन अनपन हाथ म ल िलया था। मानो दीपक क सामन एक भनग न आकर उसकी जयोित को सकिचत कर िदया था।

तीन महीन बीत गए थ। सधया का समय था। बचचा पालन म सो रहा था। सखिदा हाथ म पिखिया िलए एक मोढ पर बठी हई थी। कतशागी गिभणी माततव क तज और शिकत स जस िखिल उठी थी। उसक माधयरय म िकशोरी की चपलता न थी, गिभणी की आलसयमय कातरता न थी, माता का शात सतपत मगलमय िवलास था।

अनमरकानत कॉलज स सीध घर आया और बालक को सिचत नतरो स दखिकर बोला-अनब तो जवर नही ह ।

सखिदा न धीर स िशश क माथ पर हाथ रखिकर कहा-नही, इस समय तो नही जान पडता। अनभी गोद म सो गया था, तो मन िलटा िदया।

अनमर न कतरज क बटन खिोलत हए कहा-मरा तो आज वहा िबलकल जी न लगा। म तो ईशवर स यह पराथरयना करता ह िक मझ ससार की और कोई वसत न चािहए, यह बालक कशल स रह। दखिो कस मसकरा रहा ह।

58 www.hindustanbooks.com

सखिदा न मीठ ितरसकार स कहा-तमही न दखि-दखिकर नजर लगा दी ह।

'मरा जी तो चाहता ह, उसका चबन ल ल।'

'नही-नही, सोत हए बचचो का चबन न लना चािहए।'

सहसा िकसी न डयोढी म आकर पकारा। अनमर न जाकर दखिा, तो बिढया पठािनन लिठया क सहार खिडी ह। बोला-आओ पठािनन, तमन तो सना होगा, घर म बचचा हआ ह-

पठािनन न भीतर आकर कहा-अनललाह कर जग-जग िजए और मरी उमर पाए। कयो बटा सार शहर को नवता हआ और हम पछ तक न गए। कया हमी सबस गर थ- अनललाह जानता ह, िजस िदन यह खिशखिबरी सनी, िदल स दआ िनकली िक अनललाह इस सलामत रख।

अनमर न लिजजत होकर कहा-हा, यह गलती मझस हई पठािनन, मआफ करो। आओ, बचच को दखिो। आज इस न जान कयो बखिार हो आया ह-

बिढया दब पाव आगन म होती हई सामन क बरामद म पहची और बह को दआए दती हई बचच को दखिकर बोली-कछ नही बटा नजर का फसाद ह। म एक ताबीज िदए दती ह, अनललाह चाहगा, अनभी हसन-खलन लगगा।

सखिदा न माततव -जिनत नमरता स बिढया क परो को आचल स सपशरय िकया और बोली-चार िदन भी अनचछी तरह नही रहता, माता घर म कोई बडी-बढी तो ह नही। म कया जान, कस कया होता ह- मरी अनममा ह पर वह रोज तो यहा नही आ सकती, न म ही रोज उनक पास जा सकती ह।

बिढया न िफर आशीवाद िदया और बोली-जब काम पड, मझ बला िलया करो बटा, म और िकस िदन क िलए जीती ह- जरा तम मर साथ चल चलो भया, म ताबीज द द।

बिढया न अनपन सलक की जब स एक रशमी कता और टोपी िनकाली और िशश क िसराहन रखित हए बोली-यह मर लाल की नजर ह बटा, इस मजर करो। म और िकस लायक ह- सकीना कई िदन स सीकर रख हए थी, चला नही जाता बटा, आज बडी िहममत करक आई ह।

सखिदा क पास सबिधयो स िमल हए िकतन अनचछ-स-अनचछ कपड रख हए थ पर इस सरल उपहार स उस जो हािदक आनद परापत हआ वह और िकसी उपहार स न हआ था, कयोिक इसम अनमीरी का गवरय, िदखिाव की इचछा या परथा की शषकता न थी। इसम एक शभिचतक की आतमा थी, परम था और आशीवाद था।

बिढया चलन लगी, तो सखिदा न उस एक पोटली म थोडी-सी िमठाई दी, पान िखिलाए और बरौठ तक उस िवदा करन आई। अनमरकानत न बाहर आकर एक इकका िकया और बिढया क साथ बठकर ताबीज लन चला। गड-ताबीज पर उस िवशवास न था पर वधदजनो क आशीवाद पर था, और उस ताबीज को वह कवल आशीवाद समझ रहा था।

रासत म बिढया न कहा-मन तमस कहा था वह तम भल गए, बटा-

अनमर सचमच भल गया था। शरमाता हआ बोला-हा, पठािनन, मझ याद नही आया। मआफ करो।

'वही सकीना क बार म।'

59 www.hindustanbooks.com

अनमर न माथा ठोककर कहा-हा माता, मझ िबलकल खियाल न रहा।

'तो अनब खियाल रखिो, बटा मर और कौन बठा हआ ह िजसस कह- इधर सकीना न कई रमाल बनाए ह। कई टोिपयो क पलल भी काढ ह पर जब चीज िबकती नही, तो िदल नही बढता।'

'मझ वह सब चीज द दो। म बचवा दगा।'

'तमह तकलीफ न होगी?'

'कोई तकलीफ नही। भला इसम कया तकलीफ?'

अनमरकानत को बिढया घर म न ल गई। इधर उसकी दशा और भी हीन हो गई थी। रोिटयो क भी लाल थ। घर की एक-एक अनगल जमीन पर उसकी दिरदरता अनिकत हो रही थी। उस घर म अनमर को कया ल जाती- बढापा िनससकोच होन पर भी कछ परदा रखिना ही चाहता ह। यह उस इकक ही पर छोडकर अनदर गई, और थोडी दर म ताबीज और रमालो की बकची लकर आ पहची।

'ताबीज उसक गल म बधा दना। िफर कल मझस हाल कहना।'

'कल मरी तातील ह। दो-चार दोसतो स बात करगा। शाम तक बन पडा तो आऊगा, नही िफर िकसी िदन आ जाऊगा।'

घर आकर अनमर न ताबीज बचच क गल म बधी और दकान पर जा बठा। लालाजी न पछा-कहा गए थ- दकान क वकत कही मत जाएा करो।

अनमर न कषमा-पराथरयना क भाव स कहा-आज पठािनन आ गई। बचच क िलए ताबीज दन को कहा था, वही लन चला गया था।

'मन अनभी दखिा। अनब तो अनचछा मालम होता ह। दषटि न मरी मछ पकडकर खिीच ली। मन भी कसकर एक घसा जमाया बचचा को। हा, खिब याद आई, तम बठो, म जरा शासतरीजी क पास स जनम-पतरी लता आऊ। आज उनहोन दन का वादा िकया था।'

लालाजी चल गए, तो अनमर िफर घर म जा पहचा और बचच को गोद म लकर बोला-कयो जी तम हमार बाप की मछ उखिाडत हो खिबरदार, जो िफर उनकी मछ छइ, नही दात तोड दगा।

बालक न उसकी नाक पकड ली और उस िनगल जान की चषटिा करन लगा, जस हनमान सयरय को िनगल रह हो।

सखिदा हसकर बोली-पहल अनपनी नाक बचाओ, िफर बाप की मछ बचाना।

सलीम न इतन जोर स पकारा िक सारा घर िहल उठा।

अनमरकानत न बाहर आकर कहा-तम बड शतान हो यार, ऐसा िचललाए िक म घबरा गया। िकधर स आ रह हो- आओ, कमर म चलो।

दोनो आदमी बगल वाल कमर म गए। सलीम न रात को एक गजल कही थी। वही सनान आया था। गजल कह लन क बाद जब तक वह अनमर को सना न ल, उस चन न आता था।

अनमर न कहा-मगर म तारीफ न करगा, यह समझ लो ।

60 www.hindustanbooks.com

शतरय तो जब ह िक तम तारीफ न करना चाहो, िफर भी करो :

यही दिनयाए उलगत म, हआ करता ह होन दो।

तमह हसना मबारक हो, कोई रोता ह रोन दो।

अनमर न झमकर कहा-लाजवाब शर ह, भई बनावट नही, िदल स कहता ह। िकतनी मजबरी ह-वाह ।

सलीम न दसरा शर पढा :

कसम ल लो जो िशकवा हो तमहारी बवफाई का

िकए को अनपन रोता ह मझ जी भर क रोन दो।

अनमर-बडा ददरयनाक शर ह, रोगट खिड हो गए। जस कोई अनपनी बीती गा रहा हो। इस तरह सलीम न परी गजल सनाई और अनमर न झम-झमकर सनी िफर बात होन लगी। अनमर न पठािनन क रमाल िदखिान शर िकए।

'एक बिढया रखि गई ह। गरीब औरत ह। जी चाह दो-चार ल लो।'

सलीम न रमालो को दखिकर कहा-चीज तो अनचछी ह यार, लाओ एक दजरयन लता जाऊ। िकसन बनाए ह-

'उसी बिढया की एक पोती ह।'

'अनचछा, वही तो नही, जो एक बार कचहरी म पगली क मकदम म गई थी- माशक तो यार तमन अनचछा छाटा।'

अनमरकानत न अनपनी सफाई दी-कसम ल लो, जो मन उसकी तरफ दखिा भी हो।

'मझ कसम लन की जररत नही तमह वह मबारक हो, म तमहारा रकीब नही बनना चाहता। दजरयन रमाल िकतन क ह-

'जो मनािसब समझो द दो।'

'इसकी कीमत बनान वाल क ऊपर मनहसर ह। अनगर उस हसीना न बनाए ह, तो फी रमाल पाच रपय। बिढया या िकसी और न बनाए ह, तो फी रमाल चार आन।'

'तम मजाक करत हो। तमह लना मजर नही।'

'पहल यह बताओ िकसन बनाए ह?'

'बनाए ह सकीना ही न।'

'अनचछा उसका नाम सकीना ह। तो म फी रमाल पाच रपय द दगा। शतरय यह िक तम मझ उसका घर िदखिा दो।'

'हा शौक स लिकन तमन कोई शरारत की तो म तमहारा जानी दशमन हो जाऊगा। अनगर हमददरय बनकर चलना चाहो तो चलो। म तो चाहता ह, उसकी िकसी भल आदमी स शादी हो जाए। ह कोई तमहारी िनगाह म ऐसा आदमी- बस, यही समझ लो िक उसकी तकदीर खिल जाएगी। मन ऐसी हयादार और सलीकमद लडकी नही दखिी। मदरय को लभान क िलए औरत म िजतनी बात हो सकती ह, वह सब उसम मौजद ह।'

61 www.hindustanbooks.com

सलीम न मसकराकर कहा-मालम होता ह, तम खिद उस पर रीझ चक। हसन म तो वह तमहारी बीवी क तलवो क बराबर भी नही।

अनमरकानत न आलोचक क भाव स कहा-औरत म रप ही सबस पयारी चीज नही ह। म तमस सच कहता ह, अनगर मरी शादी न हई होती और मजहब की रकावट न होती तो म उसस शादी करक अनपन को भागयवान समझता।

'आिखिर उसम ऐसी कया बात ह, िजस पर तम इतन लटट हो?'

'यह तो म खिद नही समझ रहा ह। शायद उसका भोलापन हो। तम खिद कयो नही कर लत- म यह कह सकता ह िक उसक साथ तमहारी िजदगी जननत बन जाएगी।'

सलीम न सिदगधा भाव स कहा-मन अनपन िदल म िजस औरत का नकशा खिीच रखिा ह वह कछ और ही ह। शायद वसी औरत मरी खियाली दिनया क बाहर कही होगी भी नही। मरी िनगाह म कोई आदमी आएगा , तो बताऊगा। इस वकत तो म य रमाल िलए लता ह। पाच रपय स कम कया द- सकीना कपड भी सी लती होगी- मझ उममीद ह िक मर घर स उस काफी काम िमल जाएगा। तमह भी एक दोसताना सलाह दता ह। म तमस बदगमानी नही करता लिकन वहा बहत आमदोरित न रखिना, नही बदनाम हो जाओग। तम चाह कम बदनाम हो, उस गरीब की तो िजदगी ही खिराब हो जाएगी। ऐस भल आदिमयो की कमी भी नही ह, जो इस मआमल को मजहबी रग दकर तमहार पीछ पड जाएग। उसकी मदद तो कोई न करगा तमहार ऊपर उगली उठान वाल बहतर िनकल आएग।

अनमरकानत म उदडता न थी पर इस समय वह झललाकर बोला-मझ ऐस कमीन आदिमयो की परवाह नही ह। अनपना िदल साफ रह, तो िकसी बात का गम नही।

सलीम न जरा भी बरा न मानकर कहा-तम जररत स जयादा सीध हो यार, खिौफ ह, िकसी आफत म न फस जाओ।

दसर िदन अनमरकानत न दकान बढाकर जब म पाच रपय रख, पठािनन क घर पहचा और आवाज दी। वह सोच रहा था-सकीना रपय पाकर िकतनी खिश होगी

अनदर स आवाज आई-कौन ह-

अनमरकानत न अनपना नाम बताया।

दवार तरत खिल गए और अनमरकानत न अनदर कदम रखिा पर दखिा तो चारो तरफ अनधोरा। पछा-आज िदया नही जलाया, अनममा-

सकीना बोली-अनममा तो एक जगह िसलाई का काम लन गई ह।

अनधोरा कयो ह- िचराग म तल नही ह-

सकीना धीर स बोली-तल तो ह।

'िफर िदया कयो नही जलाती, िदयासलाई नही ह?'

'िदयासलाई भी ह।'

62 www.hindustanbooks.com

'तो िफर िचराग जलाओ। कल जो रमाल म ल गया था, वह पाच रपय पर िबक गए ह, य रपय ल लो। चटपट िचराग जलाओ।'

सकीना न कोई जवाब न िदया। उसकी िससिकयो की आवाज सनाई दी। अनमर न चौककर पछा-कया बात ह सकीना- तम रो कयो रही हो-

सकीना न िससकत हए कहा-कछ नही, आप जाइए। म अनममा को रपय द दगी।

अनमर न वयाकलता स कहा-जब तक तम बता न दोगी, म न जाऊगा। तल न हो तो म ला द, िदयासलाई न हो तो म ला द, कल एक लप लता आऊगा। कपपी क सामन बठकर काम करन स आख खिराब हो जाती ह। घर क आदमी स कया परदा- म अनगर तमह गर समझता, तो इस तरह बार-बार कयो आता-

सकीना सामन क सायबान म जाकर बोली-मर कपड गील ह। आपकी आवाज सनकर मन िचराग बझा िदया।

'तो गील कपड कयो पहन रख ह?'

'कपड मल हो गए थ। साबन लगाकर रखि िदए थ। अनब और कछ न पिछए। कोई दसरा होता, तो म िकवाड न खिोलती।'

अनमरकानत का कलजा मसोस उठा। उफ इतनी घोर दिरदरता पहनन को कपड तक नही। अनब उस जञात हआ िक कल पठािनन न रशमी कता और टोपी उपहार म दी थी, उसक िलए िकतना तयाग िकया था। दो रपय स कम कया खिचरय हए होग- दो रपय म दो पाजाम बन सकत थ। इन गरीब परािणयो म िकतनी उदारता ह। िजस य अनपना धमरय समझत ह, उसक िलए िकतना कषटि झलन को तयार रहत ह।

उसन सकीना स कापत सवर म कहा-तम िचराग जला लो। म अनभी आता ह।

गोवरधान सराय स चौक तक वह हवा क वग स गया पर बाजार बद हो चका था। अनब कया कर- सकीना अनभी तक गील कपड पहन बठी होगी। आज इन सबो न इतनी जलद कयो दकान बद कर दी- वह यहा स उसी वग क साथ घर पहचा। सखिदा क पास पचासो सािडया ह। कई मामली भी ह। कया वह उनम स सािडया न द दगी- मगर वह पछगी-कया करोग, तो कया जवाब दगा- साफ-साफ कहन स तो वह शायद सदह करन लग। नही, इस वकत सफाई दन का अनवसर न था। सकीना गील कपड पहन उसकी परतीकषा कर रही होगी। सखिदा नीच थी। वह चपक स ऊपर चला गया, गठरी खिोली और उसम स चार सािडया िनकालकर दब पाव चल िदया।

सखिदा न पछा-अनब कहा जा रह हो- भोजन कयो नही कर लत-

अनमर न बरोठ स जवाब िदया-अनभी आता ह।

कछ दर जान पर उसन सोचा-कल कही सखिदा न अनपनी गठरी खिोली और सािडया न िमली तो बडी मिशकल पडगी। नौकरो क िसर जाएगी। कया वह उस वकत यह कहन का साहस रखिता था िक व सािडया मन एक गरीब औरत को द दी ह- नही, वह यह नही कह सकता, तो सािडया ल जाकर रखि द- मगर वहा सकीना गील कपड पहन बठी होगी। िफर खियाल आया-सकीना इन सािडयो को पाकर िकतनी परसनन होगी इस खियाल न उस उनमतत कर िदया। जलद-जलद कदम बढाता हआ सकीना क घर जा पहचा।

सकीना न उसकी आवाज सनत ही दवार खिोल िदया। िचराग जल रहा था। सकीना न इतनी दर म आग

63 www.hindustanbooks.com

जलाकर कपड सखिा िलए थ और करता-पाजामा पहन, ओढनी ओढ खिडी थी अनमर न सािडया खिाट पर रखि दी और बोला-बाजार म तो न िमली, घर जाना पडा। हमददो स परदा न रखिना चािहए।

सकीना न सािडयो को लकर दखिा और सकचाती हई बोली-बाबजी, आप नाहक सािडया लाए। अनममा दखगी, तो जल उठगी। िफर शायद आपका यहा आना मिशकल हो जाए। आपकी शराफत और हमददी की िजतनी तारीफ अनममा करती थी, उसस कही जयादा पाया। आप यहा जयादा आया भी न कर, नही खवामखवाह लोगो को शबहा होगा। मरी वजह स आपक ऊपर कोई शबहा कर, यह म नही चाहती।

आवाज िकतनी मीठी थी। भाव म िकतनी नमरता, िकतना िवशवास। पर उसम वह हषरय न था, िजसकी अनमर न कलपना की थी। अनगर बिढया इस सरल सनह को सदह की दिषटि स दख, तो िनशचिय ही उसका आना-जाना बद हो जाएगा। उसन अनपन मन को टटोलकर दखिा, उस परकार क सदह का कोई कारण नही ह। उसका मन सवचछ था। वहा िकसी परकार की कितसत भावना न थी। िफर भी सकीना स िमलना बद हो जान की सभावना उसक िलए अनसहय थी। उसका शािसत, दिलत परषतव यहा अनपन पराकतितक रप म परकट हो सकता था। सखिदा की परितभा, परगलभता और सवततरता, जस उसक िसर पर सवार रहती थी। वह उसक सामन अनपन को दबाए रखिन पर मजबर था। आतमा म जो एक परकार क िवकार और वयकतीकरण की आकाकषा होती ह, वह अनपणरय रहती थी। सखिदा उस पराभत कर दती थी, सकीना उस गौरवािनवत करती थी। सखिदा उसका दफतर थी, सकीना घर। वहा वह दास था, यहा सवामी।

उसन सािडया उठा ली और वयिथत कठ स बोला-अनगर यह बात ह, तो म इन सािडयो को िलए जाता ह सकीना लिकन म कह नही सकता, मझ इसस िकतना रज होगा। रहा मरा आना-जाना, अनगर तमहारी इचछा ह िक म न आऊ, तो म भलकर भी न आऊगा लिकन पडोिसयो की मझ परवाह नही ह।

सकीना न करण सवर म कहा-बाबजी, म आपस हाथ जोडती ह, ऐसी बात मह स न िनकािलए। जब स आप आन-जान लग ह, मर िलए दिनया कछ और हो गई ह। म अनपन िदल म एक ऐसी ताकत, ऐसी उमग पाती ह, िजस एक तरह का नशा कह सकती ह, लिकन बदगोई स तो डरना ही पडता ह।

अनमर न उनमतता होकर कहा-म बदगोई स नही डरता, सकीना रतती भर भी नही।

लिकन एक ही पल म वह समझ गया-म बहका जाता ह बोला-मगर तम ठीक कहती हो। दिनया और चाह कछ न कर, बदनाम तो कर ही सकती ह।

दोनो एक िमनट शात बठ रह, तब अनमर न कहा-और रमाल बना लना। कपडो का परबध भी हो रहा ह। अनचछा अनब चलगा। लाओ, सािडया लता जाऊ।

सकीना न अनमर की मदरा दखिी। मालम होता था, रोना ही चाहता ह। उसक जी म आया, सािडया उठाकर छाती स लगा ल, पर सयम न हाथ न उठान िदया। अनमर न सािडया उठा ली और लडखिडाता हआ दवार स िनकल गया, मानो अनब िगरा, अनब िगरा।

64 www.hindustanbooks.com

चौदहअनमरकानत का मन िफर स उचाट होन लगा। सकीना उसकी आखिो म बसी हई थी। सकीना क य शबद

उनक कानो म गज रह थ...मर िलए दिनया कछ और हो गई ह। म अनपन िदल म ऐसी ताकत, ऐसी उमग पाती ह इन शबदो म उसकी परष कलपना को ऐसी आनदपरद उततजना िमलती थी िक वह अनपन को भल जाता था। िफर दकान स उसकी रिच घटन लगी। रमणी की नमरता और सलजज अननरोधा का सवाद पा जान क बाद अनब सखिदा की परितभा और गिरमा उस बोझ-सी लगती थी। वहा हर-भर पततो म रखिी-सखिी सामगरी थी यहा सोन-चादी क थालो म नाना वयजन सज हए थ। वहा सरल सनह था, यहा गवरय का िदखिावा था। वह सरल सनह का परसाद उस अनपनी ओर खिीचता था, यह अनमीरी ठाट अनपनी ओर स हटाता था। बचपन म ही वह माता क सनह स विचत हो गया था। जीवन क पदरह साल उसन शषक शासन म काट। कभी मा डाटती, कभी बाप िबगडता, कवल नना की कोमलता उसक भगन हदय पर गाहा रखिती रहती थी। सखिदा भी आई, तो वही शासन और गिरमा लकर सनह का परसाद उस यहा भी न िमला। वह िचरकाल की सनह-तषणा िकसी पयास पकषी की भाित, जो कई सरोवरो क सख तट स िनराश लौट आया हो, सनह की यह शीतल छाया दखिकर िवशराम और तिपत क लोभ स उसकी शरण म आई। यहा शीतल छाया ही न थी, जल भी था, पकषी यही रम जाए तो कोई आशचियरय ह ।

उस िदन सकीना की घोर दिरदरता दखिकर वह आहत हो उठा था। वह िवदरोह जो कछ िदनो उसक मन म शात हो गया था िफर दन वग स उठा। वह धमरय क पीछ लाठी लकर दौडन लगा। धान क इस बधन का उस बचपन स ही अननभव होता आया था। धमरय का बधन उसस कही कठोर, कही अनसहाय, कही िनरथरयक था। धमरय का काम ससार म मल और एकता पदा करना होना चािहए। यहा धमरय न िविभननता और दवष पदा कर िदया ह। कयो खिान-पान म, रसम-िरवाज म धमरय अनपनी टाग अनडाता ह- म चोरी कर, खिन कर, धोखिा द, धमरय मझ अनलग नही कर सकता। अनछत क हाथ स पानी पी ल, धमरय छमतर हो गया। अनचछा धमरय ह हम धमरय क बाहर िकसी स आतमा का सबधा भी नही कर सकत- आतमा को भी धमरय न बधा रखिा ह, परम को भी जकड रखिा ह। यह धमरय नही, धमरय का कलक ह।

अनमरकानत इसी उधोड-बन म पडा रहता। बिढया हर महीन, और कभी-कभी महीन म दो-तीन बार, रमालो की पोटिलया बनाकर लाती और अनमर उस मह माग दाम दकर ल लता। रणका, उसको जब खिचरय क िलए जो रपय दती, वह सब-क-सब रमालो म जात। सलीम का भी इस वयवसाय म साझा था। उसक िमतरो म ऐसा कोई न था, िजसन एक-आधा दजरयन रमाल न िलए हो। सलीम क घर स िसलाई का काम भी िमल जाता। बिढया का सखिदा और रणका स भी पिरचय हो गया था। िचकन की सािडया और चादर बनान का काम भी िमलन लगा उस िदन स अनमर बिढया क घर न गया। कई बार वह मजबत इरादा करक चला पर आधो रासत स लौट आया।

िवदयालय म एक बार 'धमरय' पर िववाद हआ। अनमर न उस अनवसर पर जो भाषण िकया, उसन सार शहर म धाम मचा दी। वह अनब कराित ही म दश का उबर समझता था-ऐसी कराित म, जो सवरयवयापक हो, जो जीवन क िमथया आदशो का, झठ िसधदातो का, पिरपािटयो का अनत कर द, जो एक नए यग की पररवतताक हो, एक नई सिषटि खिडी कर द, जो िमटटी क अनसखय दवताआ को तोड-फोडकर चकनाचर कर द, जो मनषय को धान और धमरय क आधार पर िटकन वाल राजय क पज स मकत कर द। उसक एक-एक अनण स करािनत करािनत ।' की आवाज सदा िनकलती रहती थी लिकन उदार िहनद-समाज उस वकत तक िकसी स नही बोलता, जब तक उसक लोकाचार पर खिललम-खिलला आघात न हो। कोई कराित नही, कराित क बाबा का ही उपदश कयो न कर, उस परवाह नही होती

65 www.hindustanbooks.com

लिकन उपदश की सीमा क बाहर वयवहार कषतर म िकसी न पाव िनकाला और समाज न उसकी गदरयन पकडी। अनमर की कराित अनभी तक वयाखयानो और लखिो तक सीिमत थी। िडगरी की परीकषा समापत होत ही वह वयवहार-कषतर म उतरना चाहता था। पर अनभी परीकषा को एक महीना बाकी ही था िक एक ऐसी घटना हो गई , िजसन उस मदान म आन को मजबर कर िदया। यह सकीना की शादी थी।

एक िदन सधया समय अनमरकानत दकान पर बठा हआ था िक बिढया सखिदा की िचकनी की साडी लकर आई और अनमर स बोली-बटा, अनलला क गजल स सकीना की शादी ठीक हो गई ह आठवी को िनकाह हो जाएगा। और तो मन सब सामान जमा कर िलया ह पर कछ रपयो स मदद करना।

अनमर की नािडयो म जस रकत न था। हकलाकर बोला-सकीना की शादी ऐसी कया जलदी थी-

'कया करती बटा, गजर तो नही होता, िफर जवान लडकी बदनामी भी तो ह।'

'सकीना भी राजी ह?'

बिढया न सरल भाव स कहा-लडिकया कही अनपन मह स कछ कहती ह बटा- वह तो नही-नही िकए जाती ह।

अनमर न गरजकर कहा-िफर भी तम शादी िकए दती हो- िफर सभलकर बोला- रपय क िलए दादा स कहो।

'तम मरी तरफ स िसफािरश कर दना बटा, कह तो म आप लगी।'

'म िसफािरश करन वाला कौन होता ह- दादा तमह िजतना जानत ह, उतना म नही जानता।'

बिढया को वही खिडी छोडकर, अनमर बदहवास सलीम क पास पहचा। सलीम न उसकी बौखिलाई हई सरत दखिकर पछा-खिर तो ह- बदहवास कयो हो-

अनमर न सयत होकर कहा-बदहवास तो नही ह। तम खिद बदहवास होग।

'अनचछा तो आओ, तमह अनपनी ताजी गजल सनाऊ। ऐस-ऐस शर िनकाल ह िक गडक न जाओ तो मरा िजममा।'

अनमरकानत की गदरयन म जस फासी पड गई, पर कस कह-मरी इचछा नही ह। सलीम न मतला पढा :

बहला क सवरा करत ह इस िदल को उनही की बातो म,

िदल जलता ह अनपना िजनकी तरह, बरसात की भीगी रातो म।

अनमर न ऊपरी िदल स कहा-अनचछा शर ह।

सलीम हतोतसाह न हआ। दसरा शर पढा :

कछ मरी नजर न उठ क कहा कछ उनकी नजर न झक क कहा,

झगडा जो न बरसो म चकता, तय हो गया बातो-बातो म।

अनमर झम उठा-खिब कहा ह भई वाह वाह लाओ कलम चम ल। सलीम न तीसरा शर सनाया :

यह यास का सननाटा तो न था, जब आस लगाए सनत थ,

66 www.hindustanbooks.com

माना िक था धोखिा ही धोखिा, उन मीठी-मीठी बातो म।

अनमर न कलजा थाम िलया-गजब का ददरय ह भई िदल मसोस उठा।

एक कषण क बाद सलीम न छडा-इधर एक महीन स सकीना न कोई रमाल नही भजा कया-

अनमर न गभीर होकर कहा-तम तो यार, मजाक करत हो। उसकी शादी हो रही ह। एक ही हतरिा और ह।

'तो तम दिलहन की तरफ स बारात म जाना। म दलह की तरफ स जाऊगा।'

अनमर न आख िनकलाकर कहा-मर जीत-जी यह शादी नही हो सकती। म तमस कहता ह सलीम, म सकीना क दरवाज पर जान द दगा, िसर पटक-पटककर मर जाऊगा।

सलीम न घबराकर पछा-यह तम कसी बात कर रह हो, भाईजान- सकीना पर आिशक तो नही हो गए- कया सचमच मरा गमान सही था-

अनमर न आखिो म आस भरकर कहा-म कछ नही कह सकता, मरी कयो ऐसी हालत हो रही ह सलीम पर जब स मन यह खिबर सनी ह मर िजगर म जस आरा-सा चल रहाह।

'आिखिर तम चाहत कया हो- तम उसस शादी तो नही कर सकत।'

'कयो नही कर सकता?'

'िबलकल बचच न बन जाओ। जरा अनकल स काम लो।'

'तमहारी यही तो मशा ह िक वह मसलमान ह, म िहनद ह। म परम क समन मजहब की हकीकत नही समझता, कछ भी नही।'

सलीम न अनिवशवास क भाव स कहा-तमहार खियालात तकरीरो म सन चका ह, अनखिबारो म पढ चका ह। ऐस खियालात बहत ऊच, बहत पाकीजा, दिनया म इकलाब पदा करन वाल ह और िकतनो न ही इनह जािहर करक नामवरी हािसल की ह, लिकन इलमी बहस दसरी चीज ह, उस पर अनमल करना दसरी चीज ह। बगावत पर इलमी बहस कीिजए, लोग शौक स सनग। बगावत करन क िलए तलवार उठाइए और आप सारी सोसाइटी क दशमन हो जाएग। इलमी बहस स िकसी को चोट नही लगती। बगावत स गरदन कटती ह। मगर तमन सकीना स भी पछा, वह तमस शादी करन पर राजी ह-

अनमर कछ िझझका। इस तरफ उसन धयान ही न िदया था। उसन शायद िदल म समझ िलया था, मर कहन की दर ह, वह तो राजी ही ह। उन शबदो क बाद अनब उस कछ पछन की जररत न मालम हई।

'मझ यकीन ह िक वह राजी ह।'

'यकीन कस हआ?'

'उसन ऐसी बात की ह, िजनका मतलब इसक िसवा और कछ हो ही नही सकता।'

'तमन उसस कहा-म तमस शादी करना चाहता ह?'

'उसस पछन की म जररत नही समझता।'

'तो एक ऐसी बात को, जो तमस एक हमददरय क नात कही थी, तमन शादी का वादा समझ िलया। वाह री

67 www.hindustanbooks.com

आपकी अनकल म कहता ह, तम भग तो नही खिा गए हो, या बहत पढन स तमहारा िदमाग तो नही खिराब हो गया ह- परी स जयादा हसीन बीबी, चाद-सा बचचा और दिनया की सारी नमतो को आप ितलाजिल दन पर तयार ह, उस जलाह की नमकीन और शायद सलीकदार छोकरी क िलए तमन इस भी कोई तकरीर या मजमन समझ रखिा ह- सर शहर म तहलका पड जाएगा जनाब, भचाल आ जाएगा, शहर ही म नही, सब भर म, बिलक शमाली िहनदोसतान भर म। आप ह िकस फर म- जान स हाथ धोना पड, तो ताजजब नही।'

अनमरकानत इन सारी बाधाआ को सोच चका था। इनस वह जरा भी िवचिलत न हआ था। और अनगर इसक िलए समाज उस दड दता ह, तो उस परवाह नही। वह अनपन हक क िलए मर जाना इसस कही अनचछा समझता ह िक उस छोडकर कायरो की िजदगी काट। समाज उसकी िजदगी को तबाह करन का कोई हक नही रखिता। बोला-म यह सब जानता ह सलीम, लिकन म अनपनी आतमा को समाज का गलाम नही बनाना चाहता। नतीजा जो कछ भी हो उसक िलए म तयार ह। यह मआमला मर और सकीना क दरिमयान ह। सोसाइटी को हमार बीच म दखिल दन का कोई हक नही।

सलीम न सिदगधा भाव स िसर िहलाकर कहा-सकीना कभी मजर न करगी, अनगर उस तमस महबबत ह। हा, अनगर वह तमहारी महबबत का तमाशा दखिना चाहती ह, तो शायद मजर कर ल मगर म पछता ह, उसम कया खिबी ह, िजसक िलए तम खिद इतनी बडी कबानी करन और कई िजदिगयो को खिाक म िमलान पर आमादा हो-

अनमर को यह बात अनिपरय लगी। मह िसकोडकर बोला-म कोई कबानी नही कर रहा ह और न िकसी की िजदगी को खिाक म िमला रहा ह। म िसफरक उस रासत पर जा रहा ह, िजधार मरी आतमा मझ ल जा रही ह। म िकसी िरशत या दौलत को अनपनी आतमा क गल की जजीर नही बना सकता। म उन आदिमयो म नही ह , जो िजदगी की जजीरो को ही िजदगी समझत ह। म िजदगी की आरजआ को िजदगी समझता ह। मझ िजदा रहन क िलए एक ऐस िदल की जररत ह, िजसम आरजए हो, ददरय हो, तयाग हो, सौदा हो। जो मर साथ रो सकता हो मर साथ जल सकता हो। महसस करता ह िक मरी िजदगी पर रोज-ब-रोज जग लगता जा रहा ह। इन चद सालो म मरा िकतना ईहानी जवाल हआ, इस म ही समझता ह। म जजीरो म जकडा जा रहा ह। सकीना ही मझ आजाद कर सकती ह, उसी क साथ म ईहानी बलिदयो पर उड सकता ह, उसी क साथ म अनपन को पा सकता ह। तम कहत हो-पहल उसस पछ लो। तमहारा खियाल ह-वह कभी मजर न करगी। मझ यकीन ह-महबबत जसी अननमोल चीज पाकर कोई उस रपर नही कर सकता।

सलीम न पछा-अनगर वह कह तम मसलमान हो जाओ-

'वह यह नही कह सकती।'

'मान लो, कह।'

'तो म उसी वकत एक मौलवी को बलाकर कलमा पढ लगा। मझ इसलाम म ऐसी कोई बात नही नजर आती, िजस मरी आतमा सवीकार न करती हो। धमरय-ततव सब एक ह। हजरत महममद को खिदा का रसल मानन म मझ कोई आपितत नही। िजस सवा, तयाग, दया, आतम-शिधद पर िहनद-धमरय की बिनयाद कायम ह, उसी पर इसलाम की बिनयाद भी कायम ह। इसलाम मझ बधद और कतषण और राम की ताजीम करन स नही रोकता। म इस वकत अनपनी इचछा स िहनद नही ह बिलक इसिलए िक िहनद घर म पदा हआ ह। तब भी म अनपनी इचछा स मसलमान न हगा बिलक इसिलए िक सकीना की मरजी ह। मरा अनपना ईमान यह ह िक मजहब आतमा क िलए बधन ह। मरी अनकल िजस कबल कर, वही मरा मजहब ह। बाकी खिरागात ।'

68 www.hindustanbooks.com

सलीम इस जवाब क िलए तयार न था। इस जवाब न उस िनशशसतर कर िदया। ऐस मनोदगारो न उसक अनत:करण को कभी सपशरय न िकया था। परम को वह वासना मातर समझता था। जरा-स उदगार को इतना वहद रप दना, उसक िलए इतनी कबािनया करना, सारी दिनया म बदनाम होना और चारो ओर एक तहलका मचा दना, उस पागलपन मालम होता था।

उसन िसर िहलाकर कहा-सकीना कभी मजर न करगी।

अनमर न शात भाव स कहा-तम ऐसा कयो समझत हो-

'इसिलए िक अनगर उस जरा भी अनकल ह, तो वह एक खिानदान को कभी तबाह न करगी।'

'इसक यह मान ह िक उस मर खिानदान की महबबत मझस जयादा ह। िफर मरी समझ म नही आता िक मरा खिानदान कया तबाह हो जाएगा- दादा को और सखिदा को दौलत मझस जयादा पयारी ह। बचच को तब भी म इसी तरह पयार कर सकता ह। जयादा-स-जयादा इतना होगा िक म घर म न जाऊगा और उनक घड।-मटक न छऊगा।'

सलीम न पछा-डॉकटर शािनतकमार स भी इसका िजकर िकया ह-

अनमर न जस िमतर की मोटी अनकल स हताश होकर कहा-नही, मन उनस िजकर करन की जररत नही समझी। तमस भी सलाह लन नही आया ह िसफरक िदल का बोझ हलका करन क िलए। मरा इरादा पकका हो चका ह। अनगर सकीना न मायस कर िदया, तो िजदगी का खिातमा कर दगा। राजी हई, तो हम दोनो चपक स कही चल जाएग। िकसी को खिबर भी न होगी। दो-चार महीन बाद घर वालो को सचना द दगा। न कोई तहलका मचगा, न कोई तफान आएगा। यह ह मरा परोगराम। म इसी वकत उसक पास जाता ह, अनगर उसन मजर कर िलया, तो लौटकर िफर यही आऊगा, और मायस िकया तो तम मरी सरत न दखिोग।

यह कहता हआ वह उठ खिडा हआ और तजी स गोवधरयन सराय की तरफ चला। सलीम उस रोकन का इरादा करक भी न रोक सका। शायद वह समझ गया था िक इस वकत इसक िसर पर भत सवार ह, िकसी की न सनगा।

माघ की रात। कडाक की सदी। आकाश पर धआ छाया हआ था। अनमरकानत अनपनी धन म मसत चला जाता था। सकीना पर करोध आन लगा। मझ पतर तक न िलखिा। एक काडरय भी न डाला। िफर उस एक िविचतर भय उतपनन हआ। सकीना कही बरा न मान जाए। उसक शबदो का आशय यह तो नही था िक वह उसक साथ कही जान पर तयार ह। सभव ह उसकी रजामदी स बिढया न िववाह ठीक िकया हो। सभव ह, उस आदमी की उसक यहा आमदरित भी हो। वह इस समय वहा बठा हो। अनगर ऐसा हआ, तो अनमर वहा स चपचाप चला आएगा। बिढया आ गई होगी तो उसक सामन उस और भी सकोच होगा। वह सकीना स एकात म वातालाप का अनवसर चाहता था।

सकीना क दवार पर पहचा, तो उसका िदल धाडक रहा था। उसन एक कषण कान लगाकर सना। िकसी की आवाज न सनाई दी। आगन म परकाश था। शायद सकीना अनकली ह। मह मागी मराद िमली। आिहसता स जजीर खिटखिटाई। सकीना न पछकर तरत दवार खिोल िदया और बोली-अनममा तो आप ही क यहा गई हई ह। ।

अनमर न खिड-खिड जवाब िदया-हा, मझस िमली थी, और उनहोन जो खिबर सनाई, उसन मझ दीवाना बना रखिा ह। अनभी तक मन अनपन िदल का राज तमस िछपाया था सकीना, और सोचा था िक उस कछ िदन और

69 www.hindustanbooks.com

िछपाए रहगा लिकन इस खिबर न मझ मजबर कर िदया ह िक तमस वह राज कह। तम सनकर जो फसला करोगी, उसी पर मरी िजदगी का दारोमदार ह। तमहार परो पर पडा हआ ह, चाह ठकरा दो, या उठाकर सीन स लगा लो। कह नही सकता यह आग मर िदल म कयोकर लगी लिकन िजस िदन तमह पहली बार दखिा, उसी िदन स एक िचगारी-सी अनदर बठ गई और अनब वह एक शोला बन गई ह। और अनगर उस जलद बझाया न गया, तो मझ जलाकर खिाक कर दगी। मन बहत जबत िकया ह सकीना, घट-घटकर रह गया ह मगर तमन मना कर िदया था, आन का हौसला न हआ तमहार कदमो पर म अनपना सब कछ कबान कर चका ह। वह घर मर िलए जलखिान स बदतर ह। मरी हसीन बीवी मझ सगमरमर की मरत-सी लगती ह, िजसम िदल नही ददरय नही। तमह पाकर म सब कछ पा जाऊगा ।

सकीना जस घबरा गई। जहा उसन एक चटकी आट का सवाल िकया था, वहा दाता न जयोनार का एक भरा थाल लकर उसक सामन रखि िदया। उसक छोट-स पातर म इतनी जगह कहा ह- उसकी समझ म नही आता िक उस िवभित को कस समट- आचल और दामन सब कछ भर जान पर भी तो वह उस समट न सकगी। आख सजल हो गइ, हदय उछलन लगा। िसर झकाकर सकोच-भर सवर म बोली-बाबजी, खिदा जानता ह, मर िदल म तमहारी िकतनी इजजत और िकतनी महबबत ह। म तो तमहारी एक िनगाह पर कबान हो जाती। तमन तो िभखिािरन को जस तीनो लोक का राजय द िदया लिकन िभखिािरन राज लकर कया करगी- उस तो एक टकडा चािहए। मझ तमन इस लायक समझा, यही मर िलए बहत ह। म अनपन को इस लायक नही समझती। सोचो, म कौन ह- एक गरीब मसलमान औरत, जो मजदरी करक अनपनी िजदगी बसर करती ह। मझम न वह नगासत ह, न वह सलीका, न वह इलम। म सखिदादवी क कदमो की बराबरी भी नही कर सकती। मढकी उडकर ऊच दरखत पर तो नही जा सकती। मर कारण आपकी रसवाई हो, उसक पहल म जान द दगी। म आपकी िजदगी म दाग न लगाऊगी।

ऐस अनवसरो पर हमार िवचार कछ किवतामय हो जात ह। परम की गहराई किवता की वसत ह और साधारण बोल-चाल म वयकत नही हो सकती। सकीना जरा दम लकर बोली- तमन एक यतीम, गरीब लडकी को खिाक स उठाकर आसमान पर पहचाया-अनपन िदल म जगह दी-तो म भी जब तक िजऊगी इस महबबत क िचराग को अनपन िदल क खिन स रोशन रखिगी।

अनमर न ठडी सास खिीचकर कहा-इस खियाल स मझ तसकीन न होगा, सकीना यह िचराग हवा क झोक स बझ जाएगा और वहा दसरा िचराग रोशन होगा। िफर तम मझ कब याद करोगी- यह म नही दखि सकता। तम इस खियाल को िदल स िनकाल डालो िक म कोई बडा आदमी ह और तम िबलकल नाचीज हो। म अनपना सब कछ तमहार कदमो पर िनसार कर चका और म तमहार पजारी क िसवा और कछ नही। बशक सखिदा तमस जयादा हसीन ह लिकन तमम कछ बात तो ह, िजसन मझ उधर स हटाकर तमहार कदमो पर िगरा िदया। तम िकसी गर की हो जाओ, यह म नही सह सकता। िजस िदन यह नौबत आएगी, तम सन लोगी िक अनमर इस दिनया म नही ह अनगर तमह मरी वफा क सबत की जररत हो तो उसक िलए खिन की यह बद हािजर ह।

यह कहत हए उसन जब स छरी िनकाल ली। सकीना न झपटकर छरी उसक हाथ स छीन ली और मीठी िझडकी क साथ बोली-सबत की जररत उनह होती ह, िजनह यकीन न हो, जो कछ बदल म चाहत हो। म तो िसफरक तमहारी पजा करना चाहती ह। दवता मह स कछ नही बोलता तो कया पजारी क िदल म उसकी भिकत कछ कम होती ह- महबबत खिद अनपना इनाम ह। नही जानती िजदगी िकस तरफ जाएगी लिकन जो कछ भी हो, िजसम चाह िकसी का हो जाए, यह िदल हमशा तमहारा रहगा। इस महबबत की गरज स पाक रखिना चाहती ह।

70 www.hindustanbooks.com

िसफरक यह यकीन िक म तमहारी ह, मर िलए काफी ह। म तमस सच कहती ह पयार, इस यकीन न मर िदल को इतना मजबत कर िदया ह िक वह बडी-स-बडी मसीबत भी हसकर झल सकता ह। मन तमह यहा आन स रोका था। तमहारी बदनामी क िसवा, मझ अनपनी बदनामी का भी खिौफ था पर अनब मझ जरा भी खिौफ नही ह। म अनपनी ही तरफ स बिफकर नही ह, तमहारी तरफ स भी बिफकर ह। मरी जान रहत कोई तमहारा बाल भी बाका नही कर सकता।

अनमर की इचछा हई िक सकीना को गल लगाकर परम स छक जाए पर सकीना क ऊच परमादशरय न उस शात कर िदया। बोला-लिकन तमहारी शादी तो होन जा रही ह-

'म अनब इकार कर दगी।'

'बिढया मान जाएगी?'

'म कह दगी-अनगर तमन मरी शादी का नाम भी िलया तो म जहर खिा लगी।'

'कयो न इसी वकत हम और तम कही चल जाए?'

'नही, वह जािहरी महबबत ह। अनसली महबबत वह ह, िजसकी जदाई म भी िवसाल ह, जहा जदाई ह ही नही, जो अनपन पयार स एक हजार कोस पर होकर भी अनपन को उसक गल स िमला हआ दखिती ह।'

सहसा पठािनन न दवार खिोला। अनमर न बात बनाई-म तो समझा था, तम कबकी आ गई होगी। बीच म कहा रह गइ-

बिढया न खिटट मन स कहा-तमन तो आज ऐसा रखिा जवाब िदया भया, िक म रो पडी। तमहारा ही तो मझ भरोसा था और तमही न मझ ऐसा जवाब िदया पर अनललाह का गजल ह, बहजी न मझस वादा िकया-िजतन रपय चाहना ल जाना। वही दर हो गई। तम मझस िकसी बात पर नाराज तो नही हो , बटा-

अनमर न उसकी िदलजोई की-नही अनममा, आपस भला कया नाराज होता। उस वकत दादा स एक बात पर झक-झक हो गई थी उसी का खिमार था। म बाद को खिद शिमऊदा हआ और तमस मआफी मागन दौडा। सारी खिता मआफ करती हो-

बिढया रोकर बोली-बटा, तमहार टकडो पर तो िजदगी कटी, तमस नाराज होकर खिदा को कया मह िदखिाऊगी- इस खिाल स तमहार पाव की जितयो बन, तो भी दरग न कर।

'बस, मझ तसकीन हो गई अनममा। इसीिलए आया था।'

अनमर दवार पर पहचा, तो सकीना न दवार बद करत हए कहा-कल जरर आना।

अनमर पर एक गलन का नशा चढ गया-जरर आऊगा।

'म तमहारी राह दखिती रहगी।'

'कोई चीज तमहारी नजर कर, तो नाराज तो न होगी?'

'िदल स बढकर भी कोई नजर हो सकती ह?'

'नजर क साथ कछ शीरीनी होनी जररी ह।'

71 www.hindustanbooks.com

'तम जो कछ दो, वह िसर-आखिो पर।'

अनमर इस तरह अनकडता हआ जा रहा था गोया दिनया की बादशाही पा गया ह।

सकीना न दवार बद करक दादी स कहा-तम नाहक दौड-धप कर रही हो अनममा। म शादी न करगी।

'तो कया यो ही बठी रहगी?'

'हा, जब मरी मजी होगी, तब कर लगी।'

'तो कया म हमशा बठी रहगी?'

'हा, जब तक मरी शादी न हो जाएगी, आप बठी रहगी।'

'हसी मत कर। म सब इतजाम कर चकी ह।'

'नही अनममा, म शादी न करगी और मझ िदखि करोगी तो जहर खिा लगी। शादी क खियाल स मरी ईह फना हो जाती ह।'

'तमह कया हो गया सकीना?'

'म शादी नही करना चाहती, बस। जब तक कोई ऐसा आदमी न हो, िजसक साथ मझ आराम स िजदगी बसर होन का इतमीनान हो म यह ददरय सर नही लना चाहती। तम मझ ऐस घर म डालन जा रही हो , जहा मरी िजदगी तलखि हो जाएगी। शादी की मशा यह नही ह िक आदमी रो-रोकर िदन काट।'

पठािनन न अनगीठी क सामन बठकर िसर पर हाथ रखि िलया और सोचन लगी-लडकी िकतनी बशमरय ह ।

सकीना बाजर की रोिटया मसर की दाल क साथ खिाकर, टटी खिाट पर लटी और परान गट हए िलहाफ म सदी क मार पाव िसकोड िलए, पर उसका हदय आनद स पिरपणरय था। आज उस जो िवभित िमली थी, उसक सामन ससार की सपदा तचछ थी, नगणय थी।

72 www.hindustanbooks.com

पदरहअनमरकानत क जीवन म एक नई सफित का सचार होन लगा। अनब तक घरवालो न उसक हरक काम की

अनवहलना ही की थी। सभी उसकी लगाम खिीचत रहत थ। घोड म न वह दम रहा, न वह उतसाह लिकन अनब एक पराणी बढावा दता था उसकी गदरयन पर हाथ फरता था। जहा उपकषा, या अनिधक-स-अनिधक शषक उदासीनता थी, वहा अनब एक रमणी का परोतसाहन था, जो पवरयतो को िहला सकता ह, मदो को िजला सकता ह। उसकी साधन, जो बधनो म पडकर सकिचत हो गई थी, परम का आशरय पाकर परबल और उगर हो गई ह अनपन अनदर ऐसी आतमशिकत उसन कभी न पाई थी। सकीना अनपन परमसरोत स उसकी साधन को सीचती रहती ह यह सवय अनपनी रकषा नही कर सकती पर उसका परम उसऋषिष का वरदान ह जो आप िभकषा मागकर भी दसरो पर िवभितयो की वषा करता ह। अनमर िबना िकसी परयोजन क सकीना क पास नही जाता। उसम वह उपरणडता भी नही रही। समय और अनवसर दखिकर काम करता ह। िजन वकषो की जड गहरी होती ह, उनह बार-बार सीचन की जररत नही होती। वह जमीन स ही आदररयता खिीचकर बढत और फलत-फलत ह। सकीना और अनमर का परम वही वकष ह। उस सजग रखिन क िलए बार-बार िमलन की जररत नही।

िडगरी की परीकषा हई पर अनमरकानत उसम बठा नही। अनधयापको को िवशवास था, उस छातरवितत िमलगी। यहा तक िक डॉ. शािनतकमार न भी उस बहत समझाया पर वह अनपनी िजद पर अनडा रहा। जीवन को सफल बनान क िलए िशकषा की जररत ह, िडगरी की नही। हमारी िडगरी ह-हमारा सवा-भाव, हमारी नमरता, हमार जीवन की सरलता। अनगर यह िडगरी नही िमली, अनगर हमारी आतमा जागत नही हई, तो कागज की िडगरी वयथरय ह। उस इस िशकषा ही स घणा हो गई थी। जब वह अनपन अनधयापको को टयशन की गलामी करत, सवाथरय क िलए नाक रगडत, कम-स-कम करक अनिधक-स-अनिधक लाभ क िलए हाथ पसारत दखिता, तो उस घोर मानिसक वदना होती थी, और इनही महानभावो क हाथ म राषटि' की बागडोर ह। यही कौम क िवधाता ह। इनह इसकी परवाह नही िक भारत की जनता दो आन पसो पर गजर करती ह। एक साधारण आदमी को साल-भर म पचास स जयादा नही िमलत। हमार अनधयापको को पचास रपय रोज चािहए। तब अनमर को उस अनतीत की याद आती, जब हमार गरजन झोपडो म रहत थ, सवाथरय स अनलग, लोभ स दर, साितवक जीवन क आदशरय, िनषकाम सवा क उपासक। वह राषटि' स कम-स-कम लकर अनिधक-स-अनिधक दत थ। वह वासतव म दवता थ और एक यह अनधयापक ह, जो िकसी अनश म भी एक मामली वयापारी या राजय-कमरयचारी स पीछ नही। इनम भी वही दभ ह, वही धान-मद ह, वही अनिधकार-मद ह। हमार िवदयालय कया ह, राजय क िवभाग ह, और हमार अनधयापक उसी राजय क अनश ह। य खिद अनधकार म पड हए ह, परकाश कया फलाएग- व आप अनपन मनोिवकारो क कदी ह, आप अनपनी इचछाआ क गलाम ह, और अनपन िशषयो को भी उसी कद और गलामी म डालत ह। अनमर की यवक-कलपना िफर अनतीत का सवपन दखिन लगती। पिरसथितयो को वह िबलकल भल जाता। उसक किलपत राषटि' क कमरयचारी सवा क पतल होत, अनधयापक झोपडी म रहन वाल बलकलधारी, कदमल-फल-भोगी सनयासी, जनता दवष और लोभ स रिहत, न यह आए िदन क टट, न बखड। इतनी अनदालतो की जररत कया- यह बड-बड महकम िकसिलए- ऐसा मालम होता ह, गरीबो की लाश नोचन वाल िगरोह का समह ह। िजसक पास िजतनी ही बडी िडगरी ह, उसका सवाथरय भी उतना ही बढा हआ ह। मानो लोभ और सवाथरय ही िवदवता का लकषण ह गरीबो को रोिटया मयससर न हो, कपडो को तरसत हो, पर हमार िशिकषत भाइयो को मोटर चािहए, बगला चािहए, नौकरो की एक पलटन चािहए। इस ससार को अनगर मनषय न रचा ह तो अननयायी ह, ईशवर न रचा ह तो उस कया कह ।

73 www.hindustanbooks.com

यही भावनाए अनमर क अनतसथल म लहरो की भाित उठती रहती थी।

वह परात:काल उठकर शािनतकमार क सवाशरम म पहच जाता और दोपहर तक वहा लडको को पढाता रहता। पाठशाला डॉकटर साहब क बगल म थी। नौ बज तक डॉकटर साहब भी पढात थ। फीस िबलकल न ली जाती थी िफर भी लडक बहत कम आत थ। सरकारी सकलो म जहा फीस और जमान और चदो की भरमार रहती थी, लडको को बठन की जगह न िमलती थी। यहा कोई झाकता भी न था। मिशकल स दो-ढाई सौ लडक आत थ। छोट-छोट भोल-भाल िनषकपट बालको का कस सवाभािवक िवकास हो कस व साहसी, सतोषी, सवाशील नागिरक बन सक, यही मखय उददशय था। सौदयरय-बोधा जो मानव-परकतित का परधान अनग ह, कस दिषत वातावरण स अनलग रहकर अनपनी पणरयता पाए, सघषरय की जगह सहानभित का िवकास कस हो, दोनो िमतर यही सोचत रहत थ। उनक पास िशकषा की कोई बनी-बनाई परणाली न थी। उददशय को सामन रखिकर ही वह साधानो की वयवसथा करत थ। आदशरय महापरषो क चिरतर, सवा और तयाग की कथाए, भिकत और परम क पद, यही िशकषा क आधार थ। उनक दो सहयोगी और थ। एक आतमाननद सनयासी थ, जो ससार स िवरकत होकर सवा म जीवन साथरयक करना चाहत थ, दसर एक सगीत क आचायरय थ, िजनका नाम था बरजनाथ। इन दोनो सहयोिगयो क आ जान स शाला की उपयोिगता बहत बढ गई थी।

एक िदन अनमर न शािनतकमार स कहा-आप आिखिर कब तक परोरसरी करत चल जाएग- िजस ससथा को हम जड स काटना चाहत ह, उसी स िचमट रहना तो आपको शोभा नही दता ।

शािनतकमार न मसकराकर कहा-म खिद यही सोच रहा ह भई पर सोचता ह, रपय कहा स आएग- कछ खिचरय नही ह, तो भी पाच सौ म तो सदह ह ही नही।

'आप इसकी िचता न कीिजए। कही-न-कही स रपय आ ही जाएग। िफर रपय की जररत कया ह?'

'मकान का िकराया ह, लडको क िलए िकताब ह, और बीसो ही खिचरय ह। कया-कया िगनाऊ?'

'हम िकसी वकष क नीच तो लडको को पढा सकत ह।'

'तम आदशरय की धन म वयावहािरकता का िबलकल िवचार नही करत। कोरा आदशरयवाद खियाली पलाव ह। '

अनमर न चिकत होकर कहा-म तो समझता था, आप भी आदशरयवादी ह।

शािनतकमार न मानो इस चोट को ढाल पर रोककर कहा-मर आदशरयवाद म वयावहािरकता का भी सथान ह।

'इसका अनथरय यह ह िक आप गड खिात ह, गलगल स परहज करत ह।'

'जब तक मझ रपय कही स िमलन न लग, तमही सोचो, म िकस आधार पर नौकरी का पिरतयाग कर द- पाठशाला मन खिोली ह। इसक सचालन का दाियतव मझ पर ह। इसक बद हो जान पर मरी बदनामी होगी। अनगर तम इसक सचालन का कोई सथायी परबध कर सकत हो, तो म आज इसतीफा द सकता ह लिकन िबना िकसी आधार क म कछ नही कर सकता। म इतना पकका आदशरयवादी नही ह।'

अनमरकानत न अनभी िसधदात स समझौता करना न सीखिा था। कायरयकषतर म कछ िदन रह जान और ससार क कडव अननभव हो जान क बाद हमारी परकतित म जो ढीलापन आ जाता ह, उस पिरिसथित म वह न पडा था। नवदीिकषतो को िसधदात म जो अनटल भिकत होती ह वह उसम भी थी। डॉकटर साहब म उस जो शरधदा थी, उस

74 www.hindustanbooks.com

जोर का धाकका लगा। उस मालम हआ िक यह कवल बातो क वीर ह, कहत कछ ह करत कछ ह। िजसका खिल शबदो म यह आशय ह िक यह ससार को धोखिा दत ह। ऐस मनषय क साथ वह कस सहयोग कर सकता ह-

उसन जस धमकी दी-तो आप इसतीफा नही द सकत-

'उस वकत तक नही, जब तक धान का कोई परबध न हो।'

'तो ऐसी दशा म म यहा काम नही कर सकता।'

डॉकटर साहब न नमरता स कहा-दखिो अनमरकानत, मझ ससार का तमस जयादा तजबा ह, मरा इतना जीवन नए-नए परीकषणो म ही गजरा ह। मन जो ततव िनकाला ह, यह ह िक हमारा जीवन समझौत पर िटका हआ ह। अनभी तम मझ जो चाह समझो पर एक समय आएगा, जब तमहारी आख खिलगी और तमह मालम होगा िक जीवन म यथाथरय का महतव आदशरय स जौ-भर भी कम नही।

अनमर न जस आकाश म उडत हए कहा-मदान म मर जाना मदान छोड दन स कही अनचछा ह। और उसी वकत वहा स चल िदया।

पहल सलीम स मठभड हई। सलीम इस शाला को मदारी का तमाशा कहा करता था, जहा जाद की लकडी छआ दन ही स िमटटी सोना बन जाती ह। वह एमए की तयारी कर रहा था। उसकी अनिभलाषा थी कोई अनचछा सरकारी पद पा जाए और चन स रह। सधार और सगठन और राषटरीय आदोलन स उस िवशष परम न था। उसन यह खिबर सनी तो खिश होकर कहा-तमन बहत अनचछा िकया, िनकल आए। म डॉकटर साहब को खिब जानता ह, वह उन लोगो म ह, जो दसरो क घर म आग लगाकर अनपना हाथ सकत ह। कौम क नाम पर जान दत ह, मगर जबान स।

सखिदा भी खिश हई। अनमर का शाला क पीछ पागल हो जाना उस न सोहाता था। डॉकटर साहब स उस िचढ थी। वही अनमर को उगिलयो पर नचा रह ह। उनही क फर म पडकर अनमर घर स उदासीन हो गया ह।

पर जब सधया समय अनमर न सकीना स िजकर िकया, तो उसन डॉकटर का पकष िलया-म समझती ह, डॉकटर साहब का खियाल ठीक ह। भख पट खिदा की याद भी नही हो सकता। िजसक िसर रोजी की िफकर सवार ह, वह कौम की कया िखिदमत करगा, और करगा तो अनमानत म खियानत करगा। आदमी भखिा नही रह सकता। िफर मदरस का खिचरय भी तो ह। माना िक दरखतो क नीच ही मदरसा लग लिकन वह बाग कहा ह- कोई ऐसी जगह तो चािहए ही जहा लडक बठकर पढ सक। लडको को िकताब, कागज चािहए, बठन को गशरय चािहए, डोल-रससी चािहए। या तो चद स आए, या कोई कमाकर द। सोचो, जो आदमी अनपन उसल क िखिलाग नौकरी करक एक काम की बिनयाद डालता ह वह उसक िलए िकतनी करबानी कर रहा ह तम अनपन वकत की करबानी करत हो। वह अनपन जमीर तक की करबानी कर दता ह। म तो ऐस आदमी को कही जयादा इजजत क लायक समझती ह।

पठािनन न कहा-तम इस छोकरी की बातो म न आ जाना बटा, जाकर घर का धधा दखिो, िजसस गहसथी का िनवाह हो। यह सलानीपन उन लोगो को चािहए, जो घर क िनखिटट ह। तमह अनललाह न इजजत दी ह, मतरयबा िदया ह, बाल-बचच िदए ह। तम इन खिरागातो म न पडो।

अनमर को अनब टोिपया बचन स फसरयत िमल गई थी। बिढया को रणकादवी क दवारा िचकन का काम इतना जयादा िमल जाता था िक टोिपया कौन काढता- सलीम क घर स कोई-न-कोई काम आता ही रहता था। उसक जिरए स और घरो स भी काफी काम िमल जाता था। सकीना क घर म कछ खिशहाली नजर आती थी। घर की

75 www.hindustanbooks.com

पताई हो गई थी, दवार पर नया परदा पड गया था, दो खिाट नई आ गई थी, खिाटो पर दिरया भी नई थी, कई बरतन नए आ गए थ। कपड-लततो की भी कोई िशकायत न थी। उदरय का एक अनखिबार भी खिाट पर रखिा हआ था। पठािनन को अनपन अनचछ िदनो म भी इसस जयादा सम' िन हई थी। बस, उस अनगर कोई गम था, तो यह िक सकीना शादी करन पर राजी न होती थी।

अनमर यहा स चला, तो अनपनी भल पर लिजजत था। सकीना क एक ही वाकय न उसक मन की सारी शका शात कर दी थी। डॉकटर साहब स उसकी शरधदा िफर उतनी ही गहरी हो गई थी। सकीना की बिधदमतताा , िवचार-सौषठव, सझ और िनभीकता न तो चिकत और मगध कर िदया था। सकीना उसका पिरचय िजतना ही गहरा होता था, उतना ही उसका अनसर भी गहरा होता था। सखिदा अनपनी परितभा और गिरमा स उस पर शासन करती थी। वह शासन उस अनिपरय था। सकीना अनपनी नमरता और मधरता स उस पर शासन करती थी। वह शासन उस िपरय था। सखिदा म अनिधकार का गवरय था। सकीना म समपरयण की दीनता थी। सखिदा अनपन को पित स बिधदमान और कशल समझती थी। सकीना समझती थी, म इनक आग कया ह-

डॉकटर साहब न मसकराकर पछा-तो तमहारा यही िनशचिय ह िक म इसतीफा द द- वासतव म मन इसतीफा िलखि रखिा ह और कल द दगा। तमहारा सहयोग म नही खिो सकता। म अनकला कछ भी न कर सकगा। तमहार जान क बाद मन ठड िदल स सोचा तो मालम हआ, म वयथरय क मोह म पडा हआ ह। सवामी दयाननद क पास कया था जब उनहोन आयरयसमाज की बिनयाद डाली-

अनमरकानत भी मसकराया-नही, मन ठड िदल स सोचा तो मालम हआ िक म गलती पर था। जब तक रपय का कोई माकल इतजाम न हो जाए, आपको इसतीफा दन की जररत नही।

डॉकटर साहब न िवसमय स कहा-तम वयगय कर रह हो-

'नही, मन आपस बअनदबी की थी उस कषमा कीिजए।'

76 www.hindustanbooks.com

सोलहइधर कछ िदनो स अनमरकानत मयिनिसपल बोडरय का मबर हो गया था। लाला समरकानत का नगर म इतना

परभाव था और जनता अनमरकानत को इतना चाहती थी िक उस धोला भी नही खिचरय करना पडा और वह चन िलया गया। उसक मकाबल म एक नामी वकील साहब खिड थ। उनह उसक चौथाई वोट भी न िमल। सखिदा और लाला समरकानत दोनो ही न उस मना िकया था। दोनो ही उस घर क कामो म फसाना चाहत थ। अनब वह पढना छोड चका था और लालाजी उसक माथ सार भार डालकर खिद अनलग हो जाना चाहत थ। इधर-उधर क कामो म पडकर वह घर का काम कया कर सकगा। एक िदन घर म छोटा-मोटा तफान आ गया। लालाजी और सखिदा एक तरफ थ, अनमर दसरी तरफ और नना मधयसथ थी।

लालाजी न तोद पर हाथ फरकर कहा-धोबी का कतता, घर का न घाट का। भोर स पाठशाला जाओ, साझ हो तो कागरस म बठो अनब यह नया रोग और बसाहन को तयार हो। घर म लगा दो आग ।

सखिदा न समथरयन िकया-हा, अनब तमह घर का काम-धधा दखिना चािहए या वयथरय क कामो म फसना- अनब तक तो यह था िक पढ रह ह। अनब तो पढ-िलखि चक हो। अनब तमह अनपना घर सभालना चािहए। इस तरह क काम तो व उठाव, िजनक घर दो-चार आदमी हो। अनकल आदमी को घर स ही फसरयत नही िमल सकती। ऊपर क काम कहा स कर-

अनमर न कहा-िजस आप लोग रोग और ऊपर का काम और वयथरय का झझट कह रह ह, म उस घर क काम स कम जररी नही समझता। िफर जब तक आप ह, मझ कया िचता- और सच तो यह ह िक म इस काम क िलए बनाया ही नही गया। आदमी उसी काम म सफल होता ह, िजसम उसका जी लगता हो। लन-दन, बिनज-वयापार म मरा जी िबलकल नही लगता। मझ डर लगता ह िक कही बना-बनाया काम िबगाड न बठ।

लालाजी को यह कथन सारहीन जान पडा। उनका पतर बिनज-वयवसाय क काम म कचचा हो, यह अनसभव था। पोपल मह स पान चबात हए बोल-यह सब तमहारी मटमरदी ह। और कछ नही, म न होता, तो तम कया अनपन बाल-बचचो का पालन-पोषण न करत- तम मझी को पीसना चाहत हो। एक लडक वह होत ह, जो घर सभालकर बाप को छटटी दत ह। एक तम हो िक बाप की हडिडया तक नही छोडना चाहत।

बात बढन लगी। सखिदा न मामला गमरय होत दखिा, तो चप हो गई। नना उगिलयो स दोनो कान बद करक घर म आ बठी। यहा दोनो पहलवानो म मललय' होता रहा। यवक म चसती थी, फती थी, लचक थी बढ म पच था, दम था, रोब था। पराना िफकत बार-बार उस दबाना चाहता था पर जवान पटठा नीच स सरक जाता था। कोई हाथ, कोई घात न चलता था।

अनत म लालाजी न जाम स बाहर होकर कहा-तो बाबा, तम अनपन बाल-बचच लकर अनलग हो जाओ, म तमहारा बोझ नही सभाल सकता। इस घर म रहोग, तो िकराया और घर म जो कछ खिचरय पडगा उसका आधा चपक स िनकालकर रखि दना पडगा। मन तमहारी िजदगी भर का ठका नही िलया ह। घर को अनपना समझो, तो तमहारा सब कछ ह। ऐसा नही समझत, तो यहा तमहारा कछ नही ह। जब म मर जाऊ, तो जो कछ हो आकर ल लना।

अनमरकानत पर िबजली-सी िगर पडी। जब तक बालक न हआ था और वह घर स फटा-फटा रहता था, तब उस आघात की शका दो-एक बार हई थी, पर बालक क जनम क बाद स लालाजी क वयवहार और सवभाव म

77 www.hindustanbooks.com

वातसलय की िसनगधता आ गई थी। अनमर को अनब इस कठोर आघात की िबलकल शका न रही थी। लालाजी को िजस िखिलौन की अनिभलाषा थी, उनह वह िखिलौना दकर अनमर िनिशचत हो गया था, पर आज उस मालम हआ वह िखिलौना माया की जजीरो को तोड न सका।

िपता पतर की टालमटोल पर नाराज हो घडक-िझडक, मह फलाए, यह तो उसकी समझ म आता था, लिकन िपता पतर स घर का िकराया और रोिटयो का खिचरय माग, यह तो माया-िलपसा की-िनमरयम माया-िलपसा की-पराकाषठा थी। इसका एक ही जवाब था िक वह आज ही सखिदा और उसक बालक को लकर कही और जा िटक। और िफर िपता स कोई सरोकार न रख। और अनगर सखिदा आपितत कर तो उस भी ितलाजिल द द।

उसन िसथर भाव स कहा-अनगर आपकी यही इचछा ह तो यही सही।

लालाजी न कछ िखििसयाकर पछा-सास क बल पर कद रह होग -

अनमर न ितरसकार भर सवर म कहा-दादा, आप घाव पर नमक न िछडक। िजस िपता न जनम िदया, जब उसक घर म मर िलए सथान नही ह, तो कया आप समझत ह म सास और ससर की रोिटया तोडगा- आपकी दया स इतना नीच नही ह। म मजदरी कर सकता ह और पसीन की कमाई खिा सकता ह। म िकसी पराणी स दया की िभकषा माफना अनपन आतम-सममान क िलए घातक समझता ह। ईशवर न चाहा तो म आपको िदखिा दगा िक म मजदरी करक भी जनता की सवा कर सकता ह।

समरकानत न समझा, अनभी इसका नशा नही उतरा। महीना गहसथी क चरख म पडगा तो आख खिल जाएगी। चपचाप बाहर चल गए। और अनमर उसी वकत एक मकान की तलाश करन चला।

उसक चल जान क बाद लालाजी िफर अनदर गए। उनह आशा थी िक सखिदा उनक घाव पर मरहम रखगी पर सखिदा उनह अनपन दवार क सामन दखिकर भी बाहर न िनकली। कोई िपता इतना कठोर हो सकता ह , इसकी वह कलपना भी न कर सकती थी। आिखिर यह लाखिो की सपितत िकस काम आएगी - अनमर घर क काम-काज स अनलग रहता ह, यह सखिदा को खिद बरा मालम होता था। लालाजी इसक िलए पतर को ताडना दत ह, यह भी उिचत ही था लिकन घर का और भोजन का खिचरय माफना यह तो नाता ही तोडना था। तो जब वह नाता तोडत ह तो वह रोिटयो क िलए उनकी खिशामद न करगी। घर म आग लग जाए, उसस कोई मतलब नही। उसन अनपन सार गहन उतार डाल। आिखिर यह गहन भी तो लालाजी ही न िदए ह। मा की दी हई चीज भी उतार फकी। मा न भी जो कछ िदया था, दहज की परौती ही म तो िदया था। उस भी लालाजी न अनपनी बही म टाक िलया होगा। वह इस घर स कवल एक साडी पहनकर जाएगी। भगवान उसक मनन को कशल स रख, उस िकसी की कया परवाह यह अनमलय रतन तो कोई उसस छीन नही सकता।

अनमर क परित इस समय उसक मन म सचची सहानभित उतपनन हई। आिखिर मयिनिसपिलटी क िलए खिड होन म कया बराई थी- मान और परितषठा िकस पयारी नहीहोती - इसी मबरी क िलए लोग लाखिो खिचरय करत ह। कया वहा िजतन मबर ह, वह सब घर क िनखिटट ही ह - कछ नाम करन की, कछ काम करन की लालसा पराणी मातर को होती ह। अनगर वह सवाथरय साधन पर अनपना समपरयण नही करत, तो कोई ऐसा काम नही करत, िजसका यह दड िदया जाए। कोई दसरा आदमी पतर क इस अननराग पर अनपन को धानय मानता, अनपन भागय को सराहता।

सहसा अनमर न आकर कहा-तमन आज दादा की बात सन ली - अनब कया सलाह ह -

'सलाह कया ह, आज ही यहा स िवदा हो जाना चािहए। यह फटकार पान क बाद तो म इस घर म पानी

78 www.hindustanbooks.com

पीना हराम समझती ह। कोई घर ठीक कर लो।'

'वह तो ठीक कर आया। छोटा-सा मकान ह, साफ-सथरा, नीचीबाग म। दस रपय िकराया ह।'

'म भी तयार ह।'

'तो एक तागा लाऊ ?'

'कोई जररत नही। पाव-पाव चलग।'

'सदक, िबछावन यह सब तो ल चलना ही पडगा ?'

'इस घर म हमारा कछ नही ह। मन तो सब गहन भी उतार िदए। मजदरो की िसतरया गहन पहनकर नही बठा करती।'

सतरी िकतनी अनिभमािननी ह, यह दखिकर अनमरकानत चिकत हो गया। बोला-लिकन गहन तो तमहार ह। उन पर िकसी का दावा नही ह। िफर आधो स जयादा तो तम अनपन साथ लाई थी।

'अनममा न जो कछ िदया, दहज की परौती म िदया। लालाजी न जो कछ िदया, वह यह समझकर िदया िक घर ही म तो ह। एक-एक चीज उनकी बही म दजरय ह। म गहनो को भी दया की िभकषा समझती ह। अनब तो हमारा उसी चीज पर दावा होगा, जो हम अनपनी कमाई स बनवाएग।'

अनमर गहरी िचता म डब गया। यह तो इस तरह नाता तोड रही ह िक एक तार भी बाकी न रह। गहन औरतो को िकतन िपरय होत ह, यह वह जानता था। पतर और पित क बाद अनगर उनह िकसी वसत स परम होता ह, तो वह गहन ह। कभी-कभी तो गहनो क िलए वह पतर और पित स भी तन बठती ह। अनभी घाव ताजा ह, कसक नही ह। दो-चार िदन क बाद यह िवतषणा जलन और अनसतोष क रप म परकट होगी। िफर तो बात-बात पर तान िमलग, बात-बात पर भागय का रोना होगा। घर म रहना मिशकल हो जाएगा।

बोला-म तो यह सलाह दगा सखिदा, जो चीज अनपनी ह, उस अनपन साथ ल चलन म म कोई बराई नही समझता।

सखिदा न पित को सगवरय दिषटि स दखिकर कहा-तम समझत होग, म गहनो क िलए कोन म बठकर रोऊगी और अनपन भागय को कोसगी। िसतरया अनवसर पडन पर िकतना तयाग कर सकती ह, यह तम नही जानत। म इस फटकार क बाद इन गहनो की ओर ताकना भी पाप समझती ह, इनह पहनना तो दसरी बात ह। अनगर तम डरत हो िक म कल ही स तमहारा िसर खिान लगगी, तो म तमह िवशवास िदलाती ह िक अनगर गहनो का नाम मरी जबान पर आए, तो जबान काट लना। म यह भी कह दती ह िक म तमहार भरोस पर नही जा रही ह। अनपनी गजर भर को आप कमा लगी। रोिटयो म जयादा खिचरय नही होता। खिचरय होता ह आडबर म। एक बार अनमीरी की शान छोड दो, िफर चार आन पस म काम चलता ह।

नना भाभी को गहन उतारकर रखित दखि चकी थी। उसक पराण िनकल जा रह थ िक अनकली इस घर म कस रहगी- बचच क िबना तो वह घडी भर भी नही रह सकती। उस िपता, भाई, भावज सभी पर करोध आ रहा था। दादा को कया सझी- इतना धान तो घर म भरा हआ ह, वह कया होगा- भया ही घडी भर दकान पर बठ जात, तो कया िबगड जाता था- भाभी को भी न जान कया सनक सवार हो गई। वह न जाती, तो भया दो-चार िदन म िफर लौट ही आत। भाभी क साथ वह भी चली जाए, तो दादा को भोजन कौन दगा- िकसी और क हाथ का

79 www.hindustanbooks.com

बनाया खिात भी तो नही। वह भाभी को समझाना चाहती थी पर कस समझाए- यह दोनो तो उसकी तरफ आख उठाकर दखित भी नही। भया न अनभी स आख फर ली। बचचा भी कसा खिश ह- नना क द:खि का पारावार नही ह ।

उसन जाकर बाप स कहा-दादा, भाभी तो सब गहन उतारकर रख दती ह।

लालाजी िचितत थ। कछ बोल नही। शायद सना ही नही।

नना न जरा और जोर स कहा-भाभी अनपन सब गहन उतारकर रख दती ह।

लालाजी न अननमन भाव स िसर उठाकर कहा-गहन कया कर रही ह-

उतार-उतारकर रख दती ह।'

'तो म कया कर?'

'तम जाकर उनस कहत कयो नही?'

'वह नही पहनना चाहती, तो म कया कर ।'

'तमही न उनस कहा होगा, गहन मत ल जाना। कया तम उनक बयाह क गहन भी ल लोग?'

'हा, म सब ल लगा। इस घर म उसका कछ भी नही ह।'

'यह तमहारा अननयाय ह।'

'जा अनदर बठ, बक-बक मत कर ।'

'तम जाकर उनह समझात कयो नही?'

'तझ बडा ददरय आ रहा ह, त ही कयो नही समझाती?'

'म कौन होती ह समझान वाली- तम अनपन गहन ल रह हो, तो वह मर कहन स कयो पहनन लगी?'

दोनो कछ दर तक चपचाप रह। िफर नना न कहा-मझस यह अननयाय नही दखिा जाता। गहन उनक ह। बयाह क गहन तम उनस नही ल सकत।

'त यह कानन कब स जान गई।'

'नयाय कया ह और अननयाय कया ह, यह िसखिाना नही पडता। बचच को भी बकसर सजा दो तो वह चपचाप न सहगा।'

'मालम होता ह, भाई स यही िवदया सीखिती ह।'

'भाई स अनगर नयाय-अननयाय का जञान सीखिती ह, तो कोई बराई नही।'

'अनचछा भाई, िसर मत खिा, कह िदया अनदर जा। म िकसी को मनान-समझान नही जाता। मरा घर ह, इसकी सारी सपदा मरी ह। मन इसक िलए जान खिपाई ह। िकसी को कयो ल जान द?'

नना न सहसा िसर झका िलया और जस िदल पर जोर डालकर कहा-तो िफर म भी भाभी क साथ चली जाऊगी।

80 www.hindustanbooks.com

लालाजी की मदरा कठोर हो गई-चली जा, म नही रोकता। ऐसी सतान स बसतान रहना ही अनचछा। खिाली कर दो मरा घर, आज ही खिाली कर दो। खिब टाग फलाकर सोऊगा। कोई िचता तो न होगी। आज यह नही ह, आज वह नही ह, यह तो न सनना पडगा। तमहार रहन स कौन सखि था मझ-

नना लाल आख िकए सखिदा स जाकर बोली-भाभी, म भी तमहार साथ चलगी।

सखिदा न अनिवशवास क सवर म कहा-हमार साथ हमारा तो अनभी कही घर-दवार नही ह। न पास पस ह, न बरतन-भाड, न नौकर-चाकर। हमार साथ कस चलोगी- इस महल म कौन रहगा-

नना की आख भर आइ-जब तमही जा रही हो, तो मरा यहा कया ह-

पगली िसललो आई और ठटठा मारकर बोली-तम सब जन चल जाओ, अनब म इस घर की रानी बनगी। इस कमर म इसी पलग पर मज स सोऊगी। कोई िभखिारी दवार पर आएगा तो झाड लकर दौडगी।

अनमर पगली क िदल की बात समझ रहा था पर इतना बडा खिटला लकर कस जाए घर म एक ही तो रहन लायक कोठरी ह। वहा नना कहा रहगी और यह पगली तो जीना महाल कर दगी। नना स बोला-तम हमार साथ चलोगी, तो दादा का खिाना कौन बनाएगा, नना- िफर हम कही दर तो नही जात। म वादा करता ह, एक बार रोज तमस िमलन आया करगा। तम और िसललो दोनो रहो। हम जान दो।

नना रो पडी-तमहार िबना म इस घर म कस रहगी भया, सोचो िदन-भर पड-पड कया करगी- मझस तो िछन भर भी न रहा जाएगा। मनन की याद कर-करक रोया करगी। दखित हो भाभी, मरी ओर ताकता भी नही।

अनमर न कहा-तो मनन को छोड जाऊ- तर ही पास रहगा।

सखिदा न िवरोध िकया-वाह कसी बात कर रह हो- रो-रोकर जान द दगा। िफर मरा जी भी तो न मानगा।

शाम को तीनो आदमी घर स िनकल। पीछ-पीछ िसललो भी हसती हई चली जाती थी। सामन क दकानदार न समझा, कही नवत जाती ह पर कया बात ह, िकसी क दह पर छलला भी नही न चादर, न धाराऊ कपड ।

लाला समरकानत अनपन कमर म बठ हकका पी रह थ। आख उठाकर भी न दखिा। एक घट क बाद वह उठ , घर म ताला डाल िदया और िफर कमर म आकर लट रह।

एक दकानदार न आकर पछा-भया और बीवी कहा गए, लालाजी-

लालाजी न मह फरकर जवाब िदया-मझ नही मालम-मन सबको घर स िनकाल िदया। मन धान इसिलए नही कमाया ह िक लोग मौज उडाए। जो धान को िमटटी समझ, उस धान का मलय सीखिना होगा। म आज भी अनटठारह घट रोज काम करता ह। इसिलए नही िक लडक धान को िमटटी समझ। मरी ही गोद क लडक मझ ही आख िदखिाए। धान का धान द, ऊपर स धौस भी सन। बस, जबान न खिोल, चाह कोई घर म आग लगा द। घर का काम चलह म जाए, तमह सभाआ म, जलसो म आनद आता ह, तो जाओ, जलसो स अनपना िनबाह भी करो। ऐसो क िलए मरा घर नही। लडका वही ह, जो कहना सन। जब लडका अनपन मन का हो गया तो कसा लडका ।

रणका को जयोही सललो न खिबर दी, वह बदहवास दौडी आइ, मानो बटी और दामाद पर कोई बडा सकट आ गया ह। वह कया गर थी, उनस कया कोई नाता ही नही- उनको खिबर तक न दी और अनलग मकान ल िलया।

81 www.hindustanbooks.com

वाह यह भी कोई लडको का खल ह। दोनो िबललल। छोकरी तो ऐसी न थी, पर लौड क साथ उसका भी िसर िफर गया।

रात क आठ बज गए थ। हवा अनभी तक गमरय थी। आकाश क तार गदरय स धाधाल हो रह थ। रणका पहची, तो तीनो िनकलए कोठ की एक चारपाई पर बराबर छत पर मन मार बठ थ। सार घर म अनधकार छाया हआ था। बचारो पर गहसथी की नई िवपितता पडी थी। पास एक पसा नही। कछ न सझता था, कया कर।

अनमर न उनह दखित ही कहा-अनर तमह कस खिबर िमल गई अनममाजी अनचछा, इस चडल िसललो न जाकर कहा होगा। कहा ह अनभी खिबर लता ह ।

रणका अनधोर म जीन पर चढन स हाग गई थी। चादर उतारती हई बोली-म कया दशमन थी िक मझस उसन कह िदया तो बराई की- कया मरा घर न था, या मर घर रोिटया न थी- म यहा एक कषण-भर तो रहन न दगी। वहा पहाड-सा घर पडा हआ ह, यहा तम सब-क-सब एक िबल म घस बठ हो। उठो अनभी। बचचा मार गमी क कमहला गया होगा। यहा खिाट भी तो नही ह और इतनी-सी जगह म सोओग कस- त तो ऐसी न थी सखिदा, तझ कया हो गया- बड-बढ दो बात कह, तो गम खिाना होता ह िक घर स िनकल खिड होत ह- कया इनक साथ तरी बिधद भी भरषटि हो गई-

सखिदा न सारा वतात कह सनाया और इस ढग स िक रणका को भी लाला समरकानत की ही जयादती मालम हई। उनह अनपन धान का घमड ह तो उस िलए बठ रह। मरन लग, तो साथ लत जाए ।

अनमर न कहा-दादा को यह खियाल न होगा िक य सब घर स चल जाएग।

सखिदा का करोध इतनी जलद शात होन वाला न था। बोली-चलो, उनहोन साफ कहा, यहा तमहारा कछ नही ह। कया वह एक दफ भी आकर न कह सकत थ, तम लोग कहा जा रह हो- हम घर स िनकल। वह कमर म बठ टकर-टकर दखिा िकए। बचच पर भी उनह दया न आई। जब इतना घमड ह, तो यहा कया आदमी ही नही ह- वह अनपना महल लकर रह, हम अनपनी महनत-मजरी कर लग। ऐसा लोभी आदमी तमन कभी दखिा था अनममा, बीवी गइ, तो इनह भी डाट बतलाइ। बचारी रोती चली आइ।

रणका न नना का हाथ पकडकर कहा-अनचछा, जो हआ अनचछा ही हआ, चलो दर हो रही ह। म महरािजन स भोजन को कह आई ह। खिाट भी िनकलवा आई ह। लाला का घर न उजडता, तो मरा कस बसता-

नीच परकाश हआ। िसललो न कडव तल का िचराग जला िदया था। रणका को यहा पहचाकर बाजार दौडी गई। िचराग, तल और एक झाड लाई। िचराग जलाकर घर म झाड लगा रही थी।

सखिदा न बचच को रणका की गोद म दकर कहा-आज तो कषमा करो अनममा, िफर आग दखिा जाएगा। लालाजी को यह कहन का मौका कयो द िक आिखिर ससराल भागा। उनहोन पहल ही तमहार घर का दवार बद कर िदया ह। हम दो-चार िदन यहा रहन दो, िफर तमहार पास चल जाएग। जरा हम दखि तो ल, अनपन बत पर रह सकत ह या नही-

अनमर की नानी मर रही थी। अनपन िलए तो उस िचता न थी। सलीम या डॉकटर क यहा चला जाएगा। यहा सखिदा और नना दोनो ब-खिाट क कस सोएगी- कल ही कहा स धान बरस जाएगा- मगर सखिदा की बात की बात कस काट।

82 www.hindustanbooks.com

रणका न बचच की मिचछया लकर कहा-भला, दखि लना जब म मर जाऊ। अनभी तो म जीती ही ह। वह घर भी तो तरा ही ह। चल जलदी कर।

सखिदा न दढता स कहा-अनममा, जब तक हम अनपनी कमाई स अनपना िनबाह न करन लगग, तब तक तमहार यहा न जाएग जाएग पर महमान की तरह। घट-दो घट बठ और चल आए।

रणका न अनमर स अनपील की-दखित हो बटा, इसकी बात। यह मझ भी गर समझती ह।

सखिदा न वयिथत कठ स कहा-अनममा, बरा न मानना आज दादाजी का बताव दखिकर मझ मालम हो गया िक धािनयो को अनपना धान िकतना पयारा होता ह- कौन जान कभी तमहार मन म भी ऐस ही भाव पदा हो तो ऐसा अनवसर आन ही कयो िदया जाए- जब हम महमान की तरह...

अनमर न बात काटी। रणका क कोमल हदय पर िकतना कठोर आघात था।

'तमहार जान म तो ऐसा कोई हजरय नही ह सखिदा तमह बडा कषटि होगा।'

सखिदा न तीवर सवर म कहा-तो कया तमही कषटि सह सकत हो- म नही सह सकती- तम अनगर कषटि स डरत हो, तो जाओ। म तो अनभी कही नही जान की।

नतीजा यह हआ िक रणका न िसललो को घर भजकर अनपन िबसतर मगवाए। भोजन पक चका था इसिलए भोजन भी मगवा िलया गया। छत पर झाड दी गई और जस धमरयशाला म यातरी ठहरत ह, उसी तरह इन लोगो न भोजन करक रात काटी। बीच-बीच म मजाक भी हो जाता था। िवपितता म जो चारो ओर अनधकार दीखिता ह, वह हाल न था। अनधकार था, पर ऊषाकाल का। िवपितता थी पर िसर पर नही, परो क नीच।

दसर िदन सवर रणका घर चली गइ। उनहोन िफर सबको साथ ल चलन क िलए जोर लगाया पर सखिदा राजी न हई। कपड-लततो, बरतन-भाड, खिाट-खिटोली कोई चीज लन पर राजी न हई। यहा तक रणका नाराज हो गइ। और अनमरकानत को भी बरा मालम हआ। वह इस अनभाव म भी उस पर शासन कर रही थी।

रणका क जान क बाद अनमरकानत सोचन लगा-रपय-पस का कस परबध हो- यह समय परी पाठशाला का था। वहा जाना लाजमी था। सखिदा अनभी सवर की नीद म मगन थी, और नना िचतातर बठी सोच रही थी-कस घर का काम चलगा- उस वकत अनमर पाठशाला चला गया पर आज वहा उसका जी िबलकल न लगा। कभी िपता पर करोध आता, कभी सखिदा पर, कभी अनपन आप पर। उसन अनपन िनवासन क िवषय म डॉकटर साहब स कछ न कहा। वह िकसी की सहानभित न चाहता था। आज अनपन िमतरो म स वह िकसी क पास न गया। उस भय हआ, लोग उसका हाल-सनकर िदल म यही समझग। म उनस कछ मदद चाहता ह।

दस बज घर लौटा, तो दखिा िसललो आटा गथ रही ह और नना चौक म बठी तरकारी पका रही ह। पछन की िहममत न पडी, पस कहा स आए- नना न आप ही कहा-सनत हो भया, आज िसललो न हमारी दावत की ह। लकडी, घी, आटा, दाल सब बाजार स लाई ह। बतरयन भी िकसी अनपन जान-पहचान क घर स माग लाई ह।

िसललो बोल उठी-म दावत नही करती ह। म अनपन पस जोडकर ल लगी।

नना हसती हई बोली-यह बडी दर स मझस लड रही ह। यह कहती ह-म पस ल लगी म कहती ह-त तो दावत कर रही ह। बताओ भया, दावत ही तो कर रही ह-

'हा और कया दावत तो ह ही।'

83 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत पगली िसललो क मन का भाव ताड गया। वह समझती ह, अनगर यह न कहगी, तो शायद यह लोग उसक रपयो की लाई हई चीज लन स इकार कर दग।

िसललो का पोपला मह िखिल गया। जस वह अनपनी दिषटि म कछ ऊची हो गई ह, जस उसका जीवन साथरयक हो गया ह। उसकी रपहीनता और शषकता मानो माधयरय म नहा उठी। उसन हाथ धाोकर अनमरकानत क िलए लोट का पानी रखि िदया, तो पाव जमीन पर न पडत थ।

अनमर को अनभी तक आशा थी िक दादा शायद सखिदा और नना को बला लग पर जब अनब कोई बलान न आया और न वह खिद आए तो उसका मन खिकरा हो गया।

उसन जलदी स सनान िकया पर याद आया, धाोती तो ह ही नही। गल की चादर पहन ली, भोजन िकया और कछ कमान की टोह म िनकला।

सखिदा न मह लटकाकर पछा-तम तो ऐस िनिशचित होकर बठ रह, जस यहा सारा इतजाम िकए जा रह हो। यहा लाकर िबठाना ही जानत हो। सबह स गायब हए तो दोपहर को लौट। िकसी स कछ काम-धानधो क िलए कहा, या खिदा छपपर गाडकर दगा- यो काम न चलगा, समझ गए-

चौबीस घट क अनदर सखिदा क मनोभावो म यह पिरवतरयन दखिकर अनमर का मन उदास हो गया। कल िकतन बढ-बढकर बात कर रही थी, आज शायद पछता रही ह िक कयो घर स िनकल ।

ईख सवर म बोला-अनभी तो िकसी स कछ नही कहा। अनब जाता ह िकसी काम की तलाश म।

'म जरा जज साहब की सतरी क पास जाऊगी। उनस िकसी काम को कहगी। उन िदनो तो मरा बडा आदर करती थी। अनब का हाल नही जानती।'

अनमर कछ नही बोला-यह मालम हो गया िक उसकी किठन परीकषा क िदन आ गए।

अनमरकानत को बाजार क सभी लोग जानत थ। उसन एक खिददर की दकान स कमीशन पर बचन क िलए कई थान खिददर की सािडया, जफर, कतरज, चादर आिद ल ली और उनह खिद अनपनी पीठ पर लादकर बचन चला।

दकानदार न कहा-यह कया करत हो बाब, एक मजर ल लो। लोग कया कहग- भला लगता ह।

अनमर क अनत:करण म कराित का तफान उठ रहा था। उसका बस चलता तो आज धानवानो का अनत कर दता, जो ससार को नरक बनाए हए ह। वह बोझ उठाकर िदखिाना चाहता था, म मजरी करक िनबाह करना इसस कही अनचछा समझता ह िक हराम की कमाई खिाऊ। तम सब मोटी तोद वाल हरामखिोर हो , पकक हरामखिोर हो। तम मझ नीच समझत हो इसिलए िक म अनपनी पीठ पर बोझ लाद हए ह। कया यह बोझ तमहारी अननीित और अनधमरय क बोझ स जयादा लजजासपद ह, जो तम अनपन िसर पर लाद िफरत हो और शरमात जरा भी नही- उलट और घमड करत हो-

इस वकत अनगर कोई धानी अनमरकानत को छड दता, तो उसकी शामत ही आ जाती। वह िसर स पाव तक बाईद बना हआ था, िबजली का िजदा तार।

84 www.hindustanbooks.com

सतरहअनमरकानत खिादी बच रहा ह। तीन बज होग, ल चल रही ह, बगल उठ रह ह। दकानदार दकानो पर सो

रह ह, रईस महलो म सो रह ह मजर पडो क नीच सो रह ह और अनमर खिादी का गटठा लाद, पसीन म तर, चहरा सखिरय, आख लाल, गली-गली घमता िफरता ह।

एक वकील साहब न खिस का परदा उठाकर दखिा और बोल-अनर यार, यह कया गजब करत हो, मयिनिसपल किमशनरी की तो लाज रखित, सारा भपर कर िदया। कया कोई मजर नही िमलता था-

अनमर न गटठा िलए-िलए कहा-मजरी करन स मयिनिसपल किमशनरी की शान म बटटा नही लगता। बकरा लगता ह-धाोख-धाडी की कमाई खिान स।

'वहा धाोख-धाडी की कमाई खिान वाला कौन ह, भाई- कया वकील, डॉकटर, परोफसर, सठ-साहकार धाोख-धाडी की कमाई खिात ह?'

'यह उनक िदल स पिछए। म िकसी को कयो बरा कह?'

'आिखिर आपन कछ समझकर ही तो िफकरा चसत िकया?'

'अनगर आप मझस पछना ही चाहत ह तो म कह सकता ह, हा, खिात ह। एक आदमी दस रपय म गजर करता ह, दसर को दस हजार कयो चािहए- यह धााधाली उसी वकत तक चलगी, जब तक जनता की आख बद ह। कषमा कीिजएगा, एक आदमी पख की हवा खिाए और खिसखिान म बठ, और दसरा आदमी दोपहर की धप म तप, यह न नयाय ह, न धमरय-यह धााधाली ह।'

'छोट-बड तो भाई साहब हमशा रह ह और हमशा रहग। सबको आप बराबर नही कर सकत । '

'म दिनया का ठका नही लता अनगर नयाय अनचछी चीज ह तो वह इसिलए खिराब नही हो सकती िक लोग उसका वयवहार नही करत।'

'इसका आशय यह ह िक आप वयिकतवाद को नही मानत, समिषटिवाद क कायल ह।'

'म िकसी वाद का कायल नही। कवल नयायवाद का पजारी ह।'

'तो अनपन िपताजी स िबलकल अनलग हो गए?'

'िपताजी न मरी िजदगी भर का ठका नही िलया।'

'अनचछा लाइए, दख आपक पास कया-कया चीज ह?'

अनमरकानत न इन महाशय क हाथ दस रपय क कपड बच।

अनमर आजकल बडा करोधी, बडा कटभाषी, बडा उपरड हो गया ह। हरदम उसकी तलवार मयान स बाहर रहती ह। बात-बात पर उलझता ह। िफर भी उसकी िबकरी अनचछी होती ह। रपया-सवा रपया रोज िमल जाता ह।

तयागी दो परकार क होत ह। एक वह जो तयाग म आनद मानत ह, िजनकी आतमा को तयाग म सतोष और पणरयता का अननभव होता ह, िजनक तयाग म उदारता और सौजनय ह। दसर वह, जो िदलजल तयागी होत ह, िजनका तयाग अनपनी पिरिसथितयो स िवदरोह-मातर ह, जो अनपन नयायपथ पर चलन का तावान ससार स लत ह,

85 www.hindustanbooks.com

जो खिद जलत ह इसिलए दसरो को भी जलात ह। अनमर इसी तरह का तयागी था।

सवसथ आदमी अनगर नीम की पतताी चबाता ह, तो अनपन सवासथय को बढान क िलए वह शौक स पितताया तोड लाता ह, शौक स पीसता और शौक स पीता ह, पर रोगी वही पितताया पीता ह तो नाक िसकोडकर, मह बनाकर, झझलाकर और अनपनी तकदीर को रोकर।

सखिदा जज साहब की पतनी की िसफािरश स बािलका-िवदयालय म पचास रपय पर नौकर हो गई ह। अनमर िदल खिोलकर तो कछ कह नही सकता, पर मन म जलता रहता ह। घर का सारा काम, बचच को सभालना, रसोई पकाना, जररी चीज बाजार स मगाना-यह सब उसक मतथ ह। सखिदा घर क कामो क नगीच नही जाती। अनमर आम कहता ह, तो सखिदा इमली कहती ह। दोनो म हमशा खिट-पट होती रहती ह। सखिदा इस दिरदरावसथा म भी उस पर शासन कर रही ह। अनमर कहता ह, आधा सर दध काफी ह सखिदा कहती ह, सर भर आएगा, और सर भर ही मगाती ह। वह खिद दध नही पीता, इस पर भी रोज लडाई होती ह। वह कहता ह, गरीब ह, मजर ह, हम मजरो की तरह रहना चािहए। वह कहती ह, हम मजर नही ह, न मजरो की तरह रहग। अनमर उसको अनपन आतमिवकास म बाधाक समझता ह और उस बाधा को हटा न सकन क कारण भीतर-ही-भीतर कढता ह।

एक िदन बचच को खिासी आन लगी। अनमर बचच को लकर एक होिमयोपथ क पास जान को तयार हआ। सखिदा न कहा-बचच को मत ल जाओ, हवा लगगी। डॉकटर को बला लाओ। फीस ही तो लगा ।

अनमर को मजबर होकर डॉकटर बलाना पडा। तीसर िदन बचचा अनचछा हो गया।

एक िदन खिबर िमली, लाला समरकानत को जवर आ गया ह। अनमरकानत इस महीन भर म एक बार भी घर नही गया था। यह खिबर सनकर भी न गया। वह मर या िजए, उस कया करना ह- उनह अनपना धान पयारा ह, उस छाती स लगाए रख। और उनह िकसी की जररत ही कया-

पर सखिदा स न रहा गया। वह उसी वकत नना को साथ लकर चल दी। अनमर मन म जल-भनकर रह गया।

समरकानत घर वालो क िसवा और िकसी क हाथ का भोजन न गरहण करत थ। कई िदनो तो उनहोन दध पर काट, िफर कई िदन फल खिाकर रह, लिकन रोटी-दाल क िलए जी तरसता रहता था। नाना पदाथरय बाजार म भर थ, पर रोिटया कहा- एक िदन उनस न रहा गया। रोिटया पकाइ और हौक म आकर कछ जयादा खिा गए। अनजीणरय हो गया। एक िदन दसत आए। दसर िदन जवर हो आया। फलाहार स कछ तो पहल गल चक थ, दो िदन की बीमारी न लसत कर िदया।

सखिदा को दखिकर बोल-अनभी कया आन की जलदी थी बह, दो-चार िदन और दखि लती- तब तक यह धान का साप उड गया होता। वह लौडा समझता ह, मझ अनपन बाल-बचचो स धान पयारा ह। िकसक िलए इसका सचय िकया था- अनपन िलए- तो बाल-बचचो को कयो जनम िदया- उसी लौड को, जो आज मरा शतर बना हआ ह, छाती स लगाए कयो ओझ-सयानो, व?ो-हकीमो क पास दौडा िफरा- खिद कभी अनचछा नही खिाया, अनचछा नही पहना, िकसक िलए- कतपण बना, बईमानी की, दसरो की खिशामद की, अनपनी आतमा की हतया की, िकसक िलए- िजसक िलए चोरी की, वही आज मझ चोर कहता ह।

सखिदा िसर झकाए खिडी रोती रही।

लालाजी न िफर कहा-म जानता ह, िजस ईशवर न हाथ िदए ह, वह दसरो का महताज नही रह सकता। इतना मखिरय नही ह, लिकन मा-बाप की कामना तो यही होती ह िक उनकी सतान को कोई कषटि न हो। िजस तरह

86 www.hindustanbooks.com

उनह मरना पडा, उसी तरह उनकी सतान को मरना न पड। िजस तरह उनह धाकक खिान पड, कमरय-अनकमरय सब करन पड व किठनाइया उनकी सतान को न झलनी पड। दिनया उनह लोभी, सवाथी कहती ह, उनको परवाह नही होती, लिकन जब अनपनी ही सतान अनपना अननादर कर, तब सोचो अनभाग बाप क िदल पर कया बीतती ह- उसस मालम होता ह, सारा जीवन िनषफल हो गया। जो िवशाल भवन एक-एक इट जोडकर खिडा िकया था, िजसक िलए कवार की धप और माघ की वषा सब झली, वह ढह गया, और उसक इट-पतथर सामन िबखिर पड ह। वह घर नही ढह गया वह जीवन ढह गया, सपणरय जीवन की कामना ढह गई।

सखिदा न बालक को नना की गोद स लकर ससर की चारपाई पर सला िदया और पखिा झलन लगी। बालक न बडी-बडी सजग आखिो स बढ दादा की मछ दखिी, और उनक यहा रहन का कोई िवशष परयोजन न दखिकर उनह उखिाडकर फक दन क िलए उ?त हो गया। दोनो हाथो स मछ पकडकर खिीची। लालाजी न 'सी-सी' तो की पर बालक क हाथो को हटाया नही। हनमान न भी इतनी िनदरययता स लका क उपवनोका िवधवस न िकया होगा। िफर भी लालाजी न बालक क हाथो स मछ नही छडाइ। उनकी कामनाए जो पडी एिडया रगड रही थी, इस सपशरय स जस सजीवनी पा गइ। उस सपशरय म कोई ऐसा परसाद, कोई ऐसी िवभित थी। उनक रोम-रोम म समाया हआ बालक जस मिथत होकर नवनीत की भाित परतयकष हो गया हो।

दो िदन सखिदा अनपन नए घर न गई, पर अनमरकानत िपता को दखिन एक बार भी न आया। िसललो भी सखिदा क साथ चली गई थी। शाम को आता, रोिटया पकाता, खिाता और कागरस-दफतर या नौजवान-सभा क कायालय म चला जाता। कभी िकसी आम जलस म बोलता, कभी चदा उगाहता।

तीसर िदन लालाजी उठ बठ। सखिदा िदन भर तो उनक पास रही। सधया समय उनस िवदा मागी। लालाजी सनह-भरी आखिो स दखिकर बोल-म जानता िक तम मरी तीमारदारी ही क िलए आई हो, तो दस-पाच िदन और पडा रहता, बह मन तो जान-बझकर कोई अनपराध नही िकया लिकन कछ अननिचत हआ हो तो उस कषमा करो।

सखिदा का जी हआ मान तयाग द पर इतना कषटि उठान क बाद जब अनपनी गहसथी कछ-कछ जम चली थी, यहा आना कछ अनचछा न लगता था। िफर, वहा वह सवािमनी थी। घर का सचालन उसक अनधीन था। वहा की एक-एक वसत म अनपनापन भरा हआ था। एक-एक तण म उसका सवािभमान झलक रहा था। एक-एक वसत म उसका अननराग अनिकत था। एक-एक वसत पर उसकी आतमा की छाप थी मानो उसकी आतमा ही परतयकष हो गई हो। यहा की कोई वसत उसक अनिभमान की वसत न थी उसकी सवािभमानी कलपना सब कछ होन पर भी तिषटि का आनद न पाती थी। पर लालाजी को समझान क िलए िकसी यिकत की जररत थी। बोली-यह आप कया कहत ह दादा, हम लोग आपक बालक ह। आप जो कछ उपदश या ताडना दग, वह हमार ही भल क िलए दग। मरा जी तो जान को नही चाहता लिकन अनकल मर चल आन स कया होगा- मझ खिद शमरय आती ह िक दिनया कया कह रही होगी। म िजतनी जलदी हो सकगी सबको घसीट लाऊगी। जब तक आदमी कछ िदन ठोकर नही खिा लता, उसकी आख नही खिलती। म एक बार रोज आकर आपका भोजन बना जाएा करगी। कभी बीबी चली आएगी, कभी म चली आऊगी।

उस िदन स सखिदा का यही िनयम हो गया। वह सबर यहा चली आती और लालाजी को भोजन कराक लौट जाती। िफर खिद भोजन करक बािलका िवदयालय चली जाती। तीसर पहर जब अनमरकानत खिादी बचन चला जाता, तो वह नना को लकर िफर आ जाती, और दो-तीन घट रहकर चली जाती। कभी-कभी खिद रणका क पास जाती तो नना को यहा भज दती। उसक सवािभमान म कोमलता थी अनगर कछ जलन थी तो वह कब की शीतल

87 www.hindustanbooks.com

हो चकी थी। वधद िपता को कोई कषटि हो, यह उसस न दखिा जाता था।

इन िदनो उस जो बात सबस जयादा खिटकती थी, वह अनमरकानत का िसर पर खिादी लादकर चलना था। वह कई बार इस िवषय पर उसस झगडा कर चकी थी पर उसक कहन स वह और िजद पकड लता था। इसिलए उसन कहना-सनना छोड िदया था पर एक िदन घर जात समय उसन अनमरकानत को खिादी का गटठर िलए दखि िलया। उस महलल की एक मिहला भी उसक साथ थी। सखिदा मानो धरती म गड गई।

अनमर जयोही घर आया, उसन यही िवषय छड िदया-मालम तो हो गया, िक तम बड सतयवादी हो। दसरो क िलए भी कछ रहन दोग, या सब तमही ल लोग। अनब तो ससार म पिरशरम का महतव ही हो गया। अनब तो बकचा लादना छोडो। तमह शमरय न आती हो, लिकन तमहारी इजजत क साथ मरी इजजत भी तो बधी हई ह। तमह कोई अनिधकार नही िक तम यो मझ अनपमािनत करत िफरो।

अनमर तो कमर कस तयार था ही। बोला-यह तो म जानता ह िक मरा अनिधकार कही कछ नही ह लिकन कया पछ सकता ह िक तमहार अनिधकारो की भी कही सीमा ह, या वह अनसीम ह -

'म ऐसा कोई काम नही करती, िजसम तमहारा अनपमान हो ।'

'अनगर म कह िक िजस तरह मर मजदरी करन स तमहारा अनपमान होता ह, उसी तरह तमहार नौकरी करन स मरा अनपमान होता ह, शायद तमह िवशवास न आएगा।'

'तमहार मान-अनपमान का काटा ससार भर स िनराला हो, तो म लाचार ह।'

'म ससार का गलाम नही ह। अनगर तमह यह गलामी पसद ह, तो शौक स करो। तम मझ मजबर नही कर सकती।'

'नौकरी न कर, तो तमहार रपय बीस आन रोज म घर-खिचरय िनभगा?'

'मरा खियाल ह िक इस मलक म नबब फीसदी आदिमयो को इसस भी कम म गजर करना पडता ह।'

'म उन नबब फीसदी वालो म नही, शष दस फीसदी वालो म ह। मन अनितम बार कह िदया िक तमहारा बकचा ढोना मझ अनसहय ह और अनगर तमन न माना, तो म अनपन हाथो वह बकचा जमीन पर िगरा दगी। इसस जयादा म कछ कहना या सनना नही चाहती।'

इधर डढ महीन स अनमरकानत सकीना क घर न गया था। याद उसकी रोज आती पर जान का अनवसर न िमलता। पदरह िदन गजर जान क बाद उस शमरय आन लगी िक वह पछगी-इतन िदन कयो नही आए, तो कया जवाब दगा- इस शरमा-शरमी म वह एक महीना और न गया। यहा तक िक आज सकीना न उस एक काडरय िलखिकर खििरयत पछी थी और फरसत हो, तो दस िमनट क िलए बलाया था। आज अनममीजान िबरादरी म जान वाली थी। बातचीत करन का अनचछा मौका था। इधर अनमरकानत भी इस जीवन स ऊब उठा था। सखिदा क साथ जीवन कभी सखिी नही हो सकता, इधर इन डढ-दो महीनो म उस काफी पिरचय िमल गया था। वह जो कछ ह, वही रहगा जयादा तबदील नही हो सकता। सखिदा भी जो कछ ह वही रहगी। िफर सखिी जीवन की आशा कहा- दोनो की जीवन-धारा अनलग, आदशरय अनलग, मनोभाव अनलग। कवल िववाह-परथा की मयादा िनभान क िलए वह अनपना जीवन धल म नही िमला सकता, अनपनी आतमा क िवकास को नही रोक सकता। मानव-जीवन का उददशय कछ और भी ह खिाना, कमाना और मर जाना नही।

88 www.hindustanbooks.com

वह भोजन करक आज कागरस-दफतर न गया। आज उस अनपनी िजदगी की सबस महतवपणरय समसया को हल करना था। इस अनब वह और नही टाल सकता। बदनामी की कया िचता- दिनया अनधी ह और दसरो को अनधा बनाए रखिना चाहती ह। जो खिद अनपन िलए नई राह िनकालगा, उस पर सकीणरय िवचार वाल हस, तो कया आशचियरय- उसन खिददर की दो सािडया उस भट दन क िलए ल ली और लपका हआ जा पहचा।

सकीना उसकी राह दखि रही थी। कडी खिनकत ही दवार खिोल िदया और हाथ पकडकर बोली-तम तो मझ भल ही गए। इसी का नाम महबबत ह-

अनमर न लिजजत होकर कहा-यह बात नही ह, सकीना एक लमह क िलए भी तमहारी याद िदल स नही उतरती, पर इधर बडी परशािनयो म फसा रहा।

'मन सना था। अनममा कहती थी। मझ यकीन न आता था िक तम अनपन अनबबाजान स अनलग हो गए। िफर यह भी सना िक तम िसर पर खिददर लादकर बचत हो। म तो तमह कभी िसर पर बोझ न लादन दती। म वह गठरी अनपन िसर पर रखिती और तमहार पीछ-पीछ चलती। म यहा आराम स पडी थी और तम इस धप म कपड लाद िफरत थ। मरा िदल तडप-तडपकर रह जाता था।'

िकतन पयार, मीठ शबद थ िकतन कोमल सनह म डब हए सखिदा क मखि स भी कभी यह शबद िनकल- वह तो कवल शासन करना जानती ह उसको अनपन अनदर ऐसी शिकत का अननभव हआ िक वह उसका चौगना बोझ लकर चल सकता ह, लिकन वह सकीना क कोमल हदय को आघात नही पहचाएगा। आज स वह गटठर लादकर नही चलगा। बोला-दादा की खिदगरजी पर िदल जल रहा था, सकीना वह समझत होग, म उनकी दौलत का भखिा ह। म उनह और उनक दसर भाइयो को िदखिा दना चाहता था िक म कडी-स-कडी महनत कर सकता ह। दौलत की मझ परवाह नही ह। सखिदा उस िदन मर साथ आई थी, लिकन एक िदन दादा न झठ-मठ कहला िदया, मझ बखिार हो गया ह। बस वहा पहच गई। तब स दोनो वकत उनका खिाना पकान जाती ह।

सकीना न सरलता स पछा-तो कया यह भी तमह बरा लगता ह- बढ आदमी अनकल घर म पड रहत ह। अनगर वह चली जाती ह, तो कया बराई करती ह- उनकी इस बात स तो मर िदल म उनकी इजजत हो गई।

अनमर न िखििसयाकर कहा-यह शराफत नही ह सकीना, उनकी दौलत ह, म तमस सच कहता ह, िजसन कभी झठो मझस नही पछा, तमहारा जी कसा ह, वह उनकी बीमारी की खिबर पात ही बकरार हो जाए, यह बात समझ म नही आती। उनकी दौलत उस खिीच ल जाती ह, और कछ नही। म अनब इस नमायश की िजदगी स तग आ गया ह, सकीना म सच कहता ह, पागल हो जाऊगा। कभी-कभी जी म आता ह, सब छोड-छाडकर भाग जाऊ, ऐसी जगह भाग जाऊ, जहा लोगो म आदिमयत हो। आज तझ फसला करना पडगा सकीना, चलो कही छोटी-सी कटी बना ल और खिदगरजी की दिनया स अनलग महनत-मजदरी करक िजदगी बसर कर। तमहार साथ रहकर िफर मझ िकसी चीज की आरज नही रहगी। मरी जान महबबत क िलए तडप रही ह, उस महबबत क िलए नही, िजसकी जदाई म भी िवसाल ह, बिलक िजसकी िवसाल म भी जदाई ह। म वह महबबत चाहता ह, िजसम खवािहश ह, लजजत ह। म बोतल की सखिरय शराब पीना चाहता ह, शायरो की खियाली शराब नही।

उसन सकीना को छाती स लगा लन क िलए अनपनी तरफ खिीचा। उसी वकत दवार खिला और पठािनन अनदर आई। सकीना एक कदम पीछ हट गई। अनमर भी जरा पीछ खिसक गया।

सहसा उसन बात बनाई-आज कहा चली गई थी, अनममा - म यह सािडया दन आया था। तमह मालम तो

89 www.hindustanbooks.com

होगा ही, म अनब खिददर बचता ह।

पठािनन न सािडयो का जोडा लन क िलए हाथ नही बढाया। उसका सखिा, िपचका हआ मह तमतमा उठा सारी झिरया, सारी िसकडन जस भीतर की गमी स तन उठी गली-बझी हई आख जस जल उठी। आख िनकालकर बोली-होश म आ, छोकर यह सािडया ल जा, अनपनी बीवी-बहन को पहना, यहा तरी सािडयो क भख नही ह। तझ शरीफजादा और साफ-िदल समझकर तझस अनपनी गरीबी का दखिडा कहती थी। यह न जानती थी िक त ऐस शरीफ बाप का बटा होकर शोहदापन करगा। बस, अनब मह न खिोलना, चपचाप चला जा, नही आख िनकलवा लगी। त ह िकस घमड म- अनभी एक इशारा कर द, तो सारा महलला जमा हो जाए। हम गरीब ह, मसीबत क मार ह, रोिटयो क महताज ह। जानता ह कयो- इसिलए िक हम आबर पयारी ह, खिबरदार जो कभी इधर का रखि िकया। मह म कािलखि लगाकर चला जा।

अनमर पर फािलज िगर गया, पहाड टट पडा, वजपात हो गया। इन वाकयो स उसक मनोभावो का अननमान हम नही कर सकत। िजनक पास कलपना ह, वह कछ अननमान कर सकत ह। जस सजञा-शनय हो गया, मानो पाषाण परितमा हो। एक िमनट तक वह इसी दशा म खिडा रहा। िफर दोनो सािडया उठा ली और गोली खिाए जानवर की भाित िसर लटकाए, लडखिडाता हआ दवार की ओर चला।

सहसा सकीना न उसका हाथ पकडकर रोत हए कहा-बाबजी, म तमहार साथ चलती ह। िजनह अनपनी आबर पयारी ह, वह अनपनी आबर लकर चाट। म बआबर ही रहगी।

अनमरकानत न हाथ छडा िलया और आिहसता स बोला-िजदा रहग, तो िफर िमलग, सकीना इस वकत जान दो। म अनपन होश म नही ह।

यह कहत हए उसन कछ समझकर दोनो सािडया सकीना क हाथ म रखि दी और बाहर चला गया।

सकीना न िससिकया लत हए पछा-तो आओग कब -

अनमर न पीछ िफरकर कहा-जब यहा मझ लोग शोहदा और कमीना न समझग ।

अनमर चला गया और सकीना हाथो म सािडया िलए दवार पर खिडी अनधकार म ताकती रही।

सहसा बिढया न पकारा-अनब आकर बठगी िक वही दरवाज पर खिडी रहगी- मह म कािलखि तो लगा दी। अनब और कया करन पर लगी हई ह-

सकीना न करोध भरी आखिो स दखिकर कहा-अनममा, आकबत स डरो, कयो िकसी भल आदमी पर तोहमत लगाती हो। तमह ऐसी बात मह स िनकालत शमरय भी नही आती। उनकी निकयो का यह बदला िदया ह तमन तम दिनया म िचराग लकर ढढ आओ, ऐसा शरीफ तमह न िमलगा।

पठािनन न डाट बताई-चप रह, बहया कही की शरमाती नही, ऊपर स जबान चलाती ह। आज घर म कोई मदरय होता, तो िसर काट लता। म जाकर लाला स कहती ह। जब तक इस पाजी को शहर स न िनकाल दगी, मरा कलजा न ठडा होगा। म उसकी िजदगी गारत कर दगी।

सकीना न िनशक भाव स कहा-अनगर उनकी िजदगी गारत हई, तो मरी भी गारत होगी। इतना समझ लो।

बिढया न सकीना का हाथ पकडकर इतन जोर स अनपनी तरफ घसीटा िक वह िगरत-िगरत बची और उसी दम घर स बाहर िनकलकर दवार की जजीर बद कर दी।

90 www.hindustanbooks.com

सकीना बार-बार पकारती रही, पर बिढया न पीछ िफरकर भी न दखिा। वह बजान बिढया िजस एक-एक पग रखिना दभर था, इस वकत आवश म दौडी लाला समरकानत क पास चली जा रही थी।

अनठारह

अनमरकानत गली क बाहर िनकलकर सडक पर आया। कहा जाए- पठािनन इसी वकत दादा क पास जाएगी। जरर जाएगी। िकतनी भयकर िसथित होगी कसा कहराम मचगा- कोई धमरय क नाम को रोएगा, कोई मयादा क नाम को रोएगा। दगा, फरब, जाल, िवशवासघात हराम की कमाई सब मआफ हो सकती ह। नही, उसकी सराहना होती ह। ऐस महानभाव समाज क मिखिया बन हए ह। वशयागािमयो और वयिभचािरयो क आग लोग माथा टकत ह, लिकन श' हदय और िनषकपट भाव स परम करना िन? ह, अनकषमय ह। नही अनमर घर नही जा सकता। घर का दवार उसक िलए बद ह। और वह घर था ही कब- कवल भोजन और िवशराम का सथान था। उसस िकस परम ह-

वह एक कषण क िलए िठठक गया। सकीना उसक साथ चलन को तयार ह, तो कयो न उस साथ ल ल। िफर लोग जी भरकर रोए और पीट और कोस। आिखिर यही तो वह चाहता था लिकन पहल दर स जो पहाड टीला-सा नजर आता था, अनब सामन दखिकर उस पर चढन की िहममत न होती थी। दश भर म कसा हाहाकर मचगा। एक मयिनिसपल किमशनर एक मसलमान लडकी को लकर भाग गया। हरक जबान पर यही चचा होगी। दादा शायद जहर खिा ल। िवरोिधयो को तािलया पीटन का अनवसर िमल जाएगा। उस टालसटाय की एक कहानी याद आई, िजसम एक परष अनपनी परिमका को लकर भाग जाता ह पर उसका िकतना भीषण अनत होता ह। अनमर खिद िकसी क िवषय म ऐसी खिबर सनता, तो उसस घणा करता। मास और रकत स ढका हआ ककाल िकतना सदर होता ह। रकत और मास का आवरण हट जान पर वही ककाल िकतना भयकर हो जाता ह। ऐसी अनगवाह सदर और सरस को िमटाकर बीभतस को मितमान कर दती ह। नही, अनमर अनब घर नही जा सकता।

अनकसमात बचच की याद आ गई। उसक जीवन क अनधकार म वही एक परकाश था उसका मन उसी परकाश की ओर लपका। बचच की मोिहनी मित सामन आकर खिडी हो गई।

िकसी न पकारा-अनमरकानत, यहा कस खिड हो-

अनमर न पीछ िफरकर दखिा तो सलीम था। बोला-तम िकधर स-

'जरा चौक की तरफ गया था।'

'यहा कस खिड हो- शायद माशक स िमलन जा रह हो?'

वही स आ रहा ह यार, आज गजब हो गया। वह शतान की खिाला बिढया आ गई। उसन ऐसी-ऐसी सलावत सनाइ िक बस कछ न पछो।'

दोनो साथ-साथ चलन लग। अनमर न सारी कथा कह सनाई।

सलीम न पछा-तो अनब घर जाओग ही नही यह िहमाकत ह। बिढया को बकन दो। हम सब तमहारी पाकदामनी की गवाही दग। मगर यार हो तम अनहमक। और कया कह- िबचछ का मतर न जान, साप क मह म उगली डाल। वही हाल तमहारा ह। कहता था, उधर जयादा न आओ-जाओ। आिखिर हई वही बात। खििरयत हई िक बिढया न महलल वालो को नही बलाया, नही तो खिन हो जाता।

91 www.hindustanbooks.com

अनमर न दाशरयिनक भाव स कहा-खिर, जो कछ हआ अनचछा ही हआ। अनब तो यही जी चाहता ह िक सारी दिनया स अनलग िकसी गोश म पडा रह और कछ खती-बारी करक गजर कर। दखि ली दिनया, जी तग आ गया।

'तो आिखिर कहा जाओग?'

'कह नही सकता। िजधर तकदीर ल जाए।'

'म चलकर बिढया को समझा द?'

'िफजल ह। शायद मरी तकदीर म यही िलखिा था। कभी खिशी न नसीब हई। और न शायद होगी। जब रो-रोकर ही मरना ह, तो कही भी रो सकता ह।'

'चलो मर घर, वहा डॉकटर साहब को भी बला ल, िफर सलाह कर। यह कया िक एक बिढया न फटकार बताई और आप घर स भाग खिड हए। यहा तो ऐसी िकतनी ही फटकार सन चका, पर कभी परवाह नही की।'

'मझ तो सकीना का खियाल आता ह िक बिढया उस कोस-कोसकर मार डालगी।'

'आिखिर तमन उसम ऐसी कया बात दखिी, जो लटट हो गए ?'

अनमर न छाती पर हाथ रखिकर कहा-तमह कया बताऊ, भाईजान- सकीना अनसमत और वफा की दवी ह। गदड म यह रतन कहा स आ गया, यह तो खिदा ही जान, पर मरी गमनसीब िजदगी म वही चद लमह यादगार ह, जो उसक साथ गजर। तमस इतनी ही अनजरय ह िक जरा उसकी खिबर लत रहना। इस वकत िदल की जो किफयत ह, वह बयान नही कर सकता। नही जानता िजदा रहगा, या मरगा। नाव पर बठा ह। कहा जा रहा ह, खिबर नही। कब, कहा नाव िकनार लगगी, मझ कछ खिबर नही। बहत ममिकन ह मझधार ही म डब जाए। अनगर िजदगी क तजरब स कोई बात समझ म आई, तो यह िक ससार म िकसी नयायी ईशवर का राजय नही ह। जो चीज िजस िमलनी चािहए उस नही िमलती। इसका उलटा ही होता ह। हम जजीरो म जकड हए ह। खिद हाथ-पाव नही िहला सकत। हम एक चीज द दी जाती ह और कहा जाता ह, इसक साथ तमह िजदगी भर िनवाह करना होगा हमारा धमरय ह िक उस चीज पर कनाअनत कर। चाह हम उसस नफरत ही कयो न हो। अनगर हम अनपनी िजदगी क िलए कोई दसरी राह िनकालत ह तो हमारी गरदन पकड ली जाती ह, हम कचल िदया जाता ह। इसी को दिनया इसाफ कहती ह। कम-स-कम म इस दिनया म रहन क कािबल नही ह।

सलीम बोला-तम लोग बठ-बठाए अनपनी जान जहमत म डालन की िफकर िकया करत हो, गोया िजदगी हजार-दो हजार साल की ह। घर म रपय भर हए ह, बाप तमहार ऊपर जान दता ह, बीवी परी जसी बठी ह, और आप एक जलाह की लडकी क पीछ घर-बार छोड भाग जा रह ह। म तो इस पागलपन कहता ह। जयादा-स-जयादा यही तो होगा िक तम कछ कर जाओग, यहा पड सोत रहग। पर अनजाम दोनो का एक ह। तम रामनाम सतता हो जाओग, म इननललाह राजऊन ।

अनमर न िवषाद भर सवर म कहा-िजस तरह तमहारी िजदगी गजरी ह, उस तरह मरी िजदगी भी गजरती, तो शायद मर भी यही खियाल होत। म वह दरखत ह, िजस कभी पानी नही िमला। िजदगी की वह उमर, जब इसान को महबबत की सबस जयादा जररत होती ह, बचपन ह। उस वकत पौधो को तरी िमल जाए तो िजदगी भर क िलए उसकी जड मजबत हो जाती ह। उस वकत खिराक न पाकर उसकी िजदगी खिशक हो जाती ह। मरी माता का उसी जमान म दहात हआ और तब स मरी ईह को खिराक नही िमली। वही भखि मरी िजदगी ह। मझ जहा महबबत का एक रजा भी िमलगा, म बअनिखतयार उसी तरफ जाऊगा। कदरत का अनटल कानन मझ उस

92 www.hindustanbooks.com

तरफ ल जाता ह। इसक िलए अनगर मझ कोई खितावार कह, तो कह। म तो खिदा ही को िजममदार कहगा।

बात करत-करत सलीम का मकान आ गया।

सलीम न कहा-आओ, खिाना तो खिा लो। आिखिर िकतन िदनो तक जलावतन रहन का इरादा ह-

दोनो आकर कमर म बठ। अनमर न जवाब िदया-यहा अनपना कौन बठा हआ ह, िजस मरा ददरय हो- बाप को मरी परवाह नही, शायद और खिश हो िक अनचछा हआ बला टली। सखिदा मरी सरत स बजार ह। दोसतो म ल-द क एक तम हो। तमस कभी-कभी मलाकात होती रहगी। मा होती तो शायद उसकी महबबत खिीच लाती। तब िजदगी की यह रतरिार ही कयो होती दिनया म सबस बदनसीब वह ह, िजसकी मा मर गई हो।

अनमरकानत मा की याद करक रो पडा। मा का वह समित-िचतर उसक सामन आया, जब वह उस रोत दखिकर गोद म उठा लती थी, और माता क आचल म िसर रखित ही वह िनहाल हो जाता था।

सलीम न अनदर जाकर चपक स अनपन नौकर को लाला समरकानत क पास भजा िक जाकर कहना, अनमरकानत भाग जा रह ह। जलदी चिलए। साथ लकर फौरन आना। एक िमनट की दर हई, तो गोली मार दगा।

िफर बाहर आकर उसन अनमरकानत को बातो म लगाया-लिकन तमन यह भी सोचा ह, सखिदादवी का कया हाल होगा- मान लो, वह भी अनपनी िदलबसतगी का कोई इतजाम कर ल, बरा न मानना।

अनमर न अननहोनी बात समझत हए कहा-िहनद औरत इतनी बहया नही होती।

सलीम न हसकर कहा-बस, आ गया िहनदपन। अनर भाईजान, इस मआमल म िहनद और मसलमान की कद नही। अनपनी-अनपनी तिबयत ह। िहनदआ म भी दिवया ह, मसलमानो म भी दिवया ह। हरजाइया भी दोनो ही म ह। िफर तमहारी बीवी तो नई औरत ह, पढी-िलखिी, आजाद खियाल, सर-सपाट करन वाली, िसनमा दखिन वाली, अनखिबार और नावल पढन वाली। ऐसी औरतो स खिदा की पनाह। यह यरोप की बरकत ह। आजकल की दिवया जो कछ न कर गजर वह थोडा ह। पहल लौड पशकदमी िकया करत थ। मरदो की तरफ स छडछाड होती थी, अनब जमाना पलट गया ह। अनब िसतरयो की तरफ स छडछाड शर होती ह ।

अनमरकानत बशमी स बोला-इसकी िचता उस हो िजस जीवन म कछ सखि हो। जो िजदगी स बजार ह, उसक िलए कया- िजसकी खिशी हो रह, िजसकी खिशी हो जाए। म न िकसी का गलाम ह, न िकसी को गलाम बनाना चाहता ह।

सलीम न परासत होकर कहा-तो िफर हद हो गई। िफर कयो न औरतो का िमजाज आसमान पर चढ जाए। मरा खिन तो इस खियाल ही स उबल आता ह।

'औरतो को भी तो बवफा मरदो पर इतना ही करोध आता ह।'

'औरतो-मरदो क िमजाज म, िजसम की बनावट म, िदल क जजबात म फकरक ह। औरत एक ही की होकर रहन क िलए बनाई गई ह। मरद आजाद रहन क िलए बनाया ह।'

'यह मरदो की खिदगरजी ह।'

'जी नही, यह हवानी िजदगी का उसल ह।'

बहस म शाख िनकलती गइ। िववाह का परशन आया, िफर बकारी की समसया पर िवचार होन लगा। िफर

93 www.hindustanbooks.com

भोजन आ गया। दोनो खिान लग।

अनभी दो-चार कौर ही खिाए होग िक दरबान न लाला समरकानत क आन की खिबर दी। अनमरकानत झट मज पर स उठ खिडा हआ, कलला िकया, अनपन पलट मज क नीच िछपाकर रखि िदए और बोला-इनह कस मरी खिबर िमल गई- अनभी तो इतनी दर भी नही हई। जरर बिढया न आग लगा दी।

सलीम मसकरा रहा था।

अनमर न तयौिरया चढाकर कहा-यह तमहारी शरारत मालम होती ह। इसीिलए तम मझ यहा लाए थ- आिखिर कया नतीजा होगा- मित की िजललत होगी मरी। मझ जलील करान स तमह कछ िमल जाएगा- म इस दोसती नही, दशमनी कहता ह।

तागा दवार पर रका और लाला समरकानत न कमर म कदम रखिा।

सलीम इस तरह लालाजी की ओर दखि रहा था, जस पछ रहा हो, म यहा रह या जाऊ- लालाजी न उसक मन का भाव ताडकर कहा-तम कयो खिड हो बटा, बठ जाओ। हमारी और हािफजजी की परानी दोसती ह। उसी तरह तम और अनमर भाई-भाई हो। तमस कया परदा ह- म सब सन चका ह ललल बिढया रोती हई आई थी। मन बरी तरह फटकारा। मन कह िदया, मझ तरी बात का िवशवास नही ह। िजसकी सतरी लकषमी का रप हो, वह कयो चडलो क पीछ पराण दता िफरगा लिकन अनगर कोई बात ही ह, तो उसम घबरान की कोई बात नही, बटा। भल-चक सभी स होती ह। बिढया को दो-चार सौ रपय द िदए जाएग। लडकी की िकसी भर ल घर म शादी हो जाएगी। चलो झगडा पाक हआ। तमह घर स भागन और शहर म िढढोरा पीटन की कया जररत ह- मरी परवाह मत करो लिकन तमह ईशवर न बाल-बचच िदए ह। सोचो, तमहार चल जान स िकतन पराणी अननाथ हो जाएग- सतरी तो सतरी ही ह, बहन ह वह रो-रोकर मर जाएगी। रणकादवी ह, वह भी तमही लोगो क परम स यहा पडी हई ह। जब तमही न होग, तो वह सखिदा को लकर चली जाएगी, मरा घर चौपट हो जाएगा। म घर म अनकला भत की तरह पडा रहगा। बटा सलीम, म कछ बजा तो नही कह रहा ह- जो कछ हो गया, सो हो गया। आग क िलए ऐहितयात रखिो। तम खिद समझदार हो, म तमह कया समझाऊ- मन कोर कतरयवय की डोरी स बधाना पडता ह, नही तो उसकी चचलता आदमी को न जान कहा िलए-िलए िफर- तमह भगवान न सब कछ िदया ह। कछ घर का काम दखिो, कछ बाहर का काम दखिो। चार िदन की िजदगी ह, इस हस-खलकर काट दना चािहए। मार-मार िफरन स कया फायदा-

अनमर इस तरह बठा रहा, मानो कोई पागल बक रहा ह। आज तम यहा िचकनी-चपडी बात कहक मझ फसाना चाहत हो। मरी िजदगी तमही न खिराब की। तमहार ही कारण मरी यह दशा हई। तमन मझ कभी अनपन घर को घर न समझन िदया। तम मझ चककी का बल बनाना चाहत हो। वह अनपन बाप का अनदब उतना न करता था, िजतना दबता था, िफर भी उसकी कई बार बीच म टोकन की इचछा हई। जयोही लालाजी चप हए, उसन दढता क साथ कहा-दादा, आपक घर म मरा इतना जीवन नषटि हो गया, अनब म उस और नषटि नही करना चाहता। आदमी का जीवन खिान और मर जान क िलए नही होता, न धान-सचय उसका उददशय ह। िजस दशा म म ह, वह मर िलए अनसहनीय हो गई ह। म एक नए जीवन का सतरपात करन जा रहा ह, जहा मजदरी लजजा की वसत नही, जहा सतरी पित को कवल नीच नही घसीटती, उस पतन की ओर नही ल जाती बिलक उसक जीवन म आनद और परकाश का सचार करती ह। म रिढयो और मयादाआ का दास बनकर नही रहना चाहता। आपक घर म मझ िनतय बाधाआका सामना करना पडगा और उसी सघषरय म मरा जीवन समापत हो जाएगा। आप ठड िदल स कह

94 www.hindustanbooks.com

सकत ह, आपक घर म सकीना क िलए सथान ह-

लालाजी न भीत नतरो स दखिकर पछा-िकस रप म-

'मरी पतनी क रप म ।'

'नही, एक बार नही, सौ बार नही ।'

'तो िफर मर िलए भी आपक घर म सथान नही ह।'

'और तो तमह कछ नही कहना ह?'

'जी नही।'

लालाजी कसी स उठकर दवार की ओर बढ। िफर पलटकर बोल-बता सकत हो, कहा जा रह हो-

'अनभी तो कछ ठीक नही ह।'

'जाओ, ईशवर तमह सखिी रख। अनगर कभी िकसी चीज की जररत हो, तो मझ िलखिन म सकोच न करना।'

'मझ आशा ह, म आपको कोई कषटि न दगा।'

लालाजी न सजल नतर होकर कहा-चलत-चलत घाव पर नमक न िछडको, ललल बाप का हदय नही मानता। कम-स-कम इतना तो करना िक कभी-कभी पतर िलखित रहना। तम मरा मह न दखिना चाहो लिकन मझ कभी-कभी आन-जान स न रोकना। जहा रहो, सखिी रहो, यही मरा आशीवाद ह।

95 www.hindustanbooks.com

दसरा भागउततर की पवरयत-शरिणयो क बीच एक छोटा-सा रमणीक गाव ह। सामन गगा िकसी बािलका की भाित

हसती, उछलती, नाचती, गाती, दौडती चली जाती ह। पीछ ऊचा पहाड िकसी वधद योगी की भाित जटा बढाए शात, गभीर, िवचारमगन खिडा ह। यह गाव मानो उसकी बाल-समित ह, आमोद-िवनोद स रिजत, या कोई यवावसथा का सनहरा मधर सवपन। अनब भी उन समितयो को हदय म सलाए हए, उस सवपन को छाती स िचपकाए हए ह।

इस गाव म मिशकल स बीस-पचचीस झोपड होग। पतथर क रोडो को तल-ऊपर रखिकर दीवार बना ली गई ह। उन पर छपपर डाल िदया गया ह। दवारो पर बनकट की टिटटया ह। इनही काबको म इस गाव की जनता अनपन गाय-बलो, भड-बकिरयो को िलए अननत काल स िवशराम करती चली आती ह।

एक िदन सधया समय एक सावला-सा, दबला-पतला यवक मोटा कता, ऊची धोती और चमरौधो जत पहन, कधो पर लिटया-डोर रख बगल म एक पोटली दबाए इस गाव म आया और एक बिढया स पछा-कयो माता, यहा परदशी को रात भर रहन का िठकाना िमल जाएगा-

बिढया िसर पर लकडी का गटठा रख, एक बढी गाय को हार की ओर स हाकती चली आती थी। यवक को िसर स पाव तक दखिा, पसीन म तर, िसर और मह पर गदरय जमी हई, आख भखिी, मानो जीवन म कोई आशरय ढढता िफरता हो। दयादररय होकर बोली-यहा तो सब रदास रहत ह, भया ।

अनमरकानत इसी भाित महीनो स दहातो का चककर लगाता चला आ रहा ह। लगभग पचास छोट-बड गावो को वह दखि चका ह, िकतन ही आदिमयो स उसकी जान-पहचान हो गई ह, िकतन ही उसक सहायक हो गए ह, िकतन ही भकत बन गए ह। नगर का वह सकमार यवक दबला तो हो गया ह पर धप और ल , आधी और वषा, भखि और पयास सहन की शिकत उसम परखिर हो गई ह। भावी जीवन की यही उसकी तयारी ह, यही तपसया ह। वह गरामवािसयो की सरलता और सहदयता, परम और सतोष स मगध हो गया ह। ऐस सीध-साद, िनषकपट मनषयो पर आए िदन जो अनतयाचार होत रहत ह उनह दखिकर उसका खिन खिौल उठता ह। िजस शाित की आशा उस दहाती जीवन की ओर खिीच लाई थी, उसका यहा नाम भी न था। घोर अननयाय का राजय था और झडा उठाए िफरती थी।

अनमर न नमरता स कहा-म जात-पात नही मानता, माताजी जो सचचा ह, वह चमार भी हो, तो आदर क योगय ह जो दगाबाज, झठा, लपट हो वह बराहयण भी हो तो आदर क योगय नही। लाओ, लकिडयो का गटठा म लता चल।

उसन बिढया क िसर स गटठा उतारकर अनपन िसर पर रखि िलया।

बिढया न आशीवाद दकर पछा-कहा जाना ह, बटा-

'यो ही मागता-खिाता ह माता, आना-जाना कही नही ह। रात को सोन की जगह तो िमल जाएगी?'

'जगह की कौन कमी ह भया, मिदर क चौतर पर सो रहना। िकसी साध-सत क फर म तो नही पड गए हो- मरा भी एक लडका उनक जाल म फस गया। िफर कछ पता न चला। अनब तक कई लडको का बाप होता।'

दोनो गाव म पहच गए। बिढया न अनपनी झोपडी की टटटी खिोलत हए कहा-लाओ, लकडी रखि दो यहा। थक

96 www.hindustanbooks.com

गए हो, थोडा-सा दध रखिा ह, पी लो। और सब गोई तो मर गए, बटा यही गाय रह गई ह। एक पाव भर दध द दती ह। खिान को तो पाती नही, दध कहा स द।

अनमर ऐस सरल सनह क परसाद को अनसवीकार न कर सका। झोपडी म गया तो उसका हदय काप उठा। मानो दिरदरता छाती पीट-पीटकर रो रही ह। और हमारा उननत समाज िवलास म मगन ह। उस रहन को बगला चािहए सवारी को मोटर। इस ससार का िवधवस कयो नही हो जाता।

बिढया न दध एक पीतल क कटोर म उडल िदया और आप घडा उठाकर पानी लान चली। अनमर न कहा-म खिीच लाता ह माता, रससी तो कए पर होगी-

'नही बटा, तम कहा जाओग पानी भरन- एक रात क िलए आ गए, तो म तमस पानी भराऊ?'

बिढया हा, हा, करती रह गई। अनमरकानत घडा िलए कए पर पहच गया। बिढया स न रहा गया। वह भी उसक पीछ-पीछ गई।

कए पर कई औरत पानी खिीच रही थी। अनमरकानत को दखिकर एक यवती न पछा-कोई पाहन ह कया, सलोनी काकी-

बिढया हसकर बोली-पाहन होत, तो पानी भरन कस आत तर घर भी ऐस पाहन आत ह-

यवती न ितरछी आखिो स अनमर को दखिकर कहा-हमार पाहन तो अनपन हाथ स पानी भी नही पीत, काकी ऐस भोल-भाल पाहन को म अनपन घर ल जाऊगी।

अनमरकानत का कलजा धक-धक-स हो गया। वह यवती वही मननी थी, जो खिन क मकदम स बरी हो गई थी। वह अनब उतनी दबरयल, उतनी िचितत नही ह। रप माधयरय ह, अनगो म िवकास, मखि पर हासय की मधर छिव । आनद जीवन का ततव ह। वह अनतीत की परवाह नही करता पर शायद मननी न अनमरकानत को नही पहचाना। उसकी सरत इतनी बदल गई ह। शहर का सकमार यवक दहात का मजर हो गया ह।

अनमर झपत हए कहा-म पाहना नही ह दवी, परदशी ह। आज इस गाव म आ िनकला। इस नात सार गाव का अनितिथ ह।

यवती न मसकराकर कहा-तब एक-दो घडो स िपड न छटगा। दो सौ घड भरन पडग, नही तो घडा इधर बढा दो। झठ तो नही कहती, काकी ।

उसन अनमरकानत क हाथ स घडा ल िलया और चट फदा लगा, कए म डाल, बात-की-बात म घडा खिीच िलया।

अनमरकानत घडा लकर चला गया, तो मननी न सलोनी स कहा-िकसी भल घर का आदमी ह, काकी दखिा िकतना शरमाता था। मर यहा स अनचार मगवा लीिजयो, आटा-वाटा तो ह-

सलोनी न कहा-बाजर का ह, गह कहा स लाती-

'तो म आटा िलए आती ह। नही, चलो द द। वहा काम-धधो म लग जाऊगी, तो सरित न रहगी।'

मननी को तीन साल हए मिखिया का लडका हिरदवार स लाया था। एक सपताह स एक धमरयशाला क दवार पर जीणरय दशा म पडी थी। बड-बड आदमी धमरयशाला म आत थ, सकडो-हजारो दान करत थ पर इस दिखिया पर

97 www.hindustanbooks.com

िकसी को दया न आती थी। वह चमार यवक जत बचन आता था। इस पर उस दया आ गई। गाडी पर लाद कर घर लाया। दवा-दार होन लगी। चौधरी िबगड, यह मदा कयो लाया पर यवक बराबर दौड-धप करता रहा। वहा डॉकटर-व? कहा थ- भभत और आशीवाद का भरोसा था। एक ओझ की तारीफ सनी, मदो को िजला दता ह। रात को उस बलान चला, चौधरी न कहा-िदन होन दो तब जाना। यवक न माना, रात को ही चल िदया। गगा चढी हई थी उस पार जाना था। सोचा, तरकर िनकल जाऊगा, कौन बहत चौडा पाट ह। सकडो ही बार इस तरह आ-जा चका था। िनशक पानी म घस पडा पर लहर तज थी, पाव उखिड गए, बहत सभलना चाहा पर न सभल सका। दसर िदन दो कोस पर उसकी लाश िमली एक चटटान स िचमटी पडी थी। उसक मरत ही मननी जी उठी और तब स यही ह। यही घर उसका घर ह। यहा उसका आदर ह, मान ह। वह अनपनी जात-पात भल गई, आचार-िवचार भल गई, और ऊच जाित ठकराइन अनछतो क साथ अनछत बनकर आनदपवरयक रहन लगी। वह घर की मालिकन थी। बाहर का सारा काम वह करती, भीतर की रसोई-पानी, कटना-पीसना दोनो दवरािनया करती थी। वह बाहरी न थी। चौधरी की बडी बह हो गई थी।

सलोनी को ल जाकर मननी न थाल म आटा, अनचार और दही रखिकर िदया पर सलोनी को यह थाल लकर घर जात लाज आती थी। पाहना दवार पर बठा हआ ह। सोचगा, इसक घर म आटा भी नही ह- जरा और अनधरा हो जाय, तो जाऊ।

मननी न पछा-कया सोचती हो काकी-

'सोचती ह, जरा और अनधरा हो जाय तो जाऊ। अनपन मन म कया कहगा?'

'चलो, म पहचा दती ह। कहगा कया, कया समझता ह यहा धाननासठ बसत ह- म तो कहती ह, दखि लना, वह बाजर की ही रोिटया खिाएगा। गह की छएगा भी नही।'

दोनो पहची तो दखिा अनमरकानत दवार पर झाड लगा रहा ह। महीनो स झाड न लगी थी। मालम होता था , उलझ-िबखिर बालो पर कघी कर दी गई ह।

सलोनी थाली लकर जलदी स भीतर चली गई। मननी न कहा-अनगर ऐसी महमानी करोग, तो यहा स कभी न जान पाओग।

उसन अनमर क पास जाकर उसक हाथ स झाड छीन ली। अनमर न कड। को परो स एक जगह बटोर कर कहा-सगाई हो गई, तो दवार कसा अनचछा लगन लगा-

'कल चल जाओग, तो यह बात याद आएगी। परदिसयो का कया िवशवास- िफर इधर कयो आओग?'

मननी क मखि पर उदासी छा गई।

'जब कभी इधर आना होगा, तो तमहार दशरयन करन अनवशय आऊगा। ऐसा सदर गाव मन नही दखिा। नदी, पहाड, जगल, इसकी भी छटा िनराली ह। जी चाहता ह यही रह जाऊ और कही जान का नाम न ल। '

मननी न उतसकता स कहा-तो यही रह कयो नही जात- मगर िफर कछ सोचकर बोली-तमहार घर म और लोग भी तो होग, वह तमह यहा कयो रहन दग-

'मर घर म ऐसा कोई नही ह, िजस मर मरन-जीन की िचता हो। म ससार म अनकला ह।'

मननी आगरह करक बोली-तो यही रह जाओ, कौन भाई हो तम-

98 www.hindustanbooks.com

'यह तो म िबलकल भल गया, भाभी जो बलाकर परम स एक रोटी िखिला द वही मरा भाई ह।'

'तो कल मझ आ लन दना। ऐसा न हो, चपक स भाग जाओ।'

अनमरकानत न झोपडी म आकर दखिा, तो बिढया चलहा जला रही थी। गीली लकडी, आग न जलती थी। पोपल मह म ठठक भी न थी। अनमर को दखिकर बोली-तम यहा धए म कहा आ गए, बटा- जाकर बाहर बठो, यह चटाई उठा ल जाओ।

अनमर न चलह क पास जाकर कहा-त हट जा, म आग जलाए दता ह।

सलोनी न सनहमय कठोरता स कहा-त बाहर कयो नही जाता- मरदो का इस तरह रसोई म घसना अनचछा नही लगता।

बिढया डर रही थी िक कही अनमरकानत दो परकार क आट न दखि ल। शायद वह उस िदखिाना चाहती थी िक म भी गह का आटा खिाती ह। अनमर यह रहसय कया जान- बोला- अनचछा तो आटा िनकाल द, म गथ द।

सलोनी न हरान होकर कहा-त कसा लडका ह, भाई बाहर जाकर कयो नही बठता-

उस वह िदन याद आए, जब उसक बचच उस अनममा-अनममा कहकर घर लत थ और वह उनह डाटती थी। उस उजड हए घर म आज एक िदया जल रहा था पर कल िफर वही अनधरा हो जाएगा। वही सननाटा। इस यवक की ओर कयो उसकी इतनी ममता हो रही थी- कौन जान कहा स आया ह, कहा जाएगा पर यह जानत हए भी अनमर का सरल बालको का-सा िनषकपट वयवहार, उसका बार-बार घर म आना और हरक काम करन को तयार हो जाना, उसकी भखिी मात-भावना को सीचता हआ-सा जान पडता था, मानो अनपन ही िसधार हए बालको की परितधविन कही दर स उसक कानो म आ रही ह।

एक बालक लालटन िलए कधो पर एक दरी रख आया और दोनो चीज उसक पास रखिकर बठ गया। अनमर न पछा-दरी कहा स लाए-

'काकी न तमहार िलए भजी ह। वही काकी, जो अनभी आई थी।'

अनमर न पयार स उसक िसर पर हाथ फरकर कहा-अनचछा, तम उनक भतीज हो तमहारी काकी कभी तमह मारती तो नही

बालक िसर िहलाकर बोला-कभी नही। वह तो हम खलाती ह। दरजन को नही खलाती वह बडा बदमाश ह।

अनमर न मसकराकर पछा-कहा पढन जात हो-

बालक न नीच का होठ िसकोडकर कहा-कहा जाए, हम कौन पढाए- मदरस म कोई जान तो दता नही। एक िदन दादा दोनो को लकर गए थ। पिडतजी न नाम िलखि िलया पर हम सबस अनलग बठात थ सब लडक हम 'चमार-चमार' कहकर िचढात थ। दादा न नाम कटा िलया।

अनमर की इचछा हई, चौधरी स जाकर िमल। कोई सवािभमानी आदमी मालम होता ह। पछा-तमहार दादा कया कर रह ह-

बालक न लालटन स खलत हए कहा-बोतल िलए बठ ह। भन चन धार ह, बस अनभी बक-झक करग, खिब

99 www.hindustanbooks.com

िचललाएग, िकसी को मारग, िकसी को गािलया दग। िदन भर कछ नही बोलत। जहा बोतल चढाई िक बक चल।

अनमर न इस वकत उनस िमलना उिचत न समझा।

सलोनी न पकारा-भया, रोटी तयार ह, आओ गरम-गरम खिा लो।

अनमरकानत न हाथ-मह धोया और अनदर पहचा। पीतल की थाली म रोिटया थी, पथरी म दही, पततो पर आचार, लोट म पानी रखिा हआ था। थाली पर बठकर बोला-तम भी कयो नही खिाती-

'तम खिा लो बटा, म िफर खिा लगी।'

'नही, म यह न मानगा। मर साथ खिाओ ।'

'रसोई जठी हो जाएगी िक नही?'

'हो जान दो। म ही तो खिान वाला ह।'

'रसोई म भगवान रहत ह। उस जठी न करनी चािहए।'

'तो म भी बठा रहगा।'

'भाई, त बडा खिराब लडका ह।'

रसोई म दसरी थाली कहा थी- सलोनी न हथली पर बाजर की रोिटया ल ली और रसोई क बाहर िनकल आई। अनमर न बाजर की रोिटया दखि ली। बोला-यह न होगा, काकी। मझ तो यह फलक द िदए, आप मजदार रोिटया उडा रही ह।

'त कया बाजर की रोिटया खिाएगा बटा- एक िदन क िलए आ पडा, तो बाजर की रोिटया िखिलाऊ?'

'म तो महमान नही ह। यही समझ लो िक तमहारा खिोया हआ बालक आ गया ह। '

'पहल िदन उस लडक की भी महमानी की जाती ह। म तमहारी कया महमानी करगी, बटा रखिी रोिटया भी कोई महमानी ह- न दार, न िसकार।'

'म तो दार-िशकार छता भी नही, काकी।'

अनमरकानत न बाजर की रोिटयो क िलए जयादा आगरह न िकया। बिढया को और द:खि होता। दोनो खिान लग। बिढया यह बात सनकर बोली-इस उिमर म तो भगतई नही अनचछी लगती, बटा यही तो खिान-पीन क िदन ह। भगतई क िलए तो बढापा ह ही।'

'भगत नही ह, काकी मरा मन नही चाहता।'

'मा-बाप भगत रह होग।'

'हा, वह दोनो जन भगत थ।'

'अनभी दोनो ह न?'

'अनममा तो मर गइ, दादा ह। उनस मरी नही पटती।'

'तो घर स रठकर आए हो?'

100 www.hindustanbooks.com

'एक बात पर दादा स कहा-सनी हो गई। म चला आया।'

'घरवाली तो ह न?'

'हा, वह भी ह।'

'बचारी रो-रोकर मरी जाती होगी। कभी िचटठी-पततार िलखित हो?'

'उस भी मरी परवाह नही ह, काकी बड घर की लडकी ह, अनपन भोग-िवलास म मगन ह। म कहता ह, चल िकसी गाव म खती-बारी कर। उस शहर अनचछा लगता ह।'

अनमरकानत भोजन कर चका, तो अनपनी थाली उठा ली और बाहर आकर माजन लगा। सलोनी भी पीछ-पीछ आकर बोली-तमहारी थाली म माज दती, तो छोटी हो जाती-

अनमर न हसकर कहा-तो कया म अनपनी थाली माजकर छोटा हो जाऊगा-

'यह तो अनचछा नही लगता िक एक िदन क िलए कोई आया तो थाली माजन लग। अनपन मन म सोचत होग, कहा इस िभखिािरन क यहा ठहरा?'

अनमरकानत क िदल पर चोट न लग, इसिलए वह मसकराई।

अनमर न मगध होकर कहा-िभखिािरन क सरल, पिवतर सनह म जो सखि िमला, वह माता की गोद क िसवा और कही नही िमल सकता था, काकी ।

उसन थाली धो धाकर रखि दी और दरी िबछाकर जमीन पर लटन ही जा रहा था िक पदरह-बीस लडको का एक दल आकर खिडा हो गया। दो-तीन लडको क िसवाय और िकसी की दह पर साबत कपड न थ। अनमरकानत कौतहल स उठ बठा, मानो कोई तमाशा होन वाला ह।

जो बालक अनभी दरी लकर आया था, आग बढकर बोला-इतन लडक ह हमार गाव म। दो-तीन लडक नही आए, कहत थ वह कान काट लग।

अनमरकानत न उठकर उन सभी को कतार म खिडा िकया और एक-एक का नाम पछा। िफर बोल-तमम स जो-जो रोज हाथ-मह धोता ह, अनपना हाथ उठाए।

िकसी लडक न हाथ न उठाया। यह परशन िकसी की समझ म न आया।

अनमर न आशचियरय स कहा-ऐ तमम स कोई रोज हाथ-मह नही धोता-

सभी न एक-दसर की ओर दखिा। दरी वाल लडक न हाथ उठा िदया। उस दखित ही दसरो न भी हाथ उठा िदए।

अनमर न िफर पछा-तम म स कौन-कौन लडक रोज नहात ह, हाथ उठाए।

पहल िकसी न हाथ न उठाया। िफर एक-एक करक सबन हाथ उठा िदए। इसिलए नही िक सभी रोज नहात थ, बिलक इसिलए िक व दसरो स पीछ न रह।

सलोनी खिडी थी। बोली-त तो महीन भर म भी नही नहाता र, जगिलया त कयो हाथ उठाए हए ह-

जगिलया न अनपमािनत होकर कहा-तो गदड ही कौन रोज नहाता ह। भलई, पनन, घसीट, कोई भी तो नही

101 www.hindustanbooks.com

नहाता।

सभी एक-दसर की कलई खिोलन लग।

अनमर न डाटा-अनचछा, आपस म लडो मत। म एक बात पछता ह, उसका जवाब दो। रोज मह-हाथ धोना अनचछी बात ह या नही-

सभी न कहा-अनचछी बात ह।

'और नहाना?'

सभी न कहा-अनचछी बात ह।

'मह स कहत हो या िदल स?'

'िदल स।'

'बस जाओ। म दस-पाच िदन म िफर आऊगा और दखिगा िक िकन लडको न झठा वादा िकया था, िकसन सचचा।'

लडक चल गए, तो अनमर लटा। तीन महीन लगातार घमत-घमत उसका जी ऊब उठा था। कछ िवशराम करन का जी चाहता था। कयो न वह इसी गाव म िटक जाय- यहा उस कौन जानता ह- यही उसका छोटा-सा घर बन गया। सकीना उस घर म आ गई, गाय-बल और अनत म नीद भी आ गई।

102 www.hindustanbooks.com

दोअनमरकानत सवर उठा, मह-हाथ धोकर गगा-सनान िकया और चौधरी स िमलन चला। चौधरी का नाम

गदड था। इस गाव म कोई-जमीदार न रहता था। गदड का दवार ही चौपाल का काम दता था। अनमर न दखिा, नीम क पड क नीच एक तखत पडा हआ ह। दो-तीन बास की खिाट, दो-तीन पआल क गदव। गदड की उमर साठ क लगभग थी मगर अनभी टाठा था। उसक सामन उसका बडा लडका पयाग बठा एक जता सी रहा था। दसरा लडका काशी बलो को सानी-पानी कर रहा था। मननी गोबर िनकाल रही थी। तजा और दरजन दौड-दौडकर कए स पानी ला रह थ। जरा परब की ओर हटकर दो औरत बरतन माज रही थी। यह दोनो गदड की बहए थी।

अनमर न चौधरी को राम-राम िकया और एक पआल की गददी पर बठ गया। चौधरी न िपतभाव स उसका सवागत िकया-मज म खिाट पर बठो, भया मननी न रात ही कहा था। अनभी आज तो नही जा रह हो- दो-चार िदन रहो, िफर चल जाना। मननी तो कहती थी, तमको कोई काम िमल जाय तो यही िटक जाओग।

अनमर न सकचात हए कहा-हा, कछ िवचार तो ऐसा मन म आया था।

गदड न नािरयल स धआ िनकालकर कहा-काम की कौन कमी ह- घास भी कर लो, तो रपय रोज की मजरी हो जाए। नही जत का काम ह। तिलया बनाओ, चरस बनाओ, महनत करन वाला आदमी भखिो नही मरता। धोली की मजरी कही नही गई।

यह दखिकर िक अनमर को इन दोनो म कोई तजबीज पसद नही आई, उसन एक तीसरी तजबीज पश की-खती-बारी की इचछा हो तो कर लो। सलोनी भाभी क खत ह। तब तक वही जोतो।

पयाग न सआ चलात हए कहा-खती की झझट म न पडना, भया चाह खत म कछ हो या न हो, लगान जरर दो। कभी ओला-पाला कभी सखिा-बडा। एक-न-एक बला िसर पर सवार रहती ह। उस पर कही बल मर गया या खििलहान म आग लग गई तो सब कछ सवाहा। घास सबस अनचछी। न िकसी क नौकर न चाकर, न िकसी का लना न दना। सबर खिरपी उठाई और दोपहर तक लौट आए।

काशी बोला-मजरी, मजरी ह िकसानी, िकसानी ह, मजर लाखि हो, तो मजर कहलाएगा। िसर पर घास िलए चल जा रह ह। कोई इधर स पकारता ह-ओ घासवाल कोई उधर स। िकसी की मड पर घास कर लो, तो गािलया िमल। िकसानी म मरजाद ह।

पयाग का सआ चलना बद हो गया-मरजाद ल क चाटो। इधर-उधर स कमा क लाओ वह भी खती म झोक दो।

चौधरी न फसला िकया-घाटा-नफा तो हर एक रोजगार म ह, भया बड-बड सठो का िदवाला िनकल जाता ह। खती बराबर कोई रोजगार नही जो कमाई और तकदीर अनचछी हो। तमहार यहा भी नजर-नजरान का यही हाल ह, भया-

अनमर बोला-हा, दादा सभी जगह यही हाल ह कही जयादा कही कम। सभी गरीबो का लह चसत ह।

चौधरी न सनह का सहारा िलया-भगवान न छोट-बड का भद कयो लगा िदया, इसका मरम समझ म नही आता- उनक तो सभी लडक ह। िफर सबको एक आखि स कयो नही दखित-

पयाग न शका-समाधन की-परब जनम का ससकार ह। िजसन जस करम िकए, वस फल पा रहा ह।

103 www.hindustanbooks.com

चौधरी न खिडन िकया-यह सब मन को समझान की बात ह बटा, िजसम गरीबो को अनपनी दसा पर सतोष रह और अनमीरो क राग-रग म िकसी तरह की बाधा न पड। लोग समझत रह िक भगवान न हमको गरीब बना िदया, आदमी का कया दोस पर यह कोई नयाय नही ह िक हमार बाल-बचच तक काम म लग रह और पट भर भोजन न िमल और एक-एक अनफसर को दस-दस हजार की तलब िमल। दस तोड रपय हए। गधो स भी न उठ।

अनमर न मसकराकर कहा-तम तो दादा नािसतक हो।

चौधरी न दीनता स कहा-बटा, चाह नािसतक कहो, चाह मरखि कहो पर िदल पर चोट लगती ह, तो मह स आह िनकलती ही ह। तम तो पढ-िलख हो जी-

'हा, कछ पढा तो ह।'

'अनगरजी तो न पढी होगी?'

'नही, कछ अनगरजी भी पढी ह।'

चौधरी परसनन होकर बोल-तब तो भया, हम तमह न जान दग। बाल-बचचो को बला लो और यही रहो। हमार बाल-बचच भी कछ पढ जाएग। िफर सहर भज दग। वहा जात-पात-िबरादरी कौन पछता ह। िलखिा िदया हम छततारी ह।

अनमर मसकराया-और जो पीछ स भद खिल गया-

चौधरी का जवाब तयार था-तो हम कह दग, हमार परबज छततारी थ, हालािक अनपन को छततारी-बस कहत लाज आती ह। सनत ह, छततारी लोगो न मसलमान बादशाहो को अनपनी बिटया बयाही थी। अनभी कछ जलपान तो न िकया होगा, भया- कहा गया तजा जा, बह स कछ जलपान करन को ल आ। भया, भगवान का नाम लकर यही िटक जाओ। तीन-चार बीघ सलोनी क पास ह। दो बीघ हमार साझ कर लना। इतना बहत ह। भगवान द तो खिाए न चक।

लिकन जब सलोनी बलाई गई और उसस चौधरी न यह परसताव िकया, तो वह िबचक उठी। कठोर मदरा स बोली-तमहारी मसा ह, अनपनी जमीन इनक नाम करा द और म हवा खिाऊ, यही तो-

चौधरी न हसकर कहा-नही-नही, जमीन तर ही नाम रहगी, पगली यह तो खिाली जोतग। यही समझ ल िक त इनह बटाई पर द रही ह।

सलोनी न कानो पर हाथ रखिकर कहा-भया, अनपनी जगह-जमीन म िकसी क नाम नही िलखिती। यो हमार पाहन ह, दो-चार-दस िदन रह। मझस जो कछ होगा, सवा-सतकार करगी। तम बटाई पर लत हो, तो ल लो। िजसको कभी दखिा न सना, न जान न पहचान, उस कस बटाई पर द द-

पयाग न चौधरी की ओर ितरसकार-भाव स दखिकर कहा-भर गया मन, या अनभी नही। कहत हो औरत मरखि होती ह। यह चाह हमको-तमको खिड-खिड बच लाव। सलोनी काकी मह की ही मीठी ह।

सलोनी ितनक उठी-हा जी, तमहार कहन स अनपन परखिो की जमीन छोड द। मर ही पट का लडका, मझी को चरान चला ह ।

काशी न सलोनी का पकष िलया-ठीक तो कहती ह, बजान-सन आदमी को अनपनी जमीन कस सौप द-

104 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत को इस िववाद म दाशरयिनक आनद आ रहा था। मसकराकर बोला-हा, काकी, तम ठीक कहती हो। परदसी आदमी का कया भरोसा-

मननी भी दवार पर खिडी यह बात सन रही थी, बोली-पगला गई हो कया, काकी- तमहार खत कोई िसर पर उठा ल जाएगा- िफर हम लोग तो ह ही। जब तमहार साथ कोई कपट करगा, तो हम पछग नही-

िकसी भडक हए जानवर को बहत स आदमी घरन लगत ह, तो वह और भी भडक जाता ह। सलोनी समझ रही थी, यह सब-क-सब िमलकर मझ लटवाना चाहत ह। एक बार नाही करक, िफर हा न की। वग स चल खिडी हई।

पयाग बोला-चडल ह, चडल ।

अनमर न िखििसयाकर कहा-तमन नाहक उसस कहा, दादा मझ कया, यह गाव न सही और गाव सही।

मननी का चहरा फक हो गया।

गदड बोल-नही भया, कसी बात करत हो तम। मर साझीदार बनकर रहो। महनतजी स कहकर दो-चार बीघ का और बदोबसत करा दगा। तमहारी झोपडी अनलग बन जाएगी। खिान-पीन की कोई बात नही। एक भला आदमी तो गाव म हो जायगा। नही, कभी एक चपरासी गाव म आ गया, तो सबकी सास नीच-ऊपर होन लगती ह।

आधा घट म सलोनी िफर लौटी और चौधरी स बोली-तमही मर खत कयो बटाई पर नही ल लत-

चौधरी न घडककर कहा-मझ नही चािहए। धार रह अनपन खत।

सलोनी न अनमर स अनपील की-भया, तमही सोचो, मन कछ बजा कहा- बजान-सन िकसी को कोई अनपनी चीज द दता ह-

अनमर न सातवना दी-नही काकी, तमन बहत ठीक िकया। इस तरह िवशवास कर लन स धोखिा हो जाता ह।

सलोनी को कछ ढाढस हआ-तमस तो बटा, मरी रात ही भर की जान-पहचान ह न- िजसक पास मर खत ह, वह तो मरा ही भाई-बद ह। उसस छीनकर तमह द द, तो वह अनपन मन म कया कहगा- सोचो, अनगर म अननिचत कहती ह तो मर मह पर थपपड मारो। वह मर साथ बईमानी करता ह, यह जानती ह, पर ह तो अनपना ही हाड-मास। उसक मह की रोटी छीनकर तमह द द तो तम मझ भला कहोग, बोलो-

सलोनी न यह दलील खिद सोच िनकाली थी या िकसी न सझा दी थी पर इसन गदड को लाजवाब कर िदया।

105 www.hindustanbooks.com

तीनदो महीन बीत गए।

पस की ठडी रात काली कमली ओढ पडी हई थी। ऊचा पवरयत िकसी िवशाल महततवाकाकषी की भाित, तािरकाआ का मकट पहन खिडा था। झोपिडया जस उसकी वह छोटी-छोटी अनिभलाषाए थी, िजनह वह ठकरा चका था।

अनमरकानत की झोपडी म एक लालटन जल रही ह। पाठशाला खिली हई ह। पदरह-बीस लडक खिड अनिभमनय की कथा सन रह ह। अनमर खिडा कथा कह रहा ह। सभी लडक िकतन परसनन ह। उनक पील कपड चमक रह ह, आख जगमगा रही ह। शायद व भी अनिभमनय जस वीर, वस हीर कतरयवयपरायण होन का सवपन दखि रह ह। उनह कया मालम, एक िदन उनह दयोधनो और जरासघो क सामन घटन टकन पडग िकतनी बार व चकरवयहो स भागन की चषटिा करग, और भाग न सकग।

गदड चौधरी चौपाल म बोतल और कजी िलए कछ दर तक िवचार म डब बठ रह। िफर कजी फक दी। बोतल उठाकर आल पर रखि दी और मननी को पकारकर कहा-अनमर भया स कह, आकर खिाना खिा ल। इस भल आदमी को जस भखि ही नही लगती, पहर रात गई अनभी तक खिान-पीन की सिध नही।

मननी न बोतल की ओर दखिकर कहा-तम जब तक पी लो। मन तो इसीिलए नही बलाया।

गदड न अनरिच स कहा-आज तो पीन को जी नही चाहता, बटी कौन बडी अनचछी चीज ह-

मननी आशचियरय स चौधरी की ओर ताकन लगी। उस आए यहा तीन साल स अनिधक हए। कभी चौधरी को नागा करत नही दखिा, कभी उनक मह स ऐसी िवराग की बात नही सनी। सशक होकर बोली-आज तमहारा जी अनचछी नही ह कया, दादा-

चौधरी न हसकर कहा-जी कयो नही अनचछा ह- मगाई तो थी पीन ही क िलए पर अनब जी नही चाहता। अनमर भया की बात मर मन म बठ गई। कहत ह-जहा सौ म अनससी आदमी भखिो मरत हो, वहा दार पीना गरीब का रकत पीन क बराबर ह। कोई दसरा कहता, तो न मानता पर उनकी बात न जान कयो िदल म बठ जाती ह-

मननी िचितत हो गई-तम उनक कहन म न आओ, दादा अनब छोडना तमह अनवगन करगा। कही दह म दरद न होन लग।

चौधरी न इन िवचारो को जस तचछ समझकर कहा-चाह दरद हो, चाह बाई हो, अनब पीऊगा नही। िजदगी म हजारो रपय की दार पी गया। सारी कमाई नस म उडा दी। उतन रपय स कोई उपकार का काम करता, तो गाव का भला होता और जस भी िमलता। मरखि को इसी स बरा कहा ह। साहब लोग सना ह, बहत पीत ह पर उनकी बात िनराली ह। यहा राज करत ह। लट का धन िमलता ह, वह न िपए, तो कौन पीए- दखिती ह, अनब कासी और पयाग को भी कछ िलखिन-पढन का चसका लगन लगा ह।

पाठशाला बद हई। अनमर तजा और दरजन की उगली पकड हए आकर चौधरी स बोला-मझ तो आज दर हो गई ह दादा, तमन खिा-पी िलया न-

चौधरी सनह म डब गए-हा, और कया, म ही तो पहर रात स जता हआ ह म ही तो जत लकर िरसीकस गया था। इस तरह जान दोग, तो मझ तमहारी पाठसाला बद करनी पडगी।

106 www.hindustanbooks.com

अनमर की पाठशाला म अनब लडिकया भी पढन लगी थी। उसक आनद का पारावार न था।

भोजन करक चौधरी सोए। अनमर चलन लगा, तो मननी न कहा-आज तो लाला तमन बडा भारी पाला मारा। दादा न आज एक घट भी नही पी।

अनमर उछलकर बोला-कछ कहत थ-

'तमहारा जस गात थ, और कया कहत- म तो समझती थी, मरकर ही छोडग पर तमहारा उपदस काम कर गया ।'

अनमर क मन म कई िदन स मननी का वततात पछन की इचछा हो रही थी पर अनवसर न पाता था। आज मौका पाकर उसन पछा-तम मझ नही पहचानती हो लिकन म तमह पहचानता ह।

मननी क मखि का रग उड गया। उसन चभती हई आखिो स अनमर को दखिकर कहा-तमन कह िदया, तो मझ याद आ रहा ह। तमह कही दखिा ह।

'काशी क मकदम की बात याद करो।'

'अनचछा, हा, याद आ गया। तमही डॉकटर साहब क साथ रपय जमा करत िफरत थ मगर तम यहा कस आ गए?'

'िपताजी स लडाई हो गई। तम यहा कस पहची और इन लोगो क बीच म कस आ पडी?'

मननी घर म जाती हई बोली-िफर कभी बताऊगी पर तमहार हाथ जोडती ह, यहा िकसी स कछ न कहना।

अनमर न अनपनी कोठरी म जाकर िबछावन क नीच स धोितयो का एक जोडा िनकाला और सलोनी क घर पहचा। सलोनी भीतर पडी नीद को बलान क िलए गा रही थी। अनमर की आवाज सनकर टटटी खिोल दी और बोली-कया ह बटा- आज तो बडा अनधरा ह। खिाना खिा चक- म तो अनभी चरखिा कात रही थी। पीठ दखिन लगी, तो आकर पड रही।

अनमर न धोितयो का जोडा िनकालकर कहा-म यह जोडा लाया ह। इस ल लो। तमहारा सत परा हो जाएगा, तो म ल लगा।

सलोनी उस िदन अनमर पर अनिवशवास करन क कारण उसस सकचाती थी। ऐस भल आदमी पर उसन कयो अनिवशवास िकया। लजाती हई बोली-अनभी तम कयो लाए भया, सत कत जाता, तो ल आत।

अनमर क हाथ म लालटन थी। बिढया न जोडा ल िलया और उसकी तहो को खिोलकर ललचाई हई आखिो स दखिन लगी। सहसा वह बोल उठी-यह तो दो ह बटा, म दो लकर कया करगी। एक तम ल जाओ ।

अनमरकानत न कहा-तम दोनो रखि लो, काकी एक स कस काम चलगा-

सलोनी को अनपन जीवन क सनहर िदनो म भी दो धोितया मयससर न हई थी। पित और पतर क राज म भी एक धोती स जयादा कभी न िमली। और आज ऐसी सदर दो-दो सािडया िमल रही ह, जबरदसती दी जा रही ह। उसक अनत:करण स मानो दध की धारा बहन लगी। उसका सारा वधावय, सारा माततव आशीवाद बनकर उसक एक-एक रोम को सपिदत करन लगा।

अनमरकानत कोठरी स बाहर िनकल आया। सलोनी रोती रही।

107 www.hindustanbooks.com

अनपनी झोपडी म आकर अनमर कछ अनिनिशचित दशा म खिडा रहा। िफर अनपनी डायरी िलखिन बठ गया। उसी वकत चौधरी क घर का दवार खिला और मननी कलसा िलए पानी भरन िनकली। इधर लालटन जलती दखिकर वह इधर चली आई, और दवार पर खिडी होकर बोली-अनभी सोए नही लाला, रात तो बहत हो गई।

अनमर बाहर िनकलकर बोला-हा अनभी नीद नही आई। कया पानी नही था-

'हा, आज सब पानी उठ गया। अनब जो पयास लगी, तो कही एक बद नही।'

'लाओ, म खिीच ला द । तम इस अनधरी रात म कहा जाओगी?'

'अनधरी रात म शहर वालो को डर लगता ह। हम तो गाव क ह।'

'नही मननी, म तमह न जान दगा।'

'तो कया मरी जान तमहारी जान स पयारी ह?'

'मरी जसी एक लाखि जान तमहारी जान पर नयौछावर ह।'

मननी न उसकी ओर अननरकत नतरो स दखिा-तमह भगवान न महिरया कयो नही बनाया, लाला- इतना कोमल हदय तो िकसी मदरय का नही दखिा। म तो कभी-कभी सोचती ह, तम यहा न आत, तो अनचछा होता।

अनमर मसकराकर बोला-मन तमहार साथ बराई की ह, मननी-

मननी कापत हए सवर म बोली-बराई नही की- िजस अननाथ बालक का कोई पछन वाला न हो, उस गोद और िखिलौन और िमठाइयो का चसका डाल दना कया बराई नही ह- यह सखि पाकर कया वह िबना लाड-पयार क रह सकता ह-

अनमर न करण सवर म कहा-अननाथ तो म था, मननी तमन मझ गोद और पयार का चसका डाल िदया। मन तो रो-रोकर तमह िदक ही िकया ह।

मननी न कलसा जमीन पर रखि िदया और बोली-म तमस बातो म न जीतगी लाला लिकन तम न थ, तब म बड आनद स थी। घर का धधा करती थी, रखिा-सखिा खिाती थी और सो रहती थी। तमन मरा वह सखि छीन िलया। अनपन मन म कहत होग, बडी िनलरयजज नार ह। कहो, जब मदरय औरत हो जाए, तो औरत को मदरय बनना ही पडगा। जानती ह, तम मझस भाग-भाग िफरत हो, मझस गला छडात हो। यह भी जानती ह, तमह पा नही सकती। मर ऐस भागय कहा- पर छोडगी नही। म तमस और कछ नही मागती। बस, इतना ही चाहती ह िक तम मझ अनपनी समझो। मझ मालम हो िक म भी सतरी ह, मर िसर पर भी कोई ह, मरी िजदगी भी िकसी क काम आ सकती ह।

अनमर न अनब तक मननी को उसी तरह दखिा था, जस हरक यवक िकसी सदरी यवती को दखिता ह-परम स नही, कवल रिसक भाव स पर आतम-समपरयण न उस िवचिलत कर िदया। दधार गाय क भर हए थनो को दखिकर हम परसनन होत ह-इनम िकतना दध होगा कवल उसकी मातरा का भाव हमार मन म आ जाता ह। हम गाय को पकडकर दहन क िलए तयार नही हो जात लिकन कटोर म दध का सामन आ जाना दसरी बात ह। अनमर न दध क कटोर की ओर हाथ बढा िदया-आओ, हम-तम कही चल, मननी वहा म कहगा यह मरी...

मननी न उसक मह पर हाथ रखि िदया और बोली-बस, और कछ न कहना। मदरय सब एक-स होत ह। म कया

108 www.hindustanbooks.com

कहती थी, तम कया समझ गए- म तमस सगाई नही करगी, तमहारी रखली भी नही बनगी। तम मझ अनपनी चरी समझत रहो, यही मर िलए बहत ह।

मननी न कलसा उठा िलया और कए की ओर चल दी। अनमर रमणी-हदय का यह अनदभत रहसय दखिकर सतिभत हो गया था।

सहसा मननी न पकारा-लाला, ताजा पानी लाई ह। एक लोटा लाऊ-

पीन की इचछा होन पर भी अनमर न कहा-अनभी तो पयास नही ह, मननी ।

109 www.hindustanbooks.com

चारतीन महीन तक अनमर न िकसी को खित न िलखिा। कही बठन की महलत ही न िमली। सकीना का हाल

जानन क िलए हदय तडप-तडपकर रह जाता था। नना की भी याद आ जाती थी। बचारी रो-रोकर मरी जाती होगी। बचच का हसता हआ फल-सा मखिडा याद आता रहता था पर कही अनपना पता-िठकाना हो तब तो खित िलख। एक जगह तो रहना नही होता था। यहा आन क कई िदन बाद उसन तीन खित िलख-सकीना, सलीम और नना क नाम। सकीना का पतर सलीम क िलफाफ म बद कर िदया था। आज जवाब आ गए ह। डािकया अनभी द गया ह। अनमर गगा-तट पर एकात म जाकर इन पतरो को पढ रहा ह। वह नही चाहता, बीच म कोई बाधा हो, लडक आ-आकर पछ-िकसका खित ह।

नना िलखिती ह-'भला, आपको इतन िदनो क बाद मरी याद तो आई। म आपको इतना कठोर न समझती थी। आपक िबना इस घर म कस रहती ह, इसकी आप कलपना भी नही कर सकत, कयोिक आप, आप ह, और म, म साढ चार महीन और आपका एक पतर नही कछ खिबर नही आखिो स िकतना आस िनकल गया, कह नही सकती। रोन क िसवा आपन और काम ही कया छोडा आपक िबना मरा जीवन इतना सना हो जाएगा , मझ यह न मालम था।

'आपक इतन िदनो की चपपी का कारण म समझती ह, पर वह आपका भरम ह भया आप मर भाई ह। मर वीरन ह। राजा हो तो मर भाई ह, रक हो तो मर भाई ह ससार आप पर हस, सार दश म आपकी िनदा हो, पर आप मर भाई ह। आज आप मसलमान या ईसाई हो जाए, तो कया आप मर भाई न रहग- जो नाता भगवान न जोड िदया ह, कया उस आप तोड सकत ह- इतना बलवान म आपको नही समझती। इसस भी पयारा और कोई नाता ससार म ह, म नही समझती। मा म कवल वातसलय ह। बहन म कया ह, नही कह सकती, पर वह वातसलय स कोमल अनवशय ह। मा अनपराध का दड भी दती ह। बहन कषमा का रप ह। भाई नयाय कर, अननयाय कर, डाट या पयार कर, मान कर, अनपमान कर, बहन क पास कषमा क िसवा और कछ नही ह। वह कवल उसक सनह की भखिी ह।

'जब स आप गए ह, िकताबो की ओर ताकन की इचछा नही होती। रोना आता ह। िकसी काम म जी नही लगता। चरखिा भी पडा मर नाम को रो रहा ह। बस, अनगर कोई आनद की वसत ह तो वह मनन ह। वह मर गल का हार हो गया ह। कषण-भर को भी नही छोडता। इस वकत सो गया ह, तब यह पतर िलखि सकी ह, नही उसन िचतरिलिप म वह पतर िलखिा होता, िजसको बड-बड िवदवान भी नही समझ सकत। भाभी को उसस अनब उतना सनह नही रहा। आपकी चचा वह कभी भलकर भी नही करती। धमरय-चचा और भिकत स उनह िवशष परम हो गया ह। मझस भी बहत कम बोलती ह। रणकादवी उनह लकर लखिनऊ जाना चाहती थी, पर वहा नही गइ। एक िदन उनकी गऊ का िववाह था। शहर क हजारो दवताआ का भोज हआ। हम लोग भी गए थ। यहा क गऊशाल क िलए उनहोन दस हजार रपय दान िकए ह।

'अनब दादाजी का हाल सिनए वह आजकल एक ठाकरदवारा बनवा रह ह। जमीन तो पहल ही ल चक थ। पतथर जमा हो रहा ह। ठाकरदवार की बिनयाद रखिन क िलए राजा साहब को िनमतरण िदया जाएगा। न जान कयो दादा अनब िकसी पर करोध नही करत। यहा तक िक जोर स बोलत भी नही। दाल म नमक तज हो जान पर जो थाली पटक दत थ, अनब चाह िकतना ही नमक पड जाय, बोलत भी नही। सनती ह, अनसािमयो पर भी उतनी सखती नही करत। िजस िदन बिनयाद पडगी, बहत स अनसािमयो का बकाया मआफ भी करग। पठािनन को अनब

110 www.hindustanbooks.com

पाच की जगह पचचीस रपय िमलन लग ह। िलखिन को तो बहत-सी बात ह पर िलखिगी नही। आप अनगर यहा आए तो िछपकर आइएगा कयोिक लोग झललाए हए ह। हमार घर कोई नही आता-जाता।'

दसरा खित सलीम का ह : 'मन तो समझा था, तम गगाजी म डब मर और तमहार नाम को, पयाज की मदद स, दो-तीन कतर आस बहा िदए थ और तमहारी दह की नजात क िलए एक बरहमन को एक कौडी खिरात भी कर दी थी मगर यह मालम करक रज हआ िक आप िजदा ह और मरा मातम बकार हआ। आसआ का तो गम नही, आखिो को कछ फायदा ही हआ, मगर उस कौडी का जरर गम ह। भल आदमी, कोई पाच-पाच महीन तक यो खिामोशी अनिखतयार करता ह खििरयत यही ह िक तम मौजद नही हो। बड कौमी खिािदम की दम बन हो। जो आदमी अनपन पयार दोसतो स इतनी बवफाई कर, वह कौम की िखिदमत कया खिाक करगा-

'खिदा की कसम रोज तमहारी याद आती थी। कॉलज जाता ह, जी नही लगता। तमहार साथ कॉलज की रौनक चली गई। उधर अनबबाजान िसिवल सिवस की रट लगा-लगाकर और भी जान िलए लत ह। आिखिर कभी आओग भी, या काल पानी की सजा भोगत रहोग-

'कॉलज क हाल सािबक दसतर ह-वही ताश ह, वही लकचरो स भागना ह, वही मच ह। हा, कनवोकशन का ऐड'स अनचछा रहा। वाइस चालसर न सादा िजदगी पर जोर िदया। तम होत, तो उस ऐड'स का मजा उठात। मझ फीका मालम होता था। सादा िजदगी का सबक तो सब दत ह पर कोई नमना बनकर िदखिाता नही। यह जो अननिगनती लकचरार और परोफसर ह, कया सब-क-सब सादा िजदगी क नमन ह- वह तो िलिवग का सटडडरय ऊचा कर रह ह, तो िफर लडक भी कयो न ऊचा कर, कयो न बहती गगा म हाथ धोव- वाइस चासलर साहब, मालम नही सादगी का सबक अनपन सटाफ को कयो नही दत- परोफसर भािटया क पास तीस जोड जत ह और बाज-बाज पचास रपय क ह। खिर, उनकी बात छोडो। परोफसर चकरवती तो बड िकफायतशार मशहर ह। जोई न जाता, अनलला िमया स नाता। िफर भी जानत हो िकतन नौकर ह उनक पास- कल बारह तो भाई, हम लोग तो नौजवान ह, हमार िदलो म नया शौक ह, नए अनरमान ह। घर वालो स मागग न दग, तो लडग, दोसतो स कजरय लग, दकानदारो की खिशामद करग, मगर शान स रहग जरर। वह जहननम म जा रह ह, तो हम भी जहननम जाएग मगर उनक पीछ-पीछ।

'सकीना का हाल भी कछ सनना चाहत हो- मामा को बीसो ही बार भजा, कपड भज, रपय भज पर कोई चीज न ली। मामा कहती ह, िदन-भर एकाध चपाती खिा ली, तो खिा ली, नही चपचाप पडी रहती ह। दादी स बोलचाल बद ह। कल तमहारा खित पात ही उसक पास भज िदया था। उसका जवाब जो आया, उसकी ह-ब-ह नकल यह ह। अनसली खित उस वकत दखिन को पाओग, जब यहा आओग :

'बाबजी, आपको मझ बदनसीब क कारण यह सजा िमली, इसका मझ बडा रज ह। और कया कह- जीती ह और आपको याद करती ह। इतना अनरमान ह िक मरन क पहल एक बार आपको दखि लती लिकन इसम भी आपकी बदनामी ही ह, और म तो बदनाम हो ही चकी। कल आपका खित िमला, तब स िकतनी बार सौदा उठ चका ह िक आपक पास चली जाऊ। कया आप नाराज होग- मझ तो यह खिौफ नही ह। मगर िदल को समझाऊगी और शायद कभी मरगी भी नही। कछ दर तो गसस क मार तमहारा खित न खिोला। पर कब तक- खित खिोला, पढा, रोई, िफर पढा, िफर रोई। रोन म इतना मजा ह िक जी नही भरता। अनब इतजार की तकलीफ नही झली जाती। खिदा आपको सलामत रख।

'दखिा, यह खित िकतना ददरयनाक ह मरी आखिो म बहत कम आस आत ह लिकन यह खित दखिकर जबत न कर

111 www.hindustanbooks.com

सका। िकतन खिशनसीब हो तम।'

अनमर न िसर उठाया तो उसकी आखिो म नशा था वह नशा िजसम आलसय नही, सठठित ह लािलमा नही, दीिपत ह उनमाद नही, िवसमित नही, जागित ह। उसक मनोजगत म ऐसा भकप कभी न आया था। उसकी आतमा कभी इतनी उदार इतनी िवशाल, इतनी परफलल न थी। आखिो क सामन दो मितया खिडी हो गइ, एक िवलास म डबी हई, रतनो स अनलकतत, गवरय म चर दसरी सरल माधयरय स भिषत, लजजा और िवनय स िसर झकाए हए। उसका पयासा हदय उस खिशबदार मीठ शरबत स हटकर इस शीतल जल की ओर लपका। उसन पतर क उस अनश को िफर पढा, िफर आवश म जाकर गगा-तट पर टहलन लगा। सकीना स कस िमल- यह गरामीण जीवन उस पसद आएगा- िकतनी सकमार ह, िकतनी कोमल वह और कठोर जीवन- कस आकर उसकी िदलजोई कर। उसकी वह सरत याद आई, जब उसन कहा था-बाबजी, म भी चलती ह। ओह िकतना अननराग था। िकसी मजर को गडडा खिोदत-खिोदत जस कोई रतन िमल जाए और वह अनपन अनजञान म उस काच का टकडा ही समझ रहा हो ।

इतना अनरमान ह िक मरन क पहल आपको दखि लती'-यह वाकय जस उसक हदय म िचमट गया था। उसका मन जस गगा की लहरो पर तरता हआ सकीना को खिोज रहा था। लहरो की ओर तनमयता स ताकत-ताकत उस मालम हआ म बहा जा रहा ह। वह चौककर घर की तरफ चला। दोनो आख तर, नाक पर लाली और गालो पर आदररयता।

112 www.hindustanbooks.com

पाचगाव म एक आदमी सगाई लाया ह। उस उतसव म नाच, गाना, भोज हो रहा ह। उसक दवार पर नगिडया

बज रही ह गाव भर क सतरी, परष, बालक जमा ह और नाच शर हो गया ह। अनमरकानत की पाठशाला आज बद ह। लोग उस भी खिीच लाए ह।

पयाग न कहा-चलो भया, तम भी कछ करतब िदखिाओ। सना ह, तमहार दस म लोग खिब नाचत ह।

अनमर न जस कषमा-सी मागी-भाई, मझ तो नाचना नही आता।

उसकी इचछा हो रही ह िक नाचना आता, तो इस समय सबको चिकत कर दता।

यवको और यवितयो क जोड बधो हए ह। हरक जोड दस-पदरह िमनट तक िथरककर चला जाता ह। नाचन म िकतना उनमाद, िकतना आनद ह, अनमर न न समझा था।

एक यवती घघट बढाए हए रगभिम म आती ह इधर स पयाग िनकलता ह। दोनो नाचन लगत ह। यवती क अनगो म इतनी लचक ह, उसक अनग-िवलास म भावो की ऐसी वयजना ह िक लोग मगध हए जात ह।

इस जोड क बाद दसरा जोड आता ह। यवक गठीला जवान ह, चौडी छाती, उस पर सोन की महर, कछनी काछ हए। यवती को दखिकर अनमर चौक उठा। मननी ह। उसन घरदार लहगा पहना ह, गलाबी ओढनी ओढी ह, और पाव म पजिनया बध ली ह। गलाबी घघट म दोनो कपोल फलो की भाित िखिल हए ह। दोनो कभी हाथ-म-हाथ िमलाकर, कभी कमर पर हाथ रखिकर, कभी कलहो को ताल स मटकाकर नाचन म उनमतता हो रह ह। सभी मगध नतरो स इन कलािवदो की कला दखि रह ह। कया फरती ह, कया लचक ह और उनकी एक-एक लचक म, एक-एक गित म िकतनी मािमकता, िकतनी मादकता दोनो हाथ-म-हाथ िमलाए, िथरकत हए रगभिम क उस िसर तक चल जात ह और कया मजाल िक एक गित भी बताल हो।

पयाग न कहा-दखित हो भया, भाभी कसा नाच रही ह- अनपना जोड नही रखिती।

अनमर न िवरकत मन स कहा-हा, दखि तो रहा ह।

'मन हो, तो उठो, म उस लौड को बला ल।'

'नही, मझ नही नाचना ह।'

मननी नाच रही थी िक अनमर उठकर घर चला आया। यह बशमी अनब उसस नही सही जाती।

एक कषण क बाद मननी न आकर कहा-तम चल कयो आए, लाला- कया मरा नाचना अनचछा न लगा-

अनमर न मह फरकर कहा-कया म आदमी नही ह िक अनचछी चीज को बरा समझ-

मननी और समीप आकर बोली-तो िफर चल कयो आए-

अनमर न उदासीन भाव स कहा-मझ एक पचायत म जाना ह। लोग बठ मरी राह दखि रह होग। तमन कयो नाचना बद कर िदया-

मननी न भोलपन स कहा-तम चल आए, तो नाचकर कया करती-

अनमर न उसकी आखिो म आख डालकर कहा-सचच मन स कह रही हो मननी-

113 www.hindustanbooks.com

मननी उसस आख िमलाकर बोली-म तो तमस कभी झठ नही बोली।

'मरी एक बात मानो। अनब िफर कभी मत नाचना।'

मननी उदास होकर बोली-तो तम इतनी जरा-सी बात पर रठ गए- जरा िकसी स पछो, म आज िकतन िदनो क बाद नाची ह। दो साल स म नफाड क पास नही गई। लोग कह-कहकर हार गए। आज तमही ल गए, और अनब उलट तमही नाराज होत हो ।

मननी घर म चली गई। थोडी दर बाद काशी न आकर कहा-भाभी, तम यहा कया कर रही हो- वहा सब लोग तमह बला रह ह।

मननी न िसरददरय का बहाना िकया।

काशी आकर अनमर स बोला-तम कयो चल आए, भया- कया गवारो का नाच-गाना अनचछा न लगा।

अनमर न कहा-नही जी, यह बात नही। एक पचायत म जाना ह दर हो रही ह।

काशी बोला-भाभी नही जा रही ह। इसका नाच दखिन क बाद अनब दसरो का रग नही जम रहा ह। तम चलकर कह दो, तो साइत चली जाए। कौन रोज-रोज यह िदन आता ह। िबरादरी वाली बात ह। लोग कहग, हमार यहा काम आ पडा, तो मह िछपान लग।

अनमर न धमरय-सकट म पडकर कहा-तमन समझाया नही-

िफर अनदर जाकर कहा-मझस नाराज हो गई, मननी-

मननी आगन म आकर बोली-तम मझस नाराज हो गए हो िक म तमस नाराज हो गई-

'अनचछा, मर कहन स चलो।'

'जस बचच मछिलयो को खलात ह, उसी तरह तम मझ खला रह हो, लाला जब चाहा रला िदया जब चाहा हसा िदया।'

'मरी भल थी, मननी कषमा करो।'

'लाला, अनब तो मननी तभी नाचगी, जब तम उसका हाथ पकडकर कहोग-चलो हम-तम नाच। वह अनब और िकसी क साथ न नाचगी।'

'तो अनब नाचना सीखि?'

मननी न अनपनी िवजय का अननभव करक कहा-मर साथ नाचना चाहोग, तो आप सीखिोग।

'तम िसखिा दोगी?'

'तम मझ रोना िसखिा रह हो, म तमह नाचना िसखिा दगी।'

'अनचछा चलो।'

कॉलज क सममलनो म अनमर कई बार डरामा खल चका था। सटज पर नाचा भी था, गाया भी था पर उस नाच और इस नाच म बडा अनतर था। वह िवलािसयो की कमरय-करीडा थी, यह शरिमको की सवचछद किल। उसका िदल सहमा जाता था।

114 www.hindustanbooks.com

उसन कहा-मननी, तमस एक वरदान मागता ह।

मननी न िठठककर कहा-तो तम नाचोग नही-

'यही तो तमस वरदान माग रहा ह।'

अनमर 'ठहरो-ठहरो' कहता रहा पर मननी लौट पडी।

अनमर भी अनपनी कोठरी म चला आया, और कपड पहनकर पचायत म चला गया। उसका सममान बढ रहा ह। आस-पास क गावो म भी जब कोई पचायत होती ह, तो उस अनवशय बलाया जाता ह।

N%

सलोनी काकी न अनपन घर की जगह पाठशाल क िलए द दी ह। लडक बहत आन लग ह। उस छोटी-सी कोठरी म जगह नही ह। सलोनी स िकसी न जगह मागी नही, कोई दबाव भी नही डाला गया। बस, एक िदन अनमर और चौधरी बठ बात कर रह थ िक नई शाला कहा बनाई जाए, गाव म तो बलो क बधन की जगह नही। सलोनी उनकी बात सनती रही। िफर एकाएक बोल उठी-मरा घर कयो नही ल लत- बीस हाथ पीछ खिाली जगह पडी ह। कया इतनी जमीन म तमहारा काम नही चलगा-

दोनो आदमी चिकत होकर सलोनी का मह ताकन लग।

अनमर न पछा-और त रहगी कहा, काकी-

सलोनी न कहा-उह मझ घर-दवार लकर कया करना ह बटा- तमहारी ही कोठरी म आकर एक कोन म पडी रहगी।

गदड न मन म िहसाब लगाकर कहा-जगह तो बहत िनकल आएगी।

अनमर न िसर िहलाकर कहा-म काकी का घर नही लना चाहता। महनतजी स िमलकर गाव क बाहर पाठशाला बनवाऊगा।

काकी न द:िखित होकर कहा-कया मरी जगह म कोई छत लगी ह, भया-

गदड न फसला कर िदया। काकी का घर मदरस क िलए ल िलया जाए। उसी म एक कोठरी अनमर क िलए भी बना दी जाय। काकी अनमर की झोपडी म रहगी। एक िकनार गाय-बल बध लगी। एक िकनार पड। रहगी।

आज सलोनी िजतनी खिश ह, उतनी शायद और कभी न हई हो। वही बिढया, िजसक दवार पर कोई बल बध दता, तो लडन को तयार हो जाती, जो बचचो को अनपन दवार पर गोिलया न खलन दती, आज अनपन परखिो का घर दकर अनपना जीवन सफल समझ रही ह। यह कछ अनसगत-सी बात ह पर दान कतपण ही द सकता ह । हा, दान का हत ऐसा होना चािहए जो उसकी नजर म उसक मर-मर सच हए धन क योगय हो।

चटपट काम शर हो जाता ह। घरो स लकिडया िनकल आइ, रससी िनकल आई, मजर िनकल आए, पस िनकल आए। न िकसी स कहना पडा, न सनना। वह उनकी अनपनी शाला थी। उनही क लडक-लडिकया तो पढती थी। और इन छ:-सात महीन म ही उन पर िशकषा का कछ अनसर भी िदखिाई दन लगा था। वह अनब साफ रहत ह, झठ कम बोलत ह, झठ बहान कम करत ह, गािलया कम बकत ह, और घर स कोई चीज चरा कर नही ल जात। न उतनी िजद ही करत ह। घर का जो कछ काम होता ह, उस शौक स करत ह। ऐसी शाला की कौन मदद न

115 www.hindustanbooks.com

करगा-

फागन का शीतल परभात सनहर वसतर पहन पहाड पर खल रहा था। अनमर कई लडको क साथ गगा-सनान करक लौटा पर आज अनभी तक कोई आदमी काम करन नही आया। यह बात कया ह- और िदन तो उसक सनान करक लौटन क पहल ही कारीगर आ जात थ। आज इतनी दर हो गई और िकसी का पता नही।

सहसा मननी िसर पर कलसा रख आकर खिडी हो गई। वही शीतल, सनहरा परभात उसक गहए मखिड पर मचल रहा था।

अनमर न मसकराकर कहा-यह दखिो, सरज दवता तमह घर रह ह।

मननी न कलसा उतारकर हाथ म ल िलया और बोली-और तम बठ दखि रह हो-

िफर एक कषण क बाद उसन कहा-तम तो जस आजकल गाव म रहत ही नही हो। मदरसा कया बनन लगा, तमहार दशरयन ही दलरयभ हो गए। म डरती ह, कही तम सनक न जाओ।

'म तो िदन-भर यही रहता ह, तम अनलबतता जान कहा रहती हो- आज यह सब आदमी कहा चल गए- एक भी नही आया।'

'गाव म ह ही कौन?'

'कहा चल गए सब?'

'वाह तमह खिबर ही नही- पहर रात िसरोमनपर क ठाकर की गाय मर गई, सब लोग वही गए ह। आज घर-घर िसकार बनगा।'

'अनमर न घणा-सचक भाव स कहा-मरी गाय?'

'हमार यहा भी तो खिात ह, यह लोग।'

'कया जान- मन कभी नही दखिा। तम तो...'

मननी न घणा स मह बनाकर कहा-म तो उधर ताकती भी नही।

'समझाती नही इन लोगो को?'

'उह समझान स मान जात ह, और मर समझान स।'

अनमरकानत की वशगत वषणव वितत इस घिणत, िपशाच कमरय स जस मतलान लगी। उस सचमच मतली हो आई। उसन छत-छात और भदभाव को मन स िनकाल डाला था पर अनखिा? स वही परानी घणा बनी हई थी। और वह दस-गयारह महीन स इनही मरदाखिोरो क घर भोजन कर रहा ह।

'आज म खिाना नही खिाऊगा, मननी ।'

'म तमहारा भोजन अनलग पका दगी।'

'नही मननी िजस घर म वह चीज पकगी, उस घर म मझस न खिाया जायगा।'

सहसा शोर सनकर अनमर न आख उठाइ, तो दखिा िक पदरह-बीस आदमी बास की बिललयो पर उस मतक गाय को लाद चल आ रह ह। सामन कई लडक उछलत-कदत तािलया बजात चल आत थ।

116 www.hindustanbooks.com

िकतना बीभतस दशय था। अनमर वहा खिडा न रह सका। गगा-तट की ओर भागा।

मननी न कहा-तो भाग जान स कया होगा- अनगर बरा लगता ह तो जाकर समझाओ।

'मरी बात कौन सनगा, मननी?'

'तमहारी बात न सनग, तो और िकसकी बात सनग, लाला?'

'और जो िकसी न न माना?'

'और जो मान गए आओ, कछ-कछ बद लो।'

'अनचछा कया बदती हो?'

'मान जाय तो मझ एक अनचछी-सी साडी ला दना।'

'और न मान, तो तम मझ कया दोगी?'

'एक कौडी।'

इतनी दर म वह लोग और समीप आ गए। चौधरी सनापित की भाित आग-आग लपक चल आत थ।

मननी न आग बढकर कहा-ला तो रह हो लिकन लाला भाग जा रह ह।

गदड न कौतहल स पछा-कयो कया हआ ह-

'यही गाय की बात ह। कहत ह, म तम लोगो क हाथ का पानी न िपऊगा।'

पयाग न अनकडकर कहा-बकन दो। न िपएग हमार हाथ का पानी, तो हम छोट न हो जाएग।

काशी बोला-आज बहत िदनो क बाद िसकार िमला उसम भी यह बाधा॥

गदड न समझौत क भाव स कहा-आिखिर कहत कया ह-

मननी झझलाकर बोली-अनब उनही स जाकर पछो। जो चीज और िकसी ऊची जात वाल नही खिात, उस हम कयो खिाए, इसी स तो लोग हम नीच समझत ह।

पयाग न आवश म कहा-तो हम कौन िकसी बामहन-ठाकर क घर बटी बयाहन जात ह- बामहनो की तरह िकसी क दवार पर भीखि मागन तो नही जात यह तो अनपना-अनपना िरवाज ह।

मननी न डाट बताई-यह कोई अनचछी बात ह िक सब लोग हम नीच समझ, जीभ क सवाद क िलए-

गाय वही रखि दी गई। दो-तीन आदमी गडास लन दौड। अनमर खिडा दखि रहा था िक मननी मना कर रही ह पर कोई उसकी सन नही रहा। उसन उधर स मह फर िलया जस उस क हो जाएगी। मह फर लन पर भी वही दशय उसकी आखिो म िफरन लगा। इस सतय को वह कस भल जाय िक उसस पचास कदम पर मरदा गाय की बोिटया की जा रही ह। वह उठकर गगा की ओर भागा।

गदड न उस गगा की ओर जात दखिकर िचितत भाव स कहा-वह तो सचमच गगा की ओर भाग जा रह ह। बडा सनकी आदमी ह। कही डब-डाब न जाय।

पयाग बोला-तम अनपना काम करो, कोई नही डब-डाबगा। िकसी को जान इतनी भारी नही होती।

117 www.hindustanbooks.com

मननी न उसकी ओर कोप-दिषटि स दखिा-जान उनह पयारी होती ह, जो नीच ह और नीच बन रहना चाहत ह। िजसम लाज ह, जो िकसी क सामन िसर नही नीचा करना चाहता, वह ऐसी बात पर जान भी द सकता ह।

पयाग न ताना मारा-उनका बडा पचछ कर रही हो भाभी, कया सगाई की ठहर गई ह-

मननी न आहत कठ स कहा-दादा, तम सन रह हो इनकी बात, और मह नही खिोलत। उनस सगाई ही कर लगी, तो कया तमहारी हसी हो जाएगी- और जब मर मन म वह बात आ जाएगी, तो कोई रोक भी न सकगा। अनब इसी बात पर म दखिती ह िक कस घर म िसकार जाता ह। पहल मरी गदरयन पर गडासा चलगा।

मननी बीच म घसकर गाय क पास बठ गई और ललकार बोली-अनब िजस गडासा चलाना हो चलाए, बठी ह।

पयाग न कातर भाव स कहा-हतया क बल खलती-खिाती हो और कया ।

मननी बोली-तमही जसो न िबरादरी को इतना बदनाम कर िदया ह उस पर कोई समझाता ह, तो लडन को तयार होत हो।

गदड चौधरी गहर िवचार म डब खिड थ। दिनया म हवा िकस तरफ चल रही ह, इसकी भी उनह कछ खिबर थी। कई बार इस िवषय पर अनमरकानत स बातचीत कर चक थ। गभीर भाव स बोल-भाइयो, यहा गाव क सब आदमी जमा ह। बताओ, अनब कया सलाह ह-

एक चौडी छाती वाला यवक बोला-सलाह जो तमहारी ह, वही सबकी ह। चौधरी तो तम हो।

पयाग न अनपन बाप को िवचिलत होत दखि, दसरो को ललकारकर कहा-खिड मह कया ताकत हो, इतन जन तो हो। कयो नही मननी का हाथ पकडकर हटा दत- म गडासा िलए खिडा ह।

मननी न करोध स कहा-मरा ही मास खिा जाओग, तो कौन हजरय ह- वह भी तो मास ही ह।

और िकसी को आग बढत न दखिकर पयाग न खिद आग बढकर मननी का हाथ पकड िलया और उस वहा स घसीटना चाहता था िक काशी न उस जोर स धकका िदया और लाल आख करक बोला-भया, अनगर उसकी दह पर हाथ रखिा, तो खिन हो जाएगा-कह दता ह। हमार घर म इस गऊ मास की गध तक न जान पाएगी। आए वहा स बड वीर बनकर ।

चौडी छाती वाला यवक मधयसथ बनकर बोला-मरी गाय क मास म ऐसा कौन-सा मजा रखिा ह, िजसक िलए सब जन मर जा रह हो। गङढा खिोदकर मास फाड दो, खिाल िनकाल लो। वह भी जब अनमर भया की सलाह हो तो। सारी दिनया हम इसीिलए तो अनछत समझती ह िक हम दार-सराब पीत ह, मरदा मास खिात ह और चमड का काम करत ह। और हमम कया बराई ह- दार-सराब हमन छोड दी ह- रहा चमड का काम, उस कोई बरा नही कह सकता, और अनगर कह भी तो हम उसकी परवाह नही। चमडा बनाना-बचना कोई बरा काम नही ह।

गदड न यवक की ओर आदर की दिषटि स दखिा-तम लोगो न भर की बात सन ली। तो यही सबकी सलाह ह-

भर बोला-अनगर िकसी को उजर करना हो तो कर।

118 www.hindustanbooks.com

एक बढ न कहा-एक तमहार या हमार छोड दन स कया होता ह- सारी िबरादरी तो खिाती ह।

भर न जवाब िदया-िबरादरी खिाती ह, िबरादरी नीच बनी रह । अनपना-अनपना धरम अनपन-अनपन साथ ह।

गदड न भर को सबोिधत िकया-तम ठीक कहत हो, भर लडको का पढना ही ल लो। पहल कोई भजता था अनपन लडको को - मगर जब हमार लडक पढन लग, तो दसर गावो क लडक भी आ गए।

काशी बोला-मरदा मास न खिान क अनपराध का दड िबरादरी हम न दगी। इसका म जममा लता ह। दखि लना आज की बात साझ तक चारो ओर फल जाएगी, और वह लोग भी यही करग। अनमर भया का िकतना मान ह। िकसकी मजाल ह िक उनकी बात को काट द।

पयाग न दखिा, अनब दाल न गलगी, तो सबको िधककारकर बोला-अनब महिरयो का राज ह, महिरया जो कछ न कर वह थोडा।

यह कहता हआ वह गडासा िलए घर चला गया।

गदड लपक हए गगा की ओर चल और एक गोली क टपप स पकारकर बोल-यहा कयो खिड हो भया, चलो घर, सब झगडा तय हो गया।

अनमर िवचार-मगन था। आवाज उसक कानो तक न पहची।

चौधरी न और समीप जाकर कहा-यहा कब तक खिड रहोग भया-

'नही दादा, मझ यही रहन दो। तम लोग वहा काट-कट करोग, मझस दखिा न जाएगा। जब तम फसरयत पा जाओग, तो म आ जाऊगा।'

'बह कहती थी, तम हमार घर खिान को भी नाही कहत हो?'

'हा दादा, आज तो न खिाऊगा, मझ क हो जाएगी।'

'लिकन हमार यहा तो आए िदन यही धधा लगा रहता ह।'

'दो-चार िदन क बाद मरी भी आदत पड जाएगी।'

'तम हम मन म राकषस समझ रह होग?'

अनमर न छाती पर हाथ रखिकर कहा-नही दादा, म तो तम लोगो स कछ सीखिन, तमहारी कछ सवा करक अनपना उधार करन आया ह। यह तो अनपनी-अनपनी परथा ह। चीन एक बहत बडा दश ह। वहा बहत स आदमी बधद भगवान को मानत ह। उनक धमरय म िकसी जानवर को मारना पाप ह। इसिलए वह लोग मर हए जानवर ही खिात ह। कततो, िबलली, गीदड िकसी को भी नही छोडत। तो कया वह हमस नीच ह- कभी नही। हमार ही दश म िकतन ही बराहयण, कषतरी मास खिात ह- वह जीभ क सवाद क िलए जीव-हतया करत ह। तम उनस तो कही अनचछ हो।

गदड न हसकर कहा-भया, तम बड बिदधिमान हो, तमस कोई न जीतगा चलो, अनब कोई मरदा नही खिाएगा। हम लोगो न तय कर िलया। हमन कया तय िकया, बह न तय िकया। मगर खिाल तो न फकनी होगी-

अनमर न परसनन होकर कहा-नही दादा, खिाल कयो फकोग- जत बनाना तो सबस बडी सवा ह। मगर कया भाभी बहत िबगडी थी-

119 www.hindustanbooks.com

गदड बोला-िबगडी ही नही थी भया, वह तो जान दन को तयार थी। गाय क पास बठ गई और बोली-अनब चलाओ गडासा, पहला गडासा मरी गदरयन पर होगा िफर िकसकी िहममत थी िक गडासा चलाता।

अनमर का हदय जस एक छलाग मारकर मननी क चरणो पर लोटन लगा।

120 www.hindustanbooks.com

सातकई महीन गजर गए। गाव म िफर मरदा मास न आया। आशचियरय की बात तो यह थी िक दसर गाव क

चमारो न भी मरदा मास खिाना छोड िदया। शभ उदयोग कछ सकरामक होता ह।

अनमर की शाला अनब नई इमारत म आ गई थी। िशकषा का लोगो को कछ ऐसा चसका पड गया था िक जवान तो जवान, बढ भी आ बठत और कछ न कछ सीखि जात। अनमर की िशकषा-शली आलोचनातमक थी। अननय दशो की सामािजक और राजनितक परगित, नए-नए आिवषकार, नए-नए िवचार, उसक मखय िवषय थ। दखि-दशातरो क रसमो-िरवाज, आचार-िवचार की कथा सभी चाव स सनत थ। उस यह दखिकर कभी-कभी िवसमय होता था िक य िनरकषर लोग जिटल सामािजक िसधदातो को िकतनी आसानी स समझ जात ह। सार गाव म एक नया जीवन परवािहत होता हआ जान पडता। छत-छात का जस लोप हो गया था। दसर गावो की ऊची जाितयो क लोग भी अनकसर आ जात थ।

िदन-भर क पिरशरम क बाद अनमर लटा हआ एक उपनयास पढ रहा था िक मननी आकर खिडी हो गई। अनमर पढन म इतना िलपत था िक मननी क आन की उसको खिबर न हई। राजसथान की वीर नािरयो क बिलदान की कथा थी, उस उजजवल बिलदान की िजसकी ससार क इितहास म कही िमसाल नही ह, िजस पढकर आज भी हमारी गदरयन गवरय स उठ जाती ह। जीवन को िकसन इतना तचछ समझा होगा कल-मयादा की रकषा का ऐसा अनलौिकक आदशरय और कहा िमलगा- आज का बिदधिवाद उन वीर माताआ पर चाह िजतना कीचड फक ल, हमारी शरधदा उनक चरणो पर सदव िसर झकाती रहगी।

मननी चपचाप खिडी अनमर क मखि की ओर ताकती रही। मघ का वह अनलपाश जो आज एक साल हए उसक हदय-आकाश म पकषी की भाित उडता हआ आ गया था, धीर-धीर सपणरय आकाश पर छा गया था। अनतीत की जवाला म झलसी हई कामनाए इस शीतल छाया म िफर हरी होती जाती थी। वह शषक जीवन उ?ान की भाित सौरभ और िवकास स लहरान लगा ह। औरो क िलए तो उसकी दवरािनया भोजन पकाती, अनमर क िलए वह खिद पकाती। बचार दो तो रोिटया खिात ह, और यह गवािरन मोट-मोट िलकर बनाकर रखि दती ह। अनमर उसस कोई काम करन को कहता, तो उसक मखि पर आनद की जयोित-सी झलक उठती। वह एक नए सवगरय की कलपना करन लगती-एक नए आनद का सवपन दखिन लगती।

एक िदन सलोनी न उसस मसकराकर कहा-अनमर भया तर ही भाग स यहा आ गए, मननी अनब तर िदन िफरग।

मननी न हषरय को जस मटठी म दबाकर कहा-कया कहती हो काकी, कहा म, कहा वह। मझस कई साल छोट होग। िफर ऐस िवदवान, ऐस चतर म तो उनकी जितयो क बराबर भी नही।

काकी न कहा था-यह सब ठीक ह मननी, पर तरा जाद उन पर चल गया ह यह म दखि रही ह। सकोची आदमी मालम होत ह, इसस तझस कछ कहत नही पर त उनक मन म समा गई ह, िवशवास मान। कया तझ इतना भी नही सझता- तझ उनकी शमरय दर करनी पडगी।

मननी न पलिकत होकर कहा था-तमहारी अनसीस ह काकी, तो मरा मनोरथ भी परा हो जाएगा।

मननी एक कषण अनमर को दखिती रही, तब झोपडी म जाकर उसकी खिाट िनकाल लाई। अनमर का धयान टटा। बोला-रहन दो, म अनभी िबछाए लता ह। तम मरा इतना दलार करोगी मननी, तो म आलसी हो जाऊगा। आओ,

121 www.hindustanbooks.com

तमह िहनद-दिवयो की कथा सनाऊ।

'कोई कहानी ह कया?'

'नही, कहानी नही, सचची बात ह।'

अनमर न मसलमानो क हमल, कषतरािणयो क जहार और राजपत वीरो क शौयरय की चचा करत हए कहा-उन दिवयो को आग म जल मरना मजर था पर यह मजर न था िक परपरष की िनगाह भी उन पर पड। अनपनी आन पर मर िमटती थी। हमारी दिवयो का यह आदशरय था। आज यरोप का कया आदशरय ह- जमरयन िसपाही फरास पर चढ आए और परषो स गाव खिाली हो गए, तो फरास की नािरया जमरयन सिनको ही स परम करीडा करन लगी।

मननी नाक िसकोडकर बोली-बडी चचल ह सब लिकन उन िसतरयो स जीत जी कस जला जाता था-

अनमर न पसतक बद कर दी-बडा किठन ह, मननी यहा तो जरा-सी िचगारी लग जाती ह, तो िबलिबला उठत ह। तभी तो आज सारा ससार उनक नाम क आग िसर झकाता ह। म तो जब यह कथा पढता ह तो रोए खिड हो जात ह। यही जी चाहता ह िक िजस पिवतर-भिम पर उन दिवयो की िचताए बनी, उसकी राखि िसर पर चढाऊ, आखिो म लगाऊ और वही मर जाऊ।

मननी िकसी िवचार म डबी भिम की ओर ताक रही थी।

अनमर न िफर कहा-कभी-कभी तो ऐसा हो जाता था िक परषो को घर क माया-मोह स मकत करन क िलए िसतरया लडाई क पहल ही जहार कर लती थी। आदमी की जान इतनी पयारी होती ह िक बढ भी मरना नही चाहत। हम नाना कषटि झलकर भी जीत ह, बड-बड ऋषिष-महातमा भी जीवन का मोह नही छोड सकत पर उन दिवयो क िलए जीवन खल था।

मननी अनब भी मौन खिडी थी। उसक मखि का रग उडा हआ था, मानो कोई दससह अनतवरजदना हो रही ह।

अनमर न घबराकर पछा-कसा जी ह, मननी- चहरा कयो उतरा हआ ह-

मननी न कषीण मसकान क साथ कहा-मझस पछत हो- कया हआ ह-

'कछ बात तो ह मझस िछपाती हो?'

'नही जी, कोई बात नही।'

एक िमनट क बाद उसन िफर कहा-तमस आज अनपनी कथा कह, सनोग-

'बड हषरय स म तो तमस कई बार कह चका। तमन सनाई ही नही।'

'म तमस डरती ह। तम मझ नीच और कया-कया समझन लगोग।'

अनमर न मानो कषबधा होकर कहा-अनचछी बात ह, मत कहो। म तो जो कछ ह वही रहगा, तमहार बनान स तो नही बन सकता।

मननी न हारकर कहा-तम तो लाला, जरा-सी बात पर िचढ जात हो, जभी सतरी स तमहारी नही पटती। अनचछा लो, सनो। जो जी म आए समझना-म जब काशी स चली, तो थोडी दर तक तो मझ होश ही न रहा-कहा जाती ह, कयो जाती ह, कहा स आती ह- िफर म रोन लगी। अनपन पयारो का मोह सफर की भाित मन म उमड पडा। और म उसम डबन-उतरान लगी। अनब मालम हआ, कया कछ खिोकर चली जा रही ह। ऐसा जान पडता था

122 www.hindustanbooks.com

िक मरा बालक मरी गोद म आन क िलए हमक रहा ह। ऐसा मोह मर मन म कभी न जागा था। म उसकी याद करन लगी। उसका हसना और रोना, उसकी तोतली बात, उसका लटपटात

हए चलना। उस चप करान क िलए चदा माम को िदखिाना, सलान क िलए लोिरया सनाना, एक-एक बात याद आन लगी। मरा वह छोटा-सा ससार िकतना सखिमय था उस रतन को गोद म लकर म िकतनी िनहाल हो जाती थी, मानो ससार की सपितत मर परो क नीच ह। उस सखि क बदल म सवगरय का सखि भी न लती। जस मन की सारी अनिभलाषाए उसी बालक म आकर जमा हो गई हो। अनपना टटा-ठठटा झोपडा, अनपन मल-कचल कपड, अनपना नगा-बचापन, कजरय-दाम की िचता, अनपनी दिरदरता, अनपना दभागय, य सभी पन काट जस फल बन गए। अनगर कोई कामना थी, तो यह िक मर लाल को कछ न होन पाए। और आज उसी को छोडकर म न जान कहा चली जा रही थी- मरा िचतत चचल हो गया। मन की सारी समितया सामन दौडन वाल वकषो की तरह, जस मर साथ दौडी चली आ रही थी, और उनही क साथ मरा बालक भी जस मझ दौडता चला आता था। आिखिर म आग न जा सकी। दिनया हसती ह, हस। िबरादरी िनकालती ह, िनकाल द, म अनपन लाल को छोडकर न जाऊगी। महनत-मजदरी करक भी तो अनपना िनबाह कर सकती ह। अनपन लाल को आखिो स दखिती तो रहगी। उस मरी गोद स कौन छीन सकता ह म उसक िलए मरी ह, मन उस अनपन रकत स िसरजा ह। वह मरा ह। उस पर िकसी का अनिधकार नही।

जयोही लखिनऊ आया, म गाडी स उतर पडी। मन िनशचिय कर िलया, लौटती गाडी स काशी चली जाऊगी। जो कछ होना होगा, होगा।

म िकतनी दर पलटगामरय पर खिडी रही, मालम नही। िबजली की बिततयो स सारा सटशन जगमगा रहा था। म बार-बार किलयो स पछती थी, काशी की गाडी कब आएगी- कोई दस बज मालम हआ, गाडी आ रही ह। मन अनपना सामान सभाला। िदल धडकन लगा। गाडी आ गई। मसािफर चढन-उतरन लग। कली न आकर कहा-अनसबाब जनान िडबब म रख िक मदान म-

मर मह स आवाज न िनकली।

कली न मर मह की ओर ताकत हए िफर पछा-जनान िडबब म रखि द अनसबाब-

मन कातर होकर कहा-म इस गाडी स न जाऊगी।

'अनब दसरी गाडी दस बज िदन को िमलगी।'

'म उसी गाडी स जाऊगी।'

'तो अनसबाब बाहर ल चल या मसािफरखिान म?'

'मसािफरखिान म।'

अनमर न पछा-तम उस गाडी स चली कयो न गइ-

मननी कापत हए सवर म बोली-न जान कसा मन होन लगा- जस कोई मर हाथ-पाव बाध लता हो। जस म गऊ-हतया करन जा रही ह। इन कोढ भर हाथो स म अनपन लाल को कस उठाऊगी। मझ अनपन पित पर करोध आ रहा था। वह मर साथ आया कयो नही- अनगर उस मरी परवाह होती, तो मझ अनकली आन दता- इस गाडी स वह भी आ सकता था। जब उसकी इचछा नही ह, तो म भी न जाऊगी। और न जान कौन-कौन-सी बात मन म आकर

123 www.hindustanbooks.com

मझ जस बलपवरयक रोकन लगी। म मसािफरखिान म मन मार बठी थी िक एक मदरय अनपनी औरत क साथ आकर मर ही समीप दरी िबछाकर बठ गया। औरत की गोद म लगभग एक साल का बालक था। ऐसा सदर बालक ऐसा गलाबी रग, ऐसी कटोर-सी आख, ऐसी मकखिन-सी दह म तनमय होकर दखिन लगी और अनपन-पराए की सिध भल गई। ऐसा मालम हआ यह मरा बालक ह। बालक मा की गोद स उतरकर धीर-धीर रगता हआ मरी ओर आया। म पीछ हट गई। बालक िफर मरी तरफ चला। म दसरी ओर चली गई। बालक न समझा, म उसका अननादर कर रही ह। रोन लगा। िफर भी म उसक पास न आई। उसकी माता न मरी ओर रोष-भरी आखिो स दखिकर बालक को दौडकर उठा िलया पर बालक मचलन लगा और बार-बार मरी ओर हाथ बढान लगा। पर म दर खिडी रही। ऐसा जान पडता था, मर हाथ कट गए ह। जस मर हाथ लगात ही वह सोन-सा बालक कछ और हो जाएगा, उसम स कछ िनकल जाएगा।

सतरी न कहा-लडक को जरा उठा लो दवी, तम तो ऐस भाग रही हो जस वह अनछत ह। जो दलार करत ह, उनक पास तो अनभागा जाता नही, जो मह फर लत ह, उनकी ओर दौडता ह।

बाबजी, म तमस नही कह सकती िक इन शबदो न मर मन को िकतनी चोट पहचाई। कस समझा द िक म कलिकनी ह, पािपषठा ह, मर छन स अनिनषटि होगा, अनमगल होगा। और यह जानन पर कया वह मझस िफर अनपना बालक उठा लन को कहगी ।

मन समीप आकर बालक की ओर सनह-भरी आखिो स दखिा और डरत-डरत उस उठान क िलए हाथ बढाया। सहसा बालक िचललाकर मा की तरफ भागा, मानो उसन कोई भयानक रप दखि िलया हो। अनब सोचती ह, तो समझ म आता ह-बालको का यही सवभाव ह पर उस समय मझ ऐसा मालम हआ िक सचमच मरा रप िपशािचनी का-सा होगा। म लिजजत हो गई।

माता न बालक स कहा-अनब जाता कयो नही र, बला तो रही ह। कहा जाओगी बहन- मन हिरदवार बता िदया। वह सतरी-परष भी हिरदवार ही जा रह थ। गाडी छट जान क कारण ठहर गए थ। घर दर था। लौटकर न जा सकत थ। म बडी खिश हई िक हिरदवार तक साथ तो रहगा लिकन िफर वह बालक मरी ओर न आया।

थोडी दर म सतरी-परष तो सो गए पर म बठी ही रही। मा स िचमटा हआ बालक भी सो रहा था। मर मन म बडी परबल इचछा हई िक बालक को उठाकर पयार कर, पर िदल काप रहा था िक कही बालक रोन लग, या माता जाग जाए, तो िदल म कया समझ- म बालक का फल-सा मखिडा दखि रही थी। वह शायद कोई सवपन दखिकर मसकरा रहा था। मरा िदल काब स बाहर हो गया। मन सोत हए बालक को उठाकर छाती स लगा िलया। पर दसर ही कषण म सचत हो गई और बालक को िलटा िदया। उस कषिणक पयार म िकतना आनद था जान पडता था, मरा ही बालक यह रप धरकर मर पास आ गया ह।

दवीजी का हदय बडा कठोर था। बात-बात पर उस ननह-स बालक को िझडक दती, कभी-कभी मार बठती थी। मझ उस वकत ऐसा करोध आता था िक उस खिब डाट। अनपन बालक पर माता इतना करोध कर सकती ह, यह मन आज ही दखिा।

जब दसर िदन हम लोग हिरदवार की गाडी म बठ, तो बालक मरा हो चका था। म तमस कया कह बाबजी, मर सतनो म दध भी उतर आया और माता को मन इस भार स भी मकत कर िदया।

हिरदवार म हम लोग एक धमरयशाला म ठहर। म बालक क मोह-पाश म बधी हई उस दपितत क पीछ-पीछ

124 www.hindustanbooks.com

िफरा करती। म अनब उसकी लौडी थी। बचच का मल-मतर धोना मरा काम था, उस दध िपलाती, िखिलाती। माता का जस गला छट गया लिकन म इस सवा म मगन थी। दवीजी िजतनी आलिसन और घमिडन थी, लालाजी उतन ही शीलवान और दयाल थ। वह मरी तरफ कभी आखि उठाकर भी न दखित। अनगर म कमर म अनकली होती , तो कभी अनदर न जात। कछ-कछ तमहार ही जसा सवभाव था। मझ उन पर दया आती थी। उस ककरकशा क साथ उनका जीवन इस तरह कट रहा था, मानो िबलली क पज म चहा हो। वह उनह बात-बात पर िझडकती। बचार िखििसयाकर रह जात।

पदरह िदन बीत गए थ। दवजी न घर लौटन क िलए कहा। बाबजी अनभी वहा कछ िदन और रहना चाहत थ। इस बात पर तकरार हो गई। म बरामद म बालक को िलए खिडी थी। दवीजी न गरम होकर कहा-तमह रहना हो तो रहो, म तो आज जाऊगी। तमहारी आखिो रासता नही दखिा ह।

पित न डरत-डरत कहा-यहा दस-पाच िदन रहन म हरज ही कया ह- मझ तो तमहार सवासथय म अनभी कोई तबदीली नही िदखिती।

'आप मर सवासथय की िचता छोिडए। म इतनी जलद नही मरी जा रही ह। सच कहत हो, तम मर सवासथय क िलए यहा ठहरना चाहत हो?'

'और िकसिलए आया था।'

'आए चाह िजस काम क िलए हो पर तम मर सवासथय क िलए नही ठहर रह हो। यह पिकरया उन िसतरयो को पढाओ, जो तमहार हथकड न जानती हो। म तमहारी नस-नस पहचानती ह। तम ठहरना चाहत हो िवहार क िलए, करीडा क िलए...'

बाबजी न हाथ जोडकर कहा-अनचछा, अनब रहन दो िबननी, कलिकत न करो। म आज ही चला जाऊगा।

दवीजी इतनी ससती िवजय पाकर परसनन न हइ। अनभी उनक मन का गबार तो िनकलन ही नही पाया था। बोली-हा, चल कयो न चलोग, यही तो तम चाहत थ। यहा पस खिचरय होत ह न ल जाकर उसी काल-कोठरी म डाल दो। कोई मर या िजए, तमहारी बला स। एक मर जाएगी, तो दसरी िफर आ जाएगी, बिलक और नई-नवली। तमहारी चादी ही चादी ह। सोचा था, यहा कछ िदन रहगी पर तमहार मार कही रहन पाऊ। भगवान भी नही उठा लत िक गला छट जाए।

अनमर न पछा-उन बाबजी न सचमच कोई शरारत की थी, या िमथया आरोप था-

मननी न मह फरकर मसकरात हए कहा-लाला, तमहारी समझ बडी मोटी ह। वह डायन मझ पर आरोप कर रही थी। बचार बाबजी दब जात थ िक कही वह चडल बात खिोलकर न कह द, हाथ जोडत थ, िमननत करत थ पर वह िकसी तरह रास न होती थी।

आख मटकाकर बोली-भगवान न मझ भी आख दी ह, अनधी नही ह। म तो कमर म पडी-पडी कराह और तम बाहर गलछररज उडाओ िदल बहलान को कोई शगल चािहए।

धीर-धीर मझ पर रहसय खिलन लगा। मन म ऐसी जवाला उठी िक अनभी इसका मह नोच ल। म तमस कोई परदा नही रखिती लाला, मन बाबजी की ओर कभी आखि उठाकर दखिा भी न था पर यह चडल मझ कलक लगा रही थी। बाबजी का िलहाज न होता, तो म उस चडल का िमजाज ठीक कर दती, जहा सई न चभ, वहा गाल

125 www.hindustanbooks.com

चभाए दती।

आिखिर बाबजी को भी करोध आया ।

'तम िबलकल झठ बोलती हो। सरासर झठ।'

'म सरासर झठ बोलती ह?'

'हा, सरासर झठ बोलती हो।'

'खिा जाओ अनपन बट की कसम।'

मझ चपचाप वहा स टल जाना चािहए था लिकन अनपन इस मन को कया कर, िजसस अननयाय नही दखिा जाता। मरा चहरा मार करोध क तमतमा उठा। मन उसक सामन जाकर कहा-बहजी, बस अनब जबान बद करो, नही तो अनचछा न होगा। म तरह दती जाती ह और तम िसर चढती जाती हो। म तमह शरीफ समझकर तमहार साथ ठहर गई थी। अनगर जानती िक तमहारा सवभाव इतना नीच ह, तो तमहारी परछाइ स भागती। म हरजाई नही ह, न अननाथ ह ,भगवान की दया स मर भी पित ह, पतर ह। िकसमत का खल ह िक यहा अनकली पडी ह। म तमहार पित को पर धोन क जोग भी नही समझती। म उस बलाए दती ह, तम भी दखि लो, बस आज और कल रह जाओ।

अनभी मर मह स परी बात भी न िनकलन पाई थी िक मर सवामी मर लाल को गोद म िलए आकर आगन म खिड हो गए और मझ दखित ही लपककर मरी तरफ चल। म उनह दखित ही ऐसी घबरा गई, मानो कोई िसह आ गया हो, तरत अनपनी कोठरी म जाकर भीतर स दवार बद कर िलए। छाती धाड-धाड कर रही थी पर िकवाड की दरार म आखि लगाए दखि रही थी। सवामी का चहरा सवलाया हआ था, बालो पर धल जमी हई थी, पीठ पर कबल और लिटया-डोर रख हाथ म लबा लटठ िलए भौचकक स खिड थ।

बाबजी न बाहर आकर सवामी स पछा-अनचछा, आप ही इनक पित ह। आप खिब आए। अनभी तो वह आप ही की चचा कर रही थी। आइए, कपड उतािरए। मगर बहन भीतर कयो भाग गइ। यहा परदश म कौन परदा-

मर सवामी को तो तमन दखिा ही ह। उनक सामन बाबजी िबलकल ऐस लगत थ, जस साड क सामन नाटा बल।

सवामी न बाबजी को जवाब न िदया, मर दवार पर आकर बोल-मननी, यह कया अनधर करती हो- म तीन िदन स तमह खिोज रहा ह। आज िमली भी, तो भीतर जा बठी ईशवर क िलए िकवाड खिोल दो और मरी द:खि कथा सन लो, िफर तमहारी जो इचछा हो करना।

मरी आखिो स आस बह रह थ। जी चाहता था, िकवाड खिोलकर बचच को गोद म ल ल।

पर न जान मन क िकसी कोन म कोई बठा हआ कह रहा था-खिबरदार, जो बचच को गोद म िलया जस कोई पयास स तडपता हआ आदमी पानी का बरतन दखिकर टट पर कोई उसस कह द, पानी जठा ह। एक मन कहता था, सवामी का अननादर मत कर, ईशवर न जो पतनी और माता का नाता जोड िदया ह, वह कया िकसी क तोड टट सकता ह दसरा मन कहता था, त अनब अनपन पित को पित और पतर को पतर नही कह सकती। कषिणक मोह क आवश म पडकर त कया उन दोनो को कलिकत कर दगी ।

म िकवाड छोडकर खिडी हो गई ।

126 www.hindustanbooks.com

बचच न िकवाड को अनपनी ननही-ननही हथिलयो स पीछ ढकलन क िलए जोर लगाकर कहा-तयाल थोलो ।

यह तोतल बोल िकतन मीठ थ जस सननाट म िकसी शका स भयभीत होकर हम गान लगत ह, अनपन शबदो स दकल होन की कलपना कर लत ह। म भी इस समय अनपन उमडत हए पयार को रोकन क िलए बोल उठी-तम कयो मर पीछ पड हो- कयो नही समझ लत िक म मर गई- तम ठाकर होकर भी इतन िदल क कचच हो- एक तचछ नारी क िलए अनपना कल-मरजाद डबाए दत हो। जाकर अनपना बयाह कर लो और बचच को पालो। इस जीवन म मरा तमस कोई नाता नही ह। हा, भगवान स यही मागती ह िक दसर जनम म तम िफर मझ िमलो। कयो मरी टक तोड रह हो, मर मन को कयो मोह म डाल रह हो- पितता क साथ तम सखि स न रहोगी। मझ पर दया करो, आज ही चल जाओ, नही म सच कहती ह, जहर खिा लगी।

सवामी न करण आगरह स कहा-म तमहार िलए अनपनी कल-मयादा, भाई-बद सब कछ छोड दगा। मझ िकसी की परवाह नही। घर म आग लग जाए, मझ िचता नही। म या तो तमह लकर जाऊगा, या यही गगा म डब मरगा। अनगर मर मन म तमस रतती भर मल हो, तो भगवान मझ सौ बार नरक द। अनगर तमह नही चलना ह तो तमहारा बालक तमह सौपकर म जाता ह। इस मारो या िजलाओ, म िफर तमहार पास न आऊगा। अनगर कभी सिध आए, तो चलल भर पानी द दना।

लाला, सोचो, म िकतन बड सकट म पडी हई थी। सवामी बात क धनी ह, यह म जानती थी। पराण को वह िकतना तचछ समझत ह, यह भी मझस िछपा न था। िफर भी म अनपना हदय कठोर िकए रही। जरा भी नमरय पडी और सवरयनाश हआ। मन पतथर का कलजा बनाकर कहा-अनगर तम बालक को मर पास छोडकर गए, तो उसकी हतया तमहार ऊपर होगी, कयोिक म उसकी दगरयित दखिन क िलए जीना नही चाहती। उसक पालन का भार तमहार ऊपर ह, तम जानो तमहारा काम जान। मर िलए जीवन म अनगर कोई सखि था, तो यही िक मरा पतर और सवामी कशल स ह। तम मझस यह सखि छीन लना चाहत हो, छीन लो मगर याद रखिो वह मर जीवन का आधार ह।

मन दखिा सवामी न बचच को उठा िलया, िजस एक कषण पहल गोद स उतार िदया था और उलट पाव लौट पड। उनकी आखिो स आस जारी थ, और नही काप रह थ।

दवीजी न भलमनसी स काम लकर सवामी को बठाना चाहा, पछन लगी-कया बात ह, कयो रठी हई ह पर सवामी न कोई जवाब न िदया। बाब साहब फाटक तक उनह पहचान गए। कह नही सकती, दोनो जनो म कया बात हइ पर अननमान करती ह िक बाबजी न मरी परशसा की होगी। मरा िदल अनब भी काप रहा था िक कही सवामी सचमच आतमघात न कर ल। दिवयो और दवताआ की मनौितया कर रही थी िक मर पयारो की रकषा करना।

जयोही बाबजी लौट, मन धीर स िकवाड खिोलकर पछा-िकधर गए- कछ और कहत थ-

बाबजी न ितरसकार-भरी आखिो स दखिकर कहा-कहत कया, मह स आवाज भी तो िनकल। िहचकी बाधी हई थी। अनब भी कशल ह, जाकर रोक लो। वह गगाजी की ओर ही गए ह। तम इतनी दयावान होकर भी इतनी कठोर हो, यह आज ही मालम हआ। गरीब, बचचो की तरह ठठक-ठठटकर रो रहा था।

म सकट की उस दशा को पहच चकी थी, जब आदमी परायो को अनपना समझन लगता ह। डाटकर बोली-तब भी तम दौड यहा चल आए। उनक साथ कछ दर रह जात, तो छोट न हो जात, और न यहा दवीजी को कोई उठा ल जाता। इस समय वह आप म नही ह, िफर भी तम उनह छोडकर भाग चल आए।

127 www.hindustanbooks.com

दवीजी बोली-यहा न दौड आत, तो कया जान म कही िनकल भागती- लो, आकर घर म बठो। म जाती ह। पकडकर घसीट न लाऊ, तो अनपन बाप की नही ।

धमरयशाला म बीसो ही यातरी िटक हए थ। सब अनपन-अनपन दवार पर खिड यह तमाशा दखि रह थ। दवीजी जयोही िनकली, चार-पाच आदमी उनक साथ हो िलए। आधा घट म सभी लौट आए। मालम हआ िक वह सटशन की तरफ चल गए।

पर म जब तक उनह गाडी पर सवार होत न दखि ल चन कहा- गाडी परात:काल जाएगी। रात-भर वह सटशन पर रहग। जयोही अनधरा हो गया, म सटशन जा पहची। वह एक वकष क नीच कबल िबछाए बठ हए थ। मरा बचचा लोट को गाडी बनाकर डोर स खिीच रहा था। बार-बार िगरता था और उठकर खिीचन लगता था। म एक वकष की आड म बठकर यह तमाशा दखिन लगी। तरह-तरह की बात मन म आन लगी। िबरादरी का ही तो डर ह। म अनपन पित क साथ िकसी दसरी जगह रहन लग, तो िबरादरी कया कर लगी लिकन कया अनब म वह हो सकती ह, जो पहल थी-

एक कषण क बाद िफर वही कलपना। सवामी न साफ कहा ह, उनका िदल साफ ह। बात बनान की उनकी आदत नही। तो वह कोई बात कहग ही कयो, जो मझ लग। गड मरद उखिाडन की उनकी आदत नही। वह मझस िकतना परम करत थ। अनब भी उनका हदय वही ह। म वयथरय क सकोच म पडकर उनका और अनपना जीवन चौपट कर रही ह लिकन

...लिकन म अनब कया वह हो सकती ह, जो पहल थी- नही, अनब म वह नही हो सकती।

पितदव अनब मरा पहल स अनिधक आदर करग। म जानती ह। म घी का घडा भी लढका दगी, तो कछ न कहग। वह उतना ही परम करग लिकन वह बात कहा, जो पहल थी। अनब तो मरी दशा उस रोिगणी की-सी होगी, िजस कोई भोजन रिचकर नही होता।

तो िफर म िजदा ही कयो रह- जब जीवन म कोई सखि नही, कोई अनिभलाषा नही, तो वह वयथरय ह। कछ िदन और रो िलया, तो इसस कया- कौन जानता ह, कया-कया कलक सहन पड कया-कया ददरयशा हो- मर जाना कही अनचछा।

यह िनशचिय करक म उठी। सामन ही पितदव सो रह थ। बालक भी पडा सोता था। ओह िकतना परबल बधन था जस सम का धन हो। वह उस खिाता नही, दता नही, इसक िसवा उस और कया सतोष ह िक उसक पास धन ह। इस बात स ही उसक मन म िकतना बल आ जाता ह म उसी मोह को तोडन जा रही थी।

म डरत-डरत, जस पराणो को आखिो म िलए, पितदव क समीप गई पर वहा एक कषण भी खिडी न रह सकी। जस लोहा खिीचकर चबक स जा िचपटता ह, उसी तरह म उनक मखि की ओर िखिची जा रही थी। मन अनपन मन का सारा बल लगाकर उसका मोह तोड िदया और उसी आवश म दौडी हई गगा क तट पर आई। मोह अनब भी मन स िचपटा हआ था। म गगा म कद पडी।

अनमर न कातर होकर कहा-अनब नही सना जाता, मननी िफर कभी कहना।

मननी मसकराकर बोली-वाह, अनब रह कया गया- म िकतनी दर पानी म रही, कह नही सकती, जब होश आया, तो इसी घर म पडी हई थी। म बहती चली जाती थी। परात:काल चौधरी का बडा लडका समर गगा नहान गया और मझ उठा लाया। तब स म यही ह। अनछतो की इस झोपडी म मझ जो सखि और शाित िमली उसका

128 www.hindustanbooks.com

बखिान कया कर। काशी और पयाग मझ भाभी कहत ह, पर समर मझ बहन कहता था। म अनभी अनचछी तरह उठन-बठन न पाई थी िक वह परलोक िसधार गया।

अनमर क मन म एक काटा बराबर खिटक रहा था। वह कछ तो िनकला पर अनभी कछ बाकी था।

'समर को तमस परम तो होगा ही?'

मननी क तवर बदल गए-हा था, और थोडा नही, बहत था, तो िफर उसम मरा कया बस- जब म सवसथ हो गई, तो एक िदन उसन मझस अनपना परम परकट िकया। मन करोध को हसी म लपटकर कहा-कया तम इस रप म मझस नकी का बदला चाहत हो- अनगर यह नीयत ह, तो मझ िफर ल जाकर गगा म डबा दो। अनगर इस नीयत स तमन मरी पराण-रकषा की, तो तमन मर साथ बडा अननयाय िकया। तम जानत हो, म कौन ह- राजपतनी ह। िफर कभी भलकर भी मझस ऐसी बात न कहना, नही गगा यहा स दर नही ह। समर ऐसा लिजजत हआ िक िफर मझस बात तक नही की पर मर शबदो न उसका िदल तोड िदया। एक िदन मरी पसिलयो म ददरय होन लगा। उसन समझा भत का फर ह। ओझा को बलान गया। नदी चढी हई थी। डब गया। मझ उसकी मौत का िजतना दखि हआ उतना ही अनपन सग भाई क मरन का हआ था। नीचो म भी ऐस दवता होत ह, इसका मझ यही आकर पता लगा। वह कछ िदन और जी जाता, तो इस घर क भाग जाग जात। सार गाव का गलाम था। कोई गाली द, डाट, कभी जवाब न दता।

अनमर न पछा-तब स तमह पित और बचच की खिबर न िमली होगी-

मननी की आखिो स टप-टप आस िगरन लग। रोत-रोत िहचकी बध गई। िफर िससक-िससककर बोली-सवामी परात:काल िफर धमरयशाला म गए। जब उनह मालम हआ िक म रात को वहा नही गई, तो मझ खिोजन लग। िजधर कोई मरा पता बता दता उधर ही चल जात। एक महीन तक वह सार इलाक म मार-मार िफर। इसी िनराशा और िचता म वह कछ सनक गए। िफर हिरदवार आए अनब की बालक उनक साथ न था। कोई पछता तमहारा लडका कया हआ, तो हसन लगत। जब म अनचछी हो गई और चलन-िफरन लगी, तो एक िदन जी म आया, हिरदवार जाकर दखि, मरी चीज कहा गइ। तीन महीन स जयादा हो गए थ। िमलन की आशा तो न थी पर इसी बहान सवामी का कछ पता लगाना चाहती थी। िवचार था-एक िचटठी िलखिकर छोड द। उस धमरयशाला क सामन पहची, तो दखिा, बहत स आदमी दवार पर जमा ह। म भी चली गई। एक आदमी की लाश थी। लोग कह रह थ, वही पागल ह, वही जो अनपनी बीबी को खिोजता िफरता था। म पहचान गई। वह मर सवामी थ। यह सब बात महलल वालो स मालम हइ। छाती पीटकर रह गई। िजस सवरयनाश स डरती थी, वह हो ही गया। जानती िक यह होन वाला ह, तो पित क साथ ही न चली जाती। ईशवर न मझ दोहरी सजा दी लिकन आदमी बडा बहया ह। अनब मरत भी न बना। िकसक िलए मरती- खिाती-पीती भी ह, हसती-बोलती भी ह, जस कछ हआ ही नही। बस, यही मरी राम-कहानी ह।

129 www.hindustanbooks.com

तीसरा भागलाला समरकानत की िजदगी क सार मसब धल म िमल गए। उनहोन कलपना की थी िक जीवन-सधया म

अनपना सवरयसव बट को सौपकर और बटी का िववाह करक िकसी एकात म बठकर भगवत-भजन म िवशराम लग, लिकन मन की मन म ही रह गई। यह तो मानी हई बात थी िक वह अनितम सास तक िवशराम लन वाल पराणी न थ। लडक को बढता दखिकर उनका हौसला और बढता, लिकन कहन को हो गया। बीच म अनमर कछ ढररज पर आता हआ जान पडता था लिकन जब उसकी बिदधि ही भरषटि हो गई, तो अनब उसस म कया आशा की जा सकती थी अनमर म और चाह िजतनी बराइया हो, उसक चिरतर क िवषय म कोई सदह न था पर कसगित म पडकर उसन धमरय भी खिोया, चिरतर भी खिोया और कल-मयादा भी खिोई। लालाजी कितसत सबध को बहत बरा न समझत थ। रईसो म यह परथा पराचीनकाल स चली आती ह। वह रईस ही कया, जो इस तरह का खल न खल लिकन धमरय को छोडन को तयार हो जाना, खिल खिजान समाज की मयादाआ को तोड डालना, यह तो पागलपन ह, बिलक गधापन।

समरकानत का वयावहािरक जीवन उनक धािमक जीवन स िबलकल अनलग था। वयवहार और वयापार म वह धोखिा-धाडी, छल-परपच, सब कछ कषमय समझत थ। वयापार-नीित म सन या कपास म कचरा भर दना, घी म आल या घइया िमला दना, औिचतय स बाहर न था पर िबना सनान िकए वह मह म पानी न डालत थ। चालीस वषो म ऐसा शायद ही कोई िदन हआ हो िक उनहोन सधया समय की आरती न ली हो और तलसी-दल माथ पर न चढाया हो। एकादशी को बराबर िनजरयल वरत रखित थ। साराश यह िक उनका धमरय आडबर मातर था िजसका उनक जीवन म कोई परयोजन न था।

सलीम क घर स लौटकर पहला काम जो लालाजी न िकया, वह सखिदा को फटकारना था। इसक बाद नना की बारी आई। दोनो को रलाकर वह अनपन कमर म गए और खिद रोन लग।

रातो-रात यह खिबर सार शहर म फल गई- तरह-तरह की िमसकौट होन लगी। समरकानत िदन-भर घर स नही िनकल। यहा तक िक आज गगा-सनान करन भी न गए। कई अनसामी रपय लकर आए। मनीम ितजोरी की कजी मागन गए। लालाजी न ऐसा डाटा िक वह चपक स बाहर िनकल गया। अनसामी रपय लकर लौट गए।

िखिदमतगार न चादी का गडगडा लाकर सामन रखि िदया। तबाक जल गया। लालाजी न िनगाली भी मह म न ली।

दस बज सखिदा न आकर कहा-आप कया भोजन कीिजएगा-

लालाजी न उस कठोर आखिो स दखिकर कहा-मझ भखि नही ह।

सखिदा चली गई। िदन-भर िकसी न कछ न खिाया।

नौ बज रात को नना न आकर कहा-दादा, आरती म न जाइएगा-

लालाजी चौक-हा-हा, जाऊगा कयो नही- तम लोगो न कछ खिाया िक नही-

नना बोली-िकसी की इचछा ही न थी। कौन खिाता-

'तो कया उसक पीछ सारा घर पराण दगा?'

सखिदा इसी समय तयार होकर आ गई। बोली-जब आप ही पराण द रह ह, तो दसरो पर िबगडन का

130 www.hindustanbooks.com

आपको कया अनिधकार ह-

लालाजी चादर ओढकर जात हए बोल-मरा कया िबगडा ह िक म पराण द- यहा था, तो मझ कौन-सा सखि दता था- मन तो बट का सखि ही नही जाना। तब भी जलाता था, अनब भी जला रहा ह। चलो, भोजन बनाओ, म आकर खिाऊगा। जो गया, उस जान दो। जो ह उनही को उस जान वाल की कमी परी करनी ह। म कया पराण दन लगा- मन पतर को जनम िदया। उसका िववाह भी मन िकया। सारी गहसथी मन बनाई। इसक चलान का भार मझ पर ह। मझ अनब बहत िदन जीना ह। मगर मरी समझ म यह बात नही आती िक इस लौड को यह कया सझी - पठािनन की पोती अनपसरा नही हो सकती। िफर उसक पीछ यह कयो इतना लटट हो गया- उसका तो ऐसा सवभाव न था। इसी को भगवान की लीला कहत ह।

ठाकरदवार म लोग जमा हो गए। लाला समरकानत को दखित कई सजजनो न पछा-अनमर कही चल गए कया सठजी कया बात हई-

लालाजी न जस इस वार को काटत हए कहा-कछ नही, उसकी बहत िदनो स घमन-घामन की इचछा थी, पवरयजनम का तपसवी ह कोई, उसका बस चल, तो मरी सारी गहसथी एक िदन म लटा द। मझस यह नही दखिा जाता। बस, यही झगडा ह। मन गरीबी का मजा भी चखिा ह अनमीरी का मजा भी चखिा ह। उसन अनभी गरीबी का मजा नही चखिा। साल-छ: महीन उसका मजा चखि लगा, तो आख खिल जाएगी। तब उस मालम होगा िक जनता की सवा भी वही लोग कर सकत ह, िजनक पास धन ह। घर म भोजन का आधार न होता, तो मबरी भी न िमलती।

िकसी को और कछ पछन का साहस न हआ। मगर मखिरय पजारी पछ ही बठा-सना, िकसी जलाह की लडकी स फस गए थ-

यह अनकखिड परशन सनकर लोगो न जीभ काटकर मह फर िलए। लालाजी न पजारी को रकत-भरी आखिो स दखिा और ऊच सवर म बोल-हा फस गए थ, तो िफर- कतषण भगवान न एक हजार रािनयो क साथ नही भोग िकया था- राजा शानतन न मछए की कनया स नही भोग िकया था- कौन राजा ह, िजसक महल म सौ दो-सौ रािनया न हो। अनगर उसन िकया तो कोई नई बात नही की। तम जसो क िलए यही जवाब ह। समझदारो क िलए यह जवाब ह िक िजसक घर म अनपसरा-सी सतरी हो, वह कयो जठी पततल चाटन लगा- मोहन भोग खिान वाल आदमी चबन पर नही िगरत।

यह कहत हए लालाजी परितमा क सममखि गए पर आज उनक मन म वह शरधदा न थी। द:खिी आशा स ईशवर म भिकत रखिता ह, सखिी भय स। द:खिी पर िजतना ही अनिधक द:खि पड, उसकी भिकत बढती जाती ह। सखिी पर द:खि पडता ह, तो वह िवदरोह करन लगता ह। वह ईशवर को भी अनपन धन क आग झकाना चाहता ह। लालाजी का वयिथत हदय आज सोन और रशम स जगमगती हई परितमा म धयरय और सतोष का सदश न पा सका। कल तक यही परितमा उनह बल और उतसाह परदान करती थी। उसी परितमा स आज उनका िवपदगरसत मन िवदरोह कर रहा था। उनकी भिकत का यही परसकार ह- उनक सनान और वरत और िनषठा का यही फल ह ।

वह चलन लग तो बरहयचारी बोल-लालाजी, अनबकी यहा शरी वालमीकीय कथा का िवचार ह।

लालाजी न पीछ िफरकर कहा-हा-हा, होन दो।

एक बाब साहब न कहा-यहा िकसी म इतना सामथयरय नही ह। आप ही िहममत कर, तो हो सकती ह।

131 www.hindustanbooks.com

समरकानत न उतसाह स कहा-हा-हा, म उसका सारा भार लन को तयार ह। भगवद भजन स बढकर धन का सदपयोग और कया होगा-

उनका यह उतसाह दखिकर लोग चिकत हो गए। वह कतपण थ और िकसी धमरयकायरय म अनगरसर न होत थ। लोगो न समझा था, इसस दस-बीस रपय ही िमल जाय, तो बहत ह। उनह यो बाजी मारत दखिकर और लोग भी गरमाए। सठ धानीराम न कहा-आपस सारा भार लन को नही कहा जाता, लालाजी आप लकषमी-पातर ह सही पर औरो को भी तो शरधदा ह। चद स होन दीिजए।

समरकानत बोल-तो और लोग आपस म चदा कर ल। िजतनी कमी रह जाएगी, वह म परी कर दगा।

धानीराम को भय हआ, कही यह महाशय ससत न छट जाए। बोल-यह नही, आपको िजतना िलखिना हो िलखि द।

समरकानत न होड क भाव स कहा-पहल आप िलिखिए।

कागज, कलम, दावात लाया गया, धानीराम न िलखिा एक सौ एक रपय।

समरकानत न बरहयचारीजी स पछा-आपक अननमान स कल िकतना खिचरय होगा-

बरहयचारीजी का तखिमीना एक हजार का था।

समरकानत न आठ सौ िननयानव िलखि िदए। और वहा स चल िदए। सचची शरधदा की कमी को वह धन स परा करना चाहत थ। धमरय की कषित िजस अननपात स होती ह, उसी अननपात स आडबर की विधद होती ह।

132 www.hindustanbooks.com

दोअनमरकानत का पतर िलए हए नना अनदर आई, तो सखिदा न पछा-िकसका पतर ह-

नना न खित पात ही पढ डाला था। बोली-भया का।

सखिदा न पछा-अनचछा उनका खित ह- कहा ह-

'हिरदवार क पास िकसी गाव म ह।'

आज पाच महीनो स दोनो म अनमरकानत की कभी चचा न हई थी। मानो वह कोई घाव था, िजसको छत दोनो ही क िदल कापत थ। सखिदा न िफर कछ न पछा। बचच क िलए पराक सी रही थी। िफर सीन लगी।

नना पतर का जवाब िलखिन लगी। इसी वकत वह जवाब भज दगी। आज पाच महीन म आपको मरी सिध आई ह। जान कया-कया िलखिना चाहती थी- कई घटो क बाद वह खित तयार हआ, जो हम पहल ही दखि चक ह। खित लकर वह भाभी को िदखिान गई। सखिदा न दखिन की जररत न समझी।

नना न हताश होकर पछा-तमहारी तरफ स भी कछ िलखि द-

'नही, कछ नही।'

'तमही अनपन हाथ स िलखि दो।'

'मझ कछ नही िलखिना ह।'

नना रआसी होकर चली गई। खित डाक म भज िदया गया।

सखिदा को अनमर क नाम स भी िचढ ह। उसक कमर म अनमर की तसवीर थी, उस उसन तोडकर फक िदया था। अनब उसक पास अनमर की याद िदलान वाली कोई चीज न थी। यहा तक की बालक स भी उसका जी हट गया था। वह अनब अनिधकतर नना क पास रहता था। सनह क बदल वह उस पर दया करती थी पर इस पराजय न उस हताश नही िकया उसका आतमािभमान कई गना बढ गया ह। आतमिनभरयर भी अनब वह कही जयादा हो गई ह। वह अनब िकसी की उपकषा नही करना चाहती। सनह क दबाव क िसवा और िकसी दबाव स उसका मन िवदरोह करन लगता ह। उसकी िवलािसता मानो मान क वन म खिो गई ह ।

लिकन आशचियरय की बात यह ह िक सकीना स उस लशमातर भी दवष नही ह। वह उस भी अनपनी ही तरह, बिलक अनपन स अनिधक द:खिी समझती ह। उसकी िकतनी बदनामी हई और अनब बचारी उस िनदरययी क नाम को रो रही ह। वह सारा उनमाद जाता रहा। ऐस िछछोरो का एतबार ही कया- वहा कोई दसरा िशकार फास िलया होगा। उसस िमलन की उस बडी इचछा थी पर सोच-सोचकर रह जाती थी।

एक िदन पठािनन स मालम हआ िक सकीना बहत बीमार ह। उस िदन सखिदा न उसस िमलन का िनशचिय कर िलया। नना को भी साथ ल िलया। पठािनन न रासत म कहा-मर सामन तो उसका मह ही बद हो जाएगा। मझस तो तभी स बोल-चाल नही ह। म तमह घर िदखिाकर कही चली जाऊगी। ऐसी अनचछी शादी हो रही थी उसन मजर ही न िकया। म भी चप ह, दखि कब तक उसक नाम को बठी रहती ह। मर जीतजी तो लाला घर म कदम रखिन न पाएग। हा, पीछ को नही कह सकती।

सखिदा न छडा-िकसी िदन उनका खित आ जाय और सकीना चली जाय तो कया करोगी-

133 www.hindustanbooks.com

बिढया आख िनकालकर बोली-मजाल ह िक इस तरह चली जाय खिन पी जाऊ।

सखिदा न िफर छडा-जब वह मसलमान होन को कहत ह, तब तमह कया इकार ह-

पठािनन न कानो पर हाथ रखिकर कहा-अनर बटा िजसका िजदगी भर नमक खिाया उसका घर उजाडकर अनपना घर बनाऊ- यह शरीफो का काम नही ह। मरी तो समझ ही म नही आता, छोकरी म कया दखिकर भया रीझ पड।

अनपना घर िदखिाकर पठािनन तो पडोस क घर म चली गई, दोनो यवितयो न सकीना क दवार की कडी खिटखिटाई। सकीना न उठकर दवार खिोल िदया। दोनो को दखिकर वह घबरा- सी गई। जस कही भागना चाहती ह। कहा बठाए, कया सतकार कर ।

सखिदा न कहा-तम परशान न हो बहन, हम इस खिाट पर बठ जात ह। तम तो जस घलती जाती हो। एक बवफा मरद क चकम म पडकर कया जान द दोगी-

सकीना का पीला चहरा शमरय स लाल हो गया। उस ऐसा जान पडा िक सखिदा मझस जवाब तलब कर रही ह-तमन मरा बना-बनाया घर कयो उजाड िदया- इसका सकीना क पास कोई जवाब न था। वह काड कछ इस आकिसमक रप स हआ िक वह सवय कछ न समझ सकी। पहल बादल का एक टकडा आकाश क एक कोन म िदखिाई िदया। दखित-दखित सारा आकाश मघाचछनन हो गया और ऐस जोर की आधी चली िक वह खिद उसम उड गई। वह कया बताए कस कया हआ- बादल क उस टकड को दखिकर कौन कह सकता था, आधी आ रही ह-

उसन िसर झकाकर कहा-औरत की िजदगी और ह ही िकसिलए बहनजी वह अनपन िदल स लाचार ह, िजसस वफा की उममीद करती ह, वही दगा करता ह। उसका कया अनिखतयार- लिकन बवफाआ स महबबत न हो, तो महबबत म मजा ही कया रह- िशकवा-िशकायत, रोना-धोना, बताबी और बकरारी यही तो महबबत क मज ह, िफर म तो वफा की उममीद भी नही करती थी। म उस वकत भी इतना जानती थी िक यह आधी दो-चार घडी की महमान ह लिकन तसकीन क िलए तो इतना ही काफी था िक िजस आदमी की म िदल म सबस जयादा इजजत करन लगी थी, उसन मझ इस लायक तो समझा। म इस कागज की नाव पर बठकर भी सफर को पार कर दगी।

सखिदा न दखिा, इस यवती का हदय िकतना िनषकपट ह कछ िनराश होकर बोली- यही तो मरदो क हथकड ह। पहल तो दवता बन जाएग, जस सारी शराफत इनही पर खितम ह, िफर तोतो की तरह आख फर लग।

सकीना न िढठाई क साथ कहा-बहन, बनन स कोई दवता नही हो जाता। आपकी उमर चाह साल-दो साल मझस जयादा हो लिकन म इस मआमल म आपस जयादा तजबा रखिती ह। यह घमड स नही कहती, शमरय स कहती ह। खिदा न कर, गरीब की लडकी हसीन हो। गरीबी म हसन बला ह। वहा बडो का तो कहना ही कया , छोटो की रसाई भी आसानी स हो जाती ह। अनममा बडी पारसा ह, मझ दवी समझती होगी, िकसी जवान को दरवाज पर खिडा नही होन दती लिकन इस वकत बात आ पडी ह, तो कहना पडता ह िक मझ मरदो को दखिन और परखिन क काफी मौक िमल ह। सभी न मझ िदल-बहलाव की चीज समझा, और मरी गरीबी स अनपना मतलब िनकालना चाहा। अनगर िकसी न मझ इजजत की िनगाह स दखिा, तो वह बाबजी थ। म खिदा को गवाह करक कहती ह िक उनहोन मझ एक बार भी ऐसी िनगाहो स नही दखिा और न एक कलाम भी ऐसा मह स िनकाला , िजसस िछछोरपन की ब आई हो। उनहोन मझ िनकाह की दावत दी। मन मजर कर िलया। जब तक वह खिद उस दावत को रपर न कर द, म उसकी पाबद ह, चाह मझ उमर भर यो ही कयो न रहना पड। चार-पाच बार की मखतसर

134 www.hindustanbooks.com

मलाकातो स मझ उन पर इतना एतबार हो गया ह िक म उमर भर उनक नाम पर बठी रह सकती ह। म अनब पछताती ह िक कयो न उनक साथ चली गई। मर रहन स उनह कछ तो आराम होता। कछ तो उनकी िखिदमत कर सकती। इसका तो मझ यकीन ह िक उन पर रग-रप का जाद नही चल सकता। हर भी आ जाय, तो उसकी तरफ आख उठाकर न दखग, लिकन िखिदमत और मोहबबत का जाद उन पर बडी आसानी स चल सकता ह। यही खिौफ ह। म आपस सचच िदल स कहती ह बहन, मर िलए इसस बडी खिशी की बात नही हो सकती िक आप और वह िफर िमल जाय, आपस का मनमटाव दर हो जाय। म उस हालत म और भी खिश रहगी। म उनक साथ न गई, इसका यही सबब था लिकन बरा न मानो तो एक बात कह-

वह चप होकर सखिदा क उततर का इतजार करन लगी। सखिदा न आशवासन िदया-तम िजतनी साफ िदली स बात कर रही हो, उसस अनब मझ तमहारी कोई बात भी बरी न मालम होगी। शौक स कहो।

सकीना न धनयवाद दत हए कहा-अनब तो उनका पता मालम हो गया ह, आप एक बार उनक पास चली जाय। वह िखिदमत क गलाम ह और िखिदमत स ही आप उनह अनपना सकती ह।

सखिदा न पछा-बस, या और कछ-

'बस, और म आपको कया समझाऊगी, आप मझस कही जयादा समझदार ह।'

'उनहोन मर साथ िवशवासघात िकया ह। म ऐस कमीन आदमी की खिशामद नही कर सकती। अनगर आज म िकसी मरद क साथ चली जाऊ, तो तम समझती हो, वह मझ मनान जाएग- वह शायद मरी गदरयन काटन जाय। म औरत ह, और औरत का िदल इतना कडा नही होता लिकन उनकी खिशामद तो म मरत दम तक नही कर सकती।'

यह कहती हई सखिदा उठ खिडी हई। सकीना िदल म पछताई िक कयो जररत स जयादा बहनापा जताकर उसन सखिदा को नाराज कर िदया। दवार तक माफी मागती हई आई।

दोनो ताग पर बठी, तो नना न कहा-तमह करोध बहत जलद आ जाता ह, भाभी

सखिदा न तीकषण सवर म कहा-तम तो ऐसा कहोगी ही, अनपन भाई की बहन हो न ससार म ऐसी कौन औरत ह, जो ऐस पित को मनान जाएगी- हा, शायद सकीना चली जाती इसिलए िक उस आशातीत वसत िमल गई ह।

एक कषण क बाद िफर बोली-म इसस सहानभित करन आई थी पर यहा स परासत होकर जा रही ह। इसक िवशवास न मझ परासत कर िदया। इस छोकरी म वह सभी गण ह, जो परषो को आकतषटि करत ह। ऐसी ही िसतरया परषो क हदय पर राज करती ह। मर हदय म कभी इतनी शरधदा न हई। मन उनस हसकर बोलन, हास-पिरहास करन और अनपन रप और यौवन क परदशरयन म ही अनपन कतरयवय का अनत समझ िलया। न कभी परम िकया, न परम पाया। मन बरसो म जो कछ न पाया, वह इसन घटो म पा िलया। आज मझ कछ-कछ जञात हआ िक मझम कया तरिटया ह- इस छोकरी न मरी आख खिोल दी।

135 www.hindustanbooks.com

तीनएक महीन स ठाकरदवार म कथा हो रही ह। प मधसदनजी इस कला म परवीण ह। उनकी कथा म शरवय और

दशय, दोनो ही कावयो का आनद आता ह। िजतनी आसानी स वह जनता को हसा सकत ह, उतनी ही आसानी स रला भी सकत ह। दषटिातो क तो मानो वह सफर ह, और नाटय म इतन कशल ह िक जो चिरतर दशात ह, उनकी तसवीर खिीच दत ह। सारा शहर उमड पडता ह। रणकादवी तो साझ ही स ठाकरदवार म पहच जाती ह। वयासजी और उनक भजनीक सब उनही क महमान ह। नना भी मनन को गोद म लकर पहच जाती ह। कवल सखिदा को कथा म रिच नही ह। वह नना क बार-बार आगरह करन पर भी नही जाती। उसका िवदरोही मन सार ससार स परितकार करन क िलए जस नगी तलवार िलए खिडा रहता ह। कभी-कभी उसका मन इतना उिदवगन हो जाता ह िक समाज और धमरय क सार बधनो को तोडकर फक द। ऐस आदिमयो की सजा यही ह िक उनकी िसतरया भी उनही क मागरय पर चल। तब उनकी आख खिलगी और उनह जञात होगा िक जलना िकस कहत ह। एक म कल-मयादा क नाम को रोया कर लिकन यह अनतयाचार बहत िदनो न चलगा। अनब कोई इस भरम म न रह िक पित जो कर, उसकी सतरी उसक पाव धोधोकर िपएगी, उस अनपना दवता समझगी, उसक पाव दबाएगी और वह उसस हसकर बोलगा, तो अनपन भागय को धनय मानगी। वह िदन लद गए। इस िवषय पर उसन पतरो म कई लखि भी िलख ह।

आज नना बहस कर बठी-तम कहती हो, परष क आचार-िवचार की परीकषा कर लनी चािहए। कया परीकषा कर लन पर धोखिा नही होता- आए िदन तलाक कयो होत रहत ह-

सखिदा बोली-तो इसम कया बराई ह- यह तो नही होता िक परष तो गलछररज उडाव और सतरी उसक नाम को रोती रह-

नना न जस रट हए वाकय को दहराया-परम क अनभाव म सखि कभी नही िमल सकता। बाहरी रोकथाम स कछ न होगा।

सखिदा न छडा-मालम होता ह, आजकल यह िवदया सीखि रही हो। अनगर दखि-भालकर िववाह करन म कभी-कभी धोखिा हो सकता ह, तो िबना दख-भाल करन म बराबर धोखिा होता ह। तलाक की परथा यहा हो जान दो, िफर मालम होगा िक हमारा जीवन िकतना सखिी ह।

नना इसका कोई जवाब न द सकी। कल वयासजी न पिशचिमी िववाह-परथा की तलना भारतीय पित स की। वही बात कछ उखिडी-सी उस याद थी।

बोली-तमह कथा म चलना ह िक नही, यह बताओ।

'तम जाओ, म नही जाती।'

नना ठाकरदवार म पहची तो कथा आरभ हो गई थी। आज और िदनो स जयादा हजम था। नौजवान-सभा और सवा-पाठशाला क िवदयाथी और अनधयापक भी आए हए थ। मधसदनजी कह रह थ-राम-रावण की कथा तो इस जीवन की, इस ससार की कथा ह इसको चाहो तो सनना पडगा, न चाहो तो सनना पडगा। इसस हम-तम बच नही सकत। हमार ही अनदर राम भी ह, रावण भी ह, सीता भी ह, आिद...।।

सहसा िपछली सगो म कछ हलचल मची। बरहयचारीजी कई आदिमयो को हाथ पकड-पकडकर उठा रह थ और जोर-जोर स गािलया द रह थ। हगामा हो गया। लोग इधर-उधर स उठकर वहा जमा हो गए। कथा बद हो

136 www.hindustanbooks.com

गई-

समरकानत न पछा-कया बात ह बरहयचारीजी-

बरहयचारीजी न बरहयतज स लाल-लाल आख िनकालकर कहा-बात कया ह, यहा लोग भगवान की कथा सनन आत ह िक अनपना धमरय भरषटि करन आत ह भगी, चमार िजस दखिो घसा चला आता ह-ठाकरजी का मिदर न हआ सराय हई ।

समरकानत न कडककर कहा-िनकाल दो सभी को मारकर ।

एक बढ न हाथ जोडकर कहा-हम तो यहा दरवाज पर बठ थ सठजी, जहा जत रख ह। हम कया ऐस नादान ह िक आप लोगो क बीच म जाकर बठ जात-

बरहयचारी न उस एक जता जमात हए कहा-त यहा आया कयो- यहा स वहा तक एक दरी िबछी हई ह। सब-का-सब भरभड हआ िक नही- परसाद ह, चरणामत ह, गगाजल ह। सब िमटटी हआ िक नही- अनब जाड-पाल म लोगो को नहाना-धोना पडगा िक नही- हम कहत ह त बढा हो गया िमठआ, मरन क िदन आ गए, पर तझ अनकल भी नही आई। चला ह वहा स बडा भगत की पछ बनकर ।

समरकानत न िबगडकर कहा-और भी कभी आया था िक आज ही आया ह-

िमठआ बोला-रोज आत ह महाराज, यही दरवाज पर बठकर भगवान की कथा सनत ह।

बरहयचारीजी न माथा पीट िलया। य दषटि रोज यहा आत थ रोज सबको छत थ। इनका छआ हआ परसाद लोग रोज खिात थ इसस बढकर अननथरय कया हो सकता ह- धमरय पर इसस बडा आघात और कया हो सकता ह- धामातमाआ क करोध का पारावार न रहा। कई आदमी जत ल-लकर उन गरीबो पर िपल पड। भगवान क मिदर म, भगवान क भकतो क हाथो, भगवान क भकतो पर पादका-परहार होन लगा।

डॉकटर शािनतकमार और उनक अनधयापक खिड जरा दर तक यह तमाशा दखित रह। जब जत चलन लग तो सवामी आतमाननद अनपना मोटा सोटा लकर बरहयचारी की तरफ लपक।

डॉकटर साहब न दखिा, घोर अननथरय हआ चाहता ह। झपटकर आतमाननद क हाथो स सोटा छीन िलया।

आतमाननद न खिन-भरी आखिो स दखिकर कहा-आप यह दशय दखि सकत ह, म नही दखि सकता।

शािनतकमार न उनह शात िकया और ऊची आवाज स बोल-वाह र ईशवर-भकतो वाह कया कहना ह तमहारी भिकत का जो िजतन जत मारगा, भगवान उस पर उतन परसनन होग। उस चारो पदाथरय िमल जाएग। सीधो सवगरय स िवमान आ जाएगा। मगर अनब चाह िजतना मारो, धमरय तो नषटि हो गया।

बरहयचारी, लाला समरकानत, सठ धानीराम और अननय धमरय क ठकदारो न चिकत होकर शािनतकमार की ओर दखिा। जत चलन बद हो गए।

शािनतकमार इस समय कता और धोती पहन, माथ पर चदन लगाए, गल म चादर डाल वयास क छोट भाई स लग रह थ। यहा उनका वह वयसन न था, िजस पर िवधमी होन का आकषप िकया जा सकता था।

डॉकटर साहब न िफर ललकार कहा-आप लोगो न हाथ कयो बद कर िलए- लगाइए कस-कसकर और जतो स कया होता ह- बदक मगाइए और धमरय-दरोिहयो का अनत कर डािलए। सरकार कछ नही कर सकती। और तम

137 www.hindustanbooks.com

धमरय-दरोिहयो तम सब-क-सब बठ जाओ और िजतन जत खिा सको, खिाओ। तमह इतनी खिबर नही िक यहा सठ महाजनो क भगवान रहत ह तमहारी इतनी मजाल िक इनक भगवान क मिदर म कदम रखिो तमहार भगवान िकसी झोपड म या पड तल होग। यह भगवान रतनो क आभषण पहनत ह। मोहनभोग-मलाई खिात ह। चीथड पहनन वालो और चबना खिान वालो की सरत वह नही दखिना चाहत।

बरहयचारीजी परशराम की भाित िवकराल रप िदखिाकर बोल-तम तो बाबजी, अनधर करत हो। सासतर म कहा िलखिा ह िक अनतयजो को मिदर म आन िदया जाए-

शािनतकमार न आवश स कहा-कही नही। शासतर म यह िलखिा ह िक घी म चबी िमलाकर बचो, टनी मारो, िरशवत खिाओ। आखिो म धल झोको और जो तमस बलवान ह उनक चरण धोधोकर पीयो, चाह वह शासतर को परो स ठकरात हो। तमहार शासतर म यह िलखिा ह, तो यह करो। हमार शासतर म तो यह िलखिा ह िक भगवान की दिषटि म न कोई छोटा ह न बडा, न कोई शदधि और न कोई अनशदधि। उसकी गोद सबक िलए खिली हई ह।

समरकानत न कई आदिमयो को अनतयजो का पकष लन क िलए तयार दखिकर उनह शात करन की चषटिा करत हए कहा-डॉकटर साहब, तम वयथरय इतना करोध कर रह हो। शासतर म कया िलखिा ह, कया नही िलखिा ह, यह तो पिडत ही जानत ह। हम तो जसी परथा दखित ह, वह करत ह। इन पािजयो को सोचना चािहए था या नही- इनह तो यहा का हाल मालम ह, कही बाहर स तो नही आए ह-

शािनतकमार का खिन खिौल रहा था-आप लोगो न जत कयो मार-

बरहयचारी न उजडडपन स कहा-और कया पान-फल लकर पजत-

शािनतकमार उततोिजत होकर बोल-अनध भकतो की आखिो म धल झोककर यह हलव बहत िदन खिान को न िमलग महाराज, समझ गए- अनब वह समय आ रहा ह, जब भगवान भी पानी स सनान करग, दध स नही।

सब लोग हा-हा करत ही रह पर शािनत कमार, आतमाननद और सवा-पाठशाला क छातर उठकर चल िदए। भजन-मडली का मिखिया सवाशरम का बरजनाथ था। वह भी उनक साथ ही चला गया।

138 www.hindustanbooks.com

चारउस िदन िफर कथा न हई। कछ लोगो न बरहयचारी ही पर आकषप करना शर िकया। बठ तो थ बचार एक

कोन म, उनह उठान की जररत ही कया थी- और उठाया भी, तो नमरता स उठात। मार-पीट स कया फायदा-

दसर िदन िनयत समय पर कथा शर हई पर शरोताआ की सखया बहत कम हो गई थी। मधसदनजी न बहत चाहा िक रग जमा द पर लोग जमहाइया ल रह थ और िपछली सगो म तो लोग धडलल स सो रह थ। मालम होता था, मिदर का आगन कछ छोटा हो गया ह, दरवाज कछ नीच हो गए ह, भजन-मडली क न होन स और भी सननाटा ह। उधर नौजवान सभा क सामन खिल मदान म शािनतकमार की कथा हो रही थी। बरजनाथ, सलीम, आतमाननद आिद आन वालो का सवागत करत थ। थोडी दर म दिरया छोटी पड गइ और थोडी दर और गजरन पर मदान भी छोटा पड गया। अनिधकाश लोग नग बदन थ, कछ लोग चीथड पहन हए। उनकी दह स तबाक और मलपन की दगधा आ रही थी। िसतरया आभषणहीन, मली-कचली धोितया या लहग पहन हए थी। रशम और सगध और चमकील आभषणो का कही नाम न था, पर हदयो म दया थी, धमरय था, सवा-भाव था, तयाग था। नए आन वालो को दखित ही लोग जगह घरन को पाव न फला लत थ, यो न ताकत थ, जस कोई शतर आ गया हो बिलक और िसमट जात थ और खिशी स जगह द दत थ।

नौ बज कथा आरभ हई। यह दवी-दवताआ और अनवतारो की कथा न थी। बरहयिषयो क तप और तज का वततात न था, कषितरयो क शौयरय और दान की गाथा न थी। यह उस परष का पावन चिरतर था, िजसक यहा मन और कमरय की शदवता ही धमरय का मल ततव ह। वही ऊचा ह, िजसका मन शदधि ह वही नीच ह, िजसका मन अनशदधि ह-िजसन वणरय का सवाग रचकर समाज क एक अनग को मदाधा और दसर को मलचछ नही बनाया िकसी क िलए उननित या उधार का दवार नही बद िकया-एक क माथ पर बडपपन का ितलक और दसर क माथ पर नीचता का कलक नही लगाया। इस चिरतर म आतमोननित का एक सजीव सदश था, िजस सनकर दशरयको को ऐसा परतीत होता था, मानो उनकी आतमा क बधन खिल गए ह ससार पिवतर और सदर हो गया ह।

नना को भी धमरय क पाखिड स िचढ थी। अनमरकानत उसस इस िवषय पर अनकसर बात िकया करता था। अनछतो पर यह अनतयाचार दखिकर उसका खिन भी खिौल उठा था। समरकानत का भय न होता, तो उसन बरहयचारीजी को फटकार बताई होती इसीिलए जब शािनतकमार न ितलकधाािरयो को आड हाथ िलया , तो उसकी आतमा जस मगध होकर उनक चरणो पर लोटन लगी। अनमरकानत स उनका बखिान िकतनी ही बार सन चकी थी। इस समय उनक परित उसक मन म ऐसी शरधदा उठी िक जाकर उनस कह-तम धमरय क सचच दवता हो, तमह नमसकार करती ह। अनपन आसपास क आदिमयो को करोिधत दखि-दखिकर उस भय हो रहा था िक कही यह लोग उन पर टट न पड। उसक जी म आता था, जाकर डॉकटर क पास खिडी हो जाए और उनकी रकषा कर। जब वह बहत-स आदिमयो क साथ चल गए, तो उसका िचतत शात हो गया। वह भी सखिदा क साथ घर चली आई।

सखिदा न रासत म कहा-य दषटि न जान कहा स फट पड- उस पर डॉकटर साहब उलट उनही का पकष लकर लडन को तयार हो गए।

नना न कहा-भगवान न तो िकसी को ऊचा और िकसी को नीचा नही बनाया-

'भगवान न नही बनाया, तो िकसन बनाया?'

'अननयाय न।'

139 www.hindustanbooks.com

'छोट-बड ससार म सदा रह ह और रहग।'

नना न वाद-िववाद करना उिचत न समझा।

दसर िदन सधया समय उस खिबर िमली िक आज नौजवान-सभा म अनछतो क िलए अनलग कथा होगी, तो उसका मन वहा जान क िलए लालाियत हो उठा। वह मिदर म सखिदा क साथ तो गई पर उसका जी उचाट हो रहा था। जब सखिदा झपिकया लन लगी-आज यह कततय शीघर ही होन लगा-तो वह चपक स बाहर आई और एक ताग पर बठकर नौजवान-सभा चली। वह दर स जमाव दखिकर लौट आना चाहती थी, िजसम सखिदा को उसक आन की खिबर न हो। उस दर स गस की रोशनी िदखिाई दी। जरा और आग बढी, तो बरजनाथ की सवर लहिरया कानो म आइ। तागा उस सथान पर पहचा, तो शािनतकमार मच पर आ गए थ। आदिमयो का एक समदर उमडा हआ था और डॉकटर साहब की परितभा उस समदर क ऊपर िकसी िवशाल वयापक आतमा की भाित छाई हई थी। नना कछ दर तो ताग पर मतर-मगध-सी बठी सनती रही, िफर उतरकर िपछली कतार म सबक पीछ खिडी हो गई।

एक बिढया बोली-कब तक खिडी रहोगी िबिटया, भीतर जाकर बठ जाओ।

नना न कहा-बड आराम स ह। सनाई द रहा ह।

बिढया आग थी। उसन नना का हाथ पकडकर अनपनी जगह पर खिीच िलया और आप उसकी जगह पर पीछ हट आई। नना न अनब शािनतकमार को सामन दखिा। उनक मखि पर दवोपम तज छाया हआ था। जान पडता था , इस समय वह िकसी िदवय जगत म ह। मानो वहा की वाय सधामयी हो गई ह। िजन दिरदर चहरो पर वह फटकार बरसत दखिा करती थी, उन पर आज िकतना गवरय था, मानो व िकसी नवीन सपितत क सवामी हो गए ह। इतनी नमरता, इतनी भदरता, इन लोगो म उसन कभी न दखिी थी।

शािनतकमार कह रह थ-कया तम ईशवर क घर स गलामी करन का बीडा लकर आए हो- तम तन-मन स दसरो की सवा करत हो पर तम गलाम हो। तमहारा समाज म कोई सथान नही। तम समाज की बिनयाद हो। तमहार ही ऊपर समाज खिडा ह, पर तम अनछत हो। तम मिदरो म नही जा सकत। ऐसी अननीित इस अनभाग दश क िसवा और कहा हो सकती ह- कया तम सदव इसी भाित पितत और दिलत बन रहना चाहत हो-

एक आवाज आई-हमारा कया बस ह-

शािनतकमार न उततजना-पणरय सवर म कहा-तमहारा बस उस समय तक कछ नही ह जब तक समझत हो तमहारा बस नही ह। मिदर िकसी एक आदमी या समदाय की चीज नही। वह िहनद-मातर की चीज ह। यिद तमह कोई रोकता ह, तो यह उसकी जबदरयसती ह। मत टलो उस मिदर क दवार स, चाह तमहार ऊपर गोिलयो की वषा ही कयो न हो तम जरा-जरा-सी बात क पीछ अनपना सवरयसव गवा दत हो, जान द दत हो, यह तो धमरय की बात ह, और धमरय हम जान स भी पयारा होता ह। धमरय की रकषा सदा पराणो स हई ह और पराणो स होगी।

कल की मारधाड न सभी को उततोिजत कर िदया था। िदन-भर उसी िवषय की चचा होती रही। बाईद तयार होती रही। उसम िचगारी की कसर थी। य शबद िचगारी का काम कर गए। सघ-शिकत न िहममत भी बढा दी। लोगो न पगिडया सभाली, आसन बदल और एक-दसर की ओर दखिा, मानो पछ रह हो- चलत हो, या अनभी कछ सोचना बाकी ह- और िफर शात हो गए। साहस न चह की भाित िबल स िसर िनकालकर िफर अनदर खिीच िलया।

140 www.hindustanbooks.com

नना क पास वाली बिढया न कहा-अनपना मिदर िलए रह, हम कया करना ह-

नना न जस िगरती हई दीवार को सभाला-मिदर िकसी एक आदमी का नही ह।

शािनतकमार न गजती हई आवाज म कहा-कौन चलता ह मर साथ अनपन ठाकरजी क दशरयन करन-

बिढया न सशक होकर कहा-कया अनदर कोई जान दगा-

शािनतकमार न मटठी बधकर कहा-म दखिगा कौन नही जान दता- हमारा ईशवर िकसी की सपितत नही ह, जो सदक म बद करक रखिा जाय। आज इस मआमल को तय करना ह, सदा क िलए।

कई सौ सतरी-परष शािनत कमार क साथ मिदर की ओर चल। नना का हदय धडकन लगा पर उसन अनपन मन को िधककारा और जतथ क पीछ-पीछ चली। वह यह सोच-सोचकर पलिकत हो रही थी िक भया इस समय यहा होत तो िकतन परसनन होत। इसक साथ भाित-भाित की शकाए भी बलबलो की तरह उठ रही थी।

जयो-जयो जतथा आग बढता था और लोग आ-आकर िमलत जात थ पर जयो-जयो मिदर समीप आता था, लोगो की िहममत कम होती जाती थी। िजस अनिधकार स य सदव विचत रह, उसक िलए उनक मन म कोई तीवर इचछा न थी। कवल द:खि था मार का। वह िवशवास, जो नयाय-जञान स पदा होता ह, वहा न था। िफर भी मनषयो की सखया बढती जाती थी। पराण दन वाल तो िबरल ही थ। समह की धौस जमाकर िवजय पान की आशा ही उनह बढा रही थी।

जतथा मिदर क सामन पहचा तो दस बज गए थ। बरहयचारीजी कई पजािरयो और पडो क साथ लािठया िलए दवार पर खिड थ। लाला समरकानत भी पतर बदल रह थ।

नना को बरहयचारी पर ऐसा करोध आ रहा था िक जाकर फटकार, तम बड धामातमा बन हो आधी रात तक इसी मिदर म जआ खलत हो, पस-पस पर ईमान बचत हो, झठी गवािहया दत हो, दवार-दवार भीखि मागत हो। िफर भी तम धमरय क ठकदार हो। तमहार तो सपशरय स ही दवताआ को कलक लगता ह।

वह मन क इस आगरह को रोक न सकी। पीछ स भीड को चीरती हई मिदर क दवार को चली आ रही थी िक शािनतकमार की िनगाह उस पर पड गई। चौककर बोल-तम यहा कहा नना- मन तो समझा था, तम अनदर कथा सन रही होगी।

नना न बनावटी रोष स कहा-आपन तो रासता रोक रखिा ह। कस जाऊ-

शािनत कमार न भीड को सामन स हटात हए कहा-मझ मालम न था िक तम रकी खिडी हो।

नना न जरा िठठककर कहा-आप हमार ठाकरजी को भरषटि करना चाहत ह-

शािनतकमार उसका िवनोद न समझ सक। उदास होकर बोल-कया तमहारा भी यही िवचार ह, नना-

नना न और रपरा जमाया-आप अनछतो को मिदर म भर दग, तो दवता भरषटि न होग-

शािनतकमार न गभीर भाव स कहा-मन तो समझा था, दवता भरषटिो को पिवतर करत ह, खिद भरषटि नही होत।

सहसा बरहयचारी न गरजकर कहा-तम लोग कया यहा बलवा करन आए हो ठाकरजी क मिदर क दवार पर-

एक आदमी न आग बढकर कहा-हम फौजदारी करन नही आए ह। ठाकरजी क दशरयन करन आए ह।

141 www.hindustanbooks.com

समरकानत न उस आदमी को धकका दकर कहा-तमहार बाप-दादा भी कभी दशरयन करन आए थ िक तमही सबस वीर हो ।

शािनतकमार न उस आदमी को सभालकर कहा-बाप-दादो न जो काम नही िकया, कया पोतो-परपोतो क िलए भी विजत ह, लालाजी- बाप-दाद तो िबजली और तार का नाम तक नही जानत थ, िफर आज इन चीजो का कयो वयवहार होता ह- िवचारो म िवकास होता ही रहता ह, उस आप नही रोक सकत।

समरकानत न वयगय स कहा-इसीिलए तमहार िवचार म यह िवकास हआ ह िक ठाकरजी की भिकत छोडकर उनक दरोही बन बठ-

शािनतकमार न परितवाद िकया-ठाकरजी का दरोही म नही ह, दरोही वह ह जो उनक भकतो को उनकी पजा नही करन दत। कया यह लोग िहनद-ससकारो को नही मानत- िफर आपन मिदर का दवार कयो बद कर रखिा ह-

बरहयचारी न आख िनकालकर कहा-जो लोग मास-मिदरा तो खिात ह, िनिखिद कमरय करत ह, उनह मिदर म नही आन िदया जा सकता।

शािनतकमार न शातभाव स जवाब िदया-मास-मिदरा तो बहत-स बराहयण, कषतरी, वशय भी खिात ह। आप उनह कयो नही रोकत- भग तो पराय: सभी पीत ह। िफर व कयो यहा आचायरय और पजारी बन हए ह-

समरकानत न डडा सभालकर कहा-यह सब यो न मानग। इनह डडो स भगाना पडगा। जरा जाकर थान म इिततला कर दो िक यह लोग फौजदारी करन आए ह।

इस वकत तक बहत-स पड-पजारी जमा हो गए थ। सब-क-सब लािठयो क कदो स भीड को हटान लग। लोगो म भगदड मच गई। कोई परब भागा, कोई पिशचिम। शािनतकमार क िसर पर भी एक डडा पडा पर खिड आदिमयो को समझात रह-भागो मत, भागो मत, सब-क-सब वही बठ जाओ, ठाकर क नाम पर अनपन को बिलदान कर दो, धमरय क िलए...।

पर दसरी लाठी िसर पर इतन जोर स पडी िक परी बात भी मह स न िनकलन पाई और वह िगर पड। सभलकर िफर उठना चाहत थ िक ताबड-तोड कई लािठया पड गइ। यहा तक िक वह बहोश हो गए।

142 www.hindustanbooks.com

पाचनना बार-बार दवार पर आती ह और समरकानत को बठ दखिकर लौट जाती ह। आठ बज गए और लालाजी

अनभी तक गगा-सनान करन नही गए। नना रात-भर करवट बदलती रही। उस भीषण घटना क बाद कया वह सो सकती थी- उसन शाितकमारको चोट खिाकर िगरत दखिा, पर िनजीव-सी खिडी रही थी। अनमर न उस परारिभक िचिकतसा की मोटी-मोटी बात िसखिा दी थी पर वह उस अनवसर पर कछ भी तो न कर सकी। वह दखि रही थी िक आदिमयो की भीड न उनह घर िलया ह। िफर उसन दखिा िक डॉकटर आया और शािनतकमार को एक डोली पर लटाकर ल गया पर वह अनपनी जगह स नही िहली। उसका मन िकसी बधए पश की भाित बार-बार भागना चाहता था पर वह रससी को दोनो हाथ स पकड हए पर बल क साथ उस रोक रही थी। कारण कया था- सकोच आिखिर उसन कलजा मजबत िकया और दवार स िनकलकर बरामद म आ गई। समरकानत न पछा-कहा जाती ह-

'जरा मिदर तक जाती ह।'

'वहा का रासता ही बद ह। जान कहा क चमार-िसयार आकर दवार पर बठ ह। िकसी को जान ही नही दत। पिलस खिडी उनह हटान का यतन कर रही ह पर अनभाग कछ सनत ही नही। यह सब उसी शािनतकमार का पाजीपन ह। आज वही इन लोगो का नता बना हआ ह। िवलायत जाकर धमरय तो खिो ही आया था , अनब यहा िहनद-धमरय की जड खिोद रहा ह। न कोई आचार न िवचार, उसी शोहद सलीम क साथ खिाता-पीता ह। ऐस धमरयदरोिहयो को और कया सझगी- इनही सभी की सोहबबत न अनमर को चौपट िकया इस न जान िकसन अनधयापक बना िदया?'

नना न दर स ही यह दशय दखिकर लौट आन का बहाना िकया, और मिदर की ओर चली। िफर कछ दर क बाद एक गली म होकर अनसपताल की ओर चल पडी। दािहन-बाए चौकननी आखिो स ताकती हई, वह तजी स चली जा रही थी, मानो चोरी करन जा रही हो।

अनसपताल म पहची तो दखिा, हजारो आदिमयो की भीड लगी हई ह, और यिनविसटी क लडक इधर-उधर दौड रह ह। सलीम भी नजर आया। वह उस दखिकर पीछ लौटना चाहती थी िक बरजनाथ िमल गया-अनर ननादवी तम यहा कहा- डॉकटर साहब को रात-भर होश नही रहा। सलीम और म उनक पास बठ रह। इस वकत जाकर आख खिोली ह।

इतन पिरिचत आदिमयो क सामन नना कस ठहरती- वह तरत लौट पडी पर यहा आना िनषफल न हआ। डॉकटर साहब को होश आ गया ह।

वह मागरय म ही थी उसन सकडो आदिमयो को दौडत हए आत दखिा। वह एक गली म िछप गई। शायद फौजदारी हो गई। अनब वह घर कस पहचगी- सयोग स आतमाननदजी िमल गए। नना को पहचानकर बोल-यहा तो गोिलया चल रही ह। पिलस कपतान न आकर वर करा िदया।

नना क चहर का रग उड गया। जस नसो म रकत का परवाह बद हो गया हो। बोली- कया आप उधर ही स आ रह ह-

'हा, मरत-मरत बचा। गली-गली िनकल आया। हम लोग कवल खिड थ। बस, कपतान न वर करान का हकम द िदया। तम कहा गई थी?'

143 www.hindustanbooks.com

'म गगा-सनान करक लौटी जा रही थी। लोगो को भागत दखिकर इधर चली आई। कस घर पहचगी?'

'इस समय तो उधर जान म जोिखिम ह।'

िफर एक कषण क बाद कदािचत अनपनी कायरता पर लिजजत होकर कहा-िकत गिलयो म कोई डर नही ह। चलो, म तमह पहचा द। कोई पछ, तो कह दना, म लाला समरकानत की कनया ह।

नना न मन म कहा-यह महाशय सनयासी बनत ह, िफर भी इतन डरपोक पहल तो गरीबो को भडकाया और जब मार पडी, तो सबस आग भाग खिड हए। मौका न था, नही उनह ऐसा फटकारती िक याद करत। उनक साथ कई गिलयो का चककर लगाती कोई दस बज घर पहची। आतमाननद िफर उसी रासत स लौट गए। नना न उनह धनयवाद भी न िदया। उनक परित अनब उस लशमातर भी शरधदा न थी।

वह अनदर गई, तो दखिा-सखिदा सदर दवार पर खिडी ह और सामन सडक स लोग भागत चल जा रह ह।

सखिदा न पछा-तम कहा चली गई थी बीबी- पिलस न वर कर िदया बचार, आदमी भाग जा रह ह।

'मझ तो रासत ही म पता लगा। गिलयो म िछपती हई आई ह।'

'लोग िकतन कायर ह घरो क िकवाड तक बद कर िलए।'

'लालाजी जाकर पिलस वालो को मना कयो नही करत?'

'इनही क आदश स तो गोली चली ह। मना कस करग?'

'अनचछा दादा ही न गोली चलवाई ह?'

'हा, इनही न जाकर कपतान स कहा ह। और अनब घर म िछप बठ ह। म अनछतो का मिदर जाना उिचत नही समझती लिकन गोिलया चलत दखिकर मरा खिन खिौल रहा ह। िजस धमरय की रकषा गोिलयो स हो, उस धमरय म सतय का लोप समझो। दखिो, दखिो उस आदमी बचार को गोली लग गई छाती स खिन बह रहा ह।'

यह कहती हई वह समरकानत क सामन जाकर बोली-कयो लालाजी, रकत की नदी बह जाय पर मिदर का दवार न खिलगा ।

समरकानत न अनिवचिलत भाव स उततर िदया-कया बकती ह बह, इन डोम-चमारो को मिदर म घसन द- त तो अनमर स भी दो-दो हाथ आग बढी जाती ह। िजसक हाथ का पानी नही पी सकत, उस मिदर म कस जान द-

सखिदा न और वाद-िववाद न िकया। वह मनसवी मिहला थी। यही तजिसवता, जो अनिभमान बनकर उस िवलािसनी बनाए हए थी, जो उस छोटो स िमलन न दती थी, जो उस िकसी स दबन न दती थी, उतसगरय क रप म उबल पडी। वह उनमाद की दशा म घर स िनकली और पिलस वालो क सामन खिडी होकर, भागन वालो को ललकारती हई बोली-भाइयो कयो भाग रह हो - यह भागन का समय नही, छाती खिोलकर सामन आन का समय ह। िदखिा दो िक तम धमरय क नाम पर िकस तरह पराणो को होम करत हो। धमरयवीर ही ईशवर को पात ह। भागन वालो की कभी िवजय नही होती।

भागन वालो क पाव सभल गए। एक मिहला को गोिलयो क सामन खिडी दखिकर कायरता भी लिजजत हो गई। एक बिढया न पास आकर कहा-बटी, ऐसा न हो, तमह गोली लग जाय ।

सखिदा न िनशचिल भाव स कहा-जहा इतन आदमी मर गए वहा मर जान स कोई हािन न होगी। भाइयो,

144 www.hindustanbooks.com

बहनो भागो मत तमहार पराणो का बिलदान पाकर ही ठाकरजी तमस परसनन होग ।

कायरता की भाित वीरता भी सकरामक होती ह। एक कषण म उडत हए पततो की तरह भागन वाल आदिमयो की एक दीवार-सी खिडी हो गई। अनब डड पड।, या गोिलयो की वषा हो, उनह भय नही।

बदको स धाय धाय की आवाज िनकली। एक गोली सखिदा क कानो क पास स सन स िनकल गई। तीन-चार आदमी िगर पड पर दीवार जयो-की-तयो अनचल खिडी थी।

िफर बदक छटी। चार-पाच आदमी िफर िगर लिकन दीवार न िहली। सखिदा उस थाम हए थी। एक जयोित सार घर को परकाश स भर दती ह। बलवान हदय उस दीपक की भाित समह म साहस भर दता ह।

भीषण दशय था। लोग अनपन पयारो को आखिो क सामन तडपत दखित थ पर िकसी की आखिो म आस की बद न थी। उनम इतना साहस कहा स आ गया था- फौज कया हमशा मदान म डटी ही रहती ह- वही सना जो एक िदन पराणो की बाजी खलती ह, दसर िदन बदक की पहली आवाज पर मदान स भाग खिडी होती ह पर यह िकराए क िसपािहयो का हाल ह, िजनम सतय और नयाय का बल नही होता। जो कवल पट क िलए या लट क िलए लडत ह। इस समह म सतय और धमरय का बल आ गया था। हरक सतरी और परष, चाह वह िकतना मखिरय कयो न हो, समझन लगा था िक हम अनपन धमरय और हक क िलए लड रह ह, और धमरय क िलए पराण दना अनछत-नीित म भी उतनी ही गौरव की बात ह िजतनी िदवज-नीित म।

मगर यह कया- पिलस क जवान कयो सगीन उतार रह ह- बदक कयो कधो पर रखि ली- अनर सब-क-सब तो पीछ की तरफ घम गए। उनकी चार-चार की कतार बन रही ह। माचरय का हकम िमलता ह। सब-क-सब मिदर की तरफ लौट जा रह ह। एक कासटबल भी नही रहा। कवल लाला समरकानत पिलस सपिरटडट स कछ बात कर रह ह और जन-समह उसी भाित सखिदा क पीछ िनशचिल खिडा ह। एक कषण म सपिरटडट भी चला जाता ह। िफर लाला समरकानत सखिदा क समीप आकर ऊच सवर म बोलत ह-

मिदर खिल गया ह। िजसका जी चाह दशरयन करन जा सकता ह। िकसी क िलए रोक-टोक नही ह।

जन-समह म हलचल पड जाती ह। लोग उनमतता हो-होकर सखिदा क परो पर िगरत ह, और तब मिदर की तरफ दौडत ह।

मगर दस िमनट क बाद ही समह उसी सथान पर लौट आता ह, और लोग अनपन पयारो की लाशो स गल िमलकर रोन लगत ह। सवाशरम क छातर डोिलया ल-लकर आ जात ह, और आहतो की उठा ल जात ह। वीरगित पान वालो क िकरया-कमरय का आयोजन होन लगता ह। बजाजो की दकानो स कपड क थान आ जात ह, कही स बास, कही स रिससया, कही स घी, कही स लकडी। िवजताआ न धमरय ही पर िवजय नही पाई ह, हदयो पर भी िवजय पाई ह। सारा नगर उनका सममान करन क िलए उतावला हो उठा ह।

सधया समय इन धमरय-िवजताआ की अनिथया िनकली। शहर फट पडा। जनाज पहल मिदर-दवार पर गए। मिदर क दोनो दवार खिल हए थ। पजारी और बरहयचारी िकसी का पता न था। सखिदा न मिदर स तलसीदल लाकर अनिथयो पर रखिा और मरन वालो क मखि म चरणामत डाला। इनही दवारो को खिलवान क िलए यह भीषण सगराम हआ। अनब वह दवार खिला हआ वीरो का सवागत करन क िलए हाथ फलाए हए ह पर य रठन वाल अनब दवार की ओर आखि उठाकर भी नही दखित। कस िविचतर िवजता ह िजस वसत क िलए पराण िदए, उसी स इतना िवराग।

जरा दर क बाद अनिथया नदी की ओर चली। वही िहनद-समाज जो एक घटा पहल इन अनछतो स घणा

145 www.hindustanbooks.com

करता था, इस समय उन अनिथयो पर फलो की वषा कर रहा था। बिलदान म िकतनी शिकत ह-

और सखिदा- वह तो िवजय की दवी थी। पग-पग पर उसक नाम की जय-जयकार होती थी। कही फलो की वषा होती थी, कही मव की, कही रपयो की। घडी भर पहल वह नगर म नगणय थी। इस समय वह नगर की रानी थी। इतना यश िबरल ही पात ह। उस इस समय वासतव म दोनो तरफ क ऊच मकान कछ नीच, और सडक क दोनो ओर खिड होन वाल मनषय कछ छोट मालम होत थ, पर इतनी नमरता, इतनी िवनय उसम कभी न थी। मानो इस यश और ऐशवयरय क भार स उसका िसर झका जाता हो।

इधर गगा क तट पर िचताए जल रही थी उधर मिदर इस उतसव क आनद म दीपको क परकाश स जगमगा रहा था मानो वीरो की आतमाए चमक रही हो॥

146 www.hindustanbooks.com

छ:दसर िदन मिदर म िकतना समारोह हआ, शहर म िकतनी हलचल मची, िकतन उतसव मनाए गए, इसकी

चचा करन की जररत नही। सार िदन मिदर म भकतो का ताता लगा रहा। बरहयचारी आज िफर िवराजमान हो गए थ और िजतनी दिकषणा उनह आज िमली, उतनी, शायद उमर भर म न िमली होगी। इसस उनक मन का िवदरोह बहत कछ शात हो गया िकत ऊची जाित वाल सजजन अनब भी मिदर म दह बचाकर आत और नाक िसकोड हए कतराकर िनकल जात थ। सखिदा मिदर क दवार पर खिडी लोगो का सवागत कर रही थी। िसतरयो स गल िमलती थी बालको को पयार करती थी और परषो को परणाम करती थी।

कल की सखिदा और आज की सखिदा म िकतना अनतर हो गया- भोग-िवलास पर पराण दन वाली रमणी आज सवा और दया की मित बनी हई ह। इन दिखियो की भिकत, शरधदा और उतसाह दखि-दखिकर उसका हदय पलिकत हो रहा ह। िकसी की दह पर साबत कपड नही ह, आखिो स सझता नही, दबरयलता क मार सीधो पाव नही पडत, पर भिकत म मसत दौड चल आ रह ह, मानो ससार का राजय िमल गया हो, जस ससार स दखि-दिरदरता का लोप हो गया हो। ऐसी सरल, िनषकपट भिकत क परवाह म सखिदा भी बही जा रही थी। पराय: मनसवी, कमरयशील, महततवाकाकषी परािणयो की यही परकतित ह। भोग करन वाल ही वीर होत ह।

छोट-बड सभी सखिदा को पजय समझ रह थ, और उनकी यह भावना सखिदा म एक गवरयमय सवा का भाव परदीपत कर रही थी। कल उसन जो कछ िकया, वह एक परबल आवश म िकया। उसका फल कया होगा, इसकी उस जरा भी िचता न थी। ऐस अनवसरो पर हािन-लाभ का िवचार मन को दबरयल बना दता ह। आज वह जो कछ कर रही थी, उसम उसक मन का अननराग था, सदभाव था। उस अनब अनपनी शिकत और कषमता का जञान हो गया ह, वह नशा हो गया ह, जो अनपनी सधा-बधा भलकर सवा-रत हो जाता ह जस अनपनी आतमा को पा गई ह।

अनब सखिदा नगर की नतरी ह। नगर म जाित-िहत क िलए जो काम होता ह, सखिदा क हाथो उसका शरीगणश होता ह। कोई उतसव हो, कोई परमाथरय का काम हो, कोई राषटि' का आदोलन हो, सखिदा का उसम परमखि भाग होता ह। उसका जी चाह या न चाह, भकत लोग उस खिीच ल जात ह। उसकी उपिसथित िकसी जलस की सफलता की कजी ह। आशचियरय यह ह िक वह बोलन भी लगी ह, और उसक भाषण म चाह भाषा चातयरय न हो, पर सचच उदगार अनवशय होत ह। शहर म कई सावरयजिनक ससथाए ह, कछ सामािजक, कछ राजनितक, कछ धािमक। सभी िनजीव-सी पडी थी। सखिदा क आत ही उनम सठठित-सी आ गई ह। मादक वसत-विहषकार-सभा बरसो स बजान पडी थी। न कछ परचार होता था न कोई सगठन। उसका मतरी एक िदन सखिदा को खिीच ल गया। दसर ही िदन उस सभा की एक भजन-मडली बन गई, कई उपदशक िनकल आए, कई मिहलाए घर-घर परचार करन क िलए तयार हो गइ और महलल-महलल पचायत बनन लगी। एक नए जीवन की सिषटि हो गई।

अनब सखिदा को गरीबो की ददरयशा क यथाथरय रप दखिन क अनवसर िमलन लग। अनब तक इस िवषय म उस जो कछ जञान था, वह सनी-सनाई बातो पर आधािरत था। आखिो स दखिकर उस जञात हआ, दखिन और सनन म बडा अनतर ह। शहर की उन अनधरी तग गिलयो म, जहा वाय और परकाश का कभी गजर ही न होता था, जहा की जमीन ही नही, दीवार भी सीली रहती थी, जहा दगरयनध क मार नाक फटती थी, भारत की कमाऊ सतान रोग और दिरदरता क परो तल-दबी हई अनपन कषीण जीवन को मतय क हाथो स छीनन म पराण द रही थी। उस अनब मालम हआ िक अनमरकानत को धन और िवलास स जो िवरोध था, यह िकतना यथाथरय था। उस खिद अनब उस मकान म रहत, अनचछ-अनचछ वसतर पहनत, अनचछ-अनचछ पदाथरय खिात गलािन होती थी। नौकरो स काम लना उसन

147 www.hindustanbooks.com

छोड िदया। अनपनी धोती खिद छाटती थी, घर म झाड खिद लगाती। वह जो आठ बज सोकर उठती थी, अनब मह-अनधर उठती, और घर क काम-काज म लग जाती। नना तो अनब उसकी पजा-सी करती थी। लालाजी अनपन घर की यह दशा दखि-दखि कढत थ, पर करत कया- सखिदा क यहा तो अनब िनतय दरबार-सा लगा रहता था। बड-बड नता, बड-बड िवदवान आत रहत थ। इसिलए वह अनब बह स कछ दबत थ। गहसथी क जजाल स अनब उनका मन ऊबन लगा था। िजस घर म उनस िकसी को सहानभित न हो, उस घर म कस अननराग होता। जहा अनपन िवचारो का राज हो, वही अनपना घर ह। जो अनपन िवचारो को मानत हो, वही अनपन सग ह। यह घर अनब उनक िलए सराय-मातर था। सखिदा या नना, दोनो ही स कछ कहत उनह डर लगता था।

एक िदन सखिदा न नना स कहा-बीबी, अनब तो इस घर म रहन को जी नही चाहता। लोग कहत होग, आप तो महल म रहती ह, और हम उपदश करती ह। महीनो दौडत हो गए, सब कछ करक हार गई, पर नशबाजो पर कछ भी अनसर न हआ। हमारी बातो पर कोई कान ही नही दता। अनिधकतर तो लोग अनपनी मसीबतो को भल जान ही क िलए नश करत ह वह हमारी कयो सनन लग- हमारा अनसर तभी होगा, जब हम भी उनही की तरह रह।

कई िदनो स सदी चमक रही थी, कछ वषा हो गई थी और पस की ठडी हवा आदररय होकर आकाश को कहर स आचछनन कर रही थी। कही-कही पाला भी पड गया था-मनना बाहर जाकर खलना चाहता था-वह अनब लटपटाता हआ चलन लगा था-पर नना उस ठड क भय स रोक हए थी। उसक िसर पर ऊनी कनटोप बधती हई बोली-यह तो ठीक ह पर उनकी तरह रहना हमार िलए साधय भी ह, यह दखिना ह। म तो शायद एक ही महीन म मर जाऊ।

सखिदा न जस मन-ही-मन िनशचिय करक कहा-म तो सोच रही ह, िकसी गली म छोटा-सा घर लकर रह। इसका कनटोप उतारकर छोड कयो नही दती- बचचो को गमलो क पौधो बनान की जररत नही, िजनह ल का एक झोका भी सखिा सकता ह। इनह तो जगल क वकष बनाना चािहए, जो धप और वषा ओल और पाल िकसी की परवाह नही करत।

नना न मसकराकर कहा-शर स तो इस तरह रखिा नही, अनब बचार की सासत करन चली हो। कही ठड-वड लग जाए, तो लन क दन पड।

'अनचछा भई, जस चाहो रखिो, मझ कया करना ह?'

'कयो, इस अनपन साथ उस छोट-स घर म न रखिोगी?'

'िजसका लडका ह, वह जस चाह रख। म कौन होती ह ।'

'अनगर भया क सामन तम इस तरह रहती, तो तमहार चरण धोधोकर पीत ॥'

सखिदा न अनिभमान क सवर म कहा-म तो जो तब थी, वही अनब भी ह। जब दादाजी स िबगडकर उनहोन अनलग घर िलया था, तो कया मन उनका साथ न िदया था- वह मझ िवलािसनी समझत थ, पर म कभी िवलास की लौडी नही रही हा, म दादाजी को रषटि नही करना चाहती थी। यही बराई मझम थी। म अनब अनलग रहगी, तो उनकी आजञा स। तम दखि लना, म इस ढग स परशन उठाऊगी िक वह िबलकल आपितत न करग। चलो, जरा डॉकटर शािनतकमार को दखि आव। मझ तो उधर जान का अनवकाश ही नही िमला।

नना पराय: एक बार रोज शािनतकमार को दखि आती थी। हा, सखिदा स कछ कहती न थी। वह अनब उठन-

148 www.hindustanbooks.com

बठन लग थ पर अनभी इतन दबरयल थ िक लाठी क सहार बगर एक पग भी न चल सकत थ। चोट उनहोन खिाइ-छ: महीन स शयया-सवन कर रह थ-और यश सखिदा न लटा। वह द:खि उनह और भी घलाए डालता था। यदयिप उनहोन अनतरग िमतरो स भी अनपनी मनोवयथा नही कही पर यह काटा खिटकता अनवशय था। अनगर सखिदा सतरी न होती, और वह भी िपरय िशषय और िमतर की, तो कदािचत वह शहर छोडकर भाग जात। सबस बडा अननथरय यह था िक इन छ: महीनो म सखिदा दो-तीन बार स जयादा उनह दखिन न गई थी। वह भी अनमरकानत क िमतर थ और इस नात स सखिदा को उन पर िवशष शरधदा न थी।

नना को सखिदा क साथ जान म कोई आपितत न हई। रणका दवी न कछ िदनो स मोटर रखि ली थी, पर वह रहती थी सखिदा ही की सवारी म। दोनो उस पर बठकर चली मनना भला कयो अनकल रहन लगा था- नना न उस भी ल िलया।

सखिदा न कछ दर जान क बाद कहा-यह सब अनमीरो क चोचल ह। म चाह तो दो-तीन आन म अनपना िनबाह कर सकती ह।

नना न िवनोद-भाव स कहा-पहल करक िदखिा दो, तो मझ िवशवास आए। म तो नही कर सकती।

'जब तक इस घर म रहगी, म भी न कर सकगी। इसिलए तो म अनलग रहना चाहती ह।'

'लिकन साथ तो िकसी को रखिना ही पडगा?'

'म कोई जररत नही समझती। इसी शहर म हजारो औरत अनकली रहती ह। िफर मर िलए कया मिशकल ह- मरी रकषा करन वाल बहत ह। म खिद अनपनी रकषा कर सकती ह। (मसकराकर) हा, खिद िकसी पर मरन लग, तो दसरी बात ह।'

शािनतकमार िसर स पाव तक कबल लपट, अनगठी जलाए, कसी पर बठ एक सवासथय-सबधी पसतक पढ रह थ। वह कस जलद-स-जलद भल-चग हो जाय, आजकल उनह यही िचता रहती थी। दोनो रमिणयो क आन का समाचार पात ही िकताब रखि दी और कबल उतारकर रखि िदया। अनगीठी भी हटाना चाहत थ पर इसका अनवसर न िमला। दोनो जयोही कमर म आइ, उनह परणाम करक किसयो पर बठन का इशारा करत हए बोल-मझ आप लोगो पर ईषरय‍या हो रही ह। आप इस शीत म घम-िफर रही ह और म अनगीठी जलाए पडा ह। कर कया, उठा ही नही जाता। िजदगी क छ: महीन मानो कट गए, बिलक आधी उमर किहए। म अनचछा होकर भी आधा ही रहगा। िकतनी लजजा आती ह िक दिवया बाहर िनकलकर काम कर और म कोठरी म बद पडा रह।

सखिदा न जस आस पोछत हए कहा-आपन इस नगर म िजतनी जागित फला दी, उस िहसाब स तो आपकी उमर चौगनी हो गई। मझ तो बठ-बठाए यश िमल गया।

शािनतकमार क पील मखि पर आतमगौरव की आभा झलक पडी। सखिदा क मह स यह सनद पाकर, मानो उनका जीवन सफल हो गया। बोल-यह आपकी उदारता ह। आपन जो कछ कर िदखिाया और कर रही ह, वह आप ही कर सकती ह। अनमरकानत आएग तो उनह मालम होगा िक अनब उनक िलए यहा सथान नही ह। यह साल भर म जो कछ हो गया इसकी वह सवपन म भी कलपना न कर सकत थ। यहा सवाशरम म लडको की सखया बडी तजी स बढ रही ह। अनगर यही हाल रहा, तो कोई दसरी जगह लनी पडगी। अनधयापक कहा स आएग, कह नही सकता। सभय समाज की यह उदासीनता दखिकर मझ तो कभी-कभी बडी िचता होन लगती ह। िजस दिखिए सवाथरय म मगन ह। जो िजतना ही महान ह उसका सवाथरय भी उतना ही महान ह। यरोप की डढ सौ साल तक उपासना

149 www.hindustanbooks.com

करक हम यही वरदान िमला ह। लिकन यह सब होन पर भी हमारा भिवषय उजजवल ह। मझ इसम सदह नही। भारत की आतमा अनभी जीिवत ह और मझ िवशवास ह िक वह समय आन म दर नही ह, जब हम सवा और तयाग क परान आदशरय पर लौट आएग। तब धन हमार जीवन का धयय न होगा। तब हमारा मलय धन क काट पर न तौला जाएगा।

मनन न कसी पर चढकर मज पर स दवात उठा ली थी और अनपन मह म कािलमा पोत-पोतकर खिश हो रहा था। नना न दौडकर उसक हाथ स दवात छीन ली और एक धौल जमा िदया। शािनतकमार न उठन की अनसफल चषटिा करक कहा-कयो मारती हो नना, दखिो तो िकतना महान परष ह, जो अनपन मह म कािलमा पोतकर भी परसनन होता ह, नही तो हम अनपनी कािलमाआ को सात परदो क अननदर िछपात ह ।

नना न बालक को उनकी गोद म दत हए कहा-तो लीिजए, इस महान परष को आप ही। इसक मार चन स बठना मिशकल ह।

शािनतकमार न बालक को छाती स लगा िलया। उस गमरय और गदगद सपशरय म उनकी आतमा न िजस पिरतिपत और माधयरय का अननभव िकया, वह उनक जीवन म िबलकल नया था। अनमरकानत स उनह िजतना सनह था, वह जस इस छोट स रप म िसमटकर और ठोस और भारी हो गया था। अनमर की याद करक उनकी आख सजल हो गइ। अनमर न अनपन को िकतन अनतल आनद स विचत कर रखिा ह, इसका अननमान करक वह जस दब गए। आज उनह सवय अनपन जीवन म एक अनभाव का, एक िरकतता का आभास हआ। िजन कामनाआ का वह अनपन िवचार म सपणरयत: दमन कर चक थ वह राखि म िछपी हई िचगािरयो की भाित सजीव हो गइ।

मनन न हाथो की सयाही शािनतकमार क मखि म पोतकर नीच उतरन का आगरह िकया, मानो इसीिलए यह उनकी गोद म गया था। नना न हसकर कहा-जरा अनपना मह तो दिखिए, डॉकटर साहब इस महान परष न आपक साथ होली खल डाली बदमाश ह।

सखिदा भी हसी को न रोक सकी। शािनतकमार न शीश म मह दखिा, तो वह भी जोर स हस। यह कािलमा का टीका उनह इस समय यश क ितलक स भी कही उललासमय जान पडा।

सहसा सखिदा न पछा-आपन शादी कयो नही की, डॉकटर साहब-

शािनतकमार सवा और वरत का जो आधार बनाकर अनपन जीवन का िनमाण कर रह थ, वह इस शयया सवन क िदनो म कछ नीच िखिसकता हआ नजर जान पड रहा था। िजस उनहोन जीवन का मल सतय समझा था, वह अनब उतना दढ न रह गया था। इस आपातकाल म ऐस िकतन अनवसर आए, जब उनह अनपना जीवन भार-सा मालम हआ। तीमारदारो की कमी न थी। आठो पहर दो-चार आदमी घर ही रहत थ। नगर क बड-बड नताआ का आना-जाना भी बराबर होता रहता था पर शािनतकमार को ऐसा जान पडता था िक वह दसरो की दया या िशषटिता पर बोझ हो रह ह। इन सवाआ म वह माधयरय , वह कोमलता न थी, िजसस आतमा की तिपत होती। िभकषक को कया अनिधकार ह िक वह िकसी क दान का िनरादर कर। दान-सवरप उस जो कछ िमल जाय, वह सभी सवीकार करना होगा। इन िदनो उनह िकतनी ही बार अनपनी माता की याद आई थी। वह सनह िकतना दलरयभ था। नना जो एक कषण क िलए उनका हाल पछन आ जाती थी, इसम उनह न जान कयो एक परकार की सफित का अननभव होता था। वह जब तक रहती थी, उनकी वयथा जान कहा िछप जाती थी- उसक जात ही िफर वही कराहना, वही बचनी उनकी समझ म कदािचत यह नना का सरल अननराग ही था, िजसन उनह मौत क मह स िनकाल िलया लिकन वह सवगरय की दवी कछ नही ।

150 www.hindustanbooks.com

सखिदा का यह परशन सनकर मसकरात हए बोल-इसीिलए िक िववाह करक िकसी को सखिी नही दखिा।

सखिदा न समझा यह उस पर चोट ह। बोली-दोष भी बराबर िसतरयो का ही दखिा होगा, कयो-

शािनतकमार न जस अनपना िसर पतथर स बचाया-यह तो मन नही कहा। शायद इसकी उलटी बात हो। शायद नही, बिलक उलटी ह।

'खिर, इतना तो आपन सवीकार िकया। धनयवाद। इसस तो यही िस' हआ िक परष चाह तो िववाह करक सखिी हो सकता ह।'

'लिकन परष म थोडी-सी पशता होती ह, िजस वह इरादा करक भी हटा नही सकता। वही पशता उस परष बनाती ह। िवकास क करम स वह सतरी स पीछ ह। िजस िदन वह पणरय िवकास को पहचगा, वह भी सतरी हो जाएगा। वातसलय, सनह, कोमलता, दया, इनही आधारो पर यह सिषटि थमी हई ह और यह िसतरयो क गण ह। अनगर सतरी इतना समझ ल, तो िफर दोनो का जीवन सखिी हो जाय। सतरी पश क साथ पश हो जाती ह, तभी दोनो सखिी होत ह।'

सखिदा न उपहास क सवर म कहा-इस समय तो आपन सचमच एक आिवषकार कर डाला। म तो हमशा यह सनती आती ह िक सतरी मखिरय ह, ताडना क योगय ह, परषो क गल का बधन ह और जान कया-कया- बस, इधर स भी मरदो की जीत, उधर स भी मरदो की जीत। अनगर परष नीचा ह तो उस िसतरयो का शासन कयो अनिपरय लग-परीकषा करक दखिा तो होता, आप तो दर स ही डर गए।

शािनतकमार न कछ झपत हए कहा-अनब अनगर चाह भी, तो बढो को कौन पछता ह-

'अनचछा, आप बढ भी हो गए- तो िकसी अनपनी-जसी बिढया स कर लीिजए न?'

'जब तम जसी िवचारशील और अनमर-जस गभीर सतरी-परष म न बनी, तो िफर मझ िकसी तरह की परीकषा करन की जररत नही रही। अनमर-जसा िवनय और तयाग मझम नही ह, और तम जसी उदार और?'

सखिदा न बात काटी-म उदार नही ह, न िवचारशील ह। हा, परष क परित अनपना धमरय समझती ह। आप मझस बड ह, और मझस कही बिदधिमान ह। म आपको अनपन बड भाई क तलय समझती ह। आज आपका सनह और सौजनय दखिकर मर िचतत को बडी शाित िमली। म आपस बशमरय होकर पछती ह ऐसा परष जो, सतरी क परित अनपना धमरय न समझ, कया अनिधकार ह िक वह सतरी स वरत-धािरणी रहन की आशा रख- आप सतयवादी ह। म आपस पछती ह, यिद म उस वयवहार का बदला उसी वयवहार स द, तो आप मझ कषमय समझग-

शािनतकमार न िनशक भाव स कहा-नही।

'उनह आपन कषमय समझ िलया?'

'नही ।'

'और यह समझकर भी आपन उनस कछ नही कहा- कभी एक पतर भी नही िलखिा- म पछती ह, इस उदासीनता का कया कारण ह- यही न िक इस अनवसर पर एक नारी का अनपमान हआ ह। यिद वही कततय मझस हआ होता, तब भी आप इतन ही उदासीन रह सकत- बोिलए।'

शािनतकमार रो पड। नारी-हदय की सिचत वयथा आज इस भीषण िवदरोह क रप म परकट होकर िकतनी

151 www.hindustanbooks.com

करण हो गई थी।

सखिदा उसी आवश म बोली-कहत ह, आदमी की पहचान उसकी सगत स होती ह। िजसकी सगत आप, महममद सलीम और सवामी आतमाननद जस महानभावो की हो, वह अनपन धमरय को इतना भल जाय यह बात मरी समझ म नही आती। म यह नही कहती िक म िनदोष ह। कोई सतरी यह दावा नही कर सकती , और न कोई परष ही यह दावा कर सकता ह। मन सकीना स मलाकात की ह। सभव ह उसम वह गण हो, जो मझम नही ह। वह जयादा मधर ह, उसक सवभाव म कोमलता ह। हो सकता ह, वह परम भी अनिधक कर सकती हो लिकन यिद इसी तरह सभी परष और िसतरया तलना करक बठ जाय, तो ससार की कया गित होगी- िफर तो यहा रकत और आसआ की निदयो क िसवा और कछ न िदखिाई दगा।

शािनतकमार न परासत होकर कहा-म अनपनी गलती को मानता ह, सखिदादवी म तमह न जानता था और इस भय म था िक तमहारी जयादती ह। म आज ही अनमर को पतर-

सखिदा न िफर बात काटी-नही, म आपस यह पररणा करन नही आई ह, और न यह चाहती ह िक आप उनस मरी ओर स दया की िभकषा माग। यिद वह मझस दर भागना चाहत ह, तो म भी उनको बधकर नही रखिना चाहती। परष को जो आजादी िमली ह, वह उस मबारक रह वह अनपना तन-मन गली-गली बचता िफर। म अनपन बधन म परसनन ह। और ईशवर स यही िवनती करती ह िक वह इस बधन म मझ डाल रख। म जलन यार ईषरय‍या स िवचिलत हो जाऊ, उस िदन क पहल वह मरा अनत कर द। मझ आपस िमलकर आज जो तिपत हई, उसका परमाण यही ह िक म आपस वह बात कह गई, जो मन कभी अनपनी माता स भी नही कही। बीबी आपका बखिान करती थी, उसस जयादा सजजनता आपम पाई मगर आपको म अनकला न रहन दगी। ईशवर वह िदन लाए िक म इस घर म भाभी क दशरयन कर।

जब दोनो रमिणया यहा स चली, तो डॉकटर साहब लाठी टकत हए फाटक तक उनह पहचान आए और िफर कमर म आकर लट, तो ऐसा जान पडा िक उनका यौवन जाग उठा ह। सखिदा क वदना स भर हए शबद उनक कानो म गज रह थ और नना मनन को गोद म िलए जस उनक सममखि खिडी थी।

152 www.hindustanbooks.com

सातउसी रात को शािनतकमार न अनमर क नाम खित िलखिा। वह उन आदिमयो म थ िजनह और सभी कामो क

िलए समय िमलता ह, खित िलखिन क िलए नही िमलता। िजतनी अनिधक घिनषठता, उतनी ही बिफकरी। उनकी मतरी खितो स कही गहरी होती ह। शािनतकमार को अनमर क िवषय म सलीम स सारी बात मालम होती रहती थी। खित िलखिन की कया जररत थी- सकीना स उस परम हआ इसकी िजममदारी उनहोन सखिदा पर रखिी थी पर आज सखिदा स िमलकर उनहोन िचतर का दसरा रखि भी दखिा, और सखिदा को उस िजममदारी स मकत कर िदया। खित जो िलखिा, वह इतना लबा-चौडा िक एक ही पतर म साल भर की कसर िनकल गई। अनमरकानत क जान क बाद शहर म जो कछ हआ, उसकी परी-परी किफयत बयान की, और अनपन भिवषय क सबध म उसकी सलाह भी पछी। अनभी तक उनहोन नौकरी स इसतीफा नही िदया था। पर इस आदोलन क बाद स उनह अनपन पद पर रहना कछ जचता न था। उनक मन म बार-बार शका होती, जब तम गरीबो क वकील बनत हो, तो तमह कया हक ह िक तम पाच सौ रपय माहवार सरकार स वसल करो। अनगर तम गरीबो की तरह नही रह सकत, तो गरीबो की वकालत करना छोड दो। जस और लोग आराम करत ह, वस तम भी मज स खिात-पीत रहो। लिकन इस िनदवऊिदवता को उनकी आतमा सवीकार न करती थी। परशन था, िफर गजर कस हो- िकसी दहात म जाकर खती कर, या कया- यो रोिटया तो िबना काम िकए भी चल सकती थी कयोिक सवाशरम को काफी चदा िमलता था लिकन दान-वितत की कलपना ही स उनक आतमािभमान को चोट लगती थी।

लिकन पतर िलख चार िदन हो गए, कोई जवाब नही। अनब डॉकटर साहब क िसर पर एक बोझ-सा सवार हो गया। िदन-भर डािकए की राह दखिा करत पर कोई खिबर नही। यह बात कया ह- कया अनमर कही दसरी जगह तो नही चला गया- सलीम न पता तो गलत नही बता िदया- हिरदवार स तीसर िदन जवाब आना चािहए। उसक आठ िदन हो गए। िकतनी ताकीद कर दी थी िक तरत जवाब िलखिना। कही बीमार तो नही हो गया - दसरा पतर िलखिन का साहस न होता था। पर दस पनन कौन िलख- वह पतर भी कछ ऐसा-वसा पतर न था। शहर का साल-भर का इितहास था। वसा पतर िफर न बनगा। पर तीन घट लग थ। इधर आठ िदन स सलीम नही आया। वह तो अनब दसरी दिनया म ह। अनपन आई. सी. एस. की धन म ह। यहा कयो आन लगा- मझ दखिकर शायद आख चरान लग। सवाथरय भी ईशवर न कया चीज पदा की ह- कहा तो नौकरी क नाम स घणा थी। नौजवान सभा क भी मबर, कागरस क भी मबर।जहा दिखिए, मौजद। और मामली मबर नही, परमखि भाग लन वाला। कहा अनब आई. सी. एस. की पडी हई ह- बचचा पास तो कया होग, वहा धोखिा-धाडी नही चलन की मगर नािमनशन तो हो ही जाएगा। हािफजजी परा जोर लगाएग एक इिमतहान म भी तो पास न हो सकता था। कही परच उडाए, कही नकल की, कही िरशवत दी, पकका शोहदा ह। और ऐस लोग आई. सी. एस. होग ।

सहसा सलीम की मोटर आई, और सलीम न उतरकर हाथ िमलात हए कहा-अनब तो आप अनचछ मालम होत ह। चलन-िफरन म िदककत तो नही होती-

शािनतकमार न िशकव क अनदाज स कहा-मझ िदककत होती ह या नही होती तमह इसस मतलब महीन भर क बाद तमहारी सरत नजर आई ह। तमह कया िफकर िक म मरा या जीता ह- मसीबत म कौन साथ दता ह तमन कोई नई बात नही की ।

'नही डॉकटर साहब, आजकल इिमतहान क झझट म पडा हआ ह, मझ तो इसस नफरत ह। खिदा जानता ह, नौकरी स मरी दह कापती ह लिकन कर कया, अनबबाजान हाथ धोकर पीछ पड हए ह। वह तो आप जानत ही ह,

153 www.hindustanbooks.com

म एक सीधा जमला ठीक नही िलखि सकता मगर िलयाकत कौन दखिता ह- यहा तो सनद दखिी जाती ह। जो अनफसरो का रखि दखिकर काम कर सकता ह, उसक लायक होन म शबहा नही। आजकल यही फन सीखि रहा ह।'

शािनतकमार न मसकराकर कहा-मबारक हो लिकन आई. सी. एस. की सनद आसान नही ह।

सलीम न कछ इस भाव स कहा, िजसस टपक रहा था, आप इन बातो को कया जान- जी हा, लिकन सलीम भी इस फन म उसताद ह। बी. ए तक तो बचचो का खल था। आई. सी. एस. म ही मर कमाल का इिमतहान होगा। सबस नीच मरा नाम गजट म न िनकल, तो मह न िदखिाऊ। चाह तो सबस ऊपर भी आ सकता ह, मगर फायदा कया- रपय तो बराबर ही िमलग।

शािनतकमार न पछा-तो तम भी गरीबो का खिन चसोग कया-

सलीम न िनलरयजजता स कहा-गरीबो क खिन पर तो अनपनी परविरश हई। अनब और कया कर सकता ह- यहा तो िजस िदन पढन बठ, उसी िदन स मितखिोरी की धन समाई लिकन आपस सच कहता ह डॉकटर साहब, मरी तबीयत उस तरफ नही ह कछ िदनो मलाजमत करन क बाद म भी दहात की तरफ चलगा। गाए-भस पालगा, कछ फल-वल पदा करगा, पसीन की कमाई खिाऊगा। मालम होगा, म भी आदमी ह। अनभी तो खिटमलो की तरह दसरो क खिन पर ही िजदगी कटगी लिकन म िकतना ही िगर जाऊ, मरी हमददी गरीबो क साथ रहगी। म िदखिा दगा िक अनफसरी करक भी पिबलक की िखिदमत की जा सकती ह। हम लोग खिानदानी िकसान ह। अनबबाजान न अनपन ही बत स यह दौलत पदा की। मझ िजतनी महबबत िरआया स हो सकती ह, उतनी उन लोगो को नही हो सकती, जो खिानदानी रईस ह। म तो कभी अनपन गावो म जाता ह, तो मझ ऐसा मालम होता ह िक यह लोग मर अनपन ह। उनकी सादगी और मशककत दखिकर िदल म उनकी इजजत होती ह। न जान कस लोग उनह गािलया दत ह, उन पर जलम करत ह- मरा बस चल, तो बदमाश अनफसरो को कालपानी भज द।

शािनतकमार को ऐसा जान पडा िक अनफसरी का जहर अनभी इस यवक क खिन म नही पहचा। इसका हदय अनभी तक सवसथ ह। बोल-जब तक िरआया क हाथ म अनिखतयार न होगा, अनफसरो की यही हालत रहगी। तमहारी जबान स यह खियालात सनकर मझ सचची खिशी हो रही ह। मझ तो एक भी भला आदमी कही नजर नही आता। गरीबो की लाश पर सब-क-सब िगददो की तरह जमा होकर उसकी बोिटया नोच रह ह, मगर अनपन वश की बात नही। इसी खियाल स िदल को तसकीन दना पडता ह िक जब खिदा की मरजी होगी, तो आप ही वस सामान हो जाएग। इस हाहाकार को बझान क िलए दो-चार घड पानी डालन स तो आग और भी बढगी। इकलाब की जररत ह, पर इकलाब की। इसिलए तो जल िजतना जी चाह, साफ हो जाय। जब कछ जलन को बाकी न रहगा, तो आग आप ठडी हो जायगी। तब तक हम भी हाथ सकत ह। कछ अनमर की भी खिबर ह- मन एक खित भजा था, कोई जवाब नही आया।

सलीम न चौककर जब म हाथ-डाला और एक खित िनकालता हआ बोला-लाहौल िबलाकवत इस खित की याद ही न रही। आज चार िदन स आया हआ ह, जब ही म पडा रह गया। रोज सोचता था और रोज भल जाता था।

शािनतकमार न जलदी स हाथ बढाकर खित ल िलया, और मीठ करोध क दो-चार शबद कहकर पतर पढन लग-

'भाई साहब, म िजदा ह और आपका िमशन यथाशिकत परा कर रहा ह। वहा क समाचार कछ तो नना क

154 www.hindustanbooks.com

पतरो स मझ िमलत ही रहत थ िकत आपका पतर पढकर तो म चिकत रह गया। इन थोड स िदनो म तो वहा कराित-सी हो गई म तो इस सारी जागित का शरय आपको दता ह। और सखिदा तो अनब मर िलए पजय हो गई ह। मन उस समझन म िकतनी भयकर भल की, यह याद करक म िवकल हो जाता ह। मन उस कया समझा था और वह कया िनकली- म अनपन सार दशरयन और िववक और उतसगरय स वह कछ न कर सका, जो उसन एक कषण म कर िदखिाया। कभी गवरय स िसर उठा लता ह, कभी लजजा स िसर झका लता ह। हम अनपन िनकटतम परािणयो क िवषय म िकतन अनजञ ह, इसका अननभव करक म रो उठता ह। िकतना महान अनजञान ह- म कया सवपन म भी सोच सकता था िक िवलािसनी सखिदा का जीवन इतना तयागमय हो जायगा- मझ इस अनजञान न कही का न रखिा। जी म आता ह, आकर सखिदा स अनपन अनपराध की कषमा माग पर कौन-सा मह लकर आऊ- मर सामन अनधकार ह। अनभ? अनधकार ह। कछ नही सझता। मरा सारा आतमिवशवास नषटि हो गया ह। ऐसा जञात होता ह, कोई अनदखिी शिकत मझ िखिला-िखिलाकर कचल डालना चाहती ह। म मछली की भाित काट म फसा हआ ह। काटा मर कठ म चभ गया ह। कोई हाथ मझ खिीच लता ह। िखिचा चला जाता ह। िफर डोर ढीली हो जाती ह और म भागता ह। अनब जान पडा िक मनषय िविध क हाथ का िखिलौना ह। इसिलए अनब उसकी िनदरयय करीडा की िशकायत नही करगा। कहा ह, कछ नही जानता िकधर जा रहा ह, कछ नही जानता। अनब जीवन म कोई भिवषय नही ह। भिवषय पर िवशवास नही रहा। इराद झठ सािबत हए, कलपनाए िमथया िनकली। म आपस सतय कहता ह, सखिदा मझ नचा रही ह। उस मायािवनी क हाथो म कठपतली बना हआ ह। पहल एक रप िदखिाकर उसन मझ भयभीत कर िदया और अनब दसरा रप िदखिाकर मझ परासत कर रही ह। कौन उसका वासतिवक रप ह, नही जानता। सकीना का जो रप दखिा था, वह भी उसका सचचा रप था, नही कह सकता। म अनपन ही िवषय म कछ नही जानता। आज कया ह कल कया हो जाऊगा, कछ नही जानता। अनतीत द:खिदायी ह, भिवषय सवपन ह। मर िलए कवल वतरयमान ह।

'आपन अनपन िवषय म मसझ जो सलाह पछी ह, उसका म कया जवाब द- आप मझस कही बिदधिमान ह। मरा िवचार तो ह िक सवा-वरतधािरयो को जाित स गजारा-कवल गजारा लन का अनिधकार ह। यिद वह सवाथरय को िमटा सक तो और भी अनचछा।'

शािनतकमार न अनसतोष क भाव स पतर को मज पर रखि िदया। िजस िवषय पर उनहोन िवशष रप स राय पछी थी, उस कवल दो शबदो म उडा िदया।

सहसा उनहोन सलीम स पछा-तमहार पास भी कोई खित आया ह-

'जी हा, इसक साथ ही आया था।'

'कछ मर बार म िलखिा था?'

'कोई खिास बात तो न थी, बस यही िक मलक को सचच िमशनिरयो की जररत ह और खिदा जान कया-कया- मन खित को आिखिर तक पढा भी नही। इस िकसम की बातो को म पागलपन समझता ह। िमशनरी होन का मतलब तो म यही समझता ह िक हमारी िजदगी खिरात पर बसर हो।'

डॉकटर साहब न गभीर सवर म कहा-िजदगी का खिरात पर बसर होना इसस कही अनचछा ह िक सबर पर बसर हो। गवनरयमट तो कोई जररी चीज नही। पढ-िलख आदिमयो न गरीबो को दबाए रखिन क िलए एक सगठन बना िलया ह। उसी का नाम गवनरयमट ह। गरीब और अनमीर का फकरक िमटा दो और गवनरयमट का खिातमा हो जाता ह।

155 www.hindustanbooks.com

'आप तो खियाली बात कर रह ह। गवनरयमट की जररत उस वकत न रहगी, जब दिनया म फिरशत आबाद होग।'

आइिडयल (आदशरय) को हमशा सामन रखिन की जररत ह।'

'लिकन तालीम का सीफा िवभाग तो सबर करन का सीफा नही ह। िफर जब आप अनपनी आमदनी का बडा िहससा सवाशरम म खिचरय करत ह, तो कोई वजह नही िक आप मलािजमत छोडकर सनयासी बन जाय।'

यह दलील डॉकटर क मन म बठ गई। उनह अनपन मन को समझान का एक साधन िमल गया। बशक िशकषा-िवभाग का शासन स सबध नही। गवनरयमट िजतनी ही अनचछी होगी, उसका िशकषाकायरय और भी िवसतत होगा। तब इस सवाशरम की भी कया जररत होगी- सगिठत रप स सवा धमरय का पालन करत हए, िशकषा का परचार करना िकसी दशा म भी आपितत की बात नही हो सकती। महीनो स जो परशन डॉकटर साहब को बचन कर रहा था , आज हल हो गया।

सलीम को िबदा करक वह लाला समरकानत क घर चल। समरकानत को अनमर का पतर िदखिाकर सखिरयई बनना चाहत थ। जो समसया अनभी वह हल कर चक थ, उसक िवषय म िफर कछ सदह उतपनन हो रह थ। उन सदहो को शात करना भी आवशयक था। समरकानत तो कछ खिलकर उनस न िमल। सखिदा न उनको खिबर पात ही बला िलया। रणका बाई भी आई हई थी।

शािनतकमार न जात-ही-जात अनमरकानत का पतर िनकालकर सखिदा क सामन रखि िदया और बोल-सलीम न चार िदनो स अनपनी जब म डाल रखिा था और म घबरा रहा था िक बात कया ह-

सखिदा न पतर को उडती हई आखिो स दखिकर कहा-तो म इस लकर कया कर-

शािनतकमार न िविसमत होकर कहा-जरा एक बार इस पढ तो जाइए। इसस आपक मन की बहत-सी शकाए िमट जाएगी।

सखिदा न रखपन क साथ जवाब िदया-मर मन म िकसी की तरफ स कोई शका नही ह। इस पतर म भी जो कछ िलखिा होगा, वह म जानती ह। मरी खिब तारीफ की गई होगी। मझ तारीफ की जररत नही। जस िकसी को करोध आ जाता ह, उसी तरह मझ वह आवश आ गया। यह भी करोध क िसवा और कछ न था। करोध की कोई तारीफ नही करता।

'यह आपन कस समझ िलया िक इसम आपकी तारीफ की ह?'

'हो सकता ह, खद भी परकट िकया हो ।'

'तो िफर आप और चाहती कया ह?'

'अनगर आप इतना भी नही समझ सकत, तो मरा कहना वयथरय ह।'

रणका बाई अनब तक चप बठी थी। सखिदा का सकोच दखिकर बोली-जब वह अनब तक घर लौटकर नही आए, तो कस मालम हो िक उनक मन क भाव बदल गए ह। अनगर सखिदा उनकी सतरी न होती, तब भी तो उसकी तारीफ करत। नतीजा कया हआ। जब सतरी-परष सखि स रह, तभी तो मालम हो िक उनम परम ह। परम को छोिडए। पररम तो िबरल ही िदलो म होता ह। धमरय का िनबाह तो करना ही चािहए। पित हजार कोस पर बठा हआ सतरी की बडाई कर। सतरी हजार कोस पर बठी हई िमया की तारीफ कर, इसस कया होता ह-

156 www.hindustanbooks.com

सखिदा खिीझकर बोली-आप तो अनममा बबात की बात करती ह। जीवन तब सखिी हो सकता ह, जब मन का आदमी िमल। उनह मझस अनचछी एक वसत िमल गई। वह उसक िवयोग म भी मगन ह। मझ उनस अनचछा अनभी कोई नही िमला, और न इस जीवन म िमलगा, यह मरा दभागय ह। इसम िकसी का दोष नही।

रणका न डॉकटर साहब की ओर दखिकर कहा-सना आपन, बाबजी- यह मझ इसी तरह रोज जलाया करती ह। िकतनी बार कहा ह िक चल हम दोनो उस वहा स पकड लाए। दख, कस नही आता- जवानी की उमर म थोडी-बहत नादानी सभी करत ह मगर यह न खिद मर साथ चलती ह, न मझ अनकल जान दती ह। भया, एक िदन भी ऐसा नही जाता िक बगर रोए मह म अननन जाता हो। तम कयो नही चल जात, भया- तम उसक गर हो, तमहारा अनदब करता ह। तमहारा कहना वह नही टाल सकता।

सखिदा न मसकराकर कहा-हा, यह तो तमहार कहन स आज ही चल जाएग। यह तो और खिश होत होग िक िशषयो म एक तो ऐसा िनकला, जो इनक आदशरय का पालन कर रहा ह। िववाह को यह लोग समाज का कलक समझत ह। इनक पथ म पहल िकसी को िववाह करना ही न चािहए, और अनगर िदल न मान तो िकसी को रखि लना चािहए। इनक दसर िशषय िमया सलीम ह। हमार बाब साहब तो न जान िकस दबाव म पडकर िववाह कर बठ। अनब उसका परायिशचित कर रह ह।

शािनतकमार न झपत हए कहा-दवीजी, आप मझ पर िमथया आरोप कर रही ह। अनपन िवषय म मन अनवशय यही िनशचिय िकया ह िक एकात जीवन वयतीत करगा इसिलए िक आिद स ही सवा का आदशरय मर सामन था।

सखिदा न पछा-कया िववािहत जीवन म सवा-धमरय का पालन अनसभव ह- या सतरी इतनी सवाथाऊधा होती ह िक आपक कामो म बाधा डाल िबना रह ही नही सकती- गहसथ िजतनी सवा कर सकता ह, उतनी एकात जीवी कभी नही कर सकता कयोिक वह जीवन क कषटिो का अननभव नही कर सकता।

शािनतकमार न िववाद स बचन की चषटिा करक कहा-यह तो झगड का िवषय ह दवीजी, और तय नही हो सकता। मझ आपस एक िवषय म सलाह लनी ह। आपकी माताजी भी ह, यह और भी शभ ह। म सोच रहा ह, कयो न नौकरी स इसतीफा दकर सवाशरम का काम कर-

सखिदा न इस भाव स कहा, मानो यह परशन करन की बात ही नही-अनगर आप सोचत ह, आप िबना िकसी क सामन हाथ फलाए अनपना िनवाह कर सकत ह, तो जरर इसतीफा द दीिजए, यो तो काम करन वाल का भार ससथा पर होता ह लिकन इसस भी अनचछी बात यह ह िक उसकी सवा म सवाथरय का लश भी न हो।

शािनतकमार न िजस तकरक स अनपना िचतत शात िकया था, वह यहा िफर जवाब द गया। िफर उसी उधोडबन म पड गए।

सहसा रणका न कहा-आपक आशरम म कोई कोष भी ह-

आशरम म अनब तक कोई कोष न था। चदा इतना न िमलता था िक कछ बचत हो सकती। शािनतकमार न इस अनभाव को मानो अनपन ऊपर लाछन समझकर कहा-जी नही, अनभी तक तो कोष नही बना सका, पर म यिनविसटी स छटटी पा जाऊ, तो इसक िलए उदयोग कर।

रणका न पछा-िकतन रपय हो, तो आपका आशरम चलन लग-

157 www.hindustanbooks.com

शािनतकमार न आशा की सठठित का अननभव करक कहा-आशरम तो एक यिनविसटी भी बन सकता ह लिकन मझ तीन-चार लाखि रपय िमल जाए, तो म उतना ही काम कर सकता ह, िजतना यिनविसटी म बीस लाखि म भी नही हो सकता।

रणका न मसकराकर कहा-अनगर आप कोई टरसट बना सक, तो म आपकी कछ सहायता कर सकती ह। बात यह ह िक िजस सपितत को अनब तक सचती आती थी, उसका अनब कोई भोगन वाला नही ह। अनमर का हाल आप दखि ही चक। सखिदा भी उसी रासत पर जा रही ह। तो िफर म भी अनपन िलए कोई रासता िनकालना चाहती ह। मझ आप गजार क िलए सौ रपय महीन टरसट स िदला दीिजएगा। मर जानवरो क िखिलान-िपलान का भार टरसट पर होगा।

शािनतकमार न डरत-डरत कहा-म तो आपकी आजञा तभी सवीकार कर सकता ह, जब अनमर और सखिदा मझ सहषरय अननमित द। िफर बचच का हक भी तो ह-

सखिदा न कहा-मरी तरफ स इसतीफा ह। और बचच क दादा का धन कया थोडा ह- औरो की म नही कह सकती।

रणका िखिनन होकर बोली-अनमर को धन की परवाह अनगर ह, तो औरो स भी कम। दौलत कोई दीपक तो ह नही, िजसस परकाश फलता रह। िजनह उसकी जररत नही उनक गल कयो लगाई जाए- रपय का भार कछ कम नही होता। म खिद नही सभाल सकती। िकसी शभ कायरय म लग जाय, वह कही अनचछा। लाला समरकानत तो मिदर और िशवाल की राय दत ह पर मरा जी उधर नही जाता, मिदर तो यो ही इतन हो रह ह िक पजा करन वाल नही िमलत। िशकषादान महादान ह और वह भी उन लोगो म, िजनका समाज न हमशा बिहषकार िकया हो। म कई िदन स सोच रही ह, और आपस िमलन वाली थी। अनभी म दो-चार महीन और दिवधा म पडी रहती पर आपक आ जान स मरी दिवधाए िमट गइ। धन दन वालो की कमी नही ह, लन वालो की कमी ह। आदमी यही चाहता ह िक धन सपातरो को द, जो दाता क इचछानसार खिचरय कर यह नही िक मित का धन पाकर उडाना शर कर द। िदखिान को दाता की इचछानसार थोडा-बहत खिचरय कर िदया, बाकी िकसी-न-िकसी बहान स घर म रखि िलया।

यह कहत हए उसन मसकराकर शािनतकमार स पछा-आप तो धोखिा न दग-

शािनतकमार को यह परशन, हसकर पछ जान पर भी बरा मालम हआ-मरी नीयत कया होगी, यह म खिद नही जानता- आपको मझ पर इतना िवशवास कर लन का कोई कारण भी नही ह।

सखिदा न बात सभाली-यह बात नही ह, डॉकटर साहब अनममा न हसी की थी।

'िवष माधयरय क साथ भी अनपना अनसर करता ह।'

'यह तो बरा मानन की बात न थी?'

'म बरा नही मानता। अनभी दस-पाच वषरय मरी परीकषा होन दीिजए। अनभी म इतन बड िवशवास क योगय नही हआ।'

रणका न परासत होकर कहा-अनचछा साहब, म अनपना परशन वापस लती ह। आप कल मर घर आइएगा। म मोटर भज दगी। टरसट बनाना पहला काम ह। मझ अनब कछ नही पछना ह आपक ऊपर मझ परा िवशवास ह।

158 www.hindustanbooks.com

डॉकटर साहब न धनयवाद दत हए कहा-म आपक िवशवास को बनाए रखिन की चषटिा करगा।

रणका बोली-म चाहती ह जलदी ही इस काम को कर डाल। िफर नना का िववाह आ पडगा, तो महीनो फसरयत न िमलगी।

शािनतकमार न जस िसहरकर कहा-अनचछा, नना दवी का िववाह होन वाला ह- यह तो बडी शभ सचना ह। म कल ही आपस िमलकर सारी बात तय कर लगा। अनमर को भी सचना द द-

सखिदा न कठोर सवर म कहा-कोई जररत नही-

रणका बोली-नही, आप उनको सचना द दीिजएगा। शायद आए। मझ तो आशा ह जरर आएग।

डॉकटर साहब यहा स चल, तो नना बालक को िलए मोटर स उतर रही थी।

शािनतकमार न आहत कठ स कहा-तम अनब चली जाओगी, नना-

नना न िसर झका िलया पर उसकी आख सजल थी।

159 www.hindustanbooks.com

आठछ: महीन गजर गए।

सवाशरम का टरसट बन गया। कवल सवामी आतमाननदजी न, जो आशरम क परमखि कायरयकतरयवय और एक-एक पोर समिषटिवादी थ, इस परबध स अनसतषटि होकर इसतीफा द िदया। वह आशरम म धिनको को नही घसन दना चाहत थ। उनहोन बहत जोर मारा िक टरसट न बनन पाए। उनकी राय म धन पर आशरम की आतमा को बचना , आशरम क िलए घातक होगा। धन ही की परभता स तो िहनद-समाज न नीचो को अनपना गलाम बना रखिा ह, धन ही क कारण तो नीच-ऊच का भद आ गया ह उसी धन पर आशरम की सवाधीनता कयो बची जाए लिकन सवामीजी की कछ न चली और टरसट की सथापना हो गई। उसका िशलानयास रखिा सखिदा न। जलसा हआ, दावत हई, गाना-बजाना हआ। दसर िदन शािनतकमार न अनपन पद स इसतीफा द िदया।

सलीम की परीकषा भी समापत हो गई। और उसन पशीनगोई की थी, वह अनकषरश: परी हई। गजट म उसका नाम सबस नीच था। शािनतकमार क िवसमय की सीमा न रही। अनब उस कायद क मतािबक दो साल क िलए इगलड जाना चािहए था पर सलीम इगलड न जाना चाहता था। दो-चार महीन क िलए सर करन तो वह शौक स जा सकता था, पर दो साल तक वहा पड रहना उस मजर न था। उस जगह न िमलनी चािहए थी, मगर यहा भी उसन कछ ऐसी दौड-धप की, कछ ऐस हथकड खल िक वह इस कायद स मसतसना कर िदया गया। जब सब का सबस बडा डॉकटर कह रहा ह िक इगलड की ठडी हवा म इस यवक का दो साल रहना खितर स खिाली नही , तो िफर कौन इतनी बडी िजममदारी लता- हािफज हलीम लडक को भजन को तयार थ, रपय खिचरय को करन तयार थ, लिकन लडक का सवासथय िबगड गया, तो वह िकसका दामन पकडग- आिखिर यहा भी सलीम की िवजय रही। उस उसी हलक का चाजरय भी िमला, जहा उसका दोसत अनमरकानत पहल ही स मौजद था। उस िजल को उसन खिद पसद िकया।

इधर सलीम क जीवन म एक बडा पिरवतरयन हो गया। हसोड तो उतना ही था पर उतना शौकीन, उतना रिसक न था। शायरी स भी अनब उतना परम न था। िववाह स उस जो परानी अनरिच थी, वह अनब िबलकल जाती रही थी। यह पिरवतरयन एकाएक कस हो गया, हम नही जानत लिकन इधर वह कई बार सकीना क घर गया था और दोनो म गपत रप स पतर वयवहार भी हो रहा था। अनमर क उदासीन हो जान पर भी सकीना उसक अनतीत परम को िकतनी एकागरता स हदय म पाल हए थी, इस अननराग न सलीम को परासत कर िदया था। इस जयोित स अनब वह अनपन जीवन को आलोिकत करन क िलए िवकल हो रहा था। अनपनी मामा स सकीना क उस अनपार परम का वततात सन-सनकर वह बहधा रो िदया करता। उसका किव-हदय जो भरमर की भाित नए-नए पषपो क रस िलया करता था, अनब सयिमत अननराग स पिरपणरय होकर उसक जीवन म एक िवशाल साधाना की सिषटि कर रहा था।

नना का िववाह भी हो गया। लाला धानीराम नगर क सबस धानी आदमी थ। उनक जयषठ पतर मनीराम बड होनहार नौजवान थ। समरकानत को तो आशा न थी िक यहा सबध हो सकगा कयोिक धानीराम मिदर वाली घटना क िदन स ही इस पिरवार को हय समझन लग थ पर समरकानत की थिलयो न अनत म िवजय पाई। बडी-बडी तयािरया हइ लिकन अनमरकानत न आया, और न समरकानत न उस बलाया। धानीराम न कहला िदया था िक अनमरकानत िववाह म सिममिलत हआ तो बारात लौट आएगी। यह बात अनमरकानत क कानो तक पहच गई थी। नना न परसनन थी, न द:खिी थी। वह न कछ कह सकती थी, न बोल सकती थी। िपता की इचछा क सामन वह

160 www.hindustanbooks.com

कया कहती। मनीराम क िवषय म तरह-तरह की बात सनती थी-शराबी ह, वयिभचारी ह, मखिरय ह, घमडी ह लिकन िपता की इचछा क सामन िसर झकाना उसकार कतरयवय था। अनगर समरकानत उस िकसी दवता की बिलवदी पर चढा दत, तब भी वह मह न खिोलती। कवल िवदाई क समय वह रोई पर उस समय भी उस यह धयान रहा िक िपताजी को द:खि न हो। समरकानत की आखिो म धन ही सबस मलयवान वसत थी। नना को जीवन का कया अननभव था- ऐस महततव क िवषय म िपता का िनशचिय ही उसक िलए मानय था। उसका िचतत सशक था पर उसन जो कछ अनपना कतरयवय समझ रखिा था उसका पालन करत हए उसक पराण भी चल जाए तो उस द:खि न होगा।

इधर सखिदा और शािनतकमार का सहयोग िदन-िदन घिनषठ होता जाता था। धन का अनभाव तो था नही, हरक महलल म सवाशरम की शाखिाए खिल रही थी और मादक वसतआ का बिहषकार भी जोरो स हो रहा था। सखिदा क जीवन म अनब एक कठोर तप का सचार होता जाता था। वह अनब परात:काल और सधया वयायाम करती। भोजन म सवाद स अनिधक पोषकता का िवचार रखिती। सयम और िनगरह ही अनब उसकी जीवनचया क परधान अनग थ। उपनयासो की अनपकषा अनब उस इितहास और दाशरयिनक िवषयो म अनिधक आनद आता था, और उसकी बोलन की शिकत तो इतनी बढ गई थी िक सनन वालो को आशचियरय होता था। दश और समाज की दशा दखिकर उसम सचची वदना होती थी और यही वाणी म परभाव का मखय रहसय ह। इस सधार क परोगराम म एक बात और आ गई थी। वह थी गरीबो क िलए मकानो की समसया। अनब यह अननभव हो रहा था िक जब तक जनता क िलए मकानो की समसया हल न होगी, सधार का कोई परसताव सफल न होगा मगर यह काम चद का नही, इस तो मयिनिसपिलटी ही हाथ म ल सकती थी। पर यह ससथा इतना बडा काम हाथ म लत हए भी घबराती थी। हािफज हलीम परधान थ, लाला धानीराम उप-परधान ऐस दिकया-नसीमहानभावो क मिसतषक म इस समसया की आवशयकता और महततव को जमा दना किठन था। दो-चार ऐस सजजन तो िनकल आए थ, जो जमीन िमल जान पर दो-चार लाखि रपय लगान को तयार थ। उनम लाला समरकानत भी थ। अनगर चार आन सकड का सद भी िनकलता आए, तो वह सतषटि थ, मगर परशन था जमीन कहा स आए- सखिदा का कहना था िक जब िमलो क िलए, सकलो और कॉलजो क िलए जमीन का परबध हो सकता ह, तो इस काम क िलए कयो न मयिनिसपिलटी मित जमीन द-

सधया का समय था। शािनतकमार नकशो का एक पिलदा िलए हए सखिदा क पास आए और एक-एक नकशा खिोलकर िदखिान लग। यह उन मकानो क नकश थ, जो बनवाए जाएग। एक नकशा आठ आन महीन क मकान का था दसरा एक रपय क िकराए का और तीसरा दो रपय का। आठ आन वालो म एक कमरा था, एक रसोई, एक बरामदा, सामन एक बठक और छोटा-सा सहन। एक रपया वालो म भीतर दो कमर थ और दो रपय वालो म तीन कमर।

कमरो म िखिडिकया थी, फशरय और दो फीट ऊचाई तक दीवार पककी। ठाठ खिपरल का था।

दो रपय वालो म शौच-गह भी थ। बाकी दस-दस घरो क बीच म एक शौच-गह बनाया गया था।

सखिदा न पछा-आपन लागत का तखिमीना भी िकया ह-

'और कया यो ही नकश बनवा िलए ह आठ आन वाल घरो की लागत दो सौ होगी, एक रपय वालो की तीन सौ और दो रपय वालो की चार सौ। चार आन का सद पडता ह।'

'पहल िकतन मकानो का परोगराम ह?'

161 www.hindustanbooks.com

'कम-स-कम तीन हजार। दिकषण तरफ लगभग इतन ही मकानो की जररत होगी। म िहसाब लगा िलया ह। कछ लोग तो जमीन िमलन पर रपय लगाएग मगर कम-स-कम दस लाखि की जररत और होगी।'

'मार डाला दस लाखि एक तरफ क िलए।'

'अनगर पाच लाखि क िहससदार िमल जाए, तो बाकी रपय जनता खिद लगा दगी, मजदरी म बडी िकफायत होगी। राज, बलदार, बढई, लोहार आधी मजरी पर काम करन को तयार ह। ठक वाल, गधो वाल, गाडी वाल, यहा तक िक इकक और ताग वाल भी बगार काम करन पर राजी ह।'

'दिखिए, शायद चल जाए। दो-तीन लाखि शायद दादाजी लगा द, अनममा क पास भी अनभी कछ-न-कछ होगा ही बाकी रपय की िफकर करनी ह। सबस बडी जमीन की मिशकल ह।'

'मिशकल कया ह- दस बगल िगरा िदए जाए तो जमीन-ही-जमीन िनकलआएगी।'

'बगलो का िगराना आप आसान समझत ह?'

'आसान तो नही समझता लिकन उपाय कया ह- शहर क बाहर तो कोई रहगा नही। इसिलए शहर क अनदर ही जमीन िनकालनी पडगी। बाज मकान इतन लब-चौड ह िक उनम एक हजार आदमी फलकर रह सकत ह। आप ही का मकान कया छोटा ह- इसम दस गरीब पिरवार बड मज म रह सकत ह।'

सखिदा मसकाई-आप तो हम लोगो पर ही हाथ साफ करना चाहत ह ।

'जो राह बताए उस आग चलना पडगा।'

'म तयार ह लिकन मयिनिसपिलटी क पास कछ पलाट तो खिाली होग?'

'हा, ह कयो नही- मन उन सबो का पता लगा िलया ह मगर हािफजजी फरमात ह, उन पलाटो की बातचीत तय हो चकी ह।'

सलीम न मोटर स उतरकर शािनतकमार को पकारा। उनहोन उस अनदर बला िलया और पछा-िकधर स आ रह हो-

सलीम न परसनन मखि स कहा-कल रात को चला जाऊगा। सोचा, आपस रखिसत होता चल। इसी बहान दवीजी स भी िनयाज हािसल हो गया।

शािनतकमार न पछा-अनर तो यो ही चल जाओग, भाई- कोई जलसा, दावत, कछ नही- वाह

'जलसा तो कल शाम को ह। काडरय तो आपक यहा भज िदया था। मगर आपस तो जलस की मलाकात काफी नही।'

'तो चलत-चलत हमारी थोडी-सी मदद करो दिकषण तरफ मयिनिसपिलटी क जो पलाट ह, वह हम िदला दो मित म?'

सलीम का मखि गभीर हो गया। बोला-उन पलाटो की तो शायद बातचीत हो चकी ह। कई ममबर खिद बटो और बीिवयो क नाम खिरीदन को मह खिोल बठ ह।

सखिदा िविसमत हो गई-अनचछा भीतर-ही-भीतर यह कपट-लीला भी होती ह। तब तो आपकी मदद की और जररत ह। इस मायाजाल को तोडना आपका कतरयवय ह।

162 www.hindustanbooks.com

सलीम न आख चराकर कहा-अनबबाजान इस मआमल म मरी एक न सनग। और हक यह ह िक जो मआमला तय हो चका, उसक बार म कछ जोर दना भी तो मनािसब नही।

यह कहत हए उसन सखिदा और शािनतकमार स हाथ िमलाया और दोनो स कल शाम क जलस म आन का आगरह करक चला गया। वहा बठन म अनब उसकी खििरयत न थी।

शािनतकमार न कहा-दखिा आपन अनभी जगह पर गए नही पर िमजाज म अनफसरी की ब आ गई। कछ अनजब ितिलसम ह िक जो उसम कदम रखिता ह, उस पर जस नशा हो जाता ह। इस तजवीज क यह पकक समथरयक थ पर आज कसा िनकल गए- हािफजजी स अनगर जोर दकर कह, तो ममिकन नही िक वह राजी हो जाए।

सखिदा न मखि पर आतमगौरव की झलक आ गई-हम नयाय की लडाई लडनी ह। नयाय हमारी मदद करगा। हम और िकसी की मदद क महताज नही।

इसी समय लाला समरकानत आ गए। शािनत कमार को बठ दखिकर जरा िझझक। िफर पछा-किहए डॉकटर साहब, हािफजजी स कया बातचीत हई-

शािनतकमार न अनब तक जो कछ िकया था, वह सब कह सनाया।

समरकानत न अनसतोष का भाव परकट करत हए कहा-आप लोग िवलायत क पढ हए साहब, म भला आपक सामन कया मह खिोल सकता ह, लिकन आप जो चाह िक नयाय और सतय क नाम पर आपको जमीन िमल जाए, तो चपक हो रिहए। इस काम क िलए दस-बीस हजार रपय खिचरय करन पडग-हरक मबर स अनलग-अनलग िमिलए। दिखिए। िकस िमजाज का, िकस िवचार का, िकस रग-ढग का आदमी ह। उसी तरह उस काब म लाइए-खिशामद स राजी हो तो खिशामद स, चादी स राजी हो चादी स, दआ-तावीज, जतर-मतर िजस तरह काम िनकल, उस तरह िनकािलए। हािफजजी स मरी परानी मलाकात ह। पचचीस हजार की थली उनक मामा क हाथ घर म भज दो, िफर दख कस जमीन नही िमलती- सरदार कलयाणिसह को नय मकानो का ठका दन का वादा कर लो, वह काब म आ जाएग। दबजी को पाच तोल चनदरोदय भट करक पटा सकत हो। खिनना स योगाभयास की बात करो और िकसी सत स िमला दो ऐसा सत हो, जो उनह दो-चार आसन िसखिा द। राय साहब धानीराम क नाम पर अनपन नए महलल का नाम रखि दो, उनस कछ रपय भी िमल जाएग। यह ह काम करन का ढग। रपय की तरफ स िनिशचत रहो। बिनयो को चाह बदनाम कर लो पर परमाथरय क काम म बिनय ही आग आत ह। दस लाखि तक का बीमा तो म लता ह। कई भाइयो क तो वोट ल आया। मझ तो रात को नीद नही आती। यही सोचा करता ह िक कस यह काम िस' हो। जब तक काम िस' न हो जाएगा, मझ जवर-सा चढा रहगा।

शािनतकमार न दबी आवाज स कहा-यह फन तो मझ अनभी सीखिना पडगा, सठजी। मझ न रकम खिान का तजरबा ह, न िखिलान का। मझ तो िकसी भल आदमी स यह परसताव करत शमरय आती ह। यह खियाल भी आता ह िक वह मझ िकतना खिदगरज समझ रहा होगा। डरता ह, कही घडक न बठ।

समरकानत न जस कततो को दतकार कर कहा-तो िफर तमह जमीन िमल चकी। सवाशरम क लडक पढाना दसरी बात ह, मामल पटाना दसरी बात ह। म खिद पटाऊगा।

सखिदा न जस आहत होकर कहा-नही, हम िरशवत दना मजर नही। हम नयाय क िलए खिड ह, हमार पास नयाय का बल ह। हम उसी बल स िवजय पाएग।

समरकानत न िनराश होकर कहा-तो तमहारी सकीम चल चकी।

163 www.hindustanbooks.com

सखिदा न कहा-सकीम तो चलगी हा, शायद दर म चल, या धीमी चाल स चल, पर रक नही सकती। अननयाय क िदन पर हो गए।

'अनचछी बात ह। म भी दखिगा।'

समरकानत झललाए हए बाहर चल गए। उनकी सवरयजञता को जो सवीकार न कर, उसस वह दर भागत थ।

शािनतकमार न खिश होकर कहा-सठजी भी िविचतर जीव ह इनकी िनगाह म जो कछ ह, वह रपया। मानवता भी कोई वसत ह, इस शायद यह मान ही नही।

सखिदा की आख सगवरय हो गइ-इनकी बातो पर न जाइए, डॉकटर साहब- इनक हदय म िजतनी दया, िजतनी सवा ह, वह हम दोनो म िमलाकर भी न होगी। इनक सवभाव म िकतना अनतर हो गया ह, इस आप नही दखित- डढ साल पहल बट न इनस यह परसताव िकया होता, तो आग हो जात। अनपना सवरयसव लटान को तयार हो जाना साधारण बात नही ह। और िवशषकर उस आदमी क िलए, िजसन एक-एक कौडी को दातो स पकडा हो। पतर-सनह ही न यह काया-पलट िकया ह। म इसी को सचचा वरागय कहती ह। आप पहल मबरो स िमिलए और जररत समिझए तो मझ भी ल लीिजए। मझ तो आशा ह, हम बहमत िमलगा। नही, आप अनकल न जाए। कल सवर आइए तो हम दोनो चल। दस बज रात तक लौट आएग, इस वकत मझ जरा सकीना स िमलना ह। सना ह महीनो स बीमार ह। मझ तो उस पर शरधदा-सी हो गई ह। समय िमला, तो उधर स ही नना स िमलती आऊगी।

डॉकटर साहब न कसी स उठत हए कहा-उस गए तो दो महीन हो गए, आएगी कब तक-

'यहा स तो कई बार बलाया गया, सठ धानीराम िबदा ही नही करत।'

'नना खिश तो ह?'

'म तो कई बार िमली पर अनपन िवषय म उसन कछ न कहा। पछा, तो यही बोली-म बहत अनचछी तरह ह। पर मझ तो वह परसनन नही िदखिी। वह िशकायत करन वाली लडकी नही ह। अनगर वह लोग लातो स मारकर िनकालना भी चाह, तो घर स न िनकलगी, और न िकसी स कछ कहगी।'

शािनतकमार की आख सजल हो गइ-उसस कोई अनपरसनन हो सकता ह, म तो इसकी कलपना ही नही कर सकता।

सखिदा मसकराकर बोली-उसका भाई कमागी ह, कया यह उन लोगो की अनपरसननता क िलए काफी नही ह-

'मन तो सना, मनीराम पकका शोहदा ह।'

'नना क सामन आपन वह शबद कहा होता, तो आपस लड बठती।'

'म एक बार मनीराम स िमलगा जरर।'

'नही आपक हाथ जोडती ह। आपन उनस कछ कहा, तो नना क िसर जाएगी।'

'म उसस लडन नही जाऊगा। म उसकी खिशामद करन जाऊगा। यह कला जानता नही पर नना क िलए अनपनी आतमा की हतया करन म भी मझ सकोच नही ह। म उस द:खिी नही दखि सकता। िन:सवाथरय सवा की दवी अनगर मर सामन द:खि सह, तो मर जीन को िधककार ह।

शािनतकमार जलदी स बाहर िनकल आए। आसआ का वग अनब रोक न रकता था।

164 www.hindustanbooks.com

165 www.hindustanbooks.com

नौसखिदा सडक पर मोटर स उतरकर सकीना का घर खिोजन लगी पर इधर स उधर तक दो-तीन चककर

लगा आई, कही वह घर न िमला। जहा वह मकान होना चािहए था, वहा अनब एक नया कमरा था, िजस पर कलई पती हई थी। वह कचची दीवार और सडा हआ टाट का परदा कही न था। आिखिर उसन एक आदमी स पछा, तब मालम हआ िक िजस वह नया कमरा समझ रही थी, सकीना क मकान का दरवाजा ह। उसन आवाज दी और एक कषण म दवार खिल गया। सखिदा न दखिा वह एक साफ सथरा छोटा-सा कमरा ह, िजसम दो-तीन मोढ रख हए ह। सकीना न एक मोढ को बढाकर पछा-आपको मकान तलाश करना पडा होगा। यह नया कमरा बन जान स पता नही चलता।

सखिदा न उसक पील, सख मह की ओर दखित हए कहा-हा, मन दो-तीन चककर लगाए। अनब यह घर कहलान लायक हो गया मगर तमहारी यह कया हालत ह- िबलकल पहचानी ही नही जाती।

सकीना न हसन की चषटिा करक कहा-म तो मोटी-ताजी कभी न थी।

'इस वकत तो पहल स भी उतरी हई हो।'

सहसा पठािनन आ गई और यह परशन सनकर बोली-महीनो स बखिार आ रहा ह बटी, लिकन दवा नही खिाती। कौन कह मझस बोलचाल बद ह। अनललाह जानता ह, तमहारी बडी याद आती थी बहजी पर आऊ कौन मह लकर- अनभी थोडी ही दर हई, लालाजी भी गए ह। जग-जग िजए। सकीना न मना कर िदया था इसिलए तलब लन न गई थी। वही दन आए थ। दिनया म ऐस-ऐस खिदा क बद पड हए ह। दसरा होता, तो मरी सरत न दखिता। उनका बसा-बसाया घर मझ नसीबोजली क कारण उजड गया। मगर लाला का िदल वही ह, वही खियाल ह, वही परविरश की िनगाह ह। मरी आखिो पर न जान कयो परदा पड गया था िक मन भोल-भाल लडक पर वह इलजाम लगा िदया। खिदा कर, मझ मरन क बाद कफन भी न नसीब हो मन इतन िदनो बडी छानबीन की बटी सभी न मरी लानत-मलामत की। इस लडकी न तो मझस बोलना छोड िदया। खिडी तो ह पछो। ऐसी-ऐसी बात कहती ह िक कलज म चभ जाती ह। खिदा सनवाता ह, तभी तो सनती ह। वसा काम न िकया होता तो कयो सनना पडता- उस अनधर घर म इसक साथ दखिकर मझ शबहा हो गया और जब उस गरीब न दखिा िक बचारी औरत बदनाम हो रही ह, तो उसकी खिाितर अनपना धरम दन को भी राजी हो गया। मझ िनगोडी को उस गसस म यह खियाल भी न रहा िक अनपन ही मह तो कािलखि लगा रही ह।

सकीना न तीवर कठ स कहा-अनर, हो तो चका, अनब कब तक दखिडा रोए जाओगी। कछ और बातचीत करन दोगी या नही-

पठािनन न फिरयाद की-इसी तरह मझ िझडकती रहती ह बटी, बोलन नही दती। पछो, तमस दखिडा न रोऊ, तो िकसक पास रोन जाऊ-

सखिदा न सकीना स पछा-अनचछा, तमन अनपना वसीका लन स कयो इकार कर िदया था- वह तो बहत पहल स िमल रहा ह।

सकीना कछ बोलना ही चाहती थी िक पठािनन िफर बोली-इसक पीछ मझस लडा करती ह, बह कहती ह, कयो िकसी की खिरात ल- यह नही सोचती िक उसी स तो हमारी परविरश हई ह। बस, आजकल िसलाई की धन ह। बारह-बारह बज रात तक बठी आख फोडती रहती ह। जरा सरत दखिो, इसी स बखिार भी आन लगा ह, पर

166 www.hindustanbooks.com

दवा क नाम स भागती ह। कहती ह, जान रखिकर काम कर, कौन लाव-लशकर खिान वाला ह लिकन यहा तो धन ह, घर भी अनचछा हो जाए, सामान भी अनचछा बन जाए। इधर काम अनचछा िमला ह, और मजरी भी अनचछी िमल रही ह मगर सब इसी टीम-टाम म उड जाती ह। यहा स थोडी दर पर एक ईसाइन रहती ह, वह रोज सबह पढान आती ह। हमार जमान म तो बटा िसपारा और रोजा-नमाज का िरवाज था। कई जगह स शादी क पगाम आए...।

सकीना न कठोर होकर कहा-अनर, तो अनब चप भी रहोगी। हो तो चका। आपकी कया खिाितर कर, बहन- आपन इतन िदनो बाद मझ बदनसीब को याद तो िकया ।

सखिदा न उदार मन स कहा-याद तो तमहारी बराबर आती रहती थी और आन को जी भी चाहता था पर डरती थी, तम अनपन िदल म न जान कया समझो- यह तो आज िमया सलीम स मालम हआ िक तमहारी तबीयत अनचछी नही ह। जब हम लोग तमहारी िखिदमत करन को हर तरह हािजर ह, तो तम नाहक कयो जान दती हो-

सकीना जस शमरय को िनगलकर बोली-बहन, म चाह मर जाऊ, पर इस गरीबी को िमटाकर छोडगी। म इस हालत म न होती, तो बाबजी को कयो मझ पर रहम आता, कयो वह मर घर आत, कयो उनह बदनाम होकर घर स भागना पडता- सारी मसीबत की जड गरीबी ह। इसका खिातमा करक छोडगी।

एक कषण क बाद उसन पठािनन स कहा-जरा जाकर िकसी तबोिलन स पान ही लगवा लाओ। अनब और कया खिाितर कर आपकी-

बिढया को इस बहान स टालकर सकीना धीर सवर म बोली-यह महममद सलीम का खित ह। आप जब मझ पर इतना रहम करती ह, तो आपस कया परदा कर- जो होना था, वह तो हो ही गया। बाबजी यहा कई बार आए। खिदा जानता ह जो उनहोन कभी मरी तरफ आखि उठाई हो। म भी उनका अनदब करती थी। हा , उनकी शराफत का अनसर जरर मर िदल पर होता था। एकाएक मरी शादी का िजकर सनकर बाबजी एक नश की-सी हालत म आए और मझस महबबत जािहर की। खिदा गवाह ह बहन, म एक हगरय भी गलत नही कह रही ह। उनकी पयार की बात सनकर मझ भी सधा-बधा भल गई। मरी जसी औरत क साथ ऐसा शरीफ आदमी यो महबबत कर, यह मझ ल उडा। म वह नमत पाकर दीवानी हो गई। जब वह अनपना तन-मन सब मझ पर िनसार कर रह थ, तो म काठ की पतली तो न थी। मझम ऐसी कया खिबी उनहोन दखिी, यह म नही जानती। उनकी बातो स यही मालम होता था िक वह आपस खिश नही ह। बहन, म इस वकत आपस साफ-साफ बात कर रही ह, मआफ कीिजएगा। आपकी तरफ स उनह कछ मलाल जरर था और जस गाका करन क बाद अनमीर आदमी भी जरदा, पलाव भलकर सततपर टट पडता ह, उसी तरह उनका िदल आपकी तरफ स मायस होकर मरी तरफ लपका। वह महबबत क भख थ। महबबत क िलए उनकी दह तडपती रही थी। शायद यह नमत उनह कभी मयससर ही न हई। वह नमाइश स खिश होन वाल आदमी नही ह। वह िदल और जान स िकसी क हो जाना चाहत ह और उस भी िदल और जान स अनपना कर लना चाहत ह। मझ अनब अनफसोस हो रहा ह िक म उनक साथ चली कयो न गई- बचार सतत पर िगर तो वह भी सामन स खिीच िलया गया। आप अनब भी उनक िदल पर कबजा कर सकती ह। बस, एक महबबत म डबा हआ खित िलखि दीिजए। वह दसर ही िदन दौड हए आएग। मन एक हीरा पाया ह और जब तक कोई उस मर हाथो स छीन न ल, उस छोड नही सकती। महज यह खियाल िक मर पास हीरा ह, मर िदल को हमशा मजबत और खिश बनाए रहगा।

वह लपककर घर म गई और एक इतर म बसा हआ िलफाफा लाकर सखिदा क हाथ पर रखिती हई बोली-यह

167 www.hindustanbooks.com

िमया महममद सलीम का खित ह। आप पढ सकती ह। कोई ऐसी बात नही ह वह भी मझ पर आिशक हो गए ह , पहल अनपन िखिदमतगार क साथ मरा िनकाह करा दना चाहत थ। अनब खिद िनकाह करना चाहत ह। पहल चाह जो कछ रह हो, पर अनब उनम वह िछछोरापन नही ह। उनकी मामा उनका हाल बयान िकया करती ह। मरी िनसबत भी उनह जो मालम हआ होगा, मामा स ही मालम हआ होगा। मन उनह दो-चार बार अनपन दरवाज पर भी ताकत-झाकत दखिा ह। सनती ह, िकसी ऊच ओहद पर आ गए ह। मरी तो जस तकदीर खिल गई, लिकन महबबत की िजस नाजक जजीर म बाधी हई ह, उस बडी-स-बडी ताकत भी नही तोड सकती। अनब तो जब तक मझ मालम न हो जाएगा िक बाबजी न मझ िदल स िनकाल िदया, तब तक उनही की ह, और उनक िदल स िनकाली जान पर भी इस महबबत को हमशा याद रखिगी। ऐसी पाक महबबत का एक लमहा इसान को उमर-भर मतवाला रखिन क िलए काफी ह। मन इसी मजमन का जवाब िलखि िदया ह। कल ही तो उनक जान की तारीखि ह। मरा खित पढकर रोन लग। अनब यह ठान ली ह िक या तो मझस शादी करग या िबना-बयाह रहग। उसी िजल म तो बाबजी भी ह। दोनो दोसतो म वही फसला होगा। इसीिलए इतनी जलद भाग जा रह ह।

बिढया एक पततो की िगलौरी म पान लकर आ गई। सखिदा न िनिषकरय भाव स पान लकर खिा िलया और िफर िवचारो म डब गई। इस दिरदर न उस आज पणरय रप स परासत कर िदया था। आज वह अनपनी िवशाल सपितत और महती कलीनता क साथ उसक सामन िभखिािरन-सी बठी हई थी। आज उसका मन अनपना अनपराध सवीकार करता हआ जान पडा। अनब तक उसन तकरक स मन को समझाया था िक परष िछछोर और हरजाई होत ही ह, इस यवती क हाव-भाव, हास-िवलास न उनह मगध कर िलया। आज उस जञात हआ िक यहा न हाव-भाव ह, न हास-िवलास ह, न वह जाद भरी िचतवन ह। यह तो एक शात, करण सगीत ह, िजसका रस वही ल सकत ह, िजनक पास हदय ह। लपटो और िवलािसयो को िजस परकार चटपट, उततजक खिान म आनद आता ह, वह यहा नही ह। उस उदारता क साथ, जो दवष की आग स िनकलकर खिरी हो गई थी, उसन सकीना की गरदन म बाह डाल दी और बोली-बहन, आज तमहारी बातो न मर िदल का बोझ हलका कर िदया। सभव ह, तमन मर ऊपर जो इलजाम लगाया ह, वह ठीक हो। तमहारी तरफ स मरा िदल आज साफ हो गया। मरा यही कहना ह िक बाबजी को अनगर मझस िशकायत हई थी, तो उनह मझस कहना चािहए था। म भी ईशवर स कहती ह िक अनपनी जान म मन उनह कभी अनसतषटि नही िकया। हा, अनब मझ कछ ऐसी बात याद आ रही ह, िजनह उनहोन मरी िनषठरता समझी होगी पर उनहोन मरा जो अनपमान िकया, उस म अनब भी कषमा नही कर सकती। अनगर उनह परम की भखि थी, तो मझ भी परम की भखि कछ कम न थी। मझस वह जो चाहत थ, वही म उनस चाहती थी। जो चीज वह मझ न द सक, वह मझस न पाकर वह कयो उदवड हो गए- कया इसीिलए िक वह परष ह, और परष चाह सतरी को पाव की जती समझ, पर सतरी का धमरय ह िक वह उनक पाव स िलपटी रह- बहन, िजस तरह तमन मझस कोई परदा नही रखिा, उसी तरह म भी तमस िनषकपट बात कर रही ह। मरी जगह पर एक कषण क िलए अनपन को रखि लो। तब तम मर भावो को पहचान सकोगी। अनगर मरी खिता ह तो उतनी ही उनकी भी खिता ह। िजस तरह म अनपनी तकदीर को ठोककर बठ गई थी, कया वह भी न बठ सकत थ- तब शायद सफाई हो जाती, लिकन अनब तो जब तक उनकी तरफ स हाथ न बढाया जाएगा, म अनपना हाथ नही बढा सकती, चाह सारी िजदगी इसी दशा म पडी रह। औरत िनबरयल ह और इसीिलए उस मान-सममान का द:खि भी जयादा होता ह। अनब मझ आजञा दो बहन, जरा नना स िमलना ह। म तमहार िलए सवारी भजगी, कतपा करक कभी-कभी हमार यहा आ जाया करो।

वह कमर स बाहर िनकली, तो सकीना रो रही थी, न जान कयो-

168 www.hindustanbooks.com

दससखिदा सठ धानीराम क घर पहची, तो नौ बज रह थ। बडा िवशाल, आसमान स बात करन वाला भवन

था, िजसक दवार पर एक तज िबजली की बतती जल रही थी और दो दरबान खिड थ। सखिदा को दखित ही भीतर-बाहर हलचल मच गई। लाला मनीराम घर म स िनकल आए और उस अनदर ल गए। दसरी मिजल पर सजा हआ मलाकाती कमरा था। सखिदा वहा बठाई गई। घर की िसतरया

इधर-उधर परदो स झाक रही थी, कमर म आन का साहस न कर सकती थी।

सखिदा न एक कोच पर बठकर पछा-सब कशल-मगल ह-

मनीराम न एक िसगार सलगाकर धआ उडात हए कहा-आपन शायद पपर नही दखिा। पापा को दो िदन स जवर आ रहा ह। मन तो कलकतता स िम. लसट को बला िलया ह। यहा िकसी पर मझ िवशवास नही। मन पपर म तो द िदया था। बढ हए, कहता ह आप शात होकर बिठए, और व चाहत भी ह, पर यहा जब कोई बठन भी द। गवनरयर परयाग आए थ। उनक यहा स खिास उनक पराइवट सकरटरी का िनमतरण आ पहचा। जाना लािजम हो गया। इस शहर म और िकसी क पास िनमतरण नही आया। इतन बड सममान को कस ठकरा िदया जाता- वही सरदी खिा गए। सममान ही तो आदमी की िजदगी म एक चीज ह, यो तो अनपना-अनपना पट सभी पालत ह। अनब यह समिझए िक सबह स शाम तक शहर क रईसो का ताता लगा रहता ह। सवर िडपटी किमशनर और उनकी मम साहब आई थी। किमशनर न भी हमददी का तार भजा ह। दो-चार िदन की बीमारी कोई बात नही, यह सममान तो परापत हआ। सारा िदन अनफसरो की खिाितरदारी म कट रहा ह।

नौकर पान-इलायची की तशतरी रखि गया। मनीराम न सखिदा क सामन तशतरी रखि दी। िफर बोल-मर घर म ऐसी औरत की जररत थी, जो सोसाइटी का आचार-वयवहार जानती हो और लिडयो का सवागत-सतकार कर सक। इस शादी स तो वह बात परी हई नही। मझ मजबर होकर दसरा िववाह करना पडगा। परान िवचार की िसतरयो की तो हमार यहा यो भी कमी न थी पर वह लिडयो की सवा-सतकार तो नही कर सकती। लिडयो क सामन तो उनह ला ही नही सकत। ऐसी फहड, गवार औरतो को उनक सामन लाकर अनपना अनपमान कौन कराए-

सखिदा न मसकराकर कहा-तो िकसी लडी स आपन कयो िववाह न िकया-

मनीराम िनससकोच भाव स बोला-धोखिा हआ और कया- हम लोगो को कया मालम था िक ऐस िशिकषत पिरवार म लडिकया ऐसी फहड होगी- अनममा, बहन और आस-पास की िसतरया तो नई बह स बहत सतषटि ह। वह वरत रखिती ह, पजा करती ह, िसदर का टीका लगाती ह लिकन मझ तो ससार म कछ काम, कछ नाम करना ह। मझ पजा-पाठ वाली औरतो की जररत नही, पर अनब तो िववाह हो ही गया, यह तो टट नही सकता। मजबर होकर दसरा िववाह करना पडगा। अनब यहा दो-चार लिडया रोज ही आया चाह, उनका सतकार न िकया जाए, तो काम नही चलता। सब समझती होगी, यह लोग िकतन मखिरय ह।

सखिदा को इस इककीस वषरय वाल यवक की इस िनससकोच सासािरकता पर घणा हो रही थी। उसकी सवाथरय-सवा न जस उसकी सारी कोमल भावनाआ को कचल डाला था, यहा तक िक वह हासयासपद हो गया था।

'इस काम क िलए तो आपको थोड-स वतन म िकरािनयो की िसतरया िमल जाएगी, जो लिडयो क साथ साहबो का भी सतकार करगी।'

169 www.hindustanbooks.com

'आप इन वयापार सबधी समसयाआ को नही समझ सकती। बड-बड िमलो क एजट आत ह। अनगर मरी सतरी उनस बातचीत कर सकती, तो कछ-न-कछ कमीशन रट बढ जाता। यह काम तो कछ औरत ही कर सकती ह।'

'म तो कभी न कर। चाह सारा कारोबार जहननम म िमल जाए।'

'िववाह का अनथरय जहा तक म समझा ह वह यही ह िक सतरी परष की सहगािमनी ह। अनगरजो क यहा बराबर िसतरया सहयोग दती ह।'

'आप सहगािमनी का अनथरय नही समझ।'

मनीराम मह फट था। उसक मसािहब इस साफगोई कहत थ। उसका िवनोद भी गाली स शर होता था और गाली तो गाली थी ही। बोला-कम-स-कम आपको इस िवषय म मझ उपदश करन का अनिधकार नही ह। आपन इस शबद का अनथरय समझा होता, तो इस वकत आप अनपन पित स अनलग न होती और न वह गली-कचो की हवा खिात होत।

सखिदा का मखिमडल लजजा और करोध स आरकत हो उठा। उसन कसी स उठकर कठोर सवर म कहा-मर िवषय म आपको टीका करन का कोई अनिधकार नही ह, लाला मनीराम जरा भी अनिधकार नही ह। आप अनगरजी सभयता क बड भकत बनत ह। कया आप समझत ह िक अनगरजी पहनावा और िसगार ही उस सभयता क मखय अनग ह- उसका परधान अनग ह, मिहलाआ का आदर और सममान। वह अनभी आपको सीखिना बाकी ह। कोई कलीन सतरी इस तरह आतम-सममान खिोना सवीकार न करगी।

उसका फजरयन सनकर सारा घर थरा उठा और मनीराम की तो जस जबान बद हो गई। नना अनपन कमर म बठी हई भावज का इतजार कर रही थी, उसकी गरज सनकर समझ गई, कोई-न कोई बात हो गई। दौडी हई आकर बड कमर क दवार पर खिडी हो गई।

'म तमहारी राह दखि रही थी भाभी, तम यहा कस बठ गइ?'

सखिदा न उसकी ओर धयान न दकर उसी रोष म कहा-धन कमाना अनचछी बात ह, पर इजजत बचकर नही। और िववाह का उददशय वह नही ह जो आप समझ ह। मझ आज मालम हआ िक सवाथरय म पडकर आदमी का कहा तक पतन हो सकता ह ।

नना न आकर उसका हाथ पकड िलया और उस उठाती हई बोली-अनर, तो यहा स उठोगी भी।

सखिदा और उततोिजत होकर बोली-म कयो अनपन सवामी क साथ नही गई- इसिलए िक वह िजतन तयागी ह, म उतना तयाग नही कर सकती थी आपको अनपना वयवसाय और धन अनपनी पतनी क आतम-सममान स पयारा ह। उनहोन दोनो ही को लात मार दी। आपन गली-कचो की जो बात कही, इसका अनगर वही अनथरय ह, जो म समझती ह, तो वह िमथया कलक ह। आप अनपन रपय कमात जाइए, आपका उस महान आतमा पर छीट उडाना छोट मह बडी बात ह।

सखिदा लोहार की एक को सोनार की सौ क बराबर करन की अनसफल चषटिा कर रही थी। वह एक वाकय उसक हदय म िजतना चभा, वसा पना कोई वाकय वह न िनकाल सकी।

नना क मह स िनकला-भाभी, तम िकसक मह लग रही हो-

मनीराम करोध स मटठी बधकर बोला-म अनपन ही घर म अनपना यह अनपमान नही सह सकता।

170 www.hindustanbooks.com

नना न भावज क सामन हाथ जोडकर कहा-भाभी, मझ पर दया करो। ईशवर क िलए यहा स चलो।

सखिदा न पछा-कहा ह सठजी, जरा मझ उनस दो-दो बात करनी ह-

मनीराम न कहा-आप इस वकत उनस नही िमल सकती। उनकी तबीयत अनचछी नही ह, और ऐसी बात सनना वह पसद न करग।

'अनचछी बात ह, न जाऊगी। ननादवी, कछ मालम ह तमह, तमहारी एक अनगरजी सौत आन वाली ह, बहत जलद।'

'अनचछा ही ह, घर म आदिमयो का आना िकस बरा लगता ह- एक-दो िजतनी चाह, आव, मरा कया िबगडता ह?'

मनीराम इस पिरहास पर आप स बाहर हो गया। सखिदा नना क साथ चली, तो सामन आकर बोला-आप मर घर म नही जा सकती।

सखिदा रककर बोली-अनचछी बात ह, जाती ह, मगर याद रिखिएगा, इस अनपमान का नतीजा आपक हक म अनचछा न होगा।

नना परो पडती रही, पर सखिदा झललाई हई बाहर िनकल गई।

एक कषण म घर की सारी औरत और बचच जमा हो गए और सखिदा पर आलोचनाए होन लगी। िकसी न कहा-इसकी आखि का पानी मर गया। िकसी न कहा-ऐसी न होती, तो खिसम छोडकर कयो चला जाता- नना िसर झकाए सनती रही। उसकी आतमा उस िधककार रही थी-तर सामन यह अननथरय हो रहा ह, और त बठी सन रही ह, लिकन उस समय जबान खिोलना कहर हो जाता। वह लाला समरकानत की बटी ह, इस अनपराध को उसकी िनषकपट सवा भी न िमटा सकी थी। वालमीकीय रामायण की कथा क अनवसर पर समरकानत न लाला धानीराम का मसतक नीचा करक इस वमनसय का बीज बोया था। उसक पहल दोनो सठो म िमतर-भाव था। उस िदन स दवष उतपनन हआ। समरकानत का मसतक नीचा करन ही क िलए धानीराम न यह िववाह सवीकार िकया। िववाह क बाद उनकी दवष जवाला ठडी हो गई थी। मनीराम न मज पर पर रखिकर इस भाव स कहा, मानो सखिदा को वह कछ नही समझता-म इस औरत को कया जवाब दता- कोई मदरय होता, तो उस बताता। लाला समरकानत न जआ खलकर धन कमाया ह। उसी पाप का फल भोग रह ह। यह मझस बात करन चली ह। इनकी माता ह, उनह उस शोहद शािनतकमार न बवकग बनाकर सारी जायदाद िलखिा ली। अनब टक-टक को महताज हो रही ह। समरकानत का भी यही हाल होन वाला ह। और यह दवी दश का उपकार करन चली ह। अनपना परष तो मारा-मारा िफरता ह और आप दश का उधार कर रही ह। अनछतो क िलए मिदर कया खिलवा िदया, अनब िकसी को कछ समझती ही नही अनब मयिनिसपलटी स जमीन क िलए लड रही ह। ऐसी गचचा खिाएगी िक याद करगी। मन इन दो सालो म िजतना कारोबार बढाया ह, लाला समरकानत सात जनम म नही बढा सकत।

मनीराम का सार घर पर आिधपतय था। वह धन कमा सकता था, इसिलए उसक आचार-वयवहार को पसद न करन पर भी घर उसका गलाम था। उसी न तो कागज और चीनी की एजसी खिोली थी। लाला धानीराम घी का काम करत थ और घी क वयापारी बहत थ। लाभ कम होता था। कागज और चीनी का वह अनकला एजट था। नफा का कया िठकाना इस सफलता स उसका िसर िफर गया था। िकसी को न िगनता था, अनगर कछ आदर करता था, तो लाला धानीराम का। उनही स कछ दबता भी था।

171 www.hindustanbooks.com

यहा लोग बात कर रह थ िक लाला धानीराम खिासत, लाठी टकत हए आकर बठ गए।

मनीराम न तरत पखिा बद करत हए कहा-आपन कयो कषटि िकया, बाबजी- मझ बला लत। डॉकटर न आपको चलन-िफरन को मना िकया था।

लाला धानीराम न पछा-कया आज लाला समरकानत की बह आई थी-

मनीराम कछ डर गया-जी हा, अनभी-अनभी चली गइ।

धानीराम न आख िनकालकर कहा-तो तमन अनभी स मझ मरा समझा िलया- मझ खिबर तक न दी-

'म तो रोक रहा था पर वह झललाई हई चली गइ।'

'तमन अनपनी बातचीत स उस अनपरसनन कर िदया होगा नही वह मझस िमल िबना न जाती। '

'मन तो कवल यही कहा था िक उनकी तबीयत अनचछी नही ह।'

'तो तम समझत हो, िजसकी तबीयत अनचछी न हो, उस एकात म मरन दना चािहए- आदमी एकात म मरना भी नही चाहता। उसकी हािदक इचछा होती ह िक कोई सकट पडन पर उसक सग-सबधी आकर उस घर ल।'

लाला धानीराम को खिासी आ गई। जरा दर क बाद वह िफर बोल-म कहता ह, तम कछ िसडी तो नही हो गए- वयवसाय म सफलता पा जान ही स िकसी का जीवन सफल नही हो जाता। समझ गए- सफल मनषय वह ह, जो दसरो स अनपना काम भी िनकाल और उन पर एहसान भी रख। शखिी मारना सफलता की दलील नही, ओछपन की दलील ह। वह मर पास आती, तो यहा स परसनन होकर जाती और उसकी सहायता बड काम की वसत ह। नगर म उसका िकतना सममान ह, शायद तमह इसकी खिबर नही। वह अनगर तमह नकसान पहचाना चाह, तो एक िदन म तबाह कर सकती ह। और वह तमह तबाह करक छोडगी। मरी बात िगरह बध लो। वह एक ही िजदवी औरत ह िजसन पित की परवाह न की, अनपन पराणो की परवाह न की-न जान तमह कब अनकल आएगी-

लाला धानीराम को खिासी का दौरा आ गया। मनीराम न दौडकर उनह सभाला और उनकी पीठ सहलान लगा। एक िमनट क बाद लालाजी को सास आई।

मनीराम न िचितत सवर म कहा-इस डॉकटर की दवा स आपको कोई फायदा नही हो रहा ह। किवराज को कयो न बला िलया जाय- म उनह तार िदए दता ह।

धानीराम न लबी सास खिीचकर कहा-अनचछा तो हगा बटा, म िकसी साध की चटकी-भर राखि ही स। हा, वह तमाशा चाह कर लो, और यह तमाशा बरा नही रहा। थोड स रपय ऐस तमाशो म खिचरय कर दन का म िवरोध नही करता लिकन इस वकत क िलए इतना बहत ह। कल डॉकटर साहब स कह दगा , मझ बहत फायदा ह, आप तशरीफ ल जाए।

मनीराम न डरत-डरत पछा-किहए तो म सखिदादवी क पास जाऊ-

धानीराम न गवरय स कहा-नही, म तमहारा अनपमान करना नही चाहता। जरा मझ दखिना ह िक उसकी आतमा िकतनी उदार ह- मन िकतनी ही बार हािनया उठाइ, पर िकसी क सामन नीचा नही बना। समरकानत को मन दखिा। वह लाखि बरा हो, पर िदल का साफ ह, दया और धमरय को कभी नही छोडता। अनब उनकी बह की

172 www.hindustanbooks.com

परीकषा लनी ह।

यह कहकर उनहोन लकडी उठाई और धीर-धीर अनपन कमर की तरफ चल। मनीराम उनह हाथो स सभाल हए था।

173 www.hindustanbooks.com

गयारहसावन म नना मक आई। ससराल चार कदम पर थी, पर छ: महीन स पहल आन का अनवसर न िमला।

मनीराम का बस होता तो अनब भी न आन दता लिकन सारा घर नना की तरफ था। सावन म सभी बहए मक जाती ह। नना पर इतना बडा अनतयाचार नही िकया जा सकता।

सावन की झडी लगी हई थी कही कोई मकान िगरता था, कही कोई छत बठती थी। सखिदा बरामद म बठी हई आगन म उठत हए बलबलो की सर कर रही थी। आगन कछ गहरा था, पानी रक जाया करता था। बलबलो का बतासो की तरह उठकर कछ दर चलना और गायब हो जाना, उसक िलए मनोरजक तमाशा बना हआ था। कभी-कभी दो बलबल आमन-सामन आ जात और जस हम कभी-कभी िकसी क सामन आ जान पर कतराकर िनकल जाना चाहत ह पर िजस तरफ हम मडत ह, उसी तरफ वह भी मडता ह और एक सकड तक यही दाव-घात होता रहता ह, यही तमाशा यहा भी हो रहा था। सखिदा को ऐसा आभास हआ, मानो यह जानदार ह, मानो ननह-ननह बालक गोल टोिपया लगाए जल-करीडा कर रह ह।

इसी वकत नना न पकारा-भाभी, आओ, नाव-नाव खल। म नाव बना रही ह।

सखिदा न बलबलो की ओर ताकत हए जवाब िदया-तम खलो, मरा जी नही चाहता।

नना न न माना। दो नाव िलए आकर सखिदा को उठान लगी-िजसकी नाव िकनार तक पहच जाय उसकी जीत। पाच-पाच रपय की बाजी।

सखिदा न अनिनचछा स कहा-तम मरी तरफ स भी एक नाव छोड दो। जीत जाना, तो रपय ल लना पर उसकी िमठाई नही आएगी, बताए दती ह।

'तो कया दवाए आएगी?'

'वाह, उसस अनचछी और कया बात होगी- शहर म हजारो आदमी खिासी और जवर म पड हए ह। उनका कछ उपकार हो जाएगा।'

सहसा मनन न आकर दोनो नाव छीन ली और उनह पानी म डालकर तािलया बजान लगा।

नना न बालक का चबन लकर कहा-वहा दो-एक बार रोज इस याद करक रोती थी। न जान कयो बार-बार इसी की याद आती रहती थी।

'अनचछा, मरी याद भी कभी आती थी?'

'कभी नही। हा, भया की याद बार-बार आती थी- और वह इतन िनठर ह िक छ: महीन म एक पतर भी न भजा। मन भी ठान िलया ह िक जब तक उनका पतर न आएगा, एक खित भी न िलखिगी।'

'तो कया सचमच तमह मरी याद न आती थी- और म समझ रही थी िक तम मर िलए िवकल हो रही होगी। आिखिर अनपन भाई की बहन ही तो हो। आखि की ओट होत ही गायब। '

'मझ तो तमहार ऊपर करोध आता था। इन छ: महीनो म कवल तीन बार गइ और िफर भी मनन को न ल गइ।'

'यह जाता, तो आन का नाम न लता।'

174 www.hindustanbooks.com

'तो कया म इसकी दशमन थी?'

'उन लोगो पर मरा िवशवास नही ह, म कया कर- मरी तो यही समझ नही आता िक तम वहा कस रहती थी?'

'तो कया करती, भाग आती- तब भी तो जमाना मझी को हसता।'

'अनचछा सच बताना, पितदव तमस परम करत ह?'

'वह तो तमह मालम ही ह।'

'म तो ऐस आदमी स एक बार भी न बोलती।'

'म भी कभी नही बोली।'

'सच बहत िबगड होग- अनचछा, सारा वततात कहो। सोहागरात को कया हआ- दखिो, तमह मरी कसम, एक शबद भी झठ न कहना।'

नना माथा िसकोडकर बोली-भाभी, तम मझ िदक करती हो, लकर कसम रखिा दी। जाओ, म कछ नही बताती।

'अनचछा, न बताओ भाई, कोई जबरदसती ह?'

यह कहकर वह उठकर ऊपर चली। नना न उसका हाथ पकडकर कहा-अनब भाभी कहा जाती हो, कसम तो रखिा चकी- बठकर सनती जाओ। आज तक मरी और उनकी एक बार भी बोलचाल नही हई।

सखिदा न चिकत होकर कहा-अनर सच कहो...।

नना न वयिथत हदय स कहा-हा, िबलकल सच ह, भाभी िजस िदन म गई उस िदन रात को वह गल म हार डाल, आख नश स लाल, उनमतता की भाित पहच, जस कोई पयादा अनसामी स महाजन क रपय वसल करन जाय। और मरा घघट हटात हए बोल-म तमहारा घघट दखिन नही आया ह, और न मझ यह ढकोसला पसद ह। आकर इस कसी पर बठो। म उन दिकयानसी मदो म नही ह जो य गिडयो क खल खलत ह। तमह हसकर मरा सवागत करना चािहए था और तम घघट िनकाल बठी हो, मानो तम मरा मह नही दखिना चाहती। उनका हाथ पडत ही मरी दह म जस सपरय न काट िलया। म िसर स पाव तक िसहर उठी। इनह मरी दह को सपशरय करन का कया अनिधकार ह- यह परशन एक जवाला की भाित मर मन म उठा। मरी आखिो स आस िगरन लग, वह सार सोन क सवपन, जो म कई िदनो स दखि रही थी, जस उड गए। इतन िदनो स िजस दवता की उपासना कर रही थी, कया उसका यही रप था इसम न दवतव था, न मनषयतव था। कवल मदाधाता थी, अनिधकार का गवरय था और हदयहीन िनलरयजजता थी। म शरधदा क थाल म अनपनी आतमा का सारा अननराग, सारा आनद, सारा परम सवामी क चरणो पर समिपत करन को बठी हई थी। उनका यह रप दखिकर, जस थाल मर हाथ स छटकर िगर पडा और इसका धप-दीप-नव? जस भिम पर िबखिर गया। मरी चतना का एक-एक रोम, जस इस अनिधकार-गवरय स िवदरोह करन लगा। कहा था वह आतम-समपरयण का भाव, जो मर अनण-अनण म वयापत हो रहा था। मर जी म आया, म भी कह द िक तमहार साथ मर िववाह का यह आशय नही ह िक म तमहारी लौडी ह। तम मर सवामी हो , तो म भी तमहारी सवािमनी ह। परम क शासन क िसवा म कोई दसरा शासन सवीकार नही कर सकती और न चाहती ह िक तम सवीकार करो लिकन जी ऐसा जल रहा था िक म इतना ितरसकार भी न कर सकी। तरत वहा स उठकर

175 www.hindustanbooks.com

बरामद म आ खिडी हई। वह कछ दर कमर म मरी परतीकषा करत रह, िफर झललाकर उठ और मरा हाथ पकडकर कमर म ल जाना चाहा। मन झटक स अनपना हाथ छडा िलया और कठोर सवर म बोली-म यह अनपमान नही सह सकती।

आप बोल-उगरिाह, इस रप पर इतना अनिभमान ।

मरी दह म आग लग गई। कोई जवाब न िदया। ऐस आदमी स बोलना भी मझ अनपमानजनक मालम हआ। मन अनदर आकर िकवाड बद कर िलए, और उस िदन स िफर न बोली। म तो ईशवर स यही मनाती ह िक वह अनपना िववाह कर ल और मझ छोड द। जो सतरी म कवल रप दखिना चाहता ह, जो कवल हाव-भाव और िदखिाव का गलाम ह, िजसक िलए सतरी कवल सवाथरय िसदधि साधन ह, उस म अनपना सवामी नही सवीकार कर सकती।

सखिदा न िवनोद-भाव स पछा-लिकन तमन ही अनपन परम का कौन-सा पिरचय िदया। कया िववाह क नाम म इतनी बरकत ह िक पितदव आत-ही-आत तमहार चरणो पर िसर रखि दत -

नना गभीर होकर बोली-हा, म तो समझती ह, िववाह क नाम म ही बरकत ह। जो िववाह को धमरय का बधन नही समझता ह, इस कवल वासना की तिपत का साधन समझता ह, वह पश ह।

सहसा शािनतकमार पानी म लथपथ आकर खिड हो गए।

सखिदा न पछा-भीग कहा गए, कया छतरी न थी-

शािनतकमार न बरसाती उतारकर अनलगनी पर रखि दी, और बोल-आज बोडरय का जलसा था। लौटत वकत कोई सवारी न िमली।

'कया हआ बोडरय म- हमारा परसताव पश हआ?'

'वही हआ, िजसका भय था।'

'िकतन वोटो स हार।'

'िसफरक पाच वोटो स। इनही पाचो न दगा दी। लाला धानीराम न कोई बात उठा नही रखिी।'

सखिदा न हतोतसाह होकर कहा-तो िफर अनब-

'अनब तो समाचार-पतरो और वयाखयानो स आदोलन करना होगा।'

सखिदा उततोिजत होकर बोली-जी नही, म इतनी सहनशील नही ह। लाला धानीराम और उनक सहयोिगयो को म चन की नीद न सोन दगी। इतन िदनो सबकी खिशामद करक दखि िलया। अनब अनपनी शिकत का परदशरयन करना पडगा। िफर दस-बीस पराणो की आहित दनी पडगी, तब लोगो की आख खिलगी। म इन लोगो का शहर म रहना मिशकल कर दगी।

शािनतकमार लाला धानीराम स जल हए थ। बोल-यह उनही सठ धानीराम क हथकड ह।

सखिदा न दवष भाव स कहा-िकसी राम क हथकड हो, मझ इसकी परवाह नही। जब बोडरय न एक िनशचिय िकया, तो उसकी िजममदारी एक आदमी क िसर नही, सार बोडरय पर ह। म इन महल-िनवािसयो को िदखिा दगी िक जनता क हाथो म भी कछ बल ह। लाला धानीराम जमीन क उन टकडो पर अनपन पाव न जमा सकग।

शािनतकमार न कातर भाव स कहा-मर खियाल म तो इस वकत परोपगडा करना ही काफी ह। अनभी मामला

176 www.hindustanbooks.com

तल हो जाएगा।

टरसट बन जान क बाद स शािनत कमार िकसी जोिखिम क काम म आग कदम उठात हए घबरात थ। अनब उनक ऊपर एक ससथा का भार था और अननय साधाको की भाित वह भी साधाना को ही िस' समझन लग थ। अनब उनह बात-बात म बदनामी और अनपनी ससथा क नषटि हो जान की शका होती थी।

सखिदा न उनह फटकार बताई-आप कया बात कर रह ह, डॉकटर साहब मन इन पढ-िलख सवािथयो को खिब दखि िलया। मझ अनब मालम हो गया िक यह लोग कवल बातो क शर ह। म उनह िदखिा दगी िक िजन गरीबो को तम अनब तक कचलत आए हो, वही अनब साप बनकर तमहार परो स िलपट जाएग। अनब तक यह लोग उनस िरआयत चाहत थ, अनब अनपना हक मागग। िरआयत न करन का उनह अनिखतयार ह, पर हमार हक स हम कौन विचत रखि सकता ह- िरआयत क िलए कोई जान नही दता, पर हक क िलए जान दना सब जानत ह। म भी दखिगी, लाला धानीराम और उनक िपटठ िकतन पानी म ह-

यह कहती हई सखिदा पानी बरसत म कमर स िनकल आई।

एक िमनट क बाद शािनतकमार न नना स पछा-कहा चली गइ- बहत जलद गरम हो जाती ह।

नना न इधर-उधर दखिकर कहार स पछा, तो मालम हआ, सखिदा बाहर चली गई। उसन आकर शािनत कमार स कहा ।

शािनतकमार न िविसमत होकर कहा-इस पानी म कहा गई होगी- म डरता ह, कही हडताल-वडताल न करान लग। तम तो वहा जाकर मझ भल गइ नना, एक पतर भी न िलखिा।

एकाएक उनह ऐसा जान पडा िक उनक मह स एक अननिचत बात िनकल गई ह। उनह नना स यह परशन न पछना चािहए था। इसका वह जान मन म कया आशय समझ। उनह यह मालम हआ, जस कोई उसका गला दबाए हए ह। वह वहा स भाग जान क िलए रासता खिोजन लग। वह अनब यहा एक कषण भी नही बठ सकत। उनक िदल म हलचल होन लगी, कही नना अनपरसनन होकर कछ कह न बठ ऐसी मखिरयता उनहोन कस कर डाली अनब तो उनकी इजजत ईशवर क हाथ ह ।

नना का मखि लाल हो गया। वह कछ जवाब न दकर मनन को पकारती हई कमर स िनकल गई। शािनतकमार मितवत बठ रह। अनत को वह उठकर िसर झकाए इस तरह चल, मानो जत पड गए हो। नना का यह आरकत मखि-मडल एक दीपक की भाित उनक अननत:पट को जस जलाए डालता था।

नना न सहदयता स कहा-कहा चल डॉकटर साहब, पानी तो िनकल जानदीिजए ।

शािनतकमार न कछ बोलना चाहा, पर शबदो की जगह कठ म जस नमक का डला पडा हआ था। वह जलदी स बाहर चल गए, इस तरह लडखिडात हए, मानो अनब िगर तब िगर। आखिो म आसआ का सफर उमडा हआ था।

177 www.hindustanbooks.com

बारहअनब भी मसलाधार वषा हो रही थी। सधया स पहल सधया हो गई थी। और सखिदा ठाकरदवार म बठी हई

ऐसी हडताल का परबध कर रही थी, जो मयिनिसपल बोडरय और उसक कणरय-धारो का िसर हमशा क िलए नीचा कर द, उनह हमशा क िलए सबक िमल जाय िक िजनह व नीच समझत ह, उनही की दया और सवा पर उनक जीवन का आधार ह। सार नगर म एक सनसनी-सी छाई हई ह, मानो िकसी शतर न नगर को घर िलया हो। कही धोिबयो का जमाव हो रहा ह, कही चमारो का, कही महतरो का। नाई-कहारो की पचायत अनलग हो रही ह। सखिदादवी की आजञा कौन टाल सकता था- सार शहर म इतनी जलद सवाद फल गया िक यकीन न आता था। ऐस अनवसरो पर न जान कहा स दौडन वाल िनकल आत ह, जस

हवा म भी हलचल होन लगती ह। महीनो स जनता को आशा हो रही थी िक नए-नए घरो म रहग, साफ-सथर हवादार घरो म, जहा धप होगी, हवा होगी, परकाश होगा। सभी एक नए जीवन का सवपन दखि रह थ। आज नगर क अनिधकािरयो न उनकी सारी आशाए धल म िमला दी।

नगर की जनता अनब उस दशा म न थी िक उस पर िकतना ही अननयाय हो और वह चपचाप सहती जाय। उस अनपन सवतव का जञान हो चका था उनह मालम हो गया था िक उनह भी आराम स रहन का उतना ही अनिधकार ह, िजतना धािनयो को। एक बार सगिठत आगरह की सफलता दखि चक थ। अनिधकािरयो की यह िनरकशता, यह सवाथरयपरता उनह अनसहय हो गई। और यह कोई िसधदात की राजनितक लडाई न थी, िजसका परतयकष सवरप जनता की समझ म मिशकल स आता ह। इस आदोलन का ततकाल फल उनक सामन था। भावना या कलपना पर जोर दन की जररत न थी। शाम होत-होत ठाकरदवार म अनचछा-खिासा बाजार लग गया।

धोिबयो का चौधरी मक अनपनी बकर-की-सी दाढी िहलाता हआ बोला, नश स आख लाल थी-कपड बना रहा था िक खिबर िमली। भागा आ रहा ह। घर म कही कपड रखिन की जगह नही ह। गील कपड कहा सख -

इस पर जगननाथ महरा न डाटा-झठ न बोलो मक, तम कपड बना रह थ अनभी- सीधो ताडीखिान स चल आ रह हो। िकतना समझाया गया पर तमन अनपनी टब न छोडी।

मक न तीख होकर कहा-लो, अनब चप रहो चौधरी, नही अनभी सारी कलई खिोल दगा। घर म बठकर बोतल-क-बोतल उडा जात हो और यहा आकर सखिी बघारत हो।

महतरो का जमादार मतई खिड होकर अनपनी जमादारी की शान िदखिाकर बोला-पचो, यह बखित बदहवाई बात करन का नही ह। िजस काम क िलए दवीजी न बलाया ह, उसको दखिो और फसला करो िक अनब हम कया करना ह- उनही िबलो म पड सडत रह, या चलकर हािकमो स फिरयाद कर।

सखिदा न िवदरोह-भर सवर म कहा-हािकमो स जो कछ कहना-सनना था, कह-सन चक, िकसी न भी कान न िदया। छ: महीन स यही कहा-सनी हो रही ह। लिकन अनब तक उसका कोई फल न िनकला, तो अनब कया िनकलगा- हमन आरज-िमननत स काम िनकालना चाहा था पर मालम हआ, सीधी उगली स घी नही िनकलता। हम िजतना दबग, यह बड आदमी हम उतना ही दबाएग, आज तमह तय करना ह िक तम अनपन हक क िलए लडन को तयार हो या नही।

चमारो का मिखिया समर लाठी टकता हआ, मोट चशम लगाए पोपल मह स बोला-अनरज-माईद करन क िसवा और हम कर ही कया सकत ह- हमारा कया बस ह-

178 www.hindustanbooks.com

मरली खिटीक न बडी-बडी मछो पर हाथ फरकर कहा-बस कस नही ह- हम आदमी नही ह िक हमार बाल-बचच नही ह- िकसी को तो महल और बगला चािहए, हम कचचा घर भी न िमल। मर घर म पाच जन ह उनम स चार आदमी महीन भर स बीमार ह। उस कालकोठरी म बीमार न हो, तो कया हो- सामन स फदा नाला बहता ह। सास लत नाक फटती ह।

ईद कजडा अनपनी झकी हई कमर को सीधी करन की चषटिा करत हए बोला-अनगर मझपर म आराम करना िलखिा होता, तो हम भी िकसी बड आदमी क घर न पदा होत- हािफज हलीम आज बड आदमी हो गए ह, नही मर सामन जत बचत थ। लडाई म बन गए। अनब रईसो क ठाठ ह। सामन चला जाऊ तो पहचानग नही। नही तो पस-धोल की मली-तरई उधार ल जात थ। अनललाह बडा कारसाज ह। अनब तो लडका भी हािकम हो गया ह। कया पछना ह-

जगली घोसी परा काला दव था। शहर का मशहर पहलवान। बोला-म तो पहल ही जानता था, कछ होना-हवाना नही ह। अनमीरो क सामन हम कौन पछता ह-

अनमीर बग पतली, लबी गरदन िनकालकर बोला-बोडरय क फसल की अनपील तो कही होती होगी- हाईकोटरय म अनपील करनी चािहए। हाईकोटरय न सन, तो बादशाह स फिरयाद की जाय।

सखिदा न मसकराकर कहा-बोडरय क फसल की अनपील वही ह, जो इस वकत तमहार सामन हो रही ह। आप ही लोग हाईकोटरय ह, आप ही लोग जज ह। बोडरय अनमीरो का मह दखिता ह। गरीबो क महलल खिोद-खिोदकर फक िदए जात ह, इसिलए िक अनमीरो क महल बन। गरीबो को दस-पाच रपय मआवजा दकर उसी जमीन क हजारो वसल िकए जात ह। उन रपयो स अनफसरो को बडी-बडी तनखवाह दी जाती ह। िजस जमीन पर हमारा दावा था, वह लाला धानीराम को द दी गई। वहा उनक बगल बनग। बोडरय को रपय स पयार ह, तमहारी जान की उनकी िनगाह म कोई कीमत नही। इन सवािथयो स इसाफ की आशा छोड दो। तमहार पास इतनी शिकत ह, उसका उनह खियाल नही ह। व समझत ह, यह गरीब लोग हमारा कर ही कया सकत ह- म कहती ह, तमहार ही हाथो म सब कछ ह। हम लडाई नही करनी ह, फसाद नही करना ह। िसफरक हडताल करना ह, यह िदखिान क िलए िक तमन बोडरय क फसल को मजर नही िकया और यह हडताल एक-दो िदन की नही होगी। यह उस वकत तक रहगी जब तक बोडरय अनपना फसला रपर करक हम जमीन न द द। म जानती ह, ऐसी हडताल करना आसान नही ह। आप लोगो म बहत ऐस ह, िजनक घर म एक िदन का भी भोजन नही ह मगर वह भी जानती ह िक िबना तकलीफ उठाए आराम नही िमलता।

समर की जत की दकान थी। तीन-चार चमार नौकर थ। खिद जत काट िदया करता था। मजर स पजीपित बन गया था। घास वालो और साईसो को सद पर रपय भी उधार िदया करता था। मोटी ऐनको क पीछ स िबजज की भाित ताकता हआ बोला-हडताल होना तो हमारी िबरादरी म मिशकल ह, बहजी यो आपका गलाम ह और जानता ह िक आप जो कछ करगी, हमारी ही भलाई क िलए करगी पर हमारी िबरादरी म हडताल होना मिशकल ह। बचार िदन-भर घास काटत ह, साझ को बचकर आटा-दाल जटात ह, तब कही चलहा जलता ह। कोई सहीस ह, कोई कोचवान, बचारो की नौकरी जाती रहगी। अनब तो सभी जाित वाल सहीसी, कोचवानी करत ह। उनकी नौकरी दसर उठा ल, तो बचार कहा जाएग-

सखिदा िवरोध सहन न कर सकती थी। इन किठनाइयो का उसकी िनगाह म कोई मलय न था। ितनककर बोली-तो कया तमन समझा था िक िबना कछ िकए-धार अनचछ मकान रहन को िमल जाएग- ससार म जो

179 www.hindustanbooks.com

अनिधक स अनिधक कषटि सह सकता ह, उसी की िवजय होती ह।

मतई जमादार न कहा-हडताल स नकसान तो सभी का होगा, कया तम हए, कया हम हए लिकन िबना धए क आग नही जलती। बहजी क सामन हम लोगो न कछ न िकया, तो समझ लो, जनम-भर ठोकर खिानी पडगी। िफर ऐसा कौन ह, जो हम गरीबो का दखि-ददरय समझगा। जो कहो नौकरी चली जाएगी, तो नौकर तो हम सभी ह। कोई सरकार का नौकर ह, कोई रईस का नौकर ह। हमको यहा कौल-कसम भी कर लनी होगी िक जब तक हडताल रह, कोई िकसी की जगह पर न जाय, चाह भखिो मर भल ही जाए।

समर न मतई को िझडक िदया-तम जमादार, बात समझत नही, बीच म कद पडत हो। तमहारी और बात ह, हमारी और बात ह। हमारा काम सभी करत ह, तमहारा काम और कोई नही कर सकता।

मक न समर का समथरयन िकया-यह तमन बहत ठीक कहा, समर चौधरी हमी को दखिो। अनब पढ-िलख आदमी धलाई का काम करन लग ह। जगह-जगह कपनी खिल गई ह। गरा‍हक क यहा पहचन म एक िदन की भी दर हो जाती ह, तो वह कपड कपनी भज दता ह। हमार हाथ स गरा‍हक िनकल जाता ह। हडताल दस-पाच िदन चली, तो हमारा रोजगार िमटटी म िमल जाएगा। अनभी पट की रोिटया तो िमल जाती ह। तब तो रोिटयो क लाल पड जाएग।

मरली खिटीक न ललकारकर कहा-जब कछ करन का बता नही तो लडन िकस िबरत पर चल थ- कया समझत थ, रो दन स दध िमल जाएगा- वह जमाना अनब नही ह। अनगर अनपना और बाल-बचचो का सखि दखिना चाहत हो, तो सब तरह की आफत-बला िसर पर लनी पडगी। नही जाकर घर म आराम स बठो और मिकखियो की तरह मरो।

ईद न धािमक गभीरता स कहा-होगा, वही जो मझ पर म ह। हाय-हाय करन स कछ होन को नही। हािफज हलीम तकदीर ही स बड आदमी हो गए। अनललाह की रजा होगी, तो मकान बनत दर न लगगी।

जगली न इसका समथरयन िकया-बस, तमन लाखि रपय की बात कह दी, ईद िमया हमारा दध का सौदा ठहरा। एक िदन दध न पहच या दर हो जाय, तो लोग घडिकया जमान लगत ह-हम डरी स दध लग, तम बहत दर करत हो। हडताल दस-पाच िदन चल गई, तो हमारा तो िदवाला िनकल जाएगा। दध तो ऐसी चीज नही िक आज न िबक, कल िबक जाय।

ईद बोला-वही हाल तो साफ-पात का भी ह भाई, िफर बरसात क िदन ह, सब की चीज शाम को सड जाती ह, और कोई सत म भी नही पछता।

अनमीरबग न अनपनी सारस की-सी गदरयन उठाई-बहजी, म तो कोई कायदा-कानन नही जानता मगर इतना जानता ह, िक बादशाह रयत क साथ इसाफ जरर करत ह। रातो को भस बदलकर रयत का हाल-चाल जानन क िलए िनकलत ह, अनगर ऐसी अनरजी तयार की जाय िजस पर हम सबक दसखित हो और बादशाह क सामन पश की जाय, तो उस पर जरर िलहाज िकया जाएगा।

सखिदा न जगननाथ की ओर आशा-भरी आखिो स दखिकर कहा-तम कया कहत हो जगननाथ, इन लोगो न तो जवाब द िदया-

जगननाथ न बगल झाकत हए कहा-तो बहजी, अनकला चना तो भाड नही फोड सकता। अनगर सब भाई साथ द तो म तयार ह। हमारी िबरादरी का आधार नौकरी ह। कछ लोग खिोच लगात ह, कोई डोली ढोता ह पर

180 www.hindustanbooks.com

बहत करक लोग बड आदिमयो की सवा-टहल करत ह। दो-चार िदन बड घरो की औरत भी घर का काम-काज कर लगी। हम लोगो का तो सतयानाश ही हो जाएगा।

सखिदा न उसकी ओर स मह फर िलया और मतई स बोली-तम कया कहत हो, कया तमन भी िहममत छोड दी-

मतई न छाती ठोकर कहा-बात कहकर िनकल जाना पािजयो का काम ह, सरकार आपका जो हकम होगा, उसस बाहर नही जा सकता। चाह जान रह या जाए। िबरादरी पर भगवान की दया स इतनी धााक ह िक जो बात म कहगा, उस कोई दलक नही सकता।

सखिदा न िनशचिय-भाव स कहा-अनचछी बात ह, कल स तम अनपनी िबरादरी की हडताल करवा दो। और चौधरी लोग जाए। म खिद घर-घर घमगी, दवार-दवार जाऊगी, एक-एक क पर पडगी और हडताल कराक छोडगी और हडताल न हई, तो मह म कािलखि लगाकर डब मरगी। मझ तम लोगो स बडी आशा थी, तमहारा बडा जोर था, अनिभमान था। तमन मरा अनिभमान तोड िदया।

यह कहती हई वह ठाकरदवार स िनकलकर पानी म भीगती हई चली गई। मतई भी उसक पीछ-पीछ चला गया। और चौधरी लोग अनपनी अनपराधी सरत िलए बठ रह।

एक कषण क बाद जगननाथ बोला-बहजी न शर कलजा पाया ह।

समर न पोपला मह चबलाकर कहा-लकषमी की औतार ह। लिकन भाई, रोजगार तो नही छोडा जाता। हािकमो की कौन चलाए, दस िदन, पदरह िदन न सन तो यहा तो मर िमटग।

ईद को दर की सझी-मर नही िमटग पचो, चौधिरयो को जहल म ठस िदया जाएगा। हो िकस फर म- हािकमो स लडना ठटठा नही।

जगली न हामी भरी-हम कया खिाकर रईसो स लडग- बहजी क पास धन ह, इलम ह, वह अनफसरो स दो-दो बात कर सकती ह। हर तरह का नकसान सह सकती ह। हमार तो बिधया बठ जाएगी।

िकत सभी मन म लिजजत थ, जस मदान स भागा िसपाही। उस अनपन पराणो क बचान का िजतना आनद होता ह, उसस कही जयादा भागन की लजजा होती ह। वह अनपनी नीित का समथरयन मह स चाह कर ल, हदय स नही कर सकता।

जरा दर म पानी रक गया और यह लोग भी यहा स चल लिकन उनक उदास चहरो म, उनकी मद चाल म, उनक झक हए िसरो म, उनक िचतामय मौन म, उनक मन क भाव साफ झलक रह थ।

सखिदा घर पहची, तो बहत उदास थी। सावरयजिनक जीवन म हार उस यह पहला अननभव था और उसका मन िकसी चाबक खिाए हए अनलहड बछड की तरह सारा साज और बम और बधन तोड-ताडकर भाग जान क िलए वयगर हो रहा था। ऐस कायरो स कया आशा की जा सकती ह जो लोग सथायी लाभ क िलए थोड-स कषटि नही उठा सकत, उनक िलए ससार म अनपमान और द:खि क िसवा और कया ह-

नना मन म इस हार पर खिश थी। अनपन घर म उसकी कछ पछ न थी, उस अनब तक अनपमान-ही-अनपमान िमला था, िफर भी उसका भिवषय उसी घर स सब' हो गया था। अनपनी आख दखिती ह, तो फोड नही दी जाती। सठ धानीराम न जमीन हजारो म खिरीदी थी, थोड ही िदनो म उनक लाखिो म िबकन की आशा थी। वह सखिदा

181 www.hindustanbooks.com

स कछ कह तो न सकती थी पर यह आदोलन उस बरा मालम होता था। सखिदा क परित अनब उसको वह भिकत न रही थी। अनपनी दवष-तषणा शात करन ही क िलए तो वह आग लगा रही ह इन तचछ भावनाआ स दबकर सखिदा उसकी आखिो म कछ सकिचत हो गई थी।

नना न आलोचक बनकर कहा-अनगर यहा क आदिमयो को सगिठत कर लना इतना आसान होता, तो आज यह ददरयशा ही कयो होती-

सखिदा आवश म बोली-हडताल तो होगी, चाह चौधरी लोग मान या न मान। चौधरी मोट हो गए ह और मोट आदमी सवाथी हो जात ह।

नना न आपितत की-डरना मनषय क िलए सवाभािवक ह। िजसम परषाथरय ह, जञान ह, बल ह, वह बाधाआ को तचछ समझ सकता ह। िजसक पास वयजनो स भरा हआ थाल ह, वह एक टकडा कततो क सामन फक सकता ह, िजसक पास एक ही टकडा हो वह उसी स िचमटगा ।

सखिदा न मानो इस कथन को सना ही नही-मिदर वाल झगड म न जान सभी म कस साहस आ गया था। म एक बार वही काड िदखिा दना चाहती ह।

नना न कापकर कहा-नही भाभी, इतना बडा भार िसर पर मत लो। समय आ जान पर सब-कछ आप ही हो जाता ह। दखिो, हम लोगो क दखित-दखित बाल-िववाह, छत-छात का िरवाज कम हो गया। िशकषा का परचार िकतना बढ गया। समय आ जान पर गरीबो क घर भी बन जाएग।

'यह तो कायरो की नीित ह। परषाथरय वह ह, जो समय को अनपन अननकल बनाए।'

'इसक िलए परचार करना चािहए।'

'छ: महीन वाली राह ह।'

'लिकन जोिखिम तो नही ह।'

'जनता को मझ पर िवशवास नही ह ।'

एक कषण बाद उसन िफर कहा-अनभी मन ऐसी कौन-सी सवा की ह िक लोगो को मझ पर िवशवास हो। दो-चार घट गिलयो म चककर लगा लना कोई सवा नही ह।

'म तो समझती ह, इस समय हडताल करान स जनता की थोडी बहत सहानभित जो ह, वह भी गायब हो जाएगी।'

सखिदा न अनपनी जाघ पर हाथ पटककर कहा-सहानभित स काम चलता, तो िफर रोना िकस बात का था- लोग सवचछा स नीित पर चलत, तो कानन कयो बनान पडत- म इस घर म रहकर और अनमीर का ठाट रखिकर जनता क िदलो पर काब नही पा सकती। मझ तयाग करना पडगा। इतन िदनो स सोचती ही रह गई।

दसर िदन शहर म अनचछी-खिासी हडताल थी। महतर तो एक भी काम करता न नजर आता था। कहारो और इकक-गाडी वालो न भी काम बद कर िदया था। साफ-भाजी की दकान भी आधी स जयादा बद थी। िकतन ही घरो म दध क िलए हाय-हाय मची हई थी। पिलस दकान खिलवा रही थी और महतरो को काम पर लान की चषटिा कर रही थी। उधर िजल क अनिधकारी मडल म इस समसया को हल करन का िवचार हो रहा था। शहर क

182 www.hindustanbooks.com

रईस और अनमीर भी उसम शािमल थ।

दोपहर का समय था। घटा उमडी चली आती थी, जस आकाश पर पीला लप िकया जा रहा हो। सडको और गिलयो म जगह-जगह पानी जमा था। उसी कीचड म जनता इधर-उधर दौडती िफरती थी। सखिदा क दवार पर एक भीड लगी हई थी िक सहसा शािनतकमार घटन तक कीचड लपट आकर बरामद म खिड हो गए। कल की बातो क बाद आज वहा आत उनह सकोच हो रहा था। नना न उनह दखिा पर अनदर न बलाया सखिदा अनपनी माता स बात कर रही थी। शािनतकमार एक कषण खिड रह, िफर हताश होकर चलन को तयार हए।

सखिदा न उनकी रोनी सरत दखिी, िफर भी उन पर वयगय-परहार करन स न चकी- िकसी न आपको यहा आत दखि तो नही िलया, डॉकटर साहब-

शािनतकमार न इस वयगय की चोट को िवनोद स रोका-खिब दखि-भालकर आया ह। कोई यहा दखि भी लगा, तो कह दगा, रपय उधार लन आया ह।

रणका न डॉकटर साहब स दवर का नाता जोड िलया था। आज सखिदा न कल का वततात सनाकर उस डॉकटर साहब को आड हाथो लन की सामगरी द दी थी, हालािक अनदशय रप स डॉकटर साहब क नीित-भद का कारण वह खिद थी। उनही न टरसट का भार उनक िसर पर रखिकर उनह सिचत कर िदया था।

उसन डॉकटर का हाथ पकडकर कसी पर बठात हए कहा-तो चिडया पहनकर बठो ना, यह मछ कयो बढा ली ह-

शािनतकमार न हसत हए कहा-म तयार ह, लिकन मझस शादी करन क िलए तयार रिहएगा। आपको मदरय बनना पडगा।

रणका ताली बजाकर बोली-म तो बढी हई लिकन तमहारा खिसम ऐसा ढढगी जो तमह सात परदो क अनदर रख और गािलयो स बात कर। गहन म बनवा दगी। िसर म िसदर डालकर घघट िनकाल रहना। पहल खिसम खिा लगा, तो उसका जठन िमलगा, समझ गए, और उस दवता का परसाद समझ कर खिाना पडगा। जरा भी नाक-भौ िसकोडी, तो कलचछनी कहलाओग। उसक पाव दबान पडग, उसकी धोती छाटनी पडगी। वह बाहर स आएगा तो उसक पाव धोन पडग, और बचच भी जनन पडग। बचच न हए, तो वह दसरा बयाह कर लगा िफर घर म लौडी बनकर रहना पडगा।

शािनतकमार पर लगातार इतनी चोट पडी िक हसी भल गई। मह जरा-सा िनकल आया। मदरयनी ऐसी छा गई जस मह बध गया। जबड फलान स भी न फलत थ। रणका न उनकी दो-चार बार पहल भी हसी की थी पर आज तो उनह रलाकर छोडा। पिरहास म औरत अनजय होती ह, खिासकर जब वह बढी हो।

उनहोन घडी दखिकर कहा-एक बज रहा ह। आज तो हडताल अनचछी तरह रही।

रणका न िफर चटकी ली-आप तो घर म लट थ, आपको कया खिबर-

शािनतकमार न अनपनी कारगजारी जताई-उन आराम स लटन वालो म म नही ह। हरक आदोलन म ऐस आदिमयो की भी जररत होती ह, जो गपत रप स उसकी मदद करत रह। मन अनपनी नीित बदल दी ह और मझ अननभव हो रहा ह िक इस तरह कछ कम सवा नही कर सकता। आज नौजवान-सभा क दस-बारह यवको को तनात कर आया ह, नही इसकी चौथाई हडताल भी न होती।

183 www.hindustanbooks.com

रणका न बटी की पीठ पर एक थपकी दकर कहा-जब त इनह कयो बदनाम कर रही थी- बचार न इतनी जान खिपाई, िफर भी बदनाम हए। मरी समझ म भी यह नीित आ रही ह। सबका आग म कदना अनचछा नही।

शािनतकमार कल क कायरयकरम का िनशचिय करक और सखिदा को अनपनी ओर स आशवसत करक चल गए।

सधया हो गई थी। बादल खिल गए थ और चाद की सनहरी जोत पथवी क आसआ स भीग हए मखि पर मात-सनह की वषा कर रही थी। सखिदा सधया करन बठी हई थी। उस गहर आतम-िचतन म उसक मन की दबरयलता िकसी हठील बालक की भाित रोती हई मालम हई। मनीराम न उसका वह अनपमान न िकया होता , तो वह हडताल क िलए कया इतना जोर लगाती-

उसक अनिभमान न कहा-हा-हा, जरर लगाती। यह िवचार बहत पहल उसक मन म आया था। धानीराम को हािन होती ह, तो हो, इस भय स वहर कतरयवय का तयाग कयो कर- जब वह अनपना सवरयसव इस उदयोग क िलए होम करन को तली हई ह, तो दसरो क हािन-लाभ की कया िचता हो सकती ह-

इस तरह मन को समझाकर उसन सधया समापत की और नीच उतरी ही थी िक लाला समरकानत आकर खिड। हो गए। उनक मखि पर िवषाद की रखिा झलक रही थी और होठ इस तरह गडक रह थ, मानो मन का आवश बाहर िनकलन क िलए िवकल हो रहा हो।

सखिदा न पछा-आप कछ घबराए हए ह दादाजी, कया बात ह-

समरकानत की सारी दह काप उठी। आसआ क वग को बलपवरयक रोकन की चषटिा करक बोल-एक पिलस कमरयचारी अनभी दकान पर ऐसी सचना द गया ह िक कया कह।

यह कहत-कहत उनका कठ-सवर जस गहर जल म डबिकया खिान लगा।

सखिदा न आशिकत होकर पछा-तो किहए न, कया कह गया ह- हिरदवार म तो सब कशल ह-

समरकानत न उसकी आशकाआ को दसरी ओर बहकत दखि जलदी स कहा-नही-नही, उधर की कोई बात नही ह। तमहार िवषय म था। तमहारी िगरफतारी का वारट िनकल गया ह।

सखिदा न हसकर कहा-अनचछा मरी िगरफतारी का वारट ह तो उसक िलए आप इतना कयो घबरा रह ह- मगर आिखिर मरा अनपराध कया ह-

समरकानत न मन को सभालकर कहा-यही हडताल ह। आज अनफसरो म सलाह हई ह। और वहा यही िनशचिय हआ िक तमह और चौधिरयो को पकड िलया जाय। इनक पास दमन ही एक दवा ह। अनसतोष क कारणो को दर न करग, बस, पकड-धकड स काम लग, जस कोई माता भखि स रोत बालक को पीटकर चप कराना चाह।

सखिदा शात भाव स बोली-िजस समाज का आधार ही अननयाय पर हो, उसकी सरकार क पास दमन क िसवा और कया दवा हो सकती ह- लिकन इसस कोई यह न समझ िक यह आदोलन दब जाएगा, उसी तरह, जस कोई गद टककर खिाकर और जोर स उछलती ह, िजतन ही जोर की टककर होगी, उतन ही जोर की परितिकरया भी होगी।

एक कषण क बाद उसन उततोिजत होकर कहा-मझ िगरफतार कर ल। उन लाखिो गरीबो को कहा ल जाएग, िजनकी आह आसमान तक पहच रही ह। यही आह एक िदन िकसी जवालामखिी की भाित फटकर सार समाज और समाज क साथ सरकार को भी िवधवस कर दगी अनगर िकसी की आख नही खिलती, तो न खिल। मन अनपना

184 www.hindustanbooks.com

कतरयवय परा कर िदया। एक िदन आएगा, जब आज क दवता कल ककर-पतथर की तरह उठा-उठाकर गिलयो म फक िदए जाएग और परो स ठकराए जाएग। मर िगरफतार हो जान स चाह कछ िदनो क िलए

अनिधकािरयो क कानो म हाहाकार की आवाज न पहच लिकन वह िदन दर नही ह, जब यही आस िचगारी बनकर अननयाय को भसम कर दग। इसी राखि स वह अनिगन परजविलत होगी, िजसकी आदोलन शाखिाए आकाश तक को िहला दगी।

समरकानत पर इस परलाप का कोई अनसर न हआ। वह इस सकट को टालन का उपाय सोच रह थ। डरत-डरत बोल-एक बात कह, बरा न मानो। जमानत...।

सखिदा न तयोिरया बदलकर कहा-नही, कदािप नही। म कयो जमानत द- कया इसिलए िक अनब म कभी जबान न खिोलगी, अनपनी आखिो पर पटटी बध लगी, अनपन मह पर जाली लगा लगी- इसस तो यह कही अनचछा ह िक अनपनी आख फोड ल, जबान कटवा द।

समरकानत की सिहषणता अनब सीमा तक पहच चकी थी गरजकर बोल-अनगर तमहारी जबान काब म नही ह, तो कटवा लो। म अनपन जीत-जी यह नही दखि सकता िक मरी बह िगरफतार की जाए और म बठा दखि। तमन हडताल करन क िलए मझस पछ कयो न िलया- तमह अनपन नाम की लाज न हो, मझ तो ह। मन िजस मयादा-रकषा क िलए अनपन बट को तयाग िदया, उस मयादा को म तमहार हाथो न िमटन दगा।

बाहर स मोटर का हानरय सनाई िदया। सखिदा क कान खिड हो गए। वह आवश म दवार की ओर चली। िफर दौडकर मनन को नना की गोद स लकर उस हदय स लगाए हए अनपन कमर म जाकर अनपन आभषण उतारन लगी। समरकानत का सारा करोध कचच रग की भाित पानी पडत ही उड गया। लपककर बाहर गए और आकर घबराए हए बोल-बह, िडपटी आ गया। म जमानत दन जा रहा ह। मरी इतनी याचना सवीकार करो। थोड िदनो का महमान ह। मझ मर जान दो िफर जो कछ जी म आए करना।

सखिदा कमर क दवार पर आकर दढता स बोली-म जमानत न दगी, न इस मआमल की परवी करगी। मन कोई अनपराध नही िकया ह।

समरकानत न जीवन भर म कभी हार न मानी थी पर आज वह इस अनिभमािननी रमणी क सामन परासत खिड थ। उसक शबदो न जस उनक मह पर जाली लगा दी। उनहोन सोचा-िसतरयो को ससार अनबला कहता ह। िकतनी बडी मखिरयता ह। मनषय िजस वसत को पराणो स भी िपरय समझता ह, वह सतरी की मटठी म ह।

उनहोन िवनय क साथ कहा-लिकन अनभी तमन भोजन भी तो नही िकया। खिडी मह कया ताकती ह नना, कया भग खिा गई ह जा, बह को खिाना िखिला द। अनर ओ महराज। महरा। यह ससरा न जान कहा मर रहा- समय पर एक भी आदमी नजर नही आता। त बह को ल जा रसोई म नना, म कछ िमठाई लता आऊ। साथ-साथ कछ खिान को तो ल जाना ही पडगा।

कहार ऊपर िबछावन लगा रहा था। दौडा हआ आकर खिडा हो गया। समरकानत न उस जोर स एक धौल मारकर कहा-कहा था त- इतनी दर स पकार रहा ह, सनता नही िकसक िलए िबछावन लगा रहा ह, ससर बह जा रही ह। जा दौडकर बाजार स िमठाई ला। चौक वाली दकान स लाना।

सखिदा आगरह क साथ बोली-िमठाई की मझ िबलकल जररत नही ह और न कछ खिान की ही इचछा ह। कछ कपड िलए जाती ह, वही मर िलए काफी ह।

185 www.hindustanbooks.com

बाहर स आवाज आई-सठजी, दवीजी को जलदी भिजए, दर हो रही ह।

समरकानत बाहर आए और अनपराधी की भाित खिड गए।

िडपटी दहर बदन का, रोबदार, पर हसमखि आदमी था, जो और िकसी िवभाग म अनचछी जगह न पान क कारण पिलस म चला आया था। अननावशयक अनिशषटिता स उस घणा थी और यथासाधय िरशवत न लता था। पछा-किहए कया राय हई-

समरकानत न हाथ बधकर कहा-कछ नही सनती हजर, समझाकर हार गया। और म उस कया समझाऊ- मझ वह समझती ही कया ह- अनब तो आप लोगो की दया का भरोसा ह। मझस जो िखिदमत किहए, उसक िलए हािजर ह। जलर साहब स तो आपका रबत-जबत होगा ही, उनह भी समझा दीिजएगा। कोई तकलीफ न होन पाव। म िकसी तरह भी बाहर नही ह। नाजक िमजाज औरत ह, हजर ।

िडपटी न सठजी को बराबर की कसी पर बठाकर कहा-सठजी, यह बात उन मआमलो म चलती ह जहा कोई काम बरी नीयत स िकया जाता ह। दवीजी अनपन िलए कछ नही कर रही ह। उनका इरादा नक ह वह हमार गरीब भाइयो क हक क िलए लड रही ह। उनह िकसी तरह की तकलीफ न होगी। नौकरी स मजबर ह वरना यह दिवया तो इस लायक ह िक इनक कदमो पर िसर रख। खिदा न सारी दिनया की नमत द रखिी ह मगर उन सब पर लात मार दी और हक क िलए सब कछ झलन को तयार ह। इसक िलए गदा चािहए साहब, मामली बात नही ह।

सठजी न सदक स दस अनशिफया िनकाली और चपक स िडपटी की जब म डालत हए बोल-यह बचचो क िमठाई खिान क िलए ह।

िडपटी न अनशिफया जब स िनकालकर मज पर रखि दी और बोला-आप पिलस वालो को िबलकल जानवर ही समझत ह कया, सठजी- कया लाल पगडी िसर पर रखिना ही इसािनयत का खिन करना ह- म आपको यकीन िदलाता ह िक दवीजी को तकलीफ न होन पाएगी। तकलीफ उनह दी जाती ह जो दसरो को तकलीफ दत ह। जो गरीबो क हक क िलए अनपनी िजदगी करबान कर द, उस अनगर कोई सताए, तो वह इसान नही, हवान भी नही, शतान ह। हमार सीग म ऐस आदमी ह और कसरत स ह। म खिद फिरशता नही ह लिकन ऐस मआमल म म पान तक खिाना हराम समझता ह। मिदर वाल मआमल म दवीजी िजस िदलरी स मदान म आकर गोिलयो क सामन खिडी हो गई थी, वह उनही का काम था।

सामन सडक पर जनता का समह परितकषण बढता जाता था। बार-बार जय-जयकार की धविन उठ रही थी। सतरी और परष दवीजी क दशरयन को भाग चल आत थ।

भीतर नना और सखिदा म समर िछडा हआ था।

सखिदा न थाली सामन स हटाकर कहा-मन कह िदया, म कछ न खिाऊगी।

नना न उसका हाथ पकडकर कहा-दो-चार कौर ही खिा लो भाभी, तमहार परो पडती ह। िफर न जान यह िदन कब आए-

उसकी आख सजल हो गइ।

सखिदा िनषठरता स बोली-तम मझ वयथरय म िदक कर रही हो बीबी, मझ अनभी बहत- सी तयािरया करनी ह

186 www.hindustanbooks.com

और उधर िडपटी जलदी मचा रहा ह। दखिती नही हो, दवार पर डोली खिडी ह। इस वकत खिान की िकस सझती ह-

नना परम-िवहनल कठ स बोली-तम अनपना काम करती रहो, म तमह कौर बनाकर िखिलाती जाऊगी।

जस माता खलत बचच क पीछ दौड-दौडकर उस िखिलाती ह, उसी तरह नना भाभी को िखिलान लगी। सखिदा कभी इस अनलमारी क पास जाती, कभी उस सदक क पास। िकसी सदक स िसदर की िडिबया िनकालती, िकसी स सािडया। नना एक कौर िखिलाकर िफर थाल क पास जाती और दसरा कौर लकर दौडती।

सखिदा न पाच-छ: कौर खिाकर कहा-बस, अनब पानी िपला दो।

नना न उसक मह क पास कौर ल जाकर कहा-बस यही कौर ल लो, मरी अनचछी भाभी।

सखिदा न मह खिोल िदया और गरास क साथ आस भी पी गई।

'बस एक और।'

'अनब एक कौर भी नही।'

'मरी खिाितर स।'

सखिदा न गरास ल िलया।

'पानी भी दोगी या िखिलाती ही जाओगी।'

'बस, एक गरास भया क नाम का और ल लो।'

'ना। िकसी तरह नही।'

नना की आखिो म आस थ परतयकष, सखिदा की आखिो म भी आस थ मगर िछप हए। नना शोक स िवहनल थी, सखिदा उस मनोबल स दबाए हए थी। वह एक बार िनषठर बनकर चलत-चलत नना क मोह-बधन को तोड दना चाहती थी, पन शबदो स हदय क चारो ओर खिाई खिोद दना चाहती थी, मोह और शोक और िवयोग-वयथा क आकरमणो स उसकी रकषा करन क िलए पर नना की छलछलाती हई आख, वह कापत हए होठ, वह िवनय-दीन मखिशरी उस िन:शसतर िकए दती थी।

नना न जलदी-जलदी पान क बीड लगाए और भाभी को िखिलान लगी, तो उसक दब हए आस गववार की तरह उबल पड। मह ढापकर रोन लगी। िससिकया और गहरी होकर कठ तक जा पहची।

सखिदा न उस गल स लगाकर सजल शबदो म कहा-कयो रोती हो बीबी, बीच-बीच म मलाकात तो होती ही रहगी। जल म मझस िमलन आना, तो खिब अनचछी-अनचछी चीज बनाकर लाना। दो-चार महीन म तो म िफर आ जाऊगी।

नना न जस डबती हई नाव पर स कहा-म ऐसी अनभािगन ह िक आप तो डबी ही थी, तमह भी ल डबी।

य शबद फोड। की तरह उसी समय स उसक हदय म टीस रह थ, जब स उसन सखिदा की िगरफतारी की खिबर सनी थी, और यह टीस उसकी मोह-वदना को और भी ददाऊत बना रही थी।

सखिदा न आशचियरय स उसक मह की ओर दखिकर कहा-यह तम कया कह रही हो बीबी, कया तमन पिलस बलाई ह-

187 www.hindustanbooks.com

नना न गलािन स भर कठ स कहा-यह पतथर की हवली वालो का कचकर ह (सठ धानीराम शहर म इसी नाम स परिस' थधद म िकसी को गािलया नही दती पर उनका िकया उनक आग आएगा। िजस आदमी क िलए एक मह स भी आशीवाद न िनकलता हो, उसका जीना वथा ह।

सखिदा न उदास होकर कहा-उनका इसम कया दोष ह, बीबी- यह सब हमार समाज का, हम सबो का दोष ह। अनचछा आओ, अनब िवदा हो जाए। वादा करो, मर जान पर रोओगी नही।

नना न उसक गल स िलपटकर सजी हई आखिो स मसकराकर कहा-नही रोऊगी, भाभी।

'अनगर मन सना िक तम रो रही हो, तो म अनपनी सजा बढवा लगी।'

'भया को यह समाचार दना ही होगा।'

'तमहारी जसी इचछा हो करना। अनममा को समझाती रहना।'

'उनक पास कोई आदमी भजा गया या नही?'

'उनह बलान स और दर ही तो होती। घटो न छोडती।'

'सनकर दौडी आएगी।'

'हा, आएगी तो पर रोएगी नही। उनका परम आखिो म ह। हदय तक उसकी जड नही पहचती।'

दोनो दवार की ओर चली। नना न मनन को मा की गोद स उतारकर पयार करना चाहा पर वह न उतरा। नना स बहत िहला था पर आज वह अनबोध आखिो स दखि रहा था-माता कही जा रही ह। उसकी गोद स कस उतर- उस छोडकर वह चली जाए, तो बचारा कया कर लगा-

नना न उसका चबन लकर कहा-बालक बड िनरदरययी होत ह।

सखिदा न मसकराकर कहा-लडका िकसका ह ।

दवार पर पहचकर िफर दोनो गल िमली। समरकानत भी डयोढी पर खिड थ। सखिदा न उसक चरणो पर िसर झकाया। उनहोन कापत हए हाथो स उस उठाकर आशीवाद िदया। िफर मनन को कलज स लगाकर ठठक-ठठटकर रोन लग। यह सार घर को रोन का िसगनल था। आस तो पहल ही स िनकल रह थ। वह मक रदन अनब जस बधनो स मकत हो गया। शीतल, धीर, गभीर बढापा जब िवहनल हो जाता ह, तो मानो िपजर क दवार खिल जात ह और पिकषयो को रोकना अनसभव हो जाता ह। जब सततर वषरय तक ससार क समर म जमा रहन वाला नायक हिथयार डाल द, तो रगईटो को कौन रोक सकता ह-

सखिदा मोटर म बठी। जय-जयकार की धविन हई। फलो की वषा की गई।

मोटर चल दी।

हजारो आदमी मोटर क पीछ दौड रह थ और सखिदा हाथ उठाकर उनह परणाम करती जाती थी। यह शरधदा , यह परम, यह सममान कया धन स िमल सकता ह- या िवदया स- इसका कवल एक ही साधन ह, और वह सवा ह, और सखिदा को अनभी इस कषतर म आए हए ही िकतन िदन हए थ-

सडक क दोनो ओर नर-नािरयो की दीवार खिडी थी और मोटर मानो उनक हदय को कचलती-मसलती चली जा रही थी।

188 www.hindustanbooks.com

सखिदा क हदय म गवरय न था, उललास न था, दवष न था, कवल वदना थी। जनता की इस दयनीय दशा पर, इस अनधोगित पर, जो डबती हई दशा म ितनक का सहारा पाकर भी कतताथरय हो जाती ह।

कछ दर क बाद सडक पर सननाटा था, सावन की िनदरा-सी काली रात ससार को अनपन अनचल म सला रही थी और मोटर अननत म सवपन की भाित उडी चली जाती थी। कवल दह म ठडी हवा लगन स गित का जञान होता था। इस अनधकार म सखिदा क अनतसतल म एक परकाश-सा उदय हआ था। कछ वसा ही परकाश, जो हमार जीवन की अनितम घिडयो म उदय होता ह, िजसम मन की सारी कािलमाए, सारी गरिथया, सारी िवषमताए अनपन यथाथरय रप म नजर आन लगती ह। तब हम मालम होता ह िक िजस हमन अनधकार म काला दव समझा था, वह कवल तण का ढर था। िजस काला नाग समझा था, वह रससी का एक टकडा था। आज उस अनपनी पराजय का जञान हआ, अननयाय क सामन नही अनसतय क सामन नही, बिलक तयाग क सामन और सवा क सामन। इसी सवा और तयाग क पीछ तो उसका पित स मतभद हआ था, जो अनत म इस िवयोग का कारण हआ। उन िसधदातो स अनभिकत रखित हए भी वह उनकी ओर िखिचती चली आती थी और आज वह अनपन पित की अननगािमनी थी। उस अनमर क उस पतर की याद आई, जो उसन शािनतकमार क पास भजा था और पहली बार पित क परित कषमा का भाव उसक मन म परसफिटत हआ। इस कषमा म दया नही, सहानभित थी, सहयोिगता थी। अनब दोनो एक ही मागरय क पिथक ह, एक ही आदशरय क उपासक ह। उनम कोई भद नही ह, कोई वषमय नही ह। आज पहली बार उसका अनपन पित स आितमक सामजसय हआ। िजस दवता को अनमगलकारी समझ रखिा था, उसी की आज धप-दीप स पजा कर रही थी।

सहसा मोटर रकी और िडपटी न उतरकर कहा-दवीजी, जल आ गया। मझ कषमा कीिजएगा।

189 www.hindustanbooks.com

चौथा भागअनमरकानत को जयोही मालम हआ िक सलीम यहा का अनफसर होकर आया ह, वह उसस िमलन चला।

समझा, खिब गप-शप होगी। यह खियाल तो आया, कही उसम अनफसरी की ब न आ गई हो लिकन परान दोसत स िमलन की उतकठा को न रोक सका। बीस-पचचीस मील का पहाडी रासता था। ठड खिब पडन लगी थी। आकाश कहर की धध स मिटयाला हो रहा था और उस धध म सयरय जस टटोल-टटोलकर रासता ढढता हआ चला जाता था। कभी सामन आ जाता, कभी िछप जाता। अनमर दोपहर क बाद चला था। उस आशा थी िक िदन रहत पहच जाऊगा िकत िदन ढलता जाता था और मालम नही अनभी और िकतना रासता बाकी ह। उसक पास कवल एक दशी कबल था। कही रात हो गई, तो िकसी वकष क नीच िटकना पड जाएगा। दखित-ही-दखित सयरयदव अनसत भी हो गए। अनधरा जस मह खिोल ससार को िनगलन चला आ रहा था। अनमर न कदम और तज िकए। शहर म दािखिल हआ, तो आठ बज गए थ।

सलीम उसी वकत कलब स लौटा था। खिबर पात ही बाहर िनकल आया, मगर उसकी सज-धज दखिी, तो िझझका और गल िमलन क बदल हाथ बढा िदया। अनदरयली सामन ही खिडा था। उसक सामन इस दहाती स िकसी परकार की घिनषठता का पिरचय दना बड साहस का काम था। उस अनपन सज हए कमर म भी न ल जा सका। अनहात म छोटा-सा बाग था। एक वकष क नीच उस ल जाकर उसन कहा-यह तमन कया धज बना रखिी ह जी, इतन होिशयार कब स हो गए- वाह र आपका करता मालम होता ह डाक का थला ह, और यह डाबलश जता िकस िदसावर स मगवाया ह- मझ डर ह, कही बगार म न धार िलए जाओ ।

अनमर वही जमीन पर बठ गया और बोला-कछ खिाितर-तवाजो तो की नही, उलट और फटकार सनान लग। दहाितयो म रहता ह, जटलमन बन तो कस िनबाह हो- तम खिब आए भाई, कभी-कभी गप-शप हआ करगी। उधर की खिर-किफयत कहो। यह तमन नौकरी कया कर ली- डटकर कोई रोजगार करत, सझी भी तो गलामी।

सलीम न गवरय स कहा-गलामी नही ह जनाब, हकमत ह। दस-पाच िदन म मोटर आई जाती ह, िफर दखिना िकस शान स िनकलता ह मगर तमहारी यह हालत दखिकर िदल टट गया। तमह यह भष छोडना पडगा।

अनमरकानत क आतम-सममान को चोट लगी। बोला-मरा खियाल था, और ह िक कपड महज िजसम की िहफाजत क िलए ह, शान िदखिान क िलए नही।

सलीम न सोचा, िकतनी लचर-सी बात ह। दहाितयो क साथ रहकर अनकल भी खिो बठा। बोला-खिाना भी महज िजसम की परविरश क िलए खिाया जाता ह, तो सख चन कयो नही चबात- सख गह कयो नही फाकत- कयो हलवा और िमठाई उडात हो-

'म सख चन ही चबाता ह।'

'झठ हो। सख चनो पर ही यह सीना िनकल आया ह मझस डयोढ हो गए, म तो शायद पहचान भी न सकता।'

'जी हा, यह सख चनो ही की बरकत ह। ताकत साफ हवा और सयम म ह। हलवा-परी स ताकत नही होती, सीना नही िनकलता। पट िनकल आता ह। पचचीस मील पदल चला आ रहा ह। ह दम- जरा पाच ही मील चलो मर साथ।

190 www.hindustanbooks.com

'मआफ कीिजए, िकसी न कहा-बडी रानी, तो आओ पीसो मर साथ। तमह पीसना मबारक हो। तम यहा कर कया रह हो?'

'अनब तो आए हो, खिद ही दखि लोग। मन िजदगी का जो नकशा िदल म खिीचा था, उसी पर अनमल कर रहा ह। सवामी आतमाननद क आ जान स काम म और भी सहिलयत हो गई ह।'

ठड जयादा थी। सलीम को मजबर होकर अनमरकानत को अनपन कमर म लाना पडा।

अनमर न दखिा, कमर म गदवदार कोच ह, पीतल क गमल ह, जमीन पर कालीन ह, मधय म सगमरमर की गोल मज ह।

अनमर न दरवाज पर जत उतार िदए और बोला-िकवाड बद कर द, नही कोई दखि ल, तो तमह शिमदाहोना पड। तम साहब ठहर।

सलीम पत की बात सनकर झप गया। बोला-कछ-न-कछ खियाल तो होता ही ह भई, हालािक म वयसन का गलाम नही ह। म भी सादी िजदगी बसर करना चाहता था लिकन अनबबाजान की फरमाइश कस टालता- िपरिसपल तक कहत थ, तम पास नही हो सकत लिकन िरजलट िनकला तो सब दग रह गए। तमहार ही खियाल स मन यह िजला पसद िकया। कल तमह कलकटर स िमलाऊगा। अनभी िम. गजनवी स तो तमहारी मलाकात न होगी। बडा शौकीन आदमी ह मगर िदल का साफ। पहली ही मलाकात म उसस मरी बतकललफी हो गई। चालीस क करीब होग, मगर कपबाजी नही छोडी।

अनमर क िवचार म अनफसरो को सचचिरतर होना चािहए था। सलीम सचचिरतरता का कायल न था। दोनो िमतरो म बहस हो गई।

अनमर बोला-सचचिरतर होन क िलए खिशक होना जररी नही।

मन तो मललाआ को हमशा खिशक ही दखिा। अनफसरो क िलए महज कानन की पाबदी काफी नही। मर खियाल म तो थोडी-सी कमजोरी इसान का जवर ह। म िजदगी म तमस जयादा कामयाब रहा। मझ दावा ह िक मझस कोई नाराज नही ह। तम अनपनी बीबी तक को खिश न रखि सक। म इस मललापन को दर स सलाम करता ह। तम िकसी िजल क अनफसर बना िदए जाओ, तो एक िदन न रह सको। िकसी को खिश न रखि सकोग।

अनमर न बहस को तल दना उिचत न समझा कयोिक बहस म वह बहत गमरय हो जाया करता था।

भोजन का समय आ गया था। सलीम न एक शाल िनकालकर अनमर को ओढा िदया। एक रशमी सलीपर उस पहनन को िदया। िफर दोनो न भोजन िकया। एक मददत क बाद अनमर को ऐसा सवािदषटि भोजन िमला। मास तो उसन न खिाया लिकन और सब चीज मज स खिाइ।

सलीम न पछा-जो चीज खिान की थी, वह तो तमन िनकालकर रखि दी।

अनमर न अनपराधी भाव स कहा-मझ कोई आपितत नही ह, लिकन भीतर स इचछा नही होती। और कहो, वहा की कया खिबर ह- कही शादी-वादी ठीक हई- इतनी कसर बाकी ह, उस भी परी कर लो।

सलीम न चटकी ली-मरी शादी की िफकर छोडो, पहल यह बताओ िक सकीना स तमहारी शादी कब हो रही ह- वह बचारी तमहार इतजार म बठी हई ह।

191 www.hindustanbooks.com

अनमर का चहरा फीका पड गया। यह ऐसा परशन था, िजसका उततर दना उसक िलए ससार म सबस मिशकल काम था। मन की िजस दशा म वह सकीना की ओर लपका था, वह दशा अनब न रही थी। तब सखिदा उसक जीवन म एक बाधा क रप म खिडी थी। दोनो की मनोविततयो म कोई मल न था। दोनो जीवन को िभनन-िभनन कोण स दखित थ। एक म भी यह सामथयरय न थी िक वह दसर को हम-खियाल बना लता लिकन अनब वह हालत न थी। िकसी दवी िवधन न उनक सामािजक बधन को और कसकर उनकी आतमाआ को िमला िदया था। अनमर को पता नही, सखिदा न उस कषमा परदान की या नही लिकन वह अनब सखिदा का उपासक था। उस आशचियरय होता था िक िवलािसनी सखिदा ऐसी तपिसवनी कयोकर हो गई और यह आशचियरय उसक अननराग को िदन-िदन परबल करता जाता था। उस अनब उस अनसतोष का कारण अनपनी ही अनयोगयता म िछपा हआ मालम होता था, अनगर वह अनब सखिदा को कोई पतर न िलखि सका, तो इसक दो कारण थ। एक जो लजजा और दसर अनपनी पराजय की कलपना। शासन का वह परषोिचत भाव मानो उसका पिरहास कर रहा था। सखिदा सवचछद रप स अनपन िलए एक नया मागरय िनकाल सकती ह, उसकी उस लशमातर भी आवशयकता नही ह, यह िवचार उसक अननराग की गदरयन को जस दबा दता था। वह अनब अनिधक-स-अनिधक उसका अननगामी हो सकता ह। सखिदा उस समरकषतर म जात समय कवल कसिरया ितलक लगाकर सतषटि नही ह, वह उसस पहल समर म कदी जा रही ह, यह भाव उसक आतमगौरव को चोट पहचाता था।

उसन िसर झकाकर कहा-मझ अनब तजबा हो रहा ह िक म औरतो को खिश नही रखि सकता। मझम वह िलयाकत ही नही ह। मन तय कर िलया ह िक सकीना पर जलम न करगा।

'तो कम-स-कम अनपना फसला उस िलखि तो दत।'

अनमर न हसरत भरी आवाज म कहा-यह काम इतना आसान नही ह सलीम, िजतना तम समझत हो। उस याद करक म अनब भी बताब हो जाता ह। उसक साथ मरी िजदगी जननत बन जाती। उसकी इस वफा पर मर जान को जी चाहता ह िक अनभी तक...।

यह कहत-कहत अनमर का कठ-सवर भारी हो गया।

सलीम न एक कषण क बाद कहा-मान लो म उस अनपन साथ शादी करन पर राजी कर ल तो तमह नागावार होगा-

अनमर को आख-सी िमल गइ-नही भाईजान, िबलकल नही। अनगर तम उस राजी कर सको, तो म समझगा, तमस जयादा खिशनसीब आदमी दिनया म नही ह लिकन तम मजाक कर रह हो। तम िकसी नवाबजादी स शादी का खियाल कर रह होग।

दोनो खिाना खिा चक और हाथ धोकर दसर कमर म लट।

सलीम न हकक का कश लगाकर कहा-कया तम समझत हो, म मजाक कर रहा ह- उस वकत जरर मजाक िकया था लिकन इतन िदनो म मन उस खिब परखिा। उस वकत तम उसस न िमल जात, तो इसम जरा भी शक नही ह िक वह इस वकत कही और होती। तमह पाकर उस िफर िकसी की खवािहश नही रही। तमन उस कीचड स िनकालकर मिदर की दवी बना िदया और दवी की जगह बठकर वह सचमच दवी हो गई। अनगर तम उसस शादी कर सकत हो तो शौक स कर लो। म तो मसत ह ही, िदलचसपी का दसरा सामान तलाश कर लगा, लिकन तम न करना चाहो तो मर रासत स हट जाओ िफर अनब तो तमहारी बीबी तमहार िलए तमहार पथ म आ गई। अनब

192 www.hindustanbooks.com

तमहार उसस मह फरन का कोई सबब नही ह।

अनमर न हकका अनपनी तरफ खिीचकर कहा-म बड शौक स तमहार रासत स हट जाता ह लिकन एक बात बतला दो-तम सकीना को भी िदलचसपी की चीज समझ रह हो, या उस िदल स पयार करत हो-

सलीम उठ बठ-दखिो अनमर मन तमस कभी परदा नही रखिा इसिलए आज भी परदा न रखिगा। सकीना पयार करन की चीज नही, पजन की चीज ह। कम-स-कम मझ वह ऐसी ही मालम होती ह। म कसम तो नही खिाता िक उसस शादी हो जान पर म कठी-माला पहन लगा लिकन इतना जानता ह िक उस पाकर म िजदगी म कछ कर सकगा। अनब तक मरी िजदगी सलानीपन म गजरी ह। वह मरी बहती हई नाव का लगर होगी। इस लगर क बगर नही जानता मरी नाव िकस भवर म पड जाएगी। मर िलए ऐसी औरत की जररत ह, जो मझ पर हकमत कर, मरी लगाम खिीचती रह।

अनमर को अनपना जीवन इसिलए भार था िक वह अनपनी सतरी पर शासन न कर सकता था। सलीम ऐसी सतरी चाहता था जो उस पर शासन कर, और मजा यह था िक दोनो एक सदरी म मनोनीत लकषण दखि रह थ।

अनमर न कौतहल स कहा-म तो समझता ह सकीना म वह बात नही ह, जो तम चाहत हो।

सलीम जस गहराई म डबकर बोला-तमहार िलए नही ह मगर मर िलए ह। वह तमहारी पजा करती ह, म उसकी पजा करता ह।

इसक बाद कोई दो-ढाई बज रात तक दोनो म इधर-उधर की बात होती रही। सलीम न उस नए आदोलन की भी चचा की जो उसक सामन शर हो चका था और यह भी कहा िक उसक सफल होन की आशा नही ह। सभव ह, मआमला तल खिीच।

अनमर न िवसमय क साथ कहा-तब तो यो कहो, सखिदा न वहा नई जान डाल दी।

'तमहारी सास न अनपनी सारी जायदाद सवाशरम क नाम वकग कर दी।'

'अनचछा ।'

'और तमहार िपदर बजगरयवार भी अनब कौमी कामो म शरीक होन लग ह।'

'तब तो वहा परा इकलाब हो गया ।'

सलीम तो सो गया, लिकन अनमर िदन-भर का थका होन पर भी नीद को न बला सका। वह िजन बातो की कलपना भी न कर सकता था वह सखिदा क हाथो परी हो गइ मगर कछ भी हो, ह वही अनमीरी, जरा बदली हई सरत म। नाम की लालसा ह और कछ नही मगर िफर उसन अनपन को िधककारा। तम िकसी क अनत:करण की जात कया जानत हो- आज हजारो आदमी राषटि' सवा म लग हए ह। कौन कह सकता ह, कौन सवाथी ह, कौन सचचा सवक-

न जान कब उस भी नीद आ गई।

193 www.hindustanbooks.com

दोअनमरकानत क जीवन म एक नया उतसाह चमक उठा ह। ऐसा जान पडता ह िक अनपनी यातरा म वह अनब

एक घोड पर सवार हो गया ह। पहल परान घोड को ऐड और चाबक लगान की जररत पडती थी। यह नया घोडा कनौितया खिडी िकए सरपट भागता चला जाता ह। सवामी आतमाननद, काशी, पयाग, गदड सभी स तकरार हो जाती ह। इन लोगो क पास परान घोड ह। दौड म िपछड जात ह। अनमर उनकी मद गित पर िबगडता ह-इस तरह तो काम नही चलन का, सवामीजी आप काम करत ह िक मजाक करत ह इसस तो कही अनचछा था िक आप सवाशरम म बन रहत।

आतमाननद न अनपन िवशाल वकष को तानकर कहा-बाबा, मर स अनब और नही दौडा जाता। जब लोग सवासथय क िनयमो पर धयान न दग, तो आप बीमार होग, आप मरग। म िनयम बतला सकता ह, पालन करना तो उनक ही अनधीन ह।

अनमरकानत न सोचा-यह आदमी िजतना मोटा ह, उतनी ही मोटी इसकी अनकल भी ह। खिान को डढ सर चािहए, काम करत जवर आता ह। इनह सनयास लन स न जान कया लाभ हआ-

उसन आखिो म ितरसकार भरकर कहा-आपका काम कवल िनयम बताना नही ह, उनस िनयमो का पालन कराना भी ह। उनम ऐसी शिकत डािलए िक व िनयमो का पालन िकए िबना रह ही न सक। उनका सवभाव ही ऐसा हो जाय। म आज िपचौरा स िनकला गाव म जगह-जगह कड। क ढर िदखिाई िदए। आप कल उसी गाव स हो आए ह, कयो कडा साफ नही कराया गया- आप खिद गावडा लकर कयो नही िपल पड- गरव वसतर लन ही स आप समझत ह लोग आपकी िशकषा को दववाणी समझग-

आतमाननद न सफाई दी-म कडा साफ करन लगता, तो सारा िदन िपचौरा म ही लग जाता। मझ पाच-छ: गावो का दौरा करना था।

'यह आपका कोरा अननमान ह। मन सारा कडा आधा घट म साफ कर िदया। मर गावडा हाथ म लन की दर थी, सारा गाव जमा हो गया और बात-की-बात म सारा गाव झक हो गया।'

िफर वह गदड चौधरी की ओर िफरा-तम भी दादा, अनब काम म िढलाई कर रह हो। मन कल एक पचायत म लोगो को शराब पीत पकडा। सौताड की बात ह। िकसी को मर आन की खिबर तो थी नही , लोग आनद म बठ हए थ और बोतल सरपच महोदय क सामन रखिी हई थी। मझ दखित ही तरत बोतल उडा दी गइ और लोग गभीर बनकर बठ गए। म िदखिावा नही चाहता, ठोस काम चाहता ह।

अनमर न अनपनी लगन, उतसाह, आतम-बल और कमरयशीलता स अनपन सभी सहयोिगयो म सवा-भाव उतपनन कर िदया था और उन पर शासन भी करन लगा था। सभी उसका रोब मानत थ। उसक गलाम थ।

चौधरी न िबगडकर कहा-तमन कौन गाव बताया, सौताडा- म आज ही उसक चौधरी को बलाता ह। वही हरखिलाल ह। जनम का िपयककड। दो दफ सजा काट आया ह। म आज ही उस बलाता ह।

अनमर न जाघ पर हाथ पटककर कहा-िफर वही डाट-फटकार की बात। अनर दादा डाट-फटकार स कछ न होगा। िदलो म बिठए। ऐसी हवा फला दीिजए िक ताडी-शराब स लोगो को घणा हो जाय। आप िदन-भर अनपना काम करग और चन स सोएग, तो यह काम हो चका। यह समझ लो िक हमारी िबरादरी चत जाएगी, तो

194 www.hindustanbooks.com

बामहन-ठाकर आप ही चत जाएग।

गदड न हार मानकर कहा-तो भया, इतना बता तो अनब मझम नही रहा िक िदन-भर काम कर और रात-भर दौड लगाऊ। काम न कर, तो भोजन कहा स आए-

अनमरकानत न उस िहममत हारत दखिकर सहास मखि स कहा-िकतना बडा पट तमहारा ह दादा, िक सार िदन काम करना पडता ह। अनगर इतना बडा पट ह, तो उस छोटा करना पडगा।

काशी और पयाग न दखिा िक इस वकत सबक ऊपर फटकार पड रही ह तो वहा स िखिसक गए।

पाठशाला का समय हो गया था। अनमरकानत अनपनी कोठरी म िकताब लन गया, तो दखिा मननी दध िलए खिडी ह। बोला-मन तो कह िदया था, म दध न िपऊगा, िफर कयो लाइ-

आज कई िदनो स मननी अनमर क वयवहार म एक परकार की शषकता का अननभव कर रही थी। उस दखिकर अनब मखि पर उललास की झलक नही आती। उसस अनब िबना िवशष परयोजन क बोलता भी कम ह। उस ऐसा जान पडता ह िक यह मझस भागता ह। इसका कारण वह कछ नही समझ सकती। यह काटा उसक मन म कई िदन स खिटक रहा ह। आज वह इस काट को िनकाल डालगी।

उसन अनिवचिलत भाव स कहा-कयो नही िपओग, सन-

अनमर पसतको का एक बडल उठाता हआ बोला-अनपनी इचछा ह। नही पीता-तमह म कषटि नही दना चाहता।

मननी न ितरछी आखिो स दखिा-यह तमह कब स मालम हआ ह िक तमहार िलए दध लान म मझ बहत कषटि होता ह- और अनगर िकसी को कषटि उठान ही म सखि िमलता हो तो-

अनमर न हारकर कहा-अनचछा भाई, झगडा न करो, लाओ पी ल।

एक ही सास म सारा दध कडवी दवा की तरह पीकर अनमर चलन लगा, तो मननी न दवार छोडकर कहा-िबना अनपराध क तो िकसी को सजा नही दी जाती।

अनमर दवार पर िठठककर बोला-तम तो जान कया बक रही हो- मझ दर हो रही ह।

मननी न िवरकत भाव धारण िकया-तो म तमह रोक तो नही रही ह, जात कयो नही-

अनमर कोठरी स बाहर पाव न िनकाल सका।

मननी न िफर कहा-कया म इतना भी नही जानती िक मरा तमहार ऊपर कोई अनिधकार नही ह- तम आज चाहो तो कह सकत हो खिबरदार, मर पास मत आना। और मह स चाह न कहत हो पर वयवहार स रोज ही कह रह हो। आज िकतन िदनो स दखि रही ह लिकन बहयाई करक आती ह, बोलती ह, खिशामद करती ह। अनगर इस तरह आख फरनी थी, तो पहल ही स उस तरह कयो न रह लिकन म कया बकन लगी- तमह दर हो रही ह, जाओ।

अनमरकानत न जस रससी तडान का जोर लगाकर कहा-तमहारी कोई बात मरी समझ नही आ रही ह मननी म तो जस पहल रहता था, वस ही अनब भी रहता ह। हा, इधर काम अनिधक होन स जयादा बातचीत का अनवसर नही िमलता।

मननी न आख नीची करक गढ भाव स कहा-तमहार मन की बात म समझ रही ह, लिकन वह बात नही ह। तमह भरम हो रहा ह।

195 www.hindustanbooks.com

अनमरकानत न आशचियरय स कहा-तम तो पहिलयो म बात करन लगी।

मननी न उसी भाव स जवाब िदया-आदमी का मन िफर जाता ह, तो सीधी बात भी पहली-सी लगती ह।

िफर वह दध का खिाली कटोरा उठाकर जलदी स चली गई।

अनमरकानत का हदय मसोसन लगा। मननी जस सममोहन-शिकत स उस अनपनी ओर खिीचन लगी। 'तमहार मन की बात म समझ रही ह, लिकन वह बात नही ह। तमह भरम हो रहा ह ।' यह वाकय िकसी गहर खिडड की भाित उसक हदय को भयभीत कर रहा था। उसम उतरत िदल कापता था, रासता उसी खिडड म स जाता था।

वह न जान िकतनी दर अनचत-सा खिडा रहा। सहसा आतमाननद न पकारा-कया आज शाला बद रहगी-

196 www.hindustanbooks.com

तीनइस इलाक क जमीदार एक महनतजी थ। कारकन और मखतार उनही क चल-चापड थ। इसिलए लगान

बराबर वसल होता जाता था। ठाकरदवार म कोई-न-कोई उतसव होता ही रहता था। कभी ठाकरजी का जनम ह, कभी बयाह ह, कभी यजञोपवीत ह, कभी झला ह, कभी जल-िवहार ह। अनसािमयो को इन अनवसरो पर बगार दनी पडती थी भट-नयोछावर, पजा-चढावा आिद नामो स दसतरी चकानी पडती थी लिकन धमरय क मआमल म कौन मह खिोलता- धमरय-सकट सबस बडा सकट ह। िफर इलाक क काशतकार सभी नीच जाितयो क लोग थ। गाव पीछ दो-चार घर बराहयण-कषितरयो क थ भी उनकी सहानभित अनसािमयो की ओर न होकर महनतजी की ओर थी। िकसी-न-िकसी रप म व सभी महनतजी क सवक थ। अनसािमयो को परसनन रखिना पडता था। बचार एक तो गरीबी क बोझ स दब हए, दसर मखिरय, न कायदा जान न कानन महनतजी िजतना चाह इजाफा कर, जब चाह बदखिल कर, िकसी म बोलन का साहस न था। अनकसर खतो का लगान इतना बढ गया था िक सारी उपज लगान क बराबर भी न पहचती थी िकत लोग भागय को रोकर, भख-नग रहकर, कततो की मौत मरकर, खत जोतत जात थ। कर कया- िकतनो ही न जाकर शहरो म नौकरी कर ली थी। िकतन ही मजदरी करन लग थ। िफर भी अनसािमयो की कमी न थी। कतिष-परधान दश म खती कवल जीिवका का साधन नही ह सममान की वसत भी ह। गहसथ कहलाना गवरय की बात ह। िकसान गहसथी म अनपना सवरयसव खिोकर िवदश जाता ह, वहा स धन कमाकर लाता ह और िफर गहसथी करता ह। मान-परितषठा का मोह औरो की भाित उस घर रहता ह। वह गहसथ रहकर जीना और गहसथ ही म मरना भी चाहता ह। उसका बाल-बाल कजरय स बाधा हो, लिकन दवार पर दो-चार बल बधकर वह अनपन को धनय समझता ह। उस साल म तीस सौ साठ िदन आध पट खिाकर रहना पड , पआल म घसकर रात काटनी पड, बबसी स जीना और बबसी स मरना पड, कोई िचता नही, वह गहसथ तो ह। यह गवरय उसकी सारी दगरयित की परौती कर दता ह।

लिकन इस साल अननायास ही िजसो का भाव िगर गया िजतना चालीस साल पहल था। जब भाव तज था, िकसान अनपनी उपज बच-बचकर लगान द दता था लिकन जब दो और तीन की िजस एक म िबक तो िकसान कया कर- कहा स लगान द, कहा स दसतिरया द, कहा स कजरय चकाए- िवकट समसया आ खिडी हई और यह दशा कछ इसी इलाक की न थी। सार परात, सार दश, यहा तक िक सार ससार म यही मदी थी चार सर का गड कोई दस सर म भी नही पछता। आठ सर का गह डढ रपय मन म भी महगा ह। तीस रपय मन का कपास दस रपय म जाता ह, सोलह रपय मन का सन चार रपयो म। िकसानो न एक-एक दाना बच डाला, भस का एक ितनका भी न रखिा लिकन यह सब करन पर भी चौथाई लगान स जयादा न अनदा कर सक और ठाकरदवार म वही उतसव थ, वही जल-िवहार थ। नतीजा यह हआ िक हलक म हाहाकार मच गया। इधर कछ िदनो स सवामी आतमाननद और अनमरकानत क उदयोग स इलाक म िवदया का कछ परचार हो रहा था और कई गावो म लोगो न दसतरी दना बद कर िदया था। महनतजी क पयाद और कारकन पहल ही स जल बठ थ। यो तो दाल न गलती थी। बकाया लगान न उनह अनपन िदल का गबार िनकालन का मौका द िदया।

एक िदन गगा-तट पर इस समसया पर िवचार करन क िलए एक पचायत हई। सार इलाक स सतरी-परष जमा हए मानो िकसी पवरय का सनान करन आए हो। सवामी आतमाननद सभापित चन गए।

पहल भोला चौधरी खिड हए। वह पहल िकसी अनफसर क कोचवान थ। अनब नए साल स िफर खती करन लग थ। लबी नाक, काला रग, बडी-बडी मछ और बडी-सी पगडी। मह पगडी म िछप गया था। बोल-पचो,

197 www.hindustanbooks.com

हमार ऊपर जो लगान बाधा हआ ह वह तजी क समय का ह। इस मदी म वह लगान दना हमार काब स बाहर ह। अनबकी अनगर बल-बिछया बचकर द भी द तो आग कया करग- बस हम इसी बात का तसिफया करना ह। मरी गजािरस तो यही ह िक हम सब िमलकर महनत महाराज क पास चल और उनस अनरज-माईज कर। अनगर वह न सन तो हािकम िजला क पास चलना चािहए। म औरो की नही कहता। म गगा माता की कसम खिाक कहता ह िक मर घर म छटाक भर भी अननन नही ह, और जब मरा यह हाल ह, तो और सभी का भी यही हाल होगा। उधर महनतजी क यहा वही बहार ह। अनभी परसो एक हजार साधआ को आम की पगत दी गई। बनारस और लखिनऊ स कई िडबब आमो क आए ह। आज सनत ह िफर मलाई की पगत ह। हम भखिो मरत ह, वहा मलाई उडती ह। उस पर हमारा रकत चसा जा रहा ह। बस, यही मझ पचो स कहना ह।

गदड न धासी हई आख फरकर कहा-महनतजी हमार मािलक ह, अनननदाता ह, महातमा ह। हमारा द:खि सनकर जरर-स-जरर उनह हमार ऊपर दया आएगी इसिलए हम भोला चौरी की सलाह मजर करनी चािहए। अनमर भया हमारी ओर स बातचीत करग। हम और कछ नही चाहत। बस, हम और हमार बाल-बचचो को आधा-आधा सर रोजाना क िहसाब स िदया जाए। उपज जो कछ हो वह सब महनतजी ल जाए। हम घी-दध नही मागत, दध-मलाई नही मागत। खिाली आध सर मोटा अननाज मागत ह। इतना भी न िमलगा, तो हम खती न करग। मजरी और बीज िकसक घर स लाएग। हम खती छोड दग, इसक िसवा दसरा उपाय नही ह।

सलोनी न हाथ चमकाकर कहा-खत कयो छोड- बाप-दादो की िनसानी ह। उस नही छोड सकत। खत पर परान द दगी। एक था, तब दो हए, तब चार हए, अनब कया धरती सोना उगलगी।

अनलग कोरी िबजज-सी आख िनकालकर बोला-भया, म तो बलाग कहता ह, महनत क पास चलन स कछ न होगा। राजा ठाकर ह। कही करोध आ गया, तो िपटवान लगग। हािकम क पास चलना चािहए। गोरो म िफर भी दया ह।

आतमाननद न सभी का िवरोध िकया-म कहता ह, िकसी क पास जान स कछ नही होगा। तमहारी थाली की रोटी तमस कह िक मझ न खिाओ, तो तम मानोग-

चारो तरफ स आवाज आइ-कभी नही मान सकत।

'तो तम िजनकी थाली की रोिटया हो वह कस मान सकत ह।'

बहत-सी आवाजो न समथरयन िकया-कभी नही मान सकत ह।

'महनतजी को उतसव मनान को रपय चािहए। हािकमो को बडी-बडी तलब चािहए। उनकी तलब म कमी नही हो सकती। व अनपनी शान नही छोड सकत। तम मरो या िजयो उनकी बला स। वह तमह कयो छोडन लग?'

बहत-सी आवाजो न हामी भरी-कभी नही छोड सकत।

अनमरकानत सवामीजी क पीछ बठा हआ था। सवामीजी का यह रखि दखिकर घबराया लिकन सभापित को कस रोक- यह तो वह जानता था, यह गमरय िमजाज का आदमी ह लिकन इतनी जलदी इतना गमरय हो जाएगा, इसकी उस आशा न थी। आिखिर यह महाशय चाहत कया ह-

आतमाननद गरजकर बोल-तो अनब तमहार िलए कौन-सा मागरय ह- अनगर मझस पछत हो, और तम लोग आज परण करो िक उस मानोग, तो म बता सकता ह, नही तमहारी इचछा।

198 www.hindustanbooks.com

बहत-सी आवाज आइ-जरर बतलाइए सवामीजी, बतलाइए।

जनता चारो ओर स िखिसककर और समीप आ गई। सवामीजी उनक हदय को सपशरय कर रह ह, यह उनक चहरो स झलक रहा था। जन-रिच सदव उगर की ओर होती ह।

आतमाननद बोल-तो आओ, आज हम सब महनतजी का मकान और ठाकरदवारा घर ल और जब तक वह लगान िबलकल न छोड द, कोई उतसव न होन द।

बहत-सी आवाज आइ-हम लोग तयार ह।

'खिब समझ लो िक वहा तम पान-फल स पज न जाओग।'

'कछ परवाह नही। मर तो रह ह, िससक-िससककर कयो मर ।'

'तो इसी वकत चल। हम िदखिा द िक?'

सहसा अनमर न खिड होकर परदीपत नतरो स कहा-ठहरो ।

समह म सननाटा छा गया। जो जहा था, वही खिडा रह गया।

अनमर न छाती ठोककर कहा-िजस रासत पर तम जा रह हो, वह उधार का रासता नही ह-सवरयनाश का रासता ह। तमहारा बल अनगर बीमार पड जाए जो तम उस जोतोग-

िकसी तरफ स कोई आवाज न आई।

'तम पहल उसकी दवा करोग, और जब तक वह अनचछा न हो जाएगा, उस न जोतोग कयोिक तम बल को मारना नही चाहत उसक मरन स तमहार खत परती पड जाएग।'

गदड बोल-बहत ठीक कहत हो, भया ।

'घर म आग लगन पर हमारा कया धमरय ह- कया हम आग को फलन द और घर की बची-बचाई चीज भी लाकर उसम डाल द?'

गदड न कहा-कभी नही। कभी नही।

'कयो- इसिलए िक हम घर को जलाना नही, बनाना चाहत ह। हम उस घर म रहना ह। उसी म जीना ह। यह िवपितत कछ हमार ही ऊपर नही पडी ह। सार दश म यही हाहाकार मचा हआ ह। हमार नता इस परशन को हल करन की चषटिा कर रह ह। उनही क साथ हम भी चलना ह।'

उसन एक लबा भाषण िकया पर वही जनता जो उसका भाषण सनकर मसत हो जाती थी, आज उदासीन बठी थी। उसका सममान सभी करत थ, इसिलए कोई ऊधाम न हआ, कोई बमचखि न मचा पर जनता पर कोई अनसर न हआ। आतमाननद इस समय जनता का नायक बना हआ था।

सभा िबना कछ िनशचिय िकए उठ गई, लिकन बहमत िकस तरफ ह, यह िकसी स िछपा न था।

199 www.hindustanbooks.com

चारअनमर घर लौटा, तो बहत हताश था। अनगर जनता को शात करन का उपाय न िकया गया, अनवशय उपदरव

हो जाएगा। उसन महनतजी स िमलन का िनशचिय िकया। इस समय उसका िचतत इतना उदास था िक एक बार जी म आया, यहा स सब छोड-छाडकर चला जाए। उस अनभी तक अननभव न हआ था िक जनता सदव तज िमजाजो क पीछ चलती ह। वह नयाय और धमरय, हािन-लाभ, अनिहसा और तयाग सब कछ समझाकर भी आतमाननद क ठठक हए जाद को उतार न सका। आतमाननद इस वकत यहा िमल जात, तो दोनो िमतरो म जरर लडाई हो जाती लिकन वह आज गायब थ। उनह आज घोड का आसन िमल गया था। िकसी गाव म सगठन करन चल गए थ।

आज अनमर का िकतना अनपमान हआ। िकसी न उसकी बातो पर कान तक न िदया। उनक चहर कह रह थ, तम कया बकत हो, तमस हमारा उधार न होगा। इस घाव पर कोमल शबदो क मरहम की जररत थी-कोई उनह िलटाकर उनक घाव को गाह स धोए, उस पर शीतल लप कर।

मननी रससी और कलसा िलए हए िनकली और िबना उसकी ओर ताक कए की ओर चली गई। उसन पकारा-सनती जाओ, मननी पर मननी न सनकर भी न सना। जरा दर बाद वह कलसा िलए हए लौटी और िफर उसक सामन स िसर झकाए चली गई। अनमर न िफर पकारा-मननी, सनो एक बात कहनी ह। पर अनबकी भी वह न रकी। उसक मन म अनब सदह न था।

एक कषण म मननी िफर िनकली और सलोनी क घर जा पहची। वह मदरस क पीछ एक छोटी-सी मडया डालकर रहती थी। चटाई पर लटी एक भजन गा रही थी। मननी न जाकर पछा-आज कछ पकाया नही काकी, यो ही सो रही हो-

सलोनी न उठकर कहा-खिा चकी बटा, दोपहर की रोिटया रखिी हई थी।

मननी न चौक की ओर दखिा। चौका साफ िलपा-पता पडा था। बोली-काकी, तम बहाना कर रही हो। कया घर म कछ ह ही नही- अनभी तो आत दर नही हई, इतनी जलद खिा कहा स िलया-

'त तो पितयाती नही ह, बह भखि लगी थी, आत-ही-आत खिा िलया। बतरयन धो धाकर रखि िदए। भला तमस कया िछपाती- कछ न होता, तो माग न लती?'

'अनचछा, मरी कसम खिाओ।'

काकी न हसकर कहा-हा, अनपनी कसम खिाती ह, खिा चकी।

मननी दिखित होकर बोली-तम मझ गर समझती हो, काकी- जस मझ तमहार मरन-जीन स कछ मतलब ही नही। अनभी तो तमन ितलहन बचा था, रपय कया िकए-

सलोनी िसर पर हाथ रखिकर बोली-अनर भगवान ितलहन था ही िकतना कल एक रपया तो िमला। वह कल पयादा ल गया। घर म आग लगाए दता था। कया करती, िनकालकर फक िदया। उस पर अनमर भया कहत ह-महनतजी स फिरयाद करो। कोई नही सनगा, बटा म कह दती ह।

मननी बोली-अनचछा, तो चलो मर घर खिा लो।

सलोनी न सजल नतर होकर कहा-त आज िखिला दगी बटी, अनभी तो परा चौमासा पडा हआ ह। आजकल

200 www.hindustanbooks.com

तो कही घास भी नही िमलती। भगवान न जान कस पार लगाएग- घर म अननन का एक दाना भी नही ह। डाडी अनचछी होती, तो बाकी दक चार महीन िनबाह हो जाता। इस डाडी म आग लग, आधी बाकी भी न िनकली। अनमर भया को त समझाती नही, सवामीजी को बढन नही दत।

मननी न मह फरकर कहा-मझस तो आजकल रठ हए ह, बोलत ही नही। काम-धध स फरसत ही नही िमलती। घर क आदमी स बातचीत करन को भी फरसत चािहए। जब फटहाल आए थ तब फरसत थी। यहा जब दिनया जानन लगी, नाम हआ, बड आदमी बन गए, तो अनब फरसत नही ह ।

सलोनी न िवसमय भरी आखिो स मननी को दखिा-कया कहती ह बह, वह तझस रठ हए ह- मझ तो िवशवास नही आता। तझ धोखिा हआ ह। बचारा रात-िदन तो दौडता ह, न िमली होगी फरसत। मन तझ जो अनसीस िदया ह, वह परा होक रहगा, दखि लना।

मननी अनपनी अननदारता पर सकचाती हई बोली-मझ िकसी की परवाह नही ह, काकी िजस सौ बार गरज पड बोल, नही न बोल। वह समझत होग-म उनक गल पडी जा रही ह। म तमहार चरण छकर कहती ह काकी, जो यह बात कभी मर मन म आई हो। म तो उनक परो की धल क बराबर भी नही ह। हा , इतना चाहती ह िक वह मझस मन स बोल, जो कछ थोडी बहत सवा कर, उस मन स ल। मर मन म बस इतनी ही साधा ह िक म जल चढाती जाऊ और वह चढवात जाए और कछ नही चाहती।

सहसा अनमर न पकारा। सलोनी न बलाया-आओ भया अनभी बह आ गई, उसी स बितया रही ह।

अनमर न मननी की ओर दखिकर तीख सवर म कहा-मन तमह दो बार पकारा मननी, तम बोली कयो नही-

मननी न मह फरकर कहा-तमह िकसी स बोलन की फरसत नही ह। तो कोई कयो जाए तमहार पास- तमह बड-बड काम करन पडत ह, तो औरो को भी तो अनपन छोट-छोट काम करन ही पडत ह।

अनमर पतनीवरत की धन म मननी स खिीचा रहन लगा था। पहल वह चटटान पर था, सखिदा उस नीच स खिीच रही थी। अनब सखिदा टील क िशखिर पर पहच गई और उसक पास पहचन क िलए उस आतमबल और मनोयोग की जररत थी। उसका जीवन आदशरय होना चािहए, िकत परयास करन पर भी वह सरलता और शरधदा की इस मित को िदल स न िनकाल सकता था। उस जञात हो रहा था िक आतमोननित क परयास म उसका जीवन शषक, िनरीह हो गया ह। उसन मन म सोचा, मन तो समझा था हम दोनो एक-दसर क इतन समीप आ गय ह िक अनब बीच म िकसी भरम की गजाइश नही रही। म चाह यहा रह, चाह काल कोसो चला जाऊ, लिकन तमन मर हदय म जो दीपक जला िदया ह, उसकी जयोित जरा भी मद न पडगी।

उसन मीठ ितरसकार स कहा-म यह मानता ह मननी, िक इधर काम अनिधक रहन स तमस कछ अनलग रहा लिकन मझ आशा थी िक अनगर िचताआ स झझलाकर म तमह दो-चार कडव शबद भी सना द, तो तम मझ कषमा करोगी। अनब मालम हआ िक वह मरी भल थी।

मननी न उस कातर नतरो स दखिकर कहा-हा लाला, वह तमहारी भल थी। दिरदर को िसहासन पर भी बठा दो, तब भी उस अनपन राजा होन का िवशवास न आएगा। वह उस सपना ही समझगा। मर िलए भी यही सपना जीवन का आधार ह। म कभी जागना नही चाहती। िनतय यही सपना दखिती रहना चाहती ह। तम मझ थपिकया दत जाओ, बस म इतना ही चाहती ह। कया इतना भी नही कर सकत- कया हआ, आज सवामीजी स तमहारा झगडा कयो हो गया-

201 www.hindustanbooks.com

सलोनी अनभी तो आतमाननद की तारीफ कर रही थी। अनब अनमर की मह दखिी कहन लगी-भया न तो लोगो का समझाया था िक महनत क पास चलो। इसी पर लोग िबगड गए। पछो, और तम कर ही कया सकत हो। महनतजी िपटवान लग, तो भागन की राह न िमल।

मननी न इसका समथरयन िकया-महनतजी धामातमा आदमी ह। भला लोग भगवान क मिदर को घरत, तो िकतना अनपजस होता। ससार भगवान का भजन करता ह। हम चल उनकी पजा रोकन। न जान सवामीजी को यह सझी कया, और लोग उनकी बात मान गए। कसा अनधर ह ।

अनमर न िचतत म शाित का अननभव िकया। सवामीजी स तो जयादा समझदार य अनपढ िसतरया ह। और आप शासतरो क जञाता ह। ऐस ही मखिरय आपको भकत िमल गए ।

उसन परसनन होकर कहा-उस नककारखिान म तती की आवाज कौन सनता था, काकी- लोग मिदर को घरन जात, तो फौजदारी हो जाती। जरा-जरा सी बात म तो आजकल गोिलया चलती ह।

सलोनी न भयभीत होकर कहा-तमन बहत अनचछा िकया भया, जो उनक साथ न हए, नही खिन-खिचचर हो जाता।

मननी आदररय होकर बोली-म तो उनक साथ कभी न जान दती, लाला हािकम ससार पर राज करता ह तो कया रयत का द:खि-ददरय न सनगा- सवामीजी आवग, तो पछगी।

आग की तरह जलता हआ भाव सहानभित और सहदयता स भर हए शबदो स शीतल होता जान पडा। अनब अनमर कल अनवशय महनतजी की सवा म जाएगा। उसक मन म अनब कोई शका, कोई दिवधा नही ह।

202 www.hindustanbooks.com

पाचअनमर गदड चौधरी क साथ महनत आशाराम िगिर क पास पहचा। सधया का समय था। महनतजी एक सोन

की कसी पर बठ हए थ, िजस पर मखिमली गददा था। उनक इदरय-िगदरय भकतो की भीड लगी हई थी, िजसम मिहलाआ की सखया ही अनिधक थी। सभी धल हए सगमरमर क फशरय पर बठी हई थी। परष दसरी ओर बठ थ। महनतजी पर छ: फीट क िवशालकाय सौमय परष थ। अनवसथा कोई पतीस वषरय की थी। गोरा रग, दहरी दह, तजसवी मित, काषाय वसतर तो थ, िकनत रशमी। वह पाव लटकाए बठ हए थ। भकत लोग जाकर उनक चरणो को आखिो स लगात थ, अनमर अनदर गया, पर वहा उस कौन पछता- आिखिर जब खिड-खिड आठ बज गए, तो उसन महनतजी क समीप जाकर कहा-महाराज, मझ आपस कछ िनवदन करना ह।

महनतजी न इस तरह उसकी ओर दखिा, मानो उनह आख फरन म भी कषटि ह।

उनक समीप एक दसरा साध खिडा था। उसन आशचियरय स उसकी ओर दखिकर पछा-कहा स आत हो-

अनमर न गाव का नाम बताया।

हकम हआ, आरती क बाद आओ।

आरती म तीन घट की दर थी। अनमर यहा कभी न आया था। सोचा, यहा की सर ही कर ल। इधर-उधर घमन लगा। यहा स पिशचिम तरफ तो िवशाल मिदर था। सामन परब की ओर िसहदवार, दािहन-बाए दो दरवाज और भी थ। अनमर दािहन दरवाज स अनदर घसा, तो दखिा चारो तरफ चौड बरामद ह और भडारा हो रहा ह। कही बडी-बडी कढाइयो म पिडया-कचौिडया बन रही ह। कही भाित-भाित की शाक-भाजी चढी हई ह कही दध उबल रहा ह कही मलाई िनकाली जा रही ह। बरामद क पीछ, कमर म खिा? सामगरी भरी हई थी। ऐसा मालम होता था, अननाज, शाक-भाजी, मव, फल, िमठाई की मिडया ह। एक परा कमरा तो कवल परवलो स भरा हआ था। उस मौसम म परवल िकतन महग होत ह पर यहा वह भस की तरह भरा हआ था। अनचछ-अनचछ घरो की मिहलाए भिकत-भाव स वयजन पकान म लगी हई थी। ठाकरजी क बयाल की तयारी थी। अनमर यह भडार दखिकर दग रह गया। इस मौसम म यहा बीसो झाब अनगर भर थ।

अनमर यहा स उततर तरफ क दवार म घसा, तो यहा बाजार-सा लगा दखिा। एक लबी कतार दिजयो की थी, जो ठाकरजी क वसतर सी रह थ। कही जरी क काम हो रह थ, कही कारचोबी की मसनद और फावतिकए बनाए जा रह थ। एक कतार सोनारो की थी, जो ठाकरजी क आभषण बना रह थ, कही जडाई का काम हो रहा था, कही पािलश िकया जाता था, कही पटव गहन गथ रह थ। एक कमर म दस-बारह मसटड जवान बठ चदन रगड रह थ। सबो क मह पर ढाट बधो हए थ। एक परा कमरा इतर, तल और अनगरबिततयो स भरा हआ था। ठाकरजी क नाम पर िकतना अनपवयय हो रहा ह, यही सोचता हआ अनमर यहा स िफर बीच वाल परागण म आया और सदर दवार स बाहर िनकला।

गदड न पछा-बडी दर लगाई। कछ बातचीत हई-

अनमर न हसकर कहा-अनभी तो कवल दशरयन हए ह, आरती क बाद भट होगी। यह कहकर उसन जो दखिा था, वह िवसतारपवरयक बयान िकया।

गदड न गदरयन िहलात हए कहा-भगवान का दरबार ह। जो ससार को पालता ह, उस िकस बात की कमी-

203 www.hindustanbooks.com

सना तो हमन भी ह लिकन कभी भीतर नही गए िक कोई कछ पछन-पाछन लग, तो िनकाल जाय। हा, घडसाल और गऊशाला दखिी ह, मन चाह तो तम भी दखि लो।

अनभी समय बहत बाकी था। अनमर गऊशाला दखिन चला। मिदर क दिकखिन म पशशालाए थी। सबस पहल पीलखिान म घस। कोई पचचीस-तीस हाथी आगन म जजीरो स बधो खिड थ। कोई इतना बडा िक परा पहाड, कोई इतना मोटा, जस भस। कोई झम रहा था, कोई सड घमा रहा था, कोई बरगद क डाल-पात चबा रहा था। उनक हौद, झल, अनबािरया, गहन सब अनलग गोदाम म रख हए थ। हरक हाथी का अनपना नाम, अनपना सवक, अनपना मकान अनलग था। िकसी को मन-भर राितब िमलता था, िकसी को चार पसरी। ठाकरजी की सवारी म जो हाथी था, वही सबस बडा था। भगत लोग उसकी पजा करन आत थ। इस वकत भी मालाआ का ढर उसक िसर पर पडा हआ था। बहत-स फल उसक परो क नीच थ।

यहा स घडसाल म पहच। घोडो की कतार बाधी हई थी, मानो सवारो की फौज का पडाव हो। पाच सौ घोडो स कम न थ, हरक जाित क, हरक दश क। कोई सवारी का कोई िशकार का, कोई बगघी का, कोई पोलो का। हरक घोड पर दो-दो आदमी नौकर थ। उनह रोज बादाम और मलाई दी जाती थी।

गऊशाला म भी चार-पाच सौ गाए-भस थी बड-बड मटक ताज दध स भर रख थ। ठाकरजी आरती क पहल सनान करग। पाच-पाच मन दध उनक सनान को तीन बार रोज चािहए, भडार क िलए अनलग।

अनभी यह लोग इधर-उधर घम ही रह थ िक आरती शर हो गई। चारो तरफ स लोग आरती करन को दौड पड।

गदड न कहा-तमस कोई पछता-कौन भाई हो, तो कया बतात-

अनमर न मसकराकर कहा-वशय बताता।

'तमहारी तो चल जाती कयोिक यहा तमह लोग कम जानत ह, मझ तो लोग रोज ही हाथ म चरस बचत दखित ह, पहचान ल, तो जीता न छोड। अनब दखिो भगवान की आरती हो रही ह और हम भीतर नही जा सकत, यहा क पड-पजािरयो क चिरतर सनो, तो दातो तल उगली दबा लो। पर व यहा क मािलक ह, और हम भीतर कदम नही रखि सकत। तम चाह जाकर आरती ल लो। तम सरत स भी तो बराहयण जचत हो। मरी तो सरत ही चमार-चमार पकार रही ह।'

अनमर की इचछा तो हई िक अनदर जाकर तमाशा दख पर गदड को छोडकर न जा सका। कोई आधा घट म आरती समापत हई और उपासक लौटकर अनपन-अनपन घर गए, तो अनमर महनतजी स िमलन चला। मालम हआ, कोई रानी साहब दशरयन कर रही ह। वही आगन म टहलता रहा।

आधा घट क बाद उसन िफर साध-दवारपाल स कहा, तो पता चला, इस वकत नही दशरयन हो सकत। परात:काल आओ।

अनमर को करोध तो ऐसा आया िक इसी वकत महनतजी को फटकार पर जबत करना पडा। अनपना-सा मह लकर बाहर चला आया।

गदड न यह समाचार सनकर कहा-दरबार म भला हमारी कौन सनगा-

'महनतजी क दशरयन तमन कभी िकए ह?'

204 www.hindustanbooks.com

'मन भला म कस करता- म कभी नही आया।'

नौ बज रह थ, इस वकत घर लौटना मिशकल था। पहाडी रासत, जगली जानवरो का खिटका, नदी-नालो का उतार। वही रात काटन की सलाह हई। दोनो एक धमरयशाला म पहच और कछ खिा-पीकर वही पड रहन का िवचार िकया। इतन म दो साध भगवान का बयाल बचत हए नजर आए। धमरयशाला क सभी यातरी लन दौड। अनमर न भी चार आन की एक पततल ली। पिरया, हलव, तरह-तरह की भािजया, अनचार-चटनी, मरबब, मलाई, दही इतना सामान था िक अनचछ दो खिान वाल तपत हो जात। यहा चलहा बहत कम घरो म जलता था। लोग यही पततल ल िलया करत थ। दोनो न खिब पट-भर खिाया और पानी पीकर सोन की तयारी कर रह थ िक एक साध दध बचन आया-शयन का दध ल लो। अनमर की इचछा तो न थी पर कौतहल स उसन दो आन का दध ल िलया। परा एक सर था, गाढा, मलाईदार उसम स कसर और कसतरी की सगध उड रही थी। ऐसा दध उसन अनपन जीवन म कभी न िपया था।

बचार िबसतर तो लाए न थ, आधी-आधी धोितया िबछाकर लट ।

अनमर न िवसमय स कहा-इस खिचरय का कछ िठकाना ह ।

गदड भिकत-भाव स बोला-भगवान दत ह और कया उनही की मिहमा ह। हजार-दो हजार यातरी िनतय आत ह। एक-एक सिठया दस-दस, बीस-बीस हजार की थली चढाता ह। इतना खिरचा करन पर भी करोडो रपय बक म जमा ह।

'दख कल कया बात होती ह?'

'मझ तो ऐसा जान पडता ह िक कल भी दसरयन न होग।'

दोनो आदिमयो न कछ रात रह ही उठकर सनान िकया और िदन िनकलन क पहल डयोढी पर जा पहच। मालम हआ, महनतजी पजा पर ह।

एक घटा बाद िफर गए, तो सचना िमली, महनतजी कलऊ पर ह।

जब वह तीसरी बार नौ बज गया, तो मालम हआ, महनतजी घोडो का मआइना कर रह ह। अनमर न झझलाकर दवारपाल स कहा-तो आिखिर हम कब दशरयन होग-

दवारपाल न पछा-तम कौन हो-

'म उनक इलाक क िवषय म कछ कहन आया ह।'

'तो कारकन क पास जाओ। इलाक का काम वही दखित ह।'

अनमर पछता हआ कारकन क दफतर म पहचा, तो बीसो मनीम लबी-लबी बही खिोल िलखि रह थ। कारकन महोदय मसनद लगाए हकका पी रह थ।

अनमर न सलाम िकया।

कारकन साहब न दाढी पर हाथ फरकर पछा-अनजी कहा ह-

अनमर न बगल झाककर कहा-अनजी तो म नही लाया।

'तो िफर यहा कया करन आए?'

205 www.hindustanbooks.com

'म तो शरीमान महनतजी स कछ अनजरय करन आया था।'

'अनजी िलखिकर लाओ।'

'म तो महनतजी स िमलना चाहता ह।'

'नजराना लाए हो?'

'म गरीब आदमी ह, नजराना कहा स लाऊ?'

'इसिलए कहता ह, अनजी िलखिकर लाओ। उस पर िवचार होगा। जो कछ हकम होगा, सना िदया जाएगा।'

'तो कब हकम सनाया जाएगा?'

'जब महनतजी की इचछा हो।'

'महनतजी को िकतना नजराना चािहए?'

'जसी शरधदा हो। कम-स-कम एक अनशफी।'

'कोई तारीखि बता दीिजए, तो म हकम सनन आऊ। यहा रोज कौन दौडगा?'

'तम दौडोग और कौन दौडगा- तारीखि नही बताई जा सकती।'

अनमर न बसती म जाकर िवसतार क साथ अनजी िलखिी और उस कारकन की सवा म पश कर िदया। िफर दोनो घर चल गए।

इनक आन की खिबर पात ही गाव क सकडो आदमी जमा हो गए। अनमर बड सकट म पडा। अनगर उनस सारा वततात कहता ह, तो लोग उसी को उलल बनाएग-इसिलए बात बनानी पडी-अनजी पश कर आया ह। उस पर िवचार हो रहा ह।

काशी न अनिवशवास क भाव स कहा-वहा महीनो म िवचार होगा, तब तक यहा कािरद हम नोच डालग।

अनमर न िखििसयाकर कहा-महीनो म कयो िवचार होगा- दो-चार िदन बहत ह।

पयाग बोला-यह सब टालन की बात ह। खिशी स कौन अनपन रपय छोड सकता ह।

अनमर रोज सबर जाता और घडी रात गए लौट आता। पर अनजी पर िवचार न होता था। कारकन, उनक महिररो, यहा तक की चपरािसयो की िमननत-समाजत करता पर कोई न सनता था। रात को वह िनराश होकर लौटता, तो गाव क लोग यहा उसका पिरहास करत।

पयाग कहता-हमन तो सना था िक रपय म आठ आन की छट हो गई।

काशी कहता-तम झठ हो। मन तो सना था, महनतजी न इस साल परी लगान माफ कर दी।

उधर आतमाननद हलक म बराबर जनता को भडका रह थ। रोज बडी-बडी िकसान-सभाआ की खिबर आती थी। जगह-जगह िकसान-सभाए बन रही थी। अनमर की पाठशाला भी बद पडी थी। उस फरसत ही न िमलती थी, पढाता कौन- रात को कवल मननी अनपनी कोमल सहानभित स उसक आस पोछती थी।

आिखिर सातव िदन उसकी अनजी पर हकम हआ िक सामन पश िकया जाय। अनमर महनत क सामन लाया

206 www.hindustanbooks.com

गया। दोपहर का समय था। महनतजी खिसखिान म एक तखत पर मसनद लगाए लट हए थ। चारो तरफ खिस की टिटटया थी, िजन पर गलाब का िछडकाव हो रहा था। िबजली क पख चल रह थ। अनदर इस जठ क महीन म इतनी ठडक थी िक अनमर को सदी लगन लगी।

महनतजी क मखिमडल पर दया झलक रही थी। हकक का एक कश खिीचकर मधर सवर म बोल-तम इलाक ही म रहत हो न- मझ यह सनकर बडा द:खि हआ िक मर अनसािमयो की इस समय कषटि ह। कया सचमच उनकी दशा यही ह, जो तमन अनजी म िलखिी ह-

अनमर न परोतसािहत होकर कहा-महाराज, उनकी दशा इसस कही खिराब ह िकतन ही घरो म चलहा नही जलता।

महनतजी न आख बद करक कहा-भगवान यह तमहारी कया लीला ह-तो तमन मझ पहल ही कयो न खिबर दी- म इस फसल की वसली रोक दता। भगवान क भडार म िकस चीज की कमी ह। म इस िवषय म बहत जलद सरकार स पतर वयवहार करगा और वहा स जो कछ जवाब आएगा, वह अनसािमयो को िभजवा दगा। तम उनस कहो, धयरय रख। भगवान यह तमहारी कया लीला ह ।

महनतजी न आखिो पर ऐनक लगा ली और दसरी अनिजया दखिन लग, तो अनमरकानत भी उठ खिडा हआ। चलत-चलत उसन पछा-अनगर शरीमान कािरदो को हकम द द िक इस वकत अनसािमयो को िदक न कर, तो बडी दया हो। िकसी क पास कछ नही ह, पर मार-गाली क भय स बचार घर की चीज बच-बचकर लगान चकात ह। िकतन ही तो इलाका छोड-छोडकर भाग जा रह ह।

महनतजी की मदरा कठोर हो गई-ऐसा नही होन पाएगा। मन कािरदो को कडी ताकीद कर दी ह िक िकसी अनसामी पर सखती न की जाय। म उन सबो स जवाब तलब करगा। म अनसािमयो का सताया जाना िबलकल पसद नही करता।

अनमर न झककर महनतजी को दडवत िकया और वहा स बाहर िनकला, तो उसकी बाछ िखिली जाती थी। वह जलद-स जलद इलाक म पहचकर यह खिबर सना दना चाहता था। ऐसा तज जा रहा था, मानो दौड रहा ह। बीच-बीच म दौड भी लगा लता था, पर सचत होकर रक जाता था। ल तो न थी पर धप बडी तज थी, दह फकी जाती थी, िफर भी वह भागा चला जाता था। अनब वह सवामी आतमाननद स पछगा, किहए, अनब तो आपको िवशवास आया न िक ससार म सभी सवाथी नही- कछ धामातमा भी ह, जो दसरो का द:खि-ददरय समझत ह- अनब उनक साथ क बिफकरो की खिबर भी लगा। अनगर उसक पर होत तो उड जाता।

सधया समय वह गाव म पहचा तो िकतन ही उतसक िकत अनिवशवास स भर नतरो न उसका सवागत िकया।

काशी बोला-आज तो बड परसनन हो भया, पाला मार आए कया-

अनमर न खिाट पर बठत हए अनकडकर कहा-जो िदल स काम करगा, वह पाला मारगा ही।

बहत स लोग पछन लग-भया, कया हकम हआ-

अनमर न डॉकटर की तरह मरीजो को तसलली दी-महनतजी को तम लोग वयथरय बदनाम कर रह थ। ऐसी सजजनता स िमल िक म कया कह- कहा-हम तो कछ मालम ही नही, पहल ही कयो न सचना दी, नही तो हमन वसली बद कर दी होती। अनब उनहोन सरकार को िलखिा ह। यहा कािरदो को भी वसली की मनाही हो जाएगी।

207 www.hindustanbooks.com

काशी न िखििसयाकर कहा-दखिो, कछ हो जाय तो जान।

अनमर न गवरय स कहा-अनगर धयरय स काम लोग, तो सब कछ हो जाएगा। हललड मचाओग, तो कछ न होगा, उलट और डड पडग।

सलोनी न कहा-जब मोट सवामी मान।

गदड न चौधरीपन की ली-मानग कस नही, उनको मानना पडगा।

एक काल यवक न, जो सवामीजी क उगर भकतो म था, लिजजत होकर कहा-भया, िजस लगन स तम काम करत हो, कोई कया करगा।

दसर िदन उसी कडाई स पयादो न डाट-फटकार की लिकन तीसर िदन स वह कछ नमरय हो गए। सार इलाक म खिबर फल गई िक महनतजी न आधी छट क िलए सरकार को िलखिा ह। सवामीजी िजस गाव म जात थ, वहा लोग उन पर आवाज कसत। सवामीजी अनपनी रट अनब भी लगाए जात थ। यह सब धोखिा ह, कछ होना-हवाना नही ह, उनह अनपनी बात की आ पडी थी-अनसािमयो की उनह इतनी िफकर न थी, िजतनी अनपन पकष की। अनगर आधी छट का हकम आ जाता, तो शायद वह यहा स भाग जात। इस वकत तो वह इस वाद को धोखिा सािबत करन की चषटिा करत थ, और यदयिप जनता उनक हाथ म न थी, पर कछ-न-कछ आदमी उनकी बात सन ही लत थ। हा, इस कान सनकर उस कान उडा दत।

िदन गजरन लग, मगर कोई हकम नही आया। िफर लोगो म सदह पदा होन लगा। जब दो सपताह िनकल गए, तो अनमर सदर गया और वहा सलीम क साथ हािकम िजला िम. गजनवी स िमला। िम. गजनवी लब, दबल, गोर शौकीन आदमी थ। उनकी नाक इतनी लबी और िचबक इतना गोल था िक हासय-मित लगत थ। और थ भी बड िवनोदी। काम उतना ही करत थ िजतना जररी होता था और िजसक न करन स जवाब तलब हो सकता था। लिकन िदल क साफ, उदार, परोपकारी आदमी थ। जब अनमर न गावो की हालत उनस बयान की, तो हसकर बोल-आपक महनतजी न फरमाया ह, सरकार िजतनी मालगजारी छोड द, म उतनी ही लगान छोड दगा। ह मिसफ िमजाज।

अनमर न शका की-तो इसम बइसाफी कया ह-

'बइसाफी यही ह िक उनक करोडो रपय बक म जमा ह, सरकार पर अनरबो कजरय ह।'

'तो आपन उनकी तजवीज पर कोई हकम िदया?'

'इतनी जलद भला छ: महीन तो गजरन दीिजए। अनभी हम काशतकारो की हालत की जाच करग, उसकी िरपोटरय भजी जाएगी, िफर िरपोटरय पर गौर िकया जाएगा, तब कही कोई हकम िनकलगा।'

'तब तक तो अनसािमयो क बार-नयार हो जाएग। अनजब नही िक फसाद शर हो जाए।'

'तो कया आप चाहत ह, सरकार अनपनी बजा छोड द- यह दफतरी हकमत ह जनाब वहा सभी काम जाबत क साथ होत ह। आप हम गािलया द, हम आपका कछ नही कर सकत। पिलस म िरपोटरय होगी। पिलस आपका चालान करगी। होगा वही, जो म चाहगा मगर जाबत क साथ। खिर, यह तो मजाक था। आपक दोसत िम. सलीम बहत जलद उस इलाक की तहकीकात करग, मगर दिखिए, झठी शहादत न पश कीिजएगा िक यहा स िनकाल जाए। िम. सलीम आपकी बडी तारीफ करत ह, मगर भाई, म तम लोगो स डरता ह। खिासकर तमहार सवामी स।

208 www.hindustanbooks.com

बडा ही मफिसद आदमी ह। उस फसा कयो नही दत- मन सना ह, वह तमह बदनाम करता िफरता ह।'

इतना बडा अनफसर अनमर स इतनी बतकललफी स बात कर रहा था, िफर उस कयो न नशा हो जाता- सचमच आतमाननद आग लगा रहा ह। अनगर वह िगरफतार हो जाए, तो इलाक म शाित हो जाए। सवामी साहसी ह, यथाथरय वकता ह, दश का सचचा सवक ह लिकन इस वकत उसका िगरफतार हो जाना ही अनचछा ह।

उसन कछ इस भाव स जवाब िदया िक उसक मनोभाव परकट न हो पर सवामी पर वार चल जाय-मझ तो उनस कोई िशकायत नही ह, उनह अनिखतयार ह, मझ िजतना चाह बदनाम कर।

गजनवी न सलीम स कहा-तम नोट कर लो िम. सलीम। कल इस हलक क थानदार को िलखि दो, इस सवामी की खिबर ल। बस, अनब सरकारी काम खितम। मन सना ह िम. अनमर िक आप औरतो को वश म करन का कोई मतर जानत ह।

अनमर न सलीम की गरदन पकडकर कहा-तमन मझ बदनाम िकया होगा।

सलीम बोला-तमह तमहारी हरकत बदनाम कर रही ह, म कयो करन लगा-

गजनवी न बाकपन क साथ कहा-तमहारी बीबी गजब की िदलर औरत ह, भई आजकल मयिनिसपिलटी स उनकी जोर-आजमाई ह और मझ यकीन ह, बोडरय को झकना पडगा। अनगर भाई, मरी बीबी ऐसी होती, तो म फकीर हो जाता। वललाह ।

अनमर न हसकर कहा-कयो आपको तो और खिश होना चािहए था।

गजनवी-जी हा वह तो जनाब का िदल ही जानता होगा।

सलीम-उनही क खिौफ स तो यह भाग हए ह।

गजनवी-यहा कोई जलसा करक उनह बलाना चािहए।

सलीम-कयो बठ-िबठाए जहमत मोल लीिजएगा। वह आइ और शहर म आग लगी, हम बगलो स िनकलना पडा ।

गजनवी-अनजी, यह तो एक िदन होना ही ह। वह अनमीरो की हकमत अनब थोड िदनो की महमान ह। इस मलक म अनगरजो का राज ह, इसिलए हमम जो अनमीर ह और जो कदरती तौर पर अनमीरो की तरफ खिड होत ह, वह भी गरीबो की तरफ खिड होन म खिश ह कयोिक गरीबो क साथ उनह कम-स-कम इजजत तो िमलगी, उधर तो यह डौल भी नही ह। म अनपन को इसी जहमत म समझता ह।

तीनो िमतरो म बडी रात तक बतकललफी स बात होती रही। सलीम न अनमर की पहल ही खिब तारीफ कर दी थी। इसिलए उसकी गवाई सरत होन पर भी गजनवी बराबरी क भाव स िमला। सलीम क िलए हकमत नई चीज थी। अनपन नए जत की तरह उस कीचड और पानी स बचाता था। गजनवी हकमत का आदी हो चका था और जानता था िक पाव नए जत स कही जयादा कीमती चीज ह। रमणी-चचा उसक कौतहल, आनद और मनोरजन का मखय िवषय थी। कवारो की रिसकता बहत धीर-धीर सखिन वाली वसत ह। उनकी अनतपत लालसा पराय: रिसकता क रप म परकट होती ह।

अनमर न गजनवी स पछा-आपन शादी कयो नही की- मर एक िमतर परोफसर डॉकटर शािनतकमार ह, वह भी

209 www.hindustanbooks.com

शादी नही करत। आप लोग औरतो स डरत होग।

गजनवी न कछ याद करक कहा-शािनतकमार वही तो ह, खिबसरत स, गोर-िचटट, गठ हए बदन क आदमी। अनजी, वह तो मर साथ पढता था यार। हम दोनो ऑकसफोडरय म थ। मन िलटरचर िलया था, उसन पोिलिटकल िफलॉसोफी ली थी। म उस खिब बनाया करता था, यिनविसटी म ह न- अनकसर उसकी याद आती थी।

सलीम न उसक इसतीफ, टरसट और नगर-कायरय का िजकर िकया।

गजनवी न गरदन िहलाई, मानो कोई रहसय पा गया ह-तो यह किहए, आप लोग उनक शािगदरय ह। हम दोनो म अनकसर शादी क मसल पर बात होती थी। मझ तो डॉकटरो न मना िकया था कयोिक उस वकत मझम टी . वी. की कछ अनलामत नजर आ रही थी। जवान बवा छोड जान क खियाल स मरी दह कापती थी। तब स मरी गजरान तीर-तकक पर ही ह। शािनतकमार को तो कौमी िखिदमत और जान कया-कया खिबत था मगर ताजजब यह ह िक अनभी तक उस खिबत न उसका गला नही छोडा। म समझता ह, अनब उसकी िहममत न पडती होगी। मर ही हमिसन तो थ। जरा उनका पता तो बताना- म उनह यहा आन की दावत दगा।

सलीम न िसर िहलाया-उनह फरसत कहा- मन बलाया था, नही आए।

गजनवी मसकराए-तमन िनज क तोर पर बलाया होगा। िकसी इिसटटयशन की तरफ स बलाओ और कछ चदा करा दन का वादा कर लो, िफर दखिो, चारो-हाथ पाव स दौड आत ह या नही। इन कौमी खिािदमो की जान चदा ह, ईमान चदा ह और शायद खिदा भी चदा ह। िजस दखिो, चद की हाय-हाय। मन कई बार इस खिािदमो को चरका िदया, उस वकत इन खिािदमो की सरत दखिन ही स ताललक रखिती ह। गािलया दत ह, पतर बदलत ह, जबान स तोप क गोल छोडत ह, और आप उनक बौखिलपन का मजा उठा रह ह। मन तो एक बार एक लीडर साहब को पागलखिान म बद कर िदया था। कहत ह अनपन को कौम का खिािदम और लीडर समझत ह।

सवर िम. गजनवी न अनमर को अनपनी मोटर पर गाव म पहचा िदया। अनमर क गवरय और आनद का पारावार न था। अनफसरो की सोहबत न कछ अनफसरी की शान पदा कर दी थी-हािकम परगना तमहारी हालत जाच करन आ रह ह। खिबरदार, कोई उनक सामन झठा बयान न द। जो कछ वह पछ, उसका ठीक-ठीक जवाब दो। न अनपनी दशा को िछपाओ, न बढाकर बताओ। तहकीकात सचची होनी चािहए। िम. सलीम बड नक और गरीब-दोसत आदमी ह। तहकीकात म दर जरर लगगी, लिकन राजय-वयवसथा म दर लगती ही ह। इतना बडा इलाका ह, महीनो घमन म लग जाएग। तब तक तम लोग खिरीफ का काम शर कर दो। रपय-आठ आन छट का म िजममा लता ह। सबर का फल मीठा होता ह, समझ लो।

सवामी आतमाननद को भी अनब िवशवास आ गया। उनहोन दखिा, अनकला ही सारा यश िलए जाता ह और मर पलल अनपयश क िसवा और कछ नही पडता, तो उनहोन पहल बदला। एक जलस म दोनो एक ही मच स बोल। सवामीजी झक, अनमर न कछ हाथ बढाया। िफर दोनो म सहयोग हो गया।

इधर अनसाढ की वषा शर हई उधर सलीम तहकीकात करन आ पहचा। दो-चार गावो म अनसािमयो क बयान िलख भी लिकन एक ही सपताह म ऊब गया। पहाडी डाक-बगल म भत की तरह अनकल पड रहना उसक िलए किठन तपसया थी। एक िदन बीमारी का बहाना करक भाग खिडा हआ और एक महीन तक टाल-मटोल करता रहा। आिखिर जब ऊपर स डाट पडी और गजनवी न सखत ताकीद की तो िफर चला। उस वकत सावन की झडी लग गई थी, नदी, नाल-भर गए थ, और कछ ठडक आ गई थी। पहािडयो पर हिरयाली छा गई थी। मोर

210 www.hindustanbooks.com

बोलन लग थ। पराकतितक शोभा न दहातो को चमका िदया था।

कई िदन क बाद आज बादल खिल थ। महनतजी न सरकारी फसल क आन तक रपय म चार आन की छट की घोषणा दी थी और कािरद बकाया वसल करन की िफर चषटिा करन लग थ। दो-चार अनसािमयो क साथ उनहोन सखती भी की थी। इस नई समसया पर िवचार करन क िलए आज गगा-तट पर एक िवराट सभा हो रही थी। भोला चौधरी सभापित बनाए गए और सवामी आतमाननद का भाषण हो रहा था-सजजनो, तम लोगो म ऐस बहत कम ह, िजनहोन आधा लगान न द िदया हो। अनभी तक तो आधो की िचता थी। अनब कवल आधो-क-आधो की रचता ह। तम लोग खिशी स दो-दो आन और द दो, सरकार महनतजी की मलागजारी म कछ-न-कछ छट अनवशय करगी। अनब की छ: आन छट पर सतषटि हो जाना चािहए। आग की फसल म अनगर अननाज का भाव यही रहा, तो हम आशा ह िक आठ आन की छट िमल जाएगी। यह मरा परसताव ह, आप लोग इस पर िवचार कर। मर िमतर अनमरकानत की भी यही राय ह। अनगर आप लोग कोई और परसताव करना चाहत ह तो हम उस पर िवचार करन को भी तयार ह।

इसी वकत डािकय न सभा म आकर अनमरकानत क हाथ म एक िलफाफा रखि िदया। पत की िलखिावट न बता िदया िक नना का पतर ह। पढत ही जस उस पर नशा छा गया। मखि पर ऐसा तज आ गया, जस अनिगन म आहित पड गई हो। गवरय भरी आखिो स इधर-उधर दखिा। मन क भाव जस छलाग मारन लग। सखिदा की िगरफतारी और जल-यातरा का वततात था। आह वह जल गई और वह यहा पडा हआ ह उस बाहर रहन का कया अनिधकार ह वह कोमलागी जल म ह, जो कडी दिषटि भी न सह सकती थी, िजस रशमी वसतर भी चभत थ, मखिमली गदव भी गडत थ, वह आज जल की यातना सह रही ह। वह आदशरय नारी, वह दश की लाज रखिन वाली, वह कल लकषमी, आज जल म ह। अनमर क हदय का सारा रकत सखिदा क चरणो पर िगरकर बह जान क िलए मचल उठा। सखिदा सखिदा चारो ओर वही मित थी। सधया की लािलमा स रिजत गगा की लहरो पर बठी हई कौन चली जा रही ह- सखिदा ऊपर अनसीम आकाश म कसिरया साडी पहन कौन उठी जा रही ह- सखिदा सामन की शयाम पवरयतमाला म गोधिल का हार गल म डाल कौन खिडी ह- सखिदा अनमर िविकषपतो की भाित कई कदम आग दौडा, मानो उसकी पद-रज मसतक पर लगा लना चाहता हो।

सभा म कौन कया बोला, इसकी उस खिबर नही। वह खिद कया बोला, इसकी भी उस खिबर नही। जब लोग अनपन-अनपन गावो को लौट तो चनदरमा का परकाश फल गया था। अनमरकानत का अनत:करण कततजञता स पिरपणरय था। जस अनपन ऊपर िकसी की रकषा का साया उसी जयोतसना की भाित फला हआ जान पडा। उस परतीत हआ, जस उसक जीवन म कोई िवधन ह, कोई आदश ह, कोई आशीवाद ह, कोई सतय ह, और वह पग-पग पर उस सभालता ह, बचाता ह। एक महान इचछा, एक महान चतना क ससगरय का आज उस पहली बार अननभव हआ।

सहसा मननी न पकारा-लाला, आज तो तमन आग ही लगा दी।

अनमर न चौककर कहा-मन ।

तब उस अनपन भाषण का एक-एक शबद याद आ गया। उसन मननी का हाथ पकड कर कहा-हा मननी, अनब हम वही करना पडगा, जो मन कहा। जब तक हम लगान दना बद न करग। सरकार यो ही टालती रहगी।

मननी सशक होकर बोली-आग म कद रह हो, और कया-

अनमर न ठटठा मारकर कहा-आग म कदन स सवगरय िमलगा। दसरा मागरय नही ह।

211 www.hindustanbooks.com

मननी चिकत होकर उसका मह दखिन लगी। इस कथन म हसन का कयापरयोजन वह समझ न सकी।

212 www.hindustanbooks.com

छःसलीम यहा स कोई सात-आठ मील पर डाकबगल म पडा हआ था। हलक क थानदार न रात ही को उस

इस सभा की खिबर दी और अनमरकानत का भाषण भी पढ सनाया। उस इन सभाआ की िरपोटरय करत रहन की ताकीद दी गई थी ।

सलीम को बडा आशचियरय हआ। अनभी एक िदन पहल अनमर उसस िमला था, और यदयिप उसन महनत की इस नई काररयवाई का िवरोध िकया था। पर उसक िवरोध म कवल खद था, करोध का नाम भी न था। आज एकाएक यह पिरवतरयन कस हो गया-

उसन थानदार स पछा-महनतजी की तरफ स कोई खिास जयादती तो नही हई-

थानदार न जस इस शका को जड स काटन क िलए ततपर होकर कहा-िबलकल नही, हजर उनहोन तो सखत ताकीद कर दी थी िक अनसािमयो पर िकसी िकसम का जलम न िकया जाय। बचार न अनपनी तरफ स चार आन की छट द दी, गाली-गपता तो मामली बात ह।

'जलस पर इस तकरीर का कया अनसर हआ?'

'हजर, यही समझ लीिजए, जस पआल म आग लग जाय। महनतजी क इलाक म बडी मिशकल स लगान वसल होगा।'

सलीम न आकाश की तरफ दखिकर पछा-आप इस वकत मर साथ सदर चलन को तयार ह-

थानदार को कया उज हो सकता था। सलीम क जी म एक बार आया िक जरा अनमर स िमल लिकन िफर सोचा, अनमर उसक समझान स मानन वाला होता, तो यह आग ही कयो लगाता-

सहसा थानदार न पछा-हजर स तो इनकी जान-पहचान ह-

सलीम न िचढकर कहा-यह आपस िकसन कहा- मरी सकडो स जान-पहचान ह, तो िफर - अनगर मरा लडका भी कानन क िखिलाफ काम कर, तो मझ उसकी तबीह करनी पडगी।

थानदार न खिशामद की-मरा यह मतलब नही था। हजर हजर स जान-पहचान होन पर भी उनहोन हजर को बदनाम करन म ताममल न िकया, मरी यही मशा थी।

सलीम न कछ जवाब तो न िदया पर यह उस मआमल का नया पहल था। अनमर को उसक इलाक म यह तफान न उठाना चािहए था, आिखिर अनफसरान यही तो समझग िक यह नया आदमी ह, अनपन इलाक पर इसका रोब नही ह।

बादल िफर िघरा आता था। रासता भी खिराब था। उस पर अनधरी रात, निदयो का उतार मगर उसका गजनवी स िमलना जररी था। कोई तजबरजकार अनफसर इस कदर बदहवास न होता पर सलीम नया आदमी था।

दोनो आदमी रात-भर की हरानी क बाद सवर सदर पहच। आज िमया सलीम को आट-दाल का भाव मालम हआ। यहा कवल हकमत नही ह, हरानी और जोिखिम भी ह, इसका अननभव हआ। जब पानी का झोका आता, या कोई नाला सामन आ पडता, तो वह इसतीफा दन की ठान लता-यह नौकरी ह या बला ह मज स िजदगी गजरती थी। यहा कततो-खिसी म आ फसा। लानत ह ऐसी नौकरी पर कही मोटर खिडड म जा पड, तो

213 www.hindustanbooks.com

हिडडयो का भी पता न लग। नई मोटर चौपट हो गई।

बगल पर पहचकर उसन कपड बदल, नाशता िकया और आठ बज गजनवी क पास जा पहचा। थानदार कोतवाली म ठहरा था। उसी वकत वह भी हािजर हआ।

गजनवी न वततात सनकर कहा-अनमरकानत कछ दीवाना तो नही हो गया ह। बातचीत स बडा शरीफ मालम होता था मगर लीडरी भी मसीबत ह बचारा कस नाम पदा कर। शायद हजरत समझ होग, यह लोग तो दोसत हो ही गए, अनब कया िफकर। 'सया भए कोतवाल अनब डर काह का।' और िजलो म भी तो शोिरश ह। ममिकन ह, वहा स ताकीद हई हो। सझी ह इन सभी को दर की और हक यह ह िक िकसानो की हालत नाजक ह। यो भी बचारो को पट भर दाना न िमलता था, अनब तो िजस और भी ससती हो गइ। परा लगान कहा, आधो की भी गजाइश नही ह, मगर सरकार का इतजाम तो होना ही चािहए हकमत म कछ-कछ खिौफ और रोब का होना भी जररी ह, नही उसकी सनगा कौन- िकसानो को आज यकीन हो जाय िक आधा लगान दकर उनकी जान बच सकती ह, तो कल वह चौथाई पर लडग और परसो परी मआफी का मतालवा करग। म तो समझता ह, आप जाकर लाला अनमरकानत को िगरफतार कर ल। एक बार कछ हलचल मचगा, ममिकन ह, दो-चार गावो म फसाद भी हो मगर खिल हए फसाद को रोकना उतना मिशकल नही ह, िजतना इस हवा को। मवाद जब फोड की सरत म आ जाता ह, तो उस चीरकर िनकाल िदया जा सकता ह लिकन वही िदल, िदमाफ की तरफ चला जाय, तो िजदगी का खिातमा हो जाएगा। आप अनपन साथ सपिरटडट पिलस को भी ल ल और अनमर को दगा एक सौ चौबीस म िगरफतार कर ल। उस सवामी को भी लीिजए। दारोगाजी, आप जाकर साहब बहादर स किहए, तयार रह।

सलीम न वयिथत कठ स कहा-म जानता िक यहा आत-ही-आत इस अनजाब म जान फसगी, तो िकसी और िजल की कोिशश करता। कया अनब मरा तबादला नही हो सकता-

थानदार न पछा-हजर, कोई खित न दग-

गजनवी न डाट बताई-खित की जररत नही ह। कया तम इतना भी नही कह सकत-

थानदार सलाम करक चला गया, तो सलीम न कहा-आपन इस बरी तरह डाटा, बचारा रआसा हो गया। आदमी अनचछा ह।

गजनवी न मसकराकर कहा-जी हा, बहत अनचछा आदमी ह। रसद खिब पहचाता होगा मगर िरआया स उसकी दस गनी वसल करता ह। जहा िकसी मातहत न जररत स जयादा िखिदमत और खिशामद की, म समझ जाता ह िक यह छटा हआ गगा ह। आपकी िलयाकत का यह हाल ह िक इलाक म सदा ही वारदात होती ह , एक का भी पता नही चलता। इस झठी शहादत बनाना भी नही आता। बस, खिशामद की रोिटया खिाता ह। अनगर सरकार पिलस का सधार कर सक, तो सवराजय की माग पचास साल क िलए टल सकती ह। आज कोई शरीफ आदमी पिलस स सरोकार नही रखिना चाहता। थान को बदमाशो का अनडडा समझकर उधर स मह फर लता ह। यह सीफा इस राज का कलक ह। अनगर आपको दोसत को िगरफतार करन म तकललफ हो, तो म डी. एस. पी. को ही भज द। उनह िगरफतार करना फजरय हो गया ह। अनगर आप यह नही चाहत िक उनकी िजललत हो , तो आप जाइए। अनपनी दोसती का हक अनदा करन ही क िलए जाइए। म जानता ह, आपको सदमा हो रहा ह। मझ खिद रज ह। उस थोडी दर की मलाकात म ही मर िदल पर उनका िसकका जम गया। म उनक नक इरादो की कदर करता ह लिकन हम और वह दो कपो म ह। सवराजय हम भी चाहत ह मगर इनकलाब क िसवा हमार िलए दसरा रासता

214 www.hindustanbooks.com

नही ह। इतनी फौज रखिन की कया जररत ह, जो सरकार की आमदनी का आधा हजम कर जाय। फौज का खिचरय आधा कर िदया जाय, तो िकसानो का लगान बडी आसानी स आधा हो सकता ह। मझ अनगर सवराजय स कोई खिौफ ह तो यह िक मसलमानो की हालत कही और खिराब न हो जाय। गलत तवारीख पढ-पढकर दोनो िफरक एक-दसर क दशमन हो गए ह और ममिकन नही िक िहनद मौका पाकर मसलमानो स फजी अनदावतो का बदला न ल लिकन इस खियाल स तसलली होती ह िक इस बीसवी सदी म िहनदआ जसी पढी-िलखिी जमाअनत मजहबी गरोहबदी की पनाह नही ल सकती। मजहब का दौर खितम हो रहा ह बिलक यो कहो िक खितम हो गया। िसफरक िहनदसतान म उसम कछ-कछ जान बाकी ह। यह तो दौलत का जमाना ह। अनब कौम म अनमीर और गरीब, जायदाद वाल और मरभख, अनपनी-अनपनी जमाअनत बनाएग। उसम कही जयादा खिरजी होगी, कही जयादा तगिदली होगी। आिखिर एक-दो सदी क बाद दिनया म एक सलतनत हो जाएगी। सबका एक कानन, एक िनजाम होगा, कौम क खिािदम कौम पर हकमत करग, मजहब शखसी चीज होगी। न कोई राजा होगा, न कोई परजा।

फौन की घटी बजी, गजनवी न चोगा कान स लगाया-िम. सलीम कब चलग-

गजनवी न पछा-आप कब तक तयार होग-

'म तयार ह।'

'तो एक घट म आ जाइए।'

सलीम न लबी सास खिीचकर कहा-तो मझ जाना ही पडगा-

'बशक म आपक और अनपन दोसत को पिलस क हाथ म नही दना चाहता।'

'िकसी हील म अनमर को यही बला कयो न िलया जाय?'

'वह इस वकत नही आएग।'

सलीम न सोचा, अनपन शहर म जब यह खिबर पहचगी िक मन अनमर को िगरफतार िकया, तो मझ पर िकतन जत पडग शािनतकमार तो नोच ही खिाएग और सकीना तो शायद मरा मह दखिना भी पसद न कर। इस खियाल स वह काप उठा। सोन की हिसया न उगलत बनती थी, न िनगलत।

उसन उठकर कहा-आप डी. एस. पी. को भज द। म नही जाना चाहता।

गजनवी न गभीर होकर पछा-आप चाहत ह िक उनह वही स हथकिडया पहनाकर और कमर म रससी डालकर चार कासटबलो क साथ लाया जाय और जब पिलस उनह लकर चल, उस भीड को हटान क िलए गोिलया चलानी पड-

सलीम न घबराकर कहा-कया डी. एस. पी. को इन सिखतयो स रोका नही जा सकता-

'अनमरकानत आपक दोसत ह, डी. एस. पी. क दोसत नही।'

'तो िफर आप डी. एस. पी. को मर साथ न भज।'

'आप अनमर को यहा ला सकत ह?'

'दगा करनी पडगी।'

'अनचछी बात ह, आप जाइए, म डी. एस. पी. को मना िकए दता ह।'

215 www.hindustanbooks.com

'म वहा कछ कहगा ही नही।'

'इसका आपको अनिखतयार ह।'

सलीम अनपन डर पर लौटा तो ऐसा रजीदा था, गोया अनपना कोई अनजीज मर गया हो। आत-ही-आत सकीना, शािनतकमार, लाला समरकानत, नना, सबो को एक-एक खितिलखिकर अनपनी मजबरी और द:खि परकट िकया। सकीना को उसन िलखिा-मर िदल पर इस वकत जो गजर रही ह वह म तमस बयान नही कर सकता। शायद अनपन िजगर पर खिजर चलात हए भी मझ इसस जयादा ददरय न होता। िजसकी महबबत मझ यहा खिीच लाई, उसी को आज म इन जािलम हाथो स िगरफतार करन जा रहा ह। सकीना, खिदा क िलए मझ कमीना, बददरय और खिदगरज न समझो। खिन क आस रो रहा ह। िजस अनपन आचल स पोछ दो। मझ पर अनमर क इतन एहसान ह िक मझ उनक पसीन की जगह अनपना खिन बहाना चािहए था और म उनक खिन का मजा ल रहा ह। मर गल म िशकारी का खिौफ ह और उसक इशार पर वह सब कछ करन पर मजबर ह, जो मझ न करना लािजम था। मझ पर रहम करो सकीना, म बदनसीब ह।

खिानसाम न आकर कहा-हजर, खिाना तयार ह।

सलीम न िसर झकाए हए कहा-मझ भखि नही ह।

खिानसामा पछना चाहता था हजर की तबीयत कसी ह- मज पर कई िलख खित दखिकर डर रहा था िक घर स कोई बरी खिबर तो नही आई।

सलीम न िसर उठाया और हसरत-भर सवर म बोला-उस िदन वह मर एक दोसत नही आए थ, वही दहाितयो की-सी सरत बनाए हए, वह मर बचपन क साथी ह। हम दोनो एक ही कॉलज म पढ। घर क लखिपती आदमी ह। बाप ह, बाल-बचच ह। इतन लायक ह िक मझ उनहोन पढाया। चाहत, तो िकसी अनचछ ओहद पर होत। िफर घर म ही िकस बात की कमी ह, मगर गरीबो का इतना ददरय ह िक घर-बार छोडकर यही एक गाव म िकसानो की िखिदमत कर रह ह। उनही को िगरफतार करन का मझ हकम हआ ह।

खिानसामा और समीप आकर जमीन पर बठ गया-कया कसर िकया था हजर, उन बाब साहब न-

'कसर- कोई कसर नही, यही िक िकसानो की मसीबत उनस नही दखिी जाती।'

'हजर न बड साहब को समझाया नही?'

'मर िदल पर इस वकत जो कछ गजर रही ह, वह म ही जानता ह हनीफ, आदमी नही फिरशता ह। यह ह सरकारी नौकरी।'

'तो हजर को जाना पडगा?'

'हा, इसी वकत इस तरह दोसती का हक अनदा िकया जाता ह ।'

'तो उन बाब साहब को नजरबद िकया जाएगा, हजर?'

'खिदा जान कया िकया जाएगा- डराईवर स कहो, मोटर लाए। शाम तक लौट आना जररी ह।'

जरा दर म मोटर आ गई। सलीम उसम आकर बठा, तो उसकी आख सजल थी।

216 www.hindustanbooks.com

सातआज कई िदन क बाद तीसर पहर सयरयदव न पथवी की पकार सनी और जस समािध स िनकलकर उस

आशीवाद द रह थ। पथवी मानो अनचल फलाए उनका आशीवाद बटोर रही थी।

इसी वकत सवामी आतमाननद और अनमरकानत दोनो दो िदशाआ स मदरस म आए।

अनमरकानत न माथ स पसीना पोछत हए कहा-हम लोगो न िकतना अनचछा परोगराम बनाया था िक एक साथ लौट। एक कषण भी िवलब न हआ। कछ खिा-पीकर िफर िनकल और आठ बजत-बजत लौट आए।

आतमाननद न भिम पर लटकर कहा-भया, अनभी तो मझस एक पग न चला जाएगा। हा, पराण लना चाहो, तो ल लो। भागत-भागत कचमर िनकल गया। पहल शबरयत बनवाओ, पीकर ठड हो, तो आख खिल।

'तो िफर आज का काम समापत हो चका?'

'हो या भाड म जाय, कया पराण द द- तमस हो सकता ह करो, मझस तो नही हो सकता।'

अनमर न मसकराकर कहा-यार मझस दन तो हो, िफर भी च बोल गए। मझ अनपना बल और अनपना पाचन द दो, िफर दखिो, म कया करता ह-

आतमाननद न सोचा था, उनकी पीठ ठोकी जाएगी, यहा उनक पौरष पर आकषप हआ। बोल-तम मरना चाहत हो, म जीना चाहता ह।

'जीन का उददशय तो कमरय ह।'

'हा, मर जीवन का उददशय कमरय ही ह। तमहार जीवन का उददशय तो अनकाल मतय ह।'

'अनचछा शबरयत िपलवाता ह, उसम दही भी डलवा द?'

'हा, दही की मातरा अनिधक हो और दो लोट स कम न हो। इसक दो घट बाद भोजन चािहए।'

'मार डाला तब तक तो िदन ही गायब हो जाएगा।'

अनमर न मननी को बलाकर शबरयत बनान को कहा और सवामीजी क बराबर ही जमीन पर लटकर पछा-इलाक की कया हालत ह-

'मझ तो भय हो रहा ह, िक लोग धोखिा दग। बदखिली शर हई, तो बहतो क आसन डोल जाएग ।'

'तम तो दाशरयिनक न थ, यह घी पततो पर या पतता घी पर की शका कहा स लाए?'

'ऐसा काम ही कयो िकया जाय, िजसका अनत लजजा और अनपमान हो- म तमस सतय कहता ह, मझ बडी िनराशा हई।'

'इसका अनथरय यह ह िक आप इस आदोलन क नायक बनन क योगय नही ह। नता म आतमिवशवास, साहस और धयरय, य मखय लकषण ह।'

मननी शबरयत बनाकर लाई। आतमाननद न कमडल भर िलया और एक सास म चढा गए। अनमरकानत एक कटोर स जयादा न पी सक।

217 www.hindustanbooks.com

आतमाननद न मह िछपाकर कहा-बस िफर भी आप अनपन को मनषय कहत ह-

अनमर न जवाब िदया-बहत खिाना पशआ का काम ह।

'जो खिा नही सकता वह काम कया करगा?'

'नही, जो कम खिाता ह, वही काम कर सकता ह। पट क िलए सबस बडा काम भोजन पचाना ह।'

सलोनी कल स बीमार थी। अनमर उस दखिन चला था िक मदरस क सामन ही मोटर आत दखिकर रक गया। शायद इस गाव म मोटर पहली बार आई हो। वह सोच रहा था, िकसकी मोटर ह िक सलीम उसम स उतर पडा। अनमर न लपककर हाथ िमलाया-कोई जररी काम था, मझ कयो न बला िलया-

दोनो आदमी मदरस म आए। अनमर न एक खिाट लाकर डाल दी और बोला-तमहारी कया खिाितर कर- यहा तो कमडल की हालत ह। शबरयत बनवाऊ-

सलीम न िसगार जलात हए कहा-नही, कोई तकललफ नही। िम. गजनवी तमस िकसी मआमल म सलाह करना चाहत ह। म आज ही जा रहा ह। सोचा, तमह भी लता चल। तमन तो कल आग लगा ही दी। अनब तहकीकात स कया फायदा होगा- वह तो बकार हो गई।

अनमर न कछ िझझकत हए कहा-महनतजी न मजबर कर िदया। कया करता-

सलीम न दोसती की आड ली-मगर इतना तो सोचत िक यह मरा इलाका ह और यहा की सारी िजममदारी मझ पर ह। मन सडक क िकनार अनकसर गावो मन लोगो क जमाव दख। कही-कही तो मरी मोटर पर पतथर भी फक गए। यह अनचछ आसार नही ह। मझ खिौफ ह, कोई हगामा न हो जाय। अनपन हक क िलए या बजा जलम क िखिलाफ िरआया म जोश हो, तो म इस बरा नही समझता, लिकन यह लोग कायद-कानन क अनदर रहग, मझ इसम शक ह। तमन गगो को आवाज दी, सोतो को जगाया लिकन ऐसी तहरीक क िलए िजतन जबत और सबर की जररत ह, उसका दसवा भी िहससा मझ नजर नही आता।

अनमर को इस कथन म शासन-पकष की गध आई। बोला-तमह यकीन ह िक तम भी वह गलती नही कर रह, जो हककम िकया करत ह- िजनकी िजदगी आराम और फरागत स गजर रही ह, उनक िलए सबर और जबत की हाक लगाना आसान ह लिकन िजनकी िजदगी का हरक िदन एक नई मसीबत ह, वह नजात को अनपनी जनवासी चाल स आन का इतजार नही कर सकत। यह उस खिीच लाना चाहत ह, और जलद-स-जलद।

'मगर नजात क पहल कयामत आएगी, यह भी याद रह।'

'हमार िलए यह अनधर ही कयामत ह जब पदावार लागत स भी कम हो, तो लगान की गजाइश कहा - उस पर भी हम आठ आन पर राजी थ। मगर बारह आन हम िकसी तरह नही द सकत। आिखिर सरकार िकफायत कयो नही करती- पिलस और फौज और इतजाम पर कयो इतनी बददी स रपय उडाए जात ह- िकसान गग ह, बबस ह, कमजोर ह। कया इसिलए सारा नजला उनही पर िगरना चािहए?'

सलीम न अनिधकार-गवरय स कहा-तो नतीजा कया होगा, जानत हो- गाव-क-गाव बबाद हो जाएग, फौजी कानन जारी हो जाएगा, शायद पिलस बठा दी जाएगी, फसल नीलाम कर दी जाएगी, जमीन जबत हो जाएगी। कयामत का सामना होगा?'

अनमरकानत न अनिवचिलत भाव स कहा-जो कछ भी हो, मर-िमटना जलम क सामन िसर झकान स अनचछा

218 www.hindustanbooks.com

ह।

मदरस क सामन हजम बढता जाता था-सलीम न िववाद का अनत करन क िलए कहा-चलो इस मआमल पर रासत म बहस करग। दर हो रही ह।

अनमर न चटपट करता गल म डाला और आतमाननद स दो-चार जररी बात करक आ गया। दोनो आदमी आकर मोटर पर बठ। मोटर चली, तो सलीम की आखिो म आस डबडबाए हए थ। अनमर न सशक होकर पछा-मर साथ दगा तो नही कर रह हो-

सलीम अनमर क गल िलपटकर बोला-इसक िसवा और दसरा रासता न था। म नही चाहता था िक तमह पिलस क हाथो जलील िकया जाय।

'तो जरा ठहरो, म अनपनी कछ जररी चीज तो ल ल।'

'हा-हा, ल लो, लिकन राज खिल गया, तो यहा मरी लाश नजर आएगी।'

'तो चलो कोई मजायका नही।'

गाव क बाहर िनकल ही थ िक मननी आती हई िदखिाई दी। अनमर न मोटर रकवाकर पछा-तम कहा गई थी, मननी- धाोबी स मर कपड लकर रखि लना, सलोनी काकी क िलए मरी कोठरी म ताक पर दवा रखिी ह। िपला दना।

मननी न सहमी हई आखिो स दखिकर कहा-तम कहा जात हो-

'एक दोसत क यहा दावत खिान जा रहा ह।'

मोटर चली। मननी न पछा-कब तक आओग-

अनमर न िसर िनकालकर उसस दोनो हाथ जोडकर कहा-जब भागय लाए।

219 www.hindustanbooks.com

आठसाथ क पढ, साथ क खल, दो अनिभनन िमतर, िजनम धौल-धापपा, हसी-मजाक सब कछ होता रहता था,

पिरिसथितयो क चककर म पडकर दो अनलग रासतो पर जा रह थ। लकषय दोनो का एक था, उददशय एक दोनो ही दश-भकत, दोनो ही िकसानो क शभचछ पर एक अनफसर था, दसरा कदी। दोनो सट हए बठ थ, पर जस बीच म कोई दीवार खिडी हो। अनमर परसनन था, मानो शहादत क जीन पर चढ रहा हो। सलीम द:खिी था जस भरी सभा म अनपनी जगह स उठा िदया गया हो। िवकास क िसधदात का खिली सभा म समथरयन करक उसकी आतमा िवजयी होती। िनरकशता की शरण लकर वह जस कोठरी म िछपा बठा था।

सहसा सलीम न मसकरान की चषटिा करक कहा-कयो अनमर, मझस खिगा हो-

अनमर न परसनन मखि स कहा-िबलकल नही। म तमह अनपना वही पराना दोसत समझ रहा ह। उसलो की लडाई हमशा होती रही ह और होती रहगी। दोसती म इसस फकरक नही आता।

सलीम न अनपनी सफाई दी-भाई, इसान-इसान ह, दो मखिािलग िगरोहो म आकर िदल म कीना या मलाल पदा हो जाय, तो ताजजब नही। पहल डी. एस. पी. को भजन की सलाह थी पर मन इस मनािसब न समझा।

'इसक िलए म तमहारा बडा एहसानमद ह। मर ऊपर मकदमा चलाया जाएगा?'

'हा, तमहारी तकरीरो की िरपोटरय मौजद ह, और शहादत भी जमा हो गई ह। तमहारा कया खियाल ह, तमहारी िगरफतारी स यह शोिरश दब जाएगी या नही?'

'कछ कह नही सकता। अनगर मरी िगरफतारी या सजा स दब जाय, तो इसका दब जाना ही अनचछा।'

उसन एक कषण क बाद िफर कहा-िरआया को मालम ह िक उनक कया-कया हक ह, यह मालम ह िक हको की िहफाजत क िलए करबािनया करनी पडती ह। मरा फजरय यही तक खितम हो गया। अनब वह जान और उनका काम जान। ममिकन ह, सिखतयो स दब जाए, ममिकन ह, न दब लिकन दब या उठ, उनह चोट जरर लगी ह। िरआया का दब जाना, िकसी सरकार की कामयाबी की दलील नही ह।

मोटर क जात ही सतय मननी क सामन चमक उठा। वह आवश म िचलला उठी-लाला पकड गए और उसी आवश म मोटर क पीछ दौडी। िचललाती जाती थी-लाला पकड गए।

वषाकाल म िकसानो को हार म बहत काम नही होता। अनिधकतर लोग घरो म होत ह। मननी की आवाज मानो खितर का िबगल थी। दम-क-दम म सार गाव म यह आवाज गज उठी-भया पकड गए

िसतरया घरो म स िनकल पडी-भया पकड गए ।

कषण मातर म सारा गाव जमा हो गया और सडक की तरफ दौडा। मोटर घमकर सडक स जा रही थी। पगडिडयो का एक सीधा रासता था। लोगो न अननमान िकया, अनभी इस रासत मोटर पकडी जा सकती ह। सब उसी रासत दौड।

काशी बोला-मरना तो एक िदन ह ही।

मननी न कहा-पकडना ह, तो सबको पकड। ल चल सबको।

पयाग बोला-सरकार का काम ह चोर-बदमाशो को पकडना या ऐसो को जो दसरो क िलए जान लडा रह

220 www.hindustanbooks.com

ह- वह दखिो मोटर आ रही ह। बस, सब रासत म खिड हो जाओ। कोई न हटना, िचललान दो।

सलीम मोटर रोकता हआ बोला-अनब कहो भाई। िनकाल िपसतौल-

अनमर न उसका हाथ पकडकर कहा-नही-नही, म इनह समझाए दता ह।

'मझ पिलस क दो-चार आदिमयो को साथ ल लना था।'

'घबराओ मत, पहल म मरगा, िफर तमहार ऊपर कोई हाथ उठाएगा।'

अनमर न तरत मोटर स िसर िनकालकर कहा-बहनो और भाइयो, अनब मझ िबदा कीिजए। आप लोगो क सतसग म मझ िजतना सनह और सखि िमला, उस म कभी भल नही सकता। म परदशी मसािफर था। आपन मझ सथान िदया, आदर िदया, परम िदया मझस भी जो कछ सवा हो सकी, वह मन की। अनगर मझस कछ भल-चक हई हो, तो कषमा करना। िजस काम का बीडा उठाया ह, उस छोडना मत, यही मरी याचना ह। सब काम जयो-का-तयो होता रह, यही सबस बडा उपहार ह, जो आप मझ द सकत ह। पयार बालको, म जा रहा ह लिकन मरा आशीवाद सदव तमहार साथ रहगा।

काशी न कहा-भया, हम सब तमहार साथ चलन को तयार ह।

अनमर न मसकराकर उततर िदया-नवता तो मझ िमला ह, तम लोग कस जाओग-

िकसी क पास इसका जवाब न था। भया बात ही ऐसी करत ह िक िकसी स उसका जवाब नही बन पडता।

मननी सबस पीछ खिडी थी, उसकी आख सजल थी। इस दशा म अनमर क सामन कस जाए- हदय म िजस दीपक को जलाए, वह अनपन अनधर जीवन म परकाश का सवपन दखि रही थी, वह दीपक कोई उसक हदय स िनकाल िलए जाता ह। वह सना अनधकार कया िफर वह सह सकगी ।

सहसा उसन उततोिजत होकर कहा-इतन जन खिड ताकत कया हो उतार लो मोटर स जन-समह म एक हलचल मची। एक न दसर की ओर किदयो की तरह दखिा कोई बोला नही।

मननी न िफर ललकारा-खिड ताकत कया हो, तम लोगो म कछ दया ह या नही जब पिलस और फौज इलाक को खिन स रग द, तभी...

अनमर न मोटर स िनकलकर कहा-मननी, तम बिदधिमती होकर ऐसी बात कर रही हो मर मह पर कािलखि मत लगाओ।

मननी उनमकतो की भाित बोली-म बिदधिमान नही, म तो मरखि ह, गवािरन ह। आदमी एक-एक पतती क िलए िसर कटा दता ह, एक-एक बात पर जान दता ह। कया हम लोग खिड ताकत रह और तमह कोई पकड ल जाए- तमन कोई चोरी की ह डाका मारा ह?

कई आदमी उततोिजत होकर मोटर की ओर बढ पर अनमरकानत की डाट सनकर िठठक गए-कया करत हो पीछ हट जाओ। अनगर मर इतन िदनो की सवा और िशकषा का यही फल ह, तो म कहगा िक मरा सारा पिरशरम धल म िमल गया। यह हमारा धमरययदधि ह अनौर हमारी जीत, हमार तयाग, हमार बिलदान और हमार सतय पर ह।

जाद का सा अनसर हअना। लोग रासत स हट गय। अनमर मोटर म बठ गया और मोटर चली।

मननी न आखिो म कषोभ और करोध क आस भर कर अनमरकात को परणाम िकया। मोटर क साथ जस हदय भी

221 www.hindustanbooks.com

हवा म उडा जाता हो।

222 www.hindustanbooks.com

पाचवा भागलखिनऊ का सटल जल शहर स बाहर खिली हई जगह म ह। सखिदा उसी जल क जनान वाडरय म एक वकष क

नीच खिडी बादलो की घडदौड दखि रही ह। बरसात बीत गई ह। आकाश म बडी धम स घर-घार होता ह पर छीट पडकर रह जात ह। दानी क िदल म अनब भी दया ह पर हाथ खिाली ह। जो कछ था, लटा चका।

जब कोई अनदर आता ह और सदर दवार खिलता ह, तो सखिदा दवार क सामन आकर खिडी हो जाती ह। दवार एक ही कषण म बद हो जाता ह पर बाहर क ससार की उसी एक झलक क िलए वह कई-कई घट उस वकष क नीच खिडी रहती ह, जो दवार क सामन ह। उस मील-भर की चार-दीवारी क अनदर जस दम घटता ह। उस यहा आए अनभी पर दो महीन भी नही हए, पर ऐसा जान पडता ह, दिनया म न जान कया-कया पिरवतरयन हो गए। पिथको को राह चलत दखिन म भी अनब एक िविचतर आनद था। बाहर का ससार कभी इतना मोहक नथा।

वह कभी-कभी सोचती ह-उसन सफाई दी होती, तो शायद बरी हो जाती पर कया मालम था, िचतत की यह दशा होगी। व भावनाए, जो कभी भलकर मन म न आती थी, अनब िकसी रोगी की कपथय-चषटिाआ की भाित मन को उिदवगन करती रहती थी। झला झलन की उस कभी इचछा न होती थी पर आज बार-बार जी चाहता था-रससी हो, तो इसी वकष म झला डालकर झल। अनहात म गवालो की लडिकया भस चराती हई आम की उबाली हई गठिलया तोड-तोडकर खिा रही ह। सखिदा न एक बार बचपन म एक गठली चखिी थी। उस वकत वह कसली लगी थी। िफर उस अननभव को उसन नही दहराया पर इस समय उन गठिलयो पर उसका मन ललचा रहा ह। उनकी कठोरता, उनका सोधापन, उनकी सगध उस कभी इतनी िपरय न लगी थी। उसका िचतत कछ अनिधक कोमल हो गया ह, जस पाल म पडकर कोई फल अनिधक रसीला, सवािदषटि, मधर, मलायम हो गया हो। मनन को वह एक कषण क िलए भी आखिो स ओझल न होन दती। वही उसक जीवन का आधार था। िदन म कई बार उसक िलए दध, हलवा आिद पकाती। उसक साथ दौडती, खलती, यहा तक िक जब वह बआ या दादा क िलए रोता, तो खिद रोन लगती थी। अनब उस बार-बार अनमर की याद आती ह। उसकी िगरफतारी और सजा का सामाचार पाकर उनहोन जो खित िलखिा होगा, उस पढन क िलए उसका मन तडप-तडप कर रह जाता ह।

लडी मट'न न आकर कहा-सखिदादवी, तमहार ससर तमस िमलन आए ह। तयार हो जाओ साहब न बीस िमनट का समय िदया ह।

सखिदा न चटपट मनन का मह धोया, नए कपड पहनाए, जो कई िदन पहल जल म िसल थ, और उस गोद म िलए मट'न क साथ बाहर िनकली, मानो पहल ही स तयार बठी हो।

मलाकात का कमरा जल क मधय म था और रासता बाहर ही स था। एक महीन क बाद जल स बाहर िनकलकर सखिदा को ऐसा उललास हो रहा था, मानो कोई रोगी शयया स उठा हो। जी चाहता था, सामन क मदान म खिब उछल और मनना तो िचिडयो क पीछ दौड रहा था।

लाला समरकानत वहा पहल ही स बठ हए थ। मनन को दखित ही गदगद हो गए और गोद म उठाकर बार-बार उसका मह चमन लग। उसक िलए िमठाई, िखिलौन, फल, कपडा, परा एक गटठर लाए थ। सखिदा भी शरधदा और भिकत स पलिकत हो उठी उनक चरणो पर िगर पडी और रोन लगी इसिलए नही िक उस पर कोई िवपितत पडी ह, बिलक रोन म ही आनद आ रहा ह।

समरकानत न आशीवाद दत हए पछा-यहा तमह िजस बात का कषटि हो, मट'न साहब स कहना। मझ पर

223 www.hindustanbooks.com

इनकी बडी कतपा ह। मनना अनब शाम को रोज बाहर खला करगा और िकसी बात की तकलीफ तो नही ह-

सखिदा न दखिा, समरकानत दबल हो गए ह। सनह स उसका हदय जस झलक उठा। बोली-म तो यहा बड आराम स ह पर आप कयो इतन दबल हो गए ह-

'यह न पछो, यह पछो िक आप जीत कस ह- नना भी चली गई, अनब घर भतो का डरा हो गया ह। सनता ह लाला मनीराम अनपन िपता स अनलग होकर दसरा िववाह करन जा रह ह। तमहारी माताजी तीथरय -यातरा करन चली गइ। शहर म आदोलन चलाया जा रहा ह। उस जमीन पर िदन-भर जनता की भीड लगी रहती ह। कछ लोग रात को वहा सोत ह। एक िदन तो रातो-रात वहा सकडो झोपड खिड हो गए लिकन दसर िदन पिलस न उनह जला िदया और कई चौधिरयो को पकड िलया।'

सखिदा न मन-ही-मन हिषत होकर पछा-यह लोगो न कया नादानी की वहा अनब कोिठया बनन लगी होगी-

समरकानत बोल-हा इट, चना, सखिी तो जमा की गई थी लिकन एक िदन रातो-रात सारा सामान उड गया। इट बखर दी गइ, चना िमटटी म िमला िदया गया। तब स वहा िकसी को मजर ही नही िमलत। न कोई बलदार जाता ह, न कारीगर। रात को पिलस का पहरा रहता ह। वही बिढया पठािनन आजकल वहा सब कछ कर-धार रही ह। ऐसा सगठन कर िलया ह िक आशचियरय होता ह।

िजस काम म वह अनसफल हई, उस वह खिपपट बिढया सचाई रप स चला रही ह इस िवचार स उसक आतमािभमान को चोट लगी। बोली-वह बिढया तो चल-िफर भी न पाती थी।

'हा, वही बिढया अनचछ-अनचछो क दात खिटट कर रही ह। जनता को तो उसन ऐस मटठी म कर िलया ह िक कया कह- भीतर बठ हए कल घमान वाल शािनत बाब ह।'

सखिदा न आज तक उनस या िकसी स, अनमरकानत क िवषय म कछ न पछा था पर इस वकत वह मन को न रोक सकी-हिरदवार स कोई पतर आया था-

लाला समरकानत की मदरा कठोर हो गई। बोल-हा, आया था। उसी शोहद सलीम का खित था। वही उस इलाक का हािकम ह। उसन भी पकड-धकड शर कर दी ह। उसन खिद लालाजी को िगरफतार िकया। यह आपक िमतरो का हाल ह। अनब आख खिली होगी। मरा कया िबगडा- अनब ठोकर खिा रह ह। अनब जल म चककी पीस रह होग। गए थ गरीबो की सवा करन। यह उसी का उपहार ह। म तो ऐस िमतर को गोली मार दता। िगरफतार तक हए पर मझ पतर न िलखिा। उसक िहसाब स तो म मर गया मगर बङढा अनभी मरन का नाम नही लता, चन स खिाता ह और सोता ह। िकसी क मनान स नही मरा जाता। जरा यह मठमरदी दखिो िक घर म िकसी को खिबर तक न दी। म दशमन था, नना तो दशमन न थी, शािनतकमार तो दशमन न थ। यहा स कोई जाकर मकदम की परवी करता, तो ए, बी. का दजा तो िमल जाता। नही, मामली किदयो की तरह पड हए ह आप रोएग, मरा कया िबगडता ह।

सखिदा कातर कठ स बोली-आप अनब कयो नही चल जात-

समरकानत न नाक िसकोडकर कहा-म कयो जाऊ, अनपन कमो का फल भोग। वह लडकी जो थी, सकीना, उसकी शादी की बातचीत उसी दषटि सलीम स हो रही ह, िजसन लालाजी को िगरफतार िकया ह। अनब आख खिली होगी।

224 www.hindustanbooks.com

सखिदा न सहदयता स भर हए सवर म कहा-आप तो उनह कोस रह ह, दादा वासतव म दोष उनका न था। सरासर मरा अनपराध था। उनका-सा तपसवी परष मझ-जसी िवलािसनी क साथ कस परसनन रह सकता था बिलक यो कहो िक दोष न मरा था, न आपका, न उनका, सारा िवष लकषमी न बोया। आपक घर म उनक िलए सथान न था। आप उनस बराबर िखिच रहत थ। म भी उसी जलवाय म पली थी। उनह न पहचान सकी। वह अनचछा या बरा जो कछ करत थ, घर म उसका िवरोध होता था। बात-बात पर उनका अनपमान िकया जाता था। ऐसी दशा म कोई भी सतषटि न रह सकता था। मन यहा एकात म इस परशन पर खिब िवचार िकया ह और मझ अनपना दोष सवीकार करन म लशमातर भी सकोच नही ह। आप एक कषण भी यहा न ठहर। वहा जाकर अनिधकािरयो स िमल, सलीम स िमल और उनक िलए जो कछ हो सक, कर। हमन उनकी िवशाल तपसवी आतमा को भोग क बधनो स बधकर रखिना चाहा था। आकाश म उडन वाल पकषी को िपजड म बद करना चाहत थ। जब पकषी िपजड को तोडकर उड गया, तो मन समझा, म अनभािगनी ह। आज मझ मालम हो रहा ह, वह मरा परम सौभागय था।

समरकानत एक कषण तक चिकत नतरो स सखिदा की ओर ताकत रह, मानो अनपन कानो पर िवशवास न आ रहा हो। इस शीतल कषमा न जस उनक मरझाए हए पतर-सनह को हरा कर िदया। बोल-इसकी तो मन खिब जाच की, बात कछ नही थी। उस पर करोध था, उसी करोध म जो कछ मह म आ गया, बक गया। यह ऐब उसम कभी न था लिकन उस वकत म भी अनधा हो रहा था। िफर म कहता ह, िमथया नही, सतय ही सही, सोलहो आन सतय सही, तो कया ससार म िजतन ऐस मनषय ह, उनकी गरदन काट दी जाती ह- म बड-बड वयिभचािरयो क सामन मसतक नवाता ह। तो िफर अनपन ही घर म और उनही क ऊपर िजनस िकसी परितकार की शका नही , धमरय और सदाचार का सारा भार लाद िदया जाय- मनषय पर जब परम का बधन नही होता तभी वह वयिभचार करन लगता ह। िभकषक दवार-दवार इसीिलए जाता ह िक एक दवार स उसकी कषधा-तिपत नही होती। अनगर इस दोष भी मान ल, तो ईशवर न कयो िनदोष ससार नही बनाया- जो कहो िक ईशवर की इचछा ऐसी नही ह, तो म पछगा, जब सब ईशवर क अनधीन ह, तो वह मन को ऐसा कयो बना दता ह िक उस िकसी टटी झोपडी की भाित बहत-सी थिनयो स सभलना पड। यहा तो ऐसा ही ह जस िकसी रोगी स कहा जाय िक त अनचछा हो जा। अनगर रोगी म सामथयरय होती, तो वह बीमार ही कयो पडता-

एक ही सास म अनपन हदय का सारा मािलनय उडल दन क बाद लालाजी दम लन क िलए रक गए। जो कछ इधर-उधर लगा-िचपटा रह गया हो, शायद उस भी खिरचकर िनकाल दन का परयतन कर रह थ।

सखिदा न पछा-तो आप वहा कब जा रह ह-

लालाजी न ततपरता स कहा-आज ही, इधर ही स चला जाऊगा। सना ह, वहा जोरो स दमन हो रहा ह। अनब तो वहा का हाल समाचार-पतरो म भी छपन लगा। कई िदन हए, मननी नाम की कोई सतरी भी कई आदिमयो क साथ िगरफतार हई ह। कछ इसी तरह की हलचल सार परात, बिलक सार दश म मची हई ह। सभी जगह पकड-धकड हो रही ह।

बालक कमर क बाहर िनकल गया था। लालाजी न उस पकारा, तो वह सडक की ओर भागा। समरकानत भी उसक पीछ दौड। बालक न समझा, खल हो रहा ह। और तज दौडा। ढाई-तीन साल क बालक की तजी ही कया, िकनत समरकानत जस सथल आदमी क िलए परी कसरत थी। बडी मिशकल स उस पकडा।

एक िमनट क बाद कछ इस भाव स बोल, जस कोई सारगािभत कथन हो-म तो सोचता ह, जो लोग जाित-िहत क िलए अनपनी जान होम करन को हरदम तयार रहत ह, उनकी बराइयो पर िनगाह ही न डालनी

225 www.hindustanbooks.com

चािहए।

सखिदा न िवरोध िकया-यह न किहए, दादा ऐस मनषयो का चिरतर आदशरय होना चािहए नही तो उनक परोपकार म भी सवाथरय और वासना की गध आन लगगी।

समरकानत न ततवजञान की बात कही-सवाथरय म उसी को कहता ह, िजसक िमलन स िचतत को हषरय और न िमलन स कषोभ हो। ऐसा पराणी, िजस हषरय और कषोभ हो ही नही, मनषय नही, दवता भी नही, जड ह।

सखिदा मसकराई-तो ससार म कोई िनसवाथरय हो ही नही सकता-

'अनसभव सवाथरय छोटा हो, तो सवाथरय ह बडा हो, तो उपकार ह। मरा तो िवचार ह, ईशवर-भिकत भी सवाथरय ह।'

मलाकात का समय कब का गजर चका था। मट'न अनब और िरआयत न कर सकती थी। समरकानत न बालक को पयार िकया, बह को आशीवाद िदया और बाहर िनकल।

बहत िदनो क बाद आज उनह अनपन भीतर आनद और परकाश का अननभव हआ, मानो चनदरदव क मखि स मघो का आवरण हट गया हो।

226 www.hindustanbooks.com

दोसखिदा अनपन कमर म पहची, तो दखिा-एक यवती किदयो क कपड पहन उसक कमर की सफाई कर रही ह।

एक चौकीदािरन बीच-बीच म उस डाटती जाती ह।

चौकीदािरन न किदन की पीठ पर लात मारकर कहा-राड, तझ झाड लगाना भी नही आता गदरय कयो उडाती ह- हाथ दबाकर लगा।

किदन न झाड फक दी और तमतमात हए मखि स बोली-म यहा िकसी की टहल करन नही आई ह।

'तब कया रानी बनकर आई ह?'

'हा, रानी बनकर आई ह। िकसी की चाकरी करना मरा काम नही ह।'

'त झाड लगाएगी िक नही?'

'भलमनसी स कहो, तो म तमहार भगी क घर म भी झाड लगा दगी लिकन मार का भय िदखिाकर तम मझस राजा क घर म भी झाड नही लगवा सकती। इतना समझ रखिो।'

'त न लगाएगी झाड?'

'नही ।'

चौकीदािरन न किदन क कश पकड िलए और खिीचती हई कमर क बाहर ल चली। रह-रहकर गालो पर तमाच भी लगाती जाती थी।

'चल जलर साहब क पास।'

'हा, ल चलो। म यही उनस भी कहगी। मार-गाली खिान नही आई ह।'

सखिदा क लगातार िलखिा-पढी करन पर यह टहलनी दी गई थी पर यह काड दखिकर सखिदा का मन कषबधा हो उठा। इस कमर म कदम रखिना भी उस बरा लग रहा था।

किदन न उसकी ओर सजल आखिो स दखिकर कहा-तम गवाह रहना। इस चौकीदािरन न मझ िकतना मारा ह।

सखिदा न समीप जाकर चौकीदािरन को हटाया और किदन का हाथ पकडकर कमर म ल गई।

चौकीदािरन न धमकाकर कहा-रोज सबर यहा आ जाया कर। जो काम यह कह, वह िकया कर। नही डड पडग।

किदन करोध स काप रही थी-म िकसी की लौडी नही ह और न यह काम करगी। िकसी रानी-महारानी की टहल करन नही आई। जल म सब बराबर ह ।

सखिदा न दखिा, यवती म आतम-सममान की कमी नही। लिजजत होकर बोली-यहा कोई रानी-महारानी नही ह बहन, मरा जी अनकल घबराया करता था, इसिलए तमह बला िलया। हम दोनो यहा बहनो की तरह रहगी। कया नाम ह तमहारा-

227 www.hindustanbooks.com

यवती की कठोर मदरा नमरय पड गई। बोली-मरा नाम मननी ह। हिरदवार स आई ह।

सखिदा चौक पडी। लाला समरकानत न यही नाम तो िलया था। पछा-वहा िकस अनपराध म सजा हई-

'अनपराध कया था- सरकार जमीन का लगान नही कम करती थी। चार आन की छट हई। िजस का दाम आधा भी नही उतरा। हम िकसक घर स ला क दत- इस बात पर हमन फिरयाद की। बस, सरकार न सजा दना शर कर िदया।'

मननी को सखिदा अनदालत म कई बार दखि चकी थी। तब स उसकी सरत बहत कछ बदल गई थी। पछा-तम बाब अनमरकानत को जानती हो- वह भी इसी मआमल म िगरफतार हए ह-

मननी परसनन हो गई-जानती कयो नही, वह तो मर ही घर म रहत थ। तम उनह कस जानती हो- वही तो हमार अनगआ ह।

सखिदा न कहा-म भी काशी की रहन वाली ह। उसी महलल म उनका भी घर ह। तम कया बराहयणी हो-

'ह तो ठकरानी, पर अनब कछ नही ह। जात-पात, पत-भतार सबको खिो बठी।'

'अनमर बाब कभी अनपन घर की बातचीत नही करत थ?'

'कभी नही। न कभी आना न जाना न िचटठी, न पततार।'

सखिदा न कनिखियो स दखिकर कहा-मगर वह तो बड रिसक आदमी ह। वहा गाव म िकसी पर डोर नही डाल-

मननी न जीभ दातो तल दबाई-कभी नही बहजी, कभी नही। मन तो उनह कभी िकसी महिरया की ओर ताकत या हसत नही दखिा। न जान िकस बात पर घरवाली स रठ गए। तम तो जानती होगी-

सखिदा न मसकरात हए कहा-रठ कया गए, सतरी को छोड िदया। िछपकर घर स भाग गए। बचारी औरत घर म बठी हई ह। तमको मालम न होगा उनहोन जरर कही-न-कही िदल लगाया होगा।

मननी न दािहन हाथ को साप क फन की भाित िहलात हए कहा-ऐसी बात होती, तो गाव म िछपी न रहती, बहजी म तो रोज ही दो-चार बार उनक पास जाती थी। कभी िसर ऊपर न उठात थ। िफर उस दहात म ऐसी थी ही कौन, िजस पर उनका मन चलता। न कोई पढी-िलखिी, न गन, न सहर।

सखिदा न नबज टटोली-मदरय गन-सहर, पढना-िलखिना नही दखित। वह तो रप-रग दखित ह और वह तमह भगवान न िदया ही ह। जवान भी हो।

मननी न मह फरकर कहा-तम तो गाली दती हो, बहजी मरी ओर भला वह कया दखित, जो उनक पाव की जितयो क बराबर नही लिकन तम कौन हो बहजी, तम यहा कस आइ-

'जस तम आइ, वस ही म भी आई।'

'तो यहा भी वही हलचल ह?'

'हा, कछ उसी तरह की ह।'

मननी को यह दखिकर आशचियरय हआ िक ऐसी िवदषी दिवया भी जल म भजी गई ह। भला इनह िकस बात का

228 www.hindustanbooks.com

द:खि होगा-

उसन डरत-डरत पछा-तमहार सवामी भी सजा पा गए होग-

'हा, तभी तो म आई।'

मननी न छत की ओर दखिकर आशीवाद िदया-भगवान तमहारा मनोरथ परा कर, बहजी गददी-मसनद लगान वाली रािनया जब तपसया करन लगी, तो भगवान वरदान भी जलदी ही दग। िकतन िदन की सजा हई ह- मझ तो छ: महीन की ह।

सखिदा न अनपनी सजा की िमयाद बताकर कहा-तमहार िजल म बडी सिखतया हो रही होगी। तमहारा कया िवचार ह, लोग सखती स दब जाएग-

मननी न मानो कषमा-याचना की-मर सामन तो लोग यही कहत थ िक चाह फासी पर चढ जाए, पर आधो स बसी लगान न दग लिकन िदल स सोचो, जब बल बिधए छीन जान लगग, िसपाही घरो म घसग, मरदो पर डड और गोिलयो की मार पडगी, तो आदमी कहा तक सहगा- मझ पकडन क िलए तो परी फौज गई थी। पचास आदिमयो स कम न होग। गोली चलत-चलत बची। हजारो आदमी जमा हो गए। िकतना समझाती थी-भाइयो, अनपन-अनपन घर जाओ, मझ जान दो लिकन कौन सनता ह- आिखिर जब मन कसम िदलाई, तो लोग लौट नही, उसी िदन दस-पाच की जान जाती। न जान भगवान कहा सोए ह िक इतना अननयाय दखित ह और नही बोलत। साल म छ: महीन एक जन खिाकर बचार िदन काटत ह, चीथड पहनत ह, लिकन सरकार को दखिो, तो उनही की गरदन पर सवार हािकमो को तो अनपन िलए बगला चािहए, मोटर चािहए, हर िनयामत खिान को चािहए, सर-तमाशा चािहए, पर गरीबो का इतना सखि भी नही दखिा जाता िजस दखिो, गरीबो ही का रकत चसन को तयार ह। हम जमा करन को नही मागत, न हम भोग-िवलास की इचछा ह, लिकन पट को रोटी और तन ढाकन को कपडा तो चािहए। साल-भर खिान-पहनन को छोड दो, गहसथी का जो कछ खिरच पड वह द दो। बाकी िजतना बच, उठा ल जाओ। मदा गरीबो की कौन सनता ह-

सखिदा न दखिा, इस गवािरन क हदय म िकतनी सहानभित, िकतनी दया, िकतनी जागित भरी हई ह। अनमर क तयाग और सवा की उसन िजन शबदो म सराहना की, उसन जस सखिदा क अनत:करण की सारी मिलनताआ को धोकर िनमरयल कर िदया, जस उसक मन म परकाश आ गया हो, और उसकी सारी शकाए और िचताए अनधकार की भाित िमट गई हो। अनमरकानत का कलपना-िचतर उसकी आखिो क सामन आ खिडा हआ-किदयो का जािघया-कटोप पहन, बड-बड बाल बढाए, मखि मिलन, किदयो क बीच म चककी पीसता हआ। वह भयभीत होकर काप उठी। उसका हदय कभी इतना कोमल न था।

मट'न न आकर कहा-अनब तो आपको नौकरानी िमल गई। इसस खिब काम लो।

सखिदा धीम सवर म बोली-मझ अनब नौकरानी की इचछा नही ह ममसाहब, म यहा रहना भी नही चाहती। आप मझ मामली किदयो म भज दीिजए।

मट'न छोट कद की ऐगलो-इिडयन मिहला थी। चौडा मह, छोटी-छोटी आख, तराश हए बाल, घटनो क ऊपर तक का सकटरय पहन हए। िवसमय स बोली-यह कया कहती हो, सखिदादवी- नौकरानी िमल गया और िजस चीज का तकलीफ हो हमस कहो, हम जलर साहब स कहगा।

सखिदा न नमरता स कहा-आपकी इस कतपा क िलए म आपको धनयवाद दती ह। म अनब िकसी तरह की

229 www.hindustanbooks.com

िरयायत नही चाहती। म चाहती ह िक मझ मामली किदयो की तरह रखिा जाय।

'नीच औरतो क साथ रहना पडगा। खिाना भी वही िमलगा।'

'यही तो म चाहती ह।'

'काम भी वही करना पडगा। शायद चककी पीसन का काम द द।'

'कोई हरज नही।'

'घर क आदिमयो स तीसर महीन मलाकात हो सकगी।'

'मालम ह।'

मट'न की लाला समरकानत न खिब पजा की थी। इस िशकार क हाथ स िनकल जान का द:खि हो रहा था। कछ दर समझाती रही। जब सखिदा न अनपनी राय न बदली, तो पछताती हई चली गई।

मननी न पछा-मम साहब कया कहती थी-

सखिदा न मननी को सनह-भरी आखिो स दखिा-अनब म तमहार ही साथ रहगी, मननी।

मननी न छाती पर हाथ रखिकर कहा-यह कया करती हो, बह- वहा तमस न रहा जाएगा।

सखिदा न परसनन मखि स कहा-जहा तम रह सकती हो, वहा म भी रह सकती ह।

एक घट क बाद जब सखिदा यहा स मननी क साथ चली, तो उसका मन आशा और भय स काप रहा था, जस कोई बालक परीकषा म सफल होकर अनगली ककषा म गया हो।

230 www.hindustanbooks.com

तीनपिलस न उस पहाडी इलाक का घरा डाल रखिा था। िसपाही और सवार चौबीसो घट घमत रहत थ। पाच

आदिमयो स जयादा एक जगह जमा न हो सकत थ। शाम को आठ बज क बाद कोई घर स िनकल न सकता था। पिलस को इिततला िदए बगर घर म महमान को ठहरान की भी मनाही थी। फौजी कानन जारी कर िदया गया था। िकतन ही घर जला िदए गए थ और उनक रहन वाल हबडो की भाित वकषो क नीच बाल-बचचो को िलए पड थ। पाठशाला म आग लगा दी गई थी और उसकी आधी-आधी काली दीवार मानो कश खिोल मातम कर रही थी। सवामी आतमाननद बास की छतरी लगाए अनब भी वहा डट हए थ। जरा-सा मौका पात ही इधर-उधर स दस-बीस आदमी आकर जमा हो जात पर सवारो को आत दखिा और गायब।

सहसा लाला समरकानत एक गटठर पीठ पर लाद मदरस क सामन आकर खिड हो गए। सवामी न दौडकर उनका िबसतर ल िलया और खिाट की िफकर म दौड। गाव-भर म िबजली की तरह खिबर दौड गई-भया क बाप आए ह। ह तो वधद मगर अनभी टनमन ह। सठ-साहकार स लगत ह। एक कषण म बहत स आदिमयो न आकर घर िलया। िकसी क िसर म पटटी बधी थी, िकसी क हाथ म। कई लगडा रह थ। शाम हो गई और आज कोई िवशष खिटका न दखिकर और सार इलाक म डड क बल स शाित सथािपत करक पिलस िवशराम कर रही थी। बचार रात-िदन दौडत-दौडत अनधमर हो गए थ।

गदड न लाठी टकत हए आकर समरकानत क चरण छए और बोल-अनमर भया का समाचार तो आपको िमला होगा। आजकल तो पिलस का धावा ह। हािकम कहता ह-बारह आन लग, हम कहत ह हमार पास ह ही नही, द कहा स- बहत-स लोग तो गाव छोडकर भाग गए। जो ह, उनकी दसा आप दखि ही रह ह। मननी बह को पकडकर जल म डाल िदया। आप ऐस समय म आए िक आपकी कछ खिाितर भी नही कर सकत।

समरकानत मदरस क चबतर पर बठ गए और िसर पर हाथ रखिकर सोचन लग-इन गरीबो की कया सहायता कर- करोध की एक जवाला-सी उठकर रोम-रोम म वयापत हो गई, पछा-यहा कोई अनफसर भी तो होगा-

गदड न कहा-हा, अनफसर तो एक नही, पचचीस ह जी। सबस बडा अनफसर तो वही िमयाजी ह, जो अनमर भया क दोसत ह।

'तम लोगो न उस लगग स पछा नही-मारपीट कयो करत हो, कया यह भी कानन ह?'

गदड न सलोनी की मडया की ओर दखिकर कहा-भया, कहत तो सब कछ ह, जब कोई सन सलीम साहब न खिद अनपन हाथो स हटर मार। उनकी बददी दखिकर पिलस वाल भी दातो तल उगली दबात थ। सलोनी मरी भावज लगती ह। उसन उनक मह पर थक िदया था। यह उस न करना चािहए था। पागलपन था और कया- िमया साहब आग हो गए और बिढया को इतन हटर जमाए िक भगवान ही बचाए तो बच। मदा वह भी ह अनपनी धन की पककी, हरक हटर पर गाली दती थी। जब बदम होकर िगर पडी, तब जाकर उसका मह बद हआ। भया उस काकी-काकी करत रहत थ। कही स आव, सबस पहल काकी क पास जात थ। उठन लायक होती तो जरर-स-जरर आती।

आतमाननद न िचढकर कहा-अनर तो अनब रहन भी द, कया सब आज ही कह डालोग- पानी मगवाओ, आप हाथ-मह धोए, जरा आराम करन दो, थक-माद आ रह ह-वह दखिो, सलोनी को भी खिबर िमल गई, लाठी टकती चली आ रही ह ।

231 www.hindustanbooks.com

सलोनी न पास आकर कहा-कहा हो दवरजी, सावन म आत तो तमहार साथ झला झलती, चल हो काितक म िजसका ऐसा सरदार और ऐसा बटा, उस िकसका डर और िकसकी िचता तमह दखिकर सारा द:खि भल गई, दवरजी ।

समरकानत न दखिा-सलोनी की सारी दह सज उठी ह और साडी पर लह क दाग सखिकर कतथई हो गए ह। मह सजा हआ ह। इस मरद पर इतना करोध उस पर िवदवान बनता ह उनकी आखिो म खिन उतर आया। िहसा-भावना मन म परचड हो उठी। िनबरयल करोध और चाह कछ न कर सक, भगवान की खिबर जरर लता ह। तम अनतयामी हो, सवरयशिकतमान हो, दीनो क रकषक हो और तमहारी आखिो क सामन यह अनधर इस जगत का िनयता कोई नही ह। कोई दयामय भगवान सिषटि का कता होता, तो यह अनतयाचार न होता अनचछ सवरयशिकतमान हो। कयो नरिपशाचो क हदय म नही पठ जात, या वहा तमहारी पहच नही ह- कहत ह, यह सब भगवान की लीला ह। अनचछी लीला ह अनगर तमह इस वयापार की खिबर नही ह, तो िफर सवरयवयापी कयो कहलात हो-

समरकानत धािमक परवितत क आदमी थ। धमरय-गरथो का अनधययन िकया था। भगवदगीता का िनतय पाठ िकया करत थ, पर इस समय वह सारा धमरयजञान उनह पाखिड-सा परतीत हआ।

वह उसी तरह उठ खिड हए और पछा-सलीम तो सदर म होगा-

आतमाननद न कहा-आजकल तो यही पडाव ह। डाक बगल म ठहर हए ह।

'म जरा उनस िमलगा।'

'अनभी वह करोध म ह, आप िमलकर कया कीिजएगा। आपको भी अनपशबद कह बठग।'

'यही दखिन तो जाता ह िक मनषय की पशता िकस सीमा तक जा सकती ह।'

'तो चिलए, म भी आपक साथ चलता ह।'

गदड बोल उठ-नही-नही, तम न जइयो, सवामीजी भया, यह ह तो सनयासी और दया क अनवतार, मदा करोध म भी दवासा मिन स कम नही ह। जब हािकम साहब सलोनी को मार रह थ, तब चार आदमी इनह पकड हए थ, नही तो उस बखित िमया का खिन चस लत, चाह पीछ स फासी हो जाती। गाव भर की मरहम-पटटी इनही क सपदरय ह।

सलोनी न समरकानत का हाथ पकडकर कहा-म चलगी तमहार साथ दवरजी। उस िदखिा दगी िक बिढया तरी छाती पर मग दलन को बठी हई ह त मारनहार ह, तो कोई तझस बडा राखिनहार भी ह। जब तक उसका हकम न होगा, त कया मार सकगा ।

भगवान म उसकी यह अनपार िनषठा दखिकर समरकानत की आख सजल हो गइ, सोचा -मझस तो य मखिरय ही अनचछ जो इतनी पीडा और द:खि सहकर भी तमहारा ही नाम रटत ह। बोल-नही भाभी, मझ अनकल जान दो। म अनभी उनस दो-दो बात करक लौट आता ह।

सलोनी लाठी सभाल रही थी िक समरकानत चल पड। तजा और दरजन आग-आग डाक बगल का रासता िदखिात हए चल।

तजा न पछा-दादा, जब अनमर भया छोट-स थ, तो बड शतान थ न-

232 www.hindustanbooks.com

समरकानत न इस परशन का आशय न समझकर कहा-नही तो, वह तो लडकपन ही स बडा सशील था।

दरजन ताली बजाकर बोला-अनब कहो तज, हार िक नही- दादा, हमारा-इनका यह झगडा ह िक यह कहत ह, जो लडक बचपन म बड शतान होत ह, वही बड होकर सशील हो जात ह, और म कहता ह, जो लडकपन म सशील होत ह, वही बड होकर भी सशील रहत ह। जो बात आदमी म ह नही वह बीच म कहा स आ जाएगी-

तजा न शका की-लडक म तो अनकल भी नही होती, जवान होन पर कहा स आ जाती ह- अनखिव म तो खिाली दो दल होत ह, िफर उनम डाल-पात कहा स आ जात ह- यह कोई बात नही। म ऐस िकतन ही नामी आदिमयो क उदाहरण द सकता ह, जो बचपन म बड पाजी थ, पर आग चलकर महातमा हो गए।

समरकानत को बालको क इस तकरक म बडा आनद आया। मधयसथ बनकर दोनो ओर कछ सहारा दत जात थ। रासत म एक जगह कीचड भरा हआ था। समरकानत क जत कीचड म फसकर पाव स िनकल गए। इस पर बडी हसी हई।

सामन स पाच सवार आत िदखिाई िदए। तजा न एक पतथर उठाकर एक सवार पर िनशाना मारा। उसकी पगडी जमीन पर िगर पडी। वह तो घोड स उतरकर पगडी उठान लगा, बाकी चारो घोड दौडात हए समरकानत क पास आ पहच।

तजा दौडकर एक पड पर चढ गया। दो सवार उसक पीछ दौड और नीच स गािलया दन लग। बाकी तीन सवारो न समरकानत को घर िलया और एक न हटर िनकालकर ऊपर उठाया ही था िक एकाएक चौक पडा और बोला-अनर आप ह सठजी आप यहा कहा-

सठजी न सलीम को पहचानकर कहा-हा-हा, चला दो हटर, रक कयो गए- अनपनी कारगजारी िदखिान का ऐसा मौका िफर कहा िमलगा- हािकम होकर गरीबो पर हटर न चलाया, तो हािकमी िकस काम की-

सलीम लिजजत हो गया-आप इन लौडो की शरारत दखि रह ह, िफर भी मझी को कसरवार ठहरात ह। उसन ऐसा पतथर मारा िक इन दारोगाजी की पगडी िगर गई। खििरयत हई िक आखि म न लगा।

समरकानत आवश म औिचतय को भलकर बोल-ठीक तो ह, जब उस लौड न पतथर चलाया, जो अनभी नादान ह, तो िफर हमार हािकम साहब जो िवदया क सफर ह, कया हटर भी न चलाए - कह दो दोनो सवार पड पर चढ जाए, लौड को ढकल द, नीच िगर पड। मर जाएगा, तो कया हआ, हािकम स बअनदबी करन की सजा तो पा जाएगा।

सलीम न सफाई दी-आप तो अनभी आए ह, आपको कया खिबर यहा क लोग िकतन मफिसद ह- एक बिढया न मर मह पर थक िदया, मन जबत िकया, वरना सारा गाव जल म होता।

समरकानत यह बमगोला खिाकर भी परासत न हए-तमहार जबत की बानगी दख आ रहा ह बटा, अनब मह न खिलवाओ। वह अनगर जािहल बसमझ औरत थी, तो तमही न आिलम-गािजल होकर कोन-सी शराफत की- उसकी सारी दह लह-लहान हो रही ह। शायद बचगी भी नही। कछ याद ह िकतन आदिमयो क अनग-भग हए- सब तमहार नाम की दआए द रह ह। अनगर उनस रपय न वसल होत थ, तो बदखिल कर सकत थ, उनकी फसल ककरक कर सकत थ। मार-पीट का कानन कहा स िनकला-

'बदखिली स कया नतीजा, जमीन का यहा कौन खिरीददार ह- आिखिर सरकारी रकम कस वसल की जाए?'

233 www.hindustanbooks.com

'तो मार डालो सार गाव को, दखिो िकतन रपय वसल होत ह। तमस मझ ऐसी आशा न थी, मगर शायद हकमत म कछ नशा होता ह।'

'आपन अनभी इन लोगो की बदमाशी नही दखिी। मर साथ आइए, तो म सारी दासतान सनाऊ आप इस वकत आ कहा स रह ह?'

समरकानत न अनपन लखिनऊ आन और सखिदा स िमलन का हाल कहा। िफर मतलब की बात छडी-अनमर तो यही होगा- सना, तीसर दरज म रखिा गया ह।

अनधरा जयादा हो गया था। कछ ठड भी पडन लगी थी। चार सवार तो गाव की तरफ चल गए, सलीम घोड की रास थाम हए पाव-पाव समरकानत क साथ डाक बगल चला।

कछ दर चलन क बाद समरकानत बोल-तमन दोसत क साथ खिब दोसती िनभाई। जल भज िदया, अनचछा िकया, मगर कम-स-कम उस कोई अनचछा दरजा तो िदला दत। मगर हािकम ठहर, अनपन दोसत की िसफािरश कस करत-

सलीम न वयिथत कठ स कहा-आप तो लालाजी, मझी पर सारा गससा उतार रह ह। मन तो दसरा दरजा िदला िदया था मगर अनमर खिद मामली किदयो क साथ रहन पर िजद करन लग, तो म कया करता- मरी बदनसीबी ह िक यहा आत ही मझ वह सब कछ करना पडा, िजसस मझ नफरत थी।

डाक बगल पहचकर सठजी एक आरामकरसी पर लट गए और बोल-तो मरा यहा आना वयथरय हआ। जब वह अनपनी खिशी स तीसर दरज म ह, तो लाचारी ह। मलाकात हो जाएगी-

सलीम न उततर िदया-म आपक साथ चलगा। मलाकात की तारीखि तो अनभी नही आई ह, मगर जल वाल शायद मान जाए। हा, अनदशा अनमर की तरफ स ह। वह िकसी िकसम की िरआयत नही चाहत।

उसन जरा मसकराकर कहा-अनब तो आप भी इन कामो म शरीक होन लग-

सठजी न नमरता स कहा-अनब म इस उमर म कया काम करगा। बढ िदल म जवानी का जोश कहा स आए- बह जल म ह, लडका जल म ह, शायद लडकी भी जल की तयारी कर रही ह और म चन स खिाता-पीता ह। आराम स सोता ह। मरी औलाद मर पापो का परायिशचित कर रही ह, मन गरीबो का िकतना खिन चसा ह, िकतन घर तबाह िकए ह। उसकी याद करक खिद शिमदा हो जाता ह। अनगर जवानी म समझ आ गई होती , तो कछ अनपना सधार करता। अनब कया करगा- बाप सतान का गर होता ह। उसी क पीछ लडक चलत ह। मझ अनपन लडको क पीछ चलना पडा। म धमरय की अनसिलयत को न समझकर धमरय क सवाग को धमरय समझ हए था। यही मरी िजदगी की सबस बडी भल थी। मझ तो ऐसा मालम होता ह िक दिनया का कडा ही िबगडा हआ ह। जब तक हम जायदाद पदा करन की धन रहगी, हम धमरय स कोसो दर रहग। ईशवर न ससार को कयो इस ढग पर लगाया, यह मरी समझ म नही आता। दिनया को जायदाद क मोह-बधन स छडाना पडगा, तभी आदमी आदमी होगा, तभी दिनया स पाप का नाश होगा।

सलीम ऐसी ऊची बातो म न पडना चाहता था। उसन सोचा-जब म भी इनकी तरह िजदगी क सखि भोग लगा तो मरत-समय िफलासफर बन जाऊगा। दोनो कई िमनट तक चपचाप बठ रह। िफर लालाजी सनह स भर सवर म बोल-नौकर हो जान पर आदमी को मािलक का हकम मानना ही पडता ह। इसकी म बराई नही करता। हा, एक बात कहगा। िजन पर तमन जलम िकया ह, चलकर उनक आस पोछ दो। यह गरीब आदमी थोडी-सी

234 www.hindustanbooks.com

भलमनसी स काब म आ जात ह। सरकार की नीित तो तम नही बदल सकत, लिकन इतना तो कर सकत हो िक िकसी पर बजा सखती न करो।

सलीम न शरमात हए कहा-लोगो की गसताखिी पर गससा आ जाता ह, वरना म तो खिद नही चाहता िक िकसी पर सखती कर। िफर िसर पर िकतनी बडी िजममदारी ह। लगान न वसल हआ, तो म िकतना नालायक समझा जाऊगा-

समरकानत न तज होकर कहा-तो बटा, लगान तो न वसल होगा, हा आदिमयो क खिन स हाथ रग सकत हो।

'यही तो दखिना ह।'

'दखि लना। मन भी इसी दिनया म बाल सफद िकए ह। हमार िकसान अनफसरो की सरत स कापत थ, लिकन जमाना बदल रहा ह। अनब उनह भी मान-अनपमान का खियाल होता ह। तम मित म बदनामी उठा रह हो।'

'अनपना फजरय अनदा करना बदनामी ह, तो मझ उसकी परवाह नही।'

समरकानत न अनफसरी क इस अनिभमान पर हसकर कहा-फजरय म थोडी-सी िमठास िमला दन स िकसी का कछ नही िबगडता, हा, बन बहत कछ जाता ह, यह बचार िकसान ऐस गरीब ह िक थोडी-सी हमददी करक उनह अनपना गलाम बना सकत हो। हकमत वह बहत झल चक। अनब भलमनसी का बरताब चाहत ह। िजस औरत को तमन हटरो स मारा, उस एक बार माता कहकर उसकी गरदन काट सकत थ। यह मत समझो िक तम उन पर हकमत करन आए हो। यह समझो िक उनकी सवा करन आए हो मान िलया, तमह तलब सरकार स िमलती ह, लिकन आती तो ह इनही की गाठ स। कोई मखिरय हो तो उस समझाऊ। तम भगवान की कतपा स आप ही िवदवान हो। तमह कया समझाऊ- तम पिलस वालो की बातो म आ गए। यही बात ह न-

सलीम भला यह कस सवीकार करता-

लिकन समरकानत अनड रह-म इस नही मान सकता। तम तो िकसी स नजर नही लना चाहत, लिकन िजन लोगो की रोिटया नोच-खिसोट पर चलती ह उनहोन जरर तमह भरा होगा। तमहारा चहरा कह दता ह िक तमह गरीबो पर जलम करन का अनफसोस ह। म यह तो नही चाहता िक आठ आन स एक पाई भी जयादा वसल करो , लिकन िदलजोई क साथ तम बशी भी वसल कर सकत हो। जो भखिो मरत ह िचथड पहनकर और पआल म सोकर िदन काटत ह उनस एक पसा भी दबाकर लना अननयाय ह। जब हम और तम दो-चार घट आराम स काम करक आराम स रहना चाहत ह, जायदाद बनाना चाहत ह, शौक की चीज जमा करत ह, तो कया यह अननयाय नही ह िक जो लोग सतरी-बचचो समत अनठारह घट रोज काम कर, वह रोटी-कपड को तरस- बचार गरीब ह, बजबान ह, अनपन को सगिठत नही कर सकत, इसिलए सभी छोट-बड उन पर रोब जमात ह। मगर तम जस सहदय और िवदवान लोग भी वही करन लग, जो मामली अनमल करत ह, तो अनफसोस होता ह। अनपन साथ िकसी को मत लो, मर साथ चलो। म िजममा लता ह िक कोई तमस गसताखिी न करगा। उनक जखम पर मरहम रखि दो, म इतना ही चाहता ह। जब तक िजएग, बचार तमह याद करग। सदभाव म सममोहन का-सा अनसर होता ह।

सलीम का हदय अनभी इतना काला न हआ था िक उस पर कोई रग ही न चढता। सकचाता हआ बोला-मरी तरफ स आप ही को कहना पडगा।

'हा-हा, यह सब म कह दगा, लिकन ऐसा न हो, म उधर चल, इधर तम हटरबाजी शर करो।'

235 www.hindustanbooks.com

'अनब जयादा शिमदा न कीिजए।'

'तम यह तजवीज कयो नही करत िक अनसािमयो की हालत की जाच की जाय। आख बद करक हकम मानना तमहारा काम नही। पहल अनपना इतमीनान तो कर लो िक तम बइसाफी तो नही कर रह हो- तम खिद ऐसी िरपोटरय कयो नही िलखित- ममिकन ह हककम इस पसद न कर, लिकन हक क िलए कछ नकसान उठाना पड, तो कया िचता?'

सलीम को यह बात नयाय-सगत जान पडी। खिट की पतली नोक जमीन क अनदर पहच चकी थी। बोला-इस बजगाना सलाह क िलए आपका एहसानमद ह और उस पर अनमल करन की कोिशश करगा।

भोजन का समय आ गया था। सलीम न पछा-आपक िलए कया खिाना बनवाऊ-

'जो चाह बनवाओ, पर इतना याद रखिो िक म िहनद ह और परान जमान का आदमी ह। अनभी तक छत-छात को मानता ह।'

'आप छत-छात को अनचछा समझत ह?'

'अनचछा तो नही समझता पर मानता ह।'

'तब मानत ही कयो ह?'

'इसिलए िक ससकारो को िमटाना मिशकल ह। अनगर जररत पड, तो म तमहारा मल उठाकर फक दगा लिकन तमहारी थाली म मझस न खिाया जाएगा।'

'म तो आज आपको अनपन साथ बठाकर िखिलाऊगा।'

'तम पयाज, मास, अनड खिात हो। मझस तो उन बरतनो म खिाया ही न जाएगा।'

'आप यह सब कछ न खिाइएगा मगर मर साथ बठना पडगा। म रोज साबन लगाकर नहाता ह।'

'बरतनो को खिब साफ करा लना।'

'आपका खिाना िहनद बनाएगा, साहब बस, एक मज पर बठकर खिा लना।'

'अनचछा खिा लगा, भाई म दध और घी खिब खिाता ह।'

सठजी तो सधयोपासन करन बठ, िफर पाठ करन लग। इधर सलीम क साथ क एक िहनद कासटबल न परी, कचौरी, हलवा, खिीर पकाई। दही पहल ही स रखिा हआ था। सलीम खिद आज यही भोजन करगा। सठजी सधया करक लौट, तो दखिा दो कबल िबछ हए ह और थािलया रखिी हई ह।

सठजी न खिश होकर कहा-यह तमन बहत अनचछा इनतजाम िकया।

सलीम न हसकर कहा-मन सोचा, आपका धमरय कयो ल, नही एक ही कबल रखिता।

'अनगर यह खियाल ह, तो तम मर कबल पर आ जाओ। नही, म ही आता ह।'

वह थाली उठाकर सलीम क कबल पर आ बठ। अनपन िवचार म आज उनहोन अनपन जीवन का सबस महान तयाग िकया। सारी सपितत दान दकर भी उनका हदय इतना गौरवािनवत न होता।

सलीम न चटकी ली-अनब तो आप मसलमान हो गए।

236 www.hindustanbooks.com

सठजी बोल-म मसलमान नही हआ। तम िहनद हो गए।

237 www.hindustanbooks.com

चारपरात:काल समरकानत और सलीम डाकबगल स गाव की ओर चल। पहािडयो स नीली भाप उठ रही थी

और परकाश का हदय जस िकसी अनवयकत वदना स भारी हो रहा था। चारो ओर सननाटा था। पथवी िकसी रोगी की भाित कोहर क नीच पडी िसहर रही थी। कछ लोग बदरो की भाित छपपरो पर बठ उसकी मरममत कर रह थ और कही-कही िसतरया गोबर पाथ रही थी। दोनो आदमी पहल सलोनी क घर गए।

सलोनी को जवर चढा हआ था और सारी दह फोड की भाित दखि रही थी मगर उस गान की धन सवार थी-

सनतो दखित जग बौराना।

साच कहो तो मारन धाव, झठ जगत पितआना, सनतो दखित...

मनोवयथा जब अनसहय और अनपार हो जाती ह जब उस कही तराण नही िमलता जब वह रदन और करदन की गोद म भी आशरय नही पाती, तो वह सगीत क चरणो पर जा िगरती ह।

समरकानत न पकारा-भाभी, जरा बाहर तो आओ।

सलोनी चटपट उठकर पक बालो को घघट स िछपाती, नवयौवना की भाित लजाती आकर खिडी हो गई और पछा-तम कहा चल गए थ, दवरजी-

सहसा सलीम को दखिकर वह एक पग पीछ हट गई और जस गाली दी-यह तो हािकम ह ।

िफर िसहनी की भाित झपटकर उसन सलीम को ऐसा धकका िदया िक वह िगरत-िगरत बचा, और जब तक समरकानत उस हटाए-हटाए, सलीम की गरदन पकडकर इस तरह दबाई, मानो घोट दगी।

सठजी न उस बल-पवरयक हटाकर कहा-पगला गई ह कया, भाभी- अनलग हट जा, सनती नही-

सलोनी न फटी-फटी परजविलत आखिो स सलीम को घरत हए कहा-मार तो िदखिा द, आज मरा सरदार आ गया ह िसर कचलकर रखि दगा ।

समरकानत न ितरसकार भर सवर म कहा-सरदार क मह म कािलखि लगा रही हो और कया- बढी हो गई, मरन क िदन आ गए और अनभी लडकपन नही गया। यही तमहारा धमरय ह िक कोई हािकम दवार पर आए तो उसका अनपमान करो ।

सलोनी न मन म कहा-यह लाला भी ठकरसहाती करत ह। लडका पकड गया ह न, इसी स। िफर दरागरह स बोली-पछो इसन सबको पीटा नही था-

सठजी िबगडकर बोल-तम हािकम होती और गाव वाल तमह दखित ही लािठया ल-लकर िनकल आत, तो तम कया करती- जब परजा लडन पर तयार हो जाय, तो हािकम कया पजा कर अनमर होता तो वह लाठी लकर न दौडता- गाव वालो को लािजम था िक हािकम क पास आकर अनपना-अनपना हाल कहत, अनरज-िवनती करत अनदब स, नमरता स। यह नही िक हािकम को दखिा और मारन दौड, मानो वह तमहारा दशमन ह। म इनह समझा-बझाकर लाया था िक मल करा द, िदलो की सफाई हो जाय, और तम उनस लडन पर तयार हो गइ।

यहा की हलचल सनकर गाव क और कई आदमी जमा हो गए। पर िकसी न सलीम को सलाम नही िकया।

238 www.hindustanbooks.com

सबकी तयोिरया चढी हई थी।

समरकानत न उनह सबोिधत िकया-तमही लोग सोचो। यह साहब तमहार हािकम ह। जब िरयाया हािकम क साथ गसताखिी करती ह, तो हािकम को भी करोध आ जाय तो कोई ताजजब नही। यह बचार तो अनपन को हािकम समझत ही नही। लिकन इजजत तो सभी चाहत ह, हािकम हो या न हो। कोई आदमी अनपनी बइजजती नही दखि सकता। बोलो गदड, कछ गलत कहता ह-

गदड न िसर झकाकर कहा-नही मािलक, सच ही कहत हो। मदा वह तो बावली ह। उसकी िकसी बात का बरा न मानो। सबक मह म कािलखि लगा रही ह और कया।

'यह हमार लडक क बराबर ह। अनमर क साथ पढ, उनही क साथ खल। तमन अनपनी आखिो दखिा िक अनमर को िगरफतार करन यह अनकल आए थ। कया समझकर कया पिलस को भजकर न पकडवा सकत थ- िसपाही हकम पात ही आत और धकक दकर बध ल जात। इनकी शराफत थी िक खिद आए और िकसी पिलस को साथ न लाए। अनमर न भी यही िकया, जो उसका धमरय था। अनकल आदमी को बइजजत करना चाहत, तो कया मिशकल था- अनब तक जो कछ हआ, उसका इनह रज ह, हालािक कसर तम लोगो का भी था- अनब तम भी िपछली बातो को भल जाओ। इनकी तरफ स अनब िकसी तरह की सखती न होगी। इनह तमहारी जायदाद नीलाम करन का हकम िमलगा , नीलाम करग िगरफतार करन का हकम िमलगा, िगरफतार करग तमह बरा न लगना चािहए। तम धमरय की लडाई लड रह हो। लडाई नही, यह तपसया ह। तपसया म करोध और दवष आ जाता ह, तो तपसया भग हो जाती ह।'

सवामीजी बोल-धमरय की रकषा एक ओर स नही होती सरकार नीित बनाती ह। उस नीित की रकषा करनी चािहए। जब उसक कमरयचारी नीित को परो स कचलत ह, तो िफर जनता कस नीित की रकषा कर सकती ह-

समरकानत न फटकार बताई-आप सनयासी होकर ऐसा कहत ह, सवामीजी आपको अनपनी नीितपरकता स अनपन शासको को नीित पर लाना ह। यिद वह नीित पर ही होत, तो आपको यह तपसया कयो करनी पडती- आप अननीित पर अननीित स नही, नीित स िवजय पा सकत ह।

सवामीजी का मह जरा-सा िनकल आया। जबान बद हो गई।

सलोनी का पीिडत हदय पकषी क समान िपजर स िनकलकर भी कोई आशरय खिोज रहा था। सजजनता और सतपरणा स भरा हआ यह ितरसकार उसक सामन जस दान िबखरन लगा। पकषी न दो-चार बार गरदन झकाकर दानो को सतकरक नतरो स दखिा, िफर अनपन रकषक को 'आ, आ' करत सना और पर फलाकर दानो पर उतर आया।

सलोनी आखिो म आस भर, दोनो हाथ जोड, सलीम क सामन आकर बोली-सरकार, मझस बडी खिता हो गई। माफी दीिजए। मझ जतो स पीिटए.।

सठजी न कहा-सरकार नही, बटा कहो।

'बटा, मझस बडा अनपराध हआ। मरखि ह, बावली ह। जो चाह सजा दो।'

सलीम क यवा नतर भी सजल हो गए। हकमत का रोब और अनिधकार का गवरय भल गया। बोला-माताजी, मझ शिमदा न करो। यहा िजतन लोग खिड ह, म उन सबस और जो यहा नही ह, उनस भी अनपनी खिताआ की मआफी चाहता ह।

गदड न कहा-हम तमहार गलाम ह भया लिकन मरखि जो ठहर, आदमी पहचानत तो कयो इतनी बात

239 www.hindustanbooks.com

होती-

सवामीजी न समरकानत क कान म कहा-मझ तो ऐसा जान पडता ह िक दगा करगा।

सठजी न आशवासन िदया-कभी नही। नौकरी चाह चली जाय पर तमह सताएगा नही। शरीफ आदमी ह।

'तो कया हम परा लगान दना पडगा?'

'जब कछ ह ही नही, तो दोग कहा स?'

सवामीजी हट तो सलीम न आकर सठजी क कान म कछ कहा।

सठजी मसकराकर बोल-यह साहब तम लोगो क दवा-दार क िलए एक सौ रपय भट कर रह ह। म अनपनी ओर स उसम नौ सौ रपय िमलाए दता ह। सवामीजी, डाक बगल पर चलकर मझस रपय ल लो।

गदड न कततजञता को दबात हए कहा-भया' पर मखि स एक शबद भी न िनकला।

समरकानत बोल-यह मत समझो िक यह मर रपय ह। म अनपन बाप क घर स नही लाया। तमही स, तमहारा ही गला दबाकर िलए थ। वह तमह लौटा रहा ह।

गाव म जहा िसयापा छाया हआ था, वहा रौनक नजर आन लगी। जस कोई सगीत वाय म घल गया हो ।

240 www.hindustanbooks.com

पाचअनमरकानत को जल म रोज-रोज का समाचार िकसी-न-िकसी तरह िमल जाता था। िजस िदन मार-पीट

और अनिगनकाड की खिबर िमली, उसक करोध का वारापार न रहा और जस आग बझकर राखि हो जाती ह, थोडी दर क बाद करोध की जगह कवल नराशय रह गया। लोगो क रोन-पीटन की ददरय-भरी हाय-हाय जस मितमान होकर उसक सामन िसर पीट रही थी। जलत हए घरो की लपट जस उस झलसा डालती थी। वह सारा भीषण दशय कलपनातीत होकर सवरयनाश क समीप जा पहचा था और इसकी िजममदारी िकस पर थी- रपय तो यो भी वसल िकए जात पर इतना अनतयाचार तो न होता, कछ िरआयत तो की जाती। सरकार इस िवदरोह क बाद िकसी तरह भी नमी का बताव न कर सकती थी, लिकन रपया न द सकना तो िकसी मनषय का दोष नही यह मदी की बला कहा स आई, कौन जान- यह तो ऐसा ही ह िक आधी म िकसी का छपपर उड जाए और सरकार उस दड द। यह शासन िकसक िहत क िलए ह- इसका उददशय कया ह-

इन िवचारो स तग आकर उसन नराशय म मह िछपाया। अनतयाचार हो रहा ह। होन दो। म कया कर- कर ही कया सकता ह म कौन ह- मझस मतलब- कमजोरो क भागय म जब तक मार खिाना िलखिा ह, मार खिाएग। म ही यहा कया फलो की सज पर सोया हआ ह- अनगर ससार क सार पराणी पश हो जाए, तो म कया कर- जो कछ होगा, होगा। यह भी ईशवर की लीला ह वाह र तरी लीला अनगर ऐसी ही लीलाआ म तमह आनद आता ह , तो तम दयामय कयो बनत हो- जबदरयसत का ठगा िसर पर, कया यह भी ईशवरीय िनयम ह-

जब सामन कोई िवकट समसया आ जाती थी, तो उसका मन नािसतकता की ओर झक जाता था। सारा िवशव ऋषखिला-हीन, अनवयविसथत, रहसयमय जान पडता था।

उसन बान बटना शर िकया लिकन आखिो क सामन एक दसरा ही अनिभनय हो रहा था-वही सलोनी ह, िसर क बाल खिल हए, अनधरयनगन। मार पड रही ह। उसक रदन की करणाजनक धविन कानो म आन लगी। िफर मननी की मित सामन आ खिडी हई। उस िसपािहयो न िगरफतार कर िलया ह और खिीच िलए जा रह ह। उसक मह स अननायास ही िनकल गया-हाय-हाय, यह कया करत हो िफर वह सचत हो गया और बान बटन लगा।

रात को भी यह दशय आखिो म िफरा करत वही करदन कानो म गजा करता। इस सारी िवपितत का भार अनपन िसर पर लकर वह दबा जा रहा था। इस भार को हलका करन क िलए उसक पास कोई साधन न था। ईशवर का बिहषकार करक उसन मानो नौका का पिरतयाग कर िदया था और अनथाह जल म डबा जा रहा था। कमरय -िजजञासा उस िकसी ितनक का सहारा न लन दती थी। वह िकधर जा रहा ह और अनपन साथ लाखिो िनससहाय परािणयो को िकधर िलए जा रहा ह- इसका कया अनत होगा- इस काली घटा म कही चादी की झालर ह वह चाहता था, कही स आवाज आए-बढ आओ बढ आओ यही सीधा रासता ह पर चारो तरफ िनिवड, सघन अनधकार था। कही स कोई आवाज नही आती, कही परकाश नही िमलता। जब वह सवय अनधकार म पडा हआ ह, सवय नही जानता आग सवगरय की शीतल छाया ह, या िवधवस की भीषण जवाला, तो उस कया अनिधकार ह िक इतन परािणयो की जान आफत म डाल। इसी मानिसक पराभव की दशा म उसक अनत:करण स िनकला-ईशवर, मझ परकाश दो, मझ उबारो। और वह रोन लगा।

सबह का वकत था, किदयो की हािजरी हो गई थी। अनमर का मन कछ शात था। वह परचड आवग शात हो गया था और आकाश म छाई हई गदरय बठ गई थी। चीज साफ-साफ िदखिाई दन लगी थी। अनमर मन म िपछली

241 www.hindustanbooks.com

घटनाआ की आलोचना कर रहा था। कारण और कायरय क सतरो को िमलान की चषटिा करत हए सहसा उस एक ठोकर-सी लगी-नना का वह पतर और सखिदा की िगरफतारी। इसी स तो वह आवश म आ गया था और समझौत का ससाधय मागरय छोडकर उस दगरयम पथ की ओर झक पडा था। इस ठोकर न जस उसकी आख खिोल दी। मालम हआ, यह यश-लालसा का, वयिकतगत सपधा का, सवा क आवरण म िछप हए अनहकार का खल था। इस अनिवचार और आवश का पिरणाम इसक िसवा और कया होता-

अनमर क समीप एक कदी बठा बान बट रहा था। अनमर न पछा-तम कस आए, भई-

उसन कौतहल स दखिकर कहा-'पहल तम बताओ।'

'मझ तो नाम की धन थी।'

'मझ धन की धन थी ।'

उसी वकत जलर न आकर अनमर स कहा-तमहारा तबादला लखिनऊ हो गया ह। तमहार बाप आए थ। तमस िमलना चाहत थ। तमहारी मलाकात की तारीखि न थी। साहब न इकार कर िदया।

अनमर न आशचियरय स पछा-मर िपताजी यहा आए थ-

'हा-हा, इसम ताजजब की कया बात ह- िम. सलीम भी उनक साथ थ।'

'इलाक की कछ नई खिबर?'

'तमहार बाप न शायद सलीम साहब को समझाकर गाव वालो स मल करा िदया ह। शरीफ आदमी ह, गाव वालो क इलाज वगरह क िलए एक हजार रपय द िदए।'

अनमर मसकराया।

'उनही की कोिशश स तमहारा तबादला हो रहा ह। लखिनऊ म तमहारी बीवी भी आ गई ह। शायद उनह छ : महीन की सजा हई ह।'

अनमर खिडा हो गया-सखिदा भी लखिनऊ म ह ।

अनमर को अनपन मन म िवलकषण शाित का अननभव हआ। वह िनराशा कहा गई- दबरयलता कहा गई-

वह िफर बठकर बान बटन लगा। उसक हाथो म आज गजब की फती ह। ऐसा कायापलट ऐसा मगलमय पिरवतरयन कया अनब भी ईशवर की दया म कोई सदह हो सकता ह- उसन काट बोए थ। वह सब फल हो गए।

सखिदा आज जल म ह। जो भोग-िवलास पर आसकत थी, वह आज दीनो की सवा म अनपना जीवन साथरयक कर रही ह। िपताजी, जो पसो को दात स पकडत थ वह आज परोपकार म रत ह। कोई दवी शिकत नही ह तो यह सब कछ िकसकी पररणा स हो रहाह।

उसन मन की सपणरय शरधदा स ईशवर क चरणो म वदना की। वह भार, िजसक बोझ स वह दबा जा रहा था, उसक िसर स उतर गया था। उसकी दह हलकी थी, मन हलका था और आग आन वाली ऊपर की चढाई, मानो उसका सवागत कर रही थी।

242 www.hindustanbooks.com

छःअनमरकानत को लखिनऊ जल म आए आज तीसरा िदन ह। यहा उस चककी का काम िदया गया ह। जल क

अनिधकािरयो को मालम ह, वह धानी का पतर ह, इसिलए उस किठन पिरशरम दकर भी उसक साथ कछ िरआयत की जाती ह।

एक छपपर क नीच चिककयो की कतार लगी हई ह। दो-दो कदी हरक चककी क पास खिड आटा पीस रह ह। शाम को आट की तौल होगी। आटा कम िनकला, तो दड िमलगा।

अनमर न अनपन सगी स कहा-जरा ठहर जाओ भाई, दम ल ल, मर हाथ नही चलत। कया नाम ह तमहारा- मन तो शायद तमह कही दखिा ह।

सगी गठीला, काला, लाल आखिो वाला, कठोर आकतित का मनषय था, जो पिरशरम स थकना न जानता था। मसकराकर बोला-म वही काल खिा ह, एक बार तमहार पास सोन क कड बचन गया था। याद करो लिकन तम यहा कस आ फस, मझ यह ताजजब हो रहा ह। परसो स ही पछना चाहता था पर सोचता था, कही धोखिा न हो रहा हो।

अनमर न अनपनी कथा सकषप म कह सनाई और पछा-तम कस आए-

काल खिा हसकर बोला-मरी कया पछत हो लाला, यहा तो छ: महीन बाहर रहत ह, तो छ: साल भीतर। अनब तो यही आरज ह िक अनललाह यही स बला ल। मर िलए बाहर रहना मसीबत ह। सबको अनचछा-अनचछा पहनत, अनचछा-अनचछा खिात दखिता ह, तो हसद होता ह, पर िमल कहा स- कोई हनर आता नही, इलम ह नही। चोरी न कर, डाका न माइ, तो खिाऊ कया- यहा िकसी स हसद नही होता, न िकसी को अनचछा पहनत दखिता ह, न अनचछा खिात। सब अनपन ही जस ह, िफर डाह और जलन कयो हो- इसीिलए अनललाहताला स दआ करता ह िक यही स बला ल। छटन की आरज नही ह। तमहार हाथ दखि गए हो तो रहन दो। म अनकला ही पीस डालगा। तमह इन लोगो न यह काम िदया ही कयो- तमहार भाई-बद तो हम लोगो स अनलग, आराम स रख जात ह। तमह यहा कयो डाल िदया- हट जाओ।

अनमर न चककी की मिठया जोर स पकडकर कहा-नही-नही, म थका नही ह। दो-चार िदन म आदत पड जाएगी, तो तमहार बराबर काम करगा।

काल खिा न उस पीछ हटात हए कहा-मगर यह तो अनचछा नही लगता िक तम मर साथ चककी पीसो। तमन जमरय नही िकया ह। िरआया क पीछ सरकार स लड हो, तमह म न पीसन दगा। मालम होता ह तमहार िलए ही अनललाह न मझ यहा भजा ह। वह तो बडा कारसाज आदमी ह। उसकी कदरत कछ समझ म नही आती। आप ही आदमी स बराई करवाता ह आप ही उस सजा दता ह, और आप ही उस मआफ कर दता ह।

अनमर न आपितत की-बराई खिदा नही कराता, हम खिद करत ह।

काल खिा न ऐसी िनगाहो स उसकी ओर दखिा, जो कह रही थी, तम इस रहसय को अनभी नही समझ सकत-ना-ना, म यह नही मानगा। तमन तो पढा होगा, उसक हकम क बगर एक पतता भी नही िहल सकता, बराई कौन करगा- सब कछ वही करवाता ह, और िफर माफ भी कर दता ह। यह म मह स कह रहा ह। िजस िदन मर ईमान म यह बात जम जाएगी, उसी िदन बराई बद हो जाएगी। तमही न उस िदन मझ वह नसीहत िसखिाई थी। म तमह

243 www.hindustanbooks.com

अनपना पीर समझता ह। दो सौ की चीज तमन तीस रपय म न ली। उसी िदन मझ मालम हआ,0 बदी कया चीज ह। अनब सोचता ह, अनललाह को कया मह िदखिाऊगा- िजदगी म इतन गनाह िकए ह िक जब उनकी याद आती ह, तो रोए खिड हो जात ह। अनब तो उसी की रहीमी का भरोसा ह। कयो भया, तमहार मजहब म कया िलखिा ह- अनललाह गनहगारो को मआफ कर दता ह-

काल खिा की कठोर मदरा इस गहरी, सजीव, सरल भिकत स परदीपत हो उठी, आखिो म कोमल छटा उदय हो गई। और वाणी इतनी ममरयसपशी, इतनी आदररय थी िक अनमर का हदय पलिकत हो उठा-सनता तो ह खिा साहब, िक वह बडा दयाल ह।

काल खिा दन वग स चककी घमाता हआ बोला-बडा दयाल ह, भया मा क पट म बचच को भोजन पहचाता ह। यह दिनया ही उसकी रहीमी का आईना ह। िजधर आख उठाओ, उसकी रहीमी क जलव। इतन खिनी-डाक यहा पड हए ह, उनक िलए भी आराम का सामान कर िदया। मौका दता ह, बार-बार मौका दता ह िक अनब भी सभल जाव। उसका गससा कौन सहगा, भया- िजस िदन उस गससा आवगा, यह दिनया जहननम को चली जाएगी। हमार-तमहार ऊपर वह कयो गससा करगा- हम चीटी को परो तल पडत दखिकर िकनार स िनकल जात ह। उस कचलत रहम आता ह। िजस अनललाह न हमको बनाया, जो हमको पालता ह, वह हमार ऊपर कभी गससा कर सकता ह- कभी नही।

अनमर को अनपन अनदर आसथा की एक लहर-सी उठती हई जान पडी। इतन अनटल िवशवास और सरल शरधदा क साथ इस िवषय पर उसन िकसी को बात करत न सना था। बात वही थी, जो वह िनतय छोट-बड क मह स सना करता था, पर िनषठा न उन शबदो म जान सी डाल दी थी।

जरा दर बाद वह िफर बोला-भया, तमस चककी चलवाना तो ऐस ही ह, जस कोई तलवार स िचिडए को हलाल कर। तमह अनसपताल म रखिना चािहए था, बीमारी म दवा स उतना फायदा नही होता, िजतना मीठी बात स हो जाता ह। मर सामन यहा कई कदी बीमार हए पर एक भी अनचछा न हआ। बात कया ह- दवा कदी क िसर पर पटक दी जाती ह, वह चाह िपए चाह फक द।

अनमर को इस काली-कलटी काया म सवणरय-जसा हदय चमकता दीखि पडा। मसकराकर बोला-लिकन दोनो काम साथ-साथ कस करगा-

'म अनकला चककी चला लगा और परा आटा तलवा दगा।'

'तब तो सारा सवाब तमही को िमलगा।'

काल खिा न साध-भाव स कहा-भया, कोई काम सवाब समझकर नही करना चािहए। िदल को ऐसा बना लो िक सवाब म उस वही मजा आव, जो गान या खलन म आता ह। कोई काम इसिलए करना िक उसस नजात िमलगी, रोजगार ह िफर म तमह कया समझाऊ तम खिद इन बातो को मझस जयादा समझत हो। म तो मरीज की तीमारदारी करन क लायक ही नही ह। मझ बडी जलदी गससा आ जाता ह। िकतना चाहता ह िक गससा न आए पर जहा िकसी न दो-एक बार मरी बात न मानी और म िबगडा।

वही डाक, िजस अनमर न एक िदन अनधमता क परो क नीच लोटत दखिा था, आज दवतव क पद पर पहच गया था। उसकी आतमा स मानो एक परकाश-सा िनकलकर अनमर क अनत:करण को अनवलोिकत करन लगा।

उसन कहा-लिकन यह तो बरा मालम होता ह िक महनत का काम तम करो और म...।

244 www.hindustanbooks.com

काल खिा न बात काटी-भया, इन बातो म कया रखिा ह- तमहारा काम इस चककी स कही किठन होगा। तमह िकसी क बात करन तक की महलत न िमलगी। म रात को मीठी नीद सोऊगा। तमह रात जाफकर काटनी पडगी। जान-जोिखिम भी तो ह। इस चककी म कया रखिा ह- यह काम तो गधा भी कर सकता ह, लिकन जो काम तम करोग, वह िवरल कर सकत ह।

सयासत हो रहा था। काल खिा न अनपन पर गह पीस डाल थ और दसर किदयो क पास जा-जाकर दखि रहा था, िकसका िकतना काम बाकी ह। कई किदयो क गह अनभी समापत नही हए थ। जल कमरयचारी आटा तौलन आ रहा होगा। इन बचारो पर आफत आ जाएगी, मार पडन लगगी। काल खिा न एक-एक चककी क पास जाकर किदयो की मदद करनी शर की। उसकी फती और महनत पर लोगो को िवसमय होता था। आधा घट म उसन िफसिडडयो की कमी परी कर दी। अनमर अनपनी चककी क पास खिडा सवा क पतल को शरधदा-भरी आखिो स दखि रहा था, मानो िदवय दशरयन कर रहा हो।

काल खिा इधर स फरसत पाकर नमाज पढन लगा। वही बरामद म उसन वज िकया, अनपना कबल जमीन पर िबछा िदया और नमाज शर की। उसी वकत जलर साहब चार वाडरयरो क साथ आटा तलवान आ पहच। किदयो न अनपना-अनपना आटा बोिरयो म भरा और तराज क पास आकर खिडा हो गए। आटा तलन लगा।

जलर न अनमर स पछा-तमहारा साथी कहा गया-

अनमर न बताया, नमाज पढ रहा ह।

'उस बलाओ। पहल आटा तलवा ल, िफर नमाज पढ। बडा नमाजी की दम बना ह। कहा गया ह नमाज पढन?'

अनमर न शड क पीछ की तरफ इशारा करक कहा-उनह नमाज पढन द आप आटा तौल ल।

जलर यह कब दखि सकता था िक कोई कदी उस वकत नमाज पढन जाय, जब जल क साकषात परभ पधार हो शड क पीछ जाकर बोल-अनब ओ नमाजी क बचच, आटा कयो नही तलवाता- बचा, गह चबा गए हो, तो नमाज का बहाना करन लग। चल चटपट, वरना मार हटरो क चमडी उधोड दगा।

काल खिा दसरी ही दिनया म था।

जलर न समीप जाकर अनपनी छडी उसकी पीठ म चभात हए कहा-बहरा हो गया ह कया ब- शामत तो नही आई ह-

काल खिा नमाज म मगन था। पीछ िफरकर भी न दखिा।

जलर न झललाकर लात जमाई। काल खिा िसजद क िलए झका हआ था। लात खिाकर आधो मह िगर पडा पर तरत सभलकर िफर िसजद म झक गया। जलर को अनब िजद पड गई िक उसकी नमाज बद कर द। सभव ह काल खिा को भी िजद पड गई हो िक नमाज परी िकए बगर न उठगा। वह तो िसजद म था। जलर न उस बटदार ठोकर जमानी शर की एक वाडरयन न लपककर दो गारद िसपाही बला िलए। दसरा जलर साहब की कमक पर दौडा। काल खिा पर एक तरफ स ठोकर पड रही थी, दसरी तरफ स लकिडया पर वह िसजद स िसर न उठाता था। हा, परतयक आघात पर उसक मह स 'अनललाहो अनकबर ।' की िदल िहला दन वाली सदा िनकल जाती थी। उधर आघातकािरयो की उततजना भी बढती जाती थी। जल का कदी जल क खिदा को िसजदा न करक अनपन खिदा

245 www.hindustanbooks.com

को िसजदा कर, इसस बडा जलर साहब का कया अनपमान हो सकता था यहा तक िक काल खिा क िसर स रिधर बहन लगा। अनमरकानत उसकी रकषा करन क िलए चला था िक एक वाडरयन न उस मजबती स पकड िलया। उधर बराबर आघात हो रह थ और काल खिा बराबर 'अनललाहो अनकबर' की सदा लगाए जाता था। आिखिर वह आवाज कषीण होत-होत एक बार िबलकल बद हो गई और काल खिा रकत बहन स िशिथल हो गया। मगर चाह िकसी क कानो म आवाज न जाती हो, उसक होठ अनब भी खिल रह थ और अनब भी 'अनललाहो अनकबर' की अनवयकत धविन िनकल रही थी।

जलर न िखििसयाकर कहा-पडा रहन दो बदमाश को यही कल स इस खिडी बडी दगा और तनहाई भी। अनगर तब भी न सीधा हआ, तो उलटी होगी। इसका नमाजीपन िनकाल न द तो नाम नही।

एक िमनट म वाडरयन, जलर, िसपाही सब चल गए। किदयो क भोजन का समय आया, सब-क-सब भोजन पर जा बठ। मगर काल खिा अनभी वही आधा पडा था। िसर और नाक तथा कानो स खिन बह रहा था। अनमरकानत बठा उसक घावो को पानी स धोरहा था और खिन बद करन का परयास कर रहा था। आतमशिकत क इस कलपनातीत उदाहरण न उसकी भौितक बिदधि को जस आकरात कर िदया। ऐसी पिरिसथित म कया वह इस भाित िनशचिल और सयिमत बठा रहता- शायद पहल ही आघात म उसन या तो परितकार िकया होता या नमाज छोडकर अनलग हो जाता। िवजञान और नीित और दशानराग की वदी पर बिलदानो की कमी नही। पर यह िनशचिल धयरय ईशवर-िनषठा ही का परसाद ह।

कदी भोजन करक लौट। काल खिा अनब भी वही पडा हआ था। सभी न उस उठाकर बरक म पहचाया और डॉकटर को सचना दी पर उनहोन रात को कषटि उठान की जररत न समझी। वहा और कोई दवा भी न थी। गमरय पानी तक न मयससर हो सका।

उस बरक क किदयो न रात बठकर काटी। कई आदमी आमादा थ िक सबह होत ही जलर साहब की मरममत की जाय। यही न होगा, साल-साल भर की िमयाद और बढ जाएगी। कया परवाह अनमरकानत शात परकतित का आदमी था, पर इस समय वह भी उनही लोगो म िमला हआ था। रात-भर उसक अनदर पश और मनषय म दवदव होता रहा। वह जानता था, आग आग स नही, पानी स शात होती ह। इसान िकतना ही हवान हो जाय उसम कछ न कछ आदमीयत रहती ही ह। वह आदमीयत अनगर जाग सकती ह, तो गलािन स, या पशचाताप स। अनमर अनकला होता, तो वह अनब भी िवचिलत न होता लिकन सामिहक आवश न उस भी अनिसथर कर िदया। समह क साथ हम िकतन ही ऐस अनचछ-बर काम कर जात ह, जो हम अनकल न कर सकत। और काल खिा की दशा िजतनी ही खिराब होती जाती थी, उतनी ही परितशोध की जवाला भी परचड होती जाती थी।

एक डाक क कदी न कहा-खिन पी जाऊगा, खिन उसन समझा कया ह यही न होगा, फासी हो जाएगी-

अनमरकानत बोला-उस वकत कया समझ थ िक मार ही डालता ह ।

चपक-चपक षडयतर रचा गया, आघातकािरयो का चनाव हआ, उनका कायरय िवधन िनशचिय िकया गया। सफाई की दलील सोच िनकाली गइ।

सहसा एक िठगन कदी न कहा-तम लोग समझत हो, सवर तक उस खिबर न हो जाएगी-

अनमर न पछा-खिबर कस होगी- यहा ऐसा कौन ह, जो उस खिबर द द-

िठगन कदी न दाए-बाए आख घमाकर कहा-खिबर दन वाल न जान कहा स िनकल आत ह, भया- िकसी क

246 www.hindustanbooks.com

माथ पर तो कछ िलखिा नही, कौन जान हमी म स कोई जाकर इिततला कर द- रोज ही तो लोगो को मखििबर बनत दखित हो। वही लोग जो अनगआ होत ह, अनवसर पडन पर सरकारी गवाह बन जात ह। अनगर कछ करना ह, तो अनभी कर डालो। िदन को वारदात करोग, सब-क-सब पकड िलए जाओग। पाच-पाच साल की सजा ठकजाएगी।

अनमर न सदह क सवर म पछा-लिकन इस वकत तो वह अनपन कवाटरयर म सो रहा होगा-

िठगन कदी न राह बताई-यह हमारा काम ह भया, तम कया जानो-

सबो न मह मोडकर कनफसिकयो म बात शर की। िफर पाचो आदमी खिड हो गए।

िठगन कदी न कहा-हमम स जो ठठट, उस गऊ हतया ।

यह कहकर उसन बड जोर स हाय-हाय करना शर िकया। और भी कई आदमी चीखिन िचललान लग। एक कषण म वाडरयन न दवार पर आकर पछा-तम लोग कयो शोर कर रह हो- कया बात ह-

िठगन कदी न कहा-बात कया ह, काल खिा की हालत खिराब ह। जाकर जलर साहब को बला लाओ। चटपट।

वाडरयन बोला-वाह ब चपचाप पडा रह बडा नवाब का बटा बना ह ।

'हम कहत ह जाकर उनह भज दो नही, ठीक नही होगा।'

काल खिा न आख खिोली और कषीण सवर म बोला-कयो िचललात हो यारो, म अनभी मरा नही ह। जान पडता ह, पीठ की हडडी म चोट ह।

िठगन कदी न कहा-उसी का बदला चकान की तयारी ह पठान ।

काल खिा ितरसकार क सवर म बोला-िकसस बदला चकाओग भाई, अनललाह स- अनललाह की यही मरजी ह, तो उसम दसरा कौन दखिल द सकता ह- अनललाह की मजी क िबना कही एक पतती भी िहल सकती ह- जरा मझ पानी िपला दो। और दखिो, जब म मर जाऊ, तो यहा िजतन भाई ह, सब मर िलए खिदा स दआ करना। और दिनया म मरा कौन ह- शायद तम लोगो की दआ स मरी िनजात हो जाय।

अनमर न उस गोद म सभालकर पानी िपलाना चाहा मगर घट कठ क नीच न उतरा। वह जोर स कराहकर िफर लट गया।

िठगन कदी न दात पीसकर कहा-ऐस बदमास की गरदन तो उलटी छरी स काटनी चािहए ।

काल खिा दीनभाव स रक-रककर बोला-कयो मरी नजात का दवार बद करत हो, भाई दिनया तो िबगड गई कया आकबत भी िबफाडना चाहत हो- अनललाह स दआ करो, सब पर रहम कर। िजदगी म कया कम गनाह िकए ह िक मरन क पीछ पाव म बिडया पडी रह या अनललाह, रहम कर।

इन शबदो म मरन वाल की िनमरयल आतमा मानो वयापत हो गई थी। बात वही थी, तो रोज सना करत थ, पर इस समय इनम कछ ऐस दरावक, कछ ऐसी िहला दन वाली िस' िथी िक सभी जस उसम नहा उठ। इस चटकी भर राखि न जस उनक तापमय िवकारो को शात कर िदया।

परात:काल जब काल खिा न अनपनी जीवन-लीला समापत कर दी तो ऐसा कोई कदी न था, िजसकी आखिो स

247 www.hindustanbooks.com

आस न िनकल रह हो पर औरो का रोना द:खि का था, अनमर का रोना सखि का था। औरो को िकसी आतमीय क खिो दन का सदमा था, अनमर को उसक और समीप हो जान का अननभव हो रहा था। अनपन जीवन म उसन यही एक नवरतन पाया था, िजसक सममखि वह शरधदा स िसर झका सकता था और िजसस िवयोग हो जान पर उस एक वरदान पा जान का भान होता था।

इस परकाश-सतभ न आज उसक जीवन को एक दसरी ही धारा म डाल िदया जहा सशय की जगह िवशवास, और शका की जगह सतय मितमान हो गया था।

248 www.hindustanbooks.com

सातलाला समरकानत क चल जान क बाद सलीम न हर एक गाव का दौरा करक अनसािमयो की आिथक दशा

की जाच करनी शर की। अनब उस मालम हआ िक उनकी दशा उसस कही हीन ह, िजतनी वह समझ बठा था। पदावर का मलय लागत और लगान स कही कम था। खिान-कपड की भी गजाइश न थी, दसर खिचो का कया िजकर- ऐसा कोई िबरला ही िकसान था, िजसका िसर क नीच न दबा हो। कॉलज म उसन अनथरयशासतर अनवशय पढा था और जानता था िक यहा क िकसानो की हालत खिराब ह, पर अनब जञात हआ ह िक पसतक-जञान और परतयकष वयवहार म वही अनतर ह, जो िकसी मनषय और उसक िचतर म ह। जयो-जयो अनसली हालत मालम होती जाती थी उस अनसािमयो स सहानभित होती जाती थी। िकतना अननयाय ह िक जो बचार रोिटयो को महताज हो , िजनक पास तन ढकन को कवल चीथड हो, जो बीमारी म एक पस की दवा भी न कर सकत हो। िजनक घरो म दीपक भी न जलत हो, उनस परा लगान वसल िकया जाए। जब िजस महगी थी, तब िकसी तरह एक जन रोिटया िमल जाती थी। इस मदी म तो उनकी दशा वणरयनातीत हो गई ह। िजनक लडक पाच-छ: बरस की उमर स महनत-मजरी करन लग, जो इधन क िलए हार म गोबर चनत िफर, उनस परा लगान वसल करना, मानो उनक मह स रोटी का टकडा छीन लना ह, उनकी रकत-हीन दह स खिन चसना ह।

पिरिसथित का यथाथरय जञान होत ही सलीम न अनपन कतरयवय का िनशचिय कर िलया। वह उन आदिमयो म न था, जो सवाथरय क िलए अनफसरो क हर एक हकम की पाबदी करत ह। वह नौकरी करत हए भी आतमा की रकषा करना चाहता था। कई िदन एकात म बठकर उसन िवसतार क साथ अनपनी िरपोटरय िलखिी और िम. गजनवी क पास भज दी। िम. गजनवी न उस तरत िलखिा-आकर मझस िमल जाओ। सलीम उनस िमलना न चाहता था। डरता था, कही यह मरी िरपोटरय को दबान का परसताव न कर, लिकन िफर सोचा-चलन म हजरय ही कया ह- अनगर मझ कायल कर द, तब तो कोई बात नही लिकन अनफसरो क भय स म अनपनी िरपोटरय को कभी न दबन दगा। उसी िदन वह सधया समय सदर पहचा।

िम. गजनवी न तपाक स हाथ बढात हए कहा-िम. अनमरकानत क साथ तो तमन दोसती का हक खिब अनदा िकया। वह खिद शायद इतनी मफिससल िरपोटरय न िलखि सकत लिकन तम कया समझत हो, सरकार को यह बात मालम नही-

सलीम न कहा-मरा तो ऐसा ही खियाल ह। उस जो िरपोटरय िमलती ह, वह खिशामदी अनहलकारो स िमलती ह, जो िरआया का खिन करक भी सरकार का घर भरना चाहत ह। मरी िरपोटरय वाकयात पर िलखिी गई ह।

दोनो अनफसरो म बहस होन लगी। गजनवी कहता था-हमारा काम कवल अनफसरो की आजञा मानना ह। उनहोन लगान वसल करन की आजञा दी। हम लगान वसल करना चािहए। परजा को कषटि होता ह तो हो , हम इसस परयोजन नही। हम खिद अनपनी आमदनी का टकस दन म कषटि होता ह लिकन मजबर होकर दत ह। कोई आदमी खिशी स टकस नही दता।

गजनवी इस आजञा का िवरोध करना अननीित ही नही, अनधमरय समझता था। कवल जाबत की पाबदी स उस सतोष न हो सकता था। वह इस हकम की तामील करन क िलए सब कछ करन को तयार था। सलीम का कहना था-हम सरकार क नौकर कवल इसिलए ह िक परजा की सवा कर सक, उस सदशा की ओर ल जा सक, उसकी उननित म सहायक हो सक। यिद सरकार की िकसी आजञा स इन उददशयो की पित म बाधा पडती ह, तो हम उस

249 www.hindustanbooks.com

आजञा को कदािप न मानना चािहए।

गजनवी न मह लबा करक कहा-मझ खिौफ ह िक गवनरयमट तमहारा यहा स तबादला कर दगी।

'तबादला कर द इसकी मझ परवाह नही लिकन मरी िरपोटरय पर गौर करन का वादा कर। अनगर वह मझ यहा स हटा कर मरी िरपोटरय को दािखिल दफतर करना चाहगी, तो म इसतीफा द दगा।'

गजनवी न िवसमय स उसक मह की ओर दखिा।

'आप गवनरयमट की िदककतो का मतलक अनदाजा नही कर रह ह। अनगर वह इतनी आसानी स दबन लग, तो आप समझत ह, िरआया िकतनी शर हो जाएगी जरा-जरा-सी बात पर तफान खिड हो जाएग। और यह महज इस इलाक का मआमला नही ह, सार मलक म यही तहरीक जारी ह। अनगर सरकार अनससी फीसदी काशतकारो क साथ िरआयत कर, तो उसक िलए मलक का इतजाम करना दशवार हो जाएगा।'

सलीम न परशन िकया-गवनरयमट िरआया क िलए ह, िरआया गवनरयमट क िलए नही। काशतकारो पर जलम करक, उनह भखिो मारकर अनगर गवनरयमट िजदा रहना चाहती ह, तो कम-स-कम म अनलग हो जाऊगा। अनगर मािलयत म कमी आ रही ह तो सरकार को अनपना खिचरय घटाना चािहए, न िक िरआया पर सिखतया की जाए।

गजनवी न बहत ऊच-नीच सझाया लिकन सलीम पर कोई अनसर न हआ। उस डडो स लगान वसल करना िकसी तरह मजर न था। आिखिर गजनवी न मजबर होकर उसकी िरपोटरय ऊपर भज दी, और एक ही सपताह क अनदर गवनरयमट न उस पथक कर िदया। ऐस भयकर िवदरोही पर वह कस िवशवास करती-

िजस िदन उसन नए अनफसर को चाजरय िदया और इलाक स िवदा होन लगा, उसक डर क चारो तरफ सतरी-परषो का एक मला लग गया और सब उसस िमननत करन लग, आप इस दशा म हम छोडकर न जाए। सलीम यही चाहता था। बाप क भय स घर न जा सकता था। िफर इन अननाथो स उस सनह हो गया था। कछ तो दया और कछ अनपन अनपमान न उस उनका नता बना िदया। वही अनफसर जो कछ िदन पहल अनफसरी क मद स भरा हआ आया था, जनता का सवक बन बठा। अनतयाचार सहना अनतयाचार करन स कही जयादा गौरव की बात मालम हई।

आदोलन की बागडोर सलीम क हाथ म आत ही लोगो क हौसल बध गए। जस पहल अनमरकानत आतमाननद क साथ गाव-गाव दौडा करता था, उसी तरह सलीम दौडन लगा। वही सलीम, िजसक खिन क लोग पयास हो रह थ, अनब उस इलाक का मकटहीन राजा था। जनता उसक पसीन की जगह खिन बहान को तयार थी।

सधया हो गई थी। सलीम और आतमाननद िदन-भर काम करन क बाद लौट थ िक एकाएक नए बगाली िसिविलयन िम. घोष पिलस कमरयचािरयो क साथ आ पहच और गाव भर क मविशयो की ककरक करन की घोषणा कर दी। कछ कसाई पहल ही स बला िलए गए थ। व ससता सौदा खिरीदन को तयार थ। दम-क-दम म कासटबलो न मविशयो को खिोल-खिोलकर मदरस क दवार पर जमा कर िदया। गदड, भोला, अनलग सभी चौधरी िगरफतार हो चक थ। फसल की ककी तो पहल ही हो चकी थी मगर फसल म अनभी कया रखिा था- इसिलए अनब अनिधकािरयो न मविशयो को ककरक करन का िनशचिय िकया था। उनह िवशवास था िक िकसान मविशयो की ककी दखिकर भयभीत हो जाएग, और चाह उनह कजरय लना पड, या िसतरयो क गहन बचन पड, व जानवरो को बचान क िलए सब कछ करन को तयार होग। जानवर िकसान क दािहन हाथ ह।

िकसानो न यह घोषणा सनी, तो छकक छट गए। व समझ बठ थ िक सरकार और जो चाह कर, पर

250 www.hindustanbooks.com

मविशयो को ककरक न करगी। कया वह िकसानो की जड खिोदकर फक दगी।

यह घोषणा सनकर भी व यही समझ रह थ िक यह कवल धामकी ह लिकन जब मवशी मदरस क सामन जमा कर िदए गए और कसाइयो न उनकी दखिभाल शर की तो सभी पर जस वजाघात हो गया। अनब समसया उस सीमा तक पहची थी, जब रकत का आदान-परदान आरभ हो जाता ह।

िचराग जलत-जलत जानवरो का बाजार लग गया। अनिधकािरयो न इरादा िकया ह िक सारी रकम एकजाई वसल कर। गाव वाल आपस म लड-िभडकर अनपन-अनपन लगान का फसला कर लग। इसकी अनिधकािरयो को कोई िचता नही ह।

सलीम न आकर िम. घोष स कहा-आपको मालम ह िक मविशयो को ककरक करन का आपको मजाज नही ह-

िम. घोष न उगर भाव स जवाब िदया-यह नीित ऐस अनवसरो क िलए नही ह। िवशष अनवसरो क िलए िवशष नीित होती ह। कराित की नीित, शाित की नीित स िभनन होनी सवाभािवक ह।

अनभी सलीम न कछ उततर न िदया था िक मालम हआ, अनहीरो क महाल म लाठी चल गई। िम. घोष उधर लपक। िसपािहयो न भी सगीन चढाइ और उनक पीछ चल। काशी, पयाग, आतमाननद सब उसी तरफ दौड। कवल सलीम यहा खिडा रहा। जब एकात हो गया, तो उसन कसाइयो क सरगना क पास जाकर सलाम-अनलक िकया और बोला-कयो भाई साहब, आपको मालम ह, आप लोग इन मविशयो को खिरीदकर यहा की गरीब िरआया क साथ िकतनी बडी बइसाफी कर रह ह-

सरगना का नाम तगमहममद था। नाट कद का गठीला आदमी था, परा पहलवान। ढीला कता, चारखिान की तहमद, गल म चादी की तावीज, हाथ म माटा सोटा। नमरता स बोला -साहब, म तो माल खिरीदन आया ह। मझ इसस कया मतलब िक माल िकसका ह और कसा ह- चार पस का फायदा जहा होता ह वहा आदमी जाता ही ह।

'लिकन यह तो सोिचए िक मविशयो की ककी िकस सबब स हो रही ह- िरआया क साथ आपको हमददी होनी चािहए।'

तगमहममद पर कोई परभाव न हआ-सरकार स िजसकी लडाई होगी, उसकी होगी। हमारी कोई लडाई नही ह।

'तम मसलमान होकर ऐसी बात करत हो, इसका मझ अनफसोस ह। इसलाम न हमशा मजलमो की मदद की ह। और तम मजलमो की गदरयन पर छरी फर रह हो॥'

'जब सरकार हमारी परविरस कर रही ह, तो हम उनक बदखिाह नही बन सकत।'

'अनगर सरकार तमहारी जायदाद छीनकर िकसी गर को द द, तो तमह बरा लगगा, या नही?'

'सरकार स लडना हमार मजहब क िखिलाफ ह।'

'यह कयो नही कहत तमम गरत नही ह?'

'आप तो मसलमान ह। कया आपका फजरय नही ह िक बादशाह की मदद कर?'

'अनगर मसलमान होन का यह मतलब ह िक गरीबो का खिन िकया जाए, तो म कािफर ह।'

तगमहममद पढा-िलखिा आदमी था। वह वाद-िववाद करन पर तयार हो गया। सलीम न उसकी हसी उडान

251 www.hindustanbooks.com

की चषटिा की। पथो को वह ससार का कलक समझता था, िजसन मनषय-जाित को िवरोधी दलो म िवभकत करक एक-दसर का दशमन बना िदया ह। तगमहममद रोजा-नमाज का पाबद, दीनदार मसलमान था। मजहब की तौहीन कयोकर बदाशत करता- उधर तो अनिहरान म पिलस और अनहीरो म लािठया चल रही थी, इधर इन दोनो म हाथापाई की नौबत आ गई। कसाई पहलवान था। सलीम भी ठोकर चलान और घसबाजी म मजा हआ, फतीला, चसत। पहलवान साहब उस अनपनी पकड म लाकर दबोच बठना चाहत थ। वह ठोकर-पर-ठोकर जमा रहा था। ताबड-तोड ठोकर पडी तो पहलवान साहब िगर पड और लग मातभाषा म अनपन मनोिवकारो को परकट करन। उसक दोनो सािथयो न पहल दर ही स तमाशा दखिना उिचत समझा था लिकन जब तगमहममद िगर पडा, तो दोनो कमर कसकर िपल पड। यह दोनो अनभी जवान पटठ थ, तजी और चसती म सलीम क बराबर थ। सलीम पीछ हटता जाता था और यह दोनो उस ठलत जात थ। उसी वकत सलोनी लाठी टकती हई अनपनी गाय खिोजन आ रही थी। पिलस उस उसक दवार स खिोल लाई थी। यहा यह सगराम िछडा दखिकर उसन अनचल िसर स उतार कर कमर म बाधा और लाठी सभालकर पीछ स दोनो कसाइयो को पीटन लगी। उनम स एक न पीछ िफरकर बिढया को इतन जोर स धकका िदया िक वह तीन-चार हाथ पर जा िगरी। इतनी दर म सलीम न घात पाकर सामन क जवान को ऐसा घसा िदया िक उसकी नाक स खिन जारी हो गया और वह िसर पकडकर बठ गया। अनब कवल एक आदमी और रह गया। उसन अनपन दो योदवाआ की यह गित दखिी तो पिलस वालो स फिरयाद करन भागा। तगमहममद की दोनो घटिनया बकार हो गई थी। उठ न सकता था। मदान खिाली दखिकर सलीम न लपककर मविशयो की रिससया खिोल दी और तािलया बजा-बजाकर उनह भगा िदया। बचार जानवर सहम खिड थ। आन वाली िवपितत का उनह कछ आभास हो रहा था। रससी खिली तो सब पछ उठा-उठाकर भाग और हार की तरफ िनकल गए।

उसी वकत आतमाननद बदहवास दौड आए और बोल-आप जरा अनपना िरवालवर तो मझ दीिजए।

सलीम न हकका-बकका होकर पछा-कया माजरा ह, कछ कहो तो-

'पिलस वालो न कई आदिमयो को मार डाला। अनब नही रहा जाता, म इस घोष को मजा चखिा दना चाहता ह।'

'आप कछ भग तो नही खिा गए ह- भला यह िरवालवर चलान का मौका ह?'

'अनगर यो न दोग, तो म छीन लगा। इस दषटि न गोिलया चलवाकर चार-पाच आदिमयो की जान ल ली। दस-बारह आदमी बरी तरह जखमी हो गए ह। कछ इनको भी तो मजा चखिाना चािहए। मरना तो ह ही। '

'मरा िरवालवर इस काम क िलए नही ह।'

आतमाननद यो भी उदवड आदमी थ। इस हतयाकाड न उनह िबलकल उनमतता कर िदया था। बोल-िनरपराधो का रकत बहाकर आततायी चला जा रहा ह, तम कहत हो िरवालवर इस काम क िलए नही ह िफर िकस काम क िलए ह- म तमहार परो पडता ह भया, एक कषण क िलए द दो। िदल की लालसा परी कर ल। कस-कस वीरो को मारा ह इन हतयारो न िक दखिकर मरी आखिो म खिन उतर आया ।

सलीम िबना कछ उततर िदए वग स अनिहरान की ओर चला गया। रासत म सभी दवार बद थ। कततो भी कही भागकर जा िछप थ।

एकाएक एक घर का दवार झोक क साथ खिला और एक यवती िसर खिोल, अनसत-वयसत कपड खिन स तर,

252 www.hindustanbooks.com

भयातर िहरनी-सी आकर उसक परो स िचपट गई और सहमी हई आखिो स दवार की ओर ताकती हई बोली-मािलक, यह सब िसपाही मझ मार डालत ह।

सलीम न तसलली दी-घबराओ नही। घबराओ नही। माजरा कया ह-

यवती न डरत-डरत बताया िक घर म कई िसपाही घस गए ह। इसक आग वह और कछ न कह सकी।

'घर म कोई आदमी नही ह?'

'वह तो भस चरान गए ह।'

'तमहार कहा चोट आई ह?'

'मझ चोट नही आई। मन दो आदिमयो को मारा ह।'

उसी वकत दो कासटबल बदक िलए घर स िनकल आए और यवती को सलीम क पास खिडी दखि दौडकर उसक कश पकड िलए और उस दवार की ओर खिीचन लग।

सलीम न रासता रोककर कहा-छोड दो उसक बाल, वरना अनचछा न होगा। म तम दोनो को भनकर रखि द।

एक कासटबल न करोध-भर सवर म कहा-छोड कस द- इस ल जाएग साहब क पास। इसन हमार दो आदिमयो को गडास स जखमी कर िदया। दोनो तडप रह ह।

'तम इसक घर म कयो गए थ?'

'गए थ मविशयो को खिोलन। यह गडासा लकर टट पडी।'

यवती न टोका-झठ बोलत हो। तमन मरी बाह नही पकडी थी-

सलीम न लाल आखिो स िसपाही को दखिा और धकका दकर कहा-इसक बाल छोड दो ।

'हम इस साहब क पास ल जाएग।'

'तम इस नही ल जा सकत।'

िसपािहयो न सलीम को हािकम क रप म दखिा था। उसकी मातहती कर चक थ। उस रोब का कछ अनश उनक िदल पर बाकी था। उसक साथ जबदरयसती करन का साहस न हआ। जाकर िम. घोष स फिरयाद की। घोष बाब सलीम स जलत थ। उनका खियाल था िक सलीम ही इस आदोलन को चला रहा ह और यिद उस हटा िदया जाय, तो चाह आदोलन तरत शात न हो जाय, पर उसकी जड टट जाएगी, इसिलए िसपािहयो की िरपोटरय सनत ही तरत घोडा बढाकर सलीम क पास आ पहच और अनगरजी म कानन बघारन लग। सलीम को भी अनगरजी बोलन का बहत अनचछा अनभयास था। दोनो म पहल काननी मबाहसा हआ, िफर धािमक ततव िनरपण का नबर आया, इसम उतर कर दोनो दाशरयिनक तकरक-िवतकरक करन लग, यहा तक िक अनत म वयिकतगत आकषपो की बौछार होन लगी। इसक एक ही कषण बाद शबद न िकरया का रप धारण िकया। िमसटर घोष न हटर चलाया, िजसन सलीम क चहर पर एक नीली चौडी उभरी हई रखिा छोड दी। आख बाल-बाल बच गइ। सलीम भी जाम स बाहर हो गया। घोष की टाग पकडकर जोर स खिीचा। साहब घोड स नीच िगर पड। सलीम उनकी छाती पर चढ बठा और नाक पर घसा मारा। घोष बाब मिछत हो गए। िसपािहयो न दसरा घसा न पडन िदया। चार आदिमयो न दौडकर सलीम को जकड िलया। चार आदिमयो न घोष को उठाया और होश म लाए।

253 www.hindustanbooks.com

अनधरा हो गया था। आतक न सार गाव को िपशाच की भाित छाप िलया था। लोग शोक स और आतक क भाव स दब, मरन वालो की लाश उठा रह थ। िकसी क मह स रोन की आवाज न िनकलती थी। जखम ताजा था, इसिलए टीस न थी। रोना पराजय का लकषण ह, इन परािणयो को िवजय का गवरय था। रोकर अनपनी दीनता परकट न करना चाहत थ। बचच भी जस रोना भल गए थ।

िमसटर घोष घोड पर सवार होकर डाक बगल गए। सलीम एक सब-इसपकटर और कई कासटबलो क साथ एक लारी पर सदर भज िदया गया। यह अनहीिरन यवती भी उसी लारी पर भजी गई थी। पहर रात जात-जात चारो अनिथया गगा की ओर चली। सलोनी लाठी टकती हई आग-आग गाती जाती थी-

सया मोरा रठा जाय सखिी री...

254 www.hindustanbooks.com

आठकाल खिा क आतम-समपरयण न अनमरकानत क जीवन को जस कोई आधार परदान कर िदया। अनब तक उसक

जीवन का कोई लकषय न था, कोई आदशरय न था, कोई वरत न था। इस मतय न उनकी आतमा म परकाश-सा डाल िदया। काल खिा की याद उस एक कषण क िलए भी न भलती और िकसी गपत शिकत की भाित उस शाित और बल दती थी। वह उसकी वसीयत इस तरह परी करना चाहता था िक काल खिा की आतमा को सवगरय म शाित िमल। घडी रात स उठकर किदयो का हाल-चाल पछना और उनक घरो पर पतर िलखिकर रोिगयो क िलएदवा-दार का परबध करना, उनकी िशकायत सनना और अनिधकािरयो स िमलकर िशकायतो को दर करना, यह सब उसक काम थ। और इन कामो को वह इतनी िवनय, इतनी नमरता और सहदयता स करता िक अनमलो को भी उस पर सदह की जगह िवशवास होता था। वह किदयो का भी िवशवासपातर था और अनिधकािरयो का भी।

अनब तक वह एक परकार स उपयोिगतावाद का उपासक था। इसी िसधदात को मन म, यदयिप अनजञात रप स, रखिकर वह अनपन कतरयवय का िनशचिय करता था। ततव-िचतन का उसक जीवन म कोई सथान न था। परतयकष क नीच जो अनथाह गहराई ह, वह उसक िलए कोई महततव न रखिती थी। उसन समझ रखिा था, वहा शनय क िसवा और कछ नही। काल खिा की मतय न जस उसका हाथ पकडकर बलपवरयक उस गहराई म डबा िदया और उसम डबकर उस अनपना सारा जीवन िकसी तण क समान ऊपर तरता हआ दीखि पडा, कभी लहरो क साथ आग बढता हआ, कभी हवा क झोको स पीछ हटता हआ कभी भवर म पडकर चककर खिाता हआ। उसम िसथरता न थी, सयम न था, इचछा न थी। उसकी सवा म भी दभ था, परमाद था, दवष था। उसन दभ म सखिदा की उपकषा की। उस िवलािसनी क जीवन म जो सतय था, उस तक पहचन का उदयोग न करक वह उस तयाग बठा। उदयोग करता भी कया- तब उस इस उदयोग का जञान भी न था। परतयकष न उसी भीतर वाली आखिो पर परदा डालकर रखिा था। परमाद म उसन सकीना स परम का सवाग िकया। कया उस उनमाद म लशमातर भी परम की भावना थी- उस समय मालम होता था, वह परम म रत हो गया ह, अनपना सवरयसव उस पर अनपरयण िकए दता ह पर आज उस परम म िलपसा क िसवा और उस कछ न िदखिाई दता था। िलपसा ही न थी, नीचता भी थी। उसन उस सरल रमणी की हीनावसथा स अनपनी िलपसा शात करनी चाही थी। िफर मननी उसक जीवन म आई, िनराशाआ स भगन, कामनाआ स भरी हई। उस दवी स उसन िकतना कपट वयवहार िकया यह सतय ह िक उसक वयवहार म कामकता न थी। वह इसी िवचार स अनपन मन को समझा िलया करता था लिकन अनब आतम-िनरीकषण करन पर सपषटि जञात हो रहा था िक उस िवनोद म भी, उस अननराग म भी कामकता का समावश था। तो कया वह वासतव म कामक ह- इसका जो उततर उसन सवय अनपन अनत:करण स पाया, वह िकसी तरह शरयसकर न था। उसन सखिदा पर िवलािसता का दोष लगाया पर वह सवय उसस कही कितसत, कही िवषय-पणरय िवलािसता म िलपत था। उसक मन म परबल इचछा हई िक दोनो रमिणयो क चरणो पर िसर रखिकर रोए और कह-दिवयो, मन तमहार साथ छल िकया ह, तमह दगा दी ह। म नीच ह, अनधम ह, मझ जो सजा चाह दो, यह मसतक तमहार चरणो पर ह।

िपता क परित भी अनमरकानत क मन म शरधदा का भाव उदय हआ। िजस उसन माया का दास और लोभ का कीडा समझ िलया था, िजस यह िकसी परकार क तयाग क अनयोगय समझता था, वह आज दवतव क ऊच िसहासन पर बठा हआ था। परतयकष क नश म उसन िकसी नयायी, दयाल ईशवर की सतता को कभी सवीकार न िकया था पर इन चमतकारो को दखिकर अनब उसम िवशवास और िनषठा का जस एक सफर-सा उमड पडा था। उस अनपन छोट-छोट वयवहारो म भी ईशवरीय इचछा का आभास होता था। जीवन म अनब एक नया उतसाह था। नई जागित थी।

255 www.hindustanbooks.com

हषरयमय आशा स उसका रोम-रोम सपिदत होन लगा। भिवषय अनब उसक िलए अनधकारमय न था। दवी इचछा म अनधकार कहा ।

सधया का समय था। अनमरकानत परड म खिडा था, उसन सलीम को आत दखिा। सलीम क चिरतर म कायापलट हआ था, उसकी उस खिबर िमल चकी थी पर यहा तक नौबत पहच चकी ह, इसका उस गमान भी न था। वह दौडकर सलीम क गल स िलपट गया। और बोला- तम कवब आए दोसत, अनब मझ यकीन आ गया िक ईशवर हमार साथ ह। सखिदा भी तो यही ह, जनान जल म। मननी भी आ पहची। तमहारी कसर थी, वह भी परी हो गई। म िदल म समझ रहा था, तम भी एक-न-एक िदन आओग, पर इतनी जलदी आओग, यह उममीद न थी। वहा की ताजा खिबर सनाओ। कोई हगामा तो नही हआ-

सलीम न वयगय स कहा-जी नही, जरा भी नही। हगाम की कोई बात भी हो- लोग मज स खिा रह ह और गाग गा रह ह। आप यहा आराम स बठ हए ह न-

उसन थोड-स शबदो म वहा की सारी पिरिसथित कह सनाई-मविशयो का ककरक िकया जाना, कसाइयो का आना, अनहीरो क महाल म गोिलयो का चलना। घोष को पटककर मारन की कथा उसन िवशष रिच स कही।

अनमरकानत का मह लटक गया-तमन सरासर नादानी की।

'और आप कया समझत थ, कोई पचायत ह, जहा शराब और हकक क साथ सारा फसला हो जाएगा?'

'मगर फिरयाद तो इस तरह नही की जाती?'

'हमन तो कोई िरआयत नही चाही थी।'

'िरआयत तो थी ही। जब तमन एक शतरय पर जमीन ली, तो इसाफ यह कहता ह िक वह शतरय परी करो। पदावार की शतरय पर िकसानो न जमीन नही जोती थी बिलक सालाना लगान की शतरय पर। जमीदार या सरकार को पदावार की कमी-बशी स कोई सरोकार नही ह।'

'जब पदावार क महग हो जान पर लगान बढा िदया जाता ह, तो कोई वजह नही िक पदावार क ससत हो जान पर घटा न िदया जाय। मदी म तजी का लगान वसल करना सरासर बइसाफी ह।'

'मगर लगान लाठी क जोर स तो नही बढाया जाता, उसक िलए भी तो कानन ह?'

सलीम को िवसमय हो रहा था, ऐसी भयानक पिरिसथित सनकर भी अनमर इतना शात कस बठा हआ ह- इसी दशा म उसन यह खिबर सनी होती, तो शायद उसका खिन खिौल उठता और वह आप स बाहर हो जाता। अनवशय ही अनमर जल म आकर दब गया ह। ऐसी दशा म उसन उन तयािरयो को उसस िछपाना ही उिचत समझा, जो आजकल दमन का मकाबला करन क िलए की जा रही थी।

अनमर उसक जवाब की परतीकषा कर रहा था। जब सलीम न कोई जवाब न िदया, तो उसन पछा-तो आजकल वहा कौन ह- सवामीजी ह-

सलीम न सकचात हए कहा-सवामीजी तो शायद पकड गए। मर बाद ही वहा सकीना पहच गई।

'अनचछा सकीना भी परद स िनकल आई- मझ तो उसस ऐसी उममीद न थी।'

'तो कया तमन समझा था िक आग लगाकर तम उस एक दायर क अनदर रोक लोग?'

256 www.hindustanbooks.com

अनमर न िचितत होकर कहा-मन तो यही समझा था िक हमन िहसा भाव को लगाम द दी ह और वह काब स बाहर नही हो सकता।

'आप आजादी चाहत ह मगर उसकी कीमत नही दना चाहत।'

'आपन िजस चीज को आजादी की कीमत समझ रखिा ह, वह उसकी कीमत नही ह। उसकी कीमत ह-हक और सचचाई पर जम रहन की ताकत।'

सलीम उततोिजत हो गया-यह िफजल की बात ह। िजस चीज की बिनयाद सबर पर ह, उस पर हक और इसाफ का कोई अनसर नही पड सकता।

अनमर न पछा-कया तम इस तसलीम नही करत िक दिनया का इतजाम हक और इसाफ पर कायम ह और हरक इसान क िदल की गहराइयो क अनदर वह तार मौजद ह, जो करबािनयो स झकार उठता ह-

सलीम न कहा-नही, म इस तसलीम नही करता। दिनया का इतजाम खिदगरजी और जोर पर कायम ह और ऐस बहत कम इसान ह िजनक िदल की गहराइयो क अनदर वह तार मौजद हो।

अनमर न मसकराकर कहा-तम तो सरकार क खिरखवाह नौकर थ। तम जल म कस आ गए-

सलीम हसा-तमहार इशक म ।

'दादा को िकसका इशक था?'

'अनपन बट का।'

'और सखिदा को?'

'अनपन शौहर का।'

'और सकीना को- और मननी को- और इन सकडो आदिमयो को, जो तरह-तरह की सिखतया झल रह ह?'

'अनचछा मान िलया िक कछ लोगो क िदल की गहराइयो क अनदर यह तार ह मगर ऐस आदमी िकतन ह?'

'म कहता ह ऐसा कोई आदमी नही िजसक अनदर हमददी का तार न हो। हा , िकसी पर जलद अनसर होता ह, िकसी पर दर म और कछ ऐस गरज क बद भी ह िजन पर शायद कभी न हो।'

सलीम न हारकर कहा-तो आिखिर का तम चाहत कया हो- लगान हम द नही सकत। वह लोग कहत ह हम लकर छोडग। तो कया कर- अनपना सब कछ ककरक हो जान द- अनगर हम कछ कहत ह, तो हमार ऊपर गोिलया चलती ह। नही बोलत, तो तबाह हो जात ह। िफर दसरा कौन-सा रासता ह- हम िजतना ही दबत जात ह, उतना ही वह लोग शर होत ह। मरन वाला बशक िदलो म रहम पदा कर सकता ह लिकन मारन वाला खिौफ पदा कर सकता ह, जो रहम स कही जयादा अनसर डालन वाली चीज ह।

अनमर न इस परशन पर महीनो िवचार िकया था। वह मानता था, ससार म पशबल का परभतव ह िकत पशबल को भी नयाय बल की शरण लनी पडती ह। आज बलवान-स-बलवान राषटि' म भी यह साहस नही ह िक वह िकसी िनबरयल राषटि' पर खिललम-खिलला यह कहकर हमला कर िक 'हम तमहार ऊपर राज करना चाहत ह इसिलए तम हमार अनधीन हो जाओ'। उस अनपन पकष को नयाय-सगत िदखिान क िलए कोई-न-कोई बहाना तलाश करना पडता ह। बोला-अनगर तमहारा खियाल ह िक खिन और कतल स िकसी कौम की नजात हो सकती ह, तो तम

257 www.hindustanbooks.com

सखत गलती पर हो। म इस नजात नही कहता िक एक जमाअनत क हाथो स ताकत िनकालकर दसर जमाअनत क हाथो म आ जाय और वह भी तलवार क जोर स राज कर। म नजात उस कहता ह िक इसान म इसािनयत आ जाय और इसािनयत की सबर बइसाफी और खिदगरजी स दशमनी ह।

सलीम को यह कथन ततवहीन मालम हआ। मह बनाकर बोला-हजर को मालम रह िक दिनया म फिरशत नही बसत, आदमी बसत ह।

अनमर न शात-शीतल हदय स जवाब िदया-लिकन कया तम दखि नही रह हो िक हमारी इसािनयत सिदयो तक खिन और कतल म डब रहन क बाद अनब सचच रासत पर आ रही ह- उसम यह ताकत कहा स आई- उसम खिद वह दवी शिकत मौजद ह। उस कोई नषटि नही कर सकता। बडी-स-बडी फौजी ताकत भी उस कचल नही सकती, जस सखिी जमीन म घास की जड। पडी रहती ह और ऐसा मालम होता ह िक जमीन साफ हो गई, लिकन पानी क छीट पडत ही वह जड पनप उठती ह, हिरयाली स सारा मदान लहरान लगता ह, उसी तरह इस कलो और हिथयारो और खिदगरिजयो क जमान म भी हमम वह दवी शिकत िछपी हई अनपना काम कर रही ह। अनब वह जमाना आ गया ह, जब हक की आवाज तलवार की झकार या तोप की गरज स भी जयादा कारगर होगी। बडी-बडी कौम अनपनी-अनपनी फौजी और जहाजी ताकत घटा रही ह। कया तमह इसस आन वाल जमान का कछ अनदाज नही होता- हम इसिलए गलाम ह िक हमन खिद गलामी की बिडया अनपन परो म डाल ली ह। जानत हो िक यह बडी कया ह- आपस का भद। जब तक हम इस बडी को काटकर परम न करना सीखग, सवा म ईशवर का रप न दखग, हम गलामी म पड रहग। म यह नही कहता िक जब तक भारत का हरक वयिकत इतना बदार न हो जाएगा, तब तक हमारी नजात न होगी। ऐसा तो शायद कभी न हो पर कम-स-कम उन लोगो क अनदर तो यह रोशनी आनी ही चािहए, जो कौम क िसपाही बनत ह। पर हमम िकतन ऐस ह, िजनहोन अनपन िदल को परम स रोशन िकया हो- हमम अनब भी वही ऊच-नीच का भाव ह, वही सवाथरय-िलपसा ह, वही अनहकार ह।

बाहर ठड पडन लगी थी। दोनो िमतर अनपनी-अनपनी कोठिरयो म गए। सलीम जवाब दन क िलए उतावला हो रहा था पर वाडरयन न जलदी की और उनह उठना पडा।

दरवाजा बद हो गया, तो अनमरकानत न एक लबी सास ली और फिरयादी आखिो स छत की तरफ दखिा। उसक िसर िकतनी बडी िजममदारी ह। उसक हाथ िकतन बगनाहो क खिन स रग हए ह िकतन यतीम बचच और अनबला िवधावाए उसका दामन पकडकर खिीच रही ह। उसन कयो इतनी जलदबाजी स काम िकया- कया िकसानो की फिरयाद क िलए यही एक साधन रह गया था- और िकसी तरह फिरयाद की आवाज नही उठाई जा सकती थी- कया यह इलाज बीमारी स जयादा अनसाधय नही ह- इन परशनो न अनमरकानत को पथभरषटि-सा कर िदया। इस मानिसक सकट म काल खिा की परितमा उसक सममखि आ खिडी हई। उस आभास हआ िक वह उसस कह रही ह-ईशवर की शरण म जा। वही तझ परकाश िमलगा।

अनमरकानत न वही भिम पर मसतक रखिकर शदधि अनत:करण स अनपन कतरयवय की िजजञासा की-भगवन, म अनधकार म पडा हआ ह मझ सीधा मागरय िदखिाइए।

और इस शात, दीन पराथरयना म उसको ऐसी शाित िमली, मानो उसक सामन कोई परकाश आ गया ह और उसकी फली हई रोशनी म िचकना रासता साफ नजर आ रहा ह।

258 www.hindustanbooks.com

नौपठािनन की िगरफतारी न शहर म ऐसी हलचल मचा दी, जसी िकसी को आशा न थी। जीणरय वधदावसथा म

इस कठोर तपसया न मतको म भी जीवन डाल िदया, भीई और सवाथरय-सिवयो को भी कमरयकषतर म ला खिडा िकया। लिकन ऐस िनलरयजजो की अनब भी कमी न थी, जो कहत थ-इसक िलए जीवन म अनब कया धारा ह- मरना ही तो ह। बाहर न मरी, जल म मरी। हम तो अनभी बहत िदन जीना ह, बहत कछ करना ह, हम आग म कस कद-

सधया का समय ह। मजदर अनपन-अनपन काम छोडकर, छोट दकानदार अनपनी-अनपनी दकान बद करक घटना-सथल की ओर भाग चल जा रह ह। पठािनन अनब वहा नही ह, जल पहच गई होगी। हिथयारबद पिलस का पहरा ह, कोई जलसा नही हो सकता, कोई भाषण नही हो सकता, बहत-स आदिमयो का जमा होना भी खितरनाक ह, पर इस समय कोई कछ नही सोचता, िकसी को कछ िदखिाई नही दता-सब िकसी वगमय परवाह म बह जा रह ह। एक कषण म सारा मदान जन-समह स भर गया।

सहसा लोगो न दखिा, एक आदमी इटो क एक ढर पर खिडा कछ कह रहा ह। चारो ओर स दौड-दौडकर लोग वहा जमा हो गए-जन-समह का एक िवराट सफर उमडा हआ था। यह आदमी कौन ह- लाला समरकानत िजनकी बह जल म ह, िजनका लडका जल म ह।

'अनचछा, यह लाला ह भगवान बिदधि द, तो इस तरह। पाप स जो कछ कमाया, वह पणय म लटा रह ह।'

'ह बडा भागवान।'

'भागवान न होता, तो बढाप म इतना जस कस कमाता ।'

'सनो, सनो ।'

'वह िदन आएगा, जब इसी जगह गरीबो क घर बनग और जहा हमारी माता िगरफतार हई ह, वही एक चौक बनगा और उसक बीच म माता की परितमा खिडी की जाएगी। बोलो माता पठािनन की जय । '

दस हजार गलो स 'माता की जय ।' की धविन िनकलती ह, िवकल, उततापत, गभीर मानो गरीबो की हाय ससार म कोई आशरय न पाकर आकाशवािसयो स फिरयाद कर रही ह।

'सनो, सनो ।'

'माता न अनपन बालको क िलए पराणो का उतसगरय कर िदया। हमार और आपक भी बालक ह। हम और आप अनपन बालको क िलए कया करना चाहत ह, आज इसका िनशचिय करना होगा।'

शोर मचता ह-हडताल, हडताल ।

'हा, हडताल कीिजए मगर वह हडताल, एक या दो िदन की न होगी, वह उस वकत तक रहगी, जब तक हमार नगर क िवधाता हमारी आवाज न सनग। हम गरीब ह, दीन ह, दखिी ह लिकन बड आदमी अनगर जरा शातिचतत होकर धयान करग, तो उनह मालम हो जाएगा िक दीन-दखिी परािणयो ही न उनह बडा आदमी बना िदया ह। य बड-बड महल जान हथली पर रखिकर कौन बनाता ह- इन कपड की िमलो म कौन काम करता ह- परात: काल दवार पर दध और मकखिन लकर कौन आवाज दता ह- िमठाइया और फल लकर कौन बड आदिमयो क नाशत क समय पहचता ह- सफाई कौन करता ह, कपड कौन धोता ह- सबर अनखिबार और िचटठीया लकर कौन

259 www.hindustanbooks.com

पहचता ह- शहर क तीन-चौथाई आदमी एक-चौथाई क िलए अनपना रकत जला रह ह। इसका परसाद यही िमलता ह िक उनह रहन क िलए सथान नही एक बगल क िलए कई बीघ जमीन चािहए। हमार बड आदमी साफ-सथरी हवा और खिली हई जगह चाहत ह। उनह यह खिबर नही ह िक जहा अनसखय पराणी दगधा और अनधकार म पड भयकर रोगो स मर-मरकर रोग क कीड फला रह हो, वहा खिल हए बगल म रहकर भी वह सरिकषत नही ह यह िकसकी िजममदारी ह िक शहर क छोट-बड, अनमीर-गरीब सभी आदमी सवसथ रह सक- अनगर मयिनिसपिलटी इस परधान कतरयवय को नही परा कर सकती, तो उस तोड दना चािहए। रईसो और अनमीरो की कोिठयो क िलए, बगीचो क िलए, महलो क िलए, कयो इतनी उदारता स जमीन द दी जाती ह- इसिलए िक हमारी मयिनिसपिलटी गरीबो की जान का कोई मलय नही समझती। उस रपय चािहए, इसिलए िक बड-बड अनिधकािरयो को बडी-बडी तलब दी जाए। वह शहर को िवशाल भवनो स अनलकतत कर दना चाहती ह, उस सवगरय की तरह सदर बना दना चाहती ह पर जहा की अनधरी दगधपणरय गिलयो म जनता पडी कराह रही हो , वहा इन िवशाल भवनो स कया होगा- यह तो वही बात ह िक कोई दह क कोढ को रशमी वसतरो म िछपाकर इठलाता िफर। सजजनो अननयाय करना िजतना बडा पाप ह, उतना ही बडा अननयाय सहना भी ह। आज िनशचिय कर लो िक तम यह ददरयशा न सहोग। यह महल और बगल नगर की दबरयल दह पर छाल ह, मसविधद ह। इन मसविधदयो को काटकर फकना होगा। िजस जमीन पर हम खिड ह वहाकम-स-कम दो हजार छोट-छोट सदर घर बन सकत ह, िजनम कम-स-कम दस हजार पराणी आराम स रह सकत ह। मगर यह सारी जमीन चार-पाच बगलो क िलए बची जा रही ह। मयिनिसपिलटी को दस लाखि रपय िमल रह ह। इस वह कस छोड- शहर क दस हजार मजदरो की जान दस लाखि क बराबर भी नही।'

एकाएक पीछ क आदिमयो न शोर मचाया-पिलस पिलस आ गई।

कछ लोग भाग, कछ लोग िसमटकर और आग बढ आए।

लाला समरमकानत बोल-भागो मत, भाग मत, पिलस मझ िगरफतार करगी। म उसका अनपराधी ह और म ही कयो, मरा सारा घर उसका अनपराधी ह। मरा लडका जल म ह, मरी बह और पोता जल म ह। मर िलए अनब जल क िसवा और कहा िठकाना ह- म तो जाता ह। (पिलस स) वही ठहिरए साहब, म खिद आ रहा ह। म तो जाता ह, मगर यह कह जाता ह िक अनगर लौटकर मन यहा गरीब भाइयो क घरो की पाितया फलो की भाित लहलहाती न दखिी, तो यही मरी िचता बनगी।

लाला समरकानत कदकर इटो क टील स नीच आए और भीड को चीरत हए जाकर पिलस कपतान क पास खिड हो गए। लारी तयार थी, कपतान न उनह लारी म बठाया। लारी चल दी।

'लाला समरकानत की जय!' की गहरी, हािदक वदना स भरी हई धविन िकसी बधए पश की भाित तडपती, छटपटाती ऊपर को उठी, मानो परवशता क बधन को तोडकर िनकल जाना चाहती हो।

एक समह लारी क पीछ दौडा अनपन नता को छडान क िलए नही, कवल शरधदा क आवश म, मानो कोई परसाद, कोई आशीवाद पान की सरल उमग म। जब लारी गदरय म लपत हो गई, तो लोग लौट पड।

'यह कौन खिडा बोल रहा ह?'

'कोई औरत जान पडती ह।'

'कोई भल घर की औरत ह।'

260 www.hindustanbooks.com

'अनर यह तो वही ह, लालाजी का समिध, रणकादवी।'

'अनचछा िजनहोन पाठशाल क नाम अनपनी सारी जमा-जथा िलखि दी।'

'सनो सनो!'

'पयार भाइयो, लाला समरकानत जसा योगी िजस सखि क लोभ स चलायमान हो गया, वह कोई बडा भारी सखि होगा िफर म तो औरत ह, और औरत लोिभन होती ही ह। आपक शासतर-पराण सब यही कहत ह। िफर म उस लोभ को कस रोक- म धनवान की बह, धनवान की सतरी, भोग-िवलास म िलपत रहन वाली, भजन-भाव म मगन रहन वाली, म कया जान गरीबो को कया कषटि ह, उन पर कया बीतती ह। लिकन इस नगर न मरी लडकी छीन ली, मरी जायदाद छीन ली, और अनब म भी तम लोगो ही की तरह गरीब ह। अनब मझ इस िवशवनाथ की परी म एक झोपडा बनवान की लालसा ह। आपको छोडकर म और िकसक पास मागन जाऊ। यह नगर तमहारा ह। इसकी एक-एक अनगल जमीन तमहारी ह। तमही इसक राजा हो। मगर सचच राजा की भाित तम भी तयागी हो। राजा हिरशचिनदर की भाित अनपना सवरयसव दसरो को दकर, िभखिािरयो को अनमीर बनाकर, तम आज िभखिारी हो गए हो। जानत हो वह छल स खिोया हआ राजय तमको कस िमलगा- तम डोम क हाथो िबक चक। अनब तमह रोिहतास और शवया को तयागना पडगा। तभी दवता तमहार ऊपर परसनन होग। मरा मन कह रहा ह िक दवताआ म तमहारा राजय िदलान की बातचीत हो रही ह। आज नही तो कल तमहारा राजय तमहार अनिधकार म आ जाएगा। उस वकत मझ भल न जाना। म तमहार दरबार म अनपना पराथरयना-पतर पश िकए जा रही ह।'

सहसा पीछ स शोर मचा िफर पिलस आ गई ।

'आन दो। उनका काम ह अनपरािधायो को पकडना। हम अनपराधी ह। िगरफतार न कर िलए गए, तो आज नगर म डाका मारग, चोरी करग, या कोई षडयतर रचग। म कहती ह, कोई ससथा जो जनता पर नयायबल स नही, पशबल स शासन करती ह, वह लटरो की ससथा ह। जो गरीबो का हक लटकर खिद मालदार हो रह ह, दसरो क अनिधकार छीनकर अनिधकारी बन हए ह, वासतव म वही लटर ह। भाइयो, म तो जाती ह, मगर मरा पराथरयना-पतर आपक सामन ह। इस लटरी मयिनिसपिलटी को ऐसा सबक दो िक िफर उस गरीबो को कचलन का साहस न हो। जो तमह रौद, उसक पाव म काट बनकर चभ जाओ। कल स ऐसी हडताल करो िक धिनयो और अनिधकािरयो को तमहारी शिकत का अननभव हो जाय, उनह िविदत हो जाय िक तमहार सहयोग क िबना व न धन को भोग सकत ह, न अनिधकार को। उनह िदखिा दो िक तमही उनक हाथ हो, तमही उनक पाव हो, तमहार बगर व अनपग ह।'

वह टील स नीच उतरकर पिलस-कमरयचािरयो की ओर चली तो सारा जन-समह, हदय म उमडकर आखिो म रक जान वाल आसआ की भाित, उनकी ओर ताकता रह गया। बाहर िनकलकर मयादा का उललघन कस कर- वीरो क आस बाहर िनकलकर सखित नही, वकषो क रस की भाित भीतर ही रहकर वकष को पललिवत और पिषपत कर दत ह। इतन बड समह म एक कठ स भी जयघोष नही िनकला। िकरया-शिकत अनतमरयखिी हो गई थी मगर जब रणका मोटर म बठ गइ और मोटर चली, तो शरधदा की वह लहर मयादाआ को तोडकर एक पतली गहरी, वगमयी धारा म िनकल पडी।

एक बढ आदमी न डाटकर कहा-जय-जय बहत कर चक। अनब घर जाकर आटा-दाल जमा कर लो। कल स लबी हडताल करनी ह।

261 www.hindustanbooks.com

दसर आदमी न समथरयन िकया-और कया यह नही िक यहा तो गला फाड-फाड िचललाए और सबरा होत ही अनपन-अनपन काम पर चल िदए।

'अनचछा, यह कौन खिडा हो गया?'

'वाह, इतना भी नही पहचानत- डॉकटर साहब ह।'

'डॉकटर साहब भी आ गए- अनब तो फतह ह ।'

'कस-कस शरीफ आदमी हमारी तरफ स लड रह ह- पछो, इन बचारो को कया लना ह, जो अनपना सखि-चन छोडकर, अनपन बराबरवालो स दशमनी मोल लकर, जान हथली पर िलए तयार ह।'

'हमार ऊपर अनललाह का रहम ह। इन डॉकटर साहब न िपछल िदनो जब पलग का रोग फला था, गरीबो की ऐसी िखिदमत की िक वाह िजनक पास अनपन भाई-बद तक न खिड होत थ, वहा बधाडक चल जात थ और दवा-दार, रपया-पसा, सब तरह की मदद तयार हमार हािफजजी तो कहत थ, यह अनललाह का फिरशता ह।'

'सनो, सनो, बकवास करन को रात-भर पडी ह।'

'भाइयो िपछली बार जब हडताल की थी, उसका कया नतीजा हआ- अनगर वसी ही हडताल हई, तो उसस अनपना ही नकसान होगा। हमम स कछ चन िलए जाएग, बाकी आदमी मतभद हो जान क कारण आपस म लडत रहग और अनसली उददशय की िकसी को सधा न रहगी। सरगनो क हटत ही परानी अनदावत िनकाली जान लगगी , गड मरद उखिाड जान लगग न कोई सगठन रह जाएगा, न कोई िजममदारी। सभी पर आतक छा जाएगा, इसिलए अनपन िदल को टटोलकर दखि लो। अनगर उसम कचचापन हो, तो हडताल का िवचार िदल स िनकाल डालो। ऐसी हडताल स दगध और गदगी म मरत जाना कही अनचछा ह। अनगर तमह िवशवास ह िक तमहारा िदल भीतर स मजबत ह उसम हािन सहन की, भखिो मरन की, कषटि झलन की सामथयरय ह, तो हडताल करो। परितजञा कर लो िक जब तक हडताल रहगी, तम अनदावत भल जाओग नफ-नकसान की परवाह न करोग। तमन कबडडी तो खली ही होगी। कबडडी म अनकसर ऐसा होता ह िक एक तरफ स सब गइया मर जात ह कवल एक िखिलाडी रह जाता ह मगर वह एक िखिलाडी भी उसी तरह कानन-कायद स खलता चला जाता ह। उस अनत तक आशा बनी रहती ह िक वह अनपन मर गइयो को िजला लगा और सब-क-सब िफर परी शिकत स बाजी जीतन का उदयोग करग। हरक िखिलाडी का एक ही उददशय होता ह-पाला जीतना। इसक िसवा उस समय उसक मन म कोई भाव नही होता। िकस गइया न उस कब गाली दी थी, कब उसका कनकौआ फाड डाला था, या कब उसको घसा मारकर भागा था, इसकी उस जरा भी याद नही आती। उसी तरह इस समय तमह अनपना मन बनाना पडगा। म यह दावा नही करता िक तमहारी जीत ही होगी। जीत भी हो सकती ह, हार भी हो सकती ह। जीत या हार स हम परयोजन नही। भखिा बालक भखि स िवकल होकर रोता ह। वह यह नही सोचता िक रोन स उस भोजन िमल ही जाएगा। सभव ह मा क पास पस न हो, या उसका जी अनचछा न हो लिकन बालक का सवभाव ह िक भखि लगन पर रोए इसी तरह हम भी रो रह ह। हम रोत-रोत थककर सो जाएग, या माता वातसलय स िववश होकर हम भोजन द दगी, यह कौन जानता ह- हमारा िकसी स बर नही, हम तो समाज क सवक ह, हम बर करना कया जान!'

उधर पिलस कपतान थानदार को डाट रहा था-जलद लारी मगवाओ। तम बोलता था, अनब कोई आदमी नही ह। अनब यह कहा स िनकल आया-

थानदार न मह लटकाकर कहा-हजर, यह डॉकटर साहब तो आज पहली ही बार आए ह। इनकी तरफ तो

262 www.hindustanbooks.com

हमारा गमान भी नही था। किहए तो िगरफतार करक ताग पर ल चल -

'ताग पर सब आदमी ताग को घर लगा हम फायर करना पडगा। जलदी दौडकर कोई टकसी लाओ।'

डॉकटर शािनतकमार कह रह थ :

'हमारा िकसी स बर नही ह। िजस समाज म गरीबो क िलए सथान नही, वह उस घर की तरह ह िजसकी बिनयाद न हो कोई हलका-सा धकका भी उस जमीन पर िगरा सकता ह। म अनपन धनवान और िवदवान और सामथयरयवान भाइयो स पछता ह, कया यही नयाय ह िक एक भाई तो बगल म रह, दसर को झोपड भी नसीब न हो- कया तमह अनपन ही जस मनषयो को इस ददरयशा म दखिकर शमरय नही आती- तम कहोग, हमन बिदधि-बल स धन कमाया ह, कयो न उसका भोग कर- इस बिदधि का नाम सवाथरय-बिदधि ह, और जब समाज का सचालन सवाथरय-बिदधि क हाथ म आ जाता ह नयाय-बिदधि गददी स उतार दी जाती ह, तो समझ लो िक समाज म कोई िवपलव होन वाला ह। गमी बढ जाती ह, तो तरत ही आधी आती ह। मानवता हमशा कचली नही जा सकती। समता जीवन का ततव ह। यही एक दशा ह, जो समाज को िसथर रखि सकती ह। थोड-स धनवानो को हरिगज यह अनिधकार नही ह िक व जनता की ईशवरदतता वाय और परकाश का अनपहरण कर। यह िवशाल जनसमह उसी अननिधकार , उसी अननयाय का रोषमय रदन ह। अनगर धनवानो की आख अनब भी नही खिलती, तो उनह पछताना पडगा। यह जागित का यग ह। जागित अननयाय को सहन नही कर सकती। जाग हए आदमी क घर म चोर और डाक की गित नही?'

इतन म टकसी आ गई। पिलस कपतान कई थानदारो और कासटबलो क साथ समह की तरफ चला।

थानदार न पकारकर कहा-डॉकटर साहब, आपका भाषण तो समापत हो चका होगा। अनब चल आइए, हम कयो वहा आना पड-

शािनतकमार न इट-मच पर खिड-खिड कहा-म अनपनी खिशी स तो िगरफतार होन न आऊगा, आप जबरदसती िगरफतार कर सकत ह। और िफर अनपन भाषण का िसलिसला जारी कर िदया।

'हमार धनवानो को िकसका बल ह- पिलस का। हम पिलस ही स पछत ह, अनपन कासटबल भाइयो स हमारा सवाल ह, कया तम भी गरीब नही हो- कया तम और तमहार बाल-बचच सड हए, अनधर, दगधा और रोग स भर हए िबलो म नही रहत- लिकन यह जमान की खिबी ह िक तम अननयाय की रकषा करन क िलए, अनपन ही बाल-बचचो का गला घोटन क िलए तयार खिड हो?'

कपतान न भीड क अनदर जाकर शािनतकमार का हाथ पकड िलया और उनह साथ िलए हए लौटा। सहसा नना सामन स आकर खिडी हो गई।

शािनतकमार न चौककर पछा-तम िकधर स नना- सठजी और दवीजी तो चल िदए, अनब मरी बारी ह।

नना मसकराकर बोली-और आपक बाद मरी।

'नही, कही ऐसा अननथरय न करना। सब कछ तमहार ही ऊपर ह।'

नना न कछ जवाब न िदया। कपतान डॉकटर को िलए हए आग बढ गया। उधर सभा म शोर मचा हआ था। अनब उनका कया कतरयवय ह, इसका िनशचिय वह लोग न कर पात थ। उनकी दशा िपघली हई धात की-सी थी। उस िजस तरफ चाह मोड सकत ह। कोई भी चलता हआ आदमी उनका नता बनकर उनह िजस तरफ चाह ल जा

263 www.hindustanbooks.com

सकता था-सबस जयादा आसानी क साथ शाितभग की ओर। िचतत की उस दशा म, जो इन ताबडतोड िगरफतािरयो स शाितपथ-िवमखि हो रहा था, बहत सभव था िक व पिलस पर जाकर पतथर फकन लगत, या बाजार लटन पर आमादा हो जात। उसी वकत नना उनक सामन जाकर खिडी हो गई। वह अनपनी बगघी पर सर करन िनकली थी। रासत म उसन लाला समरकानत और रणकादवी क पकड जान की खिबर सनी। उसन तरत कोचवान को इस मदान की ओर चलन को कहा, और दौडी चली आ रही थी। अनब तक उसन अनपन पित और ससर की मयादा का पालन िकया था। अनपनी ओर स कोई ऐसा काम न करना चाहती थी िक ससराल वालो का िदल दख, या उनक अनसतोष का कारण हो। लिकन यह खिबर पाकर वह सयत न रह सकी। मनीराम जाम स बाहर हो जाएग, लाला धानीराम छाती पीटन लगग, उस गम नही। कोई उस रोक ल, तो वह कदािचत आतम-हतया कर बठ। वह सवभाव स ही लजजाशील थी। घर क एकात म बठकर वह चाह भखिो मर जाती, लिकन बाहर िनकलकर िकसी स सवाल करना उसक िलए अनसाधय था। रोज जलस होत थ लिकन उस कभी कछ भाषण करन का साहस नही हआ। यह नही िक उसक पास िवचारो का अनभाव था, अनथवा वह अनपन िवचारो को वयकत न कर सकती थी। नही, कवल इसिलए िक जनता क सामन खिड होन म उस सकोच होता था। या यो कहो िक भीतर की पकार कभी इतनी परबल न हई िक मोह और आलसय क बधनो को तोड दती। बाज ऐस जानवर भी होत ह, िजनम एक िवशष आसन होता ह। उनह आप मार डािलए। पर आग कदम न उठाएग। लिकन उस मािमक सथान पर उगली रखित ही उनम एक नया उतसाह, एक नया जीवन चमक उठता ह। लाला समरकानत की िगरफतारी न नना क हदय म उसी ममरयसथल को सपशरय कर िलया। वह जीवन म पहली बार जनता क सामन खिडी हई, िनशक, िनशचिल, एक नई परितभा, एक नई पराजलता स आभािसत। पिणमा क रजत परकाश म इटो क टील पर खिडी जब उसन अनपन कोमल िकत गहर कठ-सवर स जनता को सबोिधत िकया, तो जस सारी परकतित िन:सतबधा हो गई।

'सजजनो, म लाला समरकानत की बटी और लाला धानीराम की बह ह। मरा पयारा भाई जल म ह, मरी पयारी भावज जल म ह, मरा सोन-सा भतीजा जल म ह, मर िपताजी भी पहच गए।'

जनता की ओर स आवाज आई-रणकादवी भी ।

'हा, रणकादवी भी, जो मरी माता क तलय थी। लडकी क िलए वही मका ह, जहा उसक मा-बाप, भाई-भावज रह। और लडकी को मका िजतना पयारा होता ह, उतनी ससराल नही होती। सजजनो, इस जमीन क कई टकड मर ससरजी न खिरीद ह। मझ िवशवास ह, म आगरह कर तो वह यहा अनमीरो क बगल न बनवाकर गरीबो क घर बनवा दग, लिकन हमारा उददशय यह नही ह। हमारी लडाई इस बात पर ह िक िजस नगर म आधो स जयादा आबादी गद िबलो म मर रही हो, उस कोई अनिधकार नही ह िक महलो और बगलो क िलए जमीन बच। आपन दखिा था, यहा कई हर-भर गाव थ। मयिनिसपिलटी न नगर िनमाण-सघ बनाया। गाव क िकसानो की जमीन कौिडयो क दाम छीन ली गई, और आज वही जमीन अनशिफयो क दाम िबक रही ह इसिलए िक बड आदिमयो क बगल बन। हम अनपन नगर क िवधाताआ स पछत ह, कया अनमीरो ही क जान होती ह- गरीबो क जान नही होती- अनमीरो ही को तदरसत रहना चािहए- गरीबो को तदरसती की जररत नही- अनब जनता इस तरह मरन को तयार नही ह। अनगर मरना ही ह, तो इस मदान म खिल आकाश क नीच, चनदरमा क शीतल परकाश म मरना िबलो म मरन स कही अनचछा ह लिकन पहल हम नगर-िवधाताआ स एक बार और पछ लना ह िक वह अनब भी हमारा िनवदन सवीकार करग, या नही- अनब भी िसधदात को मानग, या नही- अनगर उनह घमड हो िक व हिथयार क जोर स गरीबो को कचलकर उनकी आवाज बद कर सकत ह, तो यह उनकी भल ह। गरीबो का रकत जहा िगरता ह, वहा हरक बद की जगह एक-एक आदमी उतपनन हो जाता ह। अनगर इस वकत नगर-िवधाताआ न

264 www.hindustanbooks.com

गरीबो की आवाज सन ली तो उनह सत का यश िमलगा, कयोिक गरीब बहत िदनो तक गरीब नही रहग और वह जमाना दर नही, जब गरीबो क हाथ म शिकत होगी। िवपलव क जत को छड-छडकर न जगाओ। उस िजतना ही छडोग, उतना ही झललाएगा और वह उठकर जमहाई लगा और जोर स दहाडगा, तो िफर तमह भागन की राह न िमलगी। हम बोडरय क मबरो को यही चतावनी दनी ह। इस वकत बहत ही अनचछा अनवसर ह। सभी भाई मयिनिसपिलटी क दफतर चल। अनब दर न कर, मबर अनपन-अनपन घर चल जाएग। हडताल म उपदरव का भय ह, इसिलए हडताल उसी हालत म करनी चािहए, जब और िकसी तरह काम न िनकल सक।'

नना न झडा उठा िलया और मयिनिसपिलटी क दफतर की ओर चली। उसक पीछ बीस-पचचीस हजार आदिमयो का एक सफर-सा उमडा हआ चला और यह दल मलो की भीड की तरह अनऋषखिलाल नही, फौज की कतारो की तरह ऋषखिलाब' था। आठ-आठ आदिमयो की अनसखय पिकतया गभीर भाव स एक िवचार, एक उददशय, एक धारणा की आतिरक शिकत का अननभव करती हई चली जा रही थी, और उनका ताता न टटता था, मानो भगभरय स िनकलती चली आती हो। सडक क दोनो ओर छजजो और छतो पर दशरयको की भीड लगी हई थी। सभी चिकत थ। उगरिाह िकतन आदमी ह। अनभी चल ही आ रह ह।

तब नना न यह गीत शर कर िदया, जो इस समय बचच-बचच की जबान पर था-

हमभ भी मभानव तनधारी ह...'

कई हजार गलो का सयकत, सजीव और वयापक सवर गफन म गज उठा-

हम भी मानव तनधारी ह ।'

नना न उस पद की पित की-

कयो हमको नीच समझत हो-'

कई हजार गलो न साथ िदया-

कयो हमको नीच समझत हो-'

नना-कयो अनपन सचच दासो पर-

जनता-कयो अनपन सचच दासो पर-

नना-इतना अननयाय बरतत हो ।

जनता-इतना अननयाय बरतत हो ।

उधर मयिनिसपिलटी बोडरय म यही परशन िछडा हआ था।

हािफज हलीम न टलीफौन का चोगा मज पर रखित हए कहा-डॉकटर शािनतकमार भी िगरफतार हो गए।

िम. सन न िनदरययता स कहा-अनब इस आदोलन की जड कट गई। डॉकटर साहब उसक पराण थ।

प आकारनाथ न चटकी ली-उस बलाक पर अनब बगल न बनग। शगन कह रह ह।

सन बाब भी अनपन लडक क नाम स उस बलाक क एक भाग क खिरीददार थ। जल उठ-अनगर बोडरय म अनपन पास िकए हए परसतावो पर िसथर रहन की शिकत नही ह, तो उस इसतीफा दकर अनलग हो जाना चािहए।

265 www.hindustanbooks.com

िम. शफीक न, जो यिनविसटी क परोफसर और डॉ. शािनतकमार क िमतर थ, सन को आड हाथो िलया-बोडरय क फसल खिदा क फसल नही ह। उस वकत बशक बोडरय न उस बलाक को छोट-छोट पलाटो म नीलाम करन का फसला िकया था, लिकन उसका नतीजा कया हआ- आप लोगो न वहा िजतना इमारती सामान जमा िकया, उसका कही पता नही ह। हजार आदमी स जयादा रोज रात को वही सोत ह। मझ यकीन ह िक वहा काम करन क िलए मजदर भी राजी न होगा। म बोडरय को खिबरदार िकए दता ह िक अनगर अनपनी पािलसी बदल न दी , तो शहर पर बहत बडी आफत आ जाएगी। सठ समरकानत और शािनतकमार का शरीक होना बतला रहा ह िक यह तहरीक बचचो का खल नही ह। उसकी जड बहत गहरी पहच गई ह और उस उखिाड फकना अनब करीब-करीब गरममिकन ह। बोडरय को अनपना फसला रपर करना पडगा। चाह अनभी कर या सौ-पचास जनो की नजर लकर कर। अनब तक का तरजबा तो यही कह रहा ह िक बोडरय की सिखतयो का िबलकल अनसर नही हआ बिलक उलटा ही अनसर हआ। अनब जो हडताल होगी, वह इतनी खिौफनाक होगी िक उसक खियाल स रोगट खिड होत ह। बोडरय अनपन िसर पर बहत बडी िजममदारी ल रहा ह।

िम. हािमदअनली कपड की िमल क मनजर थ। उनकी िमल घाट पर चल रही थी। डरत थ, कही लबी हडताल हो गई, तो बिधया ही बठ जाएगी। थ तो बहद मोट मगर बहद महनती। बोल-हक को तसलीम करन म बोडरय को कयो इतना पसोपश हो रहा ह, यह मरी समझ म नही आता। शायद इसिलए िक उसक गईर को झकना पडगा। लिकन हक क सामन झकना कमजोरी नही, मजबती ह। अनगर आज इसी मसल पर बोडरय का नया इतखिाब हो, तो म दाव स कह सकता ह िक बोडरय का यह िरजोलयशन हगरज गलत की तरह िमट जाएगा। बीस-पचीस हजार गरीब आदिमयो की बहतरी और भलाई क िलए अनगर बोडरय को दस-बारह लाखि का नकसान उठाना और दस-पाच मबरो की िदलिशकनी करनी पड तो उस...

िफर टलीफौन की घटी बजी। हािफज हलीम न कान लगाकर सना और बोल-पचचीस हजार आदिमयो की फौज हमार ऊपर धावा करन आ रही ह। लाला समरकानत की साहबजादी और सठ धानीराम साहब की बह उसकी लीडर ह। डी. एस. पी. न हमारी राय पछी ह, और यह भी कहा ह िक फायर िकए बगर जलस पीछ हटन वाला नही। म इस मआमल म बोडरय की राय जानना चाहता ह। बहतर ह िक वोट ल िलए जाय , जाबत की पाबिदयो का मौका नही ह, आप लोग हाथ उठाए-गॉर-

बारह हाथ उठ।

'अनगसट?'

दस हाथ उठ। लाला धानीराम िनउट'ल रह।

'तो बोडरय की राय ह िक जलस को रोका जाय, चाह फायर करना पड?'

सन बोल-कया अनब भी कोई शक ह-

िफर टलीफौन की घटी बजी। हािफजजी न कान लगाया। डी. एस. पी. कह रहा था- बडा गजब हो गया। अनभी लाला मनीराम न अनपनी बीवी को गोली मार दी।

हािफजजी न पछा-कया बात हई-

'अनभी कछ मालम नही। शायद िमसटर मनीराम गसस म भर हए जलस क सामन आए और अनपनी बीवी को वहा स हट जान को कहा। लडी न इकार िकया। इस पर कछ कहा-सनी हई। िमसटर मनीराम क हाथ म

266 www.hindustanbooks.com

िपसतौल थी। फौरन शट कर िदया। अनगर वह भाग न जाय, तो धािजजया उड जाय। जलस अनपन लीडर की लाश उठाए िफर मयिनिसपल बोडरय की तरफ जा रहा ह।'

हािफजजी न मबरो को यह खिबर सनाई, तो सार बोडरय म सनसनी दौड गई। मानो िकसी जाद स सारी सभा पाषाण हो गई हो।

सहसा लाला धानीराम खिड होकर भराई हई आवाज म बोल-सजजनो, िजस भवन को एक-एक ककड जोड-जोडकर पचास साल स बना रहा था, वह आज एक कषण म ढह गया, ऐसा ढह गया ह िक उसकी नीव का पता नही। अनचछ-स-अनचछ मसाल िदए, अनचछ-स-अनचछ कारीगर लगाए, अनचछ-स-अनचछ नकश बनवाए, भवन तयार हो गया था, कवल कलश बाकी था। उसी वकत एक तफान आता ह और उस िवशाल भवन को इस तरह उडा ल जाता ह, मानो ठठस का ढर हो। मालम हआ िक वह भवन कवल मर जीवन का एक सवपन था। सनहरा सवपन किहए, चाह काला सवपन किहए पर था सवपन ही। वह सवपन भग हो गया-भग हो गया।

यह कहत हए वह दवार की ओर चल।

हािफज हलीम न शोक क साथ कहा-सठजी, मझ और म उममीद करता ह िक बोडरय को आपस कमाल की हमददी ह।

सठजी न पीछ िफरकर कहा-अनगर बोडरय को मर साथ हमददी ह, तो इसी वकत मझ यह अनिखतयार दीिजए िक जाकर लोगो स कह द, बोडरय न तमह वह जमीन द दी, वरना यह आग िकतन ही घरो को भसम कर दगी, िकतनो ही क सवपनो को भग कर दगी।

बोडरय क कई मबर बोल-चिलए, हम लोग भी आपक साथ चलत ह।

बोडरय क बीस सभासद उठ खिड हए। सन न दखिा िक यहा कल चार आदमी रह जात ह तो वह भी उठ पड , और उनक साथ उनक तीनो िमतर भी उठ। अनत म हािफज हलीम का नबर आया।

जलस उधर स नना की अनथी िलए चला आ रहा ह। एक शहर म इतन आदमी कहा स आ गए- मीलो लबी घनी कतार ह शात, गभीर, सगिठत जो मर िमटना चाहती ह। नना क बिलदान न उनह अनजय, अनभ? बना िदया ह।

उसी वकत बोडरय क पचीसो मबरो न सामन आकर अनथी पर फल बरसाए और हािफज सलीम न आग बढकर, ऊच सवर म कहा-भाइयो आप मयिनिसपिलटी क मबरो क पास जा रह ह, मबर खिद आपका इिसतकबाल करन आए ह। बोडरय न आज इिततफाक राय स परा पलाट आप लोगो को दना मजर कर िलया। म इस पर बोडरय को मबारकबाद दता ह, और आपको भी। आज बोडरय न तसलीम कर िलया िक गरीब की सहत, आराम और जररत को वह अनमीरो क शौक, तकललफ और हिवस स जयादा िलहाज क कािबल समझता ह। उसन तसलीम कर िलया िक गरीबो का उस पर उसस कही जयादा हक ह, िजतना अनमीरो का । हमन तसलीम कर िलया िक बोडरय रपय की िनसबत िरआया की जान की जयादा कदर करती ह। उसन तसलीम कर िलया िक शहर की जीनत बडी-बडी कोिठयो और बगलो स नही, छोट-छोट आरामदह मकानो स ह, िजनम मजदर और थोडी आमदनी क लोग रह सक। म खिद उन आदिमयो म ह जो इस वसल की तसलीम न करत थ। बोडरय का बडा िहससा मर ही खियाल क आदिमयो का था लिकन आपकी करबािनयो न और आपक लीडरो की जाबािजयो न बोडरय पर फतह पाई और आज म उस फतह पर आपको मबारकबाद दता ह, और इस फतह का सहरा उस दवी क िसर ह, िजसका जनाजा

267 www.hindustanbooks.com

आपक कधो पर ह। लाला समरकानत मर परान रफीक ह। उनका सपत बटा मर लडक का िदली दोसत ह। अनमरकानत जसा शरीफ नौजवान मरी नजर स नही गजरा। उसी की सोहबत का अनसर ह िक आज मरा लडका िसिवल सिवस छोडकर जल म बठा हआ ह। ननादवी क िदल म जो कशमकश हो रही थी, उसका अनदाजा हम और आप नही कर सकत। एक तरफ बाप और भाई और भावज जल म कद, दसरी तरफ शौहर और ससर िमलिकयत और जायदाद की धन म मसत। लाला धानीराम मझ मआफ करग। म उन पर िफकरा नही कसता। िजस हालत म वह िगरफतार थ, उसी हालत म हम, आप और सारी दिनया िगरफतार ह। उनक िदल पर इस वकत एक ऐस गम की चोट ह, िजसस जयादा िदलिशकन कोई सदमा नही हो सकता। हमको, और म यकीन करता ह, आपको भी उनस कमाल की हमददी ह। हम सब उनक गम म शरीक ह। ननादवी क िदल म मका और ससराल की यह लडाई शायद इस तहरीक क शर होत ही शर हई और आज उसका यह हसरतनाक अनजाम हआ। मझ यकीन ह िक उनकी इस पाक करबानी की यादगार हमार शहर म उस वकत तक कायम रहगी , जब तक इसका वजद कायम रहगा म बतपरसत नही ह, लिकन सबस पहल म तजवीज करगा िक उस पलाट पर जो मोहलला आबाद हो, उसक बीचो-बीच इस दवी की यादगार नसब की जाय, तािक आन वाली नसल उसकी शानदार करबानी की याद ताजा करती रह-

दोसतो, म इस वकत आपक सामन कोई तकरीर नही करता ह। यह न तकरीर करन का मौका ह , न सनन का। रोशनी क साथ तारीकी ह, जीत क साथ हार, और खिशी क साथ गम। तारीकी और रोशनी का मल सहानी सबह होती ह, और जीत और हार का मल सलह। यह खिशी और गम का मल एक नए दौर की आवाज ह और खिदा स हमारी दआ ह िक यह दौर हमशा कायम रह, हमम ऐस ही हक पर जान दन वाली पाक ईह पदा होती रह कयोिक दिनया ऐसी ही ईहो की हसती स कायम ह। आपस हमारी गजािरश ह िक इस जीत क बाद हारन वालो क साथ वही बताव कीिजए, जो बहादर दशमन क साथ िकया जाना चािहए। हमारी इस पाक सरजमीन म हार हए दशमनो को दोसत समझा जाता था। लडाई खितम होत ही हम रिजश और गसस को िदल स िनकाल डालत थ और िदल खिोलकर दशमन स गल िमल जात थ। आइए, हम और आप गल िमलकर उस दवी की दह को खिश कर, जो हमारी सचची रहनमा, तारीकी म सबह का पगाम लान वाली सदवी थी। खिदा हम तौफीक द िक इस सचच शहीद स हम हकपरसती और िखिदमत का सबक हािसल कर।

हािफजजी क चप होत ही 'ननादवी की जय' की ऐसी शरधदा म डबी हई धविन उठी िक आकाश तक िहल उठा। िफर हािफज हलीम की भी जय-जयकार हई और जलस गगा की तरफ रवाना हो गया। बोडरय क सभी मबर जलस क साथ थ। िसफरक हािफज मयिनिसपिलटी क दफतर म जा बठ और पिलस क अनिधकािरयो स किदयो की िरहाई क िलए परामशरय करन लग।

िजस सगराम को छ: महीन पहल एक दवी न आरभ िकया था, उस आज एक दसरी दवी न अनपन पराणो की बिल दकर अनत कर िदया।

268 www.hindustanbooks.com

दसइधर सकीना जनान जल म पहची, उधर सखिदा, पठािनन और रणका की िरहाई का परवाना भी आ गया।

उसक साथ ही नना की हतया का सवाद भी पहचा। सखिदा िसर झकाए मितवत बठी रह गई, मानो अनचत हो गई हो। िकतनी महगी िवजय थी ।

रणका न लबी सास लकर कहा-दिनया म ऐस-ऐस आदमी पड हए ह, जो सवाथरय क िलए सतरी की हतया कर सकत ह।

सखिदा आवश म आकर बोली-नना की उसन हतया नही की अनममा, यह िवजय उस दवी क पराणो का वरदान ह।

पठािनन न आस पोछत हए कहा-मझ तो यही रोना आता ह िक भया को द:खि होगा। भाई-बहन म इतनी मोहबबत मन नही दखिी।

जलर न आकर सचना दी-आप लोग तयार हो जाए। शाम की गाडी स सखिदा, रणका और पठािनन, इन मिहलाआ को जाना ह। दिखिए हम लोगो स जो खिता हई हो, उस मआफ कीिजएगा।

िकसी न इसका जवाब न िदया, मानो िकसी न सना ही नही। घर जान म अनब आनद न था। िवजय का आनद भी इस शोक म डब गया था।

सकीना न सखिदा क कान म कहा-जान क पहल बाबजी स िमल लीिजएगा। यह खिबर सनकर न जान दशमनो पर कया गजर- मझ डर लग रहा ह।

बालक रणकानत सामन सहन म कीचड स िफसलकर िगर गया था और परो स जमीन को इस शरारत की सजा द रहा था। साथ-ही-साथ रोता भी जाता था। सकीना और सखिदा दोनो उस उठान दौडी, और वकष क नीच खिडी होकर उस चप करान लगी।

सकीना कल सबह आई थी पर अनब तक सखिदा और उसम मामली िशषटिाचार क िसवा और बात न हई थी। सकीना उसस बात करत झपती थी िक कही वह गपत परसग न उठ खिडा हो। और सखिदा इस तरह उसस आख चराती थी, मानो अनभी उसकी तपसया उस कलक को धोन क िलए काफी नही हई।

सकीना की सलाह म जो सहदयता भरी हई थी, उसन सखिदा को पराभत कर िदया। बोली-हा, िवचार तो ह। तमहारा कोई सदशा कहना ह-

सकीना न आखिो म आस भरकर कहा-म कया सदशा कहगी बहजी- आप इतना ही कह दीिजएगा-ननादवी चली गइ, पर जब तक सकीना िजदा ह, आप उस नना ही समझत रिहए।

सखिदा न िनदरयय मसकान क साथ कहा-उनका तो तमस दसरा िरशता हो चका ह।

सकीना न जस इस वार को काटा-तब उनह औरत की जररत थी, आज बहन की जररत ह।

सखिदा तीवर सवर म बोली-म तो तब भी िजदा थी।

सकीना न दखिा, िजस अनवसर स वह कापती रहती थी, वह िसर पर आ ही पहचा। अनब उस अनपनी सफाई दन क िसवा और कोई मागरय न था।

269 www.hindustanbooks.com

उसन पछा-म कछ कह, बरा तो न मािनएगा-

'िबलकल नही।'

'तो सिनए-तब आपन उनह घर स िनकाल िदया था। आप परब जाती थी, वह पिशचिम जात थ। अनब आप और वह एक िदल ह, एक जान ह। िजन बातो की उनकी िनगाह म सबस जयादा कदर थी, वह आपन सब परी कर िदखिाइ। वह जो आपको पा जाए, तो आपक कदमो का बोसा ल ल।'

सखिदा को इस कथन म वही आनद आया, जो एक किव को दसर किव की दाद पाकर आता ह, उसक िदल म जो सशय था वह जस आप-ही-आप उसक हदय स टपक पडा-यह तो तमहारा खियाल ह सकीना उनक िदल म कया ह, यह कौन जानता ह- मरदो पर िवशवास करना मन छोड िदया। अनब वह चाह मरी कछ इजजत करन लग-इजजत तो तब भी कम न करत थ, लिकन तमह वह िदल स िनकाल सकत ह, इसम मझ शक ह। तमहारी शादी िमया सलीम स हो जाएगी, लिकन िदल म वह तमहारी उपासना करत रहग।

सकीना की मदरा गभीर हो गई। नही, वह भयभीत हो गई। जस कोई शतर उस दम दकर उसक गल म फदा डालन जा रहा हो। उसन मानो गल को बचाकर कहा-तम उनक साथ िफर अननयाय कर रही हो बहनजी वह उन आदिमयो म नही ह, जो दिनया क डर स कोई काम कर। उनहोन खिद सलीम स मरी खित-िकताबत करवाई। म उनकी मशा समझ गई। मझ मालम हो गया, तमन अनपन रठ हए दवता को मना िलया। म िदल म कापी जा रही थी िक मझ जसी गवािरन उनह कस खिश रखि सकगी। मरी हालत उस कगल की-सी हो रही थी जो खिजाना पाकर बौखिला गया हो िक अनपनी झोपडी म उस कहा रख, कस उसकी िहफाजत कर- उनकी यह मशा समझकर मर िदल का बोझ हलका हो गया। दवता तो पजा करन की चीज ह वह हमार घर म आ जाय, तो उस कहा बठाए, कहा सलाए, कया िखिलाए- मिदर म जाकर हम एक कषण क िलए िकतन दीनदार, िकतन परहजगार बन जात ह। हमार घर म आकर यिद दवता हमारा अनसली रप दख, तो शायद हमस नफरत करन लग। सलीम को म सभाल सकती ह। वह इसी दिनया क आदमी ह, और म उनह समझा सकती ह।

उसी वकत जनान वाडरय क दवार खिल और तीन कदी अनदर दािखिल हए। तीनो न घटनो तक जािघए और आधी बाह क ऊच करत पहन हए थ। एक क कधो पर बास की सीढी थी, एक क िसर पर चन का बोरा। तीसरा चन की हािडया, कची और बािलटया िलए हए था। आज स जनान जल की पताई होगी। सालाना सफाई और मरममत क िदन आ गए ह।

सकीना न किदयो को दखित ही उछलकर कहा-वह तो जस बाबजी ह, डोल और रससी िलए हए, तो सलीम सीढी उठाए हए ह।

यह कहत हए उसन बालक को गोद म उठा िलया और उस भीच-भीचकर पयार करती हई दवार की ओर लपकी। बार-बार उसका मह चमती और कहती जाती थी-चलो, तमहार बाबजी आए ह।

सखिदा भी आ रही थी, पर मद गित स उस रोना आ रहा था। आज इतन िदनो क बाद मलाकात हई तो इस दशा म।

सहसा मननी एक ओर स दौडती हई आई और अनमर क हाथ स डोल और रससी छीनती हई बोली-अनर यह तमहारा कया हाल ह लाला, आधो भी नही रह, चलो आराम स बठो, म पानी खिीच दती ह।

अनमर न डोल को मजबती स पकडकर कहा-नही-नही, तमस न बनगा। छोड दो डोल। जलर दखगा, तो

270 www.hindustanbooks.com

मर ऊपर डाट पडगी।

मननी न डोल छीनकर कहा-म जलर को जवाब द लगी। ऐस ही थ तम वहा-

एक तरफ स सकीना और सखिदा दसरी तरफ स पठािनन और रणका आ पहची पर िकसी क मह स बात न िनकलती थी। सबो की आख सजल थी और गल भर हए। चली थी हषरय क आवश म पर हर पग क साथ मानो जल गहरा होत-होत अनत को िसरो पर आ पहचा।

अनमर इन दिवयो को दखिकर िवसमय-भर गवरय स फल उठा। उनक सामन वह िकतना तचछ था, िकतना नगणय। िकन शबदो म उनकी सतित कर, उनकी भट कया चढाए- उसक आशावादी नतरो म भी राषटि' का भिवषय कभी इतना उजजवल न था। उनक िसर स पाव तक सवदशािभमान की एक िबजली-सी दौड गई। भिकत क आस आखिो म छलक आए।

औरो की जल-यातरा का समाचार तो वह सन चका था पर रणका को वहा दखिकर वह जस उनमतता होकर उनक चरणो पर िगर पडा।

रणका न उसक िसर पर हाथ रखिकर आशीवाद दत हए कहा-आज चलत-चलत तमस खिब भट हो गई बटा ईशवर तमहारी मनोकामना सफल कर। मझ तो आए आज पाचवा िदन ह, पर हमारी िरहाई का हकम आ गया। नना न हम मकत कर िदया।

अनमर न धडकत हए हदय स कहा-तो कया वह भी यहा आई ह- उसक घर वाल तो बहत िबगड होग-

सभी दिवया रो पडी। इस परशन न जस उनक हदय को मसोस िदया। अनमर न चिकत नतरो स हरक क मह की ओर दखिा। एक अनिनषटि शका स उसकी सारी दह थरथरा उठी। इन चहरो पर िवजय की दीिपत नही , शोक की छाया अनिकत थी। अनधीर होकर बोला-कहा ह नना, यहा कयो नही आती- उसका जी अनचछा नही ह कया-

रणका न हदय को सभालकर कहा-नना को आकर चौक म दखिना बटा, जहा उसकी मित सथािपत होगी। नना आज तमहार नगर की रानी ह। हरक हदय म तम उस शरधदा क िसहासन पर बठी पाओग।

अनमर पर जस वजपात हो गया। वह वही भिम पर बठ गया और दोनो हाथो स मह ढापकर ठठक-ठठटकर रोन लगा। उस जान पडा, अनब ससार म उसका रहना वथा ह। नना सवगरय की िवभितयो स जगमगाती, मानो उस खिडी बला रही थी।

रणका न उसक िसर पर हाथ रखिकर कहा-बटा, कयो उसक िलए रोत हो, वह मरी नही, अनमर हो गई उसी क पराणो स इस यजञ की पणाहित हई ह ।

सलीम न गला साफ करक पछा-बात कया हई- कया कोई गोली लग गई-

रणका न इस भाव का ितरसकार करक कहा-नही भया, गोली कया चलती, िकसी स लडाई थी- िजस वकत वह मदान स जलस क साथ मयिनिसपिलटी क दफतर की ओर चली, तो एक लाखि आदमी स कम न थ। उसी वकत मनीराम न आकर उस पर गोली चला दी। वही िगर पडी। कछ मह स न कह पाई। रात-िदन भया ही म उसक पराण लग रहत थ। वह तो सवगरय गई हा, हम लोगो को रोन क िलए छोड गई।

अनमर को जयो-जयो नना क जीवन की बात याद आती थी, उसक मन म जस िवषाद का एक नया सोता खिल जाता था। हाय उस दवी क साथ उसन एक भीर कतरयवय का पालन न िकया। यह सोच-सोचकर उसका जी

271 www.hindustanbooks.com

कचोट उठता था। वह अनगर घर छोडकर न भागा होता, तो लालाजी कयो उस लोभी मनीराम क गल बध दत और कयो उसका यह करणाजनक अनत होता ।

लिकन सहसा इस शोक-सफर म डबत हए उस ईशवरीय िवधन की नौका-सी िमल गई। ईशवरीय पररणा क िबना िकसी म सवा का ऐसा अननराग कस आ सकता ह- जीवन का इसस शभ उपयोग और कया हो सकता ह- गहसथी क सचय म सवाथरय की उपासना म, तो सारी दिनया मरती ह। परोपकार क िलए मरन का सौभागय तो ससकार वालो ही को परापत ह। अनमर की शोक-मगन आतमा न अनपन चारो ओर ईशवरीय दया का चमतकार दखिा-वयापक, अनसीम, अननत।

सलीम न िफर पछा-बचार लालाजी को तो बडा रज हआ होगा-

रणका न गवरय स कहा-वह तो पहल ही िगरफतार हो चक थ बटा, और शािनतकमार भी।

अनमर को जान पडा, उसकी आखिो की जयोित दगनी हो गई ह, उसकी भजाआ म चौगना बल आ गया ह, उसन वही ईशवर क चरणो म िसर झका िदया और अनब उसकी आखिो स जो मोती िगर, वह िवषाद क नही, उललास और गवरय क थ। उसक हदय म ईशवर की ऐसी िनषठा का उदय हआ, मानो वह कछ नही ह, जो कछ ह, ईशवर की इचछा ह जो कछ करता ह, वही करता ह वही मगल-मल और िस'ियो का दाता ह। सकीना और मननी दोनो उसक सामन खिडी थी। उनकी छिव को दखिकर उसक मन म वासना की जो आधी-सी चलन लगती थी, उसी छिव म आज उसन िनमरयल परम क दशरयन पाए, जो आतमा क िवकारो को शात कर दता ह, उस सतय क परकाश स भर दता ह। उसम लालासा की जगह उतसगरय, भोग की जगह तप का ससकार भर दता ह। उस ऐसा आभास हआ, मानो वह उपासक ह और य रमिणया उसकी उपासय दिवया ह। उनक पदरज को माथ पर लगाना ही मानो उसक जीवन की साथरयकता ह।

रणका न बालक को सकीना की गोद स लकर अनमर की ओर उठात हए कहा-यही तर बाबजी ह, बटा, इनक पास जा।

बालक न अनमरकानत का वह किदयो का बाना दखिा, तो िचललाकर रणका स िचपट गया िफर उसकी गोद म मह िछपाए कनिखियो स उस दखिन लगा, मानो मल तो करना चाहता ह, पर भय तो यह ह िक कही यह िसपाही उस पकड न ल, कयोिक इस भस क आदमी को अनपना बाबजी समझन म उसक मन को सदह हो रहा था।

सखिदा को बालक पर करोध आया। िकतना डरपोक ह, मानो इस वह खिा जात। इचछा हो रही थी िक यह भीड टल जाए, तो एकात म अनमर स मन की दो-चार बात कर ल। िफर न जान कब भट हो।

अनमर न सखिदा की ओर ताकत हए कहा-आप लोग इस मदान म भी हमस बाजी ल गइ। आप लोगो न िजस काम का बीडा उठाया, उस परा कर िदखिाया। हम तो अनभी जहा खिड थ, वही खिड ह। सफलता क दशरयन होग भी या नही, कौन जान- जो थोडा-बहत आदोलन यहा हआ ह, उसका गौरव भी मननी बहन और सकीना बहन को ह। इन दोनो बहनो क हदय म दश क िलए जो अननराग औरर कतरयवय क िलए जो उतसगरय ह , उसन हमारा मसतक ऊचा कर िदया। सखिदा न जो कछ िकया, वह तो आप लोग मझस जयादा जानती ह। आज लगभग तीन साल हए, म िवदरोह करक घर स भागा था। म समझता था, इनक साथ मरा जीवन नषटि हो जाएगा पर आज म इनक चरणो की धल माथ पर लगाकर अनपन को धनय समझगा। म सभी माताआ और बहनो क सामन उनस

272 www.hindustanbooks.com

कषमा मागता ह।

सलीम न मसकराकर कहा-यो जबानी नही, कान पकडकर एक लाखि मरतबा उठो-बठो।

अनमर न कनिखियो स दखिा और बोला-अनब तम मिजटरट नही हो भाई, भलो मत। ऐसी सजाए अनब नही द सकत ।

सलीम न िफर शरारत की। सकीना स बोला-तम चपचाप कयो खिडी हो सकीना- तमह भी तो इनस कछ कहना ह, या मौका तलाश कर रही हो-

िफर अनमर स बोला-आप अनपन कौल स िफर नही सकत जनाब जो वाद िकए ह, वह पर करन पडग।

सकीना का चहरा मार शमरय क लाल हो गया। जी चाहता था जाकर सलीम क चटकी काट ल उसक मखि पर आनद और िवजय का ऐसा रग था जो िछपाए न िछपता था। मानो उसक मखि पर बहत िदनो स जो कािलमा लगी हई थी, वह आज धल गई हो, और ससार क सामन अनपनी िनषकलकता का िढढोरा पीटना चाहती हो। उसन पठािनन को ऐसी आखिो स दखिा, जो ितरसकार भर शबदो म कह रही थी-अनब तमह मालम हआ, तमन िकतना घोर अननथरय िकया था अनपनी आखिो म वह कभी इतनी ऊची न उठी थी। जीवन म उस इतनी शरधदा और इतना सममान िमलगा, इसकी तो उसन कभी कलपना न की थी।

सखिदा क मखि पर भी कछ कम गवरय और आनद की झलक न थी। वहा जो कठोरता और गिरमा छाई रहती थी, उसकी जगह जस माधयरय िखिल उठा ह। आज उस कोई ऐसी िवभित िमल गई ह, िजसकी कामना अनपरतयकष होकर भी उसक जीवन म एक िरिकत, एक अनपणरयता की सचना दती रहती थी। आज उस िरिकत म जस माधयरय भर गया ह, वह अनपणरयता जस पललिवत हो गई ह। आज उसन परष क परम म अनपन नारीतव को पाया ह। उसक हदय स िलपटकर अनपन को खिो दन क िलए आज उसक पराण िकतन वयाकल हो रह ह। आज उसकी तपसया मानो फलीभत हो गई ह।

रही मननी, वह अनलग िवरकत भाव स िसर झकाए खिडी थी। उसक जीवन की सनी मडर पर एक पकषी न जान कहा स उडता हआ आकर बठ गया था। उस दखिकर वह अनचल म दाना भर आ आ कहती, पाव दबाती हई उस पकड लन क िलए लपककर चली। उसन दाना जमीन पर िबखर िदया। पकषी न दाना चगा, उस िवशवास भरी आखिो स दखिा, मानो पछ रहा हो-तम मझ सनह स पालोगी या चार िदन मन बहलाकर िफर पर काटकर िनराधार छोड दोगी लिकन उसन जयोही पकषी को पकडन क िलए हाथ बढाया, पकषी उड गया और तब दर की एक डाली पर बठा हआ उस कपट भरी आखिो स दखि रहा था, मानो कह रहा हो-म आकाशगामी ह, तमहार िपजर म मर िलए सख दान और किलहया म पानी क िसवा और कया था ।

सलीम न नाद म चना डाल िदया। सकीना और मननी न एक-एक डोल उठा िलया और पानी खिीचन चली।

अनमर न कहा-बालटी मझ द दो, म भर लाता ह।

मननी बोली-तम पानी भरोग और हम बठ दखग-

अनमर न हसकर कहा-और कया, तम पानी भरोगी, और म तमाशा दखिगा-

मननी बालटी लकर भागी। सकीना भी उसक पीछ दौडी।

रणका जमाई क िलए कछ जलपान बना लान चली गई थी। यहा जल म बचार को रोटी-दाल क िसवा

273 www.hindustanbooks.com

और कया िमलता ह। वह चाहती थी, सकडो चीज बनाकर िविधपवरयक जमाई को िखिलाए। जल म भी रणका को घर क सभी सखि परापत थ। लडी जलर, चौकीदािरन और अननय कमरयचारी सभी उनक गलाम थ। पठािनन खिडी-खिडी थक जान क कारण जाकर लट रही थी। मननी और सकीना पानी भरन चली गइ। सलीम को भी सकीना स बहत-सी बात कहनी थी। वह भी बब की तरफ चला। यहा कवल अनमर और सखिदा रह गए।

अनमर न सखिदा क समीप आकर बालक को गल लगात हए कहा-यह जल तो मर िलए सवगरय हो गया सखिदा िजतनी तपसया की थी, उसस कही बढकर वरदान पाया। अनगर हदय िदखिाना सभव होता, तो िदखिाता िक मझ तमहारी िकतनी याद आती थी। बार-बार अनपनी गलितयो पर पछताता था।

सखिदा न बात काटी-अनचछा, अनब तमन बात बनान की कला भी सीखि ली। तमहार हदय का हाल कछ मझ भी मालम ह। उसम नीच स ऊपर तक करोध-ही-करोध ह। कषमा या दया का कही नाम भी नही। म िवलािसनी सही पर उस अनपराध का इतना कठोर दड यह जानत थ िक वह मरा दोष नही मर ससकारो का दोष था।

अनमर न लिजजत होकर कहा-यह तमहारा अननयाय ह सखिदा ।

सखिदा न उसकी ठोडी को ऊपर उठात हए कहा-मरी ओर दखिो। मरा ही अननयाय ह तम नयाय क पतल हो- ठीक ह। तमन सकडो पतर भज, मन एक का भी जवाब न िदया, कयो- म कहती ह, तमह इतना करोध आया कस- आदमी को जानवरो स भी परीित हो जाती ह। म तो िफर भी आदमी थी। रठकर ऐसा भला िदया मानो म मर गई।

अनमर इस आकषप का कोई जवाब न द सकन पर भी बोला-तमन भी तो पतर नही िलखिा और म िलखिता भी तो तम जवाब दती- िदल स कहना।

'तो तम मझ सबक दना चाहत थ?'

अनमरकानत न जलदी स आकषप को दर िकया-नही, यह बात नही ह सखिदा हजारो बार इचछा हई िक तमह पतर िलखि, लिकन-

सखिदा न वाकय को परा िकया-लिकन भय यही था िक शायद म तमहार पतरो को हाथ न लगाती। अनगर नारी-हदय का तमह यही जञान ह, तो म कहगी, तमन उस िबलकल नही समझा।

अनमर न अनपनी हार सवीकार की-तो मन यह दावा कब िकया था िक म नारी-हदय का पारखिी ह-

वह यह दावा न कर लिकन सखिदा न तो धारणा कर ली थी िक उस यह दावा ह। मीठ ितरसकार क सवर म बोली-परष की बहादरी तो इसम नही ह िक सतरी को अनपन परो पर िगराए। मन अनगर तमह पतर न िलखिा , तो इसका यह कारण था िक म समझती थी, तमन मर साथ अननयाय िकया ह, मरा अनपमान िकया ह लिकन इन बातो को जान दो। यह बताओ, जीत िकसकी हई, मरी या तमहारी-

अनमर न कहा-मरी।

'और म कहती ह-मरी।'

'कस?'

'तमन िवदरोह िकया था, मन दमन स ठीक कर िदया।'

274 www.hindustanbooks.com

'नही, तमन मरी माग परी कर दी।'

उसी वकत सठ धानीराम जल क अनिधकािरयो और कमरयचािरयो क साथ अनदर दािखिल हए। लोग कौतहल स उन लोगो की ओर दखिन लग। सठ इतन दबरयल हो गए थ िक बडी मिशकल स लकडी क सहार चल रह थ। पग-पग पर खिासत भी जात थ।

अनमर न आग बढकर सठजी को परणाम िकया। उनह दखित ही उसक मन म उनकी ओर स जो गबार था, वह जस धल गया।

सठजी न उस आशीवाद दकर कहा-मझ यहा दखिकर तमह आशचियरय हो रहा होगा बटा, समझत होग, बङढा अनभी तक जीता जा रहा ह, इस मौत कयो नही आती- यह मरा दभागय ह िक मझ ससार न सदा अनिवशवास की आखिो स दखिा। मन जो कछ िकया, उस पर सवाथरय का आकषप लगा। मझम भी कछ सचचाई ह, कछ मनषयता ह, इस िकसी न कभी सवीकार नही िकया। ससार की आखिो म म कोरा पश ह, इसिलए िक म समझता ह, हरक काम का समय होता ह। कचचा फल पाल म डाल दन स पकता नही। तभी पकता ह जब पकन क लायक हो जाता ह। जब म अनपन चारो ओर फल हए अनधकार को दखिता ह, तो मझ सयोदय क िसवाय उसक हटान का कोई दसरा उपाय नही सझता। िकसी दफतर म जाओ, िबना िरशवत क काम नही चल सकता। िकसी घर म जाओ, वहा दवष का राजय दखिोग। सवाथरय, अनजञान, आलसय न हम जकड रखिा ह। उस ईशवर की इचछा ही दर कर सकती ह। हम अनपनी परानी ससकतित को भल बठ ह। वह आतम-परधान ससकतित थी। जब तक ईशवर की दया न होगी, उसका पनिवकास न होगा और जब तक उसका पनिवकास न होगा, हम लोग कछ नही कर सकत। इस परकार क आदोलनो म मरा िवशवास नही ह। इनस परम की जगह दवष बढता ह। जब तक रोग का ठीक िनदान न होगा , उसकी ठीक औषधी न होगी, कवल बाहरी टीम-टाम स रोग का नाश न होगा।

अनमर न इस परलाप पर उपकषा-भाव स मसकराकर कहा-तो िफर हम लोग उस शभ समय क इतजार म हाथ-पर-हाथ धार बठ रह-

एक वाडरयन दौडकर कई किसया लाया। सठजी और जल क दो अनिधकारी बठ। सठजी न पान िनकालकर खिाया, और इतनी दर म इस परशन का जवाब भी सोचत जात थ। तब परसनन मखि होकर बोल-नही, यह म नही कहता। यह आलिसयो और अनकमरयणयो का काम ह। हम परजा म जागित और ससकार उतपनन करन की चषटिा करत रहना चािहए। म इस कभी नही मान सकता िक आज आधी मालगजारी होत ही परजा सखि क िशखिर पर पहच जाएगी। उसम सामािजक और मानिसक ऐस िकतन ही दोष ह िक आधी तो कया, परी मालगजारी भी छोड दी जाय, तब भी उसकी दशा म कोई अनतर न होगा। िफर म यह भी सवीकार न करगा िक फिरयाद करन की जो िविध सोची गई और िजसका वयवहार िकया गया, उनक िसवा कोई दसरी िविध न थी।

अनमर न उततोिजत होकर कहा-हमन अनत तक हाथ-पाव जोड, आिखिर मजबर होकर हम यह आदोलन शर करना पडा।

लिकन एक ही कषण म वह नमर होकर बोला-सभव ह, हमस गलती हई हो, लिकन उस वकत हम यही सझ पडा।

सठजी न शाितपवरयक कहा-हा, गलती हई और बहत बडी गलती हई। सकडो घर बरबाद हो जान क िसवा और कोई नतीजा न िनकला। इस िवषय पर गवनरयर साहब स मरी बातचीत हई ह और वह भी यही कहत ह िक

275 www.hindustanbooks.com

ऐस जिटल मआमल म िवचार स काम नही िलया गया। तम तो जानत हो, उनस मरी िकतनी बतकललफी ह। नना की मतय पर उनहोन मातमपरसी का तार िदया था। तमह शायद मालम न हो , गवनरयर साहब न खिद उस इलाक का दौरा िकया और वहा क िनवािसयो स िमल। पहल तो कोई उनक पास आता ही न था। साहब बहत हस रह थ िक ऐसी सखिी अनकड कही नही दखिी। दह पर सािबत कपड नही लिकन िमजाज यह ह िक हम िकसी स कछ नही कहना ह। बडी मिशकल स थोड-स आदमी जमा हए। जज साहब न उनह तसलली दी और कहा-तम लोग डरो मत, हम तमहार साथ अननयाय नही करना चाहत, तब बचार रोन लग। साहब इस झगड को जलद तय कर दना चाहत ह। और इसिलए उनकी आजञा ह िक सार कदी छोड िदए जाए और एक कमटी करक िनशचिय कर िलया जाय िक हम कया करना ह- उस कमटी म तम और तमहार दोसत िमया सलीम तो होग ही, तीन आदिमयो को चनन का तमह और अनिधकार होगा। सरकार की ओर स कवल दो आदमी होग। बस, म यही सचना दन आया ह। मझ आशा ह, तमह इसम कोई आपितत न होगी।

सकीना और मननी म कनफसिकया होन लगी। सलीम क चहर पर रौनक आ गई, पर अनमर उसी तरह शात, िवचारो म मगन खिडा रहा।

सलीम न उतसकता स पछा-हम अनिखतयार होगा िजस चाह चन-

'परा।'

'उस कमटी का फसला नाितक होगा?'

सठजी न िहचिकचाकर कहा-मरा तो ऐसा खियाल ह।

'हम आपक खियाल की जररत नही। हम इसकी तहरीर िमलनी चािहए।'

'और तहरीर न िमल।'

'तो हम मआइदा मजर नही।'

'नतीजा यह होगा, िक यही पड रहोग और िरआया तबाह होती रहगी।'

'जो कछ भी हो।'

'तमह तो कोई खिास तकलीफ नही ह लिकन गरीबो पर कया बीत रही ह, वह सोचो।'

'खिब सोच िलया ह।'

'नही सोचा।'

'िबलकल नही सोचा।'

'खिब अनचछी तरह सोच िलया ह।'

'सोचत तो ऐसा न कहत।'

'सोचा ह इसीिलए ऐसा कह रहा ह।'

अनमर न कठोर सवर म कहा-कया कह रह हो सलीम कयो हजजत कर रह हो- इसस फायदा-

सलीम न तज होकर कहा-म हजजत कर रहा ह- वाह री आपकी समझ सठजी मालदार ह, हककमरस ह,

276 www.hindustanbooks.com

इसिलए वह हजजत नही करत। म गरीब ह, कदी ह इसिलए हजजत करता ह-

'सठजी बजगरय ह।'

'यह आज ही सना िक हजजत करना बजगी की िनशानी ह।'

अनमर अनपनी हसी को रोक न सका-यह शायरी नही ह भाईजान, िक जो मह म आया बक गए। ऐस मआमल ह, िजन पर लाखिो आदिमयो की िजदगी बनती-िबगडती ह। पजय सठजी न इस समसया को सलझान म हमारी मदद की, जसा उनका धमरय था और इसक िलए हम उनका मशकर होना चािहए । हम इसक िसवा और कया चाहत ह िक गरीब िकसानो क साथ इसाफ िकया जाय, और जब उस उददशय को करन क इराद स एक ऐसी कमटी बनाई जा रही ह, िजसस यह आशा नही िक जा सकती िक वह िकसान क साथ अननयाय कर, तो हमारा धमरय ह िक उसका सवागत कर।

सठजी न मगध होकर कहा-िकतनी सदर िववचना ह। वाह लाट साहब न खिद तमहारी तारीफ की।

जल क दवार पर मोटर का हानरय सनाई िदया। जलर न कहा-लीिजए, दिवयो क िलए मोटर आ गई। आइए, हम लोग चल। दिवयो को अनपनी-अनपनी तयािरया करन द। बहनो, मझस जो कछ खिता हई हो, उस मआफ कीिजएगा। मरी नीयत आपको तकलीफ दन की न थी हा, सरकारी िनयमो स मजबर था।

सब-क-सब एक ही लारी म जाय, यह तय हआ। रणकादवी का आगरह था। मिहलाए अनपनी तयािरया करन लगी। अनमर और सलीम क कपड भी यही मगवा िलए गए। आधो घट म सब-क-सब जल स िनकल।

सहसा एक दसरी मोटर आ पहची और उस पर स लाला समरकानत, हािफज हलीम, डॉ. शािनतकमार और सवामी आतमाननद उतर पड। अनमर दौडकर िपता क चरणो पर िगर पडा। िपता क परित आज उसक हदय म अनसीम शरधदा थी। नना मानो आखिो म आस भर उसस कह रही थी-भया, दादा को कभी द:खिी न करना, उनकी रीित-नीित तमह बरी भी लग, तो भी मह मत खिोलना। वह उनक चरणो को आसआ स धोरहा था और सठजी उसक ऊपर मोितयो की वषा कर रह थ।

सलीम भी िपता क गल स िलपट गया। हािफजजी न आशीवाद दकर कहा-खिदा का लाखि-लाखि शकर ह िक तमहारी करबािनया सफल हइ। कहा ह सकीना, उस भी दखिकर कलजा ठडा कर ल।

सकीना िसर झकाए आई और उनह सलाम करक खिडी हो गई। हािफजजी न उस एक नजर दखिकर समरकानत स कहा-सलीम का इितखिाब तो बरा नही मालम होता।

समरकानत मसकराकर बोल-सरत क साथ दहज म दिवयो क जौहर भी ह।

आनद क अनवसर पर हम अनपन द:खिो को भल जात ह। हािफजजी को सलीम क िसिवल सिवस स अनलग होन का, समरकानत को नना की मतय का और सठ धानीराम को पतर-शोक का रज कछ कम न था, पर इस समय सभी परसनन थ। िकसी सगराम म िवजय पान क बाद योधदागण मरन वाल क नाम को रोन नही बठत। उस वकत तो सभी उतसव मनात ह, शािदयान बजत ह, महिफल जमती ह, बधाइया दी जाती ह। रोन क िलए हम एकात ढढत ह, हसन क िलए अननकात।

सब परसनन थ। कवल अनमरकानत मन मार हए उदास था।

सब लोग सटशन पर पहच, तो सखिदा न उसस पछा-तम उदास कयो हो-

277 www.hindustanbooks.com

अनमर न जस जाफकर कहा-म उदास तो नही ह।

'उदासी भी कही िछपान स िछपती ह?'

अनमर न गभीर सवर म कहा-उदास नही ह, कवल यह सोच रहा ह िक मर हाथो इतनी जान-माल की कषित अनकारण ही हई। िजस नीित स अनब काम िलया गया, कया उसी नीित स तब काम न िलया जा सकता था- उस िजममदारी का भार मझ दबाए डालता ह।

सखिदा न शात-कोमल सवर म कहा-म तो समझती ह, जो कछ हआ, अनचछा ही हआ। जो काम अनचछी नीयत स िकया जाता ह, वह ईशवराथरय होता ह। नतीजा कछ भी हो। यजञ का अनगर कछ फल न िमल तो यजञ का पणय तो िमलता ही ह लिकन म तो इस िनणरयय को िवजय समझती ह, ऐसी िवजय तो अनभतपवरय ह। हम जो कछ बिलदान करना पडा, वह उस जागित क दखित हए कछ भी नही ह, जो जनता म अनकिरत हो गई ह। कया तम समझत हो, इन बिलदानो क िबना यह जागित आ सकती थी, और कया इस जागित क िबना यह समझौता हो सकता था- मझ इसम ईशवर का हाथ साफ नजर आ रहा ह।

अनमर न शरधदा-भरी आखिो स सखिदा को दखिा। उस ऐसा जान पडा िक सवय ईशवर इसक मन म बठ बोल रह ह। वह कषोभ और गलािन िनषठा क रप म परजविलत हो उठी, जस कड-करकट का ढर आग की िचनगारी पडत ही तज और परकाश की रािश बन जाता ह। ऐसी परकाशमय शाित उस कभी न िमली थी।

उसन परम स-गदगद कठ स कहा-सखिदा, तम वासतव म मर जीवन का दीपक हो।

उसी वकत लाला समरकानत बालक को कधो पर िबठाए हए आकर बोल-अनभी तो काशी ही चलन का िवचार ह न?

अनमर न कहा-मझ तो अनभी हिरदवार जाना ह।

सखिदा बोली-तो सब वही चलग।

अनमरकानत न कछ हताश होकर कहा-अनचछी बात ह। तो जरा म बाजार स सलोनी क िलए सािडया लता आऊ-

सखिदा न मसकराकर कहा-सलोनी क िलए ही कयो- मननी भी तो ह।

मननी इधर ही आ रही थी। अनपना नाम सनकर िजजञासा-भाव स बोली-कया मझ कछ कहती हो बहजी-

सखिदा न उसकी गरदन म हाथ डालकर कहा-म कह रही थी िक अनब मननीदवी भी हमार साथ काशी रहगी ।

मननी न चौककर कहा-तो कया तम लोग काशी जा रह हो-

सखिदा हसी-और तमन कया समझा था-

'म तो अनपन गाव जाऊगी।'

'हमार साथ न रहोगी?'

'तो कया लाला भी काशी जा रह ह?'

278 www.hindustanbooks.com

'और कया- तमहारी कया इचछा ह?'

मननी का मह लटक गया।

'कछ नही, यो ही पछती थी।'

अनमर न उस आशवासन िदया-नही मननी, यह तमह िचढा रही ह। हम सब हिरदवार चल रह ह।

मननी िखिल उठी।

'तब तो बडा आनद आएगा। सलोनी काकी मसलो ढोल बजाएगी।'

अनमर न पछा-अनचछा, तम इस फसल का मतलब समझ गइ-

'समझी कयो नही- पाच आदिमयो की कमटी बनगी। वह जो कछ करगी उस सरकार मान लगी। तम और सलीम दोनो कमटी म रहोग। इसस अनचछा और कया होगा?'

'बाकी तीन आदिमयो को भी हमी चनग।'

'तब तो और भी अनचछा हआ।'

'गवनरयर साहब की सजजनता और सहदयता ह।'

'तो लोग उनह वयथरय बदनाम कर रह थ?'

'िबलकल वयथरय।'

'इतन िदनो क बाद हम िफर अनपन गाव म पहचग। और लोग भी छट आए होग?'

'आशा ह। जो न आए होग, उनक िलए िलखिा-पढी करग।'

'अनचछा, उन तीन आदिमयो म कौन-कौन रहगा?'

'और कोई रह या न रह, तम अनवशय रहोगी।'

'दखिती हो बहजी, यह मझ इसी तरह छडा करत ह।'

यह कहत-कहत उसन मह फर िलया। आखिो म आस भर आए थ

279 www.hindustanbooks.com


Recommended